गुम्मा बस हादसा: पता चली 44 लोगों की जान लेने वाली दुर्घटना की वजह

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के गुम्मा में हुए दर्दनाक बस हादसे में अभ 44 लोगों की मौत होने की पुष्टि हो चुकी है। करीब 500 मीटर गहरी खाई में गिरी बस के परखच्चे उड़ चुके थे और शव इधर-उधर बिखरे थे। मगर दो लोगों की जान इस हादसे में बच गई है। एक बस का कंडक्टर है और दूसरा एक यात्री। अब तक यह चर्चा हो रही थी कि आखिर हादसा हुआ कैसे। कयास लगाए जा रहे थे कि ओवरस्पीडिंग की वजह से हादसा हुआ होगा या फिर सड़क में कोई दिक्कत होने की वजह से ऐसा हुआ। मगर मौके पर मौजूद लोगों और हादसे में बचे युवक ने बताया है कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि बस में तकनीकी खामी थी और सब पता होने के बावजूद इसे चलाया जा रहा था।

हादसा इतना दर्दनाक था कि चारों तरफ लाशें बिखरी हुई थीं। कुछ पानी पर तैर रही थीं तो कुछ चट्टानों पर गिरी हुई थीं। टौंस नदी के किनारे का पानी तक लाल हो चुका था। ‘इन हिमाचल’ के पास इन हादसों के बाद के वीडियो भी थे मगर वे विचलित करने वाले थे। इसलिए हमने जिम्मेदारी निभाते हुए पाठको के साथ उन्हें शेयर करना उचित नहीं समझा।

हिंदी अखबार ‘अमर उजाला’ के मुताबिक अब तक की जांच में यह पता चला है कि उत्तराखंड की इस प्राइवेट बस को गंभीर तकनीकी खराबी के बावजूद चलाया जा रहा था। लोगों का कहना है कि ड्राइवर ने इस बस को मिनस पुल के पास मकैनिक के पास खड़ा किया था। कहा जा रहा है कि बस की कमानी (Leaf Spring) टूट गई थी मगर परिचालक ने बस की टूटी कमानी को तार से बांध कर चालक को धीरे-धीरे चलने के लिए मजबूर किया। बस हादसे का शिकार हो सकती है ये जानते हुए भी परिचालक सवारियों के लालच में इसे पीछे से आ रही दूसरी बस के आगे ही चलाता रहा।

कमानी या लीफ स्प्रिंग (leaf spring)
कमानी या लीफ स्प्रिंग (leaf spring). भारी वाहनों में सस्पेंशन के लिए इन्हें इस्तेमाल किया जाता है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

यह भी कहा जा रहा है कि बस में काफी लोग खड़े भी थे। परिचाल बार-बार यह भई चेक कर रहा था कि खराबी बढ़ तो नहीं गई। इस बार सामने से आ रही एक गाड़ी को पास देते वक्त बस एक तरफ को झुक गई और टौंस नदीं में जा गिरी। गौरतलब है कि हिमाचल सरकार ने भी मामले की जांच के आदेश दिए हैं जिसकी रिपोर्ट अभी नहीं आई है। इसलिए ऑफिशली यह नहीं कहा जा सकता कि हादसा इसी वजह से हुआ।

लोगों का कहना है कि इस बस के पीछे भी एक प्राइवेट बस चल रही थी। हो सकता है सवारियां उठाने की होड़ मची हो और इस वजह से बस को खराब होने के बावजूद तेज गति से चलाया जा रहा था। बस जब एक तरफ झुकी तब परिचालक और एक अन्य युवक बाहर गिर गए (या शायद कूद गए) जिससे इनकी जान बच गई और बाकी लोग हादसे के शिकार हो गए। गौरतलब है कि शुरू में खबर आई थी कि ये दोनों ही लोग गायब थे। बाद में पुलिल ने कंडक्टर को गिरफ्तार भी किया।

रातोरात बदल गया रिवालसर झील का रंग, हजारों मछलियां मरीं

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। हिमाचल प्रदेश की प्रमुख प्राकृतिक झीलों में शुमार और तीन धर्मों की पवित्र संगम स्थली रिवालसर झील के पानी का रंग अचानक मटमैलो हो गया है। इस वजह से अब तक हजारों मछलियां मर चुकी हैं और बाकी मरने की कगार पर हैं। स्थानीय लोगों और प्रशासन की तरफ से मछलियों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। इस बीच रिवालसर झील के पानी का अचानक से रंग बदलना और मछलियों का इतनी तादाद में मरने की वजहों का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब झील में मछलियां मरी हैं। मगर इस बार तो झील रंग भी बदला है और मछलियां बड़ी तादाद में मरी हैं।

रिवालसर कस्बे में पवित्र झील में प्रदूषण होने से और ऑक्सिजन की मात्रा कम होने से यहां पर हजारों की संख्या में मछलियां मर चुकी हैं।

प्रशासनिक अमला और मत्स्य विभाग के अधिकारी मौके पर डटे हुए हैं और यहां से मरी हुई मछलियों को बोट के सहारे बाहर निकाल कर डम्प करने का कार्य किया जा रहा है।

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हजारों मछलियां मर चुकी हैं।

रिवालसर झील में बेहोश और मौत से लड़ाई लड़ रही मछलियों को स्थानीय लोगों और प्रशासन की मदद से सुन्दरनगर झील और नहर में छोडा जा रहा है।

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बोट की मदद से निकाली जा रही हैं मछलियां

प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार रिवालसर की पवित्र झील के पानी का रंग अचानक बदलने और इतनी बड़ी मात्रा में मछलियों के मरने के रहस्य का अभी तक पता नहीं चल पाया है।

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ढेर लग चुके हैं मछलियों के

विभाग के अनुसार बीती शाम को मतस्य विभाग की टीम ने पानी के सैंपल ले लिए हैं और उन्हें जांच के लिए लैब भेजा गया है जिसकी रिपोर्ट दो से तीन दिनों में आ सकती है।

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स्थानीय लोगों ने रिवालसर झील के रखरखाव में कमी को ही इस हादसे की वजह बताया है और सरकार और प्रशासन से जल्द ही इस बारे में कडे कदम उठाने का आग्रह किया है ताकि अभी भी मौत से जूझ रहीं हजारों मछलियों और झील को बचाया जा सके। प्राचीन धरोहरों और प्राकृतिक सौंदर्य को बचाने और सहेजने के लिए प्रशासन और सरकार कितनी सजग है इसका अंदाजा मिटने की कगार पर खडी रिवालसर की पवित्र झील से सहज ही लगाया जा सकता है। शायद सरकार और प्रशासन इस तरफ समय रहते गौर करते तो आज यह नौबत ही नहीं आती।

हमीरपुर में ‘चुड़ैल’ से डरे मजदूरों ने रोका पुराने तहसील भवन को गिराने का काम

हमीरपुर।। हमीरपुर के नादौन में अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहां पर पुराने तहसील भवन को गिराया जा रहा था मगर तीन प्रवासी मजदूरों ने एक कमरे को गिराने से इनकार कर दिया है। इनका कहना है कि अब हम यहां काम नहीं करेंगे, यहां भूत रहते हैं। दहशत का आलम यह है कि तीनों मजदूर अपने गांव वापस जाने की तैयारी में हैं। उनका कहना है कि भूत न तो हमें काम करने दे रहे हैं और अब तो सपनों में आकर भी डराने लगे हैं। (कवर पिक्चर सिर्फ प्रतीकात्मक है)

मजदूरों का कहना है कि जैसे ही हम इस कमरे को गिराने लगते हैं तो एक महिला सामने आ जाती है। वह बोलती है कि इस कमरे को न गिराएं। वह सिर्फ एक कमरे को न गिराने की बात कर रही है। ‘दिव्य हिमाचल’ की खबर के मुताबिक नादौन में नए बनने वाले मिनी सचिवालय के लिए गिराए जा रहे पुराने तहसील भवन में काम करने वाले मजदूर अनिल, सुमित, संजार का कहना है एक चुडै़ल बार-बार दिखाई दे रही है।

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रविवार को एक घटना से ये मजदूर और डर गए हैं। शाम सात बजे एक मजदूर अनिल कुमार काम करते समय गिर गया। गिरने के कारण उसके हाथ पर करीब 17 टांके लगे हैं। मजदूरों का कहना है कि रात को सपने में भी एक महिला बच्चे सहित आ रही है। महिला कहती है कि इस भवन के चार में से एक कमरे को न गिराया जाए। अगर इसे गिराया गया तो जान-माल का नुकसान होगा।

कहा जा रहा है कि तीन कमरों में ऐसी कोई हरकत नहीं है। रविवार को मजदूर एक तांत्रिक को भी हवन के लिए लाए थे। घायल मजूदर को चोट लगने के बाद टैक्सी चालक उसे नादौन अस्पताल ले गया। यहां उसका उपचार करवाया गया। इसके बाद तो इन मजदूरों ने चुड़ैल के डर से अपना सामान बांध लिया है। लोगों के काफी समझाने के बाद सोमवार को ये मजदूर यहां रुके हैं। सोमवार को उन्होंने इस चौथे कमरे को गिराने का कार्य बंद कर दिया है।

खाई में लटकी 40 यात्रियों से भरी बस, 2 दिन पहले CM ने किया था रोड का उद्घाटन

चंबा।। इलेक्शन आते ही उद्घाटनों और शिलान्यासों की झड़ी लगती रहती है। इस दौरान यह नहीं देखा जाता कि निर्माण की गुणवत्ता क्या है, काम सही से हुआ है या नहीं। बस लोगों को खुश करने के लिए उद्घाटन कर दिए जाते हैं। इसका नुकसान क्या हो सकता है, इस बारे में विचार नहीं किया जाता। चंबा में एक हादसा होते हुए बचा। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दो दिन पहले हिमाचल दिवस के मौके पर जिस रोड का उद्घाटन किया था, व अचानक धंस गया और सवारियों से भरी बस खाई के ऊपर लटकने लगी। अगर चालक सूझबूझ नहीं दिखाता तो 40 सवारियों से भरी बस 1 किलोमीटर गहराई पर जाकर रुकती। ध्यान देने वाली बात यह है कि सड़क आदि जैसे निर्माण कार्य करने वाला विभाग PWD मुख्यमंत्री के ही पास है।

यह घटना चंबा के घूम जंजला रोड पर हुई। सीएम वीरभद्र सिंह ने दो दिन पहले हिमाचल दिवस समारोह के दौरान चंबा के चौगान से ही इस सड़क का उद्घाटन किया था। इसके बाद यहां बस सेवा भी शुरू कर दी गई। पिछले दो दिन की तरह सोमवार को एचआरटीसी की यह बस जंजला से चंबा की ओर रवाना हुई थी। बस में स्कूली बच्चों के अलावा नौकरी पेशा लोग भी सवार थे। कुल मिलाकर 40 से ज्यादा लोग इस बस में सवार थे। जैसे ही यह बस घूम जंजला के पास से गुजरी कि अचानक इस नई सड़क का डंगा धंस गया। इससे बस खाई में लटक गई। इससे यात्रियों में चीख पुकार मच गई।

बताया जा रहा है कि जिस जगह पर यह डंगा धंसा वहां रोड काफी तंग था। साथ ही बस की दूसरी तरह करीब एक किलोमीटर गहरी खाई है। बस इस तरह सड़क के बाहर लटक गई कि सवारियों को दरवाजे से बाहर निकलने तक की जगह नहीं बची। चालक ने पहले तो बस को नियंत्रित किया फिर तेजी से सभी सवारियों को अपनी सीट से होते हुए बाहर निकाला। सूचना मिलते ही पुलिस भी मौके पर पहुंची और बस को निकालने के लिए क्रेन की मदद ली गई।

प्रश्न उठता है कि अगर बस खाई में गिर गई होती तो 40 लोगों की जिंदगी जाने के लिए कौन जिम्मेदार होता? क्या PWD विभाग के अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार होते या HRTC जिम्मेदार होती जो इस रोड पर किस आधार पर बस चलाने लगी। या फिर हमारे राजनेता जिम्मेदार होने चाहिए जिनके लिए उद्घाटन करना अहम है, यह देखना अहम नहीं कि काम सही से हुआ है या नहीं। क्या हम तभी जागते और चीख-पुकार मचाते जब हादसा हो जाता? इस मामले की जांच होनी चाहिए कि किसने बस चलाने के लिए NOC दी और किसकी निगरानी में घटिया निर्माण हुआ। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री वीरभद्र ने पोस्ट किया उपलब्धियों का वीडियो, इन 10 दावों पर क्या सोचते हैं आप?

इन हिमाचल डेस्क।। आज हिमाचल दिवस के मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने ऑफिशल फेसबुक पेज पर एक वीडियो शेयर किया है। इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा गया है- हिमाचल प्रदेश ने जिस अभूतपूर्व और समग्र विकास को पिछले 70 वर्षों में देखा है, उसे बयान करता हुआ ये एक वीडियो आप ज़रूर देखें। आपको हिमाचल दिवस की हार्दिक बधाई। अब यह पढ़कर तो लगता है कि प्रदेश ने जिन कठिनाइयों पर विजय हासिल करते हुए तरक्की का रास्ता तय किया है, यह वीडियो उसी पर होगा। मगर यह वीडियो प्रदेश की उपलब्धियों की जानकारी नहीं देता बल्कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के राजनीतिक सफर पर प्रकाश डालता है। यह एक तरह का प्रमोशनल वीडियो है जिसमें यह दिखाया गया है कि हिमाचल प्रदेश में जितनी भी तरक्की हुई है, उसका श्रेय वीरभद्र सिंह को जाता है।

अच्छा होता अगर प्रदेश अगर हिमाचल प्रदेश के स्थापना दिवस के मौके पर कोई राजनीतिक रूप से तटस्थ वीडियो बनाया जाता क्योंकि भले ही वीरभद्र 6 बार मुख्यमंत्री रहे हों, अन्य मुख्यमंत्रियों का भी प्रदेश के विकास में योगदान रहा है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि प्रदेश आज जहां पहुंचा है, वह सिर्फ वीरभद्र सिंह की वजह से ही पहुंचा है। मगर वीडियो में दिखाया गया है कि हिमाचल में तमाम मुश्किलें थीं और विकास करना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसमें पहले समस्याओं को गिनाया गया है और आगे कहा है- लेकिन जहां मुश्किलें होती हैं वहां उनसे लड़ने का जज्बा और विकास का जुनून भी पैदा होता है। हिमाचल प्रदेश के विकास और प्रगति को जिन मजबूत कंधों की जरूरत थी, वह कर्मयोगी और युगपुरुष हिमाचल के सराहन में महाराजा पद्म सिंह और महारानी शांति देवी के यहां जन्मे। मात्र 13 वर्ष की आयु में जिन्होंने बुशहर रियासत संभाली।

राजनीति चलती रहती है मगर अपनी उपलब्धियां गिनाने में डॉक्टर परमार को भूलना कैसे संभव है? ठीक है कि वह राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के चलते धूमल या शांता का नाम नहीं ले सकते थे मगर परमार तो उन्हीं की पार्टी के थे। डॉक्टर वाई.एस. परमार वह शख्स थे जिन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी हिमाचल को आज का हिमाचल बनाने में। जिन्होंने उन लोगों को गलत साबित किया जो कहते थे कि पहाड़ी राज्य कुछ कर नहीं पाएगा। डॉक्टर परमार ने जो हिमाचल की नींव रखी थी, उसी के दम पर आज यह ऊंचा उठता जा रहा है। उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।  पढ़ें: डॉक्टर परमार न होते आज पंजाब में होता पूरा हिमाचल

पहले यह वीडियो देखें और उसके नीचे पढ़ें कि इसमें कौन से दावे ऐसे किए गए हैं जो सच्चाई से दूर नजर आते हैं।

कुछ पकड़ा आपने? भले ही इस वीडियो में यह दावा किया गया है कि मात्र 13 वर्ष की आयु में वीरभद्र सिंह ने बुशहर रियासत संभाली थी, हकीकत यह थी कि उनके राज्याभिषेक से पहले ही भारत आजाद हो गया था। यह भी इतिहास है कि बुशहर रियासत ने भारत संघ में विलय का विरोध किया था। खैर, बीते दौर की बातें छोड़कर उन दावों की बात करते हैं जो वीडियो में किए गए हैं। चलिए मान लेते हैं कि हिमाचल आज जहां पर भी है, उसका पूरा श्रेय वीरभद्र सिंह को जाता है और अन्य मुख्यमंत्रियों या अन्य सरकारों को नहीं। फिर देखते हैं कि इस वीडियो में सीएम वीरभद्र सिंह का गुणगान करते हुए क्या दावे किए गए हैं। आप खुद पढ़ें और बताएं कि इन दावों से आप कितने सहमत हैं:

दावा नंबर 1. हिमाचल के हर घर तक सड़क जाती है
हिमाचल की हर पंचायत तक सड़क पहुंच जाए, यही बड़ी बात होगी। फिर गांवों का नंबर आएगा। वैसे भी हिमाचल की भौगोलिक परिस्थिति ऐसी है कि हर घर तक सड़क पहुंचाई ही नहीं जा सकती। यह बहुत ही गुमराह करने वाला बयान है।

दावा नंबर 2. हर बच्चा स्कूल जाता है
हिमाचल सरकार ने पिछले साल खुद दावा किया था- The net enrolment ratio in respect of elementary education has touched almost 100%. यह सरकार अपना दावा है जिसमें भी ऑलमोस्ट कहा गया यानी तकरीबन। मगर आप अपने आस-पड़ोस में ही कई उदाहरण देख सकते हैं जहां पर बच्चे एक लेवल के बाद पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं। बाकी प्रदेशों के मुकाबले हिमाचल बेहतर जरूर हो सकता है, परफेक्ट नहीं। 2015  में SSA का सर्वे कहता है कि 10वीं ड्रॉपआउट के मामले में लड़कों का पर्सेंटेज 6.20% था और लड़कियों का 5.69 पर्सेंट।

दावा नंबर 3. 100 फीसदी साक्षरता दर

गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले साल जून में खुद दावा किया था कि साक्षरता दर 88 फीसदी हो गई है। एक साल के अंदर यह 100 पर्सेंट कैसे हो गई? वैसे 2011 जनगणना के आधार पर हिमाचल प्रदेश की साक्षरता दर 82.8 पर्सेंट थी। फिलहाल जनगणना के इन्हीं पैमानों को आदर्श माना जाता है और सरकार भी अपनी रिपोर्ट्स में इसी का हवाला देती है।
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दावा नंबर 4. प्रदेश में लगभग हर घर में नल से साफ पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है।
गर्मियां शुरू हो चुकी हैं और प्रदेश के कई इलाकों में पानी की किल्लत शुरू हो गई है। उदाहरण लेते हैं सरकाघाट और धर्मपुर की पंचायतों का जहां लोग विवश हैं प्राकृतिक जलस्रोतों का पानी पीने के लिए। वैसे राजधानी शिमला में भी हालात अलग नहीं हैं। पीलिया से यहां कम से कम 10 लोग मारे गए थे। टंकियों में कभी बंदर का शव मिला तो कभी इंसान का। 

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दावा नंबर 5. लगभग सबको सिंचाई की योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है
प्रदेश के इलाकों में सिंचाई की सही व्यवस्था न होने पर सूखे जैसे हालात बने रहते हैं। आईपीएच डिपार्टमेंट इतना सुस्त है कि कई इलाकों में कूहलें ठप पड़ी हैं। यही नहीं बागवानों को भी दिक्कत होती है। भरमौर में कई जगहों पर मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है। यहां तक पूर में सेब के बागीचों को भारी नुकसान पहुंच गया था सिंचाई की व्यवस्था न होने पर।
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दावा नंबर 6. कृषि से 60 फीसदी लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है।
हिमाचल में ज्यादातर निर्वाह कृषि होती है यानी गुजारे लायक। चुनिंदा लोग ही फसलें बेचकर पैसे कमा पाते हैं। अगर मैं अपनी पुश्तैनी जमीन पर धान उगा रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं उसे मंडी में बेचूंगा या इतनी पैदावार होगी कि उससे मुझे मुनाफा होगा। हो सकता है कि वह मेरे परिवार की जरूरत भी पूरी न कर पाए। हिमाचल के कृषि विभाग की वेबसाइट कहती है कि Himachal Pradesh is predominately an agricultural State where Agriculture provides direct employment to about 71 percent of the total population. मगर यह दावा गलत है। 71 पर्सेंट लोग खेती करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है उन्हें इससे रोजगार मिलता ही है।

दावा नंबर 7. वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रदेश का अभूतपूर्व विकास हुआ है
सड़कों और अस्पतालों की हालत क्या है, यह बात छिपी नहीं है। सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में प्रदेश सरकार कुछ खास नहीं कर पाई है। कई प्रमुख सड़कें बरसात में नदी का रूप ले लेती हैं, गांवों की सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों पर सड़क यह मालूम नहीं। स्वास्थ्य का आलम यह है कि मुख्यमंत्री और तमाम मंत्री दांतों और आंखों का इलाज कराने भी बाहरी राज्यों में जाते हैं

दावा नंबर 8. पर्यटन योजनाओं के लिए वीरभद्र बेहतरीन अनुदान देते रहे हैं
हिमाचल प्रदेश का पर्यटन विभाग मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा है। दरअसल यह विभाग कई चीजों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए सड़कें, बिजली और पानी आदि की व्यवस्था ठीक होगी तभी टूरिजम का विकास होगा। सुविधाएं होंगी तभी टूरिस्ट आएंगे। मगर अफसोस, पर्यटन पर हिमाचल सरकार बहुत कम पैसा खर्च कर रही है। मनाली जैसे रूट्स पर, जहां हर साल लाखों टूरिस्ट्स आते हैं, सड़कों की हालत दर्शनीय है। टूरिस्ट स्थलों के विकास के लिए और लोगों को अच्छा अनुभव देने के लिए कुछ भी विशेष नहीं किया जा रहा।

दावा नंबर 9. आज सच्चे मायनों में हिमाचल देवभूमि बन रहा है
हिमाचल का देवभूमि होने का सरकारों से क्या संबंध? क्या पहले हिमाचल देवभूमि नकली मायनों में थी? देवभूमि हिमाचल को कहा जाता है देवताओं की भूमि होने की वजह से। यहां शक्तिपीठों, कई प्राचीन मंदिरों और गांव-गांव में देवताओं का वास होने की वजह से इसे देवभूमि कहा गया। इसे देवभूमि इसलिए कहा गया क्योंकि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और सादगी ऐसी है कि देवता भी वास करते हैं।

दावा नंबर 10. वीरभद्र विकासपुरुष हैं और प्रदेश का युवा उनमें अपनी आशा और भविष्य देखता है
यह निजी पसंद नापसंद का मामला है। पाठक कॉमेंट करके बताएं कि आफ उनमें अपनी आशा और भविष्य देखते है या नहीं।

जब प्रदेश के मुख्यमंत्री के ऑफिशल फेसबुक पेज से इस तरह के दावे किए जाएंगे तो सभी का फर्ज बनता है कि उनकी जांच करें। यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि वीडियो को किसी और ने बनाया है। क्योंकि अगर यह ऑफिशल पेज से पोस्ट हुआ तो इसे मुख्यमंत्री का ही दावा माना जाएगा। इसलिए यह जरूरी है कि इस तरह के वीडियो में सही जानकारियां दी जाएं। इस आर्टिकल में हमने जानकारियां हमने विभिन्न स्रोतों से जुटाई हैं। सूचनाओं के स्रोत पर जाने के लिए आप हाइपरलिंक्स पर क्लिक कर सकते हैं। यह भी एक जरूरी विषय हो सकता है कि इस वीडियो को बनवाने के लिए कहीं सरकारी पैसा खर्च तो नहीं किया गया। क्योंकि यह व्यक्ति का प्रमोशन है, प्रदेश का नहीं।

शिमला में शूट हुआ Google का यह विज्ञापन भावुक कर देगा आपको

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इन हिमाचल डेस्क।। गूगल के ऐड वैसे तो बहुत कम देखने को मिलते हैं मगर जब भी दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक यह कंपनी ऐड बनाती है, वे कमाल के होते हैं। ऐसा ही एक ऐड इसने बनाया है जिसकी शूटिंग शिमला में हुई है। आपके साथ इस ऐड को शेयर करने की दूसरी वजह यह है कि शिमला में शूटिंग के अलावा इसमें इमोशनल टच भी है। एक पिता-पुत्र के रिश्ते का भावनात्मक पहलू। गूगल की मदद से बेटा अपने पापा का 40 साल पुराना सपना पूरा करने में कामयाब हो जाता है। इस ऐड में जो पिता-पुत्र घूमने जाते हैं, उन्हें शिमला का निवासी बताया गया है। बेटा मुंबई में काम करता है और पिता शिमला के एक सिनेमाहॉल में काम करते हैं।

गूगल ने हम सबकी जिंदगी बदल दी है। कई सारी चीजें सुविधाजनक हो गई हैं। कुछ भी खोजना है, चुटकियों में सामने होता है। यह हमारे ऊपर है कि हम गूगल का इस्तेमाल अच्छे मकसद से करते हैं या बुरे। बहरहाल, आप विज्ञापन देखें और आखिर में कॉमेंट करके जरूरत बताएं कि यह आपको कैसा लगा:

 

 

हिमाचल प्रदेश में 1992 का कर्मचारी आंदोलन ‘गौरवगाथा’ या ‘त्रासदी?’

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आशीष नड्डा।। अखबार खोलते ही सबसे पहली नजर उस खबर पर गई, जिसमें हिमाचल प्रदेश के एक कर्मचारी नेता सरकार को यह धमकी दे रहे थे कि अगर हमारी कुछ मांगे नहीं मानी गईं तो हम सामूहिक हड़ताल के साथ 1992 का इतिहास दोहरा देंगे, जिसमें हम कर्मचारियों ने सत्ता से सरकार को महरूम कर दिया था।

यह खबर पढ़ते ही मेरा मन इतिहास के उन पन्नों को टटोलने लगा, जिनके आधार पर नेताजी का दंभ से भरा यह बयान था। इस लेख में वर्तमान हालात पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। कर्मचारी हड़ताल पे जाएं या न जाएं, सरकार गिरे या संभले, चुनाव में घाटा हो या फायदा, जो होना हो होता रहे। मगर 1992 के इतिहास के जिस आंदोलन को वह कर्मचारी नेता जिस तरह गौरवगाथा के रूप में पेश कर रहे हैं, उसका सही विवरण मैं यहां देने की कोशिश करूंगा।

इस लेख को पढ़ने बाद वह पीढ़ियां, उस दौर में होश संभालने लायक नहीं हुई थीं या पैदा नहीं हुई थीं, मगर आज फैसले लेने में समर्थ है, मूल्यांकन करके फैसला ले कि उस आंदोलन को प्रदेश के इतिहास में ‘गौरवगाथा’ माना जाए या एक ‘त्रासदी।’

बात शुरू करते हैं 1990 से, जब हिमाचल प्रदेश में एक नई सरकार का गठन हुआ। बीजेपी से शान्ता कुमार पूर्ण बहुमत के साथ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हिमाचल की आय के साधन सीमित थे। प्रदेश के पास न तो बड़े स्तर के उद्योग थे और न ही खनिज सम्प्पदा। आखिर सरकार को आय आती तो कहां से आती? हिमाचल प्रदेश अपने बजट के लिए सिर्फ केंद्र पर निर्भर था। हालांकि उस समय भी प्रदेश में भाखड़ा डैम के ऊपर लगे हाईड्रो प्रोजक्ट और मंडी के जोगिन्दरनगर में शानन व सुंदरनगर के पास सलापड़ नामक स्थान पर डेहर बिजलीघर आदि अन्य प्रॉजेक्ट थे । यह प्रोजेक्ट थे तो हिमाचल प्रदेश की जमीन पर परन्तु इनकी देखरेख और राजस्व से हिमाचल का कोई वास्ता नहीं था। भाखड़ा और ब्यास सतलुज लिंक प्रोजेक्ट (डैहर बिजली घर ), दोनों भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) के पास थे। यह संस्था पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्यों की सयुंक्त उपक्रम थी। हालांकि भाखड़ा के बनने से हिमाचल के सैंकड़ों गांव बिलासपुर एवं ऊना जिला के जलमगन हो गए थे, लोग विस्थापित हुए थे। फिर भी फायदे के नाम पर प्रदेश को सिर्फ भाखड़ा गांव को यह प्रॉजेक्ट बिजली देता था। वहीं शानन प्रोजेक्ट जिसे अंग्रेज बनाकर गए थे और भारत का मेगावॉट कपैसिटी में बना वो पहला हाइड्रो प्रोजेक्ट था, पंजाब सरकार के अधीन था और आज भी है।

1990 -91 की बात रही होगी। हिमाचल प्रदेश के ततकालीन मुख्यमन्त्रीं केंद्र सरकार को भेजने के लिए विधानसभा में

प्रॉजेक्टों की झीलों में हिमाचल का इतिहास तक डूब गया।

एक प्रस्ताव लेकर आए। यह प्रस्ताव था कि हिमाचल विधानसभा मिलकर एकजुट होकर केंद्र से मांग करेगी किजिस तरह बिहार , उड़ीसा राजस्थान जैसे राज्यों को उनके वहां से खनिज संपदा के दोहन से रॉयल्टी मिलती है, ऐसी ही रॉयल्टी हिमाचल प्रदेश को भी उसकी जमीन पर लगे हाइड्रो प्रोजेक्टों से मिलनी चाहिए।

पूरी विधानसभा में एकदम सन्नाटा छा गया। लोग चिंतन में पड़ गए। कुछ समझ में थे तो कुछ शंका में थे। विपक्ष की तरफ से नेता प्रतिपक्ष वीरभद्र सिंह, जो आज प्रदेश के मुख्यमन्त्री हैं, चर्चा करने उठे। वीरभद्र हंसते हुए बोले कि शांता कुमार जी, आप कैसी बातें करते हैं? भला पानी पर कोई रॉयल्टी मिलती है ? शांता कुमार ने तर्क दिया हमारे लिए तो यही नदियां सोने का कार्य कर रहीं हैं। हमारा पानी बिजली बना रहा है बिजली सब बाहर जा रही है। जंगल, जमीन और बस्तियां हमारी उजड़ी हैं तो हमें क्यों कुछ नहीं मिल रहा?

मुझे यह पता नहीं कि यह प्रस्ताव पास हुआ या नहीं। हुआ तो विपक्ष में किसका सहयोग रहा, लेकिन यह जरूर हुआ कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शांता कुमार ने यह मामला ततकालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के सामने उठाया था। केंद्र के सहयोग से यह तय हुआ कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल आपस में बातचीत कर लें। हिमाचल की तरफ से शांता कुमार, पंजाब की तरफ से प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा की तरफ से भजन लाल , शायद यह तीनों नेता बातचीत की मेज पर बैठे और शांता कुमार इन्हें यह मनवाने के लिए सफल रहे कि हिमाचल में जो भी इनके श्येर वाली योजनाएं हैं, उनमें से 14 % रॉयल्टी प्रदेश को मिलेगी। हालांकि और भी देनदारियां आज भी बाकी हैं परन्तु कम से कम इतिहास में पहली बार हिमाचल को यह दिलवाने में वह सफल रहे। आज भी उसी तर्ज पर प्रदेश में जितने भी पावर प्रोजेक्ट हैं, उनसे हिमाचल को रॉयल्टी मिलती है।

हिमाचल प्रदेश में जलविद्युत की अपार सम्भावनाएं थीं। परन्तु सरकार के पास अपने प्रॉजेक्ट लगाने जितना धन नहीं था। अगर सरकार अरबों सिर्फ प्रोजेक्ट लगाने में लगा देती तो बाकी क्षेत्र चरमरा जाते। शांता कुमार चाहते थे कि निजी फर्म जिनके पास पैसा है, वो अपने प्रोजेक्ट लगाएं। हिमाचल को जल और जमीन की रॉयल्टी दें, कुछ बिजली दे और बाकी अपने हिसाब से नैशनल ग्रिड में बेचे। परन्तु उस समय की एनर्जी पॉलिसी के अनुसार यह संभव नहीं था।

केंद्र इसमें कुछ करे, इसके लिए शांता कुमार फिर प्रधानमन्त्री से मिले। वहां से उन्हें प्लानिंग कमिशन के चेयरमैन मनमोहन सिंह से बात करने के लिए कहा गया जो बाद में देश के प्रधानमन्त्रीं भी रहे। मनमोहन सिंह बहुत सुलझे हुए अर्थशास्त्री थे। एक अच्छा इकॉनमिस्ट दशकों पहले देख लेता है कि देश की इकॉनमी को भविष्य में किस चीज की जरूरत है। मनमोहन सिंह से शांता कुमार ने जब निजी क्षेत्र को पावर जेनेरशन में लाने की बात कही तो मनमोहन सिंह खुशी से चहक उठे और बोले में आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूं। बात हिमाचल प्रदेश आय की नहीं है बल्कि देश को अगर बिजली जरूरतों को पूरा करना है तो निजी क्षेत्र को इसमें आमंत्रित करना ही होगा, अकेले सरकार के बस की यह बात नहीं है।

यहां पाठकों की जानकारी के लिए बता दूं आप बार बार सुनते हैं कि उदारीकरण हुआ, उदारीकरण हुआ, मनमोहन सिंह ने इकॉनमी को बचाया तो उदारीकरण यही है- इकॉनमी को खोलना, सब कुछ सरकार के धन पर निर्भर नहीं करना। निजी क्षेत्र विदेशी फर्म्स आदि को अपने इन्वेस्टमेंट के लिए आमंत्रित करना।

खैर, मनमोहन सिंह तैयार तो थे पर उन्होंने एक अड़चन बताई। व यह थी कि हिन्दुस्तान की तात्कालिक एनर्जी पॉलिसी के तहत यह संभव नहीं था कि कोई राज्य अपने से ऐसा कर पाए। कल को प्रोजेक्ट ऑनर को बिजली बेचने में दिक्कत आती कि कौन खरीदेगा। कोई नहीं लेगा तो उसकी इन्वेस्टमेंट का क्या होगा ? इसलिए एनर्जी पॉलिसी में संशोधनों की जरूरत थी जो लोकसभा राज्यसभा से बिल के रूप में पास होना जरूरी था। सिंह जी ने कहा हम सरकार के रूप में बिल लाएंगे, आप अटल जी और आडवाणी जी, जो विपक्ष में थे, से कहें सहयोग दें। यह बिल हिमाचल नहीं, बल्कि देश की ऊर्जा नीति और विद्युत्करण और इंडस्ट्रियलाइजेशन में भी बहुत जरूरी है। शांता कुमार ने अटल आडवाणी जी से बात की और एकमत के साथ यह बिल देश की संसद से पारित हुआ ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण की राह खुली।

हिमाचल प्रदेश को इसका यह फायदा हुआ कि निजी प्रॉजेक्ट लग सकते थे, जिससे हिमाचल को बिजली के साथ रॉयल्टी के रूप में आय होती और इकोनॉमी बूस्ट करने के लिए धन का प्रावधान होता। इसी कड़ी में प्रदेश का पहला निजी क्षेत्र का पहला पनबिजली प्रोजेक्ट लगाने के लिए शांता कुमार सरकार और एक निजी कम्पनी के बीच समझौता हो गया।

Shanta ji
मुख्यमंत्री रहने के दौरान की तस्वीर।

इस समझौते का बिजली बोर्ड कर्मचारी संघ के ततकालीन नेतायों ने इस तर्क के साथ विरोध किया कि निजीकरण आने से सरकारी जॉब्स खत्म हो जाएंगी। यह नारे के तले बिजली बोर्ड के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। कई दिनों तक हड़ताल रही, पर मुख्यमन्त्री नहीं झुके। वह जानते थे कि निजी क्षेत्र का ऊर्जा फील्ड में पैसा लगाना बहुत जरूरी है, अन्यथा धन के अभाव में सरकार प्रॉजेक्टस नहीं लगवा पाएगी। ऊर्जा की कमी से हिमाचल नहीं, पूरे देश को घाटा होगा। मुख्यमंत्री के नहीं झुकने पर अन्य विभागों के कर्मचारी नेता लोगों ने भी हड़ताल का आह्वान कर दिया, हालांकि उन्हें पता ही नहीं था कि मामला कया है। मात्र हठ के लिए उन्होंने यह सोचते हुए सब कर्मचारियों की हड़ताल करवा दी कि हम मुख्यमंत्री को निर्णय बदलने पर मजबूर कर देंगे।

अफरा-तफरी का माहौल हो गया। सब तरफ हड़ताल का आलम। हड़तालियों को विपक्ष का पूरा सहयोग। मीडिया में रोज यही चर्चे कि अब सीएम क्या करेंगे, अब सीएम क्या करंगे। सोशल मीडिया का जमाना नहीं था कि कहीं चर्चा चलती कि क्या गलत है, क्या सही है। हर घर, गांव से हिमाचल में कर्मचारी थे और उनके नेताओं ने गांव-गांव तक यह बात पहुंचा दी कि शांता कुमार कर्मचारी और सरकारी नौकरी विरोधी है. सब कुछ प्रइवेट को देना चाहता है।

20 दिन से ऊपर जब हड़ताल को हो गए, तब मुख्यमन्त्री के आफिस से एक ऑर्डर निकला। सबने सोचा मुख्यमन्त्री ने फैसला वापिस ले लिया होगा, परन्तु वह ऑर्डर था- NO Work No pay.” यानी कर्मचारी अगर आफिस में नहीं है, ड्यूटी पर नहीं है तो उन्हें बिना काम किए वह सैलरी क्यों दी जाए, जो उन्हें जनता की सेवा के लिए मिलती है। मुझे याद है- इस निर्णय की कल्पना किसी ने नहीं की थी। हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी वर्ग में हड़कंप मच गया। उस दौर में मैं भी हल्का होश सम्भाल चुका था। या उसके 2 ,3 साल तक यह चर्चा रही थी, तह मैंने सुना था कि ‘नो वर्क नो पे’ को गली गली में ऐसे भ्रामक रूप से फैलाया गया कि शांता कुमार कहता है- छुट्टी के दिन की सेलरी कर्मचारियों को नहीं दूंगा, क्योंकि उस दिन वे कार्य नहीं करते।

दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने पर देश से भाजपा की सारी सरकारें बर्खास्त कर दी गईं। उसके बाद हुए चुनावों में कर्मचारी विरोधी की इमेज में बांध दिए गए शांता कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया। खुद सीटिंग सीएम शांता कुमार अपने घर सुलह से चुनाव हार गए। वह दिन था कि उसके बाद वह कभी प्रदेश की राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से मुड़कर नहीं आए।

खैर, जो भी था; शांता कुमार नहीं झुके तो ऊर्जा नीति में प्रदेश निजीकरण की राह पर आगे गया। आज हिमाचल प्रदेश देश का पावर हाउस कहा जाता है। 24 घंटे सस्ती बिजली के साथ आज ऊंची से ऊंची पहाड़ी पर भी हिमाचल प्रदेश में चमकते हुए गांव आसमान में तारे की तरह लगते हैं। सबसे सस्ती बिजली का उपभोग करने वालों में हम देश में हैं। आज हिमाचल प्रदेश का अपना राजस्व जितना है, उसका करीब आधा आय हमें उसी नीति के कारण लगे प्रोजेक्टों से मिलता है। औसतन यह राजस्व 2100 करोड़ रुपये का है जो हर साल घटता-बढ़ता रहता है। कर्मचारी नो वर्क, नो पे के खिलाफ कोर्ट भी गए थे। कई वर्षों बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी शांता कुमार के कदम को सही ठहराते हुए इसकी तारीफ की थी। आज भी यह नियम लागू किया जाता है।

इतिहास को मैंने इसलिए कुरेदा, क्योंकि कर्मचारी नेता 1992 की इस घटना को ऐसे दिखा रहे हैं जैसे उन्होंने पता नहीं क्या महान कार्य कर दिया हो। उनकी आज की एकजुटता और हड़ताल की धमकी आज सही हो या गलत, पता नहीं। मगर जब वे 1992 की उस हड़ताल को अपनी गौरव गाथा के रूप में पेश करेंगे, मैं यह सवाल जरूर पूछूंगा कि इसे गौरवगाथा कहा जाए या एक त्रासदी।

इस सवाल का जबाब मैं आप पाठकों पर छोड़ता हूं। उन लोगों पर भी, जो उस वक्त निर्णायक भूमिका में थे और उन पर भी, जो उस वक्त पैदा नहीं हुए थे।

(लेखक मूलतः बिलासपुर जिले के रहने वाले है और आईआईटी दिल्ली से रिन्यूएबल एनर्जी में पॉलिसी प्लैनिंग पर रिसर्च कर रहे हैं। हिमाचल से जुड़े मामलों पर लिखते रहते हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

Jun 28, 2016 को प्रकाशित इस आर्टिकल को दोबारा पब्लिश किया गया है।

पर्वतारोहण में देश का नाम ऊंचा कर रही हैं हिमाचल की आकृति हीर

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इन हिमाचल डेस्क।। कुछ दिन पहले हमने आपको हिमाचल प्रदेश की आकृति हीर के बारे में बताया था जो 20 साल की उम्र में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रस को फतह करने वाली पहली महिला हैं। अब तक वह दुनिया की 7 ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहरा चुकी हैं और अब इरादा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का है। माउंट एलब्रस की दुर्गम चढ़ाई के दौरान किन दिक्कतों का सामना आकृति को करना पड़ा था, पिता को किस तरह से पैसे जुटाने पड़े थे; इस सबका पता चलता है कि ‘स्पोर्ट्स कीड़ा’ वेबसाइट द्वारा बनाए गए एक वीडियो से (नीचे देखें)। कांगड़ा जिले के सुलियाली गांव की रहने वालीं आकृति ने 2012 में उत्तराखंड के नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटनीअरिंग से पर्वारोहण की ट्रेनिंग ली। उस समय आकृति ने गंगोत्री पीक की चढ़ाई पूरी की जिसकी ऊंचाई 16 हजार फीट है। उसी वक्त से पर्वतारोहण आकृति के जीवन का हिस्सा बन गया।

इन हिमाचल से बातचीत से में आकृति ने बताया था कि मैं बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी, इसलिए माउंटनीअरिंग को चुना। उन्होंने कहा था, ‘मैं साल 2014 में माउंट एलब्रस पीक पर जाने का तय किया। इसकी ऊंचाई 18,510 फीट है। यहां जाने के लिए मेरे पास कोई स्पॉन्सर नहीं था। मेरे पैरंट्स ने इसके लिए 3 लाख रुपये का लोन लिया।’ नीचे वीडियो देखें और जानें, कैसे वह पर्वतारोहण करने लगीं और भविष्य के लिए क्या प्लान है उनका:

आकृति के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें

Impact: उत्पाती बंदरों से निपटने के लिए हिमाचल सरकार ने बदली रणनीति

शिमला।। लोगों के लिए परेशानी के सबब बन चुके बंदरों पर लगाम कसने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने अब अपनी रणनीति में बदलाव किया है। प्रदेश में शिमला समेत 68 तहसीलों में वर्मिन घोषित बंदरों को मारने के लिए अब वन विभाग ईको टास्क फोर्स का गठन करेगा। यह फैसला सोमवार को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में वन्य प्राणी तथा बंदरों की समस्या से निपटने के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक में लिया गया। मार्च के आखिरी हफ्ते में सरकार ने फैसला लिया था कि बंदर मारने पर उसका फोटो दिखाने पर ही 500 रुपये मिल जाएंगे। “इन हिमाचल” ने इस खबर पर आपत्ति जताई थी।

गौरतलब है कि ‘इन हिमाचल’ ने सरकार की इस अजीब नीति पर सवाल उठाते हुए सुझाया हुआ था कि लोगों को यह काम सौंपने के बजाय प्रफेशनल लोगों को जिम्मेदारी देनी चाहिए साथ ही हत्या करने के बजाय नसबंदी व अन्य मानवीय तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए। अब प्रदेश सरकार ने जागते हुए इसी दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया है। इन हिमाचल ने ‘अब मरे हुए बंदर की तस्वीर दिखाने पर ही मिल जाएंगे 500 रुपये‘ टाइटल वाले आर्टिकल में लिखा था-

लोग चूंकि एक्सपर्ट नहीं हैं और उन्हें जीवों को मारने की छूट देना गलत है। कोई हादसा हो सकता है और उनकी गोली किसी इंसान को भी लग सकती है। ऐसे में लोगों को 500-500 रुपये देने के बजाय सरकार को चाहिए कि एक्सपर्ट शूटर्स को हायर करे जो उत्पाती बंदरों का ही शिकार करें। इससे न सिर्फ सरकारी पैसे की बर्बादी रुकेगी, किसी तरह का खतरा भी नहीं होगा। इससे भी बेहतर है कि ढंग से किसी एजेंसी की मदद से बंदरों की नसबंदी की जाए और लॉन्ग टर्म पॉलिसी बनाई जाए। मगर लगता है कि सरकार चाह रही है कि लोग भले ही बंदर मारकर पैसा न लें, बंदर मारने का दावा करके पैसा ले लें। यह जनता के टैक्स के पैसे की बेकद्री तो है ही, साथ ही समस्या भी इससे हल नहीं हो रही।’

इस खबर के करीब 3 हफ्ते बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि बंदर किसानों की फसलों और बागवानों के फलों को बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं और कुछ जगहों पर बच्चों और महिलाओं पर जानलेवा हमले भी कर रहे हैं। इसलिए सरकार ने शिमला के नजदीक रेस्क्यू सेंटर फॉर लाइफ केयर खोलने का फैसला किया है। इसके अलावा मादा बंदरों को गर्भनिरोधक गोलियां आदि देकर बंदरों की आबादी पर लगाम लगाने की कोशिश भी की जाएगी।

अतिरिक्त मुख्य सचिव तरुण कपूर ने बताया कि नसबंदी किए गए बंदरों की पहचान के लिए उनके माथे के बीच स्थायी टैटू उकेरे जाएंगे। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को 53 तहसीलों तथा उप तहसीलों की सूची भेजी गई है, जहां किसानों तथा बागवानों को राहत देने के लिए बंदरों को नाशक जीव घोषित किया जा सकता है। जल्द ही भारतीय वन्य प्राणी संस्थान देहरादून के संयुक्त तत्वावधान में जंगली सुअर, सांभर और नील गाय को वर्मिन घोषित करने के लिए एक सर्वे किया जाएगा।

रोती हुई महिला का वीडियो वायरल, निजी बस के कंडक्टर पर बदतमीजी का आरोप

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, बिलासपुर।। प्रदेश में निजी बस ऑपरेटरों से स्टाफ की मनमानी किसी से छिपी नहीं है। आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं मगर रोज सफर करने वाले लोग कई मजबूरियों की वजह से चुपचाप इन मनमानियों को सहने के लिए मजबूर होते है। मगर अब एक ऐसा वीडियो सामने आया है जो दुखी करने वाला है। एक वीडियो में बुजुर्ग महिला परिचालक की कथित बदसलूकी की शिकार हो गईं। वह रोती हुई नजर आ रही हैं और बाकी सवारियों उन्हें हिम्मत देती हुई दिख रही हैं। हालांकि अब एक नया मोड़ आया है और महिला के नाम से एक चिट्ठी सामने आई है जिसमें उन्होंने कहा कि मुझे तो निजी कारणों से रोना आया था। खबर यह भी है कि परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने मामले का संज्ञान लेते हुए जांच और ऐक्शन के निर्देश दे दिए है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि महिला पर किसी तरह का प्रेशर तो नहीं डाला जा रहा।

यह मामला बिलासपुर के घुमारवीं उपमंडल के लदरौर-घुमारवीं रूट पर चंदेल बस सर्विसिज से जुड़ा हुआ है। चालक व परिचालक को बेहद जल्दबाजी थी। चलती बस में ही सवारियां बिठाई जा रही थी। 25-25 रुपए लेने के बाद टिकट भी नहीं दिया जा रहा था। इसी बीच बम्म से नालटी मोड़ तक जा रही बुजुर्ग महिला के साथ इस कारण बदसलूकी की इंतहा पार कर दी गई, क्योंकि वह कम दूरी की यात्रा कर रही थीं। वीडियो देखें:

आरोप है कि अभद्रता के साथ-साथ परिचालक साहब ने धमकी दी कि भविष्य में ऐसा मत करना। बेचारी बुजुर्ग महिला मन मसोस कर रह गई। अभद्रता पर फफक-फफक कर रोने लगी। इसी दौरान महिला की नम आंखों की तस्वीरें भी मोबाइल कैमरों में कैद हुई, बल्कि 19 सैंकेंड का वीडियो भी बना। इसी बस में सफर कर रहे नीरज कुमार ने बताया कि मामला 8 अप्रैल का है। वह अपने परिवार सहित घुमारवीं में हो रहे ग्रीष्मोत्सव को देखने जा रहे थे। परिचालक सवारियों को टिकटें नहीं दे रहा था, बल्कि ओवरस्पीड से बस को भी चलाया जा रहा था।

इस बीच एक पत्रकार ने एक चिट्ठी पोस्ट की है जिसे पीड़ित महिला की तरफ से बताया जा रहा है। इसमें नीलम कुमारी नाम की महिला का कहना है कि मेरा झगड़ा कंडक्टर से नहीं हुआ और सोशल मीडिया पर सब गलत दिखाया जा रहा है। उनका दावा है कि मुझे तो निजी कारणों से रोना आया था और वीडियो बनाने वाले का पहले ही कंडक्टर से झगड़ा हो रहा था। महिला का कहना है कि घरेलू उलझनों के कारण ऐसा हुआ है।

बहरहाल, विडियो में महिला की बातों और अन्य लोगों के वार्तालाप चिट्ठी में लिखी बातों के विपरीत हैं। चिट्ठी के आखिर में महिला के अंगूठे की छाप है। कयास लगा जा रहे है कि कहीं महिला पर किसी तरह का प्रेशर तो नहीं है। इस बीच परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने घटना की सूचना मिलने पर घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं।

वीडियो बनाने वाले नीरज का कहना था कि मैहरी कांथला से सवारियों को बिठाया गया। इसके बाद 200 मीटर तक बस का अगला दरवाजा खुला रहा। जब कंडक्टर को आवाज लगाकर बताया गया तो तैश में आकर बोला, क्या हो गया। उनका कहना है कि परिचालक की अभद्रता व चालक की ओवरस्पीडिंग अनहोनी घटना को निमंत्रण दे रही थी। कुठेड़ा पहुंचने तक 31 सीटर बस में 45 सवारियों को भर दिया गया। बस में सवारियों को इस कदर ठूंस लिया गया कि यात्री दरवाजे पर लटककर सफर कर रहे थे।

नीरज कुमार ने ही चलती बस से ही मामले को पुलिस तक पहुंचाया। ऑनलाइन ही नीरज को आश्वासन मिला कि घुमारवीं से पहले ही बस को पकड़ लिया जाएगा। लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर नीरज कुमार ने पुलिस स्टेशन पहुंच कर मामला दर्ज करवाया। नीरज कुमार का कहना है कि ई-मेल व डाक के माध्यम से भी शिकायत भेज दी गई है।