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Saturday, September 13, 2025
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कब तक होती रहेंगी हिमाचल में सड़क दुर्घटनाएं?

विवेक अविनाशी।।
हिमाचल प्रदेश में  सड़क दुर्घटनाओं  में मरने वालों की तादाद प्रति वर्ष लगातार बढती ही जा रही है। पहाड़ों की सर्पीली सडकों पर यातायात का एक मात्र साधन हैं बसें और यदि थोड़ी सी भी चूक हो जाए तो दुर्घटनाओं की सम्भावनाएं ज्यादा बन जाती हैं। उपलब्ध आंकड़ों पर यदि गौर करें तो प्रदेश में प्रतिदिन 9 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें चार लोग प्रतिदिन हताहत होते हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार इन दुर्घटनाओं को रोक नहीं पा रही क्योंकि अधिकांश दुर्घटनाएं मानवीय चूक के कारण होती हैं।वर्ष 1982 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बस दुर्घटनाओं के कारणों की जांच के लिए कौल सिंह की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था। इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में अधिकांश बस दुर्घटनाएं चालकों की लापरवाही से होती हैं। यह अजीब संयोग है इस समिति की रिपोर्ट ठन्डे बस्ते में डाल दी गयी थी। यह भी चौंका देने वाला तथ्य है कि हिमाचल में 97.84 प्रतिशत बस दुर्घटनाएं चालकों के शराब पीने के बाद ही मानवीय चूक के कारण होती हैं।

मानवीय भूल की वजह से होते हैं अधिकतर हादसे

इन बस दुर्घटनाओं का कारण प्रदेश की बदहाल सडकें भी हैं।  हिमाचल प्रदेश में 30,000 किलोमीटर से अधिक मोटर योग्य सडकें हैं, लेकिन सचाई यह है कि केवल 60 प्रतिशत सडकें ही पक्की और तारकोल युक्त हैं। इन कच्ची सडकों पर थोड़ी सी भी बारिश हो जाए तो यातायात भू-स्खलन के कारण रुक जाता है या फिर जोखिम भरा हो जाता है। प्रदेश सरकार ने हिमाचल की सडकों पर सारे राज्य में ऐसे 314 स्थान चिन्हित किए हैं जहां दुर्घटनाओं  की सम्भावनाएं बराबर बनी रहती हैं।

चंडीगढ़-मनाली सड़क पर तो ऐसे बहुत से स्थल है जहां हर साल कोई न कोई सड़क दुर्घटना अवश्य होती है। कई बार तो ऐसा लगता है जैसे इन स्थलों को किसी देवता ने शाप दे रखा हो। लोगों ने इन स्थलों पर प्रदेश में देवताओं के  मन्दिर भी बनाए हैं और उधर से गुजरते हुए ट्रक अथवा बस-चालक इन देव-मन्दिरों में शीश नवा कर आगे बढ़ते हैं। यह भ्रम है या असलियत, यह तो विचारणीय विषय है लेकिन ऐसे मन्दिर हिमाचल की बहुत सी सड़कों के किनारे देखे जा सकते हैं।

हादसे वाली जगहों पर इस तरह के मंदिर देखने को मिल जाते हैं Courtesy: tarungoel.in

हिमाचल सरकार ने प्रदेश की सड़कों की नियमित जांच के लिए कोई भी कारगर तरीका अभी तक लागू नही किया है। सड़कों के रख-रखाव, नियमित मरम्मत आदि के लिए जो भी एजेंसीज काम करती हों, उन्हें एकसाथ मिलकर काम करने के लिए एक अलग से प्राधिकरण की आवश्यकता है, जो पहाड़ की सड़कों को जलवायु व अन्य मानकों के आधार पर नियमित रूप से संवार सके। हिमाचल सरकार यदि समय रहते सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम नही उठाएगी तो इसका विपरीत असर  हिमाचल के  पर्यटन उद्योग पर भी पड़ सकता है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)

भरमौरी कैलाश मणिमहेश का इतिहास : पंडित गोपाल दास

  • पंडित गोपाल दास 
धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है और हजारों वर्षो से श्रद्धालु इस मनोरम शैव तीर्थ की यात्रा करते आ रहे हैं। यहां मणिमहेश नाम से एक छोटा सा पवित्र सरोवर है जो समुद्र तल से लगभग 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी सरोवर की पूर्व की दिशा में है वह पर्वत जिसे कैलाश कहा जाता है। इसके गगनचुम्बी हिमाच्छादित शिखर की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 18,564 फुट है। मणिमहेश-कैलाश क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में चम्बा जिले के भरमौर में आता है। चम्बा के ”गजटियर- 1904” में उपलब्ध जानकारी के अनुसार सन् 550 ईस्वी में भरमौर शहर सूर्यवंशी राजाओं के मरु वंश के राजा मरुवर्मा की राजधानी था।  भरमौर में स्थित तत्कालीन मंदिर समूह आज भी उस समय के उच्च कला-स्तर को संजोये हुए अपना चिरकालीन अस्तित्व बनाए हुए हैं। इसका तत्कालीन नाम था ‘ब्रह्मपुरा’ जो कालांतर में भरमौर बना। भरमौर के एक पर्वत शिखर पर ब्रह्माणी देवी का तत्कालीन मंदिर है। यह स्थान ब्रह्माणी देवी की पर्याय बुद्धि देवी और इसी नाम के स्थानीय पर्याय नाम से प्रसिद्ध बुद्धिल घाटी में स्थित है। मणिमहेश- कैलाश भी बुद्धिल घाटी का ही एक भाग है।   मरु वंश के राजाओं का शासनकाल बहुत लंबा रहा।

मरू वंश के वशंज राजा साहिल वर्मा (शैल वर्मा) भरमौर के राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक बार चौरासी योगी ऋषि इनकी राजधानी में पधारे। राजा की विनम्रता और आदर-सत्कार से प्रसन्न हुए इन 84 योगियों के वरदान के फलस्वरूप राजा साहिल वर्मा के दस पुत्र और चम्पावती नाम की एक कन्या को मिलाकर ग्यारह संतान हुई। इस पर राजा ने इन 84 योगियों के सम्मान में भरमौर में 84 मंदिरों के एक समूह का निर्माण कराया, जिनमें मणिमहेश नाम से शिव मंदिर और लक्षणा देवी नाम से एक देवी मंदिर विशेष महत्व रखते हैं। यह पूरा मंदिर समूह उस समय की उच्च कला-संस्कृति का नमूना आज भी पेश करता है।

वैसे तो कैलाश यात्रा का प्रमाण सृष्टि के आदि काल से ही मिलता है। फिर 550 ईस्वी में भरमौर नरेश मरुवर्मा के भी भगवान शिव के दर्शन-पूजन के लिए मणिमहेश कैलाश आने-जाने का उल्लेख मिलता है। लेकिन मौजूदा पारंपरिक वार्षिक मणिमहेश-कैलाश यात्रा का संबंध ईस्वी सन् 920 से लगाया जाता है। उस समय मरु वंश के वंशज राजा साहिल वर्मा (शैल वर्मा) भरमौर के राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक बार चौरासी योगी ऋषि इनकी राजधानी में पधारे। राजा की विनम्रता और आदर-सत्कार से प्रसन्न हुए इन 84 योगियों के वरदान के फलस्वरूप राजा साहिल वर्मा के दस पुत्र और चम्पावती नाम की एक कन्या को मिलाकर ग्यारह संतान हुई। इस पर राजा ने इन 84 योगियों के सम्मान में भरमौर में 84 मंदिरों के एक समूह का निर्माण कराया, जिनमें मणिमहेश नाम से शिव मंदिर और लक्षणा देवी नाम से एक देवी मंदिर विशेष महत्व रखते हैं। यह पूरा मंदिर समूह उस समय की उच्च कला-संस्कृति का नमूना आज भी पेश करता है। राजा साहिल वर्मा ने अपने राज्य का विस्तार करते हुए चम्बा (तत्कालीन नाम- चम्पा) बसाया और राजधानी भी भरमौर से चम्बा में स्थानांतरित कर दी। उसी समय चरपटनाथ नाम के एक योगी भी हुए।

चम्बा गजटियर में वर्णन के अनुसार योगी चरपटनाथ ने राजा साहिल वर्मा को राज्य के विस्तार के लिए उस इलाके को समझने में काफी सहायता की थी। गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण पत्रिका के शिवोपासनांक में छपे एक लेख के अनुसार मणिमहेश-कैलाश की खोज और पारंपरिक वार्षिक यात्रा आरंभ करने का श्रेय योगी चरपटनाथ को जाता है। तभी से लगभग दो सप्ताह के मध्य की जाने वाली यह वार्षिक यात्रा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) से श्रीराधाष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) के मध्य (इस वर्ष 16 अगस्त से 1 सितंबर 2006 तक) आयोजित की जाती है। हालांकि इस यात्रा के अलावा भी यहां जाया जा सकता है। निस्संदेह ही लगभग 15 किमी. की खड़ी पहाड़ी चढ़ाई कठिन है लेकिन रोमांच व रास्ते की प्राकृतिक सुंदरता इसमें आनंद जोड़ देते हैं।

यह यात्रा शुरू होती है हडसर (प्राचीन नाम हरसर) नामक स्थान से जो सड़क मार्ग का अंतिम पड़ाव है। यहां से आगे पहाड़ी मार्ग ही एकमात्र माध्यम है जिसे पैदल चलकर या फिर घोड़े-खच्चरों की सवारी द्वारा तय किया जाता है। किसी समय में पैदल यात्रा चम्बा से ही आरम्भ की जाती थी। सड़क बन जाने के बाद यह यात्रा भरमौर से आरंभ होती रही और अब यह साधारण तौर पर श्रद्धालुओं के लिए यह यात्रा हडसर से आरंभ होती है। लेकिन यहां के स्थानीय ब्राह्मणों-साधुओं द्वारा आयोजित पारंपरिक छड़ी यात्रा तो आज भी प्राचीन परंपरा के अनुसार चम्बा के ऐतिहासिक लक्ष्मीनारायण मंदिर से ही आरंभ होती है। हडसर से मणिमहेश-कैलाश की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है जिसके मध्य में धन्छो नामक स्थान पड़ता है। जहां भोजन व रात्रि विश्राम की सुविधा उपलब्ध होती है।

गौरीकुंड
धन्छो से आगे और मणिमहेश-सरोवर से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पहले गौरीकुंड है। पूरे पहाड़ी मार्ग में गैर सरकारी संस्थानों द्वारा यात्रियों के लिए नि:शुल्क लंगर सेवा उपलब्ध करायी जाती है। गौरीकुंड से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पर स्थित है मणिमहेश- सरोवर आम यात्रियों व श्रद्धालुओं के लिए यही अंतिम पड़ाव है। ध्यान देने की बात है कि कैलाश के साथ सरोवर का होना सर्वव्यापक है। तिब्बत में कैलाश के साथ मानसरोवर है तो आदि-कैलाश के साथ पार्वती कुंड और भरमौर में कैलाश के साथ मणिमहेश सरोवर। यहां पर भक्तगण सरोवर के बर्फ से ठंडे जल में स्नान करते हैं। फिर सरोवर के किनारे स्थापित श्वेत पत्थर की शिवलिंग रूपी मूर्ति (जिसे छठी शताब्दी का बताया जाता है) पर अपनी श्रद्धापूर्ण पूजा-अर्चना अर्पण करते हैं। इसी मणिमहेश सरोवर से पूर्व दिशा में स्थित विशाल और गगनचुंबी नीलमणि के गुण धर्म से युक्त हिमाच्छादित कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं।

सरोवर के किनारे स्थापित श्वेत पत्थर की शिवलिंग रूपी मूर्ति (जिसे छठी शताब्दी का बताया जाता है) पर अपनी श्रद्धापूर्ण पूजा अर्चना अर्पण करते हैं। कैलाश पर्वत के शिखर के ठीक नीचे बर्फ से घिरा एक छोटा-सा शिखर पिंडी रूप में दृश्यमान होता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह भारी हिमपात होने पर भी हमेशा दिखाई देता है। इसी को श्रद्धालु शिव रूप मानकर नमस्कार करते हैं। इसी प्रकार फागुन मास में प़डने वाली महाशिवरात्रि पर आयोजित मेला भगवान शिव की कैलाश वापसी के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान अत्यधिक मनोरम है।

हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित प्रचार-पत्र में इस पर्वत को ”टरकोइज माउंटेन” लिखा है। टरकोइज का अर्थ है वैदूर्यमणि या नीलमणि। यूं तो साधारणतया सूर्योदय के समय क्षितिज में लालिमा छाती है और उसके साथ प्रकाश की सुनहरी किरणें निकलती हैं। लेकिन मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे से जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाशमंडल में नीलिमा छा जाती है और सूर्य के प्रकाश की किरणें नीले रंग में निकलती हैं जिनसे पूरा वातावरण नीले रंग के प्रकाश से ओतप्रोत हो जाता है। यह इस बात का प्रमाण है कि इस कैलाश पर्वत में नीलमणि के गुण-धर्म मौजूद हैं जिनसे टकराकर प्रकाश की किरणें नीली रंग जाती हैं।

पिंडी रूप में दृश्यमान शिखर
कैलाश पर्वत के शिखर के ठीक नीचे बर्फ से घिरा एक छोटा-सा शिखर पिंडी रूप में दृश्यमान होता है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह भारी हिमपात होने पर भी हमेशा दिखाई देता रहता है। इसी को श्रद्धालु शिव रूप मानकर नमस्कार करते हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार वसंत ऋतु के आरंभ से और वर्षा ऋतु के अंत तक छह महीने भगवान शिव सपरिवार कैलाश पर निवास करते हैं और उसके बाद शरद् ऋतु से लेकर वसंत ऋतु तक छ: महीने कैलाश से नीचे उतर कर पतालपुर (पयालपुर) में निवास करते हैं। इसी समय-सारिणी से इस क्षेत्र का व्यवसाय आदि चलता था। शीत ऋतु शुरू होने से पहले यहां के निवासी नीचे मैदानी क्षेत्रों में पलायन कर जाते थे। और वसंत ऋतु आते ही अपने मूल निवास स्थानों पर लौट आते थे। श्रीराधाष्टमी पर मणिमहेश-सरोवर पर अंतिम स्नान इस बात का प्रतीक माना जाता है कि अब शिव कैलाश छोड़कर नीचे पतालपुर के लिए प्रस्थान करेंगे।

इसी प्रकार फागुन मास में पड़ने वाली महाशिवरात्रि पर आयोजित मेला भगवान शिव की कैलाश वापसी के उपलक्ष्य में आयोजित किया जाता है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान अत्यधिक मनोरम है। इस कैलाश पर्वत की परिक्रमा भी की जा सकती है, लेकिन इसके लिए पर्वतारोहण का प्रशिक्षण व उपकरण अति आवश्यक हैं।

सालाना मणिमहेश यात्रा हडसर नामक स्थान से शुरू होती है जो भरमौर से लगभग 17 किलोमीटर, चम्बा से लगभग 82 किलोमीटर और पठानकोट से लगभग 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पंजाब में पठानकोट मणिमहेश-कैलास यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है जो दिल्ली-उधमपुर मुख्य रेलमार्ग पर है। निकटतम हवाई अड्डा कांगड़ा है। हडसर हिमाचल राज्य परिवहन की बसों द्वारा भलीभांति जुड़ा हुआ है। पड़ोसी राज्यों व दिल्ली से भी चम्बा तक की सीधी बस सेवा सुलभ है।

ट्रैकिंग
पैदल मार्ग भी शिव के पर्वतीय स्थानों के साथ जुड़ी हुई शर्त है। कैलाश, आदि कैलाश या मणिमहेश कैलाश-सभी दुर्गम बर्फीले स्थानों पर हैं। इसलिए यहां जाने वालों के लिए एक न्यूनतम सेहत तो चाहिए ही। जरूरी गरम कपड़े व दवाएं भी हमेशा साथ होनी चाहिए। मणिमहेश झील के लिए सालाना यात्रा के अलावा भी जाया जा सकता है। मई, सितंबर व अक्टूबर का समय इसके लिए उपयुक्त है। रोमांच के शौकीनों के लिए धर्मशाला व मनाली से कई ट्रैकिंग रास्ते भी मणिमहेश झील के लिए खोज निकाले गए हैं।

राजीव बिंदल का बीजेपी अध्यक्ष बनना तय : दिवाली के बाद हो सकती है औपचारिक घोषणा !

भाजपा संगठन चुनाव 
  • इन हिमाचल डेस्क 
  मंडल एवं जिले के चुनाव शांतिपूर्वक करवाने में बी जे पी इस बार सफल रही है।  हालाँकि गौर किया जाए तो आलाकमान के इशारे पर पुराने लोगों को ही रिपीट होने का मौका दिया गया है।
भाजपा में मंडलों एव जिलो के चुनाव तो ज्यादा महत्व नहीं रखते पर हाँ अद्यक्ष पद के लिए जद्दोजेहद होने की इस बार भारी  उम्मीद थी ।  शांता -धूमल एवं  अब नड्डा समर्थक उमीदवार अपने लिए गोटिया बिछाने लगे हुए थे हैं।  
सुगबुगाहटों की  की बात की जाए तो इस समय संग़ठन में अद्यक्ष सत्ती पार्टी  उपाद्यक्ष  सांसद राम स्वरुप शर्मा , एवं  महामंत्रियों में बिंदल , रणधीर एवं  विपिन  परमार  के नाम अद्यक्ष पद के लिए चर्चा में  रहे ।  कुछ लोग जय राम ठाकुर का नाम भी लेकर आ रहे हैं परन्तु जय राम अभी कुछ साल पहले तक भाजपा अद्यक्ष रह चुके है  इसलिए इस बात में अभी दम नहीं जान पड़ता है।  
सतपाल सत्ती का नाम इसलिए चर्चा में है क्योंकि सत्ती दोनों गुटों से सतंतुलित  समीकरण बनाकर चलने में कामयाब रहे थे परन्तु खिमी राम के कार्यकाल को भी मिला दिया जाए तो सत्ती के दो कार्यकाल हो चुके हैं इसलिए तीसरा मिलना भाजपा सविंधान के विरूद्ध है।
जहाँ तक राम स्वरुप की बात है वो धूमल गुट के ही माने जाते रहे हैं।  परन्तु सांसद बन ने के बाद उन्होंने भी गुटबाज़ी का त्याग करके संतुलन का रास्ता अपना लिया है।  सूत्रों की माने  तो संघ के प्यारे राम स्वरुप भी अपने लिए लॉबिंग नहीं कर रहे और फिलहाल इस जिमेदारी से दूर ही रहना चाहते हैं 
इसके बाद धूमल गुट से रणधीर शर्मा का नाम चला है , रणधीर  शर्मा आजकल पूर्ण रूप से धूमलमय हो गए हैं।  धूमल परिवार पर कांग्रेस के  आरोपों का हर दिन जबाब रणधीर शर्मा ही दे रहे हैं।  परन्तु बिलासपुर जिला से  सबंधित होने के कारण बिना नड्डा के  रणधीर की नाव का पार लगना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।  
वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने इस बार चुनावी और संग़ठन की गतिविधियों से अपने आप को दूर कर लिया है जिस से कांगड़ा से विपिन परम्मार की दावेदारी खत्म मानी जा रही है।  
इन सब  बीच सूत्रों की माने तो आलाकमान संघ एवं केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा की सहमति  पार्टी महासचिव एवं नाहन के विधायक  राजीव बिंदल  पर बन गयी है।  संग़ठन महामंत्री रामलाल ने  बिंदल का का नाम  इस पद के लिए आगे रखा है।   बिंदल किसी जमाने में धूमल के ख़ास सिफालसार माने जाते थे।  परन्तु अब वो जे पी नड्डा के साथ हैं।   इतिहास कहता है की सोफत को राजनीति में पीछे धकेलकर बिंदल को सोलन से लाने में नड्डा की भी विशेष भूमिका रहे थी।  
चुनावी  रणनीति के माहिर बिंदल अगर भाजपा अध्यक्ष बनते हैं तो प्रदेश में नए समीकरण भविष्ये में उभर कर आ सकते हैं।  बिंदल संघ काडर के भी बहुत करीबी हैं सोलन शिमला सिरमौर तक की राजनीति में बिंदल एक ख़ास अहमियत रखते है।  सूत्रों की माने तो दिवाली के बाद बिंदल  के नाम की औपचारिक घोषणा हो सकती है 

शिक्षा का बंटाधार: 15 हजार शिक्षक पंचायत चुनाव ड्यूटी पर !

शिक्षा का बंटाधार:  15 हजार शिक्षक  पंचायत चुनाव ड्यूटी पर !
 
दैनिक पत्र अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार पंद्रह सितंबर से प्रदेश के कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी हो जाएगी। करीब 15 हजार शिक्षकों की परिवार रजिस्टर पंजीकरण और चुनावी जनगणना में ड्यूटी लगी है। आठ हजार शिक्षक बीते सप्ताह पंजीकरण के लिए रिलीव हो चुके हैं। शेष सात हजार शिक्षक 15 सितंबर तक चुनाव ड्यूटी के लिए रिलीव होंगे। एक माह तक इनकी ड्यूटियां लगाई गई है। बीते एक सप्ताह से स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित होने को लेकर हो हल्ला मचा है, लेकिन सरकार इस मामले पर खामोश है। चुनाव आयोग के समक्ष सही तरीके से शिक्षा विभाग अपना पक्ष नहीं रख पा रहा है।


हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूल का सांकेतिक चित्र


शिक्षा में गुणवत्ता लाने के सरकार कई दावे करती है, केंद्र सरकार तो नई शिक्षा नीति बनाने में भी जुट गई है। बेहतर परीक्षा परिणाम नहीं देने वाले शिक्षकों पर कार्रवाई करने की बातें भी होती हैं, लेकिन शैक्षणिक गतिविधियों की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा है। शिक्षकों से गैर शिक्षक कार्य न करवाने की मांग बीते लंबे समय से उठती आ रही है। शिक्षक संगठनों ने सरकार के उच्च अधिकारियों तक इस मांग को लेकर ज्ञापन सौंपे हैं, लेकिन इसका नतीजा अभी तक सिफर ही है। सात सितंबर से कई शिक्षकों की परिवार रजिस्टर पंजीकरण कार्यक्रम में ड्यूटी लगी है। सात सितंबर से 10 अक्तूबर तक यह कार्यक्रम चलेगा। 15 सितंबर से 14 अक्तूबर तक इलेक्ट्रोल रोल रिवीजन में शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई है। प्रदेश राजकीय अध्यापक संघ के अध्यक्ष वीरेंद्र चौहान ने कहा कि गैर शैक्षणिक कार्यों से पढ़ाई प्रभावित होगी। उधर, अतिरिक्त मुख्य सचिव शिक्षा पीसी धीमान ने कहा कि चुनाव आयोग के समक्ष इस मामले को उठाया जाएगा। आयोग से शिक्षकों की जगह पहले अन्य विभागों के कर्मचारियों को ड्यूटी लगाने के लिए कहा जाएगा।

गुलेरी जी के पुराने संदूकों में धूल फांक रही हैं ढेरों कहानियां

  • विवेक अविनाशी।।

आज 12 सितम्बर को हिंदी की कालजयी रचना “उसने कहा था “ के रचयिता स्वर्गीय पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी की पुण्यतिथि है। उनका पैतृक गांव गुलेर (हिमाचल प्रदेश ) था। गुलेरी जी के पिता ज्योतिषाचार्य शिवराम जयपुर राजदरबार में थे, जहां चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का 1883 को जन्म हुआ था।

गुलेरी जन्म शताब्दी वर्ष के दौरान मुझे उनके पौत्र डॉ. विद्याधर गुलेरी के सौजन्य से उनके पैतृक निवास “चंद्र-भवन” में गुलेरी जी की हस्तलिखित पांडुलिपियां, रोजमर्रा का सामान  और पुराने फोटो देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। अवकाश के क्षण गुलेरी जी अपने पैतृक गांव में गुजारते थे। यहां पड़े कई पुराने ट्रंकों में ढेरों कहानियों की पांडुलिपियां धूल फांक रही थीं।  ये कहानियां राजघराने के राजकुमारों या शायद नवोदित लेखकों द्वारा गुलेरी जी के पास सुधार, सम्पादन अथवा प्रकाशन हेतु प्रेषित की गईं थीं। हो सकता है इनमें से कुछ कहानियां गुलेरी जी की लिखी भी हों

चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी

गुलेरी जी विभिन्न  भाषाओं के विद्वान थे। उनकी विद्वता की स्पष्ट झलक उनके डायरी लेखन में नज़र आती है। गुलेरी जी लाल स्याही से होल्डर इस्तेमाल करके डायरी लिखते थे। जो कुछ दिन भर में होता, उसे ईमानदारी से डायरी में उतार लेते थे। स्वप्न-विश्लेषक तो वह कमाल के थे। अपनी डायरी में बहुत से ऐसे स्वप्नों का विश्लेष्ण उन्होंने विस्तार से किया था। सहयोगी साहित्यकारों  की मदद करने में भी गुलेरी जी सदैव आगे रहते थे।

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‘उसने कहा था….’ शीर्षक वाली कहानी हिंदी साहित्य की ऐसे अनमोल कृति है, जिसे बार-बार पढ़ने का मन करता है। यह जमादार  लहना सिंह की कहानी है, जो अपने बचपन के प्यार को मरते दम तक भुला नहीं पाता। ‘उसने कहा था’ की हस्त लिखित पांडुलिपि  भी मुझे वहां देखने को मिली थी। इसपर 1960 में इसी नाम से फिल्म भी आई थी, जिसमें सुनील दत्त मुख्य भूमिका में थे। मूवी देखने के लिए नीचे दी तस्वीर पर क्लिक करें

मूवी देखने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

गुलेरी जी का देहावसान 39 वर्ष की आयु में 12 सितंबर, 1922 को हुआ था। हिमाचल सरकार को चाहिए कि गुलेरी जी से सम्बंधित सभी सामग्री को एकत्रित कर उनके पैतृक गांव में एक म्यूजियम बनाने की पहल करे ताकि  भावी पीढ़ी इस महान  साहित्यकार के व्यक्तित्व और कृतित्व से अच्छी तरह से अवगत हो सके।

कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

(लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)

हिमाचल में हैं 10 हजार से ज्यादा महिला सेक्स वर्कर्स

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शिमला।।

शायद आप यकीन न करें कि देवभूमि हिमाचल प्रदेश में महिला सेक्स वर्कर्स की संख्या 10 हजार से भी ज्यादा है। ये वे आंकड़े हैं, जो सरकार के पास हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि असल तादाद कहीं ज्यादा हो सकती है।

प्रदेश में हेल्थ सर्विसेज़ के डायरेक्ट डीएस गुरंग ने बताया कि प्रदेश में 10 हजार सेक्स वर्क्स हैं, जिनमें से 7 हजार महिलाएं इस काम को छोड़ना चाहती हैं। उन्होंने बताया कि ये महिलाएं एड्स कंट्रोल सोसाइटी से जुड़े एनजीओज़ के संपर्क में हैं।

सांकेतिक तस्वीर

गुरंग ने बताया, ‘अब तक 50 महिला सेक्स वर्क्स एचआईवी पॉजिटिव पाई गई हैं और उनका इलाज प्रदेश के विभिन्न केंद्रों में किया जा रहा है।’ उन्होंने बताया कि अभी 550 महिलाओं को अन्य कामों की ट्रेनिंग दी गई है ताकि वे जीवनयापन कर सकें।

डीएस गुरंग ने कहा, ‘भले ही प्रदेश में एचआईवी प्रभावित लोगों की संख्या 8,091 है, जो कम लगती है। मगर पर्यटन वाला राज्य होने की वजह से यहां ऐसे मामले बढ़ने का खतरा ज्यादा है।’

भानुपल्ली- बिलासपुर रेलवे लाइन के लिए जमीन अधिग्रहण शुरू

इन हिमाचल डेस्क।।
 
वर्षों से लटके भानुपल्ली – बिलासपुर रेलवे ट्रैक का कार्य एक बार फिर गति पकड़ने जा रहा है।  फिलहाल भूमि अधिगृहण के लिए केंद्र ने राज्य सरकार को धनराशि जारी कर दी है। इस प्रोजेक्ट के कुल बजट  2964 में  से  9 करोड़ की इस राशि से नयनादेवी हलके के ग्रामीणों को मुआवजा दिया जाएगा ।  इसके लिए बाकायदा बिलासपुर एवं केंद्रीय एडमिन की मीटिंग भी हो चुकी है।   नयनादेवी तहसील के 11 गावों की 104 हेक्टेयर भूमि रेलवे द्वारा अधिगृहीत की जाएगी जिसमे से 47 हेक्टेयर निजी एवं 57 हेक्टेयर सरकारी भूमि है।   लोगों के घर भी अधिग्रहण की जद में आ सकते हैं।
पंजाब के भानुपल्ली से लेकर बिलासपुर के बैरी हरनोड़ा  तक लगभग 64 किलोमीटर के इस रेलवे ट्रैक का निर्माण रेलवे विकास निगम द्वारा किया जाएगा।
प्रथम चरण में 20 किलोमीटर तक का निर्माण भानुपल्ली से नयनादेवी तहसील के धरोटा गावं तक किया जाएगा।  इस लाइन की कुल लम्बाई में से 10 किलोमीटर क्षेत्र पंजाब में आता है।  गौरतलब है की सामरिक नजरिये से भी यह ट्रैक महत्वपूर्ण है जिसे लेह तक बढ़ाया जा सकता है।  साथ  ही साथ व्यवसयिक नजरिये से देखा जाए तो  प्रदेश की तीनों सीमेंट फैक्ट्रियों को भी माल ढुलाई में आसानी रहेगी।  इन हिमाचल ने  प्रदेश से राज्यसभा  सांसद एवं विधानसभा में बिलासपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके  केंद्रीय स्वास्थ्या मंत्री जे पी नड्डा से इस बारे में अधिक जानने के लिए बात करनी चाही पर वो उपलब्ध नहीं हो पाये।
बिलासपुर भनुपल्ली रेलवे ट्रैक में सुरंग निर्माण भी तय है यह ट्रैक सतलुज नदी पर बनी गोविन्द सागर झील के साथ साथ होता हुआ बिलासपुर और बैरी  तक आएगा।
 
कुछ इस तरह का हो सकता है नजारा  ( चित्र सांकेतिक है )

सांसद निधि आबंटित करने में रामस्वरूप अव्वल : विप्लव , वीरेंदर और अनुराग फिसड्डी !

इन हिमाचल डेस्क 
भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार अगर विकास कार्यों के लिए सांसद निधि के धन के उपयोग की अभी तक बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के सांसदों का ओवरआल रिकॉर्ड ठीक नहीं है। सिर्फ मंडी लोकसभा के सांसद रामस्वरूप शर्मा अभी तक मिली अपनी निधि को  पूरी तरह विकास कार्यों के लिए आबंटित कर पाये हैं।
भारत सरकार ने यह सारी  जानकारी वेब साइट पर पब्लिक डोमेन में डाली है। मगर इसमें इस बात का ज़िक्र नहीं है कि ये आंकड़े किस अवधि के हैं।  लोकसभा के सांसदों की बात की जाए तो  हिमाचल से चार लोकसभा सांसद हैं।  जिन्हे पिछले वर्ष केंद्र से विकास कार्यों के लिए 10 करोड़ की ग्रांट मिलना तय थी अभी तक अनुराग ठाकुर शांता कुमार एवं वीरेंदर कश्यप को जहाँ   7. 5 करोड रुपये रिलीज़ किये गए वहीँ  मंडी के सांसद रामस्वरूप शर्मा को 5 करोड रुपये विकास कार्यों के लिए दिए गए।  केंद्र सब सांसदों को एक साथ धन आबंटित नहीं करता बल्कि निश्चित किश्त के आधार पर करता है इसलिए मंडी लोकसभा के सांसद को एक किश्त अभी कम मिल पायी है।
एक साल में  अपने -अपने लोकसभा  क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए आबंटित की गयी राशि की   बात की जाए तो।  वीरेंदर कश्यप सबसे पीछे पाये गए हैं।   7. 5 करोड रुपया जो  उन्हें मिला उसमे से वो मात्र  2. 61  करोड़ ही खर्च कर पाये उनके खाते में अभी भी 4. 93 करोड़ रूपए बचे हैं।  परसेंटेज आधार पर देखे तो   वीरेंदर कश्यप अभी तक अपनी निधि का  लगभग  35 % ही खर्च कर पाये हैं।  वहीँ हमीरपुर के सांसद  अनुराग ठाकुर  लगभग 40 %, शांता कुमार  52 % खर्च कर पाये हैं।
लोकसभा सांसदों की  निधि का ब्यौरा
विकास कार्यों के लिए धन आबंटन की बात की जाए तो मंडी के सांसद  रामस्वरूप  शर्मा लोकसभा सांसदों में अव्वल पाये गए हैं  रामस्वरूप शर्मा को हालंकि बाकियों से 2.5 करोड की क़िस्त काम मिली है परन्तु इन्होने अपने हिस्से के 5 करोड लगभग पुरे विकास कार्यों के लिए आबंटित कर दिए हैं।  रामस्वरूप के खाते में सिर्फ 5 लाख रूपए बचे हैं।
 राज्य सभा सांसदों की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश से विमला कश्यप , जे पी नड्डा और विप्लव ठाकुर तीन सांसद हैं।  जगत प्रकाश नड्डा और विमला कश्यप ने अपनी निधि में  से क्रमश 90 और 85 %  राशि विकास कार्यों के लिए आबंटित कर दी है वहीँ विप्लव ठाकुर 40 % के साथ सबसे पीछे हैं।  उल्लेखनीय है की इस जानकारी के साथ यह भी साफ़ साफ़ लिखा गया है की  सांसद सिर्फ विकास कार्यों के लिए धन आबंटन कर सकता है बाकी उसे जमीन स्तर पर खर्च करने का कार्य जिला अधिकारीयों का है।
लोकसभा सांसदों की  निधि का ब्यौरा
कोई भी व्यक्ति  इस जानकारी को  नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके प्राप्त कर सकता  हैं।
 
 
 
 

हिमाचल सरकार ने आर्मी माउंटेन डिवीज़न के लिए नहीं दी जमीन : उत्तराखंड को मिला प्रोजेक्ट

हिमाचल सरकार ने आर्मी  माउंटेन डिवीज़न के लिए नहीं दी जमीन : उत्तराखंड को मिला  प्रोजेक्ट 

शिमला 
 
हिमाचल प्रदेश को सेना व वायु सेना के लिए गठित की जाने वाली माउंटेन डिवीजन के लिए जमीन ही नहीं मिल पाई और उत्तराखंड ने इस बड़े प्रोजक्ट को हाथोंहाथ झटक लिया है। दैनिक समाचार पत्र दिव्या हिमाचल में छपी खबर के अनुसार  के मुताबिक वर्ष 2013 में रक्षा मंत्रालय की तरफ से हिमाचल, उत्तराखंड व पश्चिम बंगाल को प्रस्ताव भेजा गया था, जिसमें माउंटेन डिवीजन स्थापित करने के लिए उपयुक्त जमीन चाहिए थी। प्रदेश सरकार ने उस दौरान सोलन व कांगड़ा के उपायुक्तों को उपयुक्त जमीन तलाशने के लिए लिखित निर्देश दिए थे। सूत्रों का दावा है कि इन जिलों से समय पर कोई जवाब ही नहीं आया, लिहाजा हजारों करोड़ के पूंजी निवेश पर आधारित व सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माउंटेन डिवीजन से हिमाचल महरूम रह गया।
इससे पहले भी कांगड़ा व ऊना में सेना के कुछ बड़े प्रोजेक्ट जमीन के अभाव में लटकते रहे हैं। जानकारों के मुताबिक चीन व पाकिस्तान की तरफ से लगातार बढ़ती चुनौतियों के दृष्टिगत रक्षा मंत्रालय ने चीन बार्डर के नजदीकी राज्यों में यह डिवीजन स्थापित करनी थी, जिसके लिए अब उत्तराखंड का चयन हुआ है। हालांकि रक्षा मंत्रालय व सेना की ही डिमांड पर प्रदेश के सीमांत इलाकों में सड़कों का नेटवर्क मजबूत किया जा रहा है। सेना की ही मांग के अनुरूप उपयुक्त स्थलों पर हेलिपैड भी स्थापित किए जा रहे हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि यदि माउंटेन डिवीजन प्रदेश में स्थापित हो जाती तो हिमाचल के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि साबित हो सकती थी

लेख: संस्कृत क्यों अनिवार्य करवाना चाह रहे हैं आचार्य देवव्रत?

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आई.एस. ठाकुर।।

जिस दिन आचार्य देवव्रत को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया था, उस दिन मैंने उनके बारे में थोड़ा रीसर्च किया था। मैंने पाया कि वह एकदम संघ की विचारधारा पर चलने वाले शख्स हैं। मुझे संघ या संघ से जुड़े लोगों से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है और उल्टा कई बातों को लेकर मैं उनसे सहमत भी हूं। कई साल शाखाओं में भी जाता रहा हूं। मगर मुझे तब संघ से दिक्कत होने लगती है, जब यह लोगों की जिंदगियों में घुसपैठ करके अपने हिसाब से चीज़ें चलाना चाहता है।

आचार्य देवव्रत हिमाचल प्रदेश आए और राज्यपाल बने। आते ही उन्होंने राजभवन में चल रहा मयखाना यानी बार बंद करवा दिया। उन्होंने कहा कि सुबह-शाम परिसर में हवन होगा, एक गाय पाली जाएगी और वह भी देसी। अच्छी बात है, उनकी जो इच्छा, वह करें। अगर बाकी राज्यपाल सरकारी पैसे से बार चालू रख सकते हैं तो उसी पैसे से वह हवन कराएं या पकौड़े खिलाएं, उनकी इच्छा। मगर मेरा माथा उस वक्त ठनका था, जब उन्होंने कहा था कि हिमाचल प्रदेश में संस्कृत को अनिवार्य करना और नशाबंदी करना उनका लक्ष्य है, ताकि यह सही मायनों में देवभूमि बन सके।

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कल उन्होंने दोबारा कहा कि हिमाचल प्रदेश में +2 तक संस्कृत अनिवार्य होनी चाहिए। हमारे कुछ हिंदू भाई, जो खुद को भारतीय सस्कृति का झंडाबरदार मानते हैं, बहुत खुश होते होंगे। वे फूले नहीं समाते कि वाह, यह राज्यपाल तो भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है। मगर इन्हीं लोगों में मैं सवाल पूछना चाहता हूं कि आपने संस्कृत पढ़ी है? जिन्होंने पढ़ी है, उनके कितने नंबर आते थे? और अगर अच्छे नंबर आते थे तो आज उस संस्कृत से उन्हें क्या फायदा हो रहा है?

आचार्य देवव्रत

जाहिर है कुछ लोग पुरोहित बन गए होंगे, कुछ शास्त्री और कुछ प्रफेसर आदि भी। मगर बाकी लोगों का क्या? ‘पठ धातु’ और ‘मातृ-पितृ’ शब्द याद करने में जिन्हें पसीना आता था, अध्यापकों के डंडों से जिनके नितंब लाल हो जाया करते थे, क्या वे भी ईमानदारी से चाहते हैं कि संस्कृत प्लस टू तक पढ़ाई जानी चाहिए?

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संस्कृत का बुनियादी ज्ञान हो, अच्छा है। हमने भी 10वीं कक्षा तक संस्कृत पढ़ी है और हमेशा 90 से ज्यादा अंक हासिल किए। छात्रवृत्ति पाई है संस्कृत के लिए मैंने। मगर मेरा मानना है कि संस्कृत पर फालतू का जोर देने के बजाय किसी अन्य विदेशी भाषा या फिर इंग्लिश पर ही जोर दिया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि जीवन भावनाओं पर नहीं, कठोर इम्तिहानों पर चलता है। आज इंग्लिश का ज्ञान जरूरी है। संस्कृत में न तो कहीं पर बातचीत होती है और न ही कहीं और किसी काम में इस्तेमाल होती है। फिर जीवन के मह्तवूर्ण 5-10 साल क्यों इसपर खपाए जाएं? क्यों न हिंदी या फिर इंग्लिश पर जोर दिया जाए, जिसका चारों तरफ इस्तेमाल हो रहा है।

देवभूमि का मान देवभूमि के रूप में तभी होगा जब यहां के लोग संपन्न होंगे, सफल होंगे। इंग्लिश के ज्ञान के बिना आज के दौर में सफल होना मुश्किल है। संस्कृत में पंडित बनकर शादी या हवन ही करवाया जा सकता है या फिर अध्यापन कार्य मिल सकता है। मगर वह भी कितनों को मिलेगा? मेरी गुजारिश है राज्यपाल महोदय से कि अगर आप प्रदेश के बच्चों के हित के बारे में नहीं सोच पाएं, तो कम से कम उनके अहित की योजना न बनाएं।

पढ़ें: अपने फायदे के लिए हिमाचल को मत बांटिए प्लीज़

यह तो अच्छा हुआ कि राज्यपाल के हाथ में कुछ नहीं होता, वरना इनका बस चले तो अपनी हर बात को लागू कर ही दें। अच्छी बात यह भी है कि राज्य में कांग्रेस सरकार है, इसलिए इनकी बातों को तवज्जो नहीं मिलेगी। मगर प्रदेश में बीजेपी की सरकार होती और मुख्यमंत्री संघ का करीबी होता तो प्रदेश की ऐसी-तैसी हो जाती औऱ वह भी सिंबॉलिक चीज़ों की वजह से।

बात संघ की इसीलिए हुई, क्योंकि देवव्रत “संघी” हैं और इसी वजह से वह इस पद पर भी हैं। जाहिर है, संघ का अजेंडा लागू करना चाहते हैं। संघ का यह अजेंडा कम से कम व्यावहारिक बिल्कुल नहीं है। संघ को भी वक्त के साथ अपने अंदर बदलाव लाना चाहिए। जबरन किसी बात पर अड़कर कुछ नहीं होगा। वरना तालिबान की कट्टर और स्थिर सोच और आपकी वैसी ही पक्की और पुरातन सोच के बीच कोई फर्क नहीं रहेगा।

लोग भला मानें या बुरा, मगर मैं तो प्रदेश हित की बात करता आया हूं और आगे भी बेबाकी से ऐसा ही करूंगा। भले ही आपको मेरी बातें अभी खराब लग रही हों, मगर इत्मिनान से सोचेंगे तो पाएंगे कि प्रदेश ही नहीं, देश के लिए भी ये बातें सही हैं।

(लेखक मूलत: हिमाचल प्रदेश के हैं और पिछले कुछ वर्षों से आयरलैंड में रह रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)


नोट:
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