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Friday, September 12, 2025
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खाद की बोरियों से स्कूल बैग बनाकर पढ़ने जाती हैं ये बेटियां

एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क, शिमला।। सुदूर इलाकों में मासूम बेटियां किस तरह के बेहद मुश्किल हालात में पढ़ाई करती हैं, इसका एक मामला सामने आया है। मामला सुन्दरनगर उपमंडल की निहारी तहसील के कथाची का है। यकीन करना मुश्किल है, मगर यहां बच्चों, खासकर नन्ही बेटियों में स्कूल जाने का कमाल का जुनून है। वे दो से तीन घंटे पैदल तो चलती ही हैं, बैग के लिए खाद के बोरे (बैग) से स्कूल के बस्ते बनाती हैं।

ये तस्वीरें प्राथमिक पाठशाला कथाची में पढ़ रही नन्हीं बेटियों की हैं। इनमें दिख रहा है कि कि खाद के बैग को सिलकर स्कूल का बस्ता बनाया गया है। इस मामले में नन्हीं बेटियों के स्कूल जाने के जज्बे को तो सलाम किया जाना चाहिए, लेकिन सरकार की कई योजनाओं पर करारा तमाचा भी है। कथाची स्कूल की नन्ही छात्राएं सबसे अहम सवाल यह उठता है कि सरकार की वो योजनाएं कहां हैं, जिनमें गरीब बच्चों को पाठन सामग्री व अन्य सुविधाएं देने के वायदे किए जाते हैं।

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एक जानकारी यह भी सामने आई है कि निहारी से कथाची तक सडक़ का निर्माण प्रस्तावित था। लेकिन मामूली अड़चन ने इसे रोक रखा है। बहरहाल यह तय है कि इस दुर्गम इलाके में सरकारी सहूलियतें नदारद हैं। जिंदगी बेहद जटिल है। यह भी तय है कि खाद के कट्टों से बने स्कूल बस्तों की तस्वीरें भी दुर्लभ ही होंगी। पहाड़ी प्रदेश में शायद ही इस बात की कल्पना की जाती होगी कि आज भी नन्हीं बेटियां इस तरह के जज्बे को लेकर स्कूल पहुंचती हैं।

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित की गई है)

मानसिक रूप से कमजोर बच्ची से दुराचार के आरोप में दादा और चाचा अरेस्ट

एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क, मंडी।।  मानसिक रूप से अस्वस्थ नाबालिग बच्ची से दुराचार के मामले में नई जानकारी सामने आई है। अब परिवार में ही दादा और चाचा लगने वाले दो लोगों पर गंभीर आरोप लगे हैं। संदिग्धों को गिरफ़्तार कर लिया गया है।

 

जानकारी के मुताबिक दोनों आरोपी आपस में पिता-पुत्र हैं। बूढ़ा आरोपी पीड़िता के दादा का भाई है। दूसरा आरोपी इसी बुजुर्ग का बेटा है। पुलिस को पीड़िता की मां से शिकायत मिली थी कि बेटी को अचानक पेट में दर्द उठा था। इसके बाद पता चला था कि कथित तौर पर इन दोनों ने बच्ची के साथ दुराचार किया था।

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पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 (2) और 34 के साथ-साथ पोक्सो ऐक्ट के तहत मंडी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया है।

(यह एमबीएम न्यूज नेटवर्क की खबर है और इसे सिंडिकेशन के तहत प्रकाशित किया गया है)

इस परिवार की लाचारी की वजह कहीं जागरूकता का अभाव तो नहीं?

कांगड़ा।। अक्सर समाज में वंचित और पीड़ित लोगों की कहानी सामने लाने वाले समजसेवी संजय शर्मा ने अब एक और परिवार का दर्द सामने रखा है, जिसे मदद की ज़रूरत है। मगर सवाल यह भी उठता है कि क्या हमारे राज्य में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि ऐसी स्थिति में फंसे व्यक्ति की मदद की का सके और मुफ्त इलाज हो? कहीं यह मामला जागरूकता के अभाव का तो नहीं है? बहरहाल, पूरा मामला समझें

7 नवम्बर को पोस्ट की गई एक तस्वीर के साथ संजय शर्मा लिखते हैं-

“दोस्तो यह महेन्द्र सिंह ऊम्र लगभग 40 साल पता गांव व डाकघर भीरडी तहसील चढीयार, विधान सभा हल्का बैजनाथ जिला कांगडा हिमाचल प्रदेश, कोई छोटी मोटी नोकरी कर के बडी मुश्किल से अपना व अपने परिवार का पेट पाल रहे थे। परिवार मे ईनके दौ बच्चे व पत्नी व एक बुढी मां हे महेन्द्र सिंह की टांग को किसी बीमारी के चलते काटना पडा, पर अफसोस लगभग एक साल बीत जाने के बाद भी महेन्दर का जख्म भर नंही पाया है। भरेगा भी कैसे टांग कटने के बाद यह एक बार भी हस्पताल नंही जा पाया है।  टांग का जख्म धीरे धीरे नासुर बनता जा रहा हे बिना ईलाज व दवाई के, जब ईनकी पत्नी से वात हुई तो वताया कि मनरेगा मे काम करके बमुश्किल बच्चों व माता जी को खाना नसीब होता है ईनकी दवाई के लिए बहुत पैसे कि जरुरत है, ईतना पैसा हम कंहा से कर सकते हैं।

घर मे जब दर्द के कारण महेन्दर चिल्लाता हें तो मां सहित सारा परिवार सहम जाता हे, केसे एक मां और एक पत्नी व बच्चे महेन्दर को तिल तिल मरता देख रहे हैं, पुरी परिवार अपने लिए मौत मांग रहा है, पर क्या दोस्तो मौत कभी मांगने से मिलती है,,,,,,,,,,, महेन्दर का ईलाज हो सकता है अगर आप सभी,,,,,,,,,,,,?”

इसके बाद उन्होंने एक खाता भी दिया है, जिसपर मदद की जा सकती है (नोट: अपने स्तर पर वेरिफाई करके ही आर्थिक मदद करें)

Mr mohinder singh s/o sher singh
Joint holder mrs pooja devi (wife)
A/c 8882000100006430 PNB Baijnath
IFSC code PUNB0888200
Phone no-7807505863

कमेंट करके राय भी दें।

हिमाचल का हर मतदाता वोट डालने से पहले इसे जरूर पढ़े

9 तारीख को जब भी आप वोट डालें, इत्मिनान से सोचें कि आप क्या करने जा रहे हैं। सत्ता और विपक्ष में रहे लोगों के कामों, बयानों, स्वभाव और आचरण को याद करें। सोचें कि उन्हें सत्ता मिलती है तो क्या वे ऐसा कुछ कर सकते हैं जो दूसरा नहीं कर सकता है। यह भी देखें कि आप जिसे विधायक चुनने जा रहे हैं, वह आपका प्रतिनिधि बनने के लायक है या नहीं। खुद से पूछें, क्या वह इतना शिक्षित या समझदार है कि बदलते वक्त को और आपकी जरूरतों या उम्मीदों की समझ रखता है; क्या वह आपकी बात दमदार तरीके से विधानसभा में उठा सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह मुस्कुराता ही रहे और कुछ करे ही न। सिर्फ मीठी जुबान से काम नहीं चलता। मामला रिश्तेदारी निभाने का नहीं है, जिम्मेदारी निभाने का है।

मंत्री पद ही सबकुछ नहीं होता
हमेशा ऐसी स्थिति की कल्पना करें कि उस स्थिति में आपका विधायक क्या करेगा, जब उसकी पार्टी सरकार न बना सके। अगर आपको लगता है कि उस स्थिति में वह विधायक निधि का सही इस्तेमाल कर सकता है तो उसी को चुनें। यह सोचकर अवधारणा न बनाएं कि यार, सरकार तो दूसरी पार्टी की आ रही है, इसे कैसे वोट दें। हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर वोट दें। जब हर कोई ऐसा करके सिर्फ अच्छे प्रत्याशी चुनेगा तो स्वाभाविक तौर वह उसी पार्टी की सरकार बनेगी, जिसके ज्यादा प्रत्याशी अच्छे होंगे।

जिताएं ही नहीं, हराएं भी
बदलाव के लिए एक कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए अगर आपको इस चुनाव में उन लोगों को भी हराना पड़े, जिनका नाम बड़ा है मगर काम कुछ नहीं किया, तो उनकी जगह योग्य नए चेहरे को वोट देकर विधानसभा भेजें। सत्ता को जागीर समझ बैठे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाना भी जरूरी है।

हिमाचल ही दिखा सकता है देश को रास्ता
ये काम मुश्किल जरूर लगते हैं। मगर हिमाचल जैसे शिक्षित राज्य के जिम्मेदार लोगों से यह उम्मीद न की जाए तो किससे की जाए? इसलिए, एकजुट रहें और जाति, क्षेत्र या अन्य आधार न बंटें। इत्मिनान से सोचें और पैसा बहाने वाले, अकड़ दिखाने वाले, बातें बनाने वाले, डराने और सताने वाले लोगों के बजाय एक आदर्श प्रत्याशी को विधानसभा भेजें। जो आपकी आवाज भी उठा सके और आपका नेतृत्व भी कर सके।

निवेदक,
टीम इन हिमाचल

लेख: भारतीय जनता पार्टी भी कोई दूध की धुली नहीं है

रोहन श्रीधर।। हिमाचल प्रदेश की प्राचीन पहाड़ियों में चुनावी बिगुल बज चुका है। जैसा कि हिमाचल में हर चुनाव में होता रहा है, राज्य में बीजेपी और सत्ताधारी कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है। अगर हिमाचल में वोटिंग के ऐतिहासिक पैटर्न के हिसाब से देखें तो बीजेपी जीत सकती है, क्योंकि हिमाचल में लंबे समय से कोई सरकार लगातार सत्ता में नहीं आई। चुनाव प्रचार पर नजर डालें तो लगता है कि भ्रष्टाचार, विकास, आर्थिक विकास, कानून व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द जैसे मुद्दों पर बीजेपी का एकाधिकार है।

इस लेख को इंग्लिश में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बीजेपी का कांग्रेस और इसके नेताओं पर हमले करना काफी हद तक सही भी लगता है। मगर यह देखना मजेदार है कि भगवा ब्रिगेड अपने आप को आदर्श बता रही है। अगर भगवा नेताओं की कोई आलोचना कर दे तो उसके संगठनों के कार्यकर्ता गाली-गलौच, धमकियों और हिंसा पर उतर आते हैं। और अगर कोई बात उनकी पार्टी को पसंद न आए तो कानूनी कार्रवाई और केंद्रीय एजेंसियों की जांच का हमला होना अपरिहार्य है।

वैसे तो बीजेपी बहुत से मामलों को लेकर विपक्ष पर निशाना साधती है, मगर जिसका जिक्र वह सबसे ज्यादा करती है, वह है- भ्रष्टाचार। हालांकि यह सही है कि यूपीए कार्यकाल में यह अभूतपूर्व स्वरूप में दिखा, मगर कांग्रेस और इसकी सहयोगी पार्टियों पर निशाना साधने वाली बीजेपी खुद इससे अछूती नहीं है। जब से यह पार्टी केंद्र में सत्ता में आई है, लगता है इसके अंडर आने वाली जांच एजेसियां कुछ बातों को लेकर स्मृतिलोप की शिकार हो जाती हैं और इस तरह से व्यापम तो उनकी स्मृति से गायब ही हो गया है। बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में ऐडमिशन और भर्ती घोटाले में कथित तौर पर कई वरिष्ठ नेता, सरकारी अधिकारी और कारोबारी शामिल हैं।

यह देश के महत्वाकांक्षी, मेहनती युवा वर्ग के खिलाफ शायद सबसे बड़ा स्कैम है। इस स्कैम से जुड़े 40 से ज्यादा लोग संदिग्ध हालात में मारे गए और आरोपियों में राज्य के मंत्री, आईएएस अधिकारी और पूर्व राज्यपाल तक शामिल हैं। इस मामले में इतनी मौतें और जांच एजेंसियों द्वारा संदिग्धों के खिलाफ कार्रवाई न करना सवालों के घेरे में हैं। इसमें शामिल संदिग्ध, जो बीजेपी या इसके संबंधित संगठनों से संबधित हैं, दिखाते हैं कि भगवा ब्रिगेड किस तरह से संगठित माफिया चला सकती है।

विकास का गड़बड़ियों भरा अफ़साना
हिमाचल में बीजेपी की सरकारों की विकासगाथा का प्रचार करने के लिए पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को चुना है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बीजेपी के स्टार कैंपनर हैं। वह जनाब हिमाचल के भोले-भाले लोगों को अपना विकास का विज़न पूरे आत्मविश्वास से सुना रहे हैं। हालांकि 60 दिनों के अंदर ही उनके गृहक्षेत्र गोरखपुर में एक मेडिकल हॉस्पिटल में 290 बच्चों की मौत हो गई। हिमाचलियों को ऐसे शख्स द्वारा विकास का भाषण देना हास्यास्पद है, जो ऐसे राज्य का मुखिया है जो पूरे देश में सबसे पिछड़ा माना जाता है।

क्या वह अपने राज्य की 57.18 प्रतिशत महिला साक्षरता दर का बखान कर रहे हैं जो हिमाचल में 75.9 फीसदी है? या क्या वह अपने राज्य की 36,250 रुपये प्रति व्यक्ति आय की बात कर रहे हैं जो हिमाचल में 1,04,000 से ज्यादा है? उत्तर प्रदेश को तुलना करनी ही है तो सहारा के पिछड़े राज्यों से करे। उल्टा योगी और उनकी पार्टी के शासित राज्यों को मृदुभाषी लोगों के राज्य हिमाचल से कुछ सीखकर जाना चाहिए।

पढ़ें: दिल्ली की तरह हिमाचल में लड़खड़ाती दिख रही है बीजेपी

विमुद्रीकरण देश की आर्थिक और वित्तीय स्वतंत्रता पर हमला था। जीएसटी को जल्दबाजी में लागू करने से देश की आर्थिक तरक्की बाधित हुई है। उत्पादन दर भी प्रभावित हुई है। कुलमिलाकर बात यह है कि बीजेपी न तो भ्रष्टाचार विरोधी है न विकास समर्थक। फिर भी यह कांग्रेस द्वारा दिखाई गई अयोग्यता का ढिंढोरा पीट रही है। अगर कांग्रेस के नेता मतदाताओं, पार्टी और देश के प्रति जरा से भी संवेदनशील होते, तो बीजेपी को इतनी आसानी से हावी होने का मौका नहीं मिलता।

(लेखक मुंबई के एक थिंक टैंक से जुड़े हुए हैं। वह राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं।)

ये लेखक के निजी विचार हैं

वीरभद्र को सलाखों के पीछे देखना चाहते हैं गुड़िया के पापा

शिमला।। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस में बयान दिया था कि ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। इसके बाद जनता में नाराजगी फैल गई थी और आंदोलन उग्र हो गया था। मगर चुनाव की घड़ी में फिर उन्होंने यही बात दोहराई है और इससे फिर से नाराज़गी देखी जा रही है। गौरतलब है कि पिछली बार दिए गए बयान के बाद गुड़िया के परिवार में भी नाराजगी थी और इसे लेकर फिर से वीरभद्र ने यह बयान दिया है। ‘द क्विंट’ से बातचीत में गुड़िया के नाराज़ पिता ने कहा है कि वह चाहते हैं कि वीरभद्र को सलाखों के पीछे बंद किया जाए।

पहले ‘न्यूज 18 हिमाचल’ का यह वीडियो देखें, जिसमें वीरभद्र पत्रकारों से बात करते हुए गुड़िया प्रकरण पर क्या कह रहे हैं। उन्होंने इसे मामूली मामला बताया और फिर डैमेज कंट्रोल करने के लिए गंभीर मामला बताने लगे मगर वह यह साबित करना चाहते थे कि ऐसी घटनाएं पूरे देश में होती हैं।

यही नहीं, उन्होंने झूठ भी बोला कि मैंने दूसरे दिन ही सीबीआई जांच के लिए चिट्ठी लिख दी थी। मगर वीरभद्र यह नहीं बता रहे कि अगर यह मामूली घटना थी और ऐसी घटनाएं पूरे देश में होती हैं तो आपकी पुलिस के अधिकारी क्यों जेल में हैं और आरोपी बेल पर क्यों हैं। जांच अधिकारी ही आरोपी की हिरासत में मौत को लेकर बंद हों और आरोपियों का अता-पता न हो तो क्या मामले को मामूली कहा जा सकता है?

बहरहाल, ‘द क्विंट’ की रिपोर्ट का नाम है- Remembering the Kothkai Rape Victim Whose Death Shocked India. इसमें मुख्यमंत्री के यह कहने पर कि ‘ऐसी घटनाएं होती रहती हैं’ से नाराज़ गुड़िया के पिता कहते हैं, “वीरभद्र की अपनी बेटी के साथ ऐसा हुआ होता तो? तब भी वह यही कहते? मैं चाहता हूं कि उन्हें लॉक अप में बंद किया जाए।”

(क्विंट में छपा गुड़िया के पापा का बयान) Courtesy: The Quint

‘द क्विंट’ की रिपोर्ट के मुताबिक कोटखाई, जहां यह वारदात हुई, उससे दूर जहां पर गुड़िया के परिजन रहते हैं, वह इलाका ठियोग मे पड़ता है और यही वजह हो सकती है कि वीरभद्र ठियोग से चुनाव के लिए खड़े नहीं हुए।

रिपोर्ट के मुताबिक गुड़िया के पिता आश्वस्त हैं कि कोई भी वीरभद्र को वोट नहीं देगा। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

हार का ठीकरा फोड़ने के लिए धूमल को CM का चेहरा बनाया गया: वीरभद्र

चंबा।। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने आक्रामक अंदाज़ में चुनाव प्रचार अभियान जारी रखा है। बीजेपी के नेताओं और खासकर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की जा रही बयानबाजी पर तो वीरभद्र पलटवार कर ही रहे हैं, उन्होंने कहा कि बीजेपी को हार सामने दिख रही है और इस हार ठीकरा फोड़ने के लिए ही प्रेम कुमार धूमल को सीएम कैंडिडेट बनाया गया है।

 

सिंहुता मैदान में उन्होंने सरकार की उपलब्धियों का गिनाया और फिर कहा, “भाजपा चुनाव में कांग्रेस से बुरी तरह डरी हुई है। पहले वह जेपी नड्डा को उम्मीदवार बनाना चाहती थी मगर हार का ठीकरा फोड़ने के लिए प्रेम कुमार धूमल को सीएम का चेहरा बना दिया।”

 

मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएम मोदी हिमाचल सौ बार आएं, उनका स्वागत है लेकिन सत्ता का दुरुपयोग करके वह हमें डरा लेंगे, यह उनकी गलतफहमी है। उन्होंने कहा कि हमारी हस्ती मिटाने के प्रयास हमें और मजबूती देते हैं।

 

वीरभद्र सिंह ने कहा कि बीजेपी ने बड़े नेता यहां डटे हैं और अभद्र भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमित शाह के बेटे का अस्सी करोड़ रुपये का घपला है, केंद्र को इशकी भी जांच करवानी चाहिए।

लाइव पोल में विकास के मामले में कांग्रेस पर भारी पड़ी बीजेपी

इन हिमाचल डेस्क।। लाइव रिऐक्शन के नतीजों के मुताबिक ऑनलाइन मौजूद रहने वाले लोगों को लगता है कि पिछले 20 सालों में कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी ने ज्यादा विकास करवाया है। पिछले 20 सालों में 10 साल कांग्रेस और 10 साल बीजेपी का शासन रहा है। यानी दोनों दल बारी-बारी दो-दो बार सत्ता में रहे हैं।

 

लाइव रिऐक्शन पोल में लोगों को रिऐक्ट करना होता है और उसके हिसाब से काउंटर ऑप्शन में ऐड हो जाता है। बीजेपी के पक्ष के लिए Love और कांग्रेस के लिए Wow का ऑप्शन था। पिछले लाइव पोल की ही तरह इस बार भी Like ऑप्शन को नहीं रखा गया था क्योंकि बहुत से लोग सबसे पहले वीडियो को लाइक करते हैं जिससे नतीजे प्रभावित होते हैं।

 

लगभग 46 मिनट तक चले लाइव पोल में 610 लोगों ने बताया कि उनकी नजर में बीजेपी की सरकारों ने ज्यादा विकास करवाया है जबकि 347 की राय में कांग्रेस ने ज्यादा विकास करवाया।

इससे एक दिन पहले पोल करवाया गया था कि वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल में से किसे जनता अगला सीएम देखना चाहती है। उस मामले में वीरभद्र सिंह बीजेपी के सीएम कैंडिडेट धूमल पर थोड़े से भारी पड़े थे, मगर यह अंतर ज्यादा नहीं था। उस लाइव पोल के नतीजे जानने के लिए यहां क्लिक करें।

लेख: हिमाचल में दिल्ली चुनाव की तरह लड़खड़ाती नजर आ रही है बीजेपी

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में आज प्रधानमंत्री के दो भाषण सुने। दोनों भाषणों में आधा वक्त तो प्रधानमंत्री जी ने आत्मस्तुति यानी अपनी तारीफ में बिता दिया। उन्होंने कहा, “आप सोचते होंगे कि मोदी कैसा आदमी है, इतना काम करता है, कभी छुट्टी भी नहीं लेता। सोचते हैं कि नहीं मित्रो?”

प्रधानमंत्री के लिए यह पहला मौका नहीं है कि वह आत्मस्तुति कर रहे हों। वह ऐसा करते रहे हैं और इसमें कुछ बुरा भी नहीं हैं। मगर उनके भाषणों में मैं हिमाचल के लिए कुछ योजनाएं, कुछ विज़न, कुछ प्लानिंग सुनना चाह रहा था मगर अफसोस, कुछ नहीं मिला। बस फौजी जवानों के नाम पर इमोशनल कार्ड खेलने की कोशिश, यह जताने की कोशिश कि मैं यहां का प्रभारी होते हुए कई जगह घूमा, वीरभद्र पर आरोप, कांग्रेस पर हमले और दो-चार ‘जुमले’ (अमित शाह जी की भाषा में) और भाषण खत्म।

किरन बेदी की तरह किया गया धूमल को आगे
बीजेपी की पूरी रणनीति जाने क्यों दिल्ली विधानसभा चुनावों की याद दिला रही है। बीजेपी का पूरा अमला उतर गया था आम आदमी पार्टी के खिलाफ प्रचार के लिए। आम आदमी पार्टी पर आरोपों पर आरोप लगाए जा रहे थे। बीजेपी अपना विज़न रखने के बजाय आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को कोसने में व्यस्त रही। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी वाले योजनाएं और सपने दिखाते गए। नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी ने ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाई और बीजेपी ने कुछ ही दिन पहले किरन बेदी को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया। नतीजा क्या रहा, सबके सामने है। पूरी दुनिया कहती रही कि यह मोदी की हार है, मगर कहीं न कहीं बीजेपी इस हार का दोष किरन बेदी को सीएम कैंडिडेट बनाने पर ट्रांसफर करती रही।

यही हाल हिमाचल में दिख रहे हैं। मोदी के बिलासपुर वाले भाषण और कल के दो भाषणों में फर्क था। वह भाषण आत्मविश्वास से भरा था। उसमें भी कांग्रेस औऱ वीरभद्र पर हमले किए गए थे मगर प्रधानमंत्री का अंदाज़ चुटीला था। कल के भाषणों में भी पीएम साहब ने कांग्रेस और वीरभद्र पर हमले किए मगर अंदाज़ चुटीला नहीं, नाराज़गी भरा था। वह जनता में मन में आक्रोश भरना चाहते थे कि कांग्रेस और वीरभद्र ने लूट लिया। एक जगह तो उन्होंने सड़ी हुई सोच वाली पार्टी बता दिया।

प्रधानमंत्री जी ने हिमाचल को लेकर कांगड़ा में तो पांच दानवों को खत्म करने की बात की, मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि इससे पहले जब उनकी ही पार्टी की सरकारें थीं और जिन्हें उनकी पार्टी सत्ता प्रमुख बनाने वाली है, वही तब भी सत्ताधीश थे, तब ये पांच दानव थे या नहीं और फले फूले या नहीं। मगर इलेक्शन में तो ठीकरा आंख मूंदर विरोधियों पर फोड़ दीजिए, क्या जाता है?

फलों का जूस कोल्डड्रिंक में मिलाया ही नहीं जा सकता
इसके अलावा प्रधानमंत्री जो विज़न रख रहे थे हिमाचल को लेकर और ये पेप्सी में फलों का जूस मिलाने वाली बात कर रहे थे। ये सारी बातें 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार में वह कह गए थे। और निहायत ही अव्यवहारिक आइडिया है। पेप्सी या कोक का अपना फॉर्म्यूला है अपना टेस्ट है। उसमें जबरन कोई कंपनी संतरे या सेब का रस मिलाएगी तो वह टेस्ट बरकरार रहेगा क्या?

अगर सरकार कहे कि आप अलग से फ्रूट प्रॉडक्ट लॉन्च करें, तो ऐशा भी नहीं किया जा सकता क्योंकि संविधान के आधार पर आप किसी को जबरन कोई प्रॉडक्ट लॉन्च करने को बाध्य नहीं कर सकते। वैसे प्रधानमंत्री 2014 में पहली बार यह बात कही थी और अब तीन साल बाद फिर कह रहे हैं। राज्य सरकार का यह मामला है नहीं, केंद्र का है। और अब तक केंद्र सरकार ने यह आइडिया इंप्लिमेंट नहीं करवाया तो आप विधानसभा में बीजेपी की सरकार बनने पर कैसे हो जाएगा?

कोल्ड ड्रिंक में फलों का जूस कैसे मिलाया जा सकता है?

दरअसल प्रधानमंत्री का यह आइडिया  तीन साल में इसलिए जमीन पर नहीं उतर पाया क्योंकि यह जुमले के अलावा कुछ नहीं है और व्यावहारिक भी नहीं। वैसा ही प्रधानमंत्री हवाई चप्पल और हवाई यात्रा वाले डायलॉग वाला भाषण भी याद है, जिसकी हकीकत यह है कि आम आदमी क्या, मध्यमवर्गीय आदमी भी शिमला से दिल्ली उड़ने से पहले बजट के बारे में सौ बार सोचे।

अमित शाह तो तड़ीपार कर दिए गए थे
और हां, प्रधानमंत्री ने करप्शन के आरोपों को लेकर वीरभद्र को शर्मिंदा किया। आरोपों को लेकर, फिर कहता हूं आरोपों को लेकर। उनपर लगे आरोप जब तक अदालत में साबित नहीं हो जाते, तब तक वह सिर्फ आरोपी हैं और दोषी नहीं हैं। आरोपी होने से कोई दोषी नहीं हो जाता। वैसे आरोप तो प्रधानमंत्री के ऊपर भी लगे थे और अमित शाह के ऊपर भी लगे थे और बड़े ही नृशंस लगे थे। तो क्या उन आरोपों के लगते ही वे भी दोषी हो गए थे? नैतिकता के आधार पर राजनीति छोड़कर वे गायब हो गए थे? और अमित शाह को तो गुजरात हाई कोर्ट ने तड़ीपार कर दिया था। बाद में अदालतों ने ही आरोपमुक्त किया था। तो फिर दूसरों की बारी में मामला अलग कैसे हो जाता है? वीरभद्र ने अपराध किया है तो एजेंसियां जांच कर रही हैं और कोर्ट तय करेगा। आप खुद ही जज तो नहीं हैं न?

हाई कोर्ट ने अमित शाह के गुजरात में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी

कहीं हाल दिल्ली जैसा न हो
खैर, ये सब बातें और आरोप वैसे ही हैं जैसे बीजेपी ने केजरीवाल ऐंड पार्टी पर लगाए थे। और ये सारा नकारात्मक प्रचार था। दिल्ली में बीजेपी अपना विजन रखने के बजाय इसी नेगेटिव प्रचार में जुटी थी और उसका सीधा फायदा पहुंच रहा था केजरीवाल को। नतीजा यह रहा कि आम आदमी पार्टी ने सफाया कर दिया। और ठीकरा फोड़ने के लिए किरन बेदी तो थी हीं। तो वीरभद्र जैसे मंजे हुए राजनेता की बात सही लगती नजर आ रही है कि पहले तो लगता था बीजेपी को कि आराम से जीत जाएंगे, मगर देखा कि जनता साइलेंट है तो कवर लेने के लिए धूमल को आगे कर दिया। जीते तो सेहरा मोदी के सिर बंधेगा और हारे तो ठीकरा धूमल के सिर फोड़ा जाएगा।

बहरहाल, चुनाव रोमांचक होते जा रहे हैं। अभी देखना होगा कि बीजेपी वक्त रहते संभलती है या नहीं और दिल्ली से सबक लेकर नेगेटिव प्रचार से बचकर अपनी उपलब्धियां और भविष्य की योजनाएं जनता के सामने रखती है या नहीं। वरना हिमाचल कहीं 1985 के बाद वह न हो जाए, जो अब तक हुआ नहीं है। सरकार रिपीट।

(लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

ये लेखक के निजी विचार हैं

विज़नहीन नेताओं की वजह से पिछड़ता चला गया हिमाचल

सुरेश चंबयाल।। जब से होश संभाला है, हिमाचल की राजनीति को बड़े करीब से देखता रहा हूं। हिमाचल में सत्ता के शीर्ष पर रहने वाले नेताओं ने कैसे-कैसे कब कहां कूटनीति से विरोधियों को चित किया, यह ताली बजा देने वाले लम्हे थे। मगर वक़्त के साथ मैंने देखा कि सत्ता के शीर्ष पर रहकर भी ये नेता लोग हिमाचल को आगे ले जाने के लिए कोई दिशा नहीं दे पाए।

उनकी जिंदगी और नीति बस कूटनीति की शतरंज के उन 68 खानों (जानता हूं 64 होते हैं परन्तु विधानसभा सीटों के आधार अपर 68 लिखा) तक सीमित रही। वो उस से बाहर कभी हिमाचल का भविष्य नहीं देख पाए। उन्हें सत्ता में रहने में मजा आता है। वो इसके मंजे हुए खिलाड़ी भी हैं। यह काबिल-ए-तारीफ़ भी है, मगर 80 के दशक के बाद से लेकर आज तक जो दशा-दिशा वे तय कर सकते थे, उसमें वे नाकाम रहे।

बेरोजगारों की लम्बी फौजें, खस्ताहाल स्वास्थ्य सुविधाएं, खराब सड़कें, कॉन्ट्रैक्ट दिहाड़ीदार एम्प्लॉयी, बद से बदतर होती शिक्षा व्यव्यस्था… क्या ये चीजें हिमाचल के नेताओं से इन इतने सालों के शासन का हिसाब नहीं मांगेगीं? वे लोग अपनी सत्ता के लिए अपने पार्टी के अंदर-बाहर के विरोधियों को तो चित करते रहे, मगर शह-मात के इस खेल में वे यह ध्यान नहीं दे पाए कि इस प्रदेश की उपलब्धियों का दायरा राष्ट्रीय भी हो सकता था।

आज हिमाचल के बुजुर्ग नेता कभी अवैध कब्जों को नियमित करते हैं तो कभी एक्स सर्विसमेन द्वारा किए गए कब्जों को नियमित करने का एलान करते हैं। और वे इसी मनोदशा में अगली जीत का स्वाद चखने के लिए बेता हैं, जिसे हिंदी में कहते हैं- तुष्टीकरण। नेतृत्व को समय से आगे रहना पड़ता है। समय से आगे सोचना पड़ता है। मगर हिमाचल के राजनेता कभी समय के कदम से कदम मिलाकर नहीं, बल्कि अपने नफे-नुकसान के हिसाब से चले।

भविष्य की राह देखती PTA, एसएमसी, पैट वगैरह-वगैरह अध्यापकों की फ़ौज किसकी नीति का परिणाम है? इन्हीं विज़नहीन नेताओं की। प्रदेश के लाखों स्नातक जम्मू-कश्मीर जाकर जिस दौर में B.Ed. करने जाते थे, उस दौर में हिमाचल की सरकारें कभी नहीं सोच पाई कि B. Ed. करने के लिए ऐसा क्या इंफ्रास्ट्रक्टर चाहिए, ऐसी क्या सुविधाएं, कितना बजट चाहिए कि हमारे लोगों को बाहर न जाना पड़े और वे हिमाचल में ही बी.एड कर सकें। मगर न जाने कितने ही लोग वहां से बी.एड करके आए।

फिर सरकारी टीचर लगने के लिए जहां तरफ जहां अच्छा-खासा कमिशन का टेस्ट पास करना होता था, वहां इन्हीं सरकारों ने चंद तनख्वाह पर पीटीए, एसएमसी और आउटसोर्स्ड आदि के नाम से लोगों को रख लिया गया। इनका न ढंग से टेस्ट होता था और न ही इंटरव्यू। होता भी था को क्या गारंटी उन लोगों पर स्थानीय नेताओं का दबाव न होता हो कि किसी रखना है किसे नहीं।  और फिर इन लोगों का शोषण करने राजनेताओं ने उन्हें रेग्युलर करने का कार्ड खेल दिया।

अब यह कहां का न्याय था कि एक तरफ़ तो कुछ लोगों को स्टेट लेवल का कमिशन देना पड़े, बाकायदा प्रतिस्पर्धा से आना पड़े और फिर नौकरी लगे, जबकि दूसरी तरफ मुख्यमंत्री उन लोगों के लिए नीति बनाने लगें जिनका इंटरव्यू प्रदान, प्रिंसिपल, सब्जेक्ट एक्सपर्ट आदि ने लिया हो। नौकरियों की तैयारी करते हुए कई साल खपाने के बाद लोग खुद खप गए, मगर वोट बैंक की राजनीति चलती रही।

इसका फायदा इन पीटीए, अनुबंध, आउटसोर्स्ड आदि कर्मचारियों को भी नहीं मिल पाया। वे आज बी कमशकश की स्थिति मे हैं। इतना समय नेताओं की चुग में पक्के होने के लिे गुजार दिए, मगर घोषणापत्रों में सिर्फ लॉलिपॉप मिला। अब अगर वे भावनात्मक आधार पर पक्के हो भी जाते हैं, तो उन लोगों का क्या होगा जो एक अदद टेस्ट और वेकंसी की राह देख रहे हैं?

अब कब्जे भी नियमित हो रहे हैं। नाजायज क्यों जायज हो रहा है, इसका न कोई सवाल करता है न कोई जबाब देता है। यह एक आधारशिला है आगे लोगों को यह बताने की जिसकी लाठी उसकी भैंस। सब कब्जे करो, सरकार वोट बैंक पर झुककर सब रेगुलर कर देगी। प्रदेश में लोग BA, MA करने के बजाय प्रफेशनल शिक्षा का रुख कर रहे हैं यहां के नेता लोग नए-नए कॉलेज खोले जा रहे हैं और पगड़ी कदमों में रख देने पर ऐलान कर दे रहे हैं कॉलेज खोलने का। एक बार इन नेताओं को प्रदेश के चार युवाओं को बुलाकर पूछना चाहिए कि क्या किसी कोने में बीए, बीएससी करवाने वाले कॉलेज की जरूरत है? कम से कम यही पता कर लीजिए कि अभी कॉलेजों की स्ट्रेंग्थ कितनी है।

जिन नए कॉलेजों का ऐलान किया जाता है, वे वर्षों तक पहले तो किराए पर चलते रहेंगे। न बच्चे पूरे होंगे न स्टाफ पूरा मिलेगा न शिक्षा मिलेगी। मिलेगा बस तुष्टीकरण। ऊपर से यह चरमराती हुई  शिक्षा व्यवस्था ताने मारती रहेगी और मज़बूरी का उपहास उड़ाती रहेगी। खासकर तब, जब हमारे बच्चे क्लर्क का एग्जाम भी पास नहीं कर पाएंगे। कौन इसका जिम्मेदार हुआ, कोई नहीं जानेगा। यही हालत स्वास्थ्य, पर्यटन, बागवानी, कृषि समेत तमाम क्षेत्रों की भी रही। टूरिस्ट अपने से आते हैं, अपने से जाते हैं मगर हम ढंग से कुछ डिवेलप नहीं कर पाए।

वक़्त के साथ मैंने यह जाना कि राजनीति के ये उस्ताद विज़न के हिसाब से प्रदेश को कुछ नहीं दे पाए और न ही अब देने की सोच रहे है। उम्मीद तो थी कि इन नेताओं के बीच कोई तो ऐसा आएगा जो कूटनीति से निकलकर हिमनीति पर चलेगा। मगर अफसोस, ऐसा होता दिख नहीं रहा। हिमाचल में शायद मौसम बदलने के लिए अभी इंतज़ार करना होगा। और यह बदलाव तभी होगा, जब जनता अपनी सोच बदलेगी।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विभिन्न मसलों पर लिखते रहते हैं। इन दिनों इन हिमाचल के लिए नियमित लेखन कर रहे हैं।)

DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं