क्यों भूल रहे हम चिलडू, ऐंकलियां और तिल-चौली की लोहड़ी 

राजेश वर्मा।। हिमाचल प्रदेश में भी लोहड़ी का त्यौहार बहुत से जिलों में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने मायके में आती हैं। विशेष तरह का पकवान जिसे अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, इन्हें चिलडू, ऐंकलियां, ऐंकलू, बबरू, पटांडें आदि कहा जाता है।

आज आधुनिकता के दौर में गांव में फिर भी ये पकवान बनाया, पकाया व खिलाया जाता है लेकिन अब तो धीरे-धीरे इसे बनाने वाले व पकाने वाले भी मुंह मोड़ रहे हैं। नए चावलों के आटे से यह ऐंकलियां बनाई जाती है, पहले इस आटे को अच्छी तरह घोलकर तवे पर गोल-गोल घुमाते हुए रोटी के आकार में फैलाया जाता है फिर पकने के बाद इसे दूध-शक्कर के साथ या माह की बनी दाल में देसी घी डालकर खाया जाता है।

यह पकवान केवल पेट की भूख ही शांत नहीं करता बल्कि अपनों को भी अपनत्व में बांधकर रखता है। सगे-संबंधी हों या आस-पड़ोस सभी मेहमान व मेजबान बनकर कभी इसके स्वाद को चखते थे लेकिन आज के दौर में शायद यह अपने घर की चारदीवारी तक ही सिमट कर रहा गया है अब न तो सगे संबंधियों के पास आने जाने के लिए पर्याप्त समय है और न ही अब अहम के चलते आस-पड़ोस के लोग एक दूसरे के घरों में आते जाते हैं।
ऐसे त्योहारों के अवसर पर जिन संयुक्त परिवारों में किसी समय 25-30 पारिवारिक सदस्य इकट्ठे होकर बड़े चाव से मिल बैठकर खाना खाते थे, वे परिवार टूटने के बाद अब एक दूसरे के घर आने-जाने में भी संकोच करते हैं।
सच कहें तो “ऐंकलियां, चिलडू, ऐंकलू, बबरू, पटांडें” तो अब भी उसी चावल के आटे से बन रहे हैं लेकिन खाने खिलाने वालों की शायद मानसिकता बदल गई है। बस रह गए हम-आप अपने ही घरों में अकेले खाने व बनाने वाले। लोहड़ी के अवसर पर तिल-चौली भी बनाई जाती है और एक दूसरे को बांटी जाती है। हफ्ता पहले छोटी लोहड़ी भी आती है उस दिन से लेकर लोहड़ी तक बच्चे घरों-घरों में जाकर लोहड़ी मांगते हैं। अगले दीन माघी का त्यौहार होता है लोग तीर्थ स्थलों पर स्नान व दान-पुण्य करते हैं। घरों में इस दिन खिचड़ी बनायी जाती है।
वर्तमान की गांव में बसने वाली पीढ़ी को तो फिर भी त्यौहारों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी है लेकिन नगरों व शहरों में बसने वाले बच्चों के लिए त्यौहार कोरा काग़ज़ बनते जा रहे हैं। आज जरूरत है हमें इन त्यौहारों को सहेज कर रखने कि ताकि हम इन्हें अपनी भावी पीढियों में हस्तांतरित कर सके और आगे चलकर यही त्यौहार व संस्कार परिवारों को जोड़ने की कड़ी बने रहें।
(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
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