देवेंद्र।। सरकारी स्कूलों में वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह हो रहे हैं। आपको पता होगा कि इन समारोहों में स्कूली बच्चों को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाता है और यही इन समारोहों का मुख्य उद्देश्य है। लेकिन ठहरिए, बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। असल कहानी कुछ और है।
समारोह में बुलाया किसे जाता है? नेता जी को या सत्ताधारी दल से जुड़े नुमाइंदों को। असल में ये कार्यक्रम अब वार्षिक पारितोषिक समारोह नहीं रहे। ये तो नेताओं और उनके साथ आए लोगों को मोंमटो, स्मृति चिह्न वितरण समारोह बनकर रह गए हैं।
मुख्यातिथि द्वारा पहले ही लिस्ट सौंप दी जाती है कि मेरे इस फलां चमचे को मोमेंटो, शॉल या टोपी देकर सम्मानित किया जाए। कई बार तो इस सूची में 20 से लेकर 50-50 लोग होते हैं। अफसोस कि ऐसे-ऐसे लोगों को भी सम्मानित किया जाता है, जिनका उस विद्यालय या वहां पढ़ने वाले बच्चों के हित में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से एक पैसे तक का योगदान नहीं होता।
इन लोगों को भेंट किया जाने वाला स्मृति चिन्ह 200 रुपये से लेकर 2500 तक की कीमत का होता है। लेकिन स्कूली बच्चों को दिया जाने वाले पुरस्कार 50 रुपए से लेकर 200 रुपये तक की कीमत का होता है।
ये कैसी अंधेरगर्दी है कि बच्चों के लिए बच्चों द्वारा आयोजित समारोह को ये नेता और तथाकथित समाजसेवी लूटकर ले जाते हैं। बच्चों के हिस्से बस बूंदी-बदाना आता है और बाकी सारे मेवे और धाम अति विशिष्ट लोग उड़ा ले जाते हैं।
क्या आपको यह प्रश्न खुद से नहीं पूछना चाहिए कि आपके बच्चे के कार्यक्रम में स्कूल वाले रेवड़ियों की तरह नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं को स्मृति चिन्ह क्यों बांटते फिरते हैं?
कई जगह स्कूल मुखिया व स्टाफ अपने निजी हित साधने के लिए भी ऐसा करते हैं। आखिर क्या यह पैसा स्कूल मुखिया या नेता अपनी जेब से देते हैं? नहीं, यह पैसा या तो अभिभावकों से इकट्ठा किया जाता है या फिर स्कूल के स्टाफ से चाहते न चाहते इसके लिए योगदान लिया जाता है।
वर्तमान सरकार यदि इस तरह के आयोजनों में हो रहे इस खेल को बंद कर दे तो इससे व्यवस्था परिवर्तन तो होगा ही, साथ ही बच्चे भी लाभान्वित होंगे।
कार्यकर्ताओं व अन्य लोगों को पुरस्कृत करने से कहीं अच्छा है, स्कूली आयोजनों में भाग लेने वाले प्रत्येक बच्चे को पुरस्कृत किया जाए। इससे भविष्य में उसे और बेहतर व अलग करने की प्रेरणा मिलेगी।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे Writerdevender@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)
शिमला।। कृषि और पशुपालन मंत्री चंद्र कुमार ने कहा – जनवरी से शुरू होगी गोबर की खरीद। ब्लॉक स्तर पर क्लस्टर बनाए जाएंगे।
खबर है कि योजना के लिए पशुपालन और कृषि विभाग के दो नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। पहले चरण में एक ब्लॉक से 250 किसानों को पंजीकृत किया जाएगा।
गौरतलब है कि चुनाव से पहले कांग्रेस ने तीन रुपए किलो की दर से गोबर खरीदने की गारंटी दी थी। अब यह योजना लागू होगी। जो गोबर सरकार खरीदेगी, वह सूखा होना चाहिए।
शिमला।। पिछले दिनों चर्चा में रहे पालमपुर के कारोबारी निशांत शर्मा को दिल्ली के साकेत कोर्ट से एक करोड़ के मानहानि दावे का नोटिस जारी हुआ है। यह नोटिस दिल्ली के कारोबारी सचिन श्रीधर की याचिका पर जारी किया गया, जिनपर निशांत शर्मा ने प्रभाव का इस्तेमाल करने के आरोप लगाए थे।
सचिन श्रीधर की वकील नियति पटवर्धन ने कहा, “सचिन श्रीधर पर निशांत शर्मा नाम के शख्स ने मीडिया में आकर निराधार आरोप लगाए हैं। इन झूठे, निराधार और अपमानजनक बयानों से मेरे मुवक्किल की छवि को नुकसान पहुंचाया हैं। उन्होंने कभी निशांत से मुलाकात नहीं की और न ही बात की है। निशांत दुष्प्रचार कर रहे हैं और उन्हें साकेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के एडीजे कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। एक करोड़ रूपये के हर्जाने की मांग की गई है।”
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के डीजीपी संजय कुंडू ने भी कारोबारी निशांत शर्मा के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करवाया था।
इससे पहले निशांत ने अपने और अपने परिवार की सुरक्षा को खतरे बारे में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट को ईमेल के माध्यम से अवगत करवाया था। उनका यह भी आरोप था कि उन पर गुरुग्राम में हमला हुआ, जिसको लेकर गुरुग्राम में एफआईआर दर्ज करवाई गई।
निशांत ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया था कि इसके बाद उन्हें मैक्लोडगंज में मामला वापस लेने लिए दो लोगों ने धमकाया। वहीं, निशांत शर्मा का यह भी कहना था कि उन्हें डीजीपी कार्यालय से 14 बार फोन किया गया।
यह मामला हिमाचल हाईकोर्ट में भी चल रहा है। निशांत के भेजे ईमेल पर कोर्ट ने संज्ञान लिया था। प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट को बताया है कि आरोपों की छानबीन की जा रही है।
शिमला।। सुक्खू सरकार को हाईकोर्ट में झटका। सरकार ने दलील दी थी कि डेप्युटी सीएम और CPS की नियुक्ति को चुनौती देने वाली बीजेपी विधायकों की याचिका सुनवाई करने योग्य नहीं है।
हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज किया और याचिका को मैंटेनेबल पाया। मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी।
इन हिमाचल डेस्क।। ‘बादल फटना’ शब्द अखबारों, टीवी और सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है। कहीं भी बारिश के बाद अगर तुरंत तेज बहाव वाला पानी आता है या कहीं बारिश के बाद भूस्खलन होता है तो उसे भी अखबार और पोर्टल आदि ‘बादल फटने’ का नाम दे देते हैं। क्या वाकई बादल फटा होता है? जानें, बादल फटने की घटना के पीछे के कारण।
बादल कभी नहीं फट सकता जी हां, इस घटना को बेशक बादल फटना कहा जाता है मगर बादल वास्तविकता में कभी ‘फट’ नहीं सकता क्योंकि यह कोई गुब्बारा नहीं होता। हालांकि यह बात सच है कि बादल फटना, जिसे क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) कहा जाता है, उसका नामकरण गुब्बारों के कारण ही हुआ था।
जहां कहीं यह घटना होती है, वहां पर बेतहाशा बारिश होती है। इतनी कि आप देखकर ही डर जाएं। तो शुरू में लोगों का मानना था कि जिस तरह से पानी से भरा गुब्बारा फटे तो पानी तुरंत नीचे गिरता है, वैसे ही बादल फट जाता है और उसका पानी तुरंत नीचे गिरकर भारी तबाही मचाता है।
चूंकि अब विज्ञान ने तरक्की की है और हमें पता है कि बादलों में दरअसल पानी की अति सूक्ष्म बूंदें होती हैं जिनके संघनन (Condensation) के कारण बूंदें बनती हैं और बारिश होती है। लेकिन फिर भी अचानक भारी बारिश होने को आज भी क्लाउडबर्स्ट या बादल फटना ही कहा जाता है।
बादल फटने की घटना में होता क्या है? बादल फटने का मतलब है बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश हो जाना। कई बार बारिश के साथ ओले भी गिरते हैं और तेज गड़गड़ाहट व बिजली चमकने की घटनाएं भी होती हैं। अगर किसी जगह पर 100 मिलीमीटर प्रतिघंटे के बराबर या इससे ज्यादा बारिश हो तो उसे ‘बादल फटना’ कहा जाता है।
ऊपर जो मानक बताया, वह स्टैंडर्ड माना जाता है। हालांकि अलग-अलग देशों में इसके लिए अलग-अलग पैमाने तय किए गए हैं। उदाहरण के लिए स्वीडन में अगर एक मिनट में एक मिलीमीटर बारिश हो या एक घंटे में पचास मिलीमीटर या ज्यादा बारिश हो तो उसे ‘स्काइफॉल’ का नाम दिया जाता है जो कि ‘क्लाउडबर्स्ट’ के समान अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है।
इस बारिश से क्या होता है? जब कभी बादल फटने की घटना होती है, तब कुछ ही देर में 25 मिलीमीटर तक बारिश हो जाती है। इस घटना में कुछ ही देर में एक वर्ग किलोमीटर इलाके में 25 हजार मीट्रिक टन पानी बरस जाता है।
अचानक एक ही इलाके में इतनी भारी बारिश होने के कारण पानी को जमीन के अंदर जाने या नदी-नालों तक धीमी रफ्तार से पहुंचने का समय नहीं मिलता। इस कारण होता यह है कि बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। नदी-नालों में अचानक ही पानी बढ़ जाता है जिसे फ्लैशफ्ल़ड कहा जाता है। जमीन का क्षरण होता है और तुरंत बहने लगती है। वनस्पति तक उखड़ जाती है और ढीली जमीन में स्खलन हो जाता है। नतीजा- भारी तबाही। उदाहरण के लिए नीचे का वीडियो देखिए। ऊपर इलाके में हुई भारी बारिश के कारण यह फ्लैश फ्लड आया है।
हिमाचल में कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जब बादल फटता है तब जमीन के नीचे से भी पानी निकलने लगता है। वास्तव में ऐसा नहीं होता। हां, भारी बारिश के कारण ऐसा स्थिति पैदा हो जाती है कि ज़मीन पानी को सोख नहीं पाती। इसका नतीजा यह होता है कि भारी बारिश के कारण जमीन पर जमा पानी पर जब बारिश की मोटी बूंदें गिरती हैं तो ठहरा पानी कई इंच तक उछलने लगता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जमीन से भी पानी निकल रहा हो। इलके अलावा, कई बार लगातार बारिश होने के कारण जमीन से पानी रिसने लगता है जिसे पहाड़ी भाषाओं में पानी कुडणा भी कहा जाता है। मगर बादल फटने पर हमेशा जमीन से पानी निकले, ऐसा संभव नहीं है।
अचानक इतनी बारिश कैसे होती है? अचानक भारी बारिश तभी होती है जब कभी गर्म हवा का हिस्सा ठंडी हवा के संपर्क में आता है। जब थोड़े गरम वाष्पकण अपेक्षाकृत ठंडे वाष्पकणों से मिलते हैं तो संघनन (Condensation) की रफ्तार तेज हो जाती है और तेजी से पानी की बूंदें बड़ा आकार लेकर बरसने लगती हैं।
भारत और आसपास के देशों में बादल फटने की घटनाएं अक्सर मॉनसून में होती हैं। जब बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठे बादल हिमालय में आकर बरसते हैं, एक घंटे में 75 एमएम तक बारिश होती है। हालांकि यह भी एक मिथक है कि बादल फटने की घटनाएं तभी होती हैं जब बादल अचानक पहाड़ या किसी भूभाग से टकरा जाएं। मैदानी इलाकों में भी खूब ऐसी घटनाएं होती हैं।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कई गांवों में भारी बारिश के कारण तबाही होती है और संभव है कि वह बादल फटने के कारण होती हों। मगर चूंकि गांवों में बारिश मापने के उपकरण नहीं लगे होते, इसलिए पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि वहां मची तबाही ‘बादल फटने’ की परिभाषा के अनुरूप हुई बारिश के कारण हुई है या नहीं। इसीलिए आमतौर पर बारी बारिश के कारण मची तबाही को अखबार आदि बादल फटना कह देते हैं।
बहरहाल, नीचे देखें बादल फटने की घटनाओं में कम समय में हुई रिकॉर्ड बारिश के आंकड़े-
अवधि
बारिश
जगह
तिथि
1 minute
1.5 inches (38.10 mm)
Basse-Terre, Guadeloupe
26 November 1970
5.5 minutes
2.43 inches (61.72 mm)
Port Bell, Panama
29 November 1911
15 minutes
7.8 inches (198.12 mm)
Plumb Point, Jamaica
12 May 1916
20 minutes
8.1 inches (205.74 mm)
Curtea de Argeș, Romania
7 July 1947
40 minutes
9.25 inches (234.95 mm)
Guinea, Virginia, United States
24 August 1906
1 hour
9.84 inches (250 mm)
Leh, Jammu and Kashmir, India
August 5, 2010
1 hour
5.67 inches (144 mm)
Pune, Maharashtra, India
September 29, 2010
1.5 hours
7.15 inches (182 mm)
Pune, Maharashtra, India
October 4, 2010
5 hours
15.35 inches (390 mm)
La Plata, Buenos Aires, Argentina
April 2, 2013
10 hours
57.00 inches (1,448 mm)
Mumbai, Maharashtra, India
July 26, 2005
24 hours
54.00 inches (1,372 mm)
Pithoragarh, Uttarakhand, India
July 1, 2016
13 hours
45.03 inches (1,144 mm)
Foc-Foc, La Réunion
January 8, 1966
20 hours
91.69 inches (2,329 mm)
Ganges Delta, Bangladesh/India
January 8, 1966
टेबल- विकिपीडिया से साभार.
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इन हिमाचल डेस्क।। शिमला के रोहड़ू में एक बच्चे को नंगा करके पीटा गया। आंखों में मिर्ची डाली गई। और ऐसा एक व्यक्ति ने नहीं, समूह ने किया औऱ वीडियो भी बना दिया।
नेपाली मूल के इस बच्चे की मां बीमार थी और अस्पताल में भर्ती थी। जिस दिन उसके साथ ये सब हुआ, उसी रात मां की मौत हो गई। कहा जा रहा है कि यह बच्चा कुरकुरे चुराने की कोशिश कर रहा था। अगर उसने चोरी की भी थी तो आप खुद थानेदार बनने वाले कौन होते हैं?
इस घटना ने लोगों के चेहरे पर चढ़ा सादगी का नक़ाब उतार फेंका है। ये सब दिखाता है कि लोगों में उन प्रवासियों के प्रति कितनी नफरत भरी है, जिनके बिना उनके कई काम ठप हो जाएंगे। पता चलता है कि कैसे लोगों को अपने से कमजोर को पीड़ित करने में ताकत का अहसास होता है।
सबसे दुख की बात यह है कि भीड़ भी खामोश होकर देखती रही। यह दिखाता है कि लोग दूसरों को कष्ट देने में आनंद लेने लगे हैं, सैडिटिस्क प्लैज़र तलाशने लगे हैं। और फिर ढोंग यह कि बाहर वाले बुरे हैं, हम हिमाचली तो बहुत सीधे हैं।
एक घटना का दोष सब पर नहीं थोपा जा सकता. मगर इस विषय पर चुप्पी क्यों? किसी प्रवासी ने अगर ऐसा व्यवहार स्थानीय के साथ किया होता तब भी ऐसी ही खामोशी छाई रहती?
यह तो वीडियो बाहर आ गया वरना कभी इस घटना का पता नहीं चलता। पुलिस और कानून को इस मामले में जो कार्रवाई करनी है तो वह होगी। लेकिन प्रश्न यह है कि एक समाज के तौर पर हम कहां जा रहे हैं?
किसी को तो भीड़ से आगे आना चाहिए था। वहां किसी डर के मारे वह ऐसा नहीं कर सका तो बाद में पुलिस को बताना चाहिए था।
अफ़सोस कि हम हिमाचलियों को आईना दिखाया जाए तो हम बिदक जाते हैं। हम सुधार नहीं करते, उल्टा आईना दिखाने वाले को ही भला बुरा कहने लगते हैं।
धर्मशाला। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि सबको खबरें देने वाले पत्रकार खुद ही खबर बन जाएं। हिमाचल में ऐसा ही देखने को मिला जब एक पत्रकार ने न सिर्फ एक बड़ी खबर सबके सामने लाई बल्कि एक बड़े गोरखधंधे को भी पोल खोल दी। हिमाचल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सबसे पुराने पत्रकारों में शुमार मृत्युंजय पुरी का नाम इन दिनों चर्चा में है। मृत्युंजय पुरी ने हाल ही में ऐसे रैकिट का पर्दाफाश किया है जो लोगों के बैंक खाते खुलवाकर खाताधारकों को बिना बताए करोड़ों का लेनदेन कर रहा था।
कांगड़ा शहर के निकट घुरकड़ी के रहने वाले मृत्युंजय पुरी की कर्मभूमि इन दिनों धर्मशाला शहर है। वह चंडीगढ़ समेत कई शहरों में विभिन्न मीडिया संस्थानों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। फील्ड रिपोर्टिंग का अनुभव रखने वाले पुरी ने इस केस की सूचना मिलने पर पहले तथ्य जुटाए, उसके बाद पुलिस की इस केस को हल करने में मदद की। यही कारण है कि अब तक इस मामले में पुलिस 11 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है। मामले का पटाक्षेप होने के बाद एसपी कांगड़ा शालिनी अग्निहोत्री ने बाकायदा प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कहा कि पुरी की मदद से यह केस सॉल्व हुआ है।
बड़ा रैकिट
लोगों के बैंक खाते खुलवाकर खाताधारकों को बिना बताए उनके खातों से करोड़ों रुपये के अवैध लेनदेन मामले में कांगड़ा पुलिस ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें से दो लोग हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ और पपरोला से हैं, जबकि पुलिस ने पंजाब के मोहाली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के नौ लोगों को भी गिरफ्तार किया है। आरोपियों से पुलिस ने अब तक 13 लैपटॉप, 38 मोबाइल, 34 डेबिट-क्रेडिट कार्ड और 33 सिम कार्ड के अलावा अन्य सामान बरामद किया है।
पुलिस अधीक्षक कांगड़ा शालिनी अग्निहोत्री ने बताया कि 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि अभी मुख्य सरगना समेत और भी गिरफ्तारियां हो सकती हैं। जिनके खाते से और जिन बैंकों से लेनदेन हुआ है, उन्हें भी जांच के दायरे में लिया जाएगा।
अभी इस लेनदेन को ऑनलाइन सट्टा और गेमों में लगाए जाने के तथ्य सामने आए हैं। पुलिस अधीक्षक ने बताया कि एसएचओ सुरेंद्र कुमार की अगवाई में गठित टीम ने मोहाली के चार फ्लैटों में दबिश दी थी, जिनमें से दो फ्लैट से नौ आरोपियों को गिरफ्तार कर वहां पर से संदिग्ध सामान जब्त किया है। जब्त मोबाइल, लैपटॉप और हार्ड डिस्क से डाटा की जांच होगी।
इस मामले को सामने लाने वाले पत्रकार मृत्युंजय पुरी की क्राइम समेत कई अन्य मुद्दों पर अच्छी पकड़ है। कई मामलों में ऐसा देखा गया है जब धर्मशाला ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य हिस्सों के लोगों ने भी अपराध या अन्य विषयों से परेशान होकर पुरी से संपर्क साधा और पुरी ने उनकी आवाज उठाई। इस बार उन्होंने ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया है जिसकी गतिविधियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरनाक साबित हो सकती थीं। जांच के बाद इस मामले में अभी और भी कई जानकारियां सामने आ सकती हैं।
इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश की एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स ने सोलन के परवाणु में तीन युवकों से 22.29 ग्राम चिट्टा (हेरोइन) और 1.56 ग्राम मेथाम्फेटामीन बरामद किया है। ये युवक चंडीगढ़ और पंजाब के रहने वाले हैं।
मेथाम्फेटामीन (methamphetamine) या मेथ वही ड्रग है जिसके इर्द-गिर्द नेटफ्लिक्स की पॉप्युलर सीरीज Breaking Bad बनाई गई थी। यह ड्रग न सिर्फ हेरोइन की तुलना में ज्यादा नशीला होता है बल्कि इसकी लत लगने पर इससे पीछा छुड़ाना भी बहुत मुश्किल होता है।
ड्रग्स में आजकल जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है, वह है चिट्टा। आए दिन पढ़ने को मिलता है कि चिट्टे के साथ इतने लोग गिरफ्तार या इतना चिट्टा बरामद। पंजाबी और उसकी उपभाषाओं या बोलियों में चिट्टा का मतलब होता है- सफेद। पहले पंजाब में सिर्फ हेरोइन को चिट्टा कहा जाता था क्योंकि इसका रंग सफेद होता था। मगर अब चिट्टे की परिभाषा, व्यापक हो गई है।
हेरोइन तो अफीम से बनने वाला ड्रग है लेकिन अब और भी कई सिंथेटिक ड्रग्स इस्तेमाल होने लगे हैं जो देखने में सफेद ही होते हैं। इस कारण उन्हें भी चिट्टा ही कहा जाने लगा है। ये सिंथेटिक ड्रग्स हैं- MDMA , जिसे ecstasy भी कहा जाता है, LSD (lysergic acid diethylamide ) और मेथाम्फेटामीन (methamphetamine)।
यानी चिट्टा कोई एक ड्रग नहीं है। वह हेरोइन भी हो सकता है, मेथाम्फेटामीन भी, MDMA भी और LSD भी। इसलिए किसी को ड्रग्स के साथ पकड़ा जाए और वह सफेद रंग का हो तो यह लैब टेस्टिंग के बाद ही पक्के तौर पर पता चल पाता है कि कौन सा सिंथेटिक ड्रग है। मगर कॉमन भाषा में उसे चिट्टा कह दिया जाता है और अखबार भी वैसे ही छाप देते हैं। हालांकि, इस बार खबर यह आई है कि हिमाचल पुलिस ने युवकों ने चिट्टा (हेरोइन) भी पकड़ा है और मेथ भी। आइए जानते हैं, कितना खतरनाक होता है मेथ।
ये दोनों ही ड्रग्स, हेरोइन और मेथ, हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम के लिए उत्तेजक की तरह काम करते हैं। यानी हमारे दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बीच के उस महत्वपूर्ण हिस्से की गतिविधियों को बढ़ा देता है, जिसका काम शरीर के विभिन्न हिस्सों से सिग्नल लेना है और कोई हरकत करने के लिए संदेश भेजना है। इन दोनों ड्रग्स को कई तरह से लिया जाता है। सीधे मुंह से निगलकर, नाक से सूंघकर, धुएं के जरिए, नस में इंजेक्शन लगाकर, मांसपेशियों में इंजेक्शन लगाकर या फिर त्वचा के बाहरी हिस्से में इंजेक्शन लगाकर। इसके अलावा गूदा या योनि में रखकर भी इसे इस्तेमाल किया जाता है।
तो इस लेख में इन्हीं दो ड्रग्स के बारे में जानिए, कितने खतरनाक हैं ये। पहले बात करेंगे हेरोइन की, फिर मेथ की। चूंकि मेथ अब ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है, इसलिए उसके ऊपर जरा विस्तार से जानेंगे।
क्या है हेरोइन (heroin) हेरोइन ऐसा नशीला पदार्थ है जिसे लोग आनंद के लिए लेना शुरू करते हैं और फिर इसके गुलाम बनकर रह जाते हैं। आपने मॉरफ़ीन का नाम सुना है? जी हां, वही मॉरफीन जो दवा है और गंभीर दर्द से बचाने के लिए मरीजों को दी जाती है। मॉरफीन और हेरोइन, दोनों ही अफीम से तैयार होते हैं। फर्क इतना है कि मॉरफीन की तुलना में हेरोइन करीब तीन गुना ज्यादा स्ट्रॉन्ग होता है।
मॉरफीन एक दवा है और मेडिकल फील्ड में ही इसे इस्तेमाल किया जाता है। अमूमन आप इसे आप ब्लैक मार्केट में नहीं पा सकते। जबकि हेरोइन ब्लैक मार्केट में ही उपलब्ध होता है। मॉरफीन तैयार करने में सावधानी बरती जाती है, हर चीज का ध्यान रखा जाता है क्योंकि इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है। जबकि हेरोइन को अवैध ढंग से बिना ध्यान दिए तैयार कर दिया जाता है क्योंकि इसे नशे के लिए इस्तेमाल करना होता है।
क्या है मेथाम्फेटामीन
अगर आपने नेटफ्लिक्स पर Breaking Bad देखा होता तो आप Methamphetamine (मेथाम्फेटामीन) या मेथ (Meth) से परिचित होंगे। लैब में बनाए जाने वाले इस नशीले पदार्थ के क्रिस्टल स्वरूप को Crystal Meth कहते है।
1893 में खोजे गए इस ड्रग का असर यह होता है कि कम मात्रा में लिया जाए तो आनंद का अनुभव होता है, आदमी ज्यादा अलर्ट हो जाता है, उसकी कॉन्सेन्ट्रेशन बढ़ जाती है और अगर कोई थक गया तो उसकी एनर्जी बढ़ती है। इससे भूख कम हो जाती है और वजन कम करने में मदद मिलती है। लेकिन यह पढ़कर खुश होने की जरूरत नहीं है कि ये तो फायदेमंद है।
इसकी जरा सी भी ज्यादा डोज मतिभ्रम, मिर्गी जैसे दौरे पड़ने और दिमाग में खून का रिसाव होने जैसी हालत पैदा कर देती है। आदमी अपने मूड पर कंट्रोल नहीं कर पाता और अजीब व्यवहार करने लगता है। यही नहीं, ऐसे शोध भी हैं कि इस कारण इंसान की यौन इच्छाएं बेहद बढ़ जाती हैं और वे कई दिनों तक सेक्स के जुनून के आगे मजबूर हो जाते हैं, वे संतुष्ट नहीं हो पाते।
मेथ को दवा के तौर पर कम ही इस्तेमाल किया जाता है मगर नशे के लिए इसे बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। बाकी देशों में तो इसके मेडिकल यूज के उदाहरण नहीं मिलते, मगर अमरीका में मेथ को ADHD नाम के डिसऑर्डर के इलाज के लिए अप्रूव किया गया है। यह एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति को अपने आसपास की चीजें समझने में दिक्कत होती है, वह कॉन्सेन्ट्रेट नहीं कर पाता और कई बार उसका व्यवहार उसकी उम्र के अनुरूप नहीं होता।
इसके अलावा अमरीका में बच्चों और व्यस्कों में मोटापे का इलाज करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। मगर बावजूद इसके बहुत ही दुर्लभ मामलों में इसे इस्तेमाल किया जाता है और वह भी पूरी निगरानी के साथ। ऐसा इसलिए क्योंकि इस ड्रग के दुरुपयोग की आशंकाएं ज्यादा रहती हैं। अमरीका में हालात ये हैं कि ‘पार्टी ऐंड प्ले’ में यह खूब यूज होता है। पार्टी ऐंड प्ले में लोग इंटरनेट डेटिंग साइट के माध्यम से आपस में जुड़ते हैं, इस ड्रग को लेते हैं और फिर सेक्स करते हैं। मेथ कुछ इस तरह से असर डालता है कि लोग कई दिनों तक सेक्स में डूबे रहते हैं।
नुकसान
मौज-मौज में आनंद के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला मेथ आदमी को बर्बाद कर देता है। आइए पहले शारीरिक नुकसान की बात करते हैं। चिट्टे की लत के शिकार लोगों के दांत समय से पहले टूटना शुरू हो जाते हैं। इस हालत को मेथ माउथ कहा जाता है। ये उन लोगों में ज्यादा होता है, जो ड्रग को इंजेक्शन के माध्यम से लेते है। भूख कम लगना, ज्यादा ही ऐक्टिव हो जाना, ज्यादा पसीना निकलना, मुंह सूखना, दिल की धड़कन कभी तेज होना तो कभी कम हो जाना, बीपी बढ़ना या घटना, सांस तेजी से लेना, स्किन ड्राई हो जाना, धुंधला दिखाई देना, दस्त या कब्ज होना और देखने में पीले से नजर आना। ये सब मेथ के साइड इफेक्ट हैं।
चूंकि मेथ के नशे में आदमी सेक्स के आगे मजबूर होता है तो वह यह भी नहीं सोचता कि कहां किससे और किस हालत में सेक्स कर रहा है। इस कारण यौन रोगों के फैलने की आशंका बनी रहती है। अक्सर देखा गया है कि ड्रग्स लेने वाले अपने ग्रुपों में रहते हैं, उनके बीच इस तरह का अनप्रॉटेक्टेड सेक्स होने के कारण इन रोगों के फैलने की आशंका ज्यादा होती है। ऊपर से वे एक ही सीरिंज इस्तेमाल करते हैं तो हैपेटाइटस से लेकर एचआईवी तक से संक्रमित हो सकते हैं।
दूसरी बात आती है कि मानसिक नुकसान की। बेचैनी, अवसाद, आत्महत्या का विचार और मन में अजीब कल्पनाएं करने की स्थिति इस ड्रग से पैदा हो जाती है। इससे न्यूरोटॉक्सिसिटी हो जाती है और पूरे शरीर का सिस्टम गड़बड़ा जाता है। अब नशे के आदी लोगों को पता तो है नहीं कि किस मात्रा में ड्रग उनके लिए तुरंत जानलेवा हो सकता है। उन्हें क्वॉलिटी और क्वॉन्टिटी का होश नहीं रहता। इसलिए जरा सी ओवरडोज़ उनका खेल खत्म कर सकती है। जैसे कि दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है, पेशाब करने में दर्द होने लगता है तो कई बार पेशाब आता ही नहीं, भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है, शरीर का तापमान बढ़ जाता है, घबराहट होने लगती है।
इनमें सबसे खराब स्थिति है साइकोसिस। इस स्थिति में आदमी यह फर्क नहीं कर पाता कि वह असल जिंदगी में है या ख्वाब देख रहा है। वह कल्पनाएं करने लगता है। दिमाग उसे अजीब चीजें दिखाता है। और कई बार इलाज न मिले समय पर तो 5–15% लोग पूरी तरह रिकवर नहीं हो पाते। यानी यूं समझ लें कि उनका दिमाग हमेशा के लिए हिल जाता है। वे अपना स्थायी नुकसान कर बैठते है।
खतरनाक है लत
एक बारे जिसे लत लग जाए, उसके लिए इसे छोड़ना मुश्किल है। एक शोध के मुताबिक, मेथ के आदी 61 लोगों को इलाज के एक साल बाद फिर से इलाज के लिए लाना पड़ा। और उनमें से आधे लोग आगे के 10 सालों में फिर से मेथ इस्तेमाल करने लगे। समस्या ये है कि इसकी लत से बाहर निकालने के लिए इलाज का कोई एकदम प्रभावी तरीका अभी तक नहीं मिल पाया है। इसके लिए अभी कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी को ही इस्तेमाल किया जाता है। यानी काउंसलिंग आदि से आदमी से व्यवहार को बदलने की कोशिश की जाती है।
जो लोग मेथ इस्तेमाल करते हैं, धीरे-धीरे उन्हें डोज़ बढ़ानी बड़ती है क्योंकि शरीर में ड्रग के लिए धीरे-धीरे टॉलरेंस पैदा हो जाती है। अन्य ड्रग्स की तुलना में यह टॉलरेंस बहुत तेजी से पैदा होती है। इस कारण अगर किसी को चिट्टे से दूर करना हो, बड़ी मुश्किल हो जाती है। ऐसे समझिए कि किसी से मेथ छुड़ाने से ज्यादा आसान है कोकीन छुड़ाना।
अगर किसी से मेथ छुड़ाया जाए तो वो बेचैन हो जाता है। उसे तलब लगती है ड्रग की। मूड बदलता रहता है, थकान होती है। भूख बहुत बढ़ जाती है। कई बार वह सुस्त हो जाता है। हताश हो जाता है। या तो नींद उड़ जाती है या फिर उसे बहुत नींद आती है। वह अजीब-अजीब सपने देखता है।
दूरी में ही भलाई
1893 में जापान के केमिस्ट नगाइ नगायोशी ने मेथ डिवेलप किया था। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी में ये टैबलेट के तौर पर बिकने लगा था। जर्मन सैनिक परफॉर्मेंस बढ़ाने के लिए इसे इस्तेमाल करते थे। मगर इतिहासकारों ने लिखा है कि वे सैनिक जॉम्बी जैसी हरकतें करते थे। उनका दिमाग सुन्न सा हो जाता था। दो-तीन इसी के नशे में रहते थे। कई बार आम नागरिकों को मार देते तो कई बार अपने ऑफिसरों पर हमला कर देते।
बीच में इसे दवा के तौर पर भी इस्तेमाल किया गया मगर देखा गया कि फायदे के बजाय नुकसान ज्यादा हैं, इसका इस्तेमाल बंद कर दिया गया या सीमित कर दिया गया। लेकिन यही मेथ आज हेरोइन के साथ मिलकर पंजाब और हिमाचल को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। आए दिन ऐसी खबरें छप रही हैं जिसमें चिट्टे की लत के शिकार बच्चे अपने माता-पिता से मारपीट कर रहे हैं या घर का सामान तक बेच रहे हैं।
ड्रग्स की इस समस्या के लिए कौन जिम्मेदार है और इससे कैसे निपटा जा सकता है, इस पर जल्द बात करेंगे। तब तक आप In Himachal से जुड़िए रहिए, हमारे फेसबुक पेज को लाइक कीजिए। इस आर्टिकल को शेयर कीजिए और युवाओं को पढ़ाइए।
शिमला।। हिमाचल प्रदेश को देश का इंडस्ट्रियल हब बनाने की दिशा में किए जा रहे कामों की जानकारी देते हुए सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि उनकी सरकार कई नीतियां लेकर आई है ताकि निवेश को बढ़ावा दिया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य बीस हजार करोड़ का निवेश लाना है ताकि चालीस से पचास हजार लोगों को रोजगार मिल सके। सीएम ने कहा कि सरकार इस दिशा में विभिन्न कदम उठाने के साथ-साथ जमीन खरीदने के लिए धारा 118 के तहत अनुमति देने की प्रक्रिया में भी तेजी लाई जाएगी।
सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सीएम ने कहा कि हिमाचल प्रदेश को देश के पसंदीदा निवेश गंतव्य के रूप में विकसित करने के लिए, राज्य सरकार द्वारा कई नई नीतियां अपनाई गई हैं, जैसे कि राज्य वित्त निगम और नए उद्योगों की स्थापना के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों के माध्यम से सस्ती बिजली, आसान ऋण सुविधाएं देना।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उद्योगों को कम दर पर जमीन उपलब्ध करवाई जा रही है और उन्हें सेल्स और परचेज़ टैक्स से भी छूट दी जा रही है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश टेनेंसी ऐंड लैंड रिफॉर्म्स ऐक्ट 1972 की धारा 118 के तहत जमीन खरीदने के लिए मिलने वाली इजाजत में हो रही देरी के विषय पर भी काम करेगी।
सीएम ने कहा कि राज्य के बाहर निकटतम रेलवे स्टेशन से कच्चे माल की ढुलाई के शुल्क पर रियायतें प्रदान की जा रही हैं, साथ ही अन्य सीमांत लाभों का प्रावधान भी किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि राज्य में स्थापित 99 प्रतिशत उद्यम सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। उद्योग विभाग इन उद्यमों की समस्याओं की पहचान करने और उनके उपयुक्त निवारण के लिए विस्तृत सर्वेक्षण करेगा। प्रदेश में ‘एक जनपद, एक उत्पाद’ की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए यूनिटी मॉल की स्थापना की जाएगी।
राज्य सरकार हिमाचल में औद्योगिक निवेश बढ़ाने के लिए उद्योगपतियों से अनिवार्यता प्रमाणपत्र की अनिवार्यता को समाप्त करने पर विचार कर रही है। सुक्खू ने कहा कि नई औद्योगिक नीति में इस संबंध में प्रावधान किया जाएगा। सीएम ने कहा कि इसके अलावा, उद्योग विभाग में निवेश प्रोत्साहन ब्यूरो की स्थापना की जा रही है, जो मौजूदा सिंगल विंडो सिस्टम की जगह लेगा। यह ब्यूरो संभावित निवेशकों को एक ही छत के नीचे सभी मंजूरी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में सामाजिक और शैक्षणिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए भी काम करेगी ताकि वहां काम करने वालों को रहने के लिए अच्छा माहौल मिले।
शिमला।। रितेश कपरेट बने मुख्यमंत्री के OSD (Political Affairs)। कांग्रेस में विभिन्न दायित्व संभाल चुके कपरेट सरकार और पार्टी में समन्वय बिठाने की जिम्मेदारी संभालेंगे।
कांग्रेस सरकार में नवीन नियुक्ति के तहत रितेश कपरेट को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का विशेष कार्याधिकारी (OSD) राजनीतिक मामले ( Political Affairs) नियुक्त किया गया है। कपरेट कांग्रेस के केंद्रीय संगठन और प्रादेशिक संगठन के साथ सरकार का सामंजस्य देखेंगे तथा कांग्रेस के पदाधिकारियों का मुख्यमंत्री के साथ तालमेल देखेंगे।
रितेश मूल रूप से शिमला जिला से संबंध रखते हैं और कांग्रेस छात्र विंग एनएसयूआई से राजनीति की शुरुआत की। राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस संगठन में चुनाव के तहत नियुक्तियों की शुरुआत की गई तब कपरेट युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव चुनकर आए। गौरतलब है कि उस दौरान युवा संगठन में चुनकर आए अन्य प्रतिनिधि अनिरुद्ध सिंह, विक्रमादित्य सिंह, रघुवीर सिंह बाली और आशीष बुटेल पहले से ही सरकार का मुख्य हिस्सा हैं इसी कड़ी में कपरेट का नाम भी जुड़ गया है। कपरेट चालीस वर्ष की अल्पायु में ही जिला शिमला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने थे।
रितेश मुख्यमंत्री सुक्खू के करीबी माने जाते हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री सुक्खू जब चुनाव प्रचार कमेटी के अध्यक्ष थे उस समय कपरेट प्रदेश महासचिव के रूप में उनके साथ अटैच थे तथा अध्यक्ष के सारे प्रदेश कार्यक्रम कारडीनेट करते थे।
अक्टूबर 2017 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव कपरेट को सुक्खू ने शिमला ग्रामीण का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। तत्कालीन सीएम वीरभद्र ने इसका विरोध किया था। उनके दवाब के आगे कांग्रेस संगठन ने यशवंत छाजटा शिमला ग्रामीण का अध्यक्ष बना दिया और कपरेट को संगठन सचिव बना दिया। मगर सुक्खू अड़ गए और कपरेट को शिमला ग्रामीण का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए रखा।
कपरेट को मुख्य तौर पर संगठन का व्यक्ति माना जाता है। कांग्रेस संगठन के विभिन्न विंग्स में लंबे अनुभव के तहत उन्हें यह कार्यभार सौंपा गया है।