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Saturday, September 13, 2025
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कला की दृष्टि से समृद्ध थी बाघल (अर्की) रियासत

  • विवेक अविनाशी

तेरहवीं अथवा 14वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बाघल रियासत की स्थापना परमार वंशीय अजयदेव ने की थी। इस रियासत की राजधानी काफी समय तक धुन्धन रही। धुन्धन के इलावा इस रियासत की राजधानी दाडला भी रही। इस रियासत की सीमायें काली सेरी(बिलासपुर) से जतोग (शिमला) और कुनिहार से मांगल तक फैली हुई थी। मुगल काल में बाघल  रियासत भी मुगलों के आधीन रही। बाघल की ओर से मुसलमान राजाओं को एक हजार रूपये कर, तीन सौ सैनिक और तीन सौ बगारी दिए जाते थे।

सन् 1643 में शोभा चंद ने अर्की नगर बसाया था और इसे राजधानी बनाया था। शोभा चंद ने अर्की में सुन्दर महल बनाये और इन महलों की दीवारों को पहाड़ी कलम के चित्रों से उकेरा। अर्की शिमला से 45 किलो मीटर दूर और सोलन से लगभग 70 किलोमीटर दूर  है। पहाड़ी लोक संस्कृति और कला के रूप में बाघल (अर्की) का नाम विख्यात है। अर्की के  पास ही एक बहुत बड़ा गांव बातल है, जिसे ‘छोटी काशी’ के नाम से जाना जाता है।

This photo of Arki Fort is courtesy of TripAdvisor

अर्की का प्राचीन राजमहल और किला  और पुरातन काल का स्मरण कराने वाले महलनुमा भवन खंडहर अर्की के अतीत की समृद्धि का स्मरण कराते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि अर्की का राजमहल आज अपने प्राचीन गौरव व वैभव की गाथा सुना रहा है। एक ऊंची पहाड़ी पर बने इस महल  के ‘दीवानखाना'(रंगमहल)में बनी भित्तिचित्रकला अत्यन्त लुभावनी है।
ये भित्तिचित्र अपने समय की अत्यन्त समृद्ध ‘कांगड़ा शैली भित्तिचित्रकला’ से संबद्ध माने जाते हैं। इन भित्तिचित्रों  पर समय की चोट का कोई प्रभाव नहीं पड़ पाया है। पूरे हाल (रंगमहल) में चारों ओर, मध्य के खम्बों पर और छत में ये चित्र बनाए गए हैं। इन्हें देखकर तत्कालीन समाज की रुचि, रीति, प्रवृत्ति और प्रकृति का स्पष्ट चित्र सामने आने लगता है। लगता है कि ये भितिचित्र किसी एक विषय-वस्तु विशेष को सामने रखकर नहीं बनाए गए, बल्कि राजा की रुचि अथवा चित्रकार की कल्पना ही की उपज है।
दीवारों पर शानदार चित्रकारी
बाघल रियासत में कला को अधिक प्रोह्त्सान का कारण इस रियासत के राजाओं का कला प्रेमी होना भी था। सन 1840 में किशन सिंह सिंह ने अर्की को सुनियोजित नगर बनाया तथा अर्की का महल बड़ा किया। किशन सिंह को 1857 अंग्रेजों ने राजा की उपाधि प्रदान की थी। यह क्षेत्र वन्य-जीवों और वनस्पति से भरपूर था। है।अर्की में स्थित कुनिहार घाटी सोलनके प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। कुनिहार हटकोट और छोटी विलायत के नाम से भी प्रसिद्द है।
इस घाटी की खोज सन 1154 में जम्मू के रघुवंशी राजपूत अभोज देव द्वारा की गई। यह घाटी श्री देवी मंदिर और श्री दानो देवता मंदिर देखने का अवसर भी प्रदान करती है जो क्रमशः कुलजा देवी और दानो देवता को समर्पित हैं। कुनिहार घाटी का एक अन्य प्रमुख आकर्षण कुनिहार तालाब है।बाघल रियासत शिमला के पहाड़ी रियासतों के सुपरिटेंडेंट की निगरानी में थी। 15 अप्रैल,1948 को यह रियासत भी हिमाचल मैं शामिल हो गई।

लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)

(पाठक भी किसी रियासत के इतिहास का विवरण inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।)

हिमाचल के 12 शहर बनेंगे पहाड़ी राज्यों के मॉडल टाउन, केंद्र देगा फंड

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शिमला।।
स्मार्ट  सिटी पर चल रही राजनीतिक  खींचतान के बीच हिमाचल प्रदेश के लिए एक नयी खुशखबरी आई है।  देश के पर्वतीय राज्यों के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत धर्मशाला और सुंदरनगर को मॉडल सिटी के रूप में विकसित किया जाएगा,  जिसमें  मूलभूत सुविधाओं का विस्तार किया जाएगा।  इन सुविधाओं के तहत , मल निकासी, कूड़ा प्रबंधन, स्ट्रीट लाइट्स स्वच्छ पेयजल और 6 अन्य सुविधाओं को भी जोड़ा जाएगा।  केंद्र सरकार ने इसके लिए प्राइस हाउस वाटर कूपर कंपनी को नियुक्त किया था जिसमे धर्मशाला और सुंदरनगर को अपनी प्री फिसिबिलिटी रिपोर्ट में मॉडल टाउन के लिए सही पाया है।
केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को भी इससे अवगत करवा दिया हैं। प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप के तहत वित्त मंत्रालय भारत सरकार से पोषित इस प्रोजेक्ट का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी।  10 वर्षों तक जनता से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा बाद में सुविधाओं को देखते हुए शुल्क निर्धारित किया जा सकता है।
 ( सांकेतिक चित्र)

हिमाचल के लिए खुशखबरी यह है कि इस प्रोजेक्ट के तहत जितनी आबादी के शहरों को चुना जाना था, उतनी आबादी शिमला के अलावा किसी शहर की नहीं है।  इसलिए आबादी की शर्त को पूरा करने के लिए  दोनों किट्टी के आसपास के शहर भी इसमें जोड़ दिए गए और इन्हे धर्मशाला एवं सुंदरनगर क्लस्टर का नाम दे दिया गया।
अब फायदा यह हुआ की धर्मशाला क्लस्टर में जहाँ ” धर्मशाला , काँगड़ा, पालमपुर बैजनाथ , ज्वालामुखी एवं देहरा भी जुड़ गए वहीँ सुंदरनगर क्लस्टर में ‘ मंडी, सुंदरनगर, कुल्लू मनाली, रिवालसर एवं जोगिन्दर नगर शामिल  करने पड़े।
इस आधार पर देखा जाए तो हिमाचल प्रदेश में  11  नए  शहर  मॉडल टाउन में आ गए हैं धर्मशाला पहले ही स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट  एवं शिमला “अमृत ” योजना के तहत है।  कुलमिलाकरयह प्रदेश के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है

रियासतकालीन हिमाचल: सुकेत रियासत (सुंदरनगर) का इतिहास

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सुकेत (सुंदरनगर) वर्तमान जिला मंडी का भाग है। प्रख्यात लेखक जे॰ हचिनसन के अनुसार ‘सुकेत’ का नाम ‘सुक्षेत्रा’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘अच्छी भूमि’I ए॰ कनिंघम के अनुसार सुकेत की स्थापना आठवीं ईसवी में हुई थी। सुकेत का प्राचीन नाम ‘पुराना नगर’ था। यह संभावित है कि प्रारम्भ में बंगाल में ‘सेन’ राजवंशी थी जिनके पूर्वज (बीर सेन) ने आठवीं ईसवी में राज किया था, ने सुकेत की स्थापना 765 ईसवी में की। सुकेत और मंडी के राजाओं के पूर्वज चंद्र्वंशी राजपूत वंशावली के है जिनके अवतरण महाभारत में पांडव माने गए हैं। पहाड़ी राज्यों की पुरातन प्रथाओं के अनुसार सुकेत के शाही वंश का नाम ‘सुकेती’ या ‘सुकेतर’ है।
सुंदरनगर की बीबीएमबी झील का सुंदर नजारा (Courtesy: Wikimapia)
सुकेत रियासत लगभग 420 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। इसकी सीमाएँ उतर में मंडी, दक्षिण और पश्चिम में बिलासपुर तथा पूर्व में बेहना धारा इसे सराज (कुल्लू) से अलग करती है। मौजूदा समय में सुकेत का नाम सुंदरनगर है। सुंदरनगर सुकेत रियासत की राजधानी थी। सुकेत रियासत का प्रारंभिक इतिहास इस बात को दर्शाता है कि इस रियासत के राजाओं ने अनेक राजवंशों के राजाओ के साथ युद्ध किये जिनमे प्रमुख कुल्लू राजवंश था। राजा विक्रम सेन के शासन काल में कुल्लू सुकेत के अधीन था। राजा मदन सेन (1240 ईसवी) का शासन काल खुशहाल और लंबा माना गया है जिसे सुकेत का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है। राजा मदन सेन ने पांगणा (उस समय सुकेत की राजधनी) से दो कोस दूर एक किला बनवाया जिसे उन्होने ‘मदनकोट’ का नाम दिया। आजकल इसे मदनगढ़ के नाम से जाना जाता है।
कुल्लू के अभिलेखों के अनुसार सुकेत के राजा मदन सेन ने एक स्थानीय निष्ठावान ‘राणा भोसाल’ को सुकेत की राजकुमारी के साथ शादी करने पर मनाली से बजौरा तक के राज्यक्षेत्र का अनुदान किया। एक रात राजा मदन सेन के सपने में एक देवी प्रकट हुई, देवी ने कहा, अगर तुम इस जगह (पांगणा) का त्याग नहीं करोगे तो तुम्हारे साथ अनहोनि घटित होगी। राजा ने उस जगह एक मंदिर का निर्माण करवाया और तुरंत ही पांगणा का त्याग करने का निर्णय लिया। इसके पश्चात राजा मदन सेन ने ‘लोहारा’ (बल्ह से नजदीक) को सुकेत की राजधनी बनाया।
गरुड़ सेन (1721 ईसवी) के शासन काल में बनेड़ (इस समय में सुंदरनगर) की स्थापना की गयी तथा बिक्रम सेन के शासन काल में इसे सुकेत की राजधानी बनाया गया। राजा बिक्र्म सेन (1791 ईसवी) की रानी जो की एक बुद्धिमान और योग्य नारी मानी जाती थी, ने सूरज कुंड का निर्माण करवाया। गरुड़ सेन का शासन काल बहुत लंबा माना जाता है, जिनकी मृत्यु 1748 ईसवी में हुई। 1820 ईसवी में ‘विलियम मूरक्राफ्ट’ सुकेत की यात्रा करने वाले प्रथम यूरोपियन थे। राजा उग्र सेन (1836-1876 ईसवी) के शासन काल में सुकेत रियासत को उस समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड मायो की यात्रा (1871 ईसवी में ) का सौभाग्य प्राप्त हुआ। राजा भीम सेन (1908 ईसवी) ने अपने शासन काल में अनेक भवनों एवं सड़कों का निर्माण करवाया जिनमें प्रमुख थे, किंग एडवर्ड हॉस्पिटल, तीन डाक बंगले (बनेड़, सेरी और डेहर) तथा बनेड़ (सुंदरनगर) से मंडी सड़क मार्ग।
राजा लक्ष्मण सेन का शासन काल 1920 ईसवी से शुरू हुआ, जिन्होने अपने अल्पावधि शासन काल में सुकेत के विकास के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमे, लड़कों एवं लड़कियों के लिए प्राथमिक स्कूल खुलवाए गए, हर तहसील में एक वैद की व्यवस्था की गयी तथा कानून व्यवस्था का उचित प्रबंध किया गया ताकि लोगों को पूरा न्याय मिल सके। राजा ने कई नई सड़कें बनवाई तथा पुरानी सड़कों की मुरम्मत कर उन्हे चौड़ा करवाया। अनेक लोक भवन बनाए गए जिनमे प्रमुख थे, लक्ष्मण-भीम क्लब, द प्रिंस ऑफ वेल्स अनाथ आश्रम, मुख्य न्यायलय आदि।15 अप्रैल 1948 में सुकेत का विलय कर इसे भारत संघ में मिला लिया गया। दो रियासतों ‘सुकेत’ और ‘मंडी’ का विलय कर जिला मंडी की गठन किया गया।
स्रोत: गैजेटियर ऑफ सुकेत स्टेट 1927
हमें हमारे एक पाठक ने यह आर्टिकल भेजा था, जिसे हमने पब्लिश किया था। इस आर्टिकल के आधार पर ही हमने ‘रियासतकालीन हिमाचल’ नाम से सीरीज शुरू करने का विचार बनाया था। बाद में हमारे पाठक तरुण गोयल ने हमें जानकारी दी कि यह लेख मूलत: करुण भरमौरिया द्वारा लिखा है। पाठकों द्वारा भेजी गई जानकारी को बिना वेरिफाई किए पब्लिश किए जाने के लिए ‘इन हिमाचल’ खेद प्रकट करता है। आगे पूरा ख्याल रखा जाएगा कि ऐसा न हो।
-संपादक

(पाठक भी किसी रियासत के इतिहास का विवरण inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।)

बिलासपुर टनल रेस्क्यू ऑपरेशन का हीरो- राजेश

इन हिमाचल डेस्क।। 

बिलासपुर के टीहरा में हुए हादसे में दो मजदूरों को मौत के मुंह से निकलने में 10 दिन की अनथक मेहनत लगी।  इस कार्य में बड़ी कंपनी के इंजीनियर्स,  एनडीआरएफ,  बीआरओ के जवान, सहायक मजदूर एवं प्रशासन के साथ एक ऐसे शख्स का नाम लेना भी बहुत जरूरी है, जिसके टैलंट के कारण ही पांचवें दिन मजदूरों के ज़िंदा होने की पुष्टि हो पायी थी।

राज कम्युनिकेशन घुमारवीं के मालिक राजेश शर्मा ने इन दुर्गम परिस्थितियों में जमीन से 50 मीटर नीचे सीसीटीवी कैमरा और माइक्रोफोन पहुंचाया। यह कोई आसान कार्य नहीं था। इन हिमाचल के साथ खास बातचीत में राजेश शर्मा ने इस बारे में डीटेल में बताया कि यह सब कैसे सम्भव हो पाया और क्या परेशानियां आईं।

राजेश शर्मा
राजेश ने बताया कि जब सुरंग के मेन गेट से मलबे को हटाकर अंदर जाना पॉसिबल नहीं रहा तो इन्जिनियर ने फैसला लिया कि सुरंग के ऊपर कहीं से नीचे होल कर के हम सीसीटीवी कैमरा नीचे भेजंगे और स्थिति का पता करेंगे। यह कोई आसान कार्य नहीं था। पहले तो  पहाड़ी के ऊपर जहां होल करना था, वहां जाने के लिए सड़क बनानी पड़ी। ड्रिलिंग को कम्पलीट होते-होते पांच दिन लग गए। राजेश  ईमानदारी से कहते हैं कि पांच दिन बाद किसी को भी नीचे मजदूरों के  जिन्दा होने की उम्मीद नहीं थी।

पढ़ें: हिमाचल की बेटियों के लिए प्रेरणा बनीं जिलाधीश मानसी सहाय ठाकुर

राजेश बताते हैं कि ड्रिलिंग खतम होने के बाद अब मेरा काम शुरू था। परन्तु चुनौती यह थी कि 50 मीटर तक सीसीटीवी कैमरे को कैसे उतारा जाए। वह भी 4 इंच के उस छेद से, जहां  पानी भी रिस रहा था। कैमरा भी इस तरह से पहुंचना चाहिए था कि नीचे उसे हर दिशा में घुमा सकें।  ऐसा करने में बार-बार परेशानी आ रही थी।

साइट पर अपने कार्य में लगे हुए  राजेश
निराश हुए जब सीसीटीवी में कोई नहीं दिखा
राजेश कहते है कि एक घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद जब कमयाबी हाथ नहीं लगी तो हमने वही तरीका अपनाया, जिससे कठपुतलियां कंट्रोल की जाती हैं। मगर तब निराशा छा गई, जब कैमरे को इधर-उधर घुमाने पर कोई हलचल नहीं दिखी। इतनी मशक्कत के बाद यह सब निराश कर देने वाला था। तभी उन्हें लगा कि हो सकता है मजदूर कैमरे वाले स्थान से दूर हों और अंधेरे में वैसे भी कहां कुछ दिखता।

पहली बार सुनी सतीश की आवाज

फिर एक नया ट्रिक आजमाया गया। कैमरे को ऊपर खींच  लिया गया और एक जलती हुई टॉर्च नीचे भेजी गयी। यह तरीका वाकई लाज़बाब था और काम भी कर गया।  टॉर्च की रौशनी वहां से 100 मीटर दूर मशीन पर बैठे मजदूरों को दिख गई। यह टॉर्च की रौशनी नहीं थी, यह उम्मीद और जिंदगी की रौशनी थी। सतीश और मनीराम दोनों मजदूर उस ओर लपके। राजेश कहते हैं मैं होल के ऊपर से आवाजे भी लगा रहा था। तभी नीचे से भी आवाज आई। राजेश ने बताया, ‘यह मेरी जिंदगी का सबसे ज्यादा ख़ुशी का पल था। मैंने सबको बताया कि नीचे से भी आवाज आ रही है पर कोई नहीं माना। लोगों ने कहा यह तुम्हारी आवाज वापस आ रही है। पर मैं जानता था कि यह आवाज मेरी नहीं, नीचे से आ रही है।’

राजेश ने बताया, ‘इस बात को पुख्ता करने के लिए अब  मैंने दोबारा सीसीटीवी कैमरा और उसके साथ वन-वे माइक्रोफोन नीचे भेजा। सीसीटीवी कैमरा जब नीचे पहुंचने वाला था, मजदूर सतीश ने उसे अपने हाथों से खींचा और ऊपर तक सबको पता चल गया नीचे कोई है जो अपने आप डोरी को खींच रहा है। थोड़ी देर में ही पेड़ से लगी हमारी स्क्रीन पर दो चहरे दिखे। यह हम सबके लिए खुशी का पल था। इस खबर के साथ पूरा हिमाचल झूम गया। बचाव अभियान अब  नए जोश में था।  फिर टू-वे कम्युनिकेशन सेट किया गया फिर रोज कई बार बात होने लगी।’

प्रथम बार जब स्क्रीन पर दिखे मजदूर
‘देखा नहीं था पर सतीश से दोस्ती हो गई’
राजेश बताते हैं सतीश तोमर ही अक्सर नीचे से बात करता था। उसका सेन्स आफ ह्यूमर और हिम्मत  जबरदस्त थी। राजेश ने बताया, ‘अक्सर मैं ही मजदूरों से बात किया करता था। सतीश को पहले कभी देखा नहीं था पर एक दोस्ती टाइप हो गयी थी और बस अब उसी दिन का इंतज़ार था कब वो बाहर आए।  यह इंतज़ार लंबा खिंच रहा था चिंता भी होती थी परन्तु आखिर 10 वे दिन भगवान की कृपा से वो बाहर निकाल लिए गए। अब उनसे मिलूंगा जब वो हॉस्पिटल में थोड़ा ठीक हो जायेंगे तो।’
बहुत काम सोये पांच दिन
राजेश ने बताया कि दोनों बन्दों के जीवित होने का पता लगने के बाद दिन रात काम होने लगा फिर बहुत कम सोना होता था। पांच दिन बस वहीं साइट पर ही कभी 2 या 3 घंटे की नींद हो पाती थी। परन्तु दिल को एक सकून मिलता था कि नहीं, इस पुण्य कार्य को करना है। सबसे पहले मुझे यह पता चला कि अंदर लोग जिन्दा है यह मेरे लिए बहुत ही गर्व और रोमांच भरा अनुभव था।’
ऑपरेशन का अंतिम चरण जब नीचे उतरा  जवान
राजेश कहेते हैं कि अब बस यही दुआ भगवान से है कि तीसरा मजदूर हिरदा राम भी खाएं देव कृपा से सलामत हो।

‘इन हिमाचल’ राजेश शर्मा  के जज्बे,  संवेदना और टैलट  को सलाम करता है

पढ़ें: हिमाचल की बेटियों के लिए प्रेरणा बनीं जिलाधीश मानसी सहाय ठाकुर

हिमाचल की बेटियों के लिए प्रेरणा बनीं आईएएस मानसी सहाय ठाकुर

इन हिमाचल डेस्क।।

बिलासपुर के टीहरा में हुए सुरंग हादसे और बचाव कार्य के घटनाक्रम के दौरान लोगों ने कुदरत के चमत्कार मजदूरों की हिम्मत के साथ एक और  बड़ी चीज देखी। वह थी- जिला बिलासपुर की उपायुक्त मानसी सहाय ठाकुर का सवेंदनशील प्रबंधन।

मानसी सहाय ठाकुर के जज्बे को देखकर वहां का हर शख्स हैरान था।  12 सितमबर से मानसी ठाकुर लगभग 24 घंटे घटनास्थल पर मौजूद रहीं। बचाव कार्यों की  निगरानी  करते हुए बारिश में छाता लेकर कीचड़ से सने रास्तों से  गुजरती इस महिला आईएएस की अपनी ड्यूटी के लिए निष्ठा काबिले तारीफ़ थी।


घटनास्थल पर ही शिफ्ट कर दिया था जिलाधीश कार्यालय 
मानसी ठाकुर ने मजदूरों के परिजनों के वहीं रहने के लिए सारे प्रबंध किए थे।  सब से बड़ी बात है कि इन्होंने इतने दिनों के लिए अपने आफिस को भी यहीं शिफ्ट कर दिया था। बचाव कार्य की निगरानी के साथ ऑफिस के कार्यों फाइल्स आदि को वो यहीं से चला रहीं थीं। मानसी को उस समय आलोचना का सामना भी करना पड़ा, जब उन्होंने घटनास्थल पर मीडिया के प्रवेश से पाबंदी लगा दी।  परन्तु ऐडमिनस्ट्रेटर के नजरिए से सोचा जाए तो यह एक वाजिब फैसला था, क्योंकि जीरो ग्राउंड पर किसी भी तरह की डिस्टरबेंस से  बचाव  कार्य में रुकावट आ सकती थी।
मुख्यमंत्री को रहत कार्यों का ब्योरा देती मानसी ठाकुर
खुद मंदिरों में मांगी मन्नत
बचाव कार्य के दौरान जब बार-बार ड्रिलिंग मशीन में खराबी आ रही थी तो स्थानीय लोगों ने कहा कि देवताओं को मनाया जाए तो बात बन सकती है। इस बात पर बिना कोई तर्क किये अंदर फंसे दो मजदूरों की जिंदगी की खातिर खुद यह महिला आईएएस मजदूरों  के परिजनों के साथ स्थानीय मंदिरों में पूजा करने गईं एवं मशीनों की पूजा भी की।

पढ़ें: बिलासपुर टनल रेस्क्यू ऑपरेशन का हीरो- राजेश

सबसे पहले प्रशासन की तरफ से मानसी  ठाकुर ने ही अंदर मजदूरों से फोन पर बात की थी। मानसी का कहना है अभी ऑपरेशन कम्पलीट नहीं हुआ है। जब तक तीसरे मजदूर का कुछ पता नहीं चल जाता, हमारा कार्य जारी रहेगा।

कुलमिलाकर  निर्माण कंपनी की तरफ से हो सकता है कोताही हुई हो, जिसकी वजह से यह हादसा हुआ। लेकिन बिलासपुर जिला प्रशासन और खुद जिलाधीश ने जिस तरह से अग्रिम पंक्ति में मोर्चा संभाला था, वह लोगों में चर्चा का विषय है।

मानसी ठाकुर जैसे महिला अधिकारी हिमाचल प्रदेश की हर बेटी के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं। खासकर पैरंट्स के लिए भी कि बेटियां भी पढ़-लिखकर महत्वपूर्ण पदों पर जा सकती हैं और  कठिन परिस्थितियों में  जिम्मेदारी का निर्वहन कर सकती हैं।
‘इन हिमाचल’ जिलाधीश बिलासपुर मानसी सहाय ठाकुर के जज्बे, कर्तव्यनिष्ठा और संवेदना  को सलाम करता है।

पढ़ें: बिलासपुर टनल रेस्क्यू ऑपरेशन का हीरो- राजेश

कितना जायज है बीजेपी का धर्मशाला विरोध?

सुरेश चंबियाल।।

स्मार्ट सिटी में धर्मशाला का नाम आते ही भाजपा एवं कांग्रेस में तलवारे खिंच गयीं हैं। हिमाचल बीजेपी शिमला से लेकर सोलन ऊना तक धर्मशाला के विरोध में बयान देने लगी है।  हालाँकि राजनैतिक नफे नुक्सान को ध्यान में रखते हुए काँगड़ा घाटी के बीजेपी नेता इस मुद्दे पर मौन धारण किये हुए हैं।  कांगड़ा के बीजेपी नेताओं की फ़ौज जिसमे दिग्गज शांता कुमार से लेकर  किशन कपूर, विपिन सिंह परमार ,  सरवीन चौधरी  आदि शामिल हैं ने धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बनाए जाने के फैसले का आधिकारिक  रूप से कोई स्वागत नहीं किया है न ही मीडिया में इस बारे में ब्यान दिया है।

दूसरी तरफ गणेश दत्त भाजपा प्रवक्ता एवं युवा बीजेपी नेता चेतन बरागटा ने खुलेआम शिमला को शामिल न किये जाने पर नाराजगी जताई है।  बीजेपी इस मामले को कोर्ट और राज्यपाल तक लेकर गयी है यह दर्शाता है की ऊपरी एवं नीचले हिमाचल का भेद आज भी विकास कार्यों में कितना बाधक है।  स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत हिमाचल में से दो सिटी शिमला धर्मशाला में से एक का चुना जाना था जिसमे धर्मशाला को चुन लिया गया बस इतनी सी बात पे तलवारे खिंच गयीं  हैं। हालाँकि शिमला सिटी को केंद्र ने अन्य योजना ” अमृत ” के तहत चुना है उसमे भी शिमला को लगभग उतनी ही धनराशि अपनी सुविधाएँ एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने के लिए मिलेंगी जितनी धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में मिलेंगी।

जनता शिमला की भी खुश है और पुरे प्रदेश की भी खुश है की हमारा एक सेहर इस प्रोजेक्ट में शामिल हुआ है तो चलो  पहले देखा तो जाए की स्मार्ट सिटी में होता क्या है क्या क्या सुविधाएँ होंगी लोगों की जिज्ञासा इसमें हैं।  परन्तु राजनैतिक दलों की जिज्ञासा वोट बैंक के नफे नुक्सान और अपने आप को किसी सिटी का शुभचिंतक दिखाने में है।

धर्मशाला के पीछे तर्क दिया जा रहा है की स्थानीय मंत्रीं होने के कारण  धर्मशाला को विशेष फायदा पहुँचाया गया। चलो मान भी लिया जाए की ऐसा हुआ है  परन्तु क्या पहली बार प्रदेश में ऐसा हुआ है की किसी मंत्रीं ने अपने क्षेत्र के लिए विशेष प्रेम दिखाया हो क्या बीजेपी के नेताओं ने  मंत्री रहते कभी ऐसा नहीं किया।  इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ बीजेपी के मंत्रियों ने भी अपने क्षेत्रों को तवज्जो दी है
शांता कुमार ने मुख्यमंत्री रहते एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी,  वेटिनरी  कालेज, और वूल सवर्धन संस्थान आदि पालमपुर में नहीं  खोले  थे क्या ? पटवारी ट्रेनिंग संस्थान वहीं नहीं खुला क्या जहाँ  जोगिन्दरनगर से गुलाब सिंह राजस्वा  मंत्रीं थे?  धूमल के मुख्यमंत्री रहते  सर्विस सिलेक्शन बोर्ड और टेक्नीकल यूनिवर्सिटी हमीरपुर नहीं खुली क्या।  यहाँ तक कुछ वर्ष पहले जब केंद्र की सोलर सिटी योजना आई तो बीजेपी शाषित हिमाचल सरकार ने शिमला एवं हमीरपुर को इसमें शामिल करवाया। तब  हमीरपुर जैसे कस्बे  के विरोध में  सोलन धर्मशाला मंडी का नाम क्यों नहीं जोड़ा गया।  तब डाक्टर बिंदल को सोलन सिटी की ऐतिहासिकता की याद क्यों नहीं आई ?
नाहन के विधायक डाक्टर बिंदल का कहना है की  धर्मशाला से  मंत्री है इसलिए  इस सिटी को नगर निगम का दर्जा मिला सोलन, मंडी हमीरपुर को  को नगर निगम का दर्जा क्यों नहीं दिया।   अब इसका जबाब क्या डाक्टर बिंदल के पास होगा की हिमाचल में जब  शिक्षा क्षेत्र में निजीकरण की बात आई तो उनके मंत्रीं रहते   सोलन में  ही  क्यों 5 -5 यूनिवर्सिटी  5 किलोमीटर के दायरे में खोल दीं  गयीं।  क्या उन्हें हिमाचल में अलग अलग जगह नहीं खोला जा सकता था ???
चाहे बाली का नगरोटा डिपो हो , धूमल सरकार का अत्ति  हमीरपुर प्रेम हो या वीरभद्र सिंह का सचिवालय में शिमला ग्रामीण के लिए अलग सेल का निर्णय।  यह एक प्रदेश के रूप में  हिमाचल का बंटाधार कर रहे हैं।  क्या हम फिर उन रियासतों के युग में जा रहे हैं जहाँ काँगड़ा से लेकर सांगला तक सबकी अपनी अपनी रजवाड़ा शाही थी।  प्रदेश को ना देख कर हर कोई सत्ता के दम पर अपने को मजबूत करने पर तुला है।
लेखक के रूप में मैं यहाँ  सुधीर शर्मा के ऊपर लगे आरोपों पर जबाब नहीं दे रहा बल्कि राजनीति और नेताओं के इस व्यव्यहार से आहत हूँ की सत्ता में रहते अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए हर सुविधा संस्थान को को वो अपने क्षेत्र में ले जाना चाहते हैं और विपक्ष में होने पर सारे हिमाचल के शुभचिंतक बन जाना चाहते हैं।
बहुत चालाकी से मूल मुद्दों और अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान बँटाकर उसे भी अपनी इसी खिचड़ी में खींच लेने की यह  राजनीति एक समग्र हिमाचल के भविष्ये के लिए बहुत घातक है। उदाहरण के लिए आजकल बस डिप्पो पर भी नया अभियान छिड़ा है जोगिन्दर नगर के विधायक गुलाब सिंह ने  जोगंदेरनगर में सिग्नेचर अभियान शुरू किया है की जोगिन्दरनगर को परिवहन निगम का  बस डिप्पो दिया जाए।  मुझे समझ में नहीं आता की बस डिप्पो से किसी क्षेत्र के विकास कैसे जुड़ा है।  जहाँ बस डिप्पो नहीं है वहां बसे नहीं चलती क्या ? और अगर ये डिप्पो  इतने ही जरूरी हैं तो दो बार मंत्रीं रहते उनके समय में क्यों नहीं बन गए ?? यह एक राजनाति है जिसे भावनाओं की राजनीति कहा जाता है।
राजनीति में उलझी सेंट्रल यूनिवर्सिटी निर्माण के लिए तरस रही है , धर्मशाला क्रिकेट मैदान पर दो परिवार आमने सामने हैं।  मंडी  मेडिकल कालेज का भविष्ये अधर में हैं।  बेरोजगारों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है।  70 % रोजगार के दावे हवा हैं।  प्रदेश के उद्योगो  पावर प्रोजेक्ट्स में बाहर के इंजीनियर को जहाँ अच्छी सैलरी
 दी जाती है वहीँ प्रदेश के लोकल इंजीनियर को 10 हजार रुपये ऑफर किये जाते हैं की इसकी तो मजबूरी है यह कहाँ जाएगा।  इन मामलों को उठाने वाला कोई नहीं है।
हर पांच साल में सत्ता बदल रही है हिमाचल की नीति और भविष्ये की रूपरेखा नहीं।  यहाँ आरोप प्रत्यारोपण की होड़ है  solution किसी के पास नहीं है। इस लेख के माध्यम से मैं माननीयों को बस यही बताना चाहता हूँ की स्मार्ट सिटी में जो होगा सो होगा जहाँ बन रही है उसे बनने दे आखिर एक बार देखें तो की स्मार्ट सिटी से किसी सिटी की तस्वीर कैसे बदलती है।  बाकी  चुने हुए माननीय अगर  अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों के अस्त व्यस्त कस्बों में नियमित पार्किंग इंफ्रास्ट्रक्चर , खेल मैदान पब्लिक पार्क के लिए अगर सोचना शुरू करें कोई योजना लाएं बजट पर ध्यान दें तो मुख्या सड़क के आसपास बेतरीब दिखने वाले हिमाचल के छोटे छोटे कस्बे भी स्मार्ट हो जायंगे।
हो सकता है की धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में आने के लिए नगर निगम का दर्जा जरूरी हो तो दिया गया  हालाँकि मुझे नहीं पता सच्चाई क्या है या नगर पालिका से नगर निगम बनने से जनता को कितना फायदा होता है परन्तु हिमाचली  के तौर पर  मैं कांगड़ा चम्बा शिमला सोलन के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण  हिमाचल के लिए सवेंदनशील हूँ और यह बताना चाहता हूँ भाजपा हो या कांग्रेस सबके राज में मंत्रियों ने अपने क्षेत्रों के लिए फायदे लिए हैं कुछ नया कहीं नहीं हो रहा है।
आप सब लोग भी मुझ से सहमत होंगे की आम जनता की दिलचस्पी इसी में है की हिमाचल की तरक्की हो वो आगे बड़े कोई भी संस्थान कहीं खुले, कोई सिटी किसी प्रोजेक्ट में आये  इस से सिर्फ नेता लोगों की राजनीति को फरक पड़ता है जनता को नहीं बस वो अपने साथ जनता को भी इसी रार में खींच लेना चाहते हैं।
(आप भी अपने लेख inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं)

जॉइंट (भांग) की चपेट में हिमाचली नस्लें

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इन हिमाचल डेस्क।। 

हिमाचल प्रदेश की युवा पीढ़ी किस कदर नशे की गिरफ्त में है, यह घटना सोचने के लिए मजबूर कर रही है। दो दिन पहले ब्यास में बहे सुंदरनगर के एक निजी बहुतकनीकी संस्थान के छात्रों के तीसरे दोस्त ने जो कहानी बताई है, वो पैरंट्स के साथ साथ समाज के लिए भी चिंता का विषय है।

युवकों के तीसरे साथ सोनू ने बताया सोनू निवासी बरोटी ने पुलिस को बताया है कि तीनों साथी सुंदरनगर से ब्यास में यहां भांग मलने के लिए आए थे। ब्यास पार करने के बाद घंटों तक भांग के पौधों से भांग निकाली और उसके बाद वापस चल पडे़, लेकिन दो साथी फिर वापस उसी जगह चले गए। दोनों के जूते वहां रह गए थे। इसके बाद जब दोनों युवक फिर से नदी पार करके आ रहे थे, तो तेज बहाव में बह गए।

चरस पीते हुए व्यक्ति का सांकेतिक चित्र

सोनू के मुताबिक बहे युवकों में सुरजीत सिंह पुत्र राम प्रकाश निवासी निरथ कुल्लू और लक्की शर्मा पुत्र विनोद शर्मा सुधेड़ धर्मशाला थे। सुरजीत सिंह जिला के निजी बहुतकनीकी संस्थान में अंतिम वर्ष का छात्र था, जबकि लक्की शर्मा संस्कृत में पढ़ाई कर रहा था।

कैनबिस/भांग क्या है?
कैनबिस सैटिवा और कैनबिस इंडिका बिछुआ (नैटल) परिवार के सदस्य है जो कि सदियों से दुनिया भर में जंगली पाये जाते हैं। दोनों पौधों का प्रयोग भिन्न प्रयोजनों के लिए किया गया है जैसे कि रस्सी व वस्त्र बनाने के लिए, एक चिकित्सा जड़ी-बूटी के रूप में या फिर लोकप्रिय मनोरंजन दवा/पदार्थ के लिए।इस पौधे का उपयोग इस प्रकार होता है:
राल (रेसिन):   एक भूरी काली गांठ जिसे भांग, गांजा, चरस राल आदि के रूप में जाना जाता है।
हर्बल भांग :  यह सूखे फूलों एवं विभिन्न मात्रा के सूखे पत्तों से बनता है। यह ग्रास, मारिजुआना, स्पिलफ या वीड् के नाम से जाना जाता है।

भांग के पत्ते

‘स्कंक’ भांग की ताकतवर किस्मों में से एक है, जिसे सक्रिय पदार्थों की ज्यादा उच्च मात्रा होने के कारण उगाया जाता है। जब यह बढ़ रहे होते हैं तो इनसे तीखी गंध आती है, यह नाम उसी के संदर्भ में है। यह ग्रो लाइट्स या ग्रीनहाउस में अक्सर हाइड्रोपोनिक तकनीक (मिट्टी की बजाय पोषक तत्व से भरपूर तरल पदार्थ में बढ़ना) द्वारा उगाए जा सकते हैं। भांग की अन्य 100 से अधिक किस्में हैं जो कि विदेशी नामों से जानी जाती है जैसे- ए.के. 47 या डिस्ट्रायर (विनाशक)।

स्ट्रीट भांग विभिन्न ताकतवर प्रकारों में आ सकता है। इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि एक समय पर वास्तव में भांग का कितना सेवन किया गया है।

प्रयोग कैसे किया जाता है?

आमतौर पर भांग की राल और सूखे पत्तों को तंबाकू के साथ मिश्रित कर के ”स्पिलफ“ या ”ज्वाइण्ट“ के रूप में धूम्रपान किया जाता है। धुंये को जोर से श्वास में लिया जाता है व कुछ क्षण के लिए फेफड़ों में रहने दिया जाता है। इसका धूम्रपान एक पाइप, एक पानी के पाइप या एक डिब्बे में एकत्र करके किया जा सकता है। इसे चाय के रूप में पिया  जाता है या केक में पकाया जाता है।

क्यों आकर्षित होते हैं युवा : 

इसके सेवन से हाई  फीलिंग आती है इसमें अत्यंत आराम, खुशी, निद्रा की अनुभूति होती है। रंग तीव्र दिखाई देते हैं और संगीत बेहतर सुनाई देता है।  इन्ही चंद लम्हों की ख़ुशी के लिए युवा अपने स्वास्थ के साथ समझोता करने लगे हैं।

लड़कियां भी पीछे नही
यह तो मात्र सामने आई हुए एक घटना है।  पुरे प्रदेश की बात की जाए तो गावं गावं तक यह नशा फ़ैल चूका है।  चाँद पैसों की कमाई के लिए एजेंट युवाओं में भांग सप्लाई कर रहे हैं। अच्छे  संस्थानों में पढ़ने वाले  पढ़े लिखे घरों के बच्चे भी इन व्यसनों की  चपेट में हैं।  लोकल भाषा में ये लोग इसे माल या जॉइंट कहते हैं।  यह लगभग हर छोटे बड़े कसबे या चौक में आसानी से उपलब्ध है।  हिमाचल में कई ऐसे राष्ट्रीय स्तर के प्रितिष्ठित संस्थान हैं जहाँ के छात्र अक्सर ऐसी जगहों पर देखे जाते हैं जहाँ एजेंट इसकी बिक्री करते हैं।

ऐसे ही एक नामी संस्थान की एक लड़की ने  नाम ना बताने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को  बताया कि वो हॉस्टल में रहती है और उनके यहाँ भी ‘माल’ ठीक ठाक चलता है।  कुल मिलाकर पुलिस और खुफिया एजेंसियों की  विफलता से यह गोरखधंधा इतना फल फूल गया है कि  भांग अब सुलभ तरीके से मिलने लग गयी है।

भांग के नशे में डूबे हुए यह युवक-युवतियां अपने आप को ‘बावा’ कहते हैं और भोलेनाथ के भगत होने का दिखावा करते हैं।  परन्तु सोचने वाली बात है जिस उम्र में विचार जागृत होने चाहिए, भविष्य के निर्माण की रूपरेखा बनानी चाहिए, उस उम्र में  नशे की चपेट में आकर  हिमाचली पीढ़ी अलग ही दुनिया में पहुँच रही है।

ये हैं दुष्प्रभाव:

10 में से 1 भांग उपयोगकर्ता को अप्रिय अनुभव होते हैं, जिसमें भ्रम, मतिभ्रम, चिंता और भय शामिल हैं। एक ही व्यक्ति को अपने मूड/मनःस्थिति या परिस्थितियों के अनुसार प्रिय या अप्रिय प्रभाव महसूस हो सकते हैं। यह भावनायें आमतौर पर अस्थायी होती हैं पर क्योंकि भांग शरीर में कुछ हफ्तों के लिए रह सकती है इसलिए इसका प्रभाव ज्यादा समय के लिए हो सकता है जिसका अहसास उपयोगकर्ताओं को नहीं होता है। लंबी अवधि के उपयोग से अवसाद हो सकता है, प्रेरणा पर प्रोत्साहन की कमी हो सकती है।

शिक्षा और अभ्यास पर प्रभाव –
ऐसा माना गया है कि भांग एक व्यक्ति की निम्नलिखित क्षमताओं में हस्तक्षेप कर सकता है

-ध्यान केन्द्रित करने में
-जानकारी को व्यवस्थित करने में
-जानकारी को इस्तेमाल करने में

उपयोग के बाद यह प्रभाव कई हफ्तों तक रह सकते हैं जो कि छात्रों के लिए विशेष रूप से समस्यायें पैदा कर सकते हैं।

न्यू जीलैंड में एक बड़े अध्ययन में 1265 बच्चों को 25 साल तक देखा गया और यह पाया गया कि किशोरावस्था में भांग का उपयोग खराब स्कूल प्रदर्शन से जुड़ा हुआ था परन्तु इन दोनो के बीच कोई सीधा संबंध नहीं मिला। ऐसा लगा कि शायद यह इसलिए है क्योंकि भांग के उपयोग से जो जीवन शैली अपनाई जाती है उससे स्कूली कार्य करने में कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता।

काम-काज पर प्रभाव
काम करने वाले लोगों में इसका समान प्रभाव है। इसका कोई सुबूत नहीं है कि भांग विशिष्ट स्वास्थ्य खतरों का कारण बन सकता है। परन्तु उपयोगकर्ताओं में बिना अनुमति काम छोड़ने, काम के समय व्यक्तिगत मामलों पर समय बिताने व दिन में सपने देखने की संभावना कहीं अधिक होती है। भांग के उपयोगकर्ता स्वयं यह बताते हैं कि भांग/नशीली दवाओं के द्वारा उनके काम व सामाजिक जीवन में हस्तक्षेप होता है। बेशक कुछ कार्य क्षेत्र दूसरों की तुलना में अधिक कठिन होते हैं। पायलटों पर, भांग के प्रभाव पर किये अनुसंधान की समीक्षा से पता चला कि पायलटों द्वारा भांग न लेने की तुलना में भांग लिए जाने पर कहीं ज्यादा गलतियां हुयीं – छोटी और बड़ी दोनो। जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, परीक्षण उड़ान सिमुलेटर में किया गया, वास्तविक उड़ान में नही। सबसे बुरे प्रभाव पहले 4 घंटे में थे, हालांकि वह कम से कम 24 घंटे तक बने रहे जबकि पायलट को ”हाई“ होने की सुध/जानकारी नहीं थी। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि हम में से अधिकांश लोग इस जानकारी के बाद ऐसे पायलट के साथ उड़ान नहीं भरना चाहेंगे जिसने पिछले एक दिन के भीतर भांग का सेवन किया हो।

ड्राइविंग पर प्रभाव
न्यूजीलैंड में शोधकर्ताओं ने पाया कि वह लोग जो नियमित रूप से भांग का सेवन करते थे और जिन्होंने ड्राइविंग से पहले धूम्रपान किया था उनमे कार दुर्घटना में घायल होने की संभावना ज्यादा थी। फ्रांस में हाल ही के एक अध्ययन में 10000 ड्राइवर्स को, जो कि घातक कार दुर्घटनाओं में शामिल थे, लिया गया। शराब के प्रभाव को भी खाते में लेने पर यह पाया गया कि दूसरों की तुलना में भांग उपयोगकर्ताओें घातक दुर्घटना होने की संभावना दोगुना थी। इसलिए शायद हम में से अधिकांश लोग ऐसे वाहन में जाना पसंद नहीं करेंगे जिसके संचालक द्वारा एक दिन पहले भांग का सेवन किया गया हो।

मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं
इस बात का प्रमाण बढ़ रहा है कि जो लोग किसी गंभीर मानसिक बीमारी, अवसाद या मनोविकृति से ग्रसित होते हैं उनमें कैनबिस उपयोग की संभावना अधिक होती है या फिर अतीत में इन लोगों ने कैनबिस लंबी अवधि के लिए इस्तेमाल किया है। कैनबिस के नियमित उपयोग से साइकोटिक एपिसोड या स्किजोफ्रेनिया होने का खतरा दोगुना हो सकता है। हालांकि स्पष्ट नहीं है कि भांग के कारण अवसाद और सिजोफ्रेनिया हो सकता है या फिर इन विकारों से ग्रसित लोग इसे दवा के रूप में उपयोग करते हैं?

पिछले कुछ वर्षों में किए गए अनुसंधानों से यह बात दृढ़ता से कही जा सकती है कि आनुवांशिक भेद्यता के लोगों में जल्दी कैनबिस के उपयोग और भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के होने में एक स्पष्ट कड़ी है। इसके साथ ही किशोरों द्वारा भांग का उपयोग अपने में एक विशेष मुद्दा है।

भांग पीकर अपने आप को बावा टाइप बताने वाले इन लोगों का  कहना होता है की यह नशा शराब आदि से सही है । और एकाग्रता  बढ़ाता  है।    स्वास्थ्य खतरे की चेतावनियों के बावजूद भी बहुत से लोग इसे हानिरहित पदार्थ समझते हैं जिससे शांत रहने तथा ‘चिल’ करने में मदद मिलती है और जो शराब और सिगरेट के विपरीत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। दूसरी ओर हाल में ही किये गये शोध के अनुसार आनुवांशिक भेद्यता के लोगों में यह मानसिक बीमारी को उत्पन्न करने का प्रमुख कारण हो सकता है।

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आजाद हिन्द फौज के हिमाचली योद्धा भी उत्सुक हैं नेताजी के रहस्य जानने के लिए

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इन हिमाचल डेस्क।। 

पश्चिम बंगाल सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े रहस्य से पर्दा उठाने के लिए शुक्रवार को उनसे जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक कर दीं। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि मैंने उसमें से कुछ फाइलें पढ़ी। उन्होंने कहा कि उन फाइलों के अनुसार 1945 के बाद नेताजी के जिंदा होने की बात सामने आई है। साथ ही ममता बनर्जी ने कहा कि उन फाइलों को पढ़नें के बाद पता चला है कि नेताजी की जासूसी भी होती थी। इन 64 फाइलों का डिजिटल संस्करण सात डीवीडी के एक सेट में उपलब्ध है। मूल फाइलें कोलकाता पुलिस संग्रहालय में रखी गई हैं। फाइलों में 12,744 पृष्ठ हैं और ये शोधकर्ताओं एवं विद्वानों के लिए उपलब्ध हैं। कोलकाता पुलिस आयुक्त सुरजीत कार पुरकायस्थ ने संग्रहालय में एक छोटे से समारोह के बाद फाइलों को नेताजी के वंशजों को सौंप दिया और इसकी प्रति संवाददताओं को भी दी।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 11 सितंबर को यह कहते हुए नेताजी से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक करने के अपनी सरकार फैसले की घोषणा की थी कि नेताजी के गायब होने से जुड़े रहस्य से पर्दा उठाए जाने की जरूरत है।
गांधी और पटेल के साथ नेता जी सुभाष चन्द्र बोस

ममता ने कहा,” नेताजी के गायब होने से जुड़ा रहस्य बरकरार है। इसलिए हमारे पास जो भी फाइलें हैं, हम उन्हें सार्वजनिक करेंगे, जिससे शायद उस रहस्य को दूर करने में मदद मिले।” उन्होंने कहा,”हमारे पास जो 64 फाइलें हैं, उन सभी को सार्वजनिक किया जाएगा। वे शहर के पुलिस संग्रहालय में रखी जाएंगी।”

नेता  जी से जुड़े रहस्यों पर से पर्दा उठने का इंतज़ार हिमाचल प्रदेश में भी बहुत से आजाद हिन्द फौज के सिपाही कर रहे हैं।  आजाद हिन्द फौज के सिपाही शुरू से ही यह मानते हैं की नेताजी वर्षों तक गुमनाम जीवन जीते रहे
और 1945 की विमान दुर्घःटना की खबर मिथ्या थी।  इन सेनानियों का कहना है की उम्र के अंतिम दौर में उन्हें भी पता चल जाएगा की उनके सुप्रीम कमांडर से जुड़ा रहस्य  क्या है।  फाइलों  से निकल कर आने वाली जानकारी को सुनने के लिए वो उत्सुक हैं।

बिलासपुर हादसा: टनल के अंदर फंसे मजदूरों का विडियो



इन हिमाचल डेस्क।। 
वीरवार को टनल में फंसे मजदूरों को ड्रिल कर डाले चार इंच के पाइप से रस्सी के सहारे भोजन भेजा गया। 200 एमएल की बोतल में उन्हें जूस, ड्राई फ्रूट और खिचड़ी भेजी गई। साथ ही दवाइयां, पानी और ग्लूकोज भी मजदूरों को मुहैया करवाया गया है।

यह सिर्फ तस्वीर है, विडियो नीचे है

मजदूरों को हर सामग्री डॉक्टरों के परामर्श के बाद ही दी जा रही है जो होल के पास मौके पर ही डटी हुई है। सूत्र बताते हैं कि वीरवार सुबह 11 बजे उन्हें ड्राई फ्रूट और पानी दिया गया। इसके कुछ देर बाद खिचड़ी भेजी गई।   पाइप के साइज के अनुसार 200 एमएल की पानी की खाली बोतलों में खाद्य सामग्री भरी जा जा रही है। पानी और अन्य सामग्री उसी में भेजी जा रही है। ग्लूकोज को पानी में मिलाकर भेजा जा रहा है। रेस्क्यू टीम के साथ हुए संपर्क में पता चला है कि टनल में फंसे मजदूरों ने अंदर मौजूद पोकलेन मशीन पर बैठकर दिन गुजारे। बताया जा रहा है कि टनल में रिसाव की वजह से पानी जमा हो गया है।

राजस्थान से मंगाई गई अत्याधुनिक पाइलिंग ड्रिलिंग मशीन  भी पहुंच गई है।  मशीन को होल करने वाले स्थान पर पहुंचाया दिया गया है। वीरवार रात से ड्रिलिंग शुरू कर दी गयी है।
रात को ड्रिलिंग शुरू कर दी गई है। जिला प्रशासन का दावा है कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो शुक्रवार को बड़ी खुशखबरी मिल सकती है। उधर, दूसरे विकल्प टनल में 30 मीटर तक प्रवेश किया जा चुका है। अब मात्र 10 से 15 मीटर मलबा हटाना शेष है।

बिलासपुर टनल हादसा: अंदर ज़िंदा हैं दो मजदूर, माइक्रोफोन से हुई बात

बिलासपुर।।

‎96 घंटे से घुप अंधेरी टनल में फंसे तीन में से दो मजदूर जिंदा हैं। पांच दिनों तक कड़ी मशक्कत करने के बाद बचाव टीमों ने बुधवार देर शाम 8.40 मिनट पर उनसे संपर्क स्थापित करने में कामयाबी हासिल की। वनवे माइक्रोफोन के जरिए  दोनों से बात की गई। प्रशासन का दावा है कि टनल में फंसे सतीश कुमार और मणिराम सकुशल हैं। बातचीत के बाद उन्हें पाइप के माध्यम से पानी, खाना एवं दवा भेजी गई है। टनल में फंसे तीसरे मजदूर हिरदा राम का अभी पता नहीं चल  पाया है। उसको भी तलाशने की कोशिश की जा रही है। डीसी बिलासपुर मानसी सहाय का कहना है कि दो मजदूर टनल के अंदर ठीक हैं। माइक्रोफोन के जरिए उनसे बातचीत के साथ ही उन्हें सीसीटीवी में भी देखा गया है। फोन पर सतीश कुमार और मणिराम ने कहा है कि वो ठीक हैं और जल्दी खाना भेज दो। उपायुक्त ने कहा कि अब टनल के ऊपर से बड़ा होल करके फंसे मजदूरों को निकालने का प्रयास किया जाएगा। टनल के अंदर से मलबे के बीच लोहे की
पाइप डालकर उनका रेस्क्यू किया जा रहा है। बचाव कार्य को और तेज कर दिया गया है। प्रशासन एनडीआरएफ और सेना से लगातार संपर्क कर रहा है। उधर, जैसे ही पांच दिनों से टनल में फंसे मजदूरों के जिंदा होने की खबर आई, परिजनों के साथ साथ पूरे इलाके में खुशी की लहर दौड़ गई। गौरतलब है कि बीते शनिवार को कीरतपुर-नेरचौक हाईवे की निर्माणाधीन टनल धंसने से इसमें तीन फंस गए थे।
हिमाचल हाईकोर्ट ने बुधवार को बिलासपुर टनल हादसे पर संज्ञान लेते हुए केंद्र और राज्य सरकार के अलावा हाईवे का निर्माण कर रही कंपनी से जवाब तलब किया है। हाईकोर्ट ने मजदूरों को निकालने के लिए अब तक किए प्रयासों की शुक्रवार ढाई बजे तक रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश मंसूर अहमद मीर और न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ ने प्रशासन की कार्यशैली पर नाखुशी जताते हुए उपायुक्त बिलासपुर से भी जवाब मांगा है।