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Tuesday, September 16, 2025
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गुम्मा बस हादसे में जिंदा बचे 19 साल के रोहित ने बताई पूरी बात

शिमला।। शिमला के गुम्मा में हुए दर्दनाक हादसे में अन्य यात्री तो नहीं बचे मगर 19 साल का रोहित बच गया। अफसोस, इस बस से यात्रा कर रही कि रोहित की मां भी अब इस दुनिया में नहीं। रोहित को यकीन नहीं हो रहा कि इतना बड़ा हादसा हो गया। वह जख्मी भी है और बदहवास भी। उसे समझ नहीं आ रहा कि खुद को खुशकिस्मत समझे कि जान बच गई या शोक मनाए कि मां भी नहीं रही और इतने सारे लोग भी चले गए। वक्त रोहित की हिम्मत का इम्तिहान ले रहा है। बहरहाल, रोहित ने बताया है कि कैसे क्या हुआ।

उत्तराखंड के जैन ट्रैवल की बस गुम्मा में रुकी। परिचालक ने बस के नीचे घुसकर कुछ देखने के बाद बस को चलाने के लिए आवाज लगाई। बोहर गांव निवासी 19 साल का रोहित कुमार अपनी माता प्रोमिला के साथ बस में बैठ गया। दोनों अटाल बैंक से रुपये निकालने जा रहे थे। बस भरी हुई थी और सीट नहीं थी। उसने मां को बीच में खड़ा होने को कहा और खुद पिछले दरवाजे के पायदान पर खड़ा हो गया। कुछ ही दूरी पर सामने से गाड़ी आई और उसे पास देने के लिए ड्राइर ने बस को रोकने की कोशिश की।

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रोहित का कहना है कि परिचालक दरवाजा खोलकर बाहर देख रहा था। बस नियंत्रित नहीं हो सकी और पहाड़ी से लुढ़क गई। इस बीच रोहित कुमार और परिचालक तुलसीराम झटके के साथ सड़क पर जा गिरे। बस कई मीटर गहरी खाई पर गिर गई और सब लोगों की जान चली गई। रोहित और तुलसीराम बच गए। इस हादसे में रोहित की मां की भी मौत हो गई।

तांत्रिक की मदद से भगाया ‘भूत’, जेसीबी से गिराया गया तहसील भवन

हमीरपुर।। हमीरपुर के नादौन में मिनी सचिवालय के लिए गिराए जा रहे पुराने तहसील भवन में प्रेत आत्मा होने की चर्चा थी। मजदूर इतने डरे हुए थे कि सामान बांधकर अपने गांव भागने की तैयारी में थे। खबर मिली है कि वहां पर एक तांत्रिक को बुलाया गया जिसने आत्मा को भगाने का दावा किया। इसके बाद ही इस भवन के आखिरी कमरे को गिराया गया। कमरे को गिराने में जेसीबी इस्तेमाल की गई क्योंकि मजदूर इसे तोड़ने को तैयार नहीं थेे।

दरअसल इस भवन को गिरा रहे मजदूरों ने कुछ दिन पहले काम बंद कर दिया था। उनका कहना है कि कोई प्रेत आत्मा उन्हें भवन नहीं गिराने दे रही है। मजदूरों का कहना है कि उन्हें किसी महिला के होने का आभास होता है। मजदूर इतने डरे हुए थे कि उन्हें सपनों में भी वह महिला दिखाई देने लगी थी जिसके साथ बच्चा होता था। वह कहती थी कि इस कमरे को मत गिराओ वरना बुरा होगा। गौरतलब है कि वह सिर्फ एक ही कमरे की बात करती थी, बाकियों की नहीं।

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यह था पुराना तहसील भवन।

घबराए हुए मजदूर काम करने को तैयार नहीं थे, ऐसे में गग्गल से तांत्रिक मोहम्मद इब्राहिम को बुलाया गया। इब्राहिम ने प्रेत आत्मा को भगाने का दावा किया है। उसका कहना है कि पुराने भवन को बनाने से पहले इस जगह पर एक महिला और पुरुष की मौत हुई थी। तभी से यह आत्मा यहां रह रही थी। दिन में यह पेड़ में रहती थी और रात को बदल वाले कमरे में आ जाती थी। तांत्रिक ने दावा किया है कि उसने अपनी विद्या से दोनों प्रेत आत्माओं को शांत कर सही जगह भेज दिया है।

तांत्रिक द्वारा भरोसा दिलाने के बाद ही जेसीबी चालक ने कमरा गिराया। पूरी प्रक्रिया के दौरान तांत्रिक वहीं रहा। तांत्रिक के साथ आए लोगों का कहना है कि इब्राहिम गग्गल में मेहनत मजदूरी का काम करता है। ठेकेदार विजय धवन का कहना है कि वह अब तक 200 से ज्यादा भवन गिरा चुके हैं मगर ऐसा कभी नहीं हुआ। रविवार को एक मजदूर के बेहोश होने और हाथ पर गंभीर चोट आने के बाद मजदूरों ने काम बंद कर दिया गया था। आज के दौर में भी भूत-प्रेत और तांत्रिक आदि से जुड़ी यह घटना पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है।

पढ़ें: भूत के डर से काम छोड़कर घर भाग रहे हैं मजदूर

हिमाचल में हर साल 3000 हादसों में जाती है 1000 की जान

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इन हिमाचल डेस्क।। शिमला के गुम्मा में हुए सड़क हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। मगर यह न तो इस तरह का पहला हादसा है और दुख की बात है कि न ही यह आखिरी हादसा लगता है। आए दिन हादसों की खबरें आती हैं। कभी कोई गाड़ी नदी में गिर जाती है तो कभी टूरिस्ट्स की बस पलट जाती है। कभी कोई जीप खाई में गिर जाती है तो कभी कोई यात्री वाहन लुढ़क जाता है। बावजूद इसके हादसों पर मुआवजों का ऐलान होता है, लोग एक-आध दिन दुखी होते हैं और फिर अपने कामों में डूब जाते हैं। इस बीच फिर हादसा होता है, फिर वही सिलसिला और फिर कोई नतीजा नहीं। मगर 60 लाख की आबादी वाले प्रदेश में इतने हादसे होते हैं जिनका कोई हिसाब नहीं है।

इस मामले में आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। 2015 तक पिछले 10 सालों में हिमाचल में 29,555 सड़क हादसे दर्ज किए गए। 2011 से 2015 के बीच ही 15,047 हादसे हुए और इनमें 5,612 लोगों की जिंदगी चली गई और 26,580 जख्मी हो गए। पुलिस द्वारा दर्ज किया गया यह आंकड़ा दिखाता है कि हर साल इस राज्य में 3000 हादसे होते हैं और उनमें 1000 लोगों की मौद हो जाती है जबकि 5000 जख्मी हो जाते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2016 में नवंबर तक 2,096 हादसे दर्ज किए गए थे और उनमें 780 लोगों की मौत हो चुकी थी। 3,919 लोग जख्मी हो गए थे।

File Photo
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ये हादसे होते क्यो हैं? अखबारों पर नजर डालें तो ज्यादातर हादसे वाहनों के खाई से लुढ़कने या सड़क से बाहर गिरने पर होते हैं। शराब पीकर गाड़ी चलाना या ओवरस्पीडिंग भी वजह हो सकती है मगर इस बारे में अभी कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है मगर प्रदेश की सड़कों की हालत भी दयनीय है। कई प्रमुख सड़कों को बना तो दिया गया है, मगर यह नहीं देखा गया कि सड़क की ढलान कैसे रखनी है। मोड़ों पर पैराफिट, क्रैश बैरियर तो छोड़िए कुछ जगहों पर साइन बोर्ड नहीं होते और न ही रिफ्लेक्टर लगे होते हैं। आए दिन सड़कों के किनारे भवन निर्माण सामग्री गिराना या केबल बिछाने के लिए खुदाई करना भी हादसों को आमंत्रित करता है।

पिछले साल सितंबर में दिल्ली में सभी प्रदेशों के परिवहन मंत्रियों की बैठक हुई थी। उसमें हिमाचल के परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने भारत सरकार से गुजारिश की थी कि पहाड़ी इलाकों में रोड इंजिनियरिंग की टेक्नॉलजी को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि पहाड़ी इलाकों में विशेष तौर पर डिजाइन की हुईं सड़कें बननी चाहिए। साथ ही उन्होंने गुजारिश की थी कि हिमाचल को एयर ऐंबुलेंस की सुविधा दी जाए ताकि जख्मी लोगों को तुरंत मेडिकल सहायता दी जाए। दरअसल हादसों के बाद आधे लोग तो अस्पताल ले जाते वक्त ही दम तोड़ देते हैं। अस्पतालों में कभी डॉक्टर नहीं होते तो कभी डॉक्टरों के पास अनुभव नहीं होता तो कभी जरूरी सुविधाएं नहीं होतीं। रेफर करने का गेम चलता है और इलाज मिलने से पहले ही जानें चली जाती हैं।

सवाल एक ही उठता है- जिम्मेदार कौन है?

भैंस लग रहे हो प्रैंक पार्ट 2: जब लोगों से कहा गया भैंस के साथ क्यों चल रहे हो

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इन हिमाचल डेस्क।। पिछले दिनों हमने हिमाचली प्रैंकस्टर्स kLoL Star का एक वीडियो दिखाया था, जिसमें वे लोगों से कह रहे हैं ‘भैंस लग रहे हो एकदम।’ यह सुनकर लोग हैरान रह जाते हैं कि उन्हें कौन सिरफिरा ऐसा बोल रहा है। मगर असल में इसमें ट्विस्ट है। प्रैंकस्टर्स में से एक बंदा लोगों के ठीक पीछे भैंस के सिर वाला मुखौटा पहने हुआ है। काला चश्मा लगाकर सामने से आने वाला बंदा कुछ इस अंदाज में डायलॉग मारता है कि सामने वालों को लगे कि उनके बारे में बात हो रही है। मगर बाद में वह आगे बढ़ जाता है और भैंस का मुखौटा लगाए शख्स से मिलता है।

लोगों को यह प्रैंक खूब पसंद आया था इसलिए प्रैंकस्टर्स ने इसका सेकंड पार्ट बनाया है। इसमें भी तरीका वही है। हालांकि ‘इन हिमाचल’ का मानना है कि प्रैंकस्टर्स को थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि अनजान लोगों के साथ प्रैंक गलत दिशा में भी जा सकता है। साथ ही लड़कियों को लेकर और संवेदनशीलता बरतनी चाहिए कि क्योंकि प्रैंक के नाम पर छेड़छाड़ करने वाले कुछ लफंगे भी सक्रिय होते हैं। इसलिए अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए ताकि किसी तरह का गलत मेसेज न जाए। बहरहाल, आप वीडियो देखें:

इससे पिछला पार्ट यह रहा।

चरस वाला प्रैंक देखने के लिए यहां क्लिक करें

डांस वाला प्रैंक देखे के लिए यहां क्लिक करें

गुम्मा बस हादसा: पता चली 44 लोगों की जान लेने वाली दुर्घटना की वजह

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के गुम्मा में हुए दर्दनाक बस हादसे में अभ 44 लोगों की मौत होने की पुष्टि हो चुकी है। करीब 500 मीटर गहरी खाई में गिरी बस के परखच्चे उड़ चुके थे और शव इधर-उधर बिखरे थे। मगर दो लोगों की जान इस हादसे में बच गई है। एक बस का कंडक्टर है और दूसरा एक यात्री। अब तक यह चर्चा हो रही थी कि आखिर हादसा हुआ कैसे। कयास लगाए जा रहे थे कि ओवरस्पीडिंग की वजह से हादसा हुआ होगा या फिर सड़क में कोई दिक्कत होने की वजह से ऐसा हुआ। मगर मौके पर मौजूद लोगों और हादसे में बचे युवक ने बताया है कि यह घटना इसलिए हुई क्योंकि बस में तकनीकी खामी थी और सब पता होने के बावजूद इसे चलाया जा रहा था।

हादसा इतना दर्दनाक था कि चारों तरफ लाशें बिखरी हुई थीं। कुछ पानी पर तैर रही थीं तो कुछ चट्टानों पर गिरी हुई थीं। टौंस नदी के किनारे का पानी तक लाल हो चुका था। ‘इन हिमाचल’ के पास इन हादसों के बाद के वीडियो भी थे मगर वे विचलित करने वाले थे। इसलिए हमने जिम्मेदारी निभाते हुए पाठको के साथ उन्हें शेयर करना उचित नहीं समझा।

हिंदी अखबार ‘अमर उजाला’ के मुताबिक अब तक की जांच में यह पता चला है कि उत्तराखंड की इस प्राइवेट बस को गंभीर तकनीकी खराबी के बावजूद चलाया जा रहा था। लोगों का कहना है कि ड्राइवर ने इस बस को मिनस पुल के पास मकैनिक के पास खड़ा किया था। कहा जा रहा है कि बस की कमानी (Leaf Spring) टूट गई थी मगर परिचालक ने बस की टूटी कमानी को तार से बांध कर चालक को धीरे-धीरे चलने के लिए मजबूर किया। बस हादसे का शिकार हो सकती है ये जानते हुए भी परिचालक सवारियों के लालच में इसे पीछे से आ रही दूसरी बस के आगे ही चलाता रहा।

कमानी या लीफ स्प्रिंग (leaf spring)
कमानी या लीफ स्प्रिंग (leaf spring). भारी वाहनों में सस्पेंशन के लिए इन्हें इस्तेमाल किया जाता है। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

यह भी कहा जा रहा है कि बस में काफी लोग खड़े भी थे। परिचाल बार-बार यह भई चेक कर रहा था कि खराबी बढ़ तो नहीं गई। इस बार सामने से आ रही एक गाड़ी को पास देते वक्त बस एक तरफ को झुक गई और टौंस नदीं में जा गिरी। गौरतलब है कि हिमाचल सरकार ने भी मामले की जांच के आदेश दिए हैं जिसकी रिपोर्ट अभी नहीं आई है। इसलिए ऑफिशली यह नहीं कहा जा सकता कि हादसा इसी वजह से हुआ।

लोगों का कहना है कि इस बस के पीछे भी एक प्राइवेट बस चल रही थी। हो सकता है सवारियां उठाने की होड़ मची हो और इस वजह से बस को खराब होने के बावजूद तेज गति से चलाया जा रहा था। बस जब एक तरफ झुकी तब परिचालक और एक अन्य युवक बाहर गिर गए (या शायद कूद गए) जिससे इनकी जान बच गई और बाकी लोग हादसे के शिकार हो गए। गौरतलब है कि शुरू में खबर आई थी कि ये दोनों ही लोग गायब थे। बाद में पुलिल ने कंडक्टर को गिरफ्तार भी किया।

रातोरात बदल गया रिवालसर झील का रंग, हजारों मछलियां मरीं

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। हिमाचल प्रदेश की प्रमुख प्राकृतिक झीलों में शुमार और तीन धर्मों की पवित्र संगम स्थली रिवालसर झील के पानी का रंग अचानक मटमैलो हो गया है। इस वजह से अब तक हजारों मछलियां मर चुकी हैं और बाकी मरने की कगार पर हैं। स्थानीय लोगों और प्रशासन की तरफ से मछलियों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है। इस बीच रिवालसर झील के पानी का अचानक से रंग बदलना और मछलियों का इतनी तादाद में मरने की वजहों का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब झील में मछलियां मरी हैं। मगर इस बार तो झील रंग भी बदला है और मछलियां बड़ी तादाद में मरी हैं।

रिवालसर कस्बे में पवित्र झील में प्रदूषण होने से और ऑक्सिजन की मात्रा कम होने से यहां पर हजारों की संख्या में मछलियां मर चुकी हैं।

प्रशासनिक अमला और मत्स्य विभाग के अधिकारी मौके पर डटे हुए हैं और यहां से मरी हुई मछलियों को बोट के सहारे बाहर निकाल कर डम्प करने का कार्य किया जा रहा है।

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हजारों मछलियां मर चुकी हैं।

रिवालसर झील में बेहोश और मौत से लड़ाई लड़ रही मछलियों को स्थानीय लोगों और प्रशासन की मदद से सुन्दरनगर झील और नहर में छोडा जा रहा है।

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बोट की मदद से निकाली जा रही हैं मछलियां

प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार रिवालसर की पवित्र झील के पानी का रंग अचानक बदलने और इतनी बड़ी मात्रा में मछलियों के मरने के रहस्य का अभी तक पता नहीं चल पाया है।

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ढेर लग चुके हैं मछलियों के

विभाग के अनुसार बीती शाम को मतस्य विभाग की टीम ने पानी के सैंपल ले लिए हैं और उन्हें जांच के लिए लैब भेजा गया है जिसकी रिपोर्ट दो से तीन दिनों में आ सकती है।

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स्थानीय लोगों ने रिवालसर झील के रखरखाव में कमी को ही इस हादसे की वजह बताया है और सरकार और प्रशासन से जल्द ही इस बारे में कडे कदम उठाने का आग्रह किया है ताकि अभी भी मौत से जूझ रहीं हजारों मछलियों और झील को बचाया जा सके। प्राचीन धरोहरों और प्राकृतिक सौंदर्य को बचाने और सहेजने के लिए प्रशासन और सरकार कितनी सजग है इसका अंदाजा मिटने की कगार पर खडी रिवालसर की पवित्र झील से सहज ही लगाया जा सकता है। शायद सरकार और प्रशासन इस तरफ समय रहते गौर करते तो आज यह नौबत ही नहीं आती।

हमीरपुर में ‘चुड़ैल’ से डरे मजदूरों ने रोका पुराने तहसील भवन को गिराने का काम

हमीरपुर।। हमीरपुर के नादौन में अजीबोगरीब मामला सामने आया है। यहां पर पुराने तहसील भवन को गिराया जा रहा था मगर तीन प्रवासी मजदूरों ने एक कमरे को गिराने से इनकार कर दिया है। इनका कहना है कि अब हम यहां काम नहीं करेंगे, यहां भूत रहते हैं। दहशत का आलम यह है कि तीनों मजदूर अपने गांव वापस जाने की तैयारी में हैं। उनका कहना है कि भूत न तो हमें काम करने दे रहे हैं और अब तो सपनों में आकर भी डराने लगे हैं। (कवर पिक्चर सिर्फ प्रतीकात्मक है)

मजदूरों का कहना है कि जैसे ही हम इस कमरे को गिराने लगते हैं तो एक महिला सामने आ जाती है। वह बोलती है कि इस कमरे को न गिराएं। वह सिर्फ एक कमरे को न गिराने की बात कर रही है। ‘दिव्य हिमाचल’ की खबर के मुताबिक नादौन में नए बनने वाले मिनी सचिवालय के लिए गिराए जा रहे पुराने तहसील भवन में काम करने वाले मजदूर अनिल, सुमित, संजार का कहना है एक चुडै़ल बार-बार दिखाई दे रही है।

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रविवार को एक घटना से ये मजदूर और डर गए हैं। शाम सात बजे एक मजदूर अनिल कुमार काम करते समय गिर गया। गिरने के कारण उसके हाथ पर करीब 17 टांके लगे हैं। मजदूरों का कहना है कि रात को सपने में भी एक महिला बच्चे सहित आ रही है। महिला कहती है कि इस भवन के चार में से एक कमरे को न गिराया जाए। अगर इसे गिराया गया तो जान-माल का नुकसान होगा।

कहा जा रहा है कि तीन कमरों में ऐसी कोई हरकत नहीं है। रविवार को मजदूर एक तांत्रिक को भी हवन के लिए लाए थे। घायल मजूदर को चोट लगने के बाद टैक्सी चालक उसे नादौन अस्पताल ले गया। यहां उसका उपचार करवाया गया। इसके बाद तो इन मजदूरों ने चुड़ैल के डर से अपना सामान बांध लिया है। लोगों के काफी समझाने के बाद सोमवार को ये मजदूर यहां रुके हैं। सोमवार को उन्होंने इस चौथे कमरे को गिराने का कार्य बंद कर दिया है।

खाई में लटकी 40 यात्रियों से भरी बस, 2 दिन पहले CM ने किया था रोड का उद्घाटन

चंबा।। इलेक्शन आते ही उद्घाटनों और शिलान्यासों की झड़ी लगती रहती है। इस दौरान यह नहीं देखा जाता कि निर्माण की गुणवत्ता क्या है, काम सही से हुआ है या नहीं। बस लोगों को खुश करने के लिए उद्घाटन कर दिए जाते हैं। इसका नुकसान क्या हो सकता है, इस बारे में विचार नहीं किया जाता। चंबा में एक हादसा होते हुए बचा। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दो दिन पहले हिमाचल दिवस के मौके पर जिस रोड का उद्घाटन किया था, व अचानक धंस गया और सवारियों से भरी बस खाई के ऊपर लटकने लगी। अगर चालक सूझबूझ नहीं दिखाता तो 40 सवारियों से भरी बस 1 किलोमीटर गहराई पर जाकर रुकती। ध्यान देने वाली बात यह है कि सड़क आदि जैसे निर्माण कार्य करने वाला विभाग PWD मुख्यमंत्री के ही पास है।

यह घटना चंबा के घूम जंजला रोड पर हुई। सीएम वीरभद्र सिंह ने दो दिन पहले हिमाचल दिवस समारोह के दौरान चंबा के चौगान से ही इस सड़क का उद्घाटन किया था। इसके बाद यहां बस सेवा भी शुरू कर दी गई। पिछले दो दिन की तरह सोमवार को एचआरटीसी की यह बस जंजला से चंबा की ओर रवाना हुई थी। बस में स्कूली बच्चों के अलावा नौकरी पेशा लोग भी सवार थे। कुल मिलाकर 40 से ज्यादा लोग इस बस में सवार थे। जैसे ही यह बस घूम जंजला के पास से गुजरी कि अचानक इस नई सड़क का डंगा धंस गया। इससे बस खाई में लटक गई। इससे यात्रियों में चीख पुकार मच गई।

बताया जा रहा है कि जिस जगह पर यह डंगा धंसा वहां रोड काफी तंग था। साथ ही बस की दूसरी तरह करीब एक किलोमीटर गहरी खाई है। बस इस तरह सड़क के बाहर लटक गई कि सवारियों को दरवाजे से बाहर निकलने तक की जगह नहीं बची। चालक ने पहले तो बस को नियंत्रित किया फिर तेजी से सभी सवारियों को अपनी सीट से होते हुए बाहर निकाला। सूचना मिलते ही पुलिस भी मौके पर पहुंची और बस को निकालने के लिए क्रेन की मदद ली गई।

प्रश्न उठता है कि अगर बस खाई में गिर गई होती तो 40 लोगों की जिंदगी जाने के लिए कौन जिम्मेदार होता? क्या PWD विभाग के अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार होते या HRTC जिम्मेदार होती जो इस रोड पर किस आधार पर बस चलाने लगी। या फिर हमारे राजनेता जिम्मेदार होने चाहिए जिनके लिए उद्घाटन करना अहम है, यह देखना अहम नहीं कि काम सही से हुआ है या नहीं। क्या हम तभी जागते और चीख-पुकार मचाते जब हादसा हो जाता? इस मामले की जांच होनी चाहिए कि किसने बस चलाने के लिए NOC दी और किसकी निगरानी में घटिया निर्माण हुआ। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री वीरभद्र ने पोस्ट किया उपलब्धियों का वीडियो, इन 10 दावों पर क्या सोचते हैं आप?

इन हिमाचल डेस्क।। आज हिमाचल दिवस के मौके पर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपने ऑफिशल फेसबुक पेज पर एक वीडियो शेयर किया है। इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा गया है- हिमाचल प्रदेश ने जिस अभूतपूर्व और समग्र विकास को पिछले 70 वर्षों में देखा है, उसे बयान करता हुआ ये एक वीडियो आप ज़रूर देखें। आपको हिमाचल दिवस की हार्दिक बधाई। अब यह पढ़कर तो लगता है कि प्रदेश ने जिन कठिनाइयों पर विजय हासिल करते हुए तरक्की का रास्ता तय किया है, यह वीडियो उसी पर होगा। मगर यह वीडियो प्रदेश की उपलब्धियों की जानकारी नहीं देता बल्कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के राजनीतिक सफर पर प्रकाश डालता है। यह एक तरह का प्रमोशनल वीडियो है जिसमें यह दिखाया गया है कि हिमाचल प्रदेश में जितनी भी तरक्की हुई है, उसका श्रेय वीरभद्र सिंह को जाता है।

अच्छा होता अगर प्रदेश अगर हिमाचल प्रदेश के स्थापना दिवस के मौके पर कोई राजनीतिक रूप से तटस्थ वीडियो बनाया जाता क्योंकि भले ही वीरभद्र 6 बार मुख्यमंत्री रहे हों, अन्य मुख्यमंत्रियों का भी प्रदेश के विकास में योगदान रहा है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि प्रदेश आज जहां पहुंचा है, वह सिर्फ वीरभद्र सिंह की वजह से ही पहुंचा है। मगर वीडियो में दिखाया गया है कि हिमाचल में तमाम मुश्किलें थीं और विकास करना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था। इसमें पहले समस्याओं को गिनाया गया है और आगे कहा है- लेकिन जहां मुश्किलें होती हैं वहां उनसे लड़ने का जज्बा और विकास का जुनून भी पैदा होता है। हिमाचल प्रदेश के विकास और प्रगति को जिन मजबूत कंधों की जरूरत थी, वह कर्मयोगी और युगपुरुष हिमाचल के सराहन में महाराजा पद्म सिंह और महारानी शांति देवी के यहां जन्मे। मात्र 13 वर्ष की आयु में जिन्होंने बुशहर रियासत संभाली।

राजनीति चलती रहती है मगर अपनी उपलब्धियां गिनाने में डॉक्टर परमार को भूलना कैसे संभव है? ठीक है कि वह राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के चलते धूमल या शांता का नाम नहीं ले सकते थे मगर परमार तो उन्हीं की पार्टी के थे। डॉक्टर वाई.एस. परमार वह शख्स थे जिन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी हिमाचल को आज का हिमाचल बनाने में। जिन्होंने उन लोगों को गलत साबित किया जो कहते थे कि पहाड़ी राज्य कुछ कर नहीं पाएगा। डॉक्टर परमार ने जो हिमाचल की नींव रखी थी, उसी के दम पर आज यह ऊंचा उठता जा रहा है। उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।  पढ़ें: डॉक्टर परमार न होते आज पंजाब में होता पूरा हिमाचल

पहले यह वीडियो देखें और उसके नीचे पढ़ें कि इसमें कौन से दावे ऐसे किए गए हैं जो सच्चाई से दूर नजर आते हैं।

कुछ पकड़ा आपने? भले ही इस वीडियो में यह दावा किया गया है कि मात्र 13 वर्ष की आयु में वीरभद्र सिंह ने बुशहर रियासत संभाली थी, हकीकत यह थी कि उनके राज्याभिषेक से पहले ही भारत आजाद हो गया था। यह भी इतिहास है कि बुशहर रियासत ने भारत संघ में विलय का विरोध किया था। खैर, बीते दौर की बातें छोड़कर उन दावों की बात करते हैं जो वीडियो में किए गए हैं। चलिए मान लेते हैं कि हिमाचल आज जहां पर भी है, उसका पूरा श्रेय वीरभद्र सिंह को जाता है और अन्य मुख्यमंत्रियों या अन्य सरकारों को नहीं। फिर देखते हैं कि इस वीडियो में सीएम वीरभद्र सिंह का गुणगान करते हुए क्या दावे किए गए हैं। आप खुद पढ़ें और बताएं कि इन दावों से आप कितने सहमत हैं:

दावा नंबर 1. हिमाचल के हर घर तक सड़क जाती है
हिमाचल की हर पंचायत तक सड़क पहुंच जाए, यही बड़ी बात होगी। फिर गांवों का नंबर आएगा। वैसे भी हिमाचल की भौगोलिक परिस्थिति ऐसी है कि हर घर तक सड़क पहुंचाई ही नहीं जा सकती। यह बहुत ही गुमराह करने वाला बयान है।

दावा नंबर 2. हर बच्चा स्कूल जाता है
हिमाचल सरकार ने पिछले साल खुद दावा किया था- The net enrolment ratio in respect of elementary education has touched almost 100%. यह सरकार अपना दावा है जिसमें भी ऑलमोस्ट कहा गया यानी तकरीबन। मगर आप अपने आस-पड़ोस में ही कई उदाहरण देख सकते हैं जहां पर बच्चे एक लेवल के बाद पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं। बाकी प्रदेशों के मुकाबले हिमाचल बेहतर जरूर हो सकता है, परफेक्ट नहीं। 2015  में SSA का सर्वे कहता है कि 10वीं ड्रॉपआउट के मामले में लड़कों का पर्सेंटेज 6.20% था और लड़कियों का 5.69 पर्सेंट।

दावा नंबर 3. 100 फीसदी साक्षरता दर

गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले साल जून में खुद दावा किया था कि साक्षरता दर 88 फीसदी हो गई है। एक साल के अंदर यह 100 पर्सेंट कैसे हो गई? वैसे 2011 जनगणना के आधार पर हिमाचल प्रदेश की साक्षरता दर 82.8 पर्सेंट थी। फिलहाल जनगणना के इन्हीं पैमानों को आदर्श माना जाता है और सरकार भी अपनी रिपोर्ट्स में इसी का हवाला देती है।
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दावा नंबर 4. प्रदेश में लगभग हर घर में नल से साफ पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है।
गर्मियां शुरू हो चुकी हैं और प्रदेश के कई इलाकों में पानी की किल्लत शुरू हो गई है। उदाहरण लेते हैं सरकाघाट और धर्मपुर की पंचायतों का जहां लोग विवश हैं प्राकृतिक जलस्रोतों का पानी पीने के लिए। वैसे राजधानी शिमला में भी हालात अलग नहीं हैं। पीलिया से यहां कम से कम 10 लोग मारे गए थे। टंकियों में कभी बंदर का शव मिला तो कभी इंसान का। 

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दावा नंबर 5. लगभग सबको सिंचाई की योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है
प्रदेश के इलाकों में सिंचाई की सही व्यवस्था न होने पर सूखे जैसे हालात बने रहते हैं। आईपीएच डिपार्टमेंट इतना सुस्त है कि कई इलाकों में कूहलें ठप पड़ी हैं। यही नहीं बागवानों को भी दिक्कत होती है। भरमौर में कई जगहों पर मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है। यहां तक पूर में सेब के बागीचों को भारी नुकसान पहुंच गया था सिंचाई की व्यवस्था न होने पर।
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दावा नंबर 6. कृषि से 60 फीसदी लोगों को रोजगार प्राप्त हो रहा है।
हिमाचल में ज्यादातर निर्वाह कृषि होती है यानी गुजारे लायक। चुनिंदा लोग ही फसलें बेचकर पैसे कमा पाते हैं। अगर मैं अपनी पुश्तैनी जमीन पर धान उगा रहा हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं उसे मंडी में बेचूंगा या इतनी पैदावार होगी कि उससे मुझे मुनाफा होगा। हो सकता है कि वह मेरे परिवार की जरूरत भी पूरी न कर पाए। हिमाचल के कृषि विभाग की वेबसाइट कहती है कि Himachal Pradesh is predominately an agricultural State where Agriculture provides direct employment to about 71 percent of the total population. मगर यह दावा गलत है। 71 पर्सेंट लोग खेती करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है उन्हें इससे रोजगार मिलता ही है।

दावा नंबर 7. वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रदेश का अभूतपूर्व विकास हुआ है
सड़कों और अस्पतालों की हालत क्या है, यह बात छिपी नहीं है। सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य और रोजगार के मामले में प्रदेश सरकार कुछ खास नहीं कर पाई है। कई प्रमुख सड़कें बरसात में नदी का रूप ले लेती हैं, गांवों की सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों पर सड़क यह मालूम नहीं। स्वास्थ्य का आलम यह है कि मुख्यमंत्री और तमाम मंत्री दांतों और आंखों का इलाज कराने भी बाहरी राज्यों में जाते हैं

दावा नंबर 8. पर्यटन योजनाओं के लिए वीरभद्र बेहतरीन अनुदान देते रहे हैं
हिमाचल प्रदेश का पर्यटन विभाग मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा है। दरअसल यह विभाग कई चीजों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए सड़कें, बिजली और पानी आदि की व्यवस्था ठीक होगी तभी टूरिजम का विकास होगा। सुविधाएं होंगी तभी टूरिस्ट आएंगे। मगर अफसोस, पर्यटन पर हिमाचल सरकार बहुत कम पैसा खर्च कर रही है। मनाली जैसे रूट्स पर, जहां हर साल लाखों टूरिस्ट्स आते हैं, सड़कों की हालत दर्शनीय है। टूरिस्ट स्थलों के विकास के लिए और लोगों को अच्छा अनुभव देने के लिए कुछ भी विशेष नहीं किया जा रहा।

दावा नंबर 9. आज सच्चे मायनों में हिमाचल देवभूमि बन रहा है
हिमाचल का देवभूमि होने का सरकारों से क्या संबंध? क्या पहले हिमाचल देवभूमि नकली मायनों में थी? देवभूमि हिमाचल को कहा जाता है देवताओं की भूमि होने की वजह से। यहां शक्तिपीठों, कई प्राचीन मंदिरों और गांव-गांव में देवताओं का वास होने की वजह से इसे देवभूमि कहा गया। इसे देवभूमि इसलिए कहा गया क्योंकि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य और सादगी ऐसी है कि देवता भी वास करते हैं।

दावा नंबर 10. वीरभद्र विकासपुरुष हैं और प्रदेश का युवा उनमें अपनी आशा और भविष्य देखता है
यह निजी पसंद नापसंद का मामला है। पाठक कॉमेंट करके बताएं कि आफ उनमें अपनी आशा और भविष्य देखते है या नहीं।

जब प्रदेश के मुख्यमंत्री के ऑफिशल फेसबुक पेज से इस तरह के दावे किए जाएंगे तो सभी का फर्ज बनता है कि उनकी जांच करें। यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि वीडियो को किसी और ने बनाया है। क्योंकि अगर यह ऑफिशल पेज से पोस्ट हुआ तो इसे मुख्यमंत्री का ही दावा माना जाएगा। इसलिए यह जरूरी है कि इस तरह के वीडियो में सही जानकारियां दी जाएं। इस आर्टिकल में हमने जानकारियां हमने विभिन्न स्रोतों से जुटाई हैं। सूचनाओं के स्रोत पर जाने के लिए आप हाइपरलिंक्स पर क्लिक कर सकते हैं। यह भी एक जरूरी विषय हो सकता है कि इस वीडियो को बनवाने के लिए कहीं सरकारी पैसा खर्च तो नहीं किया गया। क्योंकि यह व्यक्ति का प्रमोशन है, प्रदेश का नहीं।

शिमला में शूट हुआ Google का यह विज्ञापन भावुक कर देगा आपको

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इन हिमाचल डेस्क।। गूगल के ऐड वैसे तो बहुत कम देखने को मिलते हैं मगर जब भी दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक यह कंपनी ऐड बनाती है, वे कमाल के होते हैं। ऐसा ही एक ऐड इसने बनाया है जिसकी शूटिंग शिमला में हुई है। आपके साथ इस ऐड को शेयर करने की दूसरी वजह यह है कि शिमला में शूटिंग के अलावा इसमें इमोशनल टच भी है। एक पिता-पुत्र के रिश्ते का भावनात्मक पहलू। गूगल की मदद से बेटा अपने पापा का 40 साल पुराना सपना पूरा करने में कामयाब हो जाता है। इस ऐड में जो पिता-पुत्र घूमने जाते हैं, उन्हें शिमला का निवासी बताया गया है। बेटा मुंबई में काम करता है और पिता शिमला के एक सिनेमाहॉल में काम करते हैं।

गूगल ने हम सबकी जिंदगी बदल दी है। कई सारी चीजें सुविधाजनक हो गई हैं। कुछ भी खोजना है, चुटकियों में सामने होता है। यह हमारे ऊपर है कि हम गूगल का इस्तेमाल अच्छे मकसद से करते हैं या बुरे। बहरहाल, आप विज्ञापन देखें और आखिर में कॉमेंट करके जरूरत बताएं कि यह आपको कैसा लगा: