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Sunday, September 14, 2025
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सफाई कर्मचारी होने में क्या बुराई है मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जी?

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  • आई.एस. ठाकुर

गुरुवार को बीजेपी को लेकर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अजीब टिप्पणी की। बीजेपी द्वारा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल पर चार्जशीट तैयार करने की  बात पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ये गंदगी उठाने वाले लोग हैं, यही काम करेंगे। इन्हें चाहिए कि म्यूनिसिपल कमेटी में नौकरी के लिए दरख्वास्त दें। मुख्यमंत्री ने किस हिसाब से यह बात कही, यह समझ से परे है। मगर उनकी न मिसाल न सिर्फ अप्रासंगिक, बल्कि खराब भी है।

मन में मुख्यमंत्री जी के लिए कुछ सवाल उमड़ रहे हैं। पहला तो यह कि गंदगी उठाने के काम में और सफाई कर्मचारियों के काम में ऐसा क्या बुरा है, जो आप अपने राजनीतिक विरोधियों पर भड़ास निकालने के लिए उन्हें सफाई कर्मचारी गंदगी उठाने वाला बता रहे हैं? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ये काम बुरे हैं और राजनीतिक विरोधियों का स्तर इन कामों लायक ही है? मुख्यमंत्री जी, अगर ऐसा है तो मुझे शर्म आती है आपकी सोच पर। यह दिखाता है कि आप कितना भी आधुनिक और विकसित मानसिकता वाला शख्स होने का दावा करें, आपकी सोच सामंतवादी है। ऐसी सोच, जो समाज में लोगों की पहचान उनके काम से करती है।

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यह बात छिपी नहीं है कि हमारे समाज की मानसिकता कैसी है। हम आज भी जातिवाद और वर्ण व्यवस्था से जूझ रहे हैं। लगातार कोशिश की जा रही है कि लोगों के मन से यह भेदभाव खत्म हो। किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति या उसके काम के आधार पर जज न किया जाए। एक अध्यापक का काम जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण काम एक सफाई कर्मचारी का है। भूमिकाएं और काम की प्रकृति बेशक अलग हैं, मगर उनके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। मैं सम्मान करता हूं उन सफाई कर्मचारियों और गंदगी उठाने वाले कर्मचारियों का, जिनकी वजह से जनता स्वस्थ रहती है।

मैं खुद यहां आयरलैंड में कम्यूनिटी सर्विस वॉलंटियर हूं और महीने में दो-तीन बार काम से वक्त निकालकर विभिन्न जगहों पर सैनिटेशन और अन्य सफाई काम में योगदान देता रहता हूं। इस काम में हमारे साथ डॉक्टर, प्रफेसर, ऐडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर और न जाने-जाने किन-किन पदों पर बैठे अधिकारी साथ होते हैं। उनके मन में कभी यह विचार नहीं आया कि कैसे यह काम किया जाए। उन्हें सफाई करने और कुछ खराब जगहों को साफ करने में शर्म महसूस नहीं होती और न ही यहां का समाज किसी को इस दृष्टि से देखता है। मेरे से नीचे वाले अपार्टमेंट में रहने वाले वाले मिस्टर मार्क क्लीनिंग जॉब में हैं और उनकी पत्नी लिंडा वकील। उन दोनों के बीच कभी उनका काम आड़े नहीं आया। और यहां किसी को फर्क भी नहीं पड़ता कि कौन क्या काम करता है। लोगों को यहां उनकी फैमिली बैकग्राउंड या पेशे से नहीं बल्कि उनके व्यवहार और व्यक्तित्व से आंका जाता है। क्या यह अच्छी बात नहीं है? क्या इस अच्छी बात को हमें अपनाना नहीं चाहिए?

जिस दौर में एक नेता की जिम्मेदारी बनती है कि वह सामाजिक भेदभाव को खत्म करने की कोशिश करे, उस दौर में उसका इस तरह की टिप्पणी करना दुखद है। यह बात छिपी नहीं है कि जातिगत भेदभाव अभी भी इतना है कि सफाई कर्मचारियों वाले खाली पदों के लिए कभी भी सवर्ण जातियों के लोग आवेदन नहीं करते, क्योंकि उन्हें ये काम अपने हिसाब से ठीक नहीं लगते। उन्हें लगता है कि इससे मान घट जाएगा। मगर जो लोग इस महत्वपूर्ण काम को कर रहे हैं, मुख्यमंत्री का यह बयान उनपर आघात है। भले ही यह जुबान फिसली हो या कुछ और हुआ हो, इतने जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसी बात भूलकर भी न करनी चाहिए। अगर आप समाज को जोड़ने के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो कम से कम इसे तोड़ने की बातें न करें। और अगर आपको पता नहीं चलता कि कहां क्या कहना है, क्या नहीं; कृपया रिटायरमेंट लेकर घर पर बैठें। अब तक की आपकी सेवाओं के लिए धन्यवाद, अब अपनी सेवा करवाएं। राजनीति में बने रहने की अपनी जिद के चक्कर में प्रदेश और समाज को नुकसान न पहुंचाएं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में रहते हैं। हिमाचल प्रदेश से जुड़े मसलों पर लिखते रहते हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

DISCLAIMER: यह लेखक के अपने विचार हैं, इन हिमाचल इनके लिए उत्तरदायी नहीं है।

जानें, क्या है GST और आपके ऊपर क्या फर्क पड़ेगा इसका

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  • इन हिमाचल डेस्क

गुड्स ऐंड सर्विसेस टैक्स (GST) बिल पर लंबे समय से खींचतान चल रही थी। आखिरकार बुधवार को यह बिल राज्यसभा में पेश होने जा रहा है। इस बिल की नींव 16 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने रखी थी। इस बिल के आने से क्या होगा, क्यों अधिकतर पार्टियां इसके समर्थन में हैं और हमारी जिंदगी पर इसका क्या असर पड़ेगा, इसे समझने के लिए हमारे द्वारा जुटाई गई जानकारी को ध्यान से पढ़ें:

जीएसटी कानून बनने से अब तक जो 30 से 35% टैक्स दिया जाता है, वह घटकर 17 से 18% रह जाएगा। ऐसा नहीं है कि इसके फायदे ही हैं, कुछ मामले में जेब पर खर्च बढ़ सकता है। जीएसटी दर 18% होने की चर्चा के आधार पर यह जानकारी दी गई है। जानिए:

क्या होगा सस्ता?
लेन-देन पर वैट और सर्विस टैक्स नहीं
– घर खरीदने या ऐसे लेन-देन, जिसमें वैट और सर्विस टैक्स दोनों लगते हैं, सस्ते हो जाएंगे।

कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सस्ते हो जाएंगे
फ्रिज, एयरकंडीशनर, माइक्रोवेव अवन, वॉशिंग मशीन्स वगैरह सस्ते हो जाएंगे। अभी 12.5% एक्साइज और 14.5% वैट लगता है। जीएसटी के बाद मात्र 18% टैक्स लगेगा।

रेस्तरां का बिल भी कम होगा

भी तक हर राज्यों अलग वैट के ऊपर 6 पर्सेंट सर्विस टैक्स (बिल के 40% हिस्से पर 15%)दोनों लगते हैं। मगर जीएसटी के तहत एक ही टैक्स लगेगा।

माल ढुलाई सस्ती होगी
माल ढुलाई 20% सस्ती हो जाएगी। फायदा आम लोगों से लेकर लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री तक को मिलेगा।

इंडस्ट्री को ज्यादा फायदा
जीएसटी के बाद इंडस्ट्रीज़ को करीब 18 टैक्स नहीं भरने होंगे। टैक्स भरने की प्रक्रिया आसान होगी।

क्या होगा महंगा?
डिब्बाबंद फूड प्रॉडक्ट 12% तक महंगे होंगे
चाय-कॉफी जैसे प्रॉडक्ट्स पर अभी ड्यूटी नहीं लगती, मगर अब ये 12% महंगे हो सकते हैं।

सर्विसेस भी महंगी होंगी
मोबाइल बिल, क्रेडिट कार्ड का बिल या फिर ऐसी अन्य सेवाएं सब महंगी होंगी। अभी सर्विसेस पर 15% टैक्स (14% सर्विस टैक्स, 0.5% स्वच्छ भारत सेस, 0.5% कृषि कल्याण सेस) लगता है। जीएसटी होने पर ये 18% हो सकता है।

जेम्स ऐंड जूलरी
जेम्स ऐंड जूलरी महंगी हो सकती है। इस पर अभी 3% ड्यूटी लगती है। रेडिमेड गारमेंट भी महंगे हो सकते हैं, क्योंकि अभी इन पर 4-5% का स्टेट वैट लगता है। जीएसटी में इन पर कम से कम 12% टैक्स लगेगा।

डिस्काउंट पर एमआरपी का टैक्स
अभी डिस्काउंट के बाद की कीमत पर टैक्स लगता है, मगर जीएसटी में एमआरपी पर टैक्स लगेगा। कंपनी 10000 रुपए का सामान हमें 5000 रुपए में देती है तो अभी 600 रुपए टैक्स लगता है, मगर जीएसटी के बाद 1200 रुपए टैक्स लगेगा।

1. क्या होगा जीएसटी से?
– जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स। इसे केंद्र और राज्यों के 20 से ज्यादा इनडायरेक्ट टैक्स के बदले लगाया जा रहा है। जीएसटी के बाद एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम, वैट/सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन कर, ऑक्ट्रॉय एंड एंट्री टैक्स, लग्जरी जैसे टैक्स खत्म होंगे।

2. इसके बाद सिर्फ एक टैक्स होगा?
नहीं। जीएसटी में ही 3 तरह के टैक्स होंगे।
– सीजीएसटी यानी सेंट्रल जीएसटी: इसे केंद्र सरकार वसूलेगी।
– एसजीएसटी यानी स्टेट जीएसटी: इसे राज्य सरकार वसूलेगी।
– आईजीएसटी यानी इंटिग्रेटेड जीएसटी: अगर कोई कारोबार दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर यह टैक्स लगेगा। इसे केंद्र सरकार वसूलकर दोनों राज्यों में बराबर बांट देगी।

3. इससे आम लोगों को क्या फायदा?
– टैक्सों का जाल और रेट कम होगा:अभी हम अलग-अलग सामान पर 30 से 35% टैक्स देते हैं। जीएसटी में 17 या 18% टैक्स लगेगा।
– एक देश, एक टैक्स:सभी राज्यों में सभी सामान एक कीमत पर मिलेगा। अभी एक ही चीज दो राज्यों में अलग-अलग दाम पर बिकती है, क्योंकि राज्य अपने हिसाब से टैक्स लगाते हैं।

4. तो क्या अब ज्यादा पैसे बच सकेंगे?
– शुरू के 3 साल महंगाई बढ़ेगी। मलेशिया में 2015 में जीएसटी आने के बाद से महंगाई दर 2.5% तक बढ़ी है। अभी रोजमर्रा की सर्विसेस पर 15% सर्विस टैक्स देते हैं। अब 18% होगी। यानी 3% महंगाई बढ़ेगी। पेट्रोल-डीजल-गैस जीएसटी में नहीं होंगे।

5. अभी हम 30-35% टैक्स चुकाते हैं। जीएसटी 18% होने पर सरकार को नुकसान नहीं होगा?
– नहीं। चीफ इकनॉमिक अडवाइजर अरविंद सुब्रमणियन की समिति ने 17-18% रेवेन्यू न्यूट्रल रेट की सिफारिश की है। यानी इस पर सरकार का रेवेन्यू न बढ़ेगा, न घटेगा।
– इसकी दो वजहें हैं। पहली, बहुत सी चीजों पर अभी कम टैक्स लगता है, वह बढ़ जाएगा। दूसरी, बहुत से कारोबारी सेल्स कम दिखाते हैं। जीएसटी में हर लेन-देन की ऑनलाइन एंट्री होगी। इससे चोरी मुश्किल हो जाएगी।

जानें, अचानक बाढ़ में फंस जाएं तो कैसे बचें

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इन हिमाचल डेस्क।।
जून, 2014 में ब्यास नदी में हैदराबाद के इंजिनियरिंग कॉलेज के छात्रों के बहने का मामला अभी लोगों के जहन में ताजा है। उस घटना के बाद भी कई हादसे हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश घूमने के लिए आने वाले बाहरी पर्यटक अक्सर चेतावनियों को नजरअंदाज करके नदी किनारे सेल्फी खींचने जा रहे हैं। भले ही किसी डैम से पानी न छोड़ा जा रहा हो, मगर दूर कहीं बादल फटने की वजह से भी अचानक जलस्तर बढ़ सकता है और बिना चेतावनी के सैलाब आ सकता है। इस स्थिति में कोई भी नदी में फंसा हो तो उसका बह जाना तय है। मगर कुछ लोगों का समूह अगर किसी जगह पर अचानक बढ़े जलस्तर में ऐसे ही फंस जाए तो बचने का क्या तरीका है?

बड़ी नदियों का जलस्तर इतना होता है कि उसके सामने किसी का भी ठहरना संभव नहीं। कई बार पानी के साथ-साथ कीचड़, दलदल या चट्टानें भी बह रही होती हैं, जिससे आपके पांव उखड़ने लगते हैं। पानी सिर के ऊफर से भी बह जाए तब भी बचने का चांस नहीं। मगर अगर पानी के स्तर में थोड़ी-बहुत बढ़ोतरी हो, तो आप अगर ग्रुप में हों तो बचने की कोशिश कर सकते हैं। इसके लिए आपको सभी लोगों को एक के पीछे एक खड़े होना होगा, वह भी जलधारा की तरफ मुंह करके। यानी जिस तरफ से पानी आ रहा हो, उस तरफ को सबसे पतले या छोटे शख्स को सबसे आगे खड़ा करें, उसके बाद उससे बड़े या मोटे शख्स और फिर इसी क्रम में खड़े हों। या फिर आप किसी ताकतवर शख्स को भी आगे खड़े कर सकते हैं। आपके हाथ आगे वाले शख्स के कंधे पर होने चाहिए और आगे की तरफ जोर लगना चाहिए।

संभव है कि कुछ मिनटों बाद आप थक जाएं और बाद में ढीले पड़ जाने पर बह जाएं। मगर फिर भी कुछ मिनटों में आपके बचने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। हो सकता है आसपास के लोग आपको रेस्क्यू करने का कोई तरीका ढूंढ निकालें। यह भी हो सकता है कि जलस्तर कम हो जाए। या फिर आप इसी फॉर्मेशन को बनाए हुए धीरे-धीरे किनारे या सुरक्षित जगह की तरफ बढ़ सकते हैं। ध्यान रहे सभी के मूवमेंट का क्रम एकसमान हो।

यह काम कैसे करना है, इसके लिए यह कोरियन विडियो देखें, जिसमें समझाया गया है कि कैसे बचा जा सकता है। फिर भी हमारी सलाह है कि नदियों में न उतरें।

‘उस 13 साल के बच्चे में वह बला की ताकत कहां से आई?’

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें।

  • सुनील कुमार 

बात उन दिनों की है, जब मैं ***** #### विद्यालय में पढ़ता था। यह बोर्डिंग स्कूल था और यहां हिमाचल और बाहर के राज्यों के बच्चे पढ़ने आते थे। घर से दूर हम सब बच्चों का पहला अनुभव होता था। हॉस्टल में रहना और पढ़ना लगभग सभी बच्चों के लिए कष्ट भरा था। मैं तो 9वीं क्लास में हो गया था, मगर देखता था कि 6वीं क्लास में जो नए बच्चे आते, बेचारे सुबकते रहते घरवालों की याद में। उससे अपनी भी याद ताजा हो जाती।

खैर, हम जो सीनियर बच्चे थे, गर्मियों के दिनों में स्कूल की चाहरदिवारी को फांदकर चुपके से नहाने चले जाते थे बगल वाली खड्ड में और फिर चुपके से आ जाते। हमारा गिरोह ऐसा होता था कि सब एक-दूसरे को कवरअप करते थे। टीचर्स, वॉर्डन तो क्या किसी भी कर्मचारी को पता नहीं चलता कि हम ऐसा करते हैं। खैर, अब अहसास होता है कि उस वक्त कितना गलत करते थे। मगर उन दिनों तो रोमांच ही अलग था।

एक दिन ऐसे ही हम 7-8 लड़के गए और तैरने लगे। उसूल था कि जिसे तैराना आता है, वही चलेगा साथ। एक आध घंटा हम तैरे और लौटने लगे। रास्ते में एक आवारा सांड़ खड़ा था। हमारे बीच से एक लड़के पंकज को जाने क्या सूझी कि वह उस सांड़ को लात मारने लगा। सांड़ ने गुस्से में उसे एक दो बार धकेला, मगर पंकज बार-बार सांड़ को कभी लात मारे, कभी उसकी पूंछ मरोड़े कभी पत्थर। हमने उसे बोला कि क्या कर रहा है।

पंकज 8वीं मे ंपढ़ता था। एकदम सुकड़ू और शरीफ। मगर आज न जाने क्या मस्ती सूझी थी। खैर, हमारे एक क्लास सीनियर (10वीं में पढ़ने वाले) ने उसे एक थप्पड़ मारा और खींचकर बोला चल, क्या कर रहा है। पंकज ने उसे घूरना शुरू कर दिया। अकड़ में रहने वाले सीनियर ने भी तैश में आकर पंकज को फिर से मारना चाहा कि घूर क्यों रहा है, मगर हमने बीच-बचाव कर दिया।

खैर, हम आ गए स्कूल और नॉर्मल होकर बिजी हो गए। रात को खाना खाने के बाद सब अपने-अपने बिस्तर पर थे कि बाथरूम से शोर आने लगा। हम सब बच्चे वहां दौड़े तो देखा कि पंकज उसी सीनियर को पीट रहा है, जिसने दिन में उसे थप्पड़ मारा था। पंकज एकदम सुकड़ूू, 8वीं का बच्चा और जिसे उसने गिराया था, वह उससे लगभग दोगुना हट्टा-कट्टा दसवीं का लड़का। पंकज उसकी छाती पर सवार था और घूंसे मारे जा रहा था।

देखा कि 3-4 लड़के पंकज को खींच रहे हैं मगर वह उनसे काबू नहीं आ रहा। वॉर्डन भी दौड़ा-दौड़ा आया और उसने बोला कि क्या हो रहा है। पंकज माना नहीं। वॉर्डन, हम 4-5 और लड़कों ने पंकज को पकड़ा, मगर वह ढंग से संपर्क में नहीं आ रहा था। उसकी आंखें लाल थीं। वह गुर्राता हुआ बोल रहा था- सुरेश को मारेगा…. सुरेश को मारेगा…. भैं*** मां***

पंकज ऐसी-ऐसी गालियां निकाल रहा था कि हम चौंक गए थे। एक तो हममें से वैसी गालियां कोई किसी को नहीं देता था और पंकज तो किसी को कभी ऊंची आवाज में नहीं बोलता था। वॉर्डन, चौकीदार और एक अन्य टीचर वहां आ गए थे। उन्होंने कहा कि पता नहीं क्या हुआ है, अस्पताल ले चलो। चौकीदार बोला कि जी पहले हनुमान जी के मंदिर (जो कैंपस में ही बने मंदिर में था) के पास ले चलो इसे।

आप यकीन न करें चौकीदार, वॉर्डन और टीचर ने उसे हाथ-पैरों से उठाया हुआ था, मगर उन्हें भी पसीना आ रहा था। जैसे-तैसे वे उसे मंदिर में ले गए। वहां फूल फेंके उसके ऊपर और शायद एक आध फूल खिलाया भी था। पंकज ठीक हो गया और नॉर्मल सांस लेने लगा। उसकी आंखें भी सामान्य सी हो गई थीं। उसे पानी पिलाया गया। उससे पूछा कि क्या हुआ था। बोला पता नहीं सिर में दर्द हो रहा था।

उसे वापस हॉस्टल लाया गया और पूरी रात वैसे ही हम लोगों की चर्चा करते हुए कटी। अगले ही दिन मॉर्निंग असेंबली में फिर वही सीन। अचानक पंकज चिल्लाने लगा और पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। पीटीआई सर ने उसे पकड़ा। सब टीचर्स आ गए। उसकी आंखें फिर से खून की तरह लाल। प्रिंसिपल हैरान, बच्चे डरे हुए। लड़कियां रोने लग गई थीं और कुछ लड़के भी।

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संस्कृत के अध्यापक, जो कि पार्ट टाइम पुजारी भी हुआ करते थे, कुछ मंत्र पढ़े और पंकज के सिर पर हाथ फेरा। पंकज हंसा और बोला- सुरेश नाम है मेरा, पंकज किले बोल रहे हो। किसी को नहीं छोड़ूंगा मैं। यह सुनकर सब परेशान। थोड़ी देर में पंकज को एक टीचर के स्कूटर पर बिठाकर अस्पताल ले जाया गया। वहां भी वह ऐसी ही हरकतें करे। वह कांगड़ा से था, इसलिए उसके पैरंट्स को फोन कर दिया गया। उसके पैरंट्स अगले दिन आए और उसे ले गए।

एक हफ्ते बाद उसके पैरंट्स आए। उन्होंने उसके क्लासमेट्स और होस्टलमेट्स से पूछना शुरू किया कि वे कहां-कहां गए थे। किसी ने बता दिया डरकर कि ये लोग नहाने जाते थे छिप-छिपकर। प्रिंसिपल के सामने हम सभी की क्लास लगी। हमें पूछा गया कि कैसे जाते हो। हम सभी 15-16 बच्चों के माता-पिता को बताया गया। वॉर्निंग मिली। इस बीच यह बात आसपास के गांवों में भी फैल गई थी।

हमें बाद में पता चला कि बगल के गांव में कुछ साल पहले एक बारात आई थी, जिसमें आया 19 साल का लड़का सुरेश उसी आल (ताल) में डूबकर मर गया था, जहां हम नहाने जाते थे। यह बात गांव के कुछ ही लोगों को पता थी कि उसका नाम सुरेश है। और हम हॉस्टल वालों को पता भी कैसे चलती? फिर पंकज अगर किसी तरह के हिस्टीरिया या वहम की बात होती, वह सुरेश नाम कैसे बोलता अपना? और फिर उसमें इतनी ताकत कहां से आई।

हम बच्चे तब तक डरे रहे, जब तक स्कूल से पास नहीं हो गए। खैर, नहाने के लिए तालाब मे ंजाना छोड़ो, रात को ग्राउंड तक में नहीं निकले उस दिन के बाद। मैं स्कूल का नाम नहीं बताना चाह रहा, ताकि किसी तरह से बच्चे इस पोस्ट को पढ़ें और किसी तरह का वहम बनाएं। मेरा नाम भी बदल दें कृपया।

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(लेखक जिला ऊना से हैं, इन दिनों चंडीगढ़ में अपना बिजनस कर रहे हैं। उनका और उनके स्कूल का नाम छिपा या बदल दिया गया है। आप भी अपनी आपबीती हमें inhimachal.in@gmail.com या हमारे फेसबुक पेज पर भेज सकते हैं।)

हिमाचल कांग्रेस का एक सीनियर मंत्री आम आदमी पार्टी के संपर्क में?

शिमला।।
बीजेपी नेता नवजोत सिंह सिद्धू के राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद अटकलें की हैं कि वह आम आदमी पार्टी जॉइन कर सकते हैं। इस बीच हिमाचल में भी चर्चा है कि कांग्रेस के एक सीनियर नेता और कैबिनेट मंत्री आम आदमी पार्टी के संपर्क में है। इस बात में कितनी सच्चाई है, यह तो मंत्री खुद बता सकते हैं मगर चारों तरफ इस बात की चर्चा हो रही है।

पिछले चुनावों के दौरान खुद को मुख्यमंत्री कैंडिडेट बनाने की भरपूर कोशिश के बाद नाकाम रहने वाले यह मंत्री एक टेप को लेकर विवाद में भी फंस चुके हैं और पिछले दिनों कैबिनेट मीटिंग से भी गायब रहे। उसी के बाद से चर्चा है कि मंत्री कांग्रेस आलाकमान से नाराज हैं। उनकी नाराजगी ऐसे भी पता चलती है कि बाकी सभी मंत्री जहां आय से अधिक संपत्ति मामले में घिरे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर विश्वास जता चुके हैं, यह मंत्री खुलेआम इस बारे में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

Courtesy: Rediff
Courtesy: Rediff

राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि इन मंत्री की असली नाराजगी आलाकमान से है, जो वीरभद्र की बढ़ती उम्र के बावजूद उन्हें सत्ता में न सिर्फ बनाए हुए है, बल्कि अगले चुनावों के लिए भी उन्हीं पर दांव खेलने को तैयार दिख रही है। साथ ही इतने मामलों में घिर जाने के बावजूद वीरभद्र को हटाकर अगली पीढ़ी को नेतृत्व न सौंपने से भी वह हताश हो चुके हैं।

बहरहाल, राजनीति में कब कौन सी अटकल चलने लगे और कौन सी बात बाद में अफवाह निकले, यह कहा नहीं जा सकता। मगर आम आदमी पार्टी को अगर हिमाचल चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना है, तो उसे कांग्रेस या अन्य पार्टियों के दिग्गज अपने साथ मिलाने ही होंगे। हो सकता है इसी रणनीति के तहत वह भी कांग्रेस के इन सीनियत मंत्री को तवज्जो दे रही हो।

कोर्ट ही बचा सकता है हिमाचल को ड्रग्स के मकड़जाल से

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हिमाचल प्रदेश में भी नशे का कारोबार बढ़ता जा रहा है। पहले भांग के उत्पादों के लिए हिमाचल बदनाम था ही, युवा पीढ़ी कैपसूल और इंजेक्शन जैसे नशे भी करने लगे हैं। अखबार ऐसी खबरों से भरे पड़े हैं। ऐसे में इस विषय पर लेखक ने प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है, जिसे उन्होंने हमें भी भेजा है। हम इसे यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।

श्री मंसूर अहमद मीर जी,
माननीय मुख्य न्यायाधीश
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय।

विषय: नशे से सबंधित मामलों के लिए अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन हेतु।

श्रीमान,
बहुत दुःख के साथ आपको यह सूचित करना पड़ रहा है की नशे के सौदागरों ने हिमाचल जैसे शांत प्रदेश में भी अपनी पकड़ बना ली है। पिछले दिनों से प्रदेश के अखबार इन्ही खबरों से भरे हुए हैं की नशे की भारी खेप अलग अलग स्थानों पर पकड़ी जा रही है। चिंता की विषय यह हो गया है की नशे के यह सौदागर नाबालिगों और छात्रों को अपना शिकार बनाने में लगे हैं। स्कूल जाते बच्चों तक को प्रतिबंधित दवाइयों कैप्सूलों और चरस की सप्लाई मोहल्ले गांव तक करने तक करने के लिए नेटवर्क बन चुका है।

श्रीमान हिमाचल प्रदेश मध्यम आय वाले नागरिकों का प्रदेश हैं। यहाँ खेती बाड़ी से भी लोगों को इतनी आय नहीं है। अभिवावक अपनी मेहनत की जमा पूंजी से बच्चों को शिक्षण संस्थानों में भेज रहे हैं ताकि वो अच्छी शिक्षा के साथ नौकरी लेकर अपना जीवन यापन सम्मान पूर्वक कर सकें। परन्तु अभी पिछले कुछ मामलों में देखा गया की यही शिक्षण संस्थान नशे के सौदागरों के लिए मार्किट बन गए हैं। ऐसे हालात में तो प्रदेश की युवा पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। नशे की गर्त में फंसा युवा नशे की आपूर्ति के लिए गैरकानूनी रूप से धन कमाने की तरफ भी आकर्षित होगा। जिससे सभ्य समाज के ढांचे और शांति जिसके लिए प्रदेश को माना जाता रहा है उसका भी पत्तन होगा।

Drugs

महोदय प्रदेश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं आपसे दरसखवात करता हूँ की प्रदेश में ऐसे कुकृत्यों में सलिम्पत अपराधियों को जल्द से जल्द सज़ा मिले इसके लिए अलग से एक फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए जो इन मामलों में सुनवाई करे । समाज को पंगु और पीढ़ी को बर्बाद करने पर तुले ऐसे अपराधियों को कम समय के अंदर कड़ी सजा मिलेगी तो समाज में एक सन्देश जाएगा। कुछ दिन पहले मंडी जिला न्यायालय के फैसले को बदलते हुए माननीय उच्च न्यायालय की पीठ ने नशे के कारोबार में सलिम्पत आरोपियों को 15 से बीस साल की सज़ा का जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया है उस फैसले से अपराधियों और इस गोरखधंदे से जुड़े लोगों के बीच अवश्य ऐसा ही सन्देश गया होगा।

मुझे उम्मीद है आप जनहित से जुड़े इस विषय पर अवश्य संज्ञान लेंगे।

भवदीय,
हिमाचल प्रदेश का नागरिक
आशीष नड्डा।

(लेखक आईआईटी दिल्ली में रिन्यूएबल एनर्जी की फील्ड में रिसर्च कर रहे हैं। मूलत: हिमाचल के बिलासपुर से हैं और प्रदेश से जुड़े मामलों पर लिखते रहते हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

लाहौल-स्पीति की बेटी रवीना ठाकुर छू रही हैं आसमान

शिमला।।

हिमाचल का खूबसूरत जिला लाहौल-स्पीति टैलंट के मामले में किसी भी फील्ड में हिमाचल और देश के अन्य हिस्सों से पीछे नहीं है। यहां एक ऐसा गांव है, जहां के लगभग हर घर से प्रसाशनिक सेवा में लोग मौजूद हैं। यह ऐसा जिला है, जहां लिंग अनुपात में बेटियां बेटों से आगे हैं। बर्फीले रेगिस्तान की धरती पर छोटे-छोटे खेतों में हरी सब्जियां उगाते मेहनतकश लोगों की बात की जाए तो भी लाहौल-स्पीति ने हिमाचल प्रदेश को हमेशा गौरवान्वित किया है।

इसी जिले से एक बेटी रवीना ठाकुर कमर्शल पायलट के लाइसेंस के साथ आसमान में उड़ान भरती हैं। इंडिगो एयरलाइन्स में बतौर पायलट कार्यरत रवीना ठाकुर प्रदेश की बेटियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। रवीना ठाकुर का जन्म 6 जुलाई 1988 को रवि ठाकुर के घर में हुआ, जो वर्तमान में लाहौल स्पीति से विधायक भी हैं।


रवीना ठाकुर ने अपनी मूल शिक्षा मनाली शिमला और दिल्ली से ली उसके बाद उन्होंने अमेरिका में कमर्शल पायलट का कोर्स किया। रवीना ठाकुर अपने नाम के साथ सोशल मीडिया पर अपने जिले का नाम जोड़ के रखती हैं। अक्सर पारम्परिक वेशभूषा में लाहुल स्पीति के लोगों से मिलते हुए उन्हें देखा जा सकता है।

दलाई लामा के साथ रवीना।
दलाई लामा के साथ रवीना।

उनकी दादी स्वर्गीय लता ठाकुर 1972 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस की तरफ से जीत कर आईं थीं ट्राइबल हिमाचल से एक महिला को राजनीति में आगे आना बहुत बड़ी बात थी। हालंकि दुनिया का सोचना था कि ट्राइबल इलाकों के लोग बहुत कंजर्वेटिव होते हैं, परन्तु हिमाचल का ताज लाहौल-स्पीति हमेशा इसका अपवाद रहा और यहाँ के लोगों ने बेटियों को हमेशा आगे रखा है। गौरतलब है की प्रदेश की पहली महिला पायलट अपराजिता लाल भी लाहौल स्पीति से सबंध रखती हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के छोटे बेटे अरुण ने DGP और अधिकारियों को धमकाया

शिमला।।

सरकार अभी बदली नहीं, मगर नेता पुत्रों के तेवर अभी से बदल गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे और अनुराग ठाकुर के भाई अरुण ने फेसबुक पोस्ट पर डीजीपी और अन्य पुलिस अधिकारियों को धमकाने वाली भाषा इस्तेमाल की है। उन्होंने पहले तो यह लिखा कि मुख्यमंत्री पुलिस अधिकारियों पर हमारे ऊपर केस बनाने का दबाव डाल रहे हैं, फिर पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दे डाली।

अरुण ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ‘मुख्यमंत्री जी पिछले दो तीन दिन से लगातार पुलिस अधिकारियों पर दवाब बना रहें हैं जैसे तैसे धूमल जी अनुराग जी और मुझ पर कोई भी केस बनाया जाए।

मैं इसका स्वागत करता हूँ और चुनौती देता हूँ अधिकारियों को कि केस बनायें पर उनका हश्र क्या होगा इसको ध्यान में रखें। मुख्यमंत्री का ख़ुद का क्या हाल हुआ है पिछले केस बना कर उसको देख लें। मुख्यमंत्री केवल चंद दिनों के मेहमान हैं उसको बाद अपना हाल सोच कर ही कोई क़दम उठाएँ

और DGP संजय जी को एक सुझाव-धृतराष्ट्र और दुर्योधन के संजय ना बने। जीत हमेशा सत्य की होती है, संजय की नहीं। संयम में रहें।

राजनीतिक बयानबाजी नई चीज नहीं है और पुलिस अधिकारियों पर पहले भी राजनेता सत्ता के दबाव में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं। मगर पुलिस अधिकारियों को अंजाम देखने की खुलेआम धमकी देना शायद पहली बार हुआ है। मुख्यमंत्री को चंद दिनों का मेहमान बताते हुए पुलिस को ‘हश्र’ और ‘हाल’ देख लेने की धमकी देना क्या खुद पुलिसवालों पर दबाव बनाना नहीं है?

राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि इस तरह की बयानबाजी बीजेपी को भारी पड़ सकती है। मंडी से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को बताया कि डीजीपी प्रदेश पुलिस का मुखिया होता है और महकमे का सबसे बड़ा अधिकारी होता है। उसे इस तरह से धमकी नहीं दी जानी चाहिए। मुझे यह जानकर अफसोस हुआ कि शिमला से ही हमारी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री रहे एक नेता के बेटे ने भी इस पोस्ट पर कॉमेंट किया है, जो प्रोत्साहन की तरह है। व्यक्तिगत लड़ाई में पार्टी का नुकसान हो जाए, यह बात ठीक नहीं।’

बहरहाल, सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर किसी मामले में अरुण के खिलाफ जेनुइन यानी असली केस भी होता है, तो भी क्या वह हाल सोचने की धमकी देंगे? क्या अरुण यह साबित करना चाहते हैं कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो पुलिसकर्मियों को प्रताडि़त किया जाएगा? क्या उनके पिता पहले भी ऐसे ही अधिकारियों सो प्रताड़ित करते रहे हैं, जिससे कि वह इस बार भी धमकी दे रहे हैं?

Arun

गौरतलब है कि अनुराग ठाकुर के साथ-साथ अरुण पर भी एचपीसीए केस में कई आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर सरकार बदलती है तो क्या पुलिस अधिकारी ऐसे ही किसी मामले की निष्पक्ष जांच कर पाएंगे या उसे रफा-दफा कर दिया जाएगा? बहरहाल, अभी सरकार बदली नहीं है और यह भी तय नहीं है कि अगला सीएम कौन होगा। नड्डा के आने की अटकलें भी तेज हैं। मगर सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इस तरह की बयानबाजी दिखाती है कि प्रदेश की राजनीति किस तरह से चलती है और अधिकारियों पर कितना दबाव रहता होगा।

इस बीच कानून के जानकारों का कहना है कि और मामलों में पुलिस अरुण के खिलाफ केस बनाए या न बनाए, मगर इस पोस्ट के आधार पर उनके खिलाफ न सिर्फ केस हो सकता है, बल्कि कार्रवाई भी हो सकती है। सरकारी कर्मचारियों को धमकी देने समेत कई धाराओं में पुलिस न सिर्फ मामला दर्ज कर सकती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर गिरफ्तार भी कर सकती है।

टेंट के बाहर कोई महिला रोने लगी और अंदर मेरी गर्लफ्रेंड

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें। 

  • समर्थ सोलंकी

मैं और मेरी पत्नी पूनम एकसाथ कॉलेज से पढ़े हैं। हम दोनों को ही घूमना-फिरना पसंद है। हमारी दोस्ती भी इसी कॉमन इंटरेस्ट की वजह से हुई थी। बात उन दिनों की है जब हम दोनों चंडीगढ़ के पास पंजाब के एक निजी संस्थान से बी.टेक कर रहे थे। मेरे पास बुलेट थी और मैं लंबे समय से पूनम को बोल रह था कि चलो मनाली चलते हैं घूमने के लिए बाइक पर। पूनम अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से थी और मैं कुरुक्षेत्र (हरियाणा) से। पूनम हमेशा बोलती थी कि चलना है तो बस से चलो, बाइक से नहीं चलेंगे। मगर मैंने ठान ली थी कि जाना है तो बाइक से ही चलेंगे।

जून का आखिरी हफ्ता था शायद या जुलाई का पहला, मगर बरसात होने लगी थी। हम दोनों एक क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में गए थे। वहं पर शराब का भी दौर चला। हम सब लोग नशे में थे। इसी बीच प्लान बना कि चलो कहीं घूमने चला जाए। दोस्त बोलने लगे कि कसौली चलते हैं लालू की गाड़ी में। लालू हमारा दोस्त, जो चंडीगढ़ का रहने वाला था और उसके पास कार थी। हम 8-9 लोग थे और उनमें 7 लोग जाने को तैयार। मगर लालू ने कह कि उसके मम्मी-पापा उसे नहीं जाने देंगे। इसलिए प्रोग्राम कैंसल हो गया। हम रात के 9 बजे वहां से निकले। पूनम साथ थी और मैं और बाइक पर उसे उसके पीजी तक छोड़ने जा रहा था। रास्ते में उसने मुझे बोला कि चलो न, हम दोनों ही चलते हैं कहीं घूमने। मैंने कहा कहां? बोली-मनाली। मैंने कहा अब नहीं चलेंगे, पी हुई है हमने और रात भी हो गई है। मगर वह अड़ी रही। थोड़ी आनाकानी के बाद मैंने कहा कि ठीक है चलो।

मैंने उसे उसके पीजी उतारा औऱ कहा कि कुछ कपड़े पैक कर लो। मैं अपने पीजी आया और सैडल बैग में कुछ काम की चीज़ें औऱ कपड़े डाले और बाइक पर उसे बांध दिया। अपने एक सीनियर विरेंद्र भाई को फोन किया कि उनका टेंट चाहिए। उन्होंने कहा कि ले जाओ। उनके घर तक जाकर मैंने टेंट वाला बैग लिया और उसे भी बाइक पर बांध लिया। रात के पौने 11 हो चुके थे, जब तक मैं पूनम के पीजी पहुंचा। तब तक बियर का नशा भी उतर चुका था। मैंने पूनम से कहा कि अभी शिमला चलेंगे और रात को विक्की (मेरा कजन) के यहां रुकेंगे और अगले दिन वहां से उसकी गाड़ी लेकर घूमते हुए मनाली निकलेंगे। पूनम ने कह कि ये कौन सा अजीब रूट बना रहे हो। मगर मैंने कहा कि इस मौसम में बाइक से जना सही नहीं है। ना-नुकर करते हुए पूनम ने हां कह ही दी।

हम चले और कालका जैसे ही पहुंचे, बारिश शुरू हो गई। न रेन कोट न कुछ, बस बारिश में भीगते हुए जा रहे। कोई गाड़ियां भी नहीं थी, मगर धुंध सी अजीब सी। रास्ते में बोर्ड दिखा कसौली जाने का। मन किया कि बारिश में यहीं आसपास कोई होटेल ले लिया जाए और सुबह निकला जाए। मगर पूनम पर जाने क्या धुन सवार थी, बोली मजा आ रहा है, कोई बात नहीं धीरे-धीरे चलो अब विक्की के यहीं रुकेंगे। बारिश में बाइक की स्पीड तेज नहीं कर पा रहा था क्योंकि आगे दिख नहीं रहा था कुछ। ऊपर से ठंडी बारिश अलग। हमें नहीं भी तो साढ़े 4 या शायद साढ़े 5 घंटे लग गए शिमला पहुंचने में। बस इतना ध्यान है कि जब हम विक्की के यहां पहुंचे, आसमान में उजाला होने लगा था। विक्की ने दरवाजा खोला और हम नहाकर और कपड़े बदलकर सो गए।

नींद खुली 8 बजे, जब विक्की चाय और ब्रेड टोस्ट लेकर खड़ा था और उसने हमें जगाया। हमने चाय पी और फिर सो गए। इस बीच विक्की अपने कॉलेज चला गया, जो एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था। विक्की वैसे तो मुझसे 5 साल बड़ा है मगर हम दोनों में खूब छनती है। खैर, नींद खुली अब 2 बजे। विक्की को शाम 6  बजे लौटना था। अब मुझे जाने क्या सूझी कि मैंने पूनम को कह कि चलो, बाइक से ही चलते हैं, बारिश होगी तो भीगेंगे ही, और कया होगा। पूनम भी तैयार हो गई। किसी ने हमें बताया कि नारकंडा-शोजा होते हुए जाओगे तो ज्यादा वक्त लगेगा क्योंकि सड़कों की हालत ठीक नहीं है। हमें सलाह दी कि सुंदरनगर मंडी होते हुए जाओ, सड़कें भी अच्छी हैं और सफर ठीक रहेगा। 3 बजे हम शिमला से चले और रुकते-रुकाते रात के 12 बजे के करीब कुल्लू पहुंच गए। अब मुझे जाने क्या खुराफात सूझी कि रात टेंट में बितानी है।

पूनम ने कहा भी आगे चल लो, कोई होटेल देख लो। मगर मैंने कहा कि थक चुका हूं और आगे सुबह ही जाएंगे। शायद मन में एक उत्साह भी था टेंट में रुकने का, क्योंकि पहली बार टेंट में रुकने जा रहा था। तो मैंने सड़के के किनारे से एक रास्ता जाता देखा, उसी में बाइक घुसा दी। अंधेरा था और हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। आगे चलकर नदी के किनारे वह जगह थोड़ी चौड़ी सी हो गई थी। तो मैंने देखा कि पहाड़ी के साथ टेंट लगाया जा सकता है। पास से ही नदी बह रही थी मस्त और उसका संगीत बड़ा प्यारा लग रहा था। मैंने बाइक को स्टैंड पर लगाया और उसकी लाइट में टेंट लगाने लग गया। समझ ही नहीं  आ रहा था कि कौन सी डंडी कहां लगनी है और कौन सा धागा कहं बांधना है। करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद जैसे-तैसे टेंट लगाया। फिर हम टेंट के अंदर गए और वहां पर बैटरी से चलने वाली लाइट ऑन की। कंबल लाए थे, उसमें घुसे ही थे कि लगा किसी ने  टेंट पर पत्थर मारा है। मैंने सोचा कोई शरारत कर रहा होगा। मैं बाहर निकला और शोर किया। देखा कि पहाड़ी के ऊपर की तरफ तो किसी के होने का सवाल ही नहीं है। आसपास भी कोई नहीं दिखा टॉर्च से। फिर मैं अंदर आ गया।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

बाहर अजीब-अजीब आवाजें आनी लगीं। जैसे कोई महिला जोर से चिल्ला रही हो। अब थोड़ी घबराहट हुई। पूनम तो रोने लग गई थी। मैं उसे दिलासा दे रहा था कि ये गीद़ड़ हैं। मगर यकीनन मैं कह सकता था कि गीदड़ नहीं है। तुरंत वे आवाजें तेज हुईं और ऐसा लगा कि पास से ही आ रही हैं। अब हमें साफ महसूस हो रह था कि कोई टेंट की पतली सी झिल्ली की दूसरी ओर बाहर खड़ा होकर ही चिल्ला रहा है। और साफ तौर पर किसी महिला के रोने की आवाज थी। मैंने हाथ में वह चाकू लिया, जो कैंपिंग टूल्स के साथ आया था। और इंतजार कर रहा था कि अगर किसी ने तंबू को छुआ या अंदर आया तो हमला कर दूंगा। उधर पूनम भी चिल्लाने लग गई। शायद वह इतनी डर गई थी कि उसे कोई होश नहीं था। वह भी उसी आवाज में चिल्लाने लगी, जैसे आवाज बाहर से आ रही थी। मैंने पूनम को झकझोरा, मगर वह रोए जा रही थी। अब मेरी **** चुकी थी। मुझे लगा कि आज तो मैं गया। अचानक टेंट जोर-जोर से हिलने लगा। मैं जोर से चीखा कौन है। बाहर से कोई जवाब न आए।

मेरी क्या हालत थी उस वक्त। आप अंदाजा नहीं लगा सकते। मैं हिम्मत हार चुका था, मगर फिर भी हिम्मत बनाए रकने की नौटंकी कर रहा था। क्योंकि मुझे लगता था कि इसी में जान बच सकती है। अचानक वे आवाजें और शोर ऐसे बंद हो गया, जैसे स्विच ऑफ हो गया हो। इस बीच पूनम रोते-रोते बेहोश हो गई थी। मैंने उसके चेहरे पर पानी की बूंदें फेंकी तो वो होश में आई मगर डरी हुई थी। बोली चलो यहां से। मैंने कहा ठीक है। चलता हूं। मैं झटके से तंबू से बाहर निकला हाथ में चाकू लिए तो कुछ नहीं दिखा। फिर मैंने पूनम को बोला कि बाहर निकलो। पूनम को खींचकर बाहर निकाला। उसने आंखें बंद की हुई थी, जैसे देखना ही नहीं चाहती थी। मैंने बाइक स्टार्ट की, पूनम को बैठने को बोला। उसने मुझे जोर से पकड़ लिया था। मैंने बाइइख स्टार्ट की और वापस उस सड़क से मुख्य सड़क की ओर चल दिया, जहां से आया था। ऊपर गया और मुख्य सड़क पर पीछे की तरफ जाने लगा, जहां एक घर की लाइट दिखी थी शुरू में। 2 किलोमीटर बाद उस दुकान के आगे बाइक लगाइ और दरवाजा खटखटाया। उसके पीछे बने घर से एक बंदा आया गुस्से में कि रात में क्या कर रहे हो। मैंने उसे पूरी घटना सुनाई तो उसने कहा कि आप नदी में गए क्यों थे रात को। उसने गालियां भी दी कि हम बाहर से आते हैं और चीज़ों को समझते नहीं हैं।

उसने फिर भी हमें अपने घर के एक कमरे में ठहाराया, चाय पिलाई। उसके बाद घनघोर बारिश शुरू हुई। ऐसी बारिश मैंने कभी नहीं देखी थी। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। अगली सुबह भी हो गई और बारिश रुकी करीब दोपहर 12 बजे। फिर उस बंदे ने अपने किसी रिश्तेदार को फोन किया जो गाड़ी लेकर आया। उसकी गाड़ी में बैठकर हम उस जगह की तरफ चल दिए, जहां हमारा टेंट और बाकी सामान छूटा हुआ था। जैसे ही मैंने दिखाया कि ये रास्ता जाता है, उसने कहा कि ये रास्ता तो नीचे नदी तक रोड़ी और रेता उठाने वाले ट्रैक्टरों के लिए है। उसने गाड़ी उस रास्ते में डाली तो थोड़ी दूर जाने पर जो मंजर दिखा, वह आत्मा को कंपा देने वाला था। नदी पूरे उफान पर थी और जिस जगह हमने टेंट लगाया हुआ था, उसके ऊपर से पानी बह रहा था। न तो टेंट का कहीं अता-पता था न बाकी सामान का। टेंट के अंदर बैग, जिसमें कपड़े, कैंप का सामान, मेरा बटुआ और पूनम का पर्स जिनमें कुछ पहचान पत्र और अन्य चीज़ें थीं, सब बह चुके थे।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि किस्मत का शुक्र अदा करूं जो रात को वह घटना हुई और हम डरकर उस जगह से भागे या किस्मत से शिकायत करें कि रात को वह घटना क्यों हुई और क्या थी। वे आवाजें किसकी थी और कौन हमारे टेंट को क्यों हिला रहा था, हमें समझ नहीं आया। दुकानदार ने बोला कि हो सकता है कोई अच्छी आत्मा रही हो जो ऐसे ही बहकर मरी हो और तुम्हारी मदद कर गई या फिर कोई बुरी आत्मा थी, जो तुम्हारी जान लेना चाहती थी और तुम पहले ही बचकर निकल आए।

मैं और पूनम जानते हैं कि उस रात जो कुछ हुआ, सच था। बाकी लोगों ने यकीन नहीं किया। उन्हें लगता है कि हमारे टेंट पर पहाड़ी से पत्थर गिरे थे और बाहर कोई गीदड़ या अन्य जानवर ही होगा, जो बियाबान में टेंट देखकर कौतूहल में आ गया होगा। हम भी चाहते हैं कि यही हुआ हो। मगर शुक्रगुजार हैं कि जो हुआ, अच्छा हुआ। वरना किसी को पता नहीं चलता कि हम दोनों कहां गए। बह जाते नदी में और कई सालों बाद लाशों या बाइक को उगलती नदी। या फिर नहीं भी उगलती। पूनम नहीं चाहती थी कि मैं इस घटना को सबके सामने रखूं, क्योंकि उसको लगता है कि ऐसी बातों का जिक्र किसी से नही ंकरना चाहिए क्योंकि ये खास होती हैं। मगर मैंने फिर भी यह बात आपके साथ शेयर की, क्योंकि मुझे लगता है कि ऐसी घटनाएं भी होती हैं, लोगों को पता होना चाहिए। मुझे अपने नाम को जाहिर करने में आपत्ति नहीं थी, मगर मेरी पत्नी पूनम (बदला हुआ नाम) नहीं चाहती थी कि ये बातें हम किसी को बताएं। इसलिए अपना और पत्नी का नाम बदला हुआ है।

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बीजेपी में शांता-धूमल की तरह कभी नहीं होगा नड्डा-धूमल शीतयुद्ध!

  • सुरेश चंबयाल

प्रदेश की अखबारें केंद्रीय मन्त्री जेपी नड्डा के शिमला दौरे के बाद से कई अटकलों एवं चर्चाओं से अटी पड़ी हैं। कुछ लिखते हैं यह बीजेपी में शांता-धूमल के बाद तीसरे युग का सूत्रपात है तो कुछ लिखते हैं नड्डा के इर्द-गिर्द धूमल समर्थकों का घूमना भी इस बात को पुख्ता करने लगा है कि आने वाले चुनावों की दिशा क्या रहेगी। कुल मिलाकर हर राजनीतिक पंडित इसे नड्डा युग के आगाज में रूप में दिखा रहा है।

कुछ लोगों का मानना है कि पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल की प्रदेश राजनीति में मंडल स्तर तक जो पकड़ है, उसे दरकिनार करते हुए नड्डा के हाथ कमांड देना पार्टी को महंगा भी भी पड़ सकता है। कुछ लोग इसे शांता-धूमल शीत युद्ध के बाद नड्डा -धूमल शीत युद्ध के तौर पर देख रहे हैं। निश्चित तौर पर धूमल की पकड़ को नकारा नहीं जा सकता, मगर जहां तक शीतयुद्ध की बात है, अगर नड्डा को कमान मिल भी जाती है, तब भी शांता-धूमल टाइप शीतयुद्ध देखने में नहीं आएगा।

क्यों नहीं आएगा, इस पर चर्चा करने से पहले हमें 90 के दौर में जाना होगा। बाबरी-मस्जिद विध्वंस के बाद जब शांता कुमार सरकार गिरी, उस वक्त प्रेम कुमार धूमल प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे। उन्हें हमीरपुर से शांता कुमार ने कद्दावर नेता ठाकुर जगदेव चंद को काउंटर करने के लिए इतने बड़े औहदे पर खुद ही बिठाया था। 1993 चुनावों में शांता कुमार की खुद की हार के बाद जगदेव ठाकुर इकलौते नेता बचे जो पार्टी में सबसे सीनियर थे और जीत कर भी आए थे परन्तु चुनावों के हफ्ते भर बाद उनका अकस्मात निधन हो गया। अब प्रदेश बीजेपी फिर शांता कुमार पर केंद्रित थी। धूमल प्रदेश अध्यक्ष थे और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदेश प्रभारी। ज्ञात हो कि उस समय धूमल विधानसभा में नहीं थे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जेपी नड्डा थे।

Nadda Dhumal

धीरे-धीरे अपनी संगठन कुशलता एवं मृदु सवभाव से धूमल प्रदेश बीजेपी में लोकप्रिय होने लगे। बाबरी मस्जिद पर पार्टी स्टैंड से अलग स्टैंड रखने वाले शांता कुमार उस समय संघ और बीजेपी के बड़े नेताओं की आंख की किरकरी भी बन चुके थे साथ ही उनकी कर्मचारी विरोधी छवि से बुरी तरह हारी बीजेपी 1998 का चुनाव शांता कुमार के नेतृत्व में लड़ने से डर रही थी। प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी का झुकाव भी धूमल की तरफ ही था।

1998 चुनावों की घोषणा के साथ ही शांता-धूमल का शीत युद्ध शुरू हो गया। कांगड़ा के अधिकतर नेता शांता कुमार के साथ थे तो धूमल के साथ भी अच्छा खासा समर्थन था। टिकट आवंटन की मीटिंग में ज्वालाजी गेस्ट हॉउस में ऐसी नौबत आ गई कि शांता और धूमल समर्थक नेता आपस में हाथापाई तक उलझ गए थे, जिसे प्रदेश बीजेपी के इतिहास में ज्वालाजी कांड कहा जाता है। 1998 में शांता को किनारे कर धूमल मुख्यमंत्री भी बन गए, परन्तु शांता-धूमल समर्थक गुटबाजी में उलझी भाजपा कभी इस से बाहर नहीं आ पाई। लेकिन हां, ऐसा जरूर हुआ की शांता कुमार के समर्थक नेता धीरे-धीरे धूमल के साथ अपना भविष्य जोड़ते गए।

केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिए जाने के बाद शांता कुमार राजनीतिक रूप से और कमजोर हुए। एक दशक के अंदर 2007 तक धूमल के पास प्रदेश राजनीति में ऐसे समर्थक विधायकों की फौज हो गई जो उनके समर्थन में कुछ भी कर सकती थी, जैसे वीरभद्र समर्थक नेता करते हैं। इसीलिए 2007 में जब शांता कुमार की प्रदेश राजनीति में लौटने की सुगबुगाहट हुई, तब इन्ही समर्थकों के भार से वो आवाज कहीं दब गई। परन्तु जब भी प्रदेश में चुनाव होता टिकट आवंटन पर शांता -धूमल शीतयुद्ध हावी रहता। खासकर कांगड़ा में 2012 में जो नतीजे आए वो सब जानते हैं।

2007 से 2012 तक के कार्यकाल में धूमल अपनी रणनीति से शांता समर्थकों को या तो अपने साथ ला चुके थे या फिर राजनतिक हाशिये पर धकेल चुके थे। सरवीण चौधरी रविंद्र रवि आदि नेता अब धूमल के ज्यादा नजदीक थे। वहीं महेश्वर सिंह , महिंदर नाथ सॉफ्ट किशन कपूर रमेश धवाला आदि नेता राजनीतिक हाशिये पर धकेले जा रहे थे। इसी बीच अब तक किसी गुट में नहीं रहे और अपनी स्वतंत्र छवि बरकरार रखे हुए जेपी नड्डा ने 2003 का चुनाव हारने के बाद 2007 में 19 000 के मार्जन से फिर जीत दर्ज करते हुए जबरदस्त वापसी की। शांता के वर्चस्व को धूमिल करने के बाद धूमल का टारगेट अब नड्डा थे।

उस वक़्त प्रदेश राजनीति में धूमल का दबदबा भी जोरों पर था। सीनियर नेता होने के बावजूद नड्डा को लोक निर्माण, सिंचाई एवं जनस्वस्थ्य, हेल्थ , उद्योग और शिक्षा आदि महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो से अलग रखकर वन विभाग दिया गया, जो सीधे तौर पर जनता से नहीं जुड़ा था। यहां से नड्डा और धूमल के बीच अघोषित युद्ध शुरू हुआ। स्थिति यहां तक आ गई कि नड्डा ने मंत्रिपद छोड़कर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनने की इच्छा जाहिर कर दी, परन्तु उनकी जगह खीमी दी गई। इसी के साथ चुनावी वर्ष 2012 के पहले पखवाड़े में ही नड्डा मंत्रिपद से त्यागपत्र देकर गडकरी की टीम का हिस्सा बनकर दिल्ली आ गए और मिशन मोदी की रीढ़ बन गए। 2012 के चुनावों में फिर शांता -धूमल शीत युद्ध में फंसी बीजेपी बुरी तरह हारी।

उधर केंद्र में नड्डा मजबूत होते गए। संगठन के रास्ते बढ़ते-बढ़ते नड्डा पार्टी की सबसे बड़ी इकाई केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड चुनाव सीमिति का हिस्सा तो बने ही, साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मन्त्री बनकर मोदी की कैबिनेट में शामिल हो गए।

अब नड्डा प्रदेश का रुख करते भी हैं या सोचते भी हैं , तब भी शीतयुद्ध नहीं हो सकता क्योंकि युद्ध समर्थकों के दम पर लड़ा जाता है। और बेशक धूमल समर्थक नेता प्रदेश में हों, परन्तु वे न तो खुलकर नड्डा के साथ हो न सकते हैं और नही इस मामले में धूमल का समर्थन कर सकते हैं। नड्डा का रुतबा पार्टी में अब इतना बड़ा है कि कोई चाहकर भी यह नहीं जता पाएगा कि वह नड्डा के प्रदेश में आने से खुश नहीं है। केंद्रीय चुनाव सिमिति और पार्लियामेंट्री बोर्ड में बैठे व्यक्ति से कोई भी मंझा हुआ नेता टकराव नहीं पालना चाहेगा। ऊपर से नड्डा अभी 55 साल के हैं। वो मुख्यमंत्री बनकर आएं या न आ पाएं, परन्तु उनसे घोषित टकराव करके कोई भी धूमल समर्थक भविष्य के लिए रार नहीं पालना चाहेगा। शांता विरोधियों को धूमल की शरण मिल जाती थी परन्तु नड्डा का सरेआम विरोध करके धूमल की शरण कब तक बचा पाएगी, इसपर हर कोई सोचेगा। तब शांता कुमार वृद्धावस्था की तरफ बढ़ रहे थे और अब धूमल बढ़ रहे हैं।

शिमला में नड्डा के आसपास धूमल समर्थकों की फौज इसलिए यही दिखाने के लिए दिखी कि हम पार्टी के आदमी हैं और उसके हर फैसले का सम्मान करेंगे। नड्डा ने अपना रुतबा इतना बड़ा कर लिया है कि धूमल -नड्डा शीतयुद्ध अब संभव नहीं हैं। नड्डा वैसे भी प्रतिक्रिया देने वाले नेता नहीं जाने जाते। वह प्रदेश राजनीति में आएंगे या वर्तमान हालात का लुत्फ उठाते रहेंगे, यह राज वही जानते हैं। जब तक वह खुद पत्ते नहीं खोलेंगे, तब तक अटकलों के बाज़ार यूं ही गर्म रहेंगे। मगर शीतयुद्ध की संभावना न के बराबर है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

DISCLAIMER: लेख में लिखी बातों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी है।