कूटनीति के राजा, मगर विज़नहीन नेता हैं वीरभद्र सिंह

  • (यह लेख 1 जून, 2016 को प्रकाशित किया गया था जब वीरभद्र सिंह हिमाचल के मुख्यमंत्री थे)

सुरेश चंबयाल।। कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री द्वारा कैबिनेट में लिए उस फैसले को पढ़कर मुझे बड़ा अजीब लगा, जिसमें कहा गया था कि अवैध भवन नियमित किए जाएंगे। जिस चीज के साथ ही ‘अवैध’ जुड़ा है, भला उसे जायज करना सत्ता का फैसला कैसे हो सकता है? यह क्या सन्देश देगा ? क्या सत्ता का काम तुष्टीकरण करना है या इसके पीछे चहेतों को लाभ देने का काम किया जा रहा है? इन सवालों पर मैं घंटों सोचता रहा।

‘राजा वीरभद्र सिंह’, बचपन में जब होश सम्भाला था तो मुख्यमन्त्री के रूप में पहला नाम यही सुना था। हंसमुख चेहरा, हाजिर जवाबी। हम भी ‘राजा साब’ के फैन थे। कैसे उन्होंने सुखराम का तिलिस्म तोड़ा, कैसे-कैसे कब कहां कूटनीति से विरोधियों को चित किया, यह ताली बजा देने वाले मोमेंट थे। मगर वक़्त के साथ मैंने देखा कि सत्ता के शीर्ष पर रहकर भी राजा साब हिमाचल को आगे ले जाने के लिए कोई दिशा नहीं दे पाए। उनकी जिंदगी और नीति बस कूटनीति की शतरंज के उन 68 खानों ( जानता हूं 64 होते हैं परन्तु विधानसभा सीट के आधार अपर 68 लिखा) तक सीमित रही। वो उस से बाहर कभी हिमाचल का भविष्य नहीं देख पाए। उन्हें सत्ता में रहने में मजा आता है। वो इसके मंझे हुए खिलाड़ी भी हैं, जो कबीले तारीफ़ भी है। मगर 25 वर्षों में जो दशा, दिशा वो तय कर सकते थे, ऐसा उन्होंने कुछ नहीं किया।

बेरोजगारों की लम्बी फौजें, खस्ताहाल स्वास्थ्य सुविधाएं, खराब सड़कें, कॉन्ट्रैक्ट दिहाड़ीदार एम्प्लॉयी, बद से बदतर होती शिक्षा व्यव्यस्था… क्या ये चीजें वीरभद्र सिंह से 25 सालों का हिसाब नहीं मांगेगी।

वो अपनी सत्ता के लिए अपने पार्टी के अंदर बाहर के विरोधियों को तो चित कर गए, पर इस शह मात की गेम में वो यह ध्यान नहीं दे पाए कि इस प्रदेश का दायरा राष्ट्रीय भी हो सकता था। आज जीवन के 80 से ज्यादा वर्ष गुजारने के बाद राजा साब अवैध कब्जे नियमित करते हुए उसी मनोदशा में अगली जीत का स्वाद चखने को बेताब हैं, जिसे हिंदी में ‘तुष्टीकरण’ कहा जाता है।

नेतृत्व को समय से आगे रहना पड़ता है। समय से आगे सोचना पड़ता है। मगर वीरभद्र सिंह हमेशा समय के अनुसार नहीं, अपने नफे-नुकसान के हिसाब से चले। भविष्य की राह देखती PTA अध्यापकों की फ़ौज किसकी नीति का परिणाम है? राजा वीरभद्र सिंह की।

प्रदेश के लाखों स्नातक जम्मू-कश्मीर जाकर जिस दौर में B Ed करने जाते थे, उस दौर में हिमाचल सरकार कभी नहीं सोच पाई कि BEd करने के लिए ऐसा क्या इंफ्रास्ट्रक्टर चाहिए, ऐसी क्या सुविधाएं, कितना बजट चाहिए कि हमारे लोगों को बाहर जाना पड़ रहा है। वो लोग वहां से बीएड करके आए। फिर सरकारी टीचर लगने के लिए जहां एक अच्छा-खासा कमिसन का टेस्ट पास करना होता था, वहां राजा साब ने चंद तनख्वाह पर PTA के नाम से टीचर भी भर लिए। जिनका न टेस्ट होता था, न ढंग का इंटरव्यू सिर्फ स्कूल प्रिंसिपल और प्रधान तय करते थे कौन PTA में लगेगा।

फिर सत्ता के लिए राजा साब ने उन्हें रेगुलर करने का कार्ड खेल दिया। अब यह कहां का न्याय था कि एक तरफ तो कुछ लोगों को स्टेट लेवल का कमिसन देना पड़े बकायदा प्रतिस्पर्धा से आना पड़े और तब जाकर नौकरी लगे और दूसरी तरफ प्रदेश का मुख्यमंत्री उन लोगों के लिए नीति बनाने लगे, जिनका इंटरव्यू सिर्फ प्रधान और प्रिंसिपल ने लिया हो। नौकरियों की तैयारी करते हुए वर्ष खपाते लाखों लोग खपत हो गए पर वोट बैंक की यह राजनीति चलती रही। इसका फायदा उन PTA में लगे लोगों को भी नहीं मिल पाया। वो भी कशमकश की स्थिति में आज भी हैं। बेचारे इतने वर्ष राजा की चुग में पक्के होने के लिए गुजार दिए। उन्हें घोषणा का लॉलीपॉप मिलेगा सिर्फ चुनावी राजनीति के लिए। अगर वो पक्के हो भी जाते हैं इमोशनल बेस पर तो उनका क्या होगा जो लोग एक टेस्ट और वेकन्सी की राह देख रहे हैं।

अब कब्जे भी नियमित हो रहे हैं। नाजायज क्यों जायज हो रहा है, इसका न कोई सवाल करता है न कोई जबाब देता है। यह एक आधारशिला है आगे लोगों को यह बताने की जिसकी लाठी उसकी भैंस। सब कब्जे करो, सरकार वोट बैंक पर झुककर सब रेगुलर कर देगी। प्रदेश में लोग BA, MA नहीं कर रहे और माननीय मुख्यमंत्री, जो साथ में शिक्षा मंत्री भी हैं, नए-नए कॉलेज के निर्माण की घोषण कर रहे हैं। एक बार राजा साब को प्रदेश के चार युवा लोगों को बुलाकर पूछना चाहिए कि क्या इस प्रदेश के किसी कोने को सच में BA BSc करवाने वाले डिग्री कालेज की जरुरत है ? कम से कम अभी के कॉलेजों में कितने छात्र हैं, यही पता लगा लीजिए। जिन नए कॉलेजों का ऐलान किया जा रहा है, वर्षों तक ये कालेज किराए के भावों में चलते रहेंगे। न बच्चे पूरे होंगे न स्टाफ पूरा मिलेगा न शिक्षा मिलेगी। मिलेगा बस तुष्टिकरण और चरमराती हुयी यह शिक्षा व्यवस्था ताने मारती रहेगी और मज़बूरी का उपहास उड़ाती रहेगी, जब हमारे बच्चे क्लर्क का एग्जाम भी पास नहीं कर पाएंगे। कौन इसका जिम्मेदार, हुआ कोई नहीं जानेगा। पर वक़्त के साथ मैंने यह जाना कि राजनीति के यह राजा विज़न के हिसाब से प्रदेश को कुछ नहीं दे पाए और ही अब देने की सोच रहे है।

वीरभद्र का मैं एक व्यक्ति के रूप में आज भी सम्मान करता हूं। वो उन राजनेतओं में हैं, जिन्हे मैं बड़े करीब से देखता हूँ। पर बस यही उम्मीद करता हूं कि वो प्रदेश के लिए इस कार्यकाल में कुछ ऐसा करें कि यह प्रदेश तरक्की के लिए सही रास्ता पकड़े और आने वाली पीढ़िया इसका श्रेय उन्हें दे। अब यह उन पर है कि वह कहां तक क्या करते हैं। कूटनीति से बाहर आकर वो हिमनीति पर चलें, यही उम्मीद हम उनसे करते हैं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

नोट: ये लेखक के अपने विचार हैं, इन हिमाचल इनके लिए उत्तरदायी नहीं है।

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