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Sunday, September 14, 2025
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खराब सड़कों पर सवाल पूछा तो मीडिया पर भड़क गए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, बद्दी।।  महिला पुलिस थाना के लोकार्पण के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री को पत्रकारों के सवाल रास नहीं आए और वह भड़क गए। आलम यह रहा कि साथ बैठे आला प्रशासनिक अधिकारी भी असहज हो गए।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने पीडब्ल्यूडी विभाग अपने पास रखा है, जिसके पास सड़कें बनाने और उनकी मेनटेनेंस वगैरह की जिम्मेदारी है। मगर प्रदेश में कई जगहों पर सड़कों की हालत खस्ता है और लोगों को भारी असुविधा हो रही है।

दरअसल पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से पूछा कि बीबीएन की सड़कों की हालत कब सुधरेगी। इस पर सीएम उग्र होकर मीडिया पर ही बरस पड़े। उन्होंने कहा, ‘आपको तो बीबीएन में ही सब कुछ खराब नजर आता है। क्या यहां कुछ भी ठीक नहीं है? मेरी नजर में तो सब कुछ ठीकठाक है।’

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इस पर पत्रकारों ने कहा कि बीबीएन की प्रमुख सड़कें, जैसे कि नालागढ़ रामशहर रोड, बद्दी साई रोड, बद्दी बरोटीवाला रोड, बरोटीवाला गुनाई रोड, बरोटीवाला बनलगी रोड समेत कई रोड बदहाल हैं।

फाइल फोटो
फाइल फोटो

पत्रकारों ने पूछा कि विभाग वीपाईपी के आने से पहले पैच वर्क किया जाता है तो क्या यह सुविधा लोगों को नहीं मिली चाहिए? इस पर उन्होंने कहा कि वीआईपी के आने पर पैचवर्क गलत है, लोगों को सुविधाएं निरंतर वैसे ही मिलनी चाहिए।

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मंडी: मौलवी ने शादी के इरादे से अगवा की थी अपनी नाबालिग छात्रा

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। प्रदेश के मंडी जिले के मुस्लिम बहुल आबादी वाले गांव डिनक से 23 जुलाई को किडनैप हुई नाबालिग लड़की को ढूंढ निकालने में पुलिस कामयाब हो गई है। गांव के एक मदरसे में 10वीं में पढ़ने वाली छात्रा को इसी मदरसे के मौलवी ने शादी करने के इरादे से किडनैप कर लिया था।

नाबालिग लड़की को किडनैप करने का आरोपी 22 साल का कासिर अहमद है, जो हरियाणा के मुस्लिम बहुल जिले मेवात का रहने वाला है। वह डिनक के मदरसे में मौलवी के तौर पर नियुक्त था, मगर उसकी नीयत अपनी शिष्या के प्रति ही बेईमान हो गई।

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लड़की के लापता होने पर परिजनों ने शिकायत सुंदरनगर पुलिस स्टेशन में करवाई थी। इसके बाद पुलिस ने तलाश शुरू कर दी थी। लंबी छानबीन के बाद पुलिस मौलवी का पता लगाने में कामयाब रही।

आरोपी कासिर अहमद (Source: MBM News Network)
आरोपी कासिर अहमद (Source: MBM News Network)

आरोपी को तेलंगाना के नल्लू जिले से अरेस्ट किया गया है। पुलिस ने अगवा की गई लड़की को भी बरामद करवा लिया है। दोनों को मंडी लाया जा रहा है।

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अवैध कब्जों को मान्यता देने वाली नीति पर वीरभद्र सरकार को हाई कोर्ट की फटकार

शिमला।। ‘कानून की आड़ में गैर-कानूनी काम को बढ़ावा देने वाले’ सरकार के एक कदम पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। दरअसल मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में अवैध निर्माण को नियमित करने का फैसला लिया, मगर हिमाचल हाई कोर्ट ने इसे गलत ठहाराया है।

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा अवैध निर्माण को गैर-कानूनी ठहराते हुए आदेश दिया है कि अवैध निर्माण को नियमित नहीं किया जना चाहिए। जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की बेंच ने कहा कि सरकार को न तो अवैध निर्माण को नियमित करना चाहिए और न ही वन भूमि पर अवैध कब्जों को।

कोर्ट ने कहा कि जो भी अवैध निर्माण होते हैं, वे रातोरात नहीं हो जाते। सरकार की मशीनरी मूकदर्शनक बनकर लालची लोगों को इस तरह से अवैध कब्जे करने देती है। पहले इन्हें अवैध रूप से कब्जे करने की छूट दी जाती है और बाद में उसे रेग्युलर कर दिया जाता है। यह दिखाता है कि संवैधानिक मशीनरी फेल है।

कोर्ट ने हिमाचल सरकार को फटकारते हुए कहा कि इस तरह नीतियों से बेईमानों को कानून तोड़ने की इजाजत मिली रहती है और बेचारी ईमानदार लोग दया के पात्र बने रहते हैं। कोर्ट ने अवैध निर्माण को नियमित करने की नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आलम यह है कि हजारों ऐसे निर्माण कर दिए गए हैं जो असुरक्षित हैं और उन्हें भी रेग्युलर किया जा रहा है।

गौरतलब है कि मई महीने के आखिर में सरकार द्वारा अवैध कब्जों को नियमित करने की खबर सुर्खियों मे ंरही थी और कांग्रेस इसे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर रही थी। मगर प्रदेश के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना था कि यह नीति गलत है, क्योंकि इससे अवैध कब्जे करने वालों को प्रोत्साहन मिलता है। जहां तक भूमिहीन लोगों की बात है, उन्हें घर आदि बनाने के लिए पहले ही तय नियमों की तहत सरकार से भूमि देने का प्रावधान है। अब हाई कोर्ट ने भी सरकार की इस नीति को खराब बताया है। साफ है कि चुनाव नजदीक आते देख तुष्टीकरण की नीति अपनाना प्रदेश सरकार को महंगा पड़ा है।

पढ़ें: कूटनीति के राजा, मगर विजनहीन नेता हैं वीरभद्र

NRI महिला ने मणिमहेश यात्रा में बदइंतजामी को लेकर कौल सिंह ठाकुर को घेरा

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, चंबा।। स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर चंबा दौरे पर थे। यहां कुछ ऐसा हुआ, जिसकी उन्होंने उम्मीद नहीं की थी। एक एनआरआई महिला ने उनपर सवालों की बौछार कर दी और वह असहज नजर आए।

Source: MBM News Network

दरसअल कौल सिंह ठाकुर होटल ईरावती में ब्रेकफस्ट कर रहे थे। वहां पर पहले से मौजूद भारतीय मूल की अमेरिका में रहने वाली महिला वीणू शर्मा ने मणिमहेश यात्रा को लेकर सवाल दागना शुरू कर दिया।

वीणू ने पूछा कि यात्रियों के लिए स्वास्थ्य से जुड़े इंतजाम क्यों नहीं है। उनका कहना था कि श्रद्धालुओं के लिए न तो ऑक्सिजन सिलिंडर का इंतजाम है न अन्य सुविधाएं। रास्ते में भी कीचड़ इतना है कि चलना मुश्किल है। इस पर कौल सिंह ने कहा कि यात्रा में इतने सारे लोग जाते हैं, ऐसे में अकेले-अकेले के लिए व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

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गौरतलब है कि इस बार कुछ यात्रियों की विभिन्न वजहों से मौत हो गई है। हर साल कुछ संख्या में मणिमहेश यात्रा के लिए निकले यात्री मुश्किल में फंसकर दम तोड़ देते है। ज्यादातर बार ऑक्सिजन की कमी (ऑल्टिट्यूड सिकनेस) की वजह से ये मौतें होती हैं।

बताया जाता है कि वीणू नाम की यह महिला हाल ही में मणिमहेश की यात्रा करके आई थीं। जैसे ही उन्हें पता चला कि कौल सिंह चंबा आए हैं, वह उन समस्याओं के बारे में बात करने चली आईं, जिन्हें उन्होंने खुद महसूस किया था।

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आवारा गायों से करोड़ों की आमदनी कर सकती है प्रदेश सरकार

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  • आशीष नड्डा

पिछले कुछ अरसे से गाय की दशा दिशा पर समाज में चर्चा छिड़ी है। हिमाचल प्रदेश में भी हर छोटे बड़े शहर गांव कस्बे में गाय को बेचारगी की स्थिति में अवारा घूमते हुए देखा जा सकता है। शहरों में यह गाय डस्टबीन के आसपास कचरा प्लास्टिक तक खाने को मजबूर हैं तो गांवों में भूख के कारण खेतों में घुसकर डंडा खाने के लिए। पूजनीय पशु की यह दुर्गति वास्तव में चिंता और शर्म का विषय है। ऐसा क्यों हो रहा है इन कारणों पर मैं नहीं जाना चाहता न गाय के आगे पीछे होने वाली राजनीति पर मेरे कोई विचार हैं।

व्यक्तिगत रूप से कोई गाय को पूजनीय माने या मात्र एक पशु माने इससे मुझे कोई लेना देना नहीं है। परंतु समाज के रूप में फर्क इस चीज से जरूर पड़ता है की गाय एक घरेलू पशु है और इसका सड़क पर होना धार्मिक और साजाजिक रूप से सही नहीं है। सड़क पर आवारा घूमती गाय से लोगों की धार्मिक भावनायों आहत होती हैं साथ ही सड़कों पर दुर्घटना का भी खतरा बना रहता है साथ ही ग्रामीण इलाकों में फसलों पर भी मार पड़ रही है। हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे इलाके हैं जहाँ लोगों ने आवारा गायों से लेकर बंदरों के प्रकोप के कारण खेती ही बन्द कर दी है।

Traffic moves slowly as a group of stray bulls walk on a road in New Delhi May 5, 2005. An Indian court has ordered officials to clean up one of the biggest menaces prowling the wide avenues, luscious parks and crowded bazaars of the capital New Delhi - holy cows. About 35,000 cows and buffaloes roam free in Delhi in the heart of north India's Hindu "cow belt", sharing roads with hordes of monkeys, camels and stray dogs and killing scores of people every year in gorings and traffic accidents. REUTERS/Kamal Kishore KK/CCK - RTRA7NM
REUTERS/Kamal Kishore KK/CCK – RTRA7NM

खैर अब चर्चा का विषय यह है की उपरोक्त जो भी समस्याएं गाय के सड़क पर होने के कारण पैदा हुयी हैं इनसे कम से कम अपने प्रदेश के रूप में हम सोचें की कैसे पार पाया जा सकता है। जैसा की सर्विदित है और किया भी जाता है गाय को सड़क से हटाने के लिए उसके पुनर्वास की जरुरत है जिसके लिए गौशाला निर्मण ही एक सार्थक ऑप्शन बचती है। ऐसा हो भी रहा है विभिन्न समाजसेवी और धार्मिक संस्थाएं गौ शाळा खोलकर इन गायों के सरंक्षण और उत्थान के लिए कार्य कर रही हैं। परन्तु यह स्वेछिक सेवा इतने वयापक स्तर पर नहीं है की सड़क से हर गाय को गौशाला के रूप में ठौर मिल जाए। व्यापक क्यों नहीं है इसके भी कारण है। सड़क पर वही गाय छोड़ी जाती है जो स्वार्थी इंसान के लिए किसी कार्य की घर में न रही हो साथ ही बैल सड़कों पर छोड़े जाते हैं क्योंकि अब उनसे हल नहीं जोता जाता ट्रेक्टर और अन्य उपकरण शामिल हो गए हैं। मुझे याद है हमारे घर में जब गाय थी और बछड़ा पैदा होता था तो वो एक चिंता का विषय था की इस बछड़े को कौन लेगा ? वर्तमान में जो गौशाला हैं वो स्वेछिक निधि लोगों के दान या मंदिर ट्रस्ट आदि के सहयोग से चल रही हैं उन्हें खुद ही ही जमीन का जुगाड़ करना होता है खुद ही संसाधन अरेंज करने होते हैं। उनके पास आय का कोई साधन भी नहीं है।

हालाँकि हिमाचल सरकार ने हाई कोर्ट के आदेशों पर पंचायतों को जमीन देखने के लिए कहा है जहाँ गौशाला का निर्माण किया जाए। परन्तु पंचायतों का रवैया इसके लिए उदासीन ही रहा इसका यह भी कारण है की पंचायत प्रतिधि पांच साल के लिए चुनकर आते हैं। साथ ही सरकार ने भी कोई डिटेल मॉडल रोडमैप लॉन्ग टर्म आर्थिक सपोर्ट पेश नहीं की जिससे की पंचायतों की चिंताएं दूर होती और वो इस दिशा में आगे बढ़ती। क्योंकि एक बार जमीन और निर्माण के लिए बेशक गौशाला को पैसा मिल जाए पर वो आगे कैसे सस्टेन करे इस पर सोच जरुरी है।

ऐसी हो सकती है गोशाला

इकनॉमिक ऐंड फाइनैंशल मॉडल
कोई भी संसथान (इस केस में गौशाला) तब तक लॉन्ग टर्म सस्टेनेबल नहीं हो सकते जब तक सर्वाइव करने के लिए उनके पास अपने आर्थिक संसाधन विकसित न हों। सरकार की सब्सिडी भी कब तक चलती रहेगी। पर हाँ सरकारें शुरुआत में अपने अधिकार क्षेत्र से कुछ योगदान दे सकती हैं। गाय के पुनर्वास के लिए गौशाला प्रथम स्तम्भ है और गौशाला का अपने संसाधनों से आत्मनिर्भर होना लॉन्ग टर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। कुलमिलाकर मैं यहाँ इसी मॉडल पर चर्चा करूँगा की सरकार , हम नागरिक इसमें क्या योगदान दे सकते हैं और किस भूमिका में हो सकते हैं।

सबसे महत्वपूर्ण है सरकार का रोल। पंचायतों को यह जिम्मेदारी सौपने से बेहतर है सरकार गौ संवर्धन बोर्ड का गठन करे और तहसील स्तर पर खड्डों के आसपास लगती बंजर या बेकार जमीन को गौशाला निर्माण के लिए चिन्हित करे। कोई भी स्वयसेवी संस्था अगर उस इलाके की आगे आना चाहे तो सरकार वो जमीन उसे दे सकती है कोई नहीं मिलता है तो बोर्ड खुद गौशाला निर्माण में आगे आये। मंदिर ट्रस्ट के दान के पैसों को इन सब कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है हम नागरिकों का भी कर्त्तव्य बनता है की सरकार इस दिशा में कदम बढ़ रही है तो अपनी धार्मिक आस्था के लिए ही सही वैतरणी गंगा पर करने के लिए ही सही अपने नगरों को रोड असक्सीडेन्ट से बचाने के नाम पर फसलों को बचाने के नाम पर किसी भी कारण सेस्वेच्छिक दान दे। हम में से कई लोग होंगे जो गाय के लिए चिंतित हैं पर उन्हें यह कहा जाए की सड़क से लाकर दो गाय घर में पाल लो तो उनके लिए यह संभव नही होगा पर हाँ कोई संस्था यह काम कर रही हो तो ऐसे भी बहुत लोग हैं जो स्वेच्छा से दान वहां देंगे। इसलिए यह जिम्मेदारी गौ संवर्धन बोर्ड को उठानी होगी। गौ शाला में गाय को गोद लेने के लिए भी अभियान शुरू हो वो पलेगी बढ़ेगी वहीँ पर वैतारनी गंगा पर करने का इछुक व्यक्ति गर घर में गाय नहीं पाल सकता। वहां उसका खर्च उठाये अ मौजूद परिस्थिति में वैतरणी गंगा पार करने के कांसेप्ट को अब गौदान से गौ पालन पुनर्वास से जोड़ना सार्थक है ।

ऐसी हो सकती हैं गोशाला
हिमाचल प्रदेश में सरकारी जमीन और चारे की कोई कमी है नहीं है इसलिए पहले स्टेप में कोई दिक्कत नहीं है। गौशाला निर्माण के बाद बात आती है उसके सस्टेन करने की सब्सिडी के बोझ से प्रदेश को नहीं दबाया जा सकता। जहाँ गौ शाला और गाय होंगी जाहिर है वहां गोबर भी होगा गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता है। गोबर में खनिजों की भी मात्रा कम नहीं होती। इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज़, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि कुछ अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं तथा आयोडीन, कोबल्ट, मोलिबडिनम आदि भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में रहते हैं। इन्ही खनिजो से गोबर खाद के रूप में, मिट्टी को उपजाऊ बनाता है। पौधों की मुख्य आवश्यकता नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटासियम की होती है। वे वस्तुएँ गोबर में क्रमश: 0.3- 0.4, 0.1- 0.15 तथा 0.15- 0.2 प्रतिशत तक विद्यमान रहती हैं। मिट्टी के संपर्क में आने से गोबर के विभिन्न तत्व मिट्टी के कणों को आपस में बाँधते हैं, किंतु अगर ये कण एक दूसरे के अत्यधिक समीप या जुड़े होते हैं तो वे तत्व उन्हें दूर दूर कर देते हैं, जिससे मिट्टी में हवा का प्रवेश होता है और पौधों की जड़ें सरलता से उसमें साँस ले पाती हैं। गोबर का समुचित लाभ खाद के रूप में ही प्रयोग करके पाया जा सकता है।

हालाँकि हमारे किसान ऐसा सदियों से कर रहे हैं । परंतु ज्यादातर किसान कच्चा गोबर खेतों में प्रयोग करते हैं जिसे कम्पोस्ट होने में समय लग जाता है और तब तक बारिश के कारण यह सब खेतों से बह जाता है। रासायनिक खाद के केस में तुरंत इफ़ेक्ट होता है इसलिए प्रयोग के साथ हमें लगने लगा की यह केमिकल खाद हमारे गोबर से ज्यादा असरदायक है। परन्तु इसके नुक्सान पंजाब और साउथ के राज्यों में देस्ख सकते हैं। अत्यधिक रासायनिक खाद के प्रयोग से ग्राउंड वाटर में कैंसर पैदा करने वाले तत्व मिल गए हैं जिस कारण पंजाब का मालवा इलाका तो कैंसर बैल्ट के रूप में जाना जाने लगा है।

गोबर आधारित ऑरगैनिक खाद पैक करके भी बेची जा सकती है

छोटी सी खेती के लिए पहाड़ी किसान गोबर को एक लेवेल तक डिकंपोस करने का फिर प्रयोग करने का झंझट नहीं पालते। पर गौ संवर्धन बोर्ड प्रदेश की हर गौशाला में ओर्गानिक खाद जिसे कहते हैं उसे बड़े स्तर पर बना सकता है। उसी खाद को बढ़िया नाम पैकिंग देकर कृषि डिप्पों में किसानों को रासायनिक खाद की जगह बेचा जा सकता है वैसे भी रासायनिक खाद पर सब्सिडी हम दे ही रहे हैं। अभी मक्की की फसल के लिए 50 किलो पैकिंग की रासायनिक खाद हमने गावं में अपने खेतों के लिए ली है। उसी पैकिंग में उसी डिप्पों में अच्छी तरह से तैयार हुई गोबर की खाद वैसी ही पैकिंग में हमें मिले तो हमें या किसी भी किसान को क्या दिक्कत है। यह एक टेलर मेड रिप्लेसमेंट हो सकती है।

अब मुझे यह कहा जाए की पहले गाय पालो फिर गोबर गड्ढे में डालो केंचुए डालो कम्पोस्ट खाद बनायो तब खेत में प्रयोग करो तो यह मुझसे नहीं हो पायेगा। पर हाँ मार्किट में डीपो में सरकार अपने ही प्रदेश में बनी उच्च स्तर की गोबर खाद उपलब्ध करवाये तो हम ले लेंगे। इस खाद की सेल गौशाला के लिए आय का स्त्रोत भी रहेगी और बाज़ार भी उपलब्ध है। मैं इस विषय का एक्सपर्ट नहीं हूँ पर हाँ इस क्षेत्र के एक्सपर्ट्स से चर्चा करके यह रिसर्च किया जा सकता है की गोबर से जो खाद बनेगी क्या उसमे थोड़े अमाउंट में रसय्यानिक खाद मिलाई जा सकती है जिससे जो भी कमी पेशी गोबर खाद में खनिज तत्वों की रह गयी हो वो पूरी हो सके। ऐसा हो सकता है है नहीं भी रहती हो मुझे आईडिया नहीं है। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के सइंटेस्ट की मदद ली जा सकती है।

हिमाचल प्रदेश के जनसँख्या 70 लाख है और हर परिवार में पांच सदस्य रॉ कॉकलशन के लिए मैं लेकर चलूँ तो 14 लाख परिवार बनते हैं अगर यह मान लिया जाए की औसतन एक परिवार मक्की की फसल के लिए 50 किलो की यूरिया हर वर्ष लेता है और गेहूं की फसल के लिए 50 किलो रासायनिक खाद हर वर्ष लेता है तो लगभग 300 रूपए यूरिया की पैकिंग और लगभग 1000 रूपए गेहूं वाली खाद हर वर्ष लेने में हम हिमाचली लोग लगभग 15. 5 करोड़ रूपए व्यय कर रहे हैं। अगर उसके आधा भी गौ संवर्धन बोर्ड गौशाला में उत्पादित आर्गेनिक गोबर खाद को बेच पाए तो लगभग 8 करोड़ की सालाना आय यहाँ से आएगी। (डाटा उपलब्ध नहीं होने के आकड़ें असंप्शन पर आधारित हैं , डिटेल एस्टिमेशन के लिए रासायनिक खाद की बिक्री के आंकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है )

बायोगैस (गोबर गैस) डाइजेस्टर

यह बताना भी मैं जरुरी समझता हु की गोबर से गैस भी बन सकती है सब जानते हैं। 90 के दशक में सब्सिडी बाँट के सरकार ने लोगों से प्लांट लगवाये थे पर टेक्नीकल और बिना रीसरसच के सब फ्लॉप हो गए। किसान के लिए एक दो पशु से गोबर गैस प्लांट चलाना वाएअबल नहीं है। परंतु गौ शाला में जहाँ सैंकड़ों की संख्या में गाय होंगी प्रचुर मात्रा में गोबर होगा वहां यह प्लांट बढ़िया तरीके से वर्क करेंगे। गोबर गैस बनाने के बाद जो अपशिष्ट बचता है वो कम्पोस्ट खाद की तरह जल्दी असरदायक और ज्यादा उर्वरक क्षमता वाला होता है , यानी डबल पर्पस सॉल्व खाद भी ऊर्जा भी। गौ शाला से इस गैस को सीलेंडर में पैक करके बेचा भी जा सकता है .हालाँकि यह बताना मैं जरुरी समझता हु की गोबर गैस की कैलोरिफिक वैल्यू (एनर्जी कंटेंट) एलपीजी से कम होता है। एलपीजी का एनर्जी कंटेंट जहाँ 44 MJ /k g है वहीँ गोबर गैस का 20 -22 MJ/kg है। यानी एक एक चाय का कप बनाने के लिए जितनी एलपीजी आपको खर्च करनी होती है उसके लिए आपको डबल मात्रा में बायो गैस खर्च करनी होगी। आज हिमाचल में एक डोमेस्टिक एलपीजी सिलेंडर लगभग 500 रूपए में मिल रहा है गौ संवर्धन बोर्ड गोबर गैस पैदा करके एक सीलेंडर 250 रूपए में बेच सकता है।

गोबर गैस डाइजेस्टर
अगर मैं यह मानू की 14 लाख हाउसहोल्ड में से सिर्फ 10 लाख ही एलपीजी उपभोगता हिमाचल में हैं और वो हर महीने एक एलपीजी सीलेंडर प्रयोग करते हैं तो बायो गैस के उन्हें दो करने करेंगे। यानी 5 करोड़ एक महीने में आय गौ संवर्धन बोर्ड को हो सकती है। सालाना यह आय 60 करोड़ हो गयी आठ करोड़ खाद के अब क्या 68 करोड़ सालाना आया वाले बोर्ड को जिसकी रॉ मटेरियल कॉस्ट जीरो है सब्सिडी की जरुरत रहेगी ?

(इन एस्टिमेशन में एक्चुअल में कितने उपभोगता है इस संख्या को नहीं लिया गया है साथ ही पूरी एल पी जी सप्लाई को गोबर गैस से रिप्लेस करना संभव नहीं है क्योंकि इतने मवेशी सड़कों पर नहीं है पर यह एक ऑप्टिमिस्टिक पोटेंशियल फिगर है) अगर हम इसका 25 % भी लें तो 17 करोड़ की आय गौ संवर्धन बोर्ड अपने संसाधनों (जिनमे सिर्फ आवारा गाये शामिल) हैं से अर्जित कर सकता है।

जो मैं यहाँ बता रहा हूँ यह कोई नया मॉडल या खोज नहीं है IIT डेल्ही के रूरल सेंटर में इसपे बहुत काम हुआ है वो तो अपने दो व्हीकल गोबर गैस से चलाते हैं। राजस्थान में जयपुर वाला गौ सेवा संघ एक बार मैंने विजिट किया था वहां मैंने देखा की गोबर गैस का प्रयोग वो लोग डेरी के लिए जनरेटर चलाने के लिए कर रहे थे साथ ही कम्पोस्ट खाद को भी पैकिंग के साथ बेच रहे थे , हमारे हिमाचल में भी तो यह हो सकता है।

बायोगैस से चलने वाला ऑटो

इसके अलावा प्रदेश में दूध के सैम्पल फेल हो रहे हैं गौ शाला में जरुरी नहीं है की नकारा और बूढी गायें पाली जाएँ। दुधारू और नस्ल की गायें भी साथ में रखी जा सकती हैं जिनसे पाप्त दूध से डेरी प्रोडक्ट बनाये जाएँ और हिम फेड की तर्ज बार गौ संवर्धन बोर्ड अपने ब्रांड से मार्किट में बेचकर आय अर्जित करे।

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कुछ इस तरह हो सकता है गौ पुनर्वास का फाइनैंशल और आत्मनिर्भर मॉडल

यह सब हो सकता है बस एक इच्छाशक्ति ईमानदार टास्क फोर्स और मार्किट बेस्ड मॉडलिंग की जरुरत है। मैं तो यहाँ तक कहता हु सरकार अगर यह सुनिश्चित कर दे की निर्द्धारित दाम पर वो आर्गेनिक गोबर खाद खरीदने के लिए तैयार है और इसके लिए बाकायदा 10 साल का अग्र्रमेन्ट करने की नीति लाये तो बोर्ड की जरुरत भी नहीं रहेगी। निजी संस्थाएं खुद ही सड़कों से गाय को उठाकर अपने फायदे के लिए गौशाला खोलकर ओरगनिक गोबर खाद की फैक्ट्री लगा देंगी।

अंत में मैं यह कहना चाहूंगा आंकड़े आगे पीछे हो सकते हैं पर मिल बैठकर सबंधित क्षेत्र के वैज्ञानिकों से सलाह लेकर किसान से लेकर बिज़नेसमैन को हिस्सा बनाकर इकोनॉमिकल और फाइनेंसियल मॉडलिंग की जा सकती है। शुरू में व्यापक स्तर पर न सही परंतु कम से कम एक दो ज़िलों में पायलट आधार पर ऐसे प्रोजेक्ट तो शुरू किया ही जा सकता है। पायलट प्रोजेक्ट से भविष्य के लिए क्या हो सकता है इस पर सीख मिलेगी साथ ही कहीं कमी रह गयी होगी वहां भी सुधार के लिए गुन्जाईस रहेगी। बाकी हिन्दू लोग वैतरणी गंगा पर करने के लिए गोद लेने वाले गौ पालन कांसेप्ट पर जरूर सोचें।

(लेखक मूल रूप से ज़िला बिलासपुर के रहने वाले हैं और IIT दिल्ली में रिन्यूएबल एनर्जी, पॉलिसी ऐंड प्लैनिंग में रिसर्च कर रहे हैं। लेखक प्रदेश के मुद्दों पर लिखते रहते हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

मंडी में ऑनर किलिंग: भाइयों ने काट दी 20 साल की बहन की गर्दन

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। प्रदेश के मंडी जिले की सराज घाटी में 20 साल की युवती का शव एक खाई में मिला था। हत्यारों ने बेरहमी से उसका गला काट दिया था। अब साफ हुआ है कि उसकी हत्या किसी और ने नहीं, बल्कि उसके भाइयों ने ही की थी। वह भी झूठी इज्जत के नाम पर। इन लोगों को शक था कि उनकी बहन के किसी से रिश्ते हैं।

20 साल की कृष्णा तलाकशुदा थी और अपने मायके में ही रहती थी। पिता की मौत हो चुकी थी, ऐसे में कभी-कभार अपने चाचा के यहां भी रहना होता था। पुलिस के मुताबिक गुनहगारों ने अपनी बहन को भटकीधार में किसी शख्स के साथ देखा तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। घर लौटते वक्त जब वह पैदल आ रही थी, रास्ते में तेजधार हथियार से उसकी हत्या कर दी गई।

Source: MBM News Network

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पुलिस ने इस मामले में शक के आधार पर तीन लोगों रोशन लाल, सुभाष और निर्मल को अरेस्ट किया था। सुभाष और निर्मल मृतका के भाई हैं। एक ममेरा भाई और दूसरा चचेरा। मृतका की उंगलियां भी कटी हुई थीं, जिससे पता चलता है कि उसने हमले से बचने की कोशिश की होगी। वह अपने चाचा को भी फोन लगाने में कामयाब रही थी, जिन्होंने उसकी चीख-पुकार सुनी थी। इसके बाद ही उसकी तलाश शुरू की गई थी।

डीएसपी हितेश लखनपाल ने दो गिरफ्तारियों की पुष्टि कर दी है। उन्होंने कहा कि हत्या का मकसद पता चल गया है, अब वारदात में इस्तेमाल किए गए हथियार को बरामद करना बाकी है।

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शिमला में दो शव मिलने से सनसनी, दो टुकड़ों में मिली एक लाश

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, शिमला।। प्रदेश में घिनौने अपराध के मामले बढ़ते नजर आ रहे हैं। आए दिन ऐसी खबरें आ रही हैं, जिनकी उम्मीद हिमाचल प्रदेश में नहीं की जा सकती थी। शिमला की ही बात करें तो यहां पर नन्हे युग का अपहरण करके बेरहमी से हत्या का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि दो और घटनाएं देखने को मिली हैं। रविवार के संजौली में जहां एक युवक अपने निवास स्थल के पास मृत पाया गया, वहीं शिमला में एक शव दो टुकड़ों में पाया गया। एक जगह टांगें और दूसरी जगह धड़।

Crime

संजौली वाली घटना की बात करें तो पर मृत पाए परमजीत नाम के युवक के बारे में पुलिस फिलहाल इस नतीजे पर पहुंच रही है कि तीसरी मंजिल से गिरने के कारण उसकी मौत हुई। बताया जा रहा है कि परमजीत किसी बीमारी से जूझ रहा था। ऐसे में पुलिस आत्महत्या और हत्या दोनों का ऐंगल लेकर चल रही है। पुलिस ने दोहराया है कि हत्या की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता।

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वहीं दूसरा सनसनीखेज मामला है दो हिस्सों में शव मिलने का। सुबह उस वक्त सनसनी फैल गई, जब एक शख्स का कुत्ता एक तरफ भौंकने लगा। वहं देखा गया कि किसी की टांगें पड़ी थीं। बाद में पुलिस ने खोजबीन की तो पास ही धड़ भी मिल गया। फिलहाल इस मामले में पुलिस अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंची है, क्योंकि पहले क्षत-विक्षप्त हालत में दो हिस्से में मिले शव की शिनाख्त की जानी है। पहली नजर में तो यह हत्या का मामला तो लग रहा है, लेकिन पुलिस पोस्टमॉर्टम और फरेंसिक जांच को प्राथमिकता दे रही है।

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ओलिंपिक में भारत का प्रदर्शन आस जगाने वाला है, निराश करने वाला नहीं

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  • विजय इंद्र चौहान

आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यह ओलिंपिक गेम्स भारत के लिए कोई ख़ास सफलता वाले नहीं रहे। पर इम्पैक्ट या प्रभाव के नजरिए से देखें तो यह भारत के लिए अब तक की सबसे सफल ओलिंपिक गेम्स रहे हैं। ओलिंपिक शुरू होने से पहले ये उम्मीदें लगाई जा रही थीं कि इस बार भारत पिछली बार के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन करेगा और ज्यादा मेडल जीतकर लाएगा। क्योंकि ओलिंपिक में भाग लेने जा रहा भारतीय दल अब तक का सबसे बड़ा दल था। इसलिए जाहिर सी बात है कि मेडल्स की उम्मीदें भी ज्यादा की थी।

गेम्स शुरू हुए और धीरे-धीरे जिन खिलाड़ियों से मेडल की उम्मीद थी, वे शुरू के मुकाबलों में ही बाहर हो गए। जैसे ही ऐसा हुआ, कुछ भारत सरकार विरोधी या यूं कहें कि देश में रह कर भी देश विरोधी रवैये वाले लोगों ने यह माहौल बनाना शुरू कर दिया कि इस बार भारत को कोई भी मेडल नहीं मिलेगा और यह भारत सरकार की नाकामी है। सोशल मीडिया और अन्य परंपरागत हर तरह के मीडिया में निराशा का माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की गई। देशवासी जिन्हें खिलाड़ियों से मैडल की उम्मीद थी वह तो निराश थे ही, साथ में खिलाड़ी जो ओलिंपिक में भाग लेने ए हुए थे उनके लिए भी निराशा का माहौल बनाया गया। जिन खिलाड़ियों के मुकाबले अभी होने थे उनके लिए रास्ता और कठिन हो गया था।
एक तो दिग्गज खिलाडी जिनसे मैडल की उम्मीद थी वह प्रतियोगिताओं से बाहर हो गए थे और उधर देश में कुछ लोग यह माहौल बनाने में लगे हुए थे कि यह ओलिंपिक भारत के लिए अब तक की सबसे असफल रहेगी और भारतीय खिलाड़ियों का दल खाली हाथ वापिस घर लौटेगा। किसी भी खेल में अच्छे प्रदर्शन के लिए खिलाड़ी का मनोबल बहुत महत्बपूर्ण होता है पर यहाँ पर उनका मनोबल बढ़ाने के बजाए उनको हतोत्साहित करने के पूरा प्रयास किया। माहौल ऐसा बन गया था कि आशावादी से आशावादी व्यक्ति भी यह सोचने लगा था कि इस बार तो भारत को कोई भी मैडल नहीं मिलेगा।

जब सारी उम्मीदें लगभग खत्म होती हुई लग रहीं थी तब एक ऐसे खेल में जिसमे भारत की विश्व स्तर पर कोई पहचान नहीं है उसमे भारतीय महिला खिलाड़ी दीपा कर्मकार ने ऐसा प्रदर्शन किया की सारा देश गर्व और खुशी से झूम उठा।

दुर्भाग्य रहा कि इतने शानदार प्रदर्शन के बाद भी दीपा कर्माकर को कोई मैडल नहीं मिला और वह चौथे स्थान पर रहीं। मैडल तो नहीं मिला पर दीपा ने अपना काम कर दिया था। पूरा देश जो निराशा में डूबा हुआ था वह गर्व के मारे फूले नहीं समा रहा था। सारे सोशल मीडिया पर दीपा के प्रदर्शन पर बधाई के सन्देश ही घूम रहे थे और किसी को भी यह मलाल नहीं था कि दीपा मैडल नहीं जीत पाई। अब लोग यह सोचने लगे थे कि मैडल नहीं मिला तो क्या हुआ दीपा कर्माकर ने जो प्रदर्शन किया क्या वह कम है। पर अब क्या था। समर्थकों के साथ साथ खिलाड़ियों में भी माहौल निराशा से आशा में बदल गया था और परिणाम आने में कोई ज्यादा वक़्त नहीं लगा। अगले दिन ही दूसरी महिला खिलाडी शाक्षी मलिक ने कुश्ती में मैडल जीत कर भारत का ओलिंपिक में खाता खोल दिया।


और सिलसिला यहीं पे नहीं रुका। उससे अगले दिन बेडमिंटन में एक और महिला खिलाड़ी पी वी सिंधु ने फाइनल में प्रवेश पा लिया और भारत के लिए सिल्वर मैडल पक्का करवा दिया। जैसे ही पी वी सिंधु ने सेमिफाइनल जीता सारा देश एक जुट हो कर पी वी सिंधु और भारतीय महिलाओं की जय जय कार करने लगा। इससे पहले शायद ही कभी पूरे देश ने एक जुट हो कर महिलाओं का गुणगान किया होगा।
Image result for PV sindhuयह पहला मौका था जब भारतीय महिलाओं की क्षमता को पुरे देश ने माना और सराहा भी। यह भारतीय महिलाएं ही थी जिन्होंने चारों ओर फैले निराशा के माहौल को आशा में बदल दिया और उन लोगों के मुँह बंद करवा दिए जो यह बोल रहे थे की भारत ओलिंपिक से खाली हाथ लौटेगा। इस ओलिंपिक में भारत मैडल बेशक कम जीत के लाया होगा पर इसी ओलिंपिक ने हम भारतियों को महिलाओं की क्षमताओं से अवगत करवाया।

इसी ओलिंपिक ने हमें सिखाया की निराशा चाहे जितनी मर्जी हो एक आशा की किरण सब कुछ बदल देती है। जिस हिसाब से सारा देश पी वी सिंधु के सेमीफाइनल मैच जितने पर एक जुट हुआ था ऐसा शायद नहीं होता अगर कुछ लोगों ने देश में निराशा का माहौल बनाने की कोशिश न की होती। लोगो का एक जुट होना इस बात का संकेत है की जब की देश की क्षमता के ऊपर प्रशन चिन्ह जगाया जायेगा तो सारा देश एक साथ खड़ा होगा। जय हिन्द।

(लेखक पालमपुर से हैं और एक मल्टीनैशनल में कार्यरत हैं। उनसे vijayinderchauhan@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

हॉरर एनकाउंटर: क्या था हवा में दिखने वाली तस्वीरों और मंत्रों का रहस्य?

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

  • संकेत शर्मा

यह मेरी आपबीती है, जिसे आपमें से बहुत से लोग झूठ करार देंगे। वैसे अब मैं बिल्कुल ठीक हूं, मगर उस दौर की याद आती है तो डर लगने लगता है। वैसे तो जो कुछ मैंने अनुभव किया, उसे बहुत से लोग मानसिक समस्या भी करार देते हैं। और इसके चक्कर में मुझे कई बड़े मनोचिकित्सकों के चक्कर भी काटने पड़े। मुझे भी लगने लगा था कि मैं पागल हो गया हूं और मतिभ्रम (hallucination) का शिकार हो गया हूं। मगर मेरी समस्या का इलाज डॉक्टर भी नहीं कर पाए थे। खैर, आप लोग मुझे जज करने के लिए स्वतंत्र हैं, मगर मैं अपनी बात रखना चाहता हूं। मुझे लगता है कि आज भी ऐसी चीजें हैं, जिनका कोई एक्सप्लैनेशन नहीं है।

यह सिलसिला तब शुरू हुआ, जब हमारा परिवार शिमला ट्रांसफर हुआ। पापा का तबादला शिमला हो गया था और मम्मी का ट्रांसफर भी वहीं करवा लिया। हम सब भी सोलन से वहां चले आए। जहां हमने क्वॉर्टर लिया था, वह जगह जरा वीराने में है। जिस बिल्डिंग मे ंहम रहते थे, वह अंग्रेजों के जमाने की थी। उसके ठीक सामने भी कुछ मकान बने थे। अंग्रेजों के टाइम में वे सर्वेंट क्वॉर्टर हुआ करते थे, लेकिन आज किराए पर चढ़े हैं। कहने को सर्वेंट क्वॉर्टर हैं, मगर शानदार मकान हैं। शिमला मे ंरहने वाले लोग इस बात को समझ रहे होंगे। खैर, बीटेक करने के बाद मैं खाली बैठा हुआ था और डिसाइड कर रहा था कि आगे क्या करना है। पहले मैंने जॉब का मन बनाया था सो एमटेक में ऐडमिशन नहीं लिया। मगर फिर जॉब मनमाफिक मिल नहीं रही थी।

दिन को मम्मी-पापा ऑफिस चले जाते और मैं घर पर अकेला रह जाता। दिन भर टीवी देखता और कभी बालकनी में आकर जंगल के नजारे देखता। एक दिन मेरी नजर सामने वाले क्वॉर्टर्स पर गई। वहां मैंने देखा कि एक लड़की खड़ी होकर मेरी तरफ देख रही है। वो क्वार्टर हमारे क्वॉर्टर से मुश्किल से 20 मीटर दूर होगा। पहले मैंने सोचा कि किसी और की तरफ देख रही होगी। मगर मैंने दाएं-बाएं झांककर देखा कि इस तरफ और कोई नहीं है, मैं ही हूं। खैर, मैंने इग्नोर मारा और अंदर चला गया।

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दो-तीन दिन बाद जब मैं फिर बालकनी में गया तो फिर वही लड़की दिखी। वह इसी तरफ देख रही थी। उसके हाथ में स्टील का गिलास था और अजीब सी स्थिर सी खड़ी थी। न कोई हरकत, न कुछ। बस देखे जा रही थी। मैं हैरान सा उसकी तरफ देख रहा था कि उसने इशारा किया गिलास से। ठीक वैसे, जैसे आप पूछ रहे हों कि ये गिलास लोगे या मतलब जैसे चाय का गिलास लेकर दूसरों से पूछते हैं कि चाय पिओगे। मैं हैरान था कि कौन लड़की है, क्या कर रही है। अजीब है, लाइन मार रही है क्या। खैर, सच बताऊं तो मुझे इतने अट्रैक्टिव भी नहीं लगी थी वो कि मैं खुश हो जाऊं कि लड़की लाइन मार रही है। और उन दिनों वैसे भी जॉब को लेकर ज्यादा सोच रहा था। मैंने उसे इग्नोर किया और इधर-उधर देखने लगा। मैंने कुछ देर दूर के मकान के आंगन में खेल रहे बच्चों को देखा। और फिर कमरे में अंदर जाने से पहले एक बार फिर उस तरफ देखा, जहां वह लड़की खड़ी थी। इस बार वह वहां नजर नहीं आई। मगर जैसे ही मैं कमरे में जाने ही वाला था, बालकनी के ठीक नीचे वही लड़की ऊपर की तरफ देखती हुई नजर आई। गिलास के साथ और मुस्कुराते हुए।

बड़ी अजीब बात लगी। मैंने फिर इग्नोर किया और कमरे के अंदर चला आया। उसके बाद भी कई दिन तक वह लड़की मेरे सामने आती और बात करने की कोशिश करती, मगर मैं टाल देता। कभी नमस्ते कहती, कभी मिल जाने पर मुस्कुराती। मगर मेरे मन में उसके प्रति धीरे-धीरे आकर्षण पैदा हो रहा था शायद। एक दिन जब मैं अकेला था दिन में, किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैंने खोला तो वही खड़ी थी। मैंने पूछा कि क्या हुआ, तो बोली कि पापा बुला रहे हैं तुमसे बात करनी है। मैंने कहा मुझे कोई बात नहीं करनी और दरवाजा बंद कर दिया। इसके बाद मैं जैसे ही आकर बिस्तर पर बैठा। कमरे में सफेद प्रकाश में उस लड़की की तस्वीरें बननी शुरू हो गईं। उसका बाप भी दिखा उस तस्वीर में और उसके पीछे कुछ लोग खड़े थे। मैं दो-तीन सेकंड के लिए हक्का-बक्का रह गया। दीवारों से आगे हवा में रोशनी में ऐसी तस्वीर बन रही थी, जैसे 3डी फिल्म चल रही हो। अजीब-अजीब सीन दिख रहे थे। कभी दिख रहा था कि उस लड़की को ऐंबुलेंस में ले जा रहे थे और वो मर रही हो। मैं घबरा गया और आंखें बंद कर लीं। जब खोलीं तो फिर वही सब सामने था। यह कोई भ्रम नहीं था। मैंने सिहराने के पास रखी थाली (ब्रेकफस्ट के बाद यहीं छोड़ दी थी) उठाई और जोर से दरवाजे पर दे मारी। जोर से आवाज आई बर्तन गिरने की और वे तस्वीरें गायब हो गईं।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

इस घटना के बाद मैंने घर से बाहर जाना ही बंद कर दिया। मगर जब कभी बाहर जाता, बस वगैरह में भी वैसी ही तस्वीरें हवा में बनना शुरू हो जातीं। फिर मैंने घरवालों को इस बारे में नहीं बताया। मुझे लगा कि भ्रम हो गया है और दिमाग खराब हो गया है मेरा घर पर रहकर फ्रस्ट्रेशन में। मैंने उन्हें बोला कि टेस्ट के लिए प्रिप्रेशन करने चडीगढ़ जाना है। चंडीगढ़ आया मैं और एक मकान में रहने लगा। कुछ दिन तो ठीक रहा। रोज मैं नॉन-वेज खाता बाहर से मंगवाकर, मौज से रहता। ऐसी कोई घटना नहीं हुई। 15 दिन ही यह सिलसिला चला होगा कि 16वें दिन दादा जी की मृत्यु का समाचार मिला। यहां आया तो घरवालों को बताया कि ऐसे-ऐसे हुआ था मेरे साथ शिमला में, ऐसा-ऐसा दिखता था। डॉक्टर के पास ले गए वे मुझे और दवाई दी। डॉक्टर ने समझाया कि कैसे भ्रम का शिकार हुआ हूं मैं और सब इमैजिन कर रहा हूं।

इसके बाद मैं जब मैं वापस चंडीगढ़ आया। अजीब बातें होने लगीं। मुझे फिर वैसे ही दृश्य दिखने लगे। अजीब से गाने सुनाई देने लगे। मार्बल पर कुछ मंत्र लिखे मिलने लगे, जिन्हें मैंने डायरी ने नोट किया था। कुछ तस्वीरें दिखतीं कि उसका बाप कुछ लोगों के साथ खड़ा है औऱ उनके आगे लोमड़ी मरी हुई है। इतना डरावना अनुभव कभी नहीं रहा। न तो नींद आ रही थी और कुछ करने का मन करता था। आखिर में मैंने घरवालों को बताया कि मुझे ले जाओ। वे वापस मुझे  शिमला ले गए। डॉक्टर (मनोचिकित्सक) को दिखाया तो वह कहता कि इसे थॉट ब्रॉडनिंग कहते हैं, ऐसा है, वैसा है। मगर जब दवाओं से आराम नहीं हुआ तो उसने ही मेरे परिजनों को पालमपुर के किसी चेले का नंबर दिया।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

मेरे घरवाले उस चेले से मिले। उसने पता नहीं क्या-क्या करवाया। मुझे तो उन दिनों डर के मारे कुछ समझ नहीं आता था। मगर श्मशानघाट मे ंले जाकर वह कुछ करता था। उसमें बकरे की कलेजी, मछली की आंख और न जाने क्या-क्या करता था। और उसके बाद से वे सारी चीजें ठीक हो गई हैं। न कुछ दिखाई देता है, न सुनाई देता है। अब मैं एमटेक कर चुका हूं और बिना किसी डर के रात को कहीं भी आ-जा सकता हूं। इस घटना के बारे में मेरे गांव वाले कहते हैं कि किसी ने मेरे ऊपर ओपरा कर दिया था तो कुछ लोग कहते हैं कि मैं भांग पीने लगा था और मेरी बुद्धि फिर गई थी। यह बात अलग है कि मैंने कभी सिगरेट तक नहीं पी। कुछ लोगों का कहना है जॉब न लगने से डिप्रेशन में चला गया था और यह सब इमैजिन कर रहा था। मैं डिप्रेशन मे ंगया जरूर था, मगर मेरे साथ जो-कुछ हो रहा था, उससे तंग आकर। कई बार तो खुदकुशी का भी मन किया था सब खत्म करने को, मगर ऐसा कर नहीं पाया। जितने लोग, उतनी बातें। मगर मैं जानता हूं कि सच क्या है। आप भी अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

हॉरर एनकाउंटर सीरीज में अन्य लोगों की आपबीती पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(लेखक ने हिंग्लिश में लिखकर यह आपबीती हमें भेजी थी, जिसे हम मूल घटनाओं से छेड़छाड़ किए बिना देवनागरी में पेश कर रहे हैं। लेखक का नाम बदल दिया गया है।)

जानें, भूकंप आने पर क्या करें

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इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में पिछले दिनों से लगातार भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। महीने भर में शिमला में कई छोटे भूकंपों का केंद्र रह चुका है। इससे पता चलता है कि भूगर्भीय हलचल में तेजी आई है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है, क्योंकि अभी भी भूगर्भीय प्लेटों के बीच घर्षण हो रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक आशंका जता चुके हैं कि बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है। ऐसा हुआ तो तबाही मचना तय है, क्योंकि कांगड़ा में आए 1905 के भूकंप से कोई सबक न लेते हुए हिमाचल में बेतरतीब निर्माण हो रहा है। बहरहाल, जब भूकंप आए, तो उसके नुकसान को कुछ कदम उठाकर कम किया जा सकता है। बस सही जानकारी होना जरूरी है। नीचे लिखी बातों को याद कर लें और बच्चों व परिजनों को भी समझा दें। बातें छोटी-छोटी हैं, मगर काम की हैं-

  • भूकंप आते ही तुरंत इमारत से बाहर आने की कोशिश करें। आप जहां कहीं हों, वहां से बाहर खुले मैदान में आ जाएं।
  • भूकंप के झटके तेज हों तो कहीं और भागने के बजाय किसी दीवार से सटकर खड़े हो जाएं या फिर बेड, डेस्क आदि जैसे मजबूत फर्निचर वगैरह के नीचे छिपने की कोशिश करें।
  • भीड़-भाड़ हो या इमारत से बाहर निकलने के लिए लंबा रास्ता तय करना हो तो स्टेप 2 ही अपनाएं, क्योंकि हड़बड़ी में भूकंप शायद उनका नुकसान न करे, मगर गिरने या भगदड़ मचने से चोट जरूर लग सकती है।
  • बड़ी इमारतों, पेड़ों और बिजली के खंबों वगैरह से दूर रहें। लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, क्योंकि लिफ्ट टूटने या फंसने का खतरा बना रहता है।
  • भूकंप आने पर खिड़की, अलमारी, ऊपर रखे भारी सामान वगैरह से दूर हट जाएं। यह सामान आपको जख्मी कर सकता है।
  • कोई मजबूत चीज न हो, तो किसी मजबूत दीवार से सटकर शरीर के नाजुक हिस्से जैसे सिर, हाथ आदि को मोटी किताब या किसी मजबूत चीज़ से ढककर घुटने के बल टेक लगाकर बैठ जाएं।
  • खुलते-बंद होते दरवाजे के पास खड़े न हों, वरना चोट लग सकती है।
  • अगर गाड़ी चलाते वक्त भूकंप का अहसास हो तो सुरक्षित जगह पर सड़क किनारे गाड़ी लगा दें और रुकने का इंतजार करें।
  • किसी तरह का नुकसान हो तो तुरंत प्रशासन को जानकारी दें।