17.9 C
Shimla
Monday, September 15, 2025
Home Blog Page 302

किन्नौर के शोंगटोंग प्रॉजेक्ट के मजदूरों ने बंद की अधिकारियों की बोलती

किन्नौर।। किन्नौर में बन रहे शोंगटोंग पावर प्रॉजेक्ट से जुड़े मजदूरों का एक वीडियो वायरल हो गया है। इसमें मजदूर अधिकारियों को घेरकर खड़े हैं और अपनी मांग रख रहे हैं। प्रॉटेस्ट में वामपंथी संगठन CITU की भूमिका रही है और वामपंथी विचारधार से जुड़े एक यूजर ने इस वीडियो को शेयर किया है।

हालांकि बहुत से लोगों का मानना है कि प्रदेश में प्रॉजेक्टों के लटने के पीछे मजदूर संगठनों की राजनीति जिम्मेदार है। मगर इन आरोपों के बीच मजदूरों की समस्याओं और वाजिब मांगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वीडियो देखें:

छत पर मिलने वाली उस लड़की ने मुझे पागल बना दिया

0

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें। पढ़ें सीजन-2 की पहली कहानी:

मैं हिमाचल प्रदेश का नहीं हूं मगर मेरे कुछ दोस्त हैं हिमाचल के। उनमें से किसी ने फेसबुक पर कुछ दिन पहले इन हिमाचल पर कोई आर्टिकल लिंक किया था, जिसका टाइटल डरावना था। जिज्ञासावश मैंने क्लिक किया क्योंकि यह भूत पर आधारित कहानी थी। मेरी जिज्ञासा इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि मैं खुद भूतों को लेकर बहुत जिज्ञासु हो गया हूं। मैं जानना चाहता हूं कि वाकई भूत होते हैं या नहीं। क्योंकि मेरे साथ ऐसी घटना हो चुकी है, जिसने मेरा जीवन बदल दिया है। पहले मैं सामान्य हुआ करता था मगर अब मुझे मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ रही है। मैं जानता हूं कि साइकाइट्रिस्ट मुझे जो कुछ समझाता है, वह इसलिए समझा रहा है कि मेरे मन से वहम निकले। मगर मैं किसी की बात पर यकीन नहीं करता।

घटना दरअसल डेढ़ साल पहले की है। उन दिनों मेरी नोएडा में जॉब लगी तो छतरपुर से आकर मयूर विहार फेज 2 में शिफ्ट हो गया। अकेले रहना पसंद है इसलिए मैंने ऐसा फ्लैट ढूंढा जो किनारे पर था। उसका भी टॉप फ्लोर लिया ताकि एकांत में बालकनी में बैठ सकूं। मकान मालिक ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और बाकी के तीन फ्लोर्स पर फैमिलीज़ थीं। चौथे फ्लोर पर मैं कुंवारा लड़का। मकान मालिक जैन थे तो कई सारी बंदिशें लगा रही थीं। जैसे कि घर में नॉन वेज नहीं बनेगा, शराब नहीं चलेगी, दोस्तों का शोर-शराबा नहीं होगा, लड़की नहीं आ सकती आदि। मैंने भी ये शर्तें मान लीं क्योंकि ब्राह्मण परिवार में होने की वजह से मांस-मदिरा से दूर रहा और कभी कोई लड़की गर्लफ्रेंड तो दूर, दोस्त तक नहीं बनी। दोस्तों का आना भी नामुमकिन सा था क्योंकि अकेले रहना पसंद था मुझे।

अकेले इसलिए रहना पसंद क्योंकि मै अपनी दुनिया में रहता हूं। मुझे किताबें पढ़ना पसंद है, डायरी लिखना पसंद है और खाली वक्त में म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स प्ले किया करता हूं। ऐड एजेंसी से जुड़ा हूं जो कॉन्सेप्ट विजुअलाइज़ करने के लिए भी एकांत मुझे चाहिए होता है। तो इस घर में रहना मैंने शुरू किया। गर्मियां खत्म होने वाली थीं और सर्दियों का मौसम दस्तक दे रहा था। मेरी आदत थी कि रात के अंधेरे में एकदम छत पर चला जाता जहां पानी की टंकियां रखी थीं। बीच में थोड़ी सी खाली जगह थी। वहां पर चटाई बिठाता और आसमान की तरफ देखता रहता। कभी संयोग अच्छा होता तो आसमान पर तारे भी दिख जाते। ऐसे लेटे-लेटे ख्याली पुलाव बनाने में बड़ा मजा आता।

एक दिन मैं ऐसे ही लेटा था। रात के करीब साढ़े 12 बज रहे होंगे। मौसम में हल्की ठंडक होने लगी थी। तभी अचानक एक गर्म हवा का झोंका चेहरे से टकरा गया। मैं चौंका कि साला ये लू का थपेड़ा कहां से आ गया। चलो, आया होगा कहीं से। यह सोचकर मैं फिर ख्वाबों में खो गया। कुछ देर बाद फिर वैसा ही थपेड़ा मेरे पैरों से होते हुए धीरे-धीरे चेहरे तक आया और सर्र की आाज करता हुआ निकल गया। अब मैं सचेत हुआ औऱ थोड़ा उठकर बैठ गया। इधर-उधर देखा तो आसपास के ज्यादातर घरों की लाइटें बुझ चुकी थीं। इक्का-दुक्का घरों की खिड़कियों से रोशनी आ रही थी। चूंकि मेरी छत काफी ऊंची थी, इसलिए अंधेरा ही रहा करता था छत पर। मैंने फोन की लाइट जलाकर इधर-उधर देखा तो कुछ नहीं था। खैर, कुछ देर बाद मैं अपने कमरे में आकर सोने की कोशिश करने लगा।

करीब सवा 1 हुए होंगे कि अचानक कमरा महकने लगा। ऐसी खुशबू आने लगी जैसे किसी ने पॉन्ड्स का पाउडर छिड़कर दिया हो। मैं उठा कि यार कहां से खुशबू आ रही है। मेरे पास तो ऐसी खुशबू वाला कोई पाउडर या परफ्यूम नहीं था। सोचा कि शायद किसी ने अपने घर में लगाया होगा। हवा से खुशबू बह आई होगी। मगर खुशबू बहुत तेज होने लगी तो बड़ी इरिटेशन हुई। मैंने सोचा कि बाहर जाकर खिड़की खोल लूं ताकि साफ हवा आए। मैं अंदर वाले कमरे से जैसे ही बाहर वाले कमरे मे गया, वहां वैसे खुशबू नहीं थी। मैं फिर अंदर वाले कमरे में गया तो वहां पर वह खुशबू थी। यकीन मानिए, अभी तक मेरे मन में भूतप्रेत वाली या कोई डरावनी बात नहीं आई थी। और मै भूत-प्रेत पर यकीन भी नहीं करता था। तो लाइट ऑन करके इधर-उधर देखने लगा कि कोई शीशी वगैरह तो नहीं गिर गई। काफी तलाशने के बाद कुछ नहीं मिला तो मैं सो गया।

अगले कुछ दिनों मैं इन घटनाओं को भूल गया। मगर फिर से एक दिन वही खुशबू रात को 11 बजे से लेकर 1 बजे तक महकने लगे। मैंने यूं ही मकान मालिक को बताया कि जी रात को पता नहीं कौन पॉन्ड्स क्रीम या पाउडर की स्प्रे कर देता है कि सिर में दर्द होना लगता है। मालिक बोला कि बेटा अब किसको बोलेंगे। इतने किराएदार हैं यहां, क्या पता कौन करता है। खैर, अब उस खुशबू से दिक्कत होना बंद हो गई क्योंकि आदत हो चली थी। वह खुशबू जब तक आती रात को और अंदर वाले कमरे में ही आती। मुझे ही नहीं, कभी-कभार में यहां रात को रुक जाने वाले दोस्तों को भी वह खुशबू आती।

एक दिन मै छत पर लेटा हुआ था आराम से। आसमान की तरफ देखते हुए ख्यालों में खोया हुआ। योजना बना रहा कि करियर में क्या किया जाए कि पैसे भी बढ़ें। जॉब चेंज की जाए या फिर लाइन ही चेंज कर ली जाए। इतने में मुझे लगा कि जैसे फिर से एक गर्म हवा का झोंका आया। मैं उठकर बैठ गया। जैसे ही उठा मेरी नजर बगल वाली छत पर गई। वहां एक लड़की खड़ी थी जिसने दूसरी तरफ को मुंह किया हुआ था। लग रहा था कि फोन पर बात कर रही है। हो सकता है बॉयफ्रेंड से बात करने आ गई हो ऊपर। सो मैं फिर से लेट गया और विचारों में डूब गया। कुछ देर बाद मुझे लगा कोई छत के बाउंड्री वॉल के छज्जे पर बैठा हुआ है।

अगर आप दिल्ली की कॉलोनियों में गए हों तो देखेंगे कि घर एक लेन में चिपके हुए होते हैं। दीवार से दीवार सटी होती है और छत से छत। कुछ लोग अपनी छतों के किनारों पर कांच लगा देते हैं तो कुछ सरिए ताकि कोई इधर से उधर न आ सके। अब मेरा वाला फ्लैट किनारे पर था मगर उसके बगल वाले फ्लैट की छत और हमारी छत चिपकी हुई थी। उसकी छत से और छतें चिपकी हुई थीं। कुछ एक लोगों ने ही सरिए लगाकर रेलिंग लगाई थी कि कोई चोर न घुस आए। हमारे मकान-मालिक ने भी नहीं लगाए थे।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

तो मैंने देखा कि लड़की छत की रेलिंग पर बैठी हुई है। मैं चौंका कि कमबख्त क्या कर रही है ये यहां। मैं फिर उठ गया। छत पर रोशनी ज्यादा नहीं थी मगर इतनी तो थी ही कि मैं पता चल सके कि कहां क्या है। मैंने देखा कि वह मेरी तरफ ही देख रही है। मैं हैरान कि कर क्या रही है ये। मैंने सोचा कि बात करते करते इधर आ गई है सो मैंने इग्नोर करते हुए दूसरी तरफ देखना शुरू कर दिया। इतने में आवाज सुनाई देती है- Hi. मैं शर्मीला सा। लड़कियों से बात करते वक्त जुबान तालू से चिपक जाती है। मैंने आवाज को अनसुना कर दिया और फिर से दूर मेट्रो स्टेशन की छत की तरफ देखना शुरू कर दिया जो दूर चमक रही थी। दोबारा लड़की ने आवाज नहीं दी। कुछ देर बाद मैंने देखा कि वह दोबारा दूसरी तरफ चली गई है और शायद फोन पर बात कर रही है। तो मैं 5-10 मिनट और रुका और फिर नीचे आ गया। बिस्तर पर सोते हुए सोचने लगा कि यार लड़की कौन थी। क्यों हाइ बोल रही थी। बगल वाले मकान में रहती है लगता है। लाइन दे रही है। अंधेरे में पता नहीं चला पर ठीकठाक ही लग रही थी। खैर, ये सोचते हुए मैं सो गया।

अगले दिन मैं वैसे ही लेटा हुआ था कि फिर आवाज आई- हेलो। उठकर देखा तो लड़की सामने खड़ी थी। वह इस बार दीवार फांदकर मेरी छत पर आ गई थी और सामने खड़ी थी। अब इग्नोर तो किया नहीं जा सकता था। मगर लगा कि अजीब लड़की है, इधर ही आ गई। मैंने भी कहा- हेलो। लड़की बोली- कल तो आपने जवाब ही नहीं दिया। मैंने कहा कि अरे कब, मुझे पता नहीं चला। यह कहते वक्त मैं सोच रहा था कि इस लड़की के इरादे क्या हैं। फिर मैंने पूछा कि मैंने आपको देखा नहीं पहले। इतनी रात को आप यहां। बोली- हां मैं नई शिफ्ट हुई हूं। यहीं आपकी बिल्डिंग से एक बिल्डिंग छोड़कर आगे वाली बिल्डिंग में। मैंने कहा तो आप यहां क्या कर रही हो। बोली कि मेरी छत पर मकान मालिक से कबाड़ डाला हुआ है। वहां चलने में भी मुश्किल होती। छत चिपकी हुई है सो मैं बगल वाली छत पर आ जाती हूं। यहां आराम से घूम सकती हूं।

मैंने सोचा वाह, बड़ी तेज लड़की है। इतने में बोली- मैं आपको पिछले 10-15 दिनों से देख रही हूं। रोज आते हैं आप यहां। मैं नई आई हूं यहां और कोई जान-पहचान वाला भी नहीं। तो मैंने सोचा कि कल कि आप रोज आते हो, अलग से हो। आपसे ही बात कर लूं। यह सुनकर दिल में हलचल पैदा हो गई कि यार सही है, लड़की लाइन दे रही है अब तो खुलकर। मैं मुस्कुरा पड़ा। मैंने कहा कि ऐसे रात को अनजान लोगों से बात करना और उनकी छत पर चले आना ठीक नहीं है। ये दिल्ली है। लड़की हंस पड़ी। हंसी बड़ी मीठी लगी। और हंसते हुए उसने अपने बाल एक तरफ को किए तो पहली बार उसके चेहरे की झलक दिखाई दी। लड़की सुंदर थी। मैं यह सोच ही रहा था कि उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बोली- My name is Pratima. मैंने भी हाथ मिलाते हुए कहा- विक्रम। हाथ मिलाते वक्त मैंने जो बात महसूस की थी वह यह कि उसका हाथ बहुत गर्म था, मानो बुखार हुआ पड़ा हो। अब इस बारे में तो कुछ बोल नहीं सकता था मैं उसे।

उस दिन वहीं छत पर बैठे हम और खूब बातें कीं। उसने मेरे बारे मे पूछा कि कहां से हूं, क्या करता हूं। मैंने उसके बारे में पूछा तो बोली कि मैं क्या करोगे जानकर, पहले तुम बताओ अपने बारे में। कैसे उससे बातचीत में रात के 3 साढ़े 3 हो गए पता ही नहीं चला। उससे खूब बातें हुईं दिल्ली को लेकर। मैने अपने गांव के बारे मे बताया, अपने शौक के बारे में बताया। बातचीत क्या हुई, ज्यादातर वक्त मैं ही बोला। वह सिर्फ हंसी, मुस्कुराई या फिर बीच में कभी-कभार एक आध वाक्य बोली होगी। लगाकार मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थी। मगर मैं थोड़ा शर्माता हुआ सा उससे नजरें नहीं मिला रहा था और सामने देखते हुए बातें कर रहा था। बीच-बीच में उसकी तरफ देख लेता।

कुछ बता ही रहा था कि अचानक बोली- ठीक है विक्रम, रात बहुत हो गई। अब मैं चलती हूं। आपको भी जाना चाहिए। कल बात करेंगे वहीं से, जहां से छूटी है। मैंने कहा ओके। अच्छा लगा मिलकर। बोली सेम हियर्। यह बोलते ही मैं उठा और अपनी छत की तरफ कूद गया और वह दूसरी तरफ चली गई। दोनों ने एक-दूसरे को बाइ कहा। वो दूसरी तरफ चल दी और मै पलटकर सीढ़ियां उतरने लगा। नीचे आकर मैं प्रतिमा के बारे में ही सोच रहा था। अंदर एक अलग तरह की खुशी थी, अलग तरह की उमंग। ऐसा लग रहा था कि सब कुछ अच्छा-अच्छा हो गया। मुझे पहली ही मुलाकात में प्रतिमा से प्यार हो गया था शायद। नींद आई नहीं और सुबह ऐसे ही नहाकर चला गया ऑफिस। ऑफिस से आया तो शाम को ही छत पर बैठ गया कि कब प्रतिमा आएगी छत पर। नजरें उसी तरफ, जिस तरफ उसने अपना घर बताया था।

शाम से रात हो गई और इस बीच मैं डिनर बनाने चला गया। लगा कि आज नहीं आएगी। मैं डिनर करने के बाद फिर से छत पर आ गया और चटाई पर लेट गया। इस बीच न जाने कब मेरी आंख लग गई। बीती रात को सोया भी तो नहीं था। ऑफिस में भी नींद आ रही थी। खैर, अचानक नींद में लगा जैसे कोई नाम पुकार रहा है। आंख खुली तो सामने प्रतिमा थी और मेरा नाम पुकार रही थी। मैंने आंखें मलते हुए कहा सॉरी, नींद आ गई थी। बोली, इट्स ओके। तो मैं उठकर बैठ गया और उससे कहा कि आओ यहीं नीचे आकर बैठो। बोली- नहीं, यहीं ठीक हूं। वह दीवार पर बैठी हुई थी। तो हाउ वॉज़ योर डे- उसने पूछा। मैंने बताया कि कुछ खास नहीं, बोरिंग। मैंने उसके बारे में पूछा कि तुम क्या करती हो, बताया नहीं अपने बारे में।

प्रतिमा मुस्कुराई और बोली कि मैं कॉल सेंटर में काम करती हूं। भोपाल से हूं वैसे। इससे पहले पुणे में थी और उससे पहले बैंगलोर। ग्रैजुएशन भी बैंगलोर से की। स्कूलिंग भोपाल से हुई। फैमिली में पापा नहीं हैं, छोटी थी तभी वो गुजर गए थे। मां है और बड़ा भाई-भाभी। मां और भैया-भाभी साथ रहते हैं। मेरी भाभी से बनती नहीं तो घर पर कम जाती हूं। बस। इतना कहकर प्रतिमा चुप हो गई। ऐसा बोलते वक्त उसके चेहरे के हाव-भाव गंभीर हो गए थे। मैं समझ गया कि वह फैमिली के बारे में बात नहीं करना चाहती। मैने भई बात घुमा दी और ऑफिस के बारे में पूछा। तो बोलने लगी कि ऑफिस में क्या लाइफ है। जाओ, कॉल्स सुनो और घर आ जाओ। खुलकर बातें होने लगी प्रतिमा से। उस दिन मैं और खुश था। मैंने खूब अपने ऑफिस सी गॉसिप्स सुनाईं उसे। बीच में मैंने उससे पूछा कि आर यू सिंगल। उसने कहा यस। और मुझसे पूछा- ऐंड यू? मैंने भी कहा कि चिर सिंगल हूं। कभी कोई गर्लफ्रेंड नहीं रही। यह सुनकर वह हंसते हुए बोली कि मजाक मत करो, तुम्हारी अभी गर्लफ्रेंड न हो ये तो हो सकता है मगर मैं ये नहीं मान सकती कि तुम्हारी कभी गर्लफ्रेंड नहीं रही। मैं पूछा ऐसा क्या है। तो बोली तुम हैंडसम हो, बातें अच्छी करते हो, अच्छी जॉब भी करते हो।

सच कहूं तो यह सुनकर मैं और खुश हो गया। खुशी थी कि प्रतिमा अब अपने मन के भाव मेरे सामने जता रही थी। मैं उत्साहित था। खैर, ऐसे ही रोज शाम को मैं प्रतिमा से मिलने लगा। वो ऑफिस से 12.30 या 12 बजे तक पहुंचती और कुछ देर में ऊपर आ जाती। हम दोनों छत पर बैठे रहते और 2 बजे तक बातें करते। इस बीच उसने मुझे अपना नंबर दिया, मगर वह कहती कि वो फेसबुक और वॉट्सऐप पर नहीं है ताकि रिशअतेदार तंग न करें। और मुझे भी उसे कभी कॉल करने की जरूरत महसूस नहीं हुई। मैं भी दिन में बिजी ही रहता था। एक दिन मैंने उसे कहा कि चलो मेरे घर चलो नीचे। उसने कहा कि नहीं, कोई देख लेगा। मैंने कहा कि देख तो कोई छत पर भी सकता है। तो उसने कहा कि छत की बात अलग है औऱ कमरे की बात अलग।

मैं उसे पसंद करने लगा था और चाहता था कि उसे प्रपोज कर दूं। मगर मैं रात को छत पर यह सब नहीं करना चाहता था। वीकेंड पर भी वह कोई न कोई बहाना बनाकर शहर से बाहर होती थी। मुझे लगता था कि शायद उसका कोई बॉयफ्रेंड है जिससे मिलने जाती है वीकेंड पर। खैर, मैंने उसे एक बार कॉल भी किया संडे को नंबर नॉट रीचेबल आया। फिर मैंने सोचा कि क्यों न रात को ही छत पर प्रपोज किया जाए। तो मैंने प्लैनिंग के तहत गुलाब के फूल लिए और उसे प्रपोज करने के लिए टंकी के पीछे रख दिए। उस रात वह आई और मैंने उसे आंखें बंद करने को कहा। मैं गुलाब के फूल लाया र उसके सामने रख दिए और उससे आंखें खोलने को कहा। उसने आंखें खोलीं और बोली- ये क्या है। मैंने कहा कि आई लव यू प्रतिमा। मैं तुम्हें बहुत पसंद करने लगा हूं। मैं…. … इससे पहले कि आगे कुछ बोलता प्रतिमा ने कहा। स्टॉप इट विक्रम। मैं चौंक गया। उसका चेहरा एकदम गंभीर था, अजीब सा। उदासी से भरा। बोली प्लीज़ रुक जाओ। मैंने कहा मैं मजाक नहीं कर रहा, मैं दिल से तुम्हें चाहता था। उसने कहा कि नहीं, तुम प्लीज़ फ्रेंडशिप मत खराब करो।

मैं चुप हो गया। मुझे बहुत बुरा लगा और मैं पलटकर सीढ़ियां उतरकर कमरे में आ गया औऱ दरवाजा बंद कर लिया। वो बोलती रह गई विक्रम रुको, बात सुनो। वह नीचे तक आ गई और दरवाजा खटखटाने लगी। मगर अंदर मै जोर से रो रहा था। करीब 5 मिनट तक उसने दरावाजा खटखटाया और फिर वह चली गई। मुझे गलती का अहसास हुआ कि यार मैंने क्या किया। वो आई भी थी पहली बार मगर दरवाजा नहीं खोला। मैंने तुरंत दरावाजा खोला और उसने देखे छत पर गया मगर कोई नहीं था वहां। गुलाब के फूल भी नहीं जिन्हें मैं प्रतिमा के लिए लाया था। मैं कूदकर दूसरी छत में गया और उससे आगे वाले घर की तरफ झांकने लगा जहां पर प्रतिमा ने अपना घर बताया था। वहां अंधेरा था और वाकई कबाड़ भरा हुआ था जैसे प्रतिमा ने बताया था। मन किया कि नीचे उतकर जाऊं मगर हिम्मत नहीं पड़ी। पकड़ा जाता तो धुनाई अलग होती और प्रतिमा की बदनामी अलग। पुलिस केस भी हो सकता।

फिर मैं अपने कमरे में आ गया। सोचने लगा कि प्रतिमा ने इनकार क्यों किया। लाइन तो खुद मारती थी। रोज रात को आकर बातें करती थी, हंसती थी, हंसते हुए कभी हाथ पकड़ लेती तो कभी कंधे पर सिर सरखर बातें सुनने लगती। मुझे लगा कि उसका पक्का कोई बॉयफ्रेंड है और इसीलिए मुझे हां नहीं कहा उसने। इसीलिए वह दिन मे मिलने से बचती है औऱ वीकेंड पर उसी के साथ घूमने जाती है। अब मेरे मन का प्यार नफरत में बदल चुका था।

खैर, अगली रात को मैं प्रतिमा का इंतजार कर रहा था मगर वह नहीं आई। एक हफ्ते तक वह नहीं आई। फिर मै ंसमझ गया कि वह अब नहीं आएगी। हफ्ते के बाद मैं अपनी धुन में अपने कमरे में बैठा हुआ था। दरवाला खुला हुआ था और रात काफी हो चुकी थी। किसी ने दरवाजे पर नॉक किया। मैंने उचककर देखा तो वहां प्रतिमा खड़ी थी मुस्कुराते हुए। उसके हाथों में गुलाब के फूल थे। मुझे समझ नहीं आया कि क्या कहूं क्या नहीं। बोली- अंदर आ सकती हूं? मैंने गुस्सा थूकते हुए कहा क्यों नहीं। यह सुनकर वह मुस्कुराई औऱ अंदर आ गई। बोली घर तो बड़ा अच्छा सजा रखा है तुमने। मैंने कहा बस है ऐसे ही। उसने गुलाब के फूल टेबल पर रखे और बोली, सॉरी विक्रम अगर तुम्हें बुरा लगा। देखो, तुम अच्छे लड़के हो और कोई भी लड़की चाहेगी कि तुम्हारे जैसा बॉयफ्रेंड हो उसका। मगर मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। मैंने कहा कि इस बारे में बात मत करो प्लीज़। वो बोली- देखो, मैं नहीं चाहती तुम मेरे बारे में गलत सोचो, मगर मैं अपनी मजबूरी बता नहीं सकती। यह सुनकर मैं फिर से भावुक हो गया और रोने लगा। यह देखकर वह आगे बढ़ी और उसने मुझे गले से लगाया औऱ बोली प्लीज रोओ मत, मेरी गलती है और मुझे नहीं बात करनी चाहिए थी तुमसे। मैं तुमसे मिलूंगी तो तुम्हें और दुख होगा। इसलिए आज के बाद मैं तुमसे नहीं मिलूंगी।

यह सुना मैंने औऱ न जाने क्या हुआ कि मैंने प्रतिमा को कसकर पकड़ लिया। ठीक उस बच्चे की तरह जैसे उससे कोई चीज़ छुड़ाई जा रही हो औऱ वह छोड़ न रहा हो। मगर इस बीच न जाने मुझे क्या हुआ और मैंने प्रतिमा को जकड़ लिया। प्रतिमा की आवाज गंभीर हुई और वह कहने लगी विक्रम, छोड़ो मुझे। मुझे ठीक से याद नहीं है मगर शायद मैं उसे किस करना चाह रहा था। मगर प्रतिमा ने कहा कि विक्रम स्टॉप। डोंट डू दिस। इतने में अचानक मुझे झटका सा लगा और मैं उछलता हुआ कमरे के दूसरे किनारे पर जा गिरा। अब प्रतिमा के चेहरे के भाव बदल चुके थे। गुस्से से लाल हो चुकी थी और अजीब सी आवाज में सांसें ले रही थी। मैं हैरान था कि इतनी ताकत कहां से आई इसमें कि इसने मुझे हवा में उछाल दिया। अब तक दिमाग से वासना का भूत भी उतर चुका था और अहसास हो गया था कि कितनी बड़ी गलती कर रहा था मैं। लंबी-लंबी सांसें लेती हुई गुस्से से तमतमाई प्रतिमा बोली- यू शुडन्ट हैव डन दिस, यू स्पॉइल्ड एवरीथइंग। यह कहकर वह मुड़ी और बाहर जाने लगी। उसकी आवाज भी बदली हुई थी। जैसे दो-तीन लोग एकसाथ बोल रहे हों।

अपनी गलती के अहसास के बोझ तले दबा मैं पीछे-पीछे भागा- सॉरी प्रतिमा, आई एम रियली वेरी सॉरी। दरवाजे से बाहर निकला तो प्रतिमा वहां नहीं थी। उसके तेज कदमों की आहट सीढ़ियों की तरफ से आ रही थी। मैं सीढ़ियों की तरफ लपका। छत पर गया तो मैंने जो देखा उसे बताते वक्त मैं अभी भी कांप रहा हूं। मैंने देखा कि प्रतिमा लंबी-लंबी छलांगे लगा रही है एक छत से दूसरी छत पर जो एक इंसान के लिए संभव नहीं। ऐसा लग रहा था फिल्मी सीन देख रहा हूं। वह एक लेन के मकानों की छत से दूसरे लेन के मकानों की छत पर लगभग उड़ती हुई सी कूद रही थी। मैंने करीब 30-35 सेकंड्स तक उसे दूर तक ऐसे ही कूदते-फांदते देखा जब तकि वो मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई। मैं सन्न था और वहीं पर बेहोश हो गया। मुझे होश आया होगा सुबह करीह 6 बजे जब सूरज की रोशनी होने लगी। मैं उठा और रात की घटना को याद करते हुए कांपने लगा। जैसे-तैसे कमरे मे गया तो देखा कि वहां गुलाब के फूल का गुच्छा रखा हुआ है टेबल पर। मेरी हिम्मत नहीं उन फूलों को छूने की। तुरंत सीढ़ियां उतरकर नीचे मार्केट में चला गया और वहां से दोस्तों को फोन किया। दोस्त आए तो उन्हें पूरी बात बताई। कुछ दोस्तों ने कहा कि तुझे वहम हुआ है तो कुछ ने कहा कि कोई और चक्कर है।

roses

मैंने दोस्तों के साथ कमरे में गया, जरूरत के कपड़े उठाए और दोस्त के यहां चला गया। बाद में मैं इसी दोस्त के यहां शिफ्ट हो गया और सारा सामान ले आया। गुलाब के फूल के वे गुच्छे वहीं कमरे में किचन के टेबल पर रख आया थो जो सूख चुके थे। इस बीच मेरे जोर डालने पर कुछ दोस्त पूछताछ करने उस घर में गए जहां पर प्रतिमा ने अपना घर बताया था तो मकान मालिक ने कहा कि ऊपर कोई नहीं रहता। कई सालों से उन्होंने इसे स्टोर रूम बनाया हुआ है। यानी जिसे प्रतिमा अपना किराए का फ्लैट बताती थी, वहां कोई नहीं रहता था। फिर वहां कहां रहती थी? भागी भी तो वह न जाने कहीं और को ही थी।

अब मैं उस घटना को याद करता हूं तो पता चलता है कि शायद प्रतिमा असली लड़की नहीं थी। क्योंकि उसके सामने मैं उसके चेहरे मे खो जाता था, मगर अब ध्यान आता है कि पॉन्ड्स की जो खुशबू मेरे कमरे से आया करती थी, वही खुशबू प्रतिमा से भी आती थी। मगर मैं कभी इस बात को नोटिस नहीं कर पाता था। उस दिन के बाद से जब कभी मुझे गुलाब के फूल दिखते हैं या पॉन्ड्स की खुशबू आती है, मैं कांप जाता हूं। प्रतिमा का चेहरा मेरे सामने घूम जाता है। अब अकेले जाने से डरता हूं। लड़कियों की तरफ देखे से बचता हूं कि कहीं इनमें से किसी में प्रतिमा का चेहरा न नजर आ जाए।

मेरे डॉक्टर का मानना है कि या तो मैं पूरी की पूरी कहानी मनगढंत सुनाता हूं या फिर मैंने अंत में उसके कूदकर हवा में उड़ने वाली बात झूठ बताई है। मेरे मन में भी कभी-कभी ख्याला आथा है कि शायद वह असली लड़की थी। मैं खुद को कोसता भी हूं कि मैंने उसके साथ जो किया वह ठीक नहीं था। मैं शायद गलत समझ बैठा और उसकी बेबाकी और उसका लाइन मारना समझ बैठा और गलत हरकत भी कर बैठा। मगर उसका लंबी-लंबी छलांगे लगाना मैंने पूरे होश में देखा था। एक मनोचिकित्सक ने मुझे यह भी बताया था कि मेरे मन से प्रतिमा के साथ की गई हरकत का अपराध बोध नहीं हट पाया है, इसीलिए मेरा सबकॉन्शस माइंड ऐसी कहानियां गढ़ता ताकि खुद को दिलासा दिया जा सके। मगर मैं जानता हूं कि सच क्या है।

हॉरर एनकाउंटर सीरीज में अन्य लोगों की आपबीती पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(कहानी भेजने वाले ने अपना नाम न छिपाने की गुजारिश की थी मगर हमारा मानना है कि उनका नाम नहीं आना चाहिए। इसलिए उनका नाम बदलकर काल्पनिक नाम दिया गया है। लड़की का नाम भी बदला गया है)

‘रहस्यमयी महिला के कंधों पर बैठकर वह दूरबीन से मुझे देख रहा था’

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

नोट: वैसे तो हम आज से नई सीरीज शुरू करने वाले थे मगर किन्ही वजहों से कहानी के संपादन का कार्य पूरा नहीं हो पाया है। हम जल्दबाजी में उसे प्रकाशित नहीं करना चाहते। इसलिए हम उस कहानी को कल यानी शनिवार को प्रकाशित करेंगे। फिलहाल आप कुछ दिन पहले प्रकाशित यह कहानी पढ़ सकते हैं, जो शायद आप में से बहुत से लोगों ने न पढ़ी हो। असुविधा के लिए खेद है। 

सुरेंद्र शर्मा।। मुझे अच्छी तरह याद है वह दिन- 1 दिसंबर, 1996। मैं चंबा के कुछ ग्रामीण इलाकों में धूमकर वापस लौट रहा था। हम 5 दोस्तों का ग्रुप था। सब लोग थके हुए थे तो जल्द से जल्द अपने-अपने घरों की तरफ जाना चाहते थे। हम सब चंबा के बस अड्डे पर बैठकर बस का इंतजार कर रहे थे। उन दिनों बसें इतनी नहीं होती थीं और शाम के समय तो वैसे भी कम ही बसें चला करती थीं। खैर, सर्दियां अच्छी खासी हो चुकी थीं। वक्त बिताने के लिए हम लोग यूं ही बस अड्डे के पास चाय के खोखे के पास आग जलाकर बैठे लोगों में शामिल हो गए। आग सर्दियों में आग तापने का मजा ही कुछ और है। आग तापी जा रही हो और किस्से-कहानियों या राजनीतिक चर्चा का दौर न चला हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। वहां भी पहले से बैठे लोग हंसी-ठिठोली कर रहे थे।

हम सब लोग ऊना से थे तो हम लोगों को पहले से बैठे लोग कुछ सहज नहीं ले रहे थे। होता भी है, आज भी ऊना के लोगों को हिमाचल के पहाड़ी इलाकों के लोग अपना नहीं मानते 🙂 भले ही बात बुरी लगे, मगर हमें मैदानी हिस्से वाला होने के कारण बहुत से लोग दिल में जगह आज तक नहीं दे पाए हैं। बहरहाल, मैं फिर चंबा की उसी शाम की बात करता हूं। तो वे लोग अपनी बातों में लगे थे और हम 4 लोग एक-दूसरे की शक्लें देखते हुए उनकी बातें सुन रहे थे। मैंने इस संवादहीनता को तोड़ते हुए कोई बात करनी चाहिए। मैंने सामने सिर पर मफलर बांधकर बैठे उम्रदराज से दिख रहे व्यक्ति से कहा- चाचू, यहां पीने-वीने का इंतजाम है क्या कोई?

हम लोग कॉलेज से निकले ही थे तो उम्र हमारी यही कोई 21-22 साल रही होगी। तो हमारी शक्लें देखकर वह व्यक्ति बोला कि अभी ढंग से दाढ़ी उगी नहीं और शराब का पूछ रहे हो। मैं इस सवाल पर शर्मिंदा भी हुआ, मगर इतने में उन्हीं के ग्रुप का एक व्यक्ति बोल उठा कि मुंडे जवान हो गए हैं, बच्चे थोड़े ही हैं। मैं भी मुस्कुराया और मेरे दोस्त भी। इतने में वो अंकल बोलने लगे कि शराब मिलेगी मगर देसी और किसी जगह का नाम लिया उन्होंने। इतने में दूसरा आदमी बोला कि वहां नहीं, कहीं और अच्छी मिलती है। उनमें से 3-4 लोग इस चर्चा में व्यस्त हो गए कि कौन से बंदे के यहां अच्छी देसी शराब मिलती है, खुद निकाली हुई।

बस यहीं से बातों का सिलसिला निकल पड़ा। उन्होंने हमारे बारे में पूछा कि हम कहां से हैं, क्या करते हैं, क्या करने आए थे। हमने उन्हें बताया कि ऐसे-ऐसे चंबा घूमने आए थे। हमने बताया उन्हें कि कैसे रावी नदी के किनारे तंबू लगाकर सोए थे। यह सुनकर उनमें सबसे बुजुर्ग लग रहे एक व्यक्ति ने कहा कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। जाहिर है, हमारे मन मे सवाल उठा कि क्यों। पूछा तो जवाब मिला कि नदी के किनारे कई चीजें होती हैं और रात को बेगानी जगह नहीं सोना चाहिए। क्या पता रात को बाढ़ आ जाए या जंगली जानवर आ जाए। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुम कहां थे, कहां चले गए।

जब बुजुर्ग ने हमारे सवाल का यह जवाब दिया तो जानें क्यों मुझे लगा कि वजह कुछ और है। मैंने कहा कि जंगली जानवरों के लिए तो हमने पूरी रात आग जलाए रखी तंबू के बाहर और सर्दियों के मौसम में कौन सा बाढ़ आ सकती है। इसपर उन्होंने कहा कि और भी कई चीजें होती हैं। मैंने भी कुरेदते हुए कहा कि कौन सी चीजें? एक दूसरा शख्स बोला- भूत-पिशाच, चुड़ैलें, राक्षस कई कुछ। यह सुनकर मैं हंस पड़ा। मेरी हंसी सुनकर बुजुर्ग बोला- बच्चा, तुम लोगों को समझ नहीं आएगी हमारी बातें। तुम बोलोगे कि पहाड़िए अंधविश्वासी होते हैं। हमने देखी, सुनी और खुद महसूस की हैं चीजें, इसलिए बता रहा हूं। बाकी होने को तो कुछ नहीं होता, जिसका टाइम माड़ा हो, उसके साथ ही होता है।

मेरी बड़ी जिज्ञासा रहती है थी भूतों की या कुछ ऐसी ही रोमांचक कहानियों में। बुजुर्ग की बातों में मेरी दिलचस्पी की एक और वजह थी, जिसके बारे में आपको मैं बाद में बताऊंगा। तो मैंने बुजुर्ग से पूछ ही लिया कि ऐसा क्या हुआ कभी आपके साथ। मेरे सवाल का बुजुर्ग के साथ ही बैठे लोगों ने भी समर्थन किया और बुजुर्ग से पूछा कि आज सुनाओ कुछ अपने साथ बीते किस्से। बुजुर्ग ने पहले तो आनाकानी की। फिर अपनी कंपकंपाती हुई सी आवाज में किस्सा सुनाना शुरू किया। उन्होंने कहा-

“मैं 20-22 साल का था, जब उसी जंगल से लकड़ी लाने गया था, जिसके नीचे नदी किनारे तुम लोग रात को रुके थे। सुबह से शाम तक हमने लड़कियां काटीं। मेरे साथ मेरा पड़ोसी भी था, जो मुझसे 2 साल बड़ा है। वो जंगल में एक तरफ चला गया था और मैं दूसरी तरफ। शाम तक मैंने लकड़ियां काटीं और उनका ढेर लगा दिया। सांझ होने को आई तो मै उस जगह की ओर चल दिया, जहां से जंगल शुरू होता है। हम उसी जगह पर अक्सर मिला करते थे जंगल से लौटने के बाद। मैं उस जगह पर पहुंचा तो देखा कि पड़ोसी पहले से ही इंतजार कर रहा है। मैं पास गया तो बोला कि क्या हुआ। वो बहुत डरा हुआ लग रहा था। मैंने पूछा क्या हुआ। बोला यार बड़ी अजीब चीज देखी जंगल में। मैंने पूछा कि ऐसा क्या देख लिया।

बोला कि बीच में थकान सी हुई तो मैंने सोचा घंटा भर नींद लगा लूं। वहीं लकड़ियों के चट्ठे के बीच तौलिया रखकर सो गया मै। नींद में ऐसा लगा कि कोई महिला मुझे आवाज दे रही है। नींद खुली और उठकर आसपास देखा। फिर आवाज आई तो कम से कम 100 मीटर दूर पेड़ों के बीच एक महिला दिखाई दी। उससे भी अजीब बात ये कि उसके कंधों पर एक बूढ़ा बैठा हुआ था, जो दूरबीन से मेरी तरफ देख रहा था। बड़ा अजीब सीन था यार। मैं उनकी तरफ करीब एक मिनट देखकर समझने की कोशिश करता रहा कि है क्या मामला। डर के मारे मेरी आत्मा कांप रही थी। न वो मेरी तरफ आ रहे थे, न जा रहे थे। मैं तो अपनी जगह फंस ही गया था। इतने में उस बूढ़े ने जब दूरबीन हटाई तो मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया। और भाई चेहरा देखा तो मैं बेहोश हो गया। मेरा दादू बैठा हुआ था उस औरत के कंधों पर वो भी अपने उन कपड़ों में, जो उसने इधर-उधर जने को रखे हैं। इसके बाद वो महिला मुड़ी और दादू समेत जंगल में चली गई। तबसे भागकर मैं यहीं जंगल से बाहर बैठा हुआ हूं।

Indicative image
Indicative image

 

उस पडो़सी की कहानी सुनकर मैं डर गया, मगर मैंने उसको बोला यार तूने कोई सपना देखा है। दिन में सोएगा तो ऐसा ही होगा। ऐसा कभी हो सकता है क्या। तो पड़ोसी बोला कि नहीं भाई, नींद नहीं थी, मैंने पूरे होशो-हवास मे देखा है। भ्रम का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। मैं तो उसके बाद सीधा भागकर यहां आया हूं। मैंने कहा कि चल छोड़ ये बातें, घर चलते हैं।

पड़ोसी तो डर के मारे खाली आ गया था, मैं थोड़ा सा गट्ठर ले आया था लकड़ियों का और बाकी लकड़ियां अगले दिन लानी थीं। तो अपने गट्ठर के मैंने दो गट्ठर बनाए और आधी लकड़ियों पड़ोसी को दे दीं। घंटा भर पैदल चलकर रात के अंधेरे में जब हम घर के पास पहुंचे तो किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। खूब महिलाएं रो रही थीं, कुछ समझ नहीं आ रहा था। लकड़ियां हमने यूं ही एक खेत में फेंकी और घर की तरफ दौड़ पड़े। घर गए तो पता चला कि मेरे साथ जो पड़ोसी गया है, उसके घर पर ही लोग इकट्ठे हुए पड़े हैं, महिलाएं रो रही हैं। पता चला कि घर का बुजुर्ग यानी मेरे साथ जंगल मे गए पड़ोसी के दादू का देहांत हो गया है शाम को। यह सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मुझे पड़ोसी का सुनाया किस्सा याद आया, जिसमें उसने दादू को अजीब हालत में किसी महिला के कंधे पर सवाल देखा था जंगल में।

इस ख्याल से मैं कितना डर गया था, यह मैं ही जानता हूं। मैंने जब ये किस्सा वहां पर आए बाकी लोगों को सुनाया तो कुछ हैरान हुए तो कुछ मुझे बेवकूफ समझने लगे। जब मेरे साथ जंगल में गए पड़ोसी ने भी बताया कि उसके साथ यही हुआ था, तब लोग गंभीर हुए मगर वे कर भी क्या सकते थे। कई दिनों तक यही किस्सा गांव समाज में बातों में छाया रहा।”

बुजुर्ग ने अपने साथ हुई यह घटना सुनाई तो हम सब सन्न रह गए। सन्न इसलिए भी रह गए, क्योंकि उसी दिन हमारे ग्रुप में साथ आए एक लड़के पिंटू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। रात टेंट मे गुजारने के बाद जब हम लोग दिन में नदी किनारे बैठकर गुनगनी धूप सेंक रहे थे, तब पिंटू अकेला ही कैमरा लेकर जंगल में चला गया था। कुछ देर बाद वह दौड़ा-दौड़ा चला आया था। उसने आकर बताया कि उसे ऊफर एक महिला दिखी, जो अपने कंधे पर किसी आदमी को बिठाकर जंगल की ओर जा रही थी। उसने बताया कि कंधे पर बैठा वो आदमी उसे अपने जीजा जैसा लग रहा था।

दिन में हम सबने सोचा था कि पिंटू मसखरी कर रहा है, मगर बुजुर्ग की बात सुनकर हमारे होश उड़ गए थे। अब हमने बुजुर्ग और उसके साथ बैठे लोगों को बताया कि दिन मे हमारे साथी को भी कुछ ऐसा दिखा है। यह सुनकर बुजुर्ग कुछ परेशान सा हो गया। उसने बोला कि घर में फोन करके पूछ लो कि सब ठीक तो है। आग के अलाव को हम सब वहीं छोड़कर बस अड्डे की तरफ दौड़े, क्योंकि वहीं से कहीं फोन किया जा सकता था। पिंटू ने अपनी दीदी के घर पर फोन लगाया तो वहां किसी ने उठाया नहींं। फिर उसने अपने पड़ोसी के यहां फोन लगाया, क्योंकि उसके अपने घर पर फोन नहीं था। पड़ोसी के फोन उठाने  पर उसने कहा कि किसी को घर से बुला दो। इस पर जवाब मिला कि घर पर कोई नहीं है, क्योंकि सब तुम्हारी दीदी के यहां गए हैं, तुम्हारे जीजा जी बिजली के खंभे पर चढ़े थे कि उन्हें करंट लग गया है। हॉस्पिटल में ऐडमिट हैं।

पिंटू के जीजा बिजली विभाग में थे। फोन पर हुई बातचीत सुनकर हम सभी घबरा गए। तरह-तरह के कयास लगते रहे। घंटे भर में बस आ गई और हम अगली सुबह ऊना उतर गए। वहं से सीधे घर पहुंचे तो मालूम हुआ कि पिंटू के जीजा की मौत हो गई थी कल हॉस्पिटल में ही। इसके बाद पिंटू समेत हम सब लोग सदमे में आ गए। कई दिन तक हम सब बीमार पड़े रहे। किसी को डॉक्टर को दिखाया गया था किसी को झाड़फूंक कराई गई। डर के मारे बुखार उतर नहीं रहा था मेरा भी। आज तो इस घटना से उबर चुका हूं, मगर जंगल मे जाने से डर लगता है। मन में अजीब सा डर बैठ गया है।

पता नहीं पिंटू का वहम था या क्या था। अगर संयोग से भी ऐसा कोई भ्रम हुआ तो कई साल पहले उस बूढ़े के साथ वैसी ही घटना कैसे हो गई थी? हमारे साथ घटना पहले हुई और बूढ़े ने अपनी बात बाद में बताई, तो ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि पिंटू ने उस कहानी के आधार पर वहम ेक आधार पर कहानी गढ़ ली हो। अगर ये सब भ्रम नहीं था तो वह महिला कौन थी और क्यों उसके कंधे पर सवार दिखने वाले व्यक्ति की मौत होती थी। क्या उस जंगल में ही कुछ बात है या वह महिला जंगल में आने वाले किसी व्यक्ति को चुनकर उसके किसी परिजन को ले जाती है? कई सवाल मेरे मन में उमड़ते-घुमड़ते हैं। मैंने कोशिश भी नहीं की चंबा या किसी और जगह के व्यक्ति से यह पूछने की कि इस तरह की घटनाएं और किसके साथ हुई हैं। मैं यही कामना करता हूं कि यह सिर्फ भ्रम और संयोग की मिली-जुली बानगी भर हो।

हॉरर एनकाउंटर सीरीज में अन्य लोगों की आपबीती पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(लेखक ऊना से है और इन दिनों चंडीगढ़ में निजी विश्वविद्यालय के फाइनैंस डिपार्टमेंट में हैं। उन्होंने नाम बदलने की गुजारिश के साथ हमें यह कहानी भेजी थी, जिसे हम मूल घटनाओं से छेड़छाड़ किए बिना देवनागरी में पेश कर रहे हैं। )

जानें, HPCA जमीन अतिक्रमण मामले में क्या था विजिलेंस की चार्जशीट में

इन हिमाचल डेस्क।। HPCA स्टेडियम धर्मशाला के जुड़ी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के मामले में अनुराग समेत 7 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका रद हो गई है (खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें)। जमीन अधिग्रहण का यह मामला हिमाचल पुलिस देख रही। प्रदेश सरकार का कहना है कि हिमाचल प्रदेश विजिलेंस डिपार्टमेंट का मामला अभी बाकी, जो अभी कोर्ट में है। इस मामले की छानबीन के बाद विजिलेंस डिपार्टमेंट ने अपनी रिपोर्ट में क्या पाया था, इस बारे में पत्रिका ‘आउटलुक’ ने एक विस्तृत आर्टिकल छापा था। हम उसका हिंदी अनुवाद नीचे दे रहे हैं।इंग्लिश में मूल रिपोर्ट का लिंक इस आर्टिकल के आखिर में दिया गया है।

आउटलुक की रिपोर्ट:
‘हिमाचल में 1960 से ही क्रिकेट असोसिएशन थी, मगर नाम भर की थी। इसीलिए अनुराग ने पंजाब की तरफ से खेलना पसंद किया। कुछ दिनों बाद उन्होंने क्रिकेट के बिज़नस में शिफ्ट होने का फैसला लिया। पंजाब के एक स्पोर्ट्स राइटर का कहना है कि अनुराग ने पंजाब की क्रिकेटिंग बॉडी में शामिल होने की कोशिश भी की थी 90 के दशक में, मगर बाहरी होने की वजह सफलता नहीं मिली। अनुराग का लक्ष्य बीसीसीआई था। पंजाब का रास्ता उनके लिए लंबा पड़ता क्योंकि जिस लॉबी का पंजाब क्रिकेटिंग बॉडी पर कब्जा था, उसके रहते यह काम मुश्किल था। इसी दौरान, अनुराग के पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए 1998 से 2003 तक। अनुराग ने वक्त नहीं गंवाया और 2000 में असोसिएशन के प्रेजिडेंट चुने गए। उनके पिता पैट्रन इन चीफ बन गए। उनका पहला प्रॉजेक्ट था- धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम बनाना।

विजिलेंस की चार्जशीट के मुताबिक इस प्रस्ताव को राज्य के यूथ सर्विसेज़ और स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट के सामने रखा गया। फाइनैंस डिपार्टमेंट ने इसे ओके कह दिया, मगर सुझाव दिया कि लीज रेंट देने के लिए मार्केट रेट अप्लाई किया जाए, क्योंकि टिकट की बिक्री और स्पॉन्सरशिप वगैरह से स्टेडियम को इनकम होगी। बीसीसीआई प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर। बीसीसीआई प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर। मगर जब मामला कैबिनेट के पास पहुंचा- HPCA प्रेजिडेंट के पिता होने के बावजूद- प्रेम कुमार धूमल ने उस मीटिंग की अध्यक्षता की, जिसने 16 एकड़ जमीन को 99 साल तक 1 रुपये प्रति माह की दर से लीज़ पर देने को मंजूरी दी। HPCA ने और भी चालाकी दिखाई और लीज़ पर मिली ज़मीन को दो निजी कंपनियों सब-लीज़ पर दे दिया, ताकि स्टेडियम के सामने पहाड़ियों के नजारे दिखाते दो होटेल पविलियन और अवेडा (अब दोनों बंद हैं) बनाए जा सकें।

अवेदा को क्लबहाउस के ऊपर बनाया गया था और उससे ग्राउंड का बड़ा हिस्सा नजर आता था। स्टेडियम के अलावा, कैबिनेट ने खिलाड़ियों के लिए रेजिडेंशल क्वार्टर बनाने की लीज़ भी दे दी। विजिलेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों होटलों को 2012-2013 में 2 करोड़ रुपये का टर्नओवर हुआ, मगर हिमाचल सरकार को उस जमीन के बदले सिर्फ साल के 12 रुपये ही मिले। हालांकि अनुराग ठाकुर इसका खंडन करते हैं। ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि HPCA ने कानून लीज़ पर मिली 50 हजार स्क्वेयर फुट जमीन के अलावा 3000 स्क्वेयर फुट एक्स्ट्रा जमीन पर एनक्रोचमेंट कर ली। यह जानकारी बाहर नहीं आती, अगर यूजीसी से फंडेड सरकारी कॉलेज इस स्टेडियम से न सटा होता।

2002 में धूमल सरकार अतिरिक्त जमीन अधिग्रहित करने में नाकाम रही, क्योंकि गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के पास वह जमीन थी। मगर अपनी सेकंड टर्म (2008-12) में मुख्यमंत्री रहते हुए अपने बेटे के लिए इस समस्या का समाधान भी प्रेम कुमार धूमल ने कर दिया। जब स्टेडियम बन रहा था, कॉलेज ने निर्माण के लिए NOC दे दिया था, मगर तीन शर्तें रखी थीं। पहली यह कि भविष्य में कॉलेज के विस्तार के लिए पर्याप्त जगह रखी जाए। दूसरी यह कि कॉलेज के स्टूडेंट्स को स्डेडियम इस्तेमाल करने की इजाजत हो और तीसरी यह कि कॉलेज के लिए अलग से एंट्री रखी जाए ताकि इसकी पनी ऐक्टिविटीज़ में कोई दिक्कत न हो।

विजिलेंस के मुताबिक 2008 में धूमल ने अपने दूसरे कार्यकाल में कांगड़ा के डीसी के.के. पंत के साथ स्पेशल मीटिंग की, जिसका मकसद पीजी कॉलेज को खंडित और इस्तेमाल के लिए असुरक्षित घोषित करवाना था कि यह खिलाड़ियों के लिए भी खतरनाक है। पंत और जिले के अन्य अधिकारियों ने मार्च 2008 में मीटिंग की और कॉलेज प्रिंसिपल को बिल्डिंग को अन्य जगह पर शिफ्ट करने का आदेवन करने को कहा। सरकारी कॉलेज में अब तक किसी ने शिकायत नहीं की थी कि बिल्डिंग जीर्ण हो चुकी है। मगर HPCA के अधिकारियों, जो उस मीटिंग में थे, ने कहा कि हम लोग बिल्डिंग की वजह से क्रिकेटर्स की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इसके तुरंत बाद जिले के अधिकारियों ने बिल्डिंग को असुरक्षित घोषित कर दिया, जबकि यह 25 साल ही पुरानी थी और 2 साल पहले ही इसकी मरम्मत हुई थी। एजुकेशन डिपार्टमेंट ने कोई दखल नहीं दिया (इन्हें भी चार्जशीट में नामजद किया गया है)।

जुलाई 2008 में अनुराग ठाकुर ने स्टेडियम के साथ 720 स्क्वेयर मीटर और जमीन मांगी, मगर इस जमीन पर कॉलेज की इमारत खड़ी थी। इस जमीन के लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा दी गई मंजूरी पर भी सवाल उठे हैं। चार्जशीट में कहा गया है कि वन विभाग ने 1980 में यहां 2000 पेड़ लगाए थे। मगर क्लियरेंस देते वक्त वन विभाग ने कहा कि जमीन बंजर है। (एचपीसीए पर 500 पेड़ काटने का आरोप है)।

पढ़ें: अनुराग ठाकुर ने ऐसे तय किया BCCI अध्यक्ष पद का रास्ता

नोट: उपरोक्त बातें आउटलुक के आर्टिकल का हिंदी अनुवाद है, इसमें अपनी तरफ से कोई बात नहीं जोड़ी गई। इस आर्टिकल में सारी बातें विजिलेंस डिपार्टमेंट द्वारा दाखिल चार्जशीट पर आधारित हैं। मूल आर्टिकल पर जाने के लिए यहां क्लिक करें। मामला कोर्ट में लंबित है।

अनुराग ठाकुर को सुप्रीम कोर्ट से राहत, वीरभद्र सरकार को झटका

शिमला।। व्यवसायी, क्रिकेट प्रशासक और हमीरपुर से बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर को बड़ी राहत मिली है। एचपीसीए स्टेडियम धर्मशाला को लेकर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण के मामले में अनुराग समेत 7 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की याचिका रद हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने के हिमाचल सरकार के फैसले को गैरकानूनी भी करार दिया है।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश जहां अनुराग के लिए राहत भरा है, वहीं वीरभद्र सरकार के लिए एक झटका है। गौरतलब है कि इससे पहले हाईकोर्ट ने भी अनुराग ठाकुर के हक में फैसला दिया था। इसके बाद इस फैसले को हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

यह है मामला
दरअसल एचपीसीए स्टेडियम के गेट नंबर एक के साथ लगती भूमि पर शिक्षा विभाग का दो मंजिला रिहायशी भवन था। भवन का निर्माण 720 वर्ग मीटर में हुआ था। यहां कॉलेज प्राध्यापकों की रिहायशी के लिए टाइप-4 सेट बने हुए थे। पहले भूमि शिक्षा विभाग के नाम थी। आरोप है कि बाद में इस खेल विभाग को सौंपा गया। भूमि लीज पर भी नहीं है।

बिना अनुमति भवन गिराने का आरोप
इस मामले में एक फाइल भी गुम हई है। आरोप है कि स्टेडियम के निर्माण के दौरान बिना किसी अनुमति भवन को गिराया गया था। कांग्रेस चार्जशीट में इस मामले का उठाया गया था। हिमाचल प्रदेश विजिलेंस ने इस मामले पर धर्मशाला में 447,120 बी और पीडीपी एक्ट 13 (2) के तहत मामला दर्ज किया था।

अनुराग समेत 7 लोग थे आरोपी
सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने के इस मामले में एचपीसीए अध्यक्ष अनुराग ठाकुर, पूर्व डीसी कागड़ा केके पंत, पूर्व प्रिसिंपल ललित मोहन शर्मा, धर्मशाला कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य नरेंद्र अवस्थी, पूर्व एक्सईएन देवी चंद चौहान, पूर्व एसडीओ एमएस कटोच, एचपीसीए पीआरओ संजय शर्मा, अतर नेगी और गौतम ठाकुर का नाम शामिल था।

छात्रा ने PM मोदी को लिखी चिट्ठी, पीएमओ ने हिमाचल सरकार से मांगा जवाब

करसोग (मंडी)।। हिमाचल प्रदेश की सड़को की खस्ताहालत किसी से छिपी नहीं है। गौरतलब है कि यह महकमा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने पास रखा हुआ है। इस बीच मंडी जिले के करसोग की एक बेटी ने देखा कि जब उसके गांव की सड़क की हालत सुधारने की कोशिश नहीं की जा रही तो उसने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भेज दी। अब पीएमओ ने प्रदेश के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है।

मेगली गांव की 23 साल की छात्रा कुसुम शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर लोगों की दिक्कतों से अवगत करवाया था। पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जिला मंडी के दूरदराज के क्षेत्र करसोग उपमंडल में सड़कों को दुरुस्त करने के लिए गुहार लगाई गई थी। कुसुम ने लिखा था कि नरेंद्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री को पाकर हम जैसे नागरिकों का मनोबल बढ़ा है। उम्मीद है कि समस्या का समाधान जरूर करेंगे। कुसुम ने ग्रामीणों की तरफ से पीएम को यह पत्र भेजा था। 23 दिसंबर को भेजे गए पत्र पर पीएमओ ने संज्ञान लेकर प्रदेश के मुख्य सचिव से जवाब मांगा है।
Image courtesy: MBM News Network

Image courtesy: MBM News Network

कुसुम शर्मा का कहना है कि मेगली गांव उपमंडल मुख्यालय से मात्र एक किलोमीटर दूर है और यहां से गुजरने वाली कच्ची सड़क कई गांवों को जोड़ती है। न सिर्फ इस सड़क की हालत बहुत खराब है बल्कि बाकी सड़कों का भी यही हाल है। पहाड़ी क्षेत्र की सड़कों की दुर्दशा के कारण हादसों में कई लोग जान गंवा चुके हैं। धूल-मिट्टी के कारण लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है। प्रशासनिक व विभागीय अधिकारी सड़कों की समस्या पर कोई गौर नहीं कर रहे हैं। कुसुम ने कहा है कि प्रधानमंत्री के माध्यम से करसोग की सड़कों की बदहाली सुधर जाए तो करसोग क्षेत्र के लोगों के मुरझाए चेहरों पर आशा की किरण जाग उठेगी।

करसोग के एमएलएल मनसा राम प्रदेश सरकार में सीपीएस भी हैं। अब वह कहते हैं कि करसोग के युवा भी जागरूक हैं। समय-समय पर लोक निर्माण विभाग से सड़कों की बदहाली को लेकर बात की जाती है। खस्ताहाल सड़कों के बारे में मेंटेनेंस करने के आदेश दिए जाते हैं। उधर पीडब्ल्यूडी के मुख्य अभियंता करतार चंद ने कहा कि इस बारे में अधिशासी अभियंता करसोग से सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद उचित कार्यवाही की जाएगी और मार्च महीने से करसोग की सड़कों का पैच वर्क व टारिंग की जाएगी।

‘इन हिमाचल’ कुसुम को बधाई देता है और शुभकामनाएं भी। अन्य युवाओं के लिए कुसुम ने उदाहरण पेश किया है कि कैसे हार नहीं माननी चाहिए और अपने इलाके के विकास और बेहतरी के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। लेटर की कॉपी नीचे दी गई है:

कुसुम द्वारा लिखे गए लेटर का हिस्सा
कुसुम द्वारा लिखे गए लेटर का हिस्सा

24 फरवरी से शुरू हो रहा है Horror Encounter Season 2

0

सभी पाठकों को नमस्कार। हमें खुशी है कि पिछले साल शुरू की गई भुतहा कहानियों और आपबीती घटनाओं की सीरीज ‘हॉरर एनकाउंटर’ आपको पसंद आई। इस सीरीज में हमने पाठकों द्वारा भेजी गई कहानियों को छापा। हमारी कोशिश रहती है कि पाठकों को अच्छी क्वॉलिटी की चीजें पेश करें। ऐसे में हमारे पास बहुत से लोगों ने कहानियां भेजीं। कुछ का दावा था कि यह उनके साथ घटी घटना है। हमने इन सैकड़ों कहानियों में से कुछ एक ही आपके सामने रखीं। कुछ ऐसी कहानियां, जिनमें कहीं न कहीं डर का अंश मौजूद था। हम दावे से नहीं कह सकते कि उन घटनाओं मे कितनी सच्चाई है, मगर कहानियों का चुनाव करते वक्त हमने इस बात का ख्याल रखा कि वे डराने वाली हों।

इन कहानियों को छापने का मकसद यह दावा करना नहीं है कि भूत-प्रेत वाकई होते हैं। हम अंधविश्वास फैलाने में यकीन नहीं रखते। हमें खुशी होती है जब हॉरर कहानियों के पीछे की संभावित वैज्ञानिक वजहों पर आप पाठक चर्चा करते हैं। वैसे हॉरर कहानियां साहित्य में अलग स्थान रखती हैं। इसलिए इन्हें मनोरंजन के लिए तौर पर ही पढ़ें। तो कुछ महीनों के गैप के बाद हम फिर शुरू कर रहे हैं हॉरर कहानियों का सिलसिला। पहली कहानी शुक्रवार यानी 24 फरवरी को शाम को 8 बजे पब्लिश की जाएगी।

इस बीच आप पहले ही सबसे चर्चित हॉरर कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं:

कभी नहीं भूल पाऊंगा बैजनाथ-पपरोला ब्रिज पर हुआ वह अनुभव

टेंट के बाहर कोई महिला रोने लगी और अंदर मेरी गर्लफ्रेंड

वो महिला बोली- अच्छा हुआ जो दरवाजा नहीं खोला, वरना आज…

अन्य कहानियां पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अपने बेटों के चक्कर में नूरा कुश्ती कर रहे नेताओं के बीच पिस रहा है हिमाचल

0

आई.एस. ठाकुर।। कोई भी व्यक्ति राजनीतिक रूप से तटस्थ नहीं हो सकता। उसकी कोई न कोई विचारधारा या पसंद होती है। हिमाचल प्रदेश में भी ऐसा ही है। कुछ लोग बीजेपी को पसंद करते हैं, कुछ कांग्रेस को, कुछ वीरभद्र को, कुछ धूमल को, कुछ शांता कुमार को तो कुछ नड्डा को। अपनी राजनीतिक पसंद के मामले में हम इतने पक्के हो जाते हैं कि हमें अपनी पार्टी या अपने नेता के खिलाफ कही जाने वाली सभी बातें झूठी लगती हैं और ऐसा करने वाला हमें या तो विरोधी पार्टी का एजेंट लगता है या फिर बेवकूफ। यह सही है कि जिन नेताओं के आप समर्थक हों, उन्होंने आपके लिए बहुत काम किए होंगे और आपका उनसे अच्छा रिश्ता होगा। अच्छी बात है, होना भी चाहिए और ऐसा होता भी है। मगर आज वक्त आ गया है कि हमें शांत मन से सोचना होगा कि क्या हमारे लिए अच्छा है, क्या हमारे लिए खराब।

प्रदेश का हित सीधे तौर पर हरेक व्यक्ति के हित से जुड़ा है। यानी प्रदेश अगर तरक्की करता है तो यह हर व्यक्ति की तरक्की है। प्रदेश का नुकसान हर व्यक्ति का नुकसान। चूंकि यह चुनावी साल है और इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे, इसलिए प्रदेश की जनता का खुले मन सोचना विचारना बहुत जरूरी हो जाता है। हमें यह तय करना होगा कि प्रदेश के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। बड़े ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि प्रदेश के मौजूदा नेतृत्व में कोई भी बात ऐसी नहीं दिखाई देती, जो हिमाचल को नई दिशा दे सकती है। प्रदेश की राजनीति नूरा-कुश्ती यानी फिक्स्ड मैच सा लगने लगी है। कभी एक पार्टी सत्ता में आती है और कभी दूसरी पार्टी। नेताओं ने मानो सोच लिया हो कि बारी-बारी नंबर आना है, टेंशन क्यों ली जाए। इसलिए सत्ताधारी पार्टी अपने हिसाब के ऊल-जुलूल कदम उठाती रहती है और विपक्ष सुस्त पड़ा ऊंघता रहता है।

Dhumalइस वक्त प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है इसलिए शुरुआत सत्ताधारी पार्टी और इसके नेताओं से ही करूंगा। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का बयान आता है कि प्रदेश जुगाड़ से चला रहा हूं। उनका आरोप है कि केंद्र से पैसा नहीं आता और बड़ी मुश्किल से प्रदेश चलाना पड़ रहा है। मगर हैरानी होती है उनके इस बयान से क्योंकि वह इधर का पैसा उधर खर्च कर रहे हैं। ऐसी-ऐसी घोषणाएं की जा रही हैं जिनका कोई तुक नही ंहै। पहले से ही स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के बजाय नए स्कूल खोलने के ऐलान किए जा रहे हैं। वह भी तब जब आज या कल में ही शिक्षा विभाग 5 से कम छात्रों वाले 99 स्कूलों को बंद करने की सिफारिश कर चुका है। 99 स्कूल बंद करने का मतलब है कि यहां के लिए बने भवन और संसाधनों पर खर्च करोड़ों रुपया जीरो। क्यों बिना प्लैनिंग के ये ऐलान कर दिए जाते हैं राजनेताओं द्वारा? कहीं गए तो स्थानीय नेता ने मांगपत्र पकड़ाया तो ऐसे ऐलान कर दिया मानो राजा रेवड़ियां बांट रहा हो। मुख्यमंत्री या मंत्री या विधायक जनता के सेवक होते हैं और जनता के टैक्स के पैसे को खर्च करने का अधिकार रखते हैं। यह उनका पुश्तैनी धन नहीं कि इसे लुटाते रहें।

यही नहीं, पटवारखाने खोले जा रहे हैं, जब साइबर लोकमित्र केंद्रों से नक्शे लिए जा सकते हैं। कॉलेज खोले जा रहे हैं, जब मौजूदा कॉलेजों में बच्चों की संख्या कम है, क्योंकि वे प्रफेशनल कोर्स करना चाहते हैं। इन हिमाचल पर ही एक अच्छा लेख पढ़ा था जिसमें खूबसूरती से लिखा गया है कि हिमाचल के नेताओं ने हिमाचल में वक्त पर बीएड कॉलेज और इंजिनियरिंग कॉलेज और यूनिवर्सिटियां नहीं खोलीं और नतीजा यह रहा कि कई सालों तक प्रदेश के बच्चे बीएड करने के लिए, नर्सिंग करने के लिए या अन्य प्रेफेशनल कोर्सों के लिए पड़ोसी राज्यों का रुख करते रहे। मगर सबक अब तक नहीं सीखा। जहां जाओ, वहां नए कॉलेज का ऐलान कर दो। यह भी मत सोचो कि बच्चों को इससे फायदा होगा या नहीं।

न जाने जातियों के आधार पर कितने बोर्डों का ऐलान कर दिया मुख्यमंत्री ने। ब्राह्मण बोर्ड, राजपूत बोर्ड, धीमान बोर्ड, फ्लां बोर्ड ढिमकाणा बोर्ड। कुछ दिन पहले मंडी में मुख्यमंत्री जाति की राजनीति पर ज्ञान दे रहे थे। उनसे कोई पूछे कि सरकार का काम सभी जातियों का मिलकर विकास करना है तो अलग से बोर्ड बनाकर रेवड़ियां क्यों बांटी जा रही हैं? किसी जाति के भवन के नाम पर पैसा दिया जा रहा है जहां उस जाति के लोग शादी आदि के आयोजन करवा सकें और इसी तरह से अन्य जातियों को भी दिया जा रहा है। यह कदम न सिर्फ समाज में खाई पैदा करने वाला है बल्कि सरकार के पैसे की बेकद्री भी है। अरे बनवाना ही है तो एक सामुदायिक केंद्र बनाओ जहां किसी से जाति न पूछी जाए। मगर नहीं, जाति की राजनीति से बाज नहीं आना है।

कुछ दिन पहले ही इन हिमाचल पर टांडा मेडिकल कॉलेज की दुर्दशा की तस्वीरें देख सिर चकरा गया। अस्पताल के नाम पर क्या बना डाला है? प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल की यह दुर्दशा है तो अन्य छोटे अस्पतालों की क्या होगी। दांतों का इलाज करवाने सीएम पीजीआई जाते हैं, स्वास्थ्य मंंत्री पर फोन पर कुछ अभद्र बातों का आरोप लगता है तो दिल का दर्द होने पर पीजीआई जाते हैं, परिवहन मंत्री और आईपीएच मिनिस्टर तक इलाज के लिए प्रदेश से बाहर का रुख करते हैं। क्या इस सरकार को शर्म नहीं आती कि प्रदेश के बड़े मंत्री भी इलाज करने बाहर जाते हैं तो प्रदेश की जनता को प्रदेश के अस्पतालों के भरोसे क्यों छोड़ा है? लापरवाही का आलम यह है कि कहीं कोई ऑक्सिजन की कमी से मर जाता है तो कोई पीजीआई जाते-जाते। एक हादसा हो जाए तो रेफर करने की गेम चलती है और आखिर में पीड़ित इस दुनिया को छोड़कर चला जाता है। ये निष्ठुर नेता क्या समझेंगे जनता का दर्द? अपनों को बेवक्त किसी मामूली हादसे या बीमारी की वजह से खोना पड़े तब पता चलता है। जनता की याद्दाश्त कमजोर है। भूल जाती है कि कितने कष्ट सहे हैं। सत्ताधारी ही नहीं, आज जो विपक्ष में बैठे हैं, वे भी इस दुर्दशा के जिम्मेदार हैं क्योंकि सत्ता में वे भी रह चुके हैं।

रोजगार नहीं मिल रहा युवाओं को। बैकडोर से भर्तियां हो रही हैं। हिमाचल प्रदेश मे सब जानते है कि चिट पर भर्तियां कौन करवाता है। 4 साल तक सरकार में रहकर इन नेताओं को पता नहीं चलता कि किन विभागों में कर्मचारियों की जरूरत है। सरकार जाने वाली होती है तो भर्तियां निकालते हैं, रिटन लेते हैं और इंटरव्यू लटका देते हैं ताकि बहुत से परिवार इस लालच में सत्ताधारी पार्टी को वोट दे दें कि दोबारा आएंगे तो हमारा कुछ हो जाएगा। यही नहीं, कमिशन बोर्ड से किसी भी भर्ती का टेस्ट नहीं लिया जा रहा। प्रतिभावान युवा इंतजार करते हैं कि भर्तियां निकलेंगी तो हम टेस्ट देंगे औऱ कुछ होगा। मगर नहीं, विभिन्न तरीकों से अपने बंदों को टेंपररी रखवा दो और बाद में उन्हें पक्का कर देंगे जब 5 साल बाद सरकार आएगी। अयोग्य व्यक्ति भी तरीके से नौकरी लग जाता है और योग्य व्यक्ति हताश होता रहता है।

दरअसल इस प्रदेश के नेताओं ने लोगों के मन में सरकारी नौकरी का जहर भर दिया है। जहर इसलिए कि हर कोई सरकारी नौकरी करना चाहता है। दोष सरकार का इसलिए है, क्योंकि वह युवाओं को बताती नहीं है कि प्राइवेट सेक्टर में कितना स्कोप है और स्वरोजगार कैसे पाया जा सकता है। हिमाचल की तो खरपतवार भी करोड़ों में बिक जाए, हिमाचल में क्षमता इतनी है। अऱे युवाओं को बताओ कि कैसे खेती की जा सकती है, बागवानी की जा सकती है आधुनिक तरीकों से। लोग मशरूम उगाकर, फूलों की बागवानी से और जड़ी-बूटियां उगाकर अपनी ही नहीं बल्कि हिमाचल और भारत तक की तस्वीर बदल सकते हैं। युवाओं के कौशल यानी स्किल का विकास करना चाहिए। एक कौशल विकास निगम तो बनाया मगर उसमें भी मुख्यमत्री ने अपना बेटा बिठा दिया। उनका बेटा तो सेट हो गया मगर प्रदेश के बेटे आज भी बेरोजगारी की फ्रस्ट्रेशन में नशे की तरफ रुख कर रहे हैं।

नशे की बात आई तो यह बात किसी से छिपी नहीं है। लोग पूरी दुनिया से हिमाचल आ रहे हैं नशा करने के लिए। मिनी इजरायल कहलाने में न जाने किसी गर्व होता होगा, मुझे तो शर्म आती है। सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है क्या? जब सबको पता है कि कहां से क्या मिलता है तो पुलिस तंत्र क्यों कुछ नहीं कर रहा? ऐसे में वे लोग गलत नहीं हैं जो कहते हैं कि नशे के कारोबारियों को नेताओं का संरक्षण मिला है।

पॉलिसी ऐंड प्लानिंग के नाम पर ठप हो चुका है प्रदेश। सड़कों की हालत खराब, बसों की हालत माड़ी, अस्पताल बीमार, शिक्षण संस्थानों में सुविधाओं का अभाव, विभिन्न विभागों में स्टाफ की कमी। मैं तो सोचकर हैरान होता हूं कि पिछले 5 सालों मे इस सरकार ने क्या पॉलिसी बनाई? बस ये कि 5 बीघा तक सरकारी जमीन पर कब्जे को रेगुलर कर दिया जाएगा? अपराधियों को बढ़ावा देने वाली नीति बनाई? प्रदेश की वन संपदा मैच्योर हो चुकी है और उसके दोहन का वक्त है। वरना पेड़ सड़ जाएंगे और करोड़ों का नुकसान। मगर वन मंत्री को नाचने से फुरसत नहीं। वह जरूर नाचें मगर अपना काम भी तो करें। शहरी विकास मंत्रालय की क्या उपल्बधि रही? स्मार्ट सिटी का क्रेडिट लेने वाले ये न भूलें कि यह केंद्र की योजना है और इसमें किसी न किसी शहर का नंबर तो प्रदेश में पड़ना ही था। यह आपकी अचीवमेंट नहीं है। टूरिजम में क्या नया काम हुआ, कौन सी नई जगह विकसित हुई या पहले वाली जगहों का उद्धार हो गया? आईपीएस मंत्री ने क्या काम ऐसा कर दिया कि जहां पहले लोग पानी की कमी से जूझते थे, वहां पानी आ गया? परिवहन मंत्रालय ने प्रदेश में परिवहन के वैकल्पिक साधनों के बारे में क्या नया किया?

अगर कोई मंत्रालय सही से काम नहीं करता है तो उसके मंत्री की ही नहीं, मुख्यमंत्री की भी बड़ी जिम्मेदारी होती है। क्यों मुख्यमंत्री जो सरकार का मुखिया है, अपने मंत्रि्यों को नहीं कसता। इसका मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री कमजोर हैं। कमजोर इसलिए भी, क्योंकि 82 साल की उम्र हो चुकी है। आए दिन अजीब और अमर्यादित बयान दे रहे हैं। इससे पता चलता है कि अब इस उम्र में तो वह कुछ नया देने से रहे। अब भी वो सोचते है कि वह दौर है जब मंच से भाषण देकर घोषणा कर दो कहीं स्कूल या कॉलेज खोलने की तो जनता खुश हो जाती थी। उन्हें दरअसल पता ही नहीं है कि अब प्रदेश के युवाओं की जरूरतें क्या हैं। हिमाचल प्रदेश युवाओं से भरा प्रदेश है। इसे युवा नेता की जरूरत है जो समझे आज के दौर को। ऐसा नहीं कि दूसरी राजधानी का ऐलान करे। यह बाद मौजूदा मुख्यमंत्री और कांग्रेस पर ही लागू नहीं होती बल्कि विपक्षी पार्टी और विपक्ष के नेता पर भी लागू होती है।

4 साल तक मै हिमाचल प्रदेश के अखबारों में विधानसभा सत्र के दौरान यही पढ़ता रहा कि बीजेपी ने किया वॉकआउट, बीजेपी ने किया वॉकआउट। फालतू-फालतू बातों पर वॉकआउट। प्रेम कुमार धूमल के नेतृ्तव में बीजेपी वॉकाउट पार्टी बनकर रह गई। अरे विपक्ष का काम होता है सरकार की खबर लेना। सवाल पूछना जनता से जुड़े हुए और काम करवाना। मगर नौटंकी और करतब का अड्डा बना दिया विपक्ष ने विधानसभा को। कभी कोई विधायक खुद ही  स्पीकर की कुर्सी पर बैठ जाता तो कभी कुछ। सवाल-जवाब सत्ता और विपक्ष में विधानसभा में नहीं, मीडिया के जरिए हुए। औऱ इन सवालों मे भी जनता के मुद्दे नहीं, पर्सनल मुद्दे हावी रहे। वीरभद्र और धूमल की बयानबाजी 50 पर्सेंट अनुराग को लेकर हुई है और 50 पर्सेंट करप्शन केस को लेकर। जनता की फसलों को सुअर और बंदर खा गए, सीमेंट प्रदेश में ही बनता है फिर भी महंगा मिलता, अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं, सरकारी स्कूल बदहाल हैं, सड़कें उखड़ गई हैं, रोजगार नहीं मिल रहे– ये सब मुद्दे विपक्ष उठाना ही भूल गया।

ऐसा इसलिए क्योंकि पता है इन्हें कि सरकार कुछ भी करे, अगला नंबर हमारा आना है। जब नंबर बिना कुछ किए आ जाएघा तो कुछ क्यों किया जाए। यही सोच इस प्रदेश का बेड़ा गर्क कर रही है। इन नेताओं ने इस प्रदेश को अपनी जागीर समझ लिया है औऱ जनता को ढक्कन। पहले एक जनता को बेवकूफ बनाता है फिर दूसरा। एक को अपने बेटे को सेट करने की चिंता है तो दूसरे को अपने बेटे के स्टेडियम की चिंता। कुलमिलाकर हिमाचल की राजनीति अपने बेटों के लिए जूझ रहे दो पिताओं की राजनीति बन गई है। इन लोगों ने अब तक ऐसा क्या किया प्रदेश के लिए, जिसे देखकर लगता हो कि अभी कुछ और करना बाकी रह गया है? मेरा मानना है कि दोनों पार्टियों में बदलाव की लहर बहे या न बहे, हिमाचल में बदलाव की हवा चलनी चाहिए। बाकी इन पार्टियों या नेताओं के मसर्थकों को इनका झंडा उठाना है तो उठाएं, कम से कम मैं तो इन बूढ़े और नकारा हो चुके नेताओं को अपने हिमाचल का भविष्य नहीं सौंपना चाहता। हमें ऐसे नेता चाहिए जो अपने बच्चों के लिए नहीं, हिमाचल के बच्चों के लिए लड़ें, उनके भविष्य के लिए जूझें, उनके भविष्य के लिए समर्पित हों।

(लेखक आयरलैंड में रहते हैं और ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है।)

पढ़ें: क्यों हिमाचल अभी तक वहां नहीं पहुंच पाया, जहां इसे होना चाहिए था

DISCLAIMER: यह लेखक के निजी विचार हैं, इन हिमाचल इनके लिए उत्तरदायी नहीं है। किसी तरह की आपत्ति या सुझाव के लिए inhimachal.in@gmail.com पर मेल करे। आप अपने लेख भी इसी आईडी पर भेज सकते हैं।

वीडियो गेम्स और क्रिकेट से पहले इन गेम्स को खेलकर बड़े होते थे बच्चे

0

इन हिमाचल डेस्क।। टेक्नॉलजी के इस दौर में गेम्स अब मैदान से कंप्यूटर और स्मार्टफोन्स पर खेले जाने लगे हैं। एक्सबॉक्स, प्लेस्टेशन के इस दौर में आजकल के बच्चे अगर रियल लाइफ में जो गेम खेलते हुए दिख जाते हैं, वह है क्रिकेट। मगर क्रिकेट के अलावा भी बहुत से गेम्स थे जो हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और अन्य प्रदेशों में बच्चे चाव से खेलते थे।

शायद ही आज इन गेम्स को कोई जानता हो। सोशल मीडिया पर किसी कलाकार ने इन गेम्स को संजोने की कोशिश की है। देखें और नीचे कॉमेंट करके बताएं अगर कोई गेम छूट गया हो, जिसे आप बचपन में खेला करते थे:

1
गिट्टियां
2
गिल्ली डंडा
3
पतंगबाजी
4
पिट्ठू
5
कोटला छिपाकी, जिम्मे रात आई-ए, जिहड़ा मेरे आगे पीछे देखे उहदी शामत आई ऐ
7
लट्टू घुमाना
8
किस-किसने चलाया है गड्ढा
6
🙂
पिट्ठू
सीपी (Chindo, Stapoo or Kidi Kada)
सीपी (Chindo, Stapoo or Kidi Kada)

14 साल की इस बेटी पर डाला जा रहा था शादी का दबाव, विरोध कर पेश की मिसाल

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, चंबा।। आप जो तस्वीर देख रहे हैं, वह है चंबा जिले की बेटी बीना कुमारी  (बदला हुआ नाम) की। 14 साल की बीना कुमारी की शादी की जा रही थी 35 साल के शख्स से। मगर बीना ने हिम्मत का परिचय देते हुए अपने अध्यापकों को सूचना दी, प्रशासन ने दखल देकर बीना को मुश्किल हालात में फंसने से बचा लिया।

नानी के दवाब के बावजूद इस छात्रा ने हार नहीं मानी थी और स्कूल में जाकर अध्यापकों को बताया कि शादी के दबाव बनाया जा रहा है। बीना ने बाल विवाह का विरोध करके मिसाल कायम की है। अब जिला प्रशासन इस बहादुर छात्रा को महिला दिवस पर सम्मानित करेगा।

बीना कुमारी ने बताया कि वह अब स्वतंत्र महसूस कर रही हैं। उसका कहना है कि वह आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ अपने लक्ष्यों को पूरा करेगी। बकौल बीना उसकी माता ने दो शादियां की हैं और नानी के साथ मिलकर एक 35 वर्षीय के साथ उसकी शादी तय कर दी। इसका विरोध जब किया तो नानी दवाब डालने लगी। लेकिन, बीना ने हिम्मत ना हारी और बड़ा खुलासा कर खुद को एक नई जिंदगी दी।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क का फेसबुक पेज लाइक करें

बीना पढ़ाई में भी अव्वल है। जिस स्कूल में वह पढ़ती है, वहां के अध्यापकों का कहना है कि बीना पढ़ने में अच्छी है। कक्षा में अनुशासन में रहती है।

बीना तो बच गई, मगर इससे संकेत यह भी मिलते हैं कि हिमाचल के दूर-दराज इलाकों में हो सकता है कि अभी भी कम उम्र में बेटियों की शादी की जा रही हो। प्रशासन को सजग तो रहना ही चाहिए, अध्यापकों को भी चाहिए कि बच्चों को गाइड करें कि ऐसे कोई प्रेशर डाले शादी के लिए तो तुरंत सूचित करें।