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Sunday, September 14, 2025
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क्यों है कांगड़ा के क्षत्रपों में रार, अचानक क्यों पैदा हो गए OBC के पैरोकार?

  • सुरेश चम्ब्याल

हिमाचल की राजनीति में अहम रोल रखने वाला कांगड़ा जिला चुनावी बेला के नजदीक आते-आते अशांत होता जा रहा है। कभी भाजपा दिग्गज यहां आर-पार की लड़ाई पर उतारू थे तो अब कांग्रेसी नेता तलवारें निकाल बैठे हैं। कांगड़ा किले के आसपास के इलाकों की यह लड़ाई नगरोटा, ज्वाली और कांगड़ा के क्षत्रपों के बीच की तनातनी पर चर्चा का विषय बनी हुई है।

Kangra

प्रदेश के राजनीतिक पटल पर नगरोटा लाइमलाइट में तब आया था, जब तेज-तर्रार नेता जीएस बाली यहां से विधायक बनके 1998 में हिमाचल प्रदेश विधासनभा में पहुंचे। गौरतलब था कि बाली ब्राह्मण समुदाय से थे और 70 फीसद ओबीसी जनता ने उन्हें अपना नेता चुना। जनता को अपना यह फैसला सटीक लगा इसका पता इस बात से चलता है कि बाली लगातार 3 बार उसके बाद भी विधानसभा में जाते रहे हैं।

नगरोटा में चंगर क्षेत्र को आधारभूत सुविधाओं से जोड़ने के लिए सड़कों के निर्माण से लेकर पेयजल योजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए बाली का ही नाम लिया जाता है। नगरोटा के ताज में में विभिन विभागों के कार्यालय , राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज से लेकर फार्मेसी संस्थान, मॉडर्न आईटीआई, बस डिप्पो वगैरह बाली के कार्यकाल में जुड़े। व्यक्तिगत रूप से भी बाली ने नगरोटा की जनता को अपने से जोड़ने में कई तरीके अपनाए। नगरोटा वेलफयर सोसाइटी के माध्यम से मेडिकल कैंप बाल मेला जैसे आयोजन हर साल चर्चा का विषय बन गए। यहां तक कहा जाने लगा कि बाली नगरोटा के बाहर सोचते ही नहीं है और नौकरियों में भी नगरोटा को ही तवज्जो देते हैं।

यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि बाली को विकास के नाम पर घेर पाना कांगड़ा तो क्या प्रदेश में भी किसी नेता के लिए आसान नहीं है। बाली ने नगरोटा में पालम और चंगर की खाई को विकास से पाटा है, इसमें दो राय नहीं है। इसलिए नगरोटा की जनता जब विधानसभा के लिए वोटिंग करती है तो बीजेपी कांग्रेस नहीं, बल्कि लड़ाई बाली बनाम नॉन बाली वोटर्स के मध्य रहती है। राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी का समर्थक वोट बैंक विधानसभा चुनाव में बाली का वोटर होता है। बाली को घेरने के लिए उनकी ही पार्टी के नेता चौधरी ओबीसी वर्ग के हितैषी होने का कार्ड खेलने लगे हैं। इसी कड़ी में ओबीसी कार्ड खेल रहे ज्वाली के विधायक नीरज भारती और बाली की रार प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है।


नीरज भारती के राजनीतिक उद्गम की कहानी परिवारवाद के स्तम्भ पर टिकी है । भारती के पिता प्रफेसर चंद्र कुमार कई वर्षों कांगड़ा से ओबीसी लीडर के रूप में राजनीतिक आसमान पर छाये रहे हैं। एक बार तो अपने ओबीसी कैडर के समर्थन से उन्होंने शांता कुमार जैसे दिग्गज नेता को भी लोकसभा चुनाव में पटखनी दे दी थी। इसमें कोई दो राय नहीं है की उन्हें जनता का भरपूर समर्थन भी मिला। परंतु प्रदेश सरकार में कई बार मंत्री रहने और और सांसद होने के बावजूद चन्द्र कुमार कांगड़ा या ओबीसी वर्ग के विकास में कोई ख़ास योगदान नहीं दे पाए। इस कारण उनके अपने ही लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया और लगातार दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वहीं उनके बेटे नीरज भारती ज्वाली में ‘गुलेरिया बनाम अर्जुन ठाकुर’ की लड़ाई का फायदा उठाकर विधानसभा पहुंच गए। भारती अपने तीखे तेवरों और फेसबुक पोस्ट के लिए आजकल चर्चा का विषय रहते हैं। बेबाक भारती कई बार इतना बेबाक कह जाते हैं की कांग्रेस संगठन और प्रवक्ता भी मीडिया के सामने जबाब नहीं दे पाते। परोक्ष रूप से भारती ने इस बार विपक्ष नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी के सीनियर लीडर पर शब्द बाण चला दिए है । इससे कांगड़ा की सियासत गरमा गई है।


जहाँ तक पवन काजल की बात है, काजल कभी भाजपाई हुआ करते थे। 2012 चुनाव में टिकेट न मिलने पर काजल कांगड़ा से बागी लाडे और चुनाव भी जीते। काजल काफी संयमित और मिलनसार माने जाने वाले नेता है। ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले काजल को ऐसा ऐसा नहीं है कि ओबीसी वर्ग ने ही वोट दिए, मृदुभाषी काजल को हर जाति के व्यक्ति से कांगड़ा में वोट मिले हैं। काजल अभी कांग्रेस के असोसिएट विधायक हैं। काजल की चिंता है कि एक बार तो वह जीत गए, परंतु वह जानते हैं भाजपा उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ चुकी है और अगर कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो उनके लिए काठ की हांडी को फिर चढ़ाना बहुत मुश्किल होगा। क्योंकि कांग्रेस के ही चौधरी समुदाय के नेता विशेष को काजल फूटी आंख नहीं सुहाते। हो सकता है इन्ही कारणों से ओबीसी शुभचिंतक का चोला काजल को भी पहनना अनिवार्य सा हो गया है। परंतु काजल यह रास्ता अपनाते हैं तो कांगड़ा सीट से सर्वमान्य और हर वर्ग का लीडर होने की उनकी छवि को नुकसान हो सकता है।

भारती ने जिस तरह से ओबीसी के मुद्दे को हथियार बनाकर काजल के कन्धों पर बन्दूक रखकर बाली को घेरने की कोशिश की है, इससे बाली से ज्यादा नुकसान काजल के कन्धों का नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि बाली नगरोटा को जातिवाद से ऊपर ले जा चुके हैं। वहीं काजल अगर ओबीसी के चक्कर में जातिवाद की राजनीति में घुसते हैं तो अन्य जातियां नाराज हो जाएंगी और उनकी बनी बनाई छवि का नुकसान होगा वो अलग। इन्ही समीकरणों और चर्चाओं की धुरी पर कांगड़ा कांग्रेस की राजनीति नाच रही है। लेकिन वीरभद्र सिंह और सुक्खू की ख़ामोशी ऐसे मामलों को हवा दे रही है। कांगड़ा में क्षत्रपों की लड़ाई इसी तरह जारी रही तो अगले चुनाव में कांग्रेस के साथ भी वही होगा, जो भाजपा के साथ हुआ था। वीरभद्र सातवीं बार कांगड़ा किले को फ़तह किए बिना सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकते। बाकी फैसला आम जनता को करना है कि उसे जातियों के ठेकेदार चुनने हैं या हिमाचल हितैषी नेता।

(लेखक हिमाचल से जुड़े मसलों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों In Himachal के लिए नियमित रूप से लेखन कर रहे हैं)

युग हत्याकांड: शिमला के लोगों के लिए एक बदलाव ला रहा है यह केस

MBM न्यूज नेटवर्क, शिमला।। पूरे हिमाचल प्रदेश में इस वक्त नन्हे युग की मौत का मामला चर्चा में है। अब उस बेरहमी भरी वारदात का 60 सेकंड का विडियो भी सीआईडी को मिला है। लेकिन मासूम युग ने अपनी जान देकर राजधानी शिमला के पेयजल वितरण को लेकर सुधार की उम्मीद भी जगा दी हैै।

युग
युग

यह साफ दिख रहा है कि राजधानी के पेयजल वितरण में सुधार होगा। मासूम का कंकाल कैलेस्टन में पानी के टैंक से बरामद हुआ था। इसके बाद से जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है। विधानसभा में भी युग हत्याकांड की गूंज पहुंची तो निशाने पर पेयजल वितरण प्रणाली पहले आई। नगर निगम की अपनी बैठक में मामले पर हंगामा हुआ।

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जब राजधानी में पीलिया फैला था तो टैंकों की सफाई के बड़े-बड़े दावे हुए थे। मगर टैंक से मिली युग की अस्थियों ने साबित कर दिखाया कि शहर को दूषित पानी मिल रहा था और टैंकों की सफाई के नाम पर क्या खेल हुआ था। मगर अब उम्मीद की जा रही है कि इस मामले में कोई पॉलिसी बनेगी।

युग मर्डर केस क्या है, अब तक इसमें क्या हुआ, क्लिक करके पढ़ें

वैसे भी शिमला ही नहीं, पूरे प्रदेश में टैंकों की सफाई को लेकर एक नीति बननी चाहिए औऱ साथ ही पानी के स्रोतों को बंद करने और ताला लगाने का इंतजाम होना चाहिए। वरना कल को कोई जहर या अन्य चीज डालकर पूरे इलाके के लोगों की जान खतरे में डाल सकता है।

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लेख: मिस्टर नीरज भारती! ओबीसी लोगों के सिर पर कोई और नहीं, आप राजनीति चमका रहे हैं

  • संजीव चौधरी

पक्षपातपूर्ण और सनसनीखेज रिपोर्टिंग कर रही हिमाचल की एक वेबसाइट पर खबर पढ़ी कि नीरज भारती ने इस बात का खंडन किया है कि उन्होंने कांगड़ा के विधायक पवन काजल को थप्पड़ मारे हैं। पहले तो मुझे नहीं पता था, मगर इस खबर को पढ़कर जरूर पता चल गया कि कुछ मामला हुआ है। वैसे नीरज भारती नाम सुनकर कोई भी आंख मूंदकर कह सकता है कि वह ऐसा काम कर सकते हैं। जो खुलेआम अंट-शंट बक सकता हो, जिसे पार्टी आलाकमान और मुख्यमंत्री की शह मिली हो, जो कानून को अपनी मुट्ठी में समझता हो, जो लोगों को मां-बहन की गालियां देता हो, जो खुलेआम धमकियां देता फिरता हो, अगर उसके बारे में ऐसी खबर आए तो हैरानी नहीं होती। बहुत संभव है कि नीरज भारती ने पवन काजल को एक झापड़ क्या, 4-5 लगाए हों और पवन काजल मारे शर्म के कुछ बोल न पा रहे हों। खैर, यह उन दोनों का आपस का मसला है। जब पवन काजल खुद कह रहे हैं कि ऐसा नहीं हुआ, तो इस विषय पर बात करना बनता नहीं है। इसलिए इस विषय पर मैं भी बात नहीं करूंगा। भले ही नीरज भारती कह रहे हों कि उनकी किसी बात को लेकर पवन काजल से गहमागहमी जरूर हुई थी।

खैर, मसला यह है कि उस पोर्टल पर नीरज भारती का बयान पढ़ा, जिसमें ओबीसी हितों की बात की गई थी। इसमें कहा गया था कि कांगड़ा के ही किसी ब्राह्मण नेता ने हम ओबीसी नेताओं (पवन काजल और नीरज भारती दोनों ओबीसी बहुल विधानसभा क्षेत्रों से हैं) में फूट डालने के लिए यह बयान चलाया है।

आज सुबह से एक गलत खबर को सोशल मीडिया पर हवा दी जा रही है और अब कुछ इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के लोगों के भी फ…

Posted by Neeraj Bharti on Thursday, August 25, 2016

अफवाह किसने चलाई, किसने नहीं, यह तो दावे के साथ कोई नहीं कह सकता। मगर इस पोस्ट के बहाने नीरज भारती ने जो जातिवाद का सहारा लेकर मामले को अलग रंग देने की कोशिश की है, वह अटपटी लगती है। अटपटी इसलिए भी लगती है, क्योंकि मैं खुद नीरज भारती के विधानसभा क्षेत्र से हूं और उसी जाति से हूं, जिससे नीरज भारती खुद हैं और जिस वर्ग का वह खुद को नेता बताते हैं। शर्म आती है मुझे नीरज भारती पर, जिन्होंने हम सभी को बदनाम किया है। जब वह फेसबुक पर किसी की मां-बहन को गालियां देते हैं, तब उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग खास कर घिर्थ आदि की मर्यादाओं की चिंता नहीं होती? तब वह ज्वाली की जनता का मान बढ़ा रहे होते हैं? अरे नीरज भारती जी, जब आप लोगों को गालियां दे रहे होते हैं, राजनीतिक विरोधियों पर ओछी टिप्पणियां कर रहे होते हैं, लोगों को कानिया कह रहे होते हैं, गाय का अपमान कर रहे होते हैं, तब हमें शर्म आती है कि हमने आप जैसे नेता को जन्म दिया। हमारे अभिभावकों को शर्म आती है कि उन्होंने आपके पिता के साथ-साथ चलकर उन्हें आगे बढ़ाने में योगदान दिया। हमें शर्म आती है कि आप हमारे विधायक हैं। आप किस मुंह से ओबीसी हितों की बात कर रहे हैं?

नीरज भारती
नीरज भारती

और इस बयानबाजी के अलावा आपने किया क्या है अपने इलाके के लिए? आपके पिता को हमने सांसद बनाया, यहां से कई बार विधायक रहे, सरकार में मंत्री रहे, आपको विधायक बनाया, आप सीपीएस हैं, मगर ज्वाली की हालत क्या है? यहां के मासूम लोगों को आप और चंद्र कुमार जी जाति के नाम पर ठगकर चुने जाते रहे, मगर आपने उसी जाति के नाम पर शोशेबाजी के अलावा कुछ नहीं किया। बाकी बातें छोड़ दो, यहां सड़कों की हालत इतनी खराब है कि सड़कों पर नाले बहने लगे हैं।

मैंने आपकी फेसबुक पोस्ट पढ़ी। आपने लिखा है- “”ये खबर फैलाने की चाल कांगड़ा जिला के ही एक कांग्रेसी नेता की है जो अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के सिर के उपर ही अपनी राजनीति चमकाता रहा है और आज भी जो कुछ है वो वहाँ के अन्य पिछड़ा वर्ग की वजह से है।””

हम सभी को पता है कि आपका इशारा किस तरफ है। और आपने चूंकि नाम नहीं लिखा, इसलिए मैं भी नाम नहीं लिखूंगा। आपने कहा कि वह ओबीसी लोगों के सिर पर ही अपनी राजनीति चमकाता रहा है। मुझे हंसी आती है आपके तर्कों पर। अरे वह ब्राह्मण होकर ओबीसी बहुल इलाके से जीत रहा है। अगर ओबीसी जनता उसने ब्राह्मण होकर जिता रही है, तो भाई इसका मतलब है कि यहां जाति का फैक्टर काम नहीं कर रहा। उल्टा जाति का फैक्टर आपके यहां काम कर रहा है, जहां आप ओबीसी बहुल इलाके में ओबीसी होने की वजह से जीत रहे हैं। और आप ही नहीं, आपके पिता जी भी ओबीसी होने की वजह से अपनी राजनीति चमकाते रहे हैं। वरना न तो आपमें रत्ती भर का टैलेंट है, न कोई विजन, न योग्यता। ऐसा ही चौधरी चंद्र कुमार के साथ भी था।

वैसे भी मेरी रिश्तेदारी है उस नेता के विधानसभा क्षेत्र में और मैं हमेशा उनके मुंह से उनके विधायक की तारीफ सुनता हूं। वह इसलिए, क्योंकि लोग खुश हैं कि उनके विधायक ने उनके इलाके के विकास को नए आयाम दिए हैं। वे खुश हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में उनका इलाका आगे बढ़ रहा है। वे खुश हैं कि तमाम सुविधाएं उन्हें अपने इलाके में मिल जाती हैं। यही नहीं, आपने जिन दूसरे नेता को ‘अपनी जाति का नेता’ बताया है, वहां भी मेरी रिश्तेदारी है। उनके इलाके के लोग भी उस नेता को बहुत मानते हैं, जिसपर आपने निशाना साधा है। मैंने खुद जाकर उस इलाके का अपने इलाके से तुलनात्मक अध्ययन किया है। भारती जी, आपने हमारे इलाके का सत्यानाश कर दिया है।

और अगर वह इलाका आगे बढ़ा है तो यह उस नेता का बड़प्पन नहीं है। उस नेता की इसमें कोई उपलब्धि नहीं। बल्कि यह उपलब्धि हमारे उन ओबीसी भाइयों की है, जो उस नेता को अलग जाति का (जैसा कि आपने कहा ब्राह्मण) होने के बावजूद मौका देती है और लगातार जिताती आई है। कभी-कभी मुझे लगता है कि हमारे साथ लगते विधानसभा क्षेत्रों में रहने वाले हमारे ओबीसी भाई हमसे समझदार हैं, जो अपनी जाति के आधार पर नहीं, बल्कि काम के आधार पर नेता चुनते हैं। या जिस किसी भी आधार पर चुनते हों, ये तो वे जानें। मगर इतना साफ है कि इसमें जाति वाला फैक्टर नहीं है।

और आप अपनी भाषा देखिए। आप स्पष्टीकरण देते हुए लिखते है- ”इसी नेता को जिसने ये गलत अफ़वाह फैलाई है इसे जरूर एक बार इसके द्वारा मुझसे बदतमीजी किए जाने पर मुझसे थप्पड़ पड़ जाने थे (चाहे तो उससे पूछ सकतें हैं ये बात लगभग 1 साल पहले की है शिमला विधानसभा की) पर उस वक्त ये नेता वहाँ से भाग गया था इसीलिए वक्श दिया था पर शायद अब नहीं बक्शा जाएगा।”

यह रवैया और आपकी स्वीकारोक्ति दिखाती है कि आप थप्पड़ मार भी सकते हैं। इसलिए अफवाह उड़ी भी तो गलत नहीं। आपकी इमेज ही ऐसी है, जो आपने खुद गढ़ी है। आप कह रहे हैं कि अब नहीं बख्शा जाएगा। यानी आप थप्पड़ मारेंगे। और अगर मारेंगे तो इस बार कयों अपनी इमेज की चिंता करते हुए स्पष्टीकरण देते हुए घूम रहे हैं।

खैर, आपकी आखिरी लाइनें दिखाती हैं कि आप कितने घोर जातिवादी हैं और बौखलाकर कितनी घटिया बातें करते हैं। आप लिखते हैं- अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के बीच दरार डालने वाले ऐसे नेताओं से सावधान रहें जो की खुद तो अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंध नहीं रखता है और राजनीतिक रोटीयाँ हमेशा अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की बदौलत सेंकी हैं…..
खुद ये नेता अपने आप को ब्राह्मण बोलता है पर नाम में सिंह लगाता है….. तो इसके ब्राह्मण होने में भी शक है और सिंह लगाने पर राजपूत होने में भी….. अब पता नहीं कौन जात है…..

भारती जी, मैं ऐसे समाज की कामना करता हूं जिसके नाम से पता ही न चले कि उसकी जात क्या है। मैं किसी को किसी की जाति से नहीं पहचानना चाहता। औऱ एक सभ्य समाज में जाति के लिए कोई जगह भी नहीं है। नेता ऐसा होना चाहिए, जो न जाति को तवज्जो दें और न ही किसी और को ऐसा करने दें। मगर शिक्षा विभाग के सीपीएस होने के बावजूद आप ऐसी ओछी बातें कर रहे हैं, आप पर शर्म आती है। सबसे ज्यादा शर्म तो इस बात के लिए आती है कि अन्य पार्टियों के बीच कांग्रेस पार्टी ही खुद को धर्म, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र निरपेक्ष बताती है, मगर आप जैसे नेता उस दावे को खोखला साबित कर रहे हैं। ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे। और आपको मिलेगी सद्बुद्धि, क्योंकि जिस तरह से हम ज्वाली और कांगड़ा के लोगों ने आपके पिता की जाति आधारित राजनीति को खारिज किया था, हम एक बार फिर आपको खारिज करने का मन बना चुके हैं। हमें अपनी जाति का फर्जी नेता नहीं, काम करने वाला असली नेता चाहिए, फिर वह किसी भी धर्म या जाति से क्यों न हो। और भारती जैसे तमाम नेताओं से अनुरोध, अब आप कृपया हम OBC लोगों को बदनाम न करें। हमारे लिए अच्छा नहीं कर सकते तो बेइज्जत तो न करवाइए। जय हिंद।

(लेखक मूलत: कांगड़ा जिले के ज्वाली से हैं और इन दिनों जालंधर में एक निजी विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रफेसर कार्यरत हैं)

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DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी है। ‘इन हिमाचल’ इनसे सहमत या असहमत होने का दावा नहीं करता।

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वॉल्वो बसों के जरिए हिमाचल में नशे की खेप पहुंचा रहे हैं तस्कर

इन हिमाचल डेस्क।।  हिमाचल प्रदेश में नशे का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। पंजाब से लगते जिले इससे ज्यादा प्रभावित नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों कांगड़ा जिले की पुलिस खूब सक्रिय है और इस काले धंधे से जुड़े बहुत से लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। फिर भी असल सप्लायर और बड़े पैमाने पर यह काम करने वाले अभी तक पुलिस की पहुंच से बाहर हैं।

हिमाचल में नशा लाने के लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है, वह हैरान करता है। हिमाचल की शांत प्रदेश की जो छवि बनी हुई है, वही इसके लिए खतरनाक साबित हो रही है। यहां पर दिल्ली और अन्य जगहों से नशे की खेप आराम से लाई जा रही है और किसी को पता तक नहीं चल रहा। पिछले दिनों पुलिस के हत्थे चढ़े नशे के सौदागरों ने पूछताछ के दौरान बताया है कि वे वॉल्वो बसों में सफर करते थे और क्योंकि इन बसों में चेकिंग कम होती है।

Nasha
साभार: Divya Himachal

थाना इंदौरा में पकड़े गए युवकों से रिमांड के दौरान कई अहम खुलासे हुए हैं। नूरपुर के डीएसपी मोहिंदर सिंह मन्हास ने बताया था कि कुछ दिन पहले अरेस्ट नशे के मुख्य सप्लाय सोनीपत (हरियाणा) के ररहने वाले ऋषि ने इलाके के कुछ युवकों के नाम बताए थे, जिन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। रिमांड में सभी ने जुर्म कबूल कर लिया था।

इस बारे में दिव्य हिमाचल की खबर कहती है कि इंदौरा में जो दिल्ली का गिरोह नशा सप्लाई करता था, वह हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी नशा सप्लाई कर रहा है। हिमाचल समेत देश के सभी राज्यों की वॉल्वों बसों की चेकिंग कम होती है, इसीलिए वे इनकी मदद से कहीं भी नशा पहुंचा देते हैं। हिमाचल में तो कुछ प्राइवेट वॉल्वो भी बिना परमिट चल रही हैं और पूरी संभावना है कि उनका इस्तेमाल भी इस काम में होता हो।

हिमाचल प्रदेश पुलिस को चाहिए कि पड़ोसी राज्य से जोड़ने वाली सड़कों पर नाके लगाए जाएं और सरकारी व निजी वाहनों की रैंडम चेकिंग की जाए। इससे नशे के सप्लायर्स हतोत्साहित होंगे। साथ ही ऐसे मामलों में पकड़े जाने वालों के प्रति जरा भी नरमी न बरती जाए और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने की कोशिश की जाए।

बीजेपी की तिरंगा यात्रा में उड़ रही हैं यातायात नियमों की धज्जियां

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  • अतुल जसवाल

देशक्ति के नाम पर बाइक्स पर दो की जगह लदे तीन-तीन लोग हाथों में राष्ट्रध्वज लिए बिना हेलमेट सांय-सांय करते हुए सड़को पर हजूम के रूप में गुजर रहे हैं। यह किसी मूवी का सीन नहीं है, बल्कि अपने आप को राष्ट्रवादी कहने वाली बीजेपी की हिमाचल यूनिट की तिरंगा यात्रा का रोज का वृत्तांत है। प्रशासन मूकदर्शक बना है कहीं चालान भी काट रहा है।  जहां चालान कट रहे हैं वहां तथाकथित देशभक्त ऐसे गुर्रा रहे हैं मानो वो नमक कानून तोड़ने के लिए गांधी जी के साथ दांडी यात्रा पर थे और अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें रोक लिया  हो।

भाजपा के ही कर्मठ नेता केंद्रीय परिवहन मंत्रीं नितिन गडकरी जोर-शोर से रोड सेफ्टी पर कार्य कर रहे हैं।  बाकायदा नियमों को और टाइट करने के लिए उन्होंने जुर्माने में भी बढ़ोतरी की है।  हैरानी यह है की यही तिरंगा यात्री फेसबुक पर नितिन गडकरी के कार्यों का गुणगान करते हैं कि रोड सेफ्टी के लिए उन्होंने बहुत सही कार्य किया है दूसरी तरफ यही लोग तिरंगा उठा के देशभक्ति के नाम पर अपने ही देश के नियमों को सरे आम ताक पर रखकर  सड़कों पर दौड़े जा रहे हैं।

 
बड़े नेता तक यही काम करते नजर आए।
बड़े नेता तक यही काम करते नजर आए।
 
क्या देशभक्ति का जज्बा या जोश किसी को यह छूट देता है की तिरंगा उठाओ और किसी भी नियम की धज्जियां उड़ा दो?  जब आप इसी बात की परवाह नहीं करते कि आपके देश के कानून में सड़क  पर वाहन पर चलाने  के कुछ कानून निहित कर रखे हैं और आपको उनका पालन करना है तो आप तिरंगा उठा कर इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगा कर किस मुंह से अपने आप को और अपने कार्य को देशभक्ति राष्ट्रवादिता में गिना रहे हैं।
 

दुःख की बात यह है कि प्रदेश  बीजेपी के   बड़े नेता इस मामले में खामोश हैं। रोज इस यात्रा की तस्वीरे छप रहीं है परंतु किसी भी नेता ने सवेंदनशील होकर युवा वर्ग से अपील नहीं की है कि आप लोग तिरंगा यात्रा में बाकायदा हेलमेट पहन कर चलें।  किसी नेता ने अपने कार्यकर्ता से नहीं कहा की तिरंगा वाहन  पर लगा होना यह इज़ाज़त नहीं  देता की आप नियमों की धज्जियाँ उड़ा दें।  देश के कान्नून का सम्मान करना , उसका पालन करना इन्ही चीजों को दिनचर्या में कोई नागरिक अपनाये वो भी देशभक्ति है।  हालाँकि  सड़क पर यह मामला मात्र नियम के पालन से हैं जुड़ा हैं अपितु अपनी  सुरक्षा से भी जुड़ा है।

बीजेपी के बड़े नेता कम से कम सुरक्षा के हवाले से ही यह अपील तो नौजवानों से कर सकते हैं जिनमे देशभक्ति की बाइक क्रांति की अलख आपने जगाई है। कुछ लोगों का मानना है हमें तिरंगा यात्रा का सम्म्मान करते हुए हेलमेट सड़क सुरक्षा नियम कानून की बात नहीं  करनी चाहिए।  मैं उसने पूछना चाहता हूँ हमें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए ? कल को कोई व्यक्ति अ अपनी बाइक पर तिरंगा  लगा दे बिना हेलमेट चले और कहे की मैं पुरे साल की तिरंगा यात्रा पर हूँ तो क्या उसे नियम में छूट दे दी जानी चाहिए ?
 
कुछ लोग कहेंगे मैं कांग्रेसी हूँ, आपिया हूँ, बीजेपी विरोधी हूँ ये हूँ वो हूँ।  ऐसी बातें वो लोग लेकर आते हैं जिनके पास  बहस में बने रहने  या मुद्दों पर टिप्पणी करने के लिए कोई तर्क नहीं होता। मुझे इससे फर्क भी नहीं पड़ता मैं जो भी हूँ जैसा भी हूँ तिरंगा यात्रा से मुझे आपत्ति नहीं है देश के नाम डेडिकेट करते हुए कोई पैदल दौड़े कोई बाइक से चले कोई साइकिल से चले मुझे  ख़ुशी है।

 
पर उसी देश के नियमों कानूनों की तिलांजलि देकर यह कैसी देशभग्ति की ब्यार बह रही है यह समझ से परे  है।  भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेतायों का फर्ज बनाता है वो सार्वजानिक रूप से यह अपील  युवा वर्ग से करें की तिरंगा यात्रा देश के प्रति निष्ठा के साथ साथ वो इसी देश के नियमों का भी पालन करें
 
 
(लेखक सेंट्रल यूनिवर्सिटी  हिमाचल प्रदेश के छात्र हैं और इन हिमाचल के नियमित पाठक हैं।  अन्य पाठक भी अपने विचार लेख हमें inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं) 

इन 3 सवालों के जवाब दिए बिना बीजेपी में शामिल हो रहे हैं महेश्वर सिंह

  • सुरेश चंबयाल

कुछ साल पहले बीजेपी पर दनादन करप्शन का आरोप लगाकर हिलोपा नाम से अलग पार्टी बनाने वाले महेश्वर सिंह रविवार को फिर से बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। कुल्लू के ढालपुर मैदान में इसके लिए बड़ी रैली की तैयारियां की गई हैं। इसमें प्रेम कुमार धूमल शिरकत करेंगे। पहले चर्चा थी कि प्रदेश के प्रभारी श्रीकांत शर्मा, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और सांसद शांता कुमार भी इसमें शामिल होंगे, मगर शनिवार शाम तक खबर आई कि ये सब कुल्लू नहीं आएंगे।

महेश्वर सिंह
महेश्वर सिंह (Image: Courtesy Hillpost.in)

महेश्वर सिंह के बीजेपी में शामिल होने के साथ ही उस हिमाचल लोकहित पार्टी का भी बीजेपी में विलय हो रहा है, जिसे बीजेपी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के नाम पर बनाया गया था। महेश्वर सिंह अपने पुराने घर में वापस आ रहे हैं। वह दो बार इसके प्रदेशाध्यक्ष भी रहे हैं। मगर कुछ सवाल ऐसे बनते हैं, जिनका सवाल दिए बिना ही वह यह कदम उठा रहे हैं।

(1) महेश्वर सिंह ने यह कहते हुए बीजेपी से किनारा किया था कि उसका करप्शन पर कोई स्टैंड नहीं है और कुछ नेता करप्शन में शामिल हैं। अब जब वह फिर से बीजेपी में आ रहे हैं तो क्या उनकी इन शंकाओं का समाधान हो चुका है?

(2) 2012 में महेश्वर सिंह व अन्य बागियों ने बीजेपी आलाकमान के सामने मांग रखी थी कि मौजूदा नेतृत्व को हटाया जाए। जाहिर है उस समय प्रेम कुमार धूमल की सरकार थी और उनके निशाने पर वही थे। अब अगर अगला चुनाव पार्टी फिर धूमल के नेतृत्व में लड़ती है तो महेश्वर का स्टैंड क्या रहेगा? क्या अब उन्हें धूमल मंजूर हैं या किसी शर्त पर उनकी वापसी हो रही है?

(3) प्रदेश में बेनामी जमीनी सौदों के मामलों पर भी महेश्वर बात करते रहे हैं। यह भी कहा उन्होंने कई बार कि धारा 118 का उल्लंघन करने में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दोषी हैं। अब जब वह पार्टी में वापसी कर रहे हैं तो क्या फिर से वह पार्टी के अंदर इन सवालों को उठाएंगे?

महेश्वर सिंह रविवार को प्रेम कुमार धूमल की मौजूदगी में कुल्लू के ढालपुर मैदान में बीजेपी में वापसी करेंगे। मगर इन सवालों का जवाब जब तक वह साफ नहीं देते, आशंकाएं बनी रहेंगी।

कहानी: जातिवाद की वजह से होकर भी नहीं हो पाई शादी

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आज से हम नया सेक्शन शुरू कर रहे हैं, जिसमें प्रदेश के लोग ऐसी कहानियां भेज सकते हैं, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर दें। वे मनोरंजक भी हो सकती हैं और कुछ सिखाने वाली भीं। वे एक सवाल के तौर पर भी हो सकती हैं और समस्या के तौर पर भी, जिसे इन हिमाचल के पाठक अपने सुझाव देकर सुलझाने की कोशिश कर सकते है। हमें इस सेक्शन को शुरू करने की प्रेरणा हमारी रीडर निशा धीमान से मिली, जिन्होंने यह कहानी हमें भेजी है।

पिछले दिनों मंडी में जाति को लेकर एक बारात लौटने की खबर पढ़ी। 2 साल पहले का वाकया मेरी आंखों के सामने घूम गया, क्योंकि उस वक्त भी ऐसा ही कुछ हुआ था। मेरी सहेली मीनू बहुत खुश थी। 5 साल के लंबे अफेयर के बाद उसकी शादी जो हो रही थी। मगर शादी निपटते ही उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया। शादी का पंडाल युद्धक्षेत्र में बदल गया था। लोग गुत्थमगुत्था थे। लाठियों-डंडों से भिड़े पड़े थे। दुल्हन पक्ष वाले दूल्हे के साथ आए बारातियों को बुरी तरह से धुन रहे थे। हाथ में कुर्सी आ रही थी तो कुर्सी से, झाड़ू आ रहा था तो झाड़ू से, जो मिल रहा था उससे धुनाई हो रही थी। न उम्र का लिहाज हो रहा था न अन्य किसी मर्यादा का। कोहराम को चीख-पुकार से पूरा इलाका दहल गया था। आधे लोग गाड़ियों से भाग रहे थे तो कुछ आसपास से उस तरह की तरफ आ रहे थे। महिलाएं हो रही थीं जोर-जोर से, मानो शादी न होकर किसी की मौत हो गई हो।

शुरू में मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं तो मीनू के साथ उसके कमरे में अन्य लड़कियों के साथ थी और उसकी गुत्त बना रही थी। पता नहीं बाहर से कैसे ये शोर आने लगा था। इतने में एक महिला रोती-रोती अंदर आई और बोली- लड़के वाले अगड़ी जाति के नहीं हैं। यह सुनकर कमरे में बैठा हर शख्स हैरान रह गया। मीनू के चेहरे की रंगत अचानक उड़ गई। मैं समझ ही नहीं पा रही थी क्या हो रहा है। इससे पहले कि कोई और सवाल करता, मैंने पूछा क्या मतलब? तो उस महिला ने बताया कि लड़के वालों ने झूठ बताया कि वे जनरल हैं, वे दरअसल $$$$$$ हैं। मैंने मीनू की तरफ देखा और उससे पूछा कि क्या बात है, तुझे पता है कुछ?

मीनू इससे पहले कि कोई जवाब देती, बेहोश हो गई। इधर हम परेशान कि मीनू को कैसे होश में लाया जाए। उसके चेहरे पर पानी फेंका तो वह होश में आई और तुरंत रोने लगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। कॉलेज से ही मैं और मीनू पक्की सहेलियां बन गई थीं। इतनी प्यारी सी लड़की, शर्मीली बहुत। पानी पीते वक्त मिली थी वह। बाद में धीरे-धीरे घुली-मिली तो पता चला कि शुरू में शर्माती है, बाद में घुल-मिल जाती है। इतनी हंसमुख और चंचल निकली कि पूछो मत। खैर, इस बीच उसका कॉलेज के ही एक सीनियर लड़के पंकज से अफेयर चलने लगा था। वह मुझे पंकज ही हर बात बताती। ग्रैजुएशन के बाद पंकज फौज में भर्ती हो गया और मीनू ने बीएड करने लगी। मैं एमए करने के लिए शिमला चली आई।

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इस दौरान मीनू से फोन पर बात होती रही। वह बताती रही कि कैसे पंकज से उसकी बात होती रहती है और अब वह शादी के लिए कहने लगा है। मैंने उसे बताया कि अपने घर पर बात करे और किसी को बताए कि ऐसी-ऐसी बात है। कम से कम मां को ही बता दे। इस दौरान मीनू ने मुझे बताया कि उसकी मौसी का लड़का भी फौज में है और पंकज ने उससे दोस्ती कर ली है। दोनों का एक-दूसरे के यहां आना-जाना भी हो गया। मीनू मुझे बताती कि कैसे पंकज क्या-क्या गिफ्ट लेकर आता है। कभी महंगा सा फोन और उस फोन के टूट जाने पर और महंगा फोन, कभी ये कपड़े तो कभी वो कपड़े। मुझे बहुत खुशी होती। एक दिन मुझे मीनू ने फोन करके बताया कि उसकी शादी तय हो गई है। और अच्छी बात यह थी कि शादी भी पंकज के साथ ही तय हुई थी। मीनू ने अपनी मां को यह बात बताई थी और मीनू ने इस बारे में अपनी बहन (मीनू की मौसी, जिसका बेटा पंकज का दोस्त था) से बात की। फिर जब पता चला कि लड़के का व्यवहार अच्छा है तो मीनू के पापा को भी उन्होंने यह बात बताई।

मीनू के पापा ने एक-दो दिन तो जवाब नहीं दिया, मगर बाद में कहा कि ठीक है। बात करते हैं लड़के वालों से। फिर प्रक्रिया शुरू हुई। कुंडली मिलाई गई, लड़की वाले और लड़के वाले मिले। बात पक्की हुई। रिंग सेरिमनी हुई और शादी भी तय हो गई। तय डेट पर बारात आई होटेल में, सभी रस्में हंसते हुए निभाई गईं और शादी हो गई। मगर विदाई से ठीक पहले जो कोलाहल मचा था, वह हैरान कर देने वाला था। मेरे मन में कभी यह ख्याल नहीं आया कि इस शादी में जाति को लेकर भी कोई बात होगी। क्योंकि अमूमन जब आप शादी इस तरह से करते हैं तो मैंने देखा है कि लोग पूछताछ करते हैं, कुंडलियां मिलाते हैं, लड़के या लड़की के घरबार का पता करते हैं, फिर शादी होती है। और वैसे भी आजकल जाति को लेकर कौन इतना चिंतित होता है। खैर, मैं इसी उधेड़-बुन में लगी थी कि जानकारी मिली कि लड़की के रिश्तेदार विदाई करने के पक्ष में नहीं है।

हस्तक्षेप हुआ और काफी देर माहौल बना। बारातियों को बंधक भी बनाकर रखा गया और बाद में बारात को बिना दुल्हान के लौटा दिया गया। मुझे लग रहा था कि अगर जाति का चक्कर रहा भी होगा तो मीनू और उसके घरवालों को पता होगा और उन्होंने खुद अपने रिश्तेदारों से बात छिपाई होगी। उन्होंने सोचा होगा कि बेटी की खुशी के लिए एक बार शादी हो जाए फिर कौन पूछता है। पंकज का घर भी तो मीनू के घर से 30-40 किलोमीटर दूर है। मैं बड़ी दुखी थी। मैंने मीनू से पूछा कि क्या बात है। क्या तुझे पता था कि तुम दोनों की जातियां अलग हैं? मीनू ने मां की कसम खाते हुए कहा कि मुझे नहीं पता था कि उसकी असली जाति क्या है। मुझे तो यही लगता था कि वह भी जनरल होगा। वह खुद से बात-बात में बोलता था कि हम राजपूत ऐसे, हम राजपूत वैसे होते हैं। और अगर मुझे पता होता कि वह जनरल नहीं है, घरवाले तैयार नहीं होते तो मैं उससे भागकर शादी कर लेती। मेरे लिए उसकी जाति मायने नहीं रखती। मगर उसने झूठ क्यों बोला। छिपाने की क्या जरूरत थी। झूठ का सहारा क्यों लिया? क्या उसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मेरे मम्मी-पापा की कितनी बदनामी हो गई। मेरी जिंदगी ही तबाह हो गई। मैं कुछ कर बैठूंगी।

मैंने उसे बोला चुप रह, फिर पंकज का नंबर मांगा। पंकज को मैंने फोन किया तो उसने बोला कि अभी बात नहीं कर सकता। मैंने कहा कि मुझे जरूरी बात करनी है, तुम्हें बात करनी होगी, ये तुम दोनों के फ्यूचर का सवाल है। पंकज ने कहा आधे घंटे में मैं खुद फोन करता हूं।  एक डेढ़ घंटे बाद पंकज का फोन आया। मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने मुझे कहा कि पता नहीं क्या गलतफहमी हुई है। मैं जनरल ही हूं। न मैंने कभी इस बात को लेकर झूठ बोला न कभी किसी से बात छिपाई। तुम्हें यकीन नहीं हो तो मेरे सारे सर्टिफिकेट देख लो। ऐसा होता तो मैं रिजर्वेशन का ही फायदा उठाकर कहीं और नौकरी कर रहा होता या आगे पढ़ रहा होता, तुम जानती हो कि मैं पढ़ने में अच्छा रहा हूं। मुझे ऐसा करने की जरूरत भी क्या है? मगर खैर, जब मीनू को ही मुझपे भरोसा नहीं। मेरे रिश्तेदारों को पीटा गया तो अब इस रिश्ते का कोई मतलब नहीं।

मैंने उससे कहा ठंडे दिमाग से काम लो। जो भी गलतफहमी है, वो दूर हो सकती है। रिश्तेदार बेवकूफी कर रहे हैं तो तुम दोनों को अपना दिमाग ठीक रखो। कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। इस बीच मैंने अपने एक कॉमन फ्रेंड से बात की, जो मीनू और पंकज दोनों को जानता था। उससे मैंने कहानी पूछी। उसने मुझे जो बताया, उसे सोचकर मैं हैरान रह गई कि प्रदेश में जातिवाद की क्या स्थिति है।

दरअसल पंकज के दादा वगैरह मूलत: एक पिछड़ी जाति से संबंध रखते थे। 80 या 90 के दशक में हुई जनगणना के दौरान उन्होंने अपने आप को जनरल दिखाया। उनके जैसे कई परिवारों ने अपनी जाति जनरल दिखाई। बाद में ऐसा हुआ कि वे जनरल के दौर पर पंजीकृत हो गए, जबकि उनकी ही जाति के अन्य लोग पुरानी जाति के तौर पर ही पंजीकृत रहे। मगर आपस में सबका उठना-बैठना, बर्तन आदि बरकरार रहा। बाद में आरक्षण का फायदा उठाने से भी वे लोग वंचित रह गए, जिन्होंने खुद को जरनल कैटिगरी में रखवाया था। जातिवाद तो समाज में बरकरार है ही। ऐसे में भले ही वे कागजों में जनरल जाति में हों, पहले से जनरल जाति वाले लोग इन्हें स्वीकार नहीं करते। वे उन्हें उसी जाति के मानते हैं, जिससे वे मूलत: संबंध रखते थे। मगर आज जब खुद को जनरल के तौर पर रजिस्टर करवाने वाले परिवार अपने ही सर्कल में मूल जाति में पंजीकृत परिवारों में शादी करते हैं तो उन्हें अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए दी जाने वाली रकम मिलती है। खैर, यह अलग विषय है।

यहां पर ऐसा हुआ कि पंकज ऑन पेपर जनरल है। इसलिए अगर उसने मीनू से कहा कि वह जनरल है तो उसने सच ही कहा। कानून वह जनरल ही है। मगर चूंकि तथाकथित अगड़ी जातियों के लोग उनके परिवार को जातिवाद की मानसिकता के चलते $$$$$ मानते हैं, इसीलिए पंगा हुआ। दरअसल बारात के साथ गए टैक्सी वालों में कुछ अगड़ी जाति से भी थे। जब होटेल में सब खाना खा रहे थे तो उन्होंने अलग बैठकर खाना खाने की मांग कर दी। होटेल मालिक ने कहा कि बारात के साथ बैठकर खा लीजिए। इस पर किसी जातिवादी टैक्सी चालक ने कहा कि हम फ्लां जाति से हैं, हम इनके साथ बैठकर नहीं खाते। होटेल वाला और बड़ा जातिवादी। वह तुरंत लड़की के पिता के पास गया और बोला कि आपने कहां करवा दी लड़की की शादी, वे तो जाति से $$$$$ हैं।

इसके बाद ही सब बवाल शुरू हुआ था। यह घटना बड़ी दुखद है। सुनने में आया है कि गांव वालों ने मीनू के परिजनों का बहिष्कार कर दिया है। कानूनन तो वे इस तरह का ऐलान नहीं कर सकते, मगर उन्होंने मीनू के परिवार के बातचीत करना या उनके यहां आना-जाना बंद कर दिया है। घटना को 2 साल हो चुके हैं। इस बीच मैंने मीनू से बात करने की कोशिश की थी, मगर उसका फोन नंबर स्विच ऑफ आया। शायद बदल लिया है। पंकज से भी बात करने का कोई मतलब नहीं लगा। पता चला है कि अपने मम्मी-पापा के साथ ही गांव में रहती है। वह मीनू सब छोड़कर अपने पति के यहां जाने को तैयार है, मगर घरवाले इसके लिए तैयार नहीं।

मुझे इस घटनाक्रम ने इतना दुख पहुंचाया है कि इसका कोई हिसाब नहीं। शुरू में मुझे लगा कि पंकज गलत है, जिसने बात छिपाई। कभी मुझे लगा कि मीनू गलत है। पर अब मैं मानती हूं कि गलत सिर्फ हमारा समाज है। जो आज भी जातिवाद के चक्कर में फंसा हुआ है। लड़का सेटल है, लड़की पढ़ी-लिखी है, दोनों प्यार करते हैं, क्या इतना काफी नहीं है? उनकी जाति कहां आड़े आ जाती है? मेरी इतनी तमन्ना है कि मीनू और पंकज सब बातों को भुलाकर एक हो जाएं और उनके रिश्तेदार भी उन्हें स्वीकारें। क्योंकि परिवार दो लोगों का नहीं, दो परिवारों और दो समूहों का मेल होता है। उम्मीद है कि ऐसा ही उन दो बच्चों के साथ हो, जिनकी खबर कुछ दिन पहले पढ़ने को मिली थी। कभी-कभी सोचती हूं कि कब तक जातिवाद यूं ही समाज में जहर घोलता रहेगा?

(लेखिका निशा धीमान पुणे में सॉफ्टवेयर इंजिनियर हैं। इस कहानी के पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं।)

हॉरर एनकाउंटर: जब मेरे चाचा रात को चुपके से घर से निकलने लगे

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

  • श्रवण गुलेरिया

उन दिनों मैं बहुत छोटा था। शायद मेरी उम्र 7 साल थी। आज से 20 साल पहले की घटना है। सितंबर-अक्टूबर के दिन थे। धान की फसल काटने का काम चल रहा था। हमारे खेत घर से 3-4 किलोमीटर दूर हैं। दरअशल दादा जी अपनी जवानी के दिनों में ही पुश्तैनी जमीन को छोड़कर इस जगह पर आकर बस गए थे, जहां हम रह रहे थे। तो घर-परिवार के लोग पैदल खेतों तक जाते, वहां पर फसल काटते और ढेर लगाकर रख देते। वहीं पर बड़े से खेत में लगी फसल की रखवाली भी करनी पड़ती। इसकी ड्यूटी चाचा की लगती थी, जो उन दिनों कॉलेज में थे। दिन में वह कॉलेज जाते और रात को उन्हें वहीं पर बने अस्थायी मचान में रुकना होता।

खेत ज्यादा थे और अनाज भी काफी होता था। तीन दिन तक करीब चाचा को रात को वहां रुकना पड़ा। इस दौरान चाचा के व्यवहार में बदलाव सा आ गया। वह खाना कम खाने लगे, हंसते-खेलते रहा करते थे, मगर अचानक गंभीर हो गए थे। किसी से बात कम करते थे और हम बच्चो को अक्सर डांट दिया करते थे। सब लोग बड़े परेशान हुए उनके व्यवहार से। इस बीच 10-15 दिन बीते और देखने को मिला की चाचा दिन ब दिन कमजोर होते जा रहे हैं। 15 दिन के अंदर वह सूखकर आधे रह गए थे। बड़े-बुजुर्गों ने पूछा कि क्या कोई दिक्कत तो नहीं। मगर उन्होंने कहा कि ठीक हूं। डॉक्टर के पास जाने से भी इनकार कर दिया।

एक रात मेरी ताई रात को बाहर निकलीं तो उन्होंने देखा कि चाचा जूते पहनकर तैयार होकर कहीं निकल रहा है। उन दिनों घर में टॉइलट बन गया था, फिर कहीं और जाने का तो सवाल भी नहीं था। मगर ताई जी ने अंदर आकर ताऊ जी को बात बताई। ताऊ ने चाचा के कमरे में जाकर देखा तो वह वाकई वहां नहीं थे। सुबह उनके आने का इंतजार किया और जब वह आए तो पूछा कि कहां गए थे। चाचा ने बोला मॉर्निंग वॉक पर। मगर जब उन्हें बताया कि तुम्हारी भाभी ने तुम्हें तो रात को ही निकलते देखा था, इस पर चाचा ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

अगली रात ताऊ जी ने मेरे पापा के साथ मिलकर योजना बनाई कि देखें कि ये जाता कहां है। रात को फिर डेढ़ बजे के करीब चाचा अपने कमरे से निकला और जूते पहनकर निकल पड़ा। आगे-आगे चाचा और पीछे-पीछे पापा और ताऊ। चाचा हमारे उन्हीं खेतों की तरफ चल पड़ा, जहां पर रात को वह चौकीदारी किया करता था। उन खेतों से आगे चलकर एक नाला था, चाचा उस तरफ बढ़ चला। पीछे से छिपते-छिपाते हुए ताऊ और पापा भी जा रहा था। उन्होंने देखा कि चाचा नाले में उतर गया। वे लोग आगे गए तो अंधेरे में उन्हें समझ नहीं आया कि चाचा गया कहां नाले में। वे काफी देर वहां बैठकर देखते रहे, मगर कुछ नहीं दिखा। इस बीच सुबह हो गई और वे दोनों खाली हाथ घर की तरफ लौट पड़े। घर पर आकर उन्होंने देखा कि सीढ़ियों के पास चाचा के जूते खुले पड़े हैं। कमरे में जाकर उन्होंने देखा कि चाचा वहां पर सो रहा है। वे हैरान थे कि ये कब लौटा।

परिवार में चर्चा हुई कि कुछ तो गड़बड़ है। पहले शंका थी कि कहीं किसी से चक्कर न चल रहा हो या गलत संगति में पड़कर चोरी-चकारी न करने लगा हो, मगर नाले में जाना हैरान कर रहा था। किसी ने बताया कि कुछ तो चक्कर है, इसपर किसी ने कुछ कर दिया है। रिश्तेदारों में बात हुई तो किसी ने सलाह दी कि दूर के मंदिर वाले बाबा से पूछ ली जाए। बाबा ने पूछ देकर बताया कि उसे किसी चड़ेल (चुड़ैल) ने अपने बस में किया हुआ है और वह इसका फायदा उठा रही है। यह इसीलिए सूख रहा है धीरे-धीरे और ऐसा ही रहा तो महीने घर में मर भी सकता है।

घर वाले चिंता में थे। मेरे पापा को यकीन नहीं हुआ इन बातों पर वह बात करना चाहते थे चाचा से। मगर चाचा मुंह से कोई बात नहीं करता था और कुछ पूछने पर वहां से उठकर चल दिया करता था। इस बीच एक दिन पापा कहीं बाहर गए थे काम से, पीछे से ताऊ और पड़ोस के दो अंकलों ने चाचा को पकड़ा और जबरन बाबा के मंदिर ले गए। बाबा ने वहां झाड़फूंक की, मगर चाचा बोलता रहा कि छोड़ो, मुझे कुछ नहीं हुआ। लास्ट में बाबा ने कहा कि मेरे बस का नहीं, इसे किसी और के पास ले जाओ।

चाचा को वहां से छोड़ा गया, तो चाचा बहुत नाराज हुआ। चाचा ने बोला कि मुझे कुछ नहीं हुआ है और दोबारा ऐसा किया तो घर छोड़ दूंगा। सब परेशान थे। वापस आने पर पापा को पता चला कि ऐसा हुआ है तो वह बहुत नाराज हुए। उन्होंने चाचा से बात की और बोला कि कोई बात नहीं, दोबारा ये लोग ऐसा नहीं करेंगे। तू चल मेरे साथ, कोई टेस्ट वेस्ट करवा लेते हैं कि भूख क्यों नहीं लग रही, क्यों वेट लूज़ हो रहा है। चाचा को बोला पापा ने कि कल सुबह चलेंगे। उस वक्त चाचा ने कुछ नहीं कहा। रात को उनके कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था कि वह बाहर न निकले। मगर अगली सुबह लोग उठे तो चाचा के कमरे का दरवाजा खुला था वह वहां था ही नहीं।

सबने उन्हें ढूंढने की कोशिश की तो दोपहर तक पता चला कि वह खेतों में गिरा पड़ा है। पड़ोसियों को वहां पर गिरा नजर आया था। उसी जगह पर, जहां पर रात को पहरेदारी करता था। अब सबको कुछ लगा कि मामला गड़बड़ है। पापा ने भी ज्यादा बचाव करना छोड़ दिया था। इतने में चाचा को एक मंदिर (याद नहीं कौन सा) ले जाया गया, जहां की पुजारिन भूत-प्रेत उतारने में माहिर थी। मंदिरों पर मुझे तो नहीं ले जाते थे, मगर बाद में परिवार वालों से जो पता चला, उसी का जिक्र आपके साथ कर रहा हूं। तो वहां पर उस पुजारिन ने चाचा के ऊपर पानी फेंका और चाचा अजीब तरह से हंसने लगा। दोहरी सी आवाज। मानो पुरुष और स्त्री दोनों हंस रहे हों। पुजारिन ने उससे पूछा कि कौन है तू, क्या चाहता है।

इतने में चाचा ने बोला कि मैं तो मैं ही हूं, कोई नहीं है मेरे ऊपर। पर मुझे हंसी ये आ रही है कि तू ढोंग करती है पुजारिन होने की, तुझे तो पता ही नहीं है कि समस्या क्या है। तू भूत-प्रेत ढूंढ रही है मुझमें और मेरे अंदर कोई भूत नहीं है। और इलाज करना है तो मेरे घरवालों का कर, जिनका दिमाग खराब हो गया है। तू मेरी कोई मदद नहीं कर सकती, अपना और मेरा टाइम वेस्ट न कर।

पुजारिन ने 10 मिनट के लिए मौन साधा और फिर बोली- बेटा, बता तू क्या समस्या है तेरे को। समझ तो मैं गई हूं, मगर तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं। ये माता का दरबार है, यहां तेरेको कोई डर नहीं है। चाचा यह सुनकर रोने लगा औऱ बोला मैं नहीं बोल सकता, मेरे को कसम खिलाई है। अगर मैं कुछ बोलूंगा तो मेरे पूरे परिवार को खतरा है। पुजारिन ने फिर बोला कि यहां तुझे कोई खतरा नहीं है और न ही तेरे परिवार को कुछ होगा। तू बोल।

आधे घंटे की ऐसी ही बातचीत के बाद चाचा ने जो बुलाया, उसे सुनकर वहां मौजूद लोगों के रोंगटे खड़े गए हो गए। चाचा ने बताया-

‘पहली रात मैं पहरेदारी करने गया था। जैसे ही मैं सोया, मुझे मेरे नाम से किसी महिला ने पुकारा। पहले मैंने सोचा कि मेरा भ्रम है। तो मैं सो गया आराम से। रात को कोई समस्या नहीं हुई और मैं घर आ गया सुबह। अगली रात को फिर गया तो फिर मुझे किसी ने मेरे नाम से आवाज दी। मैं इधर-उधर देखा तो मुझे झाड़ियों के पास कोई महिला सी दिखाई दी खड़ी हुई। मैं खड़ा होकर ध्यान से उस तरफ देखता हूआ। कम से कम 30-40 फुट दूर आधे से चांद की चांदनी में वह महिला खड़ी हुई दिखाई दी। मैं उसे देखता रहा गौर से। वह भी इस तरफ देख रही थी। उशने कुछ नहीं कहा बस देख रही थी। चेहरा वगैरह नजर नहीं आ हा ता, मगर ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई पकड़े न पहने हों। मैं करीब डेढ़ मिनट तक ऐसे ही देखता रहा। फिर मुझे ध्यान आया कि पास ही कुल्हाड़ी पड़ी है। मैंने नजर घुमाकर कुल्हाड़ी उठाई और फिर उस दिशा में देखा तो वहां कोई नहीं था। मैं परेशान था कि मुझे भ्रम हुआ था कि मैंने कोई सपना देखा था। वो रात जैसे-तैसे बीती और मुझे सुबह लगा कि रात को कोई सपना ही देखा था।

तीसरी रात और आखिरी रात को मैं अपने साथ रेडियो ले गया था। रात को नींद नहीं आ रही थी पिछली रात की घटना को याद करके। रेडियो मैं जोर से बजा रहा था ताकि कोई आवाज भी लगाए तो मुझे सुनाई न दे। नई बैटरी डाली थी, मगर आधे घंटे बाद ही रात साढ़े 12 बजे रेडियो बजना बंद हो गया। अब मैं होशियार होकर बैठ गया। हाथ में कुल्हाड़ी ले ली और उस तरफ नजर डालने लगा, जहां पिछली रात एक महिला जैसा कुछ दिखा था। अचानक झाड़ियों में हरकत हुई औऱ वहां पर फिर वही महिला आई। और इस बार वो अचानक लगातार बढ़ती हुई मेरे पास आने लगी। मन किया कि कुल्हाड़ी का वार करूं, जोर से चीखूं मगर मैं चिल्ला नहीं पाया। मैं खड़ा रहा। वह महिला पास आती रही। उसने कुछ भी नहीं पहना हुआ था। जैसे ही वह वहां आई थी, ऐसी गंध आ रही थी हवा से जैसे कि मछलियों से आती है या खड्ड की जमी हुई काई से।

उसके बाद उसने मेरे साथ गलत काम किया। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया। और उसने मुझे बोला कि इस बारे में किसी को बताया तो मैं तेरे घर को आग लगा दूंगी और सारे परिवारवालों को मार दूंगी।’

चाचा ने ये बात रोते-रोते बताई। इसके बाद चाचा से पुजारिन ने पूछा कि तू क्यों जाता था बार-बार रात को। चाचा ने बोला कि जी वो रोज घर तक आती है मुझे लेने। मुझे उसकी आवाज सुनाई देती है कानों में और फिर खिड़की से बाहर दिखती है वो। वो आगे-आगे चलती हैौ और मैं उसके पीछे-पीछे। फिर मुझे ले जाती है वो अपने साथ नाल में। दरवाजा बंद किया हो घरवालों ने तो वह भी खुल जाता है। मैं किसी को कुछ बता नहीं पाया क्योंकि मैंने देखा है उसकी ताकत कितनी है। वह हवा में उड़ती हुई जाती है और हवां में उड़ती आती है। पानी से बीच से ले जाकर अंदर उसकी गुफा है, जहां पर उसने बहुत सारा सामान रखा हुआ है।

सांकेतिक तस्वीर।
सांकेतिक तस्वीर।

पुजारिन ने इसके बाद मोरपंखे से कुछ मंत्र फूंककर झाफा मारा और चाचा को एक ताबीज पहनने को दिया औऱ बोला कि जब तक इसे पहनेगा, तुझे कुछ नहीं होगा। वो चुड़ैल तेरा कुछ नहीं कर पाएगी। साथ ही मेरे ताऊ जी को पोटली में कुछ दिया और बोला कि इसे गांव के चारों कोनों में दबा दो। ताऊ जी ने उसी दिन लौटकर वह काम किया और गांव के चार कोनों में वो चीजें दबाईं, जो पुजारिन ने दी थी। चाचा ने ताबीज (जंतर) पहना और बैठे रहे। उस रात को करीब 1 बजे हम सबने गांव से दूर बाहर किसी महिला के चीखने की आवाजें सुनीं। सब घरवाले उठे थे, तो मैंने भी वे अजीब सी आवाजें सुनी थीं। अगली सुबह गांववालों ने भी वे चीखें सुनीं थीं, जैसे महिला जोर-जोर से रो रही हो। उसी रात हमारे धान के कुंदलू (धान की फसल का बनाया गया ढेर) में अपने आप आग लग गई और सारी फसल तबाह हो गई।

यह सिलसिला आने वाली 7 रातों तक चलता रहा। मेरे चाचा की भूख खुल गई थी और नॉर्मल होकर बात करने लगे थे। इतने में पुजारिन के पास फिर जाकर बताया गया कि ऐसे गांव से बाहर आवाजें आती हैं। पुजारिन ने कहा कि दिवाली तक रुक जाओ। दिवाली वाली रात बस ख्याल रखना कि ये (मेरा चाचा) कहीं अकेला न जाए बाहर। दिवाली वाली रात चाचा को घर के सब सदस्यों ने चूल्हे के पास बिठाया हुआ था। अचानक उनके पेट में दर्द शुरू हो गया। इतना दर्द हुआ कि उन्हें अस्पताल ले जाने की नौबत आ गई। उन्हें पड़ोसी की जीप में बिठाकर जैसे ही अस्पताल ले जाने लगे, हमारे घर के छप्पर में अचानक आग लग गई। शुक्र मनाओ कि परिवार वाले घर से बाहर निकलकर आंगन में पहुंचे हुए थे चाचा को अस्पताल ले जाने की वजह से। अचानक छत से आग लगी और पूरा घर आग की चपेट में आ गया। कुछ लोग चाचा को अस्पताल ले गए और पड़ोसी वगैरह आग को बुझाने लग गए।

अस्पताल जाते ही चाचा को खून की उल्टियां हुईं और पता चला कि उन्हें पेट में अल्सर हो गए हैं। उनका लंबा इलाज चला और फिर ठीक हो गए। इस बीच गांव में कभी भी वे आवाजें नहीं सुनाई दीं। घर जला और बहुत सारी चीजें जलीं, मगर ऊपर वाले की कृपा से सबकुछ ठीक हो गया बाद में। परिवार इस हानि से उबर गया और आज संपन्न हालत में है। चाचा एक राष्ट्रीयकृत बैंक में मैनेजर हैं और परिवार के साथ सुखी हैं। हम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हैं।

पता नहीं वह घटनाक्रम क्या था, मगर बचपन में अपने सामने देखा है तो रोमांचित करता ही है।

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लेखक ने नाम वगैरह बदलने की गुजारिश तो नहीं की थी, मगर उनके चाचा की पहचान उजागर न हो, इसलिए हमने नाम वगैरह बदल दिए हैं।

मनी लॉन्ड्रिंग केस: ED ने प्रतिभा सिंह से पूछताछ के लिए बनाई तीन पन्नों की प्रश्नावली

नई दिल्ली।। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह से पूछताछ के लिए 3 पन्नों के प्रश्नावली तैयार की है। इसमें 32 सवाल हो सकते हैं। वह 9-10 अगस्त को ईडी के सामने पेश हो सकती हैं।

ईडी का केस सीबीआई की एफआईआर पर आधारित है, जिसमें वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी को 6.03 करोड़ रुपये के संपत्ति गलत तरीके से उस दौरान अर्जित करने का आरोप है, जब वह यूपीए सरकार में केंद्रीय इस्पात मंत्री थे। इंग्लिश अखबार इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जब इस बारे में प्रतिभा सिंह और वीरभद्र सिंह से टिप्पणी लेनी चाही तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। इससे पहले वीरभद्र सिंह इन आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित बताते रहे हैं।

प्रतिभा सिंह।
प्रतिभा सिंह।

इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक ईडी के सूत्र बताते हैं कि वे इन्वेस्टमेंट और परिवार के आय के स्रोतों के बारे में प्रतिभा सिंह से पूछताछ करना चाहते हैं। यह भी पूछा जाएगा उन्हें साउथ दिल्ली के फार्म हाउस के बारे में कहां से जानकारी मिली, जिसमें उन्होंने इन्वेस्ट किया। यह भी पूछा जाएगा कि वकामुल्ला चंद्रशेखर की तारिणी इन्फ्रास्ट्रक्चर्स से उनकी असोसिएशन के बारे में भी सवाल पूछे जाएंगे।

आरोप है कि वीरभद्र ने एलआईसी पॉलिसीज़ में ऐसी रकम अपने, अपनी पत्नी और बच्चों के नाम पर इन्वेस्ट की, जो कहां से आई, इसका हिसाब नहीं है। उन्होंने यह रकम बागवानी से हुई आमदानी के तौर पर दिखाई और आनंद चौहान नाम के एजेंट के जरिए इसे एलआईसी में इन्वेस्ट किया।

दबंग विधायक की पत्नी के ट्रक पर ऐक्शन लेने वाले ईमानदार पुलिस अफसर का तबादला

सोलन।। आपके सोलन जिले की दून विधानसभा के कांग्रेस विधायक राम कुमार चौधरी याद हैं? पंचकुला के बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड में राम कुमार ने कथित तौर पर पुलिस के सामने हत्या की बात कबूली थी। वह जेल में भी रहे मगर सितंबर 2014 में कोर्ट ने 12 आरोपियों समेत उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि विधायक और अन्य पर लगे आरोपों को पुलिस साबित नहीं कर पाई, इसलिए उन्हें बरी किया जाता है। उस मामले में क्या हुआ, क्या नहीं; इसे लेकर कई बातें कही जाती हैं। अब कोर्ट का आदेश आने के बाद अब टिप्पणी तो नहीं की जा सकती, मगर वही विधायक एक बार फिर चर्चा में हैं।

राम कुमार चौधरी।

यह बात छिपी नहीं है कि प्रदेश के इंडस्ट्रियल एरिया बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ में लंबे समय से अवैध खनन चल रहा है और इसे राजनेताओं की शह मिली हुई है। सोमवार देर रात पुलिस ने एक बैरियर पर एक टिप्पर को रोका। उसमें खनन सामग्री थी। जब इसके कागजात मांगे गए थे तो ट्रक वह नहीं दे पाया। इस पर ऐक्शन लेते हुए पुलिस ने नियमानुसार 40 हजार रुपये का चालान काटा और परिवहन विभाग ने ओवरलोडिंग के लिए 21,020 रुपये अलग से फाइन किया।

यह ऐसी कार्रवाई थी, जिसके लिए पुलिस की तारीफ होनी चाहिए थी, क्योंकि यह वाकई अच्छा काम था। मगर इस घटना के तीन दिन के अंदर ही एएसपी गौरव सिंह का तबादला कर दिया। इसलिए, क्योंकि जिस ट्रक का चालान किया गया, वह दून के विधायक राम कुमार की पत्नी कुलदीप कौर का था।

एएसपी गौरव सिंह।

 

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युवा और तेज-तर्रार एएसपी गौरव सिंह ने खनन माफिया की नाक में दम कर दिया है। पिछले 6 महीनों से अवैध खनन करके प्रदेश को नुकसान पहुंचा रहे कारोबारियों पर उन्होंने नकेल कसी है। अब तक इस तरह के 170 मामले सामने आ चुके हैं और 25 लाख रुपये का जुर्माना वसूला जा चुका है। इसके बावजूद उनके ट्रांसफर के लिए विधायक राम कुमार ने 3 डीओ भेजे हैं। भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक जब तीन डीओ भेजने के बावजूद एएसपी गौरव सिंह का तबादला नहीं हुआ तो वह मुख्यमंत्री से मिले और बताया कि गौरव सिंह सिर्फ कांग्रेसियों पर कार्रवाई कर रहे हैं, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर जाकर भी कार्रवाई कर रहे हैं और इससे मेरे इलाके में विकास कार्य रुक गए हैं।

अब इसके बाद प्रधान गृह सचिवकी तरफ से जारी ऑर्डर में गौरव सिंह को अब एसडीपीओ बद्दी से ट्रांसफर करके एएसपी धर्मशाला बना दिया गया है। सोशल मीडिया पर इस फैसले की आलोचना हो रही है। लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा है। मुख्यमंत्री भी इस मामले में बैकफुट पर नजर आ रहे हैं, क्योंकि राम कुमार चौधरी से उनकी मुलाकात के बाद ही यह तबादला हुआ है। संभव है कि विधानसभा में भी यह मामला गूंजे, मगर सोशल मीडिया पर सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी साफ देखी जा रही है।

डीएसएपी महेंद्र सिंह मिन्हास का भी हुआ था ट्रांसफर
यह इस तरह का पहला मामला नहीं है। नूरपुर के एमएलए अजय महाजन की सिफािरश पर वहां के डीएसपी महेंद्र सिंह मिन्हास का तबादला सेकंड बटालियन सकोह कर दिया गया था। अभी तो प्रदेश ट्रिब्यूनल ने इसपर स्टे लगाकर रिपोर्ट मांगी है, मगर उन्हें वहां से रिलीव कर दिया गया है। मिन्हास ने खनन और ड्रग्स माफिया की रीढ़ तोड़ दी थी। डीएसपी महेंद्र सिंह मिन्हास का तबादला करीब 11 महीने पहले नूरपुर हुअा था।

पंजाब से लगे नूरपुर क्षेत्र में एनडीपीएस और खनन का धंधा चरम पर है। भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक महेंद्र सिंह ने 11 महीने के छोटे से कार्यकाल में एनडीपीएस के 100 केस बनाए। एसडीपीओ रहते हुए महेंद्र ने 125 चरस तस्करों को गिरफ्तार किया। 20.27 लाख रुपए की ड्रग्स पकड़ी। कुछ माह पूर्व उन्होंने 3200 नशे के कैप्सूल पकड़े थे। डीएसपी महेंद्र सिंह ने 400 के करीब माइनिंग के केस पकड़े। इससे सरकार को लाखों का राजस्व मिला। चरस और खनन माफिया के खिलाफ की गई डीएसपी महेंद्र सिंह मिन्हास की कार्रवाई से वहां का चरस और खनन माफिया की कमर टूट चुकी थी। उसके बाद खनन और चरस माफिया ने उन्हें हटाने के लिए पहले कई शिकायतें करवाई और बाद में उनका तबादल ही करवा दिया।