लेख: कहीं राजनीतिक हथियार तो नहीं बन गए HRTC कर्मचारी?

  • आई.एस. ठाकुर

हिमाचल प्रदेश में अव्यवस्था का मौहाल है। प्रदेश की जीवनधारा कही जाने वाली एचआरटीसी के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद कर्मचारियों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया और 14 और 15 जून को हड़ताल कर दी। कर्मचारियों की मांगों पर नजर डालें तो ये मांगें जायज नजर आती हैं। इनमें से अधिकतर मांगों को तुरंत मान लिया जाना चाहिए, क्योंकि हर किसी को अधिकार है कि उसे वक्त पर अच्छा वेतन मिले और समय पर पेशन मिले। अन्य सरकारी कर्मचारियों जैसे अधिकार पाना HRTC के कर्मचारियों का अधिकार है।

क्या है मामला?
गौरतलब है कि परिवहन कर्मचारी चाह रहे हैं कि HRTC, जो कि एक निगम (Corporation) है, उसे रोडवेज में बदल दिया जाए। यानी अभी वे अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारियों के तहत नहीं हैं और उनसे सर्विस रूल्स वगैरह कॉर्पोरेशन के हैं। कर्मचारियों की यह मांग जायज है, मगर इसपर फैसला सिर्फ और सिर्फ प्रदेश कैबिनेट ले सकती है और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को इसकी मंजूरी देनी है। मगर वीरभद्र सिंह कह चुके हैं कि निगम को रोडवेज में बदलना मुश्किल है।

मगर इस हड़ताल को लेकर बहुत सी बातें चौंकाने वाली हैं। इस हड़ताल की टाइमिंग, इसका आह्वान करने वाला संगटन, नेताओं की बयानबाजी कई सवाल खड़े करती है। इन हिमाचल को गुप्त सूत्रों से जानकारी मिली है कि एचआरटीसी के कर्मचारियों की भावनाओं से खेलते हुए उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। कैसे, आइए नजर डालते हैं।

– हड़ताल करने वाला संगठन इंटक है, जो कि कांग्रेस का मजदूर संगठन है। इस वक्त हिमाचल प्रदेश में इंटक की सरकार है, बावजूद इसके इस संगठन का हड़ताल पर जाना बहुत से लोगों को पच नहीं रहा।

– इंटक के एचआरटीसी नेता अक्सर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के करीब देखे जाते हैं। ये नेता वक्त-वक्त पर अपनी प्रतिबद्धता मुख्यमंत्री के प्रति जाहिर करते रहे हैं और उनके कार्यक्रमों में शिरकत करते भी दिखते हैं।

– कोर्ट जाने की नौबत नहीं आती, अगर मुख्यमंत्री वीरभद्र (जो कि राज्य के मुखिया हैं और परिवहन मंत्री से भी ऊपर हैं) इस मामले में सुलझाने वाला रवैया अपनाते। उन्होंने कोई अपील नहीं की और न ही कर्मचारियों को समझाने की कोशिश की कि वे हड़ताल पर न जाएं।
– जब मुख्यमंत्री ने निगम को रोडवेज में बदलने की मांग को खारिज कर दिया तो नाराजगी उनके प्रति क्यों नहीं है?

– मुख्यमंत्री चाहते तो हिमाचल प्रदेश एसेंशल सर्विसेज़ मेनटेनेंस ऐक्ट 1973 के प्रावधान के तहत इस हड़ताल को गैर-कानूनी घोषित कर देते, ताकि लोगों को परेशानी न हो और बातचीत से मसला सुलझाया जा सके। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।

चर्चा है कि एचआरटीसी कर्मचारियों की नाराजगी और उनके गुस्से को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। वीरभद्र सिंह और परिवहन मंत्री बाली के बीच का 36 का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। आए दिन वीरभद्र सिंह बाली की बातें काटते नजर आ जाते हैं तो बाली खुद भी मुख्यमंत्री के रुख से उलट बातें करते नजर आ जाते हैं।

बाली पिछले दिनों से काफी ऐक्टिव दिख रहे हैं और सोशल मीडिया आदि पर उनकी मौजूदगी से लोगों के बीच में उनकी पहुंच बढ़ी है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग को कसने से लेकर नई बसों को चलाने और लोगों की समस्या पर तुरंत ऐक्शन लेने की वजह मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे बाली को वीरभद्र के बाद मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी देखा जाने लगा है।

Chief minister Virbhadra singh inspecting the buses proposed for Himachal Pradesh under JNNURM at Tapovan near Dharamsala on Thursday. photo by Kamaljeet.

इस वक्त हड़ताल होने से लोगों को असुविधा हो रही है और वे नाराज हैं। इसका सीधा ठीकरा यह सरकार बाली से सिर पर फोड़ती दिख रही है। हड़ताल में जाने के बाद कर्मचारी नेताओं का बाली हो हटाने की मांग करना और उन्हें तानाशाह दिखाना राजनीतिक पंडितों को हजम नहीं हो रहा। माना जा रहा है कि इस हड़ताल के जरिए जनता में ऐसा इंप्रेशन डालने की कोशिश है कि बाली की वजह से ही यह हड़ताल हुई और इसी वजह से लोगों को असुविधा हो रही है।

यह साफ है कि प्रदेश सरकार के भीतर कुछ भी ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री और उनके प्रमुख मंत्रियों के बीच अगर इसी तरह से खींचतान होती रहेगी तो नुकसान प्रदेश और प्रदेश की जनता का होगा। इस मामले में भी सीधा नुकसान जनता का हो रहा है। प्रदेश के नेताओं को चाहिए कि आपकी मतभेदों को भुलाकर जनता के हितों के बारे में सोचे।

(लेखक इन हिमाचल के नियमित स्तंभकार हैं)

अब CPS नीरज भारती ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रति इस्तेमाल की अभद्र भाषा

इन हिमाचल डेस्क।।

ज्वाली से कांग्रेस के विधायक और हिमाचल प्रदेश सरकार में शिक्षा विभाग संभाल रहे मुख्य संसदीय सचिव नीरज भारती ने अब बीजेपी की सीनियर नेता और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रति अभद्र भाषा इस्तेमाल कर दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य बीजेपी नेताओं के प्रति अभद्र भाषा इस्तेमाल करते रहने वाले नीरज ने सुषमा स्वराज को ‘नचनिया’ करार दिया है।

Bharti post

फेसबुक पोस्ट में सुषमा स्वराज की तस्वीर के साथ डाले मेसेज में भारती ने लिखा है, ‘आजकल ये नचनियाँ भी कहीं नाचते हुए दिखाई नहीं देती और इसके पीछे खड़ा हिमाचल प्रदेश से भाजपा का सांसद और बीसीसीआई का दलाल ये भी ठुमके लगाता कहीं नजर नहीं आता….. पहले तो ये नचनियों की हिट जोड़ी FDI और महंगाई के विरोध में डांस इंडिया डांस करते थी….. अब कहाँ है ये सलीम और अनारकली कोई मुजरा – वुजरा नहीं करेंगे क्या ये अब…..’

आजकल ये नचनियाँ भी कहीं नाचते हुए दिखाई नहीं देती और इसके पीछे खड़ा हिमाचल प्रदेश से भाजपा का सांसद और बीसीसीआई का दलाल …

Posted by Neeraj Bharti on Thursday, June 9, 2016

गौरतलब है कि बीजेपी नीरज भारती की बदजुबानी को लेकर कई बार मुख्यमत्री वीरभद्र से मिल चुकी है। बीजेपी अध्यक्ष सतपात सत्ती ने जब वीरभद्र सिंह को नीरज भारती की पोस्ट्स के प्रिंट देने चाहे थे तो वीरभद्र ने उन्हें वापस फेंक दिया था। भारती के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर, कई मौकों पर अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन देते नजर आए। गौरतलब है कि इससे पहले नरेंद्र मोदी, उनकी पत्नी, पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और बाबा रामदेव समेत कई नेताओं के प्रति अभद्र शब्द इस्तेमाल कर चुके हैं।

पढ़ें: नीरज भारती ने प्रधानमंत्री को दी गाली

शर्मनाक बात यह है कि प्रदेश के शिक्षा विभाग जैसे अहम डिपार्टमेंट का मुख्य संसदीय सचिव उन्हें बनाया गया है। यह मंत्रालय मुख्यमत्री ने अपने पास रखा है और नीरज भारती इस महकमे के सीपीएस (एक तरह से जूनियर मिनिस्टर की तरह के पदाधिकारी) हैं। आलम यह है कि कांग्रेस के प्रबुद्ध नेता और युवा कार्यकर्ता भी इस मामले में खामोशी की चादर ओढ़े बैठे हैं।

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‘उस रात जंगल से कोई और चीज़ भी मेरे साथ कमरे तक चली आई थी’

  • इरफान (बदला हुआ नाम)

मैं नाहन, जिला सिरमौर हिमाचल प्रदेश का रहने वाला हूं। यह वाकया साल 2007 का है। मै ITI का एक साल का डिप्लोमा (COPA ) करने हेतु तहसील शिलाई में था। मूलतः मैं नाहन का रहने वाला हूं।

बात वर्ष 2007 की है। T20 वर्ल्ड कप चला हुआ था। उस दिन भारत और पाकिस्तान का फाइनल मुकाबला था। मैं अपने ITI के दोस्तों के साथ बार (एक होटेल, जहां डिप्लोमा करने के दौराम हम किराए पर रहते थे) में बैठा इस रोमांचकारी मैच का लुत्फ़ उठा रहा था। मुझे आज भी वो पल याद है जब प्रवीण कुमार की आखिरी गेंद पर मिसबाह-उल-हक़ का कैच लपका गया था। भारत ने पाकिस्तान को हराकर वर्ल्ड कप जीत लिया था और हम सभी ज़ोर-शोर से इसका जश्न मना रहे रहे थे। हमने बार मे खूब सेलेब्रेट किया और फिर एक खाली टिन का कनस्तर लेकर उससे पीटते हुए माल रोड पर निकल पड़े।

हममें से कुछ नशे मे थे और खुशी को सेलिब्रेट कर रहे थे। रात के करीब 12:45 का वक़्त रहा होगा। लोग हमें घरों से बाहर निकलकर देख रहे थे। काफी मज़ेदार नज़ारा था वो भी। हम पूरे शिलाई धार पर घूमते हुए नारे लगाते हुए वापिस अपने अपने रूम लौटने लगे। करीब 1:15 मिनट पर मैंने अपने दोस्तों से विदा ली। मेरा कमरा बार (होटल) की तीसरी मंज़िल पर था होटल मालिक का नाम विकास तोमर (बदला हुआ नाम) था। मेरे सभी ITI के दोस्त 2 या 3 के जोड़ों मे रहते थे, पर मेरे पास कोई रूम पार्टनर नहीं था तो मैं अकेले ही रहता था। अकेले रहना मुझे पसन्द भी था। दूसरी मंज़िल पर एक सरदार जी रहते थे जिनकी शिलाई में ही एक कपड़े की दुकान थी। साथ ही एक फैमिली भी रहती थी जो दिल्ली की रहने वाली थी।

खैर, दोस्तों से विदा लेकर मैं अपने कमरे की ओर सीढ़ियां चढ़ने लगा और कमरे में पहुंचकर सीधा बेड पर लेट गया। मैंने अपने जूते भी नही उतारे थे और आंखें बंद करके उस शाम की बातें याद करता हुआ मन ही मन खुश हो रहा था। तभी मुझे बंद आंखों में रोशनी का अहसास हुआ जैसे किसी ने लाइट्स जला दी हों कमरे की। मैंने हल्की आंखें खोलकर देखा कि कमरे से अटैच सामने वाले बाथरूम से यह तेज रोशनी आ रही है। रोशनी ऐसी थी जैसे किसी ने हज़ारो बल्ब जला दिए हो। मैंने एक पल सोचा शायद ये किसी गाड़ी की हेडलाइट की रोशनी है क्योंकि मेरा कमरा तीसरे माले पर था। सामने दूर ट्रकों की लाइट किसी मोड़ पर मुड़ते वक्त मेरे कमरे से टकरा जाया करती थी। मगर ये रोशनी अजीब थी। अजीब इसलिए क्योंकि पहली बात तो ये क्योंकि ये बहुत ज्यादा थी दूसरी ये कि ये रोशनी हट नही रही थी, जैसे अक्सर गाड़ियो के गुज़रने क बाद चली जाती है।

मैं टकटकी लगाए उस रोशनी को देख रहा था। धीरे-धीरे वो रोशनी बहुत ज्यादा हो गई। मेरा कमरा पूरा रोशनी से भर गया। ऐसा लग रहा था जैसे कमरे के अंदर किसी ने सूरज ही रख दिया है। अब मुझे घबराहट हुई। मेरी सांसें और धड़कनें बढ़ने लगी थीं, मगर उस वक्त मेरी हालत ही खराब हो गई जब काला सा कोई साया उस रोशनी के बीच खड़ा नजर आया। देखने में तो वह किसी औरत जैसा मालूम हो रहा था। बाल खुले से दिख रहे थे मगर कोई और अंग या चेहरा नहीं दिख रहा था क्योंकि रोशनी बहुत ज्यादा थी। कदम लगभग 6 फुट ही रहा होगा।

तस्वीर प्रतीकात्मक है।

मैं समझ गया कि यह कोई चुड़ैल वगैरह है, क्योंकि बचपन में खूब सुना था कि चुड़ैलें वगैरह होती हैं। मै ज़ोर से चिल्लाना चाहता था मगर चिल्ला नही पा रहा था। उठकर भागना चाहता था मगर हिल भी नही पा रहा था। मुझे लग रहा था कि ये आगे बढ़ेगी और अब मुझे मार डालेगी। मगर वह वहीं खड़ी रही। मेरे दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी थी कि मुझे दिल अपने चेहरे पर धड़कता हुआ लग रहा था। खुद को पूरी तरह असहाय पाकर डर के मारे मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं और क़ुरान शरीफ की एक आयत जिसका नाम “आयतुल कुर्सी” है, ज़ोर-ज़ोर से मन पढ़ने लगा। क़ुरान की ये आयत ठीक वैसी ही है, जैसे हिन्दू धर्म मे हनुमान चालीसा। मुझे इस आयत का मुक़ाम पता था कि इस आयत को पढ़ने से भूत-प्रेत पास नही आ पाते। जैसे-जैसे मैं मन आयतुल कुर्सी पढ़ने लगा, उस साए ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया। अब मैं सुन सकता था कि मेरे मुंह से आवाज भी निकल रही है। थोड़ी हिम्मत बढ़ी और मैं लगातार उस आयत को पढ़ता जा रहा था।

धीरे-धीरे उस साए ने दरवाज़ा पीटना बंद कर दिया। मौसम ठंडा था लेकिन में पूरी तरह पसीने से तर-ब-तर था। इसके बाद मैंने आंखें बंद कीं और रजाई में घुसकर खुद को पैक कर लिया। उस रात मैंने क़ुरान की यह आयत न जाने कितनी बार पढ़ी होगी। न जाने कब मुझे नींद आ गई। बस इतना जानता हूं जब मैंने आंख खोली तो सुबह हो चुकी थी। लेकिन मेरी ज़ुबान लगातार वही आयत पड़ रही थी। जब सूरज निकला और पक्षियों के चहचहाने की आवाज़ मेरे कानों मे पड़ी, मैंने धीरे से रजाई से थोड़ा गैप बनाकर बाथरूम पर नजर डाली वहां कोई नहीं था।

(तस्वीर प्रतीकात्मक है।)

मैं उठा और देखा कि बाथरूम में राख जैसा कुछ पड़ा हुआ है। मैंने तुरंत दरवाजा खोला और नीचे सड़क पर पहुंचा। लोगों को ये बात बताई तो उन्होंने पंडित सेवाराम (बदला हुआ नाम) के पास जाने को कहा। मैं उनके पास गया और उनको सारी बात बताई। वो भी मेरे साथ आ गए। उन्होंने कुछ मंत्रों का उच्चारण करते हुए उस राख को वहा से हटा दिया। पूरा मामला समझने पर उन्होंने मुझे बताया कि रात को जो महिला का साया आया था, वह मसान थी। इस मसान को किसी व्यक्ति ने किसी का अनिष्ट करने के लिए छोड़ा था, मगर उस व्यक्ति ने अपना सुरक्षा कवच बनाया हुआ था पहले ही। इसलिए यह भटक रही थी और भटकते हुए रात को तुम्हारे साथ तुम्हारे कमरे में आ पहुंची। पंडित जी ने यह भी बताया कि यह तुमने अच्छा किया जो क़ुरान शरीफ की आयत पढ़ने लगे और इसी वजह से बच पाए वरना कुछ भी हो सकता था।

आज भी उस घटना को याद करता हूं तो सिहर उठता हूं। कृपया मेरा नाम न लिखा जाए, क्योंकि अब मैं एक अध्यापक हूं। इसलिए मैं नहीं चाहता कि समाज मे एक गलत संदेश जाए। बस यह मेरी आपबीती है, इसलिए शेयर कर रहा हूं।

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(लेखक के अनुरोध पर हमने उनका और कहानी से संबंधित व्यक्तियों के नाम बदल दिए हैं।)

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‘आज भी याद है कि उस रात श्मशान घाट के पास नाला पार करते वक्त क्या हुआ था’

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  • विशाल राणा

बात उन दिनों की है, जब मैं 6-7 साल का था। एक बार पड़ोस के गांव किसी के यहां रातजागरा (जागरण) था। हमारे गांव और दावत वाले गांव के बीच में एक नाला था। पहाड़ों में रहने वाले लोग समझ रहे होंगे कि कैसे हिमाचल के ज्यादातर इलाकों में गांवों में दूर-दूर घर होते हैं। कुछ परिवार इस रिढ़ी (टीले) में बसे हैं तो कुछ सामने वाले में। खैर, मैंने जल्दी खाना खा लिया और वहां से जल्दी आने की जिद करने लगा। पापा और चाचा वगैरह पुरुष जल्दी घर लौट आए थे, मगर मां, चाची और बुआ की इच्छा भजन-कीर्तन करने की थी। मैं भी वहीं रुक गया। मगर जब सब बच्चे अपने-अपने घरों को चले गए तो मैं वहां बोर होने लगा और मैंने रोना शुरू कर दिया कि घर चलो।

मैं बुआ का बहुत लाडला हुआ करता था। ऐसे में बुआ ने न चाहते हुए भी मां और ताई को कहा कि मैं अप्पू को लेकर घर जा रही हूं। सबने समझाया कि कहां जाओगी अकेली, आजकल मिरग का भी खतरा है। थोड़ी देर में सब साथ चलेंगे। पड़ोस की महिलाएं भी वहां गई हुई थीं और सुबह के प्रहर में सबका साथ लौटने का इरादा था। मगर मैंने कोहराम मचा दिया। ऐसे में बुआ ने टॉर्च ली और मैं उनके साथ-साथ चलने लगा। घुप्प अंधेरा था, बरसात के दिन थे और खेतों के बीच से रास्ता था। धान की खेती के लिए खेतों में पानी भरा था और हजारों मेंढक टर्रा रहे थे। टॉर्च की रोशनी जब-जब खेत के पानी पर पड़ती, दूर तक वे चमकने लगते।

तो हमें सामने वाले गांव से नीचे किए लिए उतरना था, एक नाला पार करना था और फिर थोड़ी चढ़ाई पर हमारा घर था। दूसरा रास्ता लंबा था, मगर चौड़ा था और नाले को पार करने के लिए पुल भी था। मगर यूं समझ लीजिए कि दूरी तीन-गुना हो जाती थी। बुआ ने फैसला लिया कि शॉर्ट कट मारेंगे और नाला पार करके घर पहुंच जाएंगे। मैंने बुआ का हाथ पकड़ा हुआ था और पतले से रास्ते में संभल-संभलकर चल रहा था। जरा सी चूक होती कि पानी से भरे खेतों में जा गिरना था। जैसे ही खेत खत्म हुए, हम ढलान से नाले में उतरने लगे। बरसात के दिन होने की वजह से नाला में पानी ज्यादा था। इस बात का ध्यान बुआ को भी नहीं रहा था।

खैर, जहां से हम आम दिनों में उस नाले को क्रॉस किया करते थे, उसके पत्थरों के ऊपर से पानी बह रहा था। अब दूसरा रास्ता यह था कि या तो वापस चढ़कर जाओ और दूसरा रास्ता पकड़ो। या फिर नाले के साथ-साथ थोड़ा नीचे चलो, जहां श्मशान घाट है, वहां पर बड़े-बड़े पत्थर इधर से उधर तक बिछाए गए हैं। उनके जरिए नाले को पार करना आसान होता। बुआ ने वापस लौटने के बजाय उस श्मशान घाट वाले रास्ते से ही गुजरने का मन बनाया।

हम थोड़ा सा नीचे गए और उस जगह पहुंच गए, जहां से नाला क्रॉस करना था। दाहिनी तरफ वह पत्थर था, जिससे टिकाकर शव जलाए जाते थे और और बाईं तरफ वह मैदानी हिस्सा, जहां पर शिशुओं का दफनाया जाता था।  खैर, डर तो लग रहा था मुझे, मगर बुआ के साथ था तो हिम्मत भी थी। हमने देखा कि यहां उन पत्थरों के ऊपर से भी पानी बह रहा है, जिनसे होकर हमें नाला पार करना है। मगर पानी उतना ज्याद नहीं था। यानी ऊपर से छूता हुआ बह रहा था। बुआ पहले आगे वाले पत्थर पर कूदे और फिर वहां से मेरा हाथ पकड़कर उस पत्थर पर लाए। हम तीन-चार पत्थर लांघ चुके थे और नाले के एकदम बीच में थे।

जलधाराओ में पत्थरों को इस तरह से लगाकर बनाए जाते हैं पार करने के रास्ते

तभी हमें जोर की चीख जैसी आवाज सुनाई थी। जिस ओर से आवाज आई थी, हमने उस तरफ देखा। जिस तरफ हम जा रहे थे, उस तरह झाड़ियां हिलती हुई दिखाई दी। हवा नहीं चल रही थी, मगर बहुत सारी झाड़ियां अजीब तरीके से हिल रही थीं। एक अजीब जा जानवर सा दिखा और एक लड़की सी। मगर अंधेरे में कुछ साफ नहीं दिख रहा था। मैं घबराकर रोने लगा और चिल्लाने लगा। बुआ ने बोला कुछ नहीं हुआ और उन्होंने मुझे जोर से पकड़ लिया। वह बोली चल आगे और मैं जाने को तैयार नहीं। वह मुझे जबरन खींचने लगीं, तभी मेरा पैर फिसला और मैं पानी में गिर गया और बहने लगा। मैं घबराकर चीखने लगा और पत्थर पर खड़ी बुआ भी मुझे बहते हुए देखकर घबराकर चिल्लाने लगी। मैं कम से कम 50 मीटर ही बहा था कि ऐसा लगा कि किसी ने मुझे पकड़ लिया है। घुपप अंधेरे में कुछ पता नहीं चल रहा था, लेकिन मैं अपने बाजुओं पर जकड़न महसूस कर सकता था। किसी ने मुझे बाजू से पकड़कर पानी से निकाला और लगभग घसीटते हुए किनारे रास्ते पर पटक दिया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इतने में मैंने देखा कि बुआ अंधेरे में टॉर्च लेकर मेरी तरफ दौड़कर आ रही है।

बुआ ने मुझे उठाया और गले से लगा लिया रोते हुए। बोली चल घर चल। और हम दोनों घबराते हुए और बदहवास दौड़ते हुए घर की तरफ चल पड़े। हमने शोर इतना मचाया था कि जब तक हम घर पहुंचे, हमारी आवाज सुनकर घरवाले और पड़ोसी भी हमारी तरफ दौड़ रहे थे। सामने मुझे पापा दिखे और मैं उनसे लिपटकर रोने लगा। बुआ तो बेहोश हो गई। सबको मैंने बताया कि क्या हुआ। हर कोई परेशान था और घबराया हुआ था। मुझे दिलासा दिया गया कि कुछ नहीं हुआ। पैर फिसलकर गिर गया और घबराहट हो गई। सब लोग बातें कर रहे थे कि क्या जरूरत थी बरसात के नाले में वहां से आने की। ये तो बच गए, वरना बह जाते दोनों।

मगर मैं इस सब के बीच सोच यह रहा था कि बुआ अगर दूर से दौड़ती हुई आई, उस घुप अंधेरे में मेरी बांह पकड़कर किसने बाहर निकाला मुझे। ऐसा नहीं था कि मैं जलधारा के प्रवाह से निकारे लग गया था। मैं लगभग उसी तरह से उछलकर रास्ते पर गिरा था, जैसे कोई आदमी 6-7 साल के बच्चे को बाजू से पकड़कर एक जगह से उठाकर दूसरी जगह पटक दे। मेरी दादी ने किसी देवता का नाम लिया तो दादा ने बताया कि श्मशान घाट के पास वाली बौड़ी (बावली या बावड़ी) में पूर्वजों की मूर्तियां रखी होती हैं। यह उन्हीं के आशीर्वाद से बचना संभव हुआ है।

मैं आज भी भूत-प्रेत या ऐसी आत्मा-शात्मा में यकीन नहीं रखता, लेकिन आज भी उस घटना के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि कुछ तो था। हो सकता है मेरे बाल मन का वहम हो, मगर मैं इतना भी छोटा नहीं था कि चीजों को समझ न पाऊं। खैर, उस रात जो कोई ताकत थी, उसने मुझे बचा लिया। शायद किस्मत ही अच्छी थी, वरना यह कहानी लिखने के लिए जिंदा नहीं होता आज। बुआ को हर कोई डांटना चाहता था। पीठ पीछे सब बोलते थे कि इसने बेवकूफी की रात को उस रास्ते से आकर, मगर किसी ने सामने से नहीं डांटा। क्योंकि सब जानते थे कि वह डरी हुई है। उस घटना को आज 20 साल बीत गए हैं, मगर जहन में अब भी ताजा है।

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(लेखक मंडी के सरकाघाट से हैं और सरकारी स्कूल में गणित पढ़ाते हैं। उनकी गुजारिश पर उनका नाम बदल दिया गया है और जगहों के नाम नहीं दिए गए हैं।)


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वीरभद्र से लगातार दूसरे दिन पूछताछ, सीबीआई को हजम नहीं हो रहे जवाब

इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले में शुक्रवार को लगातार दूसरे दिन पूछताछ की। दरअसल गुरुवार को सवालों के मिले जवाबों से सीबीआई संतुष्ट नहीं थी। ऐसे में वीरभद्र शुक्रवार सुबह 11 बजे फिर सीबीआई मुख्यालय पहुंचे। इससे पिछले दिन उनसे 7 घंटों तक पूछताछ हुई थी।

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‘इन हिमाचल’ को सूत्रों से जानकारी मिली है कि जब सीबीआई के अधिकारियों ने वीरभद्र के सामने सबूत रखकर सवाल किए तो वह सफाई देने में नाकाम साबित हुए। सूत्र ने बताया कि सीबीआई के पास वीरभद्र के पास कड़े सबूत हैं। बच्चों और पत्नी के नाम पर जोड़ी गई संपत्ति को लेकर वीरभद्र ही नहीं, उनके सहयोगियों और पार्टनर्स के खिलाफ भी सीबीआई ने पर्याप्त सबूत होने का दावा किया है।

सीबीआई ने जांच में पाया है कि 2009 से 2012 तक केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने 6.03 करोड़ रुपये की संपत्ति जोड़ी, जो उनके आय के ज्ञात स्रोतों से होने वाली आमदनी से कहीं ज्यादा है। वीरभद्र, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, एलआईसी एजेंट आनंद चौहान और यूनिवर्सल ऐपल असोसिएट्स लिमिटेड चुन्नी लाल चौहान के खिलाफ प्रिवेंशन और करप्शन ऐक्ट के तहत एफआईआर भी दर्ज हुई है।

बांसुरी की तान से मंत्रमुग्ध करने वाले करीब 100 साल के बुजुर्ग झाबे राम

मंडी।।

आज हम आपको जिस शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं, उनकी बांसुरी की धुन सुनकर आपका मन खुश हो जाएगा। इंटरनेट पर हमें यह विडियो मिला और फिर इसके बाद इनके बारे में पता लगाने की कोशिश की। जानकारी मिली कि इनका नाम झाबे राम है और यह थुनाग (मंडी जिला) के गांव शेगला के रहने वाले हैं। कुछ महीने पहले इनके पोते से हमें जानकारी मिली थी कि इनकी उम्र 100 साल के करीब है, फिर भी वह एकदम फिट हैं।

इन हिमाचल के पाठक पवन शर्मा, जो उनके पोते हैं ने बताया था कि झाबे राम इस उम्र में भी खुद मेहनत करके पैसे कमाकर जीवन-यापन करते हैं। उनके 5 बेटे और 3 बेटियां हैं, मगर झाबे राम जी नहीं चाहते कि वह किसी पर बोझ न बनें और खुद ही मेहनत करते हैं।

झाबे राम जी।
झाबे राम जी।

जानकारी मिली कि उन्होंने बहुत मेहनत की है और शून्य से ऊपर उठे हैं। गांव में आज भी उनकी खूब पूछ है और सबसे समझदार और बुजुर्ग आदमी माना जाता है। हर काम करने से पहले उनकी राय जरूर ली जाती है। कहा जाता है कि जवानी के वक्त वह इतने ताकतवर थे कि आसपास के किसी गांव का व्यक्ति ताकत के मामले में उनका मुकाबला नहीं कर सकता था।

वह देव सराज घाटी के बड़े देव मतलोड़ा के पुजारी भी हैं। उनकी बांसुरी की तान सुनने को गांव  के लोग बेकरार रहते हैं। वह साथ में पारंपरिक लोकगीत भी गाते हैं, जो शायद आज की पीढ़ी में किसी को नहीं आते। उनकी हमेशा से ख्वाहिश रही कि लोग उनकी कला को पहचानें और इसे आगे बढ़ाएं। इस वक्त उनकी सेहत कैसी है, इस बारे में हमने उनके पोते से संपर्क करने की कोशिश की, मगर फेसबुक पर उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। बहरहाल, आप देखें यह विडियो

झाबे राम जी का पता इस तरह से है- झाबे राम, गांव झेगला, पोस्ट ऑफिस- बागाचनोगी, तहसील- थुनाग, मंडी, हिमाचल प्रदेश, पिन- 175035.

हिमाचल का बेटा दौड़कर नापेगा दिल्ली से मुंबई की दूरी

MBM न्यूज नेटवर्क, नाहन।।

हम और आप शायद इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि दिल्ली से मुंबई तक दौड़कर पहुंच जाएं। मगर ‘ग्रेट इंडिया रन’ के तहत कुछ लोगों को इस काम को करने का मौका मिलेगा। यह अल्ट्रा मैराथन है, जिसके लिए देश-दुनिया से कुछ ही लोगों को मौका मिला है। सिरमौर की माइना पंचायत का रहने वाला हिमाचल का लाल सुनील भी इन चुनिंदा लोगों में एक है।

इस अनोखी रेस के लिए एक महीने से भी कम वक्त बचा है, इसलिए तैयारी में सुनील कोई कसर नहीं छोड़ रहे। सुनील को विश्वास है कि वह इस काम को पूरा कर लेंगे, क्योंकि 18 दिन के अंदर इसे पूरा करना है। कुछ महीने पहले सुनील ने चंडीगढ़ से दिल्ली तक दौड़ लगाकर ध्यान बटोरा था। 8 घंटे तक लगातार मूसलाधार बारिश के बावजूद वह हटे नहीं थे।

sunil

क्या तैयारी कर रहे हैं सुनील
– हर रोज 60 किलोमीटर दौड़ रहे हैं।
– अलग-अलग मौसम के हिसाब से ढलने के लिए हमीरपुर के नादौन में प्रैक्टिस कर रहे हैं।
– सुबह तीन घंटे दौड़ते हैं।
– शाम के वक्त दो से तीन घंटे व्यायाम करते हैं।
– नादौन पहुंचने से पहले सुनील ने चंडीगढ़ में साइकलिंग व तैराकी की।
– इस माह के दूसरे सप्ताह में नाहन पहुंचकर यहां के तापमान में कुछ दिन तैयारी करेंगे।
– अंतिम चरण में रोजाना श्रीरेणुका जी जमदग्रि टिब्बे की चढ़ाई को प्रतिदिन नापेंगे।
– 8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में भी तैयारी में कोई समझौता नहीं होगा।

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क्या ले रहे हैं डाइट
खास बात यह है कि सुनील पूरी तरह शाकाहारी हैं। वह रोजाना तीन लीटर दूध पी रहे हैं और करीब 100 ग्राम ड्राई फ्रूट्स का रहे हैं। दो-तीन लीटर जूस पीते हैं। किट तो स्पॉन्सर्ड है, मगर डाइट का खर्च खुद उठा रहे हैं।

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वो महिला बोली- अच्छा हुआ जो दरवाजा नहीं खोला, वरना आज बताती कि कौन हूं मैं

  • अजय सिंह

मेरा नाम अजय है। हिमाचल के ऊना जिले से हूं और इन दिनों MBBS कर रहा हूं। मैं अपनी कहानी शेयर करना चाहता हूं। बात उन दिनों की है, जब मैं +2 में था। AIPMT की तैयारी में पूरी-पूरी रात पढ़ा करता था। मैं हमेशा पूरी रात पढ़ता और सुबह 5 बजे मम्मी को उठाकर सो जाता था। एक बार मैं रात को पढ़ रहा था। रात के करीब 1 बजे होंगे। मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरे कमरे के दरवाजे के बाहर खड़ा है। मेरा रूम घर के बाकी कमरों से अलग है। मुझे ऐसा अहसास हुआ कि मुझे कोई देख रहा है। मैंने सोचा कि ऐसे ही कुछ लगा होगा मुझे। फिर थोड़ी देर में मैंने सोचा कि कि बाहर घूम लूं, क्योंकि कमरे में गर्मी लग रही थी। मैंने दरवाजा खोला और 10 मिनट तक बाहर घूमा। फिर मैं कमरे में आ गया। दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया ताकि हवा आती रहे।

मैंने पढ़ना शुरू कर दिया। मगर थोड़ी देर बाद फिर मुझे लगा कि कोई मेरे स्टडी टेबल के पीछे खड़ा है। मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। तब मेरा शरीर पूरी तरह कांप गया जब मुझे लगा कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैं इतना डर गया था कि कुछ पता नहीं चल रहा था कि क्या करूं। फिर भी मैं चुपचाप उठा और उस कमरे से तुरंत निकलकर भाई के पास जाकर सो गया। मुझे लगा कि शायद कोई मेरा वहम हो।

अगले दिन फिर 1 या 2 बजे ऐसा ही हुआ। मैंने घर में किसी को ये बात नहीं बताई थी। मगर अगले दिन मैंने अपने टेबल पर भगवान की फोटो रखी थी, फिर भी सेम हुआ। मैं किसी तरह 4 बजे तक जगा और फिर सोचा कि सो जाता हूं। मैंने सोने की कोशिश की, मगर नींद नहीं आ रही थी। 5 बज गए। मैंने कमरे से बाहर जाकर मम्मी को उठाया और चाय बनाने को कहा। इसके बाद मैं फिर अपने कमरे में आकर बेड पर लेट गया। इतने में कमरे के बाहर किसी महिला की आवाज सुनाई दी। मुझे लगा कि पड़ोस वाली आंटी है।

मुझे लगा कि वो दरवाज खटखटाकर कह रही है कि दरवाजा खोलो। मैं थक चुका था रात भर पढ़कर। मैंने मम्मी को आवाज लगाई कि देखो आंटी आवाज लगा रही है। मैंने दो-तीन बार मम्मी को लेटे-लेटे ही आवाज लगाई। दरवाजा इतनी जोर से पीट रही थी मानो तोड़ ही देगी। मैं बहुत डर गया कि ये क्या हो रहा है। मैं उठकर बैठा और उधर से मम्मी की आवाज सुनाई दी कि कोई आंटी आवाज नहीं लगा रही है। देखा कि वाकई कोई नहीं था।

मैं फिर सोने लगा। तभी ऐसा अहसास हुआ कि किसी ने मुझे पकड़ लिया है। ऐसा लगा कि किसी औरत ने मेरे कान में हल्के से कहा कि आज तेरी किस्मत अच्छी थी जो तूने दरवाजा नहीं खोला नहीं तो आज तेरे को बताती मैं कौन हूं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

I don’t know what was that, मगर यह मेरा एक्सपीरियंस है। अभी भी कई बार सोचता हूं तो डर लगता है।

अजय ने इतना ही मेसेज भेजा था। मगर हमने उनसे सवाल पूछा- उसके बाद क्या हुआ था। जब आपको कान में किसी ने कुछ कहा, आधी नीदं में थे? और घरवालों को बताया तो क्या कहा उनने? फिर दोबारा ऐसी घटना हुई या नहीं? आप वहीं पढ़ाई करते थे उस रूम में या नहीं?

इस पर अजय ने बताया- मैं नींद में नहीं था, बस थोड़ी देर आंखें बंद की थीं। मम्मी जी को मैंने पूरा कुछ बताया। फिर मम्मी जी ने कहा कि मैं रात को न पढ़ा करूं। मैंने 4-5 दिन तक रात को नहीं पढ़ा। मैंने 4-5 दिन रात को पढ़ाई नहीं की। जब सब नॉर्मल हुआ तो मैंने फिर से डेली की तरह पढ़ना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद मम्मी जी को भी ऐसा ही हुआ, जो मेरे साथ हुआ था। पर मम्मी जी ने मुझे नहीं बताया। मेरे पापा ड्यूटी पर होते हैं, इसलिए मम्मी ने सोचा कि किसी को ये बात न बताएं। पर कुछ दिन बात ये सब कुछ ज्यादा हो गया।

एक बार मम्मी जी बेड पर सो रहे थे और उन्हें ऐसा लगा कि किसी ने उन्हें धक्का देकर बेड से गिरा दिया। फिर कुछ दिन बाद लग कि कोई मेरा गला दबा रहा है। फिर उस रात मैं उठा और ऐसा लग कि कोई रूम से बाहर जा रह है। दिखा कुछ नहीं मगर। फिर ये सब मैंने दादा जी को बताया। उन्होंने किसी पर्सन को बुलाया घर, जिसने थोड़ी पूजा सी की। फिर उसके बाद नॉर्मल सा हो गया। फिर लास्ट टाइम मुझे ड्रीम में एक औरत दिखी जो रो रही थी। मुझे ऐसा लग कि मैं उससे वाकई पूछ रहा हूं कि क्या हुआ। वो बोली कि तुमने मुझे अपने घर से निकाल दिया। मैंने उससे पूछा कि हम आपको जानते भी नहीं फिर घर से कैसे निकाला। फिर उसने कहा कि तुम अभी छोटे हो, तुम्हें कुछ नहीं पता।

प्रतीकात्मक तस्वीर

बस इतना हुआ था।

इन हिमाचल: आपका नाम डाल दें स्टोरी में हम?

अजय: As you wish sir. मगर मैं नहीं चाहता कि यह हाइलाइट हो। मेरा प्रफेशन भी इसकी इजाजत नहीं देता।

इन हिमाचल: अब आप मेडिकल स्टूडेंट हो, क्या आपने कभी मनोवैज्ञानिक ऐंगल से सोचने की कोशिश की कि क्या वजह हो सकती है इसकी? सी सीनियर से डिस्कशन किया साइंटिफिकली?

अजय: हां, मैं थर्ड इयर में हूं। मैंने सीनियर्स से बात की थी । उनके पास कोई जवाब नहीं है। अगर यह किसी तरह की मेंटल प्रॉब्लम होती तो मुझे ही होती। और मेरा इलाज भी हो रहा होता अस्पताल में। मगर मैं आत्माओं में यकीन करता हूं।

अजय: यह मेरा नाम मत डालना आप।

इन हिमाचल: ओके। (इसीलिए हमने नाम बदल दिया है)

यह भी पढ़ें: कभी नहीं भूल पाऊंगा बैजनाथ-पपरोला ब्रिज पर हुआ वह अनुभव

(हमें यह कहानी फेसबुक पर पेज पर भेजी गई। हमने लेखक से कुछ बातें भी कीं, जिन्हें देवनागरी में बदलकर लिखा है। लेखक का नाम बदल दिया गया है)

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DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें। हम इन कहानियों की सत्यता की पुष्टि नहीं करते। हम सिर्फ मनोरंजन के लिए इन्हें प्रकाशित कर रहे हैं। आप भी हमें अपने किस्से inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।

सड़क हादसों से व्यथित गडकरी ने हिमाचल से किया एक वादा

MBM न्यूज नेटवर्क, सोलन।।

खराब मौसम के बावजूद हिमाचल पहुंचे केंद्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने आश्वासन दिया है कि केंद्र सरकार हिमाचल की सड़कों की तस्वीर बदलकर रख देगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश की सड़कों को सुरक्षित बनाया जाएगा।

जनसभा को संबोधित करते हुए गडकरी ने कहा, ‘मीडिया से जब मुझे दुर्घटनाओं की जानकारी मिलती है तो मैं द्रवित हो जाता हूं। इसी व्यथा के कारण मैं चाहता हूं कि देवभूमि की सडक़ें बेहद सुरक्षित हो जाएं। लिहाजा केंद्र सरकार प्रदेश में 50 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू करने जा रही है।’

गडकरी ने कहा, ‘इससे यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी काम मौजूदा एनडीए सरकार के कार्यकाल में ही पूरे हो जाएं। देवभूमि में प्रस्तावित हाईवे अब सीमेंट से बनाए जाएंगे और दो पीढ़ियों तक उन्हें इस्तेमाल किया जा सकेगा।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसे लेकर महाराष्ट्र में प्रयोग किया गया था, जो कामयाब रहा।

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गडकरी ने संसदीय क्षेत्र में 9 राज्य मार्गों का दर्जा नैशनल हाईवे करने का भी ऐलान किया है। इसमें सनौरा-राजगढ़-रोहनाट-जामली, कफोटा-जाखना-हीरपुर, सतौन-जमटा-दोसडक़ा, साधुपुल-चायल-कुफरी, सोलन-सुबाथू, रोहडू-डोडराक्वार, सैंज-देहा-चौपाल व रोहनाट-जामली शामिल हैं।

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इस मौके पर बोलते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने कहा कि केंद्र सरकार प्रदेश को विकास में आगे बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में सडक़ों का निर्माण कठिन कार्य है, फिर भी प्रदेश की तस्वीर बदलने की कोशिश की जा रही है।

Forlaneइस कार्यक्रम के बाद गडकरी ने परवाणु से शिमला फोरलेन निर्माण का शिलान्यास किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी मौजूद थे। 89.51 किलोमीटर लंबे इस फोरलेन को बनाने में 2.545 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।

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हॉरर एनकाउंटर: सफेद दाढ़ी वाले उस बुजुर्ग ने कहा, मुझे बचा लो….

  • देवेंदर शर्मा

बात उन दिनों की है, जब मंडी के दूर-दराज के जंजैहली के एक गांव में मेरी पोस्टिंग हुई थी। 1981-82 तक मैं वहां अध्यापक के तौर पर रहा। नई-नई नौकरी लगी थी। गांव में उन दिनों किराए के मकान नहीं मिला करते थे, क्योंकि लोगों ने गुजारे लायक ही कमरे बनाए होते थे। बड़ी मुश्किल से मुझे गांव के आखिरी सिरे में एक घर मिला, जहां रहने वाले मंडी शहर में शिफ्ट हो गए थे। घर पुराना था और मिट्टी का बना था, मगर रहने लायक था। आसपास कोई घर नहीं और कुछ सालों से कोई रहता नहीं था तो आसपास के खेतों में पेड़ पौधे उग आए थे। आंगन खुला था और नीचे एक नाली बहती थी। बरसात के दिनों में नजारा खूबसूरत लगता था। समस्या एक ही थी कि नाला जहां से मुड़ता था, वहां पर श्मशान घाट था। पूरे इलाके के लोग वहां आते थे, जब कभी किसी का देहांत होता। घर ऊंचाई पर था तो दहलीज से ही नीचे का सब कुछ दिख जाता था। मगर यह कोई बड़ी बात नहीं थी, घर मिलना मुश्किल था। और कोई चारा भी तो नहीं था।

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तस्वीर प्रतीकात्मक है।

मैं रोज स्कूल से शाम को आता और सुबह चला जाता। मुझे यहां रहते साल भर हो गया था। एक बार मेरे दोस्त, जो कि मंडी कॉलेज में पढ़ाता था, मेरे यहां आने की इच्छा जताई। वह शनिवार को आया और साथ में थोड़ी शराब भी लाया था। रात को हमने खाया-पिया और सो गए। अगले दिन स्कूल की छुट्टी थी, इसलिए बेफिक्री से सोए रहे। सुबह का वक्त रहा होगा 6-7 बजे का। किसी ने दरवाजा खटखटाया। चूंकि मेरे क्वार्टर से बाकी लोगों के घर कम से कम आधा एक-किलोमीटर थे, इसलिए मैं चौंका कि कौन आ गया इतनी सुबह। खिड़की से थोड़ी-थोड़ी रोशनी दिखी बाहर। मैंने दोस्त को आलस में कहा कि भाई दरवाजा खोल। वह उठा और दरवाजा खोलने गया, मैंने चादर सिर पर ओढ़ ली ताकि दरवाजा खुलने पर लाइट आंखों में न चुभे।

मैंने सुना कि वह कुछ बात कर रहा है किसी में। इतने में जोर से आवाज सुनाई दी दोस्त की- देवेंदर उठ। मैंने उठकर देखा और बोला कि क्या हुआ। रजाई हटाकर देखा कि दरवाजे के अंदर खड़ा दोस्त बाहर की तरफ देखकर हक्का-बक्का सा खड़ा है। इससे पहले कि मैं कुछ कहता, दोस्त बोला- देवेंदर उठ। मैंने बोला क्या हुआ और तुरंत दौड़ता हुआ सा दरवाजे पर पहुंचा। देखा कि बाहर एक बूढ़ा व्यक्ति खड़ा है, जिसके सिर पर कोई बार नहीं मगर बहुत लंबी सफेद दाढ़ी थी और उसमें गेंदे के फूल की पंखुड़ियां फंसी हुई थी और हाथ में लाल रंग का चमकीला कपड़ा था।

मैंने कहा- हां जी बोलो।
बूढ़ा बोला- बेटा मेरेको बचा लो।
मैंने कहा कि क्या हुआ, किससे बचा लो।
बूढ़ा नीचे की तरफ इशारा करते हुए बोला- वो लोग जला रहे हैं मेरे को, बचा लो मेरेको।

उसका यह कहना था कि मेरी नजर नीचे नाले की तरफ गई। देखा कि वहां बहुत से लोग जुटे हुए हैं। साफ था कि किसी की मौत हुई थी और वे उसका अंतिम संस्कार करने वहां आए थे। जैसे ही मैंने उसकी बात सुनी और नीचे का मंजर देखा, मेरा दिल धक्क से बोल गया। मेरे हाथ पांव फूल गए। क्या यह नीचे जलाए जा रहे किसी बूढ़े की आत्मा है? वहां के बुजुर्गों से सुना था कि जंगल में भूत रहते हैं। कुछ किस्से भी सुने थे, इसलिए डर लग गया। कुछ समझ में हीं नहीं आ रहा था कि क्या करें, क्या नहीं। इतने में मेरा दोस्त बोला तो हमारे पास क्यों आए हो, किसी और के पास जाओ, हम क्या करें।

इतने में उस बूढ़े ने जेब से कुछ निकाला और बोला- बाकियों के पास भी जाऊंगा, ये गोली उनके आर-पार कर दूंगा।

पता नहीं उसके हाथ में क्या था और कैसी गोली आर-पार करने की बात कर रहा था वो। मैं तो सन्न था। जैसे ही उसने ये कहा, मेरे दोस्त ने जोर से गाली देते हुए कहा-  हरामजादे कौन है तू और दरवाजे के पास टिकाकर रखा छाता (पुराना वाला, जिसमें हत्था होता था) उठाकर उसे मारने दौड़ा। बूढ़े ने यह देखा और वह पलटा और नीचे की तरफ भागने लगा। बूढ़ा आगे-आगे और मेरा दोस्त पीछे-पीछे। मैं डर रहा था लेकिन दोस्त के पीछे मैं भी दौड़ लिया। बूढ़ा बड़ी तेजी से नीचे की ओर भागा और खेत खत्म होने पर सुरू होने वाले जंगलों में घुस गया। मैंने जोर से आवाज लगाई और अपने दोस्त को आगे जाने से रोक दिया।

हम दोनों का दम फूल चुका था। हम यह देखते हुए वापस घर की तरफ लौटे कि कहीं वह बूढ़ा वापस न आ रहा हो। इस बीच तक नीचे चिता को आग लगा दी गई थी। हम दोनों की बुरी हालत थी। एक-दूसरे से कुछ भी कहने की हालत में नहीं थे। मैंने कमरे में ताला लगाया और रास्ते से पास के गांव की तरफ चल दिया। मन में तरह-तरह के ख्याल आए कि वह क्या था। भगवान का भी शुक्रिया अदा किया कि आज तो बचा लिया। रास्ते में ही दो-तीन लोग मिले, जो शायद श्मशान घाट की तरफ जा रहे थे। उनमें एक दुकानदार भी था, जिससे मैं राशन लिया करता था। मुझे हांफता और दौड़ता देख वे लोग रुक गए।

इससे पहले कि वे लोग कुछ बोलते, मैंने एक सांस में पूरी कहानी उन्हें सुना दी। मैंने उन्हें बताया  कि ऐसे-ऐसे एक बंदा आया और उसने ऐसा कहा। हमारी बात को वे तीनों लोग बड़ी ध्यान से सुन रहे थे। दुकानदार ने पूछा कि सफेद रंग की दाढ़ी थी क्या उसकी बड़ी सी।

जैसे ही उसने ये सवाल पूछा, मन में शंका पैदा हुई कि जिस शख्स की चिता को ये लकड़ी डालने जा रहे हैं, उसी की लंबी दाढ़ी रही होगी। मैंने कहा हां- यह सुनकर उन तीनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और जोर-जोर से हंसने लगे। अब मैं और डर गया। मुझे लगा कि शायद ये भी भूत प्रेत हैं और अब ठहाका लगा रहे हैं। मैंने दो कदम पीछे हट गया और भागने की तैयारी में ही था कि दुकानदार बोला- मास्टर साहब, आप भी कमाल करते हो, मास्टर होकर भूतों पर भरोसा करते हो।

मैंने कुछ नहीं कहा। दुकानदार के साथ वाला बंदा बोला- अरे वो बगल वाले गांव का एक पागल बूढ़ा है। उसके दिमाग में फर्क है। दिन-भर इधर-उधर घूमता रहता है, कभी जंगल में कभी श्मशान घाट में तो कभी कहां। रोज नए ड्रामे करता है। रात को अपने घर पहुंचता है बेटे के पास, वहां खाना खाता है, रात को सोता है, सुबह खाना खाता है और दिन भर फिर इधर-उधर घूमकर अजीब हरकतें करता है।

हमारी हालत पर वे तीनों लोग ठहाके लगाने लगे। यह सुनकर मुझे और मेरे दोस्त को राहत की सांस भी आई और शर्मिंदगी भी हुई। हम दोनों बहुत झेंपे और शर्मिंदगी से बचने के लिए उनके साथ हंसने लगे। इतने में पता चला कि गांव की किसी बुजुर्ग महिला की मौत हुई है, जिसका अंतिम संस्कार किया जा रहा है। इसके बाद वे श्मशान घाट की तरफ चल दिए और हम अपने उस घर की तरफ।

जानता हूं कि ये हॉरर कहानी नहीं है, मगर मेरे लिए यह पूरा घटनाक्रम तब तक हॉरर रहा, जब तक बूढ़े की सच्चाई पता नहीं चल गई। वैसे बाद में वह बूढ़ा कई बार मिला। एक दो बार शाम को मेरे यहां आकर बैठा और मैंने उसे कुछ खाने को भी दिया। फिर कभी उसने मेरे साथ ऐसी हरकत नहीं की, मगर वह हवा में बातें करता रहता था और सड़क से पत्थर उठाकर जेब में रखता रहता था। आज भी इस कहानी को मैं और मेरा वह दोस्त खूब चाव से सुनाते हैं। आज भी अंदर तक गुदगुदा जाती है इस घटना की याद।

यह भी पढ़ें: कभी नहीं भूल पाऊंगा बैजनाथ-पपरोला ब्रिज पर हुआ वह अनुभव

(लेखक चंबा के हने वाले हैं और शिक्षा विभाग से रिटायर होने के बाद इन दिनों अपने पैतृक गांव में रहते हैं। फेसबुक के जरिए उन्होंने यह वाकया हमें भेजा)

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