14.6 C
Shimla
Monday, September 15, 2025
Home Blog Page 294

हिमाचल प्रदेश में 1992 का कर्मचारी आंदोलन ‘गौरवगाथा’ या ‘त्रासदी?’

0

आशीष नड्डा।। अखबार खोलते ही सबसे पहली नजर उस खबर पर गई, जिसमें हिमाचल प्रदेश के एक कर्मचारी नेता सरकार को यह धमकी दे रहे थे कि अगर हमारी कुछ मांगे नहीं मानी गईं तो हम सामूहिक हड़ताल के साथ 1992 का इतिहास दोहरा देंगे, जिसमें हम कर्मचारियों ने सत्ता से सरकार को महरूम कर दिया था।

यह खबर पढ़ते ही मेरा मन इतिहास के उन पन्नों को टटोलने लगा, जिनके आधार पर नेताजी का दंभ से भरा यह बयान था। इस लेख में वर्तमान हालात पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। कर्मचारी हड़ताल पे जाएं या न जाएं, सरकार गिरे या संभले, चुनाव में घाटा हो या फायदा, जो होना हो होता रहे। मगर 1992 के इतिहास के जिस आंदोलन को वह कर्मचारी नेता जिस तरह गौरवगाथा के रूप में पेश कर रहे हैं, उसका सही विवरण मैं यहां देने की कोशिश करूंगा।

इस लेख को पढ़ने बाद वह पीढ़ियां, उस दौर में होश संभालने लायक नहीं हुई थीं या पैदा नहीं हुई थीं, मगर आज फैसले लेने में समर्थ है, मूल्यांकन करके फैसला ले कि उस आंदोलन को प्रदेश के इतिहास में ‘गौरवगाथा’ माना जाए या एक ‘त्रासदी।’

बात शुरू करते हैं 1990 से, जब हिमाचल प्रदेश में एक नई सरकार का गठन हुआ। बीजेपी से शान्ता कुमार पूर्ण बहुमत के साथ हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हिमाचल की आय के साधन सीमित थे। प्रदेश के पास न तो बड़े स्तर के उद्योग थे और न ही खनिज सम्प्पदा। आखिर सरकार को आय आती तो कहां से आती? हिमाचल प्रदेश अपने बजट के लिए सिर्फ केंद्र पर निर्भर था। हालांकि उस समय भी प्रदेश में भाखड़ा डैम के ऊपर लगे हाईड्रो प्रोजक्ट और मंडी के जोगिन्दरनगर में शानन व सुंदरनगर के पास सलापड़ नामक स्थान पर डेहर बिजलीघर आदि अन्य प्रॉजेक्ट थे । यह प्रोजेक्ट थे तो हिमाचल प्रदेश की जमीन पर परन्तु इनकी देखरेख और राजस्व से हिमाचल का कोई वास्ता नहीं था। भाखड़ा और ब्यास सतलुज लिंक प्रोजेक्ट (डैहर बिजली घर ), दोनों भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) के पास थे। यह संस्था पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्यों की सयुंक्त उपक्रम थी। हालांकि भाखड़ा के बनने से हिमाचल के सैंकड़ों गांव बिलासपुर एवं ऊना जिला के जलमगन हो गए थे, लोग विस्थापित हुए थे। फिर भी फायदे के नाम पर प्रदेश को सिर्फ भाखड़ा गांव को यह प्रॉजेक्ट बिजली देता था। वहीं शानन प्रोजेक्ट जिसे अंग्रेज बनाकर गए थे और भारत का मेगावॉट कपैसिटी में बना वो पहला हाइड्रो प्रोजेक्ट था, पंजाब सरकार के अधीन था और आज भी है।

1990 -91 की बात रही होगी। हिमाचल प्रदेश के ततकालीन मुख्यमन्त्रीं केंद्र सरकार को भेजने के लिए विधानसभा में

प्रॉजेक्टों की झीलों में हिमाचल का इतिहास तक डूब गया।

एक प्रस्ताव लेकर आए। यह प्रस्ताव था कि हिमाचल विधानसभा मिलकर एकजुट होकर केंद्र से मांग करेगी किजिस तरह बिहार , उड़ीसा राजस्थान जैसे राज्यों को उनके वहां से खनिज संपदा के दोहन से रॉयल्टी मिलती है, ऐसी ही रॉयल्टी हिमाचल प्रदेश को भी उसकी जमीन पर लगे हाइड्रो प्रोजेक्टों से मिलनी चाहिए।

पूरी विधानसभा में एकदम सन्नाटा छा गया। लोग चिंतन में पड़ गए। कुछ समझ में थे तो कुछ शंका में थे। विपक्ष की तरफ से नेता प्रतिपक्ष वीरभद्र सिंह, जो आज प्रदेश के मुख्यमन्त्री हैं, चर्चा करने उठे। वीरभद्र हंसते हुए बोले कि शांता कुमार जी, आप कैसी बातें करते हैं? भला पानी पर कोई रॉयल्टी मिलती है ? शांता कुमार ने तर्क दिया हमारे लिए तो यही नदियां सोने का कार्य कर रहीं हैं। हमारा पानी बिजली बना रहा है बिजली सब बाहर जा रही है। जंगल, जमीन और बस्तियां हमारी उजड़ी हैं तो हमें क्यों कुछ नहीं मिल रहा?

मुझे यह पता नहीं कि यह प्रस्ताव पास हुआ या नहीं। हुआ तो विपक्ष में किसका सहयोग रहा, लेकिन यह जरूर हुआ कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शांता कुमार ने यह मामला ततकालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के सामने उठाया था। केंद्र के सहयोग से यह तय हुआ कि पंजाब, हरियाणा और हिमाचल आपस में बातचीत कर लें। हिमाचल की तरफ से शांता कुमार, पंजाब की तरफ से प्रकाश सिंह बादल और हरियाणा की तरफ से भजन लाल , शायद यह तीनों नेता बातचीत की मेज पर बैठे और शांता कुमार इन्हें यह मनवाने के लिए सफल रहे कि हिमाचल में जो भी इनके श्येर वाली योजनाएं हैं, उनमें से 14 % रॉयल्टी प्रदेश को मिलेगी। हालांकि और भी देनदारियां आज भी बाकी हैं परन्तु कम से कम इतिहास में पहली बार हिमाचल को यह दिलवाने में वह सफल रहे। आज भी उसी तर्ज पर प्रदेश में जितने भी पावर प्रोजेक्ट हैं, उनसे हिमाचल को रॉयल्टी मिलती है।

हिमाचल प्रदेश में जलविद्युत की अपार सम्भावनाएं थीं। परन्तु सरकार के पास अपने प्रॉजेक्ट लगाने जितना धन नहीं था। अगर सरकार अरबों सिर्फ प्रोजेक्ट लगाने में लगा देती तो बाकी क्षेत्र चरमरा जाते। शांता कुमार चाहते थे कि निजी फर्म जिनके पास पैसा है, वो अपने प्रोजेक्ट लगाएं। हिमाचल को जल और जमीन की रॉयल्टी दें, कुछ बिजली दे और बाकी अपने हिसाब से नैशनल ग्रिड में बेचे। परन्तु उस समय की एनर्जी पॉलिसी के अनुसार यह संभव नहीं था।

केंद्र इसमें कुछ करे, इसके लिए शांता कुमार फिर प्रधानमन्त्री से मिले। वहां से उन्हें प्लानिंग कमिशन के चेयरमैन मनमोहन सिंह से बात करने के लिए कहा गया जो बाद में देश के प्रधानमन्त्रीं भी रहे। मनमोहन सिंह बहुत सुलझे हुए अर्थशास्त्री थे। एक अच्छा इकॉनमिस्ट दशकों पहले देख लेता है कि देश की इकॉनमी को भविष्य में किस चीज की जरूरत है। मनमोहन सिंह से शांता कुमार ने जब निजी क्षेत्र को पावर जेनेरशन में लाने की बात कही तो मनमोहन सिंह खुशी से चहक उठे और बोले में आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूं। बात हिमाचल प्रदेश आय की नहीं है बल्कि देश को अगर बिजली जरूरतों को पूरा करना है तो निजी क्षेत्र को इसमें आमंत्रित करना ही होगा, अकेले सरकार के बस की यह बात नहीं है।

यहां पाठकों की जानकारी के लिए बता दूं आप बार बार सुनते हैं कि उदारीकरण हुआ, उदारीकरण हुआ, मनमोहन सिंह ने इकॉनमी को बचाया तो उदारीकरण यही है- इकॉनमी को खोलना, सब कुछ सरकार के धन पर निर्भर नहीं करना। निजी क्षेत्र विदेशी फर्म्स आदि को अपने इन्वेस्टमेंट के लिए आमंत्रित करना।

खैर, मनमोहन सिंह तैयार तो थे पर उन्होंने एक अड़चन बताई। व यह थी कि हिन्दुस्तान की तात्कालिक एनर्जी पॉलिसी के तहत यह संभव नहीं था कि कोई राज्य अपने से ऐसा कर पाए। कल को प्रोजेक्ट ऑनर को बिजली बेचने में दिक्कत आती कि कौन खरीदेगा। कोई नहीं लेगा तो उसकी इन्वेस्टमेंट का क्या होगा ? इसलिए एनर्जी पॉलिसी में संशोधनों की जरूरत थी जो लोकसभा राज्यसभा से बिल के रूप में पास होना जरूरी था। सिंह जी ने कहा हम सरकार के रूप में बिल लाएंगे, आप अटल जी और आडवाणी जी, जो विपक्ष में थे, से कहें सहयोग दें। यह बिल हिमाचल नहीं, बल्कि देश की ऊर्जा नीति और विद्युत्करण और इंडस्ट्रियलाइजेशन में भी बहुत जरूरी है। शांता कुमार ने अटल आडवाणी जी से बात की और एकमत के साथ यह बिल देश की संसद से पारित हुआ ऊर्जा क्षेत्र में निजीकरण की राह खुली।

हिमाचल प्रदेश को इसका यह फायदा हुआ कि निजी प्रॉजेक्ट लग सकते थे, जिससे हिमाचल को बिजली के साथ रॉयल्टी के रूप में आय होती और इकोनॉमी बूस्ट करने के लिए धन का प्रावधान होता। इसी कड़ी में प्रदेश का पहला निजी क्षेत्र का पहला पनबिजली प्रोजेक्ट लगाने के लिए शांता कुमार सरकार और एक निजी कम्पनी के बीच समझौता हो गया।

Shanta ji
मुख्यमंत्री रहने के दौरान की तस्वीर।

इस समझौते का बिजली बोर्ड कर्मचारी संघ के ततकालीन नेतायों ने इस तर्क के साथ विरोध किया कि निजीकरण आने से सरकारी जॉब्स खत्म हो जाएंगी। यह नारे के तले बिजली बोर्ड के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। कई दिनों तक हड़ताल रही, पर मुख्यमन्त्री नहीं झुके। वह जानते थे कि निजी क्षेत्र का ऊर्जा फील्ड में पैसा लगाना बहुत जरूरी है, अन्यथा धन के अभाव में सरकार प्रॉजेक्टस नहीं लगवा पाएगी। ऊर्जा की कमी से हिमाचल नहीं, पूरे देश को घाटा होगा। मुख्यमंत्री के नहीं झुकने पर अन्य विभागों के कर्मचारी नेता लोगों ने भी हड़ताल का आह्वान कर दिया, हालांकि उन्हें पता ही नहीं था कि मामला कया है। मात्र हठ के लिए उन्होंने यह सोचते हुए सब कर्मचारियों की हड़ताल करवा दी कि हम मुख्यमंत्री को निर्णय बदलने पर मजबूर कर देंगे।

अफरा-तफरी का माहौल हो गया। सब तरफ हड़ताल का आलम। हड़तालियों को विपक्ष का पूरा सहयोग। मीडिया में रोज यही चर्चे कि अब सीएम क्या करेंगे, अब सीएम क्या करंगे। सोशल मीडिया का जमाना नहीं था कि कहीं चर्चा चलती कि क्या गलत है, क्या सही है। हर घर, गांव से हिमाचल में कर्मचारी थे और उनके नेताओं ने गांव-गांव तक यह बात पहुंचा दी कि शांता कुमार कर्मचारी और सरकारी नौकरी विरोधी है. सब कुछ प्रइवेट को देना चाहता है।

20 दिन से ऊपर जब हड़ताल को हो गए, तब मुख्यमन्त्री के आफिस से एक ऑर्डर निकला। सबने सोचा मुख्यमन्त्री ने फैसला वापिस ले लिया होगा, परन्तु वह ऑर्डर था- NO Work No pay.” यानी कर्मचारी अगर आफिस में नहीं है, ड्यूटी पर नहीं है तो उन्हें बिना काम किए वह सैलरी क्यों दी जाए, जो उन्हें जनता की सेवा के लिए मिलती है। मुझे याद है- इस निर्णय की कल्पना किसी ने नहीं की थी। हिमाचल प्रदेश के कर्मचारी वर्ग में हड़कंप मच गया। उस दौर में मैं भी हल्का होश सम्भाल चुका था। या उसके 2 ,3 साल तक यह चर्चा रही थी, तह मैंने सुना था कि ‘नो वर्क नो पे’ को गली गली में ऐसे भ्रामक रूप से फैलाया गया कि शांता कुमार कहता है- छुट्टी के दिन की सेलरी कर्मचारियों को नहीं दूंगा, क्योंकि उस दिन वे कार्य नहीं करते।

दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद गिरने पर देश से भाजपा की सारी सरकारें बर्खास्त कर दी गईं। उसके बाद हुए चुनावों में कर्मचारी विरोधी की इमेज में बांध दिए गए शांता कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया। खुद सीटिंग सीएम शांता कुमार अपने घर सुलह से चुनाव हार गए। वह दिन था कि उसके बाद वह कभी प्रदेश की राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से मुड़कर नहीं आए।

खैर, जो भी था; शांता कुमार नहीं झुके तो ऊर्जा नीति में प्रदेश निजीकरण की राह पर आगे गया। आज हिमाचल प्रदेश देश का पावर हाउस कहा जाता है। 24 घंटे सस्ती बिजली के साथ आज ऊंची से ऊंची पहाड़ी पर भी हिमाचल प्रदेश में चमकते हुए गांव आसमान में तारे की तरह लगते हैं। सबसे सस्ती बिजली का उपभोग करने वालों में हम देश में हैं। आज हिमाचल प्रदेश का अपना राजस्व जितना है, उसका करीब आधा आय हमें उसी नीति के कारण लगे प्रोजेक्टों से मिलता है। औसतन यह राजस्व 2100 करोड़ रुपये का है जो हर साल घटता-बढ़ता रहता है। कर्मचारी नो वर्क, नो पे के खिलाफ कोर्ट भी गए थे। कई वर्षों बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी शांता कुमार के कदम को सही ठहराते हुए इसकी तारीफ की थी। आज भी यह नियम लागू किया जाता है।

इतिहास को मैंने इसलिए कुरेदा, क्योंकि कर्मचारी नेता 1992 की इस घटना को ऐसे दिखा रहे हैं जैसे उन्होंने पता नहीं क्या महान कार्य कर दिया हो। उनकी आज की एकजुटता और हड़ताल की धमकी आज सही हो या गलत, पता नहीं। मगर जब वे 1992 की उस हड़ताल को अपनी गौरव गाथा के रूप में पेश करेंगे, मैं यह सवाल जरूर पूछूंगा कि इसे गौरवगाथा कहा जाए या एक त्रासदी।

इस सवाल का जबाब मैं आप पाठकों पर छोड़ता हूं। उन लोगों पर भी, जो उस वक्त निर्णायक भूमिका में थे और उन पर भी, जो उस वक्त पैदा नहीं हुए थे।

(लेखक मूलतः बिलासपुर जिले के रहने वाले है और आईआईटी दिल्ली से रिन्यूएबल एनर्जी में पॉलिसी प्लैनिंग पर रिसर्च कर रहे हैं। हिमाचल से जुड़े मामलों पर लिखते रहते हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

Jun 28, 2016 को प्रकाशित इस आर्टिकल को दोबारा पब्लिश किया गया है।

पर्वतारोहण में देश का नाम ऊंचा कर रही हैं हिमाचल की आकृति हीर

0

इन हिमाचल डेस्क।। कुछ दिन पहले हमने आपको हिमाचल प्रदेश की आकृति हीर के बारे में बताया था जो 20 साल की उम्र में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रस को फतह करने वाली पहली महिला हैं। अब तक वह दुनिया की 7 ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहरा चुकी हैं और अब इरादा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का है। माउंट एलब्रस की दुर्गम चढ़ाई के दौरान किन दिक्कतों का सामना आकृति को करना पड़ा था, पिता को किस तरह से पैसे जुटाने पड़े थे; इस सबका पता चलता है कि ‘स्पोर्ट्स कीड़ा’ वेबसाइट द्वारा बनाए गए एक वीडियो से (नीचे देखें)। कांगड़ा जिले के सुलियाली गांव की रहने वालीं आकृति ने 2012 में उत्तराखंड के नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटनीअरिंग से पर्वारोहण की ट्रेनिंग ली। उस समय आकृति ने गंगोत्री पीक की चढ़ाई पूरी की जिसकी ऊंचाई 16 हजार फीट है। उसी वक्त से पर्वतारोहण आकृति के जीवन का हिस्सा बन गया।

इन हिमाचल से बातचीत से में आकृति ने बताया था कि मैं बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी, इसलिए माउंटनीअरिंग को चुना। उन्होंने कहा था, ‘मैं साल 2014 में माउंट एलब्रस पीक पर जाने का तय किया। इसकी ऊंचाई 18,510 फीट है। यहां जाने के लिए मेरे पास कोई स्पॉन्सर नहीं था। मेरे पैरंट्स ने इसके लिए 3 लाख रुपये का लोन लिया।’ नीचे वीडियो देखें और जानें, कैसे वह पर्वतारोहण करने लगीं और भविष्य के लिए क्या प्लान है उनका:

आकृति के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें

Impact: उत्पाती बंदरों से निपटने के लिए हिमाचल सरकार ने बदली रणनीति

शिमला।। लोगों के लिए परेशानी के सबब बन चुके बंदरों पर लगाम कसने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने अब अपनी रणनीति में बदलाव किया है। प्रदेश में शिमला समेत 68 तहसीलों में वर्मिन घोषित बंदरों को मारने के लिए अब वन विभाग ईको टास्क फोर्स का गठन करेगा। यह फैसला सोमवार को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में वन्य प्राणी तथा बंदरों की समस्या से निपटने के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की बैठक में लिया गया। मार्च के आखिरी हफ्ते में सरकार ने फैसला लिया था कि बंदर मारने पर उसका फोटो दिखाने पर ही 500 रुपये मिल जाएंगे। “इन हिमाचल” ने इस खबर पर आपत्ति जताई थी।

गौरतलब है कि ‘इन हिमाचल’ ने सरकार की इस अजीब नीति पर सवाल उठाते हुए सुझाया हुआ था कि लोगों को यह काम सौंपने के बजाय प्रफेशनल लोगों को जिम्मेदारी देनी चाहिए साथ ही हत्या करने के बजाय नसबंदी व अन्य मानवीय तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए। अब प्रदेश सरकार ने जागते हुए इसी दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया है। इन हिमाचल ने ‘अब मरे हुए बंदर की तस्वीर दिखाने पर ही मिल जाएंगे 500 रुपये‘ टाइटल वाले आर्टिकल में लिखा था-

लोग चूंकि एक्सपर्ट नहीं हैं और उन्हें जीवों को मारने की छूट देना गलत है। कोई हादसा हो सकता है और उनकी गोली किसी इंसान को भी लग सकती है। ऐसे में लोगों को 500-500 रुपये देने के बजाय सरकार को चाहिए कि एक्सपर्ट शूटर्स को हायर करे जो उत्पाती बंदरों का ही शिकार करें। इससे न सिर्फ सरकारी पैसे की बर्बादी रुकेगी, किसी तरह का खतरा भी नहीं होगा। इससे भी बेहतर है कि ढंग से किसी एजेंसी की मदद से बंदरों की नसबंदी की जाए और लॉन्ग टर्म पॉलिसी बनाई जाए। मगर लगता है कि सरकार चाह रही है कि लोग भले ही बंदर मारकर पैसा न लें, बंदर मारने का दावा करके पैसा ले लें। यह जनता के टैक्स के पैसे की बेकद्री तो है ही, साथ ही समस्या भी इससे हल नहीं हो रही।’

इस खबर के करीब 3 हफ्ते बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि बंदर किसानों की फसलों और बागवानों के फलों को बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं और कुछ जगहों पर बच्चों और महिलाओं पर जानलेवा हमले भी कर रहे हैं। इसलिए सरकार ने शिमला के नजदीक रेस्क्यू सेंटर फॉर लाइफ केयर खोलने का फैसला किया है। इसके अलावा मादा बंदरों को गर्भनिरोधक गोलियां आदि देकर बंदरों की आबादी पर लगाम लगाने की कोशिश भी की जाएगी।

अतिरिक्त मुख्य सचिव तरुण कपूर ने बताया कि नसबंदी किए गए बंदरों की पहचान के लिए उनके माथे के बीच स्थायी टैटू उकेरे जाएंगे। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को 53 तहसीलों तथा उप तहसीलों की सूची भेजी गई है, जहां किसानों तथा बागवानों को राहत देने के लिए बंदरों को नाशक जीव घोषित किया जा सकता है। जल्द ही भारतीय वन्य प्राणी संस्थान देहरादून के संयुक्त तत्वावधान में जंगली सुअर, सांभर और नील गाय को वर्मिन घोषित करने के लिए एक सर्वे किया जाएगा।

रोती हुई महिला का वीडियो वायरल, निजी बस के कंडक्टर पर बदतमीजी का आरोप

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, बिलासपुर।। प्रदेश में निजी बस ऑपरेटरों से स्टाफ की मनमानी किसी से छिपी नहीं है। आए दिन ऐसी घटनाएं होती हैं मगर रोज सफर करने वाले लोग कई मजबूरियों की वजह से चुपचाप इन मनमानियों को सहने के लिए मजबूर होते है। मगर अब एक ऐसा वीडियो सामने आया है जो दुखी करने वाला है। एक वीडियो में बुजुर्ग महिला परिचालक की कथित बदसलूकी की शिकार हो गईं। वह रोती हुई नजर आ रही हैं और बाकी सवारियों उन्हें हिम्मत देती हुई दिख रही हैं। हालांकि अब एक नया मोड़ आया है और महिला के नाम से एक चिट्ठी सामने आई है जिसमें उन्होंने कहा कि मुझे तो निजी कारणों से रोना आया था। खबर यह भी है कि परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने मामले का संज्ञान लेते हुए जांच और ऐक्शन के निर्देश दे दिए है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि महिला पर किसी तरह का प्रेशर तो नहीं डाला जा रहा।

यह मामला बिलासपुर के घुमारवीं उपमंडल के लदरौर-घुमारवीं रूट पर चंदेल बस सर्विसिज से जुड़ा हुआ है। चालक व परिचालक को बेहद जल्दबाजी थी। चलती बस में ही सवारियां बिठाई जा रही थी। 25-25 रुपए लेने के बाद टिकट भी नहीं दिया जा रहा था। इसी बीच बम्म से नालटी मोड़ तक जा रही बुजुर्ग महिला के साथ इस कारण बदसलूकी की इंतहा पार कर दी गई, क्योंकि वह कम दूरी की यात्रा कर रही थीं। वीडियो देखें:

आरोप है कि अभद्रता के साथ-साथ परिचालक साहब ने धमकी दी कि भविष्य में ऐसा मत करना। बेचारी बुजुर्ग महिला मन मसोस कर रह गई। अभद्रता पर फफक-फफक कर रोने लगी। इसी दौरान महिला की नम आंखों की तस्वीरें भी मोबाइल कैमरों में कैद हुई, बल्कि 19 सैंकेंड का वीडियो भी बना। इसी बस में सफर कर रहे नीरज कुमार ने बताया कि मामला 8 अप्रैल का है। वह अपने परिवार सहित घुमारवीं में हो रहे ग्रीष्मोत्सव को देखने जा रहे थे। परिचालक सवारियों को टिकटें नहीं दे रहा था, बल्कि ओवरस्पीड से बस को भी चलाया जा रहा था।

इस बीच एक पत्रकार ने एक चिट्ठी पोस्ट की है जिसे पीड़ित महिला की तरफ से बताया जा रहा है। इसमें नीलम कुमारी नाम की महिला का कहना है कि मेरा झगड़ा कंडक्टर से नहीं हुआ और सोशल मीडिया पर सब गलत दिखाया जा रहा है। उनका दावा है कि मुझे तो निजी कारणों से रोना आया था और वीडियो बनाने वाले का पहले ही कंडक्टर से झगड़ा हो रहा था। महिला का कहना है कि घरेलू उलझनों के कारण ऐसा हुआ है।

बहरहाल, विडियो में महिला की बातों और अन्य लोगों के वार्तालाप चिट्ठी में लिखी बातों के विपरीत हैं। चिट्ठी के आखिर में महिला के अंगूठे की छाप है। कयास लगा जा रहे है कि कहीं महिला पर किसी तरह का प्रेशर तो नहीं है। इस बीच परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने घटना की सूचना मिलने पर घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं।

वीडियो बनाने वाले नीरज का कहना था कि मैहरी कांथला से सवारियों को बिठाया गया। इसके बाद 200 मीटर तक बस का अगला दरवाजा खुला रहा। जब कंडक्टर को आवाज लगाकर बताया गया तो तैश में आकर बोला, क्या हो गया। उनका कहना है कि परिचालक की अभद्रता व चालक की ओवरस्पीडिंग अनहोनी घटना को निमंत्रण दे रही थी। कुठेड़ा पहुंचने तक 31 सीटर बस में 45 सवारियों को भर दिया गया। बस में सवारियों को इस कदर ठूंस लिया गया कि यात्री दरवाजे पर लटककर सफर कर रहे थे।

नीरज कुमार ने ही चलती बस से ही मामले को पुलिस तक पहुंचाया। ऑनलाइन ही नीरज को आश्वासन मिला कि घुमारवीं से पहले ही बस को पकड़ लिया जाएगा। लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर नीरज कुमार ने पुलिस स्टेशन पहुंच कर मामला दर्ज करवाया। नीरज कुमार का कहना है कि ई-मेल व डाक के माध्यम से भी शिकायत भेज दी गई है।

ललित सिंह के पहाड़ी प्रॉजेक्ट के गाने ‘ज़ालिमा’ के वीडियो का टीज़र जारी

इन हिमाचल डेस्क।। ढाटू और तांत्रा जैसे हिट गाने ला चुके हिमाचल प्रदेश के गायक ललित सिंह अपने नए गाने जालिमा का वीडियो लेकर आ रहे हैं। अभी तक हजारों लोग इसके ऑडियो वर्जन को सुन चुके हैं और अब इसका वीडियो भी बनकर तैयार हो गया है। ललित ने इसका एक टीज़र जारी किया है। गाना 11 अप्रैल को रिलीज होगा।

ललित ‘पहाड़ी प्रॉजेक्ट’ के तहत गाने तैयार करते हैं जिनमें अन्य भाषाओं के साथ पहाड़ी का समावेश रहता है। लोगों को यह प्रयोग पसंद आता है क्योंकि हिमाचली बोलियों के शब्दों को शानदार म्यूजिक के साथ पेश किया जाता है। ढाटू गाना भी इसीलिए लोगों द्वारा खूब सराहा गया जिसमें मां के ढाटू को प्रेरणास्रोत बताया गया था। इसी तरह से शिव के लिए समर्पित तांत्रा ने भी तारीफ बटोरी थी।

देखें, कैसा है जालिमा गाने के म्यूजिक वीडियो का टीज़र:

ललित सिंह ने पिछले दिनों ‘नीड यू मोर: जरा-जरा’ रिमिक्स भी पेश किया था। यह भी काफी अच्छा प्रयोग था जिसे यूट्यूब और फेसबुक पर काफी लाइक्स मिले। नीचे देखें:

ललित का ढाटू गाना भी खासा पसंद किया गया:

आखिर में उनका गाना तांत्रा (ऑडियो):

ऋचा शर्मा के नए गाने ‘कंगन’ का टीज़र जारी, जल्द होगा रिलीज

कुछ दिन पहले हिमाचल प्रदेश के लोकगीत सांये सांये मत कर राविये को खूबसूरत अंदाज में पेश करने वालीं ऋचा शर्मा नया गाना लेकर आ रही हैं। इस गाने का नाम है- कंगन। ऋचा का यह गाना तैयार है और इसे जल्द ही रिलीज़ कर दिया जाएगा। अभी इस गाने का टीज़र लॉन्च किया गया है जिसे आप नीचे देख सकते हैं। यह डोगरी गाना है।

हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वालीं ऋचा शर्मा दिल्ली में रहती हैं और संगीत में विशारद हैं। उन्होंने इस लोकगीत को बड़े ही अच्छे अंदाज में पेश किया है। ऋचा के माता-पिता हमीरपुर से हैं, मगर उनका जन्म दिल्ली में हुआ। पूरा परिवार घर पर हिमाचली में बात करता है।

ऋचा के गाने कंगन का टीज़र देखें:

इससे पहले लाए गए गाने सांये सांये मत कर राविए को भी लोगों ने खूब पसंद किया था। नीचे देखें:

Women should know the traits of an Independent Woman

Shriya Rana
“Independent women” a word used by women around the world to feel strong and better about them when all they have in control is the money they make. A vulnerable woman, who barely takes her decisions, turns into an “independent women” the moment she starts earning. But the truth is something that almost half of the women won’t agree. They think that they’re independent because they can buy themselves everything they desire but women have to understand that being able to pay your bills doesn’t make you an independent woman. You could be earning millions, buying yourself everything that others can’t afford and still need others to make you feel important, needed and loved. You are not independent until you know how to get rid of the feelings of self doubt. No one is coming to tell you how special you are, you should know your worth. The point is your money has nothing to do with you being independent. You could be a student and still be called an independent woman; you could be a home-maker and still be independent. Being independent is not about being financially independent; it’s about being emotionally independent and mentally strong. I mean who you would call an independent women; a diffident woman with a huge salary package who can’t make her choices or a housewife who has clarity of all her actions?

Things may have changed with time in other places but being raised in Himachal I’ve seen many working women stuck in multiple shits. They go to work, work hard, bring money home but still are not valued by their spouses. Even after working all their decisions are taken either by their in-laws, their parents or their husbands. Their so called “Samaaj” determines all the parameters and what’s worst is they encourage it where they should have taken the lead and made changes. Its best example is the Panchayat elections in our villages, women contest the elections and when they win the power and responsibility that comes with it is directly transferred to their husbands. Every decision is taken by the men; all they have to do is use the stamp and sign where they’re asked to. When educated women are under-powered how can we expect other women to be empowered?

Women have to know the real meaning of being an Independent woman and following are some of the qualities that are possessed by an independent woman – ”Log kya kahenge “is nonexistent for her.

An independent woman knows her worth and doesn’t let others opinions of her destroy her peace of mind. Others may call her names; try to bring her down but she takes negativity with grains of salt.

She knows what she’s doing
An independent woman has clarity of all her actions. She knows what she is doing, why is she doing and keeps following her heart regardless of what others say. She knows how to change her cants into cans and her dreams into plans.

She has control over her emotions
An independent woman has control on her emotions. She doesn’t let temporary feelings affect her permanently. We’re driven day by day by our emotions, we cry when we’re hurt, we rejoice when we’re happy; most of our decisions are driven by our emotions but an independent woman sees the bigger picture she knows how to calm herself down when shit goes wrong. She doesn’t need someone else to show up and say it’ll be fine. She can do it by herself.

She is at peace with herself
An independent woman knows that you can’t be happy with anyone, if you’re not happy with yourself. She knows that until you’re not comfortable with being alone, you’ll never know if you’re choosing someone out of love or loneliness and this makes her surrounded by the right people always.

She defines Grace
She knows that independence is something that you earn with time and not with few bucks. She goes with her own pace because she’s knows Grace will take you places that hustling won’t.

(Shriya Rana is a Himachal-based blogger studying MBA at Himachal Pradesh University Shimla. She can be reached at Shriya.rana@gmail.com)

MBBS करने के बाद IPS ऑफिसर बनी डॉक्टर मोनिका से खौफ खाते हैं अपराधी

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, नाहन।। इनसे मिलिए, यह हैं डॉक्टर मोनिका। 2014 बैच की आईपीएस ऑफिसर मोनिका को 2 साल की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद सिरमौर में बतौर सहायक पुलिस अधीक्षक पहली पोस्टिंग मिली है। 27 साल की मोनिका ने न सिर्फ 5 साल में एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की बल्कि आईपीएस बनकर पूरी लाहौल घाटी का नाम रोशन किया। इसलिए भी, क्योंकि इस जनजातीय जिले से कोई भी महिला आईपीएस ऑफिसर नहीं बनी थी।

खास बात यह है कि मोनिका के माता-पिता की कोई प्रशासनिक पृष्ठभूमि नहीं थी। पिता जरनल इंश्योरंस से जुड़े रहेऔर माता गृहिणी हैं। एक छोटा भाई भी है जो अपनी बहन की कामयाबी पर बेहद खुश है। मोनिका का पूरा परिवार कुल्लू में सैटल्ड है।

एमबीबीएस की इंटर्नशिप के दौरान डॉक्टर मोनिका का मूड बदला और उन्होंने आईपीएस ऑफिसर बनने की ठान ली। इरादे बुलंद थे, लिहाजा सफलता ने भी कदम चूमने में वक्त नहीं लगाया। ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले कुछ हफ्तों से नशाखोरी और शराब के अवैध ट्रेड पर ऐक्शन की वजह से मोनिका चर्चा में हैं।

युवा आईपीएस अधिकारी का कहना है कि समाज की सुरक्षा दो तरीकों से होती है- सरहद की सुरक्षा सेना करती है तो सिविलियन्स की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस के कंधों पर होती है। उनका कहना है कि लक्ष्य है कि जहां भी तैनात रहूं, वहां की जनता खुद को सुरक्षित समझें। साथ ही कहा कि नशाखोरी व महिलाओं की सुरक्षा भी कुछ अन्य प्राथमिकताएं तय की हुई हैं।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क का फेसबुक पेज लाइक करें

डॉक्टर मोनिका ने ट्रेनिंग के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि कांगड़ा के नूरपुर में बतौर एसएचओ कार्य करने का अनुभव काफी ठीक रहा, क्योंकि सीमांत क्षेत्र होने के कारण पुलिस की जिम्मेदारी काफी ज्यादा रहती थी। उन्होंने कहा कि सिरमौर में बतौर सहायक पुलिस अधीक्षक बनकर अपनी जिम्मेदारी को निभाने का प्रयास कर रही हैं।

एक सवाल के जवाब में आईपीएस मोनिका का कहना है कि उन्हें सिरमौर की एसपी से काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। यह उनका सौभाग्य है कि पहली पोस्टिंग सिरमौर में मिली है, जहां सौम्या मैम जैसी पुलिस अधिकारी एसपी के तौर पर तैनात हैं। गौरतलब है कि सौम्या सांबशिवन सिरमौर की एसपी हैं और तुरंत कार्रवाई करने के लिए पहचानी जाती हैं।

क्रिकेटर ड्वेन ब्रावो के साथ आया हिमाचल की शिवरंजनी सिंह का गाना

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर से ताल्लुक रखने वालीं प्लेबैक सिंगर शिवरंजनी सिंह का गाना ‘ट्रिप अभी बाकी है’ यूट्यूब पर ट्रेंडिंग वीडियोज़ में नजर आ रहा यानी बड़ी संख्या में लोग इसे देख रहे हैं। खास बात यह है कि वेस्ट इंडीज़ के क्रिकेट ड्वेन ब्रावो ने इसे म्यूजिक दिया है। गौरतलब है कि ड्वेन ब्रावो अच्छे सिंगर है और लोग उन्हें डीजे ब्रावो के नाम से पहचानते हैं। ब्रावो इस वक्त आईपीएल में गुजरात लायन्स की तरफ से खेल रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस गाने को ब्रावो और शिवरंजनी आईपीएल के कार्यक्रम के दौरान भी परफॉर्म कर सकते हैं।

शिवरंजनी सिंह का भी क्रिकेट से वैसे एक तरह से नाता है। उनके पिता शक्ति सिंह पूर्व क्रिकेटर हैं। शिवरंजनी सिंह प्लेबैक सिंगर के तौर पर पहचानी जाती हैं। उनके गाने युवा पीढ़ी को काफी पसंद आ रहे हैं।

इस गाने को न सिर्फ शिवरंजनी ने आवाज दी है बल्कि वह डांस करती हुई भी दिखती हैं। उनके साथ ब्रावो ने भी परफॉर्म किया है। डीजे ब्रावो रैप करते हुए भी दिखते हैं।

यूट्यूब पर 6 अप्रैल को रिलीज हुए इस गाने को अब तक करीब सवा 8 लोग देख चुके हैं। रिऐक्शंस मिले-जुले आ रहे हैं। हालांकि पसंद करने वालों की संख्या ज्यादा है। लोग प्रश्न उठा रहे हैं इस गाने में किस ‘ट्रिप’ की बात की जा रही है और ‘तुमसे न हो पाएगा’ का क्या मतलब है।

सामने आया मलाणा के रास्ते से बचाए गए ट्रेकर्स का वीडियो

इन हिमाचल डेस्क।। ट्रैकिंग का जुनून अनाड़ी युवाओं के लिए एक बार फिर जानलेवा साबित हुआ है। एक दुखद घटना में ट्रैकिंग के लिए निकले 2 छात्रों की मौत हो गई है जबकि उनके 3 साथियों की हालत खराब है। बर्फ में फंसे इन लोगों ने अपने स्लीपिंग बैग और कपड़े ही जला डाले। इनका एक वीडियो सामने आया है जिससे पता चलता है कि इन लोगों की हालत कितनी खराब हो चुकी थी। यह सबक है उन सभी के लिए जो बिना तैयारी के अडवेंचर के नाम पर जान जोखिम में डालने निकल पड़ते हैं। (वीडियो आर्टिकल के बॉटम पर है)

खबर के मुताबिक बुधवार दोपहर बाद आईसीआई दिल्ली में पढ़ने वाले नेपाल मूल के छात्र नितेश, वीतपरा, विकास,अर्जुन और संतोष मणिकर्ण घाटी के रशोल से मलाणा के लिए ट्रैक पर निकले थे। चार घंटे बाद सभी रशोल टॉप पर पहुंचे तो यहां भारी बर्फ थी जिससे उन्हें रास्ते का पता नहीं चला। इस दौरान ताजा बर्फबारी भई शुरू हो गई जिससे हालात खराब हो गए।

अंधेरे में इन्हें कुछ पता नहीं चला और सुरक्षित जगह भी नहीं मिली। इंतजाम भई पूरे नहीं थे इसलिए टॉप से करीब 100 मीटर नीचे एक पेड़ के नीचे बैठे रहे। बर्फीले तूफान से बचने के लिए इन्होंने अपने चार स्लीपिंग बैग और कपड़े जला डाले मगर राहत नहीं मिली। बुधवार रात मोबाइल बंद होने से पहले इन लोगों ने एक काम अच्छा ये किया था कि 100 नंबर पर कॉल करके पुलिस को बता दिया था कि हम रास्ता भूल गए हैं। पुलिस ने तैयारियां शुरू कर दी थीं तलाशने की। उधर भूख और प्यास के बीच कड़ाके की ठंड में 2 लोगों की हालत बिगड़ गई।

रेस्क्यू टीम जब वहां पहुंची तो तीनों छात्र सन्न थे और कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थे। दो छात्रों को अस्पताल लाया गया मगर उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। तीन की हालत खराब है और वे अब भी बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि उन्हें डर के मारे मानसिक आघात भी पहुंचा है। देखें ‘अमर उजाला’ द्वारा पब्लिश किया गया वीडियो और लास्ट में गुजारिश कि प्लीज़, बिना तैयारी और बिना ट्रैकिंग के अडवेंचर पर न निकलें। बहुत से लोग प्रकृति को चुनौती देते हुए जान गंवा चुके हैं। उनसे सबक लें, कम से कम मौसम का पता लगाने के लिए स्मार्टफोन पर मौसम वाले ऐप्स का ही देख लिया करें और बिना लोकल गाइड के जोखिम न उठाएं।