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Monday, September 15, 2025
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हिम्मत और प्रतिभा की धनी हिमाचल के सिरमौर की बेटी सुशीला ठाकुर

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, नाहन।। आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं जो पूरे समाज के लिए मिसाल हैं। यह हैं हरिपुरधार के गैहल से संबंध रखने वालीं सुशीला ठाकुर जो टीचर भी हैं और सफल ट्रांसपोर्टर भी।

सुशीला के पति सुरजन ठाकुर ने दस बसों से मीनू कोच का परिचालन किया था, मगर दुर्भाग्य से साल 2003 में एक कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया। सुशीला ठाकुर ने न सिर्फ परिवार को संभावा बल्कि पति के कारोबार को भी बढ़ाया। आज मीनू कोच की बसों का बेड़ा 22 तक पहुंच गया है। मीनू कोच बस सेवा आज प्रदेश के कई हिस्सों में चल रही है।

सुशीला ठाकुर (Image: MBM News Network)
सुशीला ठाकुर (Image: MBM News Network)

सुशीला लगभग 40 स्टाफ की जिम्मेदारी संभालती हैं और वह भी अध्यापन कार्य के साथ। तीन बच्चों की परवरिश भी बखूबी कर रही हैं। एक बेटी बायोटेक की पढ़ाई कर रही दूसरी इंग्लिश ऑनर्स। बेटा प्लस टू में है। उनका पूरा परिवार शिमला सेटल है।

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एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क से बातचीत करते हुए सुशील ने बताया कि पति के व्यवसाय को संभालना के चुनौती भरा काम था मर स्टाफ की मदद से इसमें कामयाबी मिली। सुशीला का कहना है कि उनकी बसों से यात्रियों को अच्छी सेवा मिले, इसकी हर संभव कोशिश की जाती है।

सुशीला मिसाल हैं कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करके आगे बढ़ा जा सकता है। जीवन में आने वाली कठिनाइयों और झटकों से उबरकर दृढ़ निश्चय से ही आगे बढ़ा जा सकता है। सुशीला तमाम महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। उनसे सीखने को मिलता है कि महिलाएं किसी भी काम को बखूबी कर सकती हैं और कामयाबी के साथ कर सकती हैं।

रियासत कालीन बिलासपुर की रुला देने वाली सत्य गाथा है ‘मोहणा’

आशीष नड्डा।। हिमाचल प्रदेश के बहुत से लोकगीत सत्य घटनाओं पर आधारित हैं। भारत की अच्छी बात यह है कि संवेदना को छूने वाले हर घटनाक्रम को लोकगीतों मे जगह देकर संजोया गया ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान सकें। रियासतकालीन बिलासपुर की ऐसी ही एक कथा है “मोहणा।”

मोहणा केहलूर रियासत के किसी गाँव का एक भोला भाला लड़का था। उसका भाई तुलसी राजा के यहाँ नौकर था। तुलसी ने किसी का खून कर दिया। और मोहणा को इस बात के लिए राजी कर लिया कि परिवार की जिम्मेदारी उसके ऊपर है ।खेती बाड़ी भी वही देखता है इसलिए खून का इलज़ाम तुम अपने ऊपर ले लो। मैं राजा के यहाँ नौकर हूँ राजा से बात करके बाद में तुम्हे बचा लूंगा।

मोहणा भाई की बातों में आ गया और खून का इलज़ाम अपने सर ले लिया। मोहणा को राजा के सामने पेश किया गया। उस समय केहलूर यानी बिलासपुर रियासत का राज बिजई चन्द चन्देल के पास था। मोहन के भोलपन को भांपकर राजा को लगा की मोहणा किसी की जान नहीं ले सकता इसने कत्ल नहीं किया है। राजा के बार बार सचाई पूछने पर भी जब मोहणा ने जुबान नहीं खोली तब राजा ने उसे कुछ दिन का समय सोचने के लिए दिया।

निश्चित दिन मोहणा से जब पूछा गया तब भी मोहणा ने सच नहीँ बताया। अंत में बहादुरपुर के किले में गर्मियों के लिए गए राजा बिजाई चंद चंदेल ने वहीँ से 1922 में मोहणा को सरे आम साडू के मैदान में फान्सी देने का हुक्म दे दिया। फांसी से पिछली रात एक सिपाही के बार बार पूछने पर मोहणा ने रहस्य बताया। जो बाद में रियासत में फैला तब तक मोहणा फांसी पर लटक चुका था।

बिलासपुर के लोकगीतों में मोहणा को बहुत जगह मिली और लोकगीतों में मोहणा के बलिदान को गाया जाने लगा। इस वीडयो में मोहणा की इस कहानी को पहाड़ी पहाड़ी लोक गायक स्वर्गीय हेत राम तंवर जी ने अपनी आवाज दी है। अन्य गायकों ने भी इस गीत को गाया है। साथ ही इसपर नाटक भी होते हैं। हेत राम तंवर जी की आवाज सीधे दिल में उतरकर उदास कर देती है। नीचे सुनें:

मोहणा की कहानी पर नाटक भी होते हैं। यूट्यूब पर हमें कुछ अंश मिले, जिन्हें आप नीचे देख सकते हैं:

जब मुझे ‘मरी हुई लड़की’ से पूछने को कहा गया कि आपकी मौत कैसे हुई थी

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सुमित ठाकुर।। बात उन दिनों की है, जब मैं +2 करने के बाद कोचिंग लेने के लिए हमीरपुर गया था। उन दिनों चलन ऐसा था कि +2 करने के बाद प्रदेश के ज्यादातर जगहों के बच्चे इंजिनियर या डॉक्टर बनने का ख्वाब लिए इसी शहर का रुख करते थे, क्योंकि कोचिंग के लिए यह मशहूर था। नॉन-मेडिकल का स्टूडेंट रहा था, घरवालों के पास पैसे उतने नहीं थे तो चंडीगढ़ के बजाय हमीरपुर भेज दिया।

खैर, मैं कांगड़ा की ठंडी वादियों का रहने वाला और कहां हमीरपुर का गर्म वातावरण। इन्हीं दिनों कोचिंग हुआ करती थी और गर्मी में दिमाग खराब रहा करता था। बाकी लोग होस्टल में रहा करते थे, मैंने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर अणु (हमीरपुर के बाहर एक गांव) में क्वार्टर ले लिया रहने को। दिन भर हम कोचिंग करते और फिर घर पर आकर दोहराते कि दिन में क्या पढ़ा। सारा कुछ सिर के ऊपर से जाता था। बस अगले मॉक टेस्ट की तैयारी में वक्त बीतता रहता था। गर्मी होने की वजह से रात को खिड़कियां और दरवाजा खुला रखा करता था।

हमीरपुर में अणु ग्राउंड के पास नीचे एक नाला है, उसी के बगल में हम लोगों ने क्वार्टर लिया हुआ था। मकान मालिक अलग बिल्डिंग में हीरानगर में रहता था, इस पुराने घर को उसने किराए पर लगा दिया था। मेरी ही तरह 4 और लड़के वहं रहते थे और सभी कोचिंग ले रहे थे। 2 मेरे परिचित थे और 2 से जान पहचान नहीं थी। सबके लिए अलग कमरे थे। मेरा कमरा सबसे आखिर में था, जिसके बाद नीचे घना नाला शुरू हो जाता था। सच बताऊं तो मैं इस वक्त लिखते वक्त भी कांप रहा हूं। रह-रहकर कंधों के पीछे झुरझुरी हो रही है इसे लिखते हुए। खैर, एक रात मैं बैठा हुआ था कुछ तैयारी करने। रात के 1 बज रहे होंगे। मैंने देखा कि बाहर से कोई गुजरा। मैने सोचा बगल के कमरे वाले लड़के टहल रहे होंगे कि क्योंकि रात भर जागना आम था। बड़ा दरवाजा खुला था और सिर्फ जाली वाला दरवाजा लगा हुआ था। बाहर की लाइट बंद थी, बस मेरे कमरे की लाइट ही बाहर तक दिख रही थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। बाहर देखने में एक आकृति सी नजर आई जो एक लड़की की तरह थी। मैं थोड़ा चौंका तो जरूर, मगर बोला कि कौन। मैंने ध्यान नहीं दिया और सोचा कि बगल वाला लड़का ही होगा और कम रोशनी की वजह से लड़की की तरह दिख रहा है। मैं फिर से किताब में डूबा और बोला कि आ जाओ, दरवाजा खुला है। दरवाजा खुला और कनखियों से मुझे दिखा कि कोई अंदर आकर खड़ा हो गया। मैंने देखा कि एक 16-17 साल की लड़की खड़ी है मुस्कुराते हुए। मैं हैरान और अचंभित।

मैंने कहा कि जी, बताइए। वो मुस्कुराते हुए बोली- सॉरी, इतनी रात को आपको डिस्टर्ब करने के लिए। आप **** कोचिंग सेंटर से ही कोचिंग ले रहे हो न? मैंने कहा- जी हां। वह बोली- मैं भी वहीं से कोचिंग ले रही हूं। मैं शाम वाले बैच में हूं। आपको देखा था कोचिंग में और फिर शाम को यहीं आते देखा। मैं भी दरअसल बगल में रहती हूं और कोचिंग कर रही हूं। मैंने सोचा कि आसपास ही कहीं रहती होगी। मन में कोई और बात आई नहीं, फिर भी पूछा कि इतनी रात को आप यहं कैसे? वह बोली- बात ऐसी है कि कल हमारा मॉक टेस्ट है और मेरे पास किताब नहीं है ऑब्जेक्टिव फिजिक्स की। मैंने सोचा कि थोड़ा रिविज़न कर लूं, मगर…। ऐक्चुअली आपसे क्या छिपाना कि मैंने आपके पास वो किताब देखी थी। मेरे मन में कुछ और नहीं सूझा तो मैं रात को ही आपके पास चली आई। मेरी मम्मी-पापा को बड़ी उम्मीदें हैं उनसे। किताब नहीं खरीद सकते वो तो बोल नहीं सकती। तो आप हेल्प कर देंगे तो बहुत मेहरबानी होगी।

मेरा भी अगले दिन फिजिक्स का ही टेस्ट था। मगर लड़की ने जितनी मासूमियत से बात कही, मैंने सोचा कि दे देता हूं किताब। फिर भी मैंने कहा- देखिेए किताब तो मैं दे दूंगा, मगर मैं आपको जानता नहीं। ऊपर से महंगी किताब है और मैंने भी किसी तरह से बड़ी मुश्किल से खरीदी है। इसपर लड़की बोली- अरे आप परेशान मत हो, मैं 2 दिन बाद आपको किताब दे दूंगी। इसी वक्त आकर दूंगी। तब तक शायद आपको फिजिक्स का कोई टेस्ट भी नहीं होगा। मेरा नाम ममता (नाम बदल रहा हूं) है और मैं शाम वाले बैच हू्ं। बीच में किताब चाहिए होगी तो शाम को ले लेना आप आकर। मैंने सोचा कि बात ठीक है। मेरा कल का ही टेस्ट है और उसकी तैयारी लगभग हो गई है और कुछ देर में सोना है। फिर इस किताब की जररूत हफ्ता भर तो पड़ेगी नहीं। मैंने उस लड़की को किताब दे दी और कहा कि वक्त पर लौटा देना।

पता नहीं मैंने क्यों और कैसे वो किताब दे दी। शायद मैं नींद में था या शायद वो लड़की थी, इसलिए पिघल गया। मगर मैंने किताब दे दी। किताब लेते ही वह मुस्कुराई और मुड़कर चली गई। वैसे ही जैसे आई थी। मैं बैठकर उसे जाते हुए देखता रहा। उसके जाने के बाद मैं आराम से सो गया। अगले दिन मॉक टेस्ट के बाद अपने साथ रहने वाले लड़कों को मैंने रात का किस्सा सुनाया। वे हंसने लगे कि साला लड़की के चक्कर में किताब दे गया, अब नहीं मिलने वाली किताब। पता नहीं कौन ले गई इससे किताब। मैं परेशान हो गया। मन में शंका हुई कि कहीं वाकई किताब हाथ से चली तो नहीं गई। मैंने सोचा कि दिल की तसल्ली के लिए थोड़ा रुककर देख लूं कि ममता आ रही है आज शाम के बैच में नहीं। मैं रुका रहा और देखता रहा कि कौन-कौन शाम के बैच में आया है। हर बैच में जाकर देख आया, मगर ममता नहीं दिखी। कुछ लड़कियों से ममता के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा पता नहीं। अब भला सब कोचिंग लेने बाहर से आए हैं, सबका नाम किसे पता होगा। थक हारकर मैं कैशियर के पास गया और उसे बोला कि भाई ममता नाम की लड़की है ईनविंग बैच में, उसने किताब ली है, उसके बारे में थोड़ी जानकारी दे दो। कैशियरर ने पहले आनाकानी की मगर फिर वह रजिस्टर टटोलने लगा। उसने 2 ममता नाम की लड़कियों का नाम और बैच नंबर मुझे दिया।

मैं तुरंत कोचिंग सेंटर में हर कोचिंग रूम में जाकर ममता नाम की लड़कियों का पता करने लगा। दोनों लड़कियां मिलीं, मगर उनमें से कोई भी वह ममता नहीं थी, जो रात को मिली थी। अब मैं तनाव में आ गया था। मैं सोच रहा था कि किसी ने बेवकूफ बनाकर मेरी किताब पर हाथ साफ कर लिया। मैं फिर कैशियर के पास गया और बोला कि बाई देख लो कोई और ममता तो नहीं है। वह इरिटेट होकर मुझपर चिढ़ गया। मैंने भी गुस्से और फ्रस्ट्रेशन में उसे कुछ कहा और तू-तू, मैं-मैं हो गई। वह बाहकर आकर मुझे ललकारने लगा और मेरा कॉलर पकड़ लिया। मैंने भी उसे धक्का देकर गिरा दिया। मामला बढ़ गया औऱ शोर-शराबा सुनकर पूरा स्टाफ और बहुत से बच्चे वहां इकट्ठे हो गए। लोगों ने पूछा कि क्या हुआ, मैंने पूरी बात कह सुनाई कि ऐसा-ऐसा हुआ, ममता नाम की लड़की मेरी किताब ले गई और ये जनाब उसके बारे में बता नहीं रहे। इतने में वहां केमिस्ट्री की कोचिंग देने वाले टीचर (नाम नहीं बता सकता) ने लोगों को वहां से जाने को कहा और मुझे स्टाफ रूम ले गए।

इत्मिनान से पानी पिलाकर पूछा कि बात क्या है। मैंने बात बताई तो वह गंभीर हो उठे। उन्होंने कैशियर को बुलाया और कुछ कहा। एक घंटे बाद कैशियर एक फाइल लेकर आया और उसे केमिस्ट्री के टीचर को दे दिया। केमिस्ट्री के टीचर ने वो फाइल मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा- इसे देखो। मैंने फाइल खोली। यह ऐडमिशन की फाइल थी, जिसमें ऐडमिशन फॉर्म, फीस की रीसीट और फोटो वगैरह मैनटेन की जाती है। फाइल खोली तो ममता वर्मा नाम की लड़की का नाम लिखा था और एक फोटो लगी थी। फोटो देखते ही मैं चहका कि हां यही लड़की है, इसी ने मेरी बुक ली है। देख रहा था कि मेरे यह कहने का केमिस्ट्री टीचर के चेहरे पर कोई असर नहीं पड़ा, बल्कि वह और गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि ऐसा ही नहीं सकता कि यह लड़की तुम्हारी किताब ले। मैंने कहा नहीं, मैं अच्छे से पहचान रहा हूं, इसी ने किताब ली है। उन्होंने लंबी सांस छोड़ते हुए कहा- यह लड़की अब इस दुनिया में नहीं है। मैंने कहा सर मजाक छो़ड़िए, यही लड़की है। बताइए कि कौन है, कहां की है। और मुझे लगता है कि आप इसे जानते हैं। बस आप मेरी किताब दिलवा दीजिए। टीचर ने कहा- हां, मैं इसे जानता था। जाहू के पास की थी और पिछले साल यहं आई थी। यहीं कोचिंग करती थी, एक साल ड्रॉप किया था। टेस्ट दिया था इसने, मगर रिजल्ट आने से पहले ही जंगल में इसकी लाश पाई गई थी।

मैंने कहा कि सर हो सकता है आपको गलतफहमी हो रही हो। तो सर ने कहा कि मेरी बात पर यकीन नहीं है तो इस फॉर्म में दिए घर के नंबर पर कॉल करके देख लो। मैं दौड़ा-दौड़ा गया और अपने दोस्त से नोकिया 1100 लेकर आया। उसमें घर का नंबर मिलाया। रिंग जाने के बाद एक महिला ने फोन उठाया औऱ मैंने बोला कि मैं ++++ कोचिंग सेंटर से बोल रहा हूं और ऐसे-ऐसे आपकी बेटी ममता ने मेरी किताब ली है और अब उसका कुछ पता नहीं चल रहा। महिला ने कहा दोबारा बकवास मत करना और फोन काट दिया। मैं परेशान हो गया। मैंने फिर फोन उठाया तो इस बार कोई पुरुष था, मैंने बोला कि सर पूरी बात सुनो— ऐसा-ऐसा हुआ मेरे साथ और अब मुझे किताब चाहिए। उधर से आवाज आई- बेटा, ऐसा मजाक मत करो, जो भी हो तुम। हमारी बेटी जब इस दुनिया में है ही नहीं तो किताब कहां से ले लेगी। ये सुनकर पहली बार मेरा सिर चकराया और अजीब लगने लगा। अजीब से भाव आए। पसीना पड़ गया और कलेजा कांप गया। अब लगने लगा था कि सब बातें गलत थीं। उस लड़की की मुस्कान मेरे चेहरे के सामने आने लगी और मैं वहीं बेहोश हो गया।

मुझे कुछ याद नहीं कि क्या हुआ। जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को अस्पताल के बिस्तर में पाया और आसपास मेरे दोस्त, केमिस्ट्री वाले टीचर और दो महिला-पुरुष खड़े थे। पता चला कि मैं 6 घंटों से बेहोश था और सिविल हॉस्पिटल मुझे लाया गया है। बातचीत में पता चला कि सामने खड़े महिला-पुरुष दरअसल उसी ममता के मां-बाप हैं, जो इस दुनिया में नहीं है। मैं डरा हुआ तो था, मगर साथ में एक अजीब सी फीलिंग थी कि ऐसा हो ही नहीं सकता। होश मेें आने पर मैंने कहा कि मैं एकदम ठीक हूं और हॉस्टल जा सकता हूं। अच्छी बात यह थी कि मेरे मम्मी-पापा को किसी ने फोन नहीं किया था। इससे पहले कि मैं जाता, उस बुजुर्ग पति-पत्नी ने मेरे आगे हाथ जोड़े और बोले बेटा, क्या हुआ तुम्हारे साथ हमें भी बता दो। मैं इस बारे में हालांकि बात नहीं करना चाहता था, मगर मैंने पूरी कहनी कह सुनाई। देखा कि उस महिला-पुरुष की आंखों से आंसू आ रहे थे बात सुनते हुए। उन्होंने बताया कि बेटा गलती हमारी है। हम उसे जबरन डॉक्टर बनाना चाहते थे और इसीलिए उसे भेजा था। वह कुछ और करना चाहती थी, मगर हमने उससे एक साल ड्रॉप भी करवाया। उसने टेस्ट दिया और प्रीलिम्स पास भी कर दिया, मगर उससे पहले ही हमारी बेटी की लाश हमें जंगल में मिली। पोस्टमॉर्टम में कुछ पता नहीं चल पाया कि क्या हुआ। उसने जहर खाया या कोई जंगली जानवर ले गया या कुछ और हुआ या मर्डर हुआ उसका। क्योंकि लाश कई दिन बाद मिले और जंगली जानवरों ने नुकसान पहुंचाया था।

मैंने उन्हें बताया कि उस लड़की ने कहा कि मैं दो दिन बाद आपको यह किताब देने आऊंगी इसी वक्त। यानी कल रात को वह आने वाली थी। मुझे यकीन था कि इतना सब कुछ होने के बाद वह नहीं आएगी। मुझे यह भी लग रहा था कि हो सकता है मुझे सारा का सारा भ्रम हुआ हो, क्योंकि मैं भी प्रेशर ले रहा था पढ़ाई का। जबरन जागकर तैयारी कर रहा था और हो सकता है कि ममता का आना और किताब ले कर जाना भ्रम् हो और मुझे ही कोई मानसिक समस्या हो गई हो। मैंने कुछ फिल्में देखी थीं, जिनमें पता चलता था कि जिस शख्स को भूत दिखते हैं, दरअसल उसका अपना दिमाग खराब होता है और किसी समस्या की वजह से वह कल्पना करने लगता है। मगर जिस ममता को मैं जानता नहीं था, उसका ही संयोग से भ्रम क्यों हुआ मुझे? यही ख्याल मुझे पागल होने से बचा रहा था। खैर, उस लड़की के मम्मी-पापा ने मुझसे कहा कि बेटे अगर वो आती है तो तुम उससे एक बात पूछना कि तुम्हारी मौत कैसे हुई थी। मैंने कहा कि मेरा दिमाग खराब है क्या? मैं जा रहा हूं घर, भाड़ में जाए कोचिंग और भाड़ में जाए आपकी बात। मैंने तुरंत घर फोन किया और घरवालों को सारी कहानी कह सुनाई। उन्हें मेरी कहानी पर यकीन नहीं हुआ। उन्हें लगा कि मैं ही कोचिंग नहीं लेना चाहता और मनगढ़ंत कहानी सुनाकर घर लौटना चाहता हूं। घर से सख्त हिदायत मिली कि जहां मर्जी जाओ, घर मत लौटना कोचिंग लिए बगैर। मैं चिल्लाता रहा और समझाता रहा घरवालों को, मगर उन्होंने एक नहीं सुनी। उन्हें लग रहा था कि मैं शरारती हूं और यह भी मेरी कोई शरारत है। खैर, मेरे पास कोई चारा नहीं था। वह रात तो मैंनंे अस्पताल में काटी, अगली रात अस्पताल से कोचिंग सेटर गया और वहां से अपने उसी रूम में, जहं दो दिन पहले ममता से मुलाकात हुई थी।

आज रात वह आने वाली थी। मुझे लग रहा था कि वह अगर भूत है तो अपना राज खुलने पर नहीं आएगी। और अगर कोई औऱ ममता हुई तो आ भी सकती है। उस रात मैं अपने रूम पर बैठा और बगल में रहने वाले लड़कों को कहा कि भाई बाहर नजर रखना, जैसे ही तुम्हारे रूम से होकर कोई लड़की आए, मुझे मिस कॉल दे देना (दोस्त का नोकिया 1100 मैंने अपने पास रख लिया था और दूसरा दोस्त उसपर रिंग करने वाला था।)। मेरा ध्यान पढ़ाई पर कम, दरवाजे पर ज्यादा था। पढ़ाई का तो नाटक हो रहा था। जेब में हनुमान चालीसा रखी ती और सामने शिवजी की तस्वीर। मन में भगवान का नाम जपे जा रहा था। 1 बजे तक कोई हलचल नहीं हुई। मैं समझ गया कि या तो भ्रम था या कोई और लड़की वाकई मेरी किताब लेकर गई मुझे ममता के नाम पर उल्लू बनाकर।

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मै बगल वाले कमरे में गया, नोकिया 1100 लौटाया, अपने कमरे में आया और लाइट ऑफ करके लेट गया। एक मिनट ही हुआ था कि किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैंने सोचा कि वही दोस्त आए होंगे। बेबाकी से मैं उठा और तुरंत लाइट ऑन की और दरवाजा खोला। जैसे ही दरवाजा खोला, सामने ममता खड़ी थी। वही मुस्कुराहट लेकर और हाथ में ऑब्जेक्टिव फिजिक्स की किताब लेकर।

मैं हक्का-बक्का था। यह वही ममता थी जो उस दिन आई थी और जिसकी तस्वीर मैंने साल भर पुराने फॉर्म में देखी थी। मैं सन्न था और मेरे मुंह से कोई शब्द नहीं फूट रहा था। उसने कहा कि कया हुआ, मैंने कहा कुछ नहीं। मैं वहीं सन्न खड़ा था। मानो शरीर में कोई जान ही नहीं। मैं हिल-डुल नहीं पाया। उसने फिर कहा- किताब नहीं चाहिए। मैं इस बीच सोचने लगा कि यह लड़की मरी हुई हो ही नहीं सकती। मैंने उसके पांवों पर नजर दौड़ाई, जो सीधे थे। उसकी आंखें देखीं जो भूतों की तरप सफेद नहीं थी। उसके बालों को ध्यान से देका तो वे उड़ ररहे थे हवा के झोंकों से। उसके कपड़े असली थे, उसकी आवाज, शरीर सब असली था। मैं अजीब स्थिति में था। कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने कहा- आप ठीक हो। मैंने कहा- हां। यह पहला मौका था जब उसके आने के बाद मेरे मुंह से शब्द फूटे थे। तो किताब रख दूं टेबल पर। मैंने कहा हां, क्यों नहीं। मैं एक तरफ हटा और वह मेरे कमरे में दाखिल हो गई और टेबल पर किताब रख दी।

अब मेरे मन में दो विचार आ रहे थे। एक- या तो मैं दरवाजे से निकलकर भाग जाऊं या फिर रुकूं और इस लड़की से बात करके देखूं। मगर किसी तरह मैने हिम्मत की और रुक गया। मैं आकर अपने बिस्तर पर बैठा और स्टडी टेबल की कुर्सी टेबल के साथ खड़ी उस लड़की की तरफ बढ़ाते हुए कहा- बैठो, खड़े क्यों हो। उसने कहा नहीं, जाना है, देर हो जाएगी। मैंने कहा-मुझे तो लगा था कि आप आएंगी ही नहीं। मैंने तो कोचिंग सेंटर जाकर आपके बारे में मालूमात हासिल की तो कोई जानकारी नहीं। जब मैं यह बोल रहा था तो उस लड़की के चेहरे की मुस्कान गायब होती जा रही थी और वह बहुत गंभीर हो चुकी थी। मैंने उसे बताया कि कैसे मैं एक लड़की के माता-पिता से मिला, जिसने कहा कि तुम हमारी बेटी हो और मर चुकी हो। मैं जब यह कह रहा था तो उस लड़की ने अपना सिर झुका लिया था और अपने दोनों हाथ एकसाथ अपनी गोद में रख लिए थे। वह बेचैन सी लग रही थी। मुझे घबराहट हो तो हो रही थी, मगर न उस लड़की के ठीक पीछे शिवजी की तस्वीर दिख रही थी।

मैं अजीब स्थिति में था। न तो यह फिक्र रही कि यह लड़की भूत हो सकती है और मुझे नुकसान पहुंचा सकती है और न ही यह चिंता कि मैं किसी और लड़की को गलत समझकर उसे भूत बताकर उसे हर्ट कर सकता हूं। मैंने उसे बताया कि लड़की के मम्मी-पापा ने मुझे तुमसे यह पूछने को कहा है कि तुम्हारी मौत कैसे हुई थी। प्रतीकात्म तस्वीर मेरा यह कहना था कि लड़की ने गर्दन उठाई और मेरी तरफ देखा। उसकी आंखों में आंसू थे। मुझे उस लड़की से डर नहीं लगा। मैं अजीब सा भावुक हो गया। उसने कहा मेरी मौत…. यह कहकर वह थोड़ा रुकी, आंखों के आंसू पोंछे, मुस्कुराई और बोली— मेरी मौत हो गई होती तो मैं आपसे सामने ऐसे थोड़े ही बैठी होती। मैं तो कभी मर भी नहीं पाऊंगी, जब तक मैं मम्मी-पापा का सपना पूरा न कर लूं। खैर, रात बहुत हो गई है। थैंक्यू किताब देने के लिए। आपको ऑल द बेस्ट। उसने यह कहा, मुस्कुराई और उठकर दरवाजे से बाहर चली गई।

मैं उसके पीछे-पीछे आया और दरवाजा खोलकर बाहर गलियारे में देखो तो कोई नहीं था। मैं घबराया और बगल वाले कमरे में गया, जहां लाइट जल रही थी। उन्हें पूरी कहानी सुनाई तो वे यकीन नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि मैं हम खिड़की से बाहर देख रहे थे, तुम्हारे कमरे की तरफ कोई नहीं गया। उन दोस्तों ने समझा कि मैं उनके साथ मजाक कर रहा हूं और यह बहानेबाजी है।

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अगले ही दिन मैंने अपना सामान बांधा और हमीरपुर बाजार में एक पेइंग गेस्ट में शिफ्ट हो गया। कभी मुझे कोई डरावना सपना नहीं आया। होश में जरूर मैं उश वाकये को याद करके डरता रहा कई दिनों तक, मगर फिर अहसास हुआ कि मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया उसने, वह जो भी चीज़ थी। आज तक सोचता हूं कि वह क्या था। सपना था, मेरा भ्रम या वाकई कोई और ही लड़की थी ममता नाम की। उसके माता-पिता ने भी मुझसे कभी संपर्क नहीं किया और न मैंने इस मामले को हवा दी। मैं भी जीवन डगर में आगे बढ़ता गया। इंजिनियर तो मैं बना, मगर कोचिंग के जरिए नहीं, प्राइवेट कॉलेज में दाखिला लेकर और माता-पिता के पैसों से भारी-भरकम फीस भरकर। आज भी यह वाकया याद आता है तो डर लगने लगता है। मैं ममता की उस मुस्कान को भूल नहीं पाया हूं। हिमाचल से संबंधित अन्य हॉरर किस्से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें

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(लेखक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से हैं और इन दिनों UAE में इंजिनियर हैं)

DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और उनके पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

शिशु का शव मुंह मे लेकर घूमता रहा कुत्ता, रेत में दफनाते वक्त पड़ी नजर

सोलन।। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले मे आने वाेल खुंडीधार में एक आवारा कुत्ता एक नवजात शिशु को मुंह में लेकर घूम रहा था। जब यह कुत्ता शिशु को रेत के ढेर में दबाने की कोशिश करने लगा, तब एक महिला की नजर इसपर पड़ी। पुलिस को खबर की गई और शिशु को कुत्ते से छुड़ाया गया मगर वह मर चुका था।

जिस रेत के ढेर पर कुत्ता उस शिशु के शव को छिपा रहा था, पास ही एक महिला काम कर रही थी। उसे अगर पता न चला होता तो शायद मामला बाहर न आता। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर जांच शउरू कर दी है। पंजाब केसरी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक उपप्रधान विकास ठाकुर ने कहा कि शंका है कि शिवा विहार में कूड़ेदान में इस शिशु को जन्म के बाद शायद फेंक दिया होगा जिसे बाद में कुत्तों ने वहां से उठा लिया होगा।

उन्होंने कहा कि यह घटना इंसानियत को शर्मसार करने वाली है। ऐसी घटना को अंजाम देने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो उन्होंने कहा कि ऐसी घटना को अंजाम देने वाले लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि कोई इस तरह की घिनौनी घटना को कोई दोबारा अंजाम न दे सके।

जानकारी के मुताबिक सबसे पहले इस घटना की चश्मदीद ने बताया कि जब वह काम कर रहे थे तो उनकी नजर कुत्ते पर पड़ी जिसके मुहं में नवजात शिशु था तो इसकी सूचना अन्य साथियों को दी। उन्होंने कुत्ते का जब पीछा किया तो वह शव को रेत में दबा रहा था। तभी उन्होंने कुत्ते को वहां से भगाया और देखा की शिशु मरा हुआ था।

मंडी राजमहल भूमि सौदा: वीरभद्र सरकार में मंत्री अनिल शर्मा पर लगे आरोप

मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मंडी के राजमहल भूमि सौदे में प्रदेश की कांग्रेस सरकार में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रि अनिल शर्मा गंभीर आरोपों में घिर गए हैं। बीजेपी का कानून एवं विधिक प्रकोष्ठ अनिल को इस मामले में आऱोपी बनाने के लिए कोर्ट जाने की तैयारी है। आरोप है कि इस जमीन को खरीदने के लिए अनिल शर्मा के खातों से 1.22 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है। गौरतलब है कि अनिल शर्मा के पिता पंडित सुखराम आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी रहे हैं।

नरेंद्र गुलेरिया ने आरोप लगाया कि राजमहल भूमि खरीद मामले में अनिल भी शामिल हैं। गौरतलब है कि 2008 में मंडी के राजमहल की जमीन को शिमला के एक स्कूल में बतौर चौकीदार नौकरी करने वाले खूब राम ने करोड़ों रुपये में खरीद लिया था। राजमहल की प्रापर्टी की पावर ऑफ अटार्नी देवेंद जम्वाल के पास थी। खूब राम को भूमि खरीदने के लिए पैसा संजय ने दिया था। संजय को पैसा अनिल से मिला था।

करोड़ों के सौदे में कम स्टांप पेपर लगाने के बाद मामला सुर्खियों में आया था। तत्कालीन उपायुक्त ओंकार शर्मा ने मामले की जांच के आदेश दिए थे। बेनामी सौदे की बात सामने आने के बाद रजिस्ट्री रद कर दी गई थी। पुलिस ने खूब राम सहित सात लोगों को आरोपी बनाया। सौदे की गूंज इसलिए ज्यादा सुनाई दी थी क्योंकि जिस इमारत में राज देवता माधो राय का मंदिर है, आरोपियों ने उसे भी खरीद लिया था। अनिल होटल के साथ लगती भवानी पार्किग की जमीन खरीदना चाहते थे। वहां पाकिर्ंग के अलावा शापिंग काम्पलेक्स बनाने की योजना थी।‘

सरकार बनाम खूब राम मामले में अनिल को आरोपी बनाने के लिए बीजेपी का लीगल सेल आपराधिक प्रकिया संहिता की धारा 319 के तहत अदालत में अर्जी देगा। आरोप लगाया गया है कि अनिल ने 2008 में शहर में स्थित अपने होटल के साथ लगती होटल राजमहल की संपत्ति गैरकानूनी तरीके से खरीदने के लिए संजय कुमार को मोहरा बनाया था। भूमि खरीदने के लिए अनिल ने एसबीआइ के खाते से 50 लाख का चेक संजय को दिया था। इसके बाद 10 जनवरी 2008 को 25 लाख व 28 फरवरी को 10 लाख का चेक संजय ने नाम जारी किया। 28 फरवरी को अनिल ने पत्नी सुनीता शर्मा के कैनरा बैंक के खाते से 37.5 लाख रुपये का चेक संजय को दिया। 24 अप्रैल को 1.15 लाख व पांच मई को 17.37 लाख के अष्टाम पेपर खरीदे गए।

भूमि खरीद के लिए किसी तीसरे व्यक्ति के बैंक खाते में करीब 1.22 करोड़ रुपये की राशि ट्रांसफर करना नियमों की अवहेलना है। परिवार से बाहर संपत्ति खरीदने के लिए इतनी बड़ी राशि किसी व्यक्ति को देना बेनामी संपत्ति कानून की धारा तीन के तहत आता है।

उधर दैनिक जागरण अखबार के मुताबिक अनिल शर्मा ने कहा है, ‘मैंने राजमहल होटल के साथ लगती भूमि खरीदने के लिए संजय कुमार को 1.22 करोड़ की राशि दी थी। मेरे साथ धोखा हुआ है। नौ साल बीतने के बाद भी न मुझे न तो भूमि मिली और न ही पैसा। संजय कुमार व अन्य लोगों के विरुद्ध पैसा वापस लेने के लिए अदालत में केस कर रखा है। पैसा देने में कोई गलत काम नहीं किया बल्कि बैंक खातों से भुगतान हुआ है।’

प्राइमरी एजुकेशन: तीसरी और पांचवीं क्लास के बच्चों को ‘क ख ग’ तक का ज्ञान नहीं

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।।  हिमाचल प्रदेश सरकार कहती है कि शिक्षा उसकी प्राथमिकताओं में शामिल है। सबसे ज्यादा बजट शिक्षा विभाग पर खर्च करने का दावा भी सरकार कई बार कर चुकी है मगर जमीनी हकीकत आपको हैरान कर देगी। मंडी जिले के 49 प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चों को क-ख-ग तक का ज्ञान नहीं है।

देश भर की तरह मंडी जिले में भी सर्वशिक्षा अभियान कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत जिला प्रशासन ने उड़ान कार्यक्रम की शुरूआत की है, जिसके तहत प्राथमिक स्कूलों के बच्चों में शिक्षा के स्तर को सुधारने पर जोर दिया जा रहा है। उड़ान कार्यक्रम के फीडबैक के लिए 20 शिक्षा खंडों में बेसलाइन और एंडलाइन सर्वे करवाया गया। इस सर्वे में खुलासा हुआ कि जिले के 49 प्राथमिक स्कूल ऐसे हैं, जो रेड ज़ोन में हैं। यानी इन स्कूलों के बच्चों को न तो क-ख-ग का ज्ञान है और न ही शब्दों का। बच्चे जमा और घटाने में भी पूरी तरह से असमर्थ हैं।

हैरानी की बात तो यह है कि अधिकतर बच्चे ऐसे हैं, जो कक्षा तीसरी और पांचवी में पहुंच चुके हैं, लेकिन उन्हें भी क-ख-ग और शब्दों का ज्ञान नहीं है। इस बात की पुष्टि सर्वशिक्षा अभियान की जिला परियोजना अधिकारी हेमंत शर्मा ने की है। उन्होंने बताया कि 49 स्कूल ऐसे पाए गए हैं जो रेड ज़ोन में हैं और वहां पर बच्चे पढ़ाई के मामले में बेहद कमजोर हैं।

जिले के शिक्षा खंड सदर में सबसे ज्यादा 12 स्कूल रेडजोन में शामिल हैं। इसके अलावा शिक्षा खंड बल्ह में चार, चौंतड़ा में एक, द्रंग में चार, सुंदरनगर में चार, सराज में छह, करसोग में दो, चच्चोट में आठ, धर्मपुर में तीन और गोपालपुर शिक्षा खंड में पांच स्कूल एंडलाइन सर्वे के बाद रेडजोन में शामिल किए गए हैं।

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सर्वशिक्षा अभियान की जिला परियोजना अधिकारी हेमंत शर्मा के अनुसार रेडजोन में दर्शाई गई पाठशालाओं का निरीक्षण करने के निर्देश दे दिए गए हैं। इसके लिए खंड स्तर पर एक ऑब्जर्वेशन दल का गठन करने को भी कहा गया है। गठित दल से रेडजोन में शामिल स्कूलों का निरीक्षण करके रिपोर्ट रिकॉर्ड सहित मांगी गई है। एंडलाइन सर्वे से हुए खुलासे के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।

जिले के अधिकतर स्कूल ऐसे हैं, जहां पर या तो अध्यापक है ही नहीं या फिर एक-दो अध्यापकों के सहारे स्कूल चल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सर्वाधिक बजट का प्रावधान करने के बाद भी प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिरता क्यों जा रहा है। इस सवाल पर सरकार को चिंतन करने की आवश्यकता तो है, लेकिन लगता है सरकार के पास चिंतन करने का समय नहीं है। सरकार का फोकस नए स्कूल खोलने के ऐलानों पर ज्यादा लगता है, क्वॉलिटी ऑफ एजुकेशन पर नहीं।

(आर्टिकल के साथ इस्तेमाल की गई तस्वीर प्रतीकात्मक है।)

Satire: मंडी के 50 गांवों को गड्ढों से जोड़ेगी हिमाचल सरकार, बजट जारी

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Disclaimer: यह पूरी तरह से काल्पनिक बात है और इसे सिर्फ मनोरंजन और व्यंग्य (Satire) के लिए हल्के-फुल्के अंदाज में लिखा गया है। इसे लिखने का मकसद किसी की छवि या भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। उम्मीद है इसे इसी रूप में पढ़ा जाएगा।

खादू राम, मंडी।। हिमाचल प्रदेश सरकार प्रदेश के 50 गांवों को गड्ढों से जोड़ने जा रही है, वहीं पहले के कई सारे गड्ढों को नालों में अपग्रेड किया जाएगा। इस बात का ऐलान प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने मंडी में फ्लाणा शहर और ढिमकाणा गांव के बीच बने गड्ढों का उद्घाटन करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि गड्ढों और नालों के निर्माण के लिए बजट भी जारी कर दिया गया है।

उद्घाटन समारोह में आई भीड़ उस वक्त हैरान रह गई, जब उसे गड्ढों के बजाय समतल और पक्की सड़क नजर आई। लोगों की चिंता को भांपते हुए मुख्यमंत्री ने चिर-परिचित अंदाज में मंच से कहा, ‘जनता को घबराने की जरूरत नहीं है। पीडब्ल्यूडी विभाग मेरे पास है और मैं पहले भी बता चुका हूं कि इसके सारे अफसर करप्ट हैं। इसलिए कुछ ही दिनों से ये सड़क उखड़ जाएगी और आपको गड्ढे नजर आने लगेंगे।’

मुख्यमंत्री से यह आश्वासन सुनकर लोगों की जान में जान आई, जो आजकल प्रदेश में पक्की सड़कों को देखकर घबरा जाते है। दरअसल प्रदेश में जहां जाओ, वहां पर सड़कों के बजाय गड्ढों का आलम नजर आने लगा है। बरसात में तो कई एनएच नालों में तब्दील हो जाते हैं। ऐसे में कहीं पर पक्की और ठीक सड़क देखना कौतूहल का विषय बन जाता है और एक नई बात हो जाती है।

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इस दौरान मौके पर मौजूद रहे पीडब्ल्यूडी के एक्सईन जोंढा राम ने कहा, ‘हम समझ रहे हैं कि लोगों को यहां पर पक्की सड़क देखकर हैरानी हो रही है। मगर मैं विश्वास दिलाता हूं कि न तो हमारे विभाग की तरफ से किसी इंजिनियर ने सड़क का मुआयना किया है और न ही निर्माण सामग्री की चेकिंग की है। ठेकेदार से हमने पहले ही पैसे ले लिए थे। इसलिए घटिया निर्माण सामग्री कुछ ही दिनों में उखड़ने लगेगी और बरसात आने पर लोग चिर-परिचित गड्ढों पर गाड़ियां चला रहे होंगे।’

मौके पर स्थानीय विधायक ने मीडिया को बताया, ‘देखिए, हमारी तो मांग थी कि यहां पर गड्ढों के बजाय नाला बनाया जाए। मगर फंड की कमी होने की वजह से हम सिर्फ गड्ढों की ही व्यवस्था कर पाए हैं। केंद्र की तरफ से भी मदद नहीं मिल रही है, फिर भी हमने अपने स्तर पर कई इलाकों में पिछले साढ़े 3 सालों में गड्ढों की कोई मेनटेनेंस न करके उन्हें नाले में तब्दील किया है।’

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सतधार कहलूर: हिमाचल की इस रियासत में थे सबसे ज्यादा किले

आशीष नड्डा।। सतधार कहलूर वर्तमान बिलासपुर का पुराना नाम सतधार शब्द निकल कर आया था केहलूर रियासत में पड़ने वाली सात धारों यानी पहाड़ियों के नाम से। टियुन , सीयून , कोट -धार , नैना देवी, बहादुरपुर धार, छिन्जयार और बंदला धार इस रियासत की धारें (पहाड़ियां) थी जो अब भी इसी जिले में हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा किलों वाली रियासत केहलूर ही थी। मुख्या मुख्य तौर पर लगभग हर धार यानी पहाड़ी पर केहलूर रियासत में किले थे। हर किला अलग अलग समय पर बनाया गया और निर्माण की अलग दिलचस्प कहानी है।

कोटकहलूर किला
राजा वीर चन्द चंदेल ने सतलुज घाटी में आकर सन् 697ई. में नए राज्य की स्थापना की। कहलू-गुज्जर नामक जनश्रुतियों के अनुसार राजा वीरचंद ने सन् 697-730 ई. में माता नयनादेवी का मंदिर व कोट कहलूर के किले का निर्माण करवाया। कोट कहलूर किले में अब एक पुलिस थाना है।

तियून किला
इसका निर्माण कहलूर रियासत के 11वें राजा काहन चंद ने सन् 1085 ई. में किया। इस किले के नाम से ही पहाड़ी तियून धार के नाम से प्रसिद्ध हुई।

सरयून किला
कहलूर रियासत के 16वें राजा पृथ्वी चंद ने सन् 1162-1197 ई० में मोहम्मद गौरी के आक्रामण की आंशका के डर से इस किले को बनाया था। टियुन सरयून किले एक दूसरे के आमने सामने हैं और इनकी तलहटी में सीरखड्ड से लेकर शुक्र खड्ड के बीच का उपजेउ डेल्टा है।

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झजयार किला
यह किला बरठीं से छह किलोमीटर की दूरी पर झजयार धार की चोटी पर बना है। राजा महाचंद के शासन काल में कांगड़ा के महाराजा संसार चन्द कटोच ने केहलूर रियासत के सतलुज के उतरी इलाके घुमारवीं तहसील को जीत लिया। अपनी जीत के प्रतीक के रूप में संसार चन्द कटोच ने इसका निर्माण करवाया था।

बहादुरपुर किला
यह किला बिलासपुर का ताजमहल की तरह है राजा विक्रम चंद ने सन् 1555-1593 ई. ने अपनी बाघल ( अर्की) वाली रानी को प्रसन्न करने के लिए बहादुरपुर किले का निर्माण करवाया। यह किला शिमला बिलासपुर हाईवे पर नम्होल से 10 किलोमीटर ऊपर चीड़ देवदार के जंगलों में स्थित है यह बिलासपुर का सबसे ऊंचा और ठंडा स्थान है . राजा गर्मियां इसी किले में गुजारते थे। वर्ष 1922 में मोहना को फांसी का आदेश इसी किले से दिया गया था।

बस्सेह का किला
यह घुमारवीं के बस्सेह क्षेत्र में स्थित है। इसका निर्माण राजा रत्न चंद ने करवाया था। समय की थपेड़े खाता यह किला अब टूट कर क्षतिग्रस्त हो चुका है।

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कोट ऑफ आर्म्स, कहलूर

बच्छरेटू किला
यह कोटधार में है। इसका निर्माण कहलूर के 23वें राजा रत्नचंद ने वर्ष 1355-1406 ई. में करवाया था। किले में 15 विभिन्न आकर कमरे हैं। इसके अंदर तालाब व एक देवी मंदिर के साथ एक पीपल का वृक्ष भी है।

फतेहपुर किला
यह किला फतेहपुर की चोटी पर बना है। यह किला इस दिशा की ओर से संभावित आक्रामणों को रोकने के लिए बनाया गया था। किले की दिवारों में गोलियों के निशान हैं। प्राकृतिक आपदा के समय लोग यहां शरण लेते थे।

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(लेखक मूल रूप से ज़िला बिलासपुर के रहने वाले हैं और IIT दिल्ली में रिन्यूएबल एनर्जी, पॉलिसी ऐंड प्लैनिंग में रिसर्च कर रहे हैं। लेखक प्रदेश के मुद्दों पर लिखते रहते हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

जारी हुआ बाहुबली-2 का भव्य ट्रेलर, रोमांच से भर देगा आपको

इंतजार खत्म, बाहुबली-2 फिल्म का ट्रेलर जारी हो गया है। इस फिल्म में पता चलेगा कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा।

इस ट्रेलर को देखकर लगता है कि दूसरा हिस्सा और भी मनोरंजक रहने वाला है। भव्य फिल्म है।

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देखें भव्य ट्रेलर

लेख: हिमाचल बीजेपी में अब कोई नहीं रोक सकता जेपी नड्डा का रास्ता

सुरेश चंबयाल।। पांच राज्यों के चुनाव में बीजेपी बिना चेहरे के उतरी और चार में सरकार बनाने में कामयाब रही। देखने वाली बात यह है की जिन राज्यों में बीजेपी का अकेले मुकाबला सत्ता में बैठी पार्टियों से था वहां बीजेपी प्रचण्ड बहुमत के साथ सत्ता में आई। चुनावी रिजल्ट बता रहे हैं कि अर्से बाद बीजेपी व्यक्तिवाद से उठकर संगठनवाद की तरफ जाती दिख रही है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बीजेपी प्रचंड बहुमत के बावजूद मुख्यमन्त्री तय नहीं कर पाई है। वही गोवा में फिर से रक्षा मंत्री पर्रिकर भेजकर कांग्रेस को कंपीट करते हुए बीजेपी ने सरकार बना ली। बदलाव की इस बयार का रुख क्या होता है, इसके लिए हिमाचल प्रदेश में भी कौतूहल देखने को मिल रहा है क्योंकि अगला चुनाव हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाला है।

गुजरात को छोड़कर हिमाचल प्रदेश की हम बात करें तो बीजीपी चुनावी वर्ष में भी अपने पत्ते नहीं खोल रही है। संग़ठन के नाम पर ही सब किया जा रहा है, मुख्यमंत्रीं कैंडिडेट की जब बात आ रही है तो पूर्व मुख्यमंत्रीं धूमल को भी यह ब्यान देना पद रहा है कि आलाकमान मुख्यमंत्रीं तय करेगा। कुलमिलाकर यह इस बात का आभास दिला रहे हैं की मोदी के मित्र कहलाने वाले धूमल भी इस बार अपने नाम के लिए हमेशा की तरह आश्वस्त नहीं हैं। उनके आश्वस्त न होने के दो कारण हैं- पहला कारण प्रदेश में हालिया रूप से सक्रिय हुए केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा है तो दूसरा कारण बीजेपी की वो रणनीति है जो हर राज्य में उसे कामयाबी दिलवा रही है। बीजेपी बिना मुख्यमंत्रीं घोषित किये मोदी के नाम से चुनाव लड़ रही है, इस कारण राज्यों में गुटबाज़ी खत्म हो गई है। क्योंकि किसी को पता नहीं कौन मुख्यमंत्री होगा। हिमाचल प्रदेश की बात करें तो पिछले अनुभव और वर्तमान सफलताओं से से लग रहा है केंद्रीय आलाकमान यही करने वाला है।

2012 के चुनाव में धूमल शांता रार और धूमल विरोध में हिलोपा के रूप में हुई बगावत से बीजेपी के हाथ से सत्ता आते आते रह गई थी। यह तथ्य पुख्ता कर रहे हैं हिमाचल का चुनाव भी बीजेपी बिना मुख्यमंत्रीं कैंडिडेट घोषित किये ही लड़ेगी। और सत्ता आने पर किसी नौजवान चेहरे को आगे कर दे इसमें भी कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि महाराष्ट्र से लेकर हरियाणा में बीजेपी ने नए चेहरे आगे किए और अब उत्तराखंड में भी यही करने वाली है। जेपी नड्डा का नाम इस कड़ी में सबसे आगे चल रहा है। बेशक पार्टी उन्हें सीएम कैंडिडेट के तौर पर न भेजे परंतु बाद में मनोहर पार्रिकर की तरह राज्य के सत्ता सौप सकती है। इसके दो कारण लग रहे हैं। पार्टी संगठन को लगता है कि हिमाचल प्रदेश की जनता में वीरभद्र सिंह और धूमल की राजनीति से सैचुरेशन आ गया है। साथ ही बरसों से चली आ रही धूमल-शांता रार में उलझी पार्टी को अब बाहर निकालने की जरुरत भी महसूस हो गई है। इसीलिए चेहरा बदलने और कद्दावर नेता नया उत्साह भरने के लिए नड्डा को भेजने की रणनीति पर विचार किया जाए इसमें संदेह नहीं है।’

नड्डा आज मोदी और शाह के साथ बीजेपी की सबसे शक्तिशाली तिकड़ी का हिस्सा हैं। वह पार्टी के हर बड़े फैसले में शामिल रहते हैं, साथ ही पार्टी और सरकार के बीच में कड़ी की भूमिका भी निभाते हैं। उन्हें आरएसएस से भी समर्थन मिलता है । पहाड़ी राज्य उतराखण्ड में जिस तरह से सरकार बीजेपी आई है, उससे वहां प्रभारी रहे जेपी नड्डा का कद पार्टी में बहुत बढ़ गया है। साथ ही प्रधानमंत्री ने मोदी के वाराणसी हल्के की जिम्मदेदारी भी नड्डा को दो गई थी। वहां प्रधानमंत्री मोदी ने तीन दिन तक रुकर पूर्वांचल में सपा कमर तोड़ दी थी। नड्डा पिछले कुछ समेटी से हिमाचल प्रदेश में बहुत समय गुजार रहे हैं, यह संकेत कुछ अलग ही बयां कर रहे हैं।

nadda and modi

अभी तक हिमाचल प्रदेश में जितनी भी रैलियां होती थीं, भीड़ जुटाने से लेकर कार्यक्रम तय करने, जिमेदारिया सौंपने और तैयारियां देखने यह सब कार्य पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नेतृत्व में उनके ख़ास सिपहसलार ही करते थे। परन्तु इस बार धूमल सक्रिय भूमिका में कहीं नहीं दिख रहे हैं। संगठन फ्रंट फुट पर रखते हुए यह जिम्मेदारी इस बार जेपी नड्डा ने ले ली है। केंद्रीय स्वास्थय मत्रीं बनने और राज्यसभा के लिए चुने जाने से पहले वह हिमाचल प्रदेश में विधायक थे। नड्डा 1993 से 1998, 1998 से 2003 और 2007 से 2012 तक बिलासपुर सदर से हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। साल 1998 से 2003 तक वह राज्य से स्वास्थ्य मंत्री रहे और 2008 से 2010 तक वन एवं पर्यावरण, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री रहे। अप्रैल 2012 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया और कई सारे संसदीय कमिटियों में जगह दी गई। नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष पद की रेस में भी थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना समर्थन अमित शाह को दे दिया था।

दरअसल टीम मोदी ने इन राज्यों के चुनाव नतीजों से एनालिसिस करके यह भी निचोड़ निकाला है कि बीजेपी की अभूतपूर्व जीत में युवा वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नई पीढ़ी की राजनीति में बनी इस दिलचस्पी को बीजेपी भुनाना चाहती है। वह इस कोशिश में है कि जिस फॉर्म्यूले की मदद से नरेंद्र मोदी ने लगातार तीन बार गुजरात में सरकार बनाई थी, उसी फॉर्म्यूले को दूसरे राज्यों में भी लागू किया जाए। यह साब बाते और संग़ठन में उनकी भूमिका का नड्डा को इनाम मिल सकता है।

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गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश भाजपा प्रभारी श्रीकांत शर्मा जिनका नाम उत्तर प्रदेश में सीएम के लिए भी आगे चल रहा है नड्डा के बहुत क्लोज़ हैं ऐसा फीडबैक आलाकमान को दे सकते हैं। हालाँकि कुछ लोगों का मानना है कि पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल की प्रदेश राजनीति में मंडल स्तर तक जो पकड़ है, उसे दरकिनार करते हुए नड्डा के हाथ कमांड देना पार्टी को महंगा भी भी पड़ सकता है। इससे बचने के लिए पार्टी अगर बिना सीएम डिक्लेयर किये चुनाव जीतती है तो पूर्व मुख्यमंत्रीं धूमल की उम्र को देखते हुए नया मुख्यमंत्री मिलना लगभग तय माना जा रहा है। अब नड्डा प्रदेश का रुख करते भी हैं या सोचते भी हैं, तब भी कद इतना बढ़ गया है की पार्टी के अंदर किसी भी तरह के विरोध का सामना उन्हें नहीं करना पड़ेगा । दूसरे गुट के नेता तो खुलकर नड्डा का विरोध नहीं कर पाएंगे । नड्डा का रुतबा पार्टी में अब इतना बड़ा है कि कोई चाहकर भी यह नहीं जता पाएगा कि वह नड्डा के प्रदेश में आने से खुश नहीं है।

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केंद्रीय चुनाव सिमिति और पार्लियामेंट्री बोर्ड में बैठे व्यक्ति से कोई भी मंझा हुआ नेता टकराव नहीं पालना चाहेगा। ऊपर से नड्डा अभी 55 साल के हैं। वो मुख्यमंत्री बनकर आएं या न आ पाएं, परन्तु उनसे घोषित टकराव करके कोई भी विरोधी भविष्य के लिए रार नहीं पालना चाहेगा। हालाँकि केंद्र में उनकी व्यवस्ता को देखते हुए एक बार यह भी कहा जा सकता है की उन्हें प्रदेश में न भेजा जाए फिर भी बीजेपी बिना सीएम कैंडिडेट के लड़ के जीत गई जिसकी की वर्तमान परिस्थिति में पूरी सम्भावना है तो अगला सीएम नड्डा की मर्जी से ही तय होगा। हालाँकि हाल फिलहाल सीएम पद के दावेदारों में जय राम ठाकुर, अजय जमवाल, राम स्वरुप शर्मा, राजीव बिंदल, अनुराग ठाकुर और पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नाम तो चल ही रहे हैं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)