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Sunday, September 14, 2025
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हिमाचल में कमजोर हो रही हैं दोनों राष्ट्रीय दलों की दीवारें

  • विवेक अविनाशी।।
हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2017 में विधानसभा के चुनाव हैं। प्रदेश में दोनों राष्ट्रीय दल यानी भारतीय जनता पार्टी और  कांग्रेस  पार्टी की राजनीतिक दीवारें निरंतर कमजोर होती जा रही हैंl दोनों ही राष्ट्रीय दल तीव्र आंतरिक गुटबाजी की वजह से त्रस्त हैं और मतदाताओं में पार्टी संगठन की पकड़ कमजोर होती जा रही हैl पार्टियों के कार्यकर्ता गुटों में बंटे हुए हैं और सामान्तर राजनीतिक गतिविधियों को अंदरखाते अंजाम देकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अपने अस्तित्व का आभास देते रहते हैं।
कांग्रेस पार्टी का हाल भी वैसा ही है जैसा बीजेपी का हैl कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक वर्ग उम्रदराज नेताओं से किनारा कर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए छटपटा रहा है। ये युवा नेता राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। इनकी ज्यादा पहुंच युवाओं तक सोशल मीडिया के माध्यम से ही है। या तो वॉट्सऐप पर ग्रुप बनाकर ये आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं या फिर फेसबुक पर अपने समर्थन के पेजेस पर ख़ास पोस्ट डालकर अपनी बात एक-दूसरे तक पहुंचाते हैं। इसका सकारात्मक परिणाम भी हुआ है लेकिन अधिकांश ऐसे पेजेस के पोस्ट देख यही लगता है कि कही न कहीं दोनों ही पार्टियों  के अनुभवी नेता प्रदेश के इन युवाओं तक अपनी बात पहुंचाने में नाकाम हो रहे हैं।
यह किसी से भी छिपा नही है कि हिमाचल में बेरोज़गारी ज़ोरों पर हैl प्रदेश का युवा वर्ग जो  पढ़-लिखकर अपने प्रांत के लिए कुछ कर गुजरने की चाह रखता है, अपने गाँव की हालत देख कर मन मसोस कर रह जाता है। दिल्ली जैसे महानगर में सैंकड़ों ऐसे हिमाचल के युवक हैं जो रोज़ी-रोटी भी कमा रहे है और प्रदेश के लिए कोई सार्थक काम भी करना चाहते हैंl ऐसे युवाओं की आशा राजनेताओं पर ही टिकी रहती है। अब यह राजनेता अपने पक्ष में इन्हें कैसे कर पाते हैं ये तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इन युवाओं में  प्रदेश की राजनीति को लेकर जो रोष है, उसका सीधा असर दोनों ही राष्ट्रीय दलों के कार्यकर्ताओं में देखा जा सकता हैl

हिमाचल की राजनीति पिछले एक दशक से कुछ ही नेताओं के इर्द –गिर्द घूम रही है और ऐसा दोनों ही दलों में है। पुत्र-मोह से ग्रसित  वीरभद्रसिंह और धूमल  अपनी राजनैतिक नाकामियों के इलावा अपने पुत्रों को राजनीति में स्थापित करने बारे आरोपों को भी एक दूसरे पर उछालते रहते हैं। हद तो तब हो गई जब धूमल के दूसरे बेटे ने भी वीरभद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।


ठीक भी है, चर्चा में रहने के लिए इस तरह के अनापेक्षित कदम उठाना जरूरी भी है। पर क्या यह वर्तमान राजनीति का बदलता स्वरूप है या हिमाचल की राजनीति का विशेष अंदाज़? और हद तो यह भी है कि वीरभद्र जैसे  राजनीति में लम्बी पारी खेलने वाले अनुभवी नेता इन नेता पुत्रों के प्रति स्तरहीन भाषा का प्रयोग करते हैं। कांग्रेस का एक और मजेदार पहलू यह है जो नेता वीरभद्र के बाद हिमाचल को नेतृत्व देने का दावा कर रहे हैं वे अपने जिले से बाहर ही नही निकल पा रहे और जो नेता किनारे बैठकर हवा का रुख देख रहे हैं, उन्हें इस बात का एहसास ही नही कि अगर वे कुछ कर दिखाएं तो हिमाचल के मतदाता उनके मुरीद हो सकते हैं।

कांग्रेस पार्टी का प्रदेश नेतृत्व हिमाचल में बीजेपी से पार्टी मुद्दों और विचारधारा के आधार पर चर्चा-परिचर्चा नही करता बल्कि धूमल के आरोपों का उन्ही की भाषा में जवाब देने में वक्त गुजारता । वैसे भारतीय जनतापार्टी के कुछ नेताओं का ख्याल है अगर कांग्रेस हिमाचल में आगामी चुनाओं में दोबारा कमान संभालती है तो प्रदेश के परिवहन मंत्री जी.एस. बाली अधिकांश कांग्रेसियों की पहली पसंद होंगे। बाली के पास ऐसे बहुत से विभाग हैं जिन्हें वे अगर अच्छी तरह से गतिमान बना दें तो बहुत से युवाओं के स्वप्न साकार हो सकते हैं। व्यवसायिक शिक्षा एक ऐसा विषय है जो कारगर सिद्ध हो सकता है। बाली की सोच जनोपयोगी तो है पर जनता के उपयोग के लिए बनाए गए ढांचे में उसे ठीक से बिठाने वाली अफसरशाही उसे लागू करते हुए इतने नुक्ते लगाती है कि सोच का कबाड़ा हो जाता है। परिवहन विभाग के कुछ निर्णय अभी भी धरातल पर नही उतरे हैं। वैसे मुददों को वैज्ञानिक ढंग से सोच कर परोसने वालों में मुकेश अग्निहोत्री का भी कोई सानी नही। उनका हरोली मॉडल आफ़ डिवेलपमेंट इस का जीता-जागता उदाहरण है।

यह तो वक्त ही बतायेगा आने वाले समय में कांग्रेस प्रदेशवासियों का क्या भला कर पाएगी लेकिन इतना तय है प्रदेश में हार की तलवार कांग्रेस पर लटकी हुई है।

बीजेपी को यदि यह खुशफहमी है कि प्रदेश की राजनीतिक रिवायात के मुताबिक अगली बार मतदाता हमें सरकार सोंपेंगे तो भूल जाए कि ऐसे करिश्मे आगे नही होंगे। एक पहाड़ी कहावत भी तो यही कहती है “पले-पले बब्बरुआं दे त्यौहार ने लगदे।” बीजेपी की सक्रिय राजनीति प्रदेश में शान्ता और धूमल के इर्द-गिर्द घूमती है। इन दोनों कद्दावर नेताओं ने हिमाचल को बहुत कुछ दिया है लेकिन हैरानी है इस सब के बावजूद भी एक-दूसरे को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने में इन्हें गुरेज़ होता है। एक मंच पर जब यह दोनों राजनेता होते हैं तो इनकी बॉडी लैंग्वेज देखने वाली होती है।

शान्ता के पत्र–प्रकरण के बाद धूमल ने अपने आरोपों पर सफाई देते हुए जो पत्र मोदी जी को लिखा है, उसमे सभी मुख्यमंत्रियों की संपत्ति की जांच करने का अनुरोध किया है। ध्यान रहे परोक्ष रूप से धूमल ने शान्ता की संपत्ति की जांच की मांग भी रखी है। अब इसे किस तरह की राजनीति कहें, प्रदेश के हित वाली या प्रतिशोध की?
इन सब कारनामों  का असर कार्यकर्ताओं पर भी पड़ता है, जो ऐसे नेताओं और ऐसे पार्टी की राजनीति से विमुख हो जाते हैl इन दोनों राष्ट्रीय दलों को प्रदेश में अपना चाल, चरित्र और चेहरा सुधारना होगा वरना कमजोर दीवारें कभी भी ढह सकती है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और राज्य को लेकर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों इन हिमाचल के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

वीरभद्र और प्रतिभा सिंह को झटका, ED की कार्रवाई पर रोक लगाने से हाई कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली

प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संपत्तियां अटैच करने की कार्रवाई के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट गए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को निराशा हाथ लगी है। कोर्ट ने वीरभद्र और प्रतिभा की मांग को खारिज करते हुए कह कि ईडी द्वारा अब तक की गई कार्रवाई बरकरार रहेगी। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक मामलों की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, ईडी और संपत्ति अटैच नहीं कर पाएगा।


चीफ जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ ने वीरभद्र और उनकी पतनी की ऐप्लिकेशन को निपटाते हुए कहा कि ईडी द्वारा की गई कार्रवाई बरकरार रहेगी, मगर जब तक मामले में सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, अटैचमेंट प्रोसीडिंग में ईडी का कोई नया आदेश मान्य नहीं होगा। ईडी ने प्रतिभा सिंह से जुड़ी 5.80 करोड़ और वीरभद्र सिंह से जुड़ी 1.34 करोड़ की प्रॉपर्टी संपत्ति अटैच की है।

कोर्ट ने वीरभद्र और प्रतिभा की याचिकाओं को उनके बेटे और बेटी की याचिकाओं के साथ लिस्ट किया। उनके बेटे और बेटी ने भी प्रोविज़नल अटैचमेंट को चुनौती दी थी। उस मामले में भी कोर्ट ने ऐसा ही आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने वीरभद्र के बेटे और बेटी की और प्रॉपर्टी अटैच करने की कार्रवाई पर रोक लग दी थी, मगर अटैच हो चुकी प्रॉपर्टी को लेकर राहत देने से इनकार कर दिया था।

गौरतलब है कि वीरभद्र और उनकी पत्नी ने 23 मार्च को ईडी द्वारा की गई अटैचमेंट की कार्रवाई को चुनौती दी थी और कहा था कि ED को यह कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। 26 अप्रैल को उन्होंने प्रिवेंशन और मनी लॉन्डरिंग ऐक्ट के तहत भेजे समन को रद्द करवाने की भी मांग की थी।

रोज तीन किलोमीटर चलकर गांव के बच्चों के साथ स्कूल आता है यह कुत्ता

इन हिमाचल डेस्क।।

कुत्ते और इंसान की दोस्ती की असंख्य मिसाले आपने सुनी होंगी।  यहाँ भी ऐसी ही एक  अजबो गरीब दास्तान हम आपको बता रहे है जो हिमाचल प्रदेश के जिला हमीरपुर के एक ग्रामीण इलाके से सबन्धित है।  जंगल के बीच एक सरकारी स्कूल है जहाँ दूर दराज से पढ़ने के लिए बच्चे आते हैं।  एक गावं से इस स्कूल में लगभग 3 -4 किलोमीटर दूर से बच्चे आते हैं।  इन्ही बच्चों के साथ एक कुत्ता भी  स्कूल आता है।  काले रंग का यह कुत्ता फिर सारा दिन स्कूल में गुजारकर  शाम को बच्चों के साथ वापिस चला जाता है।  हैरानी की बात यह है की यह कुत्ता किसी भी हालत में एक भी दिन छुट्टी नहीं करता।  और स्कूल में भी अपने गावं के बच्चों की कक्षा के बाहर  ही बैठता है।

शुरू में अध्यापकों ने बच्चों को कुत्ते को घर में बाँधने को कहा पर यह तरीका भी कारगर सिद्ध नहीं हुआ , जैसे ही दिन में भी उसे मौका लगता वो भागकर स्कूल पहुँच जाता। परन्तु अब स्कूल में बनने वाले मिड डे मील में कुत्ते को भी हिस्सा मिलता है।  क्योंकि इस कुत्ते ने इस स्कूल की वो समस्या सुलझा दी है जिस से अध्यापक से लेकर अभिवावक और बच्चे अक्सर परेशान रहते थे।

स्कूल के प्रांगण में मजे से धुप सेंकता हुआ कुत्ता

चीड़ के जंगलों के साथ लगते इस स्कूल में बंदरों का बहुत आतंक रहता है।  यह बन्दर अक्सर बच्चों का बैग खाने का सामान या मिड डे मील किचन पर धावा बोल देते थे।  परन्तु अब इस कुत्ते ने बंदरों से निबटने का बीड़ा उठा लिया है।  यह कुत्ता स्कूल कैंपस के अंदर एक भी बंदर को फटकने नहीं देता है।  वहीँ प्रांगण में बैठकर पूरी रखवाली करता है।  देखिये है न हैरतअंगेज श्याद इस कुत्ते का पूर्वजन्म में शिक्षा से कोई नाता रहा होगा तभी सर्दी गर्मी या बरसात कुछ भी हो यह कुत्ता भी  बच्चों के साथ सुबह स्कूल के लिए चल देता है और शाम को उन्ही के साथ वापिस हो लेता है।

कौन थी वह बड़ी-बड़ी आंखों वाली बला की खूबसूरत लड़की?


पिछले दिनों हमने आपको टीवी पत्रकार पंकज भार्गव की आपबीती बताई थी, जिसमें उन्हें ‘बेलीराम नाम के शख्स का भूत’ मिला था। उन्होंने आईबीएन 7 में रहते हुए आईबीएन खबर वेबसाइट पर एक और आपबीती साझा की थी। हम उस वेबसाइट से यह लेख आभार प्रकट करते हुए यहां प्रकाशित कर रहे हैं।

मेरा घर हाइडवेल सेट नं – 3 नीयर चौड़ा मैदान शिमला – 171004…… ये पूरा पता है। सौ साल पहले किसी अंग्रेज़ का ठिकाना था। आयशा बेगम नाम की महिला ने उसे ख़रीदा और फिर लगभग 40 साल पहले मेरे पिताजी ने उसी भद्र महिला से उसे ले लिया। लकड़ी का पुराना सा घर…टीन की लाल छत, धुएंवाली चिमनी।

पता है जब टीन की छत पर बारिश पड़ती है तो आवाज़ ऐसी होती है कि छप्पड़ फट जाए। घना देवदार का जंगल और उसके बीच में ये घर, मेरे बचपन की तमाम यादें जुड़ी हैं इससे। मैं, मेरा छोटा भाई, एक बहन जो अब इस दुनिया में नहीं है। हमारी शरारतें, पिठ्ठू और छिपन छिपाई का खेल और फिर अचानक सब छूमंतर।….हम कब बड़े हो गए कुछ पता ही नहीं चला।

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पिताजी का तबादला हुआ मां, भाई और बहन सब दिल्ली आ गए, मैं अकेला शिमला में रह गया। उस बड़े से घर में जहां सुबह खूबसूरत है, पर रात बड़ी अकेली सी और डरावनी भी। चलिए अब पड़ोस के एक शख़्स से आपका परिचय करवा दूं नाम है फणीभूषण भट्टाचार्य…प्यार से हम उन्हें फोनी दादा बुलाते हैं, एक कैंटीन है इनकी कालीबाड़ी में। यहां बंगाली लोगों ने एक बड़ा सा मंदिर बनवाया है, यहीं इनकी एक प्यारी सी कैंटीन भी है। अकेला रहता था मैं बीए कर रहा था तो अक्‍सर खाना खाने चला जाता था।

उस दिन क्या हुआ था— 8 दिसंबर की रात थी, शाम सात बजे मैं चल दिया। अपने आप से बातें करता हुआ, राम अल्लाह रब जीज़स सभी को याद करता हुआ। ठंड और डर भइया डेडली कॉम्बिनेशन होता है। 20 मिनट का रास्ता डरते-डरते कट गया कब कालीबाड़ी आ गया कुछ पता ही नहीं चला। जम कर खाना खाया माछ भात बंगाली भोजन फोनी दादा की कैंटीन की खासियत है, सो वो ही खाया। फिर सोचा लगे हाथ चाय भी पी ली जाए। कांच के गिलास में चाय पी जाए, तो दो फायदे हैं स्वाद भी मिल जाता है और ठंड के इस मौसम में हाथ भी गर्म हो जाते हैं।

फोनी दादा रोज़ मेरे साथ घर जाते थे, पर आज होनी को कुछ और ही मंजूर था। बोले पोंकोज- मेरा प्यारा सा बंगाली नाम दादा ने ही रखा था। मुझे आज देर होगी तुम निकलो। मरता क्या न करता सो निकल पड़ा मंदिर के गेट पर पहुंचा तो सुनिये…ये आवाज़ आई… मुड़कर देखा एक लड़की थी, गोरी सी बला की खूबसूरत….बड़ी-बड़ी आंखे पीले लिबास में क्या कहूं और उसके बारे में।

सिसिल होटल कहां है। आपको मालूम है उसने पूछा।

हां, मैंने जवाब दिया। मेरे घर के पास है आप चाहें तो मेरे साथ चल सकतीं हैं। और हम चल पड़े।

कलकत्ते के बड़े इंडस्ट्रिअलिस्ट की बेटी है, हर साल घूमने निकलती है, इस बार शिमला चुना घूमने के लिए ये कहा उसने मुझसे। शरतचंद्र, टैगोर सत्यजीत रे , शर्मिला, उत्तम कुमार, आर डी बर्मन सब पर चर्चा हुई। अचानक वो गाने लगी ..तुझ से नाराज़ नहीं ज़िन्दगी…लता का गाना उसकी आवाज़ में बहुत सुरीला लग रहा था।

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खांसती थी बीच-बीच में गाते हुए। थोड़ी बीमार लग रही थी। भगवान को कोसा मैंने..ऊपरवाले हसीनों को बीमार न किया कर। ढलान पर एक बार पांव लड़खड़ाया तो उसने मेरा हाथ भी पकड़ा। सच बोलूं मुझे अच्छा लगा।

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एक और चाय की प्याली का मन था सोचा की कुछ और वक्त बिताने को मिलेगा उसके साथ। उससे कहा तो वो राज़ी भी हो गई ये कहते हुए की आज उसका आखिरी दिन है शिमला में। हम निकल पड़े वापस माल रोड। बालजीज़ में चाय भी पी ली। 9 बज गए।

उसकी बातों से ऐसा ज़रूर लग रहा था, कि वो पहले कई बार शिमला आई है और मुझसे झूठ बोल रही है। कभी हंसती थी तो कभी सीरियस हो जाती थी। चूड़ेलें खूबसूरत होतीं हैं मैंने सुना था। पर हां उसके हाथ पांव टेड़े नहीं थे सो यकीन हो गया लड़की ही है चुड़ैल नहीं। वो गाती जा रही थी।

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शिमला की खासियत ये है की अगर आप अपनी प्रेमिका के साथ हैं तो बैठने के लिए जगह और जेब में पैसे नहीं चाहिए, चलते जाइये उसके साथ एक खूबसूरत एहसास होता जाएगा।

बातें और बातें, कुछ गानों पर डिस्कश्न और अचानक सिसिल होटल आ गया।

कम्बखत ये रास्ता आज इतना छोटा कैसे हो गया…ये सोचा मैंने…

बाय….कलकत्ता आना….कागज़ मेरी तरफ बढ़ा दिया उसने।

माया…यही लिखा था…

और हां साल्ट लेक कलकत्ते का पता था।

मैं उसे छोड़कर घर आ गया अकेला।

सुबह हुई घर की घंटी बजी दरवाज़ा खोला तो फोनी दादा थे

मैंने माया की बात कही…

दादा के हाथ से चाय की प्याली छूट गई।

एक अंग्रेज़ अफसर था …बंगाली लड़की के प्यार में पड़ गया …माया नाम था उसका। एक रोड ऐक्सिडेंट में दोनो की मौत हो गई तभी से भटक रही है दोनों की आत्मा.. कभी अंग्रेज़ मिल जाता है तो कभी ये माया।

मैं फौरन भाग कर होटल गया। रिसेप्शन पर रजिस्टर चैक किया…पूछा भी लोगों से…..

जवाब वही था।

कोई माया नहीं ठहरी थी वहां।

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DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें।

बीजेपी संगठन ने जे.पी. नड्डा को दिया हिमाचल चुनाव की तैयारी में जुटने का ऑफर

इन हिमाचल डेस्क।।

2 सरकार पूरे कर चुकी नरेंद्र मोदी सरकार जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार करने जा रही है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी बता चुके हैं कि जून के पहले हफ्ते में सरकार के चेहरों में बदलाव देखने को मिल सकता है। जहां कुछ मंत्रियों के विभाग बदले जा सकते हैं, वहीं नए चेहरों को शामिल किया जा सकता है। मगर इस बाबत हुई संगठन की मीटिंग में शामिल रहे वरिष्ठ सूत्र से ‘इन हिमाचल’ को चौंकाने वाली जानकारी मिली है।

सूत्र के मुताबिक हिमाचल प्रदेश से सीनियर बीजेपी नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के लिए पार्टी ने नई भूमिका चुनी है। बीजेपी संगठन में अमित शाह के बाद सबसे कद्दावर नेता की पहचान बना चुके नड्डा के सामने पार्टी ने प्रस्ताव रखा है कि अगले साल हिमाचल प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी शुरू करें। पार्टी चाहती है कि किसी भी तरह का चांस न लिया जाए और अगले चुनाव में हिमाचल में बीजेपी की सरकार रेकॉर्ड बहुमत से बने। मगर इससे पहले पंजाब विधानसभा चुनाव की देख-रेख का जिम्मा भी नड्डा को देने की योजना है।

जे.पी. नड्डा
जे.पी. नड्डा

नड्डा के सामने प्रस्ताव रखा है कि अभी मंत्री पद छोड़ दें और हिमाचल प्रदेश में जाकर संगठन को चुस्त-दुरुस्त करें। इसका मतलब यह हुआ कि पार्टी उन्हें सीएम कैंडिडेट के तौर पर देख रही है, वरना कैबिनेट मिनिस्टर छोड़कर किसी नेता को संगठन को ऐसे ही नहीं भेजा जा सकता। बतौर मंत्री नड्डा का काम भी अच्छा है, इसलिए उन्हें हटाने या बदलने का सवाल पैदा नहीं होता। मगर यह कदम हिमाचल प्रदेश में नया नेतृत्व देने की कवायद ज्यादा लगती है।

सूत्र ने बताया कि पार्टी संगठन को लगता है कि हिमाचल प्रदेश की जनता में वीरभद्र सिंह और धूमल की राजनीति से सैचुरेशन आ गया है। साथ ही जिस तरह से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल हर मोर्चे पर वीरभद्र सिंह को घेरने में नाकाम रहे हैं, उससे उनकी पोजिशन डाउन हुई है। सूत्र ने बताया, ‘वीरभद्र सिंह करप्शन के मामले में बुरी तरह फंसे हैं। उनकी संपत्ति अटैच हो गई, छापे पड़ गए… बहुत कुछ हुआ मगर हिमाचल बीजेपी ने इस मुद्दे को उस तरह से नहीं उठाया, जिस तरह से वह धूमल या अनुराग से जुड़े मामलों को उठाती है। शीर्ष नेतृत्व को लग रहा है कि पूरा काडर ही अब सतही मुद्दों पर क्रिकेट आधारित राजनीति में जुट गया है, जिससे नुकसान हो सकता है। इसीलिए चेहरा बदलने और कार्यकर्ताओं में नया उत्साह भरने के लिए नड्डा को भेजने की रणनीति पर विचार किया गया है।’

Himachal Pradesh Chief Minister Prem Kumar Dhumal in an undated file photo.
Himachal Pradesh Chief Minister Prem Kumar Dhumal in an undated file photo.

कहा जा रहा है कि नड्डा ने इस प्रस्ताव पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी और वह खामोश बैठे रहे। सूत्र के मुताबिक खुद अमित शाह ने नड्डा से इस पेशकश पर विचार करने को कहा है, जिस पर उन्होंने विचार करने के लिए वक्त मांगा है। पार्टी यह भी चाहती है कि हिमाचल में सक्रिय रहने के साथ-साथ पंजाब और यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भी संगठन को दिशा-निर्देश देने का काम नड्डा करते रहें।

सूत्र के मुताबिक अगर नड्डा इस पेशकश के लिए तैयार होते हैं तो वह अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री को भेजने के तुरंत बाद हिमाचल में सक्रिय हो जाएंगे और संगठन में बड़े स्तर पर बदलाव करेंगे। इसके साथ ही वह राष्ट्रीय स्तर पर भी संगठन से कामों को देखते रहेंगे, जिनमें पंजाब और यूपी का चुनाव अहम है। वहीं नड्डा की जगह खाली पड़े स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी किसी युवा सांसद को दी जा सकती है। मगर ये सब बातें इस पर निर्भर करती हैं कि नड्डा केंद्र में रहने का फैसला करते हैं या हिमाचल आने का।

हमीरपुर में अपने ऊपर चल रहे केसों का जिक्र करते वक्त भावुक हुए अनुराग ठाकुर

हमीरपुर।।
अपने गृहक्षेत्र हमीरपुर पहुंचे बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर अपने ऊपर चल रहे कानूनी मामलों के ऊपर बोलते हुए भावुक हो गए।

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बचतभवन में आयोजिक कार्यक्रम में अनुराग ने कहा कि सालाना 27 लाख किराया होटेल की जमीन का दिया जा रहा है, मगर मेरे ऊपर फिर भी केस पर केस बनाए जा रहे हैं।

पढ़ें: अनुराग ठाकुर पर क्यों चल रहे हैं केस

अनुराग ने कहा, ‘मेरा  बेटा पूछता है कि पापा आप ऐसा क्या करते हो कि आपपर केस हो जाते हैं।’ इसके बाद उनकी आवाज भारी हो गई और भावुक होते हुए उन्होंने कहा, ‘हमने कभी अच्छा काम करने में कमी नहीं रखी, मगर उन्होंने (मौजूदा प्रदेश सरकार की ओर इशारा) केस बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।’

पढ़ें: HPCA केस में क्या कहती है विजिलेंस की चार्जशीट

अनुराग ने कहा कि प्रदेश सरकार ने नैशनल क्रिकेट अकैडमी बनाने के लिए अभी तक जमीन मुहैया नहीं करवाई है। उन्होंने कहा कि क्रिकेट में अब तक जो काम प्रदेश में नहीं हो पाए हैं, वे पूरे किए जाएंगे। इस साल धर्मशाला में टेस्ट मैच करवाने की बात भी उन्होंने कही।

हिमाचल हाई कोर्ट का क्लेरिकल एग्जाम देने वाले सभी अभ्यर्थी फेल

शिमला।।

हाई कोर्ट द्वारा अदालतों में भर्ती के लिए करवाए गए क्लेरिकल एग्जामिनेशन में सभी 180 कैंडिडेट फेल हो गए हैं। रिजल्ट बुधवार को अनाउंस हुआ।

Failed

 

180 कैंडिडेट्स ने यह लिखित परीक्षा दी थी, जिनमें से 2 ही क्वॉलिफाई हुए। मगर ये दोनों भी टाइपिंग टेस्ट में फेल हो गए। हाई कोर्ट की तरफ से आधिकारिक बयान में यह बात साफ हुई।

35 पदों के लिए होने वाली भर्ती के लिए हुए स्क्रीनिंग टेस्ट में 225 लोग क्वॉलिफाई हुए थे।

जानें, विजिलेंस की चार्जशीट के मुताबिक प्रेम कुमार धूमल ने कैसे पहुंचाया HPCA को फायदा

बीसीसीआई की सत्ता बदलने पर उम्मीद की जाने लगी है कि इसके नए अध्यक्ष अनुराग ठाकुर इस संस्थान को बदनामी से बाहर निकालेंगे। उम्मीद जताई जा रही है कि पारदर्शी और करप्शन फ्री शासन देंगे। एक युवा प्रशासक के आने पर ऐसी उम्मीद होना लाजिमी है। मगर इन हिमाचल ने पिछले आर्टिकल में बताया था कि कैसे अनुराग ठाकुर ने अपने लिए रास्ता बनाया। इस हिस्से में आउटलुक की रिपोर्ट के हवाले से पढ़िए, हिमाचल प्रदेश विजिलेंस डिपार्टमेंट ने अपनी चार्जशीट में क्या पाया है। इंग्लिश में रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें

हिमाचल में 1960 से ही क्रिकेट असोसिएशन थी, मगर नाम भर की थी। इसीलिए अनुराग ने पंजाब की तरफ से खेलना पसंद किया। कुछ दिनों बाद उन्होंने क्रिकेट के बिज़नस में शिफ्ट होने का फैसला लिया। पंजाब के एक स्पोर्ट्स राइटर का कहना है कि अनुराग ने पंजाब की क्रिकेटिंग बॉडी में शामिल होने की कोशिश भी की थी 90 के दशक में, मगर बाहरी होने की वजह सफलता नहीं मिली। अनुराग का लक्ष्य बीसीसीआई था। पंजाब का रास्ता उनके लिए लंबा पड़ता क्योंकि जिस लॉबी का पंजाब क्रिकेटिंग बॉडी पर कब्जा था, उसके रहते यह काम मुश्किल था।

इसी दौरान, अनुराग के पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए 1998 से 2003 तक। अनुराग ने वक्त नहीं गंवाया और 2000 में असोसिएशन के प्रेजिडेंट चुने गए। उनके पिता पैट्रन इन चीफ बन गए। उनका पहला प्रॉजेक्ट था- धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम बनाना। विजिलेंस की चार्जशीट के मुताबिक इस प्रस्ताव को राज्य के यूथ सर्विसेज़ और स्पोर्ट्स डिपार्टमेंट के सामने रखा गया। फाइनैंस डिपार्टमेंट ने इसे ओके कह दिया, मगर सुझाव दिया कि लीज रेंट देने के लिए मार्केट रेट अप्लाई किया जाए, क्योंकि टिकट की बिक्री और स्पॉन्सरशिप वगैरह से स्टेडियम को इनकम होगी।

बीसीसीआई प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर।
बीसीसीआई प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर।

मगर जब मामला कैबिनेट के पास पहुंचा- HPCA प्रेजिडेंट के पिता होने के बावजूद- प्रेम कुमार धूमल ने उस मीटिंग की अध्यक्षता की, जिसने 16 एकड़ जमीन को 99 साल तक 1 रुपये प्रति माह की दर से लीज़ पर देने को मंजूरी दी।

HPCA ने और भी चालाकी दिखाई और लीज़ पर मिली ज़मीन को दो निजी कंपनियों सब-लीज़ पर दे दिया, ताकि स्टेडियम के सामने पहाड़ियों के नजारे दिखाते दो होटेल पविलियन और अवेडा (अब दोनों बंद हैं) बनाए जा सकें। अवेदा को क्लबहाउस के ऊपर बनाया गया था और उससे ग्राउंड का बड़ा हिस्सा नजर आता था। स्टेडियम के अलावा, कैबिनेट ने खिलाड़ियों के लिए रेजिडेंशल क्वार्टर बनाने की लीज़ भी दे दी।

विजिलेंस ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों होटलों को 2012-2013 में 2 करोड़ रुपये का टर्नओवर हुआ, मगर हिमाचल सरकार को उस जमीन क बदले सिर्फ साल के 12 रुपये ही मिले। हालांकि अनुराग ठाकुर इसका खंडन करते हैं। ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि HPCA ने कानून लीज़ पर मिली 50 हजार स्क्वेयर फुट जमीन के अलावा 3000 स्क्वेयर फुट एक्स्ट्रा जमीन पर एनक्रोचमेंट कर ली।

.यह जानकारी बाहर नहीं आती, अगर यूजीसी से फंडेड सरकारी कॉलेज इस स्टेडियम से न सटा होता। 2002 में धूमल सरकार अतिरिक्त जमीन अधिग्रहित करने में नाकाम रही, क्योंकि गवर्नमेंट पीजी कॉलेज के पास वह जमीन थी। मगर अपनी सेकंड टर्म (2008-12) में मुख्यमंत्री रहते हुए अपने बेटे के लिए इस समस्या का समाधान भी प्रेम कुमार धूमल ने कर दिया।

जब स्टेडियम बन रहा था, कॉलेज ने निर्माण के लिए NOC दे दिया था, मगर तीन शर्तें रखी थीं। पहली यह कि भविष्य में कॉलेज के विस्तार के  लिए पर्याप्त जगह रखी जाए। दूसरी यह कि कॉलेज के स्टूडेंट्स को स्डेडियम इस्तेमाल करने की इजाजत हो और तीसरी यह कि कॉलेज के लिए अलग से एंट्री रखी जाए ताकि इसकी पनी ऐक्टिविटीज़ में कोई दिक्कत न हो।

विजिलेंस के मुताबिक 2008 में धूमल ने अपने दूसरे कार्यकाल में कांगड़ा के डीसी के.के. पंत के साथ स्पेशल मीटिंग की, जिसका मकसद पीजी कॉलेज को खंडित और इस्तेमाल के लिए असुरक्षित घोषित करवाना था कि यह खिलाड़ियों के लिए भी खतरनाक है।

पंत और जिले के अन्य अधिकारियों ने मार्च 2008 में मीटिंग की और कॉलेज प्रिंसिपल को बिल्डिंग को अन्य जगह पर शिफ्ट करने का आदेवन करने को कहा। सरकारी कॉलेज में अब तक किसी ने शिकायत नहीं की थी कि बिल्डिंग जीर्ण हो चुकी है। मगर HPCA के अधिकारियों, जो उस मीटिंग में थे, ने कहा कि हम लोग बिल्डिंग की वजह से क्रिकेटर्स की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।

इसके तुरंत बाद जिले के अधिकारियों ने बिल्डिंग को असुरक्षित घोषित कर दिया, जबकि यह 25 साल ही पुरानी थी और 2 साल पहले ही इसकी मरम्मत हुई थी। एजुकेशन डिपार्टमेंट ने कोई दखल नहीं दिया (इन्हें भी चार्जशीट में नामजद किया गया है।

जुलाई 2008 में अनुराग ठाकुर ने स्टेडियम के साथ 720 स्क्वेयर मीटर और जमीन मांगी, मगर इस जमीन पर कॉलेज की इमारत खड़ी थी। इस जमीन के लिए फॉरेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा दी गई मंजूरी पर भी सवाल उठे हैं। चार्जशीट में कहा गया है कि वन विभाग ने 1980 में यहां 2000 पेड़ लगाए थे। मगर क्लियरेंस देते वक्त वन विभाग ने कहा कि जमीन बंजर है। (एचपीसीए पर 500 पेड़ काटने का आरोप है)।

पढ़ें: अनुराग ठाकुर ने कैसे तय किया BCCI अध्यक्ष पद का रास्ता

नोट: उपरोक्त बातें आउटलुक के आर्टिकल का हिंदी अनुवाद है, इसमें अपनी तरफ से कोई बात नहीं जोड़ी गई। इस आर्टिकल में सारी बातें विजिलेंस डिपार्टमेंट द्वारा दाखिल चार्जशीट पर आधारित हैं, मामला कोर्ट में लंबित है।

हवा के झोंकों से गिर गई 1 साल पहले बनी दीवार, ठेकेदार ने बच्चों से उठवाई ईंटें

बिलासपुर।।

बिलासपुर की घुमारवीं तहसील के गवर्नमेंट हाई स्कूल कल्लर (ग्राम पंचायत कोटलू) में निर्माण में कोताही बरतने का मामला सामने आया है। जानकारी के मुताबिक पिछले दिनों आए मामूली तूफान की वजह से इस स्कूल की बाउंड्री वॉल गिर गई। इस दीवार को बने एक साल ही हुआ था। अच्छी बात यह रही कि जिस वक्त दीवार गिरी, उस वक्त बच्चे वहां मौजूद नहीं थे, वरना कोई हादसा हो सकता था।

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लोगों का कहना है कि ठेकेदार इस दीवार को बनाने में घटिया निर्माण सामग्री इस्तेमाल की गई थी और रेत व सीमेंट को रेशो भी सही नहीं था। मगर मामला यहीं तक नहीं रहा। लोगों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि ठेकदार द्वारा बरती गई कोताही की सजा स्कूल प्रबंधन ने बच्चों को दी। गिरी हुई दीवार की बिखरी हुई ईंटों को लेबर के बजाय छात्रों से उठवाया गया और वह भी ठेकेदार की मौजूदगी में।

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पूर्व सैनिक और स्थानीय नागरिक होशियार सिंह ने इस मामले को जोर शोर से उठाया है और आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है। अभिवावकों का कहना है इस तरह की घटिया निर्माण सामग्री से दीवार बना रहा यही टेकेदार स्कूल में कमरों वगैरह का निर्माण कर रहा है। अगर दीवार ही 1 साल नहीं टिक पाई तो कमरों की गुणवत्ता पर कैसे यकीन किया जा सकता है।

अनुराग ठाकुर की उपलब्धि पर भावुक हुए छोटे भाई अरुण, बताई एक खास बात

इन हिमाचल डेस्क।।

हमीरपुर के सांसद और HPCA के प्रमुख अनुराग ठाकुर आज बीसीसीआई के अध्यक्ष बन गए। इस पद को संभालने वाले अनुराग सबसे युवा व्यक्ति हैं। उनकी इस उपलब्धि पर अनुराग के छोटे भाई अरुण धूमल ने अपनी फेसबुक पोस्ट के जरिए बड़े भाई के BCCI अध्यक्ष पद तक पहुंचने के सफर का वर्णन किया है।

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अरुण धूमल ने 1993 से इस सफर का उल्लेख किया है। बतौर अरुण 1993 में उन्होंने (अरुण ने ) मैकेनिकल इंजिनियरिंग की डिग्री में प्रवेश लिया था। उसी दौरान उनके पिताजी प्रेम कुमार धूमल दूसरी बार हमीरपुर सीट से सांसद चुने गए थे। अरुण लिखते हैं कि उनके बड़े भाई अनुराग ठाकुर उस समय मात्र 19 वर्ष के थे और पंजाब रणजी टीम का हिस्सा थे। वह कहते हैं- वो प्रथम समय था, जब पंजाब ने रणजी ट्रोफी अपने नाम की थी। उसके बाद अनुराग ठाकुर ने अंडर 19 टीम में नार्थ इंडिया को लीड किया और अंडर 19 भारत की राष्ट्रीय टीम के सदस्य भी रहे, जो इंग्लैंड के खिलाफ एक श्रृंखला में खेली।

अरुण आगे बताते हैं कि उनके पिता धूमल जी जब राजनीति में व्यस्त हो गए और वह भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए आ गए। ऐसे में पारिवारिक कारोबार को संभालने के लिए अनुराग ठाकुर को क्रिकेट से किनारा करना पड़ा। अरुण धूमल कहते हैं अगर अपने परिवार के लिए उनके बड़े भाई यह बलिदान नहीं देते तो वो आने वाले समय में टीम इंडिया का हिस्सा भी हो सकते थे। आगे लिखते हुए अरुण धूमल इस बात का उल्लेख भी करते हैं कि कैसे मात्र 25 साल की उम्र में अनुराग ने HPCA को खड़ा किया और देश के भीतर एक छोटी सी स्टेट हिमाचल प्रदेश का नाम क्रिकेट के आकाश तक पहुंचाया।

धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम को बनाने में अनुराग ठाकुर के योगदान और प्रदेश के दो खिलाडियों ऋषि धवन और सुषमा वर्मा के अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचने की उपलब्धियों का का ज़िक्र करते हुए अरुण धूमल लिखते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके भाई के आलोचकों ने हमेशा उनकी उपलब्धियों को परिवारवाद से जोड़ा। अरुण लिखते हैं की उनके पिता प्रेम कुमार धूमल का क्रिकेट के क्षेत्र में अनुराग की उपलब्धियों में कोई रोल नहीं रहा, उलटे उनके भाई अनुराग ठाकुर ने अपने बढ़ते क्रिकेट करियर को परिवार की परिस्थितयों के आगे कुर्बान कर दिया। इसी के साथ अरुण अनुराग की इस उपलब्धि को उन लोगों को समर्पित करते हैं, जिन्होंने जीवन में कभी हार नहीं मानी और आगे बढ़ते गए।

यहां क्लिक करके पढ़ें, कैसे HPCA प्रमुख रहते हुए अनुराग ठाकुर ने हिमाचल की टीम की तरफ से बतौर कैप्टन एक रणजी मैच खेला, वह भी बिना ट्रायल दिए।

( जानकारी अरुण धूमल की फेसबुक टाइमलाइन से साभार)