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Tuesday, September 16, 2025
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नए विवाद में फंसा तेंदुओं की खाल वाला सोलन का ‘हाई-प्रोफाइल’ बाबा

सोलन।। आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले सोलन के एक बाबा से तेंदुओं की खालें मिली थीं। उस वक्त मीडिया में मामला उछला था कि इस बाबा के बड़े ऊंचे लिंक हैं और इसी वजह से यह अक्सर विवादों के बावजूद बच जाता है। अब इसी बाबा का नया कारनामा सामने आया है। साधुपुल में श्रीराम लोक मंदिर के बाबा अमरदेव पर अब आरोप लगा है कि उसने एक महिला पर तेजधार हथियारों से हमला किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके बाद गांव वाले भड़क गए जिसके बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और हालात सुधारने में जुट गई। इसके बाद बाबा को पुलिस स्टेशन ले जाया गया और बयान दर्ज किया गया। वहीं घायल महिला को इलाज के लिए कंडाघाट अस्पताल ले जाया गया है।

लोगों का कहना है कि उन्हें उम्मीद कम ही है कि न्याय मिलेगा क्योंकि बाबा की ऊंची पहुंच। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि घायल महिला को लोगों ने खुद जैसे-तैसे क्षेत्रीय अस्पताल पहुंचाया मगर बाबा को पुलिस वीआईपी. बनाकर अपने वाहन में सोलन पहुंचा। बताया जाता है कि मामले की शिकायत लेकर ग्रामीण एसपी सोलन से भी मिले हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वे इसकी शिकायत लेकर पीएम मोदी से मिलने के लिए शिमला जाएंगे।

कौल सिंह ठाकुर (बाएं) और धनीराम शांडिल के साथ बाबा अमरदेव

बाबा पर लगे हैं कई आरोप
ध्यान देने वाली बात यह है कि अप्रैल 2016 में पुलिस की टीम ने इस बाबा के से तेंदुए की चार खालें बरामद की थीं। इस मामले में बाबा अमरदेव को हिरासत में भी लिया गया लेकिन बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। इसके अलावा बाबा के आश्रम श्रीराम लोक मंदिर पर सरकारी भूमि पर कब्जा करने का आरोप लगा था। इस मामले में 19 अप्रैल 2016 को मंदिर को जिला प्रशासन ने नोटिस भी जारी किया था। अब यह नया मामला है जिसमें महिला पर हमला करने का आऱोप लगा है।

कई मंत्री लगाते हैं हाजिरी
पंजाब केसरी ने दावा किया है कि बाबा के पास सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री धनीराम शांडिल लगभग हर कार्यक्रम में जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर व वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौर भी यहां पर अकसर आते हैं। इसके अलावा प्रदेश के कई अधिकारी बाबा के पास हाजिरी भरते हैं। इससे पहले यह बाबा मीडिया कर्मचारियों के गले काटकर उनकी माला बनाने की धमकी भी दे चुका है।

IIT मंडी के बोटैनिकल गार्डन से लोग चुरा रहे सामान, पुलिस नहीं कर रही कार्रवाई

मंडी।। जब किसी जगह पर कोई बड़ा संस्थान खुलता है तो उस जगह के विकास की रफ्तार तेज हो जाती है। पहले तो वहां के लिए अच्छी सड़क बनती है, स्वास्थ्य और पानी जैसी बुनियादी जरूरतों की तरफ सरकारें लापरवाही नहीं बरततीं। सबसे खास बात यह कि स्थानीय लोगों को विभिन्न तरह का रोजगार मिलता है। इसलिए यह स्थानीय लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस संस्थान के सफल होने में पूरी मदद करें। मगर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले का कमांद पूरे प्रदेश के लिए शर्म का विषय बनता जा रहा है। यहां पर आईआईटी जैसे संस्थान में चोरियों की घटनाएं दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं।

मंडी के फ्रूट साइंटिस्ट डॉक्टर चिरंजीत परमार आईआईटी मंडी में बोटैनिकल गार्डन की स्थापना में जुटे हैं। यह प्रदेश का अपनी तरह का पहला ऐसा गार्डन होगा जिसमें हिमाचल में पाए जाने वाेल पेड़-पौधे पाए जाएंगे। यहां पर लिंगड़, दरेगल, काफल, आखे और तरड़ी तक लगाई जा रही है। आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना अहम और महत्वपूर्ण प्रॉजेक्ट है।  (डॉक्टर चिरंजीत परमार की पोस्ट)

अब तक यहां 164 विभिन्न किस्म के पेड़-पौधे लगाए जा चुके हैं। चाय का बागान लगाया गया और कुछ अन्य किस्मों को भी यहां लाने की तैयारी की जा रही है। आईआईटी जैसे संस्थान में इस तरह पहल भी अनोखी है। यहां सिंचाई की व्यवस्था के लिए करीब एक किलोमीटर की दूरी से पानी लाया गया मगर किसी ने 1200 मीटर प्लास्टिक का पाइप चोरी कर लिया। दूर से विभिन्न किस्म के पेड़-पौधे लाए गए थे मगर उन्हें भी चुरा लिया गया। यही नहीं, जनसत्ता अखबार का कहना है कि 191 पौधों की अब तक चोरी हो चुकी है। मेडिसनल प्लांट गार्डन के लिए पानी की बड़ी टंकी लगाई गई थी मगर उसे भी लोग चुरा ले गए। अब वहां नई टंकी लानी पड़ी है।

इस संबंध में डॉक्टर परमार पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मिले मगर अब तक किसी को पकड़ा नहीं जा सका है। कमांद जैसी छोटी जगह पर 1200 मीटर प्लास्टिक पाइप को ढूंढना कोई मुश्किल काम नहीं था मगर पुलिस के ढीले रवैये से चोरों की हिम्मत बढ़ती जा रही है। डॉक्टर परमार ने आखिर में थक-हारकर अपील की है, ‘कमांद गाँव वालो बोटैनिकल गार्डन को लगने दो. इस से और आपके यहाँ बन रहे आई आई टी जैसे संस्थान से आपको और आपकी आने वाले पीढ़ियों को बहुत लाभ होगा. किसी इलाके में इतने बड़े संस्थान बहुत भाग्य से खुलते हैं. इस लिए मेरी आप सब से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि कृपा करके इसकी स्थापना में सहयोग करें और रुकावटें ना खड़ी करें.’

इस पूरे मामले में शक स्थानीय शरारती तत्वों पर जाता है क्योंकि कोई बार-बार बड़ी ही सफाई से चोरी को अंजाम दे रहा है। साथ ही पुलिस पर भी प्रश्न खड़े होते हैं क्योंकि वह इस मामले की रिपोर्ट ही लिखने को तैयार नहीं है। गौरतलब है कि यह वही कमांद है, जहां आईआईटी कैंपस में साल 2015 जून में खूनी संघर्ष हुआ था। स्थानीय मजदूरों और पंजाब के ठेकेदार के कथित बाउंसर्स के बीच हुई इस संघर्ष में पंजाब के 4 युवकों की मौत हो गई थी। शायद शरारती तत्वों के हौसलों को पुलिस और बढ़ने देना चाहती है। इसीलिए कमांद एक बार फिर हिमाचल के लिए शर्म का विषय बनता जा रहा है। पहले इस तरह का हत्याकांड न तो कभी प्रदेश में कहीं हुआ था और न ही इस तरह की चोरियों के लिए हिमाचल की पहचान है। यदि चोर बाहरी हैं, तब उनका पता लगाना भी पुलिस का काम है। मगर पुलिस तो हाथ पर हाथ धरे बैठी है। यह कमांद से स्थानीय लोगों की भी जिम्मेदारी है कि पता लगाएं कि कौन ऐसे काम करके उनके इलाके का नाम खराब कर रहा है।

शहीद सुरेंद्र को 3 साल की बेटी ने दी मुखाग्नि, नम हुई सबकी आंखें

मंडी।। छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली हमले में शहीद नेरचौक के सुरेंद्र कुमार का सोमवार को राजकीय सम्मान के साथ पैतृक गांव के समीप श्मशानघाट नेरढांगू में अंतिम संस्कार किया गया। पार्थिव शरीर लाए सीआरपीएफ जवानों और जिला पुलिस की सशस्त्र टुकड़ी ने हवाई फायर कर शहीद को सलामी दी। शहीद की 3 साल की बेटी एलिना ने अपने शहीद पिता की पार्थिव देह को मुखाग्नि दी। मासूम बच्ची को कुछ पता नहीं चल रहा था कि क्या हो रहा है। यह देख हर किसी की आंखें नम थीं।

बेटी एलिना हालात से अनजान है। बस अपनी दादी और मां को देखकर रोए जा रही है। उस बेचारी को तो यह भी नहीं पता था कि अचानक इतने लोग क्यों इकट्ठा हुए हैं। देखें, एमबीएम न्यूज नेटवर्क द्वारा पोस्ट किया गया वीडियो:
 

छत्तीसगढ़ के सुकमा में सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन में तैनात नेरचौक के 33 साल के सिपाही सुरेंद्र रविवार को नक्सली हमले में शहीद हो गए थे। सुरेंद्र 2003 में CRPF में भर्ती हुए थे। उन्होंने 6 साल श्रीनगर में अपनी सेवाएं दी। सुरेंद्र पिछले तीन सालों से छत्तीसगढ़ के सुकमा में सेवारत थे। लगभग 14 साल सीआरपीएफ की नौकरी में सुरेंद्र कुमार ने पहले भी दो बार नक्सलियों के हमले का सामना किया था। वह अपने पीछे माता विमला देवी, पत्नी किरण, तीन साल की बेटी एलिना और भाई जितेंद्र को छोड़ गए हैं।

कैदियों का वीडियो डालने पर सस्पेंड हुए कॉन्स्टेबल ने शुरू की भूख हड़ताल

इन हिमाचल डेस्क।। कुछ दिन पहले मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में फेसबुक यूज कर रहे कैदियों का वीडियो डालने पर सस्पेंड हुए वॉर्डन भानु पराशर ने भूख हड़ताल शुरू कर दी है। ‘इन हिमाचल’ को ‘समाचार फर्स्ट’ पोर्टल से एक वीडियो मिला है जिसमें भानु बता रहे हैं कि मैंने भूख हड़ताल शुरू कर दी है। उनका कहना है कि मैंने सच के लिए आवाज उठाई है और कुछ गलत नहीं किया। उन्होंने यह मांग भी की है कि जेल के डॉक्युमेंट्स वगैरह की जांच सीबीआई से होनी चाहिए। गौरतलब है कि भानु ने न सिर्फ कैदियों का वीडियो डाला था, जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप भी लगाए थे। दूसरी तरफ जेल प्रशासन ने आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि भानु परमार पहले से ही अनुशासनहीन है।

 

इस नए वीडियो में भानु का कहना है कि मेरी तबीयत खराब हो चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि पता नहीं मेरे जीते जी मेरी आवाज सुनी जाए या नहीं, मगर जांच की रिपोर्ट अगर मेरी मौत के बाद भी आती है औप मैं गलत पाया गया तो मुझे दोषी करार दिया जाए। देखें वीडियो:

जेल प्रशासन पर लगाए थे गंभीर आरोप
भानु पराशर ने आरोप लगाए थे कि कैदी जेल में कई स्तर पर सुरक्षा से खिलवाड़ हो रहा है। कैदी संवेदनशील जगहों पर पहुंच जाते हैं और अधिकारियों के कैबिन तक आ जाते हैं। इंटरनेट, मोबाइल फोन और दूसरे गैजट्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। यहां तक कि कैदी बिना परोल भी जेल से बाहर जाते हैं। जेल के बाहर इसके लिए कई गाड़ियां भी खड़ी रहती हैं। भानु का कहना है कि उसने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से भी की मगर उसके बदले सस्पेंशन लेटर थमा दिया गया। भानु का कहना है कि इस दौरान मुझे प्रताड़ित भी किया गया और गालियां तक दी गईं। यहां तक फेसबुक पर पोस्ट्स लाइक करने वाले सहयोगी पुलिकर्मियों को भी तंग किया जा रहा है। भानु का कहना है कि इस जेल की बात नहीं है, अन्य जगहों पर भी वह इस तरह की खामियों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं मगर बदले में कार्रवाई ही झेलनी पड़ी है। 5 महीने से तनख्वाह तक रोकी गई है।

जेल सुपरिटेंडेंट ने भानु को बताया था अुशासनहीन
‘समाचार फर्स्ट’ ने जेल सुपरिटेंडेंट शेर चंद से भी बात की। उनका कहना था कि सारे आरोप निराधार हैं और आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी खुद ही अनुशासनहीन है। उसके खिलाफ कई बार विभागीय कार्रवाई की जा चुकी है। शेर चंद ने कहा कि इस कर्मी ने नाम में दम कर रखा है। जब पोर्टल ने शेर चंद से पूछा कि क्या जेल मैनुअल में कैदियों को सोशल मीडिया यूज करने की इजाजत देने का प्रावधान है, तो शेर चंद ने इनकार किया मगर कहा कि वे सोशल मीडिया नहीं, बल्कि हमारी वेबसाइट पर काम कर रहे थे। जब पूछा गया कि वेबसाइट पर स्टाफ क्यों नहीं काम कर रहा तो शेर चंद ने कहा कि अच्छे कैदियों को प्रोत्साहित करने के लिए हम कई स्तर पर कार्य चलाते हैं।

वीडियो में खुली थी जेल प्रशासन के दावों की पोल
शेर चंद का यह दावा झूठ साबित होता दिखता है, क्योंकि साफ दिख रहा है कि वे कैदी फेसबुक पर एक बच्चे की फोटो को प्रोफाइल पिक्चर सेट कर रहे थे। वे दोनों अकेले ही थे और वीडियो बनाने वाले ने जब उनसे पूछा तो सकपका गए।

कैदी फेसबुक ही यूज कर रहे थे। यह देखें स्क्रीन पर क्या खुला है।

प्रश्न यह है कि दोनों कैदी अगर पढ़े लिखे थे और उनसे वेबसाइट के लिए भी सेवा ली जा रही थी, तो उस वक्त निगरानी के लिए कोई औऱ वहां मौजूद क्यों नहीं था? हैं तो आखिर कैदी ही, फिर क्या गारंटी की वे इंटरनेट से किसी साजिश को अंजाम नहीं देंगे या किसी अन्य आपराधिक गतिविधि की योजना नहीं बनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि जब वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि फेसबुक इस्तेमाल हो रही थी, क्यों जेल सुपरिटेंडेंट झूठ बोल रहे हैं? प्रश्न यह भी है कि अगर आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी भानु पराशर अगर पहले भी अनुशासनहीता कर चुका है, तब इसका मतलब यह नहीं कि वीडियो में जो दिख रहा है कि वह झूठ है।

‘हरियाणा की बसों जैसी क्यों नहीं हो सकतीं HRTC बसों की सीटें?’

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश की सरकारी बसों को लेकर लोगों की पुरानी शिकायत रही है कि इनमें लेग रूम नहीं होता यानी टांगों के पास जगह कम होती है। सीटें इतनी पास-पास हैं ज्यादातर बसों में कि सामान्य कद-काठी वाले आदमी के भी घुटने भी अगली सीट से टच हो जाते हैं। पहाड़ों की सड़कें वैसे भी मोड़ वाली होती हैं इसलिए मोड़ आने पर इतना प्रेशर पड़ता है कि कभी घुटनों की कैप (कटोरी) भी फ्रैक्चर हो सकती है। छोटी दूरी की यात्रा करनी हो, तब तो काम चलाया जा सकता है, मगर लॉन्ग रूट की बसों में भी यही समस्या देखने को मिलती है। दिल्ली से हिमाचल तक आना-जाना सजा बन जाता है। वॉल्वो बसों को छोड़ दें तो अन्य बसों, टाटा एसी और सेमी डीलक्स तक में घुटनों की शामत आ जाती है। यही नहीं, इन सेमी डीलक्स बसों में अगर कोई रिक्लाइनर सीट की बैक पीछे कर दे तो वह पीछे वाले के पेट में धंस जाती है। कई बार तो यात्री इस चक्कर में एक-दूसरे से मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।

लोग इतने समय से इन बसों को लेकर शिकायत कर रहे हैं मगर कोई भी ध्यान देता नहीं दिख रहा। सरकार चाहे बीजेपी की रही हो या कांग्रेस की, हर कोई इस बात को नजरअंदाज करता रहा है और यात्रियों को झेलना पड़ता है। यात्री अक्सर सवाल उठाते हैं कि HRTC की बसों के साथ ही ऐसी समस्या क्यों आती है, जबकि हरियाणा रोडवेज की बसों में न सिर्फ लेगरूम काफी होता है बल्कि वे कम्फर्टेबल भी होती हैं। फिर क्यों हिमाचल में ऐसी बसें नहीं चलाई जा सकतीं? इस बारे में सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने वाले हिमाचल के परिवहन मंत्री से भी लोगों ने फेसबुक लाइव पर सवाल पूछे थे। उस दौरान मंत्री ने कहा था कि आगे जो भी बसें खरीदी जाएंगी, उनमें इस बात का ख्याल रखा जाएगा। मगर यात्रियों की शिकायत है कि पिछले दिनों HRTC के बेड़े में जो बसें नई जुड़ी हैं, इनके साथ भी यही समस्या है। अब लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया पर जाहिर हो रहा है।

एक फेसबुक पेज ने 21 अप्रैल को पोस्ट डाली है, ‘हिमाचल की #HRTC बसों में लॉन्ग रूट पर सफर करना सच में मुस्किल है, बसें इतनी छोटी और सीट इतनी तंग बनाई गई हैं एसा लगता है जैसे डब्बे में पैक कर दिया हो 🙂 उपर से जहां ये बसें खाना खाने रूकती है वहाँ हमें बुरी तरह लुटा जाता है कोई सुनने वाला नहीं जो सवारी खाने के ज्यादा रेट पर बहस करती है उसको ढाबे वाले गुंडे पीटने पर उतारू हो जाते हैं जिन अधिकारियीं ने इनको बनाने का आईडिया दिया हो उनको हर महीने जरूर 10 घंटे बैठ के इन बसों में सफर के लिए बोला जाए और इन ढाबों पर इन अधिकारीयों को बासी और महंगा खाना खिलाया जाए घुटने छिल जाते हैं रिश्तेदार के यहाँ पहुँचने से पहले।’ (नीचे देखें पोस्ट)

2 दिनों के अंदर करीब डेड़ हजार लोग इसे लाइक कर चुके हैं और 600 के करीब शेयर कर चुके हैं। लोगों ने कॉमेंट करके अपने अनुभव साझा किए हैं और बताया है कि उन्हें भी समस्या होती है।

यह वाकई गंभीर समस्या है और इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। In Himachal का भी मानना है कि HRTC को चाहिए कि यात्राओं को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ सुविधाजनक भी बनाना चाहिए। कई बार 2 दिन की छुट्टी बड़ी मुश्किल से मिलती है बाहर काम कर रहे या पढ़ रहे लोगों को घर जाने के लिए। अगर वे HRTC की बसों से जाते हैं तो कमर और टांगों की हालत दर्द के मारे खराब हो जाती है और सही से नींद भी नहीं आती। ऐसे में घर की यात्रा परेशानी का सबब बन जाती है।

रिवालसर: अब तक 40 टन मछलियां मरीं, बचाव कर्मी बीमार

मंडी।। रिवालसर झील में अब तक करीब 40 टन मछलियां प्रदूषण की वजह से दम तोड़ चुकी हैं। पानी में ऑक्सिजन की कमी हो जाने की वजह से यह सब हो रहा है। शनिवार को भी झील से मछलियों की 5 ट्रॉलियां निकाली गईं। इसबीच मछलियों को बचाने में जुटे करीब आधा दर्जन कर्मचारी बीमारी की चपेट में आ गए हैं। खबर है कि उल्टी-दस्त की से जूझ रहे इन लोगों ने अस्पताल का रुख नहीं किया और प्राइवेट क्लीनिक से मिली दवाई से काम चल रहे हैं। अब पूरे इलाके में महामारी फैलने का खतरा भी मंडराने लगा है।

गौरतलब है कि दो हफ्ते पहले अचानक झील का रंग बदलने लगा था और पीला हो गया था। इसके बाद से मछलियों के मरने का सिलसिला शुरू हो गया था अब मत्स्य पालन विभाग जिंदा बची मछलियों को प्राकृतिक स्रोतों में डालकर उन्हें बचाने की कोशइश में लगा है। मरी मछलियों को निकालकर उन्हें जमीन में दबाने के लिए करीब 90 लोग लगे हुए हैं। लोग भी अपने स्तर पर हर संभव योगदान दे रहे हैं।

इस बीच मंडी के एक कारोबारी सुधांशु कपूर ने रिवालसर झील में जिंदा मछलियों को बचाने के लिए कृत्रिम ऑक्सीजन के 30 सिलिंडर अपनी ओर से प्रशासन को दिए हैं। इसके अलावा आईपीएच और अग्निशमन विभाग लगातार झील में शुद्ध पानी डाल रहा है ताकि जिंदा मछलियों को बचाया जा सके।

कैदियों का वीडियो बनाने वाले पुलिकर्मी को जेल सुपरिटेंडेंट ने बताया अनुशासनहीन

शिमला।। मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में कैदियों द्वारा फेसबुक इस्तेमाल करने के मामले में नई जानकारी सामने आई है। जेल प्रशासन का कहना है कि वीडियो बनाने वाला पुलिसकर्मी अनुशासनहीन है और पहले भी उसपर विभाग कार्रवाई कर चुका है। गौरतलब है कि सस्पेंड किए गए कॉन्स्टेबल भानु पराशर ने फेसबुक पर एक वीडियो डाला है जिसमें दो कैदी फेसबुक पर प्रोफाइल पिक्चर लगाते नजर आ रहे हैं। मगर जेल के सुपरिटेंडेंट शेर चंद का कहना है कि ये कैदी फेसबुक पर नहीं, बल्कि वेबसाइट पर काम कर रहे थे। मगर जेल के सुपरिटेंडेंट का यह दावा झूठा साबित होता नजर आ रहा है।

हिमाचल प्रदेश के न्यूज पोर्टल ‘समाचार फर्स्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक सस्पेंड किए गए कॉन्स्टेबल भानु पराशर ने आरोप लगाए हैं कि कैदी जेल में कई स्तर पर सुरक्षा से खिलवाड़ हो रहा है। कैदी संवेदनशील जगहों पर पहुंच जाते हैं और अधिकारियों के कैबिन तक आ जाते हैं। इंटरनेट, मोबाइल फोन और दूसरे गैजट्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। यहां तक कि कैदी बिना परोल भी जेल से बाहर जाते हैं। जेल के बाहर इसके लिए कई गाड़ियां भी खड़ी रहती हैं।

पढ़ें: अधिकारी के कमरे में फेसबुक यूज कर रहे कैदियों का वीडियो बनाने वाला पुलिसकर्मी सस्पेंड

भानु का कहना है कि उसने इस मामले की शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से भी की मगर उसके बदले सस्पेंशन लेटर थमा दिया गया। भानु का कहना है कि इस दौरान मुझे प्रताड़ित भी किया गया और गालियां तक दी गईं। यहां तक फेसबुक पर पोस्ट्स लाइक करने वाले सहयोगी पुलिकर्मियों को भी तंग किया जा रहा है। भानु का कहना है कि इस जेल की बात नहीं है, अन्य जगहों पर भी वह इस तरह की खामियों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं मगर बदले में कार्रवाई ही झेलनी पड़ी है। 5 महीने से तनख्वाह तक रोकी गई है।

भानु पराशर

‘समाचार फर्स्ट’ ने जेल सुपरिटेंडेंट शेर चंद से भी बात की। उनका कहना था कि सारे आरोप निराधार हैं और आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी खुद ही अनुशासनहीन है। उसके खिलाफ कई बार विभागीय कार्रवाई की जा चुकी है। शेर चंद ने कहा कि इस कर्मी ने नाम में दम कर रखा है। जब पोर्टल ने शेर चंद से पूछा कि क्या जेल मैनुअल में कैदियों को सोशल मीडिया यूज करने की इजाजत देने का प्रावधान है, तो शेर चंद ने इनकार किया मगर कहा कि वे सोशल मीडिया नहीं, बल्कि हमारी वेबसाइट पर काम कर रहे थे। जब पूछा गया कि वेबसाइट पर स्टाफ क्यों नहीं काम कर रहा तो शेर चंद ने कहा कि अच्छे कैदियों को प्रोत्साहित करने के लिए हम कई स्तर पर कार्य चलाते हैं। (नीचे देखें वीडियो)

शेर चंद का यह दावा झूठ साबित होता दिखता है, क्योंकि साफ दिख रहा है कि वे कैदी फेसबुक पर एक बच्चे की फोटो को प्रोफाइल पिक्चर सेट कर रहे थे। वे दोनों अकेले ही थे और वीडियो बनाने वाले ने जब उनसे पूछा तो सकपका गए।

कैदी फेसबुक ही यूज कर रहे थे। यह देखें स्क्रीन पर क्या खुला है।

प्रश्न यह है कि दोनों कैदी अगर पढ़े लिखे थे और उनसे वेबसाइट के लिए भी सेवा ली जा रही थी, तो उस वक्त निगरानी के लिए कोई औऱ वहां मौजूद क्यों नहीं था? हैं तो आखिर कैदी ही, फिर क्या गारंटी की वे इंटरनेट से किसी साजिश को अंजाम नहीं देंगे या किसी अन्य आपराधिक गतिविधि की योजना नहीं बनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि जब वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि फेसबुक इस्तेमाल हो रही थी, क्यों जेल सुपरिटेंडेंट झूठ बोल रहे हैं? प्रश्न यह भी है कि अगर आरोप लगाने वाला पुलिसकर्मी भानु पराशर अगर पहले भी अनुशासनहीता कर चुका है, तब इसका मतलब यह नहीं कि वीडियो में जो दिख रहा है कि वह झूठ है।

गौरतलब है कि यह मामला बीएसएफ के जवान तेज बहादुर जैसा होता हुआ दिख रहा है जिसने खऱाब खाने का वीडियो शेयर किया था तो उसके खिलाफ न सिर्फ कार्रवाई हुई थी बल्कि उसे आदतन अनुशासनहीनता करने वाला बता दिया गया था। यहां तक कि अब बीएसएफ ने उसे बर्खास्त भी कर दिया है। प्रश्न यह है कि अगर कोई बार-बार प्रश्न उठाता है तो इसका मतलब नहीं कि वह अनुशासनहीन ही है। कम से कम इस मामले में भानु पराशर ने जो मुद्दा उठाया है, Dvgवह गंभीर है क्योंकि इसी जेल में आईएसआईएस के संदिग्ध को भी रखा गया है। क्या गारंटी है कि कैदियों की मिलिभगत से वह इटरनेट के जरिए अपने आकाओं से संपर्क न साध ले? इस मामले पर विभाग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए शिकायतकर्ता भानु पराशर को तो सस्पेंड कर दिया, मगर प्रथम दृष्टया ही जो बड़ी चूक नजर आ रही है, उसके लिए संबंधित बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई। और तो और अब वे अधिकारी खुलेआम झूठ बोल रहे हैं।

अधिकारी के कमरे में फेसबुक यूज कर रहे कैदियों का वीडियो बनाने का दावा करने वाला पुलिसकर्मी सस्पेंड

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है जो प्रदेश की जेलों के खतरनाक हालात की तरफ इशारा करता है। जिस शख्स ने इस वीडियो को अपलोड किया है, बताया जा रहा है कि वह मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में बतौर संतरी तैनात है। उसके द्वारा अपलोड किए गए वीडियो में दो कैदी इंटरनेट पर फेसबुक इस्तेमाल करते हुए दिखते हैं। भानु पराशर नाम के इस शख्स का दावा है कि ये दोनों कैदी डेप्युटी सुपरिटेंडेंट जेल के पर्सनल केबिन में कंप्यूटर इस्तेमाल कर रहे थे, तभी उसने यह वीडियो बनाया। ताजा अपडेट यह है कि वीडियो अपलोड करने वाले इस पुलिसकर्मी ने कहा है कि उसे विभाग ने सस्पेंड कर दिया गया है।

(यह खबर अपडेट हो चुकी है। सुपरिटेडेंट जेल ने वीडियो बनाने वाले इस पुलिसकर्मी को अनुशासनहीन बताया है। मगर सुपरिटेंडेंट का यह दावा गलत होता दिख रहा है कि कैदी फेसबुक नहीं यूज कर रहे थे बल्कि किसी वेबसाइट पर काम कर रहे थे। अपडेटेड खबर पढ़ने के लिए यहां पर क्लि्क करें)

20 अप्रैल को डाली गई तस्वीर में भानु पराशर ने लिखा है, ‘मॉडल सेंट्रल जेल कंडा (शिमला) में, जहां ISIS का एजेंट बंद है, वहां के प्रशासन पर कैदियों का दबदबा। गरीब प्रिज़नर गर्मी में मेस में खाना बनाएं और जो ऑफिसर्स को चारा चराए उसे बेनिफिट। जेल में होकर सोशल मीडिया को सरेआम डेप्युटी सुपरिटेंडेंट जेल के पर्सनल कैबिन में कंप्यूटर पर इंजॉय करते हुए। अगर कोई ऑब्जेक्शन करे तो उसपर डिपार्टमेंटल इंक्वायरी। प्लीज़ ज्यादा से ज्यादा शेयर करो।’ 

इस पोस्ट के अगले दिन यानी 21 अप्रैल को भानु ने एक लेटर अपलोड किया है जो सस्पेंशन लेटर नजर आ रहा है। (देखने के लिए यहां क्लिक करें)। अभी से 8 घंटे पहले यानी 22 अप्रैल को ही भानु ने एक वीडियो शेयर किया है जिसमें दो लोग (कैदियों की ड्रेस) में कंप्यूटर यूज कर रहे हैं और बच्चे की तस्वीर अपलोड कर रहे हैं। बोल रहे है- बाद में कोई और तस्वीर अपलोड कर देंगे। अगर ये कैदी ही हैं तो उनके पास इंटरनेट ऐक्सेस आना और वह भी किसी की गैरमौजूदगी में और फेसबुक यूज करना गलत है। यह न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है बल्कि खतरनाक भी है क्योंकि इस तरह वे फेक आईडी बनाकर न जाने जेल के अंदर से किस अपराध को अंजाम दे दें। नीचे वह वीडियो देखें (नोट: In Himachal इस वीडियो की सच्चाई को प्रमाणित नहीं करता है)

सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इस वीडियो को बनाने को लेकर जहां पुलिस विभाग को भानु को पुरस्कार देकर आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी मगर यहां मामला उल्टा ही होता दिख रहा है।

अभी तक हम सिर्फ भानु का पक्ष उसकी फेसबुक प्रोफाइल के जरिए रख पाए हैं। वीडियो की पुष्टि भी अभी नहीं की जा सकती। पुलिस प्रशासन और जेल की तरफ से अभी कोई टिप्पणी उपलब्ध नहीं हो पाई है। जल्द ही हम इस बारे में अपडेट देंगे।

ना-ना करते हिमाचल सरकार ने भी किया लाल बत्तियां हटाने का फैसला

शिमला।। केंद्र सरकार की तर्ज पर चलते हुए अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी वीआईपी कल्चर खत्म करने के इरादे बत्ती हटाने का फैसला लिया है। सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक अब राज्य में लाल, नीली और पीली बत्ती का इस्तेमाल नहीं होगा। अब राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायकों की गाड़ियों पर बत्ती नजर नहीं आएगी। ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ दिन पहले जब परिवहन मंत्री जीएस बाली ने लाल बत्ती छोड़ने का ऐलान किया था, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों ने उनपर तंज कसा था और उनका व्यक्तिगत फैसला बताया था। मगर एक हफ्ते के अंदर सरकार को बैकफुट पर आते हुए खुद वही फैसला लेना पड़ा। मुख्यमंत्री वीरभद्र के लिए स्थिति और असहज करने वाली है क्योंकि उन्होंने इस विषय पर एक अमर्यादित बयान दिया था।

चंबा जिले के सलूणी उपमंडल के लचोड़ी में परिवहन मंत्री जीएस बाली के लालबत्ती छोड़ने पर पत्रकारों के पूछे सवाल पर वीरभद्र सिंह ने कहा था,  ‘हमने तो पैंट पहनने को दी थी अगर कोई लंगोट ही पहनना चाहता है तो हम क्या करें।’ (क्लिक करके खबर पढ़ें: पंजाब केसरी | जागरण | ) सोशल मीडिया लोग टिप्पणियां कर रहे हैं कि जिस ‘लंगोट’ की बात मुख्यमंंत्री कर रहे थे, अब वही उन्हें खुद भी पहननापड़ेगा। शुक्रवार को जारी इस अधिसूचना के तहत हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य जजों को राहत दी गई है। गुरुवार को हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने खुद ही पहल कर अपनी गाड़ी से लालबत्ती हटा दी थी। एचपीयू के कुलपति ने भी पहल की थी।

इस वक्त सीएम वीरभद्र सिंह ईडी की पूछताछ के सिलसिले में देश की राजधानी दिल्ली में है। कहा जा रहा है कि सुबह उनके आवास पर कुछ कैबिनेट मंत्रियों ने इस बाबत चर्चा भी की थी और उसी के बाद ये आदेश दिए गए हैं।

(Disclaimer: ‘इन हिमाचल’ लंगोट या इस तरह की अमर्यादित भाषा इस्तेमाल करने या उदाहरण देने का पक्षधर नहीं है। खबर को इसलिए ऐसे प्रस्तुत किया गया है ताकि प्रदेश के सबसे बड़े पद पर बैठे नेता व अन्य सभी को अहसास हो कि वह क्या बोल रहे हैं।)

भावुक कर देती हैं शहीद आर.के. राणा की बहादुर बेटियों की बातें

इन हिमाचल डेस्क।। फरवरी 2016 में जम्मू से श्रीनगर की ओर जा रहे सीआरपीएफ के काफिले पर पंपोर के पास आतंकी हमला हुआ था। इसमें शहीद जवानों में हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के हवलदार राजकुमार राणा भी थे। जोगिंदर नगर के भराड़ू गांव के राणा की दो बेटियां हैं- अंशिता और कशिश। जब शहीद राणा की पार्थिव देह गांव पहुंची थी, सबका रो-रोकर बुरा हाल था। नन्ही बेटियां हर बार अपने पापा के आने का इंतजार करती थीं। वह आते थे तो खुशी की सारी सीमाएं पार हो जाती थीं। मगर उस दिन ऐसा नहीं हुआ था। बच्चियों का बिलख-बिलखकर बुरा हाल था। अपनों को खोने का दर्द क्या होता है, यह महसूस करना शायद सबसे बस की बात नहीं। मगर युद्ध और उसकी वीभत्सता के बारे में लोगों को बातने और शांति को बढ़ावा देने की कोशिश के तहत Indiatimes वेबसाइट #ChildrenOfTerror नाम से एक सीरीज चला रही है। यह शहीदों के बच्चों से बात करती है और उनके दर्द को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती है ताकि शायद उन लोगों का भी दिल पसीजे, जो इन हालात के लिए जिम्मेदार हैं।

इंडियाटाइम्स ने शहीद राणा की बेटी कशिश और अंशिता से बात की है। बेटियां पापा के बारे में बात कर रही हैं तो आंसुओं का सिलसिला थम नहीं रहा। शायद आपके लिए भी उनकी बात सुनते हुए आंसू रोक पाना मुश्किल होता है। बच्ची की रोआंसी आवाज बताती है कि उनके अंदर कितना दर्द है। वे बता रही हैं पापा होते थे क्या-क्या करती थी वे। वे बता रही हैं कि पापा को कैसे मिस कर रही हैं। साथ ही भविष्य की चिंता भी उन्हें सता रही है। उम्मीद है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों के दिल में इस तरह के वीडियो इंसानियत पैदा करें। देखें:

इससे पहले इसी सीरीज के तहत पठानकोट आतंकी हमले में शहीद शाहपुर के संजीवन राणा की बेटी से भी बात की थी। वह वीडियो और भी दर्द भरा है। उसे देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं:

रो पड़ेंगे हिमाचल के वीर शहीद की बहादुर बेटी की बातें सुनकर