बुरी तरह से गिर चुका है हिमाचल की पुलिसफोर्स का मनोबल

शिमला।। हिमाचल प्रदेश में आईजी, एसपी, डीएसपी, एएसपी जैसे स्तर के पुलिस अधिकारी सीबीआई की जांच की ज़द में हैं और इनमें से कई को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। जैसे ही यह खबर मीडिया में फैली थी कि सीबीआई ने कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस के संबंध में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पकड़ा, पूरे प्रदेश के पुलिसकर्मी असहज स्थिति में आ गए। मामला सीधे-सीधे उनके महकमे से जुड़ा था। उनके महकमे की प्रतिष्ठा में आंच आने का मतलब है कि उनकी अपनी प्रतिष्ठा भी कम होती। इसके बाद कई पुलिसकर्मियों ने सोशल मीडिया अपने विचार जाहिर कि और कहा कि सभी पुलिसवाले एक जैसे नहीं होते और कुछ गंदी मछलियों की वजह से पूरा डिपार्टमेंट गलत समझ लिया जाता है। इनमें से कुछ ने इस संबंध में दूसरों की पोस्ट्स शेयर कीं तो कहीं पर कॉमेंट या लाइक किए। कुछ ने अपनी पोस्टें हटा दीं तो कुछ ने बनाए रखी हैं।

 

ब्लैकमेलिंग करके उगाही का आरोप
भारत में पुलिस की छवि एक तो पहले ही ठीक नहीं है। और यह भी सही है कि पुसिसवालों का रवैया आम आदमी के प्रति रूखा-सूखा सा रहता है और इससे तमाम आशंकाओं और अफवाहों को बल मिलता है। साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस अपनी कार्यप्रणाली की वजह से भी बदनाम है। उदाहरण के लिए पिछले दिनों एचआरटीसी के आरएम को चिट्टा के साथ पकड़े जाने की खबर आई। कुछ दिनों बाद वह आरएम मीडिया के सामने आए और दावा किया कि जिसे पुलिस चिट्ठा बता रही थी, वह लैब में सोडा निकला। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें झूठा फंसाया गया और बदले में उनसे पैसों की मांग की जा रही थी। उन्होंने कहा कि इस आधार पर मैं कोर्ट से भरी भी हो गया हूं। मगर इसके बाद पुलिस की तरफ से कोई सफाई नहीं आई।

एसपी पर सुसाइड के लिए उकसाने का आरोप
जहां एक तरफ आम मामलों में किसी का नाम किसी के सुसाइड नोट में आए तो सबसे पहले उसे हिरासत में लेकर पूछचाथ की जाती है। मगर शिमला के पूर्व एसपी डीडब्ल्यू नेगी का नाम एक सुसाइड नोट में आया। रिकांगपिओ में खुदकुशी करने वाले शख्स के पास मिले सुसाइड नोट में दबाव बनाने का आरोप नेगी पर भी लगा था। अगर मामला किसी आम इंसान से जुड़ा होता तो पुलिस तुरंत उठाकर ले जाती। मगर इस केस में पुलिस ने एफआईआऱ में नेगी को नामजद करने में भी आनाकानी की। अब इस मामले की प्रगति कहां पहुंची है, साफ नहीं हो पाया है। इस तरह की घटनाओं से भी जनता में गलत संदेश जाता है और आम आदमी सवाल उठाता है तो ईमानदार अफसर और पुलिसकर्मी खुद को शर्मिंदा महसूस करते हैं।

 

वनरक्षक होशियार सिंह केस
वनरक्षक होशियार सिंह पहले गायब होता है और पुलिस ज्यादा हाथ-पैर नहीं मारती। फिर उसकी लाश पेड़ पर उल्टी टंगी मिलती है तो वह पहले हत्या का मामला दर्ज करती है और फिर तुरंत खुदकुशी का मामला दर्ज कर लेती है। एसआईटी बनती है, कई जांच टीमें बदलती जाती हैं और तरह-तरह के दावे किए जाते हैं मगर पुलिस यह नहीं बता पाती कि अगर यह खुदकुशी है तो बंदा पेड़ पर जाकर उल्टा कैसे लटक गया। खैर, वनमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक जब ऐसी घटनाओं को मामूली बताकर टालने की कोशिश करते हों, तब पुलिस पर सही से जांच करने का दबाव कैसे बन सकता है? नतीजा यह रहता है कि हाई कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ता है और वहां पुलिस आए दिन फटकार सुन रही है। इस मामले में पुलिस फोर्स बैकफुट पर नहीं आएगी तो क्या होगा?

 

कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस
आईजी (इंस्पेक्टर जनरल) जैसे सीनियर अधिकारी पर सीबीआई हिरासत में मौत के मामले में हत्या, सबूत मिटाने जैसी धाराओं में केस दर्ज करती है। जिस एसआईटी को यह मानकर केस की जिम्मेदारी दी गई थी कि स्थानीय पुलिस शायद सही से जांच न कर पाए, वही एसआईटी आज अपनी जांच को लेकर इतने सवालों के घेरे में है कि असल कैदियों को सज़ा दिलाने के बजाय खुद भी गिरफ्त में आ गई। जब सीनियर अधिकारी ऐसे मामलों में फंसे हों, बाकी पुलिस फोर्स में इसका क्या संदेश जाएगा? क्या उन्हें गर्व होगा अपने काबिल अफसर पर?

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बाबा अमरदेव को राजनीतिक संरक्षण
सोलन के कंडाघाट के विवादित बाबा अमरदेव पर सरकारी जमीन कब्जाने का मामला चल रहा है, उनके यहां से संरक्षित जीवों की खालें बरामद हुईं, उन्होंने एक महिला पर तलवार से हमला करके जख्मी किया, उनकी सही पहचान स्थापित करने में पुलिस को मुश्किल हुई, स्थानीय लोग इस बाबा से परेशान हैं… मगर सरकार अपने लोगों की नहीं सुन रही और बाबा को शह दे रही है। सरकार के मंत्रियों का इस बाबा के यहां आना जाना लगा रहता है। मगर हद तक हो गई जब मुख्यमंत्री ने अस्पताल जाकर इस बाबा से मुलाकात की और 48 घंटों के अंदर पूरा का पूरा कंडाखाट थाना (18 पुलिसकर्मी) ट्रांसफर कर दिया। इससे पुलिस फोर्स को क्या संदेश गया होगा?

राजनीतिक दबाव ने भी तोड़ा अधिकारियों का उत्साह
याद होगी वह घटना जब एएसपी गौरव सिंह को मुख्यमंत्री के खास माने जाने वाले विवादित कांग्रेस विधायक रामकुमार (दून के विधायक) की पत्नी के टिप्पर का चालान किए जाने के बाद बद्दी से कांगड़ा ट्रांसफर किया गया था। मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था। ऐसी घटनाओं से पूरी पुलिस टीम में संदेश जाता है कि भैया, मुख्यमंत्री के खास बंदे जो मर्जी करें, हमें कार्रवाई नहीं करनी है वरना देख लो क्या अंजाम होता है।

 

पंडोह में किशोर-किशोरी के शव संदिग्ध हालात में पाए जाने को आत्महत्या का मामला बताने पर उठे सवाल हों या अन्य हिस्सों सामने आई घटनाओं को रफा-दफा करने की कोशिश, हालात यह हुए हैं कि आम जनता में पुलिस की छवि खराब हुई है। इस बीच वे पुलिसकर्मी घुटन महसूस कर रहे हैं जो पूरी निष्ठा से ड्यूटी करते हैं। ऊपर से शिमला में ट्रैफिक पुलिसकर्मी जब अपनी ड्यूटी निभा रहा था तो उसका गिरेबान शराबी ने पकड़ लिया, नादौन में जब पुलिसर्मी अपनी ड्यूटी निभा रहा था तो उसे धमकियां मिलीं अगली सरकार में देख लेने की और विधायक ने धक्का तक दिया। ये घटनाएं दिखाती हैं कि पुलिसफोर्स खुद को कितनी लाचार पा रही है। उसका मनोबल कितना गिरा हुआ है।

डीजीपी की भूमिका अहम है, मगर….
इस मौके पर चाहिए था कि हिमाचल पुलिस का मुखिया कमान संभालता और कोताही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करके मिसालें पैदा करे। वह पूरे प्रदेश में घूमे और पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ाए। काबिल अधिकारियों को प्रोत्साहन और संदिग्ध आचहरण वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई के काम किए जाएं। साथ ही मीडिया पर नजर रखे कि प्रदेश के किस हिस्से में क्या मामला चल रहा है और पुलिस ने उसमें क्या कार्रवाई की। अगर लगे कि कोई चूक हो सकती है, तो तुरंत वहां दखल दे और चीज़ों को सही करे।

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सरकार की भी बनती है जिम्मेदारी
पुलिस विभाग गृह मंत्रालय के अंदर आता है। चूंकि मुख्यमंत्री ने होम डिपार्टमेंट अपने पास रखा है, इसलिए पुलिस की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर है। इसलिए उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि ठीक डीजीपी की तरह घटनाओं और उनकी जांच आदि की प्रगति पर नजर रखे। साथ ही कसकर रखे डीजीपी। बजाय उल्टे सीधे या फिर घटनाओं की गंभीरता को कम करने वाले बयान देने के ऐसा रुख अपनाए कि पुलिस के अधिकारियों को लगे कि भाई, लापरवाही नहीं चलेगी। मगर अफसोस, इस तरफ ध्यान देने की फुरसत किसे है?

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