सीमेंट प्लांट बंद रहे तो टूटेगी आपकी भी कमर, हिमाचल को होगा गंभीर नुकसान

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में सीमेंट के दो प्लांट बंद होने से चिंता का मौहाल पैदा हो गया है। हालांकि, यह कोई पहला मौका नहीं है जब हिमाचल प्रदेश में सीमेंट फैक्ट्रियां बंद हुई हों। यह देखा जाता रहा है कि पहले भी हिमाचल के सीमेंट प्लांट संचालकों ने अलग अलग कारणों का हवाला देकर सीमेंट उत्पादन रोका है (यहां टैप करके पढ़ें)। हालांकि, बाद में उत्पादन फिर शुरू कर दिया गया। इस बार भी माना जा रहा है कि सीमेंट प्लांट संचालकों और ट्रक ऑपरेटरों के बीच सहमति बनने के बाद काम शुरू हो सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि अगर अडाणी से स्वामित्व वाली बरमाणा और दाड़लाघाट सीमेंट फैक्ट्रियों में उत्पादन लंबे समय तक रुकता है तो इसका क्या असर होगा?

सबसे पहला असर तो इस फैक्ट्रियों से प्रत्यक्ष रोजगार पा रहे कर्मचारियों पर पड़ेगा। इनमें कंपनी के विभिन्न अनुभागों में काम कर रहे मजदूर, कर्मचारी और अधिकारी हैं। यहां रोजगार पाने वालों में उन परिवारों के लोग भी हैं जिनकी जमीन फैक्ट्री या फिर खनन वाली जगह में गई है। वे सब अचानक बेरोजगार हो जाएंगे।

इसके बाद उन लोगों का नंबर आता है जो इन फैक्ट्रियों में ढुलाई के लिए ट्रक आदि चलाते हैं। इन ट्रकों से न सिर्फ प्लांट के संचालन के लिए जरूरी उपकरण और अन्य साजो-सामान ढोए जाते हैं बल्कि रॉ मटीरियल, जैसे कि क्लिंकर और फाइनल प्रॉडक्ट यानी कि सीमेंट की बोरियों की भी ढुलाई होती है। फैक्ट्री बंद होने से न सिर्फ ट्रक मालिकों को नुकसान होगा बल्कि ट्रक चलाने वाले ड्राइवर और हेल्पर आदि भी बुरी तरह प्रभावित होंगे।

आपने देखा होगा कि बरमाणा और दाड़लाघाट, दोनों ही जगहों पर और साथ ही जहां से सीमेंट फैक्ट्रियों से जुड़े ट्रक गुजरते हैं, वहां पर ट्रक की मरम्मत करने वालों, पंक्चर लगाने और धुलाई आदि करने का एक उद्योग सा विकसित हो गया है। ट्रक नहीं चलेंगे तो इन सभी दुकानों में काम नहीं आएगा। इससे न सिर्फ मकैनिक बेरोजगार होंगे बल्कि जिन लोगों से उन्होंने किराये पर दुकान ली है, उन लोगों की भी आमदनी घटेगी। इसी तरह का असर हाईवे के किनारे के ढाबों और चाय-स्नैक्स की दुकानों पर भी पढ़ेगा।

इन सबके प्रभावित होने का अर्थ है- इन सभी के परिवारों का प्रभावित होना। वे आर्थिक नुकसान के कारण कई समस्याओं का सामना करेंगे। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो सकता है, किसी का इलाज प्रभावित हो सकता है, किसी का प्रॉजेक्ट अधूरा छूट सकता है तो बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो सकती है।

ढुलाई के काम में चले ट्रक बड़ी मात्रा में ईंधन की खपत करते हैं। जब ये ट्रक नहीं चलेंगे तो पेट्रोल-डीज़ल पंपों में सेल घटेगी। इससे संचालकों के साथ-साथ सीधा असर सरकार के राजस्व पर भी पड़ेगा। ज्यादा असर हिमाचल प्रदेश सरकार को पड़ेगा क्योंकि अभी शराब और पेट्रोल-डीज़ल ही है जो जीएसटी से बाहर हैं और राज्य सरकार जिन पर टैक्स लगाकर सीधी आमदनी करती है। इससे प्रदेश का सरकार का राजस्व घटेगा।

साथ ही, हिमाचल में उत्पादन न होने के कारण अचानक सीमेंट की शॉर्टेज हो जाएगी। ऐसी स्थिति आने भी लगी है। इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का काम प्रभावित होगा। न सिर्फ विभिन्न जगहों पर चल रहे सरकारी निर्माण कार्य (सड़क, भवन, डंगे आदि) प्रभावित होंगे बल्कि आम लोग जो अपने घर या दुकान आदि का निर्माण करवा रहे हैं, उन्हें भी दिक्कतें आएंगी। यह स्थिति लंबी खिंची तो सीमेंट अन्य राज्यों से बड़ी मात्रा में लाना पड़ेगा। इससे ढुलाई का खर्च बढ़ने से कंस्ट्रक्शन की कुल लागत बढ़ जाएगी।

इन सब बातों का प्रभाव हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी पर बुरी तरह पड़ेगा। एक तो सरकार के स्तर पर और दूसरा आम आदमी के स्तर पर। बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही, विकास कार्य दो तरह से ठप होंगे- एक तो सरकार के पास आमदनी कम रह जाएगी, दूसरा लागत बढ़ जाएगी। जिन लोगों ने लंबे समय से पैसे आदि जमा करके अभी किसी तरह का कंस्ट्रक्शन करवाने की योजना बनाई होगी, उन्हें घाटा उठाना पड़ सकता है या फिर अपना काम बाद के लिए टालना पड़ सकता है। दोनों ही स्थितियों में उन्हें महंगाई की मार झेलनी होगी।

जब एक बड़े वर्ग की खरीदने की क्षमता प्रभावित होती है तो मार्केट पर भी बुरा असर पड़ता है। इन सब बातों को देखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि सरकार किसी तरह से इस पूरे मामले सा समाधान निकाले। वरना हिमाचल में एक बड़ा वर्ग आर्थिक संकट की ओर बढ़ सकता है।

मंत्रिमंडल का गठन करने की कोई जल्दबाजी नहीं है: सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू

नई दिल्ली।। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सु्क्खू ने कहा है कि उन्हें मंत्रिमंडल का विस्तार करने की कोई जल्दबाजी नहीं है। उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों के सवाल के जवाब में कहा कि विधानसभा के शीत सत्र के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार किया जाएगा।

गौरतलब है कि अभी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने ही शपथ ली है। हिमाचल में ऐसा पहली बार हुआ है जब मुख्यमंत्री के शपथ लेने के इतने दिन बाद भी मंत्रियों ने शपथ नहीं ली है।

अभी विधायकों ने शपथ नहीं ली है। वे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में शपथ लेंगे। माना जा रहा है कि धर्मशाला में 22 दिसंबर से सत्र शुरू हो सकता है। ऐसी स्थिति में इसके बाद ही मंत्रिमंडल का विस्तार होगा।

यह संभवत: पहला मौका होगा जब हिमाचल विधानसभा के पहले सत्र में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत दो ही लोगों का मंत्रिमंडल होगा।

ऐसे में यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या कांग्रेस नेताओं का सरकार बनने के 10 दिन के अंदर ओपीएस की बहाली करने का वादा पूरा हो पाएगा या नहीं। हालांकि, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री, दोनों मिलकर यह फैसला ले सकते है।

सरकार बदलते ही एकाएक क्यों बंद हो जाते हैं हिमाचल में सीमेंट प्लांट?

शिमला ।। हिमाचल प्रदेश के एसीसी बरमाणा और अंबुजा सीमेंट प्लांट में प्रोडक्शन तुरंत बंद कर दिया गया है। कंपनी प्रबंधन और ट्रक ऑपरेटर्स यूनियन के बीच ढुलाई भाड़े को लेकर बात फंस गई है। बताया जा रहा है कि इसी के चलते कंपनी प्रबंधन की ओर से तुरंत प्रभाव से दोनों ही सीमेंट प्लांट को बंद कर दिया गया है। साथ ही प्लांट में कार्य कर रहे कर्मचारियों को भी ड्यूटी में आने के लिए मना कर दिया गया है। गौरतलब रहे कि यह पहला मौका नहीं है जब हिमाचल में किसी सीमेंट प्लांट को बंद किया गया है।

दरअसल सीमेंट फैक्ट्री का इतिहास देखें तो हिमाचल में सत्ता परिवर्तन के साथ ही किसी न किसी बात पर पहले भी सीमेंट फैक्ट्री में प्रोडक्शन बंद कर दिया गया था। दिसंबर 2007 में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और एक साल के भीतर ही बरमाणा स्थित एसीसी सीमेंट प्लांट को बंद कर दिया गया। कंपनी ने इसके पीछे की वजह बताई कि सीमेंट की डिमांड बहुत कम हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि उस दौरान प्रोडक्शन बंद करने के एक महीने पहले ही एसीसी और अंबुजा ने प्रति बैग दाम में 2 से 6 रुपये की कटौती की थी। हालांकि फिर भी कंपनी ने प्रोडक्शन बंद किया और साथ ही एक्साइज ड्यूटी को युक्तिसंगत करने के भी आग्रह किया।

इसके बाद दिसंबर 2012 में हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनी थी। उस दौरान भी हिमाचल प्रदेश में एसीसी फैक्ट्री में प्रोडक्शन को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया गया। उस दौरान भी वजहें बताई गई कि कंपनी को क्लींकर के लिए इन्वेंटरी बिल्डअप करना है। साथ ही इंपोर्ट को लेकर सरकारी स्तर पर जुड़ी कुछ बातों को भी उठाया गया।

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पहले दो बार जब कंपनी ने सीमेंट प्लांट में प्रोडक्शन बंद किया उस समय कंपनी का संचालन किसी और के पास था, जबकि इस बार अंबुजा और एसीसी का संचालन एक ही ग्रुप अदाणी कंपनी के पास है। अब एक बार फिर प्रदेश के दो बड़े सीमेंट प्लांट में प्रोडक्शन बंद कर दिया गया है। हालांकि इस बार वजह ट्रक ऑपरेटर्स यूनियन के साथ ढुलाई भाड़े पर सहमति न बनना बताया जा रहा है, लेकिन कंपनी की ओर से जो लैटर लिखे गए हैं उसमें कहानी कुछ और है। क्योंकि कुछ लोगों का कहना है कि इस मामले में कमीशन के खेल भी जुड़े हुए होते हैं।

इस पूरे मामले में मुख्य सचिव आरडी धीमान ने कहा कि इस मसले को सुलझाने के प्रयास किए जा रहे हैं। डीसी सोलन और बिलासपुर को विवाद सुलझाने के लिए कहा गया है। उन्होंने कहा कि जो भी समस्याएं आ रही हैं उसे जल्द से जल्द दूर किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी हालत में प्लांट्स बंद नहीं होने देगी।

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पत्नी सुदर्शना की शिकायत पर विक्रमादित्य सिंह और अन्य के खिलाफ वॉरन्ट

शिमला।। शिमला ग्रामीण से कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह पर उनकी पत्नी सुदर्शना ने घरेलू हिंसा का आरोप लगाया है। सुदर्शना ने 17 अक्तूबर 2022 को इस संबंध में शिकायत दर्ज करवाई थी जिसकी खबर अब सामने आई है। इस मामले पर विक्रमादित्य सिंह ने पत्रकारों से कहा है कि ये आरोप झूठे हैं और इनका जवाब कोर्ट में दिया जाएगा।

सुदर्शना की ओर से दायर मामले में राजस्थान के उदयपुर कोर्ट ने नवंबर में हुई पहली सुनवाई में पति विक्रमादित्य सिंह, सास प्रतिभा सिंह, ननद अपराजिता और ननदोई अंगद सिंह और चंडीगढ़ निवासी अमरीन को गैर जमानती वॉरंट जारी कर बुधवार 14 दिसंबर को कोर्ट में पेश होने को कहा था।

क्या है मामला
सुदर्शना ने महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 20 के तहत उदयपुर कोर्ट में शिकायत दर्ज करके घरेलू हिंसा का आरोप लगाया है। अदालत से अपील की गई है ससुराल वालों को हिंसा करने से रोकें और अलग से रहने के लिए मकान की व्यवस्था करने के आदेश दें।

वहीं विक्रमादित्य सिंह की ओर से इस मामले में सार्वजनिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, अमर उजाला के मुताबिक, उन्होंने फोन पर कहा है कि ये सोची-समझी साजिश है और पारिवारिक मामले को इस समय इसलिए उजागर किया गया ताकि राजनीतिक नुकसान पहुंचाया जा सके। उन्होंने कहा कि यह मामला अभी लंबित है और वॉरन्ट कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है।

बीजेपी सरकार ने बिना बजट कर दी थीं घोषणाएं: सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू

शिमला।। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि पिछली बीजेपी सरकार ने बिना बजट का प्रावधान किए ही संस्थान खोलने की घोषणा कर दी। इसीलिए चुनावों से पहले की गई इन घोषणाओं की समीक्षा की जाएगी। गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने फेसबुक पोस्ट करके मंगलवार सुबह कहा था कि कांग्रेस सरकार ने बीजेपी सरकार की अप्रैल 2022 से बाद की घोषणाओं की समीक्षा करने का जो फैसला लिया है, वह विकास कार्यों को रोकने की कोशिश है।

मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री ने इस संबंध में पत्रकारों की ओर से किए गए सवाल के जवाब में कहा, “मैं पूर्व मुख्यमंत्री जी का बड़ा आदर करता था और समझता था कि वह जो घोषणाएं करेंगे और संस्थान खोलेंगे, उसमें बजट का प्रावधान किया जाएगा। लेकिन जब हमने पिछले कल स्टडी किया तो पाया कि मात्र नोटिफिकेशन की गई है, संस्थान खोले नहीं गए है।”

मुख्यमंत्री ने कहा, “हमने पता करवाया तो अधिकारियों ने कहा कि बजट नहीं था और सरकार ने कहा कि चुनावों से पहले घोषणाएं कर लो, हम रिपीट हो गए तो तीन साल में जमीन पर उतारेंगे वरना कांग्रेस के सिर पर पड़ेगी।” सुक्खू ने कहा, “हम देखेंगे कि जहां घोषणाएं की गई हैं, वहां वाकई संस्थानों की जरूरत है या नहीं। जरूरत होगी तो संस्थानों को खोलने पर विचार किया जा सकता है।”

मुख्यमंत्री ने कहा, “बीजेपी की सरकार कोसती थी कि पिछली कांग्रेस की सरकार ने रिटायर्ड और टायर्ड अधिकारी नियुक्त कर दिए। लेकिन बीजेपी की सरकार ने भी ऐसे अधिकारियों को एक्सटेंशन दी। तो हमने जो फैसला किया है, वो जनता के हित में लिया है। भर्तियों में अगर घोटाला होगा तो क्या हम उस घोटाले को देखते रहेंगे?”

ओपीएस को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सुक्खू ने कहा, “हिमाचल में हमने वादा किया है कि जब पूरी कैबिनेट बन जाएगी तो ओपीएस का वादा पूरा किया जाएगा। जितने हथकंडे अपनाने हैं अपना लीजिए। जिन कर्मचारी अधिकारियों ने हिमाचल के विकास की गाथा लिखी है, हम उन्हें ओपीएस देंगे।”

सीएम ने यह बी कहा कि 16 तारीख को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का 100वां दिन है और उस दिन कांग्रेस के सभी विधायक और प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह उसमें शामिल होंगे।”

नरेश चौहान मीडिया सलाहकार, गोकुल बुटेल बने आईटी अडवाइजर, दोनों को कैबिनेट रैंक

शिमला।। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्कू भले ही अभी तक मंत्रिमंडल का गठन न कर पाए हों लेकिन उन्होंने अपनी कोर टीम का विस्तार करना जारी रखा है। मंगलवार को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के आईटी सलाहकार रहे गोकुल बुटेल को सुक्खू का प्रधान आईटी सलाहकार नियुक्त किया गया। उन्हें कैबिनेट मंत्री का रैंक दिया गया है।

इसी तरह सुक्खू ने कांग्रेस प्रवक्ता नरेश चौहान को अपना प्रधान मीडिया सलाहकार नियुक्त किया है। नरेश चौहान शिमला से कांग्रेस के टिकट के दावेदार भी थे। उन्हें भी कैबिनेट मंत्री के बराबर दर्जा दिया गया है।

इससे पहले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपनी टीम में पहली नियुक्ति हमीरपुर के सुनील शर्मा की थी। उन्हें कैबिनेट रैंक पर सीएम ने अपना राजनीतिक सलाहकार बनाया है।

गौरतलब है कि अभी तक सुक्खू अपने मंत्रिमंडल का गठन नहीं कर पाए हैं। कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह सरकार के गठन के 10 दिन के अंदर अपनी पहली कैबिनेट में ओपीएस बहाली और एक लाख नौकरियां देने जैसे फैसले करेगी। हालांकि, ऐसा तभी हो पाएगा जब मंत्री शपथ लें।

जल्दबाजी में गलत फैसले ले रहे हैं मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू: रणधीर शर्मा

शिमला।। बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू यह फैसला नहीं ले पा रहे कि उनकी कैबिनेट में कौन मंत्री होगा, कौन नहीं लेकिन जल्दबाजी में गलत फैसले लेते जा रहे हैं। रणधीर शर्मा ने कहा कि बीजेपी सरकार में अपग्रेड किए गए संस्थानों को डीनोटिफाई करना गलत और दुर्भाग्यपूर्ण है।

मंगलवार को शिमला में पत्रकारों को संबोधित करते हुए शर्मा ने कहा कि बीजेपी जनमत को स्वीकार करती है। हार का अंतर मामूली मत प्रतिशत से रहा। बीजेपी जनता के हित में किए जाने वाले कामों को लेकर विपक्ष में होकर भी कांग्रेस सरकार का सहयोग करेगी। मगर जनविरोधी फैसले लिए जाते रहे तो इनका विरोध करते हुए आंदोलन किया जाएगा।

रणधीर शर्मा ने कहा कि जयराम सरकार द्वारा अपग्रेड किए गए संस्थानों को डीनोटिफाई करने के निर्णय की बीजेपी निंदा करती है। यह तानाशाही भरा कदम है। यह दिखाता है कि कांग्रेस की सोच कैसी है जबकि जयराम ठाकुर की पहली कैबिनेट में जनहित के फैसले किए गए थे।

पूर्व मुख्यमंत्री ने भी की आलोचना
इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी फेसबुक पर कांग्रेस सरकार के निर्णयों की आलोचना की थी। उन्होंने लिखा है, “हमने पिछली कांग्रेस सरकार में जनता के लिए गए किसी फैसले को नहीं पलटा, कोई विकास कार्य नहीं रोका, मगर अफसोस कि कांग्रेस ने अपना रिवाज जारी रखते हुए हमारी सरकार के फैसलों को रोकने और पलटने का काम शुरू कर दिया, जबकि अभी तो मंत्रिमंडल का भी गठन नहीं हुआ लेकिन बदले की भावना के साथ काम करने की शुरुआत हो गई।”

ठाकुर ने लिखा, “स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, पुल, सड़क, पेयजल योजना… इन सब कामों को लटकाने, अटकाने और भटकाने का काम शुरू हो गया है जिसके लिए जनता इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगी। बदले की भावना के साथ काम की शुरुआत अच्छी नहीं है।”

आरएस बाली का मंत्री बनना तय; महकमे कौन से मिलेंगे, अब इसपर टिकी हैं निगाहें

मृत्युंजय पुरी, धर्मशाला।। इन विधानसभा चुनावों में चुनाव से पहले भाजपा के मुकाबले में पिछड़ती नजर आ रही कांग्रेस को मुकाबले में लाकर जिताने में अहम योगदान देने वाले आरएस बाली न सिर्फ कांगड़ा जिले के प्रमुख नेता बनकर उभरे हैं बल्कि उनके रूप में प्रदेश के युवाओं को भी एक आवाज मिली है। आरएस बाली कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव होने के साथ दिवंगत फायर ब्रांड नेता जीएस बाली के बेटे हैं।

खास बात यह है कि चुनावों के दौरान आरएस बाली अपने हलके नगरोटा बगवां में भी ज्यादा समय नहीं ने पाए थे, क्योंकि पूरे हिमाचल प्रदेश में बेरोजगार संघर्ष यात्रा के जरिए कांग्रेस को मजबूत करना था। यह आरएस बाली ही हैं, जिन्होंने पोलिटिकल इवेंट की माहिर भाजपा को उसी के अंदाज में जवाब देते हुए नगरोटा बगवां में अब तक की सबसे बड़ी रैली की थी। उस रैली में प्रियंका गांधी के साथ टॉप लीडर जुटे हुए थे।

इससे पहले जीएस बाली की जयंती पर भी आरएस बाली ने पूरे देश के टॉप कांग्रेस नेताओं को नगरोटा में लाकर भाजपा के होश उड़ा दिए थे। यही कारण है कि सीएम पद के लिए पिछड़ चुके कांगड़ा जिला की भावनाएं चरम पर हैं। आर एस बाली का मंत्री बनना तो यह है मगर 17 लाख की आबादी वाले कांगड़ा जिले के लोगों को उम्मीद है कि आरएस बाली को अपने पिता की तरह मजबूत विभाग दिए जाएं।

सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस पूरे जिला में भाजपा के मुकाबले उन्नीस साबित हो रही थी। जिला के सभी नेता अपनी सीट बचाने में लगे थे, उस समय आरएस बाली सिर्फ कांग्रेस की बात कर रहे थे। कांग्रेस ने कांगड़ा से दस सीटें जीती हैं, इसमें आरएस बाली का भी बड़ा योगदान माना जा रहा है जिन्होंने युवाओं को आंदोलित किया।

नगरोटा विधानसभा सीट पर बीते चुनाव में हारने वाली कांग्रेस को दोबारा जीत नसीब हुई है। रघुबीर सिंह बाली ने मौजूदा विधायक अरुण कुमार कूका को हराया है। कूका को जहां 25595 वोट मिले हैं। वहीं, कांग्रेस के रघुबीर सिंह बाली को 41465 वोट मिले हैं। तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी रही और उनके प्रत्याशी उमाकांत को 1313 वोट मिले हैं। गौर रहे कि इससे पहले इस सीट पर जहां 1998 से 2012 तक कांग्रेस के जीएस बाली लगातार चार चुनाव जीतते आए हैं। यही कारण है कि जनता की भावनाएं आरएस बाली को लेकर चरम पर हैं।

सुखविंदर सिंह सुक्खू: दूध बेचकर पढ़ाई करने वाला आम परिवार का बेटा जो अब प्रदेश चलाएगा

इन हिमाचल डेस्क।। नादौन के विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल के सातवें मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। वह सुक्खू जो बेबाक रहे हैं। जब उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा था तो प्रचार के दौरान अपनी ही पार्टी की सरकार की नीतियों की आलोचना करने से भी पीछे नहीं हटे थे। बावजूद इसके विधायक बने थे। समय के साथ आगे बढ़े तो एक दौर वह भी आया जब वह हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का पर्याय माने जाते रहे वीरभद्र सिंह के विरोध के बावजूद कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बने। इस पद पर बैठने के बाद उन्होंने बिना किसी के प्रभाव या दबाव में आकर पार्टी को चलाया। पार्टी की सरकार बनी और खुद चुनाव हारे तो कभी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से कोई चेयरमैनशिप नहीं मांगी। वह सुक्खू जो अपनी संगठन और नेतृत्व क्षमता के कारण बिना कभी मंत्री बने सीधे मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं।

क्या है सुक्खू की ताकत
एक ओर कांगड़ा जिले के नेताओं की मांग कि इस बार मुख्यमंत्री कांगड़ा से होना चाहिए। दूसरी ओर प्रतिभा सिंह का दावा कि वीरभद्र सिंह के नाम पर चुनाव जीते इसलिए उनके परिवार से सीएम होना चाहिए। तीसरी ओर मुकेश अग्निहोत्री का दबे स्वर में यह कहना कि मैंने कांग्रेस को सत्ता में लाने की जिम्मेदारी निभाई, अब सीएम बनाने का काम हाईकमान का। एक ओर जहां राजीव भवन से लेकर सीसिल ऑबरॉय होटेल तक कांग्रेस कार्यकर्ता अपने-अपने नेताओं के पक्ष में नारेबाजी कर रहे थे और मुख्यमंत्री बनने के दावेदार चेहरे पर तनाव लेकर कार्ट रोड से चौड़ा मैदान की दौड़ें लगा रहे थे, तब सुक्खू चेहरे पर मुस्कान लेकर घूम रहे थे। मानो मालूम हो कि सीएम उन्हें ही बनना है। सुक्खू की ताकत है- विधायकों का समर्थन और हाईकमान का आशीर्वाद, दोनों।

आपको याद होगा कि हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस आलाकमान ने सुक्खू को चुनाव प्रचार कमेटी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस पद का महत्व कितना था, इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि दिवंगत वीरभद्र सिंह भी चुनावों से ठीक पहले इस पद को अपने पास रखने की कोशिश किया करते थे। लेकिन इस बार इस पद की जिम्मेदारी सुक्खू को मिली। फिर चुनाव हुए और नतीजे आए तो सुक्खू सबसे ताकतवर नेता के रूप में उभरे क्योंकि उनके पास वह चीज थी, जो सीएम बनने का ख्वाब देख रहे अन्य कांग्रेसी नेताओं के पास नहीं थी- विधायकों का समर्थन। कम से कम डेढ़ दर्जन विधायक सुक्खू को सीएम देखना थे।

दूध बेचते हुए की पढ़ाई और परिवार की देखभाल
सुक्खू के सत्ता का सुख पाने के लिए संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है। 26 मार्च 1964 को उनका जन्म ऐसे परिवार में हुआ जहां बच्चों से थोड़ा बहुत पढ़-लिखकर घर की जिम्मेदारी उठाने की आस रखी जाती थी। राजनीति में जाना तो कल्पना से भी परे था। चार भाई बहनों में वह दूसरे नंबर पर हैं। पिता सरकारी नौकरी करते थे और मां घर संभालती थीं। पिता एचआरटीसी में चालक थे और उनकी नौकरी के कारण सुक्खू शिमला में रहे। यहीं एलएलबी तक पढ़ाई हुई और छात्र राजनीति में सक्रिय होने के बाद प्रदेश की राजनीति में जाने का ख्वाब देखा।

संजौली कॉलेज में पढ़ाई के दौरान सुक्खू परिवार के खर्चे चलाने के लिए सुबह दूध भी बेचा करते थे। कॉलेज के बाद फिर से एक पार्ट टाइम जॉब करते थे। नगर निगम में पार्ट टाइम जॉब से वह परिवार चलाने में पिता की मदद किया करते थे। कॉलेज मे एनएसयूआई से जुड़े और ग्रैजुएशन के पहले ही साल में सीआर चुने गए। दूसरे साल जनरल सेक्रेटरी और फाइनल इयर में कॉलेज के प्रेजिडेंट चुने गए।

ग्रैजुएशन के बाद उन्होंने एचपीयू में एडमिशन ली। भाई सेना में भर्ती हुए तो जाहिर है परिवार की आकांक्षा थी कि सुक्खू भी कोई नौकरी करें। नौकरी तो उन्होंने नहीं की मगर एलआईसी से जु़ड़कर लोगों को पॉलिसी सेल करते रहे। उधर 1989 में सुक्खू NSUI के प्रदेश अध्यक्ष बने। 1992 में पहली बार नगर निगम पार्षद चुने गए। 1997 में फिर जीते। 1998 में उन्हें यूथ कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया।

फिर 2003 के चुनावों में वह नादौन से चुनावी मैदान में उतरे और जीते भी। 2007 के चुनावों में फिर से जीते। 2008 से 2012 तक प्रदेश कांग्रेस महासचिव रहे। 2012 में वह चुनाव हार गए मगर फिर बड़ा मोड़ तब आया जब 2013 में वीरभद्र की अनिच्छा के बावजूद हाईकमान ने सुक्खू की संगठन क्षमता को देखते हुए उन्हें कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष बनाया। 2017 में वह फिर से नादौन से जीतकर विधानसभा पहुंचे। इस बार वह चौथी बार विधायक चुने गए हैं।

ऐसा अध्यक्ष जो किसी के आगे नहीं झुका
सुखविंदर सिंह सुक्खू जब कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बने तब वह चुनाव हारे हुए थे मगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे। वह वीरभद्र सिंह जो पार्टी को अपने हिसाब से चलाते रहे थे। मगर सुक्खू ने वीरभद्र सिंह के प्रभाव में रहकर कभी काम नहीं किया। बल्कि 2018 तक पद पर बने रहने तक संगठन को उन्होंने सरकार के समानांतर चलाया।

कई मौकों पर वीरभद्र सिंह और सुखविंदर सुक्खू के बीच जुबानी जंग भी चली। एक घटना यह है कि कांग्रेस ने पदयात्रा निकालने की योजना बनाई तो वीरभद्र सिंह उसमें शामिल नहीं हुए। पत्रकारों से उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि कांग्रेस पदयात्रा निकाल रही है। पत्रकारों ने सुक्खू से पूछा तो उन्होंने कहा- मैंने खुद मुख्यमंत्री जी को पदयात्रा की जानकारी दी है। वह बुजुर्ग हो गए हैं, उन्हें अब याद नहीं रहता। जब पत्रकारों ने सुक्खू के इस बयान की प्रतिक्रिया वीरभद्र सिंह से मांगी तो उन्होंने भड़कते हुए कहा था- मुझे वो दिन भी याद है जब सुक्खू पैदा हुए थे।

जब कांग्रेस 2017 के चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हुई तो वीरभद्र सिंह ने हार का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ा।  ऐसे कई मौके आए जब जुबानी तीर दोनों के समर्थकों के बीच तनाव का भी कारण बने। 18 जनवरी, 2019 को तो कांग्रेस कार्यालय में सुक्खू और वीरभद्र समर्थक तो हिंसक हो उठे थे। मारपीट में कुछ लोग जख्मी भी हुए थे। फिर मई 2019 में जब कांग्रेस चारों लोकसभा सीटें हारी, तब भी वीरभद्र सिंह ने हार का ठीकरा सुक्खू पर फोड़ा। वीरभद्र ने अपने कई राजनीतिक विरोधियों का राजनीतिक करियर अपनी कूटनीति से खत्म किया है। लेकिन सुक्खू ही थे, जिन्हें वीरभद्र भी मात नहीं दे सके।

संगठन क्षमता भी आई काम
जब सुक्खू हिमाचल कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष थे, तब उन्होंने पूरे प्रदेश में संगठन को नए सिरे खड़ा किया। उन्होंने प्रतिभावान कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने का काम किया। कांग्रेस के विधायकों को लगता है कि सुक्खू उन नेताओं में से नहीं हैं जो किसी बात क्रेडिट खुद लें। वह क्रेडिट बांटने और सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं। जबकि अन्य नेता जो सीएम बनने की चाहत रख रहे थे, उनका इतिहास ही रहा है अपनी पार्टी में तेजी से बढ़ने वालों को रोकना और खुद को ही केंद्र में रखना। ऐसे में बहुत से महत्वाकांक्षी विधायक भी दूर की सोचकर सुक्खू के समर्थन में आ खड़े हुए। ऐसे में केंद्र से आए वे नेता भी ज्यादा कुछ नहीं कर सके, जो सुक्खू को सीएम नहीं बनाना चाहते थे।

विधानसभा चुनावों से पहले जब वह चुनाव प्रचार कमेटी के अध्यक्ष बने तो उन्होंने हंगामा करने या मीडिया के सामने आकर माहौल बनाने के बजाय चतुराई और व्यवहार से पार्टी के संभावित उम्मीदवारों से करीबी बनाई। टिकट वितरण कमेटी के सदस्य रहते हुए भी उनकी भूमिका अहम रही। यही सब बातें अब नतीजे आने के सामने सुक्खू को मुख्यमंत्री पद तक ले गई। चतुराई, धैर्य, व्यवहार, जुखारुपान, नेतृत्व और संगठन क्षमता… ऐसी कई सारी बातें हैं जो एक आम परिवार से निकले सुक्खू को मुख्यमंत्री पद तक ले गई। मंडी के पंडित सुखराम तो कभी सीएम नहीं बन पाए, लेकिन उनके करीबी रहे सुक्खू इस पद पह पहुंच गए हैं।

पिछली विधानसभा में उनका कार्यकाल भी कमाल का रहा। भले वह नेता प्रतिपक्ष नहीं थे, लेकिन जब भी वह बोलते थे, तथ्यों और तर्कों के साथ बोलते थे। वह चीखते-चिल्लाते या राज्यपाल की गाड़ी के आगे कूदकर हंगामा करने जैसा कुछ तो नहीं करते थे, मगर अपने वक्तव्यों से सत्ता पक्ष को निरुत्तर कर देते थे। इस बार वह सत्ता में होंगे। सदन के नेता होंगे। इस बार विपक्ष के सवालों का सामना उन्हें करना होगा। सवाल काफी तीखे होंगे क्योंकि कांग्रेस ने ऐसे-ऐसे वादे इस बार किए हैं, जिनसे कांग्रेस के ही कई नेता सहमत नहीं थे। देखना होगा कि सुक्खू उन्हें कैसे पूरा करते हैं। साथ ही, चुनौती अपनी ही पार्टी के उस धड़े से भी होगी जो सीएम न बन पाने से नाराज है।

नतीजे घोषित होते ही धर्मशाला के चार कांग्रेस नेताओं के घर पर पथराव

धर्मशाला, मृत्युंजय पुरी।। विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित होते ही चार बड़े कांग्रेस नेताओं के घरों पर नामालूम हमलावरों ने देर रात पत्थरबाजी करके धर्मशाला में दहशत मचा दी। चुनावी नतीजों वाली देर रात हुई इस घटना के बाद पुलिस छानबीन में जुट गई है। हमले में हालांकि किसी को चोट नहीं पहुंची है, लेकिन घरों के शीशे-खिड़कियों को नुकसान पहुंचा है।

पीडि़त कांग्रेस नेताओं से मिली जानकारी के अनुसार यह घटना नतीजों वाली रात एक बजकर चालीस मिनट से लेकर ढाई बजे के बीच घटी है। तीन कांग्रेस नेताओं घरों पर सीसीटीवी कैमरों में घटना कैद हुई है, वहीं चौथे मकान में सीसीटीवी कैमरा नहीं थे। कांग्रेस नेताओं ने बताया कि पहला हमला पूर्व मेयर व वर्तमान पार्षद देवेंद्र जग्गी के घर पर हुआ। यहां हमलावर उनके घर को पहचान नहीं पाए और साथ वाले घर में भी पत्थर मार दिए।

जग्गी ने बताया कि यह घटना एक बजकर उनतालीस मिनट की है। हमलावर दो थे। जग्गी का कहना है कि उन्होंने हमलावरों को पहचान लिया है। दूसरी घटना पार्षद नीनू शर्मा के घर हुई। उन्होंने बताया कि एक बजकर 54 मिनट पर उनके घर पर पथराव हुआ। इससे उनका सारा परिवार सहम गया। हमलावरों ने तीसरी वारदात चौधरी हरभजन सिंह के भाई के घर पर मसरेहड़ गांव के पास अंजाम दी। वहां घर के शीशे टूटे हुए हैं। चौथी वारदात पूर्व सांसद विप्लव ठाकुर के घर पर नरवाणा खास में हुई है। वहां सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं। उन्हें घटना का सुबह पता चला।

सभी नेताओं ने इन हमलावारों को पकडक़र कड़ी कार्रवाई करने की मांग उठाई है। फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है।

इस बारे में शुक्रवार सुबह धर्मशाला थाने में रिपोर्ट करवाई गई है। दोपहर बाद पीडि़त कांग्रेस नेता मीडिया के सामने आए। इनमें पूर्व मेयर देवेंद्र जग्गी, पार्षद नीनू शर्मा, दिग्गज कांग्रेस नेता चौधरी हरभजन सिंह शामिल रहे। उनके साथ मेयर ओंकार नेहरिया भी शामिल रहे। जग्गी व अन्य नेताओं कहा कि यह हमला राजनीति से प्रेरित है। हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है। वे इन हमलों से डरने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वे जल्द एसपी डा खुशहाल शर्मा से भी मिलेंगे व इस मामले में कड़ी कार्रवाई मांगेंगे।

पूर्व राज्यसभा सांसद विप्ल्व ठाकुर ने कहा कि धर्मशाला में पहली बार इस तरह की घटना हुई है। बरसों से धर्मशाला में रह रही हूं। यह सबसे खराब एक्सपीरियंस है। पुलिस को हमलावरों को पकडक़र कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

वहीं एसएचओ धर्मशाला सुरेंद्र ठाकुर ने कहा कि पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की है। इस बारे में सीसीटीवी फुटेज को खंगाला जा रहा है। मामले की गंभीरता से छानबीन की जा रही है।