‘रहस्यमयी महिला के कंधों पर बैठकर वह दूरबीन से मुझे देख रहा था’

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

नोट: वैसे तो हम आज से नई सीरीज शुरू करने वाले थे मगर किन्ही वजहों से कहानी के संपादन का कार्य पूरा नहीं हो पाया है। हम जल्दबाजी में उसे प्रकाशित नहीं करना चाहते। इसलिए हम उस कहानी को कल यानी शनिवार को प्रकाशित करेंगे। फिलहाल आप कुछ दिन पहले प्रकाशित यह कहानी पढ़ सकते हैं, जो शायद आप में से बहुत से लोगों ने न पढ़ी हो। असुविधा के लिए खेद है। 

सुरेंद्र शर्मा।। मुझे अच्छी तरह याद है वह दिन- 1 दिसंबर, 1996। मैं चंबा के कुछ ग्रामीण इलाकों में धूमकर वापस लौट रहा था। हम 5 दोस्तों का ग्रुप था। सब लोग थके हुए थे तो जल्द से जल्द अपने-अपने घरों की तरफ जाना चाहते थे। हम सब चंबा के बस अड्डे पर बैठकर बस का इंतजार कर रहे थे। उन दिनों बसें इतनी नहीं होती थीं और शाम के समय तो वैसे भी कम ही बसें चला करती थीं। खैर, सर्दियां अच्छी खासी हो चुकी थीं। वक्त बिताने के लिए हम लोग यूं ही बस अड्डे के पास चाय के खोखे के पास आग जलाकर बैठे लोगों में शामिल हो गए। आग सर्दियों में आग तापने का मजा ही कुछ और है। आग तापी जा रही हो और किस्से-कहानियों या राजनीतिक चर्चा का दौर न चला हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। वहां भी पहले से बैठे लोग हंसी-ठिठोली कर रहे थे।

हम सब लोग ऊना से थे तो हम लोगों को पहले से बैठे लोग कुछ सहज नहीं ले रहे थे। होता भी है, आज भी ऊना के लोगों को हिमाचल के पहाड़ी इलाकों के लोग अपना नहीं मानते 🙂 भले ही बात बुरी लगे, मगर हमें मैदानी हिस्से वाला होने के कारण बहुत से लोग दिल में जगह आज तक नहीं दे पाए हैं। बहरहाल, मैं फिर चंबा की उसी शाम की बात करता हूं। तो वे लोग अपनी बातों में लगे थे और हम 4 लोग एक-दूसरे की शक्लें देखते हुए उनकी बातें सुन रहे थे। मैंने इस संवादहीनता को तोड़ते हुए कोई बात करनी चाहिए। मैंने सामने सिर पर मफलर बांधकर बैठे उम्रदराज से दिख रहे व्यक्ति से कहा- चाचू, यहां पीने-वीने का इंतजाम है क्या कोई?

हम लोग कॉलेज से निकले ही थे तो उम्र हमारी यही कोई 21-22 साल रही होगी। तो हमारी शक्लें देखकर वह व्यक्ति बोला कि अभी ढंग से दाढ़ी उगी नहीं और शराब का पूछ रहे हो। मैं इस सवाल पर शर्मिंदा भी हुआ, मगर इतने में उन्हीं के ग्रुप का एक व्यक्ति बोल उठा कि मुंडे जवान हो गए हैं, बच्चे थोड़े ही हैं। मैं भी मुस्कुराया और मेरे दोस्त भी। इतने में वो अंकल बोलने लगे कि शराब मिलेगी मगर देसी और किसी जगह का नाम लिया उन्होंने। इतने में दूसरा आदमी बोला कि वहां नहीं, कहीं और अच्छी मिलती है। उनमें से 3-4 लोग इस चर्चा में व्यस्त हो गए कि कौन से बंदे के यहां अच्छी देसी शराब मिलती है, खुद निकाली हुई।

बस यहीं से बातों का सिलसिला निकल पड़ा। उन्होंने हमारे बारे में पूछा कि हम कहां से हैं, क्या करते हैं, क्या करने आए थे। हमने उन्हें बताया कि ऐसे-ऐसे चंबा घूमने आए थे। हमने बताया उन्हें कि कैसे रावी नदी के किनारे तंबू लगाकर सोए थे। यह सुनकर उनमें सबसे बुजुर्ग लग रहे एक व्यक्ति ने कहा कि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए था। जाहिर है, हमारे मन मे सवाल उठा कि क्यों। पूछा तो जवाब मिला कि नदी के किनारे कई चीजें होती हैं और रात को बेगानी जगह नहीं सोना चाहिए। क्या पता रात को बाढ़ आ जाए या जंगली जानवर आ जाए। किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तुम कहां थे, कहां चले गए।

जब बुजुर्ग ने हमारे सवाल का यह जवाब दिया तो जानें क्यों मुझे लगा कि वजह कुछ और है। मैंने कहा कि जंगली जानवरों के लिए तो हमने पूरी रात आग जलाए रखी तंबू के बाहर और सर्दियों के मौसम में कौन सा बाढ़ आ सकती है। इसपर उन्होंने कहा कि और भी कई चीजें होती हैं। मैंने भी कुरेदते हुए कहा कि कौन सी चीजें? एक दूसरा शख्स बोला- भूत-पिशाच, चुड़ैलें, राक्षस कई कुछ। यह सुनकर मैं हंस पड़ा। मेरी हंसी सुनकर बुजुर्ग बोला- बच्चा, तुम लोगों को समझ नहीं आएगी हमारी बातें। तुम बोलोगे कि पहाड़िए अंधविश्वासी होते हैं। हमने देखी, सुनी और खुद महसूस की हैं चीजें, इसलिए बता रहा हूं। बाकी होने को तो कुछ नहीं होता, जिसका टाइम माड़ा हो, उसके साथ ही होता है।

मेरी बड़ी जिज्ञासा रहती है थी भूतों की या कुछ ऐसी ही रोमांचक कहानियों में। बुजुर्ग की बातों में मेरी दिलचस्पी की एक और वजह थी, जिसके बारे में आपको मैं बाद में बताऊंगा। तो मैंने बुजुर्ग से पूछ ही लिया कि ऐसा क्या हुआ कभी आपके साथ। मेरे सवाल का बुजुर्ग के साथ ही बैठे लोगों ने भी समर्थन किया और बुजुर्ग से पूछा कि आज सुनाओ कुछ अपने साथ बीते किस्से। बुजुर्ग ने पहले तो आनाकानी की। फिर अपनी कंपकंपाती हुई सी आवाज में किस्सा सुनाना शुरू किया। उन्होंने कहा-

“मैं 20-22 साल का था, जब उसी जंगल से लकड़ी लाने गया था, जिसके नीचे नदी किनारे तुम लोग रात को रुके थे। सुबह से शाम तक हमने लड़कियां काटीं। मेरे साथ मेरा पड़ोसी भी था, जो मुझसे 2 साल बड़ा है। वो जंगल में एक तरफ चला गया था और मैं दूसरी तरफ। शाम तक मैंने लकड़ियां काटीं और उनका ढेर लगा दिया। सांझ होने को आई तो मै उस जगह की ओर चल दिया, जहां से जंगल शुरू होता है। हम उसी जगह पर अक्सर मिला करते थे जंगल से लौटने के बाद। मैं उस जगह पर पहुंचा तो देखा कि पड़ोसी पहले से ही इंतजार कर रहा है। मैं पास गया तो बोला कि क्या हुआ। वो बहुत डरा हुआ लग रहा था। मैंने पूछा क्या हुआ। बोला यार बड़ी अजीब चीज देखी जंगल में। मैंने पूछा कि ऐसा क्या देख लिया।

बोला कि बीच में थकान सी हुई तो मैंने सोचा घंटा भर नींद लगा लूं। वहीं लकड़ियों के चट्ठे के बीच तौलिया रखकर सो गया मै। नींद में ऐसा लगा कि कोई महिला मुझे आवाज दे रही है। नींद खुली और उठकर आसपास देखा। फिर आवाज आई तो कम से कम 100 मीटर दूर पेड़ों के बीच एक महिला दिखाई दी। उससे भी अजीब बात ये कि उसके कंधों पर एक बूढ़ा बैठा हुआ था, जो दूरबीन से मेरी तरफ देख रहा था। बड़ा अजीब सीन था यार। मैं उनकी तरफ करीब एक मिनट देखकर समझने की कोशिश करता रहा कि है क्या मामला। डर के मारे मेरी आत्मा कांप रही थी। न वो मेरी तरफ आ रहे थे, न जा रहे थे। मैं तो अपनी जगह फंस ही गया था। इतने में उस बूढ़े ने जब दूरबीन हटाई तो मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया। और भाई चेहरा देखा तो मैं बेहोश हो गया। मेरा दादू बैठा हुआ था उस औरत के कंधों पर वो भी अपने उन कपड़ों में, जो उसने इधर-उधर जने को रखे हैं। इसके बाद वो महिला मुड़ी और दादू समेत जंगल में चली गई। तबसे भागकर मैं यहीं जंगल से बाहर बैठा हुआ हूं।

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उस पडो़सी की कहानी सुनकर मैं डर गया, मगर मैंने उसको बोला यार तूने कोई सपना देखा है। दिन में सोएगा तो ऐसा ही होगा। ऐसा कभी हो सकता है क्या। तो पड़ोसी बोला कि नहीं भाई, नींद नहीं थी, मैंने पूरे होशो-हवास मे देखा है। भ्रम का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। मैं तो उसके बाद सीधा भागकर यहां आया हूं। मैंने कहा कि चल छोड़ ये बातें, घर चलते हैं।

पड़ोसी तो डर के मारे खाली आ गया था, मैं थोड़ा सा गट्ठर ले आया था लकड़ियों का और बाकी लकड़ियां अगले दिन लानी थीं। तो अपने गट्ठर के मैंने दो गट्ठर बनाए और आधी लकड़ियों पड़ोसी को दे दीं। घंटा भर पैदल चलकर रात के अंधेरे में जब हम घर के पास पहुंचे तो किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। खूब महिलाएं रो रही थीं, कुछ समझ नहीं आ रहा था। लकड़ियां हमने यूं ही एक खेत में फेंकी और घर की तरफ दौड़ पड़े। घर गए तो पता चला कि मेरे साथ जो पड़ोसी गया है, उसके घर पर ही लोग इकट्ठे हुए पड़े हैं, महिलाएं रो रही हैं। पता चला कि घर का बुजुर्ग यानी मेरे साथ जंगल मे गए पड़ोसी के दादू का देहांत हो गया है शाम को। यह सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मुझे पड़ोसी का सुनाया किस्सा याद आया, जिसमें उसने दादू को अजीब हालत में किसी महिला के कंधे पर सवाल देखा था जंगल में।

इस ख्याल से मैं कितना डर गया था, यह मैं ही जानता हूं। मैंने जब ये किस्सा वहां पर आए बाकी लोगों को सुनाया तो कुछ हैरान हुए तो कुछ मुझे बेवकूफ समझने लगे। जब मेरे साथ जंगल में गए पड़ोसी ने भी बताया कि उसके साथ यही हुआ था, तब लोग गंभीर हुए मगर वे कर भी क्या सकते थे। कई दिनों तक यही किस्सा गांव समाज में बातों में छाया रहा।”

बुजुर्ग ने अपने साथ हुई यह घटना सुनाई तो हम सब सन्न रह गए। सन्न इसलिए भी रह गए, क्योंकि उसी दिन हमारे ग्रुप में साथ आए एक लड़के पिंटू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था। रात टेंट मे गुजारने के बाद जब हम लोग दिन में नदी किनारे बैठकर गुनगनी धूप सेंक रहे थे, तब पिंटू अकेला ही कैमरा लेकर जंगल में चला गया था। कुछ देर बाद वह दौड़ा-दौड़ा चला आया था। उसने आकर बताया कि उसे ऊफर एक महिला दिखी, जो अपने कंधे पर किसी आदमी को बिठाकर जंगल की ओर जा रही थी। उसने बताया कि कंधे पर बैठा वो आदमी उसे अपने जीजा जैसा लग रहा था।

दिन में हम सबने सोचा था कि पिंटू मसखरी कर रहा है, मगर बुजुर्ग की बात सुनकर हमारे होश उड़ गए थे। अब हमने बुजुर्ग और उसके साथ बैठे लोगों को बताया कि दिन मे हमारे साथी को भी कुछ ऐसा दिखा है। यह सुनकर बुजुर्ग कुछ परेशान सा हो गया। उसने बोला कि घर में फोन करके पूछ लो कि सब ठीक तो है। आग के अलाव को हम सब वहीं छोड़कर बस अड्डे की तरफ दौड़े, क्योंकि वहीं से कहीं फोन किया जा सकता था। पिंटू ने अपनी दीदी के घर पर फोन लगाया तो वहां किसी ने उठाया नहींं। फिर उसने अपने पड़ोसी के यहां फोन लगाया, क्योंकि उसके अपने घर पर फोन नहीं था। पड़ोसी के फोन उठाने  पर उसने कहा कि किसी को घर से बुला दो। इस पर जवाब मिला कि घर पर कोई नहीं है, क्योंकि सब तुम्हारी दीदी के यहां गए हैं, तुम्हारे जीजा जी बिजली के खंभे पर चढ़े थे कि उन्हें करंट लग गया है। हॉस्पिटल में ऐडमिट हैं।

पिंटू के जीजा बिजली विभाग में थे। फोन पर हुई बातचीत सुनकर हम सभी घबरा गए। तरह-तरह के कयास लगते रहे। घंटे भर में बस आ गई और हम अगली सुबह ऊना उतर गए। वहं से सीधे घर पहुंचे तो मालूम हुआ कि पिंटू के जीजा की मौत हो गई थी कल हॉस्पिटल में ही। इसके बाद पिंटू समेत हम सब लोग सदमे में आ गए। कई दिन तक हम सब बीमार पड़े रहे। किसी को डॉक्टर को दिखाया गया था किसी को झाड़फूंक कराई गई। डर के मारे बुखार उतर नहीं रहा था मेरा भी। आज तो इस घटना से उबर चुका हूं, मगर जंगल मे जाने से डर लगता है। मन में अजीब सा डर बैठ गया है।

पता नहीं पिंटू का वहम था या क्या था। अगर संयोग से भी ऐसा कोई भ्रम हुआ तो कई साल पहले उस बूढ़े के साथ वैसी ही घटना कैसे हो गई थी? हमारे साथ घटना पहले हुई और बूढ़े ने अपनी बात बाद में बताई, तो ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता कि पिंटू ने उस कहानी के आधार पर वहम ेक आधार पर कहानी गढ़ ली हो। अगर ये सब भ्रम नहीं था तो वह महिला कौन थी और क्यों उसके कंधे पर सवार दिखने वाले व्यक्ति की मौत होती थी। क्या उस जंगल में ही कुछ बात है या वह महिला जंगल में आने वाले किसी व्यक्ति को चुनकर उसके किसी परिजन को ले जाती है? कई सवाल मेरे मन में उमड़ते-घुमड़ते हैं। मैंने कोशिश भी नहीं की चंबा या किसी और जगह के व्यक्ति से यह पूछने की कि इस तरह की घटनाएं और किसके साथ हुई हैं। मैं यही कामना करता हूं कि यह सिर्फ भ्रम और संयोग की मिली-जुली बानगी भर हो।

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(लेखक ऊना से है और इन दिनों चंडीगढ़ में निजी विश्वविद्यालय के फाइनैंस डिपार्टमेंट में हैं। उन्होंने नाम बदलने की गुजारिश के साथ हमें यह कहानी भेजी थी, जिसे हम मूल घटनाओं से छेड़छाड़ किए बिना देवनागरी में पेश कर रहे हैं। )