हिमाचल कांग्रेस का एक सीनियर मंत्री आम आदमी पार्टी के संपर्क में?

शिमला।।
बीजेपी नेता नवजोत सिंह सिद्धू के राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद अटकलें की हैं कि वह आम आदमी पार्टी जॉइन कर सकते हैं। इस बीच हिमाचल में भी चर्चा है कि कांग्रेस के एक सीनियर नेता और कैबिनेट मंत्री आम आदमी पार्टी के संपर्क में है। इस बात में कितनी सच्चाई है, यह तो मंत्री खुद बता सकते हैं मगर चारों तरफ इस बात की चर्चा हो रही है।

पिछले चुनावों के दौरान खुद को मुख्यमंत्री कैंडिडेट बनाने की भरपूर कोशिश के बाद नाकाम रहने वाले यह मंत्री एक टेप को लेकर विवाद में भी फंस चुके हैं और पिछले दिनों कैबिनेट मीटिंग से भी गायब रहे। उसी के बाद से चर्चा है कि मंत्री कांग्रेस आलाकमान से नाराज हैं। उनकी नाराजगी ऐसे भी पता चलती है कि बाकी सभी मंत्री जहां आय से अधिक संपत्ति मामले में घिरे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर विश्वास जता चुके हैं, यह मंत्री खुलेआम इस बारे में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

Courtesy: Rediff
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राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि इन मंत्री की असली नाराजगी आलाकमान से है, जो वीरभद्र की बढ़ती उम्र के बावजूद उन्हें सत्ता में न सिर्फ बनाए हुए है, बल्कि अगले चुनावों के लिए भी उन्हीं पर दांव खेलने को तैयार दिख रही है। साथ ही इतने मामलों में घिर जाने के बावजूद वीरभद्र को हटाकर अगली पीढ़ी को नेतृत्व न सौंपने से भी वह हताश हो चुके हैं।

बहरहाल, राजनीति में कब कौन सी अटकल चलने लगे और कौन सी बात बाद में अफवाह निकले, यह कहा नहीं जा सकता। मगर आम आदमी पार्टी को अगर हिमाचल चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना है, तो उसे कांग्रेस या अन्य पार्टियों के दिग्गज अपने साथ मिलाने ही होंगे। हो सकता है इसी रणनीति के तहत वह भी कांग्रेस के इन सीनियत मंत्री को तवज्जो दे रही हो।

कोर्ट ही बचा सकता है हिमाचल को ड्रग्स के मकड़जाल से

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हिमाचल प्रदेश में भी नशे का कारोबार बढ़ता जा रहा है। पहले भांग के उत्पादों के लिए हिमाचल बदनाम था ही, युवा पीढ़ी कैपसूल और इंजेक्शन जैसे नशे भी करने लगे हैं। अखबार ऐसी खबरों से भरे पड़े हैं। ऐसे में इस विषय पर लेखक ने प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है, जिसे उन्होंने हमें भी भेजा है। हम इसे यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।

श्री मंसूर अहमद मीर जी,
माननीय मुख्य न्यायाधीश
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय।

विषय: नशे से सबंधित मामलों के लिए अलग फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन हेतु।

श्रीमान,
बहुत दुःख के साथ आपको यह सूचित करना पड़ रहा है की नशे के सौदागरों ने हिमाचल जैसे शांत प्रदेश में भी अपनी पकड़ बना ली है। पिछले दिनों से प्रदेश के अखबार इन्ही खबरों से भरे हुए हैं की नशे की भारी खेप अलग अलग स्थानों पर पकड़ी जा रही है। चिंता की विषय यह हो गया है की नशे के यह सौदागर नाबालिगों और छात्रों को अपना शिकार बनाने में लगे हैं। स्कूल जाते बच्चों तक को प्रतिबंधित दवाइयों कैप्सूलों और चरस की सप्लाई मोहल्ले गांव तक करने तक करने के लिए नेटवर्क बन चुका है।

श्रीमान हिमाचल प्रदेश मध्यम आय वाले नागरिकों का प्रदेश हैं। यहाँ खेती बाड़ी से भी लोगों को इतनी आय नहीं है। अभिवावक अपनी मेहनत की जमा पूंजी से बच्चों को शिक्षण संस्थानों में भेज रहे हैं ताकि वो अच्छी शिक्षा के साथ नौकरी लेकर अपना जीवन यापन सम्मान पूर्वक कर सकें। परन्तु अभी पिछले कुछ मामलों में देखा गया की यही शिक्षण संस्थान नशे के सौदागरों के लिए मार्किट बन गए हैं। ऐसे हालात में तो प्रदेश की युवा पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। नशे की गर्त में फंसा युवा नशे की आपूर्ति के लिए गैरकानूनी रूप से धन कमाने की तरफ भी आकर्षित होगा। जिससे सभ्य समाज के ढांचे और शांति जिसके लिए प्रदेश को माना जाता रहा है उसका भी पत्तन होगा।

Drugs

महोदय प्रदेश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं आपसे दरसखवात करता हूँ की प्रदेश में ऐसे कुकृत्यों में सलिम्पत अपराधियों को जल्द से जल्द सज़ा मिले इसके लिए अलग से एक फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए जो इन मामलों में सुनवाई करे । समाज को पंगु और पीढ़ी को बर्बाद करने पर तुले ऐसे अपराधियों को कम समय के अंदर कड़ी सजा मिलेगी तो समाज में एक सन्देश जाएगा। कुछ दिन पहले मंडी जिला न्यायालय के फैसले को बदलते हुए माननीय उच्च न्यायालय की पीठ ने नशे के कारोबार में सलिम्पत आरोपियों को 15 से बीस साल की सज़ा का जो ऐतिहासिक फैसला सुनाया है उस फैसले से अपराधियों और इस गोरखधंदे से जुड़े लोगों के बीच अवश्य ऐसा ही सन्देश गया होगा।

मुझे उम्मीद है आप जनहित से जुड़े इस विषय पर अवश्य संज्ञान लेंगे।

भवदीय,
हिमाचल प्रदेश का नागरिक
आशीष नड्डा।

(लेखक आईआईटी दिल्ली में रिन्यूएबल एनर्जी की फील्ड में रिसर्च कर रहे हैं। मूलत: हिमाचल के बिलासपुर से हैं और प्रदेश से जुड़े मामलों पर लिखते रहते हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

लाहौल-स्पीति की बेटी रवीना ठाकुर छू रही हैं आसमान

शिमला।।

हिमाचल का खूबसूरत जिला लाहौल-स्पीति टैलंट के मामले में किसी भी फील्ड में हिमाचल और देश के अन्य हिस्सों से पीछे नहीं है। यहां एक ऐसा गांव है, जहां के लगभग हर घर से प्रसाशनिक सेवा में लोग मौजूद हैं। यह ऐसा जिला है, जहां लिंग अनुपात में बेटियां बेटों से आगे हैं। बर्फीले रेगिस्तान की धरती पर छोटे-छोटे खेतों में हरी सब्जियां उगाते मेहनतकश लोगों की बात की जाए तो भी लाहौल-स्पीति ने हिमाचल प्रदेश को हमेशा गौरवान्वित किया है।

इसी जिले से एक बेटी रवीना ठाकुर कमर्शल पायलट के लाइसेंस के साथ आसमान में उड़ान भरती हैं। इंडिगो एयरलाइन्स में बतौर पायलट कार्यरत रवीना ठाकुर प्रदेश की बेटियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। रवीना ठाकुर का जन्म 6 जुलाई 1988 को रवि ठाकुर के घर में हुआ, जो वर्तमान में लाहौल स्पीति से विधायक भी हैं।


रवीना ठाकुर ने अपनी मूल शिक्षा मनाली शिमला और दिल्ली से ली उसके बाद उन्होंने अमेरिका में कमर्शल पायलट का कोर्स किया। रवीना ठाकुर अपने नाम के साथ सोशल मीडिया पर अपने जिले का नाम जोड़ के रखती हैं। अक्सर पारम्परिक वेशभूषा में लाहुल स्पीति के लोगों से मिलते हुए उन्हें देखा जा सकता है।

दलाई लामा के साथ रवीना।
दलाई लामा के साथ रवीना।

उनकी दादी स्वर्गीय लता ठाकुर 1972 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस की तरफ से जीत कर आईं थीं ट्राइबल हिमाचल से एक महिला को राजनीति में आगे आना बहुत बड़ी बात थी। हालंकि दुनिया का सोचना था कि ट्राइबल इलाकों के लोग बहुत कंजर्वेटिव होते हैं, परन्तु हिमाचल का ताज लाहौल-स्पीति हमेशा इसका अपवाद रहा और यहाँ के लोगों ने बेटियों को हमेशा आगे रखा है। गौरतलब है की प्रदेश की पहली महिला पायलट अपराजिता लाल भी लाहौल स्पीति से सबंध रखती हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के छोटे बेटे अरुण ने DGP और अधिकारियों को धमकाया

शिमला।।

सरकार अभी बदली नहीं, मगर नेता पुत्रों के तेवर अभी से बदल गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे और अनुराग ठाकुर के भाई अरुण ने फेसबुक पोस्ट पर डीजीपी और अन्य पुलिस अधिकारियों को धमकाने वाली भाषा इस्तेमाल की है। उन्होंने पहले तो यह लिखा कि मुख्यमंत्री पुलिस अधिकारियों पर हमारे ऊपर केस बनाने का दबाव डाल रहे हैं, फिर पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दे डाली।

अरुण ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ‘मुख्यमंत्री जी पिछले दो तीन दिन से लगातार पुलिस अधिकारियों पर दवाब बना रहें हैं जैसे तैसे धूमल जी अनुराग जी और मुझ पर कोई भी केस बनाया जाए।

मैं इसका स्वागत करता हूँ और चुनौती देता हूँ अधिकारियों को कि केस बनायें पर उनका हश्र क्या होगा इसको ध्यान में रखें। मुख्यमंत्री का ख़ुद का क्या हाल हुआ है पिछले केस बना कर उसको देख लें। मुख्यमंत्री केवल चंद दिनों के मेहमान हैं उसको बाद अपना हाल सोच कर ही कोई क़दम उठाएँ

और DGP संजय जी को एक सुझाव-धृतराष्ट्र और दुर्योधन के संजय ना बने। जीत हमेशा सत्य की होती है, संजय की नहीं। संयम में रहें।

राजनीतिक बयानबाजी नई चीज नहीं है और पुलिस अधिकारियों पर पहले भी राजनेता सत्ता के दबाव में काम करने का आरोप लगाते रहे हैं। मगर पुलिस अधिकारियों को अंजाम देखने की खुलेआम धमकी देना शायद पहली बार हुआ है। मुख्यमंत्री को चंद दिनों का मेहमान बताते हुए पुलिस को ‘हश्र’ और ‘हाल’ देख लेने की धमकी देना क्या खुद पुलिसवालों पर दबाव बनाना नहीं है?

राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि इस तरह की बयानबाजी बीजेपी को भारी पड़ सकती है। मंडी से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को बताया कि डीजीपी प्रदेश पुलिस का मुखिया होता है और महकमे का सबसे बड़ा अधिकारी होता है। उसे इस तरह से धमकी नहीं दी जानी चाहिए। मुझे यह जानकर अफसोस हुआ कि शिमला से ही हमारी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री रहे एक नेता के बेटे ने भी इस पोस्ट पर कॉमेंट किया है, जो प्रोत्साहन की तरह है। व्यक्तिगत लड़ाई में पार्टी का नुकसान हो जाए, यह बात ठीक नहीं।’

बहरहाल, सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर किसी मामले में अरुण के खिलाफ जेनुइन यानी असली केस भी होता है, तो भी क्या वह हाल सोचने की धमकी देंगे? क्या अरुण यह साबित करना चाहते हैं कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो पुलिसकर्मियों को प्रताडि़त किया जाएगा? क्या उनके पिता पहले भी ऐसे ही अधिकारियों सो प्रताड़ित करते रहे हैं, जिससे कि वह इस बार भी धमकी दे रहे हैं?

Arun

गौरतलब है कि अनुराग ठाकुर के साथ-साथ अरुण पर भी एचपीसीए केस में कई आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर सरकार बदलती है तो क्या पुलिस अधिकारी ऐसे ही किसी मामले की निष्पक्ष जांच कर पाएंगे या उसे रफा-दफा कर दिया जाएगा? बहरहाल, अभी सरकार बदली नहीं है और यह भी तय नहीं है कि अगला सीएम कौन होगा। नड्डा के आने की अटकलें भी तेज हैं। मगर सोशल मीडिया पर चर्चा है कि इस तरह की बयानबाजी दिखाती है कि प्रदेश की राजनीति किस तरह से चलती है और अधिकारियों पर कितना दबाव रहता होगा।

इस बीच कानून के जानकारों का कहना है कि और मामलों में पुलिस अरुण के खिलाफ केस बनाए या न बनाए, मगर इस पोस्ट के आधार पर उनके खिलाफ न सिर्फ केस हो सकता है, बल्कि कार्रवाई भी हो सकती है। सरकारी कर्मचारियों को धमकी देने समेत कई धाराओं में पुलिस न सिर्फ मामला दर्ज कर सकती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर गिरफ्तार भी कर सकती है।

टेंट के बाहर कोई महिला रोने लगी और अंदर मेरी गर्लफ्रेंड

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर विमर्श कर सकें। इस घटना की वजहों या लेखक के अनुभव पर आपके कया विचार हैं, नीचे कॉमेंट करें। 

  • समर्थ सोलंकी

मैं और मेरी पत्नी पूनम एकसाथ कॉलेज से पढ़े हैं। हम दोनों को ही घूमना-फिरना पसंद है। हमारी दोस्ती भी इसी कॉमन इंटरेस्ट की वजह से हुई थी। बात उन दिनों की है जब हम दोनों चंडीगढ़ के पास पंजाब के एक निजी संस्थान से बी.टेक कर रहे थे। मेरे पास बुलेट थी और मैं लंबे समय से पूनम को बोल रह था कि चलो मनाली चलते हैं घूमने के लिए बाइक पर। पूनम अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से थी और मैं कुरुक्षेत्र (हरियाणा) से। पूनम हमेशा बोलती थी कि चलना है तो बस से चलो, बाइक से नहीं चलेंगे। मगर मैंने ठान ली थी कि जाना है तो बाइक से ही चलेंगे।

जून का आखिरी हफ्ता था शायद या जुलाई का पहला, मगर बरसात होने लगी थी। हम दोनों एक क्लासमेट की बर्थडे पार्टी में गए थे। वहं पर शराब का भी दौर चला। हम सब लोग नशे में थे। इसी बीच प्लान बना कि चलो कहीं घूमने चला जाए। दोस्त बोलने लगे कि कसौली चलते हैं लालू की गाड़ी में। लालू हमारा दोस्त, जो चंडीगढ़ का रहने वाला था और उसके पास कार थी। हम 8-9 लोग थे और उनमें 7 लोग जाने को तैयार। मगर लालू ने कह कि उसके मम्मी-पापा उसे नहीं जाने देंगे। इसलिए प्रोग्राम कैंसल हो गया। हम रात के 9 बजे वहां से निकले। पूनम साथ थी और मैं और बाइक पर उसे उसके पीजी तक छोड़ने जा रहा था। रास्ते में उसने मुझे बोला कि चलो न, हम दोनों ही चलते हैं कहीं घूमने। मैंने कहा कहां? बोली-मनाली। मैंने कहा अब नहीं चलेंगे, पी हुई है हमने और रात भी हो गई है। मगर वह अड़ी रही। थोड़ी आनाकानी के बाद मैंने कहा कि ठीक है चलो।

मैंने उसे उसके पीजी उतारा औऱ कहा कि कुछ कपड़े पैक कर लो। मैं अपने पीजी आया और सैडल बैग में कुछ काम की चीज़ें औऱ कपड़े डाले और बाइक पर उसे बांध दिया। अपने एक सीनियर विरेंद्र भाई को फोन किया कि उनका टेंट चाहिए। उन्होंने कहा कि ले जाओ। उनके घर तक जाकर मैंने टेंट वाला बैग लिया और उसे भी बाइक पर बांध लिया। रात के पौने 11 हो चुके थे, जब तक मैं पूनम के पीजी पहुंचा। तब तक बियर का नशा भी उतर चुका था। मैंने पूनम से कहा कि अभी शिमला चलेंगे और रात को विक्की (मेरा कजन) के यहां रुकेंगे और अगले दिन वहां से उसकी गाड़ी लेकर घूमते हुए मनाली निकलेंगे। पूनम ने कह कि ये कौन सा अजीब रूट बना रहे हो। मगर मैंने कहा कि इस मौसम में बाइक से जना सही नहीं है। ना-नुकर करते हुए पूनम ने हां कह ही दी।

हम चले और कालका जैसे ही पहुंचे, बारिश शुरू हो गई। न रेन कोट न कुछ, बस बारिश में भीगते हुए जा रहे। कोई गाड़ियां भी नहीं थी, मगर धुंध सी अजीब सी। रास्ते में बोर्ड दिखा कसौली जाने का। मन किया कि बारिश में यहीं आसपास कोई होटेल ले लिया जाए और सुबह निकला जाए। मगर पूनम पर जाने क्या धुन सवार थी, बोली मजा आ रहा है, कोई बात नहीं धीरे-धीरे चलो अब विक्की के यहीं रुकेंगे। बारिश में बाइक की स्पीड तेज नहीं कर पा रहा था क्योंकि आगे दिख नहीं रहा था कुछ। ऊपर से ठंडी बारिश अलग। हमें नहीं भी तो साढ़े 4 या शायद साढ़े 5 घंटे लग गए शिमला पहुंचने में। बस इतना ध्यान है कि जब हम विक्की के यहां पहुंचे, आसमान में उजाला होने लगा था। विक्की ने दरवाजा खोला और हम नहाकर और कपड़े बदलकर सो गए।

नींद खुली 8 बजे, जब विक्की चाय और ब्रेड टोस्ट लेकर खड़ा था और उसने हमें जगाया। हमने चाय पी और फिर सो गए। इस बीच विक्की अपने कॉलेज चला गया, जो एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था। विक्की वैसे तो मुझसे 5 साल बड़ा है मगर हम दोनों में खूब छनती है। खैर, नींद खुली अब 2 बजे। विक्की को शाम 6  बजे लौटना था। अब मुझे जाने क्या सूझी कि मैंने पूनम को कह कि चलो, बाइक से ही चलते हैं, बारिश होगी तो भीगेंगे ही, और कया होगा। पूनम भी तैयार हो गई। किसी ने हमें बताया कि नारकंडा-शोजा होते हुए जाओगे तो ज्यादा वक्त लगेगा क्योंकि सड़कों की हालत ठीक नहीं है। हमें सलाह दी कि सुंदरनगर मंडी होते हुए जाओ, सड़कें भी अच्छी हैं और सफर ठीक रहेगा। 3 बजे हम शिमला से चले और रुकते-रुकाते रात के 12 बजे के करीब कुल्लू पहुंच गए। अब मुझे जाने क्या खुराफात सूझी कि रात टेंट में बितानी है।

पूनम ने कहा भी आगे चल लो, कोई होटेल देख लो। मगर मैंने कहा कि थक चुका हूं और आगे सुबह ही जाएंगे। शायद मन में एक उत्साह भी था टेंट में रुकने का, क्योंकि पहली बार टेंट में रुकने जा रहा था। तो मैंने सड़के के किनारे से एक रास्ता जाता देखा, उसी में बाइक घुसा दी। अंधेरा था और हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी। आगे चलकर नदी के किनारे वह जगह थोड़ी चौड़ी सी हो गई थी। तो मैंने देखा कि पहाड़ी के साथ टेंट लगाया जा सकता है। पास से ही नदी बह रही थी मस्त और उसका संगीत बड़ा प्यारा लग रहा था। मैंने बाइक को स्टैंड पर लगाया और उसकी लाइट में टेंट लगाने लग गया। समझ ही नहीं  आ रहा था कि कौन सी डंडी कहां लगनी है और कौन सा धागा कहं बांधना है। करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद जैसे-तैसे टेंट लगाया। फिर हम टेंट के अंदर गए और वहां पर बैटरी से चलने वाली लाइट ऑन की। कंबल लाए थे, उसमें घुसे ही थे कि लगा किसी ने  टेंट पर पत्थर मारा है। मैंने सोचा कोई शरारत कर रहा होगा। मैं बाहर निकला और शोर किया। देखा कि पहाड़ी के ऊपर की तरफ तो किसी के होने का सवाल ही नहीं है। आसपास भी कोई नहीं दिखा टॉर्च से। फिर मैं अंदर आ गया।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

बाहर अजीब-अजीब आवाजें आनी लगीं। जैसे कोई महिला जोर से चिल्ला रही हो। अब थोड़ी घबराहट हुई। पूनम तो रोने लग गई थी। मैं उसे दिलासा दे रहा था कि ये गीद़ड़ हैं। मगर यकीनन मैं कह सकता था कि गीदड़ नहीं है। तुरंत वे आवाजें तेज हुईं और ऐसा लगा कि पास से ही आ रही हैं। अब हमें साफ महसूस हो रह था कि कोई टेंट की पतली सी झिल्ली की दूसरी ओर बाहर खड़ा होकर ही चिल्ला रहा है। और साफ तौर पर किसी महिला के रोने की आवाज थी। मैंने हाथ में वह चाकू लिया, जो कैंपिंग टूल्स के साथ आया था। और इंतजार कर रहा था कि अगर किसी ने तंबू को छुआ या अंदर आया तो हमला कर दूंगा। उधर पूनम भी चिल्लाने लग गई। शायद वह इतनी डर गई थी कि उसे कोई होश नहीं था। वह भी उसी आवाज में चिल्लाने लगी, जैसे आवाज बाहर से आ रही थी। मैंने पूनम को झकझोरा, मगर वह रोए जा रही थी। अब मेरी **** चुकी थी। मुझे लगा कि आज तो मैं गया। अचानक टेंट जोर-जोर से हिलने लगा। मैं जोर से चीखा कौन है। बाहर से कोई जवाब न आए।

मेरी क्या हालत थी उस वक्त। आप अंदाजा नहीं लगा सकते। मैं हिम्मत हार चुका था, मगर फिर भी हिम्मत बनाए रकने की नौटंकी कर रहा था। क्योंकि मुझे लगता था कि इसी में जान बच सकती है। अचानक वे आवाजें और शोर ऐसे बंद हो गया, जैसे स्विच ऑफ हो गया हो। इस बीच पूनम रोते-रोते बेहोश हो गई थी। मैंने उसके चेहरे पर पानी की बूंदें फेंकी तो वो होश में आई मगर डरी हुई थी। बोली चलो यहां से। मैंने कहा ठीक है। चलता हूं। मैं झटके से तंबू से बाहर निकला हाथ में चाकू लिए तो कुछ नहीं दिखा। फिर मैंने पूनम को बोला कि बाहर निकलो। पूनम को खींचकर बाहर निकाला। उसने आंखें बंद की हुई थी, जैसे देखना ही नहीं चाहती थी। मैंने बाइक स्टार्ट की, पूनम को बैठने को बोला। उसने मुझे जोर से पकड़ लिया था। मैंने बाइइख स्टार्ट की और वापस उस सड़क से मुख्य सड़क की ओर चल दिया, जहां से आया था। ऊपर गया और मुख्य सड़क पर पीछे की तरफ जाने लगा, जहां एक घर की लाइट दिखी थी शुरू में। 2 किलोमीटर बाद उस दुकान के आगे बाइक लगाइ और दरवाजा खटखटाया। उसके पीछे बने घर से एक बंदा आया गुस्से में कि रात में क्या कर रहे हो। मैंने उसे पूरी घटना सुनाई तो उसने कहा कि आप नदी में गए क्यों थे रात को। उसने गालियां भी दी कि हम बाहर से आते हैं और चीज़ों को समझते नहीं हैं।

उसने फिर भी हमें अपने घर के एक कमरे में ठहाराया, चाय पिलाई। उसके बाद घनघोर बारिश शुरू हुई। ऐसी बारिश मैंने कभी नहीं देखी थी। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। अगली सुबह भी हो गई और बारिश रुकी करीब दोपहर 12 बजे। फिर उस बंदे ने अपने किसी रिश्तेदार को फोन किया जो गाड़ी लेकर आया। उसकी गाड़ी में बैठकर हम उस जगह की तरफ चल दिए, जहां हमारा टेंट और बाकी सामान छूटा हुआ था। जैसे ही मैंने दिखाया कि ये रास्ता जाता है, उसने कहा कि ये रास्ता तो नीचे नदी तक रोड़ी और रेता उठाने वाले ट्रैक्टरों के लिए है। उसने गाड़ी उस रास्ते में डाली तो थोड़ी दूर जाने पर जो मंजर दिखा, वह आत्मा को कंपा देने वाला था। नदी पूरे उफान पर थी और जिस जगह हमने टेंट लगाया हुआ था, उसके ऊपर से पानी बह रहा था। न तो टेंट का कहीं अता-पता था न बाकी सामान का। टेंट के अंदर बैग, जिसमें कपड़े, कैंप का सामान, मेरा बटुआ और पूनम का पर्स जिनमें कुछ पहचान पत्र और अन्य चीज़ें थीं, सब बह चुके थे।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि किस्मत का शुक्र अदा करूं जो रात को वह घटना हुई और हम डरकर उस जगह से भागे या किस्मत से शिकायत करें कि रात को वह घटना क्यों हुई और क्या थी। वे आवाजें किसकी थी और कौन हमारे टेंट को क्यों हिला रहा था, हमें समझ नहीं आया। दुकानदार ने बोला कि हो सकता है कोई अच्छी आत्मा रही हो जो ऐसे ही बहकर मरी हो और तुम्हारी मदद कर गई या फिर कोई बुरी आत्मा थी, जो तुम्हारी जान लेना चाहती थी और तुम पहले ही बचकर निकल आए।

मैं और पूनम जानते हैं कि उस रात जो कुछ हुआ, सच था। बाकी लोगों ने यकीन नहीं किया। उन्हें लगता है कि हमारे टेंट पर पहाड़ी से पत्थर गिरे थे और बाहर कोई गीदड़ या अन्य जानवर ही होगा, जो बियाबान में टेंट देखकर कौतूहल में आ गया होगा। हम भी चाहते हैं कि यही हुआ हो। मगर शुक्रगुजार हैं कि जो हुआ, अच्छा हुआ। वरना किसी को पता नहीं चलता कि हम दोनों कहां गए। बह जाते नदी में और कई सालों बाद लाशों या बाइक को उगलती नदी। या फिर नहीं भी उगलती। पूनम नहीं चाहती थी कि मैं इस घटना को सबके सामने रखूं, क्योंकि उसको लगता है कि ऐसी बातों का जिक्र किसी से नही ंकरना चाहिए क्योंकि ये खास होती हैं। मगर मैंने फिर भी यह बात आपके साथ शेयर की, क्योंकि मुझे लगता है कि ऐसी घटनाएं भी होती हैं, लोगों को पता होना चाहिए। मुझे अपने नाम को जाहिर करने में आपत्ति नहीं थी, मगर मेरी पत्नी पूनम (बदला हुआ नाम) नहीं चाहती थी कि ये बातें हम किसी को बताएं। इसलिए अपना और पत्नी का नाम बदला हुआ है।

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बीजेपी में शांता-धूमल की तरह कभी नहीं होगा नड्डा-धूमल शीतयुद्ध!

  • सुरेश चंबयाल

प्रदेश की अखबारें केंद्रीय मन्त्री जेपी नड्डा के शिमला दौरे के बाद से कई अटकलों एवं चर्चाओं से अटी पड़ी हैं। कुछ लिखते हैं यह बीजेपी में शांता-धूमल के बाद तीसरे युग का सूत्रपात है तो कुछ लिखते हैं नड्डा के इर्द-गिर्द धूमल समर्थकों का घूमना भी इस बात को पुख्ता करने लगा है कि आने वाले चुनावों की दिशा क्या रहेगी। कुल मिलाकर हर राजनीतिक पंडित इसे नड्डा युग के आगाज में रूप में दिखा रहा है।

कुछ लोगों का मानना है कि पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल की प्रदेश राजनीति में मंडल स्तर तक जो पकड़ है, उसे दरकिनार करते हुए नड्डा के हाथ कमांड देना पार्टी को महंगा भी भी पड़ सकता है। कुछ लोग इसे शांता-धूमल शीत युद्ध के बाद नड्डा -धूमल शीत युद्ध के तौर पर देख रहे हैं। निश्चित तौर पर धूमल की पकड़ को नकारा नहीं जा सकता, मगर जहां तक शीतयुद्ध की बात है, अगर नड्डा को कमान मिल भी जाती है, तब भी शांता-धूमल टाइप शीतयुद्ध देखने में नहीं आएगा।

क्यों नहीं आएगा, इस पर चर्चा करने से पहले हमें 90 के दौर में जाना होगा। बाबरी-मस्जिद विध्वंस के बाद जब शांता कुमार सरकार गिरी, उस वक्त प्रेम कुमार धूमल प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे। उन्हें हमीरपुर से शांता कुमार ने कद्दावर नेता ठाकुर जगदेव चंद को काउंटर करने के लिए इतने बड़े औहदे पर खुद ही बिठाया था। 1993 चुनावों में शांता कुमार की खुद की हार के बाद जगदेव ठाकुर इकलौते नेता बचे जो पार्टी में सबसे सीनियर थे और जीत कर भी आए थे परन्तु चुनावों के हफ्ते भर बाद उनका अकस्मात निधन हो गया। अब प्रदेश बीजेपी फिर शांता कुमार पर केंद्रित थी। धूमल प्रदेश अध्यक्ष थे और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रदेश प्रभारी। ज्ञात हो कि उस समय धूमल विधानसभा में नहीं थे। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जेपी नड्डा थे।

Nadda Dhumal

धीरे-धीरे अपनी संगठन कुशलता एवं मृदु सवभाव से धूमल प्रदेश बीजेपी में लोकप्रिय होने लगे। बाबरी मस्जिद पर पार्टी स्टैंड से अलग स्टैंड रखने वाले शांता कुमार उस समय संघ और बीजेपी के बड़े नेताओं की आंख की किरकरी भी बन चुके थे साथ ही उनकी कर्मचारी विरोधी छवि से बुरी तरह हारी बीजेपी 1998 का चुनाव शांता कुमार के नेतृत्व में लड़ने से डर रही थी। प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी का झुकाव भी धूमल की तरफ ही था।

1998 चुनावों की घोषणा के साथ ही शांता-धूमल का शीत युद्ध शुरू हो गया। कांगड़ा के अधिकतर नेता शांता कुमार के साथ थे तो धूमल के साथ भी अच्छा खासा समर्थन था। टिकट आवंटन की मीटिंग में ज्वालाजी गेस्ट हॉउस में ऐसी नौबत आ गई कि शांता और धूमल समर्थक नेता आपस में हाथापाई तक उलझ गए थे, जिसे प्रदेश बीजेपी के इतिहास में ज्वालाजी कांड कहा जाता है। 1998 में शांता को किनारे कर धूमल मुख्यमंत्री भी बन गए, परन्तु शांता-धूमल समर्थक गुटबाजी में उलझी भाजपा कभी इस से बाहर नहीं आ पाई। लेकिन हां, ऐसा जरूर हुआ की शांता कुमार के समर्थक नेता धीरे-धीरे धूमल के साथ अपना भविष्य जोड़ते गए।

केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिए जाने के बाद शांता कुमार राजनीतिक रूप से और कमजोर हुए। एक दशक के अंदर 2007 तक धूमल के पास प्रदेश राजनीति में ऐसे समर्थक विधायकों की फौज हो गई जो उनके समर्थन में कुछ भी कर सकती थी, जैसे वीरभद्र समर्थक नेता करते हैं। इसीलिए 2007 में जब शांता कुमार की प्रदेश राजनीति में लौटने की सुगबुगाहट हुई, तब इन्ही समर्थकों के भार से वो आवाज कहीं दब गई। परन्तु जब भी प्रदेश में चुनाव होता टिकट आवंटन पर शांता -धूमल शीतयुद्ध हावी रहता। खासकर कांगड़ा में 2012 में जो नतीजे आए वो सब जानते हैं।

2007 से 2012 तक के कार्यकाल में धूमल अपनी रणनीति से शांता समर्थकों को या तो अपने साथ ला चुके थे या फिर राजनतिक हाशिये पर धकेल चुके थे। सरवीण चौधरी रविंद्र रवि आदि नेता अब धूमल के ज्यादा नजदीक थे। वहीं महेश्वर सिंह , महिंदर नाथ सॉफ्ट किशन कपूर रमेश धवाला आदि नेता राजनीतिक हाशिये पर धकेले जा रहे थे। इसी बीच अब तक किसी गुट में नहीं रहे और अपनी स्वतंत्र छवि बरकरार रखे हुए जेपी नड्डा ने 2003 का चुनाव हारने के बाद 2007 में 19 000 के मार्जन से फिर जीत दर्ज करते हुए जबरदस्त वापसी की। शांता के वर्चस्व को धूमिल करने के बाद धूमल का टारगेट अब नड्डा थे।

उस वक़्त प्रदेश राजनीति में धूमल का दबदबा भी जोरों पर था। सीनियर नेता होने के बावजूद नड्डा को लोक निर्माण, सिंचाई एवं जनस्वस्थ्य, हेल्थ , उद्योग और शिक्षा आदि महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो से अलग रखकर वन विभाग दिया गया, जो सीधे तौर पर जनता से नहीं जुड़ा था। यहां से नड्डा और धूमल के बीच अघोषित युद्ध शुरू हुआ। स्थिति यहां तक आ गई कि नड्डा ने मंत्रिपद छोड़कर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बनने की इच्छा जाहिर कर दी, परन्तु उनकी जगह खीमी दी गई। इसी के साथ चुनावी वर्ष 2012 के पहले पखवाड़े में ही नड्डा मंत्रिपद से त्यागपत्र देकर गडकरी की टीम का हिस्सा बनकर दिल्ली आ गए और मिशन मोदी की रीढ़ बन गए। 2012 के चुनावों में फिर शांता -धूमल शीत युद्ध में फंसी बीजेपी बुरी तरह हारी।

उधर केंद्र में नड्डा मजबूत होते गए। संगठन के रास्ते बढ़ते-बढ़ते नड्डा पार्टी की सबसे बड़ी इकाई केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड चुनाव सीमिति का हिस्सा तो बने ही, साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मन्त्री बनकर मोदी की कैबिनेट में शामिल हो गए।

अब नड्डा प्रदेश का रुख करते भी हैं या सोचते भी हैं , तब भी शीतयुद्ध नहीं हो सकता क्योंकि युद्ध समर्थकों के दम पर लड़ा जाता है। और बेशक धूमल समर्थक नेता प्रदेश में हों, परन्तु वे न तो खुलकर नड्डा के साथ हो न सकते हैं और नही इस मामले में धूमल का समर्थन कर सकते हैं। नड्डा का रुतबा पार्टी में अब इतना बड़ा है कि कोई चाहकर भी यह नहीं जता पाएगा कि वह नड्डा के प्रदेश में आने से खुश नहीं है। केंद्रीय चुनाव सिमिति और पार्लियामेंट्री बोर्ड में बैठे व्यक्ति से कोई भी मंझा हुआ नेता टकराव नहीं पालना चाहेगा। ऊपर से नड्डा अभी 55 साल के हैं। वो मुख्यमंत्री बनकर आएं या न आ पाएं, परन्तु उनसे घोषित टकराव करके कोई भी धूमल समर्थक भविष्य के लिए रार नहीं पालना चाहेगा। शांता विरोधियों को धूमल की शरण मिल जाती थी परन्तु नड्डा का सरेआम विरोध करके धूमल की शरण कब तक बचा पाएगी, इसपर हर कोई सोचेगा। तब शांता कुमार वृद्धावस्था की तरफ बढ़ रहे थे और अब धूमल बढ़ रहे हैं।

शिमला में नड्डा के आसपास धूमल समर्थकों की फौज इसलिए यही दिखाने के लिए दिखी कि हम पार्टी के आदमी हैं और उसके हर फैसले का सम्मान करेंगे। नड्डा ने अपना रुतबा इतना बड़ा कर लिया है कि धूमल -नड्डा शीतयुद्ध अब संभव नहीं हैं। नड्डा वैसे भी प्रतिक्रिया देने वाले नेता नहीं जाने जाते। वह प्रदेश राजनीति में आएंगे या वर्तमान हालात का लुत्फ उठाते रहेंगे, यह राज वही जानते हैं। जब तक वह खुद पत्ते नहीं खोलेंगे, तब तक अटकलों के बाज़ार यूं ही गर्म रहेंगे। मगर शीतयुद्ध की संभावना न के बराबर है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

DISCLAIMER: लेख में लिखी बातों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी है।

‘आज भी मन में सवाल उठता है कि वह कोई सामान्य महिला थी या कोई देवी’

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों को कॉमेंट में बता सकें।

  • विवेक ठाकुर

(लेखक अमेरिका में रहते हैं, उन्होंने इंग्लिश में अपनी कहानी हमें भेजी थी, जिसका अनुवाद नीचे पेश कर रहे हैं)

पता नहीं यह हॉरर एनकाउंटर है भी या नहीं। मेरे ख्याल से यह पवित्र एनकाउंटर है। खैर, बात उन दिनों की है, जब मैं पढ़ाई के बाद पहली बार अमेरिका गया था। डेढ़ साल यहां अमेरिका में काम करने के बाद मुझे पहली बार घर जाना था। 1983 की बात रही है। मेरा घर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के सरकाघाट में दूर-दराज में है। उन दिनों आने-जाने के साधन नहीं थे। एक दिन दिल्ली में अपने दोस्त के यहां रुका और फिर वहां से चंडीगढ़ पहुंचा और चंडीगढ़ से मंडी के लिए बस पकड़ ली। मंडी जाकर मुझे अमेरिका से एक परिचित द्वारा भेजा गया सामान पहुंचाना था। मैंने सोचा कि बाद में कौन जाएगा, जब बस मडी तक जा ही रही है तो वहीं पहुंचा दूंगा और फिर बला टलेगी। मंडी पहुंचकर वह सामान सौंपने के बाद शाम हो चुकी थी। अब उस वक्त वहां से सरकाघाट के लिए कोई बस नहीं थी। उन दिनों टैक्सियां भी नहीं होती थीं कि उनकी मदद ली जाए।

बस अड्डे पर बैठा उधेड़-बुन में ही था कि रात के साढ़े 8 बज गए। किसी ने बताया कि पास ही गुरुद्वारे में रुक जाओ और सुबह बसें चलेंगी तो चले जाना। मैं गुरुद्वारे की तरफ गया। वहां संयोग से पता चला कि एक सरदार जी का ट्रक हार्डवेयर का कोई सामान लेकर सरकाघाट जाने वाला है। सरदार जी से मैंने पूछा तो मुझे वह साथ ले चलने के लिए तैयार हो गए।सवा 9 बजे वह, उनका हेल्पर और मैं मंडी से चल दिए। सरदार जी मस्त मिजाज थे और खूब बातें कर रहे थे। रास्ते में उन्होंने भूतों के किस्से सुनाने शुरू कर दिए कि कैसे उन्हें रात को क्या-क्या दिखा है ड्राइवरी के अब तक के करियर मे।

मेरी उम्र 27 साल थी उस वक्त, फिर भी मैं डरपोक सा था। मैं अपने मम्मी-पापा का इकलौता बच्चा और बहुत लाड से रखा था। अमेरिका में जॉब के लिए भी नहीं भेजना चाहते थे वो मुझे, मगर मैं किसी तरह गया। पहली बार घर से बाहर निकला था। और अगर पहली बार घर जा रहा था। अमेरिका हो आया था, लेकिन था तो वही मासूम सा पहाड़ी लड़का। मुझे चिंता सताने लगी कि रात को ये लोग मुझे उतार देंगे, तो आगे क्या होगा। उन दिनों फोन भी नहीं हुआ करते थे।

खैर, धीरे-धीरे चल रहे सरदार जी ने करीब साढ़े 3 पौने 4 घंटों में सरकाघाट पहुंचा दिया। साढ़े 12 या 1 बजे का टाइम रहा होगा। सरदार जी ने पूछा भी कि चले जाओगे या कहीं किसी सराय में रुक जाओ या जिनके यहां सामान उतारना है, उनसे बात कर लेता हूं। मैंने कहा कि नहीं, मैं चला जाऊंगा, पास ही है गांव। सरदार जी ने मेन रोड पर ही वह सामान उतारना था और वापस रात को ही मंडी लौटना था। जहां उन्होंने सामान उतारना था, वहां पर पहले से ही तीन-चार लोग इंतजार कर रहे थे। सच कहूं तो मेरा मन था कि इनमें से कोई मेरी मदद करे या अपने यहीं रुकने को कहे, मगर किसी ने नहीं कहा।

मेरे पास एक बैग था और मैं उसी को कंधे पर लादकर रात के 1 बजे चल दिया। मेरा गांव पपलोग के पास है। काफी दूर है और उन दिनों रास्ते में घर भी नहीं थे। जंगल था। मेरे पास सिर्फ एक टॉर्च थी। रास्ते पर मैं बढ़ा चला जा रहा था। बीच में सरदार जी ने जो भूत के किस्से सुनाए थे, उनसे भी डर लग रहा था। हर आवाज पर मैं चौंकता, हर परछाई लंबी होती प्रतीत होती। ऐसा लगता कि कोई पीछे चल रहा है। कभी गर्दन के पीछे के बाल हिलते, तो कभी ठंडी-ठंडी लहर सी दौड़ जाती। दिल मुंह पर धड़कता जा रहा था। इतने में मुझे पीछे से ऐसी आवाज सुनाई दी, जैसे कोई पायल पहनकर चल रहा हो। मैं घबराया और तेज कदमों से आगे बढ़ने लगा। कच्चा रास्ता, कहीं झाड़ियां उग आई थीं, कहीं ऊंचे-नीचे टप्पे। आवाज तेज होती जा रही थी।

मैंने सुना था कि पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। इसलिए मैं भागने लगा। दो कदम ही भागा था कि ठोकर लगी और औंधे मुंह गिर गया। बाथ से बैग भी छिटककर दूर जा गिरा और टॉर्च भी बुझ गई औऱ पता नहीं कहां चली गई। पीछे से आवाज आई- क्या गल ओ बच्चा, लगी ता नी? सुले-सुले हांड। आवाज किसी महिला की थी, जो थोड़ी बुजुर्ग जैसी लग रही थी। इसका अर्थ है- क्या बात है बेटे, चोट तो नहीं आई? धीरे-धीरे चलो। मैं घबराया। मैंने सुना था कि कोई आवाज दे तो जवाब नहीं देना चाहिए। मगर इस महिला ने तो आवाज नहीं दी, उल्टा मुझे कुछ सलाह ही दे रही है। अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा था, फिर भी साफ दिखा कि एक महिला खड़ी हुई है, ठीक वैसे कपड़ों में, जैसे घर के बुजुर्ग पूजा-पाठ के दौरान पहनते हैं।

चांद पूरा नहीं था, मगर फिर भी उसकी रोशनी थी थोड़ी-बहुत। मैंने देखा कि महिला ने लाल रंग के कपड़े पहने हुए हैं और बहुत सारे गहने भी। इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता या सोच पाता- उस महिला ने कहा- चुक समाना कने चल। मेरी जान में जान आई और लगा कि कोई महिला ही है, शायद आसपास रहती हो। मैंने अपना बैग उठाया औऱ टॉर्च ढूंढने लगा। महिला ने कहा- टार्चा री नी जरूरत, तारे लगिरे। नैरुआ ता नी होइरा? (टॉर्च की जरूरत नहीं है, तारे हैं आसमान में। आंख में कोई समस्या तो नहीं जो कुछ दिख नहीं रहा?)

मैं उस महिला के इस कटाक्ष से मुस्कुरा दिया। मैंने बैग उठाया और कुछ और देर टॉर्च ढूंढी मगर वह नहीं मिली। फिर मैंने पूछा कि आप कौन। महिला बोली- हाऊं एथी ए रेहां इ बच्चा। घराला जो चलिरी, बच्छी सूणे जो आइरी, राती देखणा पौंदी। (मैं तो यहीं रहती हूं बेटा, गउशाला को जा रही हूं। बछिया गर्भवती है, रात को देखनी पड़ती है।)

अब मेरी जान में जान आई कि कोई स्थानीय महिला है। अब उसने मुझसे पूछा कि मैं कौन हूं और कहां जा रहा हूं। मैंने बताया कि ऐसे-ऐसे फ्लां का बेटा हूं और ऐसे-ऐसे जा रहा हूं। महिला ने कहा बच्चा अगर तू डरणा लगिरा तो हाऊं चलूं सोगी घरा तक। अपणे इलाके मंझ कोई गल्ल नी होंदी डरने वाली। (अगर तू डर रहा बेटा तो मैं चलती हूं घर तक साथ। डरने वाली कोई बात नहीं होती है अपने इलाके में।)

मैं डरा हुआ था और सहारा पाकर हिम्मत आई थी। तो मैंने कह दिया कि हां जी, थोड़ा आगे तक छोड़ आओ। वह महिला मेरे साथ-साथ चलती रही और मेरे से बात करती रही। मेरे परिवार के सब सदस्यों का हाल-चाल लिया उसने। बीच में खड्ड आई, जिसमें पत्थरों से पुल बनाया हुआ था। उसे पार किया। जैसे ही गांव से बाहर एक घर दिखा, उस महिला ने कहा- ठीक हा ताा बच्चा, आई गेया तेरा ग्रां, मैं चलदी कने देखती हुण बछिया जो। (ठीक है बेटा, तेगा गांव आ गया, मैं चलती हूं और देखती हूं बछिया को।)

मैंने उस बुजुर्ग महिला को धन्यवाद कहा और उसके पांच छुए। वह महिला मुस्कुराई। इस बार मैंने बड़े ध्यान से उस महिला का चेहरा देखा। आंखें बड़ी सी, उम्र करीब 40-45 साल, नाक में नथ, सिर पर भी लाल ओढ़नी और कपड़े भी लाल, हाथों में सोने की चूड़ियां और गले में सोने की माला, जिनका डिजाइन वैसा नहीं था, जैसा महिलाएं पहनती थीं। चेहरा कुछ अलग सा था। जैसे बहुत खुश होता है कोई तो उसका चेहरा जैसे दमकता है, वैसा।

खैर, मैं खड़ा रहा और वह महिला पलटी और तेज कदमों से रास्ते में वापस चली गई। मैं मुड़ा और करीब 10 मिनट में अपने घर में था। मैंने दरवाजा खटखटाया- सबसे पहली ताई जी ने दरवाजा खोला। सबसे मिला और मैंने सबको बताया कि कैसे बगल के किसी गांव की कोई महिला मुझे यहां तक छोड़ आई। घर के आधे लोग परेशान हुए, आधे हैरान। कुछ का कहना था कि मुझे कोई भूत मिला है और मुझे तुरंत नहाकर पूजा-पाठ करना चाहिए। मेरी दादी जो सबकुछ ध्यान से सुन रही थी, उसने कहा कुछ करने की जरूरत नहीं है। दादी ने बोला कि वो जो कोई भी थी, उसने बच्चे को सुरक्षित घर पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि वो हमारी कुलदेवी भी हो सकती थीं, जिनका पास ही मंदिर है और वह पूरे इलाके के लोगों की रक्षा करती हैं।

मैं आज अमेरिका में हूं और साइंट ऐंड टेक्नॉलजी से जुड़ी एक कंपनी में आईटी डिपार्टमेंट का चीफ हूं। मेरा अब तक का नॉलेज और समझ मुझे इजाजत नहीं देता कि मैं चमत्कार पर यकीन करूं। मगर आज भी मुझे लगता है कि वह महिला कोई गांव की सामान्य महिला नहीं थी। क्योंकि ऐसे सज-धजकर कोई गउशाला नहीं जाता वह भी सोने के ढेरों गहनों के साथ। मगर भूत-प्रेत और देवी-देवता भी कैसे ऐसे साक्षात आ सकते हैं। जो भी हो, मैं आज भी कुलदेवी के प्रति श्रद्धा रखता हूं और मानता हूं कि वही देवी उस रात मेरी मदद के लिए आई थीं और उन्हीं ने मुझे घर सुरक्षित पहुंचाया। जय मां।

(लेखक का जन्म हिमाचल में हुआ, पढ़ाई भी यहां से हुई मगर अब अमेरिका के स्थायी निवासी हैं।)

हिमाचल की जमीन पर जम्मू-कश्मीर का दावा, लद्दाख के लोगों ने बना ली दुकानें

इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के बीच सीमा विवाद उभरता हुआ नजर आ रहा है। लाहौल-स्पीति से विधायक रवि ठाकुर का आरोप है कि जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों ने सारचू (केलॉन्ग से 100 किलोमीटर दूर) में हिमाचल के अंदर अस्थायी ढांचे खड़े कर दिए हैं। एक अन्य जगह पर भी इसी तरह के हालत देखने को मिल रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर से हिमाचल के तीन जिलों- कांगड़ा, चंबा और लाहौल-स्पीति की सीमाएं लगती हैं। विधायक रवि ठाकुर ने इस मामले में नैशनल कमिशन फॉर शेड्यूल्ड ट्राइब्स का ध्यान खींचते हुए दावा किया है कि लद्दाख प्रशासन ने तो इस जमीन पर अपना दावा बता दिया है और अपने लोगों को हिमाचल की सीमा के अंदर टूरिस्ट सीजन में अपनी दुकानें वगैरह खोलने दी हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक विधायक ने आशंका जताई है कि अगर मामला जल्द नहीं सुलझा तो इस तरफ के लोगों की नाराजगी से तनाव और बढ़ सकता है। लद्दाख और लेह के द्वार पर हिमाचल प्रदेश टूरिजम डिवेलपमेंट कॉर्पोरेशन का काफी कुछ दांव पर लगा होता है, क्योंकि मनाली-लेह हाइवे होते ही टूरिस्ट यहां से जम्मू-कश्मीर में जाते हैं।

ठाकुर ने कहा कि हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को दर्शाने के लिए तांबे के पिलर भी लगे हैं, मगर पड़ोसी जम्मू-कश्मीर मामले को सुलझाने के मूड में नहीं है। रवि नैशनल कमिशन फॉर शेड्यूल ड्राइब्स के वाइस चेयरमैन हैं और उन्होंने दोनों राज्यों के ऑफिशल्स को समन किया था। मगर ठाकुर का कहना है कि लद्दाख प्रशासन ने इस मीटिंग के लिए निचले स्तर के अधिकारी भेजे थे, जिन्होंने इस मामले पर साफ कुछ भी नहीं बताया।

हिमाचली संगीत और मॉडर्न म्यूजिक का शानदार फ्यूज़न- ढाटू

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इन हिमाचल डेस्क।।

हिमाचल के सिंगर और म्यूजिक प्रड्यूसर ललित सिंह एक नया म्यूजिक विडियो लेकर आए हैं। इसका टाइटल ‘ढाटू’ (Dhattu) रखा गया है। इस गाने को उन्होंने अपनी मां, हिमाचल प्रदेश और पहाड़ी लोगों के लिए समर्पित किया है। ढाटू या ढाठू दरअसल एक तरह का स्कार्फ है, जिसे हिमाचल में महिलाएं सिर पर बांधती हैं।

ललित शिमला से हैं और इन दिनों The Pahari Project नाम से एक प्रॉजेक्ट पर काम कर रहे हैं। ललित ने बताया कि यह प्रॉजेक्ट दिनोदिन लोकप्रिय होता जा रहा है। इस प्रॉजेक्ट में वह हिमाचली संगीत को मॉडर्न म्यूजिक के साथ मिलाकर फ्यूज़न तैयार कर रहे हैं।

Dhattu

इस विडियो को RCH फिल्म्स ने तैयार किया है। भविष्य की योजनाओं पर बात करते हुए ललित ने इन हिमाचल को बताया कि आगे वह और भी गने लेकर आ रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं बस यही कोशिश कर रहा हूं कि हिमाचल में एक नई तरह का म्यूजिक लेकर आऊं। हिमाचल के ट्रेडिशन का मॉडर्न म्यूजिक के साथ फ्यूज़न करूं , जैसे कि इस गाने में मैंने हिंदी इंग्लिश मिक्स किया है।’

इस खूबसूरत गाने में गायक को जीवन में आगे बढ़ने और लक्ष्यों के पाने की राह में बढ़ते वक्त मां का ढाटू प्रेरित करता है। खुद देखें यह विडियो….

 

तो क्या जल्दी चुनाव करवा रहे हैं वीरभद्र सिंह?

सुरेश चंबयाल

प्रदेश में हालांकि चुनावों में वक़्त है परन्तु राजनीतिक खींचतान देखकर लगता है प्रदेश राजनीति के चाणक्य वीरभद्र सिंह अपने जीवन के अंतिम दांव के तहत चुनाव जल्दी करवा सकते हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दौरे और हर क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्गों की घोषणा के बाद बीजेपी में जहां नई फुर्ति का संचार हुआ है वहीं सीबीआई द्वारा की जा रही पूछताछ के बाद मुख्यमंत्री के तेवर बदले बदले से लग रहे हैं। सीबीआई की पूछताछ के बाद जब वीरभद्र दिल्ली से लौटे थे, वह आक्रामक नजर आए थे। उन्होंने दर्शा दिया है कि उम्र चाहे जो भी कहती हो, अगला चुनाव हर हाल में वह अपने नेतृत्व में लड़ेंगे। इसीलिए कई पदों पर भर्तियां निकाली गई हैं और हर जगह कोई न कोई नया ऐलान हो रहा है।

Virbhadra

राजनीतिक पंडितों को इसका एहसास इस बात से भी होने लगा है की जिस तरह से मुख्यमंत्री के कांगड़ा, मंडी, सिरमौर और कबायली क्षेत्रों के दौरे बढ़े हैं, इसमें जरूर कुछ स्कीम है। इन क्षेत्रों को मिला कर लगभग 30 से ऊपर विधानसभा सीटें बनती हैं। सिरमौर कांग्रेस का गढ़ रहा था, मगर उसे छोड़कर हर क्षेत्र में कांग्रेस की अब मजबूत पैठ है। सीबीआई के कसते शिकंजे के बाद वीरभद्र लम्बा समय चुनाव के लिए नहीं देना चाहेंगे। वह नहीं चाहेंगे कि सीबीआई की इन्क्वायरी किसी मोड़ तक आए और अपनी ही पार्टी में उनकी जगह रिप्लेसमेंट की आवाज उठे।

कांगड़ा में बाली का घेराव
उम्रदराज होने के बावजूद बुशहर का यह राजा अंदर-बाहर हर मोर्चे पर खुद ही लड़ रहा है। इसी नीति के तहत अपनी पार्टी में मुख्यमंत्री के लिए कांगड़ा की आवाज बन रहे परिवहन मंत्री जीएस बाली के पर कतरने के लिए हड़ताल के शिगूफे में भी कहीं न कहीं राजनीति की बू आ रही है। साथ ही नगरोटा बगवां जिस सीट से बाली जीत कर आते रहे हैं और जहां चौधरी समुदाय की भरमार है, वहां चौधरी समुदाय का सम्मेलन आयोजित हुआ। खास रणनीति के तहत चौधरी समुदाय के नेता चन्द्र कुमार के बेटे वर्तमान विधायक नीरज भारती की गर्जना इस सम्मेलन में करवाई गई।

गडकरी के दौरे में नड्डा का बाली को पार्टी में आने का आमंत्रण और वीरभद्र का यह कहना कि बाली जाना चाहे तो जा सकते हैं, दिखा रहा है कि सुखराम और स्टोक्स के बाद वीरभद्र सिंह अब बाली को ही अपना प्रतिद्वंद्वी मानकर चल रहे हैं। बाली को कंट्रोल करने के लिए उन्होंने कांगड़ा किले के मोर्चों पर घेराबंदी भी कर दी है। नीरज भारती और संजय रतन के साथ पवन काजल भी इस कार्य को बखूबी निभा रहे हैं। नीरज भारती को तो मुख्यमंत्री ने खुली छूट भी दे रखी है।

बीजेपी नहीं है तैयार
वीरभद्र सिंह मान रहे हैं कि प्रदेश बीजेपी अभी चुनावी रूप से तैयार नहीं है। धर्मशाला नगर निगम चुनाव में जिस तरह पूरा कुनबा लगाने के बावजूद भाजपा की करारी हार हुई है, यह कहीं न कहीं मुख्यमंत्री को राहत दे रहा है। धूमल-शांता और अब नड्डा गुटों में बंटी भाजपा किसके लीडरशिप में चुनाव लड़ेगी, यह अभी तय नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री धूमल इस कड़ी में दिल्ली का चक्कर लगा चुके हैं परन्तु शाह मॉडल पर चल रही बीजेपी कोई ग्रीन सिग्नल उन्हें नहीं दे रही है। वीरभद्र सिंह मानकर चल रहे होंगे कि बीजेपी जब तक अपना संगठन और नेता तय करे, उससे पहले ही प्रदेश में चुनाव की घोषणा कर दी जाए, जिससे बीजेपी के अंदर नेतृत्व के लिए जो भी आक्रोश पनपे, उसका फायदा लिया जाए। हालांकि कांग्रेस के सभी मंत्री-संत्री अपने विधानसभा क्षेत्रों में डट चुके हैं। देश में हालिया हुए चुनावों से कांग्रेस की जो हालत पतली हुई है, उसी डर के कारण कांग्रेसी सत्ता सुख छिन जाने के भाव से डरे हुए हैं।

राहुल की नाराजगी
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पार्टी में परिवर्तन चाहते हैं और पुराने नेता, जो किसी भी तरह सत्ता से चिपके रहना चाहते हैं, राहुल के फॉर्मूले में सेट नहीं बैठ रहे। राहुल अब युवा लोगों को आगे लाना चाहते हैं ताकि भविष्य में कांग्रेस का कुछ हो सके। उनके फॉर्मूले में वीरभद्र सिंह सेट नहीं बैठ रहे हैं। पिछली बार भी वीरभद्र सिंह कड़े तेवर लेकर प्रदेश में लौटे थे, परन्तु इस बार हालत अलग है। इस बार सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस के लिए होगी, न कि भाजपा के लिए।

परिवार की चिंता
सीबीआई के शिकंजे के बावजूद सत्ता में बने रहने की हर हाल में जो मजबूरी मुख्यमंत्री की है उसमे परिवार का भी रोल है।प्रतिभा सिंह की मंडी से हार से वीरभद्र सिंह को झटका लगा है। अगले कुछ वर्षों में उन्हें प्रतिभा से लेकर बेटे विक्रम को भी राजनीति में सेट करना है, इसलिए वीरभद्र सोच रहे हैं कि अगले पांच साल फिर सत्ता मिल जाए तो वह हर काम बखूबी कर सकते हैं। और अगर सत्ता का कंट्रोल हाथ से गया तो सबकुछ बिखर भी सकता है।

पहले भी जल्दी चुनाव करवा चुके हैं वीरभद्र
ऐसा नहीं है कि वीरभद्र सिंह पहली मर्तबा ऐसी सोच रख रहे होंगे। इससे पहले भी अपने खास ज्योतिषी प्रेम शर्मा की सलाह पर वीरभद्र सिंह ऐसा कर चुके थे परन्तु उस समय हार का सामना करना पड़ा था। मगर वह हार सुखराम फैक्टर से हुई थी। हालांकि राजा साब की कैलकुलेशन उस समय भी सही थी। पंजाब में अकाली-भाजपा विरोधी लहर है। इस बात को ध्यान में रखते हुए वीरभद्र सिंह हिमाचल में भी समय पूर्व चुनाव करवाने का अपना दांव खेल सकते हैं।

पढ़ें: हिमाचल में सीएम कैंडिडेट कौन होगा, इसपर क्या कहा बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतपात सत्ती ने

(लेखक हिमाचल से जुड़े मसलों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों In Himachal के लिए लेख लिख रहे हैं)