टेंट के बाहर कोई महिला रोने लगी और अंदर मेरी गर्लफ्रेंड

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें। 

  • समर्थ सोलंकी

मैं और मेरी पत्नी पूनम एकसाथ कॉलेज से पढ़े हैं। हम दोनों को ही घूमना-फिरना पसंद है। हमारी दोस्ती भी इसी कॉमन इंटरेस्ट की वजह से हुई थी। बात उन दिनों की है जब हम दोनों चंडीगढ़ के पास पंजाब के एक निजी संस्थान से बी.टेक कर रहे थे। मेरे पास बुलेट थी और मैं लंबे समय से पूनम को बोल रह था कि चलो मनाली चलते हैं घूमने के लिए बाइक पर। पूनम अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से थी और मैं कुरुक्षेत्र (हरियाणा) से। पूनम हमेशा बोलती थी कि चलना है तो बस से चलो, बाइक से नहीं चलेंगे। मगर मैंने ठान ली थी कि जाना है तो बाइक से ही चलेंगे।

जून का आखिरी हफ्ता था शायद या जुलाई का पहला, मगर बरसात होने लगी थी। हम दोनों एक क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में गए थे। वहं पर शराब का भी दौर चला। हम सब लोग नशे में थे। इसी बीच प्लान बना कि चलो कहीं घूमने चला जाए। दोस्त बोलने लगे कि कसौली चलते हैं लालू की गाड़ी में। लालू हमारा दोस्त, जो चंडीगढ़ का रहने वाला था और उसके पास कार थी। हम 8-9 लोग थे और उनमें 7 लोग जाने को तैयार। मगर लालू ने कह कि उसके मम्मी-पापा उसे नहीं जाने देंगे। इसलिए प्रोग्राम कैंसल हो गया। हम रात के 9 बजे वहां से निकले। पूनम साथ थी और मैं और बाइक पर उसे उसके पीजी तक छोड़ने जा रहा था। रास्ते में उसने मुझे बोला कि चलो न, हम दोनों ही चलते हैं कहीं घूमने। मैंने कहा कहां? बोली-मनाली। मैंने कहा अब नहीं चलेंगे, पी हुई है हमने और रात भी हो गई है। मगर वह अड़ी रही। थोड़ी आनाकानी के बाद मैंने कहा कि ठीक है चलो।

मैंने उसे उसके पीजी उतारा औऱ कहा कि कुछ कपड़े पैक कर लो। मैं अपने पीजी आया और सैडल बैग में कुछ काम की चीज़ें औऱ कपड़े डाले और बाइक पर उसे बांध दिया। अपने एक सीनियर विरेंद्र भाई को फोन किया कि उनका टेंट चाहिए। उन्होंने कहा कि ले जाओ। उनके घर तक जाकर मैंने टेंट वाला बैग लिया और उसे भी बाइक पर बांध लिया। रात के पौने 11 हो चुके थे, जब तक मैं पूनम के पीजी पहुंचा। तब तक बियर का नशा भी उतर चुका था। मैंने पूनम से कहा कि अभी शिमला चलेंगे और रात को विक्की (मेरा कजन) के यहां रुकेंगे और अगले दिन वहां से उसकी गाड़ी लेकर घूमते हुए मनाली निकलेंगे। पूनम ने कह कि ये कौन सा अजीब रूट बना रहे हो। मगर मैंने कहा कि इस मौसम में बाइक से जना सही नहीं है। ना-नुकर करते हुए पूनम ने हां कह ही दी।

हम चले और कालका जैसे ही पहुंचे, बारिश शुरू हो गई। न रेन कोट न कुछ, बस बारिश में भीगते हुए जा रहे। कोई गाड़ियां भी नहीं थी, मगर धुंध सी अजीब सी। रास्ते में बोर्ड दिखा कसौली जाने का। मन किया कि बारिश में यहीं आसपास कोई होटेल ले लिया जाए और सुबह निकला जाए। मगर पूनम पर जाने क्या धुन सवार थी, बोली मजा आ रहा है, कोई बात नहीं धीरे-धीरे चलो अब विक्की के यहीं रुकेंगे। बारिश में बाइक की स्पीड तेज नहीं कर पा रहा था क्योंकि आगे दिख नहीं रहा था कुछ। ऊपर से ठंडी बारिश अलग। हमें नहीं भी तो साढ़े 4 या शायद साढ़े 5 घंटे लग गए शिमला पहुंचने में। बस इतना ध्यान है कि जब हम विक्की के यहां पहुंचे, आसमान में उजाला होने लगा था। विक्की ने दरवाजा खोला और हम नहाकर और कपड़े बदलकर सो गए।

नींद खुली 8 बजे, जब विक्की चाय और ब्रेड टोस्ट लेकर खड़ा था और उसने हमें जगाया। हमने चाय पी और फिर सो गए। इस बीच विक्की अपने कॉलेज चला गया, जो एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था। विक्की वैसे तो मुझसे 5 साल बड़ा है मगर हम दोनों में खूब छनती है। खैर, नींद खुली अब 2 बजे। विक्की को शाम 6  बजे लौटना था। अब मुझे जाने क्या सूझी कि मैंने पूनम को कह कि चलो, बाइक से ही चलते हैं, बारिश होगी तो भीगेंगे ही, और कया होगा। पूनम भी तैयार हो गई। किसी ने हमें बताया कि नारकंडा-शोजा होते हुए जाओगे तो ज्यादा वक्त लगेगा क्योंकि सड़कों की हालत ठीक नहीं है। हमें सलाह दी कि सुंदरनगर मंडी होते हुए जाओ, सड़कें भी अच्छी हैं और सफर ठीक रहेगा। 3 बजे हम शिमला से चले और रुकते-रुकाते रात के 12 बजे के करीब कुल्लू पहुंच गए। अब मुझे जाने क्या खुराफात सूझी कि रात टेंट में बितानी है।

पूनम ने कहा भी आगे चल लो, कोई होटेल देख लो। मगर मैंने कहा कि थक चुका हूं और आगे सुबह ही जाएंगे। शायद मन में एक उत्साह भी था टेंट में रुकने का, क्योंकि पहली बार टेंट में रुकने जा रहा था। तो मैंने सड़के के किनारे से एक रास्ता जाता देखा, उसी में बाइक घुसा दी। अंधेरा था और हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। आगे चलकर नदी के किनारे वह जगह थोड़ी चौड़ी सी हो गई थी। तो मैंने देखा कि पहाड़ी के साथ टेंट लगाया जा सकता है। पास से ही नदी बह रही थी मस्त और उसका संगीत बड़ा प्यारा लग रहा था। मैंने बाइक को स्टैंड पर लगाया और उसकी लाइट में टेंट लगाने लग गया। समझ ही नहीं  आ रहा था कि कौन सी डंडी कहां लगनी है और कौन सा धागा कहं बांधना है। करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद जैसे-तैसे टेंट लगाया। फिर हम टेंट के अंदर गए और वहां पर बैटरी से चलने वाली लाइट ऑन की। कंबल लाए थे, उसमें घुसे ही थे कि लगा किसी ने  टेंट पर पत्थर मारा है। मैंने सोचा कोई शरारत कर रहा होगा। मैं बाहर निकला और शोर किया। देखा कि पहाड़ी के ऊपर की तरफ तो किसी के होने का सवाल ही नहीं है। आसपास भी कोई नहीं दिखा टॉर्च से। फिर मैं अंदर आ गया।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

बाहर अजीब-अजीब आवाजें आनी लगीं। जैसे कोई महिला जोर से चिल्ला रही हो। अब थोड़ी घबराहट हुई। पूनम तो रोने लग गई थी। मैं उसे दिलासा दे रहा था कि ये गीद़ड़ हैं। मगर यकीनन मैं कह सकता था कि गीदड़ नहीं है। तुरंत वे आवाजें तेज हुईं और ऐसा लगा कि पास से ही आ रही हैं। अब हमें साफ महसूस हो रह था कि कोई टेंट की पतली सी झिल्ली की दूसरी ओर बाहर खड़ा होकर ही चिल्ला रहा है। और साफ तौर पर किसी महिला के रोने की आवाज थी। मैंने हाथ में वह चाकू लिया, जो कैंपिंग टूल्स के साथ आया था। और इंतजार कर रहा था कि अगर किसी ने तंबू को छुआ या अंदर आया तो हमला कर दूंगा। उधर पूनम भी चिल्लाने लग गई। शायद वह इतनी डर गई थी कि उसे कोई होश नहीं था। वह भी उसी आवाज में चिल्लाने लगी, जैसे आवाज बाहर से आ रही थी। मैंने पूनम को झकझोरा, मगर वह रोए जा रही थी। अब मेरी **** चुकी थी। मुझे लगा कि आज तो मैं गया। अचानक टेंट जोर-जोर से हिलने लगा। मैं जोर से चीखा कौन है। बाहर से कोई जवाब न आए।

मेरी क्या हालत थी उस वक्त। आप अंदाजा नहीं लगा सकते। मैं हिम्मत हार चुका था, मगर फिर भी हिम्मत बनाए रकने की नौटंकी कर रहा था। क्योंकि मुझे लगता था कि इसी में जान बच सकती है। अचानक वे आवाजें और शोर ऐसे बंद हो गया, जैसे स्विच ऑफ हो गया हो। इस बीच पूनम रोते-रोते बेहोश हो गई थी। मैंने उसके चेहरे पर पानी की बूंदें फेंकी तो वो होश में आई मगर डरी हुई थी। बोली चलो यहां से। मैंने कहा ठीक है। चलता हूं। मैं झटके से तंबू से बाहर निकला हाथ में चाकू लिए तो कुछ नहीं दिखा। फिर मैंने पूनम को बोला कि बाहर निकलो। पूनम को खींचकर बाहर निकाला। उसने आंखें बंद की हुई थी, जैसे देखना ही नहीं चाहती थी। मैंने बाइक स्टार्ट की, पूनम को बैठने को बोला। उसने मुझे जोर से पकड़ लिया था। मैंने बाइइख स्टार्ट की और वापस उस सड़क से मुख्य सड़क की ओर चल दिया, जहां से आया था। ऊपर गया और मुख्य सड़क पर पीछे की तरफ जाने लगा, जहां एक घर की लाइट दिखी थी शुरू में। 2 किलोमीटर बाद उस दुकान के आगे बाइक लगाइ और दरवाजा खटखटाया। उसके पीछे बने घर से एक बंदा आया गुस्से में कि रात में क्या कर रहे हो। मैंने उसे पूरी घटना सुनाई तो उसने कहा कि आप नदी में गए क्यों थे रात को। उसने गालियां भी दी कि हम बाहर से आते हैं और चीज़ों को समझते नहीं हैं।

उसने फिर भी हमें अपने घर के एक कमरे में ठहाराया, चाय पिलाई। उसके बाद घनघोर बारिश शुरू हुई। ऐसी बारिश मैंने कभी नहीं देखी थी। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। अगली सुबह भी हो गई और बारिश रुकी करीब दोपहर 12 बजे। फिर उस बंदे ने अपने किसी रिश्तेदार को फोन किया जो गाड़ी लेकर आया। उसकी गाड़ी में बैठकर हम उस जगह की तरफ चल दिए, जहां हमारा टेंट और बाकी सामान छूटा हुआ था। जैसे ही मैंने दिखाया कि ये रास्ता जाता है, उसने कहा कि ये रास्ता तो नीचे नदी तक रोड़ी और रेता उठाने वाले ट्रैक्टरों के लिए है। उसने गाड़ी उस रास्ते में डाली तो थोड़ी दूर जाने पर जो मंजर दिखा, वह आत्मा को कंपा देने वाला था। नदी पूरे उफान पर थी और जिस जगह हमने टेंट लगाया हुआ था, उसके ऊपर से पानी बह रहा था। न तो टेंट का कहीं अता-पता था न बाकी सामान का। टेंट के अंदर बैग, जिसमें कपड़े, कैंप का सामान, मेरा बटुआ और पूनम का पर्स जिनमें कुछ पहचान पत्र और अन्य चीज़ें थीं, सब बह चुके थे।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि किस्मत का शुक्र अदा करूं जो रात को वह घटना हुई और हम डरकर उस जगह से भागे या किस्मत से शिकायत करें कि रात को वह घटना क्यों हुई और क्या थी। वे आवाजें किसकी थी और कौन हमारे टेंट को क्यों हिला रहा था, हमें समझ नहीं आया। दुकानदार ने बोला कि हो सकता है कोई अच्छी आत्मा रही हो जो ऐसे ही बहकर मरी हो और तुम्हारी मदद कर गई या फिर कोई बुरी आत्मा थी, जो तुम्हारी जान लेना चाहती थी और तुम पहले ही बचकर निकल आए।

मैं और पूनम जानते हैं कि उस रात जो कुछ हुआ, सच था। बाकी लोगों ने यकीन नहीं किया। उन्हें लगता है कि हमारे टेंट पर पहाड़ी से पत्थर गिरे थे और बाहर कोई गीदड़ या अन्य जानवर ही होगा, जो बियाबान में टेंट देखकर कौतूहल में आ गया होगा। हम भी चाहते हैं कि यही हुआ हो। मगर शुक्रगुजार हैं कि जो हुआ, अच्छा हुआ। वरना किसी को पता नहीं चलता कि हम दोनों कहां गए। बह जाते नदी में और कई सालों बाद लाशों या बाइक को उगलती नदी। या फिर नहीं भी उगलती। पूनम नहीं चाहती थी कि मैं इस घटना को सबके सामने रखूं, क्योंकि उसको लगता है कि ऐसी बातों का जिक्र किसी से नही ंकरना चाहिए क्योंकि ये खास होती हैं। मगर मैंने फिर भी यह बात आपके साथ शेयर की, क्योंकि मुझे लगता है कि ऐसी घटनाएं भी होती हैं, लोगों को पता होना चाहिए। मुझे अपने नाम को जाहिर करने में आपत्ति नहीं थी, मगर मेरी पत्नी पूनम (बदला हुआ नाम) नहीं चाहती थी कि ये बातें हम किसी को बताएं। इसलिए अपना और पत्नी का नाम बदला हुआ है।

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