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संजीव शर्मा: कर्मचारी राजनीति में ‘व्यवस्था परिवर्तन’ करता कर्मचारी नेता

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देवेंद्र।। सचिवालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने कर्मचारियों की मांगें को लेकर सरकार पर हल्ला बोल कर सरकार की इस गलतफहमी को दूर कर दिया कि प्रदेश के कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर मुखर नहीं होंगे। शायद लंबे अर्से बाद कोई ऐसा कर्मचारी नेता सामने आया जिसने प्रदेश के कर्मचारियों की दबी पीड़ा को जुबान दी। पिछले कई वर्षों से कर्मचारी व शिक्षकों के कई संगठन बने हुए हैं लेकिन सभी जानते हैं ये कर्मचारी नेता जिन शिक्षकों व कर्मचारियों के बलबूते संगठनों की बागडोर संभालते हैं अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए उनके हितों की बलि दे देते हैं। कोई इनसे समस्या उठाता है तो समाधान करने की बजाए उल्टा उन्हें हडका डरा कर चुप करा देते हैं। पिछले कुछेक समय में तो इतनी गंदी राजनीति हो गयी है कि यदि कोई सोशल मीडिया पर अपनी मांगों के बारे में लिख दे या आलोचना कर दे तो ये तरह-तरह के हथकंडे अपना कर उनपर दबाव बनाते हैं।

शिक्षक नेताओं का तो कहना ही क्या खुद निदेशालय, उप-निदेशक कार्यालय, या यहां-वहां डेपुटेशन लेकर खुद सत्ता का सुख भोगते हैं जबकि प्रदेश में सैंकड़ों शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं। लेकिन मजाल है ये शिक्षक नेता शिक्षकों की समस्याओं के बारे में आवाज़ उठाएं। सरकार ने आते ही ट्रांसफर के नाम पर clubbing नामक जिन्न से चुन-चुन कर शिक्षकों की ट्रांसफरे की, अच्छा होता सबकी की होती परंतु चहेतों की दो-तीन किलोमीटर के भीतर म्यूचुअल ट्रांसफर की और कईयों पर राजनीतिक टैग लगाकर उन्हें उठा दिया जबकि भूल गए इस सरकार को लाने में कर्मचारियों व शिक्षकों का कितना बड़ा हाथ था फिर भी शिक्षकों को clubbing के नाम पर निशाना बनाया गया। अच्छा होता सरकार सभी के लिए बदला नीति की बजाए तबादला नीति बनाती फिर कोई भी होता उसके साथ भेदभाव नहीं होना था।

बेरोजगार पिछले दो वर्षों से सरकार से नौकरियों की आस में टकटकी लगाए बैठे हैं। लेकिन उनके पास संजीव शर्मा जैसा कोई नुमाइंदा नहीं फिर भी जिस तरह संजीव शर्मा ने सरकार की कार्यप्रणाली की परत दर परत पोल खोली उससे उन्हें भी लगा कि कोई तो है बेरोजगारी का दर्द समझने वाला।
यह आक्रोश केवल सचिवालय कर्मचारियों का नहीं यह आक्रोश वह है जो हर कर्मचारी में कहीं न कहीं एक लावे के रूप में धधक रहा था पर डर के मारे ज्वालामुखी नहीं बन पा रहा था।
सचिवालय कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने जिस बेबाकी और निडरता से इस आक्रोश को भांपा और कर्मचारियों के लिए न्याय की आवाज़ उठायी उसके लिए प्रदेश का हर कर्मचारी अंतर्मन से उनका अहसानमंद हो गया। उनकी कही बातें उनकी कोई निजी खुन्नस नहीं थी यह तो कर्मचारियों की आवाज़ व पीड़ा थी जिसे उनके चेहरे के रूप में एक मंच मिला। सबसे बड़ी बात शायद प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी कर्मचारी ने सरकार की फिजूलखर्ची की पोल खोलकर रख दी जबकि यह काम विपक्ष का था जिसमें विपक्ष नाकामयाब रहा, विपक्ष ने शायद एक ही मन बनाया होगा कि सत्र के दौरान वाक आऊट करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेंगे। पहले 26 जनवरी फिर 15 अप्रैल और अब 15 अगस्त को मंहगाई भत्ते की घोषणा न होने से कर्मचारी इतने आक्रोशित हो जाएंगे सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

कर्मचारियों की मुख्य मांग है मंहगाई भत्ता व पे कमीशन का एरियर्स केंद्र सरकार के कर्मचारी लगभग 50% डीए ले रहे हैं इसी तरह प्रदेश में यह 38% है मतलब 12% की तीन किश्तें पेंडिंग हैं। जब सेवा नियमों में भत्ता मिलना जरूरी है तो सरकार मात्र यह कह कर अपना पल्ला नहीं छुडा सकती कि हमारे पास वित्तीय संसाधन नहीं। प्रश्न यह भी है कि केवल कर्मचारियों व बेरोजगारों के लिए ही वित्तीय संसाधन नहीं? रही सही कसर सरकार के काबीना मंत्री राजेश धर्माणी ने कर्मचारियों के विरुद्ध बयानबाजी करके पूरी कर दी वे भूल गए कि भाजपा शासन में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के एक ब्यान ने उन्हें सत्ता से बाहर करने का काम कर दिया था।

सरकार व्यवस्था परिवर्तन की बात करती आयी परंतु किसी ने सोचा तक नहीं था कर्मचारी राजनीति में संजीव शर्मा नामक कर्मचारी नेता इतनी बेबाकी व तथ्यों से अपनी बात रख कर्मचारी राजनीति में भी व्यवस्था परिवर्तन कर देगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे Writerdevender@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)

 

ब्यास में मिला कुल्लू से लापता 21 वर्षीय लड़की का शव, दो गिरफ्तार

कुल्लू।। मनाली में सात अगस्त से लापता 21 साल की एक लड़की का शव ब्यास नदी के किनारे मिला है। पर्सिलिया डेनियल नाम की यह लड़की खखनाल में रहती थी और दोस्तों से मिलने ओल्ड मनाली गई थी।

लड़के के पिता स्विट्ज़रलैंड से और मां कुल्लू से हैं। जब बेटी घर नहीं लौटी तो पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी।

अब क़रीब एक हफ्ते बाद युवती का थव 15 मील में मनाली-कुल्लू हाइवे के पास मिला है। पुलिस ने इस मामले में दो युवकों को गिरफ्ता किया है। इनमें से एक निशांत उर्फ नीलू (20 साल) कुल्लू का रहने वाला है और दूसरा अर्चित (26) पंडोह का रहने वाला है।

कुल्लू के एसपी कार्तिकेयन गोकुलचंद्रन ने बताया कि लड़की सात अगस्त को दोस्तों से मिलने निकली मगर लापता हो गई। ट्रिब्यून की खबर के अनुसार, एसपी ने बताया कि बाद में पता चला कि वो एक अभियुक्त के साथ एक होटल में रुकी थी।

शुरुआती जांच बताती है कि होटल के कमरे में लड़की बेहोश हो गई। इसके बाद अभियुक्त ने उसे मरा हुआ मानकर गााड़ी में बिठाया और नदी में फेंक दिया।

एसपी का कहना है कि कॉल रिकॉर्ड्स के आधार पर पुलिस ने संदिग्धों को गिरफ्तार किया है।

जरूरतमंदों की सुविधाएं छीनना ही सुक्खू सरकार का व्यवस्था परिवर्तन: जयराम ठाकुर

शिमला।। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा है कि कांग्रेस सरकार को प्रदेश के आम लोगों को दी गई उन सुविधाओं को छीनने का काम बंद करना चाहिए, जो सुविधाएं पिछली बीजेपी सरकार ने दी थीं।

बयान जारी कर जयराम ठाकुर ने कहा है कि कांग्रेस सरकार ने 2022 के विधानसभा चुनाव के समय दी गई गारंटियों को तो पूरा नहीं किया, मगर अब पिछली सरकार की दी गई सुविधाओं को छीन रही है।

उन्होंने कहा, “क्या व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर प्रदेश का रेवेन्यू बढ़ाने की बात करने के पीछे क्या मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू की यही योजना थी? क्या इस तरह से प्रदेश का राजस्व बढ़ेगा?”

ठाकुर ने कहा कि सहारा पेंशन योजना के तहत चलने फिरने में असमर्थ दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन को रोकना और मरीजों से इलाज करवाने का अधिकार वापस लेना बेहद शर्मनाक है। क्या सरकार की जरूरतमंद लोगों के लिए कोई जिम्मेदारी नहीं है? अगर सरकार को राजस्व ही बढ़ाना है तो उसे वित्तीय बोझ घटाकर शुरुआत करनी चाहिए।

नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू के कार्यकाल को किसी भी सरकार के सबसे खराब कार्यकाल के तौर पर याद रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि इस सरकार ने विकास कार्य भी नहीं किए। ठाकुर ने कांग्रेस सरकार की डेढ़ साल के कार्यकाल में 30 हजार करोड़ का कर्ज लेने के लिए भी आलोचना की।

2000 इलेक्ट्रिक बसें खरीद रही है HRTC, हटाई जाएंगी सभी डीज़ल बसें: सीएम सुक्खू

शिमला।। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एलान किया है कि हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) के लिए और इलेक्ट्रिक बसें खरीदकर इसे ग्रीन ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम बनाया जाएगा।

सीएम ने एचआरटीसी की बैठक के बाद कहा कि इलेक्ट्रिक बसें खरीदने के लिए 327 करोड़ रुपये दे दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि 2000 अतिरिक्त टाइप टू ई-बसें खरीदने की प्रक्रिया जारी है।

अभी एचआरटीसी के पास 110 इलेक्ट्रिक बसें और 50 इलेक्ट्रिक टैक्सियां मौजूद हैं। सीएम ने कहा कि सारी डीजल बसों को चरणबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिस बसों से बदल दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि एचआटीसी को मुनाफे में लाने के लिए भी ठोस योजना पर काम चल रहा है।

उपमुख्यमंत्री और परिवहन मंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि एचआरटीसी हिमाचल की मुश्किलों भरी भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद भरोसेमंदर परिवहन सेवाएं दे रही है। उन्होंने कहा कि एचआरटीसी के कर्मचारी और पेंशनरों को अब समय पर वेतन और पेंशन मिलना शुरू हो गया है।

उन्होंने कहा कि अब यह महीने की पहली तारीख को दिया जा रहा है, जबकि बीजेपी सरकार के दौरान उन्हें आठ से दस दिन का इंतजार करना पड़ता था।

कंगना रणौत बोलीं- जांच हो, कहां गए पिछले साल केंद्र से आए 1800 करोड़

शिमला।। मंडी की सांसद कंगना रणौत ने प्रदेश सरकार पर बीते साल आपदा के लिए केंद्र से आई राहत सामग्री के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए इसकी जांच की मांग की है। उन्होंने दावा किया कि केंद्र सरकार ने हिमाचल को 1800 करोड़ रुपये दिए थे।

कंगना ने आरोप लगाया कि केंद्र से मिली राशि से प्रभावित परिवारों को सात लाख रुपये की राहत राशि देने में भी प्रदेश की सुक्खू सरकार विफल रही।

हालांकि, कांग्रेस सरकार ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए कंगना रणौत पर आपदा के समय ओछी राजनीति करने का आरोप लगाया है।

शिमला के रामपुर में समेज गांव का दौरा करने के बाद कंगना ने कहा कि लोगों को केंद्र सरकार से हर संभव मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी इसके लिए स्पेशल पैकेज की घोषणा करेंगे, जैसा पिछले साल 1800 करोड़ रुपये का पैकेज दिया था।

मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार (मीडिया) नरेश चौहान ने कंगना के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सवाल किया है कि वह सांसद हैं, ऐसे में केंद्र से वे कागजात लेकर आएं, जिनमें इतनी राशि बीते साल की आपदा के लिए केंद्र ने दी हो।

शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने भी कंगना के बयान को संवेदनहीन बताते हुए कहा कि यह समय राजनीतिक छींटाकशी का नहीं, बल्कि मिलकर काम करने का है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार प्रभावित इलाक़ों और परिवारों में राहत कार्यो पूरी शिद्दत से चला रही है और लोगों को किसी तरह की कमी नहीं रहेगी।

सैलरी न मिलने पर भड़के कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कर्मचारी

पालमपुर।। सीएसके हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पामलपुर के नॉन टीचिग स्टाफ ने शुक्रवार को मुख्य गेट के पास धरना दिया। ये कर्मचारी वक्त पर वेतन न मिलने से नाराज थे। नॉन टीचिंग स्टाफ एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव शर्मा ने बताया कि पांच जुलाई तक उन्हें सैलरी नहीं है, ऐसे में कर्मचारियों को दिक्कत हो रही है।

धरना दे रहे कर्मचारियों ने वाइस चांसलर के प्रति गुस्सा जताया। इनका कहना था कि वेतन मिलने की तारीख के आधार पर ही लोन या अन्य किश्तें चुकानी होती हैं और अगर इसमें देरी हो जाए तो सारा गणित गड़बड़ाने से न सिर्फ मानसिक परेशानी होती है, बल्कि कई बार वित्तीय नुकसान भी उठाना पड़ता है।

कर्मचारियों की एसोसिएशन के अध्यक्ष ने पत्रकारों को बताया कि मामला फाइनैंल कंट्रोलर की वजह से अटका है क्योंकि सरकार को ग्रांट इन एड की फाइल ही समय पर नहीं भेजी गई। इस वजह से यूनिवर्सिटी के सेवारत और सेवानिवृत कर्मचारियों को वेतन और पेंशन समय पर नहीं मिल पाई।

कर्मचामरियों का आरोप है कि कृषि मंत्री चंद्र कुमार का मानना है कि यूनिवर्सिटी को खुद से आमदनी पैदा करनी चाहिए, जबकि ऐसा संभव ही नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस तरह प्रदेश सरकार स्कूलों और कॉलेजों के लिए फंड जारी करती है, उसी तरह उसके हायर एजुकेशन महकमे के तहत आने वाली यूनिवर्सिटीज़ को भी फंड दिया जाना चाहिए।

कर्मचारियों का कहना है कि उनके वेतन आदि के लिए फंड का प्रबंध करना सरकार का काम है। उनकी मांग है कि कर्मचारियों को एक तारीख को वेतन दिया जाए वरना वे प्रदर्शन करेंगे।

एचआरटीसी के 107 रूट प्राइवेट बसों को सौंपने की तैयारी

शिमला।। एचआरटीसी 107 रूटों का निजीकरण करने जा रही है। इन रूटों पर बस चलाने के लिए प्रदेश भर से 87 आवेदन आए हैं और अब लॉटरी के माध्यम से आवंटन किए जाने की योजना है।

दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, इनमें से कई रूट फायदे वाले भी हैं, लेकिेन एचआरटीसी उन्हें चलाने में खुद को सक्षम नहीं मान रही है। इसिलए उन्हें निजी बस ऑपरेटरों को सौंपने की तैयारी है। इस संबंध में एचआरटीसी ने परिवहन विभाग को प्रस्ताव सौंपा है।

इस समय निगम को हर महीने 65 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है। प्रदेश के 3700 रूटों पर करीब 3300 बसें चल रही हैं। हाल ही में प्रदेश सरकार ने नई वॉल्वो और अन्य बसें खरीदने को मंजूरी भी दी है।

बैजनाथ के पूर्व विधायक की मां को सरकारी जमीन आवंटित करने में पाई गई खामियां

बैजनाथ।। प्रमुख सरकारी भूमि के आवंटन से संबंधित एक मामले में  उपायुक्त कांगड़ा ने चकोटा प्रणाली के तहत पूर्व विधायक मुलख राज प्रेमी की मां को जमीन आवंटित करने में खामियां पाई हैं। ये खामियां प्रक्रिया से जुड़ी हैं और दस्तावेज़ भी पर्याप्त नहीं पाए गए हैं।

उपायुक्त ने वीरेंद्र जमवाल नाम के याचिकाकर्ता की ओर से जनहित में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बातें पाईं।याचिकाकर्ता ने पूर्ववर्ती उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) और तहसीलदार द्वारा जारी उन आदेशों को चुनौती दी थी, जिनके तहत पूर्व विधायक की माता को को मूल्यवान सरकारी भूमि आवंटित की गई थी।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि इस भूमि का उपयोग सरकार द्वारा सार्वजनिक कल्याण गतिविधियों या बुनियादी ढांचे के विकास के लिए किया जा सकता था। याचिकाकर्ता वीरेंदर जमवाल की ओर से पेश एडवोकेट प्रणव घाबरू ने बताया कि यह आवंटन बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए और अधूरे व अपर्याप्त दस्तावेजों के आधार पर किया गया था।

उपायुक्त ने मामले की समीक्षा के बाद याचिकाकर्ता के तर्क से सहमति जताई और प्रक्रियात्मक अनियमितताओं की पहचान की। अपने आदेश में, उपायुक्त ने मामले को पुनः निर्णय के लिए वापस भेजने का फैसला किया है। उन्होंने एसडीओ सिविल बैजनाथ को मामले को सही तरीके से संभालने और सभी प्रक्रियाओं का सावधानीपूर्वक पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। इस कदम का उद्देश्य प्रक्रियात्मक कमियों को ठीक करना और मुद्दे का निष्पक्ष और पारदर्शी समाधान सुनिश्चित करना है।

मिसाल बन सकता है यह मामला
उपायुक्त का यह निर्णय समान मामलों के लिए एक मिसाल बनने की उम्मीद है, जो कानूनी प्रक्रियाओं और संपूर्ण दस्तावेजों के महत्व को उजागर करता है, विशेष रूप से मूल्यवान सरकारी भूमि से संबंधित मामलों में। यह मामला अब जनता और अधिकारियों द्वारा बारीकी से देखा जाएगा, क्योंकि इसका क्षेत्र में भूमि आवंटन प्रथाओं और सार्वजनिक कल्याण पहलों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।

जैसे ही मामला पुनः निर्णय के लिए एसडीओ सिविल बैजनाथ के पास वापस जाएगा, सभी की नजरें परिणाम और भविष्य में ऐसी प्रक्रियात्मक कमियों को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर होंगी।

पुणे में पोर्शे कार से दो लोगों को रौंदने वाले लड़के के पिता गिरफ्तार

पुणे।। महाराष्ट्र के पुणे में दो लोगों की जान लेने वाले घातक कार हादसे में शामिल रहे 17 साल के लड़के के पिता को पुणे पुलिस ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद से गिरफ्तार कर लिया है। Pune Porsche accident के नाम से पूरे देश में इस हादसे की चर्चा है।

ये हादसा सोमवार सुबह पुणे के कल्याणी नगर इलाके में हुआ था। पॉर्शे कार को 17 साल का एक लड़का चला रहा था। पुलिस का कहना है कि ये कार एक मोटरसाइकल से टकराई और अनीस अवधिया और अश्वनी कोस्टा की मौके पर ही मौत हो गई।

अब इस मामले को पुणे पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपा जा रहा है। पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने बताया कि नाबालिग लड़का 12वीं का रिजल्ट आने पर स्थानीय पब में जश्न मना रहा था, जहां उसे क्रैश से पहले शराब पीते हुए देखा गया था। महाराष्ट्र में शराब पीने की कानूनी उम्र 25 साल है। ऐसे में जिस पब ने उसे शराप परोसी, वो भी अवैध काम कर रहा था। ऐसे में उनके ऊपर भी मामला दर्ज होगा।

घटना के बाद लोगों में गुस्सा देखा गया। खासकर तब, जब जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने 15 घंटों के अंदर ही लड़के को ज़मानत दे दी। बोर्ड ने काउंसलिंग, शराब मुक्ति और रोड सेफ्टी पर 300 शब्दों का निबंध लिखने जैसी हल्की व्यवस्थाएं दीं। हादसे में दो लोगों की जान जाने के बाद इतनी हल्की प्रतिक्रिया से लोगों में भारी गुस्सा था।

पुणे पुलिस ने सेशन कोर्ट में इस नाबालिग को वयस्क मानने की याचिका दायर करते हुए जमानत का विरोध किया है। इस बीच पुलिस ने लड़के के पिता को भी हिरासत में लिया है जो एक नामी बिल्डर हैं। उनके खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस ऐक्ट की धारा 75 और 77 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

कंगना रनौत और विक्रमादित्य सिंह: न एक गंभीर, न दूजा सयाना

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीटों के छह विधानसभा सीटों पर भी चुनाव हो रहा है। पहले तो चर्चा इस बात पर हो रही थी कि छह विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कौन जीतेगा और कांग्रेस की सरकार को खतरा बना रहेगा या टल जाएगा। लेकिन मंडी लोकसभा सीट पर कंगना रनौत और विक्रमादित्य सिंह के मैदान में उतरने के बाद चर्चा के केंद्र में यह सीट ज्यादा आ गई है।

हिमाचल में लोकसभा के चुनाव कभी मुद्दों के आधार पर नहीं लड़े गए। कम से कम स्थानीय मुद्दों के आधार पर तो बिल्कुल नहीं। इस बार भी वैसा ही है। एक ओर कंगना रनौत हैं जो लंबे समय से चुनावी राजनीति में आना चाहती थीं। एक दौर वह भी था जब उनके कांग्रेस के करीब होने की भी चर्चाएं थीं। उनके परदादा कांग्रेस के नेता थे और उनके पिता भी कांग्रेस में पदाधिकारी रह चुके हैं। लेकिन उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा पूरी हो रही है बीजेपी के साथ।

जब अचानक बढ़ी बीजेपी से करीबी

जिसके प्रति उनका अनुराग उसी दौर में अचानक बढ़ गया था, जब बॉलिवुड के कई अभिनेता राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर सुर्खियां और अपनी फिल्मों के लिए दर्शक बटोरने लग गए थे। यह दौर 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिले भारी बहुमत के बाद अपने चरम पर पहुंच गया था।

उस समय कंगना ने खुलकर ट्विटर (जो आजकल x बन चुका है) पर ऐसे बयान देना शुरू कर दिया जो या तो बीजेपी की हिंदुत्व की विचारधारा से मेल खाते थे या फिर उन्हें एक राष्ट्रवादी के रूप में पेश करते थे। फिर महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार के साथ विवाद के बाद वह खुलकर बीजेपी के करीब आ गईं और बीजेपी जो उनसे दूरी बनाकर चल रही थी, उसने भी खुलकर कंगना का साथ देना शुरू कर दिया था।

यह कोई संयोग नहीं था कि उस दौर में हिमाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कंगना को हिमाचल की बेटी बताते हुए पूरे प्रदेश में रैलियों और प्रदर्शनों का आयोजन कर दिया था। ऐसा किसी केंद्रीय नेता की सहमति के बिना होना मुश्किल है क्योंकि हिमाचल में बीजेपी तो अपने दम पर स्वत: संज्ञान लेकर उन मुद्दों पर भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस तक नहीं करती, जो प्रदेश के लिए अहमियत रखते हैं।

परिधान पर ध्यान, समाधान पर नहीं

अब बीजेपी ने कंगना को टिकट दे दिया है और वह अपने चुनाव क्षेत्र का दौरा कर रही हैं। इस दौरान वह अलग-अलग क्षेत्रों के स्थानीय परिधानों में नजर आ रही हैं। शायद उनकी कोशिश होगी कि इससे वह लोगों के कनेक्ट कर पाएंगी। लेकिन उनके भाषण को सुनें तो उसमें कोई भी बात ऐसी नहीं लगती, जिससे लगे कि वह लोगों से कनेक्ट कर पा रही हैं। होना यह चाहिए कि वह भरमौर जाएं तो वहां की समस्याओं के बारे में दो शब्द कहें। पांगी जाएं तो वहां की जरूरतों पर बात करें। आनी आएं तो वहां के चार चीज़ों के बारे में दो बातें कहें।

इससे लोगों को लगता है कि इसे तो हमारे बारे में कुछ पता है। जितना ध्यान वह परिधान पर दे रही हैं, उतना ही अगर समस्याओं और उसके समाधान पर बात करने पर दें तो बेहतर होगा। लेकिन कंगना को यह बात उनके साथ चल रहे वरिष्ठ नेताओं की फौज तक नहीं समझा पा रही। यह दिखाता है कि कंगना को चुनाव लड़वाने का फैसला निस्संदेह ऊपर से ही लिया गया था और ऊपर से लिए गए फैसले और वहां से भेजे गए शख्स के आगे प्रदेश का कोई नेता कैसे कुछ बोल सकता है? पार्टियों की यही परंपरा तो रही है।

इसके विपरीत कंगना जो कुछ कह रही हैं, उससे स्विंग वोटर्स.. यानी वो वोटर जो हर चुनाव में परिस्थिति, मुद्दों या उम्मीदवार के आधार पर वोट देते हैं, किसी पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता के आधार पर नहीं, वो वोटर्स चिढ़ रहे हैं। हल्के और छिछले बयान समझदार वोटरों को परेशान करते हैं। और कुछ के बीच यह अवधारणा बनती जा रही है कि इससे बेहतर तो वही विक्रमादित्य सिंह हैं, जिन्होंने पिछले कुछ समय में राजनीतिक अपरिपक्वता और अधीरता के अनंत उदाहरण पेश कर दिए हैं।

विक्रमादित्य- कुछ चतुराई, कुछ अपरिपक्वता

विक्रमादित्य सिंह में कुछ चतुराई वाले गुण तो हैं। जैसे कि उन्होंने भी उसी दौर में जय श्री राम के नारे को खुलकर अपनाना शुरू कर दिया, जब से कंगना का झुकाव अचानक बीजेपी की ओर बढ़ गया था। विक्रमादित्य ने देखा कि हिमाचल में भी एक बड़ा वर्ग मोदी-बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे से प्रभावित है। ऐसे में उनकी पोस्ट्स में वह जय श्रीराम नारा अचानक दिखने लगा, जो पहले नहीं दिखता था।

फिर उनका केंद्र के साथ तालमेल होने की बार-बार बातें करना, पार्टी लाइन से अलग जाकर बीजेपी के मुद्दों को यह कहते हुए समर्थन देना कि वह सही को सही और गलत को गलत कहते हैं, वास्तव में उसी वोटर को अपनी ओर करना था, जो बीजेपी के एजेंडे से अभिभूत है। और पिछले कई महीनों की मेहनत रंग भी ला रही है। हिमाचल में जो वर्ग बिना गुण-दोषों की विवेचना किए बस नरेंद्र मोदी और बीजेपी का समर्थन करता है, वही विक्रमादित्य की भी तारीफ करता है। इससे एक कदम आगे जाकर विक्रमादित्य ने पिछले दिनों आरएसएस और वीएचपी के करीबी बताना शुरू किया क्योंकि उन्हें लगता है कि कंगना के बीफ वाले बयान पर नाराज हिंदुओं को इस तरीके से साधा जा सकता है।

भले ही विक्रमादित्य पिछले एक दशक में राजनीतिक रूप से गंभीर हुए हों, लेकिन कुछ मौकों पर उनके कदम दिखाते हैं उनके अंदर राजनीतिक अपरिपक्वता बनी हुई है। जैसे कि मंचों पर भाषण देते हुए बहक जाना और ऐसा कह देना जिससे अपना या पार्टी का नुकसान हो जाए। बड़बोलेपन में ऐसी बातें कह देना, जिनका कोई सिर-पैर न हो। हाल की बात करें तो जैसे कंगना पर खुद ही निजी हमले करना, खान-पान पर सवाल उठाना, फिर सामने से भी वैसे उत्तर मिलने पर मर्यादाओं की बात करना।

सुक्खू पर हमलों का इतिहास

राजनीतिक अपरिपक्वता का एक सबसे बड़ा उदाहरण उनका वह बयान भी था, जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि सुक्कू कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री वही बनेगा, जो विधायक होगा। उस पर विक्रमादित्य सिंह ने कह दिया था- He is not competent enough to talk on these matters. यानी वह इस विषय पर बात करने की योग्यता नहीं रखते। भले विक्रमादित्य सिंह के सुक्खू के प्रति ऐसे विचार हों, लेकिन ऐसी बातें सार्वजनिक तौर पर कहना उन्हें मुश्किल में डाल गया। सुक्खू सीएम बन गए और विक्रमादित्य को उन्हीं के नेतृत्व में काम करना पड़ा। और यह बात राजनीतिक गलियारों में हर कोई जानता है कि मंत्री बनाने के बावजूद सुक्खू ने ऐसी घेराबंदी कर दी कि पीडब्ल्यूडी महकमे में सारे अहम फैसले सीएम की मंजूरी के बिना हो ही नहीं पा रहे थे।

फिर जब राज्यसभा चुनाव में छह कांग्रेसी विधायक बागी हो गए और ऐसा संकट पैदा हो गया कि सरकार कभी भी गिर सकती है, तो उसी दौरान विक्रमादित्य ने अनदेखी का आरोप लगा इस्तीफा दे दिया। तब राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि शायद विक्रमादित्य ने हड़बड़ी में यह फैसला ले लिया कि सरकार गिरने वाली है और कहीं मैं कांग्रेस में ही न रह जाऊं। और फिर संकट टला तो विक्रमादित्य मान भी गए और सुक्खू की तारीफों के पुल बांधते आए।

कई मामलों में पर बार बार उनके पलटने से उनकी छवि यूटर्न लेने वाले नेता की भी बन गई है। जेओएआईटी वाले अभ्यर्थियों के किए गए वादे और फिर उससे हटना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। वास्तव में वह कुछ मामलों पर क्लियर स्टैंड न लेकर गोल-मोल बातें करते हैं। ऐसी बातों को भले एक आम व्यक्ति न समझ पाता हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश समझदार मतदाताओं का राज्य माना जाता है। वे मतदाता इस अस्पष्टता को भांप जाते हैं। इसीलिए कई राजनीतिक विश्लेषक यह कयास भी लगाते हैं कि शायद विक्रमादित्य लंबी रेस का घोड़ा साबित न हो पाएं।

नवीनता का अभाव

मंडी लोकसभा चुनाव के दौरान वह कहते हैं कि मुद्दों पर बात करेंगे। लेकिन उनका विज़न ही विज़नहीन नजर आता है। जैसे कि स्मार्ट सिटी से मंडी सिटी के लिए फंड लाना। चलिए मान लिया कि कांग्रेस की सरकार बनने पर वे फंड ले भी आएंगे, तो भी उनका वादा है कि ब्यास के किनारे रिवर फ्रंट बनेगा। रिवर फ्रंट विकसित करना हो तो जगह चाहिए होती है। मंडी के पास से ब्यास एक महाखड्ड यानी खड़ी घाटी से गुजरती है और किनारों तक निर्माण हुए पड़े हैं। फिर नदी के अंदर घुसकर रिवर फ्रंट कैसे बनाया जा सकता है?

वह भुभुजोत सुरंग की बात करते हैं जिसकी बात कई दशकों से हो रही है और आज तक नहीं बन पाई और शायद जिसकी अब जरूरत भी नहीं फोरलेन बन जाने के बाद। और फिर बतौर युवा एंव खेल मंत्री (लंबे समय तक महकमा उनके पास रहा) और लोकनिर्माण मंत्री उनकी उपलब्धियां क्या हैं, वह गिनाने में असफल रहे हैं। वह जिन सड़कों के निर्माण या टारिंग आदि की बात कर रहे हैं, या भविष्य के लिए मंजूर परियोजनाओं की बात कर रहे हैं, वे रूटीन काम हैं। शायद उनके पास एक अच्छी टीम और सलाहकारों की कमी है।

इसके विपरीत वह कंगना पर सवाल उठाते हैं कि आपदा के समय वह कहां थीं। यह प्रश्न तो एक हद तक वाजिब हो सकता है कि अगर आप प्रतिनिधित्व करना चाहती थीं इस इलाके का और आप सक्षम थीं (आर्थिक रूप से) तो आपको एक दिन के लिए ही सही, उस सरकाघाट या मनाली तो आना चाहिए था जहां आपदा की सबसे ज्यादा मार पड़ी। हां, अगर आपको अनिच्छा से किसी पार्टी ने जबरन टिकट देकर भेज दिया हो, तो अलग बात है। लेकिन इस मामले में तो ऐसा नहीं हुआ।

पूर्वग्रहों से घिरा नेतृत्व

लेकिन कांग्रेस के कई नेता यह कह रहे हैं कि कंगना अभिनेत्री हैं, उनका राजनीति में क्या काम। विक्रमादित्य ही नहीं, सुदंर सिंह ठाकुर, कौल सिंह ठाकुर और यहां तक सीएम सुक्खू और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री तक ये बातें कर चुके हैं। उनकी ये बातें हैरान कर सकती हैं। अगर एक पत्रकार (अग्निहोत्री) आगे चलकर राजनीति में आने के बाद डेप्युटी सीएम बन सकता है या दूध बेचने से शुरुआत कर (सुक्खू) कोई सीएम बन सकता है तो कोई अभिनय की दुनिया से आकर सफल और अच्छा राजनेता क्यों नहीं बन सकता? या आप यह कहना चाहते हैं कि राजनीतिक परिवार से आने वाले व्यक्ति की योग्यता ज्यादा होती है? अगर ऐसा है तो सीएम सुक्खू ने भले ही छात्र राजनीति से होते हुए मुख्य राजनीति में कदम रखा, मगर उनके खुद के परिवार की तो कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

यह पहले से मान लेना कि कोई अभिनेता है, इसलिए राजनीति में काम नहीं कर पाएगा या अभिनेता से राजनेता बनकर फ्लॉप किसी और व्यक्ति का हवाला देकर सभी को खारिज कर देना कितना सही है?  नाकाम तो फुल टाइम पॉलिटीशियन भी होते हैं। उदाहरण के लिए अगर इतने ही काम किए होते और योग्यता इतनी ही होती तो प्रतिभा सिंह दोबारा यहां से चुनाव लड़ रही होतीं।

सीएम सुक्खू की स्क्रिप्ट और डायरेक्शन 

बहरहाल, विक्रमादित्य को संभवत: उन्हीं के समर्थकों की तरह लगता हो कि वह मुख्यमंत्री बनने के हकदार हैं और मंडी सीट जीती तो उनका कद और दावेदारी बढ़ेगी। रणनीति सही प्रतीत भी होती है। उनके पिता वीरभद्र सिंह लंबे समय तक सीएम रहे प्रदेश के। उनकी अपनी एक राजनीतिक विरासत भी है। इस बात विक्रमादित्य में आत्मविश्वास है, वह होना भी चाहिए। लेकिन यह अतिआत्मविश्वास में कभी कभी बदला दिखता है। साथ ही उनमें धीरज की कमी दिखाई देती है, उससे उन्हें पार पाना होगा। वो खुद को खुद ही विनम्र बताते हैं लेकिन अपने भाषण एक बार सुनें, विनम्रता कहीं पर नहीं झलकती।

उन्हें ये भी याद रखना होगा कि पहली बार सीएम बनने के लिए जो एडवांटेज उनके पिता को उस समय के राजनीतिक हालात में मिला था, तब परिस्थितियां अलग थीं और आज अलग हैं। आज उनका सामना सुखविंदर सिंह सुक्खू से है, जो मंडी के सेरी मंच से एलान कर चुके हैं कि वह जयराम ठाकुर से बेहतर स्क्रिप्ट राइटर और डायरेक्टर हैं और उनकी बनाई फिल्म हिट होगी।

ऐसे में आज की परिस्थितियों से पार पाने के लिए संयम जरूरी है। आप अपने काम से छाप छोड़ने, अपने साथ लोग जोड़ने, अपना कद बढ़ाने में जुटे होते तो आज आपकी स्थिति मजबूत होती। लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो दूर की सोचिए। तभी पार्टी आलाकमान भी आपके आगे वैसे ही नतमस्तक होगा, जैसे लाख चाहते हुए भी वीरभद्र सिंह के आगे नतमस्तक था और लाख चाहकर भी उनका पीछे नहीं कर पाया था।

मोदी नाम के सहारे चलतीं कंगना

दूसरी ओर कंगना हैं, जिन्होंने आते ही कह दिया कि मुझे लगता है कि हम अपने दम पर नहीं, मोदी जी के नाम और परिश्रम के दम पर जीतेंगे। पार्टी और नेता के नाम,काम और छवि का सहारा लेना अच्छा है। लेकिन आपको जब इतने सारे लोगों को नजरअंदाज करके चुना गया है तो क्या आपका फर्ज नहीं बनता कि कुछ मेहनत करें? कुछ समझें, पढ़ें-लिखें, लोगों को बताएं कि हां, मैं कोई एलियन नहीं हूं, मुझे आपकी समस्याओं और मुद्दों की समझ है। तभी तो लोगों में विश्वास जगेगा कि आप उन्हें सिर्फ संसद पहुंचकर अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं करना चाहतीं, आपके दिन में वाकई कुछ करने का जुनून है। मगर फिलहाल ये जुनून तो नहीं दिख रहा, ऊल-जुलूल बातें जरूर सुनने को मिल रही हैं।

काबिल बनिए, अपेक्षाकृत बेहतर नहीं

बेहतर होगा अगर दोनों उम्मीदवार अपने व्यक्तित्व के ज़िम्मेदार और गंभीर पहलू को सामने रखें। ये बयान, ये तीखे हमले, ये प्रहार… ये सिर्फ मीडिया और जनता का मनोरंजन करते हैं। जनता वोट उसी को डालती है, जिसे डालना होता है। तो अपने आप को योग्य उम्मीदवार साबित कीजिए। ताकि वोटर को साफ पता हो कि मुझे इसे वोट डालना है क्योंकि ये वाकई लायक है। वरना अंधों में काने राजा की तर्ज पर जीत हासिल की भी तो क्या फायदा? रैलियों में या सोशल मीडिया पर जय-जयकार करने वालों पर जाएंगे तो घमंड बढ़ेगा। आगे बढ़ना है तो आलोचकों को सुनिए, समझिए और सुधार कीजिए।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)