कांगड़ा।। पैराग्लाइडिंग के लिए स्वर्ग मानी जाने वाली बिलिंग घाटी में पर्यटक उड़ान नहीं भर पा रहे हैं। धर्मशाला में 16 अक्टूबर को होने वाले वनडे इंटरनैशनल और दशहरा उत्सव तो ध्यान में रखते हुए पैराग्लाइडिंग पर रोक लगा दी है। खास बात यह है कि यह सबसे आदर्श समय है पैराग्लाइडिंग का और दर्जनों लोगों की रोजी-रोटी इस पर निर्भर करती है। इसके बाद सर्दियों में पैराग्लाइडिंग खराब मौसम की वजह से संभव नहीं हो पाती। ऐसे में इस सीजन के दौरान हुई कमाई से ही बाकी महीने लोगों को घर चलाना पड़ता है।
बिलिंग
जिला प्रशासन ने यह फैसला यहां आने वाले दर्शकों सहित अन्य सुरक्षा कारणों के चलते लिया। उल्लेखनीय है कि इन दिनों धर्मशाला के इंद्रुनाग तथा बैजनाथ के बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग के शौकीन अपना डेरा जमाते हैं लेकिन पैराग्लाइडिंग पर लगे प्रतिबंध के चलते उन्हें मायूसी हाथ लग रही है।
पुलिस प्रशासन जिला में इतने बड़े आयोजन के दौरान सुरक्षा की दृष्टि से कोई भी चूक नहीं चाहता है, इसी के चलते पैराग्लाइडिंग पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाया गया है। पुलिस प्रशासन ने मैच तथा दशहरा पर्व की सुरक्षा को लेकर इस संबंध में पैराग्लाइडिंग एसोसिएशन को निर्देश जारी कर दिए हैं। उल्लेखनीय है कि कांगड़ा में धर्मशाला के इंद्रूनाग तथा बीड़-बीलिंग में पैराग्लाइडिंग साइट हैं। पुलिस प्रशासन द्वारा मैच की सुरक्षा को लेकर पुलिस द्वारा मंत्रणा की जा रही है।
इसी के चलते पुलिस अधिकारी स्टेडियम का भी दौरा कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम धर्मशाला में 16 अक्तूबर को भारत-न्यूजीलैंड क्रिकेट टीम के बीच वन-डे मैच खेला जाएगा। इस मैच के दौरान धर्मशाला पहुंचने वाले दर्शकों सहित क्रिकेट खिलाडिय़ों की सुरक्षा को लेकर भी पुलिस द्वारा प्लान तैयार किया जा रहा है।
बीसीसीआई में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बीसीसीआई के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलील में बीसीसीआई के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को क्रिकेटर बता डाला। इस पर चीफ जस्टिस ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि मैं भी तो एक क्रिकेट मैच में सुप्रीम कोर्ट टीम का कप्तान था।
कोर्ट ने पूछा क्या बीसीसीआई प्रशासकों में कुछ खास कौशल है? अनुराग ठाकुर ने बोर्ड का अध्यक्ष बनने से पहले केवल एक रणजी मैच खेला है। इस दौरान बिहार बोर्ड के वकील ने कोर्ट को बताया कि अनुराग ठाकुर ने हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से खुद को चुना था, जिससे वो नॉर्थ जोन जूनियर सेलेक्शन कमेटी के सदस्य बन सकें। इसे सुन कर जज सन्न रह गए।
इस मामले को समझने के लिए इकनॉमिक टाइम्स के एक आर्टिकल का हिंदी अनुवाद आपको पढ़ना होगा। इसमें पूरे मामले को समझाया गया है। इस आर्टिकल को हमने उस वक्त भी पोस्ट किया था, जब अनुराग ठाकुर बीसीसीआई के चीफ चुने गए थे। उस दौरान लिखी गई आर्टिकल की भूमिका को फेड कर दिया है। आर्टिकल का अनवाद उसके नीचे से शुरू है।
अनुराग ठाकुर BCCI के अध्यक्ष चुने गए हैं। उनके समर्थक खुश हैं और बधाइयां दे रहे हैं। प्रदेश में बहुत से बीजेपी कार्यकर्ताओं में भी खुशी की लहर है। अनुराग के छोटे भाई अरुण धूमल ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया कि उनके भाई मेहनत से यह मुकाम हासिल किया है, बलिदान देकर और बिना पिता प्रेम कुमार धूमल से कोई फायदा लेकर। मगर ‘इन हिमाचल’ को प्रतिष्ठित अखबार ‘इकनॉमिक टाइम्स’ का 5 मार्च, 2014 का एक आर्टिकल हाथ लगा, जिसमें बताया गया है कि अनुराग ठाकुर ने किस तरह से HPCA पर कब्जा जमाए रखने के लिए दांव-पेच अपनाए। नीचे इकनॉमिक टाइम्स के उस आर्टिकल के अंशों का हिंदी अनुवाद दिया गया है। पाठक इन्हें पढ़कर खुद अवधारणा बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।
’23 नवंबर, 2000. जम्मू में तवी नदी के किनारे का मौलाना आजाद मेमोरियल स्टेडियम। रणजी के 2000-2001 सीजन में हिमाचल प्रदेश का मुकबाला जम्मू-कश्मीर से था। यह हिमाचल का पांचवां मैच था। हिमाचल दो मैच हार चुका था और दो अन्य ड्रॉ हो चुके थे।
हिमाचल का एक खिलाड़ी अनुराग ठाकुर रणजी में अपना पहला मैच खेल रहा था। इस खिलाड़ी ने 7 मिनट क्रीज़ पर बिताए, 7 गेंदों का सामना किया और बिना कोई रन बनाए आउट हो गया। मगर इस खिलाड़ी का इस मैच में होना दो वजहों से सबका ध्यान खींच रहा था।
भारत के प्रतिष्ठित घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट टूर्नमेंट रणजी ट्रोफी के इतिहास में यह पहला मौका था, जब अपना पहला मैच खेल रहा खिलाड़ी उस टीम का कैप्टन भी बना था। यह भी इकलौता ऐसा मामला था, जिसमें स्टेट की सिलेक्शन कमिटी ने खुद इस खिलाड़ी को चुना था और कैप्टन बनाने के लिए भी उपयुक्त माना था।
इस शानदार एंट्री से दो महीने पहले ही ठाकुर को हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन का प्रेजिडेंट बनाया गया था। इसका मतलब यह हुआ कि अब प्रेजिडेंट ही अपने राज्य की सिलेक्शन कमिटी का हेड था।
बीसीसीआई चीफ अनुराग ठाकुर।
एक पूर्व HPCA अधिकारी के मुताबिक अनुराग ने कभी सिलेक्शन के लिए ट्रायल नहीं दिया और न ही वह किसी इंटर डिस्ट्रिक्ट मैच में खेले। फिर भी उन्हें राज्य का कप्तान बना दिया गया। उस वक्त वह 25 साल के थे और उनके पिता प्रेम कुमार धूमल हिमाचल के मुख्यमंत्री थे। इस एक मैच की बदौलत अनुराग ठाकुर फर्स्ट क्लास खेलने वाले खिलाड़ी बन गए।
अगले साल, जब बीसीसीआई की मीटिंग में नैशनल सिलेक्टर नॉमिनेट करने के लिए हिमाचल की बारी आई, HPCA के प्रेजिडेंट अनुराग ठाकुर ने खुद को नॉमिनेट कर दिया। इस पद के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलना जरूरी होता है, जो कि अनुराग ठाकुर पिछले साल खेल चुके थे। भले ही उन्होंने एक भी रन नहीं बनाया हो (2 विकेट लिए थे), वह नैशनल जूनियर टीम के तीन साल के सिलेक्टर रहे। (बाद में बीसीसीआई ने सिलेक्टर बनने के लिए 25 रणनी मैच खेलना जरूरी कर दिया)।
ठाकुर ने ‘इकनॉमिक टाइम्स’ को बताया कि उस मैच में वह इसलिए खेले क्योंकि टीम का मनोबल टूटा हुआ था और वह उसका ऐटीट्यूड बदलना चाहते थे। उन्होंने कहा कि सिलेक्टर्स ने ही उन्हें खेलने के लिए कहा था, क्योंकि मैं अंडर 19 और अंडर 16 में अच्छा खेल चुका था।
‘अपने फायदे के लिए बदला HPCA का संविधान’
2000 में HPCA संभालने के बाद ठाकुर ने इस संस्था के संविधान में बड़ा बदलाव कर दिया। अब तक 12 डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट असोसिएशन के प्रेजिडेंट और सेक्रेटरीज़ के पास सोसायटी में वोटिंग राइट्स थे। इसका मतलब हुआ कि 5 साल में एक बार 24 सदस्य (साथ में एग्जिक्यूटिव कमिटी के आउटगोइंग मेंबर्स) ही प्रेजिडेंट और नई एग्जिक्यूटिव कमिटी का चयन करते थे। मगर ठाकुर ने HPCA में वोट देने वालों का विस्तार किया और 25 लाइफ मेंबर्स बनाकर उन्हें वोटिंग राइट दे दिया। इनकी नियुक्ति प्रेजिडेंट की सहमति से होनी तय की गई और प्रेजिडेंट ही एग्जिक्यूटिव कमिटी को भी नॉमिनेट कर सकता था।
इसका मतलब यह हुआ कि अगर सभी जिले (24) अनुराग ठाकुर का विरोध करते, तब भी अनुराग ठाकुर द्वारा मनोनीत किए गए सदस्य (25) उन्हें दोबारा प्रेजिडेंट चुन सकते थे। 2001 में HPCA ने अपना संविधान बदल दिया। ठाकुर ने ET को बताया कि यह फैसला सदस्यों द्वारा एकमत से निर्विरोध लिया गया था। यह इसलिए लिया गया था, क्योंकि असोसिएशन को पैसे चाहिए थे। उन्होंने कहा, ‘लाइफ मेंबर्स पर हर सोसायटी की तरह आखिरी फैसला प्रेजिडेंट ने लिया।’
‘पिता प्रेम कुमार धूमल से ऐसे लिया फायदा’
अनुराग ने अपने पिता और हिमाचल के उस वक्त के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को HPCA का चीफ पैटरन बना दिया और वोटिंग राइट्स भी दे दिए। जांच में शामिल एक शख्स के मुताबिक 2002 में धूमल सरकार ने HPCA को एक रुपये प्रति माह की दर पर 50,000 स्क्वेयर फीट जमीन 99 साल की लीज़ पर दे दी। पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप यह भी लगा था कि उन्होंने इस जमीन अलॉट करने के लिए जो कैबिनेट नोट पेश किया था, उसमें यह नहीं बताया था कि उनके पास सोसायटी में वोट करने का भी अधिकार था या उनका बेटा HPCA का प्रेजिडेंट है।
धूमल ने ईटी को बताया कि ऐसा करने की जरूरत ही नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘जब कोई राज्य का मुख्यमंत्री है, कई सारी सोसाइटीज़ उसे सदस्यता ऑफर करती हैं। मैंने कोई पैट्रनशिप स्वीकार नहीं की और न ही मीटिंग में शामिल हुआ। हर कोई जानता था कि अनुराग प्रेजिडेंट है। यह छिपी हुई बात नहीं थी। फिर इसका ब्योरा क्यों देना था? जमीन उसके अपने इस्तेमाल के लिए नहीं थी। वह एक असोसिएशन का प्रेजिडेंट था और जमीन लोगों की भलाई के लिए उस असोसिएशन के इस्तेमाल के लिए थी। अगर कुछ गलत था तो कांग्रेस सरकार को 2003 से 2007 के बीच सत्ता में रहते हुए इस पर ऐक्शन लेना चाहिए था।’
जब कांग्रेस सरकार ने पेश किया था स्पोर्ट्स ऐक्ट
2005 में कांग्रेस सरकार ने स्पोर्ट्स ऐक्ट पेश किया। इसमें कहा गया कि जिन स्पोर्ट्स असोसिएशन के नाम में ‘हिमाचल’ लगा है, उन्हें सिर्फ उस एसोसिएशन के जिलों के प्रतिनिधियों को वोटर राइट्स देने होंगे। मगर हिमाचल हाई कोर्ट ने इस कानून पर स्टे लगा दिया। 2008 में बीजेपी सरकार सत्ता में आई और इस कानून को रद्द कर दिया गया। धूमल ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने ही इस ऐक्ट को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और इस बारे में कैबिनेट नोट पेश किया गया था। मगर वीरभद्र सिंह का कहना है कि 2007 में स्पोर्ट्स डायरेक्टर ने ऐसा प्रस्ताव तो पेश किया था, मगर कैबिनेट में ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया था।
‘जब बनाई गईं दो-दो HPCA’
2005 में यह साफ हो गया कि कांग्रेस सरकार HPCA पर अनुराग ठाकुर का एकाधिकार खत्म करना चाहती थी। उसी साल कानपुर में एक कंपनी बनाई गई, जिसका नाम था- हिमालयन प्लेयर्स क्रिकेट असोसिएशन। इस कंपनी के पहले डायरेक्टर अनुराग ठाकुर थे और 6 अन्य सदस्य हिमाचल में HPCA के नाम से बनाई गई सोसायटी के थे। दो महीने बाद कानपुर की कंपनी ने अपना नाम बदलकर हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन रख लिया। यह सेक्शन 25 कंपनी थी, जो नॉन प्रॉफिट थी और अपने शेयर होल्डर्स को डिविडेंट नहीं दे सकती थी। अनुराग ठाकुर के मुताबिक यह कदम इसलिए उठाया गया था, क्योंकि हिमाचल सरकार स्पोर्ट्स ऐक्ट के जरिए HPCA पर अधिकार जमाना चाहती थी। इसलिए बीसीसीआई के अप्रूवल के बाद ही इसे केस्खन 25 में बदलने का फैसला लिया गया था।
‘सरकार से मिली संपत्ति प्राइवेट कंपनी को ट्रांसफर’
2012 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने के तुरंत बाद HPCA ने रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी को लिखा और कहा कि हमने इसी नाम की सेक्शन 25 कंपनी में विलय कर लिया है और सोसायटी को भंग कर दिया गया है। इस बीच 2010 में HPCA नाम की कंपनी ने अपना रजिस्टर्ड ऑफिस हिमाचल प्रदेश में शिफ्ट कर दिया था। 2011 से हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन नाम एक कंपनी और एक सोसायटी, दोनों ही एक रजिस्टर्ड ऑफिस पर चल रही थीं। दोनों के मुखिया अनुराग ठाकुर थे। इसका मतलब हुआ कि उनके पिता की सरकार ने HPCA सोसायटी को जो संपत्ति अलॉट की थी, अब वह एक प्राइवेट कंपनी के पास थी, जिसके डायरेक्टर अनुराग ठाकुर थे।
अनुराग के छोटे भाई अरुण।
छोटे भाई अरुण को भी बनाया HPCA का मेंबर
अनुराग के भाई अरुण धूमल भी HPCA के सदस्य थे, उन्हें 2012 में इसका डायरेक्टर बनाया गया। सोसायटी राज्यों द्वारा तय किए गए कानूनों के आधार पर चलती हैं, मगर कंपनी पर राज्यों के ज्यादा अधिकार नहीं होते। इससे HPCA थोड़ी राजनीतिक खींचतान से सुरक्षित हो गई। मगर हिमाचल के रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी ने कोर्ट का रुख किया और कहा कि सोसायटी को राज्य सरकार से जो संपत्तिया मिली हैं, उसे वह राज्य की अनुमति के बिना किसी निजी कंपनी को नहीं बेच सकती। इसी मामले में राज्य सरकार ने लीज़ कैंसल की और रातोरात HPCA के परिसर पर कब्जा कर लिया। बाद मे अनुराग ने कोर्ट का रुख किया और इस पर स्टे लग गया।
इस मामले पर अनुराग ने कहा, ‘हमने सोसायटी के रजिस्ट्रार को कन्वर्जन के बारे में बताया था।’ धूमल ने कहा कि मेरे और मेरे बेटे के खिलाफ उठाए गए सारे कदम राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है। कांग्रेस गले तक करप्शन में डूबी हुई है। कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया गया।’
(नोट: इस आर्टिकल में एक भी बात अपनी तरफ से नहीं लिखी गई है। यह इकनॉमिक टाइम्स के लेख का हिंदी अनुवाद है। इस बात को ऊपर के लिंक से वेरिफाई किया जा सकता है। इन हिमाचल इसके कॉन्टेंट के लिए जिम्मेदार नहीं है।)
प्रदेश में सर्दी की आहट के बीच चुनावी सरगर्मियों का दौर भी शुरू हो गया है। प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल तैयारी में जुट गए हैं। कांग्रेस में सभी नेता लगभग यह मान चुके हैं कि वीरभद्र सिंह को अभी भी पार्टी के अंदर से कोई चुनौती नहीं है। सीबीआई और ईडी के मामले भी लंबी कोर्ट प्रक्रिया का हिस्सा होकर लोगों के रुझान और जिज्ञासा को खत्म कर रहे हैं। वीरभद्र चाहते हैं कि किसी भी तरह सातवीं बार सत्ता पर कब्जा किया जाए। इस इच्छा के कारण वह संगठन की कमान अपने हाथ में लेना चाहते हैं। सार्वजनिक मंचों से वीरभद्र के सुक्खू के ऊपर सचिवों की आड़ से किए गए हमले इस बात को और पुख्ता करते हैं।
धूमल की राह चल पड़े हैं वीरभद्र?
पिछले चुनाव में जिस रास्ते और मानिसकता के साथ पूर्व मुख्यमंत्री धूमल चले थे, वीरभद्र भी उसी राह पर चल पड़े हैं। धूमल भी मिशन रिपीट तो चाहते थे, परंतु अपने विरोधियों को विधानसभा के अंदर नहीं देखना चाहते थे। इसलिए जहां-जहां शांता समर्थक टिकट पा गए, वहां-वहां कांगड़ा में धूमल समर्थक बागी हो गए। नतीजा सबके सामने रहा- बिना कांगड़ा किले को भेदे भाजपा सत्ता से दूर हो गई। वीरभद्र भी चाहते हैं सरकार बने, पर उनके विरोधियों का वजूद न रहे। इसी कड़ी में अपने सबसे ताकतवर प्रतिद्वंद्वी परिवहन मंत्री जीएस बाली के खिलाफ जो घेरेबंदी ओबीसी के नाम पर की गई, वह किसी रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है।
बाली पर भारती के हमले भी चर्चा में रहे।
नीरज भारती ने कांगड़ा में बाली पर जो हमले किए, वे उसी रणनीति का हिस्सा जान पड़ते हैं। प्रदेश की राजनीति में यह हमले चर्चा का केंद्र रहे, मगर लोगों को हैरानी इस बात की हुई कि बेबाक और तुरंत रिऐक्ट करने वाले परिवहन मंत्री इस मामले में कुछ नहीं बोले। इस कारण ज्यादा सुर्खियां मीडिया के हिस्से में भी नहीं आईं।
इस बार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुक्खू को अलग-थलग करने के लिए मुख्यमंत्री के बेटे के नेतृत्व वाले युवा संगठन ने मोर्चा संभाला। मगर कहीं न कहीं वरिष्ठ नेता राम लाल ठाकुर, सुधीर शर्मा, बाली और स्टोक्स आदि भांप गए हैं कि आपस में लड़े तो खत्म हैं। वैसे भी देश में जिस तरह से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो रहा है, उस हिसाब से तो ऐसी लड़ाई वजूद ही खत्म कर देगी। इस चक्कर में डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ और वीरभद्र व सुक्खू की मीटिंग के साथ सीजफायर हो गया।
सुक्खू ने कांग्रेस संगठन पर पकड़ बनाई हुई है।
भाजपा की बात करें तो मोदी शाह मॉडल के ढर्रे पर चली यह पार्टी अंदर से जितनी कुलबुला रही हो, बाहर से संगठित दिख रही है। हालांकि एम्स को लेकर अनुराग ठाकुर का नड्डा को लिखा लेटर उनकी आंतरिक हसरतों की झलक देता है। यह बताता है कि बड़े नेताओं के बीच कितनी संवादहीनता भाजपा में है। अनुराग एम्स के लिए नड्डा को लेटर लिख रहे हैं, उनसे मिल नहीं रहे हैं। ऐसी भी सुगबुगाहट है कि इस पत्र के माध्यम से अनुराग दिखाना चाहते थे कि एम्स को लेकर केंद्रीय मंत्री नड्डा से ज्यादा संवेदनशील मैं हूं।
अनुराग ठाकुर की नड्डा को लिखी चिट्ठी चर्चा में है।
नड्डा इस पत्र का क्या जबाब देते हैं या नहीं देते हैं, यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल बीजेपी समर्थक भी असमंजस में हैं कि आने वाले चुनाव में उनका नेता कौन होगा। न धूमल यह बता पा रहे हैं कि वह नेता हैं, न नड्डा यह जता रहे हैं कि वह आ रहे हैं। सोचने समझने का वक़्त सत्ती और पवन राणा की जोड़ी भी किसी को नहीं दे रही है।
नड्डा और धूमल को लेकर बीजेपी कार्यकर्ता असमंजस में हैं।
अभ्यास वर्ग पर अभ्यास वर्ग से कार्यकर्तायों को पवन राणा और सत्ती ने इस बार व्यस्त रखा है। वर्षों से प्रदेश में कांग्रेस के पर्याय वीरभद्र सिंह और भाजपा के धूमल रहे हैं। मगर इस बार हालात अलग है। कांग्रेस मतलब वीरभद्र भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि सुक्खू संगठन में पकड़ बनाकर समानांतर उपस्थिति बनाए हुए हैं। दूसरी तरफ बीजेपी में भी धूमल के बजाय संगठन सर्वमान्य चल रहा है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)
सोलन।। हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में सामने आए स्कूल के टैंक में जहर मिलाने के मामले में अभी तक पुलिस को कामयाबी नहीं मिली है। बच्चों ने पानी से तेज गंध आने पर पानी नहीं पिया, वरना अप्रिय घटना हो सकती थी। यह जहर उस टंकी में मिलाया गया था, जहां से बच्चे मिडडे मील खाने के बाद पानी पीते थे। इस घटनाक्रम से आईपीएच विभाग की पोल भी खुलती है, क्योंकि यही जहर गांव के पेयजल टैंक में भी मिलाया गया था।
तस्वीर: amarujala.com
बुधवार को स्कूल का दौरा करने आई राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की चेयरपर्सन किरण धांटा उस वक्त हैरान रह गईं, जबक पानी की टंकी को अब भी ढका नहीं गया था और न ही इसपर ताला लगाया गया था। इस मौके पर उनके साथ 3 और सदस्य व शिक्षा विभाग के डेप्युटी डायरेक्टर भी मौजूद थे। डीएसपी व अन्य आलाअधिकारी भी इस दौरान मौजूद रहे।
कक्कड़हट्टी मिडल स्कूल और गांव के पेयजल टैंक में सोमवार को अज्ञात शरारती तत्वों ने जहर मिला दिया था। बच्चे जब पानी पीने लगे तो उन्हें तेज गंध आई। पानी का रंग भी दूधिया हो गया था। इसकी जानकारी उन्होंने हेडमास्टर को दी और उन्होंने आईपीएच को सूचित किया। जांच में पता चला कि इसमें Nuvan नाम का कीटनाशी डाला गया था। यही जहर पास के ही पानी के टैंक में भी पाया गया। इस स्कूल में करीब 300 छात्र पढ़ते हैं और खुले टैंक से जिस गांव को सप्लाई जाती है, वहां भी करीब 300 लोग रहते हैं। अगर बच्चों को पता नहीं चलता को बड़े पैमाने पर अप्रिय घटना घट सकती थी।
तस्वीर: amarujala.com
आपीएछ विभाग की शिकायत पर पुलिस पोस्ट सुबाथू में अज्ञात शरारती तत्वों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। लोग अभी भी दहशत में हैं क्योंकि टैंक खुले हुए हैं। गौरतलब है कि शिमला में युग हत्याकांड के बाद आईपीएच पूरे प्रदेश में पानी के टैंकों को ढकने और तालाबंद करने की व्यवस्था करने की बात कही थी। मगर अभी तक ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। गौरतलब है कि हत्यारों ने युग को जिंदा ही पानी के टैंक में डाल दिया था और कई महीनों बाद उसका कंकाल बरामद हुआ था।
इन हिमाचल डेस्क।। उड़ी हमले के बाद चर्चा है कि भारत सिंधु जल समझौते से बाहर आ सकता है। 56 साल पहले हुआ यह समझौता भारत के लिए परेशानी का सबब हुआ है और हिमाचल भी इससे अछूता नहीं है। आलम यह है कि हमारा प्रदेश अपनी नदियों के पानी को इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। संधि में प्रावधान है कि कोई भी प्रॉजेक्ट नदियों पर बनाने से पहले पाकिस्तान को न सिर्फ सूचित करना होगा, बल्कि उसे विश्वास में भी लेना होगा। इसी प्रावधान के चक्कर में लाहौल-स्पीति से निकलने वाली चंद्रभागा (चिनाब) नदी पर हम न तो पावर प्रॉजेक्ट लगा पा रहे हैं और न ही इसके पानी को सिंचाई आदि के लिए इस्तेमाल कर पा रहे हैं।
चिनाब बेसिन में 3000 मेगावॉट से ज्यादा बिजली पैदा करने की क्षमता है, मगर पाकिस्तान अभी तक इस नदी पर बनने वाले हर प्रॉजेक्ट को लेकर आपत्ति जताता आया है। आलम यह है कि इंडस वॉटर कमिश्नर की तरफ से ग्रीन सिग्नल न मिलने की वजह से अभी तक थियोट प्रॉजेक्ट समेत हिमाचल की आधा दर्जन परियोजनाएं लटकी फंसी हुई हैं। झेलम और सिंधु नदी को भी मिला लिया जए तो भारत के करीब 30 पावर प्रॉजेक्ट्स पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई है।
हिमाचल में चंद्रभागा (चंद्र और भागा नदियों से मिलकर बनी) के नाम पहचानी जाने वाली नदी चिनाब से अभी सिर्फ 5.3 मेगावॉट बिजली का ही उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा इसकी नदी को खेती-बाड़ी के लिए भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे। इस नदी के पानी को कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। ‘अमर उजाला’ अखबार से बात करते हुए इतिहासकार छेरिंग दोरजी ने बताया कि अंग्रेजों ने सुरंग के माध्यम से चंद्रभागा के पानी को रावी में मिलाने की योजना बनाई थी। इसके लिए तिंदी से चंबा तक सुरंग बनाने की योजना थी। इसके अलावा इस नदी की सहायक चंद्रा के पानी को कुल्लू में पार्वती से मिलाने का भी सुझाव दिया गया था।
चंद्र और भागा के मिलन से चंद्रभागा का उद्गम होता हुआ। Chandrabhaga River, Courtesy: Flickr / Ayan Ghosh
गौरतलब है कि इस तरह की योजनाओं की वकालत पूर्व राष्ट्रपति कलाम भी कर चुके हैं। मगर पानी को डायवर्ट करना को दूर की बात है, पानी को कम किए बिना या इस्तेमाल किए बिना बनने वाले पावर प्रॉजेक्ट्स पर भी पाकिस्तान अड़ जाता है। ऐसे में या तो इस समझौते की शर्तों को बदलना जरूरी है या फिर पूरी संधि पर ही पुनर्विचार की जरूरत है। अगर यह संधि किसी वजह से खत्म होती है तो हिमाचल के साथ-साथ देश को भी फायदा होगा। मगर इसके नुकसान यह हो सकते हैं कि भारत की बदनामी होगी और साथ ही ऐसा ही समझौता चीन से चाह रहा भारत बैकफुट पर आ जाएगा। चीन से निकलने वाली नदियों को लेकर भी भारत ऐसा ही समझौता चाहता है, जिससे हमें निर्बाध पानी मिले।
मंडी।। सामाजिक विकास की मिसालें स्थापित करने और जर्जर हो चुकी रूढ़ियों को तोड़ने में हिमाचल प्रदेश हमेशा आगे रहा है। इसी क्रम में मंडी जिले के जोगिंदर नगर में कुछ ऐसा देखने को मिला, जो शहरवासियों ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए मिसाल है। वृद्ध पिता के निधन पर 4 बेटियों ने अर्थी को कंधा दिया और पांचवीं ने मुखाग्नि दी।
पिता की अर्थी को कंधा देतीं बेटियां
जोगिंदर नगर के चर्चित समाजसेवी रमेश चंद सूद पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन पर उनकी बेटियों ने न सिर्फ कंधा दिया, बल्कि मुखाग्नि भी दी। इस तरह से जाते-जाते उनकी बेटियों ने भी सामाजिक बदलाव का संदेश देते हुए अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि दी।
मुखाग्नि देती बेटी।
रमेश चंद सूद आजीवन सामाजिक कार्यों में जुटे रहे। कस्बे में बड़ा कम्यूनिटी हॉल बनाने से लेकर श्मशान घाट को खूबसूरत पार्क में बदलने जैसे कई अच्छे कामों के लिए उन्हें याद किया जाएगा। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए जोगिंदर नगर बाजार को बंद रखा गया।
मंडी।। केंद्र सरकार ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को केंद्र से फंड हुए एक संस्थान का उद्घाटन करने से रोक दिया है। दरअसल मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सिराज घाटी के थुनाग में बन रहे राज्य स्तरीय पंचायती प्रशिक्षण संस्थान का उद्घाटन सोमवार सुबह 11 बजे करने वाले थे। मगर ‘पंजाब केसरी’ की रिपोर्ट के मुताबिक रविवार को ही केंद्र की तरफ से इस बारे में आदेश प्रदेश सरकार को मिल गए थे।
आदेश मिलते ही इस संस्थान के उद्घाटन का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। इस उद्घाटन को लेकर पूर्व पंचायती राज मंत्री जयराम ठाकुर ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि केंद् सरकार की ग्रांट से बन रहा भवन पूरी तरह तैयार भी नहीं है, मगर जल्दबाजी में इसका उद्घाटन किया जा रहा है।
ग्रामीण विकास मंत्री अनिल शर्मा ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि प्रदेश सरकार ने इस संस्थान के लिए भूमि दी है और 25 फीसदी का खर्च भी उठाया है। ऐसे में बीजेपी नेताओं की साजिश पर ऐसा किया जाना सही नहीं है।
ऊना।। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में उस वक्त अजीब मामला देखने को मिला, जब एक युवक सड़क पर लेट गया। लोगों के उठाने पर भी वह नहीं उठ रहा था। दरअसल यह युवक अपने माता-पिता से बाइक के लिए पैसे मांग रहा था और जब नहीं मिले तो ड्रामा करने लगा।
एमसी पार्क के पास एनएच पर सोमवार को बीचो-बीच लेट गया और ट्रैफिक बाधित कर दिया। युवक को लेटता देख मौके पर लोगों की भीड़ लग गई। इस ड्रामे को देखकर हर कोई हैरान था। जानकारी के मुताबिक सोमवार सुबह एक युवक रोटरी चौक के समीप अपने मां-बाप से किसी बात को लेकर बहस कर रहा था। देखते ही देखते युवक ने अपना आपा खोते हुए अभद्र व्यवहार तक करना शुरू कर दिया।
बताया जा रहा है कि युवक अपने माता-पिता से बाइक लेने के लिए मोटी रकम की मांग कर रहा था। उसके माता-पिता घरेलू काम के लिए बैंक से नकदी निकाल कर आ रहे थे कि युवक ने अपने माता-पिता को रास्ते में घेर लिया और रकम लेने की हठ करने लगा। जब माता-पिता ने अपने बेटे को पैसे देने से इंकार कर दिया तो वह उल्टा उनसे उलझ पड़ा। तब स्थानीय दुकानदारों ने बीच-बचाव कर मामले को शांत किया, लेकिन थोड़ी ही देर में युवक नैशनल हाइवे के बीचोबीच लेट गया।
बाद में मौके से भाग गया युवक इससे आने-जाने वाले वाहन चालकों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा। जबकि, लोगों की भीड़ इस ड्रामे को देखने के लिए उमड़ पड़ी। स्थानीय लोगों ने युवक को सड़क से किनारे हटाया, तब युवक वहां से भाग गया। यह मामला दिन भर चर्चा में बना रहा।
शिमला।। हिमाचल प्रदेश के परिवहन, तकनीकी शिक्षा एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री जीएस बाली ने अपने फेसबुक पेज के लिए लाइव इंटरैक्शन करके संवाद स्थापित करने की पहल की है। उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर शुक्रवार शाम करीब 6 बजे लाइव आकर लोगों के सवालों के जवाब दिए।
करीब 20 मिनट तक चले फेसबुक लाइव के दौरान मंत्री ने न सिर्फ पहले आए सवालों का जवाब दिया, बल्कि लाइव के दौरान कॉमेंट्स पर आ रहे सवालों पर भी बात की। लोगों ने भी कई विषयों पर सवाल किएऔर बाली ने उनके जवाब दिए।
फेसबुक लाइव खत्म होने के बाद उन्होंने एक और पोस्ट डाली है, जिसमें उन्होंने बताया है कि इस बार सभी सवालों के जवाब तो वह लाइव सेशन के दौरान नहीं दे पाए, मगर उन कॉमेंट्स का भी संज्ञान लिया जाएगा, जो कवर नहीं हो पाए। अब तक इस विडियो को हजारों लोग देख चुके हैं।
हिमाचल प्रदेश में सत्ताधारी व विपक्ष के किसी नेता द्वारा फेसबुक के जरिए जनता से जुड़ने का यह पहला प्रयास है, जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं। बाली से लोगों ने क्या पूछा और उन्होंने क्या जवाब दिए, जानने के लिए देखें रियल टाइम विडियो…
इन हिमाचल डेस्क।। उड़ी हमले के बाद सोशल मीडिया पर एक विडियो शेयर हो रह है, जिसमें एक वर्दीधारी शख्स अपने साथियों के साथ बस में है। खड़ा हुआ वर्दीधारी पाकिस्तान को ललकारते हुए एक कविता पढ़ रहा है और बस में बैठे साथी उसका साथ दे रहे हैं। लोग इसे भारतीय सेना का विडियो बताते हुए शेयर कर रहे हैं, मगर वर्दी से ही पता चल जाता है कि भारतीय सेना की वर्दी ऐसी नहीं है। फिर कौन हैं ये लोग?
बस में बैठे ये लोग न तो सैनिक हैं और अर्धसैनिक बल। ये हैं हिमाचल पुलिस के जवान और कविता सुना रहे शख्स का नाम है- मनोज ठाकुर, जो कि हेड कॉन्स्टेबल हैं। वह छटी आईआरबी बटालियन कोलर में तैनात हैं। उन्हें ढूंढ निकालने का काम किया है एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने। जानें, क्या जानकारी जुटाई गई है कि मनोज ठाकुर के बारे में:
सिरमौर की छठी IRB बटालियन कोलर में बतौर हेड कॉन्स्टेबल काम कर रहे मनोज ने कारगिल दिवस पर इस विडियो को अपलोड किया था। 25 जुलाई 2016 को अपलोड यह विडियो पिछले 48 घंटों वायरल हुआ है।
23 अप्रैल 1983 को सरकाघाट उपमंडल की टिक्कर पंचायत के कथोगन गांव में जन्मे एचसी मनोज ठाकुर इस वक्त किन्नौर में अपनी डयूटी कर रहे हैं। यहां बटालियन को हड़ताल की वजह से तैनात किया गया है। कुछ महीनों से बटालियन किन्नौर में ही तैनात है। इस वीडियो को भी वहीं बनाया गया।