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Friday, September 12, 2025
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लेख: अनुराग जी, क्या आपको पिता के नाम का फायदा नहीं मिला?

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आई.एस. ठाकुर।। आजकल सोशल मीडिया पर कुछ ज्यादा ही सक्रिय नज़र आ रहे हमीरपुर से बीजेपी के सांसद अनुराग ठाकुर एक बार चर्चा में हैं। इस बार उनका एक ऐसा बयान राजनीतिक गलियारों और बुद्धिजीवी वर्ग के बीच हंसी-ठिठोली का विषय बना हुआ है, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने 13 साल की उम्र में अपने पिता का नाम इस्तेमाल करने का फैसला किया था। दरअसल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अमरीका में कांग्रेस पर लगने वाले परिवारवाद के आरोपों पर सफाई देते हुए कहा था कि भारत में यह सामान्य बात है और इकलौते वही नहीं हैं जो परिवार के पेशे में आगे बढ़ रहे हैं। अब अनुराग ठाकुर को जाने क्या सूझी कि समाचार एजेंसी एएनआई के पत्रकार के सामने उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधने के लिए बयान दिया। मगर उन्होंने इसमें ऐसी बात कह दी जो गले नहीं उतर रही।

 

अनुराग ने कहा, “मैं 13 साल की उम्र में अगर यह निर्णय ले सकता हूं कि मुझे अपना नाम अनुराग ठाकुर रखना है, धूमल सरनेम नहीं रखना है। तो क्या राहुल गांधी क्या गांधी छोड़कर सिर्फ राहुल नाम से राजनीति करेंगे?” मगर प्रश्न उठता है कि क्या सिर्फ पिता के नाम का सरनेम न लगाने से कोई अपनी पहचान अपने पिता या परिवार से अलग कर सकता है? क्या अनुराग ठाकुर ने अगर अनुराग धूमल नाम नहीं रखा तो दुनिया को पता नहीं चला कि वह किस परिवार से हैं? और अगर अनुराग ठाकुर बीजेपी के सीनियर नेता प्रेम कुमार धूमल के बेटे नहीं होते, तो क्या उन्हें हमीरपुर सीट से टिकट मिल जाता? क्या उन्हें हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन का सर्वेसर्वा बनकर कई नियमों में छूट पाकर धर्मशाला में स्टेडियम बनाकर आगे बढ़ने का मौका मिलता?

 

साथ ही अगर वह राहुल गांधी को नाम छोड़ने की चुनौती दे रहे हैं और चलिए राहुल कल को ऐलान कर दें कि मैं गांधी टाइटल छोड़ रहा हूं, तो क्या उससे उनकी गांधी परिवार से होने की पहचान छिप जाएगी?

मगर अनुराग, आप ठाकुर हों या धूमल। यह तथ्य है कि आप प्रेम कुमार धूमल जी के बेटे हैं और उनके नाम के आधार पर ही पहचान बनी है आपकी और उसी को आपने बेशक अपनी मेहनत से आगे बढ़ाया हो। मगर कम से कम यह तर्क तो मत दीजिए कि मैंने नाम छोड़ दिया ताकि उसका फायदा न मिले। दरअसल आप जानते हैं कि आपके ऊपर परिवारवाद के आरोप लगते हैं। मगर इस मामले में तो आप जबरदस्ती ही सफाई देने लग गए।

 

हिमाचल क्या, पूरे देश में बहुत से लोग ऐसे हैं जहां पर पिता का टाइटल अलग और बेटे का टाइटल अलग होता है। सरनेम में यह भेद इसलिए नहीं होता कि पिता के नाम का फायदा नहीं उठाना है। इसकी कई वजहें होती हैं। कई बार पिता का टाइटल जाति आधारित होता है तो कई बार गोत्र या फिर इलाके के हिसाब से। इसी तरह बेटा अपना टाइटल कभी जाति के आधार पर रखता है तो कभी गोत्र तो कभी किसी और आधार पर। उदाहरण के लिए मेरे एक दोस्त हैं जिनका टाइटल सकलानी है। उनके बेटे का सरनेम ठाकुर है और उनके भतीजे ने अपने गोत्र ‘अत्री’ के नाम पर अपना सरनेम अत्री कर लिया है।

 

लोग कई वजहों से टाइटल अलग रखते हैं। बालमन में ऐसा करने की पहचान जातिगत रहती है या फिर नाम को अच्छी पहचान दिलाने की रहती है, न कि पिता के नाम का फायदा न लेने की। पिता या परिवार के नाम का फायदा न लेने वाला काम तभी हो सकता है जब कोई बचपन में ही पिता का घर छोड़कर कहीं गुप्त नाम से किसी नए शहर में जाए, जहां उसे कोई पहचानता न हो और फिर संघर्ष करके खुद की पहचान बनाए।

 

तो अनुराग, आपने राहुल पर निशाना नहीं साधा, बल्कि खुद को निशाने के आगे कर दिया। आपसे परिपक्वता की उम्मीद रहेगी आगे। वैसे टाइटल छोड़ना ही है तो खुशी होगी अगर आप जातिगत पहचान हटाने के लिए ठाकुर टाइटल का त्याग करने का ऐलान करते हैं। इससे समाज में एक संदेश तो जाएगा ही। आपका यह काम जरूर तारीफ के काबिल होगा।

 

(लेखक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में एक कंपनी में कार्यरत हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

(DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं)

…तो अर्की सीट पर आमने-सामने होंगे ये दिग्गज?

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में चुनावी माहौल गर्मा गया है। जिस तरह के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह इन दिनों अपने पिता के चुनाव क्षेत्र शिमला ग्रामीण में सक्रिय हैं, उससे साफ संकेत मिल रहा है कि वह इसी सीट से चुनाव लड़ेंगे। ऐसी स्थिति मे वीरभद्र के सोलन के अर्की से चुनाव लड़ने की बात चल रही है। मगर वीरभद्र ही इकलौते दिग्गज नहीं हैं जिनकी निगाह अर्की सीट पर है। बताया जा रहा है कि इस सीट पर बीजेपी के अब तक के इतिहास के सबसे कामयाब रणनीतिकार माने जाने वाले अध्यक्ष अमित शाह की भी निगाहें हैं। इस सीट के जरिए शाह ऐसा दांव चल सकते हैं, जिससे वह हिमाचल के चुनाव को पूरे देश मे चर्चा का विषय बना सकें।

 

इसी दिशा में अमित शाह की टीम ने काम करना शुरू कर दिया है। शाह जानते हैं कि हिमाचल मे कांग्रेस का मतलब फिलहाल वीरभद्र सिंह ही है। बीजेपी का मुकाबला वीरभद्र सिंह और उन्हीं की टीम से होगा। इसी रणनीति पर काम करते हुए शाह टीम वीरभद्र को घेरने की तैयारी में है। प्रदेश में हाल ही में हुए प्रकरणों से वीरभद्र सिंह साख ऊपरी इलाकों मे भी गिरी है, जहां उनका वर्चस्व रहा है। रामपुर को जिला बनाने की आशा लिए हुए वीरभद्र सिंह के 15 अगस्त वाले कार्यक्रम में पहुंचे लोग उन्हीं के सामने पांडाल छोड़कर घरों की तरफ निकल आए थे। वीरभद्र सिंह रामपुर और रोहड़ू से चुनाव लडते आए हैं। लेकिन जब ये दोनों सीटें रिज़र्व हुईं तो उन्हें शिमला ग्रामीण की तरफ रुख करना पड़ा। बेटे विक्रमादित्य के लिए शिमला ग्रामीण का ऑप्शन रखते हुए खुद वह चौपाल या ठियोग से चुनाव लड़ सकते थे। इसका इशारा उन्होंने अपने एक बयान में भी किया था कि वह शिमला की ही किसी सीट से चुनाव लड़ेंगे।

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह (File Pic)

मगर ठियोग सीट से विद्या स्टोक्स अपने किसी खास के लिए टिकट चाह सकती हैं और ऐसा न कर पाने की स्थिति में खुद भी चुनाव लड़ सकती हैं। वहीं चौपाल सीट भी गुड़िया प्रकरण के बाद कांग्रेस के लिए उतनी सेफ नज़र नहीं आ रही। इसलिए पूरी तरह से यही समीकरण बन रहे हैं कि वीरभद्र अगला चुनाव सोलन जिले की अर्की से लड़ेंगे, जो शिमला ग्रामीण के साथ जुड़ा हुआ है। अर्की शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। ‘मध्य हिमाचल’ में वीरभद्र के राइट हैंड माने जाने वाले ठाकुर धर्मपाल अर्की से लगातार जीतते रहे थे। मगर किन्हीं कारणों से जब वीरभद्र भी उन्हें टिकट नहीं दिलवा पाए तो भाजपा की यहां किस्मत चमकी थी। अर्की कांग्रेस की फूट का फायदा उठाते हुए भाजपा से गोविंद शर्मा लगातार दो बार से जीत रहे हैं।

 

वीरभद्र सिंह की अर्की के साथ सोलन, शिमला और बिलासपुर जिलों पर प्रभाव डालने की रणनीति के प्रत्युत्तर में शाह टीम ने भी तगड़ी रणनीति बनाई है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, जिनका राज्यसभा कार्यकाल अप्रैल 2018 में खत्म हो रहा है, और प्रदेश में सीएम के चेहरे के लिए भी जिनका नाम चल रहा है, उन्हें सीधे वीरभद्र के खिलाफ अर्की सीट से उतारा जा सकता है। इस कारण हिमाचल का चुनाव बहुत हद तक अर्की सीट पर फोकस हो जाएगा।

 

शाह टीम का मानना है कि अर्की की जनता ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करते हुए जेपी नड्डा को विधानसभा भेज सकती है। इस उम्मीद में कि हर पांच साल बाद प्रदेश में सरकार बदलती है और इस बार बारी बीजेपी की है। वहीं नड्डा को अगर जनता जिताएगी तो वह उस बीजेपी सरकार के मुखिया भी हो सकते हैं। साथ ही वीरभद्र सिंह को उनकी सीट पर घेरकर बीजेपी प्रदेश में उनके प्रभाव को कम करना चाहेगी और कांग्रेस के चुनाव प्रचार की रीढ़ तोड़ना चाहेगी।

हालांकि, चर्चा यह भी है कि कांगड़ा के प्रभाव को देखते हुए नड्डा धर्मशाला से भी चुनाव लड़ सकते हैं। बहरहाल, चुनाव के लिए कुछ ही हफ्तों का समय बचा है और अगर ये राजनीतिक संभावनाएं सही साबित होती हैं तो इस बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा का चुनाव न सिर्फ रोमांचक, बल्कि अभूतपूर्व होगा।

लेख: बिना प्लानिंग किसके पैसे से, किसके लिए और क्यों कॉलेज बांट रहे हैं वीरभद्र?

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आई.एस. ठाकुर।। पिछले दिनों खबर आई कि जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिरमौर के दौरे पर थे, जिला परिषद अध्यक्ष दलीप सिंह चौहान ने वीरभद्र के सामने कहा- कॉलेज देकर पगड़ी की लाज रख लो। यह सुनकर मुख्यमंत्री भावुक हो गए और उन्होंने तुरंत रोनहाट में कॉलेज खोलने का ऐलान कर दिया और जनता ने तालियां और सीटियां बजाकर घोषणा का स्वादत किया। सुनने में कितना अच्छा लगता है कि हमारे मुख्यमंत्री कितने दयालु हैं। मगर सवाल उठता है कि अगर लोगों को वाकई कॉलेज की जरूरत थी, तो पहले ढंग से क्यों नहीं ऐलान किया गया और अगर जरूरत नहीं थी, तो किसी के मांगने पर बिना फिजिबिलिटी रिपोर्ट या बजट के कैसे ऐसा ऐलान कर दिया? वीरभद्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उन्हें यह पद लोकतांत्रिक ढंग से मिला है। उनकी सरकार जो एक-एक पैसा खर्च करती है, वह जनता का पैसा होता है न कि उनका अपना। वह कोई राजा नहीं (भले वह खुद को समझते हों) कि अपने निजी राजकोष से जहां मन आए, तोहफे बांटते रहें।

 

चार सालों में खोल दिए 40 से ज्यादा कॉलेज, बिल्डिंगें कहां हैं?
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि पिछसे चार सालों में वीरभद्र सरकार ने करीब 45 कॉलेज खोल दिए हैं, जिनमें से 42 के नए ऐलान हुए हैं। धड़ाधड़ कॉलेज खोल रही यह सरकार ढंग के भवन नहीं बना पा रही और छात्रों को बुनियादी सुविधाें नहीं दे पा रही। कहीं पर शिलान्यास कर दिया गया है मगर अब तक निर्माण का नाम नहीं है। कहीं पर कॉलेज किराए की बिल्डिंगों पर चल रहे हैं तो कहीं पर स्कूलों की पुरानी इमारतों पर चल रहे हैं। कहीं तो पढ़ाने के लिए टीचर ही नहीं हैं। यही वजह है कि आए दिन छात्रों को प्रदर्शन करने पड़ रहे हैं। बावजूद इसके वीरभद्र जी ने पिछले दिनों एक हफ्ते के अंदर तीन नए कॉलेज खोलने का ऐलान कर दिया। इनमें से एक कॉलेज तो शिमला रूरल में खुलेगा (जो उनका अपना चुनाव क्षेत्र है) और दो कॉलेज सिरमौर में खोल दिए गए हैं।

 

नियम बनाओ, नियम उड़ाओ, वोट भुनाओ
कॉलेज खोलने के मामले में यह सरकार दोहरे मापदंड अपनाती रही है। साल 2014 में कॉलेज खोलने के लिए नियम बनाया गया था, जिसके तहत पहले फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार होनी चाहिए, विभाग से प्रपोज़ल आना चाहिए और बजट के लिए वित्त विभाग से मंजूरी होनी चाहिए। इन नियमों के तहत जरूरी है कि कॉलेज खोलने के लिए समुचित जमीन होनी चाहिए, जिसमें कि भवन, हॉस्टल, स्टाफ क्वॉर्टर, रेजिडेंस, खेल मैदान और पार्किंग की व्यवस्था हो सके। कम से कम 35 बीघा जमीन की जरूरत होती है। सब्जेक्टों को लेकर भी नियम बने थे। रूसा के तहत कॉलेज खोलने के लिए 25 बीघा जमीन चाहिए होती है। ये नियम 2014 में बने थे, मगर सरकार अपने बनाए नियम खुद ही तोड़ देती है।

नियम तो साफतौर पर यह कहते हैं कि पहले डिमांड कहीं होगी तो शिक्षा विभाग सबसे पहले देखेगा कि यहां कॉलेज खोलना फिजिबल है या नहीं। यानी कितने लोगों को फायदा होगा, किचने बच्चे पढ़ने आएंगे, जमीन की व्यवस्था है या नहीं, कनेक्टिविटी है या नहीं आदि आदि। फिर ऊपर बताए गए नियमों को परखा जाता है। तब जाकर रिपोर्ट को सरकार को भेजा जाता है, जहां कैबिनेट मंजूरी देती हैक कि कॉलेज खोल दिया जाए। मगर चुनाव जो हैं, सारे नियम जाएं चूल्हे में, ऐलान पहले होगा, बाकी बातें बाद में देखी जाएंगी।

 

कॉलेज तो खोल दिए, मगर टीचर कौन लाएगा?
हिमाचल प्रदेश में 129 कॉलेज थे और तीन नए कॉलेजों का ऐलान मिला दिया जाए तो संख्या 132 हो जाती है। मगर आपको हैरानी होगी कि इस सरकार ने अपने कार्यकाल में जितने भी कॉलेज कोले हैं, उनमें 600 से ज्यादा स्टाफ के प खाली हैं। यानी हिमाचल प्रदेश में तहसीलों और उप-तहसीलों की संख्या से भी ज्यादा कॉलेज हो गए हैं। कहीं पर पूरे सब्जेक्ट नहीं हैं तो कहीं पर सब राम भरोसे चल रहा है। यह ठीक है कि जरूरत के हिसाब से कॉलेजों का ऐलान करने में गलत नहीं है। मगर प्लानिंग भी तो कोई चीज़ होती है।

 

फिर ऐसे ऐलान करने का क्या फायदा?
वीरभद्र हो चुके हैं बुजुर्ग। वह बदलते वक्त की जरूरतों को समझ नहीं पा रहे। समर्थकों को भले वह मसीहा नजर आते हों मगर हकीकत यह है कि उन्हें पता नहीं चल रहा कि आज क्वॉन्टिटी की नहीं, क्वॉलिटी की जरूरत है। वैसे ही मांगने वाले उनके पिछलग्गू नेता और वैसे ही देने वाले वह ‘दानी।’ अपने घर से तो कुछ जाना नहीं है, इसलिए बिना प्लानिंग ऐलान करते जाओ, भले ही कॉलेजों में 50 बच्चे पढ़ने न आएं। अपने करीबी कॉलेज में चले जाएं आप तो पता चल जाएगा कि वहां पर शिक्षा का क्या स्तर है, बच्चों को कितने सुविधाएं मिल रही हैं।

 

मुख्यमंत्री को मालूम नहीं है कि आज करियर बनाने वाली शिक्षा की जरूरत है। आज कोई साक्षर होने के लिए या डिग्रियां गले में टांगकर घूमने के लिए पढ़ाई नहीं करता। वह पढ़ाई करता है अच्छे करियर के लिए, अच्छी जॉब लेने के लिए, कुछ सीखने और समझने के लिए। इसीलिए  ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों के बजाय प्राइवेट यूनिवर्सिटियों या कॉलेजों का रुख कर रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप सरकारी कॉलेजों में ढंग से कुछ नहीं दे रहे। बस ऐलान कर दे रहे हैं, भवन बना रहे हैं (कहीं तो वह भी किराए का है), उसका नाम राजीव गांधी, इंदिरा गांधी या पंडित नेहरू पर रख देते हैं और हो गया काम। अगली बार भाषण देते हुए नाम भी गिना दिया कि ‘मैंने ये कॉलेज दिया है।’ फिर जब आप सामान्य पढ़ाई करके बेरोजगारों की कतारें पैदा कर देते हैं, तब बड़ी मासूमियत से कहते हैं- हिमाचल में पढ़े-लिखे ज्यादा हैं, इसलिए बेरोज़गारी की समस्या है। अजी रोज़गार देने वाली पढ़ाई करवाओगे, तब रोज़गार मिलेगा? हर कोई आपके बेटे की तरह सौभाग्यशाली तो है नहीं कि बिना कुछ किए कौशल विकास निगम का निदेशक बन जाए?

 

वह वक्त गया जब कनेक्टिविटी की कमी थी। याद करें जब पढ़ाई के लिए बच्चे होस्टलों में रहा करते थे। आज भी रहते हैं। क्यों न 5 जगह आधे-अधूरे, सुविधाओं के अभाव वाले और नाम भर के कॉलेज खोलने के बजाय एक ही जगह पर सर्व सुविधा संपन्न कॉलेज खोला जाए जहां पर सभी विषय हों, सारी सुविधाएं हों, स्टाफ पूरा हो और साथ ही हॉस्टल की भी सुविधा हो। अगर क्वॉलिटी वाले कॉलेज होंगे तो जो माता-पिता बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रति सेमेसेट्र लाखों प्राइवेट कॉलेज-यूनिवर्टियों में खर्च कर रहे हैं, वे नाम भर की रकम आपके कॉलेजों की फीस देकर अपने बच्चों को आपके यहां भेजेंगे।

 

मगर फुरसत किसे है यह सोचने की? बच्चों के भविष्य की चिंता कौन करे? नजर तो सिर्फ शिमला ग्रामीण सीट पर है जहां से अपने बच्चे को उतारने की तैयारी है। एक कॉलेज वहां भी खोलने का ऐलान हो गया है। मानो शिमला ग्रामीण वालों के लिए एचपीयू और शिमला के तमाम कॉलेज हज़ारों किलोमीटर दूर हों। सलाम हो ऐसी घोषणाएं करने वाले नेतृत्व को और इस पर खुश होने वाले पिछलग्गुओं को और ऐसे आधार पर वोट देने वाले महानुभावों को।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में एक कंपनी में कार्यरत हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

(DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं)

मंडी में सुनाई दी हिमाचल कांग्रेस में नए समीकरणों की आहट?

मंडी।। लगता है कि हिमाचल प्रदेश सरकार में मंत्री अनिल शर्मा कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा की गई टिप्पणियों को भूल नहीं पाए हैं। पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और मंडी से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंडित सुखराम एक ही मंच पर आए थे, तब इशारों-इशारों मे वीरभद्र ने पंडित सुखराम को ‘आया राम, गया राम’ कहा था। पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा ने सोमवार को कोटली में मंच से कहा- पंडित सुखराम आया राम, गया राम नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हमें निकाला गया था, हमने पार्टी छोड़ी नहीं थी। इस कार्यक्रम के बाद से वीरभद्र समर्थक खेमे में चर्चाओं का का दौर जारी हो गया है।

 

इस कार्यक्रम में परिवहन मंत्री जी.एस. बाली भी पहुंचे थे। वीरभद्र के बाद सीएम पद के लिए कांग्रेस के प्रबल दावेदार माने जाने वाले बाली ने भी अनिल शर्मा के सुर में सुर मिलाए। उन्होंने पंडित सुखराम की तारीफ की और इशारों में कहा कि शरीर पर लगे जख्म तो भर जाते हैं मगर जुबान से लगा जख्म भरने में वक्त लेता है। उन्होंने यह भी कहा कि पंडित सुखराम सभी के लिए सम्माननीय नेता हैं।

 

बाली के पक्ष में नारेबाजी
इस बीच कोटली में हुए इस कार्यक्रम में अनिल शर्मा के समर्थक बड़ी संख्या में पहुंचे थे। कांग्रेस के इन कार्यकर्ताओं ने बाली को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नारेबाजी की। कार्यकर्ता “भविष्य का सीएम कैसा हो, जीएस बाली जैसा हो” के नारे लगा रहे थे। इसके साथ पंडित सुखराम और अनिल शर्मा जिंदाबाद के नारे भी लगे।

 

वीरभद्र समर्थक खेमे में हलचल
अब तक कई मसलों को लेकर मुख्यमंत्री वीरभद्र के साथ खड़े रहने वाले अनिल शर्मा  तबसे उखड़े हुए नज़र आते हैं, जबसे वीरभद्र ने मंच पर उनके पिता पंडित सुखराम पर निशाना साधा था। अब अनिल शर्मा ने न सिर्फ भाषण में वीरभद्र के भाषण के अंश का जिक्र किया, बल्कि उनके इलाके में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का बाली को सीएम देखने के पक्ष में नारेबाजी भी हुई। शर्मा और बाली को गुफ्तगू करते देख वीरभद्र समर्थक खेमे और कौल सिंह समर्थकों में भी हलचल देखी जा रही है। दोनों धड़ों को चिंता है कि पिछले दिनों सुधीर शर्मा के साथ नजर आने के बाद अब बाली अनिल शर्मा के भी करीब आ गए हैं। हालांकि राजनीति के जानकारों का यह भी कहना है कि इस तरह चुनाव आने पर एक ही पार्टी के नेताओं के मतभेद भुलाकर साथ आना कोई खास बात नहीं है।

बिलासपुर: बहन को न्याय के लिए भाई ने डाली ऑनलाइन याचिका

बिलासपुर।। बिलासपुर शहर के रौड़ा सेक्टर में पिछले दिनों क्षेत्रीय अस्पताल में तैनात फिजियोथेरपिस्ट ज्योति ठाकुर का शव क्वॉर्टर में फंदे पर लटका मिलने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। पहले परिजन जहां पोस्टमॉर्टम और फंदे पर लटककर खुदकुशी करने को लेकर सवाल उठा रहे थे, अब change.org पर एक ऑनलाइन याचिका डाली गई है।

 

इस ऑनलाइन याचिका में हमीरपुर के आशीष ठाकुर, जो खुद को ज्योति का भाई बताते हैं, ने कहा है कि वह पुलिस और प्रशासन से सारी उम्मीदें खो चुके हैं। वह आरोप लगाते हैं कि मेरी बहन की निर्ममता से हत्या हुई है। उन्होंने याचिका में अंग्रेजी में लिखा है- I am a citizen of district Hamirpur, himachal pradesh under grave stress and lost all hope in police and administrations.My sister was brutally murdered and local police and administrtaion are hell bent to prove that this is a case of sucide.it has been six days that we have not been postmortem and foresnic report.we urge you with deep sorrow to interfere in this matter get us justice.

इससे पहले शुक्रवार को मामले को लेकर एडवोकेट परवेश चंदेल के नेतृत्व में लोगों के एक प्रतिनिधिमंडल ने उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा था। इस ज्ञापन में प्रतिनिधिमंडल में शामिल लोगों ने उक्त फिजियोथेरपिस्ट के रात के समय आनन-फानन में हुए पोस्टमार्टम व फंदे पर लटक कर आत्महत्या करने पर सवाल उठाए थे।

 

प्रतिनिधिमंडल का कहना था कि मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि मामले की सारी सच्चाई जनता के सामने आ सके। उन्होंने कहा कि गत 6 सितंबर को उक्त फिजियोथैरेपिस्ट रौड़ा सैक्टर स्थित निजी क्वार्टर में फंदे पर लटकी हुई पाई गई थी। उन्होंने कहा कि अज्ञात सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वहां पर पुलिस व फोरैसिक टीम ने जांच की थी । उसकी मृत्यु संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई है। जिसमें हत्या से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

Image: MBM News Network

उनका कहना था कि इतना ही नहीं, उसी शाम को करीब साढ़े 8 बजे क्षेत्रीय अस्पताल में उसके शव का पोस्टमॉर्टम कर दिया गया जबकि नियमानुसार सूर्यास्त के पश्चात शव का पोस्टमार्टम नहीं किया जाता। संयोगवश उसी दिन शव गृह में रखे गए अन्य शव का पोस्टमार्टम चिकित्सक द्वारा 6 सितंबर की बजाय 7 सितंबर को किया गया । उन्होंने कहा कि 6 सिंतबर को तेज बारिश, आंधी व बिजली कट हुई थी। फिर भी पुलिस व चिकित्सकों द्वारा पोस्टमॉर्टम को अंजाम दिया गया।

उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की थी कि उक्त पोस्टमार्टम की गई वीडियोग्राफी और मृतक के कॉल डिटेल संदेह के घेरे में आए चिकित्सक की कॉल डिटेल की जांच भी की जाए ताकि न्याय मिल सके। इस संबंध में पूरी खबर आप यहां क्लिक करके हमारे सहयोगी पोर्टल ‘एमबीएम न्यूज नेटवर्क’ पर जाकर पढ़ सकते हैं।

बाली-सुधीर की मुलाकात की इस तस्वीर में कुछ खास दिखा आपको?

धर्मशाला।। रविवार को हिमाचल सरकार के कांगड़ा जिले से दो मंत्रियों की मुलाकात मीडिया में चर्चा का विषय बनी रही। परिवहन मंत्री जीएस बाली और शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा न सिर्फ एक मंच पर आए बल्कि बाली ने सुधीर को छोटा भाई भी बताया। कहीं पर दोनों के बीच मीटिंग की चर्चा रही तो कहीं पर इसे ‘लंच डिप्लोमेसी’ का नाम दिया गया। राजनीतिक विश्लेषण तो आपको कहीं और भी पढ़ने को मिल जाएंगे, मगर हम आपका ध्यान राजनीति से थोड़ा हटाना चाहते हैं। नीचे की तस्वीर को ध्यान से देखिए। क्या आप समझ पाए कि बीच में बैठा शख्स क्या कर रहा है और मंत्री लोगों के हाथ में क्या है, जिसका वे लुत्फ उठा रहे हैं?

कुछ खास दिखा?

बीच में बैठे शख्स और लोगों के हाथों को गौर से देखिए। अगर आप नहीं समझ पाए तो आपको बता दें कि बीच में बैठे शख्स मलाई-बर्फ तैयार करते हैं और इस सभागार में मौजूद सभी लोग मलाई बर्फ का लुत्फ उठा रहे हैं। अगर आप समझ गए तब तो ठीक, मगर नहीं समझे तो हम आपको बता देते हैं कि मलाई बर्फ क्या है।

दरअसल हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में गर्मियों के दिनों में कुछ लोग आपको गले में एक बक्सा लिए घूमते मिल जाएंगे। इनके बक्से में दो रोल होंगे, जिसमें दूध या खोए की बनी आइसक्रीन होगी, एक छूरी होगी, हो सकता है छोटी सी तरकड़ी (तुला) भी तौलने के लिए और कुछ पत्ते होंगे। आमतौर पर टोर, बड़ (वटवृक्ष) या फेगड़े के पत्ते इस्तेमाल होते हैं।

कांगड़ा के गरली और आसपास के गांवों में इनकी मलाईबर्फ बहुत लोकप्रिय रही है।
कांगड़ा के गरली और आसपास के गांवों में इनकी मलाईबर्फ बहुत लोकप्रिय रही है।

छूरी से छोटी-छोटी सिल्लियां काटी जाती हैं और उन्हें पत्तों में सर्व किया जाता है। इसे खाने का मज़ा ही कुछ और है। ये हिमाचल में उस दौर से बिका करती हैं, जब क्वॉलिटी वॉल्स, वेडीलाल, मदर डेयरी या अन्य कंपनियों की आइसक्रीम नहीं मिला करती थी। बस अड्डों से लेकर मंदिरों और मेलों तक में मलाई बर्फ या खोया बर्फ़ नाम से इसकी खूब बिक्री होती थी। आज भी प्रदेश के कई हिस्सों में मलाई बर्फी बेचने वाले मिल जाएंगे मगर लोगों की बेरुखी के कारण अब इसका चलन कम हो रहा है। उन्हें पैक्ड चीज़ें ज्यादा पसंद आने लगी हैं। मलाई बर्फ खाना उन्हें शायद ‘लो स्टैंडर्ड’ लगने लगा है और इसके पीछे वे हाइजीन को वजह बताने लगे हैं।

मगर इस तरह से एक कार्यक्रम में भुलाई जाने वाली चीज़ को संजोने और प्रोत्साहन देने के लिए आयोजक बधाई के पात्र हैं। साथ ही पाठकों से कहना चाहेंगे कि कभी इस तरह से किसी को मलाई बर्फ बेचते देखें, तो एक बार ट्राई ज़रूर करें। यकीन मानिए, एक अलग तरह का मज़ा आएगा।

जानें, In Himachal शव या मृतकों की तस्वीर क्यों नहीं दिखाता

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कुछ दिन पहले जब गुड़िया प्रकरण के दौरान पीड़िता की तस्वीरें शेयर कर रहे थे, In Himachal ने एक बार भी उस बच्ची की तस्वीर शेयर नहीं की। उस दौरान हमने बताया था कि यौन अपराधों के मामले में और खासकर जब पीड़ित या आरोपी तक नाबालिग हों, उनकी तस्वीर सार्वजनिक नहीं की जा सकती और ऐसा करना अपराध भी है। इस बारे में आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं। साथ ही हम मामले से जुड़े गवाहों की भी तस्वीरें ब्लर कर देते हैं या नहीं दिखाते ताकि कहीं उन्हें किसी तरह का खतरा पैदा न हो। मगर आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि In Himachal क्यों शवों की तस्वीर प्रकाशित करने से बचता है और यदि हम इस्तेमाल करते भी हैं, तब उसे ब्लर यानी धुंधला क्यों किया जाता है।

 

दरअसल In Himachal उन आदर्श मूल्यों का अनुसरण करने की कोशिश करता है जो हर पत्रकार को करने चाहिए। खून के धब्बे, शव, हादसों के वीभत्स चित्र… ये सब सभी पाठकों के लिए अनुकूल नहीं होते। कुछ पाठक विचलित हो सकते हैं। हो सकता है कि ज्यादातर पाठक मजबूत दिल वाले हों, मगर सभी के साथ ऐसा नहीं होता। हमें यह भी पता नहीं होता कि हमारे आर्टिकल को कौन किस वक्त पढ़ रहा है। इसलिए खून या भयावह दृश्य या विचलित करने वाली तस्वीरों की जगह हम प्रतीकात्मक तस्वीरें इस्तेमाल करते हैं या फिर उन्हें धुंधला कर देते हैं।

 

शव की तस्वीर दिखाना क्यों सही नहीं?
मृत व्यक्ति अगर इस दुनिया में नहीं रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि हम उसे कैसे भी ट्रीट करें। मृत व्यक्तियों के शव से कैसा व्यवहार करना है, यह न सिर्फ नैतिक बल्कि कानूनी रूप से भी सम्मानजनक होना चाहिए। मृत व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखना जरूरी होता है। उसके शव से सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए, फिर वह जीवित होते हुए कैसा भी रहा हो। इसीलिए हादसे, हत्या, आत्महत्या या अन्य परिस्थितियों में मृत व्यक्ति की ऐसी तस्वीर प्रकाशित नहीं की जानी चाहिए, जो सही नहीं हो। जो एक तरह से अपमानजनक हो। यह भी सोचिए कि उस व्यक्ति की वैसी तस्वीर देखकर उसके करीबी परिजनों पर क्या बीतेगी। यही कारण हैं कि हम यथासंभव सांकेतिक तस्वीरें इस्तेमाल करते हैं। मगर अफसोस, हिमाचल प्रदेश के अधिकतर ऑनलाइन पोर्टल और यहां तक कि प्रतिष्ठित अखबार तक मृतकों की वीभत्स तस्वीरें प्रकाशित करते हैं।

 

कुछ अपवाद भी हैं
कुछ मामलों में शव की तस्वीर दिखाना जरूरी हो जाता है। उदाहरण के लिए वनरक्षक होशियार सिंह के मामले में हमने तस्वीर में खून और चेहरे वाला हिस्सा धुंधला कर दिया था, मगर पेड़ से लटके शव की तस्वीर प्रकाशित की थी। ऐसा करना इसलिए जरूरी था ताकि पाठक देख सकें कि आखिर इस मामले में क्यों सवाल उठ रहे हैं। तस्वीर से पाठक समझ सकते थे कि खुदकुशी अगर की है तो शव पेड़ पर आखिर कैसे लटक सकता है, वह भी उल्टा।

अगर यह तस्वीर न दिखाई जाती तो जनता समझ न पाती कि मामले में सवाल क्यों उठ रहे हैं।

इसी तरह से हमने पिछले दिनों हमने एक बच्ची की तस्वीर दिखाई थी, जिसे उसके पिता ने कथित तौर पर नदी में फेंक दिया था। हमें जानकारी मिली थी कि जब यह तस्वीर ली गई और बच्ची को अस्पताल पहुंचा गया, तब तक उसकी सांसें चल रही थीं। साथ ही वह तस्वीर हृदय विदारक थी। अगर पाठकों तक यह संदेश देना है कि देखिए, कितनी प्यारी बच्ची हैवानियत की शिकार हो गई, तब उस तस्वीर को हमने अगली खबर में भी लगाने का फैसला किया। यह ठीक उसी तरह की बात है, जैसे मासूम बच्चे आलियान कुर्दी का शव जो समंदर किनारे गिरा था, उसकी वैसी तस्वीर सामने न आती तो पूरी दुनिया में रिफ्यूजियों की समस्या की तरफ ध्यान नहीं जाता।

पूरी दुनिया में तस्वीरों को ऐसे ही प्रकाशित किया गया, मगर In Himachal अब भी मानता है कि इस तस्वीर में बच्चे के शव को धुंधला करना ज़रूरी है।

नियम तोड़ने की वजह होनी चाहिए
दरअसल अगर आप अपने द्वारा खुद के लिए बनाए गए नियमों को तोड़ते हैं तो ऐसा करने के लिए आपके पास संपादकीय रूप से अहम कारण होने चाहिए। ऐसा नहीं कि हर तस्वीर को अपवाद बनाकर हम तस्वीरें लगाने लगें। आगे भी हम इन्हीं मूल्यों को ध्यान में रखते हुए काम करेंगे। साथ ही ऑनलाइन या ऑफलाइन या किसी भी तरह के मीडिया साथियों से अनुरोध है कि वे भी कोशिश करें कि कम से कम वीभत्स तस्वीरें या वीडियो न डालें।

महिला ने पति पर लगाया 3 तलाक देकर नाबालिग से शादी करने का आरोप

चंबा।। तीन तलाक पर रोक के बावजूद हिमाचल प्रदेश के चंबा में एक मामला सामने आया है। एक मुस्लिम महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पति ने घर के कुछ सदस्यों के साथ बैठकर उसे एकतरफा तलाक दे दिया। यह महिला 10 महीने का बच्चा लिए न्याय के लिए जगोरी कार्यालय पहुंची थी। उसने आरोप लगाया कि न सिर्फ उसे तलाक दिया है बल्कि उसके शौहर ने एक नाबालिग युवती से निकाह भी कर लिया है।

 

आरोप लगाने वाली महिला का कहना है कि उसे एकतरफा तलाकनामे की सूचना दी गई है। ऐसे में शिकायत पर नारी अदालत ने इस तलाक को गैरकानूनी करार देते हुए कहा है कि वह अपने घर जाकर रहे। कोर्ट यह भी देख रहा है कि तलाकनामे की तारीख कोर्ट के आदेश से पहले की है या बाद की। पीड़िता का कहना है कि उसे अगस्त में तलाकनामा हो जाने की सूचना दी गई थी। उसके शौहर ने घर के चार अन्य लोगों के साथ बैठकर यह कह दिया कि अब तुम मेरी पत्नी नहीं रही।

प्रतीकात्मक तस्वीर

महिला ने कहा कि अब मेरे पति ने एक नाबालिग लड़की से शादी कर ली है, ऐसे में मैं अपने बच्चे को लेकर कहां जाऊं। नारी अदालत ने कहा है कि मामले की जांच होगी और उस लड़की की भी जांच की जाएगी, जिसके नाबालिग होने की बात कही जा रही है।

कुल्लू: बच्ची को नदी में फेंककर मारने के आरोप में पिता गिरफ्तार

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, कुल्लू।। सरबरी नदी में मिली मासूम बच्ची के शव की पहचान कर ली गई है। पुलिस के मुताबिक यह बच्ची लगवैली के सरली निवासी ज्ञान सिंह की बेटी टीना था, जिसकी उम्र 1 साल 2 महीने थे। पुलिस ने खुलासा किया है कि मासूम को उसका पिता ही सरबरी नदी में जिंदा फैंक गया था। वह भी इसलिए, क्योंकि बच्ची रोना बंद नहीं कर रही थी।

 

कुल्लू थाना के प्रभारी अशोक शर्मा ने बताया कि अब तक की छानबीन में पुलिस ने पाया है कि मासूम लड़की को उसका पिता ही सरबरी नदी में फेंक गया था। जिसके चलते पुलिस ने सूम के पिता को ज्ञान चंद उर्फ ज्ञानू को गिरफ्तार कर लिया है। आरोपी ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया है।

पकड़ा गया आरोपी (Image: MBM News Network)

उन्होंने बताया कि उक्त व्यक्ति के तीन बच्चे पहले ही हैं, जिसमें दो लड़कियां और एक लड़का शामिल है। मासूम टीना आरोपी की चौथी और सबसे छोटी बेटी थी। अशोक ने बताया कि छानबीन में यह भी तथ्य सामने आए हैं कि ज्ञान चंद की पत्नी करीब एक सप्ताह पहले छोड़कर मायके चली गई थी और पीछे से ज्ञान अपनी सबसे छोटी बच्ची की देखभाल नहीं कर पा रहा था। जब लड़की रोने लगी तो वह उसके सरबरी नदी में जिंदा फैंक कर आया।

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इस कारण बच्ची काफी दूर तक बहती हुई आई और नदी किनारे सफाई अभियान को अंजाम दे रही महिलाओं ने उसे नदी से निकालकर अस्पताल लाया, जहां उसकी मौत हो गई थी। हादसे के पांचवे दिन शिनाख्त होने के बाद मासूम का शव चाचा के सुपूर्द कर दिया है। उधर पुलिस ने पिता के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया है और मासूम की मां को भी पुलिस थाने तलब किया गया है। मां से भी पूछताछ की जाएगी।

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)

गुड़िया केस: हिमाचल सरकार ने CBI को 12 लाख का बिल भरने को कहा

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस की जांच कर रही सीबीआई टीम से हिमाचल प्रदेश सरकार ने कथित तौर पर 12 लाख रुपये का बिल भरने के लिए कहा है। मामले की जांच कर रही सीबीआई हिमाचल सरकार द्वारा चलाए जाने होटल वीटरहॉफ में ठहरी हुई है। टीम ने 6 कमरे लिए हुए हैं।

 

अंग्रेजी अखबार एचटी ने हिमाचल प्रदेश टूरिज़म डिपार्टमेंट कॉर्पोरेशन के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि यह बिल सीबीआई द्वारा इस्तेमाल किए गए वाहनों को लेकर है। अखबार के मुताबिक मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बताया कि ‘सीबीआई ने जो टैक्सी इस्तेमाल की, उसका बिल 10 लाख रुपये के करीब है. हमने उन्हें बिल दे दिए हैं.’

 

गौरतलब है कि पिछले दिनों गुड़िया मामले की हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही थी तो हिमाचल सरकार के वकील ने सीबीआई के अधिकारियों के हिमाचल सरकार के होटल में रुकने पर आपत्ति जताई थी। इसपर सीबीआई ने कहा था कि ऐसे मामलों में सुविधाएं आदि मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है।