बीजेपी की तिरंगा यात्रा में उड़ रही हैं यातायात नियमों की धज्जियां

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  • अतुल जसवाल

देशक्ति के नाम पर बाइक्स पर दो की जगह लदे तीन-तीन लोग हाथों में राष्ट्रध्वज लिए बिना हेलमेट सांय-सांय करते हुए सड़को पर हजूम के रूप में गुजर रहे हैं। यह किसी मूवी का सीन नहीं है, बल्कि अपने आप को राष्ट्रवादी कहने वाली बीजेपी की हिमाचल यूनिट की तिरंगा यात्रा का रोज का वृत्तांत है। प्रशासन मूकदर्शक बना है कहीं चालान भी काट रहा है।  जहां चालान कट रहे हैं वहां तथाकथित देशभक्त ऐसे गुर्रा रहे हैं मानो वो नमक कानून तोड़ने के लिए गांधी जी के साथ दांडी यात्रा पर थे और अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें रोक लिया  हो।

भाजपा के ही कर्मठ नेता केंद्रीय परिवहन मंत्रीं नितिन गडकरी जोर-शोर से रोड सेफ्टी पर कार्य कर रहे हैं।  बाकायदा नियमों को और टाइट करने के लिए उन्होंने जुर्माने में भी बढ़ोतरी की है।  हैरानी यह है की यही तिरंगा यात्री फेसबुक पर नितिन गडकरी के कार्यों का गुणगान करते हैं कि रोड सेफ्टी के लिए उन्होंने बहुत सही कार्य किया है दूसरी तरफ यही लोग तिरंगा उठा के देशभक्ति के नाम पर अपने ही देश के नियमों को सरे आम ताक पर रखकर  सड़कों पर दौड़े जा रहे हैं।

 
बड़े नेता तक यही काम करते नजर आए।
बड़े नेता तक यही काम करते नजर आए।
 
क्या देशभक्ति का जज्बा या जोश किसी को यह छूट देता है की तिरंगा उठाओ और किसी भी नियम की धज्जियां उड़ा दो?  जब आप इसी बात की परवाह नहीं करते कि आपके देश के कानून में सड़क  पर वाहन पर चलाने  के कुछ कानून निहित कर रखे हैं और आपको उनका पालन करना है तो आप तिरंगा उठा कर इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगा कर किस मुंह से अपने आप को और अपने कार्य को देशभक्ति राष्ट्रवादिता में गिना रहे हैं।
 

दुःख की बात यह है कि प्रदेश  बीजेपी के   बड़े नेता इस मामले में खामोश हैं। रोज इस यात्रा की तस्वीरे छप रहीं है परंतु किसी भी नेता ने सवेंदनशील होकर युवा वर्ग से अपील नहीं की है कि आप लोग तिरंगा यात्रा में बाकायदा हेलमेट पहन कर चलें।  किसी नेता ने अपने कार्यकर्ता से नहीं कहा की तिरंगा वाहन  पर लगा होना यह इज़ाज़त नहीं  देता की आप नियमों की धज्जियाँ उड़ा दें।  देश के कान्नून का सम्मान करना , उसका पालन करना इन्ही चीजों को दिनचर्या में कोई नागरिक अपनाये वो भी देशभक्ति है।  हालाँकि  सड़क पर यह मामला मात्र नियम के पालन से हैं जुड़ा हैं अपितु अपनी  सुरक्षा से भी जुड़ा है।

बीजेपी के बड़े नेता कम से कम सुरक्षा के हवाले से ही यह अपील तो नौजवानों से कर सकते हैं जिनमे देशभक्ति की बाइक क्रांति की अलख आपने जगाई है। कुछ लोगों का मानना है हमें तिरंगा यात्रा का सम्म्मान करते हुए हेलमेट सड़क सुरक्षा नियम कानून की बात नहीं  करनी चाहिए।  मैं उसने पूछना चाहता हूँ हमें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए ? कल को कोई व्यक्ति अ अपनी बाइक पर तिरंगा  लगा दे बिना हेलमेट चले और कहे की मैं पुरे साल की तिरंगा यात्रा पर हूँ तो क्या उसे नियम में छूट दे दी जानी चाहिए ?
 
कुछ लोग कहेंगे मैं कांग्रेसी हूँ, आपिया हूँ, बीजेपी विरोधी हूँ ये हूँ वो हूँ।  ऐसी बातें वो लोग लेकर आते हैं जिनके पास  बहस में बने रहने  या मुद्दों पर टिप्पणी करने के लिए कोई तर्क नहीं होता। मुझे इससे फर्क भी नहीं पड़ता मैं जो भी हूँ जैसा भी हूँ तिरंगा यात्रा से मुझे आपत्ति नहीं है देश के नाम डेडिकेट करते हुए कोई पैदल दौड़े कोई बाइक से चले कोई साइकिल से चले मुझे  ख़ुशी है।

 
पर उसी देश के नियमों कानूनों की तिलांजलि देकर यह कैसी देशभग्ति की ब्यार बह रही है यह समझ से परे  है।  भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेतायों का फर्ज बनाता है वो सार्वजानिक रूप से यह अपील  युवा वर्ग से करें की तिरंगा यात्रा देश के प्रति निष्ठा के साथ साथ वो इसी देश के नियमों का भी पालन करें
 
 
(लेखक सेंट्रल यूनिवर्सिटी  हिमाचल प्रदेश के छात्र हैं और इन हिमाचल के नियमित पाठक हैं।  अन्य पाठक भी अपने विचार लेख हमें inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं) 

इन 3 सवालों के जवाब दिए बिना बीजेपी में शामिल हो रहे हैं महेश्वर सिंह

  • सुरेश चंबयाल

कुछ साल पहले बीजेपी पर दनादन करप्शन का आरोप लगाकर हिलोपा नाम से अलग पार्टी बनाने वाले महेश्वर सिंह रविवार को फिर से बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। कुल्लू के ढालपुर मैदान में इसके लिए बड़ी रैली की तैयारियां की गई हैं। इसमें प्रेम कुमार धूमल शिरकत करेंगे। पहले चर्चा थी कि प्रदेश के प्रभारी श्रीकांत शर्मा, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और सांसद शांता कुमार भी इसमें शामिल होंगे, मगर शनिवार शाम तक खबर आई कि ये सब कुल्लू नहीं आएंगे।

महेश्वर सिंह
महेश्वर सिंह (Image: Courtesy Hillpost.in)

महेश्वर सिंह के बीजेपी में शामिल होने के साथ ही उस हिमाचल लोकहित पार्टी का भी बीजेपी में विलय हो रहा है, जिसे बीजेपी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के नाम पर बनाया गया था। महेश्वर सिंह अपने पुराने घर में वापस आ रहे हैं। वह दो बार इसके प्रदेशाध्यक्ष भी रहे हैं। मगर कुछ सवाल ऐसे बनते हैं, जिनका सवाल दिए बिना ही वह यह कदम उठा रहे हैं।

(1) महेश्वर सिंह ने यह कहते हुए बीजेपी से किनारा किया था कि उसका करप्शन पर कोई स्टैंड नहीं है और कुछ नेता करप्शन में शामिल हैं। अब जब वह फिर से बीजेपी में आ रहे हैं तो क्या उनकी इन शंकाओं का समाधान हो चुका है?

(2) 2012 में महेश्वर सिंह व अन्य बागियों ने बीजेपी आलाकमान के सामने मांग रखी थी कि मौजूदा नेतृत्व को हटाया जाए। जाहिर है उस समय प्रेम कुमार धूमल की सरकार थी और उनके निशाने पर वही थे। अब अगर अगला चुनाव पार्टी फिर धूमल के नेतृत्व में लड़ती है तो महेश्वर का स्टैंड क्या रहेगा? क्या अब उन्हें धूमल मंजूर हैं या किसी शर्त पर उनकी वापसी हो रही है?

(3) प्रदेश में बेनामी जमीनी सौदों के मामलों पर भी महेश्वर बात करते रहे हैं। यह भी कहा उन्होंने कई बार कि धारा 118 का उल्लंघन करने में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दोषी हैं। अब जब वह पार्टी में वापसी कर रहे हैं तो क्या फिर से वह पार्टी के अंदर इन सवालों को उठाएंगे?

महेश्वर सिंह रविवार को प्रेम कुमार धूमल की मौजूदगी में कुल्लू के ढालपुर मैदान में बीजेपी में वापसी करेंगे। मगर इन सवालों का जवाब जब तक वह साफ नहीं देते, आशंकाएं बनी रहेंगी।

कहानी: जातिवाद की वजह से होकर भी नहीं हो पाई शादी

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आज से हम नया सेक्शन शुरू कर रहे हैं, जिसमें प्रदेश के लोग ऐसी कहानियां भेज सकते हैं, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर दें। वे मनोरंजक भी हो सकती हैं और कुछ सिखाने वाली भीं। वे एक सवाल के तौर पर भी हो सकती हैं और समस्या के तौर पर भी, जिसे इन हिमाचल के पाठक अपने सुझाव देकर सुलझाने की कोशिश कर सकते है। हमें इस सेक्शन को शुरू करने की प्रेरणा हमारी रीडर निशा धीमान से मिली, जिन्होंने यह कहानी हमें भेजी है।

पिछले दिनों मंडी में जाति को लेकर एक बारात लौटने की खबर पढ़ी। 2 साल पहले का वाकया मेरी आंखों के सामने घूम गया, क्योंकि उस वक्त भी ऐसा ही कुछ हुआ था। मेरी सहेली मीनू बहुत खुश थी। 5 साल के लंबे अफेयर के बाद उसकी शादी जो हो रही थी। मगर शादी निपटते ही उसकी खुशियों को ग्रहण लग गया। शादी का पंडाल युद्धक्षेत्र में बदल गया था। लोग गुत्थमगुत्था थे। लाठियों-डंडों से भिड़े पड़े थे। दुल्हन पक्ष वाले दूल्हे के साथ आए बारातियों को बुरी तरह से धुन रहे थे। हाथ में कुर्सी आ रही थी तो कुर्सी से, झाड़ू आ रहा था तो झाड़ू से, जो मिल रहा था उससे धुनाई हो रही थी। न उम्र का लिहाज हो रहा था न अन्य किसी मर्यादा का। कोहराम को चीख-पुकार से पूरा इलाका दहल गया था। आधे लोग गाड़ियों से भाग रहे थे तो कुछ आसपास से उस तरह की तरफ आ रहे थे। महिलाएं हो रही थीं जोर-जोर से, मानो शादी न होकर किसी की मौत हो गई हो।

शुरू में मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं तो मीनू के साथ उसके कमरे में अन्य लड़कियों के साथ थी और उसकी गुत्त बना रही थी। पता नहीं बाहर से कैसे ये शोर आने लगा था। इतने में एक महिला रोती-रोती अंदर आई और बोली- लड़के वाले अगड़ी जाति के नहीं हैं। यह सुनकर कमरे में बैठा हर शख्स हैरान रह गया। मीनू के चेहरे की रंगत अचानक उड़ गई। मैं समझ ही नहीं पा रही थी क्या हो रहा है। इससे पहले कि कोई और सवाल करता, मैंने पूछा क्या मतलब? तो उस महिला ने बताया कि लड़के वालों ने झूठ बताया कि वे जनरल हैं, वे दरअसल $$$$$$ हैं। मैंने मीनू की तरफ देखा और उससे पूछा कि क्या बात है, तुझे पता है कुछ?

मीनू इससे पहले कि कोई जवाब देती, बेहोश हो गई। इधर हम परेशान कि मीनू को कैसे होश में लाया जाए। उसके चेहरे पर पानी फेंका तो वह होश में आई और तुरंत रोने लगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। कॉलेज से ही मैं और मीनू पक्की सहेलियां बन गई थीं। इतनी प्यारी सी लड़की, शर्मीली बहुत। पानी पीते वक्त मिली थी वह। बाद में धीरे-धीरे घुली-मिली तो पता चला कि शुरू में शर्माती है, बाद में घुल-मिल जाती है। इतनी हंसमुख और चंचल निकली कि पूछो मत। खैर, इस बीच उसका कॉलेज के ही एक सीनियर लड़के पंकज से अफेयर चलने लगा था। वह मुझे पंकज ही हर बात बताती। ग्रैजुएशन के बाद पंकज फौज में भर्ती हो गया और मीनू ने बीएड करने लगी। मैं एमए करने के लिए शिमला चली आई।

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इस दौरान मीनू से फोन पर बात होती रही। वह बताती रही कि कैसे पंकज से उसकी बात होती रहती है और अब वह शादी के लिए कहने लगा है। मैंने उसे बताया कि अपने घर पर बात करे और किसी को बताए कि ऐसी-ऐसी बात है। कम से कम मां को ही बता दे। इस दौरान मीनू ने मुझे बताया कि उसकी मौसी का लड़का भी फौज में है और पंकज ने उससे दोस्ती कर ली है। दोनों का एक-दूसरे के यहां आना-जाना भी हो गया। मीनू मुझे बताती कि कैसे पंकज क्या-क्या गिफ्ट लेकर आता है। कभी महंगा सा फोन और उस फोन के टूट जाने पर और महंगा फोन, कभी ये कपड़े तो कभी वो कपड़े। मुझे बहुत खुशी होती। एक दिन मुझे मीनू ने फोन करके बताया कि उसकी शादी तय हो गई है। और अच्छी बात यह थी कि शादी भी पंकज के साथ ही तय हुई थी। मीनू ने अपनी मां को यह बात बताई थी और मीनू ने इस बारे में अपनी बहन (मीनू की मौसी, जिसका बेटा पंकज का दोस्त था) से बात की। फिर जब पता चला कि लड़के का व्यवहार अच्छा है तो मीनू के पापा को भी उन्होंने यह बात बताई।

मीनू के पापा ने एक-दो दिन तो जवाब नहीं दिया, मगर बाद में कहा कि ठीक है। बात करते हैं लड़के वालों से। फिर प्रक्रिया शुरू हुई। कुंडली मिलाई गई, लड़की वाले और लड़के वाले मिले। बात पक्की हुई। रिंग सेरिमनी हुई और शादी भी तय हो गई। तय डेट पर बारात आई होटेल में, सभी रस्में हंसते हुए निभाई गईं और शादी हो गई। मगर विदाई से ठीक पहले जो कोलाहल मचा था, वह हैरान कर देने वाला था। मेरे मन में कभी यह ख्याल नहीं आया कि इस शादी में जाति को लेकर भी कोई बात होगी। क्योंकि अमूमन जब आप शादी इस तरह से करते हैं तो मैंने देखा है कि लोग पूछताछ करते हैं, कुंडलियां मिलाते हैं, लड़के या लड़की के घरबार का पता करते हैं, फिर शादी होती है। और वैसे भी आजकल जाति को लेकर कौन इतना चिंतित होता है। खैर, मैं इसी उधेड़-बुन में लगी थी कि जानकारी मिली कि लड़की के रिश्तेदार विदाई करने के पक्ष में नहीं है।

हस्तक्षेप हुआ और काफी देर माहौल बना। बारातियों को बंधक भी बनाकर रखा गया और बाद में बारात को बिना दुल्हान के लौटा दिया गया। मुझे लग रहा था कि अगर जाति का चक्कर रहा भी होगा तो मीनू और उसके घरवालों को पता होगा और उन्होंने खुद अपने रिश्तेदारों से बात छिपाई होगी। उन्होंने सोचा होगा कि बेटी की खुशी के लिए एक बार शादी हो जाए फिर कौन पूछता है। पंकज का घर भी तो मीनू के घर से 30-40 किलोमीटर दूर है। मैं बड़ी दुखी थी। मैंने मीनू से पूछा कि क्या बात है। क्या तुझे पता था कि तुम दोनों की जातियां अलग हैं? मीनू ने मां की कसम खाते हुए कहा कि मुझे नहीं पता था कि उसकी असली जाति क्या है। मुझे तो यही लगता था कि वह भी जनरल होगा। वह खुद से बात-बात में बोलता था कि हम राजपूत ऐसे, हम राजपूत वैसे होते हैं। और अगर मुझे पता होता कि वह जनरल नहीं है, घरवाले तैयार नहीं होते तो मैं उससे भागकर शादी कर लेती। मेरे लिए उसकी जाति मायने नहीं रखती। मगर उसने झूठ क्यों बोला। छिपाने की क्या जरूरत थी। झूठ का सहारा क्यों लिया? क्या उसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मेरे मम्मी-पापा की कितनी बदनामी हो गई। मेरी जिंदगी ही तबाह हो गई। मैं कुछ कर बैठूंगी।

मैंने उसे बोला चुप रह, फिर पंकज का नंबर मांगा। पंकज को मैंने फोन किया तो उसने बोला कि अभी बात नहीं कर सकता। मैंने कहा कि मुझे जरूरी बात करनी है, तुम्हें बात करनी होगी, ये तुम दोनों के फ्यूचर का सवाल है। पंकज ने कहा आधे घंटे में मैं खुद फोन करता हूं।  एक डेढ़ घंटे बाद पंकज का फोन आया। मैंने उससे पूछा कि क्या हुआ। उसने मुझे कहा कि पता नहीं क्या गलतफहमी हुई है। मैं जनरल ही हूं। न मैंने कभी इस बात को लेकर झूठ बोला न कभी किसी से बात छिपाई। तुम्हें यकीन नहीं हो तो मेरे सारे सर्टिफिकेट देख लो। ऐसा होता तो मैं रिजर्वेशन का ही फायदा उठाकर कहीं और नौकरी कर रहा होता या आगे पढ़ रहा होता, तुम जानती हो कि मैं पढ़ने में अच्छा रहा हूं। मुझे ऐसा करने की जरूरत भी क्या है? मगर खैर, जब मीनू को ही मुझपे भरोसा नहीं। मेरे रिश्तेदारों को पीटा गया तो अब इस रिश्ते का कोई मतलब नहीं।

मैंने उससे कहा ठंडे दिमाग से काम लो। जो भी गलतफहमी है, वो दूर हो सकती है। रिश्तेदार बेवकूफी कर रहे हैं तो तुम दोनों को अपना दिमाग ठीक रखो। कुछ दिन में सब ठीक हो जाएगा। इस बीच मैंने अपने एक कॉमन फ्रेंड से बात की, जो मीनू और पंकज दोनों को जानता था। उससे मैंने कहानी पूछी। उसने मुझे जो बताया, उसे सोचकर मैं हैरान रह गई कि प्रदेश में जातिवाद की क्या स्थिति है।

दरअसल पंकज के दादा वगैरह मूलत: एक पिछड़ी जाति से संबंध रखते थे। 80 या 90 के दशक में हुई जनगणना के दौरान उन्होंने अपने आप को जनरल दिखाया। उनके जैसे कई परिवारों ने अपनी जाति जनरल दिखाई। बाद में ऐसा हुआ कि वे जनरल के दौर पर पंजीकृत हो गए, जबकि उनकी ही जाति के अन्य लोग पुरानी जाति के तौर पर ही पंजीकृत रहे। मगर आपस में सबका उठना-बैठना, बर्तन आदि बरकरार रहा। बाद में आरक्षण का फायदा उठाने से भी वे लोग वंचित रह गए, जिन्होंने खुद को जरनल कैटिगरी में रखवाया था। जातिवाद तो समाज में बरकरार है ही। ऐसे में भले ही वे कागजों में जनरल जाति में हों, पहले से जनरल जाति वाले लोग इन्हें स्वीकार नहीं करते। वे उन्हें उसी जाति के मानते हैं, जिससे वे मूलत: संबंध रखते थे। मगर आज जब खुद को जनरल के तौर पर रजिस्टर करवाने वाले परिवार अपने ही सर्कल में मूल जाति में पंजीकृत परिवारों में शादी करते हैं तो उन्हें अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए दी जाने वाली रकम मिलती है। खैर, यह अलग विषय है।

यहां पर ऐसा हुआ कि पंकज ऑन पेपर जनरल है। इसलिए अगर उसने मीनू से कहा कि वह जनरल है तो उसने सच ही कहा। कानून वह जनरल ही है। मगर चूंकि तथाकथित अगड़ी जातियों के लोग उनके परिवार को जातिवाद की मानसिकता के चलते $$$$$ मानते हैं, इसीलिए पंगा हुआ। दरअसल बारात के साथ गए टैक्सी वालों में कुछ अगड़ी जाति से भी थे। जब होटेल में सब खाना खा रहे थे तो उन्होंने अलग बैठकर खाना खाने की मांग कर दी। होटेल मालिक ने कहा कि बारात के साथ बैठकर खा लीजिए। इस पर किसी जातिवादी टैक्सी चालक ने कहा कि हम फ्लां जाति से हैं, हम इनके साथ बैठकर नहीं खाते। होटेल वाला और बड़ा जातिवादी। वह तुरंत लड़की के पिता के पास गया और बोला कि आपने कहां करवा दी लड़की की शादी, वे तो जाति से $$$$$ हैं।

इसके बाद ही सब बवाल शुरू हुआ था। यह घटना बड़ी दुखद है। सुनने में आया है कि गांव वालों ने मीनू के परिजनों का बहिष्कार कर दिया है। कानूनन तो वे इस तरह का ऐलान नहीं कर सकते, मगर उन्होंने मीनू के परिवार के बातचीत करना या उनके यहां आना-जाना बंद कर दिया है। घटना को 2 साल हो चुके हैं। इस बीच मैंने मीनू से बात करने की कोशिश की थी, मगर उसका फोन नंबर स्विच ऑफ आया। शायद बदल लिया है। पंकज से भी बात करने का कोई मतलब नहीं लगा। पता चला है कि अपने मम्मी-पापा के साथ ही गांव में रहती है। वह मीनू सब छोड़कर अपने पति के यहां जाने को तैयार है, मगर घरवाले इसके लिए तैयार नहीं।

मुझे इस घटनाक्रम ने इतना दुख पहुंचाया है कि इसका कोई हिसाब नहीं। शुरू में मुझे लगा कि पंकज गलत है, जिसने बात छिपाई। कभी मुझे लगा कि मीनू गलत है। पर अब मैं मानती हूं कि गलत सिर्फ हमारा समाज है। जो आज भी जातिवाद के चक्कर में फंसा हुआ है। लड़का सेटल है, लड़की पढ़ी-लिखी है, दोनों प्यार करते हैं, क्या इतना काफी नहीं है? उनकी जाति कहां आड़े आ जाती है? मेरी इतनी तमन्ना है कि मीनू और पंकज सब बातों को भुलाकर एक हो जाएं और उनके रिश्तेदार भी उन्हें स्वीकारें। क्योंकि परिवार दो लोगों का नहीं, दो परिवारों और दो समूहों का मेल होता है। उम्मीद है कि ऐसा ही उन दो बच्चों के साथ हो, जिनकी खबर कुछ दिन पहले पढ़ने को मिली थी। कभी-कभी सोचती हूं कि कब तक जातिवाद यूं ही समाज में जहर घोलता रहेगा?

(लेखिका निशा धीमान पुणे में सॉफ्टवेयर इंजिनियर हैं। इस कहानी के पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं।)

हॉरर एनकाउंटर: जब मेरे चाचा रात को चुपके से घर से निकलने लगे

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

  • श्रवण गुलेरिया

उन दिनों मैं बहुत छोटा था। शायद मेरी उम्र 7 साल थी। आज से 20 साल पहले की घटना है। सितंबर-अक्टूबर के दिन थे। धान की फसल काटने का काम चल रहा था। हमारे खेत घर से 3-4 किलोमीटर दूर हैं। दरअशल दादा जी अपनी जवानी के दिनों में ही पुश्तैनी जमीन को छोड़कर इस जगह पर आकर बस गए थे, जहां हम रह रहे थे। तो घर-परिवार के लोग पैदल खेतों तक जाते, वहां पर फसल काटते और ढेर लगाकर रख देते। वहीं पर बड़े से खेत में लगी फसल की रखवाली भी करनी पड़ती। इसकी ड्यूटी चाचा की लगती थी, जो उन दिनों कॉलेज में थे। दिन में वह कॉलेज जाते और रात को उन्हें वहीं पर बने अस्थायी मचान में रुकना होता।

खेत ज्यादा थे और अनाज भी काफी होता था। तीन दिन तक करीब चाचा को रात को वहां रुकना पड़ा। इस दौरान चाचा के व्यवहार में बदलाव सा आ गया। वह खाना कम खाने लगे, हंसते-खेलते रहा करते थे, मगर अचानक गंभीर हो गए थे। किसी से बात कम करते थे और हम बच्चो को अक्सर डांट दिया करते थे। सब लोग बड़े परेशान हुए उनके व्यवहार से। इस बीच 10-15 दिन बीते और देखने को मिला की चाचा दिन ब दिन कमजोर होते जा रहे हैं। 15 दिन के अंदर वह सूखकर आधे रह गए थे। बड़े-बुजुर्गों ने पूछा कि क्या कोई दिक्कत तो नहीं। मगर उन्होंने कहा कि ठीक हूं। डॉक्टर के पास जाने से भी इनकार कर दिया।

एक रात मेरी ताई रात को बाहर निकलीं तो उन्होंने देखा कि चाचा जूते पहनकर तैयार होकर कहीं निकल रहा है। उन दिनों घर में टॉइलट बन गया था, फिर कहीं और जाने का तो सवाल भी नहीं था। मगर ताई जी ने अंदर आकर ताऊ जी को बात बताई। ताऊ ने चाचा के कमरे में जाकर देखा तो वह वाकई वहां नहीं थे। सुबह उनके आने का इंतजार किया और जब वह आए तो पूछा कि कहां गए थे। चाचा ने बोला मॉर्निंग वॉक पर। मगर जब उन्हें बताया कि तुम्हारी भाभी ने तुम्हें तो रात को ही निकलते देखा था, इस पर चाचा ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

अगली रात ताऊ जी ने मेरे पापा के साथ मिलकर योजना बनाई कि देखें कि ये जाता कहां है। रात को फिर डेढ़ बजे के करीब चाचा अपने कमरे से निकला और जूते पहनकर निकल पड़ा। आगे-आगे चाचा और पीछे-पीछे पापा और ताऊ। चाचा हमारे उन्हीं खेतों की तरफ चल पड़ा, जहां पर रात को वह चौकीदारी किया करता था। उन खेतों से आगे चलकर एक नाला था, चाचा उस तरफ बढ़ चला। पीछे से छिपते-छिपाते हुए ताऊ और पापा भी जा रहा था। उन्होंने देखा कि चाचा नाले में उतर गया। वे लोग आगे गए तो अंधेरे में उन्हें समझ नहीं आया कि चाचा गया कहां नाले में। वे काफी देर वहां बैठकर देखते रहे, मगर कुछ नहीं दिखा। इस बीच सुबह हो गई और वे दोनों खाली हाथ घर की तरफ लौट पड़े। घर पर आकर उन्होंने देखा कि सीढ़ियों के पास चाचा के जूते खुले पड़े हैं। कमरे में जाकर उन्होंने देखा कि चाचा वहां पर सो रहा है। वे हैरान थे कि ये कब लौटा।

परिवार में चर्चा हुई कि कुछ तो गड़बड़ है। पहले शंका थी कि कहीं किसी से चक्कर न चल रहा हो या गलत संगति में पड़कर चोरी-चकारी न करने लगा हो, मगर नाले में जाना हैरान कर रहा था। किसी ने बताया कि कुछ तो चक्कर है, इसपर किसी ने कुछ कर दिया है। रिश्तेदारों में बात हुई तो किसी ने सलाह दी कि दूर के मंदिर वाले बाबा से पूछ ली जाए। बाबा ने पूछ देकर बताया कि उसे किसी चड़ेल (चुड़ैल) ने अपने बस में किया हुआ है और वह इसका फायदा उठा रही है। यह इसीलिए सूख रहा है धीरे-धीरे और ऐसा ही रहा तो महीने घर में मर भी सकता है।

घर वाले चिंता में थे। मेरे पापा को यकीन नहीं हुआ इन बातों पर वह बात करना चाहते थे चाचा से। मगर चाचा मुंह से कोई बात नहीं करता था और कुछ पूछने पर वहां से उठकर चल दिया करता था। इस बीच एक दिन पापा कहीं बाहर गए थे काम से, पीछे से ताऊ और पड़ोस के दो अंकलों ने चाचा को पकड़ा और जबरन बाबा के मंदिर ले गए। बाबा ने वहां झाड़फूंक की, मगर चाचा बोलता रहा कि छोड़ो, मुझे कुछ नहीं हुआ। लास्ट में बाबा ने कहा कि मेरे बस का नहीं, इसे किसी और के पास ले जाओ।

चाचा को वहां से छोड़ा गया, तो चाचा बहुत नाराज हुआ। चाचा ने बोला कि मुझे कुछ नहीं हुआ है और दोबारा ऐसा किया तो घर छोड़ दूंगा। सब परेशान थे। वापस आने पर पापा को पता चला कि ऐसा हुआ है तो वह बहुत नाराज हुए। उन्होंने चाचा से बात की और बोला कि कोई बात नहीं, दोबारा ये लोग ऐसा नहीं करेंगे। तू चल मेरे साथ, कोई टेस्ट वेस्ट करवा लेते हैं कि भूख क्यों नहीं लग रही, क्यों वेट लूज़ हो रहा है। चाचा को बोला पापा ने कि कल सुबह चलेंगे। उस वक्त चाचा ने कुछ नहीं कहा। रात को उनके कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था कि वह बाहर न निकले। मगर अगली सुबह लोग उठे तो चाचा के कमरे का दरवाजा खुला था वह वहां था ही नहीं।

सबने उन्हें ढूंढने की कोशिश की तो दोपहर तक पता चला कि वह खेतों में गिरा पड़ा है। पड़ोसियों को वहां पर गिरा नजर आया था। उसी जगह पर, जहां पर रात को पहरेदारी करता था। अब सबको कुछ लगा कि मामला गड़बड़ है। पापा ने भी ज्यादा बचाव करना छोड़ दिया था। इतने में चाचा को एक मंदिर (याद नहीं कौन सा) ले जाया गया, जहां की पुजारिन भूत-प्रेत उतारने में माहिर थी। मंदिरों पर मुझे तो नहीं ले जाते थे, मगर बाद में परिवार वालों से जो पता चला, उसी का जिक्र आपके साथ कर रहा हूं। तो वहां पर उस पुजारिन ने चाचा के ऊपर पानी फेंका और चाचा अजीब तरह से हंसने लगा। दोहरी सी आवाज। मानो पुरुष और स्त्री दोनों हंस रहे हों। पुजारिन ने उससे पूछा कि कौन है तू, क्या चाहता है।

इतने में चाचा ने बोला कि मैं तो मैं ही हूं, कोई नहीं है मेरे ऊपर। पर मुझे हंसी ये आ रही है कि तू ढोंग करती है पुजारिन होने की, तुझे तो पता ही नहीं है कि समस्या क्या है। तू भूत-प्रेत ढूंढ रही है मुझमें और मेरे अंदर कोई भूत नहीं है। और इलाज करना है तो मेरे घरवालों का कर, जिनका दिमाग खराब हो गया है। तू मेरी कोई मदद नहीं कर सकती, अपना और मेरा टाइम वेस्ट न कर।

पुजारिन ने 10 मिनट के लिए मौन साधा और फिर बोली- बेटा, बता तू क्या समस्या है तेरे को। समझ तो मैं गई हूं, मगर तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं। ये माता का दरबार है, यहां तेरेको कोई डर नहीं है। चाचा यह सुनकर रोने लगा औऱ बोला मैं नहीं बोल सकता, मेरे को कसम खिलाई है। अगर मैं कुछ बोलूंगा तो मेरे पूरे परिवार को खतरा है। पुजारिन ने फिर बोला कि यहां तुझे कोई खतरा नहीं है और न ही तेरे परिवार को कुछ होगा। तू बोल।

आधे घंटे की ऐसी ही बातचीत के बाद चाचा ने जो बुलाया, उसे सुनकर वहां मौजूद लोगों के रोंगटे खड़े गए हो गए। चाचा ने बताया-

‘पहली रात मैं पहरेदारी करने गया था। जैसे ही मैं सोया, मुझे मेरे नाम से किसी महिला ने पुकारा। पहले मैंने सोचा कि मेरा भ्रम है। तो मैं सो गया आराम से। रात को कोई समस्या नहीं हुई और मैं घर आ गया सुबह। अगली रात को फिर गया तो फिर मुझे किसी ने मेरे नाम से आवाज दी। मैं इधर-उधर देखा तो मुझे झाड़ियों के पास कोई महिला सी दिखाई दी खड़ी हुई। मैं खड़ा होकर ध्यान से उस तरफ देखता हूआ। कम से कम 30-40 फुट दूर आधे से चांद की चांदनी में वह महिला खड़ी हुई दिखाई दी। मैं उसे देखता रहा गौर से। वह भी इस तरफ देख रही थी। उशने कुछ नहीं कहा बस देख रही थी। चेहरा वगैरह नजर नहीं आ हा ता, मगर ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई पकड़े न पहने हों। मैं करीब डेढ़ मिनट तक ऐसे ही देखता रहा। फिर मुझे ध्यान आया कि पास ही कुल्हाड़ी पड़ी है। मैंने नजर घुमाकर कुल्हाड़ी उठाई और फिर उस दिशा में देखा तो वहां कोई नहीं था। मैं परेशान था कि मुझे भ्रम हुआ था कि मैंने कोई सपना देखा था। वो रात जैसे-तैसे बीती और मुझे सुबह लगा कि रात को कोई सपना ही देखा था।

तीसरी रात और आखिरी रात को मैं अपने साथ रेडियो ले गया था। रात को नींद नहीं आ रही थी पिछली रात की घटना को याद करके। रेडियो मैं जोर से बजा रहा था ताकि कोई आवाज भी लगाए तो मुझे सुनाई न दे। नई बैटरी डाली थी, मगर आधे घंटे बाद ही रात साढ़े 12 बजे रेडियो बजना बंद हो गया। अब मैं होशियार होकर बैठ गया। हाथ में कुल्हाड़ी ले ली और उस तरफ नजर डालने लगा, जहां पिछली रात एक महिला जैसा कुछ दिखा था। अचानक झाड़ियों में हरकत हुई औऱ वहां पर फिर वही महिला आई। और इस बार वो अचानक लगातार बढ़ती हुई मेरे पास आने लगी। मन किया कि कुल्हाड़ी का वार करूं, जोर से चीखूं मगर मैं चिल्ला नहीं पाया। मैं खड़ा रहा। वह महिला पास आती रही। उसने कुछ भी नहीं पहना हुआ था। जैसे ही वह वहां आई थी, ऐसी गंध आ रही थी हवा से जैसे कि मछलियों से आती है या खड्ड की जमी हुई काई से।

उसके बाद उसने मेरे साथ गलत काम किया। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया। और उसने मुझे बोला कि इस बारे में किसी को बताया तो मैं तेरे घर को आग लगा दूंगी और सारे परिवारवालों को मार दूंगी।’

चाचा ने ये बात रोते-रोते बताई। इसके बाद चाचा से पुजारिन ने पूछा कि तू क्यों जाता था बार-बार रात को। चाचा ने बोला कि जी वो रोज घर तक आती है मुझे लेने। मुझे उसकी आवाज सुनाई देती है कानों में और फिर खिड़की से बाहर दिखती है वो। वो आगे-आगे चलती हैौ और मैं उसके पीछे-पीछे। फिर मुझे ले जाती है वो अपने साथ नाल में। दरवाजा बंद किया हो घरवालों ने तो वह भी खुल जाता है। मैं किसी को कुछ बता नहीं पाया क्योंकि मैंने देखा है उसकी ताकत कितनी है। वह हवा में उड़ती हुई जाती है और हवां में उड़ती आती है। पानी से बीच से ले जाकर अंदर उसकी गुफा है, जहां पर उसने बहुत सारा सामान रखा हुआ है।

सांकेतिक तस्वीर।
सांकेतिक तस्वीर।

पुजारिन ने इसके बाद मोरपंखे से कुछ मंत्र फूंककर झाफा मारा और चाचा को एक ताबीज पहनने को दिया औऱ बोला कि जब तक इसे पहनेगा, तुझे कुछ नहीं होगा। वो चुड़ैल तेरा कुछ नहीं कर पाएगी। साथ ही मेरे ताऊ जी को पोटली में कुछ दिया और बोला कि इसे गांव के चारों कोनों में दबा दो। ताऊ जी ने उसी दिन लौटकर वह काम किया और गांव के चार कोनों में वो चीजें दबाईं, जो पुजारिन ने दी थी। चाचा ने ताबीज (जंतर) पहना और बैठे रहे। उस रात को करीब 1 बजे हम सबने गांव से दूर बाहर किसी महिला के चीखने की आवाजें सुनीं। सब घरवाले उठे थे, तो मैंने भी वे अजीब सी आवाजें सुनी थीं। अगली सुबह गांववालों ने भी वे चीखें सुनीं थीं, जैसे महिला जोर-जोर से रो रही हो। उसी रात हमारे धान के कुंदलू (धान की फसल का बनाया गया ढेर) में अपने आप आग लग गई और सारी फसल तबाह हो गई।

यह सिलसिला आने वाली 7 रातों तक चलता रहा। मेरे चाचा की भूख खुल गई थी और नॉर्मल होकर बात करने लगे थे। इतने में पुजारिन के पास फिर जाकर बताया गया कि ऐसे गांव से बाहर आवाजें आती हैं। पुजारिन ने कहा कि दिवाली तक रुक जाओ। दिवाली वाली रात बस ख्याल रखना कि ये (मेरा चाचा) कहीं अकेला न जाए बाहर। दिवाली वाली रात चाचा को घर के सब सदस्यों ने चूल्हे के पास बिठाया हुआ था। अचानक उनके पेट में दर्द शुरू हो गया। इतना दर्द हुआ कि उन्हें अस्पताल ले जाने की नौबत आ गई। उन्हें पड़ोसी की जीप में बिठाकर जैसे ही अस्पताल ले जाने लगे, हमारे घर के छप्पर में अचानक आग लग गई। शुक्र मनाओ कि परिवार वाले घर से बाहर निकलकर आंगन में पहुंचे हुए थे चाचा को अस्पताल ले जाने की वजह से। अचानक छत से आग लगी और पूरा घर आग की चपेट में आ गया। कुछ लोग चाचा को अस्पताल ले गए और पड़ोसी वगैरह आग को बुझाने लग गए।

अस्पताल जाते ही चाचा को खून की उल्टियां हुईं और पता चला कि उन्हें पेट में अल्सर हो गए हैं। उनका लंबा इलाज चला और फिर ठीक हो गए। इस बीच गांव में कभी भी वे आवाजें नहीं सुनाई दीं। घर जला और बहुत सारी चीजें जलीं, मगर ऊपर वाले की कृपा से सबकुछ ठीक हो गया बाद में। परिवार इस हानि से उबर गया और आज संपन्न हालत में है। चाचा एक राष्ट्रीयकृत बैंक में मैनेजर हैं और परिवार के साथ सुखी हैं। हम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रहे हैं।

पता नहीं वह घटनाक्रम क्या था, मगर बचपन में अपने सामने देखा है तो रोमांचित करता ही है।

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लेखक ने नाम वगैरह बदलने की गुजारिश तो नहीं की थी, मगर उनके चाचा की पहचान उजागर न हो, इसलिए हमने नाम वगैरह बदल दिए हैं।

मनी लॉन्ड्रिंग केस: ED ने प्रतिभा सिंह से पूछताछ के लिए बनाई तीन पन्नों की प्रश्नावली

नई दिल्ली।। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह से पूछताछ के लिए 3 पन्नों के प्रश्नावली तैयार की है। इसमें 32 सवाल हो सकते हैं। वह 9-10 अगस्त को ईडी के सामने पेश हो सकती हैं।

ईडी का केस सीबीआई की एफआईआर पर आधारित है, जिसमें वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी को 6.03 करोड़ रुपये के संपत्ति गलत तरीके से उस दौरान अर्जित करने का आरोप है, जब वह यूपीए सरकार में केंद्रीय इस्पात मंत्री थे। इंग्लिश अखबार इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जब इस बारे में प्रतिभा सिंह और वीरभद्र सिंह से टिप्पणी लेनी चाही तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। इससे पहले वीरभद्र सिंह इन आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित बताते रहे हैं।

प्रतिभा सिंह।
प्रतिभा सिंह।

इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक ईडी के सूत्र बताते हैं कि वे इन्वेस्टमेंट और परिवार के आय के स्रोतों के बारे में प्रतिभा सिंह से पूछताछ करना चाहते हैं। यह भी पूछा जाएगा उन्हें साउथ दिल्ली के फार्म हाउस के बारे में कहां से जानकारी मिली, जिसमें उन्होंने इन्वेस्ट किया। यह भी पूछा जाएगा कि वकामुल्ला चंद्रशेखर की तारिणी इन्फ्रास्ट्रक्चर्स से उनकी असोसिएशन के बारे में भी सवाल पूछे जाएंगे।

आरोप है कि वीरभद्र ने एलआईसी पॉलिसीज़ में ऐसी रकम अपने, अपनी पत्नी और बच्चों के नाम पर इन्वेस्ट की, जो कहां से आई, इसका हिसाब नहीं है। उन्होंने यह रकम बागवानी से हुई आमदानी के तौर पर दिखाई और आनंद चौहान नाम के एजेंट के जरिए इसे एलआईसी में इन्वेस्ट किया।

दबंग विधायक की पत्नी के ट्रक पर ऐक्शन लेने वाले ईमानदार पुलिस अफसर का तबादला

सोलन।। आपके सोलन जिले की दून विधानसभा के कांग्रेस विधायक राम कुमार चौधरी याद हैं? पंचकुला के बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड में राम कुमार ने कथित तौर पर पुलिस के सामने हत्या की बात कबूली थी। वह जेल में भी रहे मगर सितंबर 2014 में कोर्ट ने 12 आरोपियों समेत उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि विधायक और अन्य पर लगे आरोपों को पुलिस साबित नहीं कर पाई, इसलिए उन्हें बरी किया जाता है। उस मामले में क्या हुआ, क्या नहीं; इसे लेकर कई बातें कही जाती हैं। अब कोर्ट का आदेश आने के बाद अब टिप्पणी तो नहीं की जा सकती, मगर वही विधायक एक बार फिर चर्चा में हैं।

राम कुमार चौधरी।

यह बात छिपी नहीं है कि प्रदेश के इंडस्ट्रियल एरिया बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ में लंबे समय से अवैध खनन चल रहा है और इसे राजनेताओं की शह मिली हुई है। सोमवार देर रात पुलिस ने एक बैरियर पर एक टिप्पर को रोका। उसमें खनन सामग्री थी। जब इसके कागजात मांगे गए थे तो ट्रक वह नहीं दे पाया। इस पर ऐक्शन लेते हुए पुलिस ने नियमानुसार 40 हजार रुपये का चालान काटा और परिवहन विभाग ने ओवरलोडिंग के लिए 21,020 रुपये अलग से फाइन किया।

यह ऐसी कार्रवाई थी, जिसके लिए पुलिस की तारीफ होनी चाहिए थी, क्योंकि यह वाकई अच्छा काम था। मगर इस घटना के तीन दिन के अंदर ही एएसपी गौरव सिंह का तबादला कर दिया। इसलिए, क्योंकि जिस ट्रक का चालान किया गया, वह दून के विधायक राम कुमार की पत्नी कुलदीप कौर का था।

एएसपी गौरव सिंह।

 

File Photo

युवा और तेज-तर्रार एएसपी गौरव सिंह ने खनन माफिया की नाक में दम कर दिया है। पिछले 6 महीनों से अवैध खनन करके प्रदेश को नुकसान पहुंचा रहे कारोबारियों पर उन्होंने नकेल कसी है। अब तक इस तरह के 170 मामले सामने आ चुके हैं और 25 लाख रुपये का जुर्माना वसूला जा चुका है। इसके बावजूद उनके ट्रांसफर के लिए विधायक राम कुमार ने 3 डीओ भेजे हैं। भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक जब तीन डीओ भेजने के बावजूद एएसपी गौरव सिंह का तबादला नहीं हुआ तो वह मुख्यमंत्री से मिले और बताया कि गौरव सिंह सिर्फ कांग्रेसियों पर कार्रवाई कर रहे हैं, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर जाकर भी कार्रवाई कर रहे हैं और इससे मेरे इलाके में विकास कार्य रुक गए हैं।

अब इसके बाद प्रधान गृह सचिवकी तरफ से जारी ऑर्डर में गौरव सिंह को अब एसडीपीओ बद्दी से ट्रांसफर करके एएसपी धर्मशाला बना दिया गया है। सोशल मीडिया पर इस फैसले की आलोचना हो रही है। लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा है। मुख्यमंत्री भी इस मामले में बैकफुट पर नजर आ रहे हैं, क्योंकि राम कुमार चौधरी से उनकी मुलाकात के बाद ही यह तबादला हुआ है। संभव है कि विधानसभा में भी यह मामला गूंजे, मगर सोशल मीडिया पर सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी साफ देखी जा रही है।

डीएसएपी महेंद्र सिंह मिन्हास का भी हुआ था ट्रांसफर
यह इस तरह का पहला मामला नहीं है। नूरपुर के एमएलए अजय महाजन की सिफािरश पर वहां के डीएसपी महेंद्र सिंह मिन्हास का तबादला सेकंड बटालियन सकोह कर दिया गया था। अभी तो प्रदेश ट्रिब्यूनल ने इसपर स्टे लगाकर रिपोर्ट मांगी है, मगर उन्हें वहां से रिलीव कर दिया गया है। मिन्हास ने खनन और ड्रग्स माफिया की रीढ़ तोड़ दी थी। डीएसपी महेंद्र सिंह मिन्हास का तबादला करीब 11 महीने पहले नूरपुर हुअा था।

पंजाब से लगे नूरपुर क्षेत्र में एनडीपीएस और खनन का धंधा चरम पर है। भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक महेंद्र सिंह ने 11 महीने के छोटे से कार्यकाल में एनडीपीएस के 100 केस बनाए। एसडीपीओ रहते हुए महेंद्र ने 125 चरस तस्करों को गिरफ्तार किया। 20.27 लाख रुपए की ड्रग्स पकड़ी। कुछ माह पूर्व उन्होंने 3200 नशे के कैप्सूल पकड़े थे। डीएसपी महेंद्र सिंह ने 400 के करीब माइनिंग के केस पकड़े। इससे सरकार को लाखों का राजस्व मिला। चरस और खनन माफिया के खिलाफ की गई डीएसपी महेंद्र सिंह मिन्हास की कार्रवाई से वहां का चरस और खनन माफिया की कमर टूट चुकी थी। उसके बाद खनन और चरस माफिया ने उन्हें हटाने के लिए पहले कई शिकायतें करवाई और बाद में उनका तबादल ही करवा दिया।

सफाई कर्मचारी होने में क्या बुराई है मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जी?

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  • आई.एस. ठाकुर

गुरुवार को बीजेपी को लेकर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अजीब टिप्पणी की। बीजेपी द्वारा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल पर चार्जशीट तैयार करने की  बात पर मुख्यमंत्री ने कहा कि ये गंदगी उठाने वाले लोग हैं, यही काम करेंगे। इन्हें चाहिए कि म्यूनिसिपल कमेटी में नौकरी के लिए दरख्वास्त दें। मुख्यमंत्री ने किस हिसाब से यह बात कही, यह समझ से परे है। मगर उनकी न मिसाल न सिर्फ अप्रासंगिक, बल्कि खराब भी है।

मन में मुख्यमंत्री जी के लिए कुछ सवाल उमड़ रहे हैं। पहला तो यह कि गंदगी उठाने के काम में और सफाई कर्मचारियों के काम में ऐसा क्या बुरा है, जो आप अपने राजनीतिक विरोधियों पर भड़ास निकालने के लिए उन्हें सफाई कर्मचारी गंदगी उठाने वाला बता रहे हैं? क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ये काम बुरे हैं और राजनीतिक विरोधियों का स्तर इन कामों लायक ही है? मुख्यमंत्री जी, अगर ऐसा है तो मुझे शर्म आती है आपकी सोच पर। यह दिखाता है कि आप कितना भी आधुनिक और विकसित मानसिकता वाला शख्स होने का दावा करें, आपकी सोच सामंतवादी है। ऐसी सोच, जो समाज में लोगों की पहचान उनके काम से करती है।

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यह बात छिपी नहीं है कि हमारे समाज की मानसिकता कैसी है। हम आज भी जातिवाद और वर्ण व्यवस्था से जूझ रहे हैं। लगातार कोशिश की जा रही है कि लोगों के मन से यह भेदभाव खत्म हो। किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति या उसके काम के आधार पर जज न किया जाए। एक अध्यापक का काम जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही महत्वपूर्ण काम एक सफाई कर्मचारी का है। भूमिकाएं और काम की प्रकृति बेशक अलग हैं, मगर उनके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। मैं सम्मान करता हूं उन सफाई कर्मचारियों और गंदगी उठाने वाले कर्मचारियों का, जिनकी वजह से जनता स्वस्थ रहती है।

मैं खुद यहां आयरलैंड में कम्यूनिटी सर्विस वॉलंटियर हूं और महीने में दो-तीन बार काम से वक्त निकालकर विभिन्न जगहों पर सैनिटेशन और अन्य सफाई काम में योगदान देता रहता हूं। इस काम में हमारे साथ डॉक्टर, प्रफेसर, ऐडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर और न जाने-जाने किन-किन पदों पर बैठे अधिकारी साथ होते हैं। उनके मन में कभी यह विचार नहीं आया कि कैसे यह काम किया जाए। उन्हें सफाई करने और कुछ खराब जगहों को साफ करने में शर्म महसूस नहीं होती और न ही यहां का समाज किसी को इस दृष्टि से देखता है। मेरे से नीचे वाले अपार्टमेंट में रहने वाले वाले मिस्टर मार्क क्लीनिंग जॉब में हैं और उनकी पत्नी लिंडा वकील। उन दोनों के बीच कभी उनका काम आड़े नहीं आया। और यहां किसी को फर्क भी नहीं पड़ता कि कौन क्या काम करता है। लोगों को यहां उनकी फैमिली बैकग्राउंड या पेशे से नहीं बल्कि उनके व्यवहार और व्यक्तित्व से आंका जाता है। क्या यह अच्छी बात नहीं है? क्या इस अच्छी बात को हमें अपनाना नहीं चाहिए?

जिस दौर में एक नेता की जिम्मेदारी बनती है कि वह सामाजिक भेदभाव को खत्म करने की कोशिश करे, उस दौर में उसका इस तरह की टिप्पणी करना दुखद है। यह बात छिपी नहीं है कि जातिगत भेदभाव अभी भी इतना है कि सफाई कर्मचारियों वाले खाली पदों के लिए कभी भी सवर्ण जातियों के लोग आवेदन नहीं करते, क्योंकि उन्हें ये काम अपने हिसाब से ठीक नहीं लगते। उन्हें लगता है कि इससे मान घट जाएगा। मगर जो लोग इस महत्वपूर्ण काम को कर रहे हैं, मुख्यमंत्री का यह बयान उनपर आघात है। भले ही यह जुबान फिसली हो या कुछ और हुआ हो, इतने जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसी बात भूलकर भी न करनी चाहिए। अगर आप समाज को जोड़ने के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते तो कम से कम इसे तोड़ने की बातें न करें। और अगर आपको पता नहीं चलता कि कहां क्या कहना है, क्या नहीं; कृपया रिटायरमेंट लेकर घर पर बैठें। अब तक की आपकी सेवाओं के लिए धन्यवाद, अब अपनी सेवा करवाएं। राजनीति में बने रहने की अपनी जिद के चक्कर में प्रदेश और समाज को नुकसान न पहुंचाएं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में रहते हैं। हिमाचल प्रदेश से जुड़े मसलों पर लिखते रहते हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

DISCLAIMER: यह लेखक के अपने विचार हैं, इन हिमाचल इनके लिए उत्तरदायी नहीं है।

जानें, क्या है GST और आपके ऊपर क्या फर्क पड़ेगा इसका

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  • इन हिमाचल डेस्क

गुड्स ऐंड सर्विसेस टैक्स (GST) बिल पर लंबे समय से खींचतान चल रही थी। आखिरकार बुधवार को यह बिल राज्यसभा में पेश होने जा रहा है। इस बिल की नींव 16 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने रखी थी। इस बिल के आने से क्या होगा, क्यों अधिकतर पार्टियां इसके समर्थन में हैं और हमारी जिंदगी पर इसका क्या असर पड़ेगा, इसे समझने के लिए हमारे द्वारा जुटाई गई जानकारी को ध्यान से पढ़ें:

जीएसटी कानून बनने से अब तक जो 30 से 35% टैक्स दिया जाता है, वह घटकर 17 से 18% रह जाएगा। ऐसा नहीं है कि इसके फायदे ही हैं, कुछ मामले में जेब पर खर्च बढ़ सकता है। जीएसटी दर 18% होने की चर्चा के आधार पर यह जानकारी दी गई है। जानिए:

क्या होगा सस्ता?
लेन-देन पर वैट और सर्विस टैक्स नहीं
– घर खरीदने या ऐसे लेन-देन, जिसमें वैट और सर्विस टैक्स दोनों लगते हैं, सस्ते हो जाएंगे।

कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सस्ते हो जाएंगे
फ्रिज, एयरकंडीशनर, माइक्रोवेव अवन, वॉशिंग मशीन्स वगैरह सस्ते हो जाएंगे। अभी 12.5% एक्साइज और 14.5% वैट लगता है। जीएसटी के बाद मात्र 18% टैक्स लगेगा।

रेस्तरां का बिल भी कम होगा

भी तक हर राज्यों अलग वैट के ऊपर 6 पर्सेंट सर्विस टैक्स (बिल के 40% हिस्से पर 15%)दोनों लगते हैं। मगर जीएसटी के तहत एक ही टैक्स लगेगा।

माल ढुलाई सस्ती होगी
माल ढुलाई 20% सस्ती हो जाएगी। फायदा आम लोगों से लेकर लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री तक को मिलेगा।

इंडस्ट्री को ज्यादा फायदा
जीएसटी के बाद इंडस्ट्रीज़ को करीब 18 टैक्स नहीं भरने होंगे। टैक्स भरने की प्रक्रिया आसान होगी।

क्या होगा महंगा?
डिब्बाबंद फूड प्रॉडक्ट 12% तक महंगे होंगे
चाय-कॉफी जैसे प्रॉडक्ट्स पर अभी ड्यूटी नहीं लगती, मगर अब ये 12% महंगे हो सकते हैं।

सर्विसेस भी महंगी होंगी
मोबाइल बिल, क्रेडिट कार्ड का बिल या फिर ऐसी अन्य सेवाएं सब महंगी होंगी। अभी सर्विसेस पर 15% टैक्स (14% सर्विस टैक्स, 0.5% स्वच्छ भारत सेस, 0.5% कृषि कल्याण सेस) लगता है। जीएसटी होने पर ये 18% हो सकता है।

जेम्स ऐंड जूलरी
जेम्स ऐंड जूलरी महंगी हो सकती है। इस पर अभी 3% ड्यूटी लगती है। रेडिमेड गारमेंट भी महंगे हो सकते हैं, क्योंकि अभी इन पर 4-5% का स्टेट वैट लगता है। जीएसटी में इन पर कम से कम 12% टैक्स लगेगा।

डिस्काउंट पर एमआरपी का टैक्स
अभी डिस्काउंट के बाद की कीमत पर टैक्स लगता है, मगर जीएसटी में एमआरपी पर टैक्स लगेगा। कंपनी 10000 रुपए का सामान हमें 5000 रुपए में देती है तो अभी 600 रुपए टैक्स लगता है, मगर जीएसटी के बाद 1200 रुपए टैक्स लगेगा।

1. क्या होगा जीएसटी से?
– जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स। इसे केंद्र और राज्यों के 20 से ज्यादा इनडायरेक्ट टैक्स के बदले लगाया जा रहा है। जीएसटी के बाद एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी, स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम, वैट/सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन कर, ऑक्ट्रॉय एंड एंट्री टैक्स, लग्जरी जैसे टैक्स खत्म होंगे।

2. इसके बाद सिर्फ एक टैक्स होगा?
नहीं। जीएसटी में ही 3 तरह के टैक्स होंगे।
– सीजीएसटी यानी सेंट्रल जीएसटी: इसे केंद्र सरकार वसूलेगी।
– एसजीएसटी यानी स्टेट जीएसटी: इसे राज्य सरकार वसूलेगी।
– आईजीएसटी यानी इंटिग्रेटेड जीएसटी: अगर कोई कारोबार दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर यह टैक्स लगेगा। इसे केंद्र सरकार वसूलकर दोनों राज्यों में बराबर बांट देगी।

3. इससे आम लोगों को क्या फायदा?
– टैक्सों का जाल और रेट कम होगा:अभी हम अलग-अलग सामान पर 30 से 35% टैक्स देते हैं। जीएसटी में 17 या 18% टैक्स लगेगा।
– एक देश, एक टैक्स:सभी राज्यों में सभी सामान एक कीमत पर मिलेगा। अभी एक ही चीज दो राज्यों में अलग-अलग दाम पर बिकती है, क्योंकि राज्य अपने हिसाब से टैक्स लगाते हैं।

4. तो क्या अब ज्यादा पैसे बच सकेंगे?
– शुरू के 3 साल महंगाई बढ़ेगी। मलेशिया में 2015 में जीएसटी आने के बाद से महंगाई दर 2.5% तक बढ़ी है। अभी रोजमर्रा की सर्विसेस पर 15% सर्विस टैक्स देते हैं। अब 18% होगी। यानी 3% महंगाई बढ़ेगी। पेट्रोल-डीजल-गैस जीएसटी में नहीं होंगे।

5. अभी हम 30-35% टैक्स चुकाते हैं। जीएसटी 18% होने पर सरकार को नुकसान नहीं होगा?
– नहीं। चीफ इकनॉमिक अडवाइजर अरविंद सुब्रमणियन की समिति ने 17-18% रेवेन्यू न्यूट्रल रेट की सिफारिश की है। यानी इस पर सरकार का रेवेन्यू न बढ़ेगा, न घटेगा।
– इसकी दो वजहें हैं। पहली, बहुत सी चीजों पर अभी कम टैक्स लगता है, वह बढ़ जाएगा। दूसरी, बहुत से कारोबारी सेल्स कम दिखाते हैं। जीएसटी में हर लेन-देन की ऑनलाइन एंट्री होगी। इससे चोरी मुश्किल हो जाएगी।

जानें, अचानक बाढ़ में फंस जाएं तो कैसे बचें

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इन हिमाचल डेस्क।।
जून, 2014 में ब्यास नदी में हैदराबाद के इंजिनियरिंग कॉलेज के छात्रों के बहने का मामला अभी लोगों के जहन में ताजा है। उस घटना के बाद भी कई हादसे हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश घूमने के लिए आने वाले बाहरी पर्यटक अक्सर चेतावनियों को नजरअंदाज करके नदी किनारे सेल्फी खींचने जा रहे हैं। भले ही किसी डैम से पानी न छोड़ा जा रहा हो, मगर दूर कहीं बादल फटने की वजह से भी अचानक जलस्तर बढ़ सकता है और बिना चेतावनी के सैलाब आ सकता है। इस स्थिति में कोई भी नदी में फंसा हो तो उसका बह जाना तय है। मगर कुछ लोगों का समूह अगर किसी जगह पर अचानक बढ़े जलस्तर में ऐसे ही फंस जाए तो बचने का क्या तरीका है?

बड़ी नदियों का जलस्तर इतना होता है कि उसके सामने किसी का भी ठहरना संभव नहीं। कई बार पानी के साथ-साथ कीचड़, दलदल या चट्टानें भी बह रही होती हैं, जिससे आपके पांव उखड़ने लगते हैं। पानी सिर के ऊफर से भी बह जाए तब भी बचने का चांस नहीं। मगर अगर पानी के स्तर में थोड़ी-बहुत बढ़ोतरी हो, तो आप अगर ग्रुप में हों तो बचने की कोशिश कर सकते हैं। इसके लिए आपको सभी लोगों को एक के पीछे एक खड़े होना होगा, वह भी जलधारा की तरफ मुंह करके। यानी जिस तरफ से पानी आ रहा हो, उस तरफ को सबसे पतले या छोटे शख्स को सबसे आगे खड़ा करें, उसके बाद उससे बड़े या मोटे शख्स और फिर इसी क्रम में खड़े हों। या फिर आप किसी ताकतवर शख्स को भी आगे खड़े कर सकते हैं। आपके हाथ आगे वाले शख्स के कंधे पर होने चाहिए और आगे की तरफ जोर लगना चाहिए।

संभव है कि कुछ मिनटों बाद आप थक जाएं और बाद में ढीले पड़ जाने पर बह जाएं। मगर फिर भी कुछ मिनटों में आपके बचने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। हो सकता है आसपास के लोग आपको रेस्क्यू करने का कोई तरीका ढूंढ निकालें। यह भी हो सकता है कि जलस्तर कम हो जाए। या फिर आप इसी फॉर्मेशन को बनाए हुए धीरे-धीरे किनारे या सुरक्षित जगह की तरफ बढ़ सकते हैं। ध्यान रहे सभी के मूवमेंट का क्रम एकसमान हो।

यह काम कैसे करना है, इसके लिए यह कोरियन विडियो देखें, जिसमें समझाया गया है कि कैसे बचा जा सकता है। फिर भी हमारी सलाह है कि नदियों में न उतरें।

‘उस 13 साल के बच्चे में वह बला की ताकत कहां से आई?’

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें।

  • सुनील कुमार 

बात उन दिनों की है, जब मैं ***** #### विद्यालय में पढ़ता था। यह बोर्डिंग स्कूल था और यहां हिमाचल और बाहर के राज्यों के बच्चे पढ़ने आते थे। घर से दूर हम सब बच्चों का पहला अनुभव होता था। हॉस्टल में रहना और पढ़ना लगभग सभी बच्चों के लिए कष्ट भरा था। मैं तो 9वीं क्लास में हो गया था, मगर देखता था कि 6वीं क्लास में जो नए बच्चे आते, बेचारे सुबकते रहते घरवालों की याद में। उससे अपनी भी याद ताजा हो जाती।

खैर, हम जो सीनियर बच्चे थे, गर्मियों के दिनों में स्कूल की चाहरदिवारी को फांदकर चुपके से नहाने चले जाते थे बगल वाली खड्ड में और फिर चुपके से आ जाते। हमारा गिरोह ऐसा होता था कि सब एक-दूसरे को कवरअप करते थे। टीचर्स, वॉर्डन तो क्या किसी भी कर्मचारी को पता नहीं चलता कि हम ऐसा करते हैं। खैर, अब अहसास होता है कि उस वक्त कितना गलत करते थे। मगर उन दिनों तो रोमांच ही अलग था।

एक दिन ऐसे ही हम 7-8 लड़के गए और तैरने लगे। उसूल था कि जिसे तैराना आता है, वही चलेगा साथ। एक आध घंटा हम तैरे और लौटने लगे। रास्ते में एक आवारा सांड़ खड़ा था। हमारे बीच से एक लड़के पंकज को जाने क्या सूझी कि वह उस सांड़ को लात मारने लगा। सांड़ ने गुस्से में उसे एक दो बार धकेला, मगर पंकज बार-बार सांड़ को कभी लात मारे, कभी उसकी पूंछ मरोड़े कभी पत्थर। हमने उसे बोला कि क्या कर रहा है।

पंकज 8वीं मे ंपढ़ता था। एकदम सुकड़ू और शरीफ। मगर आज न जाने क्या मस्ती सूझी थी। खैर, हमारे एक क्लास सीनियर (10वीं में पढ़ने वाले) ने उसे एक थप्पड़ मारा और खींचकर बोला चल, क्या कर रहा है। पंकज ने उसे घूरना शुरू कर दिया। अकड़ में रहने वाले सीनियर ने भी तैश में आकर पंकज को फिर से मारना चाहा कि घूर क्यों रहा है, मगर हमने बीच-बचाव कर दिया।

खैर, हम आ गए स्कूल और नॉर्मल होकर बिजी हो गए। रात को खाना खाने के बाद सब अपने-अपने बिस्तर पर थे कि बाथरूम से शोर आने लगा। हम सब बच्चे वहां दौड़े तो देखा कि पंकज उसी सीनियर को पीट रहा है, जिसने दिन में उसे थप्पड़ मारा था। पंकज एकदम सुकड़ूू, 8वीं का बच्चा और जिसे उसने गिराया था, वह उससे लगभग दोगुना हट्टा-कट्टा दसवीं का लड़का। पंकज उसकी छाती पर सवार था और घूंसे मारे जा रहा था।

देखा कि 3-4 लड़के पंकज को खींच रहे हैं मगर वह उनसे काबू नहीं आ रहा। वॉर्डन भी दौड़ा-दौड़ा आया और उसने बोला कि क्या हो रहा है। पंकज माना नहीं। वॉर्डन, हम 4-5 और लड़कों ने पंकज को पकड़ा, मगर वह ढंग से संपर्क में नहीं आ रहा था। उसकी आंखें लाल थीं। वह गुर्राता हुआ बोल रहा था- सुरेश को मारेगा…. सुरेश को मारेगा…. भैं*** मां***

पंकज ऐसी-ऐसी गालियां निकाल रहा था कि हम चौंक गए थे। एक तो हममें से वैसी गालियां कोई किसी को नहीं देता था और पंकज तो किसी को कभी ऊंची आवाज में नहीं बोलता था। वॉर्डन, चौकीदार और एक अन्य टीचर वहां आ गए थे। उन्होंने कहा कि पता नहीं क्या हुआ है, अस्पताल ले चलो। चौकीदार बोला कि जी पहले हनुमान जी के मंदिर (जो कैंपस में ही बने मंदिर में था) के पास ले चलो इसे।

आप यकीन न करें चौकीदार, वॉर्डन और टीचर ने उसे हाथ-पैरों से उठाया हुआ था, मगर उन्हें भी पसीना आ रहा था। जैसे-तैसे वे उसे मंदिर में ले गए। वहां फूल फेंके उसके ऊपर और शायद एक आध फूल खिलाया भी था। पंकज ठीक हो गया और नॉर्मल सांस लेने लगा। उसकी आंखें भी सामान्य सी हो गई थीं। उसे पानी पिलाया गया। उससे पूछा कि क्या हुआ था। बोला पता नहीं सिर में दर्द हो रहा था।

उसे वापस हॉस्टल लाया गया और पूरी रात वैसे ही हम लोगों की चर्चा करते हुए कटी। अगले ही दिन मॉर्निंग असेंबली में फिर वही सीन। अचानक पंकज चिल्लाने लगा और पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। पीटीआई सर ने उसे पकड़ा। सब टीचर्स आ गए। उसकी आंखें फिर से खून की तरह लाल। प्रिंसिपल हैरान, बच्चे डरे हुए। लड़कियां रोने लग गई थीं और कुछ लड़के भी।

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संस्कृत के अध्यापक, जो कि पार्ट टाइम पुजारी भी हुआ करते थे, कुछ मंत्र पढ़े और पंकज के सिर पर हाथ फेरा। पंकज हंसा और बोला- सुरेश नाम है मेरा, पंकज किले बोल रहे हो। किसी को नहीं छोड़ूंगा मैं। यह सुनकर सब परेशान। थोड़ी देर में पंकज को एक टीचर के स्कूटर पर बिठाकर अस्पताल ले जाया गया। वहां भी वह ऐसी ही हरकतें करे। वह कांगड़ा से था, इसलिए उसके पैरंट्स को फोन कर दिया गया। उसके पैरंट्स अगले दिन आए और उसे ले गए।

एक हफ्ते बाद उसके पैरंट्स आए। उन्होंने उसके क्लासमेट्स और होस्टलमेट्स से पूछना शुरू किया कि वे कहां-कहां गए थे। किसी ने बता दिया डरकर कि ये लोग नहाने जाते थे छिप-छिपकर। प्रिंसिपल के सामने हम सभी की क्लास लगी। हमें पूछा गया कि कैसे जाते हो। हम सभी 15-16 बच्चों के माता-पिता को बताया गया। वॉर्निंग मिली। इस बीच यह बात आसपास के गांवों में भी फैल गई थी।

हमें बाद में पता चला कि बगल के गांव में कुछ साल पहले एक बारात आई थी, जिसमें आया 19 साल का लड़का सुरेश उसी आल (ताल) में डूबकर मर गया था, जहां हम नहाने जाते थे। यह बात गांव के कुछ ही लोगों को पता थी कि उसका नाम सुरेश है। और हम हॉस्टल वालों को पता भी कैसे चलती? फिर पंकज अगर किसी तरह के हिस्टीरिया या वहम की बात होती, वह सुरेश नाम कैसे बोलता अपना? और फिर उसमें इतनी ताकत कहां से आई।

हम बच्चे तब तक डरे रहे, जब तक स्कूल से पास नहीं हो गए। खैर, नहाने के लिए तालाब मे ंजाना छोड़ो, रात को ग्राउंड तक में नहीं निकले उस दिन के बाद। मैं स्कूल का नाम नहीं बताना चाह रहा, ताकि किसी तरह से बच्चे इस पोस्ट को पढ़ें और किसी तरह का वहम बनाएं। मेरा नाम भी बदल दें कृपया।

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(लेखक जिला ऊना से हैं, इन दिनों चंडीगढ़ में अपना बिजनस कर रहे हैं। उनका और उनके स्कूल का नाम छिपा या बदल दिया गया है। आप भी अपनी आपबीती हमें inhimachal.in@gmail.com या हमारे फेसबुक पेज पर भेज सकते हैं।)