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Tuesday, September 16, 2025
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कांगड़ा पुलिस ने शेयर की नशे के कारोबारियों की जब्त प्रॉपर्टी की तस्वीरें

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में नशे के सौदागर बड़े स्तर पर सक्रिय हैं। भांग, चरस, गांजे के साथ-साथ केमिकल नशे का चलन भी युवाओं के बीच बढ़ता जा रहा है। यह नशा इंजेक्शन, कैप्स्यूल्स और पाउडर के रूप में उपलब्ध है। पुलिस के कुछ ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने नशे के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। इनमें सबसे पहले कांगड़ा के एसपी संजीव गांधी का नाम आता है जो इलाके में नशे के सौदागरों के लिए आतंक का पर्याय बन चुके हैं। उनके नेतृत्व में कांगड़ा पुलिस अब तक दर्जनों नशे के तस्करों और उनके आकाओं को सलाखों के पीछे पहुंचा चुकी है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर से हिमाचल में चिट्ठे और अन्य तरह के नशे की सप्लाई करने के लिए नए-नए तरीके ढूंढे जा रहे हैं। पुलिस अपने स्तर पर काम कर रही है और अब तक न ऐसे लोगों की करोड़ों की संपत्ति भी जब्त की जा चुकी है। आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि नशे के सौदागर इस काले काम से लोगों की जिंदगियां तबाह करते हुए कितना ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। तुरंत मिलने वाले पैसे के चक्कर में ये लोग आलीशान भवन बना रहे हैं और कई जगहों पर जमीनें खरीद रहे हैं। दूसरों का भविष्य चौपट करके ये लोग खुद के लिए ऐशो आराम जुटा रहे हैं। कांगड़ा के एसपी संजीव गांधी ने फेसबुक टाइमलाइन पर कुछ तस्वीरें शेयर की हैं जो ड्रग डीलर्स की जब्त की हुई प्रॉपर्टीज़ की हैं।

गुरुवार को SP Kangra ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए लिखा है, ‘Today we are sharing the pics of immovable properties freezed by District Police Kangra These are few pics, In last one year, we have identified & freezed Properties of of drug peddlers worth Rs 10 crores Our mission is still on. इसका अर्थ है कि आज हम जिला कांगड़ा पुलिस द्वारा जब्द की गई अचल संपत्तियों की कुछ तस्वीरें शेयर कर रहे हैं। पिछले 1 साल में हमने नशे के सौदागरों की 10 करोड़ की संपत्तियों की पहचान करके उन्हें फ्रीज किया है। हमारा अभियान अभी भी जारी है। देखें ये तस्वीरें:

 

यह आलीशन बंगला ड्रग्स की काली कमाई से बनाया जा रहा था।

 

बाहर से ही नहीं, अंदर भी पूरी साज-सज्जा की गई है।

 

लॉन में फव्वारे लगाए जा रहे थे

 

शानो-शौकत का पूरा ख्याल रखकर घर के सामने लॉन बनाया गया है।

 

किसी के सपनों को कुचलकर अपने लिए आशियाना बना रहे हैं ये लोग।

 

दो मंजिला मकान बना लिया गया लोगों का खून चूसकर

 

भव्य इमारतें बनाने का शौक रखते हैं ये डीलर।
कोई पहचान नहीं सकता कि कौन सा आदमी कैसा काम कर रहा है। ये ड्रग डीलर हमारे बीच ही शराफत का चोला ओढ़कर रहते हैं।

 

लोगों के घर उजाड़कर अपना घर बसाया जा रहा है।

 

तुरंत आए पैसे को शायद तुरंत लगा रहा था ड्रग डीलर।

ये सभी तस्वीरें SP Kangra की पोस्ट से ली गई हैं। प्रोफाइल पर जाने के लिए यहां पर क्लिक करें। इससे पता चलता है कि क्यों युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। नशे के चक्कर में लोग तो बर्बाद हो जाते हैं मगर नशे के ये सौदागार अमीर होते चलते जाते हैं। जिस तरह से कांगड़ा पुलिस शानदार काम कर रही है, उसके लिए वह बधाई की पात्र है। जरूरत है कि पूरे प्रदेश में व्यापक अभियान चलाया जाए और मौत के इन सौदागरों को सलाखों के पीछे डाला जाए। अगर कोई नेता या पुलिसकर्मी इन लोगों का साथ देता पाया जाता है तो उसे भी न बख्शा जाए। साथ ही लोगों से भी अपील है कि अगर उन्हें ऐसे किसी ड्र्ग्स रैकिट या फिर स्मगलर के बारे में पता चलता है कि तुरंत गुप्त रूप से पुलिस को बताएं।

अमित शाह के फॉर्म्युले से कट सकते हैं हिमाचल बीजेपी के इन नेताओं और विधायकों के टिकट

इन हिमाचल डेस्क।। पालमपुर आए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने ‘इन हिमाचल’ की उन रिपोर्ट्स पर मुहर लगाई है, जिनमें दावा किया गया था कि पार्टी हिमाचल में बिना किसी को सीएम कैंडिडेट घोषित किए चुनाव लड़ सकती है और नए चेहरों को ज्यादा टिकट दिए जाएंगे। अमित शाह ने पालमपुर में साफ कहा कि पार्टी इस बार नए चेहरों को उतारेगी और इस पर पार्टी नेतृत्व फैसला लेगा कि चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा या सामूहिक तौर पर। साथ ही उन्होंने मौजूदा वीरभद्र सरकार को रिटायर्ड लोगों की सरकार करार दिया। इससे उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को भी इशारा दिया कि अब बीजेपी प्रदेश में यंग नेतृत्व चाहती है।

अमित शाह के इन बयानों से जहां युवा कार्यकर्ताओं और टिकट चाहने वाले यंग लीडर्स में जोश देखा जा रहा है, वरिष्ठ और उम्रदराज हो चुके नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती हुई दिख रही हैं। वैसे अमित शाह का यह बयान हैरान नहीं करता क्योंकि अन्य राज्यों में पार्टी इसी लाइन पर रहकर चुनाव लड़ी है और जीती भी है। मगर अब अमित शाह ने खुलेआम हिमाचल भाजपा को यह बात स्पष्ट कर दी।

अमित शाह के दौरे के बाद सभी के मन में यह ख्याल आ रहा होगा कि अगर बीजेपी इस बार नए चेहरों को टिकट देने का इरादा रख रही है तो वे कौन से पुराने चेहरे हैं, जिन्हें हटना होगा। भले ही अमित शाह ने पालमपुर में स्पष्ट किया कि 70+ एज वालों को टिकट देने में पार्टी को कोई आपत्ति नहीं है, मगर अन्य राज्यों में पार्टी ने कुछ अपवादों को छोड़कर टिकट आवंटन यह ध्यान रखा है कि यंग कैंडिडेट्स को ही टिकट मिलें। दरअसल बीजेपी यंग लीडरशिप तैयार कर रही है जो लंबे समय तक टिके। अमित शाह ने इससे पहले सोलन दौरे में कहा था कि अब बीजेपी हिमाचल में आए तो कम से कम 15-20 साल टिके। यह तभी संभव हो पाएगा जब लीडर्स नए हों। वैसे भी देखा जाता है कि न सिर्फ सत्ताधारी विधायक, बल्कि विपक्षी विघायकों के हारने की आशंकाएं भी ज्यादा होती हैं क्योंकि काम न होने की वजह से जनता के मन में उनके प्रति नाराजगी होती है। इसलिए बीजेपी इस बार उनके टिकट भी काट सकती है जो इस बार जीते हुए हैं। अमित शाह जबसे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं, हर राज्य में उन्होंने यही फॉर्म्युला अपनाया है और यह कामयाब भी रहा है। दिल्ली में हुए एमसीडी चुनाव इसका उदाहरण है जहां पर बीजेपी ने सभी सीटों से नए कैंडिडेट उतारे और कामयाबी हासिल की।

क्या होगा बीजेपी का पैमाना
– अन्य राज्यों के पैटर्न पर गौर करें तो बीजेपी उन नेताओं को टिकट देने से बचने की कोशिश करेगी जो 70 पार हैं या ज्यादा बुजुर्ग हैं।
– उन्हें भी टिकट मिलने में दिक्कत होगी जो लगातार एक ही सीट पर हारते चले आ रहे हैं।
– उन्हें भी टिकट की उम्मीद छोड़नी होंगी जो 2012 विधानसभा चुनाव में बहुत ज्यादा मार्जन से हारे हैं।
– 2012 में बहुत कम मार्जन से जीतने वालों को भी निराशा हाथ लग सकती है क्योंकि एक तो वे खुद मुश्किल से जीते थे और अब उनके खिलाफ लोकल लेवल पर ऐंटी-इनकमबेंसी वेव हो सकती है।

जानें, इस पैमाने पर किन नेताओं को टिकट मिलने की संभावनाएं लगभग शून्य हैं:
1. आत्मा राम (जयसिंहपुर)
2. हीरा लाल (करसोग)
3. तेजवंत सिंह (किन्नौर)
4. प्रवीण कुमार (पालमपुर)
5. बालक राम नेगी (रोहड़ू)
6. प्रेम सिंह ड्रैक (रामपुर)
7. राकेश वर्मा (ठियोग)
8. मुल्ख राज (बैजनाथ)
9. खीमी राम (बंजार)
10. बदलेव शर्मा (बड़सर)
11. सुरेश चंदेल (बिलासपुर)
12. रेणु चड्ढा (डलहौजी)
13. किशन कपूर (धर्मशाला)
14. बलदेव सिंह ठाकुर (फतेहपुर)
15. प्रेम सिंह (कुसुम्पटी)
16. दुर्गा दत्त (मंडी)
17. रणवीर सिंह निक्का (नूरपुर)
18. कुमारी शीला (सोलन)

अब बात उन नेताओं की जिनके टिकट कटने की संभावनाएं तो बहुत ज्यादा हैं मगर इन्हें सेकंड लाइन ऑफ लीडरशिप न होने का फायदा मिल सकता है। अगर पार्टी को इनकी जगह कोई और कैंडिडेट मिला तो वह इनका टिकट काटने में देर नहीं लगाएगी:
1. सरवीन चौधरी (शाहपुर)
2. सुरेश भारद्वाज (शिमला)
3. जवाहर लाल (दरंग)
4. महेंद्र सिंह (धर्मपुर)
5. रमेश चंद धवाला (ज्वालामुखी)
6. रिखी राम कौंडल (झंडूता)
7. गुलाब सिंह ठाकुर (जोगिंदर नगर)
8. नरिंदर बरागटा (जुब्बल-कोटखाई)
9. राजिंदर  गर्ग (घुमारवीं)

अभी चुनावों में वक्त है और नजदीक आते-आते हलचल तेज हो जाएगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि यूपी और उत्तराखंड की तर्ज पर हिमाचल कांग्रेस के बड़े नेता भी बीजेपी का रुख कर सकते हैं। यह देखा गया है कि बीजेपी ने अन्य पार्टियों से आने वाले नेताओं की जीतने की संभावनाओं को देखते हुए उन्हें टिकट भी दिया है। उस स्थिति में भी कई सीटों पर बीजेपी के मौजूदा नेताओं के लिए मुश्किल स्थिति हो जाएगी जो टिकट की उम्मीद लगाए हुए है। बहरहाल, अन्य राज्यों में बीजेपी द्वारा अपनाई गई रणनीति के हिसाब से हिमाचल में इन नेताओं के टिकटों को खतरा हो सकता है मगर पार्टी क्या देखकर किसे टिकट लेती है, यह उसका अपना फैसला होगा। चुनाव आने पर ही पता चलेगा कि यह राजनीतिक विश्लेषण और अनुमान कितना खरा उतरता है क्योंकि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता।

नोट: इस आर्टिकल में राजनीतिक विश्लेषण के बाद इन सीटों और नामों का जिक्र किया गया है। सोशल मीडिया पर कुछ तत्व इन नामों को अपने-अपने तरीके से शेयर कर रहे हैं। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि बीजेपी ने ही इन नामों की लिस्ट बनाई है। ‘In Himachal’ सोशल मीडिया पर किए जा रहे इन दावों से इत्तफाक नहीं रखता। यह विश्लेषणात्मक अनुमान पर आधारित आर्टिकल है न कि पार्टी की तरफ से जारी किसी सूची पर आधारित समाचार।

अब बिलासपुर में मिला सिरकटा तेंदुआ, चारों पंजे भी गायब

बिलासपुर।। हिमाचल प्रदेश में लगाए गए चीड़ के जंगलों में हर साल लगने वाली भीषण आग से अगर जंगली जीव बच जाएं तो शिकारी उन्हें नहीं छोड़ रहे। अब बिलासपुर जिले के बरमाणा में एक मामला सामने आया है जहां तेंदुए को बर्बरता से मार गिराया गया है। इस तेंदुए का सिर और चारों पंजे गायब हैं। साफ है कि किसी ने दांतों और नाखूनों के लिए इसकी यह हालत की है। इससे पता चलता है कि अपराधियों ने अपने तरीके में बदलाव लाया है। खाल के बजाय अब वे पंजों और दांतों को ही निकाल रहे हैं। इससे पहले प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से इस तरह की खबरें आ चुकी हैं। अब तक किसी भी मामले में पुलिस और वन-विभाग को सफलता नहीं मिल पाई है। लगातार सामने आ रहे मामलों से यह आशंका उठ खड़ी हुई है कि कहीं कोई गिरोह इन घटनाओं को अंजाम तो नहीं दे रहा।

 

बिलासपुर के बरमाणा में ग्राम पंचायत पंजगाई के साथ लगते गांव कुन्नू में जहां यह तेंदुआ मिला है, वहां पर एसीसी की तरफ से माइनिंग का काम चल रहा है। किसी ने तेंदुए के मरे होने की सूचना गांववालों को दी। प्रधान और गांव के अन्य लोग वहां पहुंचे तो देखा कि मरे हुए तेंदुए की गर्दन और आधी कटी टांगें गायब थी। तेंदुए को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे दो-तीन दिन पहले मार कर फेंका गया है। मामले की जांच की जा रही है।

 

इससे पहले मंडी जिले के जोगिंदर नगर और सिरमौर के नाहन भी में भी तेंदुओं को इसी हालत में पाया गया है। कुछ लोग शो ऑफ के लिए जंगली जानवरों का शिकार करते हैं तो कुछ को गलतफहमी है कि तेंदुओं के दांत और नाखून बहुत पावरफुल होते हैं। कुछ लोग इनसे दवाएं बनाने का दावा करते हैं तो कुछ साज-सज्जा में इस्तेमाल करते हैं। अपने लालच के लिए इस तरह से इन जानवरों को मारना दिखाता है कि अपराधियों के मन में कानून का कोई डर नहीं रहा है। जब तक इस तरह की घटनाओं में शामिल रहने वालों को सजा नहीं होती, तब तक इनके हौसले यूं ही बढ़े रहेंगे।

पढ़ें: अब मंडी में मिला बेरहमी से मारा गया तेंदुआ

मान्यता के नाम पर डिस्टर्ब कर दिए मेटिंग कर रहे किंग कोबरा

इन हिमाचल डेस्क।। यह ठीक है कि हिमाचल प्रदेश देवभूमि है और यहां के इंसान सादगी भरे हैं। मगर वक्त के साथ बदलाव जरूरी है और कम से कम समझदारी अपनाना जरूरी है। प्रदेश में कई मान्यताएं और पंरपराएं ऐसी हैं जो आज के वक्त में भी जारी रखी जा सकती है क्योंकि उनसे किसी तरह का नुकसान नहीं है और वे हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती हैं। मगर कुछ मान्यताएं अगर अंधविश्वास बन जाएं और जानलेवा ही साबित होने लगें तो उनसे किनारा कर लेना चाहिए। ऐसी ही एक मान्यता है कि नाग-नागिन अगर संभोग कर रहे हों तो उन्हें नहीं देखना चाहिए। ऐसा करने पर दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। यहां तक अगर कोई इस मान्यता को मान ले तो कोई बुराई नहीं है। किसी को मेटिंग करते भला क्यों देखना? मगर इस मान्यता का दूसरा हिस्सा खतरनाक है और अमानवीय भी। दूसरा हिस्सा कहता है कि कहीं नाग-नागिन संभोग कर रहे हों तो उनके ऊपर कपड़ा डाल देना चाहिए। यहीं चूक हो जाती है और सब कुछ खराब हो जाता है (वीडियो नीचे है)।

 

पहली बात तो यह है कि सांप भी वैसे ही प्रकृति के अंग हैं जैसे हम और आप। वे हमारी तरह कपड़े नहीं पहनते और न ही कि पर्दे का कॉन्सेप्ट है। अगर आपको सांपों को संसर्ग करते नहीं देखना है तो न देखें, उनके ऊपर कपड़ा आप फेंकेगें तो न सिर्फ वे बेचारे विचलित होंगे, बल्कि गुस्से में आकर पर्दा डाल रहे शख्स पर हमला कर सकते हैं। अगर उनका संसर्ग आधा रहा तो यह न सिर्फ अमानवीय है बल्कि हो सकता है कि इससे पूरा बैलंस बिगड़ जाए। क्योंकि नाग (किंग कोबरा) हिमाचल में कम संख्या में हैं और उन्हें साथी की तलाश में दूर-दूर तक भटकना पड़ता है। जब वे मुलाकात करते हैं तो उससे मादा नागिन गर्भवती होकर अंडे देती है जिससे  कि नागों की संख्या बढ़ती है। आहार श्रृंखला में सापों का अहम योगदान है। ये कई जीवों को खाकर गुजारा करते है और उनकी जनसंख्या को कंट्रोल में रखते हैं। ऐसा न हो तो चूहों आदि की संख्या बेतहाशा बढ़ जाएगी और हम-आप फसलें भी नहीं उगा पाएंगे।

 

हम यह सब इसलिए बता रहे हैं क्योंकि हिमाचल प्रदेश का एक वीडियो सामने आया है। एक पेज पर शेयर किए गए इस वीडियो में कई फुट लंबा किंग-कोबरा का जोड़ा मेटिंग कर रहा है। इतने में कुछ लोग एक लड़के को हाथ में लाल दुपट्टा लेकर नागों के पास भेजते हैं ताकि वह उसके ऊपर फेंक सके। वह सावधानी से जा रहा है औऱ महिला कह रही है कि नाग की तरफ देखे बिना कपड़ा फेंक। लड़का दो-तीन बार कोशिश करता है। एक बार सांप हमलावर भी होता है। यह तो किस्मत अच्छी थी कि वह दूर था। लड़का कपड़ा फेंक देता है और सांप भी डर के मारे अलग हो जाते हैं। उनकी प्राकृतिक क्रिया भी बीच में छूट जाती है।  देखें वीडियो:

 

मान्यताओं के नाम पर यह हरकत बहुत दुखद है। एक तो आप जीवों को चैन से नहीं रहने दे रहे ऊपर से अपनी जान भी खतरे में डाल रहे हैं। इतने बड़े किंग कोबरा पलक झपकते रुख मोड़कर डस सकते हैं और कुछ ही मिनटों के अंदर आपकी जान जा सकती है। अस्पतालों के हालात तो वैसे भी माशाअल्लाह हैं हिमाचल के। रेफर गेम में आपको स्थानीय अस्पताल से टांडा और फिर टांडा से पीजीआई चंडीगढ़ रेफर कर दिया जाएगा। और इतनी देर में किंग कोबरा का जहर आपको किसी और ही दुनिया में रेफर कर चुका होगा। इसलिए ‘इन हिमाचल’ की गुजारिश है कि कृपया समझदारी अपनाएं, अपनी और इन जीवों के लिए परेशानी खड़ी न करें। कहीं नाग-नागिन मेटिंग कर रहे हैं तो मत देखो न उस तरफ, कपड़ा फेंकने की क्या जरूरत है?

खतरों के खिलाड़ियों की भी सांसें थम जाती हैं स्पीति घाटी के इस रोपवे पर

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश का लाहौल-स्पीति जिला देखने में जितना सुंदर है, वहां पर रहना उतना ही मुश्किल। भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि आसान से आसान काम भी मुश्किल बन जाता है। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों, टीलों और खाइयों से भरी स्पीति घाटी का एक खूबसूरत गांव है किब्बर। पास ही चीचम गांव है। दूरी वैसे तो ज्यादा नहीं मगर सड़क जहां से बनी है, उसके जरिए किब्बर से चीचम जाना हो तो एक घंटे का समय लग जाता है। बीच में एक गहरी खाई है जिसकी तलहटी में एक जलधारा बहती है। पार जाने के दो तरीके हो सकते हैं- या तो सड़क से जाएं या फिर खाई में उतरें और फिर से चढ़ें। पहले वाले तरीके में टाइम ज्यादा लगेगा और दूसरा तरीका न सिर्फ थकाऊ होगा बल्कि खतरनाक भी साबित हो सकता है। मगर आना-जाना तो पड़ता ही है लोगों को। इसके लिए एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला गया है। खाई को पाटने के लिए चूंकि पुल नहीं है, इसलिए यहां पर एक लोहे की रस्सिों पर चलने वाली ट्रॉली लगाई गई है जिसे हाथ से खींचना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और नेपाल से लेकर एशिया के कई देशों में इस तरह की ट्रॉलियां आज भी नदियों या खाइयों को पार करने में इस्तेमाल होती हैं (वीडियो नीचे हैं)।

 

हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में पुल बन जाने से ऐसी ट्रॉलियां दिखना अब कम हो गई हैं मगर बहुत से इलाके हैं जहां पर आज भी लोग इन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं। किब्बर-चीचम को जोड़ने वाली यह ट्रॉली भी ऐसी ही है।

 

 

इस सिस्टम में खतरा तो है मगर विवशता में कोई करे भी तो क्या? अगर कोई पुल बना दिया जाए तो लोगों की समस्या जरूर कम होगी। इस मामले में हमें चीन से सीखना चाहिए। उसने गहरी खाइयों के पुल बनाए हैं। कुछ जगहों पर तो उसने शीशे के पुल बनाए हैं। लोग तो आ-जा रहे ही हैं, बाहर से टूरिस्ट्स भी आ रहे हैं ऐसे पारदर्शी पुलों पर चलने के लिए, जिनके नीचे गहरी खाई नजर आती।

ग्लास ब्रिज (चीन)

लाहौल-स्पीति की यह ट्रॉली शीशे का परदर्शी पुल बनाने के लिए एकदम उपयुक्त है। क्योंकि चारों तरफ शानदार नजारे तो हैं ही, नीचे देखने पर गहरी खाई में जलधारा बहती हुई नजर आती है जिसका पानी बहुत साफ है। पूरी दुनिया से टूरिस्ट्स ऐसे पुल को देखने के लिए आ सकते हैं। मगर अभी भी जो लोग किब्बर आते हैं, वे रोमांच के लिए इस ट्रॉली का लुत्फ उठाना नहीं भूलते। बाहरी लोगों के लिए यह अडवेंचर का विषय है मगर स्थानीय लोगों के लिए मजबूरी। देखें वीडियो:

 

 

इस वीडियो को ध्यान से देखें, इसमें ड्रोन से पता चलता है कि ऊंचाई कितनी है:

 

यह तो अलग तरह का अडवेंचर है। सरकार को चाहिए कि स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए सुरक्षित इंतजाम करे। वैसे ग्लास ब्रिज जैसे विकप्लों पर विचार किया जाता सकता है क्योंकि वे सुरक्षित तो होंगे ही, टूरिस्ट्स को भी आकर्षित करेंगे।

कार्यक्रम को बीच में ही रोककर ऐंबुलेंस के लिए रास्ता बनाने लगे जेपी नड्डा

कांगड़ा।। आमतौर पर देखने को मिलता है कि राजनेताओं की रैलियों और काफिलों के चलते लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। टीवी पर आए दिन मामले देखने को मिलते हैं कि मंत्रियों या नेताओं का काफिला या रोडशो निकालने के चक्कर में ऐंबुलेंस तक फंस गई। राजनेता इस मामले में जिस तरह से लापरवाही भरा रवैया अपनाते हैं, वह हम सभी ने देखा है। मगर इस मामले में हिमाचल प्रदेश थोड़ा अलग रहा है। कई मंत्रियों और नेताओं के काफिले इस तरह के हालात में इमर्जेंसी वीइकल्स को रास्ता देते रहे हैं। यह दिखाता है कि हिमाचल प्रदेश और यहां के राजनेताओं में कई कमियां हैं मगर वे अपेक्षाकृत अन्य राज्यों से बेहतर हैं। ऐसे ही एक काम के लिए हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ बीजेपी नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा सोशल मीडिया पर चर्चा हैं। एक कार्यक्रम के सिलसिले में घुघर आए जेपी नड्डा के स्वागत में भारी भीड़ जुटी थी। कार्यकर्ताओं का उत्साह ऐसा था कि वे नड्डा के स्वागत में रोड पर ही जमा हो गए थे। कई नेता अपनी गाड़ियों में भी आए थे। इस बीच वहां ऐंबुलेंस आई और फंस गई। जैसे ही नड्डा का ध्यान इस ओर गया, उन्होंने अपना कार्यक्रम बीच में ही रोक दिया और कार्यकर्ताओं को वहां से हटने को कहा। वह खुद ही गाड़ियों और कार्यकर्ताओं को वहां से हटाकर ऐंबुलेंस के लिए रास्ता बनाने में जुट गए।

 

नड्डा को खुद मोर्चा संभालते देख वहां मौजूद लोग भी हरकत में आए और ऐंबुलेंस के लिए रास्ता बनाने में जुट गए। आसपास खड़े लोग भी मदद के लिए आगे आए ताकि साइड में खड़ी गाड़ियों को और किनारे करके जगह बनाई जाए और ऐंबुलेंस आराम से निकल सके।

 

एक अन्य मामले में जेपी नड्डा का काफिला उस वक्त भी रुका जब उन्होंने रास्ते में एक ऐक्सिडेंट देखा। नड्डा गाड़ी से उतरे और उन्होंने घायलों के लिए ऐंबुलेंस का इंतजाम करवाया और उन्हें टांडा मेडिकल कॉलेज भिजवाया।

 

 

नड्डा से पहले हिमाचल प्रदेश के अन्य नेता भी इस तरह से संवेदनशीलता दिखाते रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के लोगों को, भले वे नेता हों या कोई और, यह भावना बरकरार रखनी चाहिए। प्रदेश की पहचान इन्हीं अच्छाइयों की वजह से होनी चाहिए।

लेख: हिमाचल प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को है उपचार की जरूरत

विजय शर्मा।। हिमाचल प्रदेश की गिनती देश के उन राज्यों में होती है जहां स्वास्थ्य सेवाएं ठीकठाक हैं। प्रदेश सरकार का दावा है कि सरकार प्रति वर्ष, प्रति व्यक्ति 26,000 हजार स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च कर रही है लेकिन हैरानी की बात यह है कि करीब 20 प्रतिशत पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं हैं। प्रदेश की 739 पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केन्द्र नहीं हैं और जहां यह स्वास्थ्य केन्द्र हैं भी, वहां डॉक्टरों और दवाइयों का अभाव है। आपात स्थिति चिकित्सकों की सेवाएं, ऐम्बुलेंस या प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। सबसे ज्यादा खराब हालत जनजातीय क्षेत्रों एवं निचले यानि नए हिमाचल हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना की है जहां स्वास्थ्य केन्द्रों का अभाव है। अस्पतालों में डॉक्टरों, ढांचागत सुविधाओं और दवाओं की भारी कमी है। तहसील एवं जिला स्तर पर गाइनोकॉलजिस्ट की भारी कमी के चलते प्रसव पीड़ित महिलाओं को टांडा और शिमला रैफर करने की बात की जाती है। यह अस्पताल इतनी दूरी पर हैं कि आपात स्थिति में वहां पहुंचना जच्चा और बच्चा दोनों के लिए खतरनाक है। अतः विवश होकर परिजनों को प्राइवेट नर्सिंग होम्स या अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। इसके अलावा प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार के चलते सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों द्वारा दवाइयाँ और टेस्ट बाहर से कराने पर जोर दिया जाता है। अब तो यह प्रचलन सा हो गया है कि जब भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती है नए हिमाचल के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों का भारी टोटा रहता है। यही कारण है कि प्राइवेट नर्सिंग होम और अस्पताल फल-फूल रहे हैं और सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भट्टा बैठता जा रहा है।

 

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के गृह जिले की 30 और उनके विधानसभा क्षेत्र की 6 पंचायतों में कोई भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के गृह जिले की 54 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है और स्वास्थ्य मंत्री श्री कौल सिंह ठाकुर के विधान सभा क्षेत्र की 8 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। इसी प्रकार मंडी जिले की 93 पंचायतों में कोई चिकित्सा सुविधा नहीं है। इसके अलावा चंबा की 57, कांगड़ा की 242, कुल्लू की 80, सिरमौर की 59 और ऊना की 83 ग्राम पंचायतों में कोई स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। यहां आशा वर्कर एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों की मदद से ही काम चलाया जा रहा है। हालांकि कहने को तो इन पंचायतों को किसी न किसी स्वास्थ्य केन्द्र से जोड़ा गया है लेकिन इनकी दूरी एवं चिकित्सा सुविधाओं और डॉक्टरों की कमी के कारण यहां के लोग प्राइवेट डॉक्टरों या फिर गंभीर हालत में बड़े सरकारी अस्पतालों की शरण लेते हैं। बड़े सरकारी अस्पतालों में ढांचागत सुविधाओं की कमी, दवाओं का अभाव एवं बाहर से कराये जाने वाले टेस्टों की मार से रोगी एवं उनके परिजन खुद को ठगा महसूस करते हैं. इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला में ढांचागत सुविधाओं की भारी कमी है। टांडा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में जितनी सुविधाएं हैं, उससे कहीं अधिक मरीज हैं। खासतौर पर स्त्रीरोग विभाग में प्रसव के सामान्य मामले भी तहसीलों और जिला अस्पतालों से टांडा रेफर कर दिए जाते हैं. टांडा मेडीकल कॉलेज के डॉक्टर अत्यधिक दबाव में काम करते हैं।

जगह-जगह अस्पतालों में अच्छी सुविधाएं न होने पर बड़े अस्पतालों पर बोझ बढ़ रहा है।

केन्द्र सरकार की आर्थिक मदद के बावजूद प्रदेश की राजधानी शिमला में पिछले साल बड़े पैमाने पर पीलिया फैला, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई और करीब 33000 से अधिक लोग प्रभावित हुए थे। डेंगू और अब स्क्रब टाइफस 25 से अधिक लोगों को अपना शिकार बना चुका है। केंद्र सरकार ने प्रदेश के 4 मेडिकल कॉलेजों के लिए 600 करोड़ रूपए जारी किये हैं और 5 जिलों में ट्रॉमा केयर सेन्टर स्वीकृत किए हैं. इसके अलावा वित्त वर्ष 2014-15 में नेशनल हेल्थ मिशन के तहत 234 करोड़ तथा वर्ष 2015-16 के लिए 298करोड़ रूपए की आर्थिक सहायता प्रदान की है लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं की कमी चिंता का विषय है।

तस्वीर सिरमौर की है जहां लोगों ने बर्फबारी के बीच मरीज को 15 किलोमीटर कंधे पर उठाकर अस्पताल पहुंचाया था।

केन्द्र सरकार ने प्रदेश में 7552 आशा वर्कर्स लगाने के लिए 15.24 करोड़ रूपए के साथ 2744 अनुबन्ध पर रखे जाने वाले कर्मियों के पदों की स्वीकृति दी है। जननी सुरक्षा योजना के लिए प्रदेश को 33 करोड़ रूपए और गरीबों को मुफ्त दवाईयां उपलब्ध करवाने के लिए 61 करोड़ रूपए स्वीकृत किए हैं। इसके अलावा आधारभूत संरचनाएं खड़ी करने के लिए 60 करोड़ रूपए और ऐम्बुलेंस खरीदने के लिए 3.46 करोड़ रूपए का प्रावधान किया है। अब यह प्रदेश सरकार पर निर्भर करता है कि वह इसका कितना सदुपयोग करती है।

यह भी देखें: हिमाचल के नेताओं की बेशर्मी की पोल खोलती हैं ये 10 तस्वीरें

(लेखक हमीरपुर के हिम्मर डाकघर के गांव दरब्यार से हैं। उनसे vijaysharmaht@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

Disclaimer: ये लेखक के अपने विचार हैं। ‘इन हिमाचल’ इस लेख में दिए गए आंकड़ों या विचारों के लिए उत्तरदायी नहीं है।

देखें, ये हैं हिमाचल प्रदेश की प्रमुख कृत्रिम झीलें जो बेहद खूबसूरत हैं

प्रतीक बचलस।। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और बागवानी का बहुत ज्यादा योगदान है। प्रदेश की कृत्रिम झीलें कई तरह से हिमाचल प्रदेश को समृद्ध बनाने में अपना योगदान दे रही हैं। ये कृत्रिम झीलें मुख्यत: सिंचाई, पीने का पानी और संचय के काम आती हैं ताकि कमी होने पर इस्तेमाल किया जा सके। फायदे तो हैं मगर इनका नुकसान भी प्रदेश को उठाना पड़ा है। एक तो बांधों का निर्माण बहुत ही खर्चीला काम है, साथ ही रख-रखाव का भी खास ख्याल रखना पड़ता है। प्रदेश की प्रमुख कृत्रिम झीलें इस तरह से हैं:

 

1. गोविंद सागर झील
गोविंद सागर झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह बिलासपुर जिले में सतलुज नदी पर बनी है। इस झील की लंबाई 88 किमी.और क्षेत्रफल 168 वर्ग किमी. है। इसमें पुराना बिलासपुर शहर डूबा है। पुरानी इमारतें, महल और मंदिर तक डूबे हैं। कुछ मंदिर पानी का स्तर कम होने पर नजर आने लगते हैं।

Source: MyStateInfo.com

2. पौंग झील
यह झील कांगडा जिले के नगरोटा सूरियां में स्थित है।इसकी लम्बाई 42 किमी. है। इस झील के पास पौंग बांध भी है जो 1960 में बना था। यह झील महाराणा प्रताप सागर के नाम से जानी जाती है। यहां भी कुछ मंदिर डूबे हुए है। पहचान है इसकी प्रवासी पक्षियों के खूबसूरत जमावड़े के लिए।

Source: https://in.pinterest.com/pin/573857177496799604/

3. पंडोह झील
यह झील मंडी जिले में ब्यास नदी पर बनी हुई है। इसकी लम्बाई 14 किमी. है । यह राष्ट्रीय राजमार्ग -21 के किनारे है।

Source: https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Pandoh_Lake_NH_View.jpg


4. सुंदरनगर झील
यह झील बहुत ही सुंदर है।अपने मनमोहक दृश्य से ये कई पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह मंडी जिले के सुंदरनगर शहर में स्थित है।

Soruce: http://wikimapia.org/10111184/Balancing-reservoir-Sundernagar-Lake

5. चमेरा झील
यह झील चम्बा जिले में स्थित है । यह झील रावी नदी पर बनी हुई है।यह झील डलहौजी से 25 किमी. की दूरी पर स्थित है। सर्दियों के दिनों में यहां का दृश्य और भी मनमोहक हो जाता है क्योंकि आस पास के वृक्ष और मैदान पूरी तरह बर्फ से ढक जाते है।

Source: https://www.tripadvisor.com/LocationPhotoDirectLink-g503693-d2475558-i87930575-Chamera_Lake-Dalhousie_Himachal_Pradesh.html

कुछ और झीलें भी हैं हिमाचल में जो अन्य बांधों पर बनी हैं। अगर आपको लगता है कि उन झीलों का नाम भी इनमें शामिल होना चाहिए था तो कॉमेंट करके बताएं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के ऊना से हैं और नैशनल ऐग्री फूड बायोटेक्नॉलजी रिसर्च इंस्टिट्यूट में सेवाएं दे चुके हैं। उनसे prateekdcoolest120@gmail com पर संपर्क किया जा सकता है।)

सरकारी गाड़ी में ‘कोकीन’ के साथ पकड़ा गया एचआरटीसी सोलन का रीजनल मैनेजर

शिमला।। एचआरटीसी के सोलन के रीजनल मैनेजर को उनकी सरकारी गाड़ी में संदिग्ध नशीली सामग्री के साथ रंगे हाथों पकड़ा गया है। साथ में पुलिस ने 3 और लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस का कहना है कि इस ऐक्शन में उसने 4 किलो 400 ग्राम कोकीन बरामद की है। नशे की इस खेप को जम्मू-कश्मीर से शिमला लाया जा रहा था। आरोपी इस पैकेज को एक तस्कर को देने जा रहा था। इसका सौदा 30 लाख रुपये में किया गया था।  पुलिस के हत्थे चढ़ा आरएम महेंद्र सिंह धर्मशाला के सिद्धबाड़ी का रहने वाला है। विकास नाम का एक शख्स धर्मशाला और दूसरा राजीव बैजनाथ का है। तीसरा आरोपी गयासुद्दीन जम्मू कशमीर का रहने वाला है।

 

पुलिस ने रविवार रात को शोघी में वाहनों की तलाशी के लिए नाकेबंदी की थी और गाड़ियों की तलाशी की जा रही थी। सुबह करीब एक बजे सोलन की तरफ से एक गाड़ी आई। रोकने पर ड्राइवर ने बताया कि यह आरएम सोलन की गाड़ी है और साहब पीछे पैठे हैं। पुलिस ने कहा कि सभी गाड़ियों की तलाशी ली जा रही है और आपकी गाड़ी की भी तलाशी ली जाएगी। जैसे ही पुलिस ने तलाशी लेने की बात की तो आरएम अपने पांव के पास रखे बैद को पीछे करने लगा। पुलिस की नजर पड़ी तो बैग को खोल गया। अंदर पांच पैकेट मिले जिनमें सफेद रंग का कुछ था।

 

लिफाफा खोलने पर निकले सफेद पदार्थ को एक पुलिसचर्मी ने चेक किया तो नशीला पदार्थ लगा। गाड़ी मे ंबैठे सभी लोगों को हिरासत में ले लिया गया। बात में शिमला के एसपी डी.डब्ल्यू. नेगी ने कहा कि सभी आरोपियों के खिलाफ बालूगंज पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कर लिया है और छानबीन की जा रही है। आरोपियों से पकड़े गए पदार्थ को जांच के लिए फरेंसिंक लैबरेटरी में भेज दिया गया है।

 

इस मामले में पुलिस ने जिस तरह से फर्ज निभाते हुए आरएम की गाड़ी को भी चेक किया, वह काबिल-ए-तारीफ है। अगर अधिकारी की गाड़ी को ऐसे ही जाने दिया गया होता तो नशे के सौदागर पकड़ में न आते। ड्यूटी पर मुस्तैद रहे इन अधिकारियों को पुरस्कार मिलना चाहिए ताकि विभाग के अन्य कर्मियों को भी प्रेरणा मिले।

महिला टूरिस्ट ने पायलट पर बिलिंग में उड़ान के दौरान छेड़छाड़ का आरोप लगाया

कांगड़ा।। पैराग्लाइडिंग के लिए दुनिया भर में मशहूर हिमाचल प्रदेश के बीड़-बिलिंग में एक अलग तरह का मामला सामने आया है। खबरों के मुताबिक प्रदेश पुलिस ने बिलिंग के एक पैराग्लाइडिंग पायलट के खिलाफ उड़ान के दौरान एक महिला टूरिस्ट से छेड़छाड़ करने पर एफआईआर दर्ज की है। मुंबई की एक युवती ने आरोप लगाया है कि पैराग्लाइडिंग के दौरान इस पायलट ने गलत हरकत की। अपने आरोप को पक्ष में इस युवती ने वीडियो क्लिप भी पुलिस को सौपा है। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक इस क्लिप को देखकर यह तय कर पाना मुश्किल है कि इतनी हाइट पर सेफ्टी के लिए कदम उठाते वक्त बेल्ट को खींचते हुए गलती से पायलट का हाथ टच हुआ या इरादतन ऐसी हरकत की गई। यह इस तरह का पहला मामला है जो सुर्खियों में आया है। उड़ान के दौरान कैमरे से अडवेंचर को कैद करने के लिए टूरिस्ट्स वीडियो बनाया करते हैं। बताया जा रहा है कि पीड़ित लड़की शिकायत करते की हिम्मत इसलिए कर सकी क्योंकि इसी वीडियो रिकॉर्डिंग के दौरान पायलट की हरकत भी कैमरे में कैद हो गई। इसी को आधार बनाते हुए विक्टिम ने पुलिस की मदद लेने की ठानी ताकि किसी और को इस तरह के हालात का सामना न करना पड़े।

 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कांगड़ा के एसपी संजीव गांधी ने कहा है, ‘महिला की शिकायत है कि पैराग्लाइडर पायलट ने टैंडम पैराग्लाइडिंग फ्लाइट (जिसमें पायलट अपने साथ टूरिस्ट्स को उड़ाते हैं) के दौरान मॉलेस्ट किया। हम वीडियो क्लिप की जांच कर रहे हैं। महिला के बयान को CrPC के सेक्शन 164 के तहत दर्ज कर लिया गया है।’ रिपोर्ट्स के मुताबिक महिला टूरिस्ट का कहना है कि बैजनाथ के बीड़-बिलिंग में हाल ही में पैराग्लाइडर पायलट ने यह हरकत की है। पुलिस को पहले इस मामले में ऑनलाइन कंप्लेंट मिली थी और अब पीड़ित युवती खुद भी मुंबई से वापस आई है। पायलट के खिलाफ सेक्शन 354 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। एसपी का कहना है कि जब तक आरोपों की पुष्टि नहीं हो जाती, आरोपी की पहचान नहीं बताई जा सकती।

पैलाग्लाइडिंग करवाने वालों पर कोई नियंत्रण नहीं
इस मामले की तो अभी जांच जारी है मगर बीड़-बिलिंग में शरारती तत्वों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। यहां पर टेंडम फ्लाइट्स तो भरी जा रही हैं मगर यह निगरानी करने के लिए कोई अधिकृत संस्था नहीं है जो लोग यहां टूरिस्ट्स को अपने साथ उड़ा रहे हैं, उनकी क्वॉलिफिकेश क्या है या वे कितने ट्रेन्ड हैं। इससे वे अपने साथ-साथ बाहर से आने वाले टूरिस्ट्स की जान भी जोखिम में डाल रहे हैं। कुछ टूरिस्ट्स यहां तक शिकायत कर चुके हैं कि पायलट्स चरस और गांजा पीकर उड़ाने भरते हैं। अगर लड़की के आरोप सही पाए जाते हैं तो सवाल उठ सकता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस तरह के शरारती तत्व बीच हवा में महिला टूरिस्ट्स के साथ छेड़छाड़ करते रहे हों और प्रदेश का नाम खराब करते रहे हों। हालांकि पुलिस मामले की जांच कर रही है कि लड़की के आरोपों में सच्चाई है या नहींं।

पुलिस की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में
बीड़ में पिछले कुछ वक्त से टूरिस्ट्स के साथ अभद्र व्यवहार के मामले बढ़ रहे है। यहां घूमने आने वाले कपल्स के साथ कुछ स्थानीय गुंडातत्व बदसलूकी करते रहे हैं। इसी साल जनवरी में कुछ लोगों ने हमीरपुर के टूरिस्ट्स की कार को टक्कर मारकर खाई से गिरा दिया था। इस घटना में हमीरपुर विकासनगर निवासी वरुण शर्मा (30), विपन कुमार (38), निशा कुमारी (37), रुचिता शर्मा (28) और वीहा शर्मा (5) को गंभीर चोटें आई थीं।


घटना में घायल हुए विपिन ने बताया था कि तीनों युवक उनकी कार में बैठी महिलाओं के साथ बदतमीजी करने लगे, मगर उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इसके बाद तीनों ने कोटली गांव के पास गाड़ी को जान-बूझकर पास लेने के बहाने टक्कर मार दी, जिससे गाड़ी अनियंत्रित होकर पहाड़ी से नीचे ढांक में लुढ़क गई। बाद में पुलिस ने सिर्फ लापरवाही से गाड़ी चलाने का मामला दर्ज किया था। (यहां क्लिक करके पढ़ें खबर) सवाल उठ रहे हैं कि इस तरह के गंभीर मामलों में पुलिस द्वारा ढीला रवैया अपनाने से ऐसे गुंडा तत्वों का हौसला नहीं बढ़ेगा तो और क्या होगा। यहां देश-दुनिया से टूरिस्ट्स आते हैं और अगर उनके साथ कुछ गलत होता है तो पूरे प्रदेश का नाम बिना वजह बदनाम होता है।

ऐसे में ताजा मामले में पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और अगर दोषी पाया जाए तो पायलट को गिरफ्तार करना चाहिए। क्योंकि पुलिस अक्सर ”बदनामी होगी” वाला तर्क देकर ऐसे मामलों में समझौता करवाती पाई जाती है। मगर मामला प्रदेश की प्रतिष्ठा से जुड़ा है, इसलिए ढील नहीं बरतनी चाहिए। हालांकि इस मामले में सभी को कांगड़ा के तेज-तर्रार एसपी संजीव गांधी से उम्मीदें हैं अपराध और अपराधियों के लिए जीरो टॉलरंस नीति अपनाने के लिए पहचाने जाते हैं। साथ ही बीड़ समेत अन्य जगहों पर पैराग्लाइडिंग करवाने वालों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए और उड़ान भरने से पहले उनका मेडिकल भी होना चाहिए। साथ ही उड़ान के दौरान वीडियो रेकॉर्डिंग अनिवार्य कर देनी चाहिए। वरना क्या पता कल को कोई शरारती तत्व आए और किसी महिला टूरिस्ट को अपने साथ उड़ाकर किसी अज्ञात जगह पर उतार ले। किसी अप्रिय घटना के लिए कौन जिम्मेदार होगा? सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।