इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश को कागजी रूप से AIIMS जैसा संस्थान मिले हुए लगभग 3 वर्ष होने को आए हैं। प्रथम बजट में ही मोदी सरकार ने इसके लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी, ऐसा कहा जाता रहा है। हिमाचल में एम्स का क्रेडिट लेने की होड़ में प्रदेश की बीजेपी लीडरशिप लगी रही। गाहे-बगाहे सांसद अनुराग ठाकुर ने इसे जेटली का आशीर्वाद बताया तो जेपी नड्डा के स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद AIIMS बिलासपुर के हिस्से आया तो यह उनकी राजनीति में मील का पत्थर बन गया। यह तो राजनीतिक क्रेडिटबाज़ी की बात रही मगर मौजूदा परिस्थितियों की बात करें तो जमीनी रूप से एम्स का एक पत्थर भी जमीन पर नहीं लग पाया है। बिलासपुर के कोठीपुरा में जमीन तय हुई, उसके बाद उसका कितना अधिग्रहण हुआ, कितना नहीं हुआ, कहां क्या हो रहा है यह किसी को पता नहीं है।
अभी ताजा बयान में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर कहते हैं की एम्स क्यों नहीं बन रहा और इस मामले में क्या हो रहा है यह तो केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा जानते हैं। वहीं जे.पी. नड्डा एम्स के प्रश्न को टाल जाते हैं और कहते हैं कि जल्द ही शिलान्यास होगा। यह कैसा इंतज़ार हुआ कि दो बार प्रधानमंत्री मोदी हिमाचल दौरे पर आए परन्तु एम्स जैसे जनहित से जुड़े प्रॉजेक्ट का शिलान्यास ही नहीं हो पाया? प्रदेश बीजेपी इस मामले में कांग्रेस सरकार द्वारा कागजी करवाई पूरी न करने की दुहाई देती है वहीं कांग्रेस सरकार इसे केंद्र पर थोपती है।
ध्यान देने वाली बात है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में जहां-जहां प्रदेश सरकार ने केंद्र की योजनाओं में कोताही की है, वहां केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा प्रदेश सरकार को विभिन्न मंचों से कोसने में पीछे नहीं रहे। वह हर योजना और उसके बजट को गिना देते हैं कि केंद्र ने यहां इतना बजट दिया और राज्य सरकार ने खर्च नहीं किया। परन्तु एम्स कहां लटका है, आखिर प्रदेश सरकार किस मोर्चे पर अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रही, इस पर केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा कभी कुछ कहते ही नहीं हैं। जब वह प्रदेश सरकार की सहयोग न देने की नाकामियां गिना देते हैं तो एम्स के मामले में कहां खामी है? इस पर चुप क्यों हो जाते हैं?
कहीं न कहीं केंद्रीय मंत्री का एक मोर्चे पर तो आक्रमक हो जाना मगर एम्स जैसे बड़े प्रॉजेक्ट पर चुप्पी धारण कर लेना जनता के बीच संशय को जन्म दे रहा है। एम्स जैसा संस्थान जो प्रदेश के लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच एक संजीवनी सिद्ध हो सकता है, आखिर उसका काम क्यों नहीं चल रहा, इसका सही जबाब केंद्र और प्रदेश दोनों सरकारों से बनता है।
बद्दी में एक आयोजन के दौरान कौल सिंह और जेपी नड्डा एक-दूसरे के कार्यों की सराहना के कसीदे पढ़ते हैं। लेकिन एम्स कहां लटका है, इस पर सही तरीके से सच जनता के सामने क्यों नहीं लाते? ऊना में PGI का सैलटाइट सेंटर 320 करोड़ से बनेगा, 300 बेड होंगे और तीन साल में बनकर तैयार होगा; ये सब आंकड़े देने वाले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री नड्डा अपने विधानसभा सीट रहे इलाके में बनने वाले एम्स पर कोई समय सीमा जारी क्यों नहीं करते?