रामपुर बुशहर।। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने एम्स मामले पर आक्रामक होते हुए कहा कि हिमाचल में एम्स का शिलान्यास लटकने के पीछे केंद्र सरकार और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा जिम्मेदार हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में एम्स स्थापित करने को केंद्र राज्य सरकार को कोसता रहा कि सहयोग न मिलने से बिलासपुर में एम्स लटका है, मगर केंद्रीय मंत्री स्वास्थ्य मंत्री नड्डा के गृहक्षेत्र में भूमि उपलब्ध करवा दी गई, फिर भी वह रुचि नहीं दिखा रहे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बात समझ से परे है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री नड्डा अपने गृह विधानसभा क्षेत्र बिलासपुर में एम्स का कार्य शुरू करने में रुचि क्यों नहीं दिखा रहे। उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार अपना पूरा सहयोग देने को तैयार है।
गौरतलह है कि ‘इन हिमाचल’ ने भी प्रश्न उठाया था कि आखिर एम्स के लिए बजट से लेकर जमीन तक अलॉट होने के बावजूद काम शुरू क्यों नहीं हो रहा। इसके बाद जब पत्रकारों ने इसे लेकर नड्डा से सवाल किए थे तो उन्होंने कहा था- इस मामले में कुछ टेक्निकैलिटीज़ हैं, जिनपर मैं जाना नहीं चाहता। वह इस सवाल को सीधे-सीधे टाल गए थे।
चिरंजीत परमार।। भारत की स्वतन्त्रता की घोषणा 14 अगस्त 1947 रात के ठीक बारह बजे हुई थी और इसी के साथ भारत एक आज़ाद देश बन गया था। सारे भारत में उस दिन समारोह हुए थे। उस ऐतिहासिक दिन हमारे शहर मंडी में भी एक समारोह हुआ था जो मुझे अच्छी तरह याद है। मेरी उम्र तब आठ साल थी।
आज का मंडी शहर पर इस समारोह के बारे में बताने से पहले मैं अपने उन मित्रों को जो मंडी के निवासी नहीं हैं, मंडी के बारे में कुछ जानकारी देना चाहूँगा. मंडी हिमाचल प्रदेश का एक छोटा शहर है और अब जिला भी है. स्वतन्त्रता से पहले मंडी एक रियासत हुआ करती थी जिस पर उस समय राजा जोगेंद्र सेन राज किया करते थे. स्वतंत्रता के बाद इस रियासत का हिमाचल प्रदेश में विलय कर दिया गया और इस के साथ एक अन्य रियासत सुकेत को मिला कर आज के मंडी जिले कया गठन किया गया.
आज ऐसा है मंडी शहर
मंडी उस समय की काफी प्रगतिशील रियासतों में एक थी. यहाँ बिजली थी, दो तीन हाई स्कूल थे, हॉस्पिटल था, टेलीफोन भी थे. उस समय मंडी में हिमाचल के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे लोग थे. मंडी के तत्कालीन शासक राजा जोगिन्द्र सेन रियासत के दिनों हमारा परिवार पैलेस (जहां अब सोल्जर बोर्ड तथा फौजी केंटीन है) के स्टाफ क्वार्टरों में रहता था। मेरे स्वर्गीय पिता मियां नेतर सिंह राजा मंडी के निजी स्टाफ में थे. निजी स्टाफ के लगभग सारे कर्मचारी उन स्टाफ क्वार्टरों में रहा करते थे।
पहले ऐसा था मंडी
उस दिन क्वार्टरों के निवासियों में कुछ विशेष हलचल थी और सब बड़े आपस में यह कह रहे थे की आज रात को आज़ादी आएगी। हमारे साथ वाले क्वार्टर में मिस्त्री शेर सिंह रहते थे। पैलेस के बिजली से जुड़े सारे काम उनके जिम्मे थे। पैलेस के तमाम बिजली के उपकरणों का रख रखाव भी उन्हीं ज़िम्मेदारी थी। इन उपकरणों में दो सिनेमा प्रॉजेक्टर भी थे जिन पर कभी कभी वो हमको कार्टून फिल्मे दिखाया करते थे जो शायद पैलेस में राजकुमार (आज के मंडी के राजा अशोक पाल सेन, जो शाम को अक्सर राजमहल होटल में टीवी देखते रहते हैं) और राजकुमारी के देखने के लिए मंगाई हुई होती थीं। इस कारण मिस्त्री जी (उनको हम इसी नाम से संबोधित किया करते थे, उन दिनों अंकल आंटी का रिवाज अभी नहीं चला था) हम बच्चों में बहुत लोक प्रिय थे।
मंडी के राजा जोगिंदर सेन
हम बच्चों को वह ऐतिहासिक क्षण दिखाने वाले मिस्त्री शेरसिंह अपनी धर्मपत्नी जसोदा के साथ आज़ादी का समारोह चौहटे में आयोजित किया जा रहा था। शायद आयोजकों की इच्छा हुई होगी की इस विशेष दिन पर समारोह में लाउड स्पीकर भी लगाया जाए। मेरा अंदाजा है कि उस वक़्त मंडी में एक ही लाउडस्पीकर सिस्टम था और वह भी केवल पैलेस में। इसलिए पैलेस से यह साउंड सिस्टम माँगा गया. पैलेस की और से मिस्त्री जी को यह काम सौंपा गया और उन्होंने साउंड सिस्टम तैयार करना शुरू किया। मिस्त्री जी के मन में अचानक यह विचार यह आया कि क्यों न बच्चों को भी आज़ादी आने का यह जश्न दिखाया जाये और उन्होंने मेरी ही उम्र की अपनी बेटी चंद्रा, भतीजे रूप सिंह और मुझे भी साथ चलने को कहा। हम तीनों बहुत ही प्रसन्न थे।
मिस्त्री शेरसिंह अपनी धर्मपत्नी जसोदा के साथ
मंडी के वर्तमान राजा श्री अशोक पाल सेन समारोह के लिए चौहटे की भूतनाथ वाली साइड पर एक मंच बनाया गया था जिस पर दरियाँ बिछायी गई थी। मंच के एक कोने पर मिस्त्री जी ने अपना साउंड सिस्टम सेट किया और लाउड स्पीकर भी लगा दिया। स्टेज पर ही एक छोटा मेज़ रखा गया जिस पर एक रेडियो सैट लगा दिया गया। फिर इस रेडियो के आगे माइक्रोफोन रख दिया गया और इस के साथ ही रेडियो में चल रहा प्रसारण लाउड स्पीकर में आने लगा। मंच के आगे कुछ दरियाँ बिछा दी गई थीं जिस पर लोग आ कर बैठने शुरू हो गए थे। क्योंकि हम तीनों मिस्त्री जी के साथ थे जो अपने लाउडस्पीकरों के कारण उस समारोह के बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति थे, इसलिए हम तीनों को को भी वी आई पी ट्रीटमेंट मिला। हम तीनो को आम पब्लिक के साथ नीचे दरियों के बजाय स्टेज पर बिठाया गया, हालांकि बैठे हम वहाँ भी नीचे ही थे।
मंडी रियासत के वर्तमान ‘राजा’ अशोक पाल सेन
उस समय तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया था पर अब में समझ सकता हूँ। रेडियो पर शायद कमेंटरी किस्म का प्रोग्राम आ रहा था। स्वतन्त्रता की घोषणा रात को बारह बजे दिल्ली में होनी थी। दिल्ली में चल रहे समारोह की जानकारी वहाँ उपस्थित जन समूह को रेडियो के माध्यम से दी जा रही थी। फिर अचानक जनसमूह में जोश आ गया और लोग खुशी के मारे झूम उठे और नारे लगाने लग गए। ध्वजारोहण भी हुआ था। मुझे याद नहीं कि मंडी में उस रात झंडा किसने फहराया था. शायद स्वामी पूर्णानन्द ने यह काम किया था.
उस क्षण शायद दिल्ली में भारत के आज़ाद होने की घोषणा हुई होगी। चौहटे के कोर्ट वाले सिरे पर पटाखे छोड़े जाने लगे। 5-6 हॉट एयर बैलून, जिन्हें बच्चे उस वक़्त “पेड़ू” कहा करते थे, भी छोड़े गए। फिर आया हम लोगों के लिए सबसे बढ़िया क्षण। बड़ी बड़ी परातों में गरम गरम हलुआ आया और लोगों में बांटा जाने लगा। आज़ादी क्या होती है इसकी तो हमको समझ नहीं थी, पर उस दिन के हलुए का स्वाद आजतक भी नहीं भूला है। क्यों कि हम मिस्त्री जी के साथ थे और स्टेज पर थे, इसलिए हमको सामान्य दर्शकों से ज्यादा, दोनों हाथों की हथेलियाँ भर के हलुआ मिला और हमने पेट भर के खाया। तो ऐसे हुआ था मंडी शहर में भारत आज़ाद।
(लेखक चिरंजीत परमार हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से हैं जाने-माने फ्रूट साइंटिस्ट हैं। पूरी दुनिया में विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय उनकी सेवाएं ले चुके हैं। यह लेख उनकी फेसबुक टाइमलाइन और ब्लॉग से साभार लिया गया है।)
एमबीएम न्यूज नेटवर्क, नाहन।। हिमाचल प्रदेश में वनरक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं। एक प्रश्नपत्र की तस्वीर वायरल हो रही है जिसे रविवार को हुई लिखित परीक्षा का प्रश्नपत्र बताया जा रहा है। तस्वीर से साफ नहीं है कि यह किस सीरीज का प्रश्नपत्र है। मगर इस परीक्षा में हिस्सा लेने वाले उम्मीदवार इसे वनरक्षक भर्ती का ही प्रश्नपत्र करार दे रहे हैं।
दरअसल समूचे प्रदेश में रविवार को वनरक्षकों की भर्ती की लिखित परीक्षा आयोजित हुई है। सवा घंटे की इस परीक्षा में किसी भी अभ्यार्थी को मोबाइल व घड़ी के अलावा कोई भी इलैक्ट्रोनिक्स उपकरण ले जाने की इजाजत नहीं थी। ऐसे में सवाल इस बात पर उठता है कि फिर यह प्रश्नपत्र कैसे वायरल हो रहा है।
Image: MBM News Network
नाम गोपनीय रखने की शर्त पर एक उम्मीदवार ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क को दावे से कहा कि आज की परीक्षा का ही प्रश्रपत्र है। यह तो विभाग ही जांच के बाद पता लगा सकता है कि किस सीरीज का प्रश्नपत्र वायरल हुआ। उम्मीदवार ने यह भी कहा कि जैसे ही वह परीक्षा देकर बाहर निकले तो मोबाइल ऑन करते ही व्हाटसएप ग्रुप में प्रश्रपत्र की फोटो आने लगी।
इस खबर में यह स्पष्ट करना भी जरूरी है कि कई बार शरारत की नीयत से भी ऐसा काम किया जाता है। बहरहाल आवेदकों में प्रश्नपत्र लीक होने से हडकंप मचा हुआ है। उधर वन अरण्यपाल वाईपी गुप्ता का कहना है कि शहर में प्रश्रपत्र के वायरल होने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि परीक्षा के आयोजन के लिए फुल प्रूफ इंतजाम किए गए थे। यहां तक की इनविजीलेटर्स को भी मोबाइल ले जाने की इजाजत नहीं थी।
उन्होंने कहा कि ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी बाहर के परीक्षा केंद्र से प्रश्नपत्र की तस्वीरों को वायरल किया गया हो। साथ ही यह भी सवाल उठाया कि पुराने प्रश्नपत्र को ही जानबूझ कर शरारत की नीयत से वायरल किया जा रहा हो। गौरतलब है कि इस परीक्षा में प्रश्नपत्र वापस लेने का प्रावधान होता है।
(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत पब्लिश की गई है)
मंडी।। मंडी जिले के कोटरोपी में जहां पर भूस्खलन हुआ है, वहां पर कुछ परिवारों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। उनका कहना है कि गांव के पीछे की जमीन पर पहले ही दरारें आई गई थीं मगर न तो प्रशासन ने उनकी सुध ली और न ही उनके विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री ठाकुर कौल सिंह ने फरियाद सुनी। ग्रामीणों ने ये बातें पंजाब केसरी अखबार से बातचीत के दौरान कहीं (पढ़ें)।
जहां पर भूस्खलन हुआ है, वह इलाका द्रंग विधानसभा सीट में पड़ता है। यहां से ठाकुर कौल सिंह लंबे समय से जीतते आए हैं और कई बार मंत्री रहे हैं। हिंदी अखबार पंजाब केसरी से बात करते हुए स्थानीय निवासी चौबेराम ने बताया कि दो दशक पहले उन्होंने अपने भाइयों के साथ एक मुस्लिम परिवार से यह जमीन खरीदी थी।
इनका कहना है कि यहां पर पांच अलग मकान और गऊशालाओं बनाई गई थीं। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले गांव के पीछे की ज़मीन पर दरारें आ गई थीं और इस वजह से उन्होंने यहां से कहीं और जाने का मन बना लिया था। उन्होंने कहा कि मांग के बावजूद न तो प्रशासन ने जमीन में आई दरारों का संज्ञान लिया और न ही उनके विधायक और कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ने फरियाद सुनी।
अगर गांव वालों की बातें सच हैं तो प्रशासन पहले हरकत में आ सकता था। दरअसल हमारे देश में व्यवस्था ऐसी है कि जब तक कुछ हो नहीं जाता, तब तक किसी को होश नहीं आता। न तो किसी को ऐसी चीज़ों की चिंता होती है और न ही वे इतने सक्षम हैं कि कोई उपाय कर सकें। इसी रवैये का खामियाजा हमें अक्सर मासूमों की जान गंवाकर भुगतना पड़ता है।
मंडी।। कोटरोपी के ग्रामीणों का कहना है कि इस साल नड़ उत्सव काहिका में देवता ने भविष्यवाणी की थी कोई अनहोनी हो सकती है। यही नहीं, उन्होंने इस गांव के 7 परिवारों को घर खाली करने को कहा था। लोग मकान खाली भी करने लग गए थे, मगर इससे पहले कि वे पूरी तरह से हट पाते, यह आपदा आ गई।
शनिवार रात को भूस्खलन आया और उनकी जमीन को बहा ले गया। लोगों के मकान बाल-बाल बचे हैं, जिसे वे देवता की कृपा मान रहे हैं। लोगों ने देवता की भविष्यवाणी को लेकर पंजाब केसरी अखबार को जानकारी दी है।
क्या है हिमाचल की देव पंरपरा हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर बहुत से गांवों में देवता होते हैं। ये देवता हिंदुओं के स्थापित देवी-देवता नहीं होते बल्कि वे ऋषि, तपस्वी या महात्मा होते हैं, जिन्होंने उस क्षेत्र में किसी वक्त निवास किया था। उन देवताओं के अपने मंदिर होते हैं और इन देवताओं की मूर्तियां भी अलग होती हैं। धातु के मुखौटों से बनी मूर्तियां पालकी पर स्थापित होती हैं और इन पालकियों पर देवता को उठाकर गांव या अन्य स्थानों पर ले जाया जाता है।
इन देवताओं पर लोगों की गहरी आस्था है। माना जाता है कि देवता अपने गुर (पुजारी) के माध्यम से जनता से संवाद भी करते हैं। समाधि की अवस्था में गए गुर के मुंह से बोल आते हैं, उन्हें देवता की ही बात माना जाता है। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। जब पुजारी का देहांत हो जाता है तो देवता ही खुद अपना नया पुजारी चुनते हैं। यानी इंसान की कई पीढ़ियां बदल गईं, देवता वही रहे।
इन देवताओं का मान इसलिए ज़्यादा है क्योंकि लोगों का विश्वास है कि वे बहुत बार अपने पुजारी के माध्यम से भविष्यवाणियां भी करते हैं। अक्सर ये भविष्यवाणियां सटीक होती हैं और यही वजह है कि विज्ञान के इस दौर में भी लोगों की आस्था इन देवताओं पर बनी हुई। काहिका देवता के लिए समर्पित उत्सव होता है जिसका समापन कुछ ही दिन पहले हुआ था(विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)। पंजाब केसरी अखबार के मुताबिक लोगों का कहना है कि इसी में देवता ने भविष्यवाणी की थी।
भले ही बाहर के लोग इसे अंधविश्वास के तौर पर देखें और हिमाचल में भी बड़ा तबका इस पर यकीन न करता हो, मगर बड़ी संख्या उनकी ज़्यादा है जो मानते हैं इन देवताओं के पास कोई न कोई शक्ति तो है। बहरहाल, कहावत भी है कि राजनीति और आस्था पर चर्चा का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता।
मंडी।। क्या कुदरत भी कोई पैटर्न फॉलो करती है? यानी क्या ऐसा होता है कि कोई घटना किसी खास अंतराल बात ही होती हो? हालांकि ऐसा होता नहीं है मगर कई बार कमाल के संयोग बन जाते हैं। और इस तरह के संयोगों पर नज़र डालें तो लगता है कि शायद कुदरत वाकई एक ख़ास डिजाइन पर काम करती है।
12 अगस्त की रात को मंडी के कोटरोपी में अचानक भूस्खलन आने से दर्जनों लोगों की मौत हो गई। यह हादसा आज 2017 में हुआ, लेकिन कहा जा रहा है कि इससे ठीक 20 साल पहले और उससे भी 20 साल पहले इसी जगह पर भूस्खलन हो चुका है। पहले 1977 में और फिर 1997 में और वह भी अगस्त महीने में, जब बारिश चरम पर होती है।
हिंदी अखबार पंजाब केसरी के मुताबिक स्थानीय लोगों का कहना है कि 13 अगस्त की सुबह को साल 1997 में ठीक इसी जगह पर पहाड़ी दरक गई थी। उस भूस्खलन की चपेट में एक पुलिया भी आई गई थी। इस घटना के ठीक 20 साल बाद 12 अगस्त की रात को फिर यहीं भूस्खलन आया।
लोगों का तो यहां तक कहना है कि उनके बड़े-बुजुर्ग बताते रहे हैं कि 1977 में भी बरसात में मौसम में इसी जगह पर बड़ा भूस्खलन आया था। इस दावे पर यकीन करें तो लगता है कि कुछ तो संयोग है। मगर लोग कई बार बातें भी बनाते हैं।
1977 वाली बात को गलत मानें तो 1997 और 2017 में भूस्खलन आना महज संयोग हो सकता है। अगस्त के महीने में ही होना संभव भी है क्योंकि इस दौरान बारिश ज्यादा आती है। मगर एक ही दिन (12-13 अगस्त की रात) ऐसा होना गजब का संयोग है।
बहरहाल, यह तो गांववालों को ही पता होगा कि वे सच बोल रहे हैं या झूठ या फिर कहीं उन्हें डेट्स को लेकर गलतफहमी तो नहीं हुई।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। कोटरोपी में आए भूस्खलन में दबे लोगों को निकालने के लिए सर्च ऑपरेशन चल रहा था। जिन लोगों के परिजन इस रूट पर यात्रा कर रहे थे और लापता थे, वे बदहवास होकर कोटरोपी पहुंचे हुए थे।
चारों तरफ तबाही का मंजर देखकर समझ आ जाता था कि दबे हुए लोगों के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। मगर कोई ऐसे ही कैसे मान ले कि उसका अपना अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए परिजनों की उम्मीदें कायम थीं। रुलाई को रोके हुए आंखें लाल थीं, गला रुंधा हुआ था, बेचैन थे, कांप रहे थे मगर मन में दुआ कर रहे थे कि उनका अपना ज़िंदा हो।
बहुत मुश्किल हालात से जूझ रहे इन लोगों में एक मां भी थी जो बिलख रही थी। पहले एक सड़क हादसे में इस महिला ने अपने पति को खो दिया था और उसकी दो बेटियां और बेटा मलबे में लापता था। उसकी हालत देख हर कोई दुआ करता कि काश कोई चमत्कार हो और इसके बच्चे सुरक्षित हों। मगर अफ़सोस, होनी को कुछ और ही मंजूर था। दिन खत्म होने तक चंबा-मनाली बस से 43 यात्रियों के शव निकाले गए।
कुल्लू के रामशिला में रह रही माली देवी अपने बच्चों का इंतजार कुल्लू बस स्टैंड पर कर रही थी। उसे नहीं पता था कि वह बस कभी आएगी ही नहीं। मूल रूप से वह चंबा से हैं और कुल्लू में एलआईसी में नौकरी करके परिवार का पेट पाल रही थीं। उनकी बेटियां मुस्कान और पलक अपने भाई अरमान के साथ छुट्टियां मनाने के लिए अपने दादा-दादी के पास चंबा गए हुए थे।
ये बच्चे अपनी चाची गीता ेक साथ चंबा से मनाली आ रही एचआरटीसी की बस से अपनी मां के पास वापस आ रहे थे। मां कुल्लू बस स्टैंड पर अपने बच्चों को लेने पहुंची थी। बहुत देर हुई और बस आई नहीं तो लगा पता लगाने की कोशिश की कि कहीं बस मनाली तो नहीं चली गई। मगर किसी ने बताया कि बस तो कोटरोपी में भूस्खलन की चपेट में आ गई है।
इसके बाद इस मां की हालत क्या हुई होगी। अपने रिश्तेदारों के साथ वह कोटरोपी पहुंचीं और बिलखते हुए इंतज़ार करने लगीं। शायद उन्हें अहसास था कि वह जिन बच्चों का इंतज़ार कर रही है, वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। मगर मां तो मां होती है।
यह तो माली देवी की कहानी है। इस हादसे ने दर्जनों परिवारों को हिलाकर रख दिया था। कुछ अपने बच्चों का इंतजार कर रहे थे, कुछ बच्चे अपने मम्मी-पापा का इंतजार कर रहे थे तो कहीं किसी और का इंतजार हो रहा था। मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था। बड़े गहरे घाव दिए हैं कुदरत ने। भरने में वक्त लगेगा।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में जोगिंदर नगर के पास कोटरोपी में हुए भयंकर भूस्खलन ने भारी तबाही मचाई है। रविवार रात पौने 10 बजे तक मलबे से 46 शव निकाल लिए गए हैं। सोमवार सुबह से सर्च ऑपरेशन फिर शुरू हो गया है।
माना जा रहा है कि मलबे से लगभग सभी शव निकाल लिए गए हैं। 43 शव एक बस के अंदर से ही निकाले गए। फिर भी प्रशासन एक बार तलाश कर लेना चाहता है कि कहीं कोई और तबा तो नहीं रह गया।
रविवार को 46 शव बरामद किए गए (Image: Samachar First)
हिमगौरव बस से दो मृतकों को रविवार सुबह ही निकाल लिया गया था। दूसरी बस, जो कि चंबा से मनाली जा रही थी, पर सवार 43 यात्रियों की मौत हुई है। इसके यात्रियों के बचने की उम्मीद कम थी क्योंकि मलबा इसे हाइवे से डेढ़ किलोमीटर दूर तक बहा ले गया था। 12 से 14 घंटों की मेहनत के बाद ही इस बस तक पहुंचा जा सका था। एक अन्य बाइक सवाल भी मलबे की चपेट में आ गया था।
मंडी।। कोटरोपी में देर रात हुए दर्दनाक हादसे ने कई लोगों की जिंदगियां तबाह कर दी हैं। NDRF और आर्मी की टीम के साथ-साथ स्थानीय लोग भी घटनास्थल पर मोर्चा संभाले हुए हैं और पीड़ितों को हर संभव मदद दे रहे हैं।
घटना में स्थानीय लोगों ने भी अपने घरों को खो दिया है लेकिन फिर भी इसकी परवाह किए बिना वह लोगों की मदद में जुटे हैं। स्थानीय महिलाएं रात भर से राहत कार्य में जुटी टीमों को पानी पीला रही हैं तो वहीं स्थानीय युवा बचाव दल की रस्सियां आदि खींचकर मदद दे रहे हैं।
‘समाचार फर्स्ट’ की रिपोर्ट के मुताबित इनमें से कुछ ने इस भयंकर लैंडस्लाइड में अपने घरों को खो दिया है, लेकिन इनकी सिर्फ यहीं इच्छा है कि वह किसी को जिंदगी को बचा पाएं। इससे पहले स्थानीय महिलाओं ने मलबा भी उठाया था।
मंडी।। उरलाके पास कोटरोपी में भूस्खलन से मची तबाही के बीच राहत और बचाव कार्य के लिए सेना पहुंच गई है। जवान उस जगह की तलाश में है जहां पर एचआरटीसी की बस दबी हो सकती है। चंबा से मनाली जा रही इस बस में 45 लोग हो सकते हैं।
मौके पर पहुंची सेना ने पूरे इलाके को अपने नियंत्रण में ले लिया है और आम लोगों को वहां से हटाया जा रहा है। इस हादसे का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि पहाड़ी के टॉप से शुरू हुआ भूस्खलन करीब एक किलोमीटर इलाके में तबाही मचा चुका है। यहां पहुंचने के बाद चारों तरफ कीचड़, पत्थर, ठूंठ और मलबा ही नजर आ रहा है।
इससे पहले परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने जानकारी दी थी कि रात से ही बचाव कार्य चल रहे थे और सेना को बुलाया गया है। बताया जा रहा है कि वह खुद भी दिल्ली से घटनास्थल की तरफ रवाना हुए हैं। इस बीच मौके पर बचाव और राहत कार्य में तेजी आई है और लोगों को लाउड स्पीकर के जरिए इलाके से दूर रहने के लिए कहा जा रहा है।