जानें, एचपीसीए मामले को लेकर अनुराग ठाकुर पर क्या हैं आरोप

बीसीसीआई में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बीसीसीआई के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलील में बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को क्रिकेटर बता डाला। इस पर चीफ जस्टिस ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि मैं भी तो एक क्रिकेट मैच में सुप्रीम कोर्ट टीम का कप्तान था।

कोर्ट ने पूछा क्या बीसीसीआई प्रशासकों में कुछ खास कौशल है? अनुराग ठाकुर ने बोर्ड का अध्यक्ष बनने से पहले केवल एक रणजी मैच खेला है। इस दौरान बिहार बोर्ड के वकील ने कोर्ट को बताया कि अनुराग ठाकुर ने हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से खुद को चुना था, जिससे वो नॉर्थ जोन जूनियर सेलेक्शन कमेटी के सदस्य बन सकें। इसे सुन कर जज सन्न रह गए।

इस मामले को समझने के लिए इकनॉमिक टाइम्स के एक आर्टिकल का हिंदी अनुवाद आपको पढ़ना होगा। इसमें पूरे मामले को समझाया गया है। इस आर्टिकल को हमने उस वक्त भी पोस्ट किया था, जब अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के चीफ चुने गए थे। उस दौरान लिखी गई आर्टिकल की भूमिका को फेड कर दिया है। आर्टिकल का अनवाद उसके नीचे से शुरू है।

अनुराग ठाकुर BCCI के अध्यक्ष चुने गए हैं। उनके समर्थक खुश हैं और बधाइयां दे रहे हैं। प्रदेश में बहुत से बीजेपी कार्यकर्ताओं में भी खुशी की लहर है। अनुराग के छोटे भाई अरुण धूमल ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया कि उनके भाई मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है, बलिदान देकर और बिना पिता प्रेम कुमार धूमल से कोई फायदा लेकर। मगर ‘इन हिमाचल’ को प्रतिष्ठित अखबार ‘इकनॉमिक टाइम्स’ का 5 मार्च, 2014 का एक आर्टिकल हाथ लगा, जिसमें बताया गया है कि अनुराग ठाकुर ने किस तरह से HPCA पर कब्जा जमाए रखने के लिए दांव-पेच अपनाए। नीचे इकनॉमिक टाइम्स के उस आर्टिकल के अंशों का हिंदी अनुवाद दिया गया है। पाठक इन्हें पढ़कर खुद अवधारणा बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

’23 नवंबर, 2000. जम्मू में तवी नदी के किनारे का मौलाना आजाद मेमोरियल स्टेडियम। रणजी के 2000-2001 सीजन में हिमाचल प्रदेश का मुकबाला जम्मू-कश्मीर से था। यह हिमाचल का पांचवां मैच था। हिमाचल दो मैच हार चुका था और दो अन्य ड्रॉ हो चुके थे।

हिमाचल का एक खिलाड़ी अनुराग ठाकुर रणजी में अपना पहला मैच खेल रहा था। इस खिलाड़ी ने 7 मिनट क्रीज़ पर बिताए, 7 गेंदों का सामना किया और बिना कोई रन बनाए आउट हो गया। मगर इस खिलाड़ी का इस मैच में होना दो वजहों से सबका ध्यान खींच रहा था।

भारत के प्रतिष्ठित घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट टूर्नमेंट रणजी ट्रोफी के इतिहास में यह पहला मौका था, जब अपना पहला मैच खेल रहा खिलाड़ी उस टीम का कैप्टन भी बना था। यह भी इकलौता ऐसा मामला था, जिसमें स्टेट की सिलेक्शन कमिटी ने खुद इस खिलाड़ी को चुना था और कैप्टन बनाने के लिए भी उपयुक्त माना था।

इस शानदार एंट्री से दो महीने पहले ही ठाकुर को हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन का प्रेजिडेंट बनाया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि अब प्रेजिडेंट ही अपने राज्य की सिलेक्शन कमिटी का हेड था।

बीसीसीआई चीफ अनुराग ठाकुर।

एक पूर्व HPCA अधिकारी के मुताबिक अनुराग ने कभी सिलेक्शन के लिए ट्रायल नहीं दिया और न ही वह किसी इंटर डिस्ट्रिक्ट मैच में खेले। फिर भी उन्हें राज्य का कप्तान बना दिया गया। उस वक्त वह 25 साल के थे और उनके पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के मुख्यमंत्री थे। इस एक मैच की बदौलत अनुराग ठाकुर फर्स्ट क्लास खेलने वाले खिलाड़ी बन गए।

अगले साल, जब बीसीसीआई की मीटिंग में नैशनल सिलेक्टर नॉमिनेट करने के लिए हिमाचल की बारी आई, HPCA के प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर ने खुद को नॉमिनेट कर दिया। इस पद के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना जरूरी होता है, जो कि अनुराग ठाकुर पिछले साल खेल चुके थे। भले ही उन्होंने एक भी रन नहीं बनाया हो (2 विकेट लिए थे), वह नैशनल जूनियर टीम के तीन साल के सिलेक्टर रहे। (बाद में बीसीसीआई ने सिलेक्टर बनने के लिए 25 रणनी मैच खेलना जरूरी कर दिया)।

ठाकुर ने ‘इकनॉमिक टाइम्स’ को बताया कि उस मैच में वह इसलिए खेले क्योंकि टीम का मनोबल टूटा हुआ था और वह उसका ऐटीट्यूड बदलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि सिलेक्टर्स ने ही उन्हें खेलने के लिए कहा था, क्योंकि मैं अंडर 19 और अंडर 16 में अच्छा खेल चुका था।

‘अपने फायदे के लिए बदला HPCA का संविधान’
2000 में HPCA संभालने के बाद ठाकुर ने इस संस्था के संविधान में बड़ा बदलाव कर दिया। अब तक 12 डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट असोसिएशन के प्रेजिडेंट और सेक्रेटरीज़ के पास सोसायटी में वोटिंग राइट्स थे। इसका मतलब हुआ कि 5 साल में एक बार 24 सदस्य (साथ में एग्जिक्यूटिव कमिटी के आउटगोइंग मेंबर्स) ही प्रेजिडेंट और नई एग्जिक्यूटिव कमिटी का चयन करते थे। मगर ठाकुर ने HPCA में वोट देने वालों का विस्तार किया और 25 लाइफ मेंबर्स बनाकर उन्हें वोटिंग राइट दे दिया। इनकी नियुक्ति प्रेजिडेंट की सहमति से होनी तय की गई और प्रेजिडेंट ही एग्जिक्यूटिव कमिटी को भी नॉमिनेट कर सकता था।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर सभी जिले (24) अनुराग ठाकुर का विरोध करते, तब भी अनुराग ठाकुर द्वारा मनोनीत किए गए सदस्य (25) उन्हें दोबारा प्रेजिडेंट चुन सकते थे। 2001 में HPCA ने अपना संविधान बदल दिया। ठाकुर ने ET को बताया कि यह फैसला सदस्यों द्वारा एकमत से निर्विरोध लिया गया था। यह इसलिए लिया गया था, क्योंकि असोसिएशन को पैसे चाहिए थे। उन्होंने कहा, ‘लाइफ मेंबर्स पर हर सोसायटी की तरह आखिरी फैसला प्रेजिडेंट ने लिया।’

‘पिता प्रेम कुमार धूमल से ऐसे लिया फायदा’
अनुराग ने अपने पिता और हिमाचल के उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को HPCA का चीफ पैटरन बना दिया और वोटिंग राइट्स भी दे दिए। जांच में शामिल एक शख्स के मुताबिक 2002 में धूमल सरकार ने HPCA को एक रुपये प्रति माह की दर पर 50,000 स्क्वेयर फीट जमीन 99 साल की लीज़ पर दे दी। पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप यह भी लगा था कि उन्होंने इस जमीन अलॉट करने के लिए जो कैबिनेट नोट पेश किया था, उसमें यह नहीं बताया था कि उनके पास सोसायटी में वोट करने का भी अधिकार था या उनका बेटा HPCA का प्रेजिडेंट है।

धूमल ने ईटी को बताया कि ऐसा करने की जरूरत ही नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘जब कोई राज्य का मुख्यमंत्री है, कई सारी सोसाइटीज़ उसे सदस्यता ऑफर करती हैं। मैंने कोई पैट्रनशिप स्वीकार नहीं की और न ही मीटिंग में शामिल हुआ। हर कोई जानता था कि अनुराग प्रेजिडेंट है। यह छिपी हुई बात नहीं थी। फिर इसका ब्योरा क्यों देना था? जमीन उसके अपने इस्तेमाल के लिए नहीं थी। वह एक असोसिएशन का प्रेजिडेंट था और जमीन लोगों की भलाई के लिए उस असोसिएशन के इस्तेमाल के लिए थी। अगर कुछ गलत था तो कांग्रेस सरकार को 2003 से 2007 के बीच सत्ता में रहते हुए इस पर ऐक्शन लेना चाहिए था।’

जब कांग्रेस सरकार ने पेश किया था स्पोर्ट्स ऐक्ट
2005 में कांग्रेस सरकार ने स्पोर्ट्स ऐक्ट पेश किया। इसमें कहा गया कि जिन स्पोर्ट्स असोसिएशन के नाम में ‘हिमाचल’ लगा है, उन्हें सिर्फ उस एसोसिएशन के जिलों के प्रतिनिधियों को वोटर राइट्स देने होंगे। मगर हिमाचल हाई कोर्ट ने इस कानून पर स्टे लगा दिया। 2008 में बीजेपी सरकार सत्ता में आई और इस कानून को रद्द कर दिया गया। धूमल ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने ही इस ऐक्ट को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और इस बारे में कैबिनेट नोट पेश किया गया था। मगर वीरभद्र सिंह का कहना है कि 2007 में स्पोर्ट्स डायरेक्टर ने ऐसा प्रस्ताव तो पेश किया था, मगर कैबिनेट में ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया था।

‘जब बनाई गईं दो-दो HPCA’
2005 में यह साफ हो गया कि कांग्रेस सरकार HPCA पर अनुराग ठाकुर का एकाधिकार खत्म करना चाहती थी। उसी साल कानपुर में एक कंपनी बनाई गई, जिसका नाम था- हिमालयन प्लेयर्स क्रिकेट असोसिएशन। इस कंपनी के पहले डायरेक्टर अनुराग ठाकुर थे और 6 अन्य सदस्य हिमाचल में HPCA के नाम से बनाई गई सोसायटी के थे। दो महीने बाद कानपुर की कंपनी ने अपना नाम बदलकर हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन रख लिया। यह सेक्शन 25 कंपनी थी, जो नॉन प्रॉफिट थी और अपने शेयर होल्डर्स को डिविडेंट नहीं दे सकती थी। अनुराग ठाकुर के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाया गया था, क्योंकि हिमाचल सरकार स्पोर्ट्स ऐक्ट के जरिए HPCA पर अधिकार जमाना चाहती थी। इसलिए बीसीसीआई के अप्रूवल के बाद ही इसे केस्खन 25 में बदलने का फैसला लिया गया था।

‘सरकार से मिली संपत्ति प्राइवेट कंपनी को ट्रांसफर’
2012 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने के तुरंत बाद HPCA ने रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी को लिखा और कहा कि हमने इसी नाम की सेक्शन 25 कंपनी में विलय कर लिया है और सोसायटी को भंग कर दिया गया है। इस बीच 2010 में HPCA नाम की कंपनी ने अपना रजिस्टर्ड ऑफिस हिमाचल प्रदेश में शिफ्ट कर दिया था। 2011 से हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन नाम एक कंपनी और एक सोसायटी, दोनों ही एक रजिस्टर्ड ऑफिस पर चल रही थीं। दोनों के मुखिया अनुराग ठाकुर थे। इसका मतलब हुआ कि उनके पिता की सरकार ने HPCA सोसायटी को जो संपत्ति अलॉट की थी, अब वह एक प्राइवेट कंपनी के पास थी, जिसके डायरेक्टर अनुराग ठाकुर थे।

अनुराग के छोटे भाई अरुण।

छोटे भाई अरुण को भी बनाया HPCA का मेंबर
अनुराग के भाई अरुण धूमल भी HPCA के सदस्य थे, उन्हें 2012 में इसका डायरेक्टर बनाया गया। सोसायटी राज्यों द्वारा तय किए गए कानूनों के आधार पर चलती हैं, मगर कंपनी पर राज्यों के ज्यादा अधिकार नहीं होते। इससे HPCA थोड़ी राजनीतिक खींचतान से सुरक्षित हो गई। मगर हिमाचल के रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी ने कोर्ट का रुख किया और कहा कि सोसायटी को राज्य सरकार से जो संपत्तिया मिली हैं, उसे वह राज्य की अनुमति के बिना किसी निजी कंपनी को नहीं बेच सकती। इसी मामले में राज्य सरकार ने लीज़ कैंसल की और रातोरात HPCA के परिसर पर कब्जा कर लिया। बाद मे अनुराग ने कोर्ट का रुख किया और इस पर स्टे लग गया।

इस मामले पर अनुराग ने कहा, ‘हमने सोसायटी के रजिस्ट्रार को कन्वर्जन के बारे में बताया था।’ धूमल ने कहा कि मेरे और मेरे बेटे के खिलाफ उठाए गए सारे कदम राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है। कांग्रेस गले तक करप्शन में डूबी हुई है। कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया गया।’

पढ़ें: धूमल पर लगे हैं बेटे की HPCA को गलत फायदा पहुंचाने के आरोप

Economic Times का मूल आर्टिकल: Anurag Thakur, former Himachal CM’s son, turned HPCA into a company after benefitting from state largesse

(नोट: इस आर्टिकल में एक भी बात अपनी तरफ से नहीं लिखी गई है। यह इकनॉमिक टाइम्स के लेख का हिंदी अनुवाद है। इस बात को ऊपर के लिंक से वेरिफाई किया जा सकता है। इन हिमाचल इसके कॉन्टेंट के लिए जिम्मेदार नहीं है।)

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