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Monday, September 15, 2025
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लेख: हिमाचल दूसरी राजधानी चाहता था या इन सवालों के जवाब?

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आशीष नड्डा।। चुनावी वर्ष की बेला में सरकारों की सौगातों की बारिश कोई नई बात नहीं है। समय के साथ-साथ परिपक्व होती जा रही जनता राजनीतिक दलों के इन लोक लुभावन वादों और घोषणाओं को समय के साथ तौल कर देखती है और प्रायः इन शब्दों से रिऐक्शन देती है- “अरे चुनाव का समय है, बहुत कुछ होगा और बहुत कुछ किया जाएगा।” हालांकि दशकों  पहले  ऐसा भी जमाना होता था जब सतचरित्र भोली-भाली जनता ऐसे वायदों पर झूम जाया करती थी। चुनावों में विभिन्न पार्टियों को तुलना की नजरों से देखने का पैमाना यही घोषणाएं और वादे हुआ करते थे।

धीरे-धीरे वक़्त बदला जनता भी समझदार हुई है और पार्टियों के भविष्य की रूपरेखा  के वायदों की जगह वर्तमान और भूत के क्रियाक्लापों कार्यों को तोलने लगी है।  मैथमेटिक्स मॉडलिंग की भाषा में कहा जाए तो चुनाव बहुत ही टेढ़ी इकुएशन है इसमें इतने इनपुट वैरिएबल  हर पार्टी अपनी तरफ से डालती  है की क्या ऑउटपुट  आई और किस कारण से आई  सफलता मिलने पर यह  एक्सएक्टली पता कर पाना भी बहुत मुश्किल है।  इन  इनपुट वेरिएबलस में  एक दूसरे पर लांछन, जबाबदेही माँगना, जातिवाद के समीकरण सेट करना क्षेत्रवाद का तड़का घुसाना, बड़ी बड़ी लोकलुभावन घोषणा करना आदि शामिल हैं।

हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला को इसी चुनावी वर्ष में दूसरी राजधानी की सौगात दी जा रही है। इसके लिए कांगड़ा की ऐतिहासिकता धर्मशाला के ब्रांड नाम लोगों की सुविधा आदि इत्यादि कई प्रपंचों के साथ सदृढ़ रूप  से रखने की कोशिश की जा रही है।  इसी शोरगुल जैजैकार विरोध में यह शोध भी बनता है किसी प्रदेश को  दो राजधानिया जनहित में चाहिए होती हैं  है या राजनीतिक हित के लिए चाहिए होती हैं।  इसके लिए  डबल राजधानी कांसेप्ट के इतिहास में जाना होगा।

अंग्रेजों के समय दिल्ली के बाद शिमला को ब्रिटिश हकूमत की  ग्रीषम कालीन राजधानी का दर्जा प्राप्त था उसका कारण था की दिल्ली की गर्मी  लन्दन के गोरे बर्दाश्त नहीं कर पाते थे इसलिए शिमला जैसे ठन्डे स्थान पर समय काटने आते थे। लिहाजा जब सरकारी अधिकारी  यहाँ आ जाते थे तो कामकाज के आफिस भी यहीँ शिफ्ट हो जाते थे उसका जनहित से कोई लेना-देना नहीं था।

ऐसी ही डबल राजधानी का कॉन्सेप्ट जम्मू कश्मीर में आजादी के बाद रहा।  हिन्दू बहुल जम्मू अपने को उपेक्षित महसूस न करे इसलिए जम्मू को शीतकालीन राजधानी का दर्जा दिया गया।  इसका कितना फायदा जम्मू को हुआ यह जम्मू वालों से पूछा जाना चाहिए। डबल राजधानी की डिमांड हमारे पर्वतीय पडोसी उत्तराखंड में भी सुलगती है। उनका कहना है की वहां के एक पर्वतीय नगर गैरसैण को प्रदेश की मुख्य राजधानी बनाया जाए और देहरादून को सिर्फ शीतकालीन। इसके पीछे तर्क है कि  पहाड़ी प्रदेश की राजधानी मैदान में होने के कारण पहाड़ तरक्की की आहट से अछूता है।
यह तो डबल राजधानियों के  इतिहास  की बात थी, अब हम हिमाचल प्रदेश की तरफ रुख करते हैं। धर्मशाला के राजधानी बनने से आम जनजीवन हिमाचल  में क्या फर्क पड़ेगा यह हम सबको निष्पक्षता के साथ सोचना चाहिए। और इस परिपेक्ष में नहीं सोचना चाहिए की इसे कांग्रेस कर रही है या भाजपा कर रही है, बल्कि इस परिपेक्ष में समझना और जानना चाहिए कि यह हिमाचल प्रदेश के लिए हो रहा है तो इसका फायदा है या नुकसान। सही से, ईमानदारी से राजधानी स्थापित करनी हो तो अरबों रुपए के बजट की व्यव्यस्था करनी होगी इसलिए हर हिमाचली के मन में चाहे हो कांगड़ा घाटी से सबंध रखता हो चाहे मंडी से सबंध रखता हो उसके मन में यह विचार और जस्तिफिकेशन रहनी चाहिए की राजधानी बनने से क्या होगा। क्या अरबों का वह बजट आम जनता या प्रदेश के लिए डेल्टा एक्स इंप्रूवमेंट दे पाएगा या नहीं।
राजधानी आखिर है क्या बला? इसपर पहले बात करते हैं  मेरे अनुसार  राजधानी  “शासन और प्राशासन ” का मुख्यालय है। जहाँ से सरकार चलती है जहाँ हर विभाग के मंत्रीं संतरी बैठते हैं फैसले लेते हैं।  एक आम व्यक्ति के जीवन में राजधानी का कितना सरोकार है।  एक आम आदमी को राजधानी में क्यों जाना पड़  सकता है।  किसी मंत्रीं से मिलने के लिए।  किसी बड़े अधिकारी से मिलने के लिए।  इससे आगे तो मुझे कुछ नजर नहीँ आता की आम आदमी के कार्यों की उड़ान ऐसी हो की उसे महीने में तीन बार राजधानी जाना पड़ता हो।  मैं अपने  अनुसार  सोच रहा हूँ अपने गाँव के  लोगों के आधार पर अपने मित्रों के आधार पर गणना कर रहा हूँ  की मेरे जानने वाले लोग कितनी बार जीवन में शिमला इसलिए गए हैं की उन्हें एक राजधानी में काम था और वो राजधानी में ही होना था इसलिए आप भी सोचिये और विचार कीजिये।  की जनता को राजधानी में ऐसा क्या काम रहता है की राजधानी घर के पिछवाड़े में होनी चाहिए?
अब अगर मंत्रियों से मिलने में आसानी रहे मंत्रीं घर द्वार मिल जाएँ इसके लिए अरबों खर्च करके एक राजधानी बनाई जा रही हो तो इस खर्च को कोई भी विज़नरी शासक चुटकी में ऐसे बचा सकता है की यह सुनिश्चित करदे की हर मंत्री हर जिले के हेड  क्वार्टर में  दो महीने में  एक बार 2   दिन के लिए अपनी टीम के साथ बैठंगे और उस जिले की जनसमस्या  सुनेंगे।  प्रदेश का सौभाग्य है की यहाँ जनसंख्या कम और  जिले बारह है।  रोटेशन वाइज क्या ऐसा नहीं हो सकता की।  वनमंत्री 1-2   फरवरी को बिलासपुर में  बैठे हों  स्वास्थय मंत्रीं चम्बा में कहीं हों।  लोकनिर्माण विभाग मंत्रीं कांगड़ा में डटे हों आदि इत्यादि। और यह भी देखा जाए की शिमला सचिवालय में मंत्रीं मिल जाते हैं क्या आम  जनता को सुलभ रूप से? मॉडर्न टेक्नोलॉजी के दौर में मंत्रियों के बैठने के लिए राजधानी बनांने से अच्छा यह नही  है की किसी सरकारी वेबसाइट पर यह इनफार्मेशन हर दिन अपडेट हो अभी अगले तीन दिन बाद कौन मंत्रीं शिमला सचिवालय में कब से कब उपलब्ध होगा।  ताकि हम घर से देख ले चले की उपलब्ध है की नहीँ है।
अभी तो यह है की मंत्री जी शिमला में हैं की नहीँ है कब होंगे यह पता करना भी आम आदमी के बस में नहीं हैं।  आपको अपने इलाके से मंत्रीं जी की पार्टी का कोई जुगाड़ू कार्यकर्ता सेट करना पड़ेगा तब जाकर वो आपको बताएगा की मंत्रीं जी फलानि जगह उस टाइम होंगे।  सोचिये इक्कसवों सदी में सुचना इन्टरनेट स्मार्टफोन के युग में डेमोक्रेसी के दौर में हम यह   बिना सार्थक जुगाड़ के पता भी नहीँ कर सकते की मंत्रीं जी कहाँ हैं कब मिलेंगे।  मिलना कन्फर्म है की नहीं है। हाल ये है की किस्मत सही हो तो शिमला में मिल जाएंगे नहीं सही तो  वापिस आयो और अगली बार घर से निकलने से पहले  दरवाजे पर रखे पानी के कुम्भ में 1 रूपया का सिक्का डाल के दुबारा शिमला  चलो।
दूसरी बात सामने निकल कर आती है की  राजधानी में  विभिन्न विभागों के बड़े बड़े कार्यालय होते हैं  टॉप अधिकारी बैठते हैं। चलो एक विभाग की बात करते हैं मसलन IPH अब आप सोच के देखिये।    IPH विभाग में कभी जे ई , SDO और XEN से ऊपर   आम आदमी को काम पड़ा है ? सिर्फ इस स्तर तक के अधिकारी फील्ड में योजनायों के क्रियान्वन के लिए जनता से जुड़े  होते हैं।  इससे ऊपर भी चीफ इंजिनीयर तक जिला मुख्यालयों में बैठे हैं।  उससे ऊपर के जो अधिकारी हैं वो अपने अपने विभाग की पालिसी मेकिंग , बजट आदि इत्यादि देखते हैं।  अब पालिसी  शिमला से बन रही हो या धर्मशाला से या कहीं सिरमौर में कहीं बैठ के आम जनता को क्या फर्क पड़ता है ?  शिमला की जगह पॉलिसी बनांने वाले किसी ईमारत में आकर धर्मशाला में बैठ जाएंगे तो इसमें क्या जनहित हो जाएगा कांगड़ा चम्बा हमीरपुर बिलासपुर की जनता का क्या भला हो जाएगा ?
कहा जा रहा है की धर्मशाला ऐतिहासिक शहर है इसलिए राजधानी बनाया जा रहा है।  अब क्या  किसी शहर की ऐतिहासिकता राजधानी के तमगे की मोहताज रहती है ? इस हिसाब से तो दिल्ली की तरह हिन्दोस्तान की 50  राजधानियां होनी चाहियें ताकि बाकी शहरों की ऐतिहासिकता बरकरार रहे।
हिमाचल क्या चाहता है इस पर चिंतन जरुरी है।  क्या यह अरबों खर्च करके एक राजनीतिक राजधानी चाहता है  या बेरोजगारों की कतारों,  बद्दी में उद्योगपतियों के हाथों पिसते मिनिमम वेजिस सैलरी के लिए संघर्ष करती जवानियों के उद्धार के लिए रोडमैप चाहता है?  ऑक्सिजन सिलेंडर के अभाव में जिस प्रदेश में लोग काल का ग्रास बन जाते हैं,  जहाँ IGMC जैसे अस्पताल बिजली  जाने पर जेनरेटर से  सप्लाई चलाने में सक्षम सेल्फ सस्टेन नहीं हैं,  जहाँ  एक माँ बर्फ को चीर कर पांच घंटे पैदल चलकर  अपने बच्चे को  हॉस्पिटल में पहुंचाती है और जोनल जिले के सबसे बड़े अस्पताल (मंडी )  में तीन वेंटिलेटर होने पर भी उसे चलाने वाला कोई नहीं मिलता।
मां के अदम्‍य साहस के आगे पिघला बर्फ का पहाड़

जिस प्रदेश में कागजी यस नो में फंसे हेलिकॉप्टर के इन्तजार में लाहौल-स्पीति में हैलीपैड पर बच्चे का जन्म हो जाता है,  जिस प्रदेश में हर साल तारकोल पड़ने पर सड़कें फिर उखड जाती हैं,  असंख्य जलधाराओं वाले जिस प्रदेश में गर्मी में पेयजल के लिए सैंकड़ों गाँवो में  हाहाकार मच जाता है, शिक्षा व्ययस्था जहाँ धूल फांक रही हो; क्या वो प्रदेश यह सब छोड़ कर अरबों रूपए की एक नई राजधानी चाहता है? क्या वो प्रदेश यह सब छोड़ कर  एक नई राजधानी चाहता है, जिसको बसाने के लिए अरबों रुपये बहाये जाएँ?  क्या यह धन और जगह अन्य कार्यों में खर्च नहीं किया जा सकता?  पूरा कांगड़ा छोड़िये, धर्मशाला का ही एक आम आदमी राजधानी के तमगे से क्या पा लेगा, यह चिंतन हम सबको  जिला क्षेत्र  की मानसिकता से बाहर आकर  हिमाचल प्रदेश के वासियों  के रूप में  और हिमाचलीयत के भाव से  करना होगा।

(हिमाचल प्रदेश से संबंधित विषयों पर विचार रखने वाले लेखक IIT दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी सन्कृत एनर्जी के कंसल्टेंट भी हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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चंबा में बकरे का मीट बताकर बेच दिया भैंस के बच्चे का मांस

चंबा।। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की साहो घाटी में भैंस के चार माह के बच्चे का मांस बेचने का मामला सामने आया है। पुलिस ने मांस को जांच के लिए कब्जे में लेकर छानबीन शुरू कर दिया है। घटना को अंजाम देने वाले आरोपियों को हिरासत में लेने के बाद जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

हिंदी अखबार पंजाब केसरी की रिपोर्ट के मुताबिक एएसपी.चम्बा वीरेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि हनीफ पुत्र नूरमाही निवासी गांव चंदडेड के करीब चार माह के भैंस के बच्चे की पिछले दिनों मौत हो गई। उसने भैंसे के इस बच्चे के मांस को बेचने के लिए तिलक पुत्र धर्म चंद निवासी गांव कुठार के साथ मिलकर साजिश रची।

तिलक ने योजना के अनुसार मंगलवार को 50 से 150 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हिंदू समुदाय के लोगों को भैंसे के मांस को बकरे का मीट बता कर बेच दिया। कुछ लोगों ने मंगलवार शाम को अपने परिवार के साथ मिलकर इसका सेवन भी कर लिया। शेष बचे हुए मांस को साहो मुख्य बाजार में लाकर तिलक ने बुधवार को बेचने का प्रयास किया। बकरे के मीट को इतने कम मूल्य पर बेचने के साथ मीट के साथ लगे बालों को देखकर स्थानीय दुकानदार सुरिंद्र को कुछ आशंका हुई। उसने जब अन्य लोगों के साथ इस बारे में आशंका जताते हुए तिलक से सख्ती के साथ पूछताछ की तो सारी पोल खुल कर सामने आ गई।

(Source: Punjab Kesari)
(Source: Punjab Kesari)

साहो पंचायत प्रधान सत्या देवी सहित पंचायत के अन्य प्रतिनिधियों को इस बारे में सूचित किया गया। सूचना मिलने पर पंचायत प्रधान व अन्य पंचायत प्रतिनिधि मौके पर पहुंचे और उन्होंने मामले के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद पुलिस को सूचित किया। सूचना मिलते ही सदर थाना प्रभारी दिनेश धीमान ने पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच कर जांच प्रक्रिया को अमल में लाते हुए दोनों आरोपियों को पकड़ कर लोगों समक्ष पूछताछ की तो उन्होंने भैंस के 4 माह के बच्चे का मांस होने की बात कबूली।

आरोपियों की निशानदेही पर ही हनीफ के घर में भैंस के बच्चे की कटी हुई गर्दन व शरीर के कुछ अन्य अंग बरामद किए। इस भैंस के बच्चे को काटने के लिए इस्तेमाल में लाए गए उपकरणों को भी पुलिस ने कब्जे में ले लिया है। इस मौके पर कुछ लोगों ने अपने पास मौजूद उस मांस को भी पुलिस के पास जमा करवा दिया है जो उन्होंने मंगलवार को तिलक से खरीदा था। सी.एफ.एल. में जांच के लिए भेजा मांस पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की तथा दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद जमानती मुचलके पर रिहा कर दिया। पुलिस ने भैंस के बच्चे के करीब चार किलो मांस को अपने कब्जे में लेकर उसकी पशु चिकित्सक से जांच करवाई तो प्रथम दृष्टि में भैंस के बच्चे का मांस होने की पुष्टि हुई। उक्त चिकित्सक की उपस्थिति में मांस को सी.एफ.एल. में जांच के लिए भेजने हेतु उसे पैक किया गया।

सोनी टीवी के संकटमोचक महाबली हनुमान में हिमाचल की बेटी अनिता

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश का टैलंट आज विभिन्न क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करके न सिर्फ अपना, बल्कि अपने राज्य का भी नाम रोशन कर रहा है। इस कड़ी में एक और नाम जुड़ा है अनिता ठाकुर चोना का।

मंडी जिले के जोगिंदर नगर में जन्मीं अनिता ठाकुर चोना सोनी टीवी पर संकटमोचक महाबली हनुमान सीरियल में नजर आ रही हैं। महिरावण की बहन दुर्दुभी की भूमिका में अनिता काफी प्रभावी नजर आ रही हैं।

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दुर्दुभी की भूमिका में अनिता (Courtesy: Sony TV)

बल्ह जोली के डलाणा गांव में जन्मीं अनिता ने अपनी स्कूलिंग चंबा से की। इसके बाद उन्होंने केएमवी जालंधर से मास कम्यूनिकेशन की पढ़ाई की। कॉलेज के बाद उन्हें टीवी 24 न्यूज चैनल में काम किया। कुल्लू और जालंधर में कुछ रीजनल चैनल्स में भी काम किया। दरअसल उनके पिता कुल्लू में NHPC में काम करते थे, ऐसे में 2 साल वहीं पर स्थानीय चैनल में न्यूज ऐंकरिंग की।

अनिता ठाकुर चोना
अनिता ठाकुर चोना

हमेशा से बड़े ख्वाब देखने और उन्हें पाने के लिए कड़ी मेहनत करने वाली अनीता की शादी चंबा के मृदुल चोना से हुई। शादी के बाद वह पति के साथ मुंबई शिफ्ट हो गईं। यहां पर अनीत ने अपने टैलंट के हिसाब से संभावनाएं तलाशना शुरू कर दिया। इसी दौरान उन्हें संकटमोचन हनुमान सीरियल में ब्रेक मिला। वह सोनी टीवी पर आने वाले इस सीरियल में नजर आ रही हैं।

बचपन से टैलंटेड रही हैं अनिता
बचपन से टैलंटेड रही हैं अनिता

हमेशा से खेल, ऐक्टिंग और ड्रॉइंग में अव्वल रहने वालीं अनिता को हमेशा से परिवार का पूरा सहयोग मिला। अनिता के भाई अनिल ने इन हिमाचल से बातचीत करते हुए बताया कि छोटे से गांव से होने के बावजूद पैरंट्स ने हम भाई-बहनों को अच्छी शिक्षा दी और प्रोत्साहित किया।

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पिता संसार चंद ठाकुर और मीरा ठाकुर के साथ भाई अनिल ठाकुर को अनिता पर गर्व है। साथ ही इलाके के लोगों में भी खुशी है कि बेटी नाम रोशन कर रही है। महिरावण की बहन की भूमिका में अनिता के विडियो देखने के लिए यहां पर क्लिक करें

दुर्दुभी की भूमिका में अनिता
दुर्दुभी की भूमिका में अनिता

ये हैं 2016 के असली हीरो, जिन्हें हिमाचल कभी नहीं भुला सकता

साल के आखिर में हमने सबको याद कर लिया। कौन सी घटनाएं, कौन से गाने और कौन से लोग चर्चा में रहे। कहीं कुछ छूट तो नहीं गया?

साल के आखिर में जब हम सोचते हैं कि हमने इस साल क्या खोया, क्या पाया; तब दरअसल हम सिर्फ अपने बारे में सोच रहे होते हैं। मगर इससे बढ़कर भी कुछ है, जिसे याद किया जाना चाहिए। याद करना छोड़िए, हमें उसे कभी भूलना ही नहीं चाहिए। वह याद, वह स्मृति तो हमेशा दिल में रहनी चाहिए।

हम बात कर रहे हैं प्रदेश के उन वीर जवानों की, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। कुछ सीमा रेखा पर पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब देते हुए शहीद हुए, कुछ आतंकी हमलों के शिकार हुए, कुछ ने उत्तर-पूर्व के जंगलों में उग्रवादियों से जूझते हुए जान गंवाई तो कुछ ने नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहादत पाई।

हमारा हृदय उन परिवारों के लिए द्रवित है, जो इस साल का जश्न नहीं मना पाएंगे, क्योंकि उन्होंने अपनों को खोया है। बात सिर्फ सेना के जवानों या अर्धसैनिक बलों या पुलिसवालों की नहीं है, उन लोगों की भी है जिन्होंने परहित में जान गंवा दी। ऐसे भी मामले आज प्रदेश में देखने को मिले, जहां जंगल की आग बुझाने के चक्कर में लोग जल मरे। कुछ ने अन्य वाहनों को बचाने के चक्कर में बस ऐसे मोड़ी कि खुद हादसे के शिकार हो गए। कुछ तेज जलधारा में बह रहे लोगों को बचाने में बह गए।

ऐसी महान आत्माओं की लिस्ट नहीं बनाई जा सकती। क्योंकि हर किसी की खबर अखबार की सुर्खियों में नहीं आई। ऐसे में कुछ का नाम लिस्ट में लिखना और कुछ को छोड़ देना ठीक नहीं है। इसीलिए हमने शहीदों की लिस्ट बनाना उचित नहीं समझा। मगर देश के लिए सीमा पर जान गंवाने वालों के साथ-साथ हम उन सभी को भी सलाम करते हैं, जिन्होंने कुछ अच्छा करते हुए, अपनी ड्यूटी निभाते हुए कहीं भी जान गंवाई है। फिर वह किसी पुल के निर्माण कार्य में लगा मजदूर हो या लोगों को उनकी मंजिल पर पहुंचाने निकला ड्राइवर। हम उनके परिवारों से भी सहानुभूति रखते हैं।

हम कामना करते हैं कि नया वर्ष सभी के लिए सुरक्षित रहे। किसी परिवार को अपना कोई भी अकाल न खोना पड़े। और हम सब की भी कोशिश होनी चाहिए कि हम अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए चलें। प्रदेश और देश को आगे ले जाएं। नए साल की शुभकामनाएं।

जय हिंद।

पढ़े: हिमाचल प्रदेश के 10 लोग, जो साल 2016 में चर्चा में रहे

हिमाचल प्रदेश के 10 लोग, जो साल 2016 में चर्चा में रहे

इन हिमाचल डेस्क।। साल 2016 खट्टी-मीठी यादें देकर गुजरने वाला है। साल के खत्म होने पर हम लाए हैं 10 ऐसे हिमाचली लोगों की लिस्ट, जो किन्हीं वजहों से चर्चा में रहे। नंबर सिर्फ गिनती के लिए दिए गए हैं, इन्हें रैंकिंग न समझें। देखें:

1. बक्शो देवी
ऊना जिले की यह बेटी गाल ब्लैडर में स्टोन होने के बावजूद 5000 मीटर यानी 5 किलोमीटर की रेस दौड़ी और गोल्ड मेडल भी हासिल किया। वह नंगे पैर दौड़ी और दर्द होने की वजह से उसने पेट पकड़ा हुआ था। वैसे तो यह रेस 22 दिसंबर, 2015 को दौड़ी गई थी, मगर साल 2016 के शुरुआती महीनों में वह मीडिया में बनी रही। हिमाचल को ऐसी प्रतिभाओं से बहुत उम्मीदें हैं।

बक्शो देवी
बक्शो देवी

2. मनोज ठाकुर
हिमाचल प्रदेश पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल मनोज ठाकुर का एक विडियो वायरल हो गया, जिसमें वह हिंदुस्तान तो होगा, मगर पाकिस्तान नहीं होगा शीर्षक वाली कविता पढ़ रहे थे। वैसे तो यह कविता एक बाल साध्वी पढ़ चुकी थी पहले ही, मगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी बढ़ने के बीच मनोज की यह कविता सोशल मीडिया पर हिट हो गई। आलम यह रहा कि मनोज को पाकिस्तान से धमकियां आने लगीं। मगर मनोज टीवी चैनलों के स्टूडियों में जाकर अब कविताएं पढ़ते है और सेलिब्रिटी बन गए हैं।

मनोज ठाकुर
मनोज ठाकुर

3. अजय ठाकुर
हिमाचल के नालागढ़ में जन्मे अजय ठाकुर इंटरनैशनल कबड्डी खिलाड़ी हैं। वह 2016 कबड्डी वर्ल्ड कप फाइनल के स्टार प्लेयर रहे। भारत ने उनके शानदार प्रदर्शन की बदौलत वर्ल्ड कप 2016 जीतने में कामयाबी पाई।

अजय ठाकुर
अजय ठाकुर

4. एसपी सौम्या सांबशिवन
सिरमौर जिले की एसपी सौम्या सांबशिवन तेज-तर्रार पुलिस ऑफिसर हैं। सौम्या के नाम से ही अपराधी खौफ खाते हैं। दरअसल उन्होंने सिरमौर जिले माफियाओं की कमर तोड़कर रख दी है। फिर वे शराब माफिया हों, खनन माफिया या फिर ड्रग्स माफिया। इसके अलावा वह पुलिस थानों को कसकर रखने और पेचीदा मामलों को सुलझाने की वजह से भी मीडिया में बनी रहीं।

सौम्या सांबशिवन
सौम्या सांबशिवन

5. एसपी संजीव गांधी
कांगड़ा के एसपी संजीव गांधी ने कांगड़ा में फैले ड्रग्स के कारोबार की रीढ़ तोड़ दी है। ड्रग्स के कई कारोबारी, सप्लायर पकड़े गए। पंजाब से लगते इलाकों से होने वाली तस्करी पर भी लगाम कसने में उनकी कार्यशैली ने बड़ी भूमिका निभाई है। स्कूल-कॉलेजों तक पहुंच चुकी इस धंधे की जड़ों को कमजोर करने में वह काफी हद तक कामयाब रहे हैं और अभियान अभी भी जारी है।

संजीव गांधी।
संजीव गांधी।

6. एएसपी गौरव  सिंह
बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ में लंबे समय से अवैध खनन चल रहा है और इसे राजनेताओं की शह मिली हुई है। खनन माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने पर एएसपी गौरव सिंह का तबादला कर दिया गया था। उन्होंने एक ट्रक पर कार्रवाई की थी और 3 दिन बाद ट्रांसफर हो गया था, क्योंकि जिस ट्रक का चालान किया गया, वह दून के विधायक राम कुमार की पत्नी कुलदीप कौर का था। विधायक पहले भी 3 बार ट्रांसफर का डीओ दे चुके थे। हालांकि बाद में मामला सोशल मीडिया पर उठा और गौरव सिंह हीरो बन गए। हाई कोर्ट ने भी सरकार से तबादले को लेकर जवाब तलब किया था।

गौरव सिंह
गौरव सिंह

7. ऋषि धवन
हिमाचल प्रदेश के क्रिकेट ऋषि धवन आईपीएस में तो लंबे समय से खेल रहे हैं, मगर इस साल उन्हें टीम इंडिया की तरफ से खेलने का मौका मिला। ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुने गए धवन ने अपना पहलाल वनडे इंटरनैशनल मैच 17 जनवरी को मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला।

ऋषि धवन
ऋषि धवन

8.  कंगना रणौत
फिल्मों और ऐक्टिंक के बजाय इस साल कंगना रणौत एक गलत वजह से चर्चा में रहीं। ऋतिक रोशन को दिया उनका एक बयान बवाल खड़ा कर गया। उन्होंने ऋतिक को अपना एक्स क्या बताया, मामला तूल पकड़ गया। ऋतिक ने इसका खंडन किया और अब दोनों के बीच कानूनी खींचतान जारी है। इस बीच कंगना के एक्स बॉयफ्रेंड अध्ययन का इंटरव्यू सामने आया, जिसमें कंगना पर काला जादू करने का आरोप लगाया गया था।
kangna

9. अनुराग ठाकुर
इस साल अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के प्रेजिडेंट बने। इसके अलावा वह धर्मशाला में पाकिस्तान के साथ मैच करवाने को लेकर भी चर्चा में रहे। वह मैच धर्मशाला में करवाना चाहते थे, लेकिन हिमाचल में पूर्व सैनिकों और शहीदों के परिजनों के विरोध का सामना करना पड़ा। कांग्रेस सरकार ने भी सुरक्षा देने से हाथ खड़े कर दिए, जिससे इस मैच को कोलकाता शिफ्ट करना पड़ा था। साल के आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग ठाकुर को सख्त लहजे मे ंकहा कि अगर लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के मामले में आपने झूठ बोला होगा तो जेल जाना होगा।
अनुराग ठाकुर

अनुराग ठाकुर

10. नीरज भारती
सीपीएस एजुकेशन और ज्वाली से विधायक नीरज भारती इस साल भी फेसबुक पर अभद्र भाषा इस्तेमाल करने के मामले में चर्चित रहे। इसके अलावा उन्होंने अपनी ही पार्टी की सरकार में सीनियर मत्री पर व्यक्तिगत हमलों का सिलसिला भी शुरू किया, जिसमें पार्टी के अन्य नेताओं को दखल देना पड़ा। यह सिलसिला अब भी बरकरार है।

नीरज भारती
नीरज भारती

यहां क्लिक करके देखें साल 2016 के टॉप-5 हिमाचली म्यूजिक विडियो

इनकम टैक्स मामले में वीरभद्र सिंह, प्रतिभा और विक्रमादित्य को हाई कोर्ट का झटका

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमत्री वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य को हाई कोर्ट से झटका मिला है। तीनों ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के उन आदेशों की चुनौती दी थी, जिनके तहत उनके द्वारा फाइल किए गए इनकम टैक्स रिटर्न का दोबारा असेसमेंट होना है। हाई कोर्ट ने तीनों की अलग-अलग याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है।

हिंदी अखबार अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर की बेंच ने मामले से जुड़े रेकॉर्ड देखने के बाद कहा कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के कमिश्नर के आदेश कानूनी रूप से सही हैं और इनमें किसी तरह का फेरबदल करना सही नहीं होगा। इस मामले में कानूनी प्रक्रिया में कोई खामी नहीं पाई गई है। कोर्ट ने कहा कि आप अपने मामले को उसी सक्षम के सामने उठा सकते हैं, जिसके पास आपके खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है।

वीरभद्र सिंह
वीरभद्र सिंह

दरअसल फाइनैंशल इयर 2012-2013 में वीरभद्र सिंह, प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह ने अपनी कुल इनकम का ब्योरा इनकमटैक्स डिपार्टमेंट को देते हुए रिटर्न फाइल किया। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने इस रिटर्न में खामियां पाईं और इसे रिजेक्ट करते हुए तीनों को कारण बताओ नोटिस जारी किया। 24 नवंबर, 2016 को इनकम टैक्स कमिश्नर ने रिटर्न का दोबारा असेसमेंट करने के आदेशों के खिलाफ वीरभद्र, प्रतिभा और विक्रमादित्य द्वारा दायर आपत्तियों को खारिज कर दिया। इसके बाद तीनों ने हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिकाओं के जरिए इस आदेश को चुनौती दी थी।

हंसराज रघुवंशी की आवाज में हिमाचली गाना- अम्मा जी, मा नी जाणा सौरेयां दे देश

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल में टैलंट की कोई कमी नहीं है। अच्छी बात यह है कि अब यह टैलंट उभरकर सामने आ रहा है। म्यूजिक की बात करें तो अब कई सारे नए कलाकार आगे आए हैं। इसी कड़ी में अब हिमाचल का एक और हीरा चमकता हुआ नजर आ रहा है। नाम है- हंसराज रघुवंशी। (गाना आखिर में है)

इस नवोदित कलाकार का गाना लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। यूट्यूब पर हाल ही में रिलीज हुए इस हिमाचली गीत का न सिर्फ संगीत अच्छा है बल्कि लीरिक्स, गायन और फिल्मांकन भी शानदार है। गाने का नाम है- अम्मा। जय बालाजी म्यूजिक की ओर से रिलीज इस गाने को आवाज दी है हंसराज रघुवंशी ने।

इस गाने में एक बेटी अपनी मां से कह रही है कि उसका ससुराल जाने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा। दरअसल यह दिखाता है कि बेटियों के लिए शादी के बाद मायका छोड़कर ससुराल जाना कितना मुश्किल होता है। एक ओर वो अपने पिया के यहां जा बसने को लेकर उत्साहित होती है मगर मां-बाप, भाई-बहन, मकान- सबको छोड़कर जाने का सोचकर ही उसका दिल भारी हो जाता है।

बेटियों के इसी दर्द को हंसराज की आवाज ने बहुत खूबसूरती से इस गाने में पिरो दिया है। हंसराज की आवाज और अंदाज हिमाचल के स्थापित गायकों से अलग है और ताजगी भरा एहसास देती है।

म्यूज़िक परमजीत पम्मी का है जबकि गाने के बोल हंसराज ने ही लिखे हैं। इससे संकेत मिलते हैं कि हिमाचल प्रदेश को एक नई प्रतिभा मिली है जो बहुत आगे तक जाने की क्षमता रखती है। बहरहाल, यह गाना लोगों को कितना भाता है यह आने वाले कुछ दिनों में पता चलेगा। आप गाना सुनें और बताएं, कैसा लगा।

ऐसे जानें, हिमाचल के विधायक विधानसभा में क्या करते हैं, क्या बोलते हैं

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इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन का प्रश्नकाल शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया। जिस दौरान जनता से जुड़े सवाल और मुद्दे उठाए जाने थे, वह वक्त आया ही नहीं। अक्सर यही होता आया है हिमाचल प्रदेश विधानसभा में। सरकार किसी की भी हो, विपक्ष अक्सर बायकॉट करता नजर आता है। कभी इस मुद्दे पर तो कभी उस मुद्दे पर। अंदर क्या होता है, इसका सही विवरण कभी भी अखबारों के जरिए सामने नहीं आता। ऐसा इसलिए, क्योंकि हर संवाददाता एवं हर संस्थान के संपादकों आदि का अपना राजनीतिक रुझान होता है। ऐसे में बहुत कम ऐसा हो पाता है कि कोई तटस्थ रिपोर्टिंग करे। इसीलिए एक अखबार की रिपोर्ट से लगता है कि कार्यवाही सत्ता पक्ष की वजह से नहीं चल सकी तो दूसरे अखबार से लगता है कि विपक्ष ने व्यवधान डाला।

कोई क्यों हंगामा कर रहा है, किस बात को लेकर वॉकआउट कर रहा है, जनता को यह जानना जरूरी है। मगर सदन में होता कुछ है और बाहर आकर नेता बयानबाजी कुछ और करते हैं और ज्यादातर अखबार असल मुद्दे को उठाए बिना उन बयानों को प्राथमिकता दे देते हैं। ऐसे में जनता को कैसे पता चले कि विधानसभा की कार्यवाही के दौरान क्या हुआ, किसने क्या कहा। वैसे तो व्यवस्था यह होनी चाहिए कि जिस तरह से लोकसभा एवं राज्यसभा की कार्यवाही लाइव दिखाई जाती है, उसी तरह विधानसभा की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण सभी मंचों पर हो। लाइव स्ट्रीमिंग और इंटरनेट का दौर है। यूट्यूब स्ट्रीमिंग या फिर फेसबुक लाइव के जरिए भी यह काम किया जा सकता है ऑफिशल चैनल या पेज बनाकर। इससे जनता देख सकेगी कि उनके प्रतिनिधि, उनके चुने विधायक अंदर कर क्या कर रहे हैं। कैसा आचरण है उनका अंदर और कैसे वे बात करते हैं।

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यह व्यवस्था न जाने कब होगी, मगर तब तक एक वैकल्पिक तरीका अपनाया जा सकता है। दरअसल हिमाचल प्रदेश विधानसभा की वेबसाइट पर नोटिस में जाकर आप देख सकते हैं शाम को कि दिन में क्या कार्यवाही हुई। दरअसल कार्यवाही के दौरान जो कोई सदस्य कुछ भी कहता है, उसे रेकॉर्ड कर लिया जाता है, लिख लिया जाता है। इसी को प्रकाशित किया जाता है। इसमें से कुछ अंश (जिन्हे असंसदीय शब्द कहा जाता है, जैसे कि अपमानजनक शब्द या गालियां इत्यादि) हटा दिए गए होते हैं, मगर आपको आइडिया तो लग ही सकता है कि अंदर क्या बात हुई और किसने क्या बात की। याद रखें, इसके लिए आप http://hpvidhansabha.nic.in/Notice पर जाएंगे और यहां पर आफको Brief of Proceedings नाम से पीडीएफ या वर्ड फाइल मिलेगी। यह कार्यवाही का संक्षिप्त ब्योरा है एक समाचार के तौर पर। मगर आप वेबसाइट पर Notice टैब में स्क्रॉल में Brief of Proceedings के आगे Unedited लिखा देखेंगे। इसे खोलकर आप दिनांक के हिसाब से देख सकेंगे कि कार्यवाही के दौरान किसने क्या कहा। इसमे सुधार नहीं किए गए होते और एडिट भी नहीं होती, इसलिए इसे प्रकाशन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता। मगर यह जनता के लिए बहुत उपयोगी है। आज की कार्यवाही की अनएडिटेड फाइल को नीचे दे रहे हैं। आप पेज आगे बढ़ाकर देख सकते हैं कि किसने क्या कहा, कब कार्यवाही स्थगित की गई।

[pdf-embedder url=”https://inhimachal.in/wp-content/uploads/2016/12/VBS.pdf” title=”विधानसभा की कार्यवाही”]

 

सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के आरोप में घिरे अनुराग ठाकुर, जाना पड़ सकता है जेल

इन हिमाचल डेस्क।। लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करने में आनाकानी कर रही बीसीसीआई को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर बीसीसीआई चीफ अनुराग ठाकुर पर लगे हलफनामे में झूठ बोलने के आरोप साबित हो जाते है तो इसके लिए उन्हें जेल भी जना पड़ सकता है।

दरअसल एमिकस क्यूरी ने अनुराग ठाकुर द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल ऐफिडेविट यानी हलफनामे को गुमराह करने वाला करार दिया है। एमिकस क्यूरी ने बीसीसीआई के वरिष्ठ अधिकारियों को पद से हटाए जाने की वकालत की। सुप्रीम कोर्ट ने एमिकस क्यूरी से पूछा कि क्या अनुराग ठाकुर ने कोर्ट के सामने झूठे तथ्य रखे? इस पर एमिकस क्यूरी ने कोर्ट को बताया कि बीसीसीआई प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में झूठ कहा था। उन्होंने कहा था कि बीसीसीआई चेयरमैन के रूप में शशांक मनोहर से विचार लिया था। अनुराग ठाकुर ने सुधारों की प्रक्रिया में बाधा पहुंचाई।

बीसीसीआई चीफ अनुराग ठाकुर
बीसीसीआई चीफ अनुराग ठाकुर

न्याय सलाहकार (अमिकस क्यूरी) गोपाल सुब्रह्मण्यम ने अनुराग के वकील कपिल सिब्बल से कहा कि आप न्यायालय को गुमराह करना चाहते हैं। इसके बाद कोर्ट ने पूछा कि आपका इरादा क्या है और अपना रुख साफ करें। जब एक बार उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुना दिया है, तो आप आईसीसी के पास न्यायिक हस्ताक्षेप के जुड़े सुझावों के लिए आईसीसी के पास क्यों गए।

कोर्ट ने कहा कि अगर आप झूठी बात कहने के आरोपों से बचना चाहते हैं, तो आपको माफी मांगनी चाहिए। आप कोर्ट की सुनवाई में बाधा डाल रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी आपको कोर्ट के फैसले से असहमत होने का अधिकार देती है, उसको लागू होने से रोकने का अधिकार आपके पास नहीं है। उन्होंनी बीसीसीआई के वकील कबिल सिब्बल से दो टूक शब्दों में कहा, आपके क्लाइंट (अनुराग ठाकुर) को जेल चले जाना चाहिए।

चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि बीसीसीआई प्रमुख अनुराग ठाकुर पर कोर्ट की अवमानना का केस चलाया जा सकता है और इसके लिए अनुराग ठाकुर जेल भी जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि अनुराग ठाकुर समेत बीसीसीआई के उच्चाधिकारियों को हटाकर लोढ़ा कमिटी के सुझावों पर अमल करते हुए एक वर्किंग पैनल लाया जा सकता है। इस मामले में फैसला 2 या 3 जनवरी को सुनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग को हलफनामे से जुड़े वे पेपर देने के लिए एक हफ्ते का टाइम दिया है, जो डॉक्युमेंट्स में शामिल न हों।

क्या था बिल्ली, पत्थरों, बच्चों और ढोल-नगाड़ों के पीछे का रहस्य?

DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

  • अक्षय वर्मा

‘मेरा नाम अक्षय है और मैं शिमला से हूं और चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी से बी.कॉम कर रहा हूं। ये घटना मेरे पापा के साथ गांव में हुई थी, जिनका नाम राजेंद्र सिंह वर्मा है। वह सरकारी स्कूल में फिजिकल एजुकेशन के लेक्चरर हैं। यह बात 2011 की है। उन दिनों पापा गांव में थे,  ठियोग में है। नाहोल नाम के गांव में हम अपना नया मकान बनवा रहे थे। मिस्त्री लगे हुए थे और रेता खत्म हो गया। अगर हम शिमला से बाहर से मंगवाते तो 2-3 दिन लग जाते। पापा ने स्कूल से कैजुअल लीव ली हुई थी तो बाद में और छुट्टियां भी नहीं होती। तो तय किया गया कि पास में बहने वाली नदी ‘गिरी गंगा’ का रेता ले आते हैं सिर्फ चिनाई के लिए औऱ प्लास्टर करवाने के लिए बाहर से मंगवा लेंगे।

तो पापा दोपहर में नदी किनारे उश आदमी के पास गए, जिसने रेत-बजरी निकालने का ठेका लिया हुआ था। उससे बातचीत में शाम हो गई और वह वापस आने लगे। बीच में एक गांव आता है- Aloti. जब पापा वहां पहुंचे तो करीब 10 बज गए थे। अंधेरा बहुत था। उन्होंने पेड़ की टहनी तोड़कर एक डंडा बना लिया और साथ में भेड़ की ऊन की बनी लोइ (लोइय़ा) को ओढ़ रखा था। गांव के आदमी ने उन्हें पहचाना और आवाज लगाई कि वर्मा जी रात को कहां जा रहे हो, रुक जाओ आज यहीं। पापा ने कहा कि नहीं, आराम से पहुंच जाऊंगा। मगर आदमी पापा के बचपन का दोस्त था, साथ स्कूल में पढ़े थे। जबरदस्ती ले जाने लगा कि यार इतने दिनों बाद यहां आ रहा है, यहीं रुक जा। मगर पापा नहीं माने और चल दिए वहां से।

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सांकेतिक तस्वीर।

रास्ते में ही रात से करीब सवा 11 हो गए थे। गांव से बाहर निकल गए थे सुनसान इलाके में। चारों तरफ सन्ना, हल्की सी चांदनी के सहारे बढ़ रहे थे। कुछ देर आए गए कि उन्हें लगा कि कोई बिल्ली गुजरी उनके पैरों के पास से। उन्होंने सोचा कि ठीक है, गुजरी होगी। थोड़ा आगे गए तो वही बिल्ली कभी उनके आगे दौड़े, कभी दाएं से बाएं रास्ता काटे तो कभी बाएं से दाएं। कभी वह पीछे हो तो कभी टांगों के बीच से दौड़ लगाए। वह परेशान कि हो क्या रहा है। खैर, थोड़ा आगे बढ़े तो उन्हें लगा कि कोई झाड़ी से पत्थर फेंक रहा है उनकी तरफ। पत्थर शियूंsss की आवाज करके कान के आसपास से गुजरें, मगर नजर न आए कुछ भी। वह परेशान कि कहीं कोई पत्थर न लग जाए। मगर उन्हें ये भी लगा कि हो सकता है चमगादड़ वगैरह उड रहे हों अंधेरे में तेजी से।

वह और आगे बढ़े तो उन्हें एक खंडहर दिखाई दिया, जो पिछले कई सालों से वहीं पर है। कभी कोई घर रहा होगा, जो ऐसे ही ढह चुका है और वहां कोई नहीं रहता। मगर वहां से बच्चों के रोने की आवाज आ रही थी। इस मौके पर पापा को अहसास हुआ कि कुछ तो गलत हो रहा है। मगर पापा शुरू से थोड़ा हिम्मती और रौनकी इंसान रहे हैं। घबराहट तो हुई होगी, मगर उसे खुद पर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने जोर से कहा- जब बच्चे पालने नहीं आते तो पैद क्यों करते हो, चुप करवाओ इसे। ये बोलते हुए वह आगे बढ़ते रहे। जैसे ही वह उस घर के करीब पहुंचे, अंदर से ढोल-नगाड़ों की आवाज आने लग गई। पापा फिर से बोले, ‘शाबाश, और जोर से बजाओ, सुर ताल के साथ में।’ ऐसा कहते हुए वहां से बढ़ गए, मानो इन सब बातों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा।

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सांकेतिक तस्वीर।

वह आगे बढ़ते गए तो आवाज मानो उन्हें फॉलो कर रही हो। मगर जैसे ही वह गांव के पास पहुंचे, जहां से गांव की सीमा शुरू होती है। वहं पर एक टैंक है पानी का बड़ा सा। वहां से वे आवाजें सुनाई देना बंद हो गईं। अब तक बीच-बीच में जो पत्थर फेंकने की आवाजें, बीच में बिल्ली का दिखना चालू था, मगर वह भी बंद हो गया।

रेत रात वो घर पहुंचे, जहां हमारी डोगरी है। वहां ताऊ रहते है। काफी रात हो गई थी, तो उन्होंने अपने बड़े भाई के पास जाना ठीक समझा। उन्होंने रात को दरवाजा खटखटाया तो ताऊ औऱ ताई जी बाहर आए कि कौन आया है। पापा को देखकर वह हैरान कि इतनी रात को कहां से आ रहा है। तब पापा ने उन्हें बताया कि अब तक क्या-क्या हुआ। यह सुनकर ताऊ जी ने कहा कि तेरे साथ छल हुआ है। तुझे डराया जा रहा था। औऱ तू बेवकूफ है जो तू उनसे ही बातें करने लग गया। यह तो कुलदेवी “JAI ISHWARI MAA TIYALI” की कृपा रही कि तेरी रक्षा की उन्होंने। अगर तू डर जाता तो तेरे अंदर कोई साया बैठ सकता था। फिर तू या तो पागल हो जाता या फिर अपनी जान से जाता।

हमारे यहं देवी-देवताओं का बहुत मान है। तब ताई जी ने अंदर से आटा लाया औऱ पापा के सिर के ऊफर से घुमाते हुे देवी का नाम लिया और उन्हें फूंक मारने को कहा, ताकि जो हुआ उसे भूल जाए, किसी तरह का डर वगैरह मन में न बैठे। साथ में देवी के लिए पैसे भी अलग रखवा लिए। यह कामना की गई कि दोबारा ऐसा न हो।’

हॉरर एनकाउंटर सीरीज में अन्य लोगों की आपबीती पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(अक्षय वर्मा, जो कि ठियोग से हैं, ने हमें फेसबुक पेज पर यह आपबीती भेजी है।)