- सुनील कुमार
बात उन दिनों की है, जब मैं ***** #### विद्यालय में पढ़ता था। यह बोर्डिंग स्कूल था और यहां हिमाचल और बाहर के राज्यों के बच्चे पढ़ने आते थे। घर से दूर हम सब बच्चों का पहला अनुभव होता था। हॉस्टल में रहना और पढ़ना लगभग सभी बच्चों के लिए कष्ट भरा था। मैं तो 9वीं क्लास में हो गया था, मगर देखता था कि 6वीं क्लास में जो नए बच्चे आते, बेचारे सुबकते रहते घरवालों की याद में। उससे अपनी भी याद ताजा हो जाती।
खैर, हम जो सीनियर बच्चे थे, गर्मियों के दिनों में स्कूल की चाहरदिवारी को फांदकर चुपके से नहाने चले जाते थे बगल वाली खड्ड में और फिर चुपके से आ जाते। हमारा गिरोह ऐसा होता था कि सब एक-दूसरे को कवरअप करते थे। टीचर्स, वॉर्डन तो क्या किसी भी कर्मचारी को पता नहीं चलता कि हम ऐसा करते हैं। खैर, अब अहसास होता है कि उस वक्त कितना गलत करते थे। मगर उन दिनों तो रोमांच ही अलग था।
एक दिन ऐसे ही हम 7-8 लड़के गए और तैरने लगे। उसूल था कि जिसे तैराना आता है, वही चलेगा साथ। एक आध घंटा हम तैरे और लौटने लगे। रास्ते में एक आवारा सांड़ खड़ा था। हमारे बीच से एक लड़के पंकज को जाने क्या सूझी कि वह उस सांड़ को लात मारने लगा। सांड़ ने गुस्से में उसे एक दो बार धकेला, मगर पंकज बार-बार सांड़ को कभी लात मारे, कभी उसकी पूंछ मरोड़े कभी पत्थर। हमने उसे बोला कि क्या कर रहा है।
पंकज 8वीं मे ंपढ़ता था। एकदम सुकड़ू और शरीफ। मगर आज न जाने क्या मस्ती सूझी थी। खैर, हमारे एक क्लास सीनियर (10वीं में पढ़ने वाले) ने उसे एक थप्पड़ मारा और खींचकर बोला चल, क्या कर रहा है। पंकज ने उसे घूरना शुरू कर दिया। अकड़ में रहने वाले सीनियर ने भी तैश में आकर पंकज को फिर से मारना चाहा कि घूर क्यों रहा है, मगर हमने बीच-बचाव कर दिया।
खैर, हम आ गए स्कूल और नॉर्मल होकर बिजी हो गए। रात को खाना खाने के बाद सब अपने-अपने बिस्तर पर थे कि बाथरूम से शोर आने लगा। हम सब बच्चे वहां दौड़े तो देखा कि पंकज उसी सीनियर को पीट रहा है, जिसने दिन में उसे थप्पड़ मारा था। पंकज एकदम सुकड़ूू, 8वीं का बच्चा और जिसे उसने गिराया था, वह उससे लगभग दोगुना हट्टा-कट्टा दसवीं का लड़का। पंकज उसकी छाती पर सवार था और घूंसे मारे जा रहा था।
देखा कि 3-4 लड़के पंकज को खींच रहे हैं मगर वह उनसे काबू नहीं आ रहा। वॉर्डन भी दौड़ा-दौड़ा आया और उसने बोला कि क्या हो रहा है। पंकज माना नहीं। वॉर्डन, हम 4-5 और लड़कों ने पंकज को पकड़ा, मगर वह ढंग से संपर्क में नहीं आ रहा था। उसकी आंखें लाल थीं। वह गुर्राता हुआ बोल रहा था- सुरेश को मारेगा…. सुरेश को मारेगा…. भैं*** मां***
पंकज ऐसी-ऐसी गालियां निकाल रहा था कि हम चौंक गए थे। एक तो हममें से वैसी गालियां कोई किसी को नहीं देता था और पंकज तो किसी को कभी ऊंची आवाज में नहीं बोलता था। वॉर्डन, चौकीदार और एक अन्य टीचर वहां आ गए थे। उन्होंने कहा कि पता नहीं क्या हुआ है, अस्पताल ले चलो। चौकीदार बोला कि जी पहले हनुमान जी के मंदिर (जो कैंपस में ही बने मंदिर में था) के पास ले चलो इसे।
आप यकीन न करें चौकीदार, वॉर्डन और टीचर ने उसे हाथ-पैरों से उठाया हुआ था, मगर उन्हें भी पसीना आ रहा था। जैसे-तैसे वे उसे मंदिर में ले गए। वहां फूल फेंके उसके ऊपर और शायद एक आध फूल खिलाया भी था। पंकज ठीक हो गया और नॉर्मल सांस लेने लगा। उसकी आंखें भी सामान्य सी हो गई थीं। उसे पानी पिलाया गया। उससे पूछा कि क्या हुआ था। बोला पता नहीं सिर में दर्द हो रहा था।
उसे वापस हॉस्टल लाया गया और पूरी रात वैसे ही हम लोगों की चर्चा करते हुए कटी। अगले ही दिन मॉर्निंग असेंबली में फिर वही सीन। अचानक पंकज चिल्लाने लगा और पेड़ पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। पीटीआई सर ने उसे पकड़ा। सब टीचर्स आ गए। उसकी आंखें फिर से खून की तरह लाल। प्रिंसिपल हैरान, बच्चे डरे हुए। लड़कियां रोने लग गई थीं और कुछ लड़के भी।
संस्कृत के अध्यापक, जो कि पार्ट टाइम पुजारी भी हुआ करते थे, कुछ मंत्र पढ़े और पंकज के सिर पर हाथ फेरा। पंकज हंसा और बोला- सुरेश नाम है मेरा, पंकज किले बोल रहे हो। किसी को नहीं छोड़ूंगा मैं। यह सुनकर सब परेशान। थोड़ी देर में पंकज को एक टीचर के स्कूटर पर बिठाकर अस्पताल ले जाया गया। वहां भी वह ऐसी ही हरकतें करे। वह कांगड़ा से था, इसलिए उसके पैरंट्स को फोन कर दिया गया। उसके पैरंट्स अगले दिन आए और उसे ले गए।
एक हफ्ते बाद उसके पैरंट्स आए। उन्होंने उसके क्लासमेट्स और होस्टलमेट्स से पूछना शुरू किया कि वे कहां-कहां गए थे। किसी ने बता दिया डरकर कि ये लोग नहाने जाते थे छिप-छिपकर। प्रिंसिपल के सामने हम सभी की क्लास लगी। हमें पूछा गया कि कैसे जाते हो। हम सभी 15-16 बच्चों के माता-पिता को बताया गया। वॉर्निंग मिली। इस बीच यह बात आसपास के गांवों में भी फैल गई थी।
हमें बाद में पता चला कि बगल के गांव में कुछ साल पहले एक बारात आई थी, जिसमें आया 19 साल का लड़का सुरेश उसी आल (ताल) में डूबकर मर गया था, जहां हम नहाने जाते थे। यह बात गांव के कुछ ही लोगों को पता थी कि उसका नाम सुरेश है। और हम हॉस्टल वालों को पता भी कैसे चलती? फिर पंकज अगर किसी तरह के हिस्टीरिया या वहम की बात होती, वह सुरेश नाम कैसे बोलता अपना? और फिर उसमें इतनी ताकत कहां से आई।
हम बच्चे तब तक डरे रहे, जब तक स्कूल से पास नहीं हो गए। खैर, नहाने के लिए तालाब मे ंजाना छोड़ो, रात को ग्राउंड तक में नहीं निकले उस दिन के बाद। मैं स्कूल का नाम नहीं बताना चाह रहा, ताकि किसी तरह से बच्चे इस पोस्ट को पढ़ें और किसी तरह का वहम बनाएं। मेरा नाम भी बदल दें कृपया।
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(लेखक जिला ऊना से हैं, इन दिनों चंडीगढ़ में अपना बिजनस कर रहे हैं। उनका और उनके स्कूल का नाम छिपा या बदल दिया गया है। आप भी अपनी आपबीती हमें inhimachal.in@gmail.com या हमारे फेसबुक पेज पर भेज सकते हैं।)