हिमाचल प्रदेश में अगले साल होने जा रहे चुनावों में बीजेपी की सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसे लेकर अटकलों का दौर जारी है। मीडिया के कुछ हिस्सों में खबर आई थी कि बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष सतपात सिंह सत्ती ने धूमल की पैरोकारी की है। मगर न्यूज पोर्टल ‘समाचार फर्स्ट’ के मुताबिक सत्ती ने इस तरह का कोई बयान देने से इनकार किया है।
समाचार फर्स्ट के मुताबिक सतपाल सत्ती ने बताया कि उन्होंने कभी भी सीएम कैंडिडेट के संबंध में बात ही नहीं की है। प्रदेश के एक नामी अखबार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि अपना नाम बनाने के लिए अखबार ने झूठा बयान लिखा। सत्ती ने कहा, ‘कुल्लू में दिए गए मेरे बयान की रेकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास है। उसको भी चेक किया जाए। मैंने इस संबंध में कुछ कहा ही नहीं है।’
यह पूछे जने पर कि वह जेपी नड्डा को बेहतर मानेंगे या फिर प्रेम कुमार धूमल को, सत्ती ने कहा कि यह तय करना पार्टी आला कमान का काम है और हमारा काम उनके निर्देशों को पूरा करना है। इस बीच बीजेपी के सीनियर नेता राजीव बिंदल ने भी गुटबाजी की खबरों को गलत बताते हुए कहा कि पार्टी एकजुट है और यह सुनिश्चित करने में जुटी है कि अगला सीएम बीजेपी का ही हो।
(आपबीती लंबी होने की वजह से हमने दो हिस्सों में बांट दी थी। पाठकों से अनुरोध है कि इसे पढ़ने से पहले पिछला हिस्सा पढ़ लें, ताकि बातें ठीक से समझ आएं। पिछला भाग पढ़ने के लिए आगे दिए लिंक पर क्लिक करें- मैं खड्ड से घर उठा लाई छोटा सा आईना और उस आईने में…)
घर पहुंचकर मैंने देखा कि मोनू कोने में चुपचाप बैठकर अपनी गोद में देखकर मुस्कुरा रही है। मैंने उसे उत्साह में जाकर बोला मोनू…. मैं खुश थी कि वो आई थी बड़े दिनों बाद। मगर उसने मेरी आवाज नहीं सुनी। पास जाकर मैंने देखा कि उसकी गोद में वही शीशा रखा हुआ है, जो मैंने उस दिन खड्ड से उठाया था।
मैंने उससे कहा कि इसे फेंक, तो वह मानी नहीं उसे लेकर छिपा लिया। मैंने मम्मी को बताया कि मैं वही शीशा खड्ड से उठाकर लाई थी, जिसके बाद मेरी तबीयत खराब हुई। उन्होंने सबको बताया कि मोनू के पास जो शीशा है, उसकी वजह से ही सारी समस्या हुई थी। सबने मोनू को कह कि उस शीशे को लाकर दे, मगर मोनू उसे देने को तैयार नहीं थी। मोनू की मम्मी यानी मेरी बुआ ने उससे शीशा छीनने की कोशिश की तो मोनू ने उनकी बाजू में दांत गड़ा दिए। मोनू बहुत सी शरीफ बच्ची थी और उसने ऐसा व्यवहार कभी नहीं किया था। परिवार के जो सदस्य शीशे वाली बात पर यकीन नहीं कर रहे थे, उन्हें भी अब लगने लगा कि पक्का इस शीशे में ही खराबी है।
दो-तीन लोगों ने पकड़कर मोनू से वह शीशा छीना। उसके हाथ से मेरे पड़ोस के अंकल (जो शोर सुनकर वहां आ गए थे) ने शीशा छुड़ाया और उसे नीचे झाड़ियों में फेंक दिया। इसके बाद मोनू ने रोना शुरू किया। वह इतना रोई कि बेहोश हो गई। उसे पानी के छींटे डालकर होश में लाया गया तो वह खामोश हो गई। उसने कुछ नहीं कहा। उससे कोई भी कुछ बात करता तो वह उसे घूरती, बोलती कुछ भी नहीं। मुझे मोनू से मिलने नहीं दिया गया और अलग कमरे में बंद कर दिया गया। बुआ अकेली आई थी, मगर मोनू के साथ हुआ घटनाक्रम सुनकर फूफा जी भी अगली सुबह हमारे घर आ गए। उन्होंने मोनू को लेकर डॉक्टर को दिखाने की जिद की, मगर इस बीच तक मेरे परिवार वाले उसी तांत्रिक (ओझा) चेले को ले आए थे, जिसने मेरा इलाज किया था। मुझे और अन्य बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया गया था और हमारे साथ सिर्फ मेरी मम्मी वहां थी। बाहर क्या हो रहा था, हम यह न देख पाएं, इसीलिए हमें बंद किया गया था। इसलिए आगे का घटनाक्रम परिवार के अन्य सदस्यों से कई साल बाद पता चला था। मुझे पता चला कि उस दिन सुबह मोनू के साथ यह कुछ हुआ-
फूफा जी तांत्रिक से इलाज कराने के हक में नहीं थे। तांत्रिक ने फिर मंत्र पढ़े और मोनू पर पानी फेंकते हुए पूछा कि कौन है तू। तो मोनू से कंठ से वही आवाज सुनाई दी, जो मेरे कंठ से निकली थी। उसने कहा- पहचाना नहीं तूने मुझे? तांत्रिक ने बोला कि तूने तो वादा किया था कि तू नहीं आएगी, जो तूने मांगा, वह तुझे दिया भी। इस पर मोनू के गले से आवाज आई- मेरी बात पर बड़ा भरोसा है तेरेको? मेरे साथ किया कोई भी वादा जब किसी ने नहीं निभाया तो मैं क्यों किसी के साथ किया वादा निभाऊं? तांत्रिक ने बोला- जिसने तेरे साथ किया वादा तोड़ा, उन्हें परेशान कर, इन बच्चों को क्यों परेशान कर रही है। मोनू के मुंह से आवाज आई- उनसे तो मैंने हिसाब बराबर कर लिया, तू मत बता कि मुझे क्या करना है क्या नहीं।
तांत्रिक ने खूब मंत्र पढ़े और कुछ पानी वगैरह फेंका, मगर गोलू के मुंह से निकलने वाली अजीब सी आवाज हंसती जा रही थी और उसे चुनौती देते जा रही थी कि जो करना है कर ले। पिछले बार तो मैं तेरे साथ खेल खेल रही थी। इतने में पंडित जी को किसी ने बताया कि मोनू के हाथ में जो शीशा था, उससे ही तो सब लिंक नहीं है। यह सुनकर मोनू गंभीर हो गई। पंडित ने कहा कि वह शीशा लाओ। सारे लोग नीचे झाड़ियों मे उस शीशे को ढूंढने लगे। झा़ड़ियों की कटाई के बाद आखिरकार वह शीशा मिला। उसे तांत्रिक द्वारा पूजा के लिए बनाई गई जगह पर ले आया गया।
अब तांत्रिक बोला- देख, तू सीधी तरह जा, वरना मैं ये शीशा तोड़ दूंगा और आग में जला दूंगा। इसपर मोनू के मुंह से आवाज आई- ऐसा करके तो देख, मैं इसकी (मोनू की) के भी उतने टुकड़े कर दूंगी, जितनी तू इस शीशे के करेगा। यह साफ देखा जा सकता था कि शीशे को तांत्रिक के पास देख गोलू (या उसके अंदर जो भी था) बेचैन हो चुका था। तांत्रिक परेशान दिखा। उसने कहा- देख, मैं चाहूं तो इस शीशे को तोड़ दूंगा, तू इस बच्ची का कुछ भी नहीं कर पाएगी। मगर मैं नहीं चाहता कि तेरा कुछ नुकसान हो। इसलिए तुझे भी हमारा कोई नुकसान नहीं करना चाहिए। अगर इस शीशे में तू रहती है तो इसी में रह, इस शीशे को हम जंगल में छोड़ देंगे, वहीं आराम से रहा।
गोलू के मुंह से आवाज आई- मैं क्यों जंगल मे ंरहूं। हर बार मैं जहां भी जाती हूं, कोई न कोई मुझे इन शीशों में डाल देता है। मैं नहीं जा रही इस बार। तू इस शीशे को तोड़ देगा तो और अच्छा होगा। मैं कहीं वापस नहीं जाऊंगी, मेरेको शरीर मिल जाएगा। तांत्रिक बेचैन हो चुका था। इतने में गोलू के पापा, जो इन सब बातों मे यकीन नहीं रखते, गुस्से में आए और उन्होंने वह शीशा उठाकर वहीं फर्श पर तोड़ डाला। जैसे ही वह शीशा टूटा, गोलू जोर-जोर से रोने लगी। उसकी आवाज इतनी तेज थी कि सब लोग घबरा गए। उसे 2-3 लोगों ने पकडा़ हुआ था। उसका पूरी शरीर अकड़ गया। तांत्रिक ने मंत्रोच्चारण जारी रखा और पानी छिड़कता रहा। कुछ लोगों ने गोलू के पापा को भी पकड़ रखा था, जिन्हें यह सब ड्रामा लग रहा था।
इसके बाद गोलू बेहोश हुई। तांत्रिक मंत्र पढ़ता रहा। उसने कहा कि आज तो काम हो गया। मगर वह चीज फिर न आए, इसके लिए कल सुबह सूरज निकलने से पहले एक काम करना होगा। कहते हैं कि अगली सुबह घर के आंगन में पूजा हुई। एक सूप (बांस का बना बर्तन) मे तरह-तरह की चीजें सजाई गईं, जिनमें एक शीशा भी था। उसमें दिए की रोशनी में गोलू को अपना चेहरा देखने को कहा गया और फिर उस सूप को खड्ड में छोड़ दिया गया। उस सूप को वहीं छोड़ा गया था, जहां से मैं वह शीशा उठा लाई थी। दरअसल पूरे इलाके में जब किसी को इस तरह की समस्या होती थी, उसे ओपरा कहा जाता था और तांत्रिक छाट छोड़ते थे। यानी वे आत्मा या भूत को निकालकर उस आईने में बांधकर खड्ड मे छोड़कर आजाद किया करते थे। यानी मैं भी किसी की छोड़ी हुई छाट का शीशा उठा लाई थी, जिसमें किसी के ऊपर आया भूत निकाला था, जो पहले मुझमें और फिर गोलू में आ गया था।
खैर, उस दिन के बाद न गोलू को कुछ हुआ, न मुझे। मैं स्कूल गई, उसी रास्ते से गई। रास्ते में वह पत्थर भी दिखता, मगर मैंने उसकी तरफ जाने की कभी सोची भी नहीं। पता नहीं वह क्या था। हो सकता है कि सुनी सुनाई बातों का बाल-मन पर गहरा असर आ गया हो, मगर मेरे साथ-साथ गोलू के साथ भी ऐसा हुआ, जबकि उसे तो पूरे घटनाक्रम का पता ही नहीं था। यह बात जरूर चक्कर खाने पर मजबूर करती है। खैर, मेरी यही कामना है कि किसी के साथ ऐसा कभी न हो।
(लेखिका मूलरूप से हिमाचल के बिलासपुर की हैं और इन दिनों परिवार के साथ न्यू जीलैंड में बसी हुई हैं। वह पहली लेखिका हैं, जिन्होंने नाम या पता छिपाने की अपील नहीं की)
आज सुबह अपनी फेसबुक फीड में नीरज भारती से जुड़ी एक पोस्ट दिखी, जिसमें कहा गया था वह अनाप-शनाप पोस्ट करते हैं। कई सालों से पुणे में हूं, इसलिए राजनीति पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। कई बार मैंने परिजनों और दोस्तों को इस बारे में बात करते सुना, मगर ध्यान नहीं दिया। खुद ज्वाली का रहने वाला हूं, इसलिए आज सुबह जिज्ञासावश नीरज भारती की प्रोफाइल देखने चला गया। देखकर हैरान हो गया कि उसमें कितनी वाहियात पोस्ट्स हैं। प्रधानमंत्री को भौंकेंद्र मोदी, रामदेव को हरामदेव कानिया… और भी न जाने क्या-क्या।
इतनी गिरी हुई भाषा? कैसी मानसिकता है, यहां पर एक चुना हुआ नुमाइंदा इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर रहा है। राजनीतिक विरोध अपनी जगह है, मगर ऐसी भाषा तो वही इस्तेमाल कर सकता है, जिसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो। शिक्षित व्यक्ति भी असभ्य हो सकते हैं, इसका प्रमाण देखने को मिल गया। यकीन नहीं हुआ कि यह एक चुने हुए जन प्रतिनिधि की प्रोफाइल है।
विरोधी नेताओं को गलत नामों से पुकारना और उनकी शारीरिक विकृति का मजाक बनाना किसी भी समझदार व्यक्ति की निशानी नहीं है। बाबा रामदेव को ‘कानिया’ इसलिए कहा गया, क्योंकि उनकी एक आंख सामान्य नहीं है। इससे पता चलता है कि विकलांगों को किस नजर से देखते हैं यह जनाब। ऊपर से जनाब से अपनी पोस्ट्स में जस्टिफाई किया था कि बीजेपी वालों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जा रहा है।
ऐसी बातें वही कर सकता है, जिसकी समझ का स्तर मोहल्ले के उन गंजेड़ी लड़कों सा हो, जिनका परिवार, समाज, संस्कार और मर्यादाओं से कभी पाला नहीं पड़ा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी समर्थक भी कांग्रेस नेताओं के प्रति ऐसी भाषा इस्तेमाल करते रहे हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं कि उनसे दो कदम आगे बढ़कर उनसे भी गिरा हुआ व्यवहार करने लग जाएं।
यही फर्क होता है एक समझदार और बेवकूफ में। यह समझदारी परिवार, समाज और दोस्तों की संगत से मिलती है। पढ़ने को यह भी मिला कि नीरज भारती के पिता ने कहा कि उनका बेटा कुछ भी गलत नहीं कर रहा। इससे पता चलता है कि नीरज भारती ऐसे क्यों हैं।
हैरानी यह भी हुई कि इस घटिया इंसान की प्रोफाइल में मुझे कुछ म्यूचुअल फ्रेंड्स भी दिखाई दिए। यही नहीं, इन लोगों ने नीरज भारती की पोस्ट्स जो लाइक भी किया था। पिछले दिनोंं एक कार्टून नजर आया, जिसमें नीरज भारती के व्यवहार को जस्टिफाई किया गया था। हैरानी हुई कि यह कार्टून ऐसे शख्स ने बनाया था, जिसे हिमाचल में बहुत से लोग एक प्रबुद्ध व्यक्ति मानते हैं। वैसे तो वह जनाब प्रदेश के हर मुद्दे पर राजनेताओं को घेरते हैं, मगर न जाने क्यों उन्हें नीरज भारती का व्यवहार पसंद आया। खैर, यह उनकी निजी सोच है, मगर निजी सोच ऐसी है तो उन्हें खुद को हिमाचल के हितों का पैराकार दिखाना बंद कर देना चाहिए।
जब कभी जवाली आता हूं, अपने गुरुजनों और अन्य प्रबुद्ध लोगों से मिलता हूं तो वे नीरज भारती को धिक्कारते हैं। उनका कहना होता है कि नीरज भारती की वजह से प्रदेश के अन्य हिस्सों के लोग उन्हें ताने मारने लगे हैं कि आप कैसे लोग चुनते हैं। यह सही है कि एक व्यक्ति विधायक को नहीं चुन सकता, मगर किसी के चुने जाने का मतलब ही यही है कि अधिकतर लोगों ने उसे अपने प्रतिनिधित्व लायक समझा है। और इसी वजह से ज्वाली के अन्य बुद्धिजीवी ही नहीं, सामान्य लोग भी शर्मिंदा हैं।नाम बदलने का इतना ही शौक है तो नीरज भारती को सबसे पहले अपना नाम बदलकर निर्लज्ज भारती रख लेना चाहिए। उन्हें ही नहीं, उनकी पार्टी INC को अपने नाम की फुलफॉर्म इंडियन निर्लज्ज कांग्रेस कर लेना चाहिए, क्योंकि इतना कुछ होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की ज रही। वीरभद्र सिंह वैसे तो पूरे प्रदेश में घूमकर भाजपाइयों वगैरह को ज्ञान देते रहते हैं, मगर अपने संसदीय सचिव को दो घूंट नसीहत नहीं दे सकते। हाल ही में मूंछें रखकर खुद को सख्त दिखाने की कोशिश करने वाले यूथ कांग्रेस वैसे तो बहुत आक्रामक रहते हैं, मगर अपनी पार्टी की खराब होती छवि को बचाने के लिए नीरज भारती से बात नहीं कर रहे।
फेसबुक वगैरह पर कुछ भी करना, किसी को अपमानित करना, धमकी देना या किसी भी तरह का अपराध आईटी ऐक्ट के दायरे में आता है। आए दिन हिमाचल सरकार द्वारा किए जा रहे कामों का क्रेडिट लेने वाले मुख्यमंत्री के तथाकथित आईटी सलाहकार भी नीरज भारती की फ्रेंड लिस्ट में हैं (अब नहीं हैं, संभवतः उन्होंने अन्फ्रेंड कर दिया हो) और उनके कई स्टेटसों को लाइक करते हैं। मगर वह अपने सीएम के चहेते को यह नहीं बता रहे कि आईटी ऐक्ट की किन धाराओं के तहत मामला दर्ज हो सकता है और जो किया जा रहा है, वह कितना गलत है।
इसी को कहते हैं सत्ता का दुरुपयोग। यह दिखाता है कि हम सरकार में हैं, आप जो मर्जी कर लें। केंद्र पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाले कांग्रेसी नेताओं को यह नहीं दिखता कि कैसे उनका एक नेता अपने पद का दुरुपयोग कर रहा है। मगर इन लोगों को शर्म नहीं आएगी। मोटी चमड़ी वाले नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहेंगे। शर्म आएगी हम जैसे लोगों को, जिनका सिर नीचा हुआ पड़ा है।
पिछले दिनों मैंने देखा कि कुछ लोग कॉमेंट करते हैं कि ‘इन हिमाचल’ क्यों बार-बार इस शख्स की खबरें उठा रहा है और क्यों तवज्जो दे रहा है। मैं इन हिमाचल को साधुवाद देता हूं कि वह ऐसी खबरों उठा रहा है। इसीलिए मैंने अपना यह आर्टिकल भेजा, क्योंकि इन हिमाचल का मैं समर्थन करता हूं कि किसी एक व्यक्ति की वजह से अगर प्रदेश बदनाम हो रहा हो, तो उसपर कार्रवाई होनी चाहिए। वीरभद्र कार्रवाई करे या न करे, उनकी सारा ध्यान तो अपने ऊपर हो रही कार्रवाई से बचने पर फोकस है। मगर ज्वाली की जनता में आक्रोश पनप रहा है और वह कार्रवाई जरूर करेगी। चुनाव आने को हैं। पहले मैंने सोचा कि नाम बदलवा दिया जाए, क्योंकि मेरी माता शिक्षा विभाग मे कार्यरत हैं और हो सकता है कि राजनीतिक दुर्भावना के तहत शिक्षा विभाग के संसदीय सचिव कोई कदम उठाएं। मगर सच कहने में डर कैसा। मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा।
(लेखक पुणे में आईटी इंजिनियर हैं, मूलरूप से कांगड़ा के जवाली के रहने वाले हैं।)
मैं 7वीं क्लास में पढ़ती थी। गांव से स्कूल 4 किलोमीटर दूर था औऱ हम सब गांव के कुछ परिवारों के बच्चे एकसाथ स्कूल जाते और एकसाथ चले आते। बीच में एक सूखी हुई खड्ड थी। मैं औऱ मेरी सहेली चंपा साथ ही आते-जाते थे। बाकी बच्चे कभी आगे होते या कभी पीछे। खड्ड में जिस तरफ से हम उसे क्रॉस करते थे, उससे दूर बड़ी सी चट्टान दिखाई देती थी, जिसपर झंडा लगा हुआ था। बड़ा मन करता था उस चट्टान पर जाने का। मगर कभी भी बड़े बच्चे वहां जाने नहीं देते थे।
एक दिन मैं और चंपा छुट्टी पर स्कूल के पास ही झाड़ी में लगे आखे खाने रुक गईं। बाकी लोग चले गए। हम मस्ती में घर लौट रही थीं काफी लेट। गर्मियों के दिन थे और और स्कूल ढाई बजे खत्म होता था। शायद 4 बज रहे थे उस वक्त शाम के। हम अकेले थे तो मैंने खड्ड पार करते वक्त मैंने चंपा को कहा कि चलो न, आज उस चट्टान के पास चलते हैं। चंपा ने पहले आनाकानी की, मगर मैं उसे मनाने में कामयाब हो गई। दरसअल दो दोस्तों में भी एक पर्सनैलिटी डॉमिनेटिंग होती है। इस रिलेशनशिप में मैं डॉमिनेटिंग थी, जबकि चंपा शांत और शर्मीली थी। मैं आगे-आगे चली और चंपा पीछे-पीछे।
कितनी सुंदर चट्टान थी वो। नीले से रंग की संगमरमर जैसी मखमली लग रही थी। खड्ड मे कभी हमने बरसात के अलावा पानी नहीं देखा था, मगर सदियों पहले बहकर आई ये चट्टान घिस-घिसकर कोमल सी हो गई थी। मैंने देखा कि उस चट्टान के नीचे कुछ टोकरियां रखी हुई थीं, जिनमें चूड़ियां, बिदिया, शीशा (आईना), रिबन वगैरह थे। बहुत सारे थे। कुछ पुराने थे और खड्ड की रेत में धंसे हुए थे तो कुछ ताजे। टोकरियों मे धूप के जले हुए अवशेष भी थे। इस बीच मुझे गोल सा छोटा आईना दिखा। मैंने उशे उठा लिया। चंपा ने कहा कि मत उठा, फेंक इसे और चल। मैंने उसे फेंकने का नाटक किया और चुपके से अपने पास छिपा लिया। वहां से हम दोनों घर की तरफ चल दीं।
घर पर आकर रोज की दूध पिया, जो दादी अम्मा मेरे आने का इंतजार करके बैठी रहती थीं और मक्खन औऱ नमक लगी रोटी खाई। फिर बैग पटका और इधर-उधर चलने लग गई। शाम को ध्यान आया कि मैं जो आईना लाई थी, उसे देखूं। मैंने उसे बैग में रख लिया था। पढ़ाई के बहाने मैंने बैग खोला और उस आईने को देखने लगी। सिल्वर कलर का फ्रेम गोल सा और बीच में छोटा सा वो शीशा। मैंने उसमें अपना चेहरा देखा। मैं उससे खेलने लगी। कभी मैं अपने बालों को चेहरे पर लाती और कभी हटाती। मगर एक पल के लिए मैं तब चौंकी, जब मुझे उसमें अपने बजाय कोई और चेहरा दिखा।
प्रतीकात्मक तस्वीर
आज कई साल हो गए हैं, मगर मैं याद करूं तो वो चेहरा अजीब सा था। मतलब किसी बूढ़ी सी महिला का, मगर पता नहीं कैसा। मतलब मैं लिखने में उतनी अच्छी नहीं हूं कि उसका चेहरा डिस्क्राइब कर सकूं। मगर अजीब सा था, जो इंसानों जैसा होकर भी इंसानों जैसा नहीं था। मैं डरी और शीशा वहीं फेंककर चिल्लाई जोर से। मेरी आवाज सुनकर मेरी चाची दौड़ती हुई आई। मैं उनसे लिपट गई। मुझे बुखार हो गया और मैं कुछ न बोलूं। इसके बाद जो हुआ, वह मुझे याद नहीं। मगर बाद में मैंने परिजनों से जो सुना, उनके हवाले से बता रहा हूं। परिजनों ने बताया कि-
उस रात को मैं अजीब सी आवाज में बात कर रही थी और सबको उनके नाम से बुला रही थी। यही नहीं, मैंने चाची के दादा, पड़दादा तक का नाम ले लिया। मैं सबको चुनौती दे रही थी और हंस रही थी। मेरी आंखों का रंग लाल हो गया था और जीभ दांतों तले कट गई थी। मेरे हाथ-पैर नीले पड़ गए थे। मुझे डॉक्टर के पास ले जा गया अस्पताल, वहां से मुझे पीजीआई रेफर किया गया। पीजीआई में डॉक्टरों ने कहा कि इसे या रेबीज़ हो गया है या टिटनस, क्योंकि मेरी बॉडी अकड़ रही थी।
बाद में टेस्ट में दोनों ही बातें ठीक नहीं निकलीं। किसी ने कहा कि एपिलेप्सी (मिर्गी) का मामला है तो कोई कुछ औऱ कहे। इस बीच कोई और समझ पाता। मैं अचानक ठीक हो गई। दादी का कहना था कि उन्होंने मेरे हाथ में कोई जंतर बांधा था, जिसकी वजह से मैं उश वक्त ठीक हुई। डॉक्टरों ने और टेस्ट लिखे औऱ मुझे छुट्टी दे दी।
मैं घर आई और घर पर आने के दो दिन बाद फिर वही। मैंने घर में उठा-पटक मचाई। इतनी छोटी लड़की के पास कितनी ताकत होगी? मगर परिजनो ने बताया कि मैंने बड़े-बड़े एक कोने से उठाकर दूसरे कोने में पटक दिए, दरवाजे को तोड़ दिया और बाहर जाकर आंगन में लगे बादाम के पेड़ पर चढ़ गई और वहां से हंसने लगी।
पूरा गांव इकट्ठा हो गया था। किसी तांत्रिक को बुलाया गया। उशने कुछ जाप पढ़े तो कहते हैं कि मैं पेड़ से कूदी और जंगल की तरफ भागने लगी। आगे-आगे मैं थी औऱ पीछे-पीछे तात्रिक और गांव। रास्ते में कहीं मैं ठोकर खाकर गिरी औऱ बेहोश हो गई। मुझे घर लाया गया। वहां कोई तांत्रिक प्रक्रिया की गई और मेरा कथित तौर पर ‘इलाज’ शुरू किया गया। कहते हैं कि मैंने तांत्रिक के पूरे खानदार का नाम ले लिया औऱ उसे कहा कि कुछ भी कर ले, मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
परिजनों ने बताया कि उस तांत्रिक ने मुझे पीटा-मारा और पूछा कि कौन हूं। इस पर मैंने जवाब दिया कि मैं ******** हूं और मुझे ये लड़की यहां लाई है, मैं कहीं नहीं जाऊंगी। इस पर उसने कुछ मंत्र फूंके और कहा कि चली जा, बदले म क्या चाहती है। कहते हैं कि मैंने कहा कि मैं जाऊंगी तो सही, मगर इसकी जान लेकर जाऊंगी। तो तांत्रिक (चेले) ने कहा कि मैं जान तो इसकी नहीं, मगर तेरी ले लूंगा। भलाई इसमें है कि कुछ औऱ चाहती है तो बता। कहते हैं कि इस पर मैंने मैंने एक काली मुर्गी मांगी। इसके बाद अगली सुबह 4 बजे काली मुर्गी का इंतजाम किया गया और सुबह मेरे को खड्ड में कहीं ले जाकर कुछ पूजा-पाठ किया गया और वहीं पर काली मुर्गी का सिर काटकर उसे छोड़ दिया गया।
अब मैं जो कहने जा रही हूं, वह मेरी याद में ताजा है। मुझे अहसास हुआ कि मैं कहां हूं। मैं अंधेरे मे हूं और कुछ लोग मेरे पास हैं। मैं घबराई। इतने में मेरे पापा औऱ चाचा ने मुझे कहा कि बेटा घबरा मत हम हैं। मैं हैरान थी। मुझे ऐसा लगा कि मैं तो आईने के साथ खेल रही थी और अगले ही पल इस अंधेरी जगह पर हूं। यानी मुझे आईने में वह अजीब चेहरा दिखने से लेकर सुबह अजीब जगह लाकर मुर्गी का सिर काटने के बीच कुछ पता नहीं था। मैं कहां थी, मुझे नहीं पता।
बाद में बताया गया कि मुझमें कोई बुरी आत्मा का साया आ गया था और इस बीच वही मेरे शरीर मे काबिज रही। मुर्गी की बलि देकर उसे संतुष्ट करके मेरे शरीर से निकाला गया। उसके बाद मैं नॉर्मल हो गई। न मुझे कुछ अजीब लगा न मेरे परिजनों को। मैं रोज की तरह स्कूल जाती। हां, चंपा ने मेरे साथ आना-जाना छोड़ दिया, मगर बाकी गांव के बड़े बच्चे मेरा पूरा ख्याल रखते। फिर मेरे साथ कोई घटना नहीं घटी।
मैं पूरे विश्वास के साथ नहीं कह सकती कि मेरे साथ क्या हुआ था, क्योंकि बीच के कुछ दिनों के बारे मे री याद्दाश्त नहीं है। बीच में जो कुछ हुआ, वह मेरी दादी और मां ने मुझे बताया बाद में कि मेरे साथ ऐसा हुआ था। मैं तो ठीक हो गई, मगर एक दिन एक अजीब घटना घटी। एक दिन मैं स्कूल से घर लौटी, तो देका कि मेरी बुआ मेरे घर आई हुई है। उनके साथ उनकी 17 साल की बेटी मोनू भी आई हुई थी। घर पहुंचकर मैंने देखा कि मोनू कोने में चुपचाप बैठकर अपनी गोद में देखकर मुस्कुरा रही है। मैंने उसे उत्साह में जाकर बोला मोनू…. मैं खुश थी कि वो आई थी बड़े दिनों बाद। मगर उसने मेरी आवाज नहीं सुनी। पास जाकर मैंने देखा कि उसकी गोद में वही शीशा रखा हुआ है, जो मैंने उस दिन खड्ड से उठाया था।
किस्सा लंबा है, इसलिए दो हिस्सों में बांट दिया है। आगे का घटनाक्रम कुछ दिन बाद। जिसमें आप जानेंगे कि आगे क्या हुआ।
(लेखिका मूलरूप से हिमाचल के बिलासपुर की हैं और इन दिनों परिवार के साथ न्यू जीलैंड में बसी हुई हैं। वह पहली लेखिका हैं, जिन्होंने नाम या पता छिपाने की अपील नहीं की)
भूत-प्रेत पर मैं यकीन नहीं रखता। मेरे साथ जो घटना हुई, उसे भी मैं कोई आत्मा का खेल या कोई सुपरनैचरल नहीं मानता। मगर इतना जरूर है कि मैं उसकी पीछे की कोई वैज्ञानिक वजह अभी तक नहीं ढूंढ पाया। और जह तक यह वजह नहीं मिलती, तब तक दुनियादारी के स्थापित नियमों के हिसाब से वह घटना सुपरनैचरल ही कहलाएगी।
मैं एक संगठन का कार्यकर्ता हूं। आज से करीब 30 साल पुरानी बात है। तब मेरी उम्र 20-21 साल रही होगी। हिमाचल प्रदेश के ***पुर में हमारा शिविर था। हम हिमाचल और अन्य प्रदेशों से आए करीब 50 कार्यकर्ताओं को एक बड़ी सी पुरानी कोठी में ठहराया गया था, जिसके बीच में कुआं था, जो बंद पड़ा था। 2-3 दिन तक सब ठीक रहा। चौथे दिन मुझे मेरे साथी ने उठाया। उसने कहा कि कोई बाहर लकड़ी काट रहा है। मैंने घड़ी देखी तो डेढ़ बज रहा था। मैंने सोचा कि कोई कार्यकर्ता साथी होगा जो सुबह के लिए खाना बनाने के लिए लकड़ी काट रहा होगा। तो मैंने उसे बताया कि सो जाए, टेंशन न ले। वह भी सो गया।
अगले दिन सुबह उठे तो हल्ला मचा था कि कोई सारे बर्तन और औजार चुराकर ले गया। अब समझ आया कि रात को कोई लकड़ी नहीं काट रहा था, सामान चुरा रहा था। मन ही मन मैंने कोसा खुद को। मेरे उस साथी ने सबको बताया कि मैंने तो रजनीश को बताया था रात को कि आवाज हो रही है। मैं थोड़ा झेंपा भी। बहरहाल, गांव वालों ने मदद की और उनके सहयोग से लंच नसीब हुआ। फिर रात को सोए तो रात को फिर वैसी ही आवाज। इस बार 2-3 लड़के खिड़की से बाहर झांक रहे थे। जिज्ञासा में मैंने भी बाहर देखा। नजर आया कि अंधेरे के बीच कोई सफेद कपड़े पहनी आकृति कुएं के पास कुछ कर रही है, जिससे ठक-ठक की आवाज आ रही है।
हमने अंदर के सब लड़कों को बुलाया और बाहर की लाइट ऑन की। हैरानी इस बात की है कि अंधेरे के बीच को सफेद आकृति दिख रही थी, लाइट जलते ही वह नजर नहीं आई। वहां कोई भी नहीं था। यह भ्रम मुझे अकेले को नहीं, उस कमरे में सो रहे 7 और साथियों को हुआ। हमने शोर मचाया और अन्य कमरों मे सो रहे साथी भी बाहर आ गए। आयोजक आदि भी जागे और उन्होंने कहा कि भ्रम है, कुछ नहीं सो जाओ।
हम जैसे-तैसे सोए। अगली सुबह उठे और दिन भर विभिन्न क्रिया कलापों के बाद सोने की कोशिश करने लगे रात को। इस बार मैंने अपने 5 और दुस्साहसी दोस्तों के साथ बाहर बरामदे में सोने की योजना बनाई। हम कुछ देर तो जगे, बातें करते रहे और न जाने कब सबको नींद आ गई। जब मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि खेतों में पड़ा हूं। मैं हैरान था कि मैं यहां ऐसे-कैसे पड़ा हूं। सुबह होने को थी, मगर अंधेरा अभी ठीकठाक था।
मैंने उठकर घबराट में आसपास देखा तो दूर-दूर तक खेत थे और एक तरफ नाला था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने दूर जलदी एक रोशनी की तरफ बदहवास भागना शुरू कर दिया। मुझे इस दौरान लग रहा था कि कोई मेरे पीछे न हो। मैं करीब डेढ़ कीलोमीटर दौड़कर उस घर तक पहुंचा, जहां लाइट जल रही थी और उनका दरवाजा पीटने लगा। महिला ने दरवाजा खोला, मुझे देखकर उसके मुंह से चीख निकली। उसका परिवार पूरा बाहर आ गया। सामने वाले लोग भी घबरा गए, मगर मैंने घबराहट में अपने साथ हुआ घटनाक्रम कह सुनाया।
उन लोगों ने मुझे आंगन में बिठाया और पनी पिलाया। उन्होंने बताया कि मैं नाले के दूसरी तरफ आ गया हूं। उस तरफ वह कोठी है, जहां कोई कार्यक्रम चल रहा है। उसने बताया कि उस कोठी में कोई नहीं रहता। कई सार पुरानी कोठी है एक लाला की, जिसमें पूरे खानदार ने कुएं में कूदकर खुदकुशी कर ली थी और बंद पड़ी है। खैर, मुझे उन्होंने वहां छोड़ा, जहां हम लोग ठहरे हुए थे। वहां जाकर पता चला कि मैं ही नहीं, मेरे साथ बाहर सो रहे 4 साथी भी गायब हैं। उनकी तलाश चल रही थी। मैंने अपने साथ हुआ वाकया सुनाया तो सब लोगों ने उन्हें ढूंढने की कोशिश शुरू कर दी। कुछ देर बाद पता चला कि वे चारों बगल के मकान के साथ लगाए गए धान की फसल के ढेर पर सोए हुए हैं। उन्हें जगाया गया तो वे आधी नींद में थे और उन्हें भी पता नहीं चला कि वे यहां कब आए थे।
सब लोग यह आरोप लगाने लगे कि हम पांचों बाहर सोए ही इसलिए थे ताकि कोई नशा कर लें और हमारी यह हालत नशे की वजह से हुई है। क्योंकि हम सब अलग-अलग जगहों से थे, इसलिए किसी को पता नही ंथा कि किसी के बारे में। मैंने आज तक कोई नशा नहीं किया और न उस वक्त किया। मगर कोई यकीन करने को तैयार नहीं। उन्हें लगा कि हमने भांग खा ली थी। मगर हमें लग रहा था किसी और ने हमें भांग खिला दी होगी। खैर, वह दिन जैसे-तैसे गुजरा और यह तय हुआ कि यह जगह मैं छोड़ दूंगा अगले दिन। लेकिन उस रात को उन लोगों की भी हालत खराब हो गई, जो हमारे ऊपर शक कर रहे थे।
आधी रात को बगल वाले कमरे से शोर आने लगा। हम दौड़े-दौड़े गए तो देखा कि वहां रहने वाले सभी लड़के चीख रहे हैं, उछल रहे हैं, कोई हंस रहा है कोई रो रहा है। कोई अपने कपड़े फाड़ रहा था तो कोई अश्लील हरकतें कर रहा था। दो आपस में लड़ रहे थे और खून तक निकाल दिया था। कोने में एक लड़का जमीन की तरफ देखते हुए खड़ा था और बार-बार बोल रहा था- कुएं विच खून पा, कुएं विच खून पा।
यह मंजर देखकर किसी की भी आत्मा कांप सकती थी। दूसरे कमरों के लड़के भी वहां आए और किसी की हिम्मत न हो उन्हें पकड़ने की। आखिरकार आयोजकों में से एक बुजुर्ग आए और उन्होंने लड़कों को आदेश दिया कि इन्हें पकड़ो। हम लोगों ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की मगर 4-4 लोगों से एक नहीं संभल रहा था। शोर सुनकर पूरे गांव के लोग इस तरफ आ गए थे। उनमें एक पंडित भी थे, जिन्होंने कहा कि इनके ऊपर गंगाजल छिड़को। कोई अपने घर से गंगाजल की बोतल ले आया। हैरानी ये कि गंगाजल छिड़कते ही सब नॉर्मल होते गए।
तय हुआ कि यह जगह खाली कर दी जाएगी और शिविर में हिस्सा लेने आए युवकों को पंचायत घर में शिफ्ट किया जाएगा। अगली सुबह सभी को पंचायत घर ले जाया गया। वहीं सब रहे और रात को सब एक ही हॉल में सोए। कुछ को नींद आई, कुछ को नहीं। शिविर को वक्त से पहले खत्म कर दिया गया। सब लोग अपने-अपने घरों को लौट आए। बाद में हमें जानकारी मिली कि चुराए गए बर्तन और सभी औजार गांव के बाहर के नाले में गिरे पड़े मिले। पता नहीं वह कोठी आज है या नहीं, मगर वहां के साथ जरूर कोई बुरा माहौल जुड़ा हुआ था।
आज मैं सोचूं तो शायद मास हीस्टीरिया हो गया होगा और हमारे खाने में कोई नशीली चीज़ मिला दी होगी किसी ने शरारत वश। मगर बहुत से लोग इन साइंटिफिक थिअरीज़ पर यकीन नहीं करते। गांव वालों का भी कहना था कि इस जगह पर रकना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि कई सालों से बंद पड़ी है और इसके वारिस तक इसे इस्तेमाल नहीं करते। खैर, जो बीत गई सो बात गई। दोबारा ऐसा किसी के साथ न हो।
दियोटसिद्ध में बाबा बालकनाथ जी के मंदिर में हुई एक घटना सोशल मीडिया पर छाई हुई है। मंगलवार को एक मोर उड़कर आया और बाबा बालकनाथ जी की गुफा में उनकी प्रतिमा के सामने बैठ गया। गौरतलब है कि मोर को बाबा बालकनाथ का वाहन माना जाता है।
दियोटसिद्ध के जंगलों में मोर रहते हैं और मान्यताओं के अनुसार बाबा बालकनाथ मोर के जरिए ही शाहतलाई से इस गुफा तक आए थे। मंगलवार को गुफा तक आया मोर बेहद शांत था। चारों तरफ इस घटना की चर्चा है, क्योंकि मोर शर्मीला पक्षी होता है। यह इंसानों से दूरी बनाकर रखता है। मंदिर में भीड़भाड़ वाली जगहों पर इसके आने से लोग हैरान हैं।
बाबा बालकनाथ के नाम पर बनाए एक फेसबुक पेज पर तस्वीरें डाली गई हैं और बताया गया है कि कैसे मोर गुफा तक आ गया। यही नहीं, पुजारी ने मोर को अपनी गोद में उठाया और मोर शांत बैठा रहा। इस घटना को लोग शुभ मान रहे हैं।
दिल्ली के वसंत विहार में 23 साल की एक युवती का अपहरण करके चलती कार में गैंगरेप का मामला सामने आया है। तीनों आरोपियों को अरेस्ट कर लिया गया है।
प्रतीकात्मक तस्वीर।
हिंदी अखबार ‘अमर उजाला’ की खबर के मुताबिक पुलिस ने बताया है कि मूल रूप से हिमाचल की रहने वाली युवती दिल्ली के मुनीरका में रहती है। प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली यह युवती मंगलवार रात अपनी सहेली के साथ प्रिया सिनेमा में मूवी देखने गई थी। रात सवा 3 बजे जब वह प्रिया कॉम्प्लेक्स से बाहर निकली, कार सवार तीन युवकों ने उसे गाड़ी में खींच लिया।
आरोपियों ने चलती गाड़ी में और कई जगह पर गाड़ी रोककर रेप किया। इस बीच युवती की सहेली ने गाड़ी का नंबर नोट कर लिया था और तुरंत 100 नंबर पर फोन करके पुलिस को बता दिया था। पुलिस ने हरकत में आकर तलाश शुरू कर दी।
रजिस्ट्रेशन नंबर के आधार पर पुलिस को पता चला कि कार किसकी है। इसके बाद कार के मालिस ने बताया कि उसने उदय सेहरावत नाम के शख्स को गाड़ी दी हुई है। सुबह करीब साढ़े 4 बजे आरोपियों ने युवती को वसंत विहार छोड़ दिया, जहां से पुलिस ने उसे अस्त-व्यस्त हालत में पाया। मेडिकल में रेप की पुष्टि हुई है और तीन आरोपियों उदय सेहरावत, विनीत और राजवीर को अरेस्ट कर लिया गया है।
अगर बच्चा कोई गलती करे तो उसे समझाना पैरंट्स का फर्ज होता है। क्या हो अगर किसी का बेटा गालियां देता हो और कोई पिता से इसकी शिकायत करे। जाहिर है, हर पिता कहेगा कि मेरे बेटे को ऐसा नहीं करना चाहिए और वह अपने बेटे को समझाएगा भी। मगर कांगड़ा से सांसद रह चुके चंद्र कुमार अलग ही सोच रखते हैं। उनके बेटे और हिमाचल सरकार में सीपीएस नीरज भारती फेसबुक पर अभद्र भाषा इस्तेमाल करते हैं। जब इस बारे में उनसे पूछा जाता है, तो वह अपने बेटे का बचाव करते हैं।
हिंदी अखबार पंजाब केसरी के मुताबिक जब चंद्र कुमार से नीरज भारती की टिप्पणियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘नीरज भारती जो कुछ कर रहा है, वह सही है।’ बकौल चंद्र कुमार ऐसी टिप्पणियां जब राज्य में भाजपा के कार्यकाल में कांग्रेस के आला नेताओं के खिलाफ की जाती थी भाजपा कहां सोई हुई थी।
चंद्र कुमार (बाएं) और नीरज भारती।
चंद्र कुमार ने कहा, ‘सोशल मीडिया पर हर किसी को कुछ भी करने की आजादी है तो भाजपाई भी बयानबाजी कर रहे हैं। इस पर हो-हल्ला करने की क्या जरूरत है।’
यही नहीं, अनुराग ठाकुर और सुषमा स्वराज पर ताजा अभद्र टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने क्या कहा, यह चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा, ‘जब सुषमा स्वराज राजघाट पर नाची थीं और भाजयुमो राष्ट्रीय अध्यक्ष उस तमाशे को देख रहे तो उन्होंने इस पर नाराजगी क्यों नहीं जाहिर की थी?’
बहरहाल, पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री चंद्र कुमार को पता होना चाहिए कि सोशल मीडिया पर किसी को कुछ भी करने की आजादी का मतलब किसी को गालियां देना नहीं है। दूसरी बात यह है कि नेता और चुने हुए प्रतिनिधि को अपने पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। वे आपस में अपने घर में इस तरह की बातें करते हों तो करें, सार्वजनिक मंचों पर ऐसा करने से परहेज करना चाहिए। साथ ही अगर कोई दूसरा गलत व्यवहार कर रहा हो तो उसके स्तर पर उतरकर गलत व्यवहार करना समझदारी नहीं होती।
इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता चंद्र कुमार के इस स्टैंड के बाद बैकफुट पर नजर आ रहे हैं। एक सीनियर नेता का इस तरह से गलत काम को डिफेंड करना उन्हें रास नहीं रहा। कुछ नेता इसे पुत्रमोह में गरिमा खोना भी करार दे रहे हैं।
आज आप जो पढ़ने जा रहे हैं, यह किसी एक युवक को हो रही समस्या की बात नहीं है, बात सरकारी महकमों की टरकाने वाली आदत से जुड़ी हुई है। तस्वीर में दिख रहे युवक का नाम अमित है। चंबा के सलूणी में ग्राम पंचायत ठाकरी मट्टी का एक गांव है- मकडोगा। इस गांव में अमित का घर है और उनके घर से मुख्य सड़क की दूरी करीब 600 मीटर है। प्रदेश में बहुत से गांव ऐसे हैं, जहां पर कई किलोमीटर दूर सड़क है और वे कटे हुए हैं। इस हिसाब से 600 मीटर की दूरी कुछ भी नहीं लगती, मगर अमित के लिए यही दूरी परेशानी का सबब बन गई है। दरअसल अमित जन्म से ही 60 फीसदी विकलांग हैं और चलने-फिरने में असमर्थ हैं। वह वीलचेयर की मदद से ही मूव कर पाते हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा।
सड़क से काफी ऊंचाई पर उनका घर है। कहीं भी आना-जाना हो, उनके लिए मुश्किल हो जाती है। गांव से सड़क तक आना और फिर सड़क से वापस घर तक जाना बहुत मुश्किल काम है। उपचार के लिए महीने में 2-3 बार अस्पताल भी जाना पड़ता है। ऐसे में उन्हें कई बार रिश्तेदारों के यहां महीनों रुकना पड़ता है तो कई बार पिता जी के साथ डलहौजी में। उनकी मांग है कि गांव को सड़क से जोड़ा जाए, ताकि वह भी सामान्य लोगों की तरह जीवनयापन कर पाएं।
अच्छी बात यह है कि उनके घर तक के रास्ते में जितने भी लोगों की जमीन पड़ती है, वे सड़क के लिए जमीन देने को तैयार हैं। पिछले कई सालों से अमित सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं। करीब ढाई साल पहले उन्होंने आयुक्त विकलांगजन हिमाचल प्रदेश को अपनी समस्या के बारे में बताया था और आयुक्त ने जिला उपायुक्त और जिला कल्याण अधिकारी को इस ओर ध्यान देकर कदम उठाने के लिए कहा था।
लोक निर्माण विभाग ने गांव से नीचे दरोल नाला से सर्वेक्षण किया और पाया कि सिर्फ 600 मीटर सड़क बननी है। गांव के लोग निजी भूमि देने को भी तैयार है और इस बारे में लोक निर्माण विभाग को एफिडेविट भी दे चुके हैं। बावजूद इसके अभी तक सड़क बन ही नहीं पाई।
अमित दोनों पैरों की विकलांगता के वावजूद खुद कई बार एडीएम, जिला उपायुक्त चम्बा, जिला कल्याण अधिकारी चम्बा, से मिल चुके हैं, मगर इन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला। उन्होंने सांसद शांता कुमार को भी इस बारे पत्र लिखा, मगर जवाब आय़ा कि राज्य सरकार का मामला है और वह कुछ नहीं कर सकते। एक लेटर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश को लिखा गया और वहां से सख्त आदेश आने के बाद कागजी कार्रवाई तो हुई, मगर इसे टाल दिया गया।
आखिर में परिवार सहित अमित ने डलहौज़ी की विधायक से भेट की और उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत ही सड़क निर्माण करवाने का आशवासन दिया। इस तरह से लोक निर्माण विभाग हर बार दो-तीन महीनों में सड़क निर्माण कार्य शुरू करने का आशवासन देता रहा। इसके बाद भी कोई प्रभावी कार्यवाही होती नहीं दिखी। एक लेटर राष्ट्रपति और महामहिम राज्यपाल हिमाचल प्रदेश को लिखा। राष्ट्रपति भवन ने अपर मुख्य सचिव अनुपम कश्यप लोक निर्माण विभाग को लेटर भेजा व उचित कार्यवाही करने को लिखा। प्रधान सचिव राज्यपाल हिमाचल प्रदेश, राज भवन शिमला से भी अतिरिक्त मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग को आवश्यक कार्यवाही करने का लिखित निर्देश हुआ, मगर अब तक कुछ नहीं हुआ।
आज भी अमित को 600 मीटर सड़क के लिए जगह-जगह भटकाया जा रहा हैं। पिछले तीन साल से निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ। विकलांग अधिकार अधिनियम-1995 के अनुसार इस सड़क को तुरंत बनाया जना चाहिए था। वैसे भी यह सड़क एक व्यक्ति के लिए नहीं, पूरे गांव के लिए फायदेमंद होगी। आखिर में अमित ने फैसला लिया है कि एक महीने के अंदर काम शुरू नहीं हुआ तो परिवार के साथ जिला प्रशासन के दफ्तर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे।
एचआरटीसी कर्मचारियों की हड़ताल को लेकर परिवहन मंत्री जी.एस बाली ने अपने फेसबुक पेज के माध्यम से टिप्पणी की है। भावनात्मक रूप से बाली ने लिखा है कि वह हमेशा से HRTC कर्मचारियों की भलाई के लिए काम करते रहे हैं। उन्होंने कर्मचारियों से काम पर वापस लौटने की अपील की है और तब तक जनता से गुजारिश की है कि अन्य वैकल्पिक साधनों को इस्तेमाल करे। बाली की फेसबुक पोस्ट का टेक्स्ट नीचे है-
‘मैंने HRTC को हमेशा अपना परिवार समझा है। जब से निगम की स्थापना हुई है, तबसे लेकर आज तक का रेकॉर्ड देख लिया जाए, यह साफ हो जाएगा कि किसके कार्यकाल में निगम और इसके कर्मचारियों के हित में सबसे ज्यादा फैसले लिए गए, किसने निगम में सुधारवादी कदम उठाए और कौन इसे आधुनिकता की तरफ ले गया।
जहां तक अभी की हड़ताल की बात है, पेंशन वगैरह जैसे तात्कालिक मामलों संबंधित मांगें मान ली गई हैं और अन्य को मुख्यमंत्री जी के पास भेज दिया गया है। फिर भी कुछ कर्मचारी नेता, जो महिलाओं और अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार के लिए चर्चित रहे हैं, भोले-भाले कर्मचारियों को अपनी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
मैं मंत्री पद पर बैठा हूं, इसलिए मैं अपनी जिम्मेदारी समझता हूं कि न तो मेरे तहत आने वाले विभागों के कर्मचारियों को कोई दिक्कत हो, न उनके परिवार को और न ही उन विभागों से वास्ता रखने वाली जनता को। इसके लिए मैंने हमेशा जी-जान से कोशिश की है और कोई मुझे निजी स्वार्थ के लिए ब्लैकमेल नहीं कर सकता।
निगम के कर्मचारियों से अपील है कि वे काम पर लौट आएं, अपने विवेक से काम लें। जनता से गुजारिश है कि वह कारपूलिंग या अन्य वैकल्पिक परिवहन साधनों का प्रयोग करे। बाकी यह मामला माननीय हाई कोर्ट से संज्ञान में है, आखिरी फैसला उसी पर निर्भर करता है।’
गौरतलब है कि कर्मचारी हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद हड़ताल पर गए हैं और कोर्ट ने कहा है कि आदेश के उल्लंघन पर कार्रवाई भी होगी। इस बीच निगम को एक दिन काम न होने से 2 करोड़ रुपये का घाटा होने का अंदाजा लगाया गया है।