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Sunday, September 14, 2025
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यह क्रिकेट का राजनीतिकरण नहीं, राजनीति का क्रिकेटीकरण है

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  • सर्वेश वर्मा

हिमाचल प्रदेश पिछले दिनों से चर्चा में है। चर्चा ही वजह है धर्मशाला में मैच को लेकर हुआ बवाल। मेरा मानना है कि यह मैच होना चाहिए था और इसके विरोध की कोई वजह नहीं थी। जिन लोगों ने भी इसका विरोध किया, वे ठोक वजह नहीं बता सके। नेताओं से पूछा गया कि आप क्यों विरोध कर रहे हैं, तो उनका कहना था कि शहीदों के परिवार विरोध कर रहे हैं, इसलिए उनकी भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। शहीदों के परिजनों के मन में गुस्सा क्यों था, यह बात समझ आती है। उन लोगों की भावनाओं पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, क्योंकि उन्होंने अपना खोया है। पूर्व सैनिक होने के नाते मैं इस बात को समझ सकता हूं।

मैच रद्द होने के बाद एक अलग ही हाल सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहा है। बीजेपी और कांग्रेस के दो खेमे आपस में पहले बहस किया करते थे, अब मैच समर्थनक और मैच विरोधी खेमे हो गए हैं। क्रिकेट ने राजनीति की दूरियों को पाट दिया है। अब मैच एक बड़ा मु्द्दा हो गया है। प्रदेश के नेताओं पर छींटाकशी हो रही है, अभद्र भाषा इस्तेमाल हो रही है। गिरने के चरम स्तर तक गिरकर आरोप लगाए जा रहे हैं। छुटभैय्ये नेता तो छोड़िए, बड़े नेताओं के परिजन तक इस कीचड़ में कूद चुके हैं।

आज मैंने हिमाचल के पूर्व मुख्यमंंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे और BCCI सचिव अनुराग ठाकुर के छोटे भाई अरुण की फेसबुक पोस्ट देखी तो विचलित हो गया। मैच रद्द होने से मैं भी आहत हुआ हूं, मगर जिस तरह की भाषा अरुण ने इस्तेमाल की है, वह चौंकाने वाली है। राजनीति में आने के लिए डेस्परेट दिखने वाले अरुण कई बार पहले भी वीरभद्र सिंह के प्रति असंयमित होकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं। मगर इस बार उन्होंने अपनी ही पार्टी के सीनियर नेता पर निशाना साधा है।

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अरुण ठाकुर (फेसबुक टाइलाइन से साभार)

अरुण ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल जिस नेता की उंगली पकड़कर राजनीति में आए थे, आज अरुण उसी पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। वह लिखते हैं-

‘जिन लोगों के विक्रम कुछ नहीं कर पाए उनके गठबंधन ने एक फ़्रॉड विनय को गोद लेके इस प्रदेश के साथ इतना बड़ा धोखा कर दिया । इस प्रदेश में यह ना हो वो ना हो, क्या यही राजनीति होगी या है कोई इस बात की भी चिंता करेगा कि क्या हो सकता है। प्रदेश के लोग तय करें जो लोग केवल अपना या अपने परिवार का कायाकल्प करते हैं वो लोग चाहिए या वो जो इस प्रदेश का कायाकल्प करने का मादा रखते हैं वो ।।
इन चार पंक्तियों में प्रदेश की राजनीति का सार है ।। उम्मीद है आप सब समझ गए होंगे। आप सब के विचार आमंत्रित हैं । जय हिंद जय हिमाचल ।।’


ऊपर जो शब्द मैंने बोल्ड किए हैं, वे पालमपुर में शांता कुमार द्वारा चलाए जा रहे ट्रस्ट के नाम की तरफ इशारा करते हैं। गौरतलब है कि शांता कुमार ने इस मैच का विरोध किया था। जिस तरह से मैच के समर्थन या विरोध को लेकर हम सभी की अपनी राय हो सकती है, उसी तरह से शांता कुमार की राय भी हो सकती है। मगर जब आर राजनीति में एक पार्टी का सहारा लेकर आने की इच्छा रखते हैं, उसी पार्टी के पितामहों पर निशाना साधना आपको शोभा नहीं देता।

जिन लोगों के विक्रम कुछ नहीं कर पाए उनके गठबंधन ने एक फ़्रॉड विनय को गोद लेके इस प्रदेश के साथ इतना बड़ा धोखा कर दिया । …
Posted by Thakur Arun Singh on Wednesday, March 9, 2016

ऐसी ही एक पोस्ट नीरज भारती की देखी। उस पोस्ट में नीरज भारती ने अनुराग ठाकुर को छक्का कहा है। आपत्ति इस बात से नहीं है कि अनुराग ठाकुर को छक्का कहा गया। छक्का कहना दिखाता है कि नीरज भारती की समझ का स्तर कितना है। छक्का शब्द हिंदुस्तान औऱ पाकिस्तान में उस तबके के लिए अपमानजनक रूप से कहा जाता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तृतीय लिंग या थर्ड जेंडर की पहचान दी है। वे हमारी और आपकी ही तरह इंसान हैं। अब तक वे उपेक्षित होते रहे, उस बात के लिए, जिसमें उनकी कोई गलती नहीं। उन्हें छक्का कहना और उनका उपहास उड़ाना सभ्य समाज को शोभा नहीं देता। इसी तरह से किसी और इसी तरह के शब्द संबोधित करना मानसिक दिवालियेपन की ही निशानी है। वैसे भी नीरज भारती के बारे में कुछ कहना भी बेकार लगता है। मुख्मंत्री ने उन्हें हिमाचल कांग्रेस का ब्रैंड ऐंबैसडर बना रखा है।

कुछ भारतीय जनता पार्टी के अंधभक्त भौंकु इस छक्के को HPCA का शेर कह रहे हैं बिल्कुल ठीक कह रहे हो अंधभक्त भौंकुऔं ये सिर…
Posted by Neeraj Bharti on Tuesday, March 8, 2016

मैं कभी राजनीति में नहीं पड़ा, न ही मेरी रुचि रही कभी। मगर मैंने सजग नागरिक होने के नाते प्रदेश की राजनीति पर नजर रखी है। वीरभद्र और शांता कुमार में लाख बुराइयां सही। इन बुुजुर्ग नेताओं ने हिमाचल के मौजूदा स्वरूप को आकार देने में महत्वूर्ण भूमिका निभाई है। शांता कुमार ने जो नीतियां बनाईं, उनमें से बहुतायत आज भी प्रदेश में फॉलो की जा रही हैं। वीरभद्र ने भी उन नीतियों को सराहा है और उन्हें जारी रखा है। इन नेताओं को पसंद करना या न करना आपके वश में है। उनकी आलोचना भी होनी चाहिए, मगर तथ्यों एवं तर्कों के आधार पर। व्यक्तिगत लांछन लगाकर नहीं।

यह अफसोस की बात है कि प्रदेश में लाँछन लगाने की राजनीति चरम पर है। अरुण ठाकुर की ही बात की जाए तो वह बीजेपी के मंच से कभी कुछ नहीं बोलते। कभी नीतियों पर चर्चा नहीं, फैसलों पर राय नहीं। मगर जब उनके पिता या भाई को लेकर कोई सवाल उठे, तो हिमाचल भाजपा उन्हें आगे कर देती है और पार्टी के मंच से वह वीरभद्र पर निशाना साधते हैं। फिर दोबारा गायब हो जाते हैं। अब एक कदम बढ़कर उन्होंने उस शख्त पर हमला कर दिया, जिसने प्रदेश में पार्टी को स्थापित किया है।

मैच तो एक बहाना है। प्रदेश में क्रिकेट के नाम पर जिस तरह से राजनीति हो रही है, वह अफसोसनाक है। असल मुद्दे गायब हैं। बजट पर कोई चर्चा नहीं, लोगों की समस्याओं का कोई जिक्र नहीं, बस मैच की चिंता है। अफसोस, उम्मीद थी कि राजनीति बदलेगी। मगर यह नहीं पता था कि राजनीति का क्रिकेटीकरण हो जाएगा।

(लेखक पूर्व सैनिक हैं और इन दिनों एक निजी यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य कर रहे हैं।)

मैच कैंसल होने से धर्मशाला में सुधीर शर्मा के प्रति रोष

कागड़ा।।

भारत और पाकिस्तान के बीच टी-20 वर्ल्ड कप मुकाबले को धर्मशाला से कोलकाता शिफ्ट होने को लेकर कांगड़ा जिले में बहुत से लोगों, खासकर युवाओं में नाराजगी देखी जा रही है। धर्मशाला में व्यापारी वर्ग में खासा रोष देखने को मिल रहा है। लोग न सिर्फ कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को कोस रहे हैं, बल्कि स्थानीय विधायक और शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा को भी बराबर जिम्मेदार बता रहे हैं।

धर्मशाला में एक वर्ग का मानना है कि मुख्यमत्री वीरभद्र सिंह द्वारा खुलकर धर्मशाला मैच का विरोध करने के पीछे दरअसल सुधीर शर्मा का ही हाथ है। कहा जा रहा है कि सुधीर नहीं चाहते थे कि धर्मशाला में मैच हो और अनुराग ठाकुर के प्रति समर्थन जुटे। इसीलिए उन्होंने मुख्यमंत्री के करीबी होने का फायदा उठाते हुए उन्हें इस मुद्दे पर गुमराह किया और मैच का विरोध करवाया। चर्चा है कि इसी वजह से मैच को लेकर सुधीर निजी राय व्यक्त करते रहे और खुलकर मैच का समर्थन नहीं किया।

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व्यापारी वर्ग में इस बात को लेकर गुस्सा है कि खुद को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का करीबी बताने वाले सुधीर शर्मा ने इस मैच को लेकर खुलकर कोई स्टैंड क्यों नहीं लिया। लोगों का मानना है कि सुधीर चाहते तो वह मुख्यमंत्री को मना सकते थे और समझा सकते थे कि यह मैच धर्मशाला के लिए कितना महत्वपूर्ण है। यही नहीं, उन्हें शहीदों के परिजनों से भी बात करनी चाहिए थी और समझाने की कोशिश करनी चाहिए थी। लोगों का कहना है कि सुधीर को अभी भी बताना चाहिए कि वह मैच के समर्थन में थे या पक्ष में।

गौरतलब है कि सुधीर शर्मा ने कहा था कि यह उनकी निजी राय है कि मैच होना चाहिए। मगर इसके अलावा वह सक्रिय रूप से कुछ भी कहते या करते नजर नहीं आए थे। धर्मशाला के लोगों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि कांग्रेस ने इस मामले में राजनीतिक रंजिश के लिए शहीदों के परिवारों को ढाल बनाया। वहीं एक बड़ा तबका यह भी मानता है कि पाकिस्तान के साथ मैच नहीं होना चाहिए था और अच्छा हुआ कि यह कोलकाता शिफ्ट हो गया।

बाहर दवाई के तौर पर उगाई जाती है द्रागल या गाजल बेल

पहचाना?

ये है द्रागल बेले या गाजल बेल. एक ऐसा पौधा जिसका फल भयंकर खुजली पैदा करता है. इसका वैज्ञानिक नाम है- Mucuna pruriens. इसे velvet bean या cowitch समेत कई सारे नामों से जाना जाता है. ये अफ्रीका, कैरेबियाई द्वीपों और भारत में पाई जाती है.

mucuna-bean-pods

हमारे हिमाचल में तो ये झाड़ियों और जंगलों में ही उगती है लेकिन बाहर इसकी खेती की जाती है. एक तो इसलिए क्योंकि ये नाइट्रोजन फिक्सेशन करके जमीन को उपजाऊ बनाती है. इसे Green manure यानी कि Cover crop के तौर पर उगाया जाता है. साथ ही इसकी बिक्री भी की जाती है क्योंकि इसे आयुर्वेदिक दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. अफ्रीका में इसे सांप के काटने पर इलाज के लिए इस्तेमाल करते हैं.

इससे भयंकर खुजली होती है क्योंकि पकी हुई बीन्स के बाहर महीन बाल की तरह कांटे होते हैं जो त्वचा से चिपककर खुजली पैदा करते हैं. खुजली को कम करने के लिए या तो गोबर मला जाता है या फिर तंबाकू के पौधे की पत्तियां रगड़ी जाती हैं. साथ ही इनकी गुठली को बच्चे घिसकर गर्म करते हैं और शरारत के तौर पर दूसरे बच्चों से छुआते हैं. कई बार लोग दुर्भावना या शरारत के तौर पर इसका इस्तेमाल लोगों को परेशान करने के लिए करते हैं.

क्रिकेट की रार के बीच शिमला में अनुराग -वीरभद्र की मीटिंग !

  • इन हिमाचल डेस्क 
पाकिस्तान क्रिकेट टीम के धर्मशाला आगमन से पहले चल रही किचकिच के बीच बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर अभी अभी हिमाचल विधानसभा पहुंच गए हैं। यहां पहुंचते ही उन्होंने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से विधानसभा परिसर में मुलाकात की। मुलाकात के दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री को धर्मशाला में होने वाले टी-20 वर्ल्ड कप के मैच के लिए न्यौता दिया। अनुराग का मुख्यमंत्री से मिलना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि धर्मशाला में मैच को लेकर प्रदेश की वीरभद्र सरकार हाथ खड़े कर चुकी है। बीते कल ही मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा था कि केंद्र सरकार चाहती है कि प्रदेश में हंगामा हो तो मैच करवा लें। उन्होंने एचपीसीए पर भी हमला बोला था। वहीं,अनुराग ठाकुर ने ट्वीट कर कहा था कि क्रिकेट मैच को राजनीतिक रंग देने वाले अपने कमियां और अक्षमता को दर्शा रहे हैं। मैच रद होने से प्रदेश और देश की छवि पर दाग लगेगा। दूसरे ट्वीट में उन्होंने क्रिकेट फैन, पर्यटकों और आयोजकों का हवाला दिया हैं। इसमें उन्होंने कहा है कि सभी मैच कार्यक्रम के अनुसार काफी पहले अपने यात्रा प्लान बना चुके होते हैं। तीसरे ट्वीट में उन्होंने मैच रद करने या स्थान बदलने की संभावनाओं पर विराम लगाया था। इसी बीच आज उनका शिमला स्थित विधानसभा पहुंचना बड़ी बात है। क्योंकि बजट सत्र के दौरान अनुराग ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मुलाकात कर नया दांव खेल दिया है। यह अलग बात है कि वीरभद्र सिंह धर्मशाला में होने वाले टी-20 मुकाबलों के लिए आए या नहीं।
 सूत्रों की माने तो  कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला इस मामले में बीच बचाव में आये हैं।  राजीव शुक्ला पहले भी कह चुके हैं की मैं इस मामले में वीरभद्र सिंह से बात करूँगा।  राजीव शुक्ला की कांग्रेस आलाकमान से भी ठीक पैठ है इसलिए माना जा रहा है की वीरभद्र को मनाने में उनकी  तरफ से भी कोशिश की जा रही है।

वहीँ इस मामले में वीरभद्र सिंह ने मीटिंग के बाद कहा है की  अच्छा होता अनुराग ठाकुर पहले आते जो पहल अब की है उसे पहले करने की है जरूरत
वहीं  परिवहन मंत्री ने जीएस बाली अनुराग ठाकुर से अपील की है की  भूतपूर्व सैनिकों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए मैच स्थानांतरित करें
 शिमला धर्मशाला में भारत-पाक मैच का मामला शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा ने कहा मैच भूतपूर्व सैनिकों की भावनाओं के खिलाफ

सोचा नहीं था कि कोई नेता ऐसे मां-बहन की गाली देगा और मुख्यमंत्री चुप बैठेंगे

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आई.एस. ठाकुर।।

कभी नहीं सोचा था कि एक विधायक पहले तो अभद्र भाषा इस्तेमाल करेगा और फिर उसे टोका जाएगा तो वह हमारी मां **** की बातें करेगा। (पूरी बात पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)। इसकी भी कल्पना नहीं की थी कि यह सब खुलेआम होगा और कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या नेता कुछ नहीं करेगा।

यही नहीं, वह खुलेआम कहता है कि यह मेरी ही आईडी है। मीडिया में भी कह चुका है कि मैं लोगों को उनकी भाषा में ही जवाब देता हूं। फिर भी कार्रवाई नहीं हो रही।

मुख्यमंत्री से शिकायत की जाती है तो वह कहते हैं कि पहले बीजेपी वाले अपने को सुधारें। हम तो बीजेपी वाले हैं, न कांग्रेस वाले। हम हिमाचल के नागरिक हैं। हमारे लिए हिमाचल सत्ता का जरिया नहीं, हमारी जान और मान है। हमारे यहां का नेता अगर हमारी मां और बहन **** की बातें करेगा तो यह हमसे बर्दाश्त नही ंहोगा।

पिछली बार नीरज भारती नाम के इस शख्स ने पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को B…..C और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर M…. C  को लिखा था। तब विवाद हुआ था, मगर बीजेपी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से नहीं उठाया। सब जानते हैं कि इसका अर्थ क्या होता है। ऊपर से जनाब ने सफाई दी थी कि BC मतलब Before Christ और MC मतलब Mahan Chanakya. ये शब्द वाक्य में कैसे फिट बैठते हैं, इसे समझाने में वह नाकाम रहे थे। (पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


अफसोस की बात यह है कि कोई जनप्रतिनिधि इस तरह की भाषा इस्तेमाल कर रहा है, मगर कांग्रेस के मुख्यमंत्री और तमाम सीनियर नेता उसके खिलाफ मुंह नहीं खोलते। माना जा सकता है कि कांग्रेस के लोग अपने लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहते, मगर अनुराग ठाकुर और प्रेम कुमार धूमल के छींक मारने पर भी हंगामा कर देने वाली बीजेपी नेता क्यों खामोश हैं।

ये राजनेता खामोश रहते हों तो रहें, हम आम लोग खामोश नहीं बैठेगें। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को जवाब देना होगा कि उन्होंने क्यों ऐसे घटिया इंसान को CPS एजुकेशन बनाया है। क्या उन्हें इनकी भाषा में कुछ गलत नजर नहीं आता। और कहां गए मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार, जो आए क्रांतिकारी बातें करते हैं। क्या वे बता सकते हैं कि आईटी की कौन सी धारा के तहत यह अपराध हो रहा है? क्या वे बता सकते हैं कि उनकी पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे इस शख्स के खिलाफ कार्रवाई की मांग क्यों नहीं करते वह?

काली पीली भेड़ों की बातें करने वाली पार्टी आज इंसानों में फर्क करना भूल गई है। यह शर्मनाक है। अगर कांग्रेस खुद कार्रवाई नहीं करती है तो सभ्य नागरिकों को आगे आना होगा। हिमाचल को यूं बदनाम करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। 

(लेखक इन हिमाचल के नियमित स्तंभकार हैं, इन दिनों आयरलैंड में हैं।)

नीरज भारती ने पार कीं बदतमीजी की हदें, शर्मसार हुआ हिमाचल

शिमला।।
बदतमीजी के लिए पहचाने जाने वाले कांगड़ा के ज्वाली से कांग्रेस विधायक और शिक्षा विभाग के मुख्य संसदीय सचिव नीरज भारती ने सोशल मीडिया पर सारी हदें पार कर दी हैं। देश की कई दिग्गज हस्तियों के प्रति अपशब्द इस्तेमाल कर चुके और महिलाओं के प्रति अभद्र भाषा इस्तेमाल कर चुके नीरज भारती ने अब जिस तरह की भाषा इस्तेमाल की है, उससे पूरे हिमाचल सा सिर शर्म से झुक जाता है।

पढ़ें: क्या हिमाचल के लोग नेता से मां-बहन की गालियां बर्दाश्त करेंगे?

नीरज भारती ने न सिर्फ अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर मां-बहन की गालियां निकाली हैं, बल्कि खुलेआम चुनौती दी है कि यह मेरी ही आईडी है, मैं ही इसे ऑपरेट करता हूं और जो उखाड़ना है, उखाड़ लो। क्या कॉमेंट नीरज भारती ने किए हैं, हम उस भाषा को दोहराना पसंद नहीं करते। मगर स्क्रीनशॉट हम नीचे दे रहे हैं, ताकि आप खुद पढ़ लें। सत्ता के नशे में चूर नीरज भारती लगातार ऐसी भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह उनका बचाव करते नजर आते हैं। बुद्धिजीवी कांग्रेस कार्यकर्ता आंखें मूंद लेते हैं और विपक्षी बीजेपी नेता इसपर सतही धमकियां देने के अलावा कुछ नहीं करते।

मगर यह सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश की प्रतिष्ठा से जुड़ा विषय है। हिमाचल प्रदेश में शिक्षा जैसा अहम विभाग संभाल रहा शख्स इस तरह की भाषा इस्तेमाल करे तो यह शर्म की बात है। छक्का शब्द इस्तेमाल करने का विरोध करने पर आरटीआई ऐक्टिविस्ट देवाशीष भट्टाचार्य के खिलाफ अपमानजनक भाषा इस्तेमाल की गई। गौरतलब है कि देवाशीष ने ही शिमला में प्रियंका वाड्रा द्वारा किए जा रहे भवन निर्माण को लेकर आरटीआई से जानकारी मांगी थी। इसससे बौखलाए नीरज भारती ने क्या कहा, नीचे देखिए…

कब तक लाहौल-स्पीति की अनदेखी करती रहेंगी हमारी सरकारें?

इन हिमाचल डेस्क।।

लाहौल स्पीति के मडग्राम में होने वाला योर मेला 28 फरवरी से शुरू होने जा रहा है। लाहौल-स्पीति से जुड़े मुद्दे उठाने वाले पेज Lahaul Spiti ने अपनी पोस्ट में बताया है कि जनजातीय विकास विभाग और डिस्ट्रिक्ट ऐडमिनिस्ट्रेशन लाहौल की लोक संस्कृति के संरक्षण के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। आलम यह है कि लोगों में प्रसिद्ध इस मेले पर सरकार पैसा नहीं खर्च करती है। स्थानीय लोग ही अपने दम पर कई सालों से इस मेले का आयोजन कर रहे हैं।

फेसबुक पेज ने जो पोस्ट शेयर की है, उसका टेक्स्ट हम नीचे यथावत दे रहे हैं:

‘लाहौल स्पीति के अंचल-अंचल में लोक संस्कृति, लोक नृत्य, लोक गीत और लोक साहित्य अनन्य आयामों में बिखरा पड़ा है। शायद इसी परिप्रेक्ष्य में कहा भी गया है, ‘चार कोस पे पानी बदले, आठ कोस पे वाणी।’ यही बदलती हुई वाणियां, मसलन वे बहु बोलियां हैं, जो सांस्कृतिक विविधता के विविध लोकरूपों में आयाम रचती हैं।

मगर जनजातीय विकास विभाग और जिला प्रशासन लाहौल के लोक संस्कृति और लोक नृत्य के संरक्षण के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं। मङ्ग्राम योर में सरकार ने एक रुपया भी आजतक नहीं खर्च किया मगर गाँव के लोग अपने दम से इतने सालों से योर मेला आयोजित कर रहे हैं।

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हमें अपनी ज्ञान परंपरा और इतिहास बोध भी इसी लोक संस्कृति से होता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजनेताओं और नौकरशाहों की सांस्कृतिक चेतना विलुप्त हो रही है। इन दोनों ने लाहौल में जो सांस्कृतिक बहुलता है, उसे सर्वथा नजरअंदाज कर सांस्कृतिक सरोकारों का मुंबइया फिल्मीकरण कर दिया। वैचारिक विपन्नता का यह चरम, इसलिए और भी ज्यादा हास्यास्पद व लज्जाजनक है, क्योंकि जिलें में ज्यादातर जनजातीय अधिकारी हैं, जो जनजातीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ध्वजा फहराने का दंभ भरती हैं।

हमारी लोक संस्कृतियां ही हैं, जो अवाम को संस्कृति के प्राचीनतम रूपों और यथार्थ से परिचित कराती हैं। हजारों साल से अर्जित जो ज्ञान परंपरा हमारे लोक में वाचिक परंपरा के अद्वितीय संग्रह के नाना रूपों में सुरक्षित है, उसे उधार की छद्म संस्कृति द्वारा विलोपित हो जाने के संकट में डाला जा रहा है। इस संकट को भी वे राज्य सरकारें आमंत्रण दे रही हैं, जो संस्कृति के संरक्षण का दावा करने से अघाती नहीं हैं।’

लेख: हजम नहीं हुआ पाकिस्तान से मैच करवा रहे अनुराग का जेएनयू मुद्दे पर भाषण

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आई.एस. ठाकुर।। भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर ने जब जेएनयू पर भाषण दिया, समझ नहीं आया कि हंसा जाए या रोया जाए। क्योंकि एक तरफ तो वह देशभक्ति और देशद्रोह पर लंबा भाषण दे रहे थे, मगर दूसरी तरफ धर्मशाला में वह पाकिस्तान के साथ मैच करवाने को लेकर अड़े हुए हैं और वह भी शहीदों के परिवारों के विरोध के बावजूद।

लेख: धर्मशाला में मैच का विरोध होना चाहिए 

यह बीजेपी के दोहरे मापदंड हैं या अनुराग के? एक तरफ तो वह पाकिस्तान से मैच करवाने को प्रतिष्ठा का विषय बनाए हुए हैं, मगर दूसरी तरफ राष्ट्रप्रेम की बातें कर रहे हैं। बीजेपी को भी क्या कोई और नेता नहीं मिला इस विषय पर भाषण देने को?

इस कदम से निस्संदेह पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है। जिन लोगों पर भारत विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा है, उनके साथ खड़े होने को लेकर तो कांग्रेस पर वह हमला कर रहे थे। मगर पाकिस्तान की हरकतों को देखते हुए जिस आधार पर उसके साथ क्रिकेट संबंध तोड़ दिए जाते हैं, उसी आधार पर कायम न रहते हुए पूरी कोशिश में लगे थे कि मैच धर्मशाला में ही हो।

मेरा मैच से कोई विरोध नहीं है और न ही पाकिस्तान से। किसी भी समझदार शख्स को होना भी नहीं चाहिए। मगर यही अनुराग थे जो कश्मीर में झंडा फहराने के लिए यात्रा निकालते हैं और कहते हैं कि पाकिस्तान के क्रिकेट नहीं खेला जाना चाहिए। वही आज कहते हैं कि इसमें कोई बुराई नहीं। फर्क इतना है कि उस वक्त केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी, आज बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार है। सरकार बदलते ही विचारधारा और राष्ट्रप्रेम की परिभाषा भी बदल जाती है, यह अनुराग और बीजेपी को देखकर पता चलता है।

उम्मीद है जनता इस दोहरी राजनीति को समझेगी और ऐसी मौकापरस्ती को मुंहतोड़ जवाब देगी।

(लेखक ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है।)

आरक्षण के बवाल के बीच एक हिमाचली ने मोदी को लिखा पत्र : सुझाया नया रास्ता

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विजय इंद्र  चौहान।

हरियाणा में  आरक्षण के लिए जाट कम्युनिटी द्वारा किये गए हिंसक आंदोलन के बीच हिमाचल प्रदेश के पालमपुर निवासी विजयेन्द्र  चौहान ने प्रधानमंत्री को इस इशू पर एक पत्र भेजा है।  आप भी पढ़िए और जानिये क्या लिखा है चौहान जी ने इस पत्र में।

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

पिछले कुछ समय से सामान्य वर्ग के कुछ लोग उनकी जाति के लिए आरक्षण की बहुत मांग करने लगे हैं। एक जाति का आंदोलन खत्म होता है तो दूसरी जाति वाले खड़े हो जाते हैं। कब तक हम एक के बाद एक आंदोलनों को बर्दाश करते रहेंगे। यह तो हम सभी को पता है कि जो लोग आंदोलन को शुरू करते है उनका आरक्षण से कोई लेना देना नहीं होता। उनको तो बस अपनी राजनीति की रोटीआं सेकनी होती है और फिर उसमे मासूमो की जान जाए तो जाए और देश की करोडो की सम्पति का नुक्सान होता है तो भी किसको फर्क पड़ता है।

हमारे देश में आरक्षण शुरुआत में उन जातिओं को दिया गया था जो सामाजिक रूप से बहुत पिछड़ी हुई थी और जो सदिओं से शोषण का शिकार थी। वैसे तो अब आजादी के 70 साल बाद तक जात पात का कोई भी भेदभाब नहीं होना चाहिए था और जाति के आधार पर दिया हुआ आरक्षण भी खत्म हो जाना चाहिए था पर अगर अभी तक हम इस जाति पे आधारित आरक्षण को खत्म नहीं कर पाए हैं तो कम से कम नई सामान्य वर्ग की जातिओं को तो इसमें शामिल न करें। सामान्य वर्ग के लोगों को जाति पर आधारित आरक्षण कैसे दिया जा सकता है न तो यह वर्ग सामाजिक रूप से कभी पिछड़ा रहा है और न ही उसका कभी शोषण हुआ है। सामान्य वर्ग में गरीबों को आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए न की जाति पर आधारित आरक्षण।

फिर भी अगर सामान्य वर्ग के कुछ लोग जाति पर आधारित आरक्षण की मांग करते हैं और सरकार के पास आरक्षण देने के वजाए कोई चारा नहीं रहता है तो कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जिससे यह लोग सामान्य वर्ग से हट कर किसी आरक्षित दलित जाति में चले जाए। आरक्षण तो मिलेगा ही साथ में वह जाति भी मिल जाएगी जिसको मूलतः आरक्षण दिया गया था। जन्म पर आधारित जाति और आरक्षण को खत्म कर कर दिया जाना चाहिए और जो लोग आरक्षण के लिए अपनी जाति छोड़ के पिछड़ी जाति में जाना चाहते है उन्हें जाने दिया जाए। फिर देखते हैं कितने उच्च वर्ग के लोग आरक्षण के लिए दलित या पिछड़ी जाति वाला कहलाना चाहेंगे।

धन्यवाद।

“लेखक  पेशे से सॉफ्टवेयर सेक्टर के एम्प्लोयी हैं और अभी गुड़गावं में एक बहुराष्ट्रीय  कंपनी में कर्यारत हैं। ” 

यह है हिमाचल सरकार में बैठे लोगों के आधिकारिक पत्रों की भाषा

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इन हिमाचल डेस्क।।

निजी पत्राचार से अलग जब भी सरकार के दो विभिन्न मंत्रालयों, विभागों, अधिकारियों या कर्मचारियों द्वारा किसी ऑफिशल काम से पत्र भेजे जाते हैं, उसकी भाषा शैली अलग होती है। इनमें टू-द-पॉइंट बात की जाती है और आधिकारिक पद और नाम के साथ संबोधित किया जाता है। मगर लगता है कि हिमाचल सरकार में बैठे लोगों को नियम-कायदों की कोई परवाह नहीं है।

जब भी कोई पदाधिकारी अपने ऑफिशल लेटर हेड, जिसमें सरकार की मुहर लगी हो, से किसी को मेसेज भेजता है, वह पत्र कागज़ का टुकड़ा नहीं रहता। वह निजी पत्र भी नहीं होता, क्योंकि उसके साथ आपके पद और प्रदेश सरकार की गरिमा जुड़ जाती है। मगर पिछले दिनों मुख्यमंत्री के आईटी सलाहकार के तौर पर नियुक्त गोकुल बुटेल ने एक लेटर अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर अपलोड किया है, जिसमें बहुत ही कैज़ुअल अप्रोच अपनाई गई है।

आप देख सकते हैं कि इसमे मंत्री को ‘बाली साहेब’ कहकर संबोधित किया गया है।

गोकुल बुटेल की टाइमलाइन से साभार।

हिमाचल प्रदेश सचिवालय में सीनियर पद पर बैठे एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आधिकारिक रूप से पत्र में या तो मंत्री के पद के नाम से अड्रेस किया जाना चाहिए था या फिर उनका पूरा आधिकारिक नाम लिखा जाना चाहिए था। उन्होंने बताया, ‘अगर मुझे यह लेटर लिखना होता तो मैं शिष्टाचार के तहत ‘Respected Transport Minister’ लिखता या फिर ‘Respected G.S. Bali ji’ लिखता।’

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अधिकारी ने बताया कि Dear शब्द के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए, मगर आजकल यह स्वीकार्य हो गया है। फिर भी आगे पूरा नाम लिखा जाना चाहिए, क्योंकि यह दो व्यक्तियों का आपसी संवाद नहीं है। उन्होंने कहा, ‘सरकारी लेटर हेड बहुत कम लोगों को मिलता है और जिन्हें मिलता है, उन्हें इसका सही से इस्तेमाल करना चाहिए।’

इस बीच इन हिमाचल ने सोशल मीडिया पर मौजूद हिमाचल प्रदेश के मंत्रियों के पेज टटोले और लेटर ढूंढने चाहे। ज्यादातर पेजों पर तो कोई ऑफिशल अड्रेस अपलोड नहीं मिला, मगर शांता कुमार के फेसबुक पेज पर दो पत्र मिले।

पीएम नरेंद्र मोदी को भेजा गया लेटर
लोकसभा स्पीकर को भेजा गया पत्र

एक पीएम मोदी को जन्मदिन की बधाई दे रहा था और दूसरे में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को संबोधित किया गया। भले ही इनमें से एक लेटर में जन्मदिन की शुभकामनाएं दी गई थीं, मगर दोनों पत्रों में हाथ से दोनों नेताओं का पूरा नाम लिखा गया, उपनामों का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

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गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के कई विधायक और मंत्री भी इस तरह की भाषा इस्तेमाल करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार रामनाथ शर्मा बताते हैं कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को ‘राजा साहब’ कहकर संबोधित करना न सिर्फ शिष्टाचार से खिलाफ है, बल्कि असंवैधानिक भी है। उन्होंने कहा कि राजशाही खत्म हो चुकी है और ऑफिशल पत्रों में इसे लिखना एक तरह से संविधान का उल्लंघन है। कल को कोई इस आधार पर केस तक कर सकता है।