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Friday, September 12, 2025
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कंगना रनौत और विक्रमादित्य सिंह: न एक गंभीर, न दूजा सयाना

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चार सीटों के छह विधानसभा सीटों पर भी चुनाव हो रहा है। पहले तो चर्चा इस बात पर हो रही थी कि छह विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कौन जीतेगा और कांग्रेस की सरकार को खतरा बना रहेगा या टल जाएगा। लेकिन मंडी लोकसभा सीट पर कंगना रनौत और विक्रमादित्य सिंह के मैदान में उतरने के बाद चर्चा के केंद्र में यह सीट ज्यादा आ गई है।

हिमाचल में लोकसभा के चुनाव कभी मुद्दों के आधार पर नहीं लड़े गए। कम से कम स्थानीय मुद्दों के आधार पर तो बिल्कुल नहीं। इस बार भी वैसा ही है। एक ओर कंगना रनौत हैं जो लंबे समय से चुनावी राजनीति में आना चाहती थीं। एक दौर वह भी था जब उनके कांग्रेस के करीब होने की भी चर्चाएं थीं। उनके परदादा कांग्रेस के नेता थे और उनके पिता भी कांग्रेस में पदाधिकारी रह चुके हैं। लेकिन उनकी चुनाव लड़ने की इच्छा पूरी हो रही है बीजेपी के साथ।

जब अचानक बढ़ी बीजेपी से करीबी

जिसके प्रति उनका अनुराग उसी दौर में अचानक बढ़ गया था, जब बॉलिवुड के कई अभिनेता राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर सुर्खियां और अपनी फिल्मों के लिए दर्शक बटोरने लग गए थे। यह दौर 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिले भारी बहुमत के बाद अपने चरम पर पहुंच गया था।

उस समय कंगना ने खुलकर ट्विटर (जो आजकल x बन चुका है) पर ऐसे बयान देना शुरू कर दिया जो या तो बीजेपी की हिंदुत्व की विचारधारा से मेल खाते थे या फिर उन्हें एक राष्ट्रवादी के रूप में पेश करते थे। फिर महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार के साथ विवाद के बाद वह खुलकर बीजेपी के करीब आ गईं और बीजेपी जो उनसे दूरी बनाकर चल रही थी, उसने भी खुलकर कंगना का साथ देना शुरू कर दिया था।

यह कोई संयोग नहीं था कि उस दौर में हिमाचल प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कंगना को हिमाचल की बेटी बताते हुए पूरे प्रदेश में रैलियों और प्रदर्शनों का आयोजन कर दिया था। ऐसा किसी केंद्रीय नेता की सहमति के बिना होना मुश्किल है क्योंकि हिमाचल में बीजेपी तो अपने दम पर स्वत: संज्ञान लेकर उन मुद्दों पर भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस तक नहीं करती, जो प्रदेश के लिए अहमियत रखते हैं।

परिधान पर ध्यान, समाधान पर नहीं

अब बीजेपी ने कंगना को टिकट दे दिया है और वह अपने चुनाव क्षेत्र का दौरा कर रही हैं। इस दौरान वह अलग-अलग क्षेत्रों के स्थानीय परिधानों में नजर आ रही हैं। शायद उनकी कोशिश होगी कि इससे वह लोगों के कनेक्ट कर पाएंगी। लेकिन उनके भाषण को सुनें तो उसमें कोई भी बात ऐसी नहीं लगती, जिससे लगे कि वह लोगों से कनेक्ट कर पा रही हैं। होना यह चाहिए कि वह भरमौर जाएं तो वहां की समस्याओं के बारे में दो शब्द कहें। पांगी जाएं तो वहां की जरूरतों पर बात करें। आनी आएं तो वहां के चार चीज़ों के बारे में दो बातें कहें।

इससे लोगों को लगता है कि इसे तो हमारे बारे में कुछ पता है। जितना ध्यान वह परिधान पर दे रही हैं, उतना ही अगर समस्याओं और उसके समाधान पर बात करने पर दें तो बेहतर होगा। लेकिन कंगना को यह बात उनके साथ चल रहे वरिष्ठ नेताओं की फौज तक नहीं समझा पा रही। यह दिखाता है कि कंगना को चुनाव लड़वाने का फैसला निस्संदेह ऊपर से ही लिया गया था और ऊपर से लिए गए फैसले और वहां से भेजे गए शख्स के आगे प्रदेश का कोई नेता कैसे कुछ बोल सकता है? पार्टियों की यही परंपरा तो रही है।

इसके विपरीत कंगना जो कुछ कह रही हैं, उससे स्विंग वोटर्स.. यानी वो वोटर जो हर चुनाव में परिस्थिति, मुद्दों या उम्मीदवार के आधार पर वोट देते हैं, किसी पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता के आधार पर नहीं, वो वोटर्स चिढ़ रहे हैं। हल्के और छिछले बयान समझदार वोटरों को परेशान करते हैं। और कुछ के बीच यह अवधारणा बनती जा रही है कि इससे बेहतर तो वही विक्रमादित्य सिंह हैं, जिन्होंने पिछले कुछ समय में राजनीतिक अपरिपक्वता और अधीरता के अनंत उदाहरण पेश कर दिए हैं।

विक्रमादित्य- कुछ चतुराई, कुछ अपरिपक्वता

विक्रमादित्य सिंह में कुछ चतुराई वाले गुण तो हैं। जैसे कि उन्होंने भी उसी दौर में जय श्री राम के नारे को खुलकर अपनाना शुरू कर दिया, जब से कंगना का झुकाव अचानक बीजेपी की ओर बढ़ गया था। विक्रमादित्य ने देखा कि हिमाचल में भी एक बड़ा वर्ग मोदी-बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे से प्रभावित है। ऐसे में उनकी पोस्ट्स में वह जय श्रीराम नारा अचानक दिखने लगा, जो पहले नहीं दिखता था।

फिर उनका केंद्र के साथ तालमेल होने की बार-बार बातें करना, पार्टी लाइन से अलग जाकर बीजेपी के मुद्दों को यह कहते हुए समर्थन देना कि वह सही को सही और गलत को गलत कहते हैं, वास्तव में उसी वोटर को अपनी ओर करना था, जो बीजेपी के एजेंडे से अभिभूत है। और पिछले कई महीनों की मेहनत रंग भी ला रही है। हिमाचल में जो वर्ग बिना गुण-दोषों की विवेचना किए बस नरेंद्र मोदी और बीजेपी का समर्थन करता है, वही विक्रमादित्य की भी तारीफ करता है। इससे एक कदम आगे जाकर विक्रमादित्य ने पिछले दिनों आरएसएस और वीएचपी के करीबी बताना शुरू किया क्योंकि उन्हें लगता है कि कंगना के बीफ वाले बयान पर नाराज हिंदुओं को इस तरीके से साधा जा सकता है।

भले ही विक्रमादित्य पिछले एक दशक में राजनीतिक रूप से गंभीर हुए हों, लेकिन कुछ मौकों पर उनके कदम दिखाते हैं उनके अंदर राजनीतिक अपरिपक्वता बनी हुई है। जैसे कि मंचों पर भाषण देते हुए बहक जाना और ऐसा कह देना जिससे अपना या पार्टी का नुकसान हो जाए। बड़बोलेपन में ऐसी बातें कह देना, जिनका कोई सिर-पैर न हो। हाल की बात करें तो जैसे कंगना पर खुद ही निजी हमले करना, खान-पान पर सवाल उठाना, फिर सामने से भी वैसे उत्तर मिलने पर मर्यादाओं की बात करना।

सुक्खू पर हमलों का इतिहास

राजनीतिक अपरिपक्वता का एक सबसे बड़ा उदाहरण उनका वह बयान भी था, जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि सुक्कू कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री वही बनेगा, जो विधायक होगा। उस पर विक्रमादित्य सिंह ने कह दिया था- He is not competent enough to talk on these matters. यानी वह इस विषय पर बात करने की योग्यता नहीं रखते। भले विक्रमादित्य सिंह के सुक्खू के प्रति ऐसे विचार हों, लेकिन ऐसी बातें सार्वजनिक तौर पर कहना उन्हें मुश्किल में डाल गया। सुक्खू सीएम बन गए और विक्रमादित्य को उन्हीं के नेतृत्व में काम करना पड़ा। और यह बात राजनीतिक गलियारों में हर कोई जानता है कि मंत्री बनाने के बावजूद सुक्खू ने ऐसी घेराबंदी कर दी कि पीडब्ल्यूडी महकमे में सारे अहम फैसले सीएम की मंजूरी के बिना हो ही नहीं पा रहे थे।

फिर जब राज्यसभा चुनाव में छह कांग्रेसी विधायक बागी हो गए और ऐसा संकट पैदा हो गया कि सरकार कभी भी गिर सकती है, तो उसी दौरान विक्रमादित्य ने अनदेखी का आरोप लगा इस्तीफा दे दिया। तब राजनीतिक विश्लेषकों का कहना था कि शायद विक्रमादित्य ने हड़बड़ी में यह फैसला ले लिया कि सरकार गिरने वाली है और कहीं मैं कांग्रेस में ही न रह जाऊं। और फिर संकट टला तो विक्रमादित्य मान भी गए और सुक्खू की तारीफों के पुल बांधते आए।

कई मामलों में पर बार बार उनके पलटने से उनकी छवि यूटर्न लेने वाले नेता की भी बन गई है। जेओएआईटी वाले अभ्यर्थियों के किए गए वादे और फिर उससे हटना भी इसी कड़ी का हिस्सा है। वास्तव में वह कुछ मामलों पर क्लियर स्टैंड न लेकर गोल-मोल बातें करते हैं। ऐसी बातों को भले एक आम व्यक्ति न समझ पाता हो, लेकिन हिमाचल प्रदेश समझदार मतदाताओं का राज्य माना जाता है। वे मतदाता इस अस्पष्टता को भांप जाते हैं। इसीलिए कई राजनीतिक विश्लेषक यह कयास भी लगाते हैं कि शायद विक्रमादित्य लंबी रेस का घोड़ा साबित न हो पाएं।

नवीनता का अभाव

मंडी लोकसभा चुनाव के दौरान वह कहते हैं कि मुद्दों पर बात करेंगे। लेकिन उनका विज़न ही विज़नहीन नजर आता है। जैसे कि स्मार्ट सिटी से मंडी सिटी के लिए फंड लाना। चलिए मान लिया कि कांग्रेस की सरकार बनने पर वे फंड ले भी आएंगे, तो भी उनका वादा है कि ब्यास के किनारे रिवर फ्रंट बनेगा। रिवर फ्रंट विकसित करना हो तो जगह चाहिए होती है। मंडी के पास से ब्यास एक महाखड्ड यानी खड़ी घाटी से गुजरती है और किनारों तक निर्माण हुए पड़े हैं। फिर नदी के अंदर घुसकर रिवर फ्रंट कैसे बनाया जा सकता है?

वह भुभुजोत सुरंग की बात करते हैं जिसकी बात कई दशकों से हो रही है और आज तक नहीं बन पाई और शायद जिसकी अब जरूरत भी नहीं फोरलेन बन जाने के बाद। और फिर बतौर युवा एंव खेल मंत्री (लंबे समय तक महकमा उनके पास रहा) और लोकनिर्माण मंत्री उनकी उपलब्धियां क्या हैं, वह गिनाने में असफल रहे हैं। वह जिन सड़कों के निर्माण या टारिंग आदि की बात कर रहे हैं, या भविष्य के लिए मंजूर परियोजनाओं की बात कर रहे हैं, वे रूटीन काम हैं। शायद उनके पास एक अच्छी टीम और सलाहकारों की कमी है।

इसके विपरीत वह कंगना पर सवाल उठाते हैं कि आपदा के समय वह कहां थीं। यह प्रश्न तो एक हद तक वाजिब हो सकता है कि अगर आप प्रतिनिधित्व करना चाहती थीं इस इलाके का और आप सक्षम थीं (आर्थिक रूप से) तो आपको एक दिन के लिए ही सही, उस सरकाघाट या मनाली तो आना चाहिए था जहां आपदा की सबसे ज्यादा मार पड़ी। हां, अगर आपको अनिच्छा से किसी पार्टी ने जबरन टिकट देकर भेज दिया हो, तो अलग बात है। लेकिन इस मामले में तो ऐसा नहीं हुआ।

पूर्वग्रहों से घिरा नेतृत्व

लेकिन कांग्रेस के कई नेता यह कह रहे हैं कि कंगना अभिनेत्री हैं, उनका राजनीति में क्या काम। विक्रमादित्य ही नहीं, सुदंर सिंह ठाकुर, कौल सिंह ठाकुर और यहां तक सीएम सुक्खू और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री तक ये बातें कर चुके हैं। उनकी ये बातें हैरान कर सकती हैं। अगर एक पत्रकार (अग्निहोत्री) आगे चलकर राजनीति में आने के बाद डेप्युटी सीएम बन सकता है या दूध बेचने से शुरुआत कर (सुक्खू) कोई सीएम बन सकता है तो कोई अभिनय की दुनिया से आकर सफल और अच्छा राजनेता क्यों नहीं बन सकता? या आप यह कहना चाहते हैं कि राजनीतिक परिवार से आने वाले व्यक्ति की योग्यता ज्यादा होती है? अगर ऐसा है तो सीएम सुक्खू ने भले ही छात्र राजनीति से होते हुए मुख्य राजनीति में कदम रखा, मगर उनके खुद के परिवार की तो कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

यह पहले से मान लेना कि कोई अभिनेता है, इसलिए राजनीति में काम नहीं कर पाएगा या अभिनेता से राजनेता बनकर फ्लॉप किसी और व्यक्ति का हवाला देकर सभी को खारिज कर देना कितना सही है?  नाकाम तो फुल टाइम पॉलिटीशियन भी होते हैं। उदाहरण के लिए अगर इतने ही काम किए होते और योग्यता इतनी ही होती तो प्रतिभा सिंह दोबारा यहां से चुनाव लड़ रही होतीं।

सीएम सुक्खू की स्क्रिप्ट और डायरेक्शन 

बहरहाल, विक्रमादित्य को संभवत: उन्हीं के समर्थकों की तरह लगता हो कि वह मुख्यमंत्री बनने के हकदार हैं और मंडी सीट जीती तो उनका कद और दावेदारी बढ़ेगी। रणनीति सही प्रतीत भी होती है। उनके पिता वीरभद्र सिंह लंबे समय तक सीएम रहे प्रदेश के। उनकी अपनी एक राजनीतिक विरासत भी है। इस बात विक्रमादित्य में आत्मविश्वास है, वह होना भी चाहिए। लेकिन यह अतिआत्मविश्वास में कभी कभी बदला दिखता है। साथ ही उनमें धीरज की कमी दिखाई देती है, उससे उन्हें पार पाना होगा। वो खुद को खुद ही विनम्र बताते हैं लेकिन अपने भाषण एक बार सुनें, विनम्रता कहीं पर नहीं झलकती।

उन्हें ये भी याद रखना होगा कि पहली बार सीएम बनने के लिए जो एडवांटेज उनके पिता को उस समय के राजनीतिक हालात में मिला था, तब परिस्थितियां अलग थीं और आज अलग हैं। आज उनका सामना सुखविंदर सिंह सुक्खू से है, जो मंडी के सेरी मंच से एलान कर चुके हैं कि वह जयराम ठाकुर से बेहतर स्क्रिप्ट राइटर और डायरेक्टर हैं और उनकी बनाई फिल्म हिट होगी।

ऐसे में आज की परिस्थितियों से पार पाने के लिए संयम जरूरी है। आप अपने काम से छाप छोड़ने, अपने साथ लोग जोड़ने, अपना कद बढ़ाने में जुटे होते तो आज आपकी स्थिति मजबूत होती। लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो दूर की सोचिए। तभी पार्टी आलाकमान भी आपके आगे वैसे ही नतमस्तक होगा, जैसे लाख चाहते हुए भी वीरभद्र सिंह के आगे नतमस्तक था और लाख चाहकर भी उनका पीछे नहीं कर पाया था।

मोदी नाम के सहारे चलतीं कंगना

दूसरी ओर कंगना हैं, जिन्होंने आते ही कह दिया कि मुझे लगता है कि हम अपने दम पर नहीं, मोदी जी के नाम और परिश्रम के दम पर जीतेंगे। पार्टी और नेता के नाम,काम और छवि का सहारा लेना अच्छा है। लेकिन आपको जब इतने सारे लोगों को नजरअंदाज करके चुना गया है तो क्या आपका फर्ज नहीं बनता कि कुछ मेहनत करें? कुछ समझें, पढ़ें-लिखें, लोगों को बताएं कि हां, मैं कोई एलियन नहीं हूं, मुझे आपकी समस्याओं और मुद्दों की समझ है। तभी तो लोगों में विश्वास जगेगा कि आप उन्हें सिर्फ संसद पहुंचकर अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा नहीं करना चाहतीं, आपके दिन में वाकई कुछ करने का जुनून है। मगर फिलहाल ये जुनून तो नहीं दिख रहा, ऊल-जुलूल बातें जरूर सुनने को मिल रही हैं।

काबिल बनिए, अपेक्षाकृत बेहतर नहीं

बेहतर होगा अगर दोनों उम्मीदवार अपने व्यक्तित्व के ज़िम्मेदार और गंभीर पहलू को सामने रखें। ये बयान, ये तीखे हमले, ये प्रहार… ये सिर्फ मीडिया और जनता का मनोरंजन करते हैं। जनता वोट उसी को डालती है, जिसे डालना होता है। तो अपने आप को योग्य उम्मीदवार साबित कीजिए। ताकि वोटर को साफ पता हो कि मुझे इसे वोट डालना है क्योंकि ये वाकई लायक है। वरना अंधों में काने राजा की तर्ज पर जीत हासिल की भी तो क्या फायदा? रैलियों में या सोशल मीडिया पर जय-जयकार करने वालों पर जाएंगे तो घमंड बढ़ेगा। आगे बढ़ना है तो आलोचकों को सुनिए, समझिए और सुधार कीजिए।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

आकाश आनंद को मायावती ने बसपा के नैशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटाया

इन हिमाचल डेस्क।। बसपा सुप्रीमो मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक पद से हटाने का एलान किया है। मायावती ने उन्हें बीते साल दिसंबर में ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था।

आकाश आनंद मायावती के भतीजे हैं। मायावती ने बीते साल ही उन्हें 2024 लोकसभा चुनाव की कमान भी सौंपी थी। वह चुनाव प्रचार में जुटे भी थे कि अचानक ही उन्हें हटा दिया गया।

मायावती ने कहा है कि उन्हें परिपक्वता न होने के कारण हटाया गया है। इस संबंध में मावायती ने ट्वीट भी किया है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया है कि आकाश आनंद के पिता अपने दायित्वों को संभालते रहेंगे।

अब तरह तरह के कयास लग रहे हैं कि अचानक ही मायावती ने यह फैसला क्यों ले लिया। इस संबंध में अभी तक आकाश आनंद का पक्ष सार्वजनिक नहीं हुआ है।

ईरान की नाव को भारत के कोस्ट गार्ड ने पकड़ा तो भारतीय क्रू ने सुनाई आपबीती

डेस्क।। ईरान के एक छोटे जहाज़ को भारतीय कोस्ट गार्ड ने केरल के तट के पास पकड़ा है। इस जहाज के क्रू के सदस्य भारत के हैं। द हिंदू की खबर के अनुसार, भारतीय कोस्ट कार्ड के जहाज और हेलिकॉप्टर ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया।

इसे कोझिकोड़ जिले के कोइलैंडी से 20 समुद्री मील दूर बेपोर के नजदीक पकड़ा गया है। इसके बाद इसे कोच्चि में लाया गया है जहां आगे की पड़ताल और कानूनी प्रक्रिया अमल में लाई जा रही है।

कोस्ट गार्ड के अनुसार, शुरुआती जांच बता रही है कि नाव का मालिकाना हक एक ईरानी के पास है और उसने कन्याकुमारी के छह मछुआरों से एक कॉन्ट्रैक्ट किया हुआ है। इसके तहत उसने इन्हें ईरान के तट के करीब मछली पकड़ने के लिए ईरानी वीजा दिलवाया है।

क्रू के सदस्यों ने कोस्ट गार्ड को बताया कि उन्हें हायर करने के बाद से ही परेशान किया जा रहा था। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा था। उन्हें सही से नहीं रखा जा रहा था और पासपोर्ट जब्त कर लिए गए थे।

मछुआरों का कहना है कि इसके बाद मौका मिलते ही वो नाव लेकर ईरान से भारत की ओर भाग निकले।

Manjummel Boys : क्यों हर ओर छाया हुआ है मंजुम्मेल बॉयज़ का नाम

मंजुम्मेल बॉयज़, ये ऐसा नाम है जो गूगल से लेकर ट्विटर तक छाया हुआ है। ये एक मलयालम मूवी है जिसने अब तक 230 करोड़ रुपये से ज्यादा कमा लिए हैं।

कई कलाकार, समीक्षक और पत्रकार इस फिल्म की तारीफ कर रहे हैं। ये सर्वाइवल थ्रिलर मूवी है। इसमें 2006 की एक घटना पर आधारित है। उस समय गुफा में फंसे दोस्त को बचाने के लिए कुछ लोगों को इन हालात से गुज़रना पड़ा था, उसका फिल्मांकन किया गया है।

जहां उनका दोस्त फंसा था, उसे मंजुम्मेल कहा जाता है। ये कोदाइकनाल के गुना गुफा में है। अब ये एक बार फिर चर्चा में इसलिए है क्योंकि ये डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर मलयालम, हिंदी, तमिल और कन्नड़ भाषा में उपलब्ध हो गई है।

थिएटर में यह 74 दिन पहले रिलीज हुई थी। इस फिल्म का मलयालम ही नहीं बल्कि तमिल संस्करण भी सुपर हिट रहा था।

पीएम नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में किया रोड शो, रामलला के भी किए दर्शन

अयोध्या।। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार शाम को उत्तर प्रदेश के अयोध्या से बीजेपी के उम्मीदवार लल्लू सिंह के समर्थन में रोड शो किया। पीएम का रोड शो सुग्रीव किला से लता मंगेश्वर चौक तक चला। दो किलोमीटर तक चले इस रोड शो को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटे।

रोड शो के लिए एक खास रथ बनाया गया था जिसमें उनके साथ यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी थे। इस दौरान लोग फूलों की बारिश करते भी नजर आए।

इसके बाद पीएम यहां से अयोध्या एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गए जहां से वह विशेष विमान से दिल्ली चले गए। वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी राजधानी लखनऊ लौट गए।

इससे पहले पीएम मोदी ने राम मंदिर पहुंचकर राम लला के दर्शन भी किए थे।

VleBazaar reviews : कई ग्राहक परेशान, कंज़्यूमर कमीशन तक को देना पड़ा दखल

VleBazaar या VleBazaar.com एक ऐसी कंपनी है जो अक्सर सस्ते और लुभावने दाम पर इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचती है। लेकिन इस कंपनी पर ग्राहकों के साथ वादों को निभाने में नाकाम रहने के भी आरोप लगते रहे हैं।

इंटरनेट पर ट्विटर से लेकर कई खबरों तक से यह पता चलता है कि कई ग्राहकों को समय पर चीजें नहीं भेजी गईं। फिर ग्राहक ने ऑर्डर कैंसल किया तो समय पर उनका रीफंड नहीं दिया गया।

2022 में तो डिस्ट्रिक्ट कंज्यूमर डिस्प्यूट रीड्रेसल कमीशन के आदेश पर एक ग्राहक को उनके ऑर्डर का रीफंड आठ फीसदी सालाना दर पर देने के लिए कहा गया था। उसकी खबर यहां क्लिक करके पढ़ें।

इस कंपनी के मालिक हिमांशु अग्रवाल को यह आदेश दिया गया था। इसके अलावा, कुछ अन्य उदाहरणों की बात करें तो आशीष सिदाना नाम के शख्स ने इस संबंध में अपना पूरा अनुभव ट्विटर (इन दिनों एक्स) पर साझा किया है। यहां क्लिक करके उनके हैंडल पर जाएं।

इसलिए, सस्ते के चक्कर में न पड़ें। इनकी वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर हमने लगातार चार दिन कॉल किया, किसी ने भी उसे नहीं उठाया। कुछ भी सामग्री खरीदने से पहले सोच-समझकर फैसला लें।

कंगना के खिलाफ कांग्रेस ने चुनाव आयोग को दी शिकायत, की ये मांग

शिमला।। कांग्रेस ने मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार कंगना के खिलाफ शिकायत की है। कांग्रेस ने कहा है कि कंगना द्वारा उनकी पार्टी के उम्मीदवार विक्रमादित्य सिंह को एक उपनाम से पुकारे जाने, उनके परिवार और निजी जिंदगी पर टिप्पणियां करने से रोका जाए।

कांग्रेस ने कहा है कि प्रदेश और केंद्रीय स्तर के नेतृत्व की ओर से कई बार शिकायत किए जाने के बावजूद कंगना पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है। कांग्रेस का आरोप है कि कंगना लगातार विक्रमादित्य सिंह पर निजी हमले कर रही हैं।

सरकाघाट में कंगना के भाषण का जिक्र करते हुए कांग्रेस ने लिखा है कि उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और विक्रमादित्य के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों की तुलना कारोबारियों से और मोती लाल नेहरू को ब्रितानियों का अंश बताया।

कांग्रेस की शिकायत में कहा गया है कि कंगना ने संजय गांधी पर जबरन नसबंदी करने का आरोप लगाया। ये आचार संहिता का उल्लंघन है और मृत व्यक्ति पर निजी हमला है। इस शिकायत में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए अपमानजनक भाषा इस्तेमाल करने का भी जिक्र किया गया है।

टूटे कर्ज के सारे रिकॉर्ड, सुक्खू सरकार ने बीजेपी को भी पीछे छोड़ा

टूटे कर्ज के सारे रिकॉर्ड, सुक्खू सरकार ने बीजेपी को भी पीछे छोड़ा

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार 700 करोड़ रुपये का कर्ज लेने जा रही है। यह नए वित्त वर्ष में सुक्खू सरकार का दूसरा कर्ज होगा। इससे पहले तीन अप्रैल को हिमाचल सरकार ने 1000 करोड़ का कर्ज लिया था।

दैनिक जागरण में आठ मार्च को छपी रिपोर्ट के अनुसार, बीते करीब सवा वर्षा के दौरान ही सुक्खू सरकार ने अब तक 13400 करोड का कर्ज ले लिया है। अगर इसमें 1700 रुपये मिला दिए जाएं तो कुल रकम 15100 करोड़ हो जाती है।

यह रकम पिछली बीजेपी सरकार के कार्यकाल में पांच साल यानी साठ महीनों में लिए गए कुल कर्ज के आधे से ज्यादा है। यानी एक तरह से देखा जाए तो जिनता कर्ज पिछली सरकार ने 30 महीने में लिया था, उतना वर्तमान सरकार 15 महीने में ही ले चुकी है।

अगर आगे भी कर्ज लेने की रफ्तार ऐसी ही रही तो पांच साल कार्यकाल पूरा होने के बाद प्रदेश पर वर्तमान सरकार 60 हजार करोड़ का अतिरिक्त कर्ज लेकर जाएगी तो पिछली बीजेपी सरकार के लिए कर्ज से दोगुना होगा। और हिमाचल पर कुल कर्ज होगा 1 लाख 36 हजार करोड़ से ज़्यादा।

दरअसल, विधानसभा में उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने श्वेत पत्र लाते हुए बताया था कि 2017 में जब कांग्रेस की सरकार गई थी तब प्रदेश पर 47906 करोड़ रुपये का कर्ज था। जब बीजेपी 2022 में सत्ता से हटी तो यह कर्ज बढ़कर 76630 करोड़ हो गया।

यानी बीजेपी के कार्यकाल में प्रदेश पर 28724 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज चढ़ा। अब वर्तमान की कांग्रेस सरकार इस रकम के आधे से ज्यादा का कर्ज ले चुकी है।

2022 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर बेतहाशा कर्ज लेने का आरोप लगाया था। यही कांग्रेस का मुख्य मुद्दा भी था। मगर कर्ज लेने की रफ्तार कांग्रेस सरकार में तेज़ हो गई है।

अगर अब तक लिए कर्ज को महीनों के आधार पर बांटा जाए तो जहां जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार औसतन हर महीने 478 करोड़ का कर्ज ले रही थी, वहीं अब तक सुक्खू सरकार हर महीने औसतन 1006 करोड़ कर्ज ले रही है।

हिमाचल में बनी खांसी से लेकर हार्ट फेलियर तक की इन 16 दवाओं के सैंपल फेल,

शिमला।। हिमाचल में बनी 16 दवाओं के कई बैच ज़रूरी मानकों पर खरे नहीं पाए गए हैं। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेश (CDSCO) की ओर से हर महीने जारी की जाने वाली सूची में यह जानकारी दी गई है।

जो दवाएं घटिया पाई गई हैं, उनमें से कई ब्लड क्लॉट यानी खून के थक्के जमने से रोकने, ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने और अर्थराइटिस में राहत देने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं।

इनमें से कुछ पेट में बैक्टीरिया से संक्रमण होने, दर्द, सूजन, एलर्जी, एसिटडिटी, सिर दर्द, ब्रॉन्काइटिस, हार्ट फेलियर, बदहज़मी, उल्टी, पेट में अल्सर, खांसी और फंगल इन्फेक्शन के इलाज के लिए इस्तेमाल होती हैं।

राज्य के कार्यकारी ड्रग्स कंट्रोलर मनीष कपूर ने द ट्रिब्यून अखबार से कहा कि जिन दवाओं का नाम आया है, उन्हें तुरंत मार्केट से हटा दिया जाएगा और फील्ड स्टाफ जांच करेगा कि कमी कहां रह गई।

इनमें काला अंब की कंपनी डिजिटल विज़न की ओर से बनाई जाने वाली दवा अलर्नो (Alerno Tab) भी शामिल है। इसकी जानकारी देते हुए द ट्रिब्यून ने लिखा है कि ये वही कंपनी है जिसके बनाए कफ़ सिरप पर साल 2020 में जम्मू और कश्मीर के उधमपुर में कई बच्चों की जान लेने के आरोप लगे थे। उसकी अलर्नो नाम की एलर्जी का इलाज करने वाली दवा को सबस्टैंडर्ड बताया गया है।

CDSCO कफ़ सिरप की क्वॉलिटी को लेकर ज्यादा सजग था. ऐसे में Abrodoll-S और L Melt नाम के कफ सिरप सबस्टैंडर्ड पाए गए हैं यानी वे मानकों के अनुरूप नहीं थे। इन्हें परवाणु के पास टकसाल नाम की कंपनी बनाती है। इन दोनों में वे अहम सामग्रियां कम थीं, जिनसे दवा असरदार बनती है।

शालिनी अग्निहोत्री को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने तबादले के आदेश पर लगाई रोक

शिमला।। सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल कैडर की आईपीएस अधिकारी शालिनी अग्निहोत्री को राहत देते हुए उनके कांगड़ा एसपी पद से तबादले के आदेश पर रोक लगाते हुए नोटिस जारी किया है।

गौरतबल है कि पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा ने हिमाचल पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोप लगाया था कि ये अफसर उनपर एक मामले में दबाव डालने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने डीजीपी संजय कुंडू पर प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाए थे।

इसके बाद उनकी शिकायत पर संज्ञान लेते हुए शिमला हाई कोर्ट ने डीजीपी और एसपी कांगड़ा को बदलने के आदेश दिए थे। सुक्खू सरकार ने कुंडू को आयुष विभाग का प्रधान सचिव बना दिया था मगर कुंडू ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

कुंडू को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली थी और उन्हें फिर से डीजीपी पद पर बहाल कर दिया गया था। इसी तरह शालिनी अग्निहोत्री की ओर से भी एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी।

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने शालिनी को भी राहत देते हुए ट्रांसफर आदेश पर रोक लगा दी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे और मोहित डी. राम (एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड) ने शालिनी का पक्ष रखा।