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Friday, September 12, 2025
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अपनों ने छोड़ा, रोटी के लिए भटक रहीं 95 साल की बुजुर्ग

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। संधोल के गांव कनूही की लगभग 95 वर्षीय कला देवी इन दिनों रोटी -रोटी के लिए दर दर भटक रही है, उसे लोगों से मांग कर खाना खाना पड़ रहा है, मगर न तो उसके परिवारजन और न ही सरकार या प्रशासन उसकी सुध ले रहा है।

 

कला देवी जीवन के अंतिम पड़ाव पर जो दुख सहन कर रही है व अपनों व अपनी सरकार प्रशासन की उपेक्षा की शिकार है वह वर्तमान व्यवस्था पर करारा तमाचा भी है।

 

स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव कनूही की कला देवी जिसके पति 1976 में मर गए थे की दो बेटियां हैं जो दोनों ही विधवा हो चुकी हैं, उसके दो बेटे हैं। इनमें से एक विद्युत कर्मचारी था जो 1999 में स्वर्ग सिधार गया था। दूसरा बेटा भी विद्युत विभाग में चपरासी के पद पर कार्यरत है। उसे न तो विधवा बहू फूला देवी और न बेटे व उसके परिवार की ओर से ही कोई खर्चा दिया जा रहा है।

 

दुखी मन से कला देवी रोते हुए बताती है कि उसे रोटी के लिए दर – दर भटकना पड़ रहा है। उसे कहीं से भी कोई इमदाद नहीं मिल रही है।

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कला देवी ने सरकार और प्रशासन आग्रह किया है कि उसकी रोजी रोटी का प्रबंध किया जाए, ताकि जो भी जीवन उसका बचा है वह उसे ठीक से जी सके। उसने यह भी गुहार प्रशासन से लगाई है कि उसके बेटों के परिवार से उसका खर्चा दिलाया जाए।

 

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)

‘संदिग्ध हालात’ में मौत को लेकर परिजनों ने पुलिस जांच पर उठाए सवाल

चंबा।।  26 अगस्त 2017 को अखबारों और मीडिया पोर्टल्स में चंबा के परोथा-कुरैणा संपर्क मार्ग पर एक टाटा सफारी गहरी खाई में गिरने से विजय अबरोल नाम के शख्स की मौत की खबर आई। उस वक्त घटनास्थल को देखकर यह शक जताया जाने लगा कि मामला कहीं हत्या का तो नहीं है। मगर अब मृतक के परिजनों ने पुलिस की जांच पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

26 अगस्त को पंजाब केसरी के पोर्टल में छपी खबर में कहा गया था कि शव गाड़ी से बाहर पड़ा था और सिर धड़ से दूर गिरा था। अखबार ने लिखा था कि ‘आज तक ऐसा देखने को नहीं मिला है कि गाड़ी दुर्घटना के मामले में गाड़ी में सवार व्यक्ति की गर्दन पूरी तरह से बड़ी सफ़ाई के साथ धड़ से अगल हो गई हो। सिर के किसी भी भाग में कोई भी चोट का निशान नजर नहीं आ रहा है। मुंह पर भी किसी प्रकार की चोट नहीं दिखाई दी।’

 

अब मृतक विजय अबरोल की पत्नी मीनाक्षी अबरोल ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि मेरे पति की हत्या की गई है और इसे हादसे का रंग देने की कोशिश की है। उन्होने कहा, ‘इस मामले में पुलिस की कार्यशैली भी संदेह के घेरे में है क्योंकि इस मामले को लेकर पुलिस में मैंने जो बयान दिया है, उसमें मैंने 2-3 लोगों पर अपने पति की हत्या करने का शक जताया था लेकिन अफसोस की बात है कि अभी तक पुलिस ने उक्त लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में नहीं लिया है।’

‘तेजधार से गर्दन काटी गई’
मीनाक्षी का कहना है कि जिस हालत में उनके पति का शव मिला था, वह अपने आप में यह कहानी बयां कर रहा था कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि एक हत्या का मामला है। उन्होंने कहा कि उनके पति की पहले किसी तेजधार हथियार के साथ गर्दन को काट कर धड़ से अलग किया गया, उसके बाद शव को सड़क से नीचे फेंका गया। फिर इस हत्या की साजिश को हादसे का रूप देने के लिए बाद में गाड़ी को सड़क से नीचे फेंक दिया गया।

 

‘गाड़ी में खून की एक भी बूंद नहीं’
मीनाक्षी ने कहा कि इस बात का प्रमाण यह है कि उनके पति की गाड़ी में खून की एक भी बूंद पड़ी हुई नहीं मिली। उन्होंने कहा, ‘अगर पति की मौत गाड़ी दुर्घटना में होती तो गाड़ी में खून के धब्बे तो मौजूद रहते। यही नहीं, गर्दन धड़ से अगल मिली है और धड़ पर कमीज मौजूद नहीं थी। मौके पर कम से कम वह वस्तु तो मौजूद होनी चाहिए थी, जिसकी चपेट में आकर पति की गर्दन धड़ से एकदम से अलग होकर दूर जा गिरी।’

 

मीनाक्षी ने कहा कि ये तमाम बातें इस बात को पुख्ता करती हैं कि उनके पति की हत्या हुई है न कि सड़क दुर्घटना में मौत। उन्होंने पुलिस विभाग से मांग की है कि मैंने जिन लोगों पर पति की हत्या करने का शक जताया है, उन्हें गिरफ्तार कर सख्ती से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी।

 

गौरतलब है कि घटना के वक्त पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव को कब्जे में लेकर उसे पोस्टमॉर्टम के लिए  मेडिकल कॉलेज चंबा लाया, जहां से उसे टांडा मेडिकल कॉलेज भेज दिया गया। एसपी चंबा डा. विरेंद्र तोमर ने उस वक्त बताया था कि पुलिस ने फिलहाल इस मामले को भारतीय दंड संहिता की धारा 279 व 304ए के तहत दर्ज कर जांच शुरू की है।

गुड़िया केस: 70 लोगों के सैंपल दिल्ली ले गई सीबीआई!

शिमला।। पिछले दिनों अंग्रेजी अखबार द ट्रिब्यून ने दावा किया था कि कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस में पकड़े गए आरोपियों के नमूने विक्टिम के शरीर से मिले नमूनों से मैच नहीं हुए हैं. अब जानकारी सामने आई है कि सीबीआई ने जांच को आगे बढ़ाने के लिए 70 और लोगों के सैंपल लिए हैं। जिन लोगों के सैंपल लिए गए हैं, उनमें कुछ स्थानीय लोग चरानी और घोड़े वाले भी हैं।

 

हिंदी अखबार अमर उजाला लिखता है कि दांदी के जंगल और आसपास काम करने वाले मजदूरों, चरानियों और घाड़े वालों के साथ-साथ बणकुफर मैदान में ताश खेलने वाले लड़के भी सीबीआई के शक के दायरे में हैं और इनमें से कई नमूने दिल्ली ले जाकर परखे जा रहे हैं।

 

अखबार के मुताबिक सीबीआई ने तीन टीमें बनाई हैं। करीब आधा दर्जन सदस्यों वाली टीम जेल में मारे गए आरोपी सूरज के मामले की जांच कर रही है और एक टीम पुलिस से दस्तावेज आदि जुटा रही है। वहीं करीब एक दर्जन सदस्यों वाली टीम गुड़िया मामले में सबूत इकट्ठे कर रही है।

CM रिलीफ फंड से भरा गया बाबा अमरदेव के इलाज का खर्च: मीडिया रिपोर्ट

शिमला।। हिमाचल प्रदेश के सोलन के जिस विवादित बाबा के बारे में कुछ दिन पहले ‘इन हिमाचल’ ने विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी, जानकारी मिली है कि उसके इलाज का खर्च मुख्यमंत्री राहत कोष से हुआ है।

 

कंडाघाट के रूड़ा गांव में रामलोक मंदिर परिसर के बाबा अमरदेव ने यहां पर 25 करोड़ रुपये की मूर्तियां स्थापित करने का दावा किया है। मगर अप्रैल 2017 में एक महिला पर तलवार से जानलेवा हमला करने के बाद जब बाबा ने यह कहते हुए अस्पताल का रुख किया था कि उनके ऊपर हमला करके मारपीट की गई। वह आईजीएमसी के स्पेशल वॉर्ड में भर्ती हुए थे और मुख्यमंत्री ने यहीं आकर उनसे मुलाकात की थी। इस मुलाकात के कुछ ही घंटों के अंदर कंटाघाट के पूरे थाने को ट्रांसफर कर दिया गया था।

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हिंदी अखबार ‘हिमाचल दस्तक’ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि आईजीएमसी के स्पेशल वॉर्ड में ऐडमिट रहे बाबा अमरदेव का बिल 25 हज़ार रुपये का बना, मगर करोड़ों की मूर्तियां मंदिर में होने का दावा करने वाला यह बाबा इस रकम को भी नहीं चुका पाए। अखबार ने कहा है कि संभव है कि जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इस बाबा से आईजीएमसी जाकर मिले थे, तभी उन्होंने आदेश दिए हों कि इलाज के पैसे न लिए जाएं।

 

अखबार के मुताबिक 25 हज़ार रुपये की यह रकम पहले कंडाघाट भेजी गई और फिर वहां से आईजीएमसी डायवर्ट की गई। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री राहत कोष से अगर एक आम आदमी को इलाज के लिए पैसे लेने हों तो पापड़ बेलने पड़ते हैं। सभी को मदद नहीं मिल पाती और जिन्हें मिलती है, कई बार वह भी ऊंट के मुंह में जीरा होती है। ऐसे में उस बाबा, जो कि विवादित है, जिस पर सरकारी ज़मीन पर कब्जा करने से लेकर जानवरों की खाल रखने और महिला पर जानलेवा हमला करने जैसे आरोप लगे हैं, उसपर इतनी मेहरबानी क्यों?

गौरतलब है कि स्थानीय लोग इस बाबा को पसंद नहीं करते और वे नहीं चाहते कि बाबा यहां लौटे। मगर बताया जा रहा है कि जन्माष्टमी के बाद से बाबा लौट आए हैं। हिमाचल सरकार के कई मंत्री और मुख्यमंत्री इस बाबा पर मेहरबान हैं।विपक्षी बीजेपी के नेता भी यहां हाजिरी भरते रहे हैं। इस ‘शाही’ बाबा के मंदिर के बाहर महंगी लग्जरी कारें खड़ी रहती थीं जो पुलिस की जांच शुरू होने के बाद अचानक गायब हो गईं।  इस बाबा के बारे में पूरे विवादों के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अब एसपी डीडब्ल्यू नेगी की तरफ घूमी CBI जांच की सूई

शिमला।। गुड़िया हत्याकांड के नाम से पहचाने जाने वाले कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस की जांच कर रही सीबीआई ने अब अपना रुख शिमला के तत्लकालीन एसपी डीडब्ल्यू नेगी की तरफ किया है। गुड़िया का शव मिलने के बाद शुरू के तीन दिनों तक शुरुआती जांच के लिए एसपी नेगी ही हलाइला में डटे थे। किसी भी मामले में शुरुआती जांच बहुत अहम होती है क्योंकि उसी दौरान संवेदनशील सबूत और जानकारियां जुटाई जानी होती हैं। मगर नेगी की जांच के दौरान कोई भी सबूत नहीं मिला था। इसी कारण लोगों में नाराज़गी पैदा हुई थी और आईजी जहूर एच. ज़ैदी के नेतृत्व में एसआईटी बनी थी, जिसके ज्यादातर सदस्य पहले ही सीबीआई की गिरफ्त में हैं।

 

हिंदी अखबार अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि शुरुआती तीन दिनो की जांच ही नेगी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। सीबीआई पूछ सकती है कि शुरुआती जांच में आखिर क्या पता चला था। अखबार ने लिखा है, “सूत्र बताते हैं कि शुरुआती जांच के दौरान ही एसपी नेगी पर साक्ष्य मिटाने जैसे गंभीर आरोप लगे थे। शव से सैंपल लेने, क्राइम सीन सील करने के अलावा कथित संदिग्ध आरोपियों के घर दबिश और वहां से मिले सामान को सील करने में गड़बड़ी की आशंका थी। इसके अलावा अब तक गुड़िया के दाएं पैर का एक जुराब भी गायब थी। कहा जाता रहा कि एक आरोपी के घर से वह जुराब मिली थी लेकिन उसे गायब कर दिया गया। नेगी को भी ऐसे ही आरोपों और सवालों का सामना करते हुए सीबीआई को संतोषजनक जवाब देना है।”

 

बता दें कि डीडब्ल्यू नेगी मुख्यमंत्री वीरभद्र के खास मानते जाते हैं। पिछले दिनों कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि वह शिमला के एसपी बनने वाले एसपीएस कैडर के पहले अधिकारी रहे हैं। उनसे पहले जो भी शिमला का एसपी बना, वह आईपीएस ऑफिसर था। मौजूदा एसपी सौम्या सांबशिवन भी आईपीएस ऑफिसर हैं। नेगी पिछले दिनों विवादों में भी रहे थे, जब रिकांगपिओ में आत्महत्या करने वाले एक शख्स ने अपने सुसाइड नोट में अपनी मौत के लिए जिम्मेदार लोगों में नेगी का भी नाम लिखा था। इस मामले में नेगी पर मामला दर्ज न होने को लेकर सवाल भी उठे थे।

बुरी तरह से गिर चुका है हिमाचल की पुलिसफोर्स का मनोबल

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में आईजी, एसपी, डीएसपी, एएसपी जैसे स्तर के पुलिस अधिकारी सीबीआई की जांच की ज़द में हैं और इनमें से कई को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। जैसे ही यह खबर मीडिया में फैली थी कि सीबीआई ने कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस के संबंध में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पकड़ा, पूरे प्रदेश के पुलिसकर्मी असहज स्थिति में आ गए। मामला सीधे-सीधे उनके महकमे से जुड़ा था। उनके महकमे की प्रतिष्ठा में आंच आने का मतलब है कि उनकी अपनी प्रतिष्ठा भी कम होती। इसके बाद कई पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया अपने विचार जाहिर कि और कहा कि सभी पुलिसवाले एक जैसे नहीं होते और कुछ गंदी मछलियों की वजह से पूरा डिपार्टमेंट गलत समझ लिया जाता है। इनमें से कुछ ने इस संबंध में दूसरों की पोस्ट्स शेयर कीं तो कहीं पर कॉमेंट या लाइक किए। कुछ ने अपनी पोस्टें हटा दीं तो कुछ ने बनाए रखी हैं।

 

ब्लैकमेलिंग करके उगाही का आरोप
भारत में पुलिस की छवि एक तो पहले ही ठीक नहीं है। और यह भी सही है कि पुसिसवालों का रवैया आम आदमी के प्रति रूखा-सूखा सा रहता है और इससे तमाम आशंकाओं और अफवाहों को बल मिलता है। साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस अपनी कार्यप्रणाली की वजह से भी बदनाम है। उदाहरण के लिए पिछले दिनों एचआरटीसी के आरएम को चिट्टा के साथ पकड़े जाने की खबर आई। कुछ दिनों बाद वह आरएम मीडिया के सामने आए और दावा किया कि जिसे पुलिस चिट्ठा बता रही थी, वह लैब में सोडा निकला। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें झूठा फंसाया गया और बदले में उनसे पैसों की मांग की जा रही थी। उन्होंने कहा कि इस आधार पर मैं कोर्ट से भरी भी हो गया हूं। मगर इसके बाद पुलिस की तरफ से कोई सफाई नहीं आई।

एसपी पर सुसाइड के लिए उकसाने का आरोप
जहां एक तरफ आम मामलों में किसी का नाम किसी के सुसाइड नोट में आए तो सबसे पहले उसे हिरासत में लेकर पूछचाथ की जाती है। मगर शिमला के पूर्व एसपी डीडब्ल्यू नेगी का नाम एक सुसाइड नोट में आया। रिकांगपिओ में खुदकुशी करने वाले शख्स के पास मिले सुसाइड नोट में दबाव बनाने का आरोप नेगी पर भी लगा था। अगर मामला किसी आम इंसान से जुड़ा होता तो पुलिस तुरंत उठाकर ले जाती। मगर इस केस में पुलिस ने एफआईआऱ में नेगी को नामजद करने में भी आनाकानी की। अब इस मामले की प्रगति कहां पहुंची है, साफ नहीं हो पाया है। इस तरह की घटनाओं से भी जनता में गलत संदेश जाता है और आम आदमी सवाल उठाता है तो ईमानदार अफसर और पुलिसकर्मी खुद को शर्मिंदा महसूस करते हैं।

 

वनरक्षक होशियार सिंह केस
वनरक्षक होशियार सिंह पहले गायब होता है और पुलिस ज्यादा हाथ-पैर नहीं मारती। फिर उसकी लाश पेड़ पर उल्टी टंगी मिलती है तो वह पहले हत्या का मामला दर्ज करती है और फिर तुरंत खुदकुशी का मामला दर्ज कर लेती है। एसआईटी बनती है, कई जांच टीमें बदलती जाती हैं और तरह-तरह के दावे किए जाते हैं मगर पुलिस यह नहीं बता पाती कि अगर यह खुदकुशी है तो बंदा पेड़ पर जाकर उल्टा कैसे लटक गया। खैर, वनमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जब ऐसी घटनाओं को मामूली बताकर टालने की कोशिश करते हों, तब पुलिस पर सही से जांच करने का दबाव कैसे बन सकता है? नतीजा यह रहता है कि हाई कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ता है और वहां पुलिस आए दिन फटकार सुन रही है। इस मामले में पुलिस फोर्स बैकफुट पर नहीं आएगी तो क्या होगा?

 

कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस
आईजी (इंस्पेक्टर जनरल) जैसे सीनियर अधिकारी पर सीबीआई हिरासत में मौत के मामले में हत्या, सबूत मिटाने जैसी धाराओं में केस दर्ज करती है। जिस एसआईटी को यह मानकर केस की जिम्मेदारी दी गई थी कि स्थानीय पुलिस शायद सही से जांच न कर पाए, वही एसआईटी आज अपनी जांच को लेकर इतने सवालों के घेरे में है कि असल कैदियों को सज़ा दिलाने के बजाय खुद भी गिरफ्त में आ गई। जब सीनियर अधिकारी ऐसे मामलों में फंसे हों, बाकी पुलिस फोर्स में इसका क्या संदेश जाएगा? क्या उन्हें गर्व होगा अपने काबिल अफसर पर?

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बाबा अमरदेव को राजनीतिक संरक्षण
सोलन के कंडाघाट के विवादित बाबा अमरदेव पर सरकारी जमीन कब्जाने का मामला चल रहा है, उनके यहां से संरक्षित जीवों की खालें बरामद हुईं, उन्होंने एक महिला पर तलवार से हमला करके जख्मी किया, उनकी सही पहचान स्थापित करने में पुलिस को मुश्किल हुई, स्थानीय लोग इस बाबा से परेशान हैं… मगर सरकार अपने लोगों की नहीं सुन रही और बाबा को शह दे रही है। सरकार के मंत्रियों का इस बाबा के यहां आना जाना लगा रहता है। मगर हद तक हो गई जब मुख्यमंत्री ने अस्पताल जाकर इस बाबा से मुलाकात की और 48 घंटों के अंदर पूरा का पूरा कंडाखाट थाना (18 पुलिसकर्मी) ट्रांसफर कर दिया। इससे पुलिस फोर्स को क्या संदेश गया होगा?

राजनीतिक दबाव ने भी तोड़ा अधिकारियों का उत्साह
याद होगी वह घटना जब एएसपी गौरव सिंह को मुख्यमंत्री के खास माने जाने वाले विवादित कांग्रेस विधायक रामकुमार (दून के विधायक) की पत्नी के टिप्पर का चालान किए जाने के बाद बद्दी से कांगड़ा ट्रांसफर किया गया था। मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था। ऐसी घटनाओं से पूरी पुलिस टीम में संदेश जाता है कि भैया, मुख्यमंत्री के खास बंदे जो मर्जी करें, हमें कार्रवाई नहीं करनी है वरना देख लो क्या अंजाम होता है।

 

पंडोह में किशोर-किशोरी के शव संदिग्ध हालात में पाए जाने को आत्महत्या का मामला बताने पर उठे सवाल हों या अन्य हिस्सों सामने आई घटनाओं को रफा-दफा करने की कोशिश, हालात यह हुए हैं कि आम जनता में पुलिस की छवि खराब हुई है। इस बीच वे पुलिसकर्मी घुटन महसूस कर रहे हैं जो पूरी निष्ठा से ड्यूटी करते हैं। ऊपर से शिमला में ट्रैफिक पुलिसकर्मी जब अपनी ड्यूटी निभा रहा था तो उसका गिरेबान शराबी ने पकड़ लिया, नादौन में जब पुलिसर्मी अपनी ड्यूटी निभा रहा था तो उसे धमकियां मिलीं अगली सरकार में देख लेने की और विधायक ने धक्का तक दिया। ये घटनाएं दिखाती हैं कि पुलिसफोर्स खुद को कितनी लाचार पा रही है। उसका मनोबल कितना गिरा हुआ है।

डीजीपी की भूमिका अहम है, मगर….
इस मौके पर चाहिए था कि हिमाचल पुलिस का मुखिया कमान संभालता और कोताही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करके मिसालें पैदा करे। वह पूरे प्रदेश में घूमे और पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ाए। काबिल अधिकारियों को प्रोत्साहन और संदिग्ध आचहरण वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई के काम किए जाएं। साथ ही मीडिया पर नजर रखे कि प्रदेश के किस हिस्से में क्या मामला चल रहा है और पुलिस ने उसमें क्या कार्रवाई की। अगर लगे कि कोई चूक हो सकती है, तो तुरंत वहां दखल दे और चीज़ों को सही करे।

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सरकार की भी बनती है जिम्मेदारी
पुलिस विभाग गृह मंत्रालय के अंदर आता है। चूंकि मुख्यमंत्री ने होम डिपार्टमेंट अपने पास रखा है, इसलिए पुलिस की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर है। इसलिए उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि ठीक डीजीपी की तरह घटनाओं और उनकी जांच आदि की प्रगति पर नजर रखे। साथ ही कसकर रखे डीजीपी। बजाय उल्टे सीधे या फिर घटनाओं की गंभीरता को कम करने वाले बयान देने के ऐसा रुख अपनाए कि पुलिस के अधिकारियों को लगे कि भाई, लापरवाही नहीं चलेगी। मगर अफसोस, इस तरफ ध्यान देने की फुरसत किसे है?

नहीं लिया कोटरोपी से सबक, नजदीक से वीडियो बनाते रहे

शिमला।। शिमला में ढली के पास हुए भूस्खलन में लोगों की जिंदगी नहीं गई, यह सुकून भरी खबर है। मगर वीडियो देखकर पता चलता है कि लोग भूस्खलन वाली जगह के कितने नजदीक खड़े हुए थे। एक वीडियो तो ऐसा भी है, जिसमें वीडियो बनाने वाला बाल-बाल बचता है। इससे पता चलता है कि लोग अभी भी सबक सीखने को तैयार नहीं हुई हैं। वे भूल गए कि कुदरत कितना विकराल रूप ले सकती है। कोटरोपी में पहले छोटे से हिस्से में ही पत्थर गिरने शुरू हुए थे। मगर बाद में एकाएक बहुत बड़ा हिस्सा धंस गया। इस मलबे की चपेट में वह नौजवान सैनिक भी आ गया था, जो कथित तौर पर अपनी बाइक से उतरकर भूस्खलन का वीडियो बनाने गया था। देखें:

जो लोग ढली में इस इलाके में न गए हों, वे समझ सकते हैं कि यह इलाका कैसा है। एकदम खड़ी पहाड़ी है और यहीं पर इक पहाड़ी को काटकर बाइपास निकाला गया है। खड़ी पहाड़ी में हुए कटान के कारण इसकी स्टेबिलिटी में कमी आई है और कई हिस्से ऐसे हैं जहां पर पहाड़ का वज़न सड़क के कटाव के ऊपर झूल रहा है। इस भूस्खलन को गौर से देखें तो अनुमान लगाया जा सकता है कि शुरुआत भले ही छोटे से हिस्से से हो, मगर जब पीछे की तरफ सपॉर्ट कम होती जाएगी तो जैसे चेन रिऐक्शन होता है, वैसे ही कच्ची पहाड़ी ढहती चली जाएगी।

साथ ही यहां पर डंगे लगाकर (रिटेनिंग वॉल बनाकर) सड़क बनाई गई है। ऐसे में ऊपर से मलबा गिरने पर वह दीवार भी ढह सकती थी और सड़क के दोनों छोरों पर खड़ी गाड़ियां तमाशवीनों के साथ मलबे में दफ्न हो जातीं। साथ ही नीचे गहरी खाई भी है। वीडियो में दिखता है कि कारें कैसे खिलौनों की तरह उड़कर खाई में गिरीं।

इससे पता चलता है कि लोग अपनी जिंदगी दांव पर लगाने से बाज़ नहीं आ रहे। साथ ही प्रशासन की तरफ से भी एक तरह से लापरवाही मानी जाती है कि उन जगहों को चिह्नित नहीं किया जा रहा, जहां भूस्खलन हो सकते हैं। वक्त रहते उन जगहों पर साइंटिफिक अप्रोच अपनाकर इंतज़ाम किए जाएं तो भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।

साथ ही पाठकों से गुजारिश- कृपया वीडियो बनाने के चक्कर में न पड़ें, कहीं खतरा देखें तो सबसे पहले सुरक्षित जगह की तरफ भागें।

बीजेपी MLA पर SHO को धक्का देने का आरोप, कार्यकर्ताओं ने धमकाया

हमीरपुर।। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में नादौन उपमंडल में शुक्रवार को बीजेपी कार्यकर्ताओं पर पुलिस के साथ हाथापाई का आरोप लगा है। यही नहीं, बीजेपी के विधायक विजय अग्निहोत्री पर भी नादौन के एसएचओ पर धक्का देने का आरोप लगा है। गौरतलब है कि बीजेपी के कार्यकर्ता मुख्यमंत्री का पुतला फूंकने की कोशिश कर रहे थे और पुलिस ऐसा करने से रोक रही थी।

 

इस बीच बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने विधायक के सामने ही एसएचओ को धमकाते हुए कहा कि मौजूदा सरकार का कार्यकाल सिर्फ दो महीनों का है, इसके बाद बाद देखते हैं कि क्या होता है। एक कार्यकर्ता ने तो एसएचओ के कंधे पर लगे स्टार को लेकर भी टिप्पणी कर दी। यह खबर मीडिया में भी छाई हुई है

 

मामला काफी तनावपूर्ण था और एसएचओ ने विधायक और कार्यकर्ताओं को समझाने की कोशिश की। मगर बीजेपी कार्यकर्ता एसएचओ मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए आगे बढ़ गए और पुतला भी जला दिया।

 

उधर एसएचओ सतीश कुमार ने मीडिया से बातचीत में बताया है कि भाजपा नेता मुख्यमंत्री का पुतला जलाने की कोशिश कर रहे थे और पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो वे बदतमीजी पर उतारू हो गए। साथ ही एसपी रमन कुमार का कहना था कि अगर भाजपा विधायक ने पुलिस कार्यवाही में बाधा डाली है तो कार्रवाई की जाएगी।

 

वहीं नादौन के विधायक विजय अग्निहोत्री ने कहा कि पुलिस ने उनके साथ बदतमीजी की है। उनका कहना था कि बीजेपी कार्यकर्ता कोटखाई की गुड़िया को न्याय दिलवाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो पुलिस ने उन्हें मुख्यमंत्री का पुतला जलाने से रोका और कार्यकर्ताओं को धमकाया।

आज है सोलन का जन्मदिन, जानें इस ख़ूबसूरत जगह को

इन हिमाचल डेस्क।। इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो वर्तमान सोलन तहसील (इतिहास में बघाट) हिमाचल की पहली रियासत थी, जिसने स्वेच्छा से भारतीय गणतंत्र में विलय को स्वीकार किया था।

 

“बघाट” नाम दो शब्दों के मिलन से बना है बहु और घाट ”बहु” का मतलब बहुत सारे और घाट मतलब ”दर्रा।” यानी ऐसा स्थान जहां से पानी या हवा का मूवमेंट ज्यादा हो। इसलिए सोलन में आज भी बहुत सारे स्थानों के साथ घाट शब्द लगा है।

 

रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी। बारह घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था। इस रियासत की प्रारंभ में राजधानी जौणाजी, परवाणू के पास कोटी में हुआ करती थी।

 

कहते हैं किसी पंडित के श्राप से अभिशप्त यह राजधानी तबाह हो गयी  मजबूर होकर बघाट रियासत की राजधानी को वहां से हटाना पड़ा था। कोटी के बाद बेजा, बोचह, जौणाजी जैसे महत्वपूर्ण स्थलों पर बघाट की राजधानियों को बसाने का प्रयास किया गया, किन्तु सारे प्रयास असफल रहे।

 

अंत में बघाट की राजधानी माता शूलिनी के मंदिर के पास बसाई गयी, जिस कारण इसका नाम सोलन पड़ा। सोलन में आज का पुराना कचहरी भवन  बघाट रियासत का भवन था।

 

1  सितंबर 1972, यानि आज के दिन हिमाचल प्रदेश के ज़िले के रूप में सोलन जिला को शामिल किया गया था। बघात रियासत के हिस्सों के साथ साथ बाघल और हॉण्डुर के हिस्से भी सोलन में मिलाये गए। समुद्र  सतह से लगभग  समुद्र सतह से 1467 मीटर की ऊँचाई पर स्थित सोलन  शहर जिला का मुख्यालय बना।

 

हिमाचल के  शिमला सिरमौर बिलासपुर ज़िलो और हरियाणा पंजाब राज्यों के साथ सोलन की सीमायें लगती हैं। वर्तमान में अर्की, बद्दी, डरलाघाट, कंडाघाट, कसौली, किशनगढ़, नालागढ़, रामशहर, सोलन इस ज़िले की तहसील हैं तथा अरकी, नालागढ़, दून, सोलन, कसौली विधानसभा क्षेत्र हैं।

 

सोलन जिला 1936 वर्ग किलोमीटर में फैला है और जनगणना  2011 के अनुसार सोलन ज़िले की जनसंख्या 580320 है जबकि घनत्व 298 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।  सोलन जिला की  साक्षसरता दर  85.02 और लिंग अनुपात  880 है।

 

सोलन जिला के मुख्य धार्मिक  पर्यटन स्थल जतोली मंदिर, मोहन नेशनल हेरिटेज पार्क, काली टिब्बा  मंदिर, हनुमान मंदिर हैं। वहीं अरकी किला, नालागढ़ रामशहर  किला,  सुबाथू आदि भी सोलन ज़िले के पार्ट हैं।
वहीँ कसौली डगशाई चायल जैसे रमणीय स्थान भी सोलन ज़िले की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं।

 

चंडीगढ़  शिमला हाईवे के एकदम बीच में होने के कारण सोलन हिमाचल प्रदेश की व्यापारीक राजधानी के रूप में भी उभरा। कृषि और बागवानी के क्षेत्र में भी सोलन ने अभूतपूर्व प्रगति की , देश में मशरूम सिटी के नाम से जाना जाने लगा।  टमाटर भी इस जिले की मुख्य फसल है।

 

हिमाचल प्रदेश का अधिकाँश औद्योगिक क्षेत्र भी सोलन ज़िले में ही आता है जिसे बी बी एन के नाम से बद्दी बरोटीवाला और नालागढ़ कहा जाता है। सीमा से सटे परवाणु शहर में भी  इंडस्ट्रीज़ हैं।

पुलिसवालों की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री का पहला बयान

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस की जांच कर सीबीआई द्वारा पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार करने के बाद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिह का पहला बयान आया है।

 

उन्होंने कहा कि यह बहुत दर्दनाक घटना है और जो भी दोषी हैं, उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने बीजेपी और सीपीएम पर राजनीति करने का आरोप भी लगाया।

 

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सरकार ने खुद ये मामला सीबीआई को सौंपा था। अभी तक यह मामला सुलझा नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि सीबीआई इस मामले को जल्द सुलझा लेगी और दोषियों को सजा मिलेगी।’ सीएम ने कहा कि पुलिस अधिकारियों के साथ उन्हे कोई हमदर्दी नहीं।

 

भाजपा और माकपा पर राजनीति करते हुए उन्होंने कहा, ‘भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है और इसको मुद्दा बनाकर राजनीति की जा रही है। प्रदर्शन करना किसी हद तक ठीक होता है लेकिन इसे मुद्दा बनाना दिखाता है कि ये कितने खोखले हैं।’