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Friday, September 12, 2025
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सलाम: बहू बनाकर लाए थे, बेटी बनाकर विदा किया…

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, बिलासपुर।। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के  घुमारवीं उपमंडल के अन्तर्गत पड़ने वाली ग्राम पंचायत बम्म के गाँव कलौडी के सुखदेव ने समाज की परवाह न कर हुए वह काम कर दिखाया है, जिसकी हर जगह चर्चा हो रही हैं। सुखदेव हिमाचल प्रदेश पथ परिवाहन निगम के कर्मचारी थे, जो सेवानिवृत्त हो गए हैं। साल 2011 में सुखदेव ने अपने बेटे अरुण की शादी ऊना में की, लेकिन परिवार की खुशियों को ग्रहण लग गया और दस महीने बाद ही परिवार के इकलौते बेटे की मौत हो गई।

 

बहू अनुबाला ने हिम्मत नहीं हारी।  अपने टूट चुके सास-ससुर को भी हौंसला भी दिया। पति के जाने का दुख तो अनु को भी कुछ कम न था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी। सास ससुर भी उसे एक बेटी की तरह देखने लगे। उम्र छोटी होने के कारण ससुर ने अनु की दोबारा शादी करवाने का मन बना लिया। अच्छा परिवार व लड़का तलाश करने लगे और पहली अक्तूबर को बहू बना कर लाई गई अनु को बेटी बनाकर विदा कर दिया।

Image: MBM News Network

बेटे की मौत के बाद माता पिता के लिए बहू ही बेटा व बेटी दोनों थी। अब घर में सुखदेव व पत्नी लेची देवी ही हैं। अनुबाला की शादी ऊना में ही की गई है और लडका एयरफोर्स में कार्यरत है। सुखदेव व उनकी पत्नी लैची देवी ने अपनी बेटी की शादी होटल से सारी रस्में निभा कर बड़ी धूमधाम से की है। साथ ही समाज में पल रही रूढ़ीवादी परम्परा को खत्म करने में इस परिवार ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जो एक मिसाल बन गई है।

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आज भी हमारे समाज में लोगों विधवा लड़कियों के पुनर्विवाह को अच्छा नहीं समझा जाता है। किसी न किसी को तो पहल करनी ही पड़ेगी। सुखदेव और उनकी पत्नी लेची देवी जैसे लोग हमारे समाज के लिए आदर्श हैं।

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)

चुनाव से ठीक पहले किसके लिए ऐसे फैसले ले रही सरकार?

शिमला।। चुनाव को कुछ ही वक्त बचा है और हिमाचल प्रदेश सरकार धड़ाधड़ ऐसे फैसले ले रही है, जिनपर सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि सरकार को ऐसे नीतिगत फैसले लेने की तभी क्यों सूझ रही है, जब उसका कार्यकाल खत्म होने को कुछ ही दिन बाकी हैं। नौकरी वगैरह के मामलों में तो चलो सरकार जनहित का हवाला दे सकती है, मगर कुछ फैसले ऐसे भी हैं, जिनका लाभ किसी और को नहीं, बल्कि सत्ताधारियों और उनमें भी किसी ख़ास शख्सियत को ज्यादा पहुंच रहा है। यह कोई हवा-हवाई बात नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश में सुर्खियों पर नजर डालें तो यही बात साफ होती है।

 

राजघरानों को फायदा देने वाली पॉलिसी
हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक नई पॉलिसी मंजूर की है। इसके तहत रियासत काल की धरोहरों, जिनमें भवन, किले, महल, लॉज और हवेलियां शामिल हैं, को संजोया जाएगा। रियासत या ब्रिटिश काल से जुड़ी इन इमारतों आदि का रखरखाव करके इन्हें पर्यटन के लिए विकसित किया जाएगा। इन इमारतों के रखरखाव के लिए प्रदेश सरकार भवन या महल के मालिक को 50 फीसदी रकम देगी, ताकि वह विरासत को संजोकर रख सके। इस पॉलिसी को हिमाचल हेरिटेज टूरिज़म पॉलिसी का नाम दिया गया है।

 

वीरभद्र सिंह को भी होगा लाभ
इस पॉलिसी का सीधा फायदा राजघरानों को मिलेगा, यानी उन लोगों को, जिनके पूर्वज रियासतों के शासक थे। ध्यान देने की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में जो भी रियासतें थीं, उनके शासकों के ज्यादातर वशंज आज हिमाचल की राजनीति में हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद पूर्व राजपरिवार से संबंध रखते हैं। उनके अलावा आशा कुमारी, अनिरुद्ध सिंह, महेश्वर सिंह और रवि ठाकुर शामिल हैं।

 

राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि इस नीति का असल मकसद ब्रिटिश दौर की इमारतों के संरक्षण के बजाय अपने लिए आय का स्रोत पैदा करना है। दरअसल राजस्थान में ऐसी पॉलिसी पहले से ही है, मगर चुनाव से ठीक पहले सरकार, जिसके मुखिया खुद राजघराने से ताल्लुक रखते हैं, द्वारा ऐसी पॉलिसी लाया जाना कहीं न कहीं सवाल तो ज़रूर खड़े करता है कि इसका असल मकसद क्या है। पिछली कैबिनेट में सरकार के ही एक मंत्री ने इस पॉलिसी पर सवाल खड़े किए थे।

 

पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाएं बढ़ाने की कोशिश
इस नई पॉलिसी पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि इससे पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कैबिनेट में एक प्रस्ताव आया था, जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाएं बढ़ाई जानी थीं। कुछ दिन पहले ही इसे कैबिनेट में पेश किया गया था। इसके तहत पूर्व सीएम के निवास स्थान पर ड्राइवर के साथ एक गाड़ी रहने और साथ ही फॉलोअप के लिए एक SUV भी रखने जाने का प्रावधान था। कार के साथ ड्राइवर, टूर पर जाने के लिए विभागीय वाहन और निवास स्थान पर डॉक्टर इस लिस्ट में टॉप पर था। अजेंडा आइटमों में हर साल 1 लाख रुपये का प्रशासनिक खर्च भत्ता, पसंद के 2 निजी सुरक्षा अधिकारी, लैंडलाइन और मोबाइल के 50000 रुपये और घर के प्रवेश द्वारा पर हथियारबंद पुलिस गार्ड शामिल थे। (यहां क्लिक करके विस्तार से पढ़ें)

 

बचने के लिए छुट्टी पर जा रहे अधिकारी
हिमाचल प्रदेश के अखबारों और विभिन्न चैनलों पर यह खबर आ चुकी है कि हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी छुट्टियों पर चले गए हैं या फिर अहम मौकों से पहले छुट्टी पर चले जाते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि चुनाव से ठीक पहले सरकार द्वारा लिए जा रहे मनमाने फैसलों में वे शामिल न हों। दरअसल फैसले बेशक सरकार लेती है, मगर उन्हें तैयार करने की जिम्मेदारी अधिकारियों की होती है और उसके लिए वे भी जवाबदेह होते हैं। ऐसे में असहज स्थिति से बचने के लिए उन्हें कथित तौर पर ऐसा रास्ता अपनाना पड़ रहा है।

 

हेरिटेज टूरिज़म से पहले टी टूरिज़म
मौजूदा सरकार का यह इकलौता फैसला नहीं है जो विवाद में है। पिछले कैबिनेट में कांगड़ा के चुनिंदा चाय बागान मालिकों को सशर्त लैंड यूज़ बदलने की इजाजत मिली। ध्यान दें, सभी को नहीं। लैंड रिफॉर्म्स के दौर में जब हिमाचल प्रदेश में सभी जमीन मालिकों को एक तय सीमा तक ही जमीन रखने की परमिशन मिल रही थी और उससे ज्यादा जमीन सरकार के पास चली जा रही थी, उस दौर में चाय और सेब बागानों के मालिकों राहत दी गई थी। वे तय सीमा से ज्यादा बागान अपने पास रख सकते थे, इस शर्त पर कि वे उनका रखरखाव करेंगे।

 

अब चाय बागान और सेब बागानों के मालिकों के पास बहुत ज्यादा जमीन बच गई। मगर अब सरकार उन्हें छूट दे रही है कि वे उसे बेच दें। नियमों में ढील देकर। जबकि नियम कहता है कि वे इसे बेच नहीं सकती। इसके लिए सरकार ने टी टूरिज़म नाम की टर्म गढ़ी है। यह छूट उन लोगों के साथ ठगी है, जिनकी जमीन सरकार ने कई साल पहले लैंड रिफॉर्म के नाम पर कब्जा ली थी। जो चाय बागान के नाम पर बच गए, आज उन्हें फायदा पहुंचाया जा रहा है। (विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

गुड़िया केस: सीबीआई की जांच में आई गति, कई जगह पूछताछ

शिमला।। कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस के संदिग्ध आरोपी सूरज की हिरासत में मौत को लेकर हिमाचल पुलिस के अधिकारियों को जेल में डाल चुकी सीबीआई संभवत: मामले का खुलासा करने के करीब पहुंच गई है। दरअसल सीबीआई की जांच टीम घटनास्थल के आसपास लगातार बनी हुई है और कई बार विभिन्न जगहों का मुआयना कर चुकी है। टीम ने लगातार जिस तरह से पूछताछ में तेजी लाई है, माना जा रहा है कि वह किन्ही कड़ियों को जोड़ने की कोशिश कर रही है।

 

सीबीआई ने गुरुवार को महासू बीट के फॉरेस्ट गार्डों से भी बात की। यह पता किया गया कि जून-जुलाई महीनों में जंगल में लकड़ी काटने के लिए कितने कश्मीरी आए थे। सीबीआई ने वन निगम के दफ्तर में जाकर कागज़ात की भी जांच की।जहां से विक्टिम का शव मिला था, वहां दोनों गार्डों को ले जाया गया और फिर वन निगम के डिपो चले गए। डिपो में उन लोगों के रिकॉर्ड देखे गए, जिन्हें निगम ने टीडी दी थी।

 

इसके अलावा कोटखाई-हलाइला के बीच चलने वाली बस के ड्राइवर से भी पूछताछ की गई कि घटना वाले दिन कोई जंगल से बस में चढ़ा तो नहीं था। सीबीआई के अफसरों ने नेपाली मूल के मजदूरों के डेरे में जाकर भी पूछताछ की।

6 दिन बाद भी पता नहीं चला, कहां गया वनकर्मी मोहन

मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के कमरूनाग जंगल में लापता हुए वनकर्मी मोहन का अब तक कोई पता नहीं चल पाया है। सात दिन हो चुके हैं मगर अब तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है कि आखिर मोहन है कहां।

 

गुरुवार को पुलिस ने डॉग स्क्वॉयड की मदद भी ली। नालों, चट्टानों, पेड़ों, खाइयों… सब जगह मोहन की तलाश होती रही। यह राज़ बन गया है कि आखिर मोहन लाल कहां चला गया। परिजनों ने मामले को मंडी के डीसी के सामने उठाया है।

 

पुलिस का कहना है कि वह तीन दिनों कमरूनाग जंगल में सघन तलाशी अभियान चला चुकी है, मगर कोई सुराग नहीं मिल रहा।

होशियार केस: 21 दिन बाद भी CBI ने केस दर्ज नहीं किया

मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के करसोग में केरी कतांडा बीट के फॉरेस्ट गार्ड की संदिग्ध हालात में मौत के मामले में सीबीआई अब तक हरकत में नहीं आई है। हाई कोर्ट ने 13 सितंबर को मामला हिमाचल पुलिस से लेकर सीबीआई को जांच के लिए ट्रांसफर किया था, मगर अब तक केस दर्ज नहीं हुआ है। सीबीआई ने स्टेट सीआईडी से अब तक रिकॉर्ड कब्जे में नहीं लिया है।

 

लापता हुए होशियार सिंह का शव रहस्यम हालात में पेड़ पर उल्टा टंगा मिला था। पुलिस ने पहले हत्या का मामला दर्ज किया मगर फिर आत्महत्या में बदल दिया। लोगों ने प्रदर्शन किए और सीबीआई जांच की मांग की मगर हिमाचल प्रदेश सरकार ने पुलिस से ही जांच करवाने का फैसला किया। आखिर में हाई कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और उसे पुलिस की कार्रवाई संतोषजनक नहीं लगी, तब जाकर मामला सीबीआई को ट्रांसफर किया गया।

होशियार सिंह का शव पेड़ पर उल्टा टंगा मिला था.

मगर सीबीआई की ढील इसलिए भी सवालों के घेरे में है क्योंकि शिमला के गुड़िया केस की जांच कर रही सीबीआई टीम का कहना है कि पुलिस जांच में सहयोग नहीं कर रही। उसे सबूत भी ढंग से नहीं मिले। और तो और, हिमाचल पुलिस के ही अधिकारी जेल में बंद हैं, क्योंकि सीबीआई की नजर में वे एक संदिग्ध आरोपी की हिरासत में मौत के लिए जिम्मेदार हैं।

 

ऐसे में जब पुलिस की छवि भरोसे की नहीं है, उसे लेकर पहले से ही आशंका जताई जा रही है, वैसे में इस केस में सीबीआई को सबूत नष्ट होने की चिंता क्यों नहीं सता रही? ऐसे में बाद में कहीं यह केस गुड़िया केस की तरह न लटक जाए।

मिलिए, पेंसिल से शानदार स्केच तैयार करने वाली प्रतिष्ठा से

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, नाहन।। हिमाचल प्रदेश के नाहन की प्रतिष्ठा कुंवर जब पांच साल की थीं, तब उन्होंने पहला स्केच बनाया था। मगर उसके बाद स्केचिंग को उन्होंने अपना पैशन बना लिया। 14 साल की प्रतिष्ठा आज सिर्फ पेंसिल इस्तेमाल करके ऐसे कृतियां तैयार करती हैं कि देखने वाले हैरान रह जाएं।

 

प्रतिष्ठा के पिता कुंवर निर्भय सिंह और दादा कुंवर सत्यदेव सिंह भी इस कला में महारत रखते हैं। कहा जा सकता है कि यह हुनर उन्हें विरासत में मिला है, लेकिन प्रतिष्ठा ने तो सबको पीछे छोड़ने की ठानी हुई है।

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पिता पंचकूला में सैटल हैं, लिहाजा वहीं दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर रही है। प्रतिष्ठा कुंवर ने बताया कि उन्होंने दो बार स्केच प्रदर्शित भी किए हैं।

प्रतिष्ठा के बनाए स्केच
प्रतिष्ठा के बनाए स्केच (Courtesy: MBM News Network)

उन्होंने कहा कि स्कैच बनाना पूरी तरह से मूड पर निर्भर करता है। ऐसा नहीं है कि रोज स्केचिंग करती हैं। प्रतिष्ठा बताती हैं कि उन्हें पूरे परिवार से सहयोग मिलता है।

 

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)

आपने सुना या शेयर किया गलत पहाड़े पढ़ते बच्चे का वीडियो?

इन हिमाचल डेस्क।। इन दिनों वॉट्सऐप पर हिमाचल प्रदेश के एक बच्चे का वीडियो शेयर किया जा रहा है, जिसमें वह गलत पहाड़े (TABLE) पढ़ रहा है। उसे न तो 2 का टेबल आता है और न ही 10 का। हिमाचल के ही किसी शख्स ने इस वीडियो को बनाया है, जिसमे बच्चा बोल रहा है कि वह 10वीं तक पढ़ा है। व्यंग्य करते हुए आखिर में वीडियो वाला कहता है कि आपको तो टेस्ट के लिए अप्लाई करना चाहिए था, सरकारी नौकरी लग जाती।

 

हो सकता है कि आपके पास भी यह वीडियो आया हो और आप हंसे भी हों और इसे आगे बढ़ा दिया हो। मगर यह वीडियो हंसने और मज़ाक उड़ाने के लिए आगे बढ़ा देने की चीज़ नहीं है। यह वीडियो सोचने के लिए मजबूर करने वाला है। इस वीडियो में बच्चे की स्थिति जहां हमारी शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाती है, इसे शेयर करके सिर्फ मजे लेना हमारे समाज की संवेदनहीनता को भी दिखाती है।

 

वीडियो में बच्चा खुद को मंडी के एक सरकारी स्कूल से दसवीं तक पढ़ा हुआ बताता है। हमने बच्चे का चेहरा और उसके स्कूल का नाम छिपा दिया है ताकि उसकी पहचान जाहिर न हो। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि बच्चे की इसमें कोई गलती नहीं है और इस तरह से सोशल मीडिया पर शर्मिंदा करना उसे डिप्रेशन में डाल सकता है। साथ ही एक बच्चे की वजह से स्कूल पर ही सवाल उठा देना ठीक नहीं। पहले आप वीडियो देखें:

बच्चा अगर बुनियादी सी चीज़ नहीं जानता कि 6×10=60 होते हैं न कि 40 तो यह चिंता की बात है। अगर वह 10वीं तक पहुंच गया इस बात को जानते हुए भी तो यह पूरे एजुकेशन सिस्टम पर ही सवाल खड़े कर देता है। और चिंता वाजिब है कि अध्यापक कैसे रहे होंगे कि जो इस बच्चे पर ध्यान नहीं दे सके। मगर पहली बात तो यह कि इस वीडियो को किसने कहां पर बनाया है और बच्चा क्या करता है, इसके बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। वैसे भी बच्चों को शुरू में पहाड़े रटाए जाते हैं तो उसके बजाय समझाया जाना चाहिए कि पहाड़े होते क्या है। अगर बच्चे को पता होता कि 10 का पहाड़ा यानी 10 x 6 है तो वह 60 ही कहता, न कि 40. वह उटपटांग इसलिए बोल रहा है क्योंकि उसने चीजें रटी हैं और रटने में चीजें आगे पीछे हो जाती हैं।

 

दूसरी बात यह है कि बच्चा तो बच्चा है, उसका क्या कसूर। सभी के समझने का स्तर अपना होता है। कोई जल्दी समझता है तो देर से। सभी का मानसिक स्तर एक सा नहीं होता। हमारे यहां पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर पहले ही बहुत अज्ञानता है। हो सकता है बच्चा डिफ्रेंटली एबल्ड हो, उसकी समझ का विकास न हो पाया हो। ऐसे में बिना उसकी बैकग्राउंड जाने उसकी खिल्ली उड़ाना सही नहीं है।

 

बच्चा भोला भी है क्योंकि उसे नहीं पता कि वह सही बोल रहा या गलत, बस वह बोलता जा रहा है। जब उसपर व्यंग्य किया जाता है कि तुम्हें तो सरकारी नौकरी में होना चाहिए तो उसे वह समझ नहीं पाता और यस सर बोलता है मुस्कुराते हुए। इसलिए ‘In Himachal’ की गुजारिश है कि जब कहीं कुछ ऐसा देखें तो सिर्फ वीडियो बनाने के लिए वीडियो न डालें। क्योंकि इससे हो सकता है कि आपकी मंशा अच्छी हो, मगर लोगों का नुकसान हो सकता है।

 

सोचिए, क्या हो जब इस बच्चे को पता चले कि उसकी खिल्ली उड़ाई जा रही है। बेचारा परेशान होकर तनाव में आ जाएगा। ऐसी कई घटनाएं घट चुकी हैं जब सोशल मीडिया पर शेमिंग के चलते बच्चों ने ग़लत कदम तक उठा लिए हैं। इसलिए थोड़ी जिम्मेदारी बरतें। बच्चों के मामले में ही नहीं, बड़ों के मामले में भी।

बिलासपुर से भी गायब हुई प्रधानमंत्री मोदी वाली कुर्सी

बिलासपुर।। यह सवाल चर्चा का विषय बना हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा खत्म होने के बाद वह कुर्सी कहां चली जाती है, जिसपर पर मंच पर बैठे होते हैं। बिलासपुर की आभार रैली के बाद बिलासपुर की आभार रैली के बाद मंच से कुर्सी गायब हो गई।

 

माना जा रहा है कि उनका समर्थक इसे रैली की याद के तौर पर उठा ले गया। दरअसल प्रधानमंत्री जैसे ही मंच से उतरे, वहां से कड़ी सुरक्षा हट गई। वहां मौजूद लोगों का ध्यान इस पर रहा कि कैसे लोगों को पंडाल से निकाला जाए। माना जा रहा है कि इसी बीच किसी ने वह कुर्सी उठा ली।

इससे पहले शिमला में जब परिवर्तन रैली हुई थी, वहां से भी कुर्सी गायब हो गई थी। अब कुर्सी तो कुर्सी है, इसके गायब होने पर चिंता क्यों? मगर शिमला में कुर्सी गायब हुई थी तो शिकायत मिलने पर पुलिस ने मामले की जांच शुरू की थी और खबरों के मुताबिक उस वक्त डीएसपी सिटी को मामले की जांच का दायित्व सौंपा गया था। अब तक कुर्सी का पता नहीं चल पाया है।

होशियार सिंह के बाद मंडी में एक और वनरक्षक लापता

मंडी।। कुछ महीने पहले करसोग के जंगल में मृत पाए गए वनरक्षक होशियार सिंह का मामला सुलझा भी नहीं है कि एक और गार्ड के रहस्यमय ढंग से गायब होने का मामला सामने आया है। मंडी के बड़ा देव कमरूनाग में जातर में शामिल होने गए बल्ह के टोला गांव के रहने वाले वनरक्षक मोहन लाल 29 सितंबर से लापता हैं। इससे पूरे इलाके में चर्चा और आशंकाओं का माहौल बना हुआ है।

 

सोमवार को पुलिस के साथ एसडीआरएफ, वन विभाग, प्रशानिक अधिकारी और देवता कमेटी समेत कई लोगों ने कमरूघाटी में मोहन लाल को ढूंढने की कोशिश की, मगर कामयाबी नहीं मिली। बताया जा रहा है कि मोहन लाल के मोबाइल की आखिरी लोकेशन घीडी टावर से मिली थी। इसके बाद से उनका फोन स्विच ऑफ है। लोकेशन के आधार पर उनका पता लगाने की कोशिश की जा रही है। यह भी पता लगाया जा रहा है कि आखिरी बार उनकी बात किससे हुई।

 

परिजनों का परेशान होना इसलिए भी लाजिमी है, क्योंकि वनरक्षक होशियार पहले अचानक लापता हो गया था और उसके कुछ दिनों बाद उसका शव पेड़ से उल्टा लटका मिला था। पहले हत्या और फिर आत्महत्या का केस दर्द करने को लेकर पुलिस की आलोचना हुई थी। प्रदेश सरकार ने कई जांच टीमें बदली थीं, जिससे लोगों मे गुस्सा था। सरकार इस मामले में सीबीआई जांच करवाने को तैयार नहीं थी, मगर हाई कोर्ट ने इसका आदेश दिया है। अभी तक होशियार सिंह की मौत एक पहेली बनी हुई है।

जब एक मैदान के लिए सेना से ‘जंग’ लड़ रहे थे अनुराग ठाकुर और प्रेम कुमार धूमल

इन हिमाचल डेस्क।। भले ही सेना शिमला के अनाडेल मैदान को अभी सक्रिय रूप से ट्रेनिंग, खेल व अन्य गतिविधियों के लिए ही करती है, मगर जानकार बताते हैं कि किसी आपात स्थिति में (युद्ध या फिर भयंकर प्राकृतिक आपदा) में सेना को यहां बेस कैंप बनाकर गतिविधियां संचालित करने में सुविधा होगी। मगर 2012 में तो तत्कालीन सरकार के मुखिया प्रेम कुमार धूमल कहते थे कि सेना को दी गई लीज़ खत्म हो चुकी है, ऐसे में सेना इसपर अवैध कब्जा करके बैठी हुई है। वह मांग कर रहे थे कि सेना तुरंत इस कब्जे को छोड़े और मैदान को प्रदेश सरकार के हवाले करे। उसी समय मुख्यमंत्री के बेटे अनुराग ठाकुर चाहते थे कि यहां पर क्रिकेट का मैदान बनाया जाए। अनुराग और उनके पिता मिलकर बयानबाजी कर रहे थे और यह मामला अखबारों की सुर्खियों में बना रहा था।

स्टेडियम बनाने की चाहत
जब प्रेम कुमार धूमल 1998 से 2003 तक मुख्यमंत्री रहे थे, उसी दौरान अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन के प्रेजिडेंट चुने गए थे और उसी दौरान उनके पहले प्रॉजेक्ट ‘धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम’ का निर्माण शुरू हुआ था। विजिलेंस ने अपनी चार्जशीट में धूमल पर अपने बेटे की खेल संस्था को फायदा पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री रहते हुए कई तरह की अनियमितताओं का आरोप लगाया था। इसके बारे में आप विस्तार से यहां क्लिक करके पढ़  सकते हैं

2003 के बाद फिर से कांग्रेस की सरकार आई और फिर उसके पांच साल बाद फिर से बीजेपी को मौका मिला और प्रेम कुमार धूमल फिर मुख्यमंत्री बने। मिशन धर्मशाला सक्सेसफुल हो चुका था। अनुराग ठाकुर धर्मशाला में स्टेडियम बना चुके थे और उसकी चारों तरफ चर्चा हो रही थी। उन दिनों युवा वर्ग भी काफी अभिभूत नजर आ रहा था और अनुराग उनकी नजरों में स्टार थे। संभवत: अनुराग शिमला में भी स्टेडियम बनाकर इसे अपनी उपलब्धियों में शुमार करना चाहते थे। क्योंकि अनाडेल मैदान बहुत खूसबूरत है और दूर से नजर आता है।

तो जब धूमल मुख्यमंत्री बने ही थे, उन्होंने इस मैदान को सेना से प्रदेश सरकार के लिए कोशिश शुरू कर दी थी। उनका मई 2008 का एक बयान अभी तक मीडिया में है, जिसमें उन्होंने अनाडेल ग्राउंड का जिक्र करते हुए कहा था कि सरकार अनाडेल ग्राउंड को वापस लेने के लिए रक्षा मंत्रालय से मुद्दा उठाएगी, क्योंकि रक्षा मंत्रालय को पट्टे पर यह जमीन दी थी जिसकी अवधि 28 साल पहले खत्म हो चुकी है।

जब सेना के खिलाफ किया गया था प्रदर्शन
2008 से कोशिशें जारी रही, सेना अपना पक्ष रखती रही कि हमारे लिए यह मैदान महत्वपूर्ण है, सामरिक दृष्टि से भी। मगर प्रदेश सरकार, इसके मुखिया प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे तत्कालीन सांसद और एचपीसीए के प्रमुख अनुराग ठाकुर ने कोशिशें जारी रखीं। जब केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय से कोई सहयोग नहीं मिला तो सेना के खिलाफ बयानबाजी से बढ़कर सेना के खिलाफ प्रदर्शन किए गए और सेना पर हथकंडे अपनाने का आरोप लगाया गया।

कई खेल संगठनों के बैनर तले शिमला में रैलियां निकाली गईं और अनाडेल में प्रदर्शन तक किया गया- जिनके आगे लिखा गया था- फ्री अनाडेल। यह नारा कश्मीर में होने वाले उन प्रदर्शनों जैसा था, जिनमें भारत को कब्जाधारी बताते हुए सेना के ठिकानों के बाहर प्रदर्शन करते वक्त बैनरों में लिखा होता है- फ्री कश्मीर।

फ़्री अनाडेल के प्लैकार्ड के साथ सेना से ग्राउंड छुड़ाने के ‘अभियान’ की एक तस्वीर (Daily Mail)

‘अनुराग का नारा, अनाडेल हमारा’
यह नारा ऐसा लगता है मानो किसी और देश की ताकत ने हमारे संसाधन पर कब्जा कर लिया हो। घटना 7 अप्रैल, 2012 की है। ‘अनाडेल वापस करो’ रैली का आयोजन किया गया था। यह रैली डेढ़ बजे रिज मैदान से लेकर मुख्यमंत्री आवास ओकओवर तक निकाली गई। अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता में एक लाख से अधिक हस्ताक्षरित बैनरों को मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को सौंपा गया। बच्चों ने अनाडेल वापस दो और फ्री अनाडेल जैसे बैनर भी पकड़ हुए थे। वे नारे लगा रहे थे कि उन्हें अनाडेल मैदान वापस चाहिए। एचपीसीए ने बच्चों को इस दौरान टी शर्ट भी दी थी, जिस पर लिखा था कि अनाडेल हमारा है।

अनुराग ने इस मौके पर कहा था– ‘अनाडेल मैदान पर पिछले 50 वर्षों में सेना की कोई भी महत्वपूर्ण गतिविधि नहीं हुई है। इसका प्रयोग केवल अधिकारी गोल्फ खेलने के लिए करते हैं, जिस पर शिमला की जनता और खेल प्रेमियों को आपत्ति है। इशसे बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। अनाडेल मैदान पर स्पोर्टिंग हब बनने से यहां पर पर्यटन को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी, जैसे धर्मशाला मे मिली। किसी भी आपातकालीन स्थिति के दौरान हम सेना के साथ होंगे और जरूरत पड़ने पर बॉर्डर की तरफ कूच करने के लिए भी तैयार हैं।’

Image: The Hindu

यह था सेना का पक्ष
बेटे अनुराग द्वारा स्टेडियम के निर्माण के मकसद को लेकर निकाली गई इस रैली के कुछ दिन बाद सेना और धूमल के बीच आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुए। सेना के प्रवक्ता ने चंडीगढ़ में जारी बयान में मुख्यमंत्री पर वन माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगाया और कहा कि मैदान सुरक्षा की दृष्टि से सेना के पास रहना चाहिए क्योंकि क्रिकेट के बजाय देश की सुरक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण है। हालांकि सेना ने बाद में इस विवादास्पद बयान से किनारा कर लिया था कि  पर्यावरण के बिगड़ने और भू-माफिया के साथ हिमाचल सरकार की साठगांठ होने के आधार पर अनाडेल को क्रिकेट स्टेडियम के लिए नहीं दिया जा रहा। सेना की तरफ से कहा गया कि हिमाचल सरकार के साथ उसके अच्छे संबंध हैं और इस तरह का कोई बयान सेना की ओर से अधिकारिक तौर पर नहीं दिया गया। सेना की तरफ से जारी प्रेस रिलीज पर खूब विवाद हुआ था।

धूमल का सेना पलटवार
इस बयान पर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पलटवार किया और इस बयान के लिए बिना शर्त माफ़ी मांगने को कहा और ऐसा न होने पर मानहानि का दावा करने की बात कही। उन्होने कहा, ‘अनाडेल हिमाचल सरकार की पूंजी है और यह मैदान सेना के अवैध कब्जे में है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीस के साथ सेना के पदाधिकारियों की मौजूदगी में विस्तृत चर्चा हुई थी। निर्णय हुआ था कि सेना को वैकल्पिक भूमि उपलब्ध करवाई जाएगी।’

धूमल ने यह भी कहा था, ‘प्रदेश न्यायालय ने प्रदेश सरकार को यह निर्देश दिए हैं कि शहर के युवाओं में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए उचित स्थान की तलाश की जाए। इसके लिए शिमला के नागरिकों ने फोरम गठित किया है, जिसमें 14 खेल संघ भी शामिल हैं। फोरम ने विस्तृत हस्ताक्षर अभियान चलाया, जिसमें 1.08 लाख लोगों ने हस्ताक्षर किए। इस हस्ताक्षरित ज्ञापन मुख्यमंत्री को प्रस्तुत किया गया। मुख्यमंत्री के व्यक्तिगत पत्र सहित ज्ञापन की प्रतियां प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री को प्रेषित की जा रही हैं, ताकि समुचित कार्रवाई कर मैदान को सेना के कब्जे से मुक्त करवाया जाए।’

वरिष्ठ नेता थे खामोश
ध्यान देने वाली बात यह है कि जिस वक्त अनाडेल मैदान को लेकर यह सब खींचतान चल रही थी, शिमला के विधाय सुरेश भारद्वाज सक्रिय रूप से धूमल और उनके पुत्र अनुराग के साथ थे। उन्होंने इसे शिमला नगर-निगम चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाने का भी ऐलान किया था। वीरेंद्र कश्यप ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और सेना को नसीहत दी थी। मगर उनके अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता सक्रिय रूप से अपनी ही सरकार के स्टैंड पर साथ नहीं थे। शांता कुमार ने अपनी पार्टी के नेताओं को संयमित होकर बयान देने के लिए कहा था।

उनका कहना था कि राष्ट्रीय सुरक्षा क्रिकेट स्टेडियम से बड़ा विषय है। वहीं नड्डा का कहना था, “राज्य सरकार ने इस मैदान पर किसी खेल गतिविधि अथवा क्रिकेट स्टेडियम के लिए किसी अभियान का कभी भी समर्थन नहीं किया है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया था कि मैदान को सेना से हासिल करने के लिए राज्य सरकार कोई समझौता नहीं करेगी। उन्होंने हस्ताक्षर अभियान का पार्टी से कोई संबंध न होने की भी बात कही थी।

सरकार बदली, रुख बदला
जब 2012 में हुए चुनाव में बीजेपी सत्ता से बाहर हुई और कांग्रेस की सरकार बनी, उसने कहा कि अनाडेल मैदान सेना के पास ही रहेगा। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कई मौकों पर दोहराया कि रणनीतिक दृष्टि, आपदा राहत और प्रबंधन के अभ्यास के लिए अनाडेल मैदान उचित है, ऐसे में इसे सेना के अधीन ही रखा जाना चाहिए। जिस दौरान धूमल सरकार इसे सेना से लेने की कोशिश कर रही थी, उस दौरान भी वह विपक्ष में रहते हुए सरकार के रुख की आलोचना कर रहे थे।

पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धमल (File Picture)

आज जब केंद्र में बीजेपी की सरकार है, अगर इस मैदान को लेने में हिमाचल का हित है तो धूमल और अनुराग अपनी ही सरकार के सामने कम से कम इस मैदान को वापस लेने के लिए बात कर सकते हैं। मगर आज यह मुद्दा कहीं नहीं है। एक वक्त सेना को कब्जाधारी बताकर उसके खिलाफ नारेबाजी करने वाले अनुराग ठाकुर आज खुद सेना में लेफ्टिनेंट हो चुके हैं। शायद उन्हें यह भी समझ आ गया है कि स्टेडियम बनाने का इंप्रेशन ज्यादा दिनों तक नहीं चलता।

क्या है अनाडेल मैदान का मसला?
अनाडेल ग्राउंड की 121 बीघा ज़मीन मूल रूप से हिमाचल प्रदेश सरकार की है और उसके आसपास करीब 12 बीघा जमीन पर नगर निगम का मालिकाना हक है। 121 बीघा ज़मीन ब्रिटिश शासन के दौरान सेना को दरअसल ट्रेनिंग आदि के लिए दूसरे विश्व युद्ध के दौरान  (1941 में)मिली थी, जिसकी लीज़ करीब 35 साल पहले (1982 में) खत्म हो चुकी है। वहीं निगम की ज़मीन सेना ने 1955 में 20 साल के लिए लीज़ पर ली थी। 1975 में लीज़ खत्म हुई, मगर इसे रिन्यू नहीं करवाया गया। निगम को अभी भी सेना से करीब 819 रुपये लीज मनी मिलते हैं। निगम का कहना है कि 1988 में सेना ने 1975 के बाद से बनी लीज मनी दे दी थी मगर नियमों के मुताबिक आज तक लीज़ रिन्यू नहीं करवाई।

मैदान को लेकर क्या-क्या है विवाद
दरअसल कई सरकारों ने बहुत पहले से सेना से इस मैदान को लेने की कोशिश की थी। मसला तब भी उठा था जब नब्बे के दशक की शुरुआत में सेना ने प्रदेश सरकार के हेलिकॉप्टर के यहां उतरने पर आपत्ति जताई थी। धूमल ने पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर भी जॉर्ज फर्नांडिज़ (तत्कालीन रक्षा मंत्री) से यह मसला उठाया था मगर नतीजा कुछ नहीं निकला था। मगर 2008 मे जब वह मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने पुत्र के साथ मिलकर जो अभियान चलाया, वह कुछ अलग ही था। केंद्र में यूपीए सरकार थी और उनके बेटे अनुराग यहां क्रिकेट स्टेडियम बनाना चाहते थे। प्रदेश के मुख्यमंत्री का बेटे के लिए इस तरह से व्यक्तिगत रूप से देश की सेना के खिलाफ उतर जाना उस वक्त के प्रबुद्ध लोगों को रास नहीं आया था।

स्टेडियम बन जाता तो क्या होता?
सेना की अपनी जरूरत हो सकती है और इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि शिमला और हिमाचल प्रदेश को भी उस मैदान की जरूरत है। शिमला शहर में इतनी खुली जगह कहीं नहीं है, जहां पर बड़े खेलों का आयोजन हो सके। ऐसे में बातचीत से बीच का रास्ता निकालना कठिन नहीं है। जब सेना को जरूरत हो, इसे सेना इस्तेमाल करे और जब प्रदेश सरकार या यहां की खेल संस्थाओं को जरूरत हो, तब खेल संस्थाएं इस्तेमाल करें। मगर इस तरह का समाधान केंद्र और राज्य सरकार के बीच संवाद से ही हो सकता है। संविधान के प्रति निष्ठा लेने की शपथ लेने वाली सरकारें और उनके प्रतिनिधि इस तरह से सेना आदि के खिलाफ नारेबाजी करें, यह ठीक नहीं लगता।

सेना पर आरोप लगाए जा रहे थे कि इस मैदान को सेना कभी-कभार ही इस्तेमाल करती है। मगर शिमला के इस मैदान में क्रिकेट स्टेडियम बन जाता तो क्या हो गया होता? धर्मशाला में स्टेडियम बन गया तो यहां आज तक कितने मैच हो गए? 2003 में यह स्टेडियम खुला था और आज कई साल हो चुके हैं। इतने समय में सभी फॉरमैट्स के अंतरराष्ट्रीय मैचों को मिला दिया जाए प्रति वर्ष बमुश्किल एक मैच की औसत निकलती है। अगर अनाडेल में भी क्रिकेट ग्राउंड होता तो इसके दोगुने मैच तो हो नहीं जाते। फिर बाक़ी दिन यहाँ क्या होता?