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Sunday, September 14, 2025
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‘आज भी मन में सवाल उठता है कि वह कोई सामान्य महिला थी या कोई देवी’

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों को कॉमेंट में बता सकें।

  • विवेक ठाकुर

(लेखक अमेरिका में रहते हैं, उन्होंने इंग्लिश में अपनी कहानी हमें भेजी थी, जिसका अनुवाद नीचे पेश कर रहे हैं)

पता नहीं यह हॉरर एनकाउंटर है भी या नहीं। मेरे ख्याल से यह पवित्र एनकाउंटर है। खैर, बात उन दिनों की है, जब मैं पढ़ाई के बाद पहली बार अमेरिका गया था। डेढ़ साल यहां अमेरिका में काम करने के बाद मुझे पहली बार घर जाना था। 1983 की बात रही है। मेरा घर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सरकाघाट में दूर-दराज में है। उन दिनों आने-जाने के साधन नहीं थे। एक दिन दिल्ली में अपने दोस्त के यहां रुका और फिर वहां से चंडीगढ़ पहुंचा और चंडीगढ़ से मंडी के लिए बस पकड़ ली। मंडी जाकर मुझे अमेरिका से एक परिचित द्वारा भेजा गया सामान पहुंचाना था। मैंने सोचा कि बाद में कौन जाएगा, जब बस मडी तक जा ही रही है तो वहीं पहुंचा दूंगा और फिर बला टलेगी। मंडी पहुंचकर वह सामान सौंपने के बाद शाम हो चुकी थी। अब उस वक्त वहां से सरकाघाट के लिए कोई बस नहीं थी। उन दिनों टैक्सियां भी नहीं होती थीं कि उनकी मदद ली जाए।

बस अड्डे पर बैठा उधेड़-बुन में ही था कि रात के साढ़े 8 बज गए। किसी ने बताया कि पास ही गुरुद्वारे में रुक जाओ और सुबह बसें चलेंगी तो चले जाना। मैं गुरुद्वारे की तरफ गया। वहां संयोग से पता चला कि एक सरदार जी का ट्रक हार्डवेयर का कोई सामान लेकर सरकाघाट जाने वाला है। सरदार जी से मैंने पूछा तो मुझे वह साथ ले चलने के लिए तैयार हो गए।सवा 9 बजे वह, उनका हेल्पर और मैं मंडी से चल दिए। सरदार जी मस्त मिजाज थे और खूब बातें कर रहे थे। रास्ते में उन्होंने भूतों के किस्से सुनाने शुरू कर दिए कि कैसे उन्हें रात को क्या-क्या दिखा है ड्राइवरी के अब तक के करियर मे।

मेरी उम्र 27 साल थी उस वक्त, फिर भी मैं डरपोक सा था। मैं अपने मम्मी-पापा का इकलौता बच्चा और बहुत लाड से रखा था। अमेरिका में जॉब के लिए भी नहीं भेजना चाहते थे वो मुझे, मगर मैं किसी तरह गया। पहली बार घर से बाहर निकला था। और अगर पहली बार घर जा रहा था। अमेरिका हो आया था, लेकिन था तो वही मासूम सा पहाड़ी लड़का। मुझे चिंता सताने लगी कि रात को ये लोग मुझे उतार देंगे, तो आगे क्या होगा। उन दिनों फोन भी नहीं हुआ करते थे।

खैर, धीरे-धीरे चल रहे सरदार जी ने करीब साढ़े 3 पौने 4 घंटों में सरकाघाट पहुंचा दिया। साढ़े 12 या 1 बजे का टाइम रहा होगा। सरदार जी ने पूछा भी कि चले जाओगे या कहीं किसी सराय में रुक जाओ या जिनके यहां सामान उतारना है, उनसे बात कर लेता हूं। मैंने कहा कि नहीं, मैं चला जाऊंगा, पास ही है गांव। सरदार जी ने मेन रोड पर ही वह सामान उतारना था और वापस रात को ही मंडी लौटना था। जहां उन्होंने सामान उतारना था, वहां पर पहले से ही तीन-चार लोग इंतजार कर रहे थे। सच कहूं तो मेरा मन था कि इनमें से कोई मेरी मदद करे या अपने यहीं रुकने को कहे, मगर किसी ने नहीं कहा।

मेरे पास एक बैग था और मैं उसी को कंधे पर लादकर रात के 1 बजे चल दिया। मेरा गांव पपलोग के पास है। काफी दूर है और उन दिनों रास्ते में घर भी नहीं थे। जंगल था। मेरे पास सिर्फ एक टॉर्च थी। रास्ते पर मैं बढ़ा चला जा रहा था। बीच में सरदार जी ने जो भूत के किस्से सुनाए थे, उनसे भी डर लग रहा था। हर आवाज पर मैं चौंकता, हर परछाई लंबी होती प्रतीत होती। ऐसा लगता कि कोई पीछे चल रहा है। कभी गर्दन के पीछे के बाल हिलते, तो कभी ठंडी-ठंडी लहर सी दौड़ जाती। दिल मुंह पर धड़कता जा रहा था। इतने में मुझे पीछे से ऐसी आवाज सुनाई दी, जैसे कोई पायल पहनकर चल रहा हो। मैं घबराया और तेज कदमों से आगे बढ़ने लगा। कच्चा रास्ता, कहीं झाड़ियां उग आई थीं, कहीं ऊंचे-नीचे टप्पे। आवाज तेज होती जा रही थी।

मैंने सुना था कि पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। इसलिए मैं भागने लगा। दो कदम ही भागा था कि ठोकर लगी और औंधे मुंह गिर गया। बाथ से बैग भी छिटककर दूर जा गिरा और टॉर्च भी बुझ गई औऱ पता नहीं कहां चली गई। पीछे से आवाज आई- क्या गल ओ बच्चा, लगी ता नी? सुले-सुले हांड। आवाज किसी महिला की थी, जो थोड़ी बुजुर्ग जैसी लग रही थी। इसका अर्थ है- क्या बात है बेटे, चोट तो नहीं आई? धीरे-धीरे चलो। मैं घबराया। मैंने सुना था कि कोई आवाज दे तो जवाब नहीं देना चाहिए। मगर इस महिला ने तो आवाज नहीं दी, उल्टा मुझे कुछ सलाह ही दे रही है। अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा था, फिर भी साफ दिखा कि एक महिला खड़ी हुई है, ठीक वैसे कपड़ों में, जैसे घर के बुजुर्ग पूजा-पाठ के दौरान पहनते हैं।

चांद पूरा नहीं था, मगर फिर भी उसकी रोशनी थी थोड़ी-बहुत। मैंने देखा कि महिला ने लाल रंग के कपड़े पहने हुए हैं और बहुत सारे गहने भी। इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता या सोच पाता- उस महिला ने कहा- चुक समाना कने चल। मेरी जान में जान आई और लगा कि कोई महिला ही है, शायद आसपास रहती हो। मैंने अपना बैग उठाया औऱ टॉर्च ढूंढने लगा। महिला ने कहा- टार्चा री नी जरूरत, तारे लगिरे। नैरुआ ता नी होइरा? (टॉर्च की जरूरत नहीं है, तारे हैं आसमान में। आंख में कोई समस्या तो नहीं जो कुछ दिख नहीं रहा?)

मैं उस महिला के इस कटाक्ष से मुस्कुरा दिया। मैंने बैग उठाया और कुछ और देर टॉर्च ढूंढी मगर वह नहीं मिली। फिर मैंने पूछा कि आप कौन। महिला बोली- हाऊं एथी ए रेहां इ बच्चा। घराला जो चलिरी, बच्छी सूणे जो आइरी, राती देखणा पौंदी। (मैं तो यहीं रहती हूं बेटा, गउशाला को जा रही हूं। बछिया गर्भवती है, रात को देखनी पड़ती है।)

अब मेरी जान में जान आई कि कोई स्थानीय महिला है। अब उसने मुझसे पूछा कि मैं कौन हूं और कहां जा रहा हूं। मैंने बताया कि ऐसे-ऐसे फ्लां का बेटा हूं और ऐसे-ऐसे जा रहा हूं। महिला ने कहा बच्चा अगर तू डरणा लगिरा तो हाऊं चलूं सोगी घरा तक। अपणे इलाके मंझ कोई गल्ल नी होंदी डरने वाली। (अगर तू डर रहा बेटा तो मैं चलती हूं घर तक साथ। डरने वाली कोई बात नहीं होती है अपने इलाके में।)

मैं डरा हुआ था और सहारा पाकर हिम्मत आई थी। तो मैंने कह दिया कि हां जी, थोड़ा आगे तक छोड़ आओ। वह महिला मेरे साथ-साथ चलती रही और मेरे से बात करती रही। मेरे परिवार के सब सदस्यों का हाल-चाल लिया उसने। बीच में खड्ड आई, जिसमें पत्थरों से पुल बनाया हुआ था। उसे पार किया। जैसे ही गांव से बाहर एक घर दिखा, उस महिला ने कहा- ठीक हा ताा बच्चा, आई गेया तेरा ग्रां, मैं चलदी कने देखती हुण बछिया जो। (ठीक है बेटा, तेगा गांव आ गया, मैं चलती हूं और देखती हूं बछिया को।)

मैंने उस बुजुर्ग महिला को धन्यवाद कहा और उसके पांच छुए। वह महिला मुस्कुराई। इस बार मैंने बड़े ध्यान से उस महिला का चेहरा देखा। आंखें बड़ी सी, उम्र करीब 40-45 साल, नाक में नथ, सिर पर भी लाल ओढ़नी और कपड़े भी लाल, हाथों में सोने की चूड़ियां और गले में सोने की माला, जिनका डिजाइन वैसा नहीं था, जैसा महिलाएं पहनती थीं। चेहरा कुछ अलग सा था। जैसे बहुत खुश होता है कोई तो उसका चेहरा जैसे दमकता है, वैसा।

खैर, मैं खड़ा रहा और वह महिला पलटी और तेज कदमों से रास्ते में वापस चली गई। मैं मुड़ा और करीब 10 मिनट में अपने घर में था। मैंने दरवाजा खटखटाया- सबसे पहली ताई जी ने दरवाजा खोला। सबसे मिला और मैंने सबको बताया कि कैसे बगल के किसी गांव की कोई महिला मुझे यहां तक छोड़ आई। घर के आधे लोग परेशान हुए, आधे हैरान। कुछ का कहना था कि मुझे कोई भूत मिला है और मुझे तुरंत नहाकर पूजा-पाठ करना चाहिए। मेरी दादी जो सबकुछ ध्यान से सुन रही थी, उसने कहा कुछ करने की जरूरत नहीं है। दादी ने बोला कि वो जो कोई भी थी, उसने बच्चे को सुरक्षित घर पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि वो हमारी कुलदेवी भी हो सकती थीं, जिनका पास ही मंदिर है और वह पूरे इलाके के लोगों की रक्षा करती हैं।

मैं आज अमेरिका में हूं और साइंट ऐंड टेक्नॉलजी से जुड़ी एक कंपनी में आईटी डिपार्टमेंट का चीफ हूं। मेरा अब तक का नॉलेज और समझ मुझे इजाजत नहीं देता कि मैं चमत्कार पर यकीन करूं। मगर आज भी मुझे लगता है कि वह महिला कोई गांव की सामान्य महिला नहीं थी। क्योंकि ऐसे सज-धजकर कोई गउशाला नहीं जाता वह भी सोने के ढेरों गहनों के साथ। मगर भूत-प्रेत और देवी-देवता भी कैसे ऐसे साक्षात आ सकते हैं। जो भी हो, मैं आज भी कुलदेवी के प्रति श्रद्धा रखता हूं और मानता हूं कि वही देवी उस रात मेरी मदद के लिए आई थीं और उन्हीं ने मुझे घर सुरक्षित पहुंचाया। जय मां।

(लेखक का जन्म हिमाचल में हुआ, पढ़ाई भी यहां से हुई मगर अब अमेरिका के स्थायी निवासी हैं।)

हिमाचल की जमीन पर जम्मू-कश्मीर का दावा, लद्दाख के लोगों ने बना ली दुकानें

इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के बीच सीमा विवाद उभरता हुआ नजर आ रहा है। लाहौल-स्पीति से विधायक रवि ठाकुर का आरोप है कि जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों ने सारचू (केलॉन्ग से 100 किलोमीटर दूर) में हिमाचल के अंदर अस्थायी ढांचे खड़े कर दिए हैं। एक अन्य जगह पर भी इसी तरह के हालत देखने को मिल रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर से हिमाचल के तीन जिलों- कांगड़ा, चंबा और लाहौल-स्पीति की सीमाएं लगती हैं। विधायक रवि ठाकुर ने इस मामले में नैशनल कमिशन फॉर शेड्यूल्ड ट्राइब्स का ध्यान खींचते हुए दावा किया है कि लद्दाख प्रशासन ने तो इस जमीन पर अपना दावा बता दिया है और अपने लोगों को हिमाचल की सीमा के अंदर टूरिस्ट सीजन में अपनी दुकानें वगैरह खोलने दी हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक विधायक ने आशंका जताई है कि अगर मामला जल्द नहीं सुलझा तो इस तरफ के लोगों की नाराजगी से तनाव और बढ़ सकता है। लद्दाख और लेह के द्वार पर हिमाचल प्रदेश टूरिजम डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन का काफी कुछ दांव पर लगा होता है, क्योंकि मनाली-लेह हाइवे होते ही टूरिस्ट यहां से जम्मू-कश्मीर में जाते हैं।

ठाकुर ने कहा कि हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को दर्शाने के लिए तांबे के पिलर भी लगे हैं, मगर पड़ोसी जम्मू-कश्मीर मामले को सुलझाने के मूड में नहीं है। रवि नैशनल कमिशन फॉर शेड्यूल ड्राइब्स के वाइस चेयरमैन हैं और उन्होंने दोनों राज्यों के ऑफिशल्स को समन किया था। मगर ठाकुर का कहना है कि लद्दाख प्रशासन ने इस मीटिंग के लिए निचले स्तर के अधिकारी भेजे थे, जिन्होंने इस मामले पर साफ कुछ भी नहीं बताया।

हिमाचली संगीत और मॉडर्न म्यूजिक का शानदार फ्यूज़न- ढाटू

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इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल के सिंगर और म्यूजिक प्रड्यूसर ललित सिंह एक नया म्यूजिक विडियो लेकर आए हैं। इसका टाइटल ‘ढाटू’ (Dhattu) रखा गया है। इस गाने को उन्होंने अपनी मां, हिमाचल प्रदेश और पहाड़ी लोगों के लिए समर्पित किया है। ढाटू या ढाठू दरअसल एक तरह का स्कार्फ है, जिसे हिमाचल में महिलाएं सिर पर बांधती हैं।

ललित शिमला से हैं और इन दिनों The Pahari Project नाम से एक प्रॉजेक्ट पर काम कर रहे हैं। ललित ने बताया कि यह प्रॉजेक्ट दिनोदिन लोकप्रिय होता जा रहा है। इस प्रॉजेक्ट में वह हिमाचली संगीत को मॉडर्न म्यूजिक के साथ मिलाकर फ्यूज़न तैयार कर रहे हैं।

Dhattu

इस विडियो को RCH फिल्म्स ने तैयार किया है। भविष्य की योजनाओं पर बात करते हुए ललित ने इन हिमाचल को बताया कि आगे वह और भी गने लेकर आ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं बस यही कोशिश कर रहा हूं कि हिमाचल में एक नई तरह का म्यूजिक लेकर आऊं। हिमाचल के ट्रेडिशन का मॉडर्न म्यूजिक के साथ फ्यूज़न करूं , जैसे कि इस गाने में मैंने हिंदी इंग्लिश मिक्स किया है।’

इस खूबसूरत गाने में गायक को जीवन में आगे बढ़ने और लक्ष्यों के पाने की राह में बढ़ते वक्त मां का ढाटू प्रेरित करता है। खुद देखें यह विडियो….

 

तो क्या जल्दी चुनाव करवा रहे हैं वीरभद्र सिंह?

सुरेश चंबयाल

प्रदेश में हालांकि चुनावों में वक़्त है परन्तु राजनीतिक खींचतान देखकर लगता है प्रदेश राजनीति के चाणक्य वीरभद्र सिंह अपने जीवन के अंतिम दांव के तहत चुनाव जल्दी करवा सकते हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दौरे और हर क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्गों की घोषणा के बाद बीजेपी में जहां नई फुर्ति का संचार हुआ है वहीं सीबीआई द्वारा की जा रही पूछताछ के बाद मुख्यमंत्री के तेवर बदले बदले से लग रहे हैं। सीबीआई की पूछताछ के बाद जब वीरभद्र दिल्ली से लौटे थे, वह आक्रामक नजर आए थे। उन्होंने दर्शा दिया है कि उम्र चाहे जो भी कहती हो, अगला चुनाव हर हाल में वह अपने नेतृत्व में लड़ेंगे। इसीलिए कई पदों पर भर्तियां निकाली गई हैं और हर जगह कोई न कोई नया ऐलान हो रहा है।

Virbhadra

राजनीतिक पंडितों को इसका एहसास इस बात से भी होने लगा है की जिस तरह से मुख्यमंत्री के कांगड़ा, मंडी, सिरमौर और कबायली क्षेत्रों के दौरे बढ़े हैं, इसमें जरूर कुछ स्कीम है। इन क्षेत्रों को मिला कर लगभग 30 से ऊपर विधानसभा सीटें बनती हैं। सिरमौर कांग्रेस का गढ़ रहा था, मगर उसे छोड़कर हर क्षेत्र में कांग्रेस की अब मजबूत पैठ है। सीबीआई के कसते शिकंजे के बाद वीरभद्र लम्बा समय चुनाव के लिए नहीं देना चाहेंगे। वह नहीं चाहेंगे कि सीबीआई की इन्क्वायरी किसी मोड़ तक आए और अपनी ही पार्टी में उनकी जगह रिप्लेसमेंट की आवाज उठे।

कांगड़ा में बाली का घेराव
उम्रदराज होने के बावजूद बुशहर का यह राजा अंदर-बाहर हर मोर्चे पर खुद ही लड़ रहा है। इसी नीति के तहत अपनी पार्टी में मुख्यमंत्री के लिए कांगड़ा की आवाज बन रहे परिवहन मंत्री जीएस बाली के पर कतरने के लिए हड़ताल के शिगूफे में भी कहीं न कहीं राजनीति की बू आ रही है। साथ ही नगरोटा बगवां जिस सीट से बाली जीत कर आते रहे हैं और जहां चौधरी समुदाय की भरमार है, वहां चौधरी समुदाय का सम्मेलन आयोजित हुआ। खास रणनीति के तहत चौधरी समुदाय के नेता चन्द्र कुमार के बेटे वर्तमान विधायक नीरज भारती की गर्जना इस सम्मेलन में करवाई गई।

गडकरी के दौरे में नड्डा का बाली को पार्टी में आने का आमंत्रण और वीरभद्र का यह कहना कि बाली जाना चाहे तो जा सकते हैं, दिखा रहा है कि सुखराम और स्टोक्स के बाद वीरभद्र सिंह अब बाली को ही अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर चल रहे हैं। बाली को कंट्रोल करने के लिए उन्होंने कांगड़ा किले के मोर्चों पर घेराबंदी भी कर दी है। नीरज भारती और संजय रतन के साथ पवन काजल भी इस कार्य को बखूबी निभा रहे हैं। नीरज भारती को तो मुख्यमंत्री ने खुली छूट भी दे रखी है।

बीजेपी नहीं है तैयार
वीरभद्र सिंह मान रहे हैं कि प्रदेश बीजेपी अभी चुनावी रूप से तैयार नहीं है। धर्मशाला नगर निगम चुनाव में जिस तरह पूरा कुनबा लगाने के बावजूद भाजपा की करारी हार हुई है, यह कहीं न कहीं मुख्यमंत्री को राहत दे रहा है। धूमल-शांता और अब नड्डा गुटों में बंटी भाजपा किसके लीडरशिप में चुनाव लड़ेगी, यह अभी तय नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री धूमल इस कड़ी में दिल्ली का चक्कर लगा चुके हैं परन्तु शाह मॉडल पर चल रही बीजेपी कोई ग्रीन सिग्नल उन्हें नहीं दे रही है। वीरभद्र सिंह मानकर चल रहे होंगे कि बीजेपी जब तक अपना संगठन और नेता तय करे, उससे पहले ही प्रदेश में चुनाव की घोषणा कर दी जाए, जिससे बीजेपी के अंदर नेतृत्व के लिए जो भी आक्रोश पनपे, उसका फायदा लिया जाए। हालांकि कांग्रेस के सभी मंत्री-संत्री अपने विधानसभा क्षेत्रों में डट चुके हैं। देश में हालिया हुए चुनावों से कांग्रेस की जो हालत पतली हुई है, उसी डर के कारण कांग्रेसी सत्ता सुख छिन जाने के भाव से डरे हुए हैं।

राहुल की नाराजगी
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पार्टी में परिवर्तन चाहते हैं और पुराने नेता, जो किसी भी तरह सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं, राहुल के फॉर्मूले में सेट नहीं बैठ रहे। राहुल अब युवा लोगों को आगे लाना चाहते हैं ताकि भविष्य में कांग्रेस का कुछ हो सके। उनके फॉर्मूले में वीरभद्र सिंह सेट नहीं बैठ रहे हैं। पिछली बार भी वीरभद्र सिंह कड़े तेवर लेकर प्रदेश में लौटे थे, परन्तु इस बार हालत अलग है। इस बार सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस के लिए होगी, न कि भाजपा के लिए।

परिवार की चिंता
सीबीआई के शिकंजे के बावजूद सत्ता में बने रहने की हर हाल में जो मजबूरी मुख्यमंत्री की है उसमे परिवार का भी रोल है।प्रतिभा सिंह की मंडी से हार से वीरभद्र सिंह को झटका लगा है। अगले कुछ वर्षों में उन्हें प्रतिभा से लेकर बेटे विक्रम को भी राजनीति में सेट करना है, इसलिए वीरभद्र सोच रहे हैं कि अगले पांच साल फिर सत्ता मिल जाए तो वह हर काम बखूबी कर सकते हैं। और अगर सत्ता का कंट्रोल हाथ से गया तो सबकुछ बिखर भी सकता है।

पहले भी जल्दी चुनाव करवा चुके हैं वीरभद्र
ऐसा नहीं है कि वीरभद्र सिंह पहली मर्तबा ऐसी सोच रख रहे होंगे। इससे पहले भी अपने खास ज्योतिषी प्रेम शर्मा की सलाह पर वीरभद्र सिंह ऐसा कर चुके थे परन्तु उस समय हार का सामना करना पड़ा था। मगर वह हार सुखराम फैक्टर से हुई थी। हालांकि राजा साब की कैलकुलेशन उस समय भी सही थी। पंजाब में अकाली-भाजपा विरोधी लहर है। इस बात को ध्यान में रखते हुए वीरभद्र सिंह हिमाचल में भी समय पूर्व चुनाव करवाने का अपना दांव खेल सकते हैं।

पढ़ें: हिमाचल में सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसपर क्या कहा बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतपात सत्ती ने

(लेखक हिमाचल से जुड़े मसलों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों In Himachal के लिए लेख लिख रहे हैं)

मैंने नहीं कहा कि धूमल ही होंगे सीएम कैंडिडेट: सतपात सत्ती

शिमला।।

हिमाचल प्रदेश में अगले साल होने जा रहे चुनावों में बीजेपी की सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसे लेकर अटकलों का दौर जारी है। मीडिया के कुछ हिस्सों में खबर आई थी कि बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतपात सिंह सत्ती ने धूमल की पैरोकारी की है। मगर न्यूज पोर्टल ‘समाचार फर्स्ट’ के मुताबिक सत्ती ने इस तरह का कोई बयान देने से इनकार किया है।



समाचार फर्स्ट के मुताबिक सतपाल सत्ती ने बताया कि उन्होंने कभी भी सीएम कैंडिडेट के संबंध में बात ही नहीं की है। प्रदेश के एक नामी अखबार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि अपना नाम बनाने के लिए अखबार ने झूठा बयान लिखा। सत्ती ने कहा, ‘कुल्लू में दिए गए मेरे बयान की रेकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास है। उसको भी चेक किया जाए। मैंने इस संबंध में कुछ कहा ही नहीं है।’

Satpal satti

यह पूछे जने पर कि वह जेपी नड्डा को बेहतर मानेंगे या फिर प्रेम कुमार धूमल को, सत्ती ने कहा कि यह तय करना पार्टी आला कमान का काम है और हमारा काम उनके निर्देशों को पूरा करना है। इस बीच बीजेपी के सीनियर नेता राजीव बिंदल ने भी गुटबाजी की खबरों को गलत बताते हुए कहा कि पार्टी एकजुट है और यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि अगला सीएम बीजेपी का ही हो।

जब मोनू ने अजीब आवाज में कहा- अगर तुम लोगों ने ये शीशा तोड़ा तो…

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें। 

  • निशा चंदेल

(आपबीती लंबी होने की वजह से हमने दो हिस्सों में बांट दी थी। पाठकों से अनुरोध है कि इसे पढ़ने से पहले पिछला हिस्सा पढ़ लें, ताकि बातें ठीक से समझ आएं। पिछला भाग पढ़ने के लिए आगे दिए लिंक पर क्लिक करें- मैं खड्ड से घर उठा लाई छोटा सा आईना और उस आईने में… )

घर पहुंचकर मैंने देखा कि मोनू कोने में चुपचाप बैठकर अपनी गोद में देखकर मुस्कुरा रही है। मैंने उसे उत्साह में जाकर बोला मोनू…. मैं खुश थी कि वो आई थी बड़े दिनों बाद। मगर उसने मेरी आवाज नहीं सुनी। पास जाकर मैंने देखा कि उसकी गोद में वही शीशा रखा हुआ है, जो मैंने उस दिन खड्ड से उठाया था।

मैंने उससे कहा कि इसे फेंक, तो वह मानी नहीं उसे लेकर छिपा लिया। मैंने मम्मी को बताया कि मैं वही शीशा खड्ड से उठाकर लाई थी, जिसके बाद मेरी तबीयत खराब हुई। उन्होंने सबको बताया कि मोनू के पास जो शीशा है, उसकी वजह से ही सारी समस्या हुई थी। सबने मोनू को कह कि उस शीशे को लाकर दे, मगर मोनू उसे देने को तैयार नहीं थी। मोनू की मम्मी यानी मेरी बुआ ने उससे शीशा छीनने की कोशिश की तो मोनू ने उनकी बाजू में दांत गड़ा दिए। मोनू बहुत सी शरीफ बच्ची थी और उसने ऐसा व्यवहार कभी नहीं किया था। परिवार के जो सदस्य शीशे वाली बात पर यकीन नहीं कर रहे थे, उन्हें भी अब लगने लगा कि पक्का इस शीशे में ही खराबी है।

दो-तीन लोगों ने पकड़कर मोनू से वह शीशा छीना। उसके हाथ से मेरे पड़ोस के अंकल (जो शोर सुनकर वहां आ गए थे) ने शीशा छुड़ाया और उसे नीचे झाड़ियों में फेंक दिया। इसके बाद मोनू ने रोना शुरू किया। वह इतना रोई कि बेहोश हो गई। उसे पानी के छींटे डालकर होश में लाया गया तो वह खामोश हो गई। उसने कुछ नहीं कहा। उससे कोई भी कुछ बात करता तो वह उसे घूरती, बोलती कुछ भी नहीं। मुझे मोनू से मिलने नहीं दिया गया और अलग कमरे में बंद कर दिया गया। बुआ अकेली आई थी, मगर मोनू के साथ हुआ घटनाक्रम सुनकर फूफा जी भी अगली सुबह हमारे घर आ गए। उन्होंने मोनू को लेकर डॉक्टर को दिखाने की जिद की, मगर इस बीच तक मेरे परिवार वाले उसी तांत्रिक (ओझा) चेले को ले आए थे, जिसने मेरा इलाज किया था। मुझे और अन्य बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया गया था और हमारे साथ सिर्फ मेरी मम्मी वहां थी। बाहर क्या हो रहा था, हम यह न देख पाएं, इसीलिए हमें बंद किया गया था। इसलिए आगे का घटनाक्रम परिवार के अन्य सदस्यों से कई साल बाद पता चला था। मुझे पता चला कि उस दिन सुबह मोनू के साथ यह कुछ हुआ-

फूफा जी तांत्रिक से इलाज कराने के हक में नहीं थे। तांत्रिक ने फिर मंत्र पढ़े और मोनू पर पानी फेंकते हुए पूछा कि कौन है तू। तो मोनू से कंठ से वही आवाज सुनाई दी, जो मेरे कंठ से निकली थी। उसने कहा- पहचाना नहीं तूने मुझे? तांत्रिक ने बोला कि तूने तो वादा किया था कि तू नहीं आएगी, जो तूने मांगा, वह तुझे दिया भी। इस पर मोनू के गले से आवाज आई- मेरी बात पर बड़ा भरोसा है तेरेको? मेरे साथ किया कोई भी वादा जब किसी ने नहीं निभाया तो मैं क्यों किसी के साथ किया वादा निभाऊं? तांत्रिक ने बोला- जिसने तेरे साथ किया वादा तोड़ा, उन्हें परेशान कर, इन बच्चों को क्यों परेशान कर रही है। मोनू के मुंह से आवाज आई- उनसे तो मैंने हिसाब बराबर कर लिया, तू मत बता कि मुझे क्या करना है क्या नहीं।

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तांत्रिक ने खूब मंत्र पढ़े और कुछ पानी वगैरह फेंका, मगर गोलू के मुंह से निकलने वाली अजीब सी आवाज हंसती जा रही थी और उसे चुनौती देते जा रही थी कि जो करना है कर ले। पिछले बार तो मैं तेरे साथ खेल खेल रही थी। इतने में पंडित जी को किसी ने बताया कि मोनू के हाथ में जो शीशा था, उससे ही तो सब लिंक नहीं है। यह सुनकर मोनू गंभीर हो गई। पंडित ने कहा कि वह शीशा लाओ। सारे लोग नीचे झाड़ियों मे उस शीशे को ढूंढने लगे। झा़ड़ियों की कटाई के बाद आखिरकार वह शीशा मिला। उसे तांत्रिक द्वारा पूजा के लिए बनाई गई जगह पर ले आया गया।

अब तांत्रिक बोला- देख, तू सीधी तरह जा, वरना मैं ये शीशा तोड़ दूंगा और आग में जला दूंगा। इसपर मोनू के मुंह से आवाज आई- ऐसा करके तो देख, मैं इसकी (मोनू की) के भी उतने टुकड़े कर दूंगी, जितनी तू इस शीशे के करेगा। यह साफ देखा जा सकता था कि शीशे को तांत्रिक के पास देख गोलू (या उसके अंदर जो भी था)  बेचैन हो चुका था। तांत्रिक परेशान दिखा। उसने कहा- देख, मैं चाहूं तो इस शीशे को तोड़ दूंगा, तू इस बच्ची का कुछ भी नहीं कर पाएगी। मगर मैं नहीं चाहता कि तेरा कुछ नुकसान हो। इसलिए तुझे भी हमारा कोई नुकसान नहीं करना चाहिए। अगर इस शीशे में तू रहती है तो इसी में रह, इस शीशे को हम जंगल में छोड़ देंगे, वहीं आराम से रहा।

गोलू के मुंह से आवाज आई- मैं क्यों जंगल मे ंरहूं। हर बार मैं जहां भी जाती हूं, कोई न कोई मुझे इन शीशों में डाल देता है। मैं नहीं जा रही इस बार। तू इस शीशे को तोड़ देगा तो और अच्छा होगा। मैं कहीं वापस नहीं जाऊंगी, मेरेको शरीर मिल जाएगा। तांत्रिक बेचैन हो चुका था। इतने में गोलू के पापा, जो इन सब बातों मे यकीन नहीं रखते, गुस्से में आए और उन्होंने वह शीशा उठाकर वहीं फर्श पर तोड़ डाला। जैसे ही वह शीशा टूटा, गोलू जोर-जोर से रोने लगी। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि सब लोग घबरा गए। उसे 2-3 लोगों ने पकडा़ हुआ था। उसका पूरी शरीर अकड़ गया। तांत्रिक ने मंत्रोच्चारण जारी रखा और पानी छिड़कता रहा। कुछ लोगों ने गोलू के पापा को भी पकड़ रखा था, जिन्हें यह सब ड्रामा लग रहा था।

इसके बाद गोलू बेहोश हुई। तांत्रिक मंत्र पढ़ता रहा। उसने कहा कि आज तो काम हो गया। मगर वह चीज फिर न आए, इसके लिए कल सुबह सूरज निकलने से पहले एक काम करना होगा। कहते हैं कि अगली सुबह घर के आंगन में पूजा हुई। एक सूप (बांस का बना बर्तन) मे तरह-तरह की चीजें सजाई गईं, जिनमें एक शीशा भी था। उसमें दिए की रोशनी में गोलू को अपना चेहरा देखने को कहा गया और फिर उस सूप को खड्ड में छोड़ दिया गया। उस सूप को वहीं छोड़ा गया था, जहां से मैं वह शीशा उठा लाई थी। दरअसल पूरे इलाके में जब किसी को इस तरह की समस्या होती थी, उसे ओपरा कहा जाता था और तांत्रिक छाट छोड़ते थे। यानी वे आत्मा या भूत को निकालकर उस आईने में बांधकर खड्ड मे छोड़कर आजाद किया करते थे। यानी मैं भी किसी की छोड़ी हुई छाट का शीशा उठा लाई थी, जिसमें किसी के ऊपर आया भूत निकाला था, जो पहले मुझमें और फिर गोलू में आ गया था।

खैर, उस दिन के बाद न गोलू को कुछ हुआ, न मुझे। मैं स्कूल गई, उसी रास्ते से गई। रास्ते में वह पत्थर भी दिखता, मगर मैंने उसकी तरफ जाने की कभी सोची भी नहीं। पता नहीं वह क्या था। हो सकता है कि सुनी सुनाई बातों का बाल-मन पर गहरा असर आ गया हो, मगर मेरे साथ-साथ गोलू के साथ भी ऐसा हुआ, जबकि उसे तो पूरे घटनाक्रम का पता ही नहीं था। यह बात जरूर चक्कर खाने पर मजबूर करती है। खैर, मेरी यही कामना है कि किसी के साथ ऐसा कभी न हो।

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(लेखिका मूलरूप से हिमाचल के बिलासपुर की हैं और इन दिनों परिवार के साथ न्यू जीलैंड में बसी हुई हैं। वह पहली लेखिका हैं, जिन्होंने नाम या पता छिपाने की अपील नहीं की)

लेख: निर्लज्ज भारती की वजह से शर्मिंदा हैं हम जवाली निवासी

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  • संदीप चौधरी

आज सुबह अपनी फेसबुक फीड में नीरज भारती से जुड़ी एक पोस्ट दिखी, जिसमें कहा गया था वह अनाप-शनाप पोस्ट करते हैं। कई सालों से पुणे में हूं, इसलिए राजनीति पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। कई बार मैंने परिजनों और दोस्तों को इस बारे में बात करते सुना, मगर ध्यान नहीं दिया। खुद ज्वाली का रहने वाला हूं, इसलिए आज सुबह जिज्ञासावश नीरज भारती की प्रोफाइल देखने चला गया। देखकर हैरान हो गया कि उसमें कितनी वाहियात पोस्ट्स हैं। प्रधानमंत्री को भौंकेंद्र मोदी, रामदेव को हरामदेव कानिया… और भी न जाने क्या-क्या।

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इतनी गिरी हुई भाषा? कैसी मानसिकता है, यहां पर एक चुना हुआ नुमाइंदा इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है। राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, मगर ऐसी भाषा तो वही इस्तेमाल कर सकता है, जिसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो। शिक्षित व्यक्ति भी असभ्य हो सकते हैं, इसका प्रमाण देखने को मिल गया। यकीन नहीं हुआ कि यह एक चुने हुए जन प्रतिनिधि की प्रोफाइल है।

विरोधी नेताओं को गलत नामों से पुकारना और उनकी शारीरिक विकृति का मजाक बनाना किसी भी समझदार व्यक्ति की निशानी नहीं है। बाबा रामदेव को ‘कानिया’ इसलिए कहा गया, क्योंकि उनकी एक आंख सामान्य नहीं है। इससे पता चलता है कि विकलांगों को किस नजर से देखते हैं यह जनाब। ऊपर से जनाब से अपनी पोस्ट्स में जस्टिफाई किया था कि बीजेपी वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जा रहा है।


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ऐसी बातें वही कर सकता है, जिसकी समझ का स्तर मोहल्ले के उन गंजेड़ी लड़कों सा हो, जिनका परिवार, समाज, संस्कार और मर्यादाओं से कभी पाला नहीं पड़ा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी समर्थक भी कांग्रेस नेताओं के प्रति ऐसी भाषा इस्तेमाल करते रहे हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि उनसे दो कदम आगे बढ़कर उनसे भी गिरा हुआ व्यवहार करने लग जाएं।
 
यही फर्क होता है एक समझदार और बेवकूफ में। यह समझदारी परिवार, समाज और दोस्तों की संगत से मिलती है। पढ़ने को यह भी मिला कि नीरज भारती के पिता ने कहा कि उनका बेटा कुछ भी गलत नहीं कर रहा। इससे पता चलता है कि नीरज भारती ऐसे क्यों हैं।

हैरानी यह भी हुई कि इस घटिया इंसान की प्रोफाइल में मुझे कुछ म्यूचुअल फ्रेंड्स भी दिखाई दिए। यही नहीं, इन लोगों ने नीरज भारती की पोस्ट्स जो लाइक भी किया था। पिछले दिनोंं एक कार्टून नजर आया, जिसमें नीरज भारती के व्यवहार को जस्टिफाई किया गया था। हैरानी हुई कि यह कार्टून ऐसे शख्स ने बनाया था, जिसे हिमाचल में बहुत से लोग एक प्रबुद्ध व्यक्ति मानते हैं। वैसे तो वह जनाब प्रदेश के हर मुद्दे पर राजनेताओं को घेरते हैं, मगर न जाने क्यों उन्हें नीरज भारती का व्यवहार पसंद आया। खैर, यह उनकी निजी सोच है, मगर निजी सोच ऐसी है तो उन्हें खुद को हिमाचल के हितों का पैराकार दिखाना बंद कर देना चाहिए।
जब कभी जवाली आता हूं, अपने गुरुजनों और अन्य प्रबुद्ध लोगों से मिलता हूं तो वे नीरज भारती को धिक्कारते हैं। उनका कहना होता है कि नीरज भारती की वजह से प्रदेश के अन्य हिस्सों के लोग उन्हें ताने मारने लगे हैं कि आप कैसे लोग चुनते हैं। यह सही है कि एक व्यक्ति विधायक को नहीं चुन सकता, मगर किसी के चुने जाने का मतलब ही यही है कि अधिकतर लोगों ने उसे अपने प्रतिनिधित्व लायक समझा है। और इसी वजह से ज्वाली के अन्य बुद्धिजीवी ही नहीं, सामान्य लोग भी शर्मिंदा हैं।नाम बदलने का इतना ही शौक है तो नीरज भारती को सबसे पहले अपना नाम बदलकर निर्लज्ज भारती रख लेना चाहिए। उन्हें ही नहीं, उनकी पार्टी INC को अपने नाम की फुलफॉर्म इंडियन निर्लज्ज कांग्रेस कर लेना चाहिए, क्योंकि इतना कुछ होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की ज रही। वीरभद्र सिंह वैसे तो पूरे प्रदेश में घूमकर भाजपाइयों वगैरह को ज्ञान देते रहते हैं, मगर अपने संसदीय सचिव को दो घूंट नसीहत नहीं दे सकते। हाल ही में मूंछें रखकर खुद को सख्त दिखाने की कोशिश करने वाले यूथ कांग्रेस वैसे तो बहुत आक्रामक रहते हैं, मगर अपनी पार्टी की खराब होती छवि को बचाने के लिए नीरज भारती से बात नहीं कर रहे।

फेसबुक वगैरह पर कुछ भी करना, किसी को अपमानित करना, धमकी देना या किसी भी तरह का अपराध आईटी ऐक्ट के दायरे में आता है। आए दिन हिमाचल सरकार द्वारा किए जा रहे कामों का क्रेडिट लेने वाले मुख्यमंत्री के तथाकथित आईटी सलाहकार भी नीरज भारती की फ्रेंड लिस्ट में हैं (अब नहीं हैं, संभवतः उन्होंने अन्फ्रेंड कर दिया हो) और उनके कई स्टेटसों को लाइक करते हैं। मगर वह अपने सीएम के चहेते को यह नहीं बता रहे कि आईटी ऐक्ट की किन धाराओं के तहत मामला दर्ज हो सकता है और जो किया जा रहा है, वह कितना गलत है।

इसी को कहते हैं सत्ता का दुरुपयोग। यह दिखाता है कि हम सरकार में हैं, आप जो मर्जी कर लें। केंद्र पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाले कांग्रेसी नेताओं को यह नहीं दिखता कि कैसे उनका एक नेता अपने पद का दुरुपयोग कर रहा है। मगर इन लोगों को शर्म नहीं आएगी। मोटी चमड़ी वाले नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहेंगे। शर्म आएगी हम जैसे लोगों को, जिनका सिर नीचा हुआ पड़ा है।

पिछले दिनों मैंने देखा कि कुछ लोग कॉमेंट करते हैं कि ‘इन हिमाचल’ क्यों बार-बार इस शख्स की खबरें उठा रहा है और क्यों तवज्जो दे रहा है। मैं इन हिमाचल को साधुवाद देता हूं कि वह ऐसी खबरों उठा रहा है। इसीलिए मैंने अपना यह आर्टिकल भेजा, क्योंकि इन हिमाचल का मैं समर्थन करता हूं कि किसी एक व्यक्ति की वजह से अगर प्रदेश बदनाम हो रहा हो, तो उसपर कार्रवाई होनी चाहिए। वीरभद्र कार्रवाई करे या न करे, उनकी सारा ध्यान तो अपने ऊपर हो रही कार्रवाई से बचने पर फोकस है। मगर ज्वाली की जनता में आक्रोश पनप रहा है और वह कार्रवाई जरूर करेगी। चुनाव आने को हैं। पहले मैंने सोचा कि नाम बदलवा दिया जाए, क्योंकि मेरी माता शिक्षा विभाग मे कार्यरत हैं और हो सकता है कि राजनीतिक दुर्भावना के तहत शिक्षा विभाग के संसदीय सचिव कोई कदम उठाएं। मगर सच कहने में डर कैसा। मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा।

(लेखक पुणे में आईटी इंजिनियर हैं, मूलरूप से कांगड़ा के जवाली के रहने वाले हैं।)

मैं खड्ड से घर उठा लाई छोटा सा आईना और उस आईने में…

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों को कॉमेंट में बता सकें।
  • निशा चंदेल

मैं 7वीं क्लास में पढ़ती थी। गांव से स्कूल 4 किलोमीटर दूर था औऱ हम सब गांव के कुछ परिवारों के बच्चे एकसाथ स्कूल जाते और एकसाथ चले आते। बीच में एक सूखी हुई खड्ड थी। मैं औऱ मेरी सहेली चंपा साथ ही आते-जाते थे। बाकी बच्चे कभी आगे होते या कभी पीछे। खड्ड में जिस तरफ से हम उसे क्रॉस करते थे, उससे दूर बड़ी सी चट्टान दिखाई देती थी, जिसपर झंडा लगा हुआ था। बड़ा मन करता था उस चट्टान पर जाने का। मगर कभी भी बड़े बच्चे वहां जाने नहीं देते थे।

एक दिन मैं और चंपा छुट्टी पर स्कूल के पास ही झाड़ी में लगे आखे खाने रुक गईं। बाकी लोग चले गए। हम मस्ती में घर लौट रही थीं काफी लेट। गर्मियों के दिन थे और और स्कूल ढाई बजे खत्म होता था। शायद 4 बज रहे थे उस वक्त शाम के। हम अकेले थे तो मैंने खड्ड पार करते वक्त मैंने चंपा को कहा कि चलो न, आज उस चट्टान के पास चलते हैं। चंपा ने पहले आनाकानी की, मगर मैं उसे मनाने में कामयाब हो गई। दरसअल दो दोस्तों में भी एक पर्सनैलिटी डॉमिनेटिंग होती है। इस रिलेशनशिप में मैं डॉमिनेटिंग थी, जबकि चंपा शांत और शर्मीली थी। मैं आगे-आगे चली और चंपा पीछे-पीछे।

कितनी सुंदर चट्टान थी वो। नीले से रंग की संगमरमर जैसी मखमली लग रही थी। खड्ड मे कभी हमने बरसात के अलावा पानी नहीं देखा था, मगर सदियों पहले बहकर आई ये चट्टान घिस-घिसकर कोमल सी हो गई थी। मैंने देखा कि उस चट्टान के नीचे कुछ टोकरियां रखी हुई थीं, जिनमें चूड़ियां, बिदिया, शीशा (आईना), रिबन वगैरह थे। बहुत सारे थे। कुछ पुराने थे और खड्ड की रेत में धंसे हुए थे तो कुछ ताजे। टोकरियों मे धूप के जले हुए अवशेष भी थे। इस बीच मुझे गोल सा छोटा आईना दिखा। मैंने उशे उठा लिया। चंपा ने कहा कि मत उठा, फेंक इसे और चल। मैंने उसे फेंकने का नाटक किया और चुपके से अपने पास छिपा लिया। वहां से हम दोनों घर की तरफ चल दीं।

घर पर आकर रोज की दूध पिया, जो दादी अम्मा मेरे आने का इंतजार करके बैठी रहती थीं और मक्खन औऱ नमक लगी रोटी खाई। फिर बैग पटका और इधर-उधर चलने लग गई। शाम को ध्यान आया कि मैं जो आईना लाई थी, उसे देखूं। मैंने उसे बैग में रख लिया था। पढ़ाई के बहाने मैंने बैग खोला और उस आईने को देखने लगी। सिल्वर कलर का फ्रेम गोल सा और बीच में छोटा सा वो शीशा। मैंने उसमें अपना चेहरा देखा। मैं उससे खेलने लगी। कभी मैं अपने बालों को चेहरे पर लाती और कभी हटाती। मगर एक पल के लिए मैं तब चौंकी, जब मुझे उसमें अपने बजाय कोई और चेहरा दिखा।

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प्रतीकात्मक तस्वीर

आज कई साल हो गए हैं, मगर मैं याद करूं तो वो चेहरा अजीब सा था। मतलब किसी बूढ़ी सी महिला का, मगर पता नहीं कैसा। मतलब मैं लिखने में उतनी अच्छी नहीं हूं कि उसका चेहरा डिस्क्राइब कर सकूं। मगर अजीब सा था, जो इंसानों जैसा होकर भी इंसानों जैसा नहीं था। मैं डरी और शीशा वहीं फेंककर चिल्लाई जोर से। मेरी आवाज सुनकर मेरी चाची दौड़ती हुई आई। मैं उनसे लिपट गई। मुझे बुखार हो गया और मैं कुछ न बोलूं। इसके बाद जो हुआ, वह मुझे याद नहीं। मगर बाद में मैंने परिजनों से जो सुना, उनके हवाले से बता रहा हूं। परिजनों ने बताया कि-

उस रात को मैं अजीब सी आवाज में बात कर रही थी और सबको उनके नाम से बुला रही थी। यही नहीं, मैंने चाची के दादा, पड़दादा तक का नाम ले लिया। मैं सबको चुनौती दे रही थी और हंस रही थी। मेरी आंखों का रंग लाल हो गया था और जीभ दांतों तले कट गई थी। मेरे हाथ-पैर नीले पड़ गए थे। मुझे डॉक्टर के पास ले जा गया अस्पताल, वहां से मुझे पीजीआई रेफर किया गया। पीजीआई में डॉक्टरों ने कहा कि इसे या रेबीज़ हो गया है या टिटनस, क्योंकि मेरी बॉडी अकड़ रही थी।

बाद में टेस्ट में दोनों ही बातें ठीक नहीं निकलीं। किसी ने कहा कि एपिलेप्सी (मिर्गी) का मामला है तो कोई कुछ औऱ कहे। इस बीच कोई और समझ पाता। मैं अचानक ठीक हो गई। दादी का कहना था कि उन्होंने मेरे हाथ में कोई जंतर बांधा था, जिसकी वजह से मैं उश वक्त ठीक हुई। डॉक्टरों ने और टेस्ट लिखे औऱ मुझे छुट्टी दे दी।

मैं घर आई और घर पर आने के दो दिन बाद फिर वही। मैंने घर में उठा-पटक मचाई। इतनी छोटी लड़की के पास कितनी ताकत होगी? मगर परिजनो ने बताया कि मैंने बड़े-बड़े एक कोने से उठाकर दूसरे कोने में पटक दिए, दरवाजे को तोड़ दिया और बाहर जाकर आंगन में लगे बादाम के पेड़ पर चढ़ गई और वहां से हंसने लगी।

पूरा गांव इकट्ठा हो गया था। किसी तांत्रिक को बुलाया गया। उशने कुछ जाप पढ़े तो कहते हैं कि मैं पेड़ से कूदी और जंगल की तरफ भागने लगी। आगे-आगे मैं थी औऱ पीछे-पीछे तात्रिक और गांव। रास्ते में कहीं मैं ठोकर खाकर गिरी औऱ बेहोश हो गई। मुझे घर लाया गया। वहां कोई तांत्रिक प्रक्रिया की गई और मेरा कथित तौर पर ‘इलाज’ शुरू किया गया। कहते हैं कि मैंने तांत्रिक के पूरे खानदार का नाम ले लिया औऱ उसे कहा कि कुछ भी कर ले, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।

परिजनों ने बताया कि उस तांत्रिक ने मुझे पीटा-मारा और पूछा कि कौन हूं। इस पर मैंने जवाब दिया कि मैं ******** हूं और मुझे ये लड़की यहां लाई है, मैं कहीं नहीं जाऊंगी। इस पर उसने कुछ मंत्र फूंके और कहा कि चली जा, बदले म क्या चाहती है। कहते हैं कि मैंने कहा कि मैं जाऊंगी तो सही, मगर इसकी जान लेकर जाऊंगी। तो तांत्रिक (चेले) ने कहा कि मैं जान तो इसकी नहीं, मगर तेरी ले लूंगा। भलाई इसमें है कि कुछ औऱ चाहती है तो बता। कहते हैं कि इस पर मैंने मैंने एक काली मुर्गी मांगी। इसके बाद अगली सुबह 4 बजे काली मुर्गी का इंतजाम किया गया और सुबह मेरे को खड्ड में कहीं ले जाकर कुछ पूजा-पाठ किया गया और वहीं पर काली मुर्गी का सिर काटकर उसे छोड़ दिया गया।

अब मैं जो कहने जा रही हूं, वह मेरी याद में ताजा है। मुझे अहसास हुआ कि मैं कहां हूं। मैं अंधेरे मे हूं और कुछ लोग मेरे पास हैं। मैं घबराई। इतने में मेरे पापा औऱ चाचा ने मुझे कहा कि बेटा घबरा मत हम हैं। मैं हैरान थी। मुझे ऐसा लगा कि मैं तो आईने के साथ खेल रही थी और अगले ही पल इस अंधेरी जगह पर हूं। यानी मुझे आईने में वह अजीब चेहरा दिखने से लेकर सुबह अजीब जगह लाकर मुर्गी का सिर काटने के बीच कुछ पता नहीं था। मैं कहां थी, मुझे नहीं पता।

बाद में बताया गया कि मुझमें कोई बुरी आत्मा का साया आ गया था और इस बीच वही मेरे शरीर मे काबिज रही। मुर्गी की बलि देकर उसे संतुष्ट करके मेरे शरीर से निकाला गया। उसके बाद मैं नॉर्मल हो गई। न मुझे कुछ अजीब लगा न मेरे परिजनों को। मैं रोज की तरह स्कूल जाती। हां, चंपा ने मेरे साथ आना-जाना छोड़ दिया, मगर बाकी गांव के बड़े बच्चे मेरा पूरा ख्याल रखते। फिर मेरे साथ कोई घटना नहीं घटी।

मैं पूरे विश्वास के साथ नहीं कह सकती कि मेरे साथ क्या हुआ था, क्योंकि बीच के कुछ दिनों के बारे मे री याद्दाश्त नहीं है। बीच में जो कुछ हुआ, वह मेरी दादी और मां ने मुझे बताया बाद में कि मेरे साथ ऐसा हुआ था। मैं तो ठीक हो गई, मगर एक दिन एक अजीब घटना घटी। एक दिन मैं स्कूल से घर लौटी, तो देका कि मेरी बुआ मेरे घर आई हुई है। उनके साथ उनकी 17 साल की बेटी मोनू भी आई हुई थी। घर पहुंचकर मैंने देखा कि मोनू कोने में चुपचाप बैठकर अपनी गोद में देखकर मुस्कुरा रही है। मैंने उसे उत्साह में जाकर बोला मोनू…. मैं खुश थी कि वो आई थी बड़े दिनों बाद। मगर उसने मेरी आवाज नहीं सुनी। पास जाकर मैंने देखा कि उसकी गोद में वही शीशा रखा हुआ है, जो मैंने उस दिन खड्ड से उठाया था।

पढ़ें: उस कोठी में कुछ तो अजीब था

किस्सा लंबा है, इसलिए दो हिस्सों में बांट दिया है। आगे का घटनाक्रम कुछ दिन बाद। जिसमें आप जानेंगे कि आगे क्या हुआ।

(लेखिका मूलरूप से हिमाचल के बिलासपुर की हैं और इन दिनों परिवार के साथ न्यू जीलैंड में बसी हुई हैं। वह पहली लेखिका हैं, जिन्होंने नाम या पता छिपाने की अपील नहीं की)

‘उस कोठी में कुछ तो अजीब था जो हमारे साथ इतना कुछ हुआ’

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों को बता सकें।

रजनीश गुप्ता।।

भूत-प्रेत पर मैं यकीन नहीं रखता। मेरे साथ जो घटना हुई, उसे भी मैं कोई आत्मा का खेल या कोई सुपरनैचरल नहीं मानता। मगर इतना जरूर है कि मैं उसकी पीछे की कोई वैज्ञानिक वजह अभी तक नहीं ढूंढ पाया। और जह तक यह वजह नहीं मिलती, तब तक दुनियादारी के स्थापित नियमों के हिसाब से वह घटना सुपरनैचरल ही कहलाएगी।

मैं एक संगठन का कार्यकर्ता हूं। आज से करीब 30 साल पुरानी बात है। तब मेरी उम्र 20-21 साल रही होगी। हिमाचल प्रदेश के ***पुर में हमारा शिविर था। हम हिमाचल और अन्य प्रदेशों से आए करीब 50 कार्यकर्ताओं को एक बड़ी सी पुरानी कोठी में ठहराया गया था, जिसके बीच में कुआं था, जो बंद पड़ा था। 2-3 दिन तक सब ठीक रहा। चौथे दिन मुझे मेरे साथी ने उठाया। उसने कहा कि कोई बाहर लकड़ी काट रहा है। मैंने घड़ी देखी तो डेढ़ बज रहा था। मैंने सोचा कि कोई कार्यकर्ता साथी होगा जो सुबह के लिए खाना बनाने के लिए लकड़ी काट रहा होगा। तो मैंने उसे बताया कि सो जाए, टेंशन न ले। वह भी सो गया।

अगले दिन सुबह उठे तो हल्ला मचा था कि कोई सारे बर्तन और औजार चुराकर ले गया। अब समझ आया कि रात को कोई लकड़ी नहीं काट रहा था, सामान चुरा रहा था। मन ही मन मैंने कोसा खुद को। मेरे उस साथी ने सबको बताया कि मैंने तो रजनीश को बताया था रात को कि आवाज हो रही है। मैं थोड़ा झेंपा भी। बहरहाल, गांव वालों ने मदद की और उनके सहयोग से लंच नसीब हुआ। फिर रात को सोए तो रात को फिर वैसी ही आवाज। इस बार 2-3 लड़के खिड़की से बाहर झांक रहे थे। जिज्ञासा में मैंने भी बाहर देखा। नजर आया कि अंधेरे के बीच कोई सफेद कपड़े पहनी आकृति कुएं के पास कुछ कर रही है, जिससे ठक-ठक की आवाज आ रही है।

हमने अंदर के सब लड़कों को बुलाया और बाहर की लाइट ऑन की। हैरानी इस बात की है कि अंधेरे के बीच को सफेद आकृति दिख रही थी, लाइट जलते ही वह नजर नहीं आई। वहां कोई भी नहीं था। यह भ्रम मुझे अकेले को नहीं, उस कमरे में सो रहे 7 और साथियों को हुआ। हमने शोर मचाया और अन्य कमरों मे सो रहे साथी भी बाहर आ गए। आयोजक आदि भी जागे और उन्होंने कहा कि भ्रम है, कुछ नहीं सो जाओ।

हम जैसे-तैसे सोए। अगली सुबह उठे और दिन भर विभिन्न क्रिया कलापों के बाद सोने की कोशिश करने लगे रात को। इस बार मैंने अपने 5 और दुस्साहसी दोस्तों के साथ बाहर बरामदे में सोने की योजना बनाई। हम कुछ देर तो जगे, बातें करते रहे और न जाने कब सबको नींद आ गई। जब मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि खेतों में पड़ा हूं। मैं हैरान था कि मैं यहां ऐसे-कैसे पड़ा हूं। सुबह होने को थी, मगर अंधेरा अभी ठीकठाक था।

मैंने उठकर घबराट में आसपास देखा तो दूर-दूर तक खेत थे और एक तरफ नाला था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने दूर जलदी एक रोशनी की तरफ बदहवास भागना शुरू कर दिया। मुझे इस दौरान लग रहा था कि कोई मेरे पीछे न हो। मैं करीब डेढ़ कीलोमीटर दौड़कर उस घर तक पहुंचा, जहां लाइट जल रही थी और उनका दरवाजा पीटने लगा। महिला ने दरवाजा खोला, मुझे देखकर उसके मुंह से चीख निकली। उसका परिवार पूरा बाहर आ गया। सामने वाले लोग भी घबरा गए, मगर मैंने घबराहट में अपने साथ हुआ घटनाक्रम कह सुनाया।

उन लोगों ने मुझे आंगन में बिठाया और पनी पिलाया। उन्होंने बताया कि मैं नाले के दूसरी तरफ आ गया हूं। उस तरफ वह कोठी है, जहां कोई कार्यक्रम चल रहा है। उसने बताया कि उस कोठी में कोई नहीं रहता। कई सार पुरानी कोठी है एक लाला की, जिसमें पूरे खानदार ने कुएं में कूदकर खुदकुशी कर ली थी और बंद पड़ी है। खैर, मुझे उन्होंने वहां छोड़ा, जहां हम लोग ठहरे हुए थे। वहां जाकर पता चला कि मैं ही नहीं, मेरे साथ बाहर सो रहे 4 साथी भी गायब हैं। उनकी तलाश चल रही थी। मैंने अपने साथ हुआ वाकया सुनाया तो सब लोगों ने उन्हें ढूंढने की कोशिश शुरू कर दी। कुछ देर बाद पता चला कि वे चारों बगल के मकान के साथ लगाए गए धान की फसल के ढेर पर सोए हुए हैं। उन्हें जगाया गया तो वे आधी नींद में थे और उन्हें भी पता नहीं चला कि वे यहां कब आए थे।

सब लोग यह आरोप लगाने लगे कि हम पांचों बाहर सोए ही इसलिए थे ताकि कोई नशा कर लें और हमारी यह हालत नशे की वजह से हुई है। क्योंकि हम सब अलग-अलग जगहों से थे, इसलिए किसी को पता नही ंथा कि किसी के बारे में। मैंने आज तक कोई नशा नहीं किया और न उस वक्त किया। मगर कोई यकीन करने को तैयार नहीं। उन्हें लगा कि हमने भांग खा ली थी। मगर हमें लग रहा था किसी और ने हमें भांग खिला दी होगी। खैर, वह दिन जैसे-तैसे गुजरा और यह तय हुआ कि यह जगह मैं छोड़ दूंगा अगले दिन। लेकिन उस रात को उन लोगों की भी हालत खराब हो गई, जो हमारे ऊपर शक कर रहे थे।

आधी रात को बगल वाले कमरे से शोर आने लगा। हम दौड़े-दौड़े गए तो देखा कि वहां रहने वाले सभी लड़के चीख रहे हैं, उछल रहे हैं, कोई हंस रहा है कोई रो रहा है। कोई अपने कपड़े फाड़ रहा था तो कोई अश्लील हरकतें कर रहा था। दो आपस में लड़ रहे थे और खून तक निकाल दिया था। कोने में एक लड़का जमीन की तरफ देखते हुए खड़ा था और बार-बार बोल रहा था- कुएं विच खून पा, कुएं विच खून पा।

यह मंजर देखकर किसी की भी आत्मा कांप सकती थी। दूसरे कमरों के लड़के भी वहां आए और किसी की हिम्मत न हो उन्हें पकड़ने की। आखिरकार आयोजकों में से एक बुजुर्ग आए और उन्होंने लड़कों को आदेश दिया कि इन्हें पकड़ो। हम लोगों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की मगर 4-4 लोगों से एक नहीं संभल रहा था। शोर सुनकर पूरे गांव के लोग इस तरफ आ गए थे। उनमें एक पंडित भी थे, जिन्होंने कहा कि इनके ऊपर गंगाजल छिड़को। कोई अपने घर से गंगाजल की बोतल ले आया। हैरानी ये कि गंगाजल छिड़कते ही सब नॉर्मल होते गए।Ghostss

तय हुआ कि यह जगह खाली कर दी जाएगी और शिविर में हिस्सा लेने आए युवकों को पंचायत घर में शिफ्ट किया जाएगा। अगली सुबह सभी को पंचायत घर ले जाया गया। वहीं सब रहे और रात को सब एक ही हॉल में सोए। कुछ को नींद आई, कुछ को नहीं। शिविर को वक्त से पहले खत्म कर दिया गया। सब लोग अपने-अपने घरों को लौट आए। बाद में हमें जानकारी मिली कि चुराए गए बर्तन और सभी औजार गांव के बाहर के नाले में गिरे पड़े मिले। पता नहीं वह कोठी आज है या नहीं, मगर वहां के साथ जरूर कोई बुरा माहौल जुड़ा हुआ था।

आज मैं सोचूं तो शायद मास हीस्टीरिया हो गया होगा और हमारे खाने में कोई नशीली चीज़ मिला दी होगी किसी ने शरारत वश। मगर बहुत से लोग इन साइंटिफिक थिअरीज़ पर यकीन नहीं करते। गांव वालों का भी कहना था कि इस जगह पर रकना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि कई सालों से बंद पड़ी है और इसके वारिस तक इसे इस्तेमाल नहीं करते। खैर, जो बीत गई सो बात गई। दोबारा ऐसा किसी के साथ न हो।

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(लेखक शिमला के ठियोग से हैं और बड़े स्वयंसेवी संगठन के साथ जुड़े हुए हैं। उनके आग्रह पर हमने उनके संगठन का नाम छिपा दिया है और उपनाम बदल दिया है)

दियोटसिद्ध में बाबा बालकनाथ की गुफा में आकर बैठा मोर

हमीरपुर।।

दियोटसिद्ध में बाबा बालकनाथ जी के मंदिर में हुई एक घटना सोशल मीडिया पर छाई हुई है। मंगलवार को एक मोर उड़कर आया और बाबा बालकनाथ जी की गुफा में उनकी प्रतिमा के सामने बैठ गया। गौरतलब है कि मोर को बाबा बालकनाथ का वाहन माना जाता है।

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दियोटसिद्ध के जंगलों में मोर रहते हैं और मान्यताओं के अनुसार बाबा बालकनाथ मोर के जरिए ही शाहतलाई से इस गुफा तक आए थे। मंगलवार को गुफा तक आया मोर बेहद शांत था। चारों तरफ इस घटना की चर्चा है, क्योंकि मोर शर्मीला पक्षी होता है। यह इंसानों से दूरी बनाकर रखता है। मंदिर में भीड़भाड़ वाली जगहों पर इसके आने से लोग हैरान हैं।
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बाबा बालकनाथ के नाम पर बनाए एक फेसबुक पेज पर तस्वीरें डाली गई हैं और बताया गया है कि कैसे मोर गुफा तक आ  गया। यही नहीं, पुजारी ने मोर को अपनी गोद में उठाया और मोर शांत बैठा रहा। इस घटना को लोग शुभ मान रहे हैं।

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