चुनाव से ठीक पहले किसके लिए ऐसे फैसले ले रही सरकार?

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शिमला।। चुनाव को कुछ ही वक्त बचा है और हिमाचल प्रदेश सरकार धड़ाधड़ ऐसे फैसले ले रही है, जिनपर सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि सरकार को ऐसे नीतिगत फैसले लेने की तभी क्यों सूझ रही है, जब उसका कार्यकाल खत्म होने को कुछ ही दिन बाकी हैं। नौकरी वगैरह के मामलों में तो चलो सरकार जनहित का हवाला दे सकती है, मगर कुछ फैसले ऐसे भी हैं, जिनका लाभ किसी और को नहीं, बल्कि सत्ताधारियों और उनमें भी किसी ख़ास शख्सियत को ज्यादा पहुंच रहा है। यह कोई हवा-हवाई बात नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश में सुर्खियों पर नजर डालें तो यही बात साफ होती है।

 

राजघरानों को फायदा देने वाली पॉलिसी
हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक नई पॉलिसी मंजूर की है। इसके तहत रियासत काल की धरोहरों, जिनमें भवन, किले, महल, लॉज और हवेलियां शामिल हैं, को संजोया जाएगा। रियासत या ब्रिटिश काल से जुड़ी इन इमारतों आदि का रखरखाव करके इन्हें पर्यटन के लिए विकसित किया जाएगा। इन इमारतों के रखरखाव के लिए प्रदेश सरकार भवन या महल के मालिक को 50 फीसदी रकम देगी, ताकि वह विरासत को संजोकर रख सके। इस पॉलिसी को हिमाचल हेरिटेज टूरिज़म पॉलिसी का नाम दिया गया है।

 

वीरभद्र सिंह को भी होगा लाभ
इस पॉलिसी का सीधा फायदा राजघरानों को मिलेगा, यानी उन लोगों को, जिनके पूर्वज रियासतों के शासक थे। ध्यान देने की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में जो भी रियासतें थीं, उनके शासकों के ज्यादातर वशंज आज हिमाचल की राजनीति में हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुद पूर्व राजपरिवार से संबंध रखते हैं। उनके अलावा आशा कुमारी, अनिरुद्ध सिंह, महेश्वर सिंह और रवि ठाकुर शामिल हैं।

 

राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि इस नीति का असल मकसद ब्रिटिश दौर की इमारतों के संरक्षण के बजाय अपने लिए आय का स्रोत पैदा करना है। दरअसल राजस्थान में ऐसी पॉलिसी पहले से ही है, मगर चुनाव से ठीक पहले सरकार, जिसके मुखिया खुद राजघराने से ताल्लुक रखते हैं, द्वारा ऐसी पॉलिसी लाया जाना कहीं न कहीं सवाल तो ज़रूर खड़े करता है कि इसका असल मकसद क्या है। पिछली कैबिनेट में सरकार के ही एक मंत्री ने इस पॉलिसी पर सवाल खड़े किए थे।

 

पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाएं बढ़ाने की कोशिश
इस नई पॉलिसी पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि इससे पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की कैबिनेट में एक प्रस्ताव आया था, जिसके तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों की सुविधाएं बढ़ाई जानी थीं। कुछ दिन पहले ही इसे कैबिनेट में पेश किया गया था। इसके तहत पूर्व सीएम के निवास स्थान पर ड्राइवर के साथ एक गाड़ी रहने और साथ ही फॉलोअप के लिए एक SUV भी रखने जाने का प्रावधान था। कार के साथ ड्राइवर, टूर पर जाने के लिए विभागीय वाहन और निवास स्थान पर डॉक्टर इस लिस्ट में टॉप पर था। अजेंडा आइटमों में हर साल 1 लाख रुपये का प्रशासनिक खर्च भत्ता, पसंद के 2 निजी सुरक्षा अधिकारी, लैंडलाइन और मोबाइल के 50000 रुपये और घर के प्रवेश द्वारा पर हथियारबंद पुलिस गार्ड शामिल थे। (यहां क्लिक करके विस्तार से पढ़ें)

 

बचने के लिए छुट्टी पर जा रहे अधिकारी
हिमाचल प्रदेश के अखबारों और विभिन्न चैनलों पर यह खबर आ चुकी है कि हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी छुट्टियों पर चले गए हैं या फिर अहम मौकों से पहले छुट्टी पर चले जाते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि चुनाव से ठीक पहले सरकार द्वारा लिए जा रहे मनमाने फैसलों में वे शामिल न हों। दरअसल फैसले बेशक सरकार लेती है, मगर उन्हें तैयार करने की जिम्मेदारी अधिकारियों की होती है और उसके लिए वे भी जवाबदेह होते हैं। ऐसे में असहज स्थिति से बचने के लिए उन्हें कथित तौर पर ऐसा रास्ता अपनाना पड़ रहा है।

 

हेरिटेज टूरिज़म से पहले टी टूरिज़म
मौजूदा सरकार का यह इकलौता फैसला नहीं है जो विवाद में है। पिछले कैबिनेट में कांगड़ा के चुनिंदा चाय बागान मालिकों को सशर्त लैंड यूज़ बदलने की इजाजत मिली। ध्यान दें, सभी को नहीं। लैंड रिफॉर्म्स के दौर में जब हिमाचल प्रदेश में सभी जमीन मालिकों को एक तय सीमा तक ही जमीन रखने की परमिशन मिल रही थी और उससे ज्यादा जमीन सरकार के पास चली जा रही थी, उस दौर में चाय और सेब बागानों के मालिकों राहत दी गई थी। वे तय सीमा से ज्यादा बागान अपने पास रख सकते थे, इस शर्त पर कि वे उनका रखरखाव करेंगे।

 

अब चाय बागान और सेब बागानों के मालिकों के पास बहुत ज्यादा जमीन बच गई। मगर अब सरकार उन्हें छूट दे रही है कि वे उसे बेच दें। नियमों में ढील देकर। जबकि नियम कहता है कि वे इसे बेच नहीं सकती। इसके लिए सरकार ने टी टूरिज़म नाम की टर्म गढ़ी है। यह छूट उन लोगों के साथ ठगी है, जिनकी जमीन सरकार ने कई साल पहले लैंड रिफॉर्म के नाम पर कब्जा ली थी। जो चाय बागान के नाम पर बच गए, आज उन्हें फायदा पहुंचाया जा रहा है। (विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)