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Friday, September 12, 2025
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45 साल के शख़्स पर 9 साल की बच्ची के रेप का आरोप

कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर में 45 साल के एक शख्स पर 9 साल की बच्ची से रेप करने का आरोप आया है। बच्ची बेहद गरीब परिवार की है। परिजनों ने पुलिस को शिकायत दी है कि आरोपी ने टोफी का लालच देकर यह हरकत की। उनका दावा है कि उन्होंने 20 सितंबर को आरोपी को इस अपराध को अंजाम देते हुए पकड़ा।

 

आरोप है कि पिछले डेढ़ महीने से वह यह ऐसा कर रहा था और बच्ची के स्कूल आते-जाते वक्त अपराध को अंजाम दे रहा था। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और बच्ची का मेडिकल करवाया जा रहा है। पुलिस के मुताबिक परिजनों की शिकायत के आधार पर मामला दर्ज करके छानबीन शुरू कर दी गई है।

…जब होटल से चार लड़कियों को थाने ले गई पुलिस

कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के ज्वालामुखी में पुलिस ने नादौन मार्ग स्थित एक होटल पर दबिश दी और वहां मौजूद चार लड़कियों को पुलिस स्टेशन ले गई। पुलिस ने पूछताछ की, उनसे पता पूछा। बाद में पुलिस ने इन लड़कियों को छोड़ दिया और कहा कि इस मामले में कुछ भी गलत नहीं पाया गया। लड़कियों का कहना था कि वे होटल में खाना खाने के लिए रुकी थीं। अगर कुछ नहीं था, तो सवाल उठ रहा है कि क्या हिमाचल में अब चार लोग कहीं इकट्ठे नहीं जा सकते, खासकर होटल में?

 

पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश पुलिस ने ऊना के होटल में छापा मारा था और वहां से कुछ जोड़ों को पकड़ा था। कानूनन पुलिस को मोरल पुलिसिंग का अधिकार नहीं है, फिर भी यह कार्रवाई की गई। मगर अब तक हद यह है कि लड़के-लड़कियों से ही नहीं, शायद पुलिस को लड़कियों के भी साथ घूमने से आपत्ति है।

 

दरअसल इस कार्रवाई के पीछे पुलिस किसी गुप्त सूचना को बता रही है। खबर है कि पुलिस किसी ‘गुप्त’ जानकारी के आधार पर दबिश देकर होटल से चार युवतियों को ले गई। होटल के मैनेजर को भी तलब किया गया था। पूछताछ में लड़कियों ने जो अपना बता बताया, वह सही पाया गया। तीन लड़कियां नगरोटा की थीं और एक जालंधर की।

सभी तस्वीरें प्रतीकात्मक हैं

पुलिस अधिकारियों को उन्होंने बताया कि वे कुछ खाने के लिए होटल में आई थीं। इसी बीच किसी ने पुलिस को खबर कर दी। ख़बर के मुताबिक ज्वालामुखी संदीप पठानिया ने बताया है कि कुछ भी गलत नहीं पाया गया है और लड़कियों को परिजनों के हवाले कर दिया गया है।

 

इस तरह के घटनाक्रम हिमाचल प्रदेश जैसे पर्यटन स्थल की साख को धक्का पहुंचाते हैं। अगर पुलिस इसी तरह से कार्रवाई करती रहेगी तो कल को नई-नई शादी होने के बाद हनीमून मनाने हिमाचल आए कपल भी तथाकथित “रंगरलियां” मनाने के आरोप में पकड़े जा सकते हैं, क्योंकि जरूरी नहीं कि वे शादी का सर्टिफिकेट लेकर घूमने आए हों।

 

 

गुड़िया केस में सीबीआई ने जांच पूरी करने के लिए फिर मांगी मोहलत

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस की जांच कर रही सीबीआई को हाई कोर्ट से जांच पूरी करने के लिए एक बार फिर मोहलत मिल गई है। सीबीआई ने गुरुवार को बंद लिफाफे में हाईकोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दायर की। सीबीआई के वकील ने ब्रेन मैपिंक और अन्य साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन के लिए कोर्ट से और समय मांगा। कोर्ट ने फटकार लगाई और फिर 21 दिन की मोहलत भी दे दी।

 

हाई कोर्ट ने सीबीआई से कहा है कि अपनी रिपोर्ट और स्पष्ट करे। अब अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी। कोर्ट ने सीबीआई को जल्दी से जांच पूरी करने को कहा। गौरतलब है कि सीबीआई इससे पहले तीन बार स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है। हर बार वह जांच पूरी करने के लिए और समय मांगती रही। इससे पहले 2 अगस्त, 17 अघस्त और 6 सितंबर को उसने स्टेटस रिपोर्ट फाइल की थी।

 

सुनवाई के बाद सीबीआई के वकील अंशुल बंसल ने कहा कि जांच एजेंसी साइंटिफि इन्वेस्टिगेशन कर रही है, इसमें समय लगेगा। उन्होंने कहा कि जिस स्थिति में सीबीआई को पुलिस से जांच हस्तांतरित हुई थी, उसमें समय लगना लाजिमी है।

वीरभद्र या विक्रमादित्य में से कोई एक लड़ेगा चुनाव?

इन हिमाचल डेस्क।। क्या विक्रमादित्य नहीं चाहते कि वीरभद्र चुनाव लड़ें? यह प्रश्न सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। हिमाचल यूथ कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने एक एक बयान दिया और ‘एक परिवार-एक टिकट’ की वकालत की। यानी उनका कहना था कि एक परिवार में एक ही व्यक्ति को चुनाव में टिकट मिलना चाहिए। अब वह ऐसी मांग कर रहे हैं तो इसका मतलब यह निकलता है कि वह अपने परिवार में भी एक ही टिकट चाहते हैं। यानी या तो वह खुद चुनाव लड़ेंगे या फिर उनके पिता वीरभद्र चुनाव लड़ेंगे। मगर वीरभद्र सिंह ने अपने बेटे के बयान के ठीक उलट कहा- कांग्रेस में एक ही परिवार को एक ही टिकट दिया जाए, ऐसा कोई नियम नहीं है।

 

शिमला रूरल पर बहुत सक्रिय हैं विक्रमादित्य
अभी वीरभद्र सिंह शिमला ग्रामीण से विधायक हैं मगर इस सीट पर उनके बेटे विक्रमादित्य सक्रिय हैं। वह लगातार यहां पर कई कार्यक्रम कर चुके हैं और इस सीट पर हुए विकास और सरकार की उपलब्धियां गिनाने वाले वीडियो बनाकर लगातार प्रचार कर रहे हैं। शिमला ग्रामीण के लिए बने हर वीडियो में विक्रमादित्य का बड़ा सा पोर्ट्रेट होता है।

 

जब लाखों रुपये खर्च करके इतना प्रचार किया जा रहा है तो इसके यही सियासी मायने निकलते हैं कि वह खुद यहां से उतरने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। फिर अगर वह एक परिवार के लिए एक टिकट की वकालत करने हैं तो इसका मतलब कहीं न कहीं यही निकलता है कि वह चुनाव लड़ेंगे तो उनके पिता चुनाव नहीं लड़ेंगे। क्योंकि ऐसा तो होगा नहीं कि पार्टी पूरे प्रदेश में एक परिवार एक टिकट की नीति अपनाए, मगर मुख्यमंत्री और उनका बेटा दोनों चुनाव लड़ें। वैसे भी पूरे प्रदेश में, बीजेपी हो या कांग्रेस, वीरभद्र और विक्रमादित्य के अलावा कहीं पर भी ऐसे हालात नहीं है कि एक ही पार्टी से दो लोग अलग-अलग सीटों पर टिकट मांग सकते हों।

 

बेटे के बयान को वीरभद्र ने किया खारिज
भले ही विक्रमादित्य परिवार में एक ही व्यक्ति को टिकट दिए जाने के हिमायती हैं, वीरभद्र कहते हैं कि कांग्रेस में ऐसा कोई नियम नहीं है। साथ ही कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने भी विक्रमादित्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने यह बयान अपने पिता से पूछकर दिया था या नहीं।

 

सभी बातों को मिला दिया जाए तो इन बयानों से दो संकेत मिलते दिखते हैं- विक्रमादित्य चाहते हैं कि एक ही व्यक्ति को टिकट मिले- या तो वह चुनाव लड़ें या फिर उनके पिता। दूसरी सूरत यह कि विक्रमादित्य जिस तरह से शिमला रूरल में ऐक्टिव हैं, यहां से वह खुद चुनाव लड़ना चाहते हैं और शायद नहीं चाहते कि उनके पिता इस बार चुनाव मैदान में उतरें। मगर वीरभद्र ने अपने बयान में स्पष्ट कर दिया कि ऐसी कोई बंदिश नहीं है यानी वह और उनका बेटा दोनों चुनाव लड़ सकते हैं।

‘नई राजनीति की समझ रखते हैं विक्रमादित्य’
ऐसा भी हो सकता है कि परिवार में एक ही व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर सहमति बन गई हो। मगर इन बयानों का असल मतलब क्या है, चुनाव आने पर ही साफ हो पाएगा। तब तक सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं। हालांकि राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि विक्रमादित्य युवाओं के सेंटिमेंट सी समझ ररखते हैं। वह जानते हैं कि अब जनता क्या चाहती है, जबकि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अभी भी चुनावी समय में पुराने ढर्रे पर घोषणाएं करके सत्ता की राह देख रहे हैं और अपने पुराने साथियों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं विक्रमादित्य मौजूदा हालात की समझ रखते हुए युवाओं को आगे लाने के हिमायती हैं।

गरीबों को जमीन मिल सकती है तो विधायकों को क्यों नहीं: वीरभद्र

शिमला।। विधायकों और पूर्व विधायकों को सस्ती दरों पर जमीन दिए जाने का मुद्दा हिमाचल प्रदेश में छाया हुआ है। एक तरफ जहां बीजेपी नेता प्रेम कुमार धूमल ने इस फैसले का विरोध किया है, सरकार के अंदर भी इसके खिलाफ स्वर उठने लगे हैं। सीपीएस नीरज भारती और परिवहन मंत्री जीएस बाली भी इस फैसले को गलत बता चुके हैं। मगर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि जब गरीब और पात्र लोगों को जमीन दी जा सकती है तो विधायकों को क्यों नहीं।

 

मुख्यमंत्री ने कहा है कि विधायकों को जमीन पट्टे पर देने के लिए अभी केवल पात्र माना है, यह जरूरी नहीं कि सभी को जमीन दी जाए। उन्होंने कहा कि सभी विधायक जमीन नहीं लेते हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी को तो विरोध की राजनीति करने की आदत हो गई है। उधर मुख्यमंत्री के खास माने जाने वाले वन मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी ने भी सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है।

पढ़ें: जानें, हिमाचल के कितने विधायक करोड़पति हैं

इससे पहले नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल ने कहा था कि मौजूदा सरकार ने गरीब लोगों को 2 बिस्वा जमीन देने का ऐळान किया था मगर उन भूमिहीनों को अब तक जमीनें नहीं मिलीं, जबकि विधायकों और पूर्व विधायकों के लिए पट्टे पर जमीन देने का ऐलान किया है।

देखें: वेतन बढ़ने पर कितने खुश थे बीजेपी विधायक

सावधान! हिमाचल में भले-चंगे लोग बनाए जा रहे हैं मरीज़

पालमपुर।। क्या हिमाचल प्रदेश में भी स्वास्थ्य माफिया है? स्वास्थ्य माफिया यानी मरीज़ों को डराकर, उनका फर्जी इलाज करके, उनसे पैसा एंठना। चौंकाने वाला मामला सामने आया है हिमाचल प्रदेश पालमपुर में। पूर्व सैनिक सूबेदार जगन्नाथ ठाकुर के साथ कुछ ऐसा हुआ, वह दिखाता है कि किस तरह से चिकित्सा के नाम पर लोगों को न सिर्फ ठगा जा रहा है बल्कि उनकी जान भी खतरे में डाली जा रही है। सेना में सेवाएं देते हुए समय बारूदी सुरंग फटने से दाई टांग खो चुके जगन्नाथ का दावा है कि ईसीएचएस होल्टा के डॉक्टरों ने उन्हें धोखे से पंजाब के एक निजी अस्पताल में भेजकर स्टेंट डलवा दिया। उनका दावा है कि इसकी जरूरत नहीं थी। ऐसे में उन्होंने पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज करवाई है।

 

इस मामले में सूबेदार जगन्नाथ ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश के पोर्टल ‘समाचार फर्स्ट’ से बात की है। उन्हें किन हालात का सामना करना पड़ा, उन्हीं की ज़ुबानी सुनिए:

जगन्नाथ बताते हैं कि वह सर्दी जुकाम का इलाज करवाने ईसीएचएस होल्टा गए थे, मगर डॉक्टर ने ईसीडी औक एक्सरे करवाया और कहा कि दिल की गंभीर समस्या है। इसके बाद उन्हें चंडीगढ़ के एक अस्पताल में भेजा गया। वहां बताया गया कि हालत गंभीर है और एंजियोग्रफी करनी होगी। एंजियोग्रफी के दौरान बेटे को कहा गया कि 70 फीसदी हार्ट में ब्लॉकेज है और स्टेंट डालना होगा। मजबूरी में इसके लिए बेटे ने पैसे भी दे दिए। मगर बाद में किसी डॉक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह सामान्य थे और स्टेंट की जरूरत नहीं थी। यही नहीं, पहले वह ठीक थे मगर अब उन्हें दर्द रहने लगा है।

 

यह घटना दिखाती है कि कैसे कुछ लोग आम लोगों को जानकारी न होने का फायदा उठा सकते हैं। इसलिए ‘In Himachal’ की गुजारिश है कि आंख मूंदकर किसी एक डॉक्टर की सलाह पर घबराकर कदम उठाने से पहले तुरंत ही किसी अन्य डॉक्टर से भी मशविरा कर लें। इसे ‘सेकंड ऑपिनियन’ कहा जाता है और ऐसा करना ठीक रहता है।

हिमाचल के करोड़पति विधायकों को सस्ती जमीन क्यों?

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने विधायकों और पूर्व विधायकों को सस्ती दरों पर लोन के साथ घर बनाने के लिए पट्टे पर जमीन उपलब्ध करवाने का फैसला किया है। मगर चुनाव करीब आते ही लाखों की सैलरी उठाने वाले विधायकों, जिनमें से ज्यादातर पहले ही करोड़पति हैं, को सस्ती दरों पर जमीन उपलब्ध करवाने का क्या मतलब बनता है?

 

जानिए, 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे में विधायकों ने अपनी संपत्ति का क्या ब्योरा दिया था। ध्यान देने की बात यह है कि  यह जानकारी 5 साल पहले की है और अब तक संपत्ति और बढ़ गई होगी। साथ ही कुछ लोग जो 90 लाख के आसपास थे, उनकी संपत्ति भी बढ़कर करोड़ पार कर गई होगी।

 

10 करोड़ या इससे ज्यादा

  1. बृज बिहारी लाल बुटेल (पालमपुर) – कांग्रेस- 169 करोड़+
  2. बलबीर सिंह वर्मा (चौपाल) – निर्दलीय- 41 करोड़+
  3. अनिल कुमार शर्मा (मंडी)- कांग्रेस- 29 करोड़+
  4. वीरभद्र सिंह (शिमला ग्रामीण) – कांग्रेस- 34 करोड़+
  5. जीएस बाली (नगरोटा बगवां) – कांग्रेस- 24 करोड़+
  6. रवि ठाकुर (लाहौल स्पीति) – कांग्रेस- 16 करोड़+
  7. राम कुमार (दून) – कांग्रेस- 33 करोड़+

 

5 करोड़ से 10 करोड़ रुपये के बीच

1. राजीव बिंदल (नाहन) – बीजेपी – 6 करोड़+
2. सोहन लाल (सुंदरनगर) – कांग्रेस – 7 करोड़+
3. विद्या स्टोक्स (ठियोग) – कांग्रेस – 8 करोड़+
4. महेश्वर सिंह (कुल्लू) – हिलोपा- 5 करोड़+
5. अनिरुद्ध सिंह (कुसुम्पटी) – कांग्रेस- 7 करोड़+
6. राकेश कालिया (गगरेट) – कांग्रेस – 7 करोड़+
7. सुजान सिंह पठानिया (फतेहपुर) – कांग्रेस – 6 करोड़+
8. किरनेश जंग (पावंटा साहिब)- निर्दलीय – 5 करोड़+

 

1 करोड़ से 5 करोड़ रुपये के बीच

1. प्रकाश (बल्ह) – कांग्रेस – 1 करोड़+
2. ठाकुर सिंह भरमौरी – कांग्रेस- 3 करोड़+
3. बंबर ठाकुर (बिलासपुर) – कांग्रेस – 1 करोड़+
4. बालकृष्ण चौहान (चंबा) – बीजेपी- 1 करोड़+
5. आशा कुमारी (डल्हौजी) – कांग्रेस – 2 करोड़+
6. कौल सिंह (द्रंग) – कांग्रेस – 3 करोड़+
7. महेंद्र सिंह (धर्मपुर) – बीजेपी – 1 करोड़+
8. सुधीर शर्मा (धर्मशाला)- कांग्रेस- 2 करोड़+
9. प्रेम कुमार धूमल (हमीरपुर)- बीजेपी- 2 करोड़+
10. मुकेश कुमार अग्निहोत्री (हरोली) – कांग्रेस- 1 करोड़+

11. नीरज भारती (ज्वाली) – कांग्रेस- 1 करोड़+
12. रिखी राम (झंडूता) – बीजेपी –  1 करोड़+
13. रोहित ठाकुर (जुब्बल-कोटखाई) – कांग्रेस- 4 करोड़+
14. पवन कुमार काजल (कांगड़ा) – निर्दलीय – 2 करोड़+
15. कृष्ण लाल ठाकुर (नालागढ़)- बीजेपी- 1 करोड़+
16. अजय महाजन (नूरपुर)- कांग्रेस- 2 करोड़+
17. जय राम ठाकुर (सिराज)- बीजेपी- 1 करोड़+
18. सरवीन (शाहपुर)- बीजेपी – 2 करोड़+
19. धनी राम शांडिल (सोलन)- कांग्रेस- 2 करोड़+
20. सतपाल सत्ती (ऊना) – बीजेपी- 2 करोड़+
21. गुलाब सिंह (जोगिंदर नगर) – बीजेपी- 1 करोड़+
22. नरिंदर ठाकुर (सुजानपुर) – बीजेपी- 1 करोड़+

स्रोत: Myneta.infoऔर ECI

अब आप खुद तय करें कि क्या इन विधायकों को सस्ती दरों पर जमीन देने की जरूरत है?

देखें, विधायकों की सैलरी दोगुनी होने पर कितनी खुश थी बीजेपी

इन हिमाचल डेस्क।। दिन 7 अप्रैल, 2016. हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के विधायक शांत बैठे थे। यह नजारा हैरान करने वाला था, क्योंकि बीजेपी के नेता जनता के मुद्दे उठाने और ज़रूरी विधेयकों पर चर्चा करने के बजाय आए दिन सदन से वॉकआउट कर जाते थे। मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगने से उन्हें फुर्सत नहीं होती थी। मगर आज वे शरीफ बच्चों की तरह विधानसभा में बैठे थे। न तो शोर मचा रहे थे, न सीएम का इस्तीफ़ा मांग रहे थे। आज उन्हें सत्ता पक्ष महान और मुख्यमंत्री मसीहा नज़र आ रहा था।

 

एक बिल पेश हुआ और ध्वनिमत से पारित हो गया। सबके चेहरे खिले हुए थे। मगर यह प्रदेश या जनता के भविष्य को नई दिशा देने वाला बिल नहीं था। यह विधायकों की सैलरी डबल और सुविधाएं बढ़ाने वाला बिल था। आज जब हिमाचल प्रदेश की जनता जाग चुकी है और मौजूदा सरकार द्वारा विधायकों को पट्टे पर जमीन देने के फैसले का विरोध कर रही है, तो चुना नजदीक देखकर विपक्ष नेता प्रेम कुमार धूमल कह रहे हैं कि सरकार ने विधायकों की छवि खराब कर दी है इस फैसले से। मगर आप देखें, जब सरकार ने विधायकों की सैलरी डबल कर दी थी, तब उनके बोल क्या थे-

उस वक्त सरकार ने विधायकों के वेतन और भत्ते को 1.32 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.10 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया था, जबकि दैनिक भत्ता 1500 रुपये से बढ़ाकर 1800 रुपये कर दिया गया था। रेल या हवाई मार्ग से मुफ्त यात्रा की सीमा दो लाख रुपये से बढ़ाकर प्रति वर्ष ढाई लाख रुपये कर दी गई थी। वेतन और भत्तों में वृद्धि से सरकारी खजाने पर 16.45 करोड़ रुपये का वार्षिक वित्तीय बोझ पड़ा है। मगर अब देखें, चुनाव नजदीक आते देख उनके स्वर कैसे बदल गए हैं और जनता के हित नजर आ रहे हैं (वीडियो समाचार फर्स्ट से साभार)

2016 में सैलरी बढ़ाने का विरोध नहीं हुआ, मगर चुनाव करीब आते ही इन्हें सरकार का कदम गलत लगने लगा। शायद नेताओं को लगता है कि वे जनता को बेवकूफ बना लेंगे। विपक्ष में रहकर टाइमपास करने वाले नेता आज बिना कुछ किए सत्ता में आने का इंतजार लगाए बैठे हैं। इन्हें लगता है कि अब तो अपना नंबर आने ही वाला है। मगर यह मत सोचिए कि हालात बदल जाएंगे। पक्ष बदल जाएंगे, मगर सिलसिला यही रहेगा।अपनी बारी आएगी तो ये लोग सारी बातें भुलाकर एक हो जाएंगे। जनता को कौन पूछेगा?

बीजेपी भले कांग्रेस के 5 साल के शासन का हिसाब मांगने के लिए अभियान चला रही है, मगर प्रदेश की जनता न सिर्फ सरकार, बल्कि विपक्ष से भी पांच साल का हिसाब मांगेगी।

क्या खाओ और खाने दो की नीति पर चल रही है सरकार?

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यह लेख दिल्ली में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार आदर्श राठौर के ब्लॉग से लिया गया है, जिसे उन्होंने फेसबुक पर शेयर किया था.

हिमाचल प्रदेश सरकार ने खुली छूट दे दी है, अपने आसपास कहीं पर भी सरकारी जमीन देखें, उसपर तुरंत कब्जा कर लें। ज्यादा नहीं तो कम से कम 5 बीघा तो कर ही लें। अगर कोई आपत्ति करे तो कोर्ट चले जाएं और फिर दुआ करें कि फिर से कांग्रेस की सरकार आ जाए या फिर अगली जो भी सरकार है, वह भी मौजूदा सरकार की तरह अवैध कब्जों को नियमित कर दे।

 

आज हिमाचल प्रदेश के 60 लाख लोग, जो मेहनत की कमाई खाते हैं, ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। पछतावा हो रहा है कि हमने भी क्यों नहीं सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया। किया होता तो आज 5 बीघा जमीन के मालिक होते। जी हां, हिमाचल की काबिल सरकार ने 5 बीघा तक के अवैध कब्जों को नियमित कर दिया है। यानी 5 बीघा तक कब्जा करने वालों को उस कब्जाई हुई जमीन का मालिकाना हक मिल जाएगा।

 

सरकार ने साफ संदेश दिया है कि भैया, आगे भी आप सरकारी जमीन पर कब्जे कर सकते हैं। और नहीं तो क्या? अगर कोई सरकार किसी गैरकानूनी हरकत को कानूनी बना देती है तो इसका यही संदेश जाता है कि आप फिर से वैसा करो।

 

नैतिकता स्वभाव में होती है। जो एक बार बेईमान होता है वो हमेशा बेईमान रहता है। जो आज 5 बीघा जमीन कब्जाकर बैठा है और उसका वह कब्जा कानूनी हो गया, कागजों के हेरफेर से बाकी की जमीन को वह अपने परिवार के दूसरे सदस्य के नाम कर देगा और इस तरह तरह से एक ही परिवार बीसियों बीघा जमीन का मालिक हो जाएगा।

 

यही नहीं, जो लोग कानून के डर से घबराए बैठे थे कि यार कैसे गलत काम करें। उन्हें लगेगा कि यार हमें भी कब्जा कर लेना चाहिए था। और अब वो भी खुलकर प्रोत्साहित होंगे सरकारी जमीन पर कब्जा करने के लिए। लूट मचेगी। यह प्रोत्साहन किसी और ने नहीं, सरकार ने दिया है। बहानेबाजी की गई आम और गरीब जनता के मकानों के नाम पर, मगर फायदा पहुंचाया गया अपराधियों को।

क्या आप जानते हैं कि अवैध जमीन के सबसे ज्यादा मामले कहां सामने आए हैं? राज्य सरकार ने इसी साल मार्च में हाई कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दी थी। अतिक्रमण के मामलों में शिमला जिला सबसे आगे था। यहां 3280 मामले सामने आए थे। इसके बाद कुल्लू में 2392, कांगड़ा में 1757, मंडी में 1218, चंबा जिला में 644, सिरमौर में 540 और सोलन में 120 मामले ऐसे पकड़े गए हैं, जिनमें लोगों ने 10 बीघा से कम भूमि पर अतिक्रमण किया हुआ है।

यही नहीं, दस बीघा से अधिक वन भूमि पर कब्जे के 2526 एफआईआर दर्ज हुए थे। इसके अलावा 2522 मामले न्यायिक दंडाधिकारियों के समक्ष पेश कर दिए गए थे। स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक, 933 मामलों में 867 हेक्टेयर से अधिक भूमि से कब्जा हटाया जा चुका था।

रोहड़ू के डीएफओ ने ही कहा था कि अकेले रोहड़ू में 10 बीघा से कम वन भूमि पर कब्जा करने वाले 1481 मामलों में बेदखली आदेश पारित किए जा चुके हैं और 10 बीघा से अधिक 418 मामलों में से 399 का निपटारा कर लिया गया है।

यानी आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कितने बड़े स्तर पर अवैध कब्जे हुए हैं। दरअसल चार साल पहले ऊपरी शिमला के एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम पत्र लिखकर बताया था कि कई लोगों ने वन भूमि पर कब्जा कर सेब के बागीचे विकसित कर लिए हैं। हाईकोर्ट ने इस पत्र पर संज्ञान लेते हुए सरकार से एक-एक इंच भूमि पर से कब्जा हटाने के लिए कहा था।

HP High Court Orders to Remove Illegal Encroachment on forest Land at Shimla and Kullu.

क्या अब भी आपको समझ नहीं आया कि यह खेल किसके लिए हो रहा है? मुझे तो लगता है कि यह खेल सीधे तौर पर उन लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए हो रहा है जिन्होंने जंगलों को काटकर, हरे-भरे देवदार को कत्ल करके सेब के पेड़ लगा दिए हैं। पर्यावरण, प्रकृति और कानून से खिलवाड़ करने वाले लोगों को सजा देने के बजाय सरकार संरक्षण दे रही है और वह भी चुनाव से ठीक पहले। यह बात ध्यान देने लायक है कि वीरभद्र सिंह का जनाधार ऐपल बेल्ट में ज्यादा है। और इसलिए उनकी बेचैनी और सरकार के इस मर्यादाहीन कदम की वजह समझना भी मुश्किल नहीं है।

हैरानी तो यह है कि पूरी की पूरी सरकार, जिसमें न सिर्फ चुने हुए प्रतिनिधि बल्कि अफसर शामिल हैं, उन्हें भी कुछ गलत नहीं लगा। खैर, जब प्रदेश का मुखिया ही स्कूटर पर सेब ढोने के आरोपों में घिरा हो, उससे क्या उम्मीद की जा सकती है?

निजी हित में इस प्रदेश का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे ये नेता लोग। सही कहा है, एक सड़ा हुआ सेब पूरी पेटी को खराब कर सकता है। ऐसे मामलों में विपक्ष की चुप्पी भी शर्मनाक है। वोटों की राजनीति हम सभी को गर्त में ले जाएगी। अगर हम इसके खिलाफ आज आवाज नहीं उठाएंगे तो कोई फायदा नहीं। नैतिकता का झंडा उठाने से कुछ नहीं होगा, आवाज़ भी उठानी होगी।

फोटो के लिए सफाई का नाटक करने के आरोप में घिरी बीजेपी

शिमला।। प्रदेश की राजधानी शिमला में सफाई कर्मचारियों की हड़ताल के चलते हालात खराब हो चले हैं। हड़ताल को सात दिए हो गए हैं और कई इलाकों में कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। आम जनता कुछ इलाकों में खुद ही सफाई का जिम्मा संभाले हुए है। इस बीच सवाल बीजेपी के कार्यकर्ताओं पर खड़े किए जा रहे हैं कि आखिर स्वच्छ भारत का नारा देने वाले नेता और कार्यकर्ता कहां चले गए हैं। लोगों का प्रश्न है कि वैसे तो आए दिन बीजेपी के छोटे-बड़े नेता झाड़ू लिए सफाई अभियान वाली तस्वीरें खिंचवाते हैं, मगर अभी जरूरत है तो वे कहां हैं।

 

रविवार को जब प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन था, उस वक्त बीजेपी के कार्यकर्ता फिर से सक्रिय हो उठे। मेयर, डेप्युटी मेयर समेत बीजेपी के पार्षद आए और सफाई करते नजर आए। आरोप हैं कि ज्यादातर कार्यकर्ता सिर्फ फोटो खिंचवाने के लिए सफाई करते नजर आए। वह भी गिने-चुने वॉर्डों में  ही यह अभियान चलाया गया।

 

ऐसे में लोग प्रश्न कर रहे हैं कि क्या ऐसे अभियान कुछ खास दिन या सिर्फ दिखावे के लिए चलाए जाते हैं। इस बीच शहर के इलाकों में लोगों ने खुद ही सफाई अभियान शुरू कर दिया है। छावनी परिषद जतोग और नेरी पंचायत  (मशोबरा) में लोग खुद ही सफाई करते दिखे।