शिमला।। ‘कानून की आड़ में गैर-कानूनी काम को बढ़ावा देने वाले’ सरकार के एक कदम पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। दरअसल मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने प्रदेश में अवैध निर्माण को नियमित करने का फैसला लिया, मगर हिमाचल हाई कोर्ट ने इसे गलत ठहाराया है।
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट
हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा अवैध निर्माण को गैर-कानूनी ठहराते हुए आदेश दिया है कि अवैध निर्माण को नियमित नहीं किया जना चाहिए। जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की बेंच ने कहा कि सरकार को न तो अवैध निर्माण को नियमित करना चाहिए और न ही वन भूमि पर अवैध कब्जों को।
कोर्ट ने कहा कि जो भी अवैध निर्माण होते हैं, वे रातोरात नहीं हो जाते। सरकार की मशीनरी मूकदर्शनक बनकर लालची लोगों को इस तरह से अवैध कब्जे करने देती है। पहले इन्हें अवैध रूप से कब्जे करने की छूट दी जाती है और बाद में उसे रेग्युलर कर दिया जाता है। यह दिखाता है कि संवैधानिक मशीनरी फेल है।
कोर्ट ने हिमाचल सरकार को फटकारते हुए कहा कि इस तरह नीतियों से बेईमानों को कानून तोड़ने की इजाजत मिली रहती है और बेचारी ईमानदार लोग दया के पात्र बने रहते हैं। कोर्ट ने अवैध निर्माण को नियमित करने की नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आलम यह है कि हजारों ऐसे निर्माण कर दिए गए हैं जो असुरक्षित हैं और उन्हें भी रेग्युलर किया जा रहा है।
गौरतलब है कि मई महीने के आखिर में सरकार द्वारा अवैध कब्जों को नियमित करने की खबर सुर्खियों मे ंरही थी और कांग्रेस इसे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की उपलब्धि के तौर पर प्रचारित कर रही थी। मगर प्रदेश के बुद्धिजीवी वर्ग का कहना था कि यह नीति गलत है, क्योंकि इससे अवैध कब्जे करने वालों को प्रोत्साहन मिलता है। जहां तक भूमिहीन लोगों की बात है, उन्हें घर आदि बनाने के लिए पहले ही तय नियमों की तहत सरकार से भूमि देने का प्रावधान है। अब हाई कोर्ट ने भी सरकार की इस नीति को खराब बताया है। साफ है कि चुनाव नजदीक आते देख तुष्टीकरण की नीति अपनाना प्रदेश सरकार को महंगा पड़ा है।