इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में सीमेंट के दो प्लांट बंद होने से चिंता का मौहाल पैदा हो गया है। हालांकि, यह कोई पहला मौका नहीं है जब हिमाचल प्रदेश में सीमेंट फैक्ट्रियां बंद हुई हों। यह देखा जाता रहा है कि पहले भी हिमाचल के सीमेंट प्लांट संचालकों ने अलग अलग कारणों का हवाला देकर सीमेंट उत्पादन रोका है (यहां टैप करके पढ़ें)। हालांकि, बाद में उत्पादन फिर शुरू कर दिया गया। इस बार भी माना जा रहा है कि सीमेंट प्लांट संचालकों और ट्रक ऑपरेटरों के बीच सहमति बनने के बाद काम शुरू हो सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि अगर अडाणी से स्वामित्व वाली बरमाणा और दाड़लाघाट सीमेंट फैक्ट्रियों में उत्पादन लंबे समय तक रुकता है तो इसका क्या असर होगा?
सबसे पहला असर तो इस फैक्ट्रियों से प्रत्यक्ष रोजगार पा रहे कर्मचारियों पर पड़ेगा। इनमें कंपनी के विभिन्न अनुभागों में काम कर रहे मजदूर, कर्मचारी और अधिकारी हैं। यहां रोजगार पाने वालों में उन परिवारों के लोग भी हैं जिनकी जमीन फैक्ट्री या फिर खनन वाली जगह में गई है। वे सब अचानक बेरोजगार हो जाएंगे।
इसके बाद उन लोगों का नंबर आता है जो इन फैक्ट्रियों में ढुलाई के लिए ट्रक आदि चलाते हैं। इन ट्रकों से न सिर्फ प्लांट के संचालन के लिए जरूरी उपकरण और अन्य साजो-सामान ढोए जाते हैं बल्कि रॉ मटीरियल, जैसे कि क्लिंकर और फाइनल प्रॉडक्ट यानी कि सीमेंट की बोरियों की भी ढुलाई होती है। फैक्ट्री बंद होने से न सिर्फ ट्रक मालिकों को नुकसान होगा बल्कि ट्रक चलाने वाले ड्राइवर और हेल्पर आदि भी बुरी तरह प्रभावित होंगे।
आपने देखा होगा कि बरमाणा और दाड़लाघाट, दोनों ही जगहों पर और साथ ही जहां से सीमेंट फैक्ट्रियों से जुड़े ट्रक गुजरते हैं, वहां पर ट्रक की मरम्मत करने वालों, पंक्चर लगाने और धुलाई आदि करने का एक उद्योग सा विकसित हो गया है। ट्रक नहीं चलेंगे तो इन सभी दुकानों में काम नहीं आएगा। इससे न सिर्फ मकैनिक बेरोजगार होंगे बल्कि जिन लोगों से उन्होंने किराये पर दुकान ली है, उन लोगों की भी आमदनी घटेगी। इसी तरह का असर हाईवे के किनारे के ढाबों और चाय-स्नैक्स की दुकानों पर भी पढ़ेगा।
इन सबके प्रभावित होने का अर्थ है- इन सभी के परिवारों का प्रभावित होना। वे आर्थिक नुकसान के कारण कई समस्याओं का सामना करेंगे। घर का खर्च चलाना मुश्किल हो सकता है, किसी का इलाज प्रभावित हो सकता है, किसी का प्रॉजेक्ट अधूरा छूट सकता है तो बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो सकती है।
ढुलाई के काम में चले ट्रक बड़ी मात्रा में ईंधन की खपत करते हैं। जब ये ट्रक नहीं चलेंगे तो पेट्रोल-डीज़ल पंपों में सेल घटेगी। इससे संचालकों के साथ-साथ सीधा असर सरकार के राजस्व पर भी पड़ेगा। ज्यादा असर हिमाचल प्रदेश सरकार को पड़ेगा क्योंकि अभी शराब और पेट्रोल-डीज़ल ही है जो जीएसटी से बाहर हैं और राज्य सरकार जिन पर टैक्स लगाकर सीधी आमदनी करती है। इससे प्रदेश का सरकार का राजस्व घटेगा।
साथ ही, हिमाचल में उत्पादन न होने के कारण अचानक सीमेंट की शॉर्टेज हो जाएगी। ऐसी स्थिति आने भी लगी है। इससे इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का काम प्रभावित होगा। न सिर्फ विभिन्न जगहों पर चल रहे सरकारी निर्माण कार्य (सड़क, भवन, डंगे आदि) प्रभावित होंगे बल्कि आम लोग जो अपने घर या दुकान आदि का निर्माण करवा रहे हैं, उन्हें भी दिक्कतें आएंगी। यह स्थिति लंबी खिंची तो सीमेंट अन्य राज्यों से बड़ी मात्रा में लाना पड़ेगा। इससे ढुलाई का खर्च बढ़ने से कंस्ट्रक्शन की कुल लागत बढ़ जाएगी।
इन सब बातों का प्रभाव हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी पर बुरी तरह पड़ेगा। एक तो सरकार के स्तर पर और दूसरा आम आदमी के स्तर पर। बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही, विकास कार्य दो तरह से ठप होंगे- एक तो सरकार के पास आमदनी कम रह जाएगी, दूसरा लागत बढ़ जाएगी। जिन लोगों ने लंबे समय से पैसे आदि जमा करके अभी किसी तरह का कंस्ट्रक्शन करवाने की योजना बनाई होगी, उन्हें घाटा उठाना पड़ सकता है या फिर अपना काम बाद के लिए टालना पड़ सकता है। दोनों ही स्थितियों में उन्हें महंगाई की मार झेलनी होगी।
जब एक बड़े वर्ग की खरीदने की क्षमता प्रभावित होती है तो मार्केट पर भी बुरा असर पड़ता है। इन सब बातों को देखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि सरकार किसी तरह से इस पूरे मामले सा समाधान निकाले। वरना हिमाचल में एक बड़ा वर्ग आर्थिक संकट की ओर बढ़ सकता है।