एमबीएम न्यूज नेटवर्क, शिमला।। हिमाचल प्रदेश के परिवहन, तकनीकी शिक्षा एवं खाद्य आपूर्ति व उपभोक्ता मामलों के मंत्री जी.एस. बाली एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन करके अपनी संपत्ति, आय और देनदारी की जानकारी सार्वजनिक कर दी है। गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहने के लिए पहचाने जाने वाले तेज-तर्रार मंत्री बाली ने कुछ दिन पहले अपने फेसबुक पेज के जरिए ऐलान किया था मैं अपनी संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक कर दूंगा। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी इस संबंध में एक पोस्ट डाली है।
गुरुवार को शिमला में पत्रकारों से बात करते हुए जीएस बाली ने कहा कि उनकी कुल संपति का बाजार भाव 70 करोड़ के करीब है। उन्होंने बताया कि 16 करोड़ का कर्ज है। बाली ने यह जानकारी भी दी कि दिल्ली में उनके पास 5 करोड़ करुपये का फ्लैट है। उन्होंने बतााय कि 16 कनाल के करीब जमीन उनके पास है। बाली ने अपने एफडीआर का ब्यौरा भी दिया। बाली ने कहा कि मैं राजनीति में आने से पहले से व्यवसायी रहा हूं और होटल और फैक्ट्री जैसी संपत्तियां मेरे पास पहले से ही थीं।
‘बेटा भी जल्द देगा संपत्ति का ब्यौरा’
मामला 70 करोड़ से जुड़ा है, ऐसे मे कोई भी चौंक सकता था। मगर इससे बेपरवाह बाली ने अपनी चल व अचल संपत्ति घोषित करते हुए कहा कि राजनीति में पारदर्शिता जरूरी है। उन्होंने दूसरों के बारे में कुछ कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, ‘अंतरआत्मा ने मुझे ऐसा करने के लिए कहा ताकि मेरे राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता हो।’ जीएस बाली ने अपनी पत्नी के एफडीआर की सूचना भी दी। उन्होंने यह भी कहा कि उनका बेटा भी जल्दी अपनी संपत्ति का ब्यौरा देगा।
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पीसीसी चीफ सुखविंद्र सिंह सुक्खू भी मौजूद थे। उन्होंने कहा कि पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी उनकी है और वह पार्टी के घोषणा पत्र में ऐसा प्रावधान करेंगे कि कोई भी विधायक जो चालू वर्ष के दौरान खरीदने वाली संपति का ब्यौरा दे और धनराशि का स्रोत दे। सुक्खू ने कहा कि राजनीतिक में पारदर्शिता जरूरी है और उन्होंने भी कुछ समय पहले अपनी संपति की घोषणा कर दी थी।
इन हिमाचल डेस्क।। HRTC यानी हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के ड्राइवर्स को अगर पायलट कहा जाए तो गलत नहीं होगा। उन्हें पायलट इसलिए नहीं कहा जा रहा कि वे बेहद फास्ट गाड़ी चलाते हैं। बल्कि उन्हें यह विशेषण उनके ड्राइविंग स्किल्स की वजह से दिया जा सकता है। दरअसल फेसबुक पर एक वीडियो वायरल हुआ है जिसमें बर्फ से भरी सड़क पर एचआरटीसी की एक बस रिवर्स हो रही है।
बर्फ की वजह से तंग हो चुकी सड़क पर हम और आप गाड़ी को आगे भी न चला पाएं मगर एचआरटीसी बस का ड्राइवर बड़ी ही सफाई से अच्छी-खासी स्पीड में बस को बैक गियर में चलाता है ताकि गाड़ी को पास दिया जा सके।
इस वीडियो को किसी ने अपनी गाड़ी के अंदर से रिकॉर्ड किया है। हो सकता है कि किसी ने इस वीडियो को पोस्ट करने से पहले इसकी स्पीड बढ़ाई हो मगर इस बात से तो आप भी इनकार नहीं कर पाएंगे कि ड्राइवर में स्किल तो हैं ही। नीचे बीइंग हिमाचली के पेज पर शेयर हुआ वीडियो देखें:
इससे पहले भी HRTC बस ड्राइवरों के कई वीडियो वायरल हो चुके हैं जिनमें वे मुश्किल हालात में खराब सड़कों पर भी अच्छी तरह से ड्राइविंग कर रहे हैं। प्रदेश के कई इलाकों की सड़के वहां के मौसम व अन्य भौगोलिक परिस्थितियों से भी खराब हैं और कुछ राजनेताओं की लापरवाही भी है। मगर लोगों को ट्रांसपोर्ट सुविधा मुहैया करवा रहे इन लोगों की तारीफ की जानी चाहिए।
इन हिमाचल डेस्क।। स्टफ्ड गारलिक ब्रेड खाया है? देखने में बिल्कुल वैसा लगता है सिड्डू मगर है एकदम पौष्टिक। हिमाचल के मंडी, कुल्लू और सिरमौर समेत कई जिलों में इसे बनाया जाता है। देखे में आपको हो सकता है कि मोमोज़ जैसा लगे, मगर है एकदम अलग। बनाने की प्रक्रिया वैसे काफी हद तक मोमोज़ जैसी ही है। वक्त के साथ-साथ भले ही लोग हिमाचल के पारंपरिक पकवानों को बनाना भूल रहे हैं मगर शिप्रा खन्ना (मास्टर शेफ विनर) अपने यूट्यूब पर चैनल पर कुछ हिमाचली पकवानों के बारे में पूरी दुनिया को बता रही हैं।
सिड्डू बनाने के लिए आपको क्या-क्या चाहिए, कितनी देर में यह पकता है और कैसे पकता है, पूरी जानकारी शिप्रा के इस वीडियो में आपको मिलेगी। हालांकि पारंपरिक तौर पर सिड्डू को अर्धचंद्राकार शेप में बनाया जाता है, जैसे की नीचे तस्वीर में दिया गया है, मगर शिप्रा ने इन्हें गोल आकार दिया है।
यह है असली सिड्डू।
अगर आप शिप्रा की तरह गोलाकार सिड्डू बनाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि उनका साइज छोटा हो वरना पकेंगे नहीं ढंग से। बहरहाल, नीचे दिए गए वीडियो को देखकर सीखिए सिड्डू बनाना और दोस्तों को भी खिलाइए। वीडियो के बाद दिए लिंक क्लिक करके आप ‘कोदरे की रोटी’ बनाना सीख सकते हैं।
विवेक अविनाशी।। भारत की महाशक्ति पीठों में से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित ज्वालामुखी मन्दिर है जहाँ देश के कोने –कोने से भक्तजन मन्नते मांगने शारदीय नवरात्रों में भी आते हैं। वैसे तो भक्तों का आना-जाना समस्त वर्ष ही यहाँ लगा रहता है लेकिन नवरात्रों में माता के दर्शनों का जो पुण्य प्राप्त करता है उस पर माता विशेष कृपा करती है। यह नवरात्र आश्विन मास की शुक्ल-पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ हो कर 9 दिन तक चलता है। इस मन्दिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था और महाराजा रंजीतसिंह ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये शक्ति पीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। मंदिर की तस्वीर देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं। वर्तमान में भारत में 42, पाकिस्तान में 1, बांग्लादेश में 4, श्रीलंका में 1, तिब्बत में 1 तथा नेपाल में 2 शक्ति पीठ है। आदिशंकराचार्य के द्वारा वर्णित 18 महाशक्ति पीठो में भी ज्वालामुखी मन्दिर का उल्लेख है।
माता के इन 51 शक्तिपीठों के बनने की कथा के अनुसार राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया था और भगवान शिव से विवाह किया। एक बार मुनियों का एक समूह यज्ञ करवा रहा था। यज्ञ में सभी देवताओं को बुलाया गया था। जब राजा दक्ष आए तो सभी लोग खड़े हो गए लेकिन भगवान शिव खड़े नहीं हुए। भगवान शिव दक्ष के दामाद थे। यह देख कर राजा दक्ष बेहद क्रोधित हुए। दक्ष अपने दामाद शिव को हमेशा निरादर भाव से देखते थे। सती के पिता राजा प्रजापति दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में ‘बृहस्पति सर्व / ब्रिहासनी’ नामक यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता और सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में शामिल होने के लिए निमन्त्रण नहीं भेजा था। जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए।
नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी।
भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा।
Digital Capture
सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। ‘तंत्र-चूड़ामणि’ के अनुसार इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिव को पुन: पति रूप में प्राप्त किया। कहते हैं इस क्षेत्र में सती की जीभ गिरी थी।
ज्वाला मुखी मन्दिर के भीतर 9 ज्योतियां हैं जो 9 देवियों का प्रतीक हैं l इस मन्दिर में कुछ सीढियां चढ़ कर बाबा गोरखनाथ का मन्दिर है जिसे गोरख डिब्बी भी कहते हैं। यहाँ खौलता हुआ पानी है जो हाथ लगाने पर बिलकुल ठंडा होता है। इसके दर्शन लपटों के रूप में पुजारी करवाते हैं। यहाँ चढावे के रूप नारियल चढाया जाता है। कहते हैं अकबर के काल में ध्यानु भगत ने यहाँ अपना सिर काट कर भेंट चढाया था । दरअसल अकबर को मातारानी की महिमा के बारे में ध्यानु भगत ने ही बताया था लेकिन अकबर को विश्वास नही आया उसने ध्यानु भगत के घोड़े का सिर काट दिया और ध्यानु से कहा कि इसे माता रानी से जुडवा लो। ध्यानु भगत माता रानी के दरबार में फिर आया लेकिन कई दिन बीत जाने पर जब सिर नही जुड़ा तो उसने अपना सिर माता के चरणों में काट कर भेंट चढ़ा दिया। माता प्रकट हुई और ध्यानु का सिर तो जोड़ ही दिया घोड़े की सिर भी दुबारा लगा दिया। माता का करिश्मा देख अकबर नंगे पांव आ कर सोने का छत्र चढ़ा गया था। तब से माता रानी ने यह निर्देश दिया था कि यहाँ नारियल ही चढ़ेगा। ज्वालामुखी से कुछ ही दूर पहाड़ी में टेढ़ा मन्दिर है जो 1905 के काँगड़ा भूकम्प में टेढ़ा हो गया पर गिरा नही। ज्वालामुखी के पास सपडी के जंगलों में चन्दन के वृक्ष भी हैं।
(विवेक अविनाशी हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। उनके vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है।)
बिलासपुर।। पहले हिमाचल प्रदेश के दूर-दराज के पिछड़े इलाकों से बाल-विवाह की कोशिशों की खबरें आती थीं मगर अब बिलासपुर से खबर आई है। यहां पर 13 साल की बच्ची की शादी की कोशिश हो रही थी। वक्त रहते पुलिस और चाइल्ड हेल्पलाइन ने पहुंचकर बच्ची को बचा लिया।
घटना श्री नयना देवी के गांव बैहना की है। लड़की की शादी उसेक मामा के घर आनंदरपुर में की जा रही थी। पूरा परिवार मामा के घर चला गया था। शादी समारोह 28 से 30 मार्च तक होना था। बच्ची सातवीं क्लास में पढ़ती थी।
जैसे ही इसकी घबर मिली, तुरंत अधिकारी लड़की के घर पहुंचे। वहां पता चला कि शादी का इंतजाम मामा के घर से किया गया है। स्कूल से कन्फर्म हुआ कि लड़की की उम्र 13 साल है और वह 7वीं में पढ़ती है।
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शादी रुकवा दी। लड़के के पिता का कहना है कि उन्हें पता ही नहीं था कि लड़की नाबालिग थी। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
इससे पता चलता है कि प्रदेश में अभी भी जागरूकता लाए जाने की कितनी जरूरत है। इस तरह की घटना शर्मनाक तो है ही, दर्दनाक भी है। पता नहीं कितनी बच्चियों को इस तरह के हालात से जूझना पड़ता होगा।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क, कुल्लू।। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले के आनी में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। 19 साल की नफीसा (बदला हुआ नाम) ने 25 मार्च को अस्पताल में स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। मगर इस बच्ची को नफीसा की मां यानी नवजात की नानी ने मौत के घाट उतार दिया। इसलिए, क्योंकि नफीसा ने निकाह से ढाई महीने बाद ही बच्ची को जन्म दे दिया था। इस वारदात में नफीसा की सास यानी नवजात की दादी भी साथ थी।
जब नफीसा ने बच्ची को जन्म दिया, उसकी मां और सास ने योजना बनाई की बच्ची को मार दिया जाए ताकि लोग निकाह के ढाई महीने में ही बच्ची हो जाने पर बातें न करें। इसके लिए नवजात बच्ची की दादी अस्पताल के प्रसूति वार्ड के दरवाजे पर पहरा देती है और नानी बच्ची का गला चुन्नी से दबाकर सांसें छीन लेती है। फिर अदला-बदली की जाती है। नानी दरवाजे पर खड़ी होती है ओर दादी वापस आकर देखती है कि कहीं बच्ची की सांसें तो नहीं चल रहीं।
25 मार्च की शाम 5:10 बजे नर्स बच्ची व मां को इंजेक्शन लगाने पहुंची तो चंद घंटे पहले पैदा हुई स्वस्थ बेटी मृत अवस्था में थी। फौरन ही डॉक्टर को सूचित किया गया। डॉक्टर को बच्ची की मौत असामान्य लगी तो उसने आनी थाना के पुलिस को सूचित किया। मामले की नजाकत को भांपते हुए डीएसपी बलदेव ठाकुर समेत थाना प्रभारी भूप सिंह मौके पर पहुंच गए। बच्ची के शव का पोस्टमॉर्टम आईजीएमसी में करवाने का फैसला लिया गया।
सोमवार की देर रात हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया, क्योंकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बताया गया कि बच्ची की मौत गला घोंटने से हुई है। चूंकि नफीसा अभी अस्पताल में ही दाखिल है, लिहाजा पुलिस उससे पूछताछ नहीं कर पाई है। बच्ची की नानी और दादी को गिरफ्तार कर लिया गया है। क्रूरता की सीमाओं को इस तरह लांघने से खुद पुलिस भी सकते में है। एसपी पदम ठाकुर ने मामले की पुष्टि करते हुए कहा कि पूरी गहनता से जांच की जा रही है और सबूत जुटाए जा रहे हैं।
कांगड़ा।। यह हैं आकृति हीर। आकृति भारत की पहली महिला हैं, जिन्होंने 20 साल की उम्र में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रस को फतह किया है। कांगड़ा जिले के सुलियाली गांव की रहने वालीं आकृति ने 2012 में उत्तराखंड के नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनीअरिंग से पर्वारोहण की ट्रेनिंग ली। उस समय आकृति ने गंगोत्री पीक की चढ़ाई पूरी की जिसकी ऊंचाई 16 हजार फीट है। उसी वक्त से पर्वतारोहण आकृति के जीवन का हिस्सा बन गया।
आकृति अब तक दुनिया के 7 चोटियों पर कामयाबी से चढ़ चुकी हैं। इन हिमाचल से बातचीत से में आकृति ने बताया कि मैं बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी, इसलिए माउंटनीअरिंग को चुना। उन्होंने कहा, ‘मैं साल 2014 में माउंट एलब्रस पीक पर जाने का तय किया। इसकी ऊंचाई 18,510 फीट है। यहां जाने के लिए मेरे पास कोई स्पॉन्सर नहीं था। मेरे पैरंट्स ने इसके लिए 3 लाख रुपये का लोन लिया।’
आकृति बताती हैं कि कहीं से उन्हें फाइनैंशल हेल्प नहीं मिल पाई। आकृति माउंट एलब्रस पर चढ़ाई के अनुभव याद करते हुए बताती हैं, ‘मैंने कई मुश्किलों का सामना किया। धूप से जलना, कम तापमान को सहना जो माइनस 40 डिग्री था। हवाएं तेज थीं, बर्फबारी हो रही थी और एक वक्त तो ऐसा आया कि मेरी बॉडी काम ही नहीं कर रही थी। मगर आखिर में मैंने कामयाबी हासिल की और चोटी पर तिरंगा फहरा दिया।’
इस उपलब्धि के लिए आकृति का नाम लिमका बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में दर्ज हुआ है। आकृति कहती हैं कि अब उनका लक्ष्य दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का है। हिमाचल सरकार की तरफ से ‘ Pride of Himachal’ अवॉर्ड तो उन्हें मिला, मगर आकृति को शिकायत है कि और कोई हेल्प नहीं मिली। दरअसल आकृति के पैरंट्स माउंट एवरेस्ट में चढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते। इसके लिए उन्होंने माउंट एवरेस्ट के लिए क्राउड फंडिंग कैंपेन शुरू किया है।
दरअसल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का खर्च 20 लाख आता है। अगर आप अपनी तरफ से आकृति की सहायता करने के लिए किसी भी तरह का योगदान देना चाहते हैं तो नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके ऐसा कर सकते हैं।
इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में बिना ठोस प्लानिंग के किए जाने वाले ऐलानों के खिलाफ ‘In Himachal’ ने हमेशा से मोर्चा खोला है। विभिन्न खबरों के जरिए हमने दिखाया कि कैसे लगातार स्कूल और कॉलेज खोलने के ऐलान तो हो रहे हैं, मगर वहां कैसी एजुकेशन मिल रही है, इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। इस संबंध में इन हिमाचल को विभिन्न लेखकों ने समय-समय पर अपने विचार भेजे और हमने उन्हें भी प्रकाशित किया। अब अच्छी बात यह है कि इनका प्रभाव होता नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ऐलान किया है अब और स्कूल या कॉलेज खोलने की जरूरत नहीं है या फिर कम है।
भोरंज में चुनाव प्रचार के दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए सीएम ने कहा कि विस्तार का चरण पूरा हो गया है और अब मैं गुणवत्ता पर ध्यान दूंगा। उन्होंने कहा कि आलोचना की जाती है कि वीरभद्र स्कूल पर स्कूल खोले जा रहे हैं, मगर मैं उन्हें बता दूं कि ऐसा इसलिए किए जा रहा है ताकि सबको, खासकर लड़कियों को शिक्षा मिले। उन्होंने कहा कि लोग बेटियों को पढ़ने के लिए दूर नहीं भेजते, घर के पास कॉलेज हो तो वहां बेटियां पढ़ रही हैं। वीडियो देखें:
हालांकि अब भी ‘इन हिमाचल’ मुख्यमंत्री की राय से इत्तफाक नहीं रखता कि स्कूल या कॉलेज खोलने की जरूरत बची ही नहीं है। क्योंकि हिमाचल प्रदेश में विविधता है और बहुत से इलाके ऐसे हैं जहां पर इनकी जरूरत हो सकती है। इसलिए बेहतर होगा कि फैसले सोच-समझकर लिए जाएं। स्कूल-कॉलेज खोलने के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि वहां अच्छी शिक्षा मिले। प्रफेशनल एजुकेशन के इस दौर में ऐसे कॉलेज खोले जाने की जरूरत है जो बच्चों को आज के कॉम्पिटीशन के दौर के हिसाब से तैयार कर सकें।
इन हिमाचल समय-समय पर शिक्षा को लेकर उठाता रहा है आवाज ‘इन हिमाचल’ को भेजे एक आर्टिकल में लेखक सुरेश चंबयाल ने लिखा था, ‘प्रदेश के लाखों स्नातक जम्मू-कश्मीर जाकर जिस दौर में B Ed करने जाते थे, उस दौर में हिमाचल सरकार कभी नहीं सोच पाई कि B Ed करने के लिए ऐसा क्या इन्फ्रास्ट्रक्टर चाहिए, ऐसी क्या सुविधाएं, कितना बजट चाहिए कि हमारे लोगों को बाहर जाना पड़ रहा है। वो लोग वहां से बीएड करके आए। फिर सरकारी टीचर लगने के लिए जहां एक अच्छा-खासा कमिशन का टेस्ट पास करना होता था, वहां राजा साब ने चंद तनख्वाह पर PTA के नाम से टीचर भी भर लिए। जिनका न टेस्ट होता था, न ढंग का इंटरव्यू सिर्फ स्कूल प्रिंसिपल और प्रधान तय करते थे कौन PTA में लगेगा।’ इस पूरे लेख को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
इसी तरह के अन्य लेख में आशीष नड्डा ने शिक्षा नीति पर बात करते हुए लिखा था, ‘पहले 15 गांवों का इकलौता स्कूल था, जहाँ ख़ुशी-ख़ुशी बच्चे दूर-दूर से पढ़ने आते थे। मगर अभ उस स्कूल के आसपास सबसे पहले दो प्राइमरी स्कूल खोले गए और वह भी डेढ़ से 3 किलोमीटर के दायरे में। यह दूरी भी बाइ-रोड मानी गई, जबकि पगडंडियों से ये स्कूल नजदीक पड़ते थे। यह किसके लिए हुआ? वोट बैंक के लिए और लोगों के तुष्टीकरण के लिए। एक-एक कमरे में 20-25 बच्चों के साथ यह स्कूल चलने शुरू हो गए। जो 7 टीचर एक स्कूल में थे, उन्हें इन स्कूलों में बांट दिया गया। अब हर स्कूल में औसतन 2 टीचर बचे। जो अध्यापक पहली से पांचवीं तक 40-50 बच्चों के एक बैच को ही पांच साल तक पढ़ाता था। वो अध्यापक एक वर्किंग डे में अब कभी फर्स्ट क्लास के 5 बच्चों को पढ़ा रहा था तो कभी उसी दिन तीसरी क्लास के 9 बच्चों को पढ़ा रहा था। मतगणना में जब उसकी ड्यूटी लगती थी तो स्कूल में उसकी क्लास की पढ़ाई बंद, क्योंकि एक ही टीचर बाकी बचता था। वो 5 क्लास कैसे पढ़ाए और क्या-क्या पढ़ाए?’ इस पूरे लेख को यहां क्लिक करके पढ़ें।
‘इन हिमाचल’ बिना शिक्षकों के या छात्रों की कमी के कारण बंद हो चुके स्कूलों की खबरें भी उठाता रहा है। अभी पिछले सप्ताह इन हिमाचल ने बताया था कि कैसे कई स्कूलों को बंद करना पड़ रहा है तो कुछ स्कूलों में बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल रही। उसके आखिर में इन हिमाचल ने लिखा था- ‘जिले के अधिकतर स्कूल ऐसे हैं, जहां पर या तो अध्यापक है ही नहीं या फिर एक-दो अध्यापकों के सहारे स्कूल चल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सर्वाधिक बजट का प्रावधान करने के बाद भी प्रदेश में शिक्षा का स्तर गिरता क्यों जा रहा है। इस सवाल पर सरकार को चिंतन करने की आवश्यकता तो है, लेकिन लगता है सरकार के पास चिंतन करने का समय नहीं है। सरकार का फोकस नए स्कूल खोलने के ऐलानों पर ज्यादा लगता है, क्वॉलिटी ऑफ एजुकेशन पर नहीं।’ पूरी खबर यहां क्लिक करके पढ़ी जा सकती है।
विपक्ष ने तो शिक्षा को लेकर या स्कूलों की दुर्दशा को लेकर कब सवाल उठाए यह कहा नहीं जा सकता। क्योंकि बीजेपी की सरकार के दौरान भी शिक्षा को लेकर बहुत बदलाव हुआ हो, ऐसा देखने को नहीं मिला है। ‘इन हिमाचल’ की नीति रही है कि वह कभी किसी सरकारी या प्राइवेट संस्थान से सीधे विज्ञापन नहीं लेता ताकि निष्पक्षता और बेबाकी पर आवाज न आए। आगे भी हम इसी तरह से प्रदेश हित में अपने पाठकों और हिमाचल प्रदेश वासियो की मदद से स्टैंड लेते रहेंगे।
कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के लोक गायक मस्त राम अब इस दुनिया में नहीं रहे। पालमपुर में 104 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। आलमपुर के साई के रहने वाले मस्त राम अपने समय के शानदार लोकगायक थे। जिस दौर में मनोरंजन के साधन सीमित थे, लोगों को पता चलता था कि मस्त राम किसी कार्यक्रम में आ रहे हैं तो वे मीलों चलकर उन्हें सुनने पहुंचते थे।
पंडित प्रताप चंद शर्मा जी के लिखे गीत ‘ठंडी-ठंडी हवा झुलदी, झुलदे चीलां दे डालू’ को गाकर मस्त राम ने प्रसिद्धि के नए आयाम छुए थे। उन्होंने 12 महीनों के ऊपर 12 माही गाना लिखा था। साथ ही उन्होंने पहाड़ी में मां ज्वाला की स्तुति में भी गीत (भजन) लिखे थे।
मस्तराम अपने पीछे 90 सदस्यों का परिवार छोड़ कर गए हैं। इनमें 6 पुत्र और 5 लड़कियां शामिल हैं। उनके 4 पुत्र ऊंचे पदों से सेवानिवृत्त हैं जबकि 2 बेटे सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं। अपने दौर में कई लोगों को गायन की तरफ प्रेरित करने वाली इस महान विभूति को इन हिमाचल की तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि।
इन हिमाचल डेस्क।। प्लेबैक सिंगर जुबिन नौटियाल का गाना ‘ओ साथी, ओ साथी’ धूम मचा रहा है। एमटीवी अनप्लग्ड के आठवें सीजन के लिए गाए इस गाने में बादशाह का हिंदी रैप भी है। इंटरनेट पर चर्चा है कि जुबिन का यह गाना हिमाचल के गाने ‘ओ रीनू, ओ रीनू’ की नकल है। दरअसल साल 2003-2004 में हिमाचल के गायक नरेंदर ठाकुर ने ‘ओ रीनू, ओ रीनू’ नाम का गाना लॉन्च किया था, जिसकी धुन और लीरिक्स जुबिन के ‘ओ साथी- ओ साथी’ जैसे ही हैं। इंटरनेट पर इस बात को लेकर चर्चा छिड़ी है कि कहीं यह हिमाचली गाने की नकल तो नहीं है।
जुबिन नौटियाल दरअसल जौनसार क्षेत्र से आते हैं। यह इलाका उत्तराखंड में देहरादून से लेकर हिमाचल प्रदेश तक है। यानी हिमाचल और उत्तराखंड मिलकर जौनसार की संस्कृति को साझा करते हैं। जुबिन का कहना है कि इस गाने को वह बचपन से सुनते आए हैं और उनके पिता के दोस्त और जौनसारी सिंगर खजान दत्त शर्मा ने इसे तैयार किया था। वहीं आज से करीब 10-12 साल पहले नरेंद्र ठाकुर ने जब ओ रीनू, ओ रीनू लॉन्च किया था उसके लीरिक्स पंकज गंधर्व ने लिखे थे और म्यूजिक एस.डी. कश्यप जी ने दिया था। यह गाना इतना हिट हुआ था कि इसकी 5 लाख कॉपियां बिकी थीं। नीचे सुनें यह गाना:
‘इन हिमाचल’ ने नरेंद्र ठाकुर से बातचीत की तो उन्होंने खुशी जताई कि जुबिन ने एमटीवी पर पहाड़ी गाना गाया है। उन्होंने कहा कि इस बात का तो कोई मतलब ही नहीं है कि गाना किसने पहले गाया या किसने बाद में गाया है। उन्होंने कहा, ‘पहाड़ी म्यूजिक को अगर नया आयाम मिलता है तो यह सबके लिए खुशी की बात है। यह प्रसन्नता की बात है कि जुबिन अच्छा कर रहा है और साथ ही पहाड़ी म्यूजिक को आगे बढ़ा है। पहाड़ी म्यूजिक जौनसार का हो या कहीं का भी हो, अपना म्यूजिक है और इसका आगे बढ़ना महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने जुबिन को बधाई और शुभकामनाएं भी दीं। (जुबिन का गाना आर्टिकल के आखिर में है)
हिमाचल प्रदेश में नरेंद्र ठाकुर के गाने ओ रीनू, ओ रीनू को कई लोगों ने गाया है, मगर वे गाने इतने पॉप्युलर नहीं हुए जितना कामयाब गाना नरेंद्र ठाकुर का हुआ। रही बात इस गाने को आधुनिक ढंग से पेश करने की, दीपक जंदेवा इसे साल 2015 में एक म्यूजिक वीडियो के साथ पेश कर चुके हैं। जुबिन का गाना काफी हद तक दीपक के गाए गाने से मिलता है। नीचे सुनें:
बहरहाल, जैसा कि नरेंद्र ठाकुर ने कहा, बात यह नहीं है कि गाना किसने पहले गाया, किसने बाद में, अहम यह है कि पहाड़ी म्यूजिक आगे बढ़ रहा है। इसमें विवाद करने की बात नहीं है बल्कि म्यूजिक को इंजॉय करना चाहिए और इस तरह की कोशिशों का प्रोत्साहन होना चाहिए। 🙂 सुनें जुबिन का गाना: