4 साल से दिल्ली में सरकारी बंगला खाली नहीं कर रहे वीरभद्र सिंह

इन हिमाचल डेस्क।। दिल्ली के वीआईपी एरिया लुटिन्यस जोन को ब्रिटिशन आर्किटेक्ट एडविन लुटियन्स ने 20वीं सदी की शुरुआत में डिजाइन किया था। बड़े ही सुनियोजित ढंग से पेड़ लगाए गए थे, बड़े-बड़े बंगले बनाए गए थे और चौड़ी सड़कें बनाई गई थीं। ये बंगले बड़े मत्रियों और अधिकारियों आदि को अलॉट होते हैं। मगर ये बंगले बहुत कम हैं और मंत्रियों और अन्य वीवीआईपी लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई है।

यहां का ठाठ कुछ ऐसा है कि जिन्हें यहां बंगला मिल जाए, वह मुश्किल से ही छोड़ता है। जब कार्यकाल पूरा हो जाता है या दिल्ली से बाहर जाना पड़ता है, तब भी बहुत से नेता इन बंगलों को नहीं छोड़ते। सबसे खास बात यह है कि जो लोग तय सीमा से एक्स्ट्रा रुकते हैं, उन्हें डेढ़ से 2 लाख रुपये प्रति वर्ष यानी करीब 10 से 15 हजार रुपये हर महीने के हिसाब से ही किराया देना पड़ता था।

इस नीति को सख्त बनाते हुए इस साल जून में एनडीए सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और एक महीना अतिरिक्त रुकने पर 10 प्रतिशत एक्स्ट्रा चार्ज लगाया और दूसरे महीने से यह पेनल्टी 20 पर्सेंट कर दी। जब तक कि किराया 10 लाख नहीं हो जाता, तब तक हर महीने यह डबल होता रहता है।

अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स की खबर इस तरह से बहुत से लोगों ने तो अपने बंगले खाली कर दिए, मगर 4 वीआईपी ऐसे हैं, जिन्होंने ये बंगले अब तक नहीं छोड़े। इन चार लोगों में एक नाम हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का भी है।

वीरभद्र सिंह ने अब तक दिल्ली का सरकारी बंगला खाली नहीं किया है।
वीरभद्र सिंह ने अब तक दिल्ली का सरकारी बंगला खाली नहीं किया है।

वीरभद्र सिंह को 1 जंतर-मंतर वाला बंगला तब अलॉट हुआ था, जब वह यूपीए 1 में केंद्रीय इस्पात मंत्री थे। जब 2012 में वह हिमाचल के मुख्यमंत्री बने और यहां लौट आए, तब नियमानुसार उन्हें यह बंगला खाली करना था। मगर उन्होंने आज तक यह बंगला खाली नहीं किया। यानी 4 साल से वह बंगले पर कब्जा जमाए बैठे हैं। जनसत्ता की खबर कहती है कि वह बंगला खाली कराए जाने के आदेश के खिलाफ अदालत गए हैं। (क्लिक करके खबर पढ़ें)

गौरतलब है कि साउथ दिल्ली के महरौली में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और बेटी के नाम से बनी कंपनी के नाम पर एक फार्म हाउस भी है। इस फार्म हाउस का सौदा भी सीबीआई जांच के दायरे में है। नई दुनिया की खबर के मुताबिक साल 2011 में खरीदे गए इस फार्म के लिए लगभग साढ़े पांच करोड़ रुपये नकद दिए गए थे। बेचने वाले व्यक्ति ने खुद आयकर विभाग को दिए बयान में इसका खुलासा किया है और बयान की यह प्रति सीबीआई के पास मौजूद है। (क्लिक करके खबर पढ़ें)

2012 में दिल्ली में मंत्री पद छोड़कर सीएम बनने हिमाचल आ गए थे वीरभद्र।
2012 में दिल्ली में मंत्री पद छोड़कर सीएम बनने हिमाचल आ गए थे वीरभद्र।

उनके अलावा उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत, पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह और असम के मुख्यमंत्री सरबानंद सोनवाल शामिल हैं। गौरतलब है कि इस मामले में एनडीए सरकार ने सख्त नीति अपनाई है और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा तक को नियमों के आधार पर अपना घर खाली करना पड़ा था।

अब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने डीसी कुल्लू को भरी सभा में मंच से लताड़ा

कुल्लू।। प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का गुस्सा दिनोदिन बढ़ता हुआ नजर आ रहा है। आए दिन मंच से भड़क जा रहे मुख्यमंत्री ने अब कुल्लू के डीसी को भरे मंच से न सिर्फ फटकारा, बल्कि उनके तबादले का भी ऐलान कर दिया। गौरतलब है कि इससे पहले वह इसी तरह से पीडब्ल्यूडी अधिकारियों को मंच से ही करप्ट बता चुके हैं।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह (File Photo)मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह (File Photo)

मामला सोमवार का है, जब बंजार दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अधिकारियों की जमकर क्लास ली। उन्होंने खास तौर पर डीसी कुल्लू को जमकर लताड़ लगाई। उन्होंने कहा, ‘ये डीसी साहब हैं, इनसे कमजोर आदमी कहीं नहीं देखा। जब सरकार ने फैसला लिया है कि मंदिर अपने कब्जे में लेना है तो लेना है। क्या ये डीसी बने रहने के काबिल हैं? I am going to transfer him from here.’

दरअसल जब से महेश्वर सिंह बीजेपी में शामिल हुए हैं, तबसे राज्य सरकार ने कुल्लू के भगवान रघुनाथ मंदिर को न्यास बनाकर अपने कब्जे में लेने की कोशिश तेज कर दी है। महेश्वर सिंह जिस राजघराने के हैं, वही  राजघराना इस मंदिर की देखरेख करता आया है। प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी की थी कि डीसी कुल्लू 24 घंटों के अंदर मंदिर को अपने कब्जे में लेकर रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपें। डीसी ने कब्जा करने का कदम उठाने से पहले मंदिर प्रबंधन को नोटिस भेजा। इसके बाद मंदिर प्रबंधन ने हाई कोर्ट में याचिका डाल दी। इससे सरकार मंदिर का अधिग्रहण नहीं कर पाई।

गौरतलब है कि वीरभद्र सरकार ने इससे पहले इसी तरह से अधिसूचना जारी करके रातोरात एचपीसीए स्टेडियम धर्मशाला को अपने कब्जे में ले लिया था, मगर कोर्ट ने इस कदम को अवैध बनाते हुए सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। संभव है कि ऐसी स्थिति न आए, यह सोचते हुए डीसी ने मंदिर प्रबंधन को 7 दिन का नोटिस दिया होगा। मगर उन्हें नहीं मालूम का था कि इतना बड़ा अधिकारी होने के बावजूद उन्हें मंच से इस तरह अपमानित किया जाएगा और उनकी क्षमता पर प्रश्न चिह्न खड़े किए जाएंगे।

सोशल मीडिया पर भी मुख्यमंत्री के इस व्यवहार की लगातार आलोचना हो रही है। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री को पहले खुद से सवाल पूछना चाहिए कि इतने आरोपों में घिरे होने के बावजूद क्या उन्हें खुद अपने पद पर बने रहने का अधिकार है जो वह प्रतिष्ठित पद पर बैठे अधिकारियों को इस तरह से अपमानित कर रहे हैं। आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री का गुस्सा किस पर फूटता है, यह देखना अभी बाकी है।

UPDATE: DC कुल्लू रहे हंसराज चौहान का ट्रांसफर करके उन्हें PWD का स्पेशल सेक्रेटरी बना दिया गया है। गौरतलब है कि PWD महकमा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पास ही है।

पढ़ें:
खराब सड़कों के सवाल पर भड़के वीरभद्र

कार्यकर्ता पर बुरी तरह भड़के मुख्यमंत्री

शांता कुमार के जन्मदिन पर विशेष: बहुत तकलीफ देती है मुझे यह सादगी मेरी…

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  • विवेक अविनाशी

आज हिमाचल प्रदेध के राजनेता शान्ता कुमार का 83वां जन्मदिन है। दो बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शान्ता कुमार का छः दशक का राजनीतिक सफर बिना रुके, बिना झुके निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। देश के राजनीतिक इतिहास में हिमाचल प्रदेश का ज़िक्र शान्ता कुमार के नाम के बिना अधूरा रहता है। राजनीति के इस शिखर-पुरुष को पढ़ना, समझना और महसूस करना उतना मुश्किल नही जितना लोग समझते हैं। दरअसल शान्ता कुमार का राजनीतिक जीवन एक खुली किताब है, जिसके हरेक पन्ने पर देश और प्रदेश के लोगों की खुशहाली के लिए पिछले पांच दशकों में किए गए सैंकड़ों कार्य दर्ज हैं। ज़रूरत तो सिर्फ इन पन्नों को संवेदनाओं भरे दिल से पढ़ने की है।

The Union Minister for Rural Development Shri Shanta Kumar briefing the press on new initiatives on Sector Reforms Programme in Rural Drinking Water Supply, in New Delhi on November 22, 2002 (Friday). The programme is proposed to be extended to Panchayats as part of the Government's effort to ensure supply of safe drinking water to all the habitations by 2004.

शान्ता कुमार देश की किसी भी गंभीर समस्या पर जब भी कुछ चिंतन करते हैं, समाधान वही होता है जो उनका दिल और दिमाग़ तय करता है। दिल्ली में संसदीय सचिवों का मामला उच्चतम न्यायालय में चल रहा था। शान्ता कुमार ने समाचार-पत्र में लेख लिखकर अपना मत व्यक्त किया कि संसदीय सचिव का पद संविधान की मूलभावना के अनुरूप नहीं है, अतः इसे समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने इस पद को सरकार पर अनावश्यक बोझ भी बताया ।
कुछ ही समय बाद उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दे कर संसदीय सचिवों की नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया। इतना ही नही ,देश की चुनाव पद्धति में सुधार को लेकर शान्ता कुमार ने एक बार कहा था, ‘देश की लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हर पांच साल में एक बार इकट्ठे ही होने चाहिए, इससे खर्च भी कम होगा और राजनीतिक पार्टियां चुनावों की अपेक्षा देश और प्रदेश के विकास की ओर अधिक ध्यान देंगी।’

 

The Prime Minister Shri Atal Bihari Vajpayee is being presented a cheque of Rs. 5.02 crore by Union Minister of Consumer Affairs, Food & Public Distribution Shri Shanta Kumar for earthquake relief on behalf of officers and Public Sector Undertakings of Ministry of Consumer Affairs, Food & Public Distribution in New Delhi on February 1, 2001.

शान्ता कुमार की इस सोच को मूर्त रूप देने का विचार हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यक्त किया है। यह उदाहरण महज़ इस आशय के द्योतक हैं कि राजनीति में दूरदर्शी सोच शान्ता कुमार की शख्सियत का अहम पहलू है। आज राजनैतिक प्रतिद्वंदियों से लड़ना और अनावश्यक तर्क-वितर्क करना राजनीति में फैशन बन गया है, लेकिन राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को तहज़ीब और सलीके से अपनी बात समझाने का हुनर केवल शान्ता कुमार के पास ही है। ओडिशा में एक जनजातीय व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी की लाश कंधे पर ढोकर ले जाने की घटना से सारा देश आहत था। स्वाभाविक है शान्ताकुमार का भावुक मन भी इस घटना से विचलित हो उठा था। क़लम उठाई और लोगों से सवाल किया, ‘लोग कहते हैं सरकार कहां है, मैं पूछता हूँ समाज कहां है?’ घटना पर टिपण्णी करते हुए लिखते हैं, ‘जिस देश में दधीचि ने पाप के नाश के लिए अपनी अस्थियां तक दे दी उस देश में मानवता का यह अपमान समझ नही आता।’ उनका कहना था, ‘समाज बुरे लोगों के कारण नष्ट होता लेकिन अच्छे लोगों के निष्क्रिय होने से समाप्त होता है।’

इसे शान्ता कुमार की भावुकता समझें या दूरदर्शिता पर यह सत्य है सरकार भी तो समाज ही बनाता है। शान्ताकुमार सादगी भरा जीवन जीते हैं। कई बार शुभचिंतकों के कहने पर कि राजनीति में इतनी सादगी चलती नहीं। शान्ता कुमार भाव-विभोर हो कर कह उठते हैं- कोई तावीज़ ऐसा दो कि मैं चालाक हो जाऊं, बहुत तकलीफ़ देती है मुझे यह सादगी मेरी

शांता उम्र के इस पड़ाव पर अभी भी जन-सेवा कार्यों में तल्लीन हैं। दिर्घायु हों, ऐसी कामना है।

शांता कुमार से जुड़े आलेख आदि पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें

(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और राज्य को लेकर लंबे समय से लिख रहे हैं। उनसे उनकी ईमेल आईडी vivekavinashi15@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

जानें, कांगड़ा के घमासान पर क्या बोले मुख्यमंत्री के बेटे विक्रमादित्य सिंह

कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले पर इन दिनों सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। आए दिन विवादास्पद टिप्पणियां फेसबुक पर करने वाले नीरज भारती के निशाने पर इन दिनों उन्हीं की पार्टी के सीनियर नेता हैं। वह लगातार पिछले कुछ दिनों से उस नेता के खिलाफ अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर ऐसी बातें लिख रहे हैं, जिन्हें मर्यादित नहीं कहा जा सकता।दूसरे नेता की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, मगर दोनों नेताओं के समर्थक फेसबुक पर भिड़े पड़े हैं।

विक्रमादित्य सिंह
विक्रमादित्य सिंह

ज्वाली के विधायक और मुख्य संसदीय सचिव नीरज भारती का फेसबुक पर लोगों को अश्लील गालियां देना, हस्तियों के लिए अपमानजक बातें करना और विरोधी पार्टी के नेताओं पर छिछले हमले करना कोई नया नहीं है। मगर अपनी ही पार्टी के सीनियर नेता पर लगातार हमला करना जरूर सबको चौंका रहा। खास तौर पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की चुप्पी पर कांग्रेसीजन सवाल उठा रहे हैं। अब तो यह चर्चा होने लगी है कि हो न हो मुख्यमंत्री की शह पाकर उनके इशारे पर ही भारती यह काम कर रहे हैं। ऐसी चर्चाओं को इसलिए भी बल मिल रहा है, क्योंकि वीरभद्र के उन वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से मतभेद हैं, जिनके ऊपर भारती अमर्यादित टिप्पणियां कर रहे हैं। इन आशंकाओं को तब और हवा मिलती दिखती है, जब मुख्यमंत्री के बेटे और यूथ कांग्रेस के स्टेट प्रेजिडेंट विक्रमादित्य सिंह बुशहर अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट डालते हैं। उन्होंने लिखा है-

‘पिछले कुछ दिनो से प्रदेश मैं किन्हीं कारणों से कांग्रिस पार्टी के दो आला नेता के बीच आरोप प्रतिारोप का सिलसिला सोशल मीडिया वह मीडिया मैं चला हुआ है, जिसमें जाती और समुदाय को भी घसीटा जा रहा है, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। कांग्रिस पार्टी का एक युवा कार्यकर्ता होने के नाते वह कांग्रिस पार्टी का संविधान पड़ने के उपरांत जिसमें हर धर्म , क्षेत्र , जाती के बीच भेदभाव किए बिना उन्हें साथ चलाने का दृष्टिकोण हमें मिला है, मैं इस घटनाक्रम को सही नहीं समझता हूँ। कांग्रिस एक लोकतांत्रिक पार्टी है, जिसमें हर व्यक्ति के अलग विचार वह विचारों मैं मतभेद हो सकते है, जिससे हमें पार्टी फ़ोरम पर सही समय पर रखने का पार्टी पूरा अधिकार देती है। इस तरह के घटनाक्रम पार्टी वह पार्टी के कार्यकर्ता के मनोबल को ठेस पहुँचता है, मेरा एक छोटें भाई होने के नाते एक विनम्र निवेदन वह प्रार्थना की इस से बचे , यह दूसरे पार्टी और विचारधारा के लोगों के केवल हमारे ख़िलाफ़ असला बारूद देता हैं। यह मेरे निजी विचार है, जिसे मैं युवा कांग्रिस के अध्यक्ष की हैसियत से नहीं लिख रहा ना ही मेरा इरादा किसी भी व्यक्ति को ठेस पहुँचने का है । जय हिंद जय कांग्रिस।।।’

गौरतलब है कि इस पोस्ट को देखकर लगता है कि विक्रमादित्य सिंह इस बात को लेकर नाराज हैं कि नीरज भारती बार-बार ओबीसी-ओबीसी की रट लगाकर पोस्ट्स डाल रहे हैं। विक्रमादित्य की ही पोस्ट पर कॉमेंट करते हुए एक पाठक ने सवाल उठाया है कि विक्रमादित्य को अगर जाति या समुदाय को घसीटना कांग्रेस के संविधान का उल्लंघन लगता है तो जो भाषा नीरज भारती इस्तेमाल करते हैं, क्या वह कांग्रेस संविधान के मुताबिक जायज है। यहां तक कि भारती कॉमेंट्स में भी लोगों को मां-बहन की गालियां देते नजर आए हैं।

बहरहाल, कांग्रेस के एक हिस्से में विक्रमादित्य की तारीफ भी हो रही है कि अपनी पार्टी में इस तरह की बयानबाजी को लेकर बोलने वाले वह पहले नेता हैं। जो काम उनके पिता वीरभद्र सिंह और पार्टी अध्यक्ष सुक्खू नहीं कर पाए, उसमें उन्होंने अच्छी पहल की है। मगर उनका स्टेटस अगर गोलमोल न होकर स्पष्ट होता तो उनका रुतबा और बढ़ा होता।

विक्रमादित्य की पोस्ट पर आईं टिप्पणियां
विक्रमादित्य की पोस्ट पर आईं टिप्पणियां

गौरतलब है कि नीरज भारती देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के खिलाफ अभद्र शब्द इस्तेमाल कर चुके हैं। कभी वह हिंदूवादी संगठनों को नीचा दिखाने के लिए कुछ लिखते हैं तो कभी इधर-उधर से बना फोटोशॉप्ड से तैयार कॉन्टेंट शेयर करते हैं। यही नहीं, कोई आपत्ति जताए तो उसके साथ मां-बहन की गालियों के साथ उतर आते हैं। विधानसभा में भी यह मामला उठ चुका है, मगर वीरभद्र कह चुके हैं कि नीरज कुछ गलत नहीं कर रहा। मगर सवाल उठता है कि क्या उन्होंने यह टिप्पणी करने से पहले नीरज भारती की पोस्ट्स और कॉमेट पढ़ें हैं-

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सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं भारती की टिप्पणियों वाले ये स्क्रीनशॉट

ऐसी टिप्पणियों को लेकर विक्रमादित्य सिंह और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कब संज्ञान लेंगे? सबसे बड़ी जिम्मेदारी सुखविंदर सिंह सुक्खू की है, जिनके ऊपर संगठन की जिम्मेदारी हैं। वह मोदी के बोलों को जुमलों का ढोल कहते हैं तो भारती के इन बोलों को वह क्या कहेंगे, यह देखना बाकी है।

नीरज भारती द्वारा अब तक की गईं अमर्यादित टिप्पणियों के बारे में जानने के लिए यहां पर क्लिक करें

बंद होना चाहिए यह हड़तालों का कारोबार

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  • विजय इंद्र चौहान

हड़तालों का कारोबार। जी हां, कारोबार। यह कारोबार देश के लग भग हर कोने में फैला हुआ है। एक समय था जब कुछ दलों के लिए हड़तालें राजनीति करने का मुख्य जरिया थी। हड़तालें कर के, अराजकता फैला के और निरन्तर व्यवस्था का विरोध कर के सत्ता में पहुँचने का प्रयास किया जाता था। अब जब देश की जनता ने इस राजनीतf को सिरे से नकार दिया है तो हड़तालें एक बिज़नस बन कर रह गई हैं।

दिल्ली में बैठे या प्रदेश मुख्यालय में बैठे हड़तालों के ठेकेदारों को भी यह पता है की किसी ज़माने में सत्ता तक पहुँचने का यह रास्ता बंद हो चूका है और इस रास्ते पर चल कर सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता। अब अगर ठेकेदार समझते हैं कि यह रास्ता उनको सत्ता तक नहीं ले जा सकता तो फिर भी हड़तालें क्यों। इन ठेकेदारों को साल में दो चार देश व्यापी या प्रदेश व्यापी हड़तालें करनी पड़ती हैं ताकि इनका अस्तित्व बना रहे और जनता इनको भूल न जाए। बाकि उद्योगिक संस्थानों में यह हड़तालें सारा साल चलती रहती हैं। उद्योगों में हड़तालें करवा के उनको ब्लैकमेल किया जाता है और उनसे पैसे ऐंठे जाते हैं।

देश के किसी भी कोने में कोई भी छोटा या बड़ा व्यपार खुलता है जहाँ पर पांच सात से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया हो तो यह हड़तालों के ठेकेदार वहां सक्रिय हो जाते हैं। उधर व्यपारी अपना व्यपार स्थापित करने में जुटा होता है और उसका प्रयास रहता है की वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे तो दूसरी तरफ यह हड़तालों के ठेकेदार व्यपार चलने से पहले ही वहां पर यूनियन बनाने में जुट जाते हैं। वर्कर्स की यूनियन बनाते हैं और उन्हें नई नई मांगे रखने के लिए उकसाते हैं।

कौन नहीं चाहता कि उसे जो मिल रहा है इससे उसे ज्यादा मिले। कभी यह बोलेंगे की बेतन कम है, कभी बोलेंगे की वर्कर्स को पक्का करो, और कभी बोलेंगे की इनको पेंशन मिलनी चाहिए बगैरह बगैरह। बेचारे वर्कर्स इन ठेकेदारों के झांसे में आ जाते हैं और यूनियन बना कर जैसा यह बोलते हैं वैसी मांगे करने लगते हैं। व्यपारी बेचारा अपना बिज़नस चलाने के लिए एक मांग मान लेगा तो यह ठेकेदार वर्कर्स यूनियन को दूसरी मांग रखने को बोलेंगे। इनका मुख्य मुद्दा होता है कि वहां पर हड़ताल करवाई जाए। वर्कर्स यूनियन को उकसाएंगे की हड़ताल होगी तभी उनकी सारी मांगो को माना जाएगा और हम आपके साथ हैं और आपको आपका यह हक़ दिलवा के ही रहेंगे।

वर्कर्स भी यह सोचने लगते हैं की जिसने उनको रोज़गार दिया है वह उनको धोखा दे रहा है और उनके हित्तों के सही रक्षक तो यह ठेकेदार ही हैं। वर्कर्स हड़ताल करंगे और यह ठेकेदार उन सब के हाथों में अपना झंडा थमा कर के हड़ताल का नेतृत्व करंगे। हड़ताल होगी, चलती रहेगी, व्यपार ठप हो जाएगा और व्यपारी को भारी नुक्सान होगा। यह ठेकेदार व्यपारी को धमकाएंगे की उसका काम नहीं चलने देंगे और इसे बंद करवा के ही रहेंगे। व्यपारी जिसने व्यपार स्थापित करने के लिए कई जगह से पैसा उठाया होगा वह परेशान हो कर इन ठेकेदारों से समझौता करने को तैयार हो जाएगा।

अब समझौता क्या होगा। समझौता यह होगा कि वर्कर्स यूनियन की जो मांगे हैं उनमे से किसी एक को कुछ हद तक मान लिया जाएगा या फिर यह आश्वासन दिया जाएगा कि उनको कुछ समय सीमा के अंदर मान लेंगे। उसके अलावा एक मोटी रकम यह हड़तालों के ठेकेदार व्यपारी से ऐंठेंगे और अपनी जेब में डालेंगे। हो सकता है इससे कुछ हिस्सा वर्कर्स यूनियन के एक दो लीडर्स को भी दे दें ताकि वह भी खुश रहें। फिर वर्कर्स को समझाया जायेगा की व्यापारी, कंपनी मैनेजमेंट या सरकार से उनका समझौता हो गया है और उनकी मांगे जल्दी ही मान ली जाएंगी। हड़ताल खत्म हो जाएगी और काम दोबारा शुरू हो जाएगा पर यह हमेशा के लिए नहीं होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

कुछ महीनो बाद फिरौती की अगली क़िस्त लेने के लिए यह ठेकेदार दोबारा हड़ताल करवाएंगे, फिर उसके बाद समझौता करेंगे और यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक व्यापारी या तो व्यपार बंद न कर दे या फिर उसे समेट कर दूसरी जगह न चला जाए। बेचारे वर्कर्स हड़तालें करते रहेंगे और उनको कुछ मिलेगा नहीं उल्टा व्यपार बंद हो जाने से उनके रोज़गार का साधन भी खत्म हो जाएगा। आजकल के समय में कोई भी मंझा हुआ व्यपारी या बड़ी कंपनी व्यपार शुरू करती है तो अपनी इन्वेस्टमेंट और प्रोजेक्ट प्लान में एक अच्छी खासी रकम इन समस्याओं से निपटने के लिए अलग से रखती है। पर छोटे और नए व्यपारियों का क्या? आज जब देश में बेरोजगारी चरमसीमा पर है और सरकार युवाओं को प्रोत्सहित कर रही है कि वह नौकरी ढूंढने के बजाय अपना काम शुरू करें पर क्या इस माहौल में हर कोई अपना काम चला पाएगा।

सरकार बेशक स्टार्टअप इंडिया स्टैंडअप इंडिया जैसी नीतियों से और व्यपार करने के लिए आसानी से धन मुहैया करवा के युवाओं को प्रोत्साहित कर रही है पर यह व्यपार तब तक कामयाब और ज्यादा फल फूल नहीं सकते जब तक इस हड़ताल नाम की दीमक को हमारी व्यवस्था से पूरी तरह खत्म नहीं कर दिया जाए। जब तक यह हड़तालें कर के व्यपारियों को ब्लैकमेल करने का धन्दा इस देश में चलता रहेगा तब तक हमारे अपने उद्योगों का आगे बढ़ना तो मुश्किल है साथ में विदेशी निवेशक भी यहाँ निवेश करने से कतराते रहेंगे।

2 सितम्बर को देश व्यापी हड़ताल हुई और ट्रेड एसोसिएशन ने इस हड़ताल की वजह से हुए नुक्सान का अनुमान 18 हजार करोड़ रुपए लगाया है। हमारे देश का मनरेगा का कुल सालाना बजट 38 हजार 500 करोड़ है जिसमे करीब 19 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। क्या हम एक दिन में 18 हजार करोड़ रुपए स्वाह कर सकते हैं? इस 18 हजार करोड़ रुपए से हम 8 करोड़ और लोगों को रोजगार दे सकते थे। इस हिसाब से देखा जाए तो एक दिन की हड़ताल ने करीब 8 करोड लोगों का रोजगार छीना है। यह हड़ताल वर्कर्स का बेतन बढ़ाने के लिए थी या उनके रोजगार के साधनों को और सीमित करने के लिए थी। इस सब पर हम सबको विचार करना पड़ेगा।

(लेखक पालमपुर से हैं और एक मल्टीनैशनल में कार्यरत हैं। उनसे vijayinderchauhan@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

कार्यकर्ता पर बुरी तरह से भड़के वीरभद्र सिंह, मंच से ही सुनाने लगे खरी-खोटी

बद्दी।। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इतने चिड़चिड़े हो गए हैं कि छोटी-छोटी बातों पर भड़क रहे हैं। रविवार को बद्दी में एक कार्यकर्ता की बात उन्हें इतना गुस्सा आ गया कि उन्होंने उसे स्टेज से डपट दिया और फिर नाराज होकर बैठ गए। यही नहीं, लोगों में यह चर्चा छाई रही कि मुख्यमंत्री वीरभद्र की भाषा अब अहसान जताने वाली हो गई है।

दरअसल ग्राम पंचायत भटौलीकलां के हनुमान मंदिर झाड़माजरी में आयोजित जनसभा में एक घटना हुई। ‘पंजाब केसरी’ के मुताबिक जनसभा में सबसे आगे बैठे एक कार्यकर्ता ने कुछ कहा। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इस कार्यकर्ता ने कहा था, ‘बद्दी को भी कुछ दे दो।’ इस बात से वीरभद्र भड़क गए और बोले कि बद्दी में जो विकास हो रहा है, वह आपको नजर नहीं आ रहा है क्या? बद्दी में सब कुछ हो गया है। आप के शब्दों से ऐसा लग रहा है कि यहां कुछ हुआ ही नहीं है।

वहीं ‘हिमाचल अभी-अभी’ की रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हिमाचल प्रदेश कृतज्ञ लोगों का प्रदेश है। पहाड़ के लोगों को कोई अगर ठंडा पानी भी पिला दे तो भी उसका अहसान पूरी जिंदगी माना जाता है। मगर कुछ लोग ऐसे होते हैं कि उनका पेट भरते जाओ, तब भी डकार नहीं मारते।’

आगे उन्होंने कहा, ‘बद्दी को एक कॉलेज, दर्जनों नए स्कूल, करोड़ों रुपये की पेयजल योजनाएं, बीबीएन व अन्य माध्यम से करोड़ों रुपए की सड़कें व टूल रूम समेत इतना कुछ दिया और आप लोग कहते हैं कि बद्दी को कुछ भी नहीं दिया? मैं वही करता हूं, जो मेरी आत्मा मुझे बोलती है। वीरभद्र जो कहता है, वह पत्थर की लकीर होती है।’

File photo

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मुख्यमंत्री का गुस्सा फिर भी कम नहीं हुआ। उन्होंने दून के विधायक राम कुमार चौधरी की मांगों पर कोई ऐलान न करते हुए यह कहा कि मैं देखूंगा कि सरकारी खजाने में इसके लिए धन है या नहीं। आखिर में मुख्यमंत्री ने जाते-जाते जनसभा में बैठे उस शख्स की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा, ‘मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ऐसा सुनने का आदी नहीं है। भविष्य में जो भी बोलो, वह तोल कर बोलो।’ इसके बाद जनसभा में सन्नाटा छा गया और सीएम दोबारा मंच पर बैठ गए।

चर्चा छाई रही कि मुख्यमंत्री अहसान जताने की भाषा बोल रहे थे, जबकि वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और वह जो कुछ भी देते हैं, सरकार की तरफ से देते हैं, न कि अपनी जेब से कि उनका अहसानमंद हुआ जाए और इलाके के लिए कोई मांग भी न की जाए। लोग जनसभा के बाद इस बारे में बात करते नजर आए कि वीरभद्र अब पहले जैसे नेता नहीं रहे।

गौरतलब है कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी मुख्यमंत्री भड़क गए थे। सड़कों की खराब हालत को लेकर पत्रकारों के सवाल पर चिढ़कर उन्होंने कह था कि मुझे तो सब ठीक दिखाई देता है, कहां सड़कें खराब हैं। इससे पहले भी वह मंच से पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों की निष्ठा पर शक जताने से लेकर एक शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान पंडित के हाथ से ईंट छीनने को लेकर चर्चा में रहे हैं। उनके छोटी-छोटी बातों पर भड़क जाने से अधिकारियों मे भी नाराजगी देखी जा रही है। गौरतलब है कि आय से अधिक संपत्ति मामले में सीबीआई और ईडी ने मुख्यमंत्री को बुरी तरह घेरा है। चर्चा है कि इसी तनाव में वह चिड़चिड़े हो गए हैं।

खराब सड़कों पर सवाल पूछा तो मीडिया पर भड़क गए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, बद्दी।।  महिला पुलिस थाना के लोकार्पण के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री को पत्रकारों के सवाल रास नहीं आए और वह भड़क गए। आलम यह रहा कि साथ बैठे आला प्रशासनिक अधिकारी भी असहज हो गए।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने पीडब्ल्यूडी विभाग अपने पास रखा है, जिसके पास सड़कें बनाने और उनकी मेनटेनेंस वगैरह की जिम्मेदारी है। मगर प्रदेश में कई जगहों पर सड़कों की हालत खस्ता है और लोगों को भारी असुविधा हो रही है।

दरअसल पत्रकारों ने मुख्यमंत्री से पूछा कि बीबीएन की सड़कों की हालत कब सुधरेगी। इस पर सीएम उग्र होकर मीडिया पर ही बरस पड़े। उन्होंने कहा, ‘आपको तो बीबीएन में ही सब कुछ खराब नजर आता है। क्या यहां कुछ भी ठीक नहीं है? मेरी नजर में तो सब कुछ ठीकठाक है।’

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इस पर पत्रकारों ने कहा कि बीबीएन की प्रमुख सड़कें, जैसे कि नालागढ़ रामशहर रोड, बद्दी साई रोड, बद्दी बरोटीवाला रोड, बरोटीवाला गुनाई रोड, बरोटीवाला बनलगी रोड समेत कई रोड बदहाल हैं।

फाइल फोटो
फाइल फोटो

पत्रकारों ने पूछा कि विभाग वीपाईपी के आने से पहले पैच वर्क किया जाता है तो क्या यह सुविधा लोगों को नहीं मिली चाहिए? इस पर उन्होंने कहा कि वीआईपी के आने पर पैचवर्क गलत है, लोगों को सुविधाएं निरंतर वैसे ही मिलनी चाहिए।

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मंडी: मौलवी ने शादी के इरादे से अगवा की थी अपनी नाबालिग छात्रा

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। प्रदेश के मंडी जिले के मुस्लिम बहुल आबादी वाले गांव डिनक से 23 जुलाई को किडनैप हुई नाबालिग लड़की को ढूंढ निकालने में पुलिस कामयाब हो गई है। गांव के एक मदरसे में 10वीं में पढ़ने वाली छात्रा को इसी मदरसे के मौलवी ने शादी करने के इरादे से किडनैप कर लिया था।

नाबालिग लड़की को किडनैप करने का आरोपी 22 साल का कासिर अहमद है, जो हरियाणा के मुस्लिम बहुल जिले मेवात का रहने वाला है। वह डिनक के मदरसे में मौलवी के तौर पर नियुक्त था, मगर उसकी नीयत अपनी शिष्या के प्रति ही बेईमान हो गई।

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लड़की के लापता होने पर परिजनों ने शिकायत सुंदरनगर पुलिस स्टेशन में करवाई थी। इसके बाद पुलिस ने तलाश शुरू कर दी थी। लंबी छानबीन के बाद पुलिस मौलवी का पता लगाने में कामयाब रही।

आरोपी कासिर अहमद (Source: MBM News Network)
आरोपी कासिर अहमद (Source: MBM News Network)

आरोपी को तेलंगाना के नल्लू जिले से अरेस्ट किया गया है। पुलिस ने अगवा की गई लड़की को भी बरामद करवा लिया है। दोनों को मंडी लाया जा रहा है।

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अवैध कब्जों को मान्यता देने वाली नीति पर वीरभद्र सरकार को हाई कोर्ट की फटकार

शिमला।। ‘कानून की आड़ में गैर-कानूनी काम को बढ़ावा देने वाले’ सरकार के एक कदम पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। दरअसल मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में अवैध निर्माण को नियमित करने का फैसला लिया, मगर हिमाचल हाई कोर्ट ने इसे गलत ठहाराया है।

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट

हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा अवैध निर्माण को गैर-कानूनी ठहराते हुए आदेश दिया है कि अवैध निर्माण को नियमित नहीं किया जना चाहिए। जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की बेंच ने कहा कि सरकार को न तो अवैध निर्माण को नियमित करना चाहिए और न ही वन भूमि पर अवैध कब्जों को।

कोर्ट ने कहा कि जो भी अवैध निर्माण होते हैं, वे रातोरात नहीं हो जाते। सरकार की मशीनरी मूकदर्शनक बनकर लालची लोगों को इस तरह से अवैध कब्जे करने देती है। पहले इन्हें अवैध रूप से कब्जे करने की छूट दी जाती है और बाद में उसे रेग्युलर कर दिया जाता है। यह दिखाता है कि संवैधानिक मशीनरी फेल है।

कोर्ट ने हिमाचल सरकार को फटकारते हुए कहा कि इस तरह नीतियों से बेईमानों को कानून तोड़ने की इजाजत मिली रहती है और बेचारी ईमानदार लोग दया के पात्र बने रहते हैं। कोर्ट ने अवैध निर्माण को नियमित करने की नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आलम यह है कि हजारों ऐसे निर्माण कर दिए गए हैं जो असुरक्षित हैं और उन्हें भी रेग्युलर किया जा रहा है।

गौरतलब है कि मई महीने के आखिर में सरकार द्वारा अवैध कब्जों को नियमित करने की खबर सुर्खियों मे ंरही थी और कांग्रेस इसे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर रही थी। मगर प्रदेश के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना था कि यह नीति गलत है, क्योंकि इससे अवैध कब्जे करने वालों को प्रोत्साहन मिलता है। जहां तक भूमिहीन लोगों की बात है, उन्हें घर आदि बनाने के लिए पहले ही तय नियमों की तहत सरकार से भूमि देने का प्रावधान है। अब हाई कोर्ट ने भी सरकार की इस नीति को खराब बताया है। साफ है कि चुनाव नजदीक आते देख तुष्टीकरण की नीति अपनाना प्रदेश सरकार को महंगा पड़ा है।

पढ़ें: कूटनीति के राजा, मगर विजनहीन नेता हैं वीरभद्र

NRI महिला ने मणिमहेश यात्रा में बदइंतजामी को लेकर कौल सिंह ठाकुर को घेरा

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, चंबा।। स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर चंबा दौरे पर थे। यहां कुछ ऐसा हुआ, जिसकी उन्होंने उम्मीद नहीं की थी। एक एनआरआई महिला ने उनपर सवालों की बौछार कर दी और वह असहज नजर आए।

Source: MBM News Network

दरसअल कौल सिंह ठाकुर होटल ईरावती में ब्रेकफस्ट कर रहे थे। वहां पर पहले से मौजूद भारतीय मूल की अमेरिका में रहने वाली महिला वीणू शर्मा ने मणिमहेश यात्रा को लेकर सवाल दागना शुरू कर दिया।

वीणू ने पूछा कि यात्रियों के लिए स्वास्थ्य से जुड़े इंतजाम क्यों नहीं है। उनका कहना था कि श्रद्धालुओं के लिए न तो ऑक्सिजन सिलिंडर का इंतजाम है न अन्य सुविधाएं। रास्ते में भी कीचड़ इतना है कि चलना मुश्किल है। इस पर कौल सिंह ने कहा कि यात्रा में इतने सारे लोग जाते हैं, ऐसे में अकेले-अकेले के लिए व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

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गौरतलब है कि इस बार कुछ यात्रियों की विभिन्न वजहों से मौत हो गई है। हर साल कुछ संख्या में मणिमहेश यात्रा के लिए निकले यात्री मुश्किल में फंसकर दम तोड़ देते है। ज्यादातर बार ऑक्सिजन की कमी (ऑल्टिट्यूड सिकनेस) की वजह से ये मौतें होती हैं।

बताया जाता है कि वीणू नाम की यह महिला हाल ही में मणिमहेश की यात्रा करके आई थीं। जैसे ही उन्हें पता चला कि कौल सिंह चंबा आए हैं, वह उन समस्याओं के बारे में बात करने चली आईं, जिन्हें उन्होंने खुद महसूस किया था।

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