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Monday, September 15, 2025
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एक ही कमरे में चल रही हैं 5 कक्षाएं, मात्र 2 अध्यापकों के भरोसे है स्कूल

मंडी।। यूं तो प्रदेश सरकार शिक्षा के क्षेत्र में झंडे गाड़ देने के दावे करती है, मगर जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। स्कूलों पर स्कूल खोल दिए गए और कुछ तो स्ट्रेंग्थ न होने के कारण बंद भी करने पड़े। मगर एक स्कूल ऐसा है, जहां एक ही कमरे में 5 क्लासें चल रही हैं और दफ्तर का काम भी यहीं होता है।

सरकाघाट उपमंडल के तहत एक प्राइमरी स्कूल है- कलखर 2. यहां पर अध्यापकों की कमी के कारण बच्चे स्कूल छोड़कर अन्य स्कूलों का रुख कर रहे हैं। यह स्कूल 1962 में बना था और आज एक ही कमरे में चल रहा है। दरअसल स्कूल का एक ही कमरा ठीक हालत में है और बाकी की इमारत कभी भी धराशायी हो सकती है।

वैसे तो पूरी इमारत को ही अनसेफ घोषित कर दिया गया है, मगर अध्यापक करें तो क्या। उन्हें इस कमजोर हो चुके भवन का ही एक कमरा इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

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साभार: पंजाब केसरी

‘पंजाब केसरी’ अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक एक कमरे में ही कार्यालय भी चल रहा है और क्लास भी। बाकी बच्चे खुले आसमान के नीचे धूल के मैदान पर बैठे हैं। धूप में तो बच्चे बाहर बैठ सकते हैं, मगर मौसम खराब होने पर सभी बच्चों को एख ही कमरे में ठूंस दिया जाता है। ऐसे में पढ़ाई क्या होती होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं।

अखबार से बात करते हुए स्कूल के जूनियर टीचर दिनेश कुमार ने बताया कि अब तो उन्हें इस बात की आदत सी हो गई है. क्योंकि स्कूल का यह माहौल बीते कई सालों से ऐसा ही है।

प्राइमरी स्कूल कलखर-2 में इस वक्त पहली से लेकर पांचवीं क्लास तक 20 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। स्कूल में अध्यापक भी दो ही हैं। पुराने भवन को गिराकर नया भवन बनाने की बातें तो हो रही हैं, मगर न जाने फाइलें कहां धूल फांक रही हैं। इस बीच न जाने कितने ही बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा।

हिमाचल में टीचर बनने चले लोगों की यह है हालत, देखें टेट का रिजल्ट

धर्मशाला।। हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड ने सोमवार को 5 विषयों में टेट (HPTET) का परिणाम घोषित कर दिया। यह परीक्षा 4, 10 और 11 सितम्बर को प्रदेशभर में आयोजित की गई थी। परीक्षा परिणाम बोर्ड की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।

जेबीटी में 42.13 पर्सेंट, शास्त्री विषय में 47.93, नॉन मेडिकल टीजीटी में 12.03, एलटी में 19.12, टीजीटी आर्ट्स में 36.35 और टीजीटी मेडिकल में 3.66 प्रतिशत उम्मीदवार पास हुए हैं।

सांकेतिक तस्वीर

इस परीक्षा के लिए 66,647 अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था, जिनमें से 62,824 परीक्षा में अपियर हुए। बोर्ड की लोक संपर्क अधिकारी के मुताबिक अस्थायी उत्तर कुंजी की आपत्तियों के बाद विशेषज्ञों से समीक्षा करवाने के बाद परिणाम जारी किया गया है। इस परिणाम से जुड़ी जानकारी फोन नम्बर 01892-242192 पर हासिल की जा सकती है।

रोड सेफ्टी कैंपेन के तहत बाइक रैली का आयोजन करेगा पालमपुर बाइकर्स क्लब

पालमपुर।। सामाजिक चेतना लाने के काम में जुटे पालमपुर के युवा बाइकर्स के क्लब ‘पालमपुर बाइकर्स क्लब’ ने एक नई मुहिम शुरू की है। जगह-जगह टूरिस्ट्स के घूमने वाली जगहों की सफाई करने और डस्टबिन लगाने के बाद अब इस क्लब ने रोड सेफ्टी को लेकर जागरूकता फैलाने का अभियान चलाया है।

पालमपुर बाइकर्स क्लब ‘PBC रोड सेफ्टी कैंपेन’ के तहत 12 नवंबर, 2016 को पालमपुर में बाइक रैली का आयोजन करने जा रहा है। इसके लिए क्लब ने सभी लोगों को न्योता भेजा है। इच्छुक लोग palampurbikersclub@gmail.com पर ईमेल करके हिस्सा ले सकते हैं।

12 नवंबर को दोपहर 2.30 तक न्यूगल कैफे में इकट्ठा होना होगा और 3 बजे रैली स्टार्ट होगी। पालमपुर मार्केट, नए बस स्टैंड, घुग्गर और SSB चौक होते हुए यह रैली दोबारा न्यूगल कैफे पर आकर खत्म होगी। करीब एक घंटे की इस रैली को निकालकर लोगों को रोड सेफ्टी के प्रति जागरूक करने की कोशिश की जाएगी।

रैली का शेड्यूल।
रैली का शेड्यूल।

गौरतलब है कि बाइकर्स क्लब होने के बावूजद इससे जुड़े लोग विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में लगे रहते हैं। अक्सर लोग कुछ जगहों पर कचरा फेंककर चले जाते हैं। ऐसी ही जगहों की खूबसूरती बनी रहे, इसके लिए वक्त-वक्त पर क्लब के सदस्य सफाई अभियान चलाते हैं और उन जगहों पर डस्टबिन इंस्टॉल करते हैं।

क्लब की गेट टुगेदर के दौरान परफॉर्म करके कलाकार।
क्लब की गेट टुगेदर के दौरान परफॉर्म करके कलाकार।

क्लब के सदस्य हर साल गेट-टुगेदर भी आयोजित करते हैं। इस साल भी इसी तरह का आयोजन दिवाली से एक रात पहले किया गया था, जिसमें स्थानीय कलाकारों को परफॉर्म करने का अवसर दिया गया था।

बस हादसे में जख्मी मां मौत के मुंह से निकाल लाई अपने बच्चों को

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। बिंद्रावणी सड़क हादसे से अब भी प्रदेश गमगीन है। इस बीच एक ऐसी खबर आई है, जो थोड़ी राहत देती है। तस्वीर में आप जिस महिला को देख रहे हैं, उसकी बहादुरी की जितनी इज्जत की जाए, उतनी कम है। दरअसल बच्चों के प्रति मां के प्रेम की मिसाल दी है इन्होंने।

25 साल की मेनका देवी उस अभागी बस में अपनी 4 साल की बेटी बेटी वंशिका और 10 माह के बेटे ललित के साथ घर लौट रही थीं। तभी हादसा हुआ और बस गिर गई।

मेनका देवी अपनी बच्ची के साथ (Image: MBM News Network)
मेनका देवी अपनी बच्ची के साथ (Image: MBM News Network)

मेनका के बच्चे तो ब्यास में जा गिरे, मगर वह सीट में फंस गईं। मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लहूलुहान थी, फिर भी पानी में कूदकर पहले बेटी को बचाया और फिर कपड़ों और प्लास्टिक के बैग में रखकर अपने 10 माह के बच्चे को पानी से बाहर निकाल लाईं।

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मेनका ने अपने बच्चों को सुरक्षित नदी के किनारे पहुंचाया और वहीं पर बेहोश हो गईं। अस्पताल में जब उन्हें होश आया तो पहला सवाल यही था कि मेरे बच्चे कहां हैं, उन्हें मैंने पानी से निकाल लिया था।

अस्पताल में हर कोई उस वक्त भावुक हो गया, जब पंडोह के हरीश कुमार ने अपनी गोद से बेटी वंशिका को मां की गोद में सौंपा। जख्मी हालत में मेनका ने जब अपनी बच्ची को दुलारना शुरू किया, हर किसी की आंखें नम हो उठीं।

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भारत की अंडर-19 टीम में हुआ मंडी के आयुष जम्वाल का सिलेक्शन

मंडी।। जोगिंदर नगर विधानसभा क्षेत्र के तहत पड़ने वाले इलाके लड-भड़ोल की खद्दर पंचायत के एक टीनेजर ने भारत की अंडर-19 क्रिकेट टीम में जगह बनाई है। मंगडोल गांव के आयुष जम्वाल ने अंडर-19 टीम में जगह बनाई है।

आयुष हिमाचल प्रदेश की अंडर-16 टीम के कैप्टन रह चुके हैं। उन्होंने साल 2012 में अंडर-14 टीम से हिमाचल की तरफ से खेलना शुरू किया था। अब 4 साल के अंदर अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने अंडर-19 टीम में जगह बनाई है।

आयुष जम्वाल। (Image: Ladbharol.com)
आयुष जम्वाल। (Image: Ladbharol.com)

13 दिसंबर से लेकर 24 दिसंबर तक श्रीलंका में होने जा रहे एशिया कप में आयुष हिस्सा लेंगे। आयुष के पिता श्याम सिंह ने ही उनके कोच की भूमिका निभाई है। श्याम सिंह खुद डीडीसीए लीग में क्रिकेट मैच खेल चुके हैं।

आयुष जम्वाल के अंडर-19 क्रिकेट टीम में चुने जाने से पूरे इलाके में और मंडी जिले में खुशी की लहर है। तमाम नेताओं ने आयुष को इस उपलब्धि के लिए बधाई है। इन हिमाचल की तरफ से भी आयुष को उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं।

क्या आप जानते हैं ‘बांठड़ा’ क्या होता है? नहीं पता तो जरूर जानें

इन हिमाचल डेस्क।। आज तो मनोरंजन के कई साधन मौजूद हैं मगर 100-150 साल पहले लोग क्या किया करते थे? उस दौर में स्मार्टफोन, टीवी, रेडियो वगैरह भी नहीं थे। ऐसे में लोकनृत्य, गायन और नाटक आदि वगैरह ही लोगों के मनोरंजन के साधन थे। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में मनोरंजन का ऐसा ही एक माध्यम था- बांठड़ा।

बांठड़े की पंरपरा ऐसी थी कि लोग तरह-तरह के वेश रचकर मनोरंजन किया करते थे। वे न सिर्फ लोगों का यानी प्रजा का मनोरंजन करते थे बल्कि राजाओं का भी मनोरंजन हुआ करता था। लोगों को स्वांग रचकर हंसाया जाता था और मजेदार संवाद कहे जाते थे। चुटीली बातों के जरिए जो मनोरंजन होता था, उसे लोग खूब पसंद किया करते थे। शाम को बांठड़े का सिलसिला शुरू होता और देर रात तक चलता। इस स्वांग की बातों के जरिए जनता की समस्याओं को भी उठाया जाता था।

आज भी मंडी में बांठड़ा देखने को मिलता है, मगर औपचारिक रूप में। पहले यह आए दिन हुआ करते थे और कलाकार अपनी समस्याओं को रोचक ढंग से राजाओं के सामने रखा करते थे और उनका सामाधान भी हुआ करता था। अब साल में एक बार बांठड़े का आयोजन किया जाता है, वह भी परंपरा को बचाए रखने की कोशिश के रूप में।

अब ग्रामीण अपने स्तर पर बांठड़े का आयोजन करते हैं तो लोग रुचि नहीं लेते। टीवी पर आने वाले सीरियल्स आदि की तुलना में उन्हें यह मनोरंजक नहीं लगता। अब गिने-चुने लोग ही बांठड़े में आते हैं। देव पंरपराओं से जुड़े होने की वजह से ही अब तक यह औपचारिक रूप से ही सही, मगर बचा हुआ है। पंजाब केसरी की यह रिपोर्ट देखें-

बीच बाजार में हार्ट अटैक से तड़पकर बुजुर्ग की मौत, किसी ने नहीं की मदद

कुल्लू।। हिमाचल प्रदेश के लोगों की जिंदादिली और हेल्पिंग नेचर की मिसालें दी जाती हैं, मगर कुल्लू में ऐसी घटना हुई, जो सिर झुका देती है। कुल्लू के ढालपुर चौक पर सुबह करीब साढ़े 10 बजे गांव पीची, दोहरेनाला के रहने वाले बुजुर्ग गिरधर (68) को हार्ट अटैक आया। दर्द के मारे वह फुटपाथ पर गिर गए।

बुजुर्ग गिरधर के साथ उनकी करीब 3 साल की पोती भी थी। जब उसने अपने दादा को इस हालत में देखा तो वह डर गई और रोने लगी। पंजाब केसरी की रिपोर्ट के मुताबिक फुटपाथ पर गिरा बुजुर्ग दर्द से तड़प रहा था और उसे अस्पताल ले जाने के लिए करीब 10 मिनट तक लोग सड़क पर चल रहे वाहनों को रोकते रहे परंतु किसी ने उसको अस्पताल पहुंचाने के लिए अपना वाहन रोकने की जहमत नहीं उठाई। इसी बीच दर्द से तड़पते बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया।

Image: Punjab Kesari
Image: Punjab Kesari

अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक सामाजिक कार्यकर्ता नवनीत सूद जब गिरधर को लेकर अस्पताल पहुंचे और डॉक्टरों से उसे चैक करने को कहा तो डाक्टरों ने पहले तो बदतमीजी की और बिना चेक किए कहा कि व्यक्ति की मौत हो गई है। बहुत आग्रह करने के बाद डॉक्टर का सीधा जवाब था कि डॉक्टर मैं हूं या आप।

लोगों ने सरकार व जिला प्रशासन से आग्रह किया है कि डॉक्टरों के व्यवहार की तरफ भी ध्यान दिया जाए ताकि जनता के साथ किसी प्रकार की कोई दुर्व्यवहार न सके। इसी बीच पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।

आप ऐसे कर सकते हैं मदद
अगर आप किसी को इस तरह से हार्ट अटैक की चपेट में देखें तो फर्स्ट एड देकर डॉक्टरी मदद मिलने से पहले उसकी मदद कर सकते हैं-

– हार्ट पेशेंट को लंबी सांस लेने को कहें और उसके आसपास से हवा आने की जगह छोड़ दें ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल सके।

– कई बार ऐसा देखा गया है के घर में या कहीं किसी को अटैक आया और लोग उसको बुरी तरह से चारों तरफ घेर लेते हैं। कुल्लू की तस्वीर में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। तो इस बात का विशेष ध्यान रखें के रोगी को ऑक्सीजन लेने के लिए पर्याप्त खुली जगह होना चाहिए।

– अटैक आने पर पेशंट को उल्टी आने जैसी फीलिंग होती है ऐसे में उसे एक तरफ मुड़ कर उल्टी करने को कहें ताकि उल्टी लंग्स में न भरने पाए और इन्हें कोई नुकसान ना हो।

– पेशंट की गर्दन के साइड में हाथ रखकर उसका पल्स रेट चेक करें यदि पल्स रेट 60 या 70 से भी कम हो तो समझ लें कि ब्लड प्रेशर बहुत तेजी से गिर रहा है और पेशेंट की हालत बहुत सीरियस है।

– पल्स रेट कम होने पर हार्ट पेशंट को आप इस तरह से लिटा दें उसका सर नीचे रहे और पैर थोड़ा ऊपर की और उठे हुए हों। इससे पैरों के ब्लड की सप्लाई हार्ट की और होगी जिससे ब्लड प्रेशर में राहत मिलेगी।

– इस दौरान पेशंट को कुछ खिलाने पिलाने की गलती ना करें इससे उसकी स्थिति और भी बिगड़ सकती है।

– एस्प्रिन ब्लड क्लॉट रोकती है इसलिए हार्ट अटैक के पेशेंट को तुरंत एस्प्रिन या डिस्प्रिन खिलानी चाहिए। लेकिन कई बार इनसे हालात और भी ज्यादा बिगड़ जाते हैं इसलिए एस्प्रिन या डिस्प्रिन देने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर ले लेना चाहिए।

मोदी की रैली के लिए नड्डा के ऐक्टिव मोड के क्या हैं मायने?

  • राजेश ठाकुर

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की पहली हिमाचल रैली आजकल पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। कांगड़ा से किन्नौर तक पूरे प्रदेश को बीजेपी काडर ने पोस्टरों से भगवामय कर दिया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अर्से बाद बीजेपी व्यक्तिवाद से उठकर संगठनवाद की तरफ जाती दिख रही है। जो भी मोर्चे सेल नाममात्र को बने होते थे इस बार पूर्ण ऊर्जा के साथ रैल्ली में अपनी अपनी भूमिका और जिमेदारियों के निर्वहन के लिए जी-जान से लगे हुए हैं। महिला मोर्चे ने तो 25 हजार महिलाएं मंडी के पड्डल मैदान में एकत्रित करने का संकल्प ले लिया है, जो हिमाचल जैसी छोटी स्टेट में बहुत बड़ा आंकड़ा है। इसी तरह युवा मोर्चा से लेकर अनुसचित जाती जनजाति मोर्चा और ज़िला स्तर के संगठनों के लोग अपने अपने स्तर पर लगे हैं।

रैली के इस गरमाहट भरे माहौल में बारीकी से देखने वाली बात है- प्रदेश राजनीति में जेपी नड्डा की बढ़ती सक्रियता। मोदी की रैली की तैयारियों के लिए नड्डा जितने दिन हिमाचल में गुजार रहे हैं, यह संकेत कुछ अलग ही बयां कर रहे हैं। अभी तक हिमाचल प्रदेश में जितनी भी रैलियां होती थीं, भीड़ जुटाने से लेकर कार्यक्रम तय करने, जिमेदारिया सौंपने और तैयारियां देखने यह सब कार्य पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के नेतृत्व में उनके ख़ास सिपहसलार ही करते थे। परन्तु इस बार धूमल सक्रिय भूमिका में कहीं नहीं दिख रहे हैं। संगठन फ्रंट फुट पर रखते हुए यह जिम्मेदारी इस बार जेपी नड्डा ने ले ली है।
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जेपी नड्डा इस रैल्ली को लेकर इतना समय और जिमेदारी अपने ऊपर क्यों लिए हुए हैं, यह राजनीतिक पंडितों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। केंद्रीय मंत्री बनने से पहले केंद्रीय संगठन में रहने के दौरान भी भी जेपी नड्डा अधिकांश रैलियों में सिर्फ रैली वाले दिन ही प्रदेश का रुख किया करते थे। परंतु इस बार बाकायदा 5 दिन उन्होंने इस कार्य के लिए अपने शेड्यूल से निकाल रखे हैं। वाया कांगड़ा से होकर बिलासपुर की तरफ जेपी नड्डा का आना भी कहीं न कहीं कुछ अलग संकेत दे रहा है। गग्गल एयरपोर्ट पर राकेश पठानिया अपनी फ़ौज लेकर उनके इस्तकबाल के लिए पहुंचे। शांता कुमार और नड्डा के साथ एक ही गाड़ी में एयरपोर्ट से धर्मशाला के लिए रवाना हुए पठानिया ने अपने विरोधियों को यह पैगाम दे दिया कि नूरपुर का नूर पार्टी उनके हाथ में ही देने वाली है।

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सबसे बड़ी बात यहां जो ध्यान देने योग्य है कि प्रदेश बीजेपी के पितामह शांता कुमार जो अक्सर पार्टी संगठन के प्रोग्रामों को किसी न किसी बहाने किनारा करते रहते हैं, व्यक्तिगत रूप से नड्डा के स्वागत के लिए खुद एयरपोर्ट पहुंचे। शांता कुमार जैसी शख्शियत का एयरपोर्ट तक आना बताता है की पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी के इस्तकबाल के लिए तैयार है। उसके अलावा पूरे बीजेपी कुनबे ने दरबार में हाजिरी लगाई। कांगड़ा में शांता कुमार के घर पालमपुर से सबसे अधिक 5000 कार्यकर्ता मंडी ले जाने का अजेंडा भी इसी मीटिंग में तय हुआ। ऐसे ही मंडी में सर्वधिक 6000 कार्यकर्ता पहुँचाने की जिम्मेदारी प्रदेश में नड्डा के हनुमान कहलाने वाले जयराम ठाकुर ने ली है।

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प्रधानमंत्री मोदी के हिमाचल रैली के साथ जेपी नड्डा का यह जिम्मेदारीपूर्ण लगाव कहीं न कहीं इन समीकरणों और संभावनाओं को ही हवा दे रहा है कि आलाकमान की तरफ से भी उन्हें हिमाचल प्रदेश की और देखने और चलने का इशारा मिल गया है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के रहने वाले हैं और प्रदेश की राजनीति पर पैनी नजर रखते है।)

हिमाचल के नाहन में शिया नहीं, सुन्नी निकालते हैं ताजिये

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, नाहन।। हम पाठकों को बताते रहे हैं कि कैसे हिमाचल प्रदेश सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल है पूरी दुनिया के लिए। कैसे यहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग ईद और शिवरात्रि पर भंडारा लगाते हैं, कैसे इस बार भगवान रघुनाथ के रथ को हिंदुओं और मुस्लिमों ने मिलकर खींचा और सिख समुदाय के लोगों ने इत्र का छिड़काव किया। वहीं मुसलमानों में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच का प्रेम भी यहां देखने लायक है।

पूरी दुनिया में यह माना जाता है कि शिया और सुन्नी समुदाय के लोगों के बीच के रिश्ते अच्छे नहीं होते। इराक, सीरिया और यहां तक कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान तक में शिया और सुन्नियों के बीच हिंसक झड़कों की खबरें आती रही हैं। अपने देश की ही बात करें तो कई मौकों पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की स्थिति तनावपूर्ण हो जाती है

मुहर्रम पर शिया समुदाय के लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। हिमाचल प्रदेश के नाहन शहर में बुधवार को ताजियों का जुलूस निकाला गया। देश के विभिन्न हिस्सों में ताजिये निकालने की पंरपरा शिया समुदाय के लोग निभाते हैं, मगर यहां सुन्नी समुदाय के लोग यह काम करते हैं। गौरतलब है कि नाहन शहर में एक भी शिया परिवार नहीं है। विभिन्न मस्जिदों से आए चारों ताजिये कच्चा टैंक स्थित जामा मस्जिद में इकट्ठे हुए। इनके सामने मुस्लिम युवकों ने मातम किया। युवकों ने खुद को यातनाएं देकर और छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद किया।

नाहन की तस्वीर। Courtesy: MBM News Network
नाहन की तस्वीर। Courtesy: MBM News Network

सुन्नी समुदाय के लोग कई सालों से यह अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं। शहर के चार मोहल्लों हरिपुर, गुन्नूघाट, रानीताल और कच्चा टैंक में सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम से दस दिन पहले ही ताजिये बनाने शुरू कर देते हैं। दिन-रात काम करने के बाद आकर्षक ताजिये तैयार होते हैं।

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सुन्नी मुस्लिमों द्वारा मुहर्रम मनाने की परंपरा 18वीं शताब्दी में महाराजा शमशेर प्रकाश के समय में शुरू हुई थी। उस समय यहां कुछ शिया परिवार रहते थे। वह परिवार अब यहां पर नहीं रहते। महाराजा सुरेंद्र प्रकाश के समय में इस बारे में एक फरमान जारी हुआ था कि सभी धर्मों के लोग इस समारोह में शामिल होंगे। आज भी सुन्नी मुस्लिम रियासतकाल की इस परंपरा का लगातार निवर्हन कर रहे हैं।

जिस दौर में हर धर्म के लोगों में कट्टरपन बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है, उस दौर में हिमाचल मिसाल बना हुआ है। बहरहाल, हम भी यही कामना करते हैं कि हिमाचल प्रदेश को किसी की नजर न लगे और देश के अन्य हिस्से भी यहां से प्रेरणा लें।

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बैजनाथ में नहीं होता रामलीला का मंचन, नहीं फूंका जाता रावण

इन हिमाचल डेस्क।। आज पूरे हिमाचल में दशहरा धूमधाम से मनाया गया। हर छोटे-बड़े कस्बे में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले फूंके गए, मगर प्रदेश का एक कस्बा ऐसा भी है, जहां पर ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। मगर यह पहला मौका नहीं था कि यहां पर रावण दहन नहीं हुआ, बल्कि कई सालों से यहां पर यह काम नहीं किया जाता और न ही रामलीला का मंचन किया जाता है।

हम बात कर रहे हैं कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बैजनाथ की। जी हां, वही बैजनाथ, जहां पर प्रसिद्ध बैजनाथ शिवमंदिर है। जोगिंदर नगर और बीड़-बिलिंग के पास वाला बैजनाथ वही जगह मानी जाती है, जहां पर लंकापति रावण ने स्थापना करके शिव को प्रसन्न करने के लिए हवनकुण्ड में शीश अर्पित किए थे। हालांकि ऐसी ही मान्यता झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर को लेकर भी है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

बैजनाथ मंदिर

बहरहाल, कहा जाता है कि यहां कभी भी रामलीला के आयोजन और रावण के पुतले फूंकने की परंपरा नहीं रही थी, मगर 70 के दशक में स्थानीय लोगों ने कुछ सालों तक इसका आयोजन किया था। मगर करीब 5 साल के अंदर ही रामलीला में शामिल लोगों को कई तरह के नुकसान झेलने पड़े और कुछ की अकाल मृत्यु हो गई। ऐसे में यह सिलसिला रोक दिया गया और आज तक इसी अनहोनी के डर से किसी की हिम्मत नहीं हुई फिर से यह काम शुरू करने की।

एक खास बात और यह है बैजनाथ को लेकर कि इस कस्बे में सोने की एक भी दुकान नहीं है। बिनवा खड्ड के एक छोर पर बसे इस शहर में बेशक एक भी जूलरी शॉप नहीं, मगर दूसरी छोर पर बसा पपरोला शहर सोने की दुकानों के लिए प्रदेश भर में प्रसिद्ध है। इसका भी सोने की लंका के स्वामी रावण से कोई लिंक माना जाता है।

खड्ड के एक किनारे बैजनाथ है और दूसरे किनारे पर पपरोला। (साभार: Travellingcamera.com)

अब इन किवदंतियों में कितनी सच्चाई है, यह तो नहीं मालूम। मगर लोग इन परंपराओं का सम्मान करते आते हैं। वे मानते हैं कि भगवान शिव की इस धरती पर उनके अनन्य भक्त का पुतला न ही जलाने अच्छा है।