दिल्ली के वसंत विहार में 23 साल की एक युवती का अपहरण करके चलती कार में गैंगरेप का मामला सामने आया है। तीनों आरोपियों को अरेस्ट कर लिया गया है।
प्रतीकात्मक तस्वीर।
हिंदी अखबार ‘अमर उजाला’ की खबर के मुताबिक पुलिस ने बताया है कि मूल रूप से हिमाचल की रहने वाली युवती दिल्ली के मुनीरका में रहती है। प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली यह युवती मंगलवार रात अपनी सहेली के साथ प्रिया सिनेमा में मूवी देखने गई थी। रात सवा 3 बजे जब वह प्रिया कॉम्प्लेक्स से बाहर निकली, कार सवार तीन युवकों ने उसे गाड़ी में खींच लिया।
आरोपियों ने चलती गाड़ी में और कई जगह पर गाड़ी रोककर रेप किया। इस बीच युवती की सहेली ने गाड़ी का नंबर नोट कर लिया था और तुरंत 100 नंबर पर फोन करके पुलिस को बता दिया था। पुलिस ने हरकत में आकर तलाश शुरू कर दी।
रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर पुलिस को पता चला कि कार किसकी है। इसके बाद कार के मालिस ने बताया कि उसने उदय सेहरावत नाम के शख्स को गाड़ी दी हुई है। सुबह करीब साढ़े 4 बजे आरोपियों ने युवती को वसंत विहार छोड़ दिया, जहां से पुलिस ने उसे अस्त-व्यस्त हालत में पाया। मेडिकल में रेप की पुष्टि हुई है और तीन आरोपियों उदय सेहरावत, विनीत और राजवीर को अरेस्ट कर लिया गया है।
अगर बच्चा कोई गलती करे तो उसे समझाना पैरंट्स का फर्ज होता है। क्या हो अगर किसी का बेटा गालियां देता हो और कोई पिता से इसकी शिकायत करे। जाहिर है, हर पिता कहेगा कि मेरे बेटे को ऐसा नहीं करना चाहिए और वह अपने बेटे को समझाएगा भी। मगर कांगड़ा से सांसद रह चुके चंद्र कुमार अलग ही सोच रखते हैं। उनके बेटे और हिमाचल सरकार में सीपीएस नीरज भारती फेसबुक पर अभद्र भाषा इस्तेमाल करते हैं। जब इस बारे में उनसे पूछा जाता है, तो वह अपने बेटे का बचाव करते हैं।
हिंदी अखबार पंजाब केसरी के मुताबिक जब चंद्र कुमार से नीरज भारती की टिप्पणियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘नीरज भारती जो कुछ कर रहा है, वह सही है।’ बकौल चंद्र कुमार ऐसी टिप्पणियां जब राज्य में भाजपा के कार्यकाल में कांग्रेस के आला नेताओं के खिलाफ की जाती थी भाजपा कहां सोई हुई थी।
चंद्र कुमार (बाएं) और नीरज भारती।
चंद्र कुमार ने कहा, ‘सोशल मीडिया पर हर किसी को कुछ भी करने की आजादी है तो भाजपाई भी बयानबाजी कर रहे हैं। इस पर हो-हल्ला करने की क्या जरूरत है।’
यही नहीं, अनुराग ठाकुर और सुषमा स्वराज पर ताजा अभद्र टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने क्या कहा, यह चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा, ‘जब सुषमा स्वराज राजघाट पर नाची थीं और भाजयुमो राष्ट्रीय अध्यक्ष उस तमाशे को देख रहे तो उन्होंने इस पर नाराजगी क्यों नहीं जाहिर की थी?’
बहरहाल, पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री चंद्र कुमार को पता होना चाहिए कि सोशल मीडिया पर किसी को कुछ भी करने की आजादी का मतलब किसी को गालियां देना नहीं है। दूसरी बात यह है कि नेता और चुने हुए प्रतिनिधि को अपने पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। वे आपस में अपने घर में इस तरह की बातें करते हों तो करें, सार्वजनिक मंचों पर ऐसा करने से परहेज करना चाहिए। साथ ही अगर कोई दूसरा गलत व्यवहार कर रहा हो तो उसके स्तर पर उतरकर गलत व्यवहार करना समझदारी नहीं होती।
इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता चंद्र कुमार के इस स्टैंड के बाद बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। एक सीनियर नेता का इस तरह से गलत काम को डिफेंड करना उन्हें रास नहीं रहा। कुछ नेता इसे पुत्रमोह में गरिमा खोना भी करार दे रहे हैं।
आज आप जो पढ़ने जा रहे हैं, यह किसी एक युवक को हो रही समस्या की बात नहीं है, बात सरकारी महकमों की टरकाने वाली आदत से जुड़ी हुई है। तस्वीर में दिख रहे युवक का नाम अमित है। चंबा के सलूणी में ग्राम पंचायत ठाकरी मट्टी का एक गांव है- मकडोगा। इस गांव में अमित का घर है और उनके घर से मुख्य सड़क की दूरी करीब 600 मीटर है। प्रदेश में बहुत से गांव ऐसे हैं, जहां पर कई किलोमीटर दूर सड़क है और वे कटे हुए हैं। इस हिसाब से 600 मीटर की दूरी कुछ भी नहीं लगती, मगर अमित के लिए यही दूरी परेशानी का सबब बन गई है। दरअसल अमित जन्म से ही 60 फीसदी विकलांग हैं और चलने-फिरने में असमर्थ हैं। वह वीलचेयर की मदद से ही मूव कर पाते हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा।
सड़क से काफी ऊंचाई पर उनका घर है। कहीं भी आना-जाना हो, उनके लिए मुश्किल हो जाती है। गांव से सड़क तक आना और फिर सड़क से वापस घर तक जाना बहुत मुश्किल काम है। उपचार के लिए महीने में 2-3 बार अस्पताल भी जाना पड़ता है। ऐसे में उन्हें कई बार रिश्तेदारों के यहां महीनों रुकना पड़ता है तो कई बार पिता जी के साथ डलहौजी में। उनकी मांग है कि गांव को सड़क से जोड़ा जाए, ताकि वह भी सामान्य लोगों की तरह जीवनयापन कर पाएं।
अच्छी बात यह है कि उनके घर तक के रास्ते में जितने भी लोगों की जमीन पड़ती है, वे सड़क के लिए जमीन देने को तैयार हैं। पिछले कई सालों से अमित सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं। करीब ढाई साल पहले उन्होंने आयुक्त विकलांगजन हिमाचल प्रदेश को अपनी समस्या के बारे में बताया था और आयुक्त ने जिला उपायुक्त और जिला कल्याण अधिकारी को इस ओर ध्यान देकर कदम उठाने के लिए कहा था।
लोक निर्माण विभाग ने गांव से नीचे दरोल नाला से सर्वेक्षण किया और पाया कि सिर्फ 600 मीटर सड़क बननी है। गांव के लोग निजी भूमि देने को भी तैयार है और इस बारे में लोक निर्माण विभाग को एफिडेविट भी दे चुके हैं। बावजूद इसके अभी तक सड़क बन ही नहीं पाई।
अमित दोनों पैरों की विकलांगता के वावजूद खुद कई बार एडीएम, जिला उपायुक्त चम्बा, जिला कल्याण अधिकारी चम्बा, से मिल चुके हैं, मगर इन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। उन्होंने सांसद शांता कुमार को भी इस बारे पत्र लिखा, मगर जवाब आय़ा कि राज्य सरकार का मामला है और वह कुछ नहीं कर सकते। एक लेटर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश को लिखा गया और वहां से सख्त आदेश आने के बाद कागजी कार्रवाई तो हुई, मगर इसे टाल दिया गया।
आखिर में परिवार सहित अमित ने डलहौज़ी की विधायक से भेट की और उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत ही सड़क निर्माण करवाने का आशवासन दिया। इस तरह से लोक निर्माण विभाग हर बार दो-तीन महीनों में सड़क निर्माण कार्य शुरू करने का आशवासन देता रहा। इसके बाद भी कोई प्रभावी कार्यवाही होती नहीं दिखी। एक लेटर राष्ट्रपति और महामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश को लिखा। राष्ट्रपति भवन ने अपर मुख्य सचिव अनुपम कश्यप लोक निर्माण विभाग को लेटर भेजा व उचित कार्यवाही करने को लिखा। प्रधान सचिव राज्यपाल हिमाचल प्रदेश, राज भवन शिमला से भी अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग को आवश्यक कार्यवाही करने का लिखित निर्देश हुआ, मगर अब तक कुछ नहीं हुआ।
आज भी अमित को 600 मीटर सड़क के लिए जगह-जगह भटकाया जा रहा हैं। पिछले तीन साल से निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ। विकलांग अधिकार अधिनियम-1995 के अनुसार इस सड़क को तुरंत बनाया जना चाहिए था। वैसे भी यह सड़क एक व्यक्ति के लिए नहीं, पूरे गांव के लिए फायदेमंद होगी। आखिर में अमित ने फैसला लिया है कि एक महीने के अंदर काम शुरू नहीं हुआ तो परिवार के साथ जिला प्रशासन के दफ्तर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे।
एचआरटीसी कर्मचारियों की हड़ताल को लेकर परिवहन मंत्री जी.एस बाली ने अपने फेसबुक पेज के माध्यम से टिप्पणी की है। भावनात्मक रूप से बाली ने लिखा है कि वह हमेशा से HRTC कर्मचारियों की भलाई के लिए काम करते रहे हैं। उन्होंने कर्मचारियों से काम पर वापस लौटने की अपील की है और तब तक जनता से गुजारिश की है कि अन्य वैकल्पिक साधनों को इस्तेमाल करे। बाली की फेसबुक पोस्ट का टेक्स्ट नीचे है-
‘मैंने HRTC को हमेशा अपना परिवार समझा है। जब से निगम की स्थापना हुई है, तबसे लेकर आज तक का रेकॉर्ड देख लिया जाए, यह साफ हो जाएगा कि किसके कार्यकाल में निगम और इसके कर्मचारियों के हित में सबसे ज्यादा फैसले लिए गए, किसने निगम में सुधारवादी कदम उठाए और कौन इसे आधुनिकता की तरफ ले गया।
जहां तक अभी की हड़ताल की बात है, पेंशन वगैरह जैसे तात्कालिक मामलों संबंधित मांगें मान ली गई हैं और अन्य को मुख्यमंत्री जी के पास भेज दिया गया है। फिर भी कुछ कर्मचारी नेता, जो महिलाओं और अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार के लिए चर्चित रहे हैं, भोले-भाले कर्मचारियों को अपनी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
मैं मंत्री पद पर बैठा हूं, इसलिए मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं कि न तो मेरे तहत आने वाले विभागों के कर्मचारियों को कोई दिक्कत हो, न उनके परिवार को और न ही उन विभागों से वास्ता रखने वाली जनता को। इसके लिए मैंने हमेशा जी-जान से कोशिश की है और कोई मुझे निजी स्वार्थ के लिए ब्लैकमेल नहीं कर सकता।
निगम के कर्मचारियों से अपील है कि वे काम पर लौट आएं, अपने विवेक से काम लें। जनता से गुजारिश है कि वह कारपूलिंग या अन्य वैकल्पिक परिवहन साधनों का प्रयोग करे। बाकी यह मामला माननीय हाई कोर्ट से संज्ञान में है, आखिरी फैसला उसी पर निर्भर करता है।’
गौरतलब है कि कर्मचारी हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद हड़ताल पर गए हैं और कोर्ट ने कहा है कि आदेश के उल्लंघन पर कार्रवाई भी होगी। इस बीच निगम को एक दिन काम न होने से 2 करोड़ रुपये का घाटा होने का अंदाजा लगाया गया है।
हिमाचल प्रदेश में अव्यवस्था का मौहाल है। प्रदेश की जीवनधारा कही जाने वाली एचआरटीसी के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद कर्मचारियों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया और 14 और 15 जून को हड़ताल कर दी। कर्मचारियों की मांगों पर नजर डालें तो ये मांगें जायज नजर आती हैं। इनमें से अधिकतर मांगों को तुरंत मान लिया जाना चाहिए, क्योंकि हर किसी को अधिकार है कि उसे वक्त पर अच्छा वेतन मिले और समय पर पेशन मिले। अन्य सरकारी कर्मचारियों जैसे अधिकार पाना HRTC के कर्मचारियों का अधिकार है।
क्या है मामला?
गौरतलब है कि परिवहन कर्मचारी चाह रहे हैं कि HRTC, जो कि एक निगम (Corporation) है, उसे रोडवेज में बदल दिया जाए। यानी अभी वे अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारियों के तहत नहीं हैं और उनसे सर्विस रूल्स वगैरह कॉर्पोरेशन के हैं। कर्मचारियों की यह मांग जायज है, मगर इसपर फैसला सिर्फ और सिर्फ प्रदेश कैबिनेट ले सकती है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को इसकी मंजूरी देनी है। मगर वीरभद्र सिंह कह चुके हैं कि निगम को रोडवेज में बदलना मुश्किल है।
मगर इस हड़ताल को लेकर बहुत सी बातें चौंकाने वाली हैं। इस हड़ताल की टाइमिंग, इसका आह्वान करने वाला संगटन, नेताओं की बयानबाजी कई सवाल खड़े करती है। इन हिमाचल को गुप्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि एचआरटीसी के कर्मचारियों की भावनाओं से खेलते हुए उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। कैसे, आइए नजर डालते हैं।
– हड़ताल करने वाला संगठन इंटक है, जो कि कांग्रेस का मजदूर संगठन है। इस वक्त हिमाचल प्रदेश में इंटक की सरकार है, बावजूद इसके इस संगठन का हड़ताल पर जाना बहुत से लोगों को पच नहीं रहा।
– इंटक के एचआरटीसी नेता अक्सर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीब देखे जाते हैं। ये नेता वक्त-वक्त पर अपनी प्रतिबद्धता मुख्यमंत्री के प्रति जाहिर करते रहे हैं और उनके कार्यक्रमों में शिरकत करते भी दिखते हैं।
– कोर्ट जाने की नौबत नहीं आती, अगर मुख्यमंत्री वीरभद्र (जो कि राज्य के मुखिया हैं और परिवहन मंत्री से भी ऊपर हैं) इस मामले में सुलझाने वाला रवैया अपनाते। उन्होंने कोई अपील नहीं की और न ही कर्मचारियों को समझाने की कोशिश की कि वे हड़ताल पर न जाएं।
– जब मुख्यमंत्री ने निगम को रोडवेज में बदलने की मांग को खारिज कर दिया तो नाराजगी उनके प्रति क्यों नहीं है?
– मुख्यमंत्री चाहते तो हिमाचल प्रदेश एसेंशल सर्विसेज़ मेनटेनेंस ऐक्ट 1973 के प्रावधान के तहत इस हड़ताल को गैर-कानूनी घोषित कर देते, ताकि लोगों को परेशानी न हो और बातचीत से मसला सुलझाया जा सके। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।
चर्चा है कि एचआरटीसी कर्मचारियों की नाराजगी और उनके गुस्से को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। वीरभद्र सिंह और परिवहन मंत्री बाली के बीच का 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। आए दिन वीरभद्र सिंह बाली की बातें काटते नजर आ जाते हैं तो बाली खुद भी मुख्यमंत्री के रुख से उलट बातें करते नजर आ जाते हैं।
बाली पिछले दिनों से काफी ऐक्टिव दिख रहे हैं और सोशल मीडिया आदि पर उनकी मौजूदगी से लोगों के बीच में उनकी पहुंच बढ़ी है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को कसने से लेकर नई बसों को चलाने और लोगों की समस्या पर तुरंत ऐक्शन लेने की वजह मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे बाली को वीरभद्र के बाद मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी देखा जाने लगा है।
इस वक्त हड़ताल होने से लोगों को असुविधा हो रही है और वे नाराज हैं। इसका सीधा ठीकरा यह सरकार बाली से सिर पर फोड़ती दिख रही है। हड़ताल में जाने के बाद कर्मचारी नेताओं का बाली हो हटाने की मांग करना और उन्हें तानाशाह दिखाना राजनीतिक पंडितों को हजम नहीं हो रहा। माना जा रहा है कि इस हड़ताल के जरिए जनता में ऐसा इंप्रेशन डालने की कोशिश है कि बाली की वजह से ही यह हड़ताल हुई और इसी वजह से लोगों को असुविधा हो रही है।
यह साफ है कि प्रदेश सरकार के भीतर कुछ भी ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री और उनके प्रमुख मंत्रियों के बीच अगर इसी तरह से खींचतान होती रहेगी तो नुकसान प्रदेश और प्रदेश की जनता का होगा। इस मामले में भी सीधा नुकसान जनता का हो रहा है। प्रदेश के नेताओं को चाहिए कि आपकी मतभेदों को भुलाकर जनता के हितों के बारे में सोचे।
ज्वाली से कांग्रेस के विधायक और हिमाचल प्रदेश सरकार में शिक्षा विभाग संभाल रहे मुख्य संसदीय सचिव नीरज भारती ने अब बीजेपी की सीनियर नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रति अभद्र भाषा इस्तेमाल कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य बीजेपी नेताओं के प्रति अभद्र भाषा इस्तेमाल करते रहने वाले नीरज ने सुषमा स्वराज को ‘नचनिया’ करार दिया है।
फेसबुक पोस्ट में सुषमा स्वराज की तस्वीर के साथ डाले मेसेज में भारती ने लिखा है, ‘आजकल ये नचनियाँ भी कहीं नाचते हुए दिखाई नहीं देती और इसके पीछे खड़ा हिमाचल प्रदेश से भाजपा का सांसद और बीसीसीआई का दलाल ये भी ठुमके लगाता कहीं नजर नहीं आता….. पहले तो ये नचनियों की हिट जोड़ी FDI और महंगाई के विरोध में डांस इंडिया डांस करते थी….. अब कहाँ है ये सलीम और अनारकली कोई मुजरा – वुजरा नहीं करेंगे क्या ये अब…..’
आजकल ये नचनियाँ भी कहीं नाचते हुए दिखाई नहीं देती और इसके पीछे खड़ा हिमाचल प्रदेश से भाजपा का सांसद और बीसीसीआई का दलाल …
गौरतलब है कि बीजेपी नीरज भारती की बदजुबानी को लेकर कई बार मुख्यमत्री वीरभद्र से मिल चुकी है। बीजेपी अध्यक्ष सतपात सत्ती ने जब वीरभद्र सिंह को नीरज भारती की पोस्ट्स के प्रिंट देने चाहे थे तो वीरभद्र ने उन्हें वापस फेंक दिया था। भारती के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर, कई मौकों पर अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन देते नजर आए। गौरतलब है कि इससे पहले नरेंद्र मोदी, उनकी पत्नी, पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और बाबा रामदेव समेत कई नेताओं के प्रति अभद्र शब्द इस्तेमाल कर चुके हैं।
शर्मनाक बात यह है कि प्रदेश के शिक्षा विभाग जैसे अहम डिपार्टमेंट का मुख्य संसदीय सचिव उन्हें बनाया गया है। यह मंत्रालय मुख्यमत्री ने अपने पास रखा है और नीरज भारती इस महकमे के सीपीएस (एक तरह से जूनियर मिनिस्टर की तरह के पदाधिकारी) हैं। आलम यह है कि कांग्रेस के प्रबुद्ध नेता और युवा कार्यकर्ता भी इस मामले में खामोशी की चादर ओढ़े बैठे हैं।
मैं नाहन, जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश का रहने वाला हूं। यह वाकया साल 2007 का है। मै ITI का एक साल का डिप्लोमा (COPA ) करने हेतु तहसील शिलाई में था। मूलतः मैं नाहन का रहने वाला हूं।
बात वर्ष 2007 की है। T20 वर्ल्ड कप चला हुआ था। उस दिन भारत और पाकिस्तान का फाइनल मुकाबला था। मैं अपने ITI के दोस्तों के साथ बार (एक होटेल, जहां डिप्लोमा करने के दौराम हम किराए पर रहते थे) में बैठा इस रोमांचकारी मैच का लुत्फ़ उठा रहा था। मुझे आज भी वो पल याद है जब प्रवीण कुमार की आखिरी गेंद पर मिसबाह-उल-हक़ का कैच लपका गया था। भारत ने पाकिस्तान को हराकर वर्ल्ड कप जीत लिया था और हम सभी ज़ोर-शोर से इसका जश्न मना रहे रहे थे। हमने बार मे खूब सेलेब्रेट किया और फिर एक खाली टिन का कनस्तर लेकर उससे पीटते हुए माल रोड पर निकल पड़े।
हममें से कुछ नशे मे थे और खुशी को सेलिब्रेट कर रहे थे। रात के करीब 12:45 का वक़्त रहा होगा। लोग हमें घरों से बाहर निकलकर देख रहे थे। काफी मज़ेदार नज़ारा था वो भी। हम पूरे शिलाई धार पर घूमते हुए नारे लगाते हुए वापिस अपने अपने रूम लौटने लगे। करीब 1:15 मिनट पर मैंने अपने दोस्तों से विदा ली। मेरा कमरा बार (होटल) की तीसरी मंज़िल पर था होटल मालिक का नाम विकास तोमर (बदला हुआ नाम) था। मेरे सभी ITI के दोस्त 2 या 3 के जोड़ों मे रहते थे, पर मेरे पास कोई रूम पार्टनर नहीं था तो मैं अकेले ही रहता था। अकेले रहना मुझे पसन्द भी था। दूसरी मंज़िल पर एक सरदार जी रहते थे जिनकी शिलाई में ही एक कपड़े की दुकान थी। साथ ही एक फैमिली भी रहती थी जो दिल्ली की रहने वाली थी।
खैर, दोस्तों से विदा लेकर मैं अपने कमरे की ओर सीढ़ियां चढ़ने लगा और कमरे में पहुंचकर सीधा बेड पर लेट गया। मैंने अपने जूते भी नही उतारे थे और आंखें बंद करके उस शाम की बातें याद करता हुआ मन ही मन खुश हो रहा था। तभी मुझे बंद आंखों में रोशनी का अहसास हुआ जैसे किसी ने लाइट्स जला दी हों कमरे की। मैंने हल्की आंखें खोलकर देखा कि कमरे से अटैच सामने वाले बाथरूम से यह तेज रोशनी आ रही है। रोशनी ऐसी थी जैसे किसी ने हज़ारो बल्ब जला दिए हो। मैंने एक पल सोचा शायद ये किसी गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी है क्योंकि मेरा कमरा तीसरे माले पर था। सामने दूर ट्रकों की लाइट किसी मोड़ पर मुड़ते वक्त मेरे कमरे से टकरा जाया करती थी। मगर ये रोशनी अजीब थी। अजीब इसलिए क्योंकि पहली बात तो ये क्योंकि ये बहुत ज्यादा थी दूसरी ये कि ये रोशनी हट नही रही थी, जैसे अक्सर गाड़ियो के गुज़रने क बाद चली जाती है।
मैं टकटकी लगाए उस रोशनी को देख रहा था। धीरे-धीरे वो रोशनी बहुत ज्यादा हो गई। मेरा कमरा पूरा रोशनी से भर गया। ऐसा लग रहा था जैसे कमरे के अंदर किसी ने सूरज ही रख दिया है। अब मुझे घबराहट हुई। मेरी सांसें और धड़कनें बढ़ने लगी थीं, मगर उस वक्त मेरी हालत ही खराब हो गई जब काला सा कोई साया उस रोशनी के बीच खड़ा नजर आया। देखने में तो वह किसी औरत जैसा मालूम हो रहा था। बाल खुले से दिख रहे थे मगर कोई और अंग या चेहरा नहीं दिख रहा था क्योंकि रोशनी बहुत ज्यादा थी। कदम लगभग 6 फुट ही रहा होगा।
तस्वीर प्रतीकात्मक है।
मैं समझ गया कि यह कोई चुड़ैल वगैरह है, क्योंकि बचपन में खूब सुना था कि चुड़ैलें वगैरह होती हैं। मै ज़ोर से चिल्लाना चाहता था मगर चिल्ला नही पा रहा था। उठकर भागना चाहता था मगर हिल भी नही पा रहा था। मुझे लग रहा था कि ये आगे बढ़ेगी और अब मुझे मार डालेगी। मगर वह वहीं खड़ी रही। मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी थी कि मुझे दिल अपने चेहरे पर धड़कता हुआ लग रहा था। खुद को पूरी तरह असहाय पाकर डर के मारे मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं और क़ुरान शरीफ की एक आयत जिसका नाम “आयतुल कुर्सी” है, ज़ोर-ज़ोर से मन पढ़ने लगा। क़ुरान की ये आयत ठीक वैसी ही है, जैसे हिन्दू धर्म मे हनुमान चालीसा। मुझे इस आयत का मुक़ाम पता था कि इस आयत को पढ़ने से भूत-प्रेत पास नही आ पाते। जैसे-जैसे मैं मन आयतुल कुर्सी पढ़ने लगा, उस साए ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। अब मैं सुन सकता था कि मेरे मुंह से आवाज भी निकल रही है। थोड़ी हिम्मत बढ़ी और मैं लगातार उस आयत को पढ़ता जा रहा था।
धीरे-धीरे उस साए ने दरवाज़ा पीटना बंद कर दिया। मौसम ठंडा था लेकिन में पूरी तरह पसीने से तर-ब-तर था। इसके बाद मैंने आंखें बंद कीं और रजाई में घुसकर खुद को पैक कर लिया। उस रात मैंने क़ुरान की यह आयत न जाने कितनी बार पढ़ी होगी। न जाने कब मुझे नींद आ गई। बस इतना जानता हूं जब मैंने आंख खोली तो सुबह हो चुकी थी। लेकिन मेरी ज़ुबान लगातार वही आयत पड़ रही थी। जब सूरज निकला और पक्षियों के चहचहाने की आवाज़ मेरे कानों मे पड़ी, मैंने धीरे से रजाई से थोड़ा गैप बनाकर बाथरूम पर नजर डाली वहां कोई नहीं था।
(तस्वीर प्रतीकात्मक है।)
मैं उठा और देखा कि बाथरूम में राख जैसा कुछ पड़ा हुआ है। मैंने तुरंत दरवाजा खोला और नीचे सड़क पर पहुंचा। लोगों को ये बात बताई तो उन्होंने पंडित सेवाराम (बदला हुआ नाम) के पास जाने को कहा। मैं उनके पास गया और उनको सारी बात बताई। वो भी मेरे साथ आ गए। उन्होंने कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हुए उस राख को वहा से हटा दिया। पूरा मामला समझने पर उन्होंने मुझे बताया कि रात को जो महिला का साया आया था, वह मसान थी। इस मसान को किसी व्यक्ति ने किसी का अनिष्ट करने के लिए छोड़ा था, मगर उस व्यक्ति ने अपना सुरक्षा कवच बनाया हुआ था पहले ही। इसलिए यह भटक रही थी और भटकते हुए रात को तुम्हारे साथ तुम्हारे कमरे में आ पहुंची। पंडित जी ने यह भी बताया कि यह तुमने अच्छा किया जो क़ुरान शरीफ की आयत पढ़ने लगे और इसी वजह से बच पाए वरना कुछ भी हो सकता था।
आज भी उस घटना को याद करता हूं तो सिहर उठता हूं। कृपया मेरा नाम न लिखा जाए, क्योंकि अब मैं एक अध्यापक हूं। इसलिए मैं नहीं चाहता कि समाज मे एक गलत संदेश जाए। बस यह मेरी आपबीती है, इसलिए शेयर कर रहा हूं।
बात उन दिनों की है, जब मैं 6-7 साल का था। एक बार पड़ोस के गांव किसी के यहां रातजागरा (जागरण) था। हमारे गांव और दावत वाले गांव के बीच में एक नाला था। पहाड़ों में रहने वाले लोग समझ रहे होंगे कि कैसे हिमाचल के ज्यादातर इलाकों में गांवों में दूर-दूर घर होते हैं। कुछ परिवार इस रिढ़ी (टीले) में बसे हैं तो कुछ सामने वाले में। खैर, मैंने जल्दी खाना खा लिया और वहां से जल्दी आने की जिद करने लगा। पापा और चाचा वगैरह पुरुष जल्दी घर लौट आए थे, मगर मां, चाची और बुआ की इच्छा भजन-कीर्तन करने की थी। मैं भी वहीं रुक गया। मगर जब सब बच्चे अपने-अपने घरों को चले गए तो मैं वहां बोर होने लगा और मैंने रोना शुरू कर दिया कि घर चलो।
मैं बुआ का बहुत लाडला हुआ करता था। ऐसे में बुआ ने न चाहते हुए भी मां और ताई को कहा कि मैं अप्पू को लेकर घर जा रही हूं। सबने समझाया कि कहां जाओगी अकेली, आजकल मिरग का भी खतरा है। थोड़ी देर में सब साथ चलेंगे। पड़ोस की महिलाएं भी वहां गई हुई थीं और सुबह के प्रहर में सबका साथ लौटने का इरादा था। मगर मैंने कोहराम मचा दिया। ऐसे में बुआ ने टॉर्च ली और मैं उनके साथ-साथ चलने लगा। घुप्प अंधेरा था, बरसात के दिन थे और खेतों के बीच से रास्ता था। धान की खेती के लिए खेतों में पानी भरा था और हजारों मेंढक टर्रा रहे थे। टॉर्च की रोशनी जब-जब खेत के पानी पर पड़ती, दूर तक वे चमकने लगते।
तो हमें सामने वाले गांव से नीचे किए लिए उतरना था, एक नाला पार करना था और फिर थोड़ी चढ़ाई पर हमारा घर था। दूसरा रास्ता लंबा था, मगर चौड़ा था और नाले को पार करने के लिए पुल भी था। मगर यूं समझ लीजिए कि दूरी तीन-गुना हो जाती थी। बुआ ने फैसला लिया कि शॉर्ट कट मारेंगे और नाला पार करके घर पहुंच जाएंगे। मैंने बुआ का हाथ पकड़ा हुआ था और पतले से रास्ते में संभल-संभलकर चल रहा था। जरा सी चूक होती कि पानी से भरे खेतों में जा गिरना था। जैसे ही खेत खत्म हुए, हम ढलान से नाले में उतरने लगे। बरसात के दिन होने की वजह से नाला में पानी ज्यादा था। इस बात का ध्यान बुआ को भी नहीं रहा था।
खैर, जहां से हम आम दिनों में उस नाले को क्रॉस किया करते थे, उसके पत्थरों के ऊपर से पानी बह रहा था। अब दूसरा रास्ता यह था कि या तो वापस चढ़कर जाओ और दूसरा रास्ता पकड़ो। या फिर नाले के साथ-साथ थोड़ा नीचे चलो, जहां श्मशान घाट है, वहां पर बड़े-बड़े पत्थर इधर से उधर तक बिछाए गए हैं। उनके जरिए नाले को पार करना आसान होता। बुआ ने वापस लौटने के बजाय उस श्मशान घाट वाले रास्ते से ही गुजरने का मन बनाया।
हम थोड़ा सा नीचे गए और उस जगह पहुंच गए, जहां से नाला क्रॉस करना था। दाहिनी तरफ वह पत्थर था, जिससे टिकाकर शव जलाए जाते थे और और बाईं तरफ वह मैदानी हिस्सा, जहां पर शिशुओं का दफनाया जाता था। खैर, डर तो लग रहा था मुझे, मगर बुआ के साथ था तो हिम्मत भी थी। हमने देखा कि यहां उन पत्थरों के ऊपर से भी पानी बह रहा है, जिनसे होकर हमें नाला पार करना है। मगर पानी उतना ज्याद नहीं था। यानी ऊपर से छूता हुआ बह रहा था। बुआ पहले आगे वाले पत्थर पर कूदे और फिर वहां से मेरा हाथ पकड़कर उस पत्थर पर लाए। हम तीन-चार पत्थर लांघ चुके थे और नाले के एकदम बीच में थे।
जलधाराओ में पत्थरों को इस तरह से लगाकर बनाए जाते हैं पार करने के रास्ते
तभी हमें जोर की चीख जैसी आवाज सुनाई थी। जिस ओर से आवाज आई थी, हमने उस तरफ देखा। जिस तरफ हम जा रहे थे, उस तरह झाड़ियां हिलती हुई दिखाई दी। हवा नहीं चल रही थी, मगर बहुत सारी झाड़ियां अजीब तरीके से हिल रही थीं। एक अजीब जा जानवर सा दिखा और एक लड़की सी। मगर अंधेरे में कुछ साफ नहीं दिख रहा था। मैं घबराकर रोने लगा और चिल्लाने लगा। बुआ ने बोला कुछ नहीं हुआ और उन्होंने मुझे जोर से पकड़ लिया। वह बोली चल आगे और मैं जाने को तैयार नहीं। वह मुझे जबरन खींचने लगीं, तभी मेरा पैर फिसला और मैं पानी में गिर गया और बहने लगा। मैं घबराकर चीखने लगा और पत्थर पर खड़ी बुआ भी मुझे बहते हुए देखकर घबराकर चिल्लाने लगी। मैं कम से कम 50 मीटर ही बहा था कि ऐसा लगा कि किसी ने मुझे पकड़ लिया है। घुपप अंधेरे में कुछ पता नहीं चल रहा था, लेकिन मैं अपने बाजुओं पर जकड़न महसूस कर सकता था। किसी ने मुझे बाजू से पकड़कर पानी से निकाला और लगभग घसीटते हुए किनारे रास्ते पर पटक दिया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इतने में मैंने देखा कि बुआ अंधेरे में टॉर्च लेकर मेरी तरफ दौड़कर आ रही है।
बुआ ने मुझे उठाया और गले से लगा लिया रोते हुए। बोली चल घर चल। और हम दोनों घबराते हुए और बदहवास दौड़ते हुए घर की तरफ चल पड़े। हमने शोर इतना मचाया था कि जब तक हम घर पहुंचे, हमारी आवाज सुनकर घरवाले और पड़ोसी भी हमारी तरफ दौड़ रहे थे। सामने मुझे पापा दिखे और मैं उनसे लिपटकर रोने लगा। बुआ तो बेहोश हो गई। सबको मैंने बताया कि क्या हुआ। हर कोई परेशान था और घबराया हुआ था। मुझे दिलासा दिया गया कि कुछ नहीं हुआ। पैर फिसलकर गिर गया और घबराहट हो गई। सब लोग बातें कर रहे थे कि क्या जरूरत थी बरसात के नाले में वहां से आने की। ये तो बच गए, वरना बह जाते दोनों।
मगर मैं इस सब के बीच सोच यह रहा था कि बुआ अगर दूर से दौड़ती हुई आई, उस घुप अंधेरे में मेरी बांह पकड़कर किसने बाहर निकाला मुझे। ऐसा नहीं था कि मैं जलधारा के प्रवाह से निकारे लग गया था। मैं लगभग उसी तरह से उछलकर रास्ते पर गिरा था, जैसे कोई आदमी 6-7 साल के बच्चे को बाजू से पकड़कर एक जगह से उठाकर दूसरी जगह पटक दे। मेरी दादी ने किसी देवता का नाम लिया तो दादा ने बताया कि श्मशान घाट के पास वाली बौड़ी (बावली या बावड़ी) में पूर्वजों की मूर्तियां रखी होती हैं। यह उन्हीं के आशीर्वाद से बचना संभव हुआ है।
मैं आज भी भूत-प्रेत या ऐसी आत्मा-शात्मा में यकीन नहीं रखता, लेकिन आज भी उस घटना के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि कुछ तो था। हो सकता है मेरे बाल मन का वहम हो, मगर मैं इतना भी छोटा नहीं था कि चीजों को समझ न पाऊं। खैर, उस रात जो कोई ताकत थी, उसने मुझे बचा लिया। शायद किस्मत ही अच्छी थी, वरना यह कहानी लिखने के लिए जिंदा नहीं होता आज। बुआ को हर कोई डांटना चाहता था। पीठ पीछे सब बोलते थे कि इसने बेवकूफी की रात को उस रास्ते से आकर, मगर किसी ने सामने से नहीं डांटा। क्योंकि सब जानते थे कि वह डरी हुई है। उस घटना को आज 20 साल बीत गए हैं, मगर जहन में अब भी ताजा है।
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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले में शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन पूछताछ की। दरअसल गुरुवार को सवालों के मिले जवाबों से सीबीआई संतुष्ट नहीं थी। ऐसे में वीरभद्र शुक्रवार सुबह 11 बजे फिर सीबीआई मुख्यालय पहुंचे। इससे पिछले दिन उनसे 7 घंटों तक पूछताछ हुई थी।
‘इन हिमाचल’ को सूत्रों से जानकारी मिली है कि जब सीबीआई के अधिकारियों ने वीरभद्र के सामने सबूत रखकर सवाल किए तो वह सफाई देने में नाकाम साबित हुए। सूत्र ने बताया कि सीबीआई के पास वीरभद्र के पास कड़े सबूत हैं। बच्चों और पत्नी के नाम पर जोड़ी गई संपत्ति को लेकर वीरभद्र ही नहीं, उनके सहयोगियों और पार्टनर्स के खिलाफ भी सीबीआई ने पर्याप्त सबूत होने का दावा किया है।
सीबीआई ने जांच में पाया है कि 2009 से 2012 तक केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने 6.03 करोड़ रुपये की संपत्ति जोड़ी, जो उनके आय के ज्ञात स्रोतों से होने वाली आमदनी से कहीं ज्यादा है। वीरभद्र, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, एलआईसी एजेंट आनंद चौहान और यूनिवर्सल ऐपल असोसिएट्स लिमिटेड चुन्नी लाल चौहान के खिलाफ प्रिवेंशन और करप्शन ऐक्ट के तहत एफआईआर भी दर्ज हुई है।
आज हम आपको जिस शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं, उनकी बांसुरी की धुन सुनकर आपका मन खुश हो जाएगा। इंटरनेट पर हमें यह विडियो मिला और फिर इसके बाद इनके बारे में पता लगाने की कोशिश की। जानकारी मिली कि इनका नाम झाबे राम है और यह थुनाग (मंडी जिला) के गांव शेगला के रहने वाले हैं। कुछ महीने पहले इनके पोते से हमें जानकारी मिली थी कि इनकी उम्र 100 साल के करीब है, फिर भी वह एकदम फिट हैं।
इन हिमाचल के पाठक पवन शर्मा, जो उनके पोते हैं ने बताया था कि झाबे राम इस उम्र में भी खुद मेहनत करके पैसे कमाकर जीवन-यापन करते हैं। उनके 5 बेटे और 3 बेटियां हैं, मगर झाबे राम जी नहीं चाहते कि वह किसी पर बोझ न बनें और खुद ही मेहनत करते हैं।
झाबे राम जी।
जानकारी मिली कि उन्होंने बहुत मेहनत की है और शून्य से ऊपर उठे हैं। गांव में आज भी उनकी खूब पूछ है और सबसे समझदार और बुजुर्ग आदमी माना जाता है। हर काम करने से पहले उनकी राय जरूर ली जाती है। कहा जाता है कि जवानी के वक्त वह इतने ताकतवर थे कि आसपास के किसी गांव का व्यक्ति ताकत के मामले में उनका मुकाबला नहीं कर सकता था।
वह देव सराज घाटी के बड़े देव मतलोड़ा के पुजारी भी हैं। उनकी बांसुरी की तान सुनने को गांव के लोग बेकरार रहते हैं। वह साथ में पारंपरिक लोकगीत भी गाते हैं, जो शायद आज की पीढ़ी में किसी को नहीं आते। उनकी हमेशा से ख्वाहिश रही कि लोग उनकी कला को पहचानें और इसे आगे बढ़ाएं। इस वक्त उनकी सेहत कैसी है, इस बारे में हमने उनके पोते से संपर्क करने की कोशिश की, मगर फेसबुक पर उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। बहरहाल, आप देखें यह विडियो
झाबे राम जी का पता इस तरह से है- झाबे राम, गांव झेगला, पोस्ट ऑफिस- बागाचनोगी, तहसील- थुनाग, मंडी, हिमाचल प्रदेश, पिन- 175035.