18 C
Shimla
Friday, September 12, 2025
Home Blog Page 232

नतीजे प्रभावित कर सकती है चुनाव आयोग की यह व्यवस्था

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 9 नवंबर को हुआ था और नतीजे करीब 40 दिन बाद 18 दिसंबर को आएंगे। वोटिंग और रिजल्ट में इतना गैप देने के पीछे चुनाव आयोग का तर्क था कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि हिमाचल के नतीजे गुजरात विधानसभा चुनाव पर असर न डाल सकें। यानी हिमाचल के नतीजों से गुजरात के मतदाता प्रभावित होकर अपनी राय बनाकर वोट न करें।

एक तरफ तो चुनाव आयोग निष्पक्षता के लिए इतना चिंतित दिखाई देता है, मगर इसकी लापरवाही कहें या न जाने क्या, हिमाचल में चुनाव के नतीजे पूरी तरह से प्रभावित हो सकते हैं। लोकतंत्र में एक-एक वोट अहम होता है और कई बार तो जीत-हार का फैसला बहुत कम वोटों से होता है। इस अंतर में पोस्टल बैलट अहम भूमिका निभाते हैं। हिमाचल प्रदेश में लगभग 50 हजार कर्मचारियों की इलेक्शन ड्यूटी लगी थी। इन्हें 18 दिसंबर से पहले अपना वोट डाक से भेजने की छूट है या फिर काउंटिंग से पहले तक वे अपना वोट कास्ट कर सकते हैं।

यानी एक महीने से ज्यादा वक्त तो वो वोट भेज सकते हैं। वैसे तो ज्यादातर कर्मचारी ड्यूटी के लिए रवाना होने से पहले या आते ही अपना वोट डाल देते हैं, मगर सभी ऐसा नहीं करते। और इन वोटों को प्रभावित करने की भरपूर कोशिशें हो रही हैं। प्रभाव जमाने के लिए राजनीतिक दल कभी मंथन बैठकें कर रहे हैं तो कभी मंत्रीपदों पर चर्चा जैसे शिगूफे छोड़कर यह माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि हम सत्ता में आ रहे हैं। कर्मचारियों को लुभाने वाले बयान भी दिए जा रहे हैं।

ऐसे में क्या यह मतदाताओं, जिन्हें पोस्टल बैलट से वोट भेजना है, को प्रभावित करने की कोशिश नहीं है? क्यों इतना लंबा समय दिया गया? और राजनेता और पार्टियां क्यों आचार संहिता का पालन नहीं कर रहीं? जिन सीटों पर चंद वोटों से फैसला होगा, वहां क्या ये पोस्टल बैलट नतीजों को प्रभावित नहीं करेंगे? सवाल अहम है, मगर इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। जरूरी है कि तय सीमा के अंदर ही कर्मचारियों को पोस्टल बैलट भेजने को कहा जाए और तब तक राजनीतिक दलों पर नकेल कसी जाए।

54 दिनों से लापता वनरक्षक को नहीं ढूंढ पा रही मंडी पुलिस

मंडी।। मंडी ज़िले से एक वनरक्षक पिछले करीब दो महीनों से लापता है, मगर उसका कोई पता नहीं चल पा रहा। घर वाले परेशान हैं और नाउम्मीद से हुए जा रहे हैं। सोचिए, उस परिवार पर क्या बीत रही होगी जिसका अपना हंसी-खुशी एक कार्यक्रम में जाता है और फिर लापता हो जाता है। परिजन थानों के चक्कर काटकर थक जाते हैं, मगर पता ही नहीं चलता कि वह चला कहां गया। 54 दिन से उन्हें यह तक नहीं मालूम कि वह ज़िंदा भी है या नहीं। ये हालात तब हैं जब कुछ ही महीने पहले मंडी के ही करसोग से वनरक्षक होशियार सिंह भी लापता हुआ था और फिर कुछ दिनों बाद उसका शव पेड़ से उल्टा लटका मिला था। इससे पहले पुलिस दावा कर चुकी थी कि उसने जंगल का चप्पा-चप्पा छान मारा है।

धार्मिक यात्रा (जातर) में गए थे कमरूनाग
घटना मंडी के बल्ह की है, जहां रहने वाले वनरक्षक मोहन लाल, जिनकी उम्र 57 साल है मंडी के बड़ा देव कमरूनाग की जातर में शामिल होने गए थे। वापस में वह कुछ दोस्तों के साथ आ रहे थे। कथित तौर पर कुछ दूरी बाद दोस्तों ने देखा कि वह उनके बीच नहीं हैं। इससे उन्होंने सोचा कि वे शॉर्ट कट से अपने घर चले गए होंगे। अगली सुबह उन्हें पता चला कि मोहन तो घर पहुंचे ही नहीं हैं।

जंगल में ढूंढने पर भी हाथ नहीं लगा कोई सुराग
इसके बाद पुलिस, एसडीआरएफ, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, देवता कमेटी और कई स्थानीय लोगों ने किसी हादसे या दुर्घटना या साजिश की आशंका से मोहन लाल को कमरूघाटी में ढूंढने की कोशिश की, मगर कामयाबी नहीं मिली। अक्तूबर के पहले हफ्ते तक तो मीडिया में भी खबरें आती रहीं कि जैसे कि मोहन लाल के मोबाइल की आखिरी लोकेशन घीडी टावर से मिली थी और बाद में फोन स्विच ऑफ है। यह भी पता लगाने की कोशिश की गई कि आखिरी बात उनकी बात किससे हुई। मगर आज तक उनका पता नहीं चल पाया और फिर इलेक्शन आ गए तो मीडिया में भी मोहन लाल का जिक्र होना बंद हो गया। वरना जिस जिले में कुछ दिन पहले ही मोहन लाल जैसा केस हुआ हो, वहां पर एक और वनरक्षक का गायब हो जाना कोई छोटी बात नहीं थी।

पुलिस की जांच से परिवार संतुष्ट नहीं
मोहन लाल का परिवार पुलिस की जांच से संतुष्ट नहीं है। बेटे घनश्याम का कहना है कि प्रशासन पिता को ढूंढने में नाकाम रहा है। उनका कहना है, “कमरूनाग से वापसी पर जो लोग मेरे पिता के साथ थे, अगर उनसे पुलिस सख्ती ये पूछताछ करेगी तो वे लोग कुछ बता सकते हैं। उनके साथ आए चार-पांच लोगों के व्यवहार से शक हो रहा है कि कहीं मेरे पिता के साथ कुछ अनहोनी तो नहीं हुई हो।’

घनश्याम अपने पिता के साथ चल रहे लोगों पर सवाल उठाते हैं कि जब सभी साथ-साथ चल रहे थे तो कैसे केवल एक ही आदमी रास्ता भटक सकता है। साथ ही इन लोगों ने सड़क पर पहुंचने पर भी सभी को क्यों नहीं बताया कि एक आदमी गायब है। घनश्याम ने शक जाहिर किया है कि कहीं उनके पिता की हत्या न कर दी गई हो।

अब भी खाली हाथ है पुलिस
समाचार फर्स्ट पोर्टल के मुताबिक उन्होंने इस मामले में पुलिस का रुख जानना चाहा, मगर आलम यह था कि सुंदरनगर कॉलोनी थाने में फोन किसी ने नहीं उठाया। इसके बाद मंडी के एसपी ऑफिस संपर्क किया गया, जहां से पता चला कि अभी तक मोहन लाल का कोई सुराग नहीं मिल पाया है और बाकी जानकारी पुलिस स्टेशऩ से मिलेगी। थाना प्रभारी का मोबाइल नंबर भी लिया गया मगर वह बंद चल रहा है।

क्या यह केस पहेली बनकर रह जाएगा?
चुनाव से पहले तो जनता से जुड़े हर मुद्दे को राजनीतिक दल लपक ले रहे थे और उसपर खूब रैलियां और विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। मगर अब लगभग दो महीनों से एक वनरक्षक गायब है, मगर राजनीतिक दल न तो रैली न निकाल रहे हैं और न ही सामाजिक संगठन आगे आ रहे हैं। मीडिया में भी यह खबर दब सी गई है। अगर किसी जंगली जानवर ने भी उन्हें दबोचा होता तो क्या ग्रुप में चल रहे लोगों को पता नहीं चलता? सवाल कई हैं मगर जवाब कोई नहीं। एक जीता जागता इंसान गायब हो जाता है और कुछ पता ही नहीं चलता है?

कौन था बरोट-जोगिंदर नगर के बीच की पहाड़ी पर फंसे दोस्तों को बचाने वाला बुजुर्ग?

1

प्रस्तावना: पहाड़ों में हमेशा से आबादी कम रही है। पहले तो सड़कें भी नहीं होती थी और लाइट भी नहीं। इसलिए दूर-दूर बसे गांवों के बीच रात को आना-जाना आसान नहीं था। इसलिए जब कभी लोगों को आना जाना पड़ता था तो बचपन में सुने हुए कई डरावने किस्से-कहानियों का डर कभी पेड़ों की परछाइयों में दिखने लगता था तो कभी झाड़ियों में रहने वाले जीवों की आवाज़ में। और ये भूत-प्रेत के किस्से कहानियां उस वक्त टाइम पास का ज़रिया भी तो होते थे। इनमें रोमांच था क्योंकि ऐसी चीज़ की बात होती थी जिसे किसी ने देखा नहीं। सर्दियां आते ही दिन छोटे हो जाते हैं और रातें लंबी। ऐसे में पहाड़ों में ये रातें डरावनी हो जाती थीं। ठंढ में लोग घरों तक सिमटे रहते थे। डिनर के चूल्हे या अंगीठी के आसपास पूरा परिवार बैठता तो बच्चे अक्सर बड़े-बूढ़ों से कहते कि भूत की कहानियां सुना दो। वक्त के साथ ये परंपरा गायब हो गई। मगर ‘इन हिमाचल’ पिछले दो सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से इन किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए। बहरहाल, हॉरर एनकाउंटर के सीज़न-3 की पहली कहानी संजीव शर्मा* की तरफ से, जिन्होॆने अपना अनुभव हमें भेजा है-

35-40 साल पहले की बात है लगभग। 10वीं में पढ़ता था और एक साल फेल हो चुका था। पढ़ाई में मन नहीं लगता था। ऊपर से घरवाले परेशान करते रहते। पिता जी थे नहीं तो जैसे-तैसे दादा की पेंशन से परिवार चला करता था। मम्मी घर का काम करती थी। चाचा-चाची अक्सर मुझे उलाहना देते कि न घर का काम करता है न पढ़ता है। कुलमिलाकर मैं तंग होकर बर्बादी की राह पर चल पड़ा था। मेरी संगत ऐसी थी जिसमें सारे लोग मेरे जैसे ही थे। लोग हम लोगों ‘दस नंबरिये’ कहकर चिढ़ाते थे।इससे हमारा खून और भी खौलता था। कोई ऐसा नहीं था जो हमें सही रात पर लाने की कोशिश करता। उस वक्त कदम बहक गए थे।

खैर, तो हम 5 लोगों की टोली थी, जो बैजनाथ साइड के लड़कों में काफी बदनाम थी। हम पांचों अक्सर स्कूल जाने के बजाय छप्पर हो जाते और कभी जंगल में दिन काटते तो कभी खड्ड में नहाते तो कभी घूमने के लिए कहीं भी निकल जाया करते थे। सर्दियों के दिन थे। हम पांचों ने प्लान बनाया कि क्यों न बिलिंग चलें, बर्फ देखने। सर्दियों के दिन थे। स्कूल से बंक मारा और बैजनाथ से बस पकड़ ली। रास्ते में डिसाइड हुआ कि बर्फ पड़ी है तो बिलिंग तक पैदल जाना मुश्किल होगा, क्यों न जोगिंदर नगर चलें और शानन पावर हाउस से ऊपर विंच कैंप तक ट्रॉली जाती है, उससे चले जाएंगे। एक नया अनुभव हो जाएगा और बर्फ भी देख लेंगे।

तो बस मंडी जा रही थी तो उसी बस में जोगिंदर नगर चले गए और वहां से आगे अप्रोच रोड नाम की जगह पर उतरे, करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर शानन पहुंच गए। पता चला कि कोई पास बनता है ट्रॉली का। मगर देखा कि लोग बिना पास जा रहे हैं तो हम भी उनके साथ हो लिए। ट्रॉली चली और मजा आने लगा। धीरे-धीरे से रस्सी से चढ़ती ट्रॉली से ऊपर जाना रोमांचक था। धुंध छाई हुई थी। कुछ दिख नहीं रहा था। तो आखिरकार 18 नंबर नाम की जगह पहुंचे, वहां से पैदल ऊपर चढ़ने लगे। हम ही अकेले नहीं थे, वर्दी में कई सारे बच्चे आए थे हुए थे जो शायद आसपास के स्कूलों के थे और हमारी ही तरह बंक मारा हुआ था।

करीब 90 साल पहने बनी ये ट्रॉली आज भी चलती है।

हमारी मंडली का एक दोस्त बैग में अपने पिता की शराब की बोतल भी ले आया था। उसके पापा फौज में थे और घर पर बोतलें रखी हुई थीं। तो उसने कहा चलो ऊपर चलो, अलग एकांत में, वहां दारू पिएंगे। ये मेरा दारू पीने का पहला अनुभव था। पानी मिला नहीं, बर्फ ही बर्फ था। गिलास भी नहीं था तो नीट दारू पी हमने और आधे घंटे में हम पांच लोग बोतल खत्म कर गए। अब न ठंड लगे न कुछ, सुरूर छाया। प्लान बना कि और ऊपर जाना है। तो और ऊपर जाने लगे। बर्फ पड़ी थी मगर ज्यादा नहीं थी। एक पुराना सा रास्ता नजर आ रहा था, उसपर हम चले जा रहे।

लड़कपन की बेवकूफी कहें या कुछ और, मेरे एक दोस्त ने कहा कि भाई ये वही पहाड़ी तो है जो बिलिंग वाली है। यानी हम इस पहाड़ी के ऊपर-ऊपर से चलें तो बिलिंग पहुंच जाएंगे और फिर वहां से उतर जाएंगे। बिलिंग के नीचे ऐहजू और जोगिंदर नगर की दूरी 12 किलोमीटर है सड़क से। दोस्त अंदाज़ा लगाने लगे कि ये तो सड़क का डिस्टेंस है, जिसमे मोड़ है। पहाड़ी तो सीधी है आर से पार, ये उससे कम ही होगी और आराम से हम मौज करते हुए शाम तक पहुंच जाएंगे बिलिंग। सभी ने एक स्वर में कहा कि चलो। सभी की मति मारी गई थी। ये लॉजिक नहीं आया कि तुम अनजाने रास्ते पर जा रहे हो और वो भी पहाड़ की चोटी से, जिसमें कई उतार-चढ़ाव होंगे, रास्ता भी नहीं होगा और मोड़ भी होंगे।

लेखक के मुताबिक दोस्त सामने दिख रही ऊंची पहाड़ी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाना चाहते थे।

तो हमने चलना शुरू कर दिया। आधा घंटा चलने के बाद हमारी सांस फूलने लगी। प्यास लग रही थी मगर पानी नहीं था। बमुश्किल 2 किलोमीटर चले होंगे और वहां भी कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। सिर्फ बर्फ और उसके बीच में कहीं कहीं उभरी चट्टानों। चारों तरफ धुंध। पहाड़ी के इस तरफ भी, उस तरफ भी। बाईं तरफ जोगिंदर नगर था तो दाईं तरफ शायद बरोट। आगे सिर्फ 20 फुट की दूर की चीजें दिख रही ंथीं.

अब हमारी हिम्मत जवाब देने लगी। मैंने कहा कि भाई, अभी टाइम है, वापस चल लो। मगर हमारे बीच जो हमारा रिंग मास्टर था- मनु। उसने एक नहीं सुनी, बोला चलो न। हम चलने लगे। शाम होने लगी और पता ही नहीं है कि कहां जा रहे हैं। कोई रास्ता नहीं दिख रहा। अब घबराहट होने लगी। इतने में जनाब हम क्या देखते हैं कि सामने एक झंडा लहरा रहा है लाल। कदमों मे तेजी आई और हम चल दिए। देखा कि पहाड़ के रिज पर बहुत सारे पत्थर रखे हुए हैं जो बर्फ से ऊपर निकले हुए हैं। उनके साथ कहीं पर लाल कपड़े हैं तो कहीं लोहे के त्रिशूल तो कुछ सिक्के। कहीं पर कोई मूर्ति नहीं, कुछ जगह पत्थरों पर कुछ लिखा हुआ मगर भाषा समझ से परे। मेरे दोस्त ने कहा कि त्रिशूल उठा लो, कोई जंगली जानवर मिलेगा तो आत्मरक्षा में मददगार होंगे।

हिचकिचाते हुए हमने त्रिशूल उखाड़े औऱ चल दिए। रास्ते में इक्का-दुक्का लकड़ियां उठाई थीं और उन पत्थरों पर चढ़ाए हुए कपड़े भी उठा लिए थे। कुछ ही देर में अंधेरा और आगे का दिखना बंद। अब समझ लो कि मौत तय है। कुछ नहीं दिख रहा था। हमने तय किया कि भाई, अब चलने का फायदा नहीं है और मरना ही है तो बचने की कोशिश करते हैं कोई पत्थर ढूंढते हैं, उससे टिकते हैं, आग जलाते हैं और बचने की कोशिश करते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हवा बंद थी, अंधेरा और एक तिरछा सा पत्थर मिला। हमने उसके नीचे पहले तो अपने बस्ते बिछाए, किताबें निकालकर साइड में रख लीं, उसपर एक-दूसरे से चिपककर बैठ गए और अपने जैकेट उतारकर उन्हें ओढ़ सा लिया। ठंड लग रही थी मगर लग रहा था कि रात निकल जाएगा। लकड़ी और कपड़ों को एक तरफ रख दिया था कि हद से बाहर हो जाएगी जब ठंड, तब इन्हें जलाएंगे। शुरू के दो घंटे तो आराम से बीते, मगर फिर ठंड ने प्रकोप दिखना शुरू कर दिया। हम सब बोलने लगे कि आज जलानी चाहिए, मगर हममें से कोई भी बाहर निकलने को तैयार नहीं, सब कांप रहे।

जो हमारा रिंग लीडर था मनु, उसे मैंने कहा कि मनु तू कर यार। मनु उठा और उसने आग जलाई माचिस से। पत्थरों से उठाए कपड़े गीले थे मगल सिल्की होने की वजह से जलने लगे, गीली लकड़ियां आग नहीं पकड़ रही थीं। हमने अपनी किताबों को कॉपियों को जलाना शुरू कर दिया था। पढ़ने वाले बच्चे होते अगर हम तो बहुत सारी होती मगर हर किसी के पास दो किताबें एक आध कॉपी और एक रफ कॉपी थी। 1 घंटे में जब कुछ बचा खुचा मामला लगभग स्वाहा। और अब फिर ठंड चरम पर। मैंने कहा कि यार मैं लकड़ी ढूंढता हूं। मैंने अधजली लकड़ी ली, उसपर एक सिल्की सा लाल कपड़ा लपेटा और उसकी टॉर्च सी बनाता हुआ आसपास लकड़ी ढूंढने लगा। मगर इतनी ऊंचाई पर घास ही घास थी, न कोई पेड़ न कोई पौधा। लकड़ी कहां से मिलती। इतने में मेरा पैर फिसला और हाथ में पकड़ी लकड़ी गिरी औऱ आग बुझ गई।

मैं दोस्तों को आवाज देने लगा मगर उनकी तरफ से कोई जवाब न आए। इतने में मुझे अपने पीछे किसी बुजुर्ग की आवाज सुनाई दी जो पहाड़ी में बोल रहा था। उसने कहा कि मैं किसे आवाज दे रहा हूं। मेरी सांसें थम गईं। तुरंत पीछे मुड़ा तो घुप्प अंधेरा। मैंने कहा कौन है। आवाज आई- मैं कौन हूं, ये तो बाद की बात है पर तू कौन है और यहां क्या कर रहा है? मैंने कहा कि मैं फ्लां गांव से हूं और दोस्तों के साथ आया था तो फंस गए हैं। आप कौन हैं? ये बोलते हुए मैं अंधेरे में जोर देकर देखने की कोशिश कर रहा था कि कौन बोल रहा है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

आवाज आई, अच्छा तो तू फ्लां आदमी (मेरे पिता का नाम लिया) का बेटा है। इससे पहले कि मैं पूछता कि आप कौन हैं और आपके मेरे पिता का नाम कैसे पता, अपने हाथ में मुझे एक जकड़न महसूस हुई। ऐसा लगा कि मेरा हाथ पकड़ा गया है। आवाज आई- चल मेरे साथ, यहां रहेगा तो मर जाएगा। पता नहीं क्या-क्या करते हैं आज के बच्चे। मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। बस चलने लगा। आगे-आगे कोई चल रहा था जिसने घुप्प अंधेरे में मेरा हाथ पकड़ा था और मैं पीछे-पीछे चल रहा था। एक-दो बार मेरे पांस फिसले मगर उस हाथ ने गिरने नहीं दिया। आगे पदचाप भी सुनाई दे रही थी और वो बुजुर्ग सी आवाज बोलती जा रही थी- बड़ों की बात सुन लिया करो, मगर आजकर कोई सुनता कहां है। और न जाने क्या-क्या कहा मुझे याद नहीं। एक जगह आकर मुझे रुकने को कहा गया और मेरे हाथ को छोड़ दिया गया।

घुप्प अंधेरे में दरवाजा सा खुलने की आवाज आई। मुझे फिर पकड़कर मानो घर के अंदर ले जाया गया हो क्योंकि वहां गर्माहट थी। और बैठने को कहा गया। जैसे ही मैं बैठा, नीचे गर्म मखमली सा अहसास हुआ बिस्तर जैसा। बोला कि सो जा जूते उतारकर और ओढ़ ले। अब मैंने कहा- मेरे दोस्त भी मेरे साथ, वो ठंड में…. इससे पहले कि मैं अपनी बात पूरी करता, आवाज आई: इन दोस्तों का ही तो साथ छुड़वाना पड़ेगा तेरे से। मगर चल, उनको भी कुछ नहीं होगा मगर तू उनका साथ छोड़ेगा तब। मैंने कहा कि मैं छोड़ दूंगा। आवाज आई- ठीक है, सो जा। तू सो जा, मैं तेरे दोस्तों को देखता हूं।

इसके बाद न जाने मुझे कब नहीं आ गई। मेरी नींद खुली तो मैंने खुद को अस्पताल में पाया। पता चला दो दिन से बेहोश था और मेरे चारों दोस्त मुझे उठाकर ट्रॉली तक लाए थे। मैंने दोस्तों से पूछा कि क्या हुआ। तो उन्होंने बताया कि जब तू लकड़ियां ढूंढने गया था, इसके बाद एक बुजुर्ग आया था एक घोड़े के साथ। उसने हमें बोला कि नीचे तुम्हारा दोस्त पड़ा हुआ है, उसे उठाकर ऊपर लाओ। हम ठिठुर रहे थे, उसने ही आग जलाई और हमें दूध भी पिलाया। और पट्टू दिए ओढ़ने को। जब हम लोग तुम्हें उठाने नहीं गए तो वो खुद ही तुम्हें उठाकर ऊपर लाया और हमारे साथ सुला दिया। हम बुरी हालत में थे उठ नहीं पा रहे थे। उसने अपने गिलास वापस लिए और सुबह होने से पहले ही बोला कि बहुत दूर जाना है। उसने कहा कि अपने दोस्त को इस पट्टू में लिटाकर चारों तरफ से चारों तुम उठाकर उसी तरफ से जाना, जहां से आए हो। और ये त्रिशूल वगैरह वहीं छोड़ देना जहां से उठाए थे। इसके बाद वो घोड़े के साथ चला गया।

दोस्तों ने बताया कि इसके बाद वो मुझे उठाकर वापस विंंच कैंप ले आए और वहां से ट्रॉली के ज़रिए नीचे। मैंने उनसे पूछा कि त्रिशूलों का क्या किया? बोले कि वहीं रख दिए जहां से लाए थे। मैंने कहा बुजुर्ग कैसा था देखने में। बोले कि हमने चेहरा नहीं देखा। और वो पट्टू कहां है जो तुमने ओढ़ा था और जिसपर मुझे लाए थे। सब एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। बोलने लगे कि यहीं कहीं होगा। उस पट्टू को ढूंढने की कोशिश की गई, मगर या तो दोस्तों ने उन्हें अस्पताल में कहीं गुम कर दिया या शायद ट्रॉली में रखकर ही भूल गए।

भेड़ की ऊन से बने शॉल जैसे ये हल्के कंबल बहुत गर्म होते हैं.

मुझे ठंड के मारे निमोनिया हो गया मगर रिकवर कर गया। मगर जान बच गई। इस बीच मैं सोचता रहा कि वो कौन बुजुर्ग था जो मेरा हाथ पकड़कर गर्म जगह पर एक बिस्तर में सुलाने ले गया था और वहां से मैं दोस्तों के बीच कैसे पहुंचा। वही बुजुर्ग मेरे दोस्तों के सामने आग जलाकर दूध पिलाकर कंबल कैसे दे गया? सुबह होने से पहले ही वह कहां चला गया? मुझे ही नहीं, हम सभी के जानने वालों को इन सवालों ने परेशान किया। किसी ने कहा कि गडरिया होगा जो बाइ चांस वहां से गुजर रहा होगा। क्योंकि उन्हीं के पास घोड़े होते हैं और वे बकरी के दूध से चाय आदि बनाने का पूरा सामान भी रखते हैं वो और कंबल आदि भी।

वहीं कुछ का कहना था कि वह दिव्य आत्मा थी, शायद उन पहाड़ों का कोई रखवाला था या कोई ऋषि या महापुरुष जो वहीं तप करता हो। मगर उसकी आवाज सुनाई दी, उसकी छुअन महसूस हुई, चेहरा नहीं देख पाया। मगर मेरी जिंदगी तो आज उसी की देन है। आज साइंस कहती है कि बर्फ में ठंड की वजह से और डर की वजह से मुझे भ्रम हुआ यानी हैल्यूसिनेशन की वजह से सपने में मैं कल्पना करता रहा कि किसी बुजुर्ग ने मुझे गर्म जगह पर शरण दी। और मेरे मन ने कहानी गढ़ी कि वह मेरे पिता को जानता है।

मगर मैं मानता हूं कि कुछ दिव्य चीज़ थी जो मुझे बचा गई। और उसके कहे मुताबिक मैंने उन दोस्तों से नाता तोड़ा और पढ़ाई पर ध्यान दिया। न सिर्फ कामयाब हुआ, बल्कि अब अच्छी जगह काम कर रहा हूं और परिवार भी अच्छे से सैटल्ड है। अभी बच्चों की भी शादियां हो गई हैं और अगले तीन साल में रिटायर हो जाऊंगा। वही मेरे वो दोस्त नहीं सुधरे और बाद में बहुत ही गलत अपराधों में शामिल हुए। आज भी वे कामयाब होंगे पैसों की दृष्टि से, मगर उनका इतिहास उन्हें सम्मान नहीं दिला पाया। मगर मैं बचपन के सारे गलत कामों की छाप मिटाकर आत्मसंतुष्टि के साथ जी रहा हूं। धन्य हो वह घटना।

(हमने लेखक का नाम बदल दिया है)

हॉरर एनकाउंटर सीरीज़ की अन्य कहानियां पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और उनके पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें। आप इस कहानी पर कॉमेंट करके राय दे सकते हैं।

23 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेजे गए डीडब्ल्यू नेगी

शिमला।। शिमला के कोटखाई के चर्चित रेप ऐंड मर्डर केस में हिरासत में एक संदिग्ध की मौत के सिलसिले में सस्पेंड शिमला के पूर्व एसपी डीडब्ल्यू नेगी को 3 दिन की न्यायिक हिरासत पर भेजा गया है। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी शिमला रणजीत सिंह के कोर्ट ने उन्हें जूडिशल कस्टडी पर भेजा।

नेगी 23 नवंबर तक हिरासत में रहेंगे रहेंगे। गुरुवार को उन्हें इस मामले में गिरफ्तार आईजी समेत अन्य पुलिसवालों के साथ दोबारा कोर्ट में पेश किया जाएगा। सीबीआई रिमांड पूरा होने के बाद डीडब्ल्यू नेगी को मंगलवार को दोपहर के बाद कोर्ट में पेश किया गया। वह गुरुवार को गिरफ्तार होने से लेकर अब तक सीबीआई के रिमांड पर चल रहे थे।

 

सीबीआई ने नेगी को लॉकअप में हुई नेपाली मूल के संदिग्ध सूरज सिंह की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया है। उनके ऊपर सूरज की हत्या के मामले में एक अन्य आरोपी राजू के खिलाफ फर्जी मामला दर्ज करवाने का आरोप है। वह तीन दिनों तक कंडा जेल में रहेंगे।

चंबा में मंदिर और मस्जिद में तोड़फोड़; क्या था इरादा?

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, चंबा।। हिमाचल प्रदेश के चंबा शहर के साथ लगती सरोल पंचायत में अज्ञात लोगों ने मस्जिद और मंदिर में तोड़फोड़ की है। घटना सोमवार देर रात की बताई जा रही है। पुलिस ने मामला दर्ज करके छानबीन शुरू कर दी है।

मंगलवार सुबह जब मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करने मस्जिद पहुंचे तो पाया कि माइक गायब है। अंदर जाने पर पवित्र कुरान का भी पता नहीं चला। लोगों ने आसपास तलाश करना शुरू किया तो कुछ ही दूर कुरान के फटे हुए पन्ने मिले और माइक भी तोड़ दिया गया था। वहीं शीतला पुल के पास शिव मंदिर में मूर्तियां बिखरी हुई थीं। शिवलिंग रावी नदी के किनारे मिला तो त्रिशूल सड़क पर पड़े थे।

एएसपी वीरेंद्र ठाकुर ने पुलिस टीम को साथ लेकर स्वयं मौके पर जाकर घटना का मुआयना किया और सुबूत जुटाए। एसपी वीरेंद्र तोमर ने कहा कि सरोल पंचायत में मस्जिद और मंदिर में तोड़फोड़ की घटना सामने आई है, जिसमें अज्ञात लोगों क‌े ‌खिलाफ मामला दर्ज किया है। आरोपियों की तलाश की जा रही है और वे जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होंगे।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क का फेसबुक पेज लाइक करें

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)

बुजुर्ग पुजारिन के निधन के बाद यहां प्रकट हुई थी माहुनाग की पिंडी

एमबीएम न्यूज नेटवर्क, मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के जोगिंदर नगर में त्रैंबली ग्राम पंचायत में आने वाले गांव मझेड़ में माहुनाग देवता का करीब 100 साल पुराना मंदिर है। यह मंदिर पूरे इलाके के लोगों की आस्था का केंद्र है।

पहले इस जगह पर जंगल हुआ करता था और गांव की बुजुर्ग महिला मंगसरू देवी यहां आकर साधना किया करती थीं। लोग उनके पास आते और मंगसरू देवी उनकी समस्याओं का समाधान किया करतीं।

बुजुर्ग मंगसरू देवी के देहावसान के बाद लोगों ने देखा कि जहां पर पूजा करती थीं, वहां पर एक पिंडी है।

लोगों ने दूसरे मंदिरों के पुजारियों से बात की तो पचा चला कि नाग देवता यहां प्रकट हुए हैं। लोगों ने यहां पर देवता का मंदिर बनाया और तब से लेकर आज तक लोग यहां पर आते हैं।

मंदिर में इस प्राचीन पिंडी के साथ-साथ कुछ पुराने वाद्ययंत्र भी रखे गए हैं। इन्हें धार्मिक कार्यक्रमों और शादी-विवाह आदि में इस्तेमाल किया जाता है। यहां बड़ा सा ढोल, ढोलकी और नरसिंघा मौजूद है।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क का फेसबुक पेज लाइक करें

मंदिर के मौजूदा पुजारी बोनूराम 70 साल के हैं। उनका कहना है कि यहां आने वालों की हर शुभ मनोकामना पूरी होती है।

(यह एमबीएम न्यूज नेवटर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है। कुछ तस्वीरें जोगिंदर नगर डॉट कॉम से साभार ली गई हैं।)

गुड़िया केस में अब पैसों वाले ऐंगल की जांच कर रही है सीबीआई

शिमला।। पूरे हिमाचल को हिलाकर रख देने वाले शिमला के कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस में अब सीबीआई अब पुलिस द्वारा मामले को तुरंत निपटाने के पीछे पैसे के ऐंगल की जांच पर फोकस कर रही है। अंग्रेज़ी अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक प्रमुख संदिग्धों के खिलाफ कोई भी ठोस सबूत न मिलने के बाद अब इस ऐंगल पर तफ़्तीश की जा रही है।

गौरतलब है कि पुलिस पर असल दोषियों को बचाने के आरोप लगने के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया था। अब सीबीआई पैसों के ऐंगल से पुलिस की भूमिका की भी जांच कर रही है क्योंकि अभी तक पकड़े गए चार आरोपियों (पांचवें की हिरासत में हत्या कर दी गई थी) के खिलाफ ठोस सबूत हाथ नहीं लगा है।

‘Did cops hush up rape case for crores?‘ शीर्षक वाली रिपोर्ट में लिखा गया है, “चूंकि यह साफ है कि पुलिस ने मामले को दबाने की कोशिश की, ऐसे में पैसे का पता लगाना महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इससे असल दोषियों तक पहुंचा जा सकता है। पुलिस द्वारा मजदूरों को केस में जोड़ने के बाद से ही 3 से 13 करोड़ के लेन-देन की अफवाहें चल रही हैं।”

इस मामले में सीबीआई अब तक आरोपियों के ब्रैन मैपिंग से लेकर कई साइंटिफिक टेस्ट कर चुकी है लेकिन कोई भी ठोस बात निकलकर सामने नहीं आई है। इससे उन आरोपों को बल मिल रहा है कि एसआईटी ने असली गुनहगारों को बचाने के लिए निर्दोष लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

आरोपियों के सैंपल नहीं हुए थे मैच
इससे पहले पुलिस द्वारा आरोपियों के लिए गए सैंपल घटनास्थल और मृतका के शरीर से मिले सबूतों से मैच नहीं हुए थे। इनमें से एक आरोपी सूरज की 18 जुलाई को रात साढ़े 11 बजे के करीब बेरहमी से हत्या हो गई थी। अख़बार के मुताबिक इसके बाद डीएसपी मनोज जोशी तुरंत एसपी डीडब्ल्यूनेगी के पास गए और दोनों फिर आईजी ज़हूर एच जैदी से मिले, जो एसआईटी की अगुवाई कर रहे थे। अगली सुबह साढ़े बजे सूरज की हिरासत में हुई मौत को लेकर सुबह साढ़े 8 बजे जेल में ही बंद अन्य संदग्ध राजिंदर पर एफआईआर दर्ज की गई।

रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई ने गिरफ्तार किए गए पुलिसवालों के खिलाफ काफी सबूत इकट्ठे कर लिए हैं और हिरासत में मौत के मामले में चार्जशीट लगभग तैयार है।

ज्वालामुखी में प्राकृतिक ईंधन ढूंढने में जुटी ONGC की टीम

कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की ज्वालामुखी का मंदिर पूरी दुनिया में हिंदुओं के बीच प्रसिद्ध है, जहां पर अपने आप जलती ज्योति लोगों को हैरान कर देती है। मान्यता है कि मां ज्वाला जी सभी की मुरादें पूरी करती हैं और सुख समृद्धि देती हैं। मगर वह मुराद अब तक पूरी नहीं हो पाई कि जिस प्राकृतिक ईंधन से ये ज्योतियां अनवरत जलती हैं, वही प्राकृतिक ईंधन देश के ऊर्जा संकट को दूर करने और हिमाचल प्रदेश के विकास में रफ्तार देने में इस्तेमाल हो।

दरअसल पहले दो बार वैज्ञानिक यहां पर जांच कर चुके हैं कि ईंधन का स्रोत ढूंढा जाए। माना जाता है कि यहां प्राकृतिक गैस बड़ी मात्रा में मौजूद है, मगर वह कहां है, यह पता नहीं चल पा रहा। साल 1962 से लेकर आज तक यहां दो बार अड्डा जमाकर इस स्रोत को ढूंढने की कोशिश की गई थी, मगर कामयाबी नहीं मिल पाई। अब तीसरी बार कोशिश की जा रही है और ओएनजीसी ने डेरा जमाया है

मशीनों के ज़रिए पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि तेल या गैस के भंडार आखिरकार है कहां। दरअसल प्राकृतिक गैस अक्सर वहीं होती है, जहां पर खनिज तेल होता है। ऐसी कई थियरीज़ भी दी जा चुकी हैं कि जब एक अलग भूखंड (इंडियन प्लेट) आकर एशिया (यूरेज़ियन प्लेट ) से टकराया और हिमालय का निर्माण हुआ, उस दौरान वनस्पति आदि बड़ी संख्या में दब गई जो भारी दबाव के कारण कालांतर में खनिज ईंधन में तब्दील हो गई है। उसी को ढूंढने की कोशिश की जा रही है।

जानकार मानते हैं कि ऊर्जा स्रोत का सही पता तभी चल सकता है जब मंदिर से ही जांच शुरू की जाए या इसके आसपास से तलाश की जाए, मगर धार्मिक आस्था से मामला जुड़े होने के कारण इस दिशा में अब तक कोई भी कदम उठाने से बचा जाता रहा है। दरअसल ज्वालामुखी मंदिर बहुत प्राचीन समय से लोगों की आस्था का केंद्र है।

अगर ज्वालामुखी में कोई प्राकृतिक भंडार मिल जाता है तो भारत की निर्भरता खाड़ी देशों पर खत्म हो जाएगी और देश का ऊर्जा संकट तो कम होगा ही, वह निर्यात से अपनी इकॉनमी भी बूस्ट कर सकता है।

अगर बीजेपी और कांग्रेस ने 34-34 सीटें जीतीं तो क्या होगा?

इन हिमाचल डेस्क।। मतदान होने के बाद जब तक रिजल्ट नहीं निकल जाता, तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। कोई एक पार्टी को जिता रहा है तो कोई दूसरी को। इस बीच एक मजेदार सवाल यह निकलकर सामने आ रहा है कि उस स्थिति में क्या होगा, अगर बीजेपी और कांग्रेस बराबर सीटें जीतती हैं। यानी 68 में से 34 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिलती है और 34 पर बीजेपी को, तो क्या होगा, सरकार किसकी बनेगी।

इस सवाल को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि इस तरह के हालात पैदा होने की संभावना लगभग शून्य है मगर फिर भी लोकतंत्र में कुछ भी हो सकता है। हिमाचल में सरकार बनाने के लिए आपके पास 35 विधायक होने चाहिए।

होता यह है कि नतीजे आने के बाद यह देखा जाता है कि कौन सी पार्टी या गठबंधन सबसे ज्यादा सीटें लाया है। उसी के आधार पर ज्यादा सदस्यों वाली पार्टी या गठबंधन को राज्यपाल सरकार बनाने का निमंत्रण देते हैं। इसके बाद असेंबली में उस पार्टी या सरकार बनाने वाले को बहुमत साबित करना होता है।

‘हंग असेंबली’ उस स्थिति को कहते हैं जब किसी भी पार्टी या गठबंधन के पास बहुमत लायक सीटें न हों। ऐसे ही हालात पिछली बार दिल्ली में हुए थे। ऐसी स्थिति में राज्यपाल किसी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं। अगर आमंत्रित किया गया दल/गठबंधन असेंबली में बहुमत साबित करने में कामयाब रहता है, तब तो ठीक, वरना फिर से चुनाव करवाए जाने की तैयारी शुरू हो जाती है। तब तक तुरंत ही राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है (जम्मू कश्मीर में गवर्नर रूल)।

By Patrick Gillett – Own work, CC BY 3.0

ऐसा ही दिल्ली में हुआ था जब कोई भी पार्टी बहुमत लायक सीटें नहीं ला पाई थी और बाद में कांग्रेस ने भी आम आदमी पार्टी से समर्थन वापस ले लिया था। ऐसे में फिर से चुनाव करवाए गए। इसलिए निश्चिंत रहें, ऐसा नहीं होगा कि बराबर सीटें आने पर दोनों पार्टियों को ढाई-ढाई साल तक सरकार चलाने का मौका मिलेगा। न ही ऐसा होगा कि टॉस से फैसला होगा कि पहले ढाई साल कौन सरकार चलाएगा।

शिमला में शूट हुई शॉर्ट फिल्म ‘बुलबुल’ का ट्रेलर देखा आपने?

इन हिमाचल डेस्क।। दिव्या खोसला कुमार की शॉर्ट मूवी बुलबुल का ट्रेलर इस वक्त यूट्यूब के ट्रेडिंग वीडियोज़ में नज़र आ रहा है। इसमें ‘बुलबुल’ नाम की लड़की का किरदार निभा रही हैं खुद दिव्या खोसला कुमार। खास बात यह है कि इस फिल्म की ज्यादातर शूटिंग हिमाचल प्रदेश में हुई है और वह भी शिमला में। इसमें शिमला शहर के साथ-साथ यहां के रेलवे स्टेशन और बाहरी इलाकों की झलक भी देखने को मिलती है।

इस शॉर्ट मूवी का ट्रेलर को देखें तो रिज में एक पुलिसकर्मी बुलबुल का पीछा करता भी नजर आता है। इसमें कुछ कॉमिडी, कुछ सस्पेंस, दुख भरे सीन होने की भी उम्मीद है। बुलबुल को क्यूट सी लड़की के किरदार में दिखाया गया है जो एक लड़के को प्यार करती है और उसे हासिल करना चाहती है।

यह शॉर्ट फिल्म यूट्यूब पर ब्रॉडकास्ट होगी। देखें इसका ट्रेलर:

20 मिनट की इस फिल्म को टी-सिरीज़ ने प्रड्यूस किया है।