हिमाचल सरकार फिर लेगी इतना कर्ज, साथ में केंद्र को लिखी लिमिट बढ़ाने की चिट्ठी

शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार ने वित्तीय बोझों को देखते हुए 1100 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का फैसला किया है। सरकार के सामने कर्मचारियों और पेंशनधारकों के एरियर देने के लिए संकट आन खड़ा हो गया है.

इन हालात में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को लिखा है कि वह 2023-24 वित्त वर्ष के लिए कर्ज लेने की सीमा बढ़ा दे। अगर केंद्र सरकार इसके लिए इजाजत देती है तो राज्य सरकार फिर से इसी महीने 1000 करोड़ रुपये का कर्ज लेगी।

राज्य सरकार ने कर्मचारियों को चार फीसदी डीए देने का एलान किया था। लेकिन डीए देना है तो पैसा चाहिए। इसके अलावा, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हाल ही में अपनी चुनावी गारंटी- 1500 रुपये हर महिला को हर महीने देने का एलान किया था। सरकार का कहना है कि इससे हर साल 800 करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
द ट्रिब्यून की खबर के अनुसार, कांग्रेस सरकार अब तक 7400 करोड़ रुपये का कर्ज इसी वित्त वर्ष में ले चुकी है। बीजेपी का आरोप है कि सत्ता संभालने के बाद से अब तक, 14 महीनों में सुक्खू सरकार ने 14 हजार करोड़ कर्ज ले लिया है।
हिमाचल प्रदेश पर अब कुल कर्ज 87 हजार 788 करोड़ रुपये हो गया है। यह जिक्र इस साल पेश किए गए बजट में किया गया था।
हिमाचल सरकार का कहना है कि कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए आग्रह इसलिए किया गया है ताकि प्रदेश में विकास कार्य प्रभावित न हों।
कांग्रेस और बीजेपी, दोनों एक दूसरे पर प्रदेश की आर्थिक स्थिति खरबा करने का आरोप लगाती हैं। लेकिन कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी सरकार की ओर से प्रदेश का राजस्व बढ़ाने और उसे आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए।

सुधीर शर्मा ने लिखी लंबी चिट्ठी, बताया अपना फ्यूचर प्लान….

शिमला।। हाल ही में राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को वोट देने वाले छह कांग्रेस विधायकों में शामिल रहे सुधीर शर्मा ने ट्विटर पर एक लंबी चिट्ठी लिख अपने कदम के बारे में और भविष्य को योजना के बारें में जानकारी दी है।

उन्होंने जो लिखा है, वह इस तरह से है

“भगवद गीता में एक श्लोक है जिसका भावार्थ है- ” अन्याय सहना उतना ही अपराध है, जितना अन्याय करना। अन्याय से लड़ना आपका कर्तव्य है।”

प्रिय हिमाचल वासियों, मेरे सामाजिक सरोकार, विकास के लिए मेरी प्रतिबद्धता और जन हित के लिए हमेशा आगे खड़े रहना मेरे खून में है और मुझे विरासत में मिला है. यह जज्बा मुझे सनातन संस्कृति और उस शिव भूमि ने दिया है जिसमें मैं पैदा हुआ हूं. मेरे स्वर्गीय पिता पंडित संतराम जी पूरा जीवन सच्चाई के रास्ते पर चलते रहे. स्वाभिमान का झंडा उन्होंने हमेशा बुलंद रखा. बैजनाथ की जनता दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हमेशा इसलिए उनके साथ चट्टान की तरह खड़ी रहती थी क्योंकि वह संघर्ष से तपकर कुंदन बने थे. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और हाई कमान भी उनकी हर बात पर सहमति की मोहर लगाता था. यह उस दौर का नेतृत्व था जो अपने कर्मठ नेताओं और कार्यकर्ताओं का सम्मान करना जानता था. उनकी बात सुनता था. उनके संघर्ष को और उनकी निष्ठाओं को मान्यता देता था।

उस दौर का शीर्षस्थ नेतृत्व वर्तमान नेतृत्व की तरह आंखें मूंद कर नहीं बैठता था. सच्चाई बताने वालों को जलील नहीं करता था बल्कि पार्टी की प्रति उनकी सेवाओं को अधिमान देता था और उनकी भावनाओं की कद्र करना जानता था।

आज स्थिति कहां से कहां पहुंच गई. मुझे तो साफगोई , ईमानदारी. जनता के साथ खड़े रहने की आंतरिक शक्ति पिताजी से ही विरासत में मिली. साथ ही यह सीख भी उन्हीं से मिली कि अन्याय के आगे कभी शीश मत झुकना और सीना तानकर डट जाना. पहाड़ के लोग ऊसूलो पर चलने वाले भावनात्मक लोग होते हैं और जो सीख उन्हें मिलती है, उसे ताउम्र अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लेते हैं. यह सीख मेरे रोम रोम में बसी है और गीता का ज्ञान मुझे सदैव ऊर्जवस्थित किये रखता है. तभी तो मैं अपनी बात की शुरुआत गीता के श्लोक से ही की है।

साथियो, प्रदेश में कांग्रेस सरकार को सत्ता में लाने के लिए हमने दिन-रात कितनी मेहनत की थी, इस बारे हाई कमान ने भले ही अपनी आंखों में पट्टी बांध रखी हो लेकिन आप सब से तो यह छिपा नहीं है. हमारा संघर्ष छिपा नहीं है. हमारा तप, त्याग और बलिदान छिपा नहीं है. हमने राजनीति में हर तरह के दौर देखे हैं. छात्र जीवन से ही की शुरुआत करके आप सबके स्नेह से , आपके सहयोग से, आपके भरोसे से निरंतर आगे बढ़े हैं और इलाके के विकास और जनहित को हमेशा सर्वोपरि रखा है. अग्रिम मोर्चे पर खड़े होकर प्रदेश हित की लड़ाई लड़ी है. कुर्सी पाने के लिए चापलूसी को अधिमान नहीं दिया. तलवे चाटने की राजनीति नहीं की बल्कि इलाका वासियों के साथ कहीं अन्याय होते देखा तो राजनीतिक नफा नुकसान को तरजीह देने की बजाय सरकार में रहते हुए भी अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की. जनता भलीभांति इस बात को जानती है कि मैं विकास का पक्षधर रहा हूं.. जनता की भावनाओं के साथ खड़ा रहा हूं.. हुकूमत के गलत फैसलों को चैलेंज करने में कभी पीछे नहीं रहा हूं.. मेरे लिए कुर्सी मायने नहीं रखती. मेरे लिए प्रदेश का स्वाभिमान मायने रखता है. मेरे लिए जनता का दुख दर्द मायने रखता है.. जनता की आशाओं को पूरा करने के लिए दिन-रात एक करना मायने रखता है.. और जनता के सपनों को धरातल पर उतारना मायने रखता है।

जब लगातार मुझे राजनीतिक तौर पर जलील किया जा रहा था, विकास के मामले में इलाके की अनदेखी की जा रही थी, मेरे जैसे पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाने के लिए घिनौनी हरकतें की जा रही थी, यहां तक कि मुझे रास्ते से हटाने के लिए पार्टी के भीतर ही किसी नेता ने कुछ ताकतों को सुपारी तक दे दी थी तो फिर खामोश कैसे बैठ जा सकता था.. हाई कमान की आंख पर पट्टी और प्रदेश के सत्ताधीश मित्र मंडली से घिरकर जब तानाशाह बन बैठे हों तो कायरों की तरह हम भीगी बिल्ली बनकर जनता के भरोसे को नहीं तोड़ सकते. पहाड़ के लोगों के साथ अन्याय होता नहीं देख सकते. किसी को प्रदेश हित गिरवी रखते नहीं देख सकते. सड़क पर धरना लगाए बैठे युवाओं की पीड़ा नहीं देख सकते।

हमारे सब्र का आखिर कितना इम्तिहान लिया जाना था. हमने कई बार कड़वे घूंट भरे .. विषपान भी किया.. लेकिन अंतत: हमारी अंतरात्मा और गीता के श्लोक ने हमें अन्याय का प्रतिकार करने के लिए खुलकर मैदान में आने के लिए प्रेरित किया और हमने जो कदम उठाया है,उस पर हमें नाज है … कहीं दूर-दूर तक कोई पछतावा नहीं है बल्कि इस फैसले के पीछे हिमाचल में एक नई रोशनी की आमद का स्वागत करना है.. एक नई सवेर इंतजार में है और हिमाचल के नवनिर्माण के लिए पूरे दुगने जोश से डट जाना है.. आपका स्नेह, आपका भरोसा, आपका विश्वास ही हमारी ताकत है और आगे भी रहेगी. हिमाचल के हित और स्वाभिमान की मशाल को हम अंतिम सांस तक उठाकर चलेंगे. इस लौ को बुझने नहीं देंगे।

जय श्री राम, जय हिमाचल, वंदे मातरम।”

 

पिछले एक साल में हिमाचल में बढ़ी बेरोज़गारी, इस रिपोर्ट में सामने आई बात

शिमला।।। एक ओर तो कांग्रेस ने पहली कैबिनेट में एक लाख सरकारी नौकरियां और पांच साल में पांच लाख रोज़गार देने की गारंटियां पूरी नहीं की है, दूसरी ओर इकनॉमिक सर्वे-2023-24 रिपोर्ट में पता चला है कि राज्य में बीते साल बेरोज़गारी दर बढ़ गई है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, बेरोज़गारी दर 2021-22 में बेरोज़गारी दर 4 फीसदी थी, जो 2022-23 में 4.4 फीसदी हो गई। रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण इलाक़ों की तुलना में प्रदेश के शहरी इलाक़ों में ज़्यादा लोग बेरोज़गार हैं।

राज्य के ग्रामीण इलाक़ो में महिलाओं और पुरुषों में बेरोज़दारी दर क्रमश: 3.8 और 3.3 फीसदी है। शहरों में यह प्रतिशत थोड़ा और ज़्यादा है।

हाालांकि, हिमाचल में बेरोज़दारी दर अन्य पड़ोसी राज्यों की तुलना में अभी भी कम है।

पूर्व विधायक बंबर ठाकुर और कुछ अन्य लोगों के बीच मारपीट

बिलासपुर।। बिलासपुर सदर के पूर्व विधायक बंबर ठाकुर, उनके बेटों और कुछ अन्य लोगों के बीच मारपीट की घटना सामने आई है। इस हमले में बंबर ठाकुर को चोटें आई हैं। इस मामले में 11 लोगों पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। शुक्रवार को इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था जबकि पांच की तलाश जारी है।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में बंबर ठाकुर बिल्डकॉन लिमिटेड रेलवे के अधिकारी के कार्यालय में कुछ बात करते दिख रहे हैं। इसमें कुछ लोग वीडियो बना रहे हैं, जिनकी बंबर ठाकुर से बहस होती दिख रही है। देखते ही देखते मामला धमकियों और खींचतान तक पहुंच गया।

बंबर ठाकुर की एक तस्वीर सामने आई जिसमें उनके चेहरे पर घाव नज़र आ रहे हैं। संभवत: यह उसी वीडियो के बाद आई चोटें हैं क्योंकि इस तस्वीर और बहस वाले वीडियो में उनके कपड़े एक जैसे हैं।

बिलासपुर सदर के पूर्व विधायक बंबर ठाकुर पर तलवारों से हमला

बंबर ठाकुर और उनके बेटे अक्सर विवादों में रहे हैं। उनपर कॉल करके धमकाने, मारपीट, हंगामे और कुछ अन्य संगीन मामलों में आरोप समय समय पर लगते रहे हैं। हालांकि, उनका कहना है कि ये सब बातें विपक्षियों की साजिश है। इस बार भी उनके समर्थकों ने हमले का आरोप बीजेपी पर लगाया है।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने कहा है कि बंबर ठाकुर पर हमला करने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि समाज विरोधी तत्वों और हिंसा या उपद्रव फैलाने वालों को किसी कीमत सहन नहीं किया जाना चाहिए।

बंबर ठाकुर से जुड़े विवादों की कुछ खबरें पढ़ने के लिए यहां टैप करें

स्कूलों में बच्चों के पैसों से नेताओं और चमचों को क्यों दिए जाते हैं मोमेंटो?

देवेंद्र।। सरकारी स्कूलों में वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह हो रहे हैं। आपको पता होगा कि इन समारोहों में स्कूली बच्चों को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाता है और यही इन समारोहों का मुख्य उद्देश्य है। लेकिन ठहरिए, बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। असल कहानी कुछ और है।

समारोह में बुलाया किसे जाता है? नेता जी को या सत्ताधारी दल से जुड़े नुमाइंदों को। असल में ये कार्यक्रम अब वार्षिक पारितोषिक समारोह नहीं रहे। ये तो नेताओं और उनके साथ आए लोगों को मोंमटो, स्मृति चिह्न वितरण समारोह बनकर रह गए हैं।

मुख्यातिथि द्वारा पहले ही लिस्ट सौंप दी जाती है कि मेरे इस फलां चमचे को मोमेंटो, शॉल या टोपी देकर सम्मानित किया जाए। कई बार तो इस सूची में 20 से लेकर 50-50 लोग होते हैं। अफसोस कि ऐसे-ऐसे लोगों को भी सम्मानित किया जाता है, जिनका उस विद्यालय या वहां पढ़ने वाले बच्चों के हित में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से एक पैसे तक का योगदान नहीं होता।

इन लोगों को भेंट किया जाने वाला स्मृति चिन्ह 200 रुपये से लेकर 2500 तक की कीमत का होता है। लेकिन स्कूली बच्चों को दिया जाने वाले पुरस्कार 50 रुपए से लेकर 200 रुपये तक की कीमत का होता है।

ये कैसी अंधेरगर्दी है कि बच्चों के लिए बच्चों द्वारा आयोजित समारोह को ये नेता और तथाकथित समाजसेवी लूटकर ले जाते हैं। बच्चों के हिस्से बस बूंदी-बदाना आता है और बाकी सारे मेवे और धाम अति विशिष्ट लोग उड़ा ले जाते हैं।

क्या आपको यह प्रश्न खुद से नहीं पूछना चाहिए कि आपके बच्चे के कार्यक्रम में स्कूल वाले रेवड़ियों की तरह नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं को स्मृति चिन्ह क्यों बांटते फिरते हैं?

कई जगह स्कूल मुखिया व स्टाफ अपने निजी हित साधने के लिए भी ऐसा करते हैं। आखिर क्या यह पैसा स्कूल मुखिया या नेता अपनी जेब से देते हैं? नहीं, यह पैसा या तो अभिभावकों से इकट्ठा किया जाता है या फिर स्कूल के स्टाफ से चाहते न चाहते इसके लिए योगदान लिया जाता है।

वर्तमान सरकार यदि इस तरह के आयोजनों में हो रहे इस खेल को बंद कर दे तो इससे व्यवस्था परिवर्तन तो होगा ही, साथ ही बच्चे भी लाभान्वित होंगे।

कार्यकर्ताओं व अन्य लोगों को पुरस्कृत करने से कहीं अच्छा है, स्कूली आयोजनों में भाग लेने वाले प्रत्येक बच्चे को पुरस्कृत किया जाए। इससे भविष्य में उसे और बेहतर व अलग करने की प्रेरणा मिलेगी।

(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे Writerdevender@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)

सरकार गोबर खरीदने के लिए तैयार, बनाई यह योजना

शिमला।। कृषि और पशुपालन मंत्री चंद्र कुमार ने कहा – जनवरी से शुरू होगी गोबर की खरीद। ब्लॉक स्तर पर क्लस्टर बनाए जाएंगे।

खबर है कि योजना के लिए पशुपालन और कृषि विभाग के दो नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। पहले चरण में एक ब्लॉक से 250 किसानों को पंजीकृत किया जाएगा।

गौरतलब है कि चुनाव से पहले कांग्रेस ने तीन रुपए किलो की दर से गोबर खरीदने की गारंटी दी थी। अब यह योजना लागू होगी। जो गोबर सरकार खरीदेगी, वह सूखा होना चाहिए।

पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा पर सचिन श्रीधर ने किया एक करोड़ मानहानि का केस, दिल्ली की अदालत ने जारी किया नोटिस

शिमला।। पिछले दिनों चर्चा में रहे पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा को दिल्ली के साकेत कोर्ट से एक करोड़ के मानहानि दावे का नोटिस जारी हुआ है। यह नोटिस दिल्ली के कारोबारी सचिन श्रीधर की याचिका पर जारी किया गया, जिनपर निशांत शर्मा ने प्रभाव का इस्तेमाल करने के आरोप लगाए थे।

सचिन श्रीधर की वकील नियति पटवर्धन ने कहा, “सचिन श्रीधर पर निशांत शर्मा नाम के शख्स ने मीडिया में आकर निराधार आरोप लगाए हैं। इन झूठे, निराधार और अपमानजनक बयानों से मेरे मुवक्किल की छवि को नुकसान पहुंचाया हैं। उन्होंने कभी निशांत से मुलाकात नहीं की और न ही बात की है। निशांत दुष्प्रचार कर रहे हैं और उन्हें साकेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के एडीजे कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। एक करोड़ रूपये के हर्जाने की मांग की गई है।”

गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के डीजीपी संजय कुंडू ने भी कारोबारी निशांत शर्मा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया था।

इससे पहले निशांत ने अपने और अपने परिवार की सुरक्षा को खतरे बारे में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट को ईमेल के माध्यम से अवगत करवाया था। उनका यह भी आरोप था कि उन पर गुरुग्राम में हमला हुआ, जिसको लेकर गुरुग्राम में एफआईआर दर्ज करवाई गई।

निशांत ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया था कि इसके बाद उन्हें मैक्लोडगंज में मामला वापस लेने लिए दो लोगों ने धमकाया। वहीं, निशांत शर्मा का यह भी कहना था कि उन्हें डीजीपी कार्यालय से 14 बार फोन किया गया।

यह मामला हिमाचल हाईकोर्ट में भी चल रहा है। निशांत के भेजे ईमेल पर कोर्ट ने संज्ञान लिया था। प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट को बताया है कि आरोपों की छानबीन की जा रही है।

डेप्युटी सीएम और सीपीएस मामले में सुक्खू सरकार को हाईकोर्ट में झटका

शिमला।। सुक्खू सरकार को हाईकोर्ट में झटका। सरकार ने दलील दी थी कि डेप्युटी सीएम और CPS की नियुक्ति को चुनौती देने वाली बीजेपी विधायकों की याचिका सुनवाई करने योग्य नहीं है।

हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज किया और याचिका को मैंटेनेबल पाया। मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।

आसान शब्दों मे जानें, आखिर ‘बादल फटना’ होता क्या है

इन हिमाचल डेस्क।। ‘बादल फटना’ शब्द अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है। कहीं भी बारिश के बाद अगर तुरंत तेज बहाव वाला पानी आता है या कहीं बारिश के बाद भूस्खलन होता है तो उसे भी अखबार और पोर्टल आदि ‘बादल फटने’ का नाम दे देते हैं। क्या वाकई बादल फटा होता है? जानें, बादल फटने की घटना के पीछे के कारण।

बादल कभी नहीं फट सकता
जी हां, इस घटना को बेशक बादल फटना कहा जाता है मगर बादल वास्तविकता में कभी ‘फट’ नहीं सकता क्योंकि यह कोई गुब्बारा नहीं होता। हालांकि यह बात सच है कि बादल फटना, जिसे क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) कहा जाता है, उसका नामकरण गुब्बारों के कारण ही हुआ था।

जहां कहीं यह घटना होती है, वहां पर बेतहाशा बारिश होती है। इतनी कि आप देखकर ही डर जाएं। तो शुरू में लोगों का मानना था कि जिस तरह से पानी से भरा गुब्बारा फटे तो पानी तुरंत नीचे गिरता है, वैसे ही बादल फट जाता है और उसका पानी तुरंत नीचे गिरकर भारी तबाही मचाता है।

चूंकि अब विज्ञान ने तरक्की की है और हमें पता है कि बादलों में दरअसल पानी की अति सूक्ष्म बूंदें होती हैं जिनके संघनन (Condensation) के कारण बूंदें बनती हैं और बारिश होती है। लेकिन फिर भी अचानक भारी बारिश होने को आज भी क्लाउडबर्स्ट या बादल फटना ही कहा जाता है।

बादल फटने की घटना में होता क्या है?
बादल फटने का मतलब है बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश हो जाना। कई बार बारिश के साथ ओले भी गिरते हैं और तेज गड़गड़ाहट व बिजली चमकने की घटनाएं भी होती हैं। अगर किसी जगह पर 100 मिलीमीटर प्रतिघंटे के बराबर या इससे ज्यादा बारिश हो तो उसे ‘बादल फटना’ कहा जाता है।

ऊपर जो मानक बताया, वह स्टैंडर्ड माना जाता है। हालांकि अलग-अलग देशों में इसके लिए अलग-अलग पैमाने तय किए गए हैं। उदाहरण के लिए स्वीडन में अगर एक मिनट में एक मिलीमीटर बारिश हो या एक घंटे में पचास मिलीमीटर या ज्यादा बारिश हो तो उसे ‘स्काइफॉल’ का नाम दिया जाता है जो कि ‘क्लाउडबर्स्ट’ के समान अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है।

इस बारिश से क्या होता है?
जब कभी बादल फटने की घटना होती है, तब कुछ ही देर में 25 मिलीमीटर तक बारिश हो जाती है। इस घटना में कुछ ही देर में एक वर्ग किलोमीटर इलाके में 25 हजार मीट्रिक टन पानी बरस जाता है।

अचानक एक ही इलाके में इतनी भारी बारिश होने के कारण पानी को जमीन के अंदर जाने या नदी-नालों तक धीमी रफ्तार से पहुंचने का समय नहीं मिलता। इस कारण होता यह है कि बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। नदी-नालों में अचानक ही पानी बढ़ जाता है जिसे फ्लैशफ्ल़ड कहा जाता है। जमीन का क्षरण होता है और तुरंत बहने लगती है। वनस्पति तक उखड़ जाती है और ढीली जमीन में स्खलन हो जाता है। नतीजा- भारी तबाही। उदाहरण के लिए नीचे का वीडियो देखिए। ऊपर इलाके में हुई भारी बारिश के कारण यह फ्लैश फ्लड आया है।

हिमाचल में कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जब बादल फटता है तब जमीन के नीचे से भी पानी निकलने लगता है। वास्तव में ऐसा नहीं होता। हां, भारी बारिश के कारण ऐसा स्थिति पैदा हो जाती है कि ज़मीन पानी को सोख नहीं पाती। इसका नतीजा यह होता है कि भारी बारिश के कारण जमीन पर जमा पानी पर जब बारिश की मोटी बूंदें गिरती हैं तो ठहरा पानी कई इंच तक उछलने लगता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जमीन से भी पानी निकल रहा हो। इलके अलावा, कई बार लगातार बारिश होने के कारण जमीन से पानी रिसने लगता है जिसे पहाड़ी भाषाओं में पानी कुडणा भी कहा जाता है। मगर बादल फटने पर हमेशा जमीन से पानी निकले, ऐसा संभव नहीं है।

अचानक इतनी बारिश कैसे होती है?
अचानक भारी बारिश तभी होती है जब कभी गर्म हवा का हिस्सा ठंडी हवा के संपर्क में आता है। जब थोड़े गरम वाष्पकण अपेक्षाकृत ठंडे वाष्पकणों से मिलते हैं तो संघनन (Condensation) की रफ्तार तेज हो जाती है और तेजी से पानी की बूंदें बड़ा आकार लेकर बरसने लगती हैं।

भारत और आसपास के देशों में बादल फटने की घटनाएं अक्सर मॉनसून में होती हैं। जब बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठे बादल हिमालय में आकर बरसते हैं, एक घंटे में 75 एमएम तक बारिश होती है। हालांकि यह भी एक मिथक है कि बादल फटने की घटनाएं तभी होती हैं जब बादल अचानक पहाड़ या किसी भूभाग से टकरा जाएं। मैदानी इलाकों में भी खूब ऐसी घटनाएं होती हैं।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों में भारी बारिश के कारण तबाही होती है और संभव है कि वह बादल फटने के कारण होती हों। मगर चूंकि गांवों में बारिश मापने के उपकरण नहीं लगे होते, इसलिए पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वहां मची तबाही ‘बादल फटने’ की परिभाषा के अनुरूप हुई बारिश के कारण हुई है या नहीं। इसीलिए आमतौर पर बारी बारिश के कारण मची तबाही को अखबार आदि बादल फटना कह देते हैं।

बहरहाल, नीचे देखें बादल फटने की घटनाओं में कम समय में हुई रिकॉर्ड बारिश के आंकड़े-

अवधि बारिश जगह तिथि
1 minute 1.5 inches (38.10 mm) Basse-Terre, Guadeloupe 26 November 1970
5.5 minutes 2.43 inches (61.72 mm) Port Bell, Panama 29 November 1911
15 minutes 7.8 inches (198.12 mm) Plumb Point, Jamaica 12 May 1916
20 minutes 8.1 inches (205.74 mm) Curtea de Argeș, Romania 7 July 1947
40 minutes 9.25 inches (234.95 mm) Guinea, Virginia, United States 24 August 1906
1 hour 9.84 inches (250 mm) Leh, Jammu and Kashmir, India August 5, 2010
1 hour 5.67 inches (144 mm) Pune, Maharashtra, India September 29, 2010
1.5 hours 7.15 inches (182 mm) Pune, Maharashtra, India October 4, 2010
5 hours 15.35 inches (390 mm) La Plata, Buenos Aires, Argentina April 2, 2013
10 hours 57.00 inches (1,448 mm) Mumbai, Maharashtra, India July 26, 2005
24 hours 54.00 inches (1,372 mm) Pithoragarh, Uttarakhand, India July 1, 2016
13 hours 45.03 inches (1,144 mm) Foc-Foc, La Réunion January 8, 1966
20 hours 91.69 inches (2,329 mm) Ganges Delta, Bangladesh/India January 8, 1966

टेबल- विकिपीडिया से साभार.

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रोहड़ू में नेपाली बच्चे के साथ दुर्व्यवहार, हिमाचल शर्मसार

इन हिमाचल डेस्क।। शिमला के रोहड़ू में एक बच्चे को नंगा करके पीटा गया। आंखों में मिर्ची डाली गई। और ऐसा एक व्यक्ति ने नहीं, समूह ने किया औऱ वीडियो भी बना दिया।
नेपाली मूल के इस बच्चे की मां बीमार थी और अस्पताल में भर्ती थी। जिस दिन उसके साथ ये सब हुआ, उसी रात मां की मौत हो गई। कहा जा रहा है कि यह बच्चा कुरकुरे चुराने की कोशिश कर रहा था। अगर उसने चोरी की भी थी तो आप खुद थानेदार बनने वाले कौन होते हैं?
इस घटना ने लोगों के चेहरे पर चढ़ा सादगी का नक़ाब उतार फेंका है। ये सब दिखाता है कि लोगों में उन प्रवासियों के प्रति कितनी नफरत भरी है, जिनके बिना उनके कई काम ठप हो जाएंगे। पता चलता है कि कैसे लोगों को अपने से कमजोर को पीड़ित करने में ताकत का अहसास होता है।
सबसे दुख की बात यह है कि भीड़ भी खामोश होकर देखती रही। यह दिखाता है कि लोग दूसरों को कष्ट देने में आनंद लेने लगे हैं, सैडिटिस्क प्लैज़र तलाशने लगे हैं। और फिर ढोंग यह कि बाहर वाले बुरे हैं, हम हिमाचली तो बहुत सीधे हैं।
एक घटना का दोष सब पर नहीं थोपा जा सकता. मगर इस विषय पर चुप्पी क्यों? किसी प्रवासी ने अगर ऐसा व्यवहार स्थानीय के साथ किया होता तब भी ऐसी ही खामोशी छाई रहती?
यह तो वीडियो बाहर आ गया वरना कभी इस घटना का पता नहीं चलता। पुलिस और कानून को इस मामले में जो कार्रवाई करनी है तो वह होगी। लेकिन प्रश्न यह है कि एक समाज के तौर पर हम कहां जा रहे हैं?
किसी को तो भीड़ से आगे आना चाहिए था। वहां किसी डर के मारे वह ऐसा नहीं कर सका तो बाद में पुलिस को बताना चाहिए था।
अफ़सोस कि हम हिमाचलियों को आईना दिखाया जाए तो हम बिदक जाते हैं। हम सुधार नहीं करते, उल्टा आईना दिखाने वाले को ही भला बुरा कहने लगते हैं।