सीएम सुक्खू के फेसबुक पेज पर बड़ी चूक, होने लगी 2017 की लापरवाही की चर्चा

शिमला।। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के आधिकारिक फेसबुक पेज पर हुई एक बड़ी चूक चर्चा का विषय बन गई है। शनिवार को सीएम के पेज पर एक पोस्ट में बिजली विभाग के उन कर्मचारियों का जिक्र किया गया था जिन्होंने भारी बर्फबारी के बाद बिजली आपूर्ति बहाल की थी। इन कर्मचारियों ने तीन फुट गहरी बर्फ पर चलकर यह काम किया। मुख्यमंत्री ने इस काम के लिए कर्मचारियों की तारीफ की और यह बताया कि इन्हें प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया है। मगर समस्या यह थी कि सीएम के मुताबिक ये कर्मचारी लाहौल स्पीति के थे जबकि सरकार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग के अनुसार, ये कर्मचारी शिमला जिले के डोडरा क्वार के थे।

पहले लाहौल स्पीति के बताए थे कर्मचारी

सरकार का विभाग कर्मचारियों को डोडरा क्वार (शिमला) का बता रहा था जबकि सीएम के अनुसार ये लाहौल स्पीति के थे। इस विरोधाभासी जानकारी के कारण पत्रकारों में भी असमंजस बना रहा कि डोडरा क्वार के कर्मचारियों को प्रशस्ति पत्र दिया गया या फिर लाहौल स्पीति के। असमंजस की यह स्थिति रविवार सुबह टूटी जब सीएम के पेज पर पोस्ट को एडिट करके डोडरा-क्वार लिखा गया। यानी पहले गलत जानकारी पोस्ट कर दी गई थी। सीएम के पेज पर सम्बंधित पोस्ट की एडिट हिस्ट्री में जाकर इसे देखा जा सकता है।

अब डोडरा क्वार लिखा गया है

मामूली नहीं है यह चूक
मुख्यमंत्री के आधिकारिक फेसबुक पेज पर सबकी निगाहें रहती है। मगर पिछले कुछ समय से देखने को मिल रहा है कि इसमें काफी गलतियां होती हैं। अधिकतर गलतियां भाषा और वर्तनी की होती हैं जिन्हें नजरअंदाज भी किया जा सकता है। मगर तथ्य ही गलत हों तो फिर चिंता पैदा होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सीएम या बड़े नेता अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर हर पोस्ट स्वयं डालें, यह संभव नहीं होता। ऐसे में उनके सोशल मीडिया हैंडल्स को संभालने वालों पर एक बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे जो भी पोस्ट करें, वह तथ्यों पर आधारित हो।

जब टीम की लापरवाही से मुश्किल में फंसे थे वीरभद्र
सोशल मीडिया पर की जाने वाली गलतियां पहले भी नेताओं को मुश्किल में डालती रही हैं। एक उदाहरण तो हिमाचल प्रदेश का ही है जब दिवंगत वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। 2017 में जब कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस, जिसे सभी गुड़िया कांड के नाम से जानते थे, पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ था और प्रदेश के लोगों की भावनाएं भी उफान पर थीं।

दोषियों को पकड़ने की मांग को लेकर प्रदेश भर में प्रदर्शन हो रहे थे। इसी बीच वीरभद्र सिंह के फेसबुक पेज पर कुछ लोगों की तस्वीरें पोस्ट करके कहा गया कि इन दोषियों को पकड़ लिया गया है। बाद में इन तस्वीरों को हटा दिया गया। जब लोगों ने पाया कि पुलिस द्वारा पकड़े गए लोग उन लोगों से अलग हैं जिनकी तस्वीरें पोस्ट की गई थीं तो यह अवधारणा बन गई कि असल दोषियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। तब सुखविंदर सिंह सुक्खू कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे। उनका कहना था कि सीएम के पेज से कुछ संदिग्धों के फोटो शेयर होने और बाद में पुलिस द्वारा अन्य आरोपियों को पकड़ने से ही जनता उग्र हुई

तस्वीरों को पोस्ट करने और हटाने के कारण ही आज भी लोगों और गुड़िया के परिजनों तक का मानना है कि असली दोषी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं।  नतीजा यह हुआ कि लोग सड़कों पर उतर आए और यह मामला एक बड़ा राजनीतिक विषय भी बन गया। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि सीएम के पेज पर हुई इस गतिविधि का नुकसान कांग्रेस को 2017 के चुनावों में भी झेलना पड़ा था।

तब मुख्यमंत्री के पेज पर ऐडमिन की तरफ से एक पोस्ट के जरिए सफाई दी गई थी कि तस्वीरें टेक्निकल एरर की वजह से अपलोड हुई थीं और कुछ ही सेकंडों के अंदर हटा ली गई थीं। मगर लोगों ने सवाल उठाते थे कि कौन सी अनोखी टेक्निकल एरर है कि अपने आप ही फोटो फेसबुक पर अपलोड हो गए। सीबीआई ने गुड़िया प्रकरण की जांच के दौरान उस समय वीरभद्र सिंह के सोशल मीडिया हैंडल्स को संभालने वालों से पूछताछ भी की थी।

भरोसा कायम रखने के लिए गंभीरता जरूरी
देखा जा रहा है कि प्रदेश सरकार का सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग भी ऐसे विषयों को लेकर सचेत नहीं है। मुख्यमंत्री के नाम को कहीं सुक्खू लिखा जा रहा है तो कहीं पर सुखु। वैसे तो सोशल मीडिया पर सभी से यह अपेक्षा की जाती है कि वे कुछ भी शेयर करने से पहले शत प्रतिशत आश्वस्त हों कि वे प्रामाणिक बातें ही शेयर करें। मगर नेताओं, अधिकारियों और विभागों आदि पर तो यह जिम्मेदारी और भी ज्यादा होती है। वरना सोशल मीडिया पर बरती जाने वाली लापरवाही राजनेताओं, पार्टी, सरकार और यहां तक कि पूरे सिस्टम की साख को खत्म कर सकती है।

 

 

 

देवी धाम सर्किट, गोल्फ कोर्स और बोटी वाली धाम से बढ़ाएंगे पर्यटन: आरएस बाली

मृत्युंजय पुरी, धर्मशाला।। नगरोटा बगवां क्षेत्र के विधायक रघुबीर सिंह बाली को सरकार ने हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास बोर्ड का उपाध्यक्ष बनाते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है। इसी के साथ बाली हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के भी चेयरमैन होंगे।

आरएस बाली ने शुक्रवार को नगरोटा में प्रेस वार्ता कर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का धन्यवाद किया और कहा कि हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देना उनका लक्ष्य रहेगा। आरएस बाली ने कहा, “हिमाचल प्रदेश में क्वॉलिटी फूड, क्वॉलिटी होटल और लोकल फूड को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकताओं में होगा।”

आरएस बाली ने कहा कि देवी धाम कॉन्सेप्ट के तहत टूरिस्ट हिमाचल से कम से कम 2 से 3 दिन तक रुकें, इसके लिए काम किया जाएगा। इसके साथ साथ बोटी (हिमाचल के परंपरागत शेफ़) द्वारा बनाई जाने वाली धाम के माध्यम से भी हिमाचल में टूरिस्ट को आकर्षित करने का काम किया जाए। उन्होंने गोल्फ कोर्स बनाने का भी जिक्र किया।

बाली ने कहा कि हिमाचल में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं और इस दिशा में काम किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में विस्तृत योजना तैयार की जाएगी जिसकी रूप-रेखा बनाना उन्होंने शुरू कर दिया है।

पिता के बाद पुत्र को मिली पर्यटन के विकास की जिम्मेदारी
आरएस बाली के पिता और कांगड़ा से दिग्गज नेता रहे जीएस बाली को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नई पहल करने के लिए याद किया जाता है। पर्यटन मंत्री रहे दिवंगत जीएस बाली के 2003 में पर्यटन विकास निगम और बोर्ड दोनों का जिम्मा था। उस समय उन्होंने होम स्टे कॉन्सेप्ट को बढ़ावा दिया था। उन्होंने मनाली में हिमालयन स्की विलेज तैयार करने की दिशा में भी कोशिश की थी। जीएस बाली के बाद पर्यटन विभाग के बोर्ड और निगम की जिम्मेदारी मुख्यमंत्रियों के पास ही रही। अब 20 साल बाद उनके बेटे को इन दोनों का दायित्व दिया गया है।

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राहुल गांधी से महिलाओं ने पूछा- 1500 रुपये कब दोगे

इंदौरा।। भारत जोड़ो यात्रा के तहत हिमाचल से गुजर रहे राहुल गांधी को उस समय असहज स्थिति का सामना करना पड़ा जब महिलाओं ने उनसे 1500 रुपये के विषय में पूछ लिया।

छत पर खड़ी महिलाओं से बात करने के लिए रुके राहुल गांधी से किसी महिला ने पूछा कि 1500 रुपये प्रतिमाह कब दिए जाएंगे। राहुल गांधी ने महिला के सवाल के जवाब में कहा- जल्दी मिलेंगे।

Image, courtesy: Amar
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दरअसल, कांग्रेस ने सभी महिलाओं को 1500 रुपये देने का वादा करते हुए चुनाव से पहले गारंटी पत्र भी भरवाए थे। कांग्रेस नेताओं का कहना था कि दिसंबर में कांग्रेस की सरकार बनते ही हर महीने पैसे देना शुरू कर दिया जाएगा।

मगर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि गारंटियां पांच साल में लागू होंगी और संसाधन बढ़ने पर धीरे धीरे महिलाओं को पैसे दिए जाएंगे। अभी पहली कैबिनेट में यह फैसला लिया गया है कि मंत्रियों की एक उप समिति एक महीने खाका तैयार करेगी कि पहले किन महिलाओं को किस तरह से रुपये देने हैं।

 

 

नड्डा जी के नेतृत्व में बीजेपी आगे भी बनाएगी जीत के नए रिकॉर्ड: जयराम ठाकुर

नई दिल्ली।। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल एक वर्ष बढ़ने पर बधाई दी है। उन्होंने खुशी जताते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने नड्डा के अध्यक्ष रहते कई उपलब्धियां हासिल की हैं और आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगी।


हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि हर हिमाचलवासी के लिए यह गर्व की बात है कि एक छोटे से पहाड़ी प्रदेश का बेटा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का नेतृत्व कर रहा है। जयराम ठाकुर ने कहा कि जेपी नड्डा के नेतृत्व में बीजेपी नौ राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों में भी जीत हासिल करेगी।

ठाकुर ने कहा, “यह खुशी की बात है कि बेहतरीन संगठन क्षमता और सभी को साथ लेकर चलने वाले जगत प्रकाश नड्डा जी का कार्यकाल जून 2024 तक बढ़ा है। इस दौरान होने वाले नौ राज्यों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी उनके मार्गदर्शन में जीत हासिल करेगी। इसके साथ ही 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी फिर जीत का रिकॉर्ड बनाएगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में यह जीत 2019 से भी बड़ी होगी।”

कैबिनेट से मंजूरी के बाद अब OPS की नोटिफिकेशन का इंतजार

शिमला।। शुक्रवार को सुक्खू सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली को मंजूरी मिलने के बाद अब कर्मचारी नोटिफिकेशन का इंतजार कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शुक्रवार को कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा था कि आज शाम को ही नोटिफिकेशन आ जाएगी। मगर अब तक यह नोटिफिकेशन नहीं आ पाई है।

कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से कई आदेश देर रात और अवकाश के दिन भी सामने आए हैं। ऐसे में कर्मचारियों को उम्मीद थी कि शुक्रवार देर रात या शनिवार को नोटिफिकेशन आ सकती है। मगर शनिवार को सेकेंड सैटरडे का अवकाश होने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। आज रविवार है, ऐसे में सोमवार को नोटिफिकेशन जारी हो सकती है।

दरअसल, कर्मचारियों को नोटिफिकेशन का इंतजार इसलिए है क्योंकि वे जानना चाहते हैं कि ओपीएस बहाली का मॉडल क्या होगा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कह चुके हैं कि हिमाचल का ओपीएस का अपना मॉडल होगा। पत्रकारों ने उनसे पूछा था कि क्या हिमाचल में छत्तीसगढ़ का मॉडल अपनाया जाएगा। इस पर उन्होंने कहा था कि हिमाचल का अपना मॉडल होगा जिसे छत्तीसगढ़ मॉडल के आधार पर तैयार किया गया है।

क्यों भूल रहे हम चिलडू, ऐंकलियां और तिल-चौली की लोहड़ी 

राजेश वर्मा।। हिमाचल प्रदेश में भी लोहड़ी का त्यौहार बहुत से जिलों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने मायके में आती हैं। विशेष तरह का पकवान जिसे अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, इन्हें चिलडू, ऐंकलियां, ऐंकलू, बबरू, पटांडें आदि कहा जाता है।

आज आधुनिकता के दौर में गांव में फिर भी ये पकवान बनाया, पकाया व खिलाया जाता है लेकिन अब तो धीरे-धीरे इसे बनाने वाले व पकाने वाले भी मुंह मोड़ रहे हैं। नए चावलों के आटे से यह ऐंकलियां बनाई जाती है, पहले इस आटे को अच्छी तरह घोलकर तवे पर गोल-गोल घुमाते हुए रोटी के आकार में फैलाया जाता है फिर पकने के बाद इसे दूध-शक्कर के साथ या माह की बनी दाल में देसी घी डालकर खाया जाता है।

यह पकवान केवल पेट की भूख ही शांत नहीं करता बल्कि अपनों को भी अपनत्व में बांधकर रखता है। सगे-संबंधी हों या आस-पड़ोस सभी मेहमान व मेजबान बनकर कभी इसके स्वाद को चखते थे लेकिन आज के दौर में शायद यह अपने घर की चारदीवारी तक ही सिमट कर रहा गया है अब न तो सगे संबंधियों के पास आने जाने के लिए पर्याप्त समय है और न ही अब अहम के चलते आस-पड़ोस के लोग एक दूसरे के घरों में आते जाते हैं।
ऐसे त्योहारों के अवसर पर जिन संयुक्त परिवारों में किसी समय 25-30 पारिवारिक सदस्य इकट्ठे होकर बड़े चाव से मिल बैठकर खाना खाते थे, वे परिवार टूटने के बाद अब एक दूसरे के घर आने-जाने में भी संकोच करते हैं।
सच कहें तो “ऐंकलियां, चिलडू, ऐंकलू, बबरू, पटांडें” तो अब भी उसी चावल के आटे से बन रहे हैं लेकिन खाने खिलाने वालों की शायद मानसिकता बदल गई है। बस रह गए हम-आप अपने ही घरों में अकेले खाने व बनाने वाले। लोहड़ी के अवसर पर तिल-चौली भी बनाई जाती है और एक दूसरे को बांटी जाती है। हफ्ता पहले छोटी लोहड़ी भी आती है उस दिन से लेकर लोहड़ी तक बच्चे घरों-घरों में जाकर लोहड़ी मांगते हैं। अगले दीन माघी का त्यौहार होता है लोग तीर्थ स्थलों पर स्नान व दान-पुण्य करते हैं। घरों में इस दिन खिचड़ी बनायी जाती है।
वर्तमान की गांव में बसने वाली पीढ़ी को तो फिर भी त्यौहारों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी है लेकिन नगरों व शहरों में बसने वाले बच्चों के लिए त्यौहार कोरा काग़ज़ बनते जा रहे हैं। आज जरूरत है हमें इन त्यौहारों को सहेज कर रखने कि ताकि हम इन्हें अपनी भावी पीढियों में हस्तांतरित कर सके और आगे चलकर यही त्यौहार व संस्कार परिवारों को जोड़ने की कड़ी बने रहें।
(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

जब मीडिया भी जाति के आधार पर सरकार के फैसलों को आंकने लग जाए

देवेश वर्मा।। हिमाचल प्रदेश में मंत्रिमंडल बनने के तुरंत बाद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाला मीडिया के कुछेक पत्रकारों ने ये प्रश्न उठाने शुरू कर दिए कि ब्राह्मणों को मंत्रिमंडल में स्थान क्यों नहीं मिला? कहा जा रहा है कि मंत्रिमंडल में ठाकुरों से ही ज्यादातर विधायक मंत्री बना डाले। इसी तरह एक वर्ग यह कहता नजर आया कि कांग्रेस का हाईकमान अनुसूचित जाति से ज्यादा मंत्री बनाने के पक्ष में है।

ये सब बातें जब प्रदेश का एक आम प्रदेशवासी देख रहा होगा तो वह यह सोचने पर तो मजबूर हुआ होगा कि क्या उसने जाति को देखकर वोट दिया था? और ये जो मंत्री बने हैं क्या ये अपनी जाति वर्ग के लिए ही बने हैं? क्या ये अन्य समुदायों या जाति के लोगों के हित की बात नहीं करेंगे? हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं, कोई भी निर्वाचित विधायक मंत्री बना है वह पूरे प्रदेश के लिए योग्यता व वरिष्ठता के आधार पर बना है न कि जाति की संख्या आधार पर और इनका कार्य सभी के लिए निष्पक्ष होगा न कि पक्षपाती।

कुछ मीडिया के लोग कह रहे कि फलां जिले से कोई नहीं बना, फलां से इतने बना दिए। योग्यता न तो जाति की मोहताज है न किसी क्षेत्र विशेष की। एक आम निरक्षर इंसान इन बातों को करता हो तब भी बात गले उतरती है लेकिन बड़े-बड़े राष्ट्रीय व प्रादेशिक मीडिया घरानों से जुड़े पत्रकारों की फेसबुक टाईमलाईन पर ऐसी बातें देख सुनकर लगता है कि कहीं न कहीं ऐसे लोग जातिवाद को ख़त्म करने की बजाए बढ़ाने के लिए ज्यादातर जिम्मेदार हैं या फिर इनके निजी हित जाति के टैग से जुड़े होते हैं जो मनमाफिक पूरे न होने के चलते ये मीडिया की आड़ में अपने निजी विचारों को इस तरह भड़ास के माध्यम से निकालते हैं।

आजतक हमने ऐसे मीडिया बंधुओं को यह कहते नहीं सुना कि फलां जाति का मंत्री बना था और उसने अपनी ही जाति के लोगों की मदद नहीं की। निवेदन है ऐसे मीडिया बंधुओं से कि शांत प्रदेश में अशांति न फैलाएं मंत्री जो भी बने उसे काम से आंकिए न कि जाति के ठप्पे से। वैसे भी प्रदेश के कई क्षेत्रों में जातिवाद का जहर अभी भी फैला हुआ है उसे निकालने की बजाए कम करने का काम करें।

(लेखक हमीरपुर से संबंध रखते हैं। उनसे writerdeveshverma@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

हिमाचल का अपना एक भी 24×7 टीवी चैनल क्यों नहीं है?

डॉ. राकेश शर्मा।। यह एक बड़ी चिंता का विषय है कि क्यों कोई उद्यमी हिमाचल में एक ऐसा पूर्णकालिक टीवी चैनल नहीं चला पा रहा जो इस पहाड़ी प्रदेश की समाचार और कला एवं संस्कृति की प्यास बुझा सके। दूरदर्शन शिमला के सन्दर्भ में प्रयास हालाँकि विगत वर्षों में केंद्र सरकार में हिमाचल के नेतृत्व ने काफी आगे बढ़ाए हैं परन्तु अभी भी ये अपर्याप्त हैं। यह लोगों की पहुंच से दूर हैं क्योंकि अधिकांश डीटीएच प्लेटफार्म ने इसे शामिल नहीं किया और न ही लोगों ने इसकी मांग उठाई क्योंकि अभी इसमें कला एवं संस्कृति के लिए बेहद कम अवधि/सामग्री है और यह दिनभर राष्ट्रीय समाचार चैनल के ही स्वरूप में ही है। ऐसा भी नहीं है कि लोगों की अपने न्यूज़ चैनल प्रति मांग नहीं क्योंकि समाचार के लिए सोशल मीडिया के ज़रिये कानों को खरोंचती आवाज़ें, हास परिहास को अंजाम देती मुख-मुद्राएं, और मनघडंत गप्पें जनता को जैसे तैसे बांधे हुए हैं। हालाँकि सभी को यह भी याद दिलवाती है कि क्यों नामी टीवी चैनल समाचार वाचक की आवाज़, उच्चारण और सूरत को चयन का पैमाना बनाते हैं।

हिमाचल भारत का एक ऐसा प्रदेश है जहाँ आज भी 90% जनता गाँव में बसती है। अधिकाँश गाँव दुर्गम पहाड़ियों के बीचो-बीच हैं जहाँ आकाशवाणी के सिग्नल तक पहुंचाना मुश्किल हैं, फ़ोन व इंटरनेट तो और भी कठिन। उधर अख़बारों के पाठक तो शहरों कस्बों में भी कम होने लगे हैं। ऐसे में दशकों से लोग आकाशवाणी पर शाम सात बजकर पचास मिनट के प्रादेशिक समाचार भी जैसे तैसे शॉर्ट वेव, मीडियम वेव के ज़रिए आज तक सुनते आए हैं। हालाँकि कुछ जगह तक स्मार्ट फ़ोन व इंटरनेट डेटा भी पहुँच चुका है परन्तु प्रामाणिक प्रादेशिक खबरों के लिए आज भी आकाशवाणी पर ही अधिक निर्भरता है। सैटेलाइट टी वी की भी पहुँच बढ़ी है परन्तु उनमें हिमाचल के अपने समाचार एवं कला-संस्कृति प्रदर्शन का बड़ा अभाव है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि केरल, उत्तराखंड, सिक्किम जैसे छोटे प्रदेश भी जब अपने पांच सात चैनल चला सकते हैं तो हिमाचल अपना एक सम्पूर्ण चैनल क्यों नहीं चला पा रहा।

जहाँ यह एक ओर प्रदेश की उद्यमशीलता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है वहीं यह प्रदेश के सर्वाधिक शिक्षित कहलाने वाले जनमानस को भी कटघरे में खड़ा करता है जो ऐसे उद्यमों के लिए सही मांग पेश ही नहीं कर पा रहा। यह कारण विज्ञापनों का अभाव इन उद्यमों को आर्थिक तौर पर अव्यवहार्य बनाता है। हालांकि चुनाव के आस पास कुछ बाहरी राज्यों के टी वी उद्यम/चैनल हमें कभी पंजाब हरयाणा के साथ जोड़ देते हैं तो कभी जम्मू लद्दाख के साथ । दूसरी ओर, ‘दूरदर्शन हिमाचल’/ ‘दूरदर्शन शिमला’ का सफ़र विगत वर्षों में डिजिटल प्लेटफॉर्म तक पहुँचा तो ज़रूर है परन्तु सभी प्लेटफॉर्म में यह उपलब्ध न हो पाना और दिन भर एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के स्वरुप में ही इसका चलना प्रदेश में लोगों को आकर्षित नहीं कर पा रहा। हालांकि, प्रदेश की विविध कला एवं संस्कृति बारे इसमें कार्यक्रम अगर बढ़ें तो लोग आकाशवाणी की भांति इससे जुड़ना चाहेंगे वर्ना चलता फ़िरता गपोड़ी शंख सोशल मीडिया ही लोगों को भटकाते/भड़काते हुए आगे बढ़ेगा जो समाज में औसत एवं मनमाफ़िक नैरेटिव सैट करने में भी सक्षम है क्योंकि अधिकांश जन-मानस सही गलत आकलन करने में असमर्थ है। इसके परिणाम, प्रदेश के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक माहौल के लिए दीर्घकाल में बहुत बुरे साबित हो सकते हैं। ऐसे विषय बारे प्रदेश के संजीदा जन-नुमांयदों, नीति निर्धारकों, लेखकों/पत्रकारों एवं समस्त बुद्धिजीवी वर्ग को समाज में सजगता की लौ जलानी चाहिए।

दुर्गम पहाड़ी प्रदेश में उद्यमियों और निवेशकों को विशेष सम्मान के साथ देखना होगा क्योंकि उनका यहाँ टिक पाना कई मायनों में कठिन होता है। एक या दो पूर्णकालीन चैनल चलाने में कोई उद्यम अगर सामने आए तो साक्षर प्रदेश के सभी लोगों का मौलिक कर्तव्य बनता है कि ऐसे उद्यम को सहारा दें और उसे फलने फूलने में मदद करें। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कम जनसंख्या घनत्व एवं अधिक लागत से उद्यम को पहाड़ में जीवित रख पाना बेहद कठिन होता है। इस दिशा में प्रदेश के सभी जिलों के लोगों को एक समरूप हिमाचलीयत में गर्व महसूस करना होगा जो प्रदेश के चहुंमुखी विकास के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक कारक सिद्ध होगा।

प्रदेश के नेतृव को भी अपने हिस्से के ईमानदार प्रयत्न करने चाहिए कि ताकि दूरदर्शन का अपना पूर्णकालिक चैनल अच्छे से विकसित हो पाए, जनता को जोड़ पाए। फिर यह स्वतः ही मनोरंजन के साथ साथ प्रदेश में सही दिशा की अनेकों जानकारियों/ कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचा पाएगा। ऐसे में दूरदर्शन, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग और भाषा एवं संस्कृति विभाग के अनेकों महत्वपूर्ण लक्ष्यों/कार्यों की पूर्ति भी करेगा। इस दिशा में अगर प्रदेश सरकार सांस्कृतिक सामग्री मुहैया करवाए या फ़िर वित्तीय/कमर्शियल हिस्से में भागीदार बन पाए तो भला हमारा ही होगा। ऐसा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि प्रदेश के अनेकों हित साधने वाले उद्यम में हिस्सेदारी उस संकीर्ण सोच को लांघती है जो मात्र केंद्र के वित्त-पोषण के आगे सोच ही नहीं बढ़ा पाती। इसका जीवंत उदाहरण हमारे रेलवे फाटक और राजधानी के संकरे मार्ग हैं जो पूर्ण राज्यत्व के 50 वर्ष बाद ही बदले हैं जब केंद्र से वित्तीय मदद मिलने लगी।

कुल मिलाकर, इस पहाड़ी प्रदेश की जनता और उसके नुमांयदों को एक बड़े विजन के साथ प्रदेश के दीर्घकालीन व्यापक सामाजिक एवं आर्थिक विकास बारे नीतिगत सोच विकसित करनी होगी। सूचना, समीक्षा एवं लोक-संस्कृति सहेजने बारे हिमाचल का एक अपना पूर्णकालिक टी वी चैनल इस दिशा में एक आवश्यक पहल साबित होगी।

(लेखक डॉ. राकेश शर्मा हिमाचल के समसामयिक विषयों के समीक्षक हैं)

अनाथ बच्चों के लिए ‘मुख्यमंत्री सुखाश्रय कोष’ शुरू करने का एलान

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने अनाथ बच्चों और असहाय व्यक्तियों के लिए विशेष कोष बनाने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जानकारी दी कि ‘मुख्यमंत्री सुखाश्रय कोष’ का गठन किया जा रहा है। 101 करोड़ रुपये के इस फंड के माध्यम से अनाथ बच्चों की पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी उठाई जाएगी।

सीएम ने कहा कि अनाथालयों में रह रहे या अन्य रिश्तेदारों के यहां रह रहे बच्चों की उच्च शिक्षा का वहन इसी कोष से किया जाएगा। उन्हें जेब खर्च देने का भी प्रावधान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के विधायक इस कोष में अपने पहले वेतन से एक एक लाख रुपये देंगे और बीजेपी के विधायक ऐसा करेंगे तो उनका भी स्वागत है।

सीएम ने स्वयं को बेसहारा लोगों के प्रति संवेदनशील बताते हुए कहा कि सरकार बने हुए 21 दिन हो गए हैं और सरकार ने सजगता दिखाई है। सुख्खू ने कहा कि सीएम पद की शपथ लेने के बाद वह सचिवालय नहीं, बल्कि बालिका आश्रम गए। उन्होंने वहां बच्चों से बहुत कुछ सीखा। जिनका कोई नहीं है, वे किस प्रकार से जीवन जी रहे हैं, यह सब देखा। इसके बाद वह मशोबरा वृद्धाश्रम गए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अब 21 दिन बाद सरकार ने सुखाश्रय कोष बनाने का निर्णय किया है। सबका यह मत था कि ऐसी योजना लाई जाए, जो सब बंधनों से दूर हो। उन्होंने कहा कि पूरे हिमाचल में अनाथाश्रमों में लगभग छह हजार लोग होंगे। अभी हिमाचल सरकार की योजना के तहत अनाथाश्रमों में रहने वालों बच्चों को 12वीं कक्षा की पढ़ाई तक सरकार की ओर से मदद मिलती है मगर आगे भी उन्हें पढ़ाई के लिए मदद दी जाएगी।