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Sunday, September 14, 2025
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हिमाचल में धूमल केंद्र में नड्डा अमित शाह की मीटिंग में निकला फार्मूला !

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हिमाचल में धूमल केंद्र में  नड्डा अमित शाह की  मीटिंग में निकला फार्मूला !

  • इन हिमाचल डेस्क 
प्रदेश में जहाँ कांग्रेस तीन साल पुरे होने  का जश्न मना रही थी।  वहीँ भाजपा के दिग्गज अमित शाह के सामने सरकार बनाने पर चर्चा कर रहे थे।  गौरतलब है की दिल्ली में भाजपा कोर ग्रुप की बैठक बुलाई गयी थी।  ज्सिमे हिमाचल प्रदेश से नेता  केंद्रीय मंत्री  जे पी नड्डा , प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल पार्टी  प्रेजिडेंट सतपाल सिंह सत्ती महामंत्री विपिन परमार , रणधीर शर्मा  सांसद और अन्य कोर ग्रुप  के नेताओं ने भाग लिया।  
 
दिल्ली में जे पी नड्डा के निवास पर भारतीय जनता पार्टी हिमाचल के दिग्गज
 
 
 
मीटिंग में प्रदेश में चुनावों के लिए पार्टी को तैयारी करने के लिए पार्टी अद्यक्ष ने निर्देश दिया।  सूत्रों की  माने तो इस मीटिंग में शाह ने प्रदेश में नेरटिटव परिवर्तन  की अटकलों पर विराम लगाते हुए यह निर्देश सबको दे दिया की। प्रदेश की कमान धूमल और केंद्र की नड्डा संभालेंगे।  इसके बाद हिमाचल प्रदेश के सभी नेता जे पी नड्डा के निवास पर गए वहां चाय पान हुआ।  

धर्मशाला में भारत पाक मैच का विरोध है या अनुराग ठाकुर का ?

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धर्मशाला में भारत पाक मैच का विरोध है या अनुराग ठाकुर का

आशीष नड्डा।  

धर्मशाला में 19 मार्च को प्रस्तावित भारत पाकिस्तान मैच को लेकर हिमाचल में भूचाल आया हुआ है।  संवेदनाओं से लेकर राजनीति में फोकस होते इस मैच के बारे में सोचकर मेरा भी मन कुछ लिखने का हुआ।  इस मैच के बारे में बात करने से पहले हमें इन तथ्यों पर गौर करना होगा की हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद अनुराग ठाकुर जो इस समय बी सी  सी आई के पदाधिकारी भी हैं , इस मैच के कारण विरोधियों के टारगेट बने हुए हैं।  हालाँकि यह सच है की सत्ता के बाहर रहते हुए और अब सत्ता में आकर  भारत पाक क्रिकेट के ऊपर अनुराग ठाकुर ने भी यू टर्न लिया है।  कभी अपने ट्वीट के माध्यम से अनुराग ठाकुर यह कहते थे की पाकिस्तान के साथ मैच नहीं हो सकता क्योंकि आतंकवाद और क्रिकेट साथ नहीं चल सकते , वही अनुराग ठाकुर उसके ठीक डेढ़ साल बाद जब बी सी सी आई में पदाधिकारी हो जाते हैं  तो पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सीरज की बहाली के लिए सरकार को पत्र लिखते हैं। जब राष्ट्रीय स्तर पर इसका विरोध होता है तो वह ब्यान देते हैं की बी सी सी आई पदाधिकारी होने पर उन्हें यह पत्र लिखना पड़ा मतलब राष्ट्रीय मुद्दे पर भी उनका स्थायी विचार नहीं है वो कुर्सी के साथ बदल जाता है खैर।
ये तो रही रही द्विपक्षीय सीरीज की बात इसमें मेरा भी मानना है की जब तक पाकिस्तान के  कर्म बेहतर नहीं होते हमें उनके साथ कोई ऐसे सीरीज में नहीं खेलना चाहिए जिससे उन्हें  आर्थिक लाभ हो।  इससे बचा जा सकता है और उन लोगों के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता जो यह तर्क देते हैं की क्रिकेट से हमारे बीच के मामले सुलझेंगे हम करीब आएंगे।  हमारे मामले तभी सुलझेंगे जब मुंबई हमले , पठानकोट अटैक के कारदारों पर कड़ी कार्रवाई होगी जब सीमा पार से आतंक की खेप बंद होगी ऐसे  दोनों देश दिन रात टेस्ट क्रिकेट भी खेलते रहें कोई फर्क नहीं पडने वाला।
धमर्शाला स्टेडियम जहाँ वर्ल्ड कप का मैच निर्धारित है
अब मैं वर्ल्ड कप के मैच की बात करता हूँ  जिसमे मुझे लगता है संवेदनाओं के कंधे पर बन्दूक रखकर सीधे अनुराग ठाकुर पर निशाना साधा जा  रहा है।  इसमें कुछ लोग ऐसे हैं जो सच में निष्काम भाव से इमोशनल हैं जज्बाती हैं पर उनके मन में जो है वो सच है विरोध है मैच का तो है।  परन्तु दूसरी तरह के लोग जो सुगबुगाहटों से या जमीनी स्तर पर आकर इस मैच के विरोध में झंडा बुलंद किये हुए हैं वो सैनिकों के परिवारों की आड़ लेकर सीधे अनुराग ठाकुर से अपनी दुश्मनी निकाल रहे हैं।  चाहे यह अनुराग ठाकुर की राजनीति की जड़े हिलाने के लिए हो या अनुराग ठाकुर के वर्चस्व की कुंठा हो।
इस बात को इस नजरिये से देखा जाए की यह लोग सिर्फ इस बात पर क्यों टीके हैं की धमर्शाला में मैच न हो क्योंकि पठानकोट में शहीद होने वाले दो जवान हिमाचल के भी थे।  अगर शहादत की संवेदनाओं की  ही इन तथाकथित लोगों को फ़िक्र है फिर ये संवेदनाये क्षेत्रीय क्यों है ?? राष्ट्रीय क्यों नहीं है ?? पठानकोट हमले से पहले और उसमे भी हमारे जवानों ने शहादत पायी है।  फिर यह लोग राष्ट्रीय स्तर की बात क्यों नहीं करते की मैच सिर्फ धर्मशाला नहीं हिन्दोस्तान की धरती पर नहीं हो ???
मेरा मानना है जब  वैश्विक स्तर पर कोई भी राष्ट्र  किसी भी  संस्था का हिस्सा होते हैं तो आपको उस संस्था के सविंधान को मानना  पड़ता है फिर चाहे आप यूनाइटेड नेशन की बैठकों की बात करें , ओलिंपिक में खेलों की बात करें या एशिया में  सम्मलेन की बात करें।  तुर्की और रूस क्या वर्ल्ड कप  के फूटबाल मैच में आपस में नहीं भिड़ेंगे  ??? ।  यह मैच आई सी सी का इवेंट है पठानकोट अटैक से पहले निर्धारित था।  उसका विरोध सिर्फ अनुराग ठाकुर के प्रति रंजिस के कारण एक मुद्दा हथियाने के लिए हो रहा है ऐसा मेरा मानना है।  जिसे सवँदनायों का तड़का दिया जा रहा है।
एक और बात माना अनुराग ठाकुर नाम का आदमी अगर बी सी सी आई में नहीं होता धमर्शाला क्रिकेट स्टेडियम के निर्माण का नाम अनुराग से नहीं जुड़ा होता तब भी क्या धर्मशाला में  इस मैच का विरोध इसी स्तर पर होता ?  यह भी गौर करने की बात है।  जब विरोध संवेदनाओं के आधार पर पाकिस्तान के साथ है तो फिर कबड्डी कुश्ती से लेकर आपसी व्यापार सुई से लेकर सब्जी सब पर होना चाहिए।

ये इमोशन के ऊपर राजनीति हो रही है।  जहाँ परिजन सोच भी नहीं रहे या नहीं सोचते थे वहां उनका नाम लेकर जबरदस्ती सोच पैदा की जा रही है कल को कोई कह देगा मोदी ने पाक से बात क्यों की शहीदों   के परिजनों को दुःख हुआ कोई कहेगा की केजरी ने गुलाम अली को दिल्ली क्यों आने दिया शहीदों के परिजनों को दुःख होगा कोई  कहेगा आतिफ असलम का गाना क्यों सुना शहीदों  के परिजनों को दुःख होगा।
आखिर ये  राजनीति क्षेत्र के  लोग ही सबके दुःख निकाल कर क्यों लाते हैं , आज तक किसी शहीद के घर से कोई 70 साल में मैच के ऊपर गानों के ऊपर वार्ता के ऊपर नहीं  बोला  उनका भाव वहां था ही नहीं परन्तु  राजनैतिक लोग अपने स्वार्थ के लिए सबके माई बाप और शुभचिंतक बन जाते हैं।   वो भी शहीदों के नाम की आड़ लेकर यह दुखद है

कुल मिलाकर मेरा मानना है धमर्शाला में इंडिया पाक के वर्ल्ड कप मैच का विरोध  संवेदनाओं के कन्धों पर बन्दूक रखते हुए अनुराग ठाकुर का विरोध ज्यादा है मैच का कम।  बाकी सबकी अपनी अपनी राय है।
लेखक हिमाचल प्रदेश के निवासी हैं आई आई टी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं और इन हिमाचल के नियमित स्तंभकार हैं ” 

टांडा मेडिकल कालेज में सराय निर्माण को NTPC ने दिए ढाई करोड़ : प्रदेश सरकार के पास नहीं शिलान्यास की फुर्सत

सुरेश चम्ब्याल।    

स्वास्थ्य क्षेत्र में मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे प्रदेश के लिए इससे शर्मनाक क्या हो सकता है की खुद तो उसकी सरकार बजट का प्रावधान इस क्षेत्र में न कर पाये बल्कि दूसरे सोर्सेज से जो बजट आ रहा हो उसको भी समय से उपयोग न कर पाए।  ऐसा उदाहरण कहीं और नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश में ही एक देखने को मिला है।  गौरतलब है की भारत सरकार ने निजी एवं सार्वजानिक क्षेत्र की कम्पनियों के लिए कुछ नियम निर्धारित किये हैं।  इन नियमों के अनुसार इन उपक्रमों को अपने कुल शुद्ध लाभ में से 2 % कॉर्पोरेट  सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत देश में मूलभूत निर्माण कार्यों और जनहित से जुडी योजनाओं में खर्च करना है।
भारत सरकार समय समय पर यह देखती है की यह उपक्रम कहाँ अपने पैसे को खर्च कर रहे हैं वर्तमान में हिमाचल प्रदेश से भाजपा सांसद शांता कुमार उस कमेटी के चेयरमैन हैं।  बतौर शांता कुमार उन्होंने हिमाचल प्रदेश के राजेंदर प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा  (कांगड़ा)  में सराय के निर्माण के लिए NTPC से 2. 5 करोड़ रूपए स्वीकृत करवाये हैं परन्तु विगत छः महीने से कई बार पत्र लिखने के बावजूद प्रदेश सरकार की तरफ से शिलान्यास की तारिख फाइनल नहीं हुयी है।  शांता कुमार का कहना है की कितने दुर्भाग्य की बात है की पैसा आने के बावजूद भी सरकार इसके बारे में उदासीन रूख अपना रही है।
डाक्टर राजेंदर प्रसाद मेडिकल कालेज टांडा कांगड़ा
सूत्रों की माने तो इस कार्य को लटकाने में स्वास्थ्य मंत्री कॉल सिंह का हाथ है।  कॉल सिंह नहीं चाहते की भाजपा नेता शांता कुमार को ये क्रडिट मिले की उन्होंने फण्ड का इंतज़ाम करवाया है इसलिए वो इस शिलान्यास कार्यकर्म को ठन्डे बस्ते में डाले हुए हैं।  हालाँकि इस बात में कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता पर यह दुर्भग्य की बात है की बाहरी संस्था से मिले हुए धन को भी प्रदेश सरकार प्रयोग नहीं कर पा रही है।  जो निहायत ही शर्म का विषय है

क्या यह गरीब की मेहनत का उपहास नहीं : चार महीने से नहीं मिला मिड डे मील वर्कर को मानदेय

आशीष नड्डा ।

वो सुबह पहले अपने घर का काम निबटाती हैं  फिर जल्दी जल्दी गावं के  स्कूल की तरफ रूख करती है।  कुछ भी हो कोई भी परिस्थिति हो उन्हें स्कूल पहुंचना ही है क्योंकि वो नहीं पहुंचेगी तो उन बच्चों के लिए खाना कैसे बनेगा जो दिन का लंच स्कूल में बने भोजन से ही करते हैं।  महीने की चार छ छुट्टियों को छोड़ दिया जाए तो इन औरतों की दिन की यही दिनचर्या है।  इन्हे अपने अपने इलाकों में मिड डे मील वर्कर के नाम से जाना जाता है।
आप हैरान होंगे यह सब यह औरते कर रहे हैं सिर्फ 1000 रूपए मासिक पगार के लिए।  आप समझ सकते  हैं एक हजार रुपया क्या होता है हर आदमी के लिए एक हजार रूपए की अलग अलग कीमत है।  वीकंड पर दो दोस्तों का पार्टी का मूड बन जाए तो दारु की एक अदद बोतल और च साथ में चिकन मटन पर ही एक हजार रुपया उड़ जाता है।
लेकिन 1000  रूपये की कीमत  इन ग्रामीण गरीब औरतों से बेहतर कौन जान सकता है जिन्हे हर रोज बच्चों का खाना स्कूल में जाकर बनाना है उसे परोसना है  पूरा महीना यह करने के बाद  तब महीने के अंत में 1000 रुपया सरकार की तरफ से मिलता है। अब आप समझ सकते हैं 1000 रुपया कितना कीमती है किसी के लिए।  इन सब के बीच दुःख का विषय और यहाँ आर्टिकल लिखने का कारण मुझे इसलिए लगा जब मुझे पता चला की पिछले चार महीनों से हमारी सरकार जो तीन साल पुरे करने का जश्न मना रही है 1000 रूपए सेलरी इन मिड डे मील वर्कर्स को नहीं दे पा रही है।
आप जान रहे होंगे 1000 रुपये के लिए इतनी जद्दोजहद और वो 1000 भी चार महीने से नहीं मिला है लेकिन  कोई सुनने वाला नहीं है।  मुख्यमंत्री जिनके पास खुद  शिक्षा विभाग है दम्भ से मंचों से बड़ी बड़ी बाते करते हैं और उनके होनहार शिक्षा सचिव नीरज भारती उनके बारे में जितना कहा जाए कम है।  यह सब काली  भेड़ों की तलाश में हैं गरीब की आह पुकार इनके कानों में नहीं जाती है।  शिक्षा विभाग में दिहाड़ी पर कार्यरत एक गरीब  मिड डे मील वर्कर औरत को  महीने का उसकी मेहनत का 1000 रूपया भी पिछले चार महीने से न मिला हो  तो लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गयी सरकार को तीन साल का जश्न मनाने से पहले  आत्ममंथन करना चाहिए।
मिड डे मील परोसती कार्यकर्ता : सांकेतिक चित्र
यह हजार रुपया भी सरकार समय पर नहीं देती और मिड डे मील वर्कर महिलाओं से उम्मीद करती है की वो खाना बनाये और साथ में हर बच्चे की थाली भी साफ़ करें यानि 200 बच्चों को खाना भी बने और  200 थालियां भी रोज कोई साफ़ करे और महीने के अंत में 1000 रूपए के लिए भी तरस जाए। किसी स्कूल में 20 बच्चे पढ़ते है किसी स्कूल में 200 भी हैं पर महीना का मानदेय फिक्स है 1000 और वो भी समय पर नहीं मिलता।

मुख्यमंत्री जी कृपया काली पीली भेड़ों से फुर्सत मिले तो अपने प्रदेश के इंसानों की भी सुध लें।   इस तरफ ध्यान दे शिक्षा विभाग आपने अपने पास रखा है।  हो सकता है एक राजा के  लिए 1000 रुापये की कोई कीमत न हो पर एक आशा के साथ इस कार्य में जुडी इन महिलाओं के लिए यह बहुत बड़ी रकम है।  चार महीने का मानदेय समय पर देने की कृपा करें।

“लेखक आई आई टी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं और प्रादेशिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं इनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है। ” 

टेम्पो ट्रेवलर में चलता है पालमपुर का यह रेस्टोरेंट : चिल्ली से लेकर तंदूरी सब मिलता है यहाँ ।

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आशीष नड्डा।
जनवरी के अंतिम दिनों में दिल्ली से घर का चक्कर लगा।  खुशगवार मौसम में घूमने फिरने की इच्छा जागी तो हमेशा की तरह दोस्तों के साथ पालमपुर का रूख किया।  आप अगर पालमपुर जाएँ  और चाय के बगीचों से होते हुए  बंदला से नीचे सौरभ वन विहार के पास कल कल बहती नियुगल खड्ड के  किनारे गुनगुनी धुप के बीच “झोल” ( चावल से बनने वाली पारम्परिक बियर ) का मजा न ले तो श्याद आपकी पालमपुर यात्रा अधूरी मानी जाएगी।
यू तो पिछले कुछ महीनों में कई बार पालमपुर का चक्कर लगा और नेउगल खड्ड के सानिध्य का भी मौका मिला पर इस बार पालमपुर में वो देखा जो पहले कभी नजर नहीं आया था।
बंदला से नीचे उतरते ही पुल के पास ओपन में कुछ टेबल चेयर लगी थी साथ में एक टेम्पो ट्रॅवेलेर खड़ी थी।  वहां  कार पार्क करने के बाद हमने जो देखा वो अलग ही था।  सफेद रंग की टेम्पो ट्रेवलर में पूरा का पूरा किचन बना हुआ था।  गाडी को इस तरह से मॉडिफाई किया हुआ था की रेस्टोरेंट की तरह हर तरह की आइटम का जायका आपको यहीं मिल जाता।  बाकायदा दो लोग अंदर काम कर रहे थे।
इसी गाडी में है चलता फिरता किचन
कौतहूल में हमने भी कदम आगे बढाए पहले तो इस इनोवेटिव आईडिया को घूम फिर के चारों तरफ से देखा।  और तो और अंदर तंदूरी आइटम्स बनाने के लिए बाकायदा तंदूर की भी व्यव्यस्था थी।  बहुत सारे फोटो ग्राफ्स  लेने के बाद हमने सोचा की चलो इस इनोवेटिव रेस्टोरेंट के मालिक से भी बात की जाए।  परन्तु श्याद वो व्यक्ति वहां नहीं था. जो लोग काम कर रहे थे वो सैलरी पर रखे हुए थे वो उन प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पा रहे थे जो हमें जानने  थे।
लोगों के आर्डर पर कुकिंग करते हुए कुक
खैर झोल के साथ चिल्ली और तंदूरी दोनों तरह की आइटम का हमने भी स्वाद चखा और शाम वहां गुजारकर वापिस घर की ओर प्रस्थान किया।  बेशक एहमदाबाद में पानी के अंदर रेस्टोरेंट खुल गया हो पर आप कभी भी पालमपुर आएं तो नेउगाल के किनारे खड़े  इस चलते फिरते  फ़ूड ट्रक का जायका लेना न भूलें।

(लेखक  आई आई टी दिल्ली में रेसेरच स्कॉलर हैं  और अक्सर अपने यात्रा वृत्तांत  लिखते रहते हैं ) 

लेख: काली भेड़ क्या होती है और असली काली भेड़ कौन है?

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  • समरेश पालसरा
‘काली भेड़’, कितना प्यारा शब्द है यह। आजकल आए दिन हिमाचल के अखबारों में यह शब्द छप रहा है। कांग्रेस के नेता और खासकर मुख्यमंत्री इस शब्द को ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं। ये जो काली भेड़ों का जिक्र चला है, दरअसल यह इंग्लिश के मुहावरे Black Sheep का हिंदी रूपांतरण है। ब्लैक शीप का मतलब हुआ- वह एक सदस्य, जो पूरे ग्रुप या कम्यूनिटी पर कलंक है। नीरज भारती ने कांगड़ा जिला परिषद में अध्यक्ष न बन पाने का ठीकरा किसी काली भेड़ पर निकाला था। इसके बाद कांगड़ा दौरे पर आए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह जहां भी गए, वहां उन्होंने काली भेड़ का जिक्र किया। बोले कि मुझे काली भेड़ का पता है और कार्रवाई होगी, मैं ऊन काटूंगा.. वगैरह-वगैरह।
कहा जाता है कि किसी की खिल्ली उड़ाने से अपने गिरेबान में जरूर झांक लेना चाहिए। जो भी शख्स आज प्रदेश में राजनीतिक आरोपबाजी के लिए इसे इस्तेमाल कर रहा है, वह आईना देखे तो खुद को भी काली भेड़ पाएगा। तो क्या इस मुहावरे को इस्तेमाल करने से पहले आईना देखा गया? मुझे लगता है कि नहीं। इस प्रदेश का हर वह राजनीतिक शख्स काली भेड़ है, जिसने जनता और प्रदेश के लिए कुछ करने के बजाय अपने हित के लिए चमचागिरी को अपना धर्म बना लिया है। कांग्रेस और बीजेपी ही नहीं, हर पार्टी में ऐसी काली भेड़े हैं। मैं तो कहता हूं कि रानजीति में ही ऐसी कई काली भेड़े हैं, जिन्होंने राजनीति को बदनाम करके रख दिया है।
चूंकि यह शब्द सत्ताधारी पार्टी के लोगों द्वारा ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है, इसलिए आज बात इसी पार्टी की करूंगा। मैं सोशल मीडिया पर जुड़ा रहता हूं। देखा कि सबसे पहले काली भेड़ शब्द कांग्रेस के युगपुरुष नीरज भारती ने इस्तेमाल किया। वही महान नेता, जिन्होंने सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा इस्तेमाल करने में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। जिन्होंने देश के प्रधानमंत्री तो क्या, अन्य बड़ी हस्तियों तक को नहीं बख्शा। जिसकी भाषा सोशल मीडिया पर मोहल्ले के बीड़ीबाज़ की तरह होती है। जो तर्क देता है कि मैं भाजपाइयों को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहा हूं। यानी राजनीति में वह उच्च मानक स्थापित नहीं करेंगे, बल्कि गिरे हुए स्तर पर जाकर कीचड़ उछालेंगे। यह है हिमाचल की राजनीति का भविष्य। सामने वाला बेवकूफी करे तो आप भी बेवकूफी करेंगे?
खैर, मुख्यमंत्री साहब को चाहिए था कि अभद्र भाषा इस्तेमाल करने वाले अपने विधायक को टोकें। परिवार के मुखिया की तो यही जिम्मेदारी होती है न। मगर  जनाब ने हर मंच पर अपने इस बिगड़ैल विधायक की पीठ थपथपाई। वह कहते रहे कि गलत ही क्या है इसमें? मुख्यमंत्री की यह लापरवाही और विधायक  की ढिठई क्या पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को नहीं अखरी? और तो और, अब जब नीरज भारती ने काली भेड़ा का जुमला इस्तेमाल किया, तो मुख्यमंत्री ने खुद ही इसे अपना लिया। दरअसल हिमाचल प्रदेश के ये खामोश रहने वाले नेता और कार्यकर्ता खुद काली भेड़ हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि वे गलत बातों पर खामोश रहकर स्वामिभक्ति दिखा रहे हैं। क्योकि उनके लिए प्रदेश और जनता बाद में, अपने हित पहले हैं।
प्रदेश में हो रही वाहियात राजनीति और परिवारवाद की धूम के लिए वे काली भेड़ें जिम्मेदार हैं, जो अपनी ऊन (अपना सबकुछ) अपने मालिकों को समर्पित कर देना चाहती हैं। जी हां, कुछ दिन पहले मेरे पड़ोस में रहने वाला 3 साल का बच्चा नर्सरी स्कूल में एक नई कविता (rhyme) सीखकर आया। वह कुछ इस तरह से है- Baa… Baa.. Black Sheep
इसका सार आपको बता देता हूं। काली भेड़ से पूछा जाता है कि क्या तुम्हारे पास ऊन है? भेड़ कहती है कि हां, तीन बैग हैं। एक हिस्सा मेरे स्वामी के लिए है, एक मालकिन के लिए और बाकी का बचा हिस्सा नन्हे बच्चे के लिए है।
ये मालिक-मालकिन और बच्चा क्या आपको किसी राजनीतिक परिवार की याद दिलाता है? आप समझदार हैं। तो इस कविता के हिसाब से काली भेड़ें दरअसल वे कार्यकर्ता और नेता हैं, जिन्होंने संगठन की ऐसी-तैसी करके इस परिवार की चमचागिरी में अपनी ऊन समर्पित कर दी है। हिमाचल प्रदेश में युवा बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, सड़कें खस्ताहाल हैं, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं, स्कूलों में टीचर नहीं हैं, बच्चे ठंड में फटी टाटों पर बैठ रहे हैं और इधर फालतू की राजनीति हो रही है।
कांग्रेस हो या बीजेपी, दोनों पार्टियों की काली भेड़े शर्म करें। अपनी ऊन को बचाकर रखें और अपने लिए ही इस्तेमाल करें। क्यों ऐसे परिवारों के चक्कर में अपनी ऊन लुटा रहे हो, जो वक्त आने पर आपको काटने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
(लेखक भूतपूर्व सैनिक हैं और मूलत: नाहन से हैं। इन दिनों देहरादून में एक निजी सिक्यॉरिटी फर्म चला रहे हैं। इनसे  samreshpalsra59@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता है।)

बस स्टैंड और वर्कशॉप की छतों पर सोलर पावर प्लांट लगाकर बिजली बेचेगा परिवहन निगम

  • इन हिमाचल डेस्क  

  केंद्र सरकार की नई रूफ टॉप सोलर पालिसी के तहत हिमाचल प्रदेश को स्पेशल श्रेणी राज्य के तहत 70 % सब्सिडी की कैटगरी में रखा गया हैं।  70 % सब्सिडी इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा मानी जा रही है।  इसी का फायदा लेने के लिए हिमाचल पथ परिवहन निगम भी आगे आ गया है।

परिवहन मंत्री  जी एस बाली के अनुसार  निगम के पास प्रयाप्त खाली स्पेस बस स्टैंड की छतों और वर्कशॉप में मौजूद है।  निगम सोलर पावर जनरेशन प्लांट लगाने के लिए इस जगह का प्रयोग करेगा।  निगम ने इसके लिए टेंडर प्रक्रिया भी आरम्भ कर दी है बतौर बाली पहले बस स्टैंड एवं वर्कशॉप के लोड को सोलर प्लांट से जोड़ा जाएगा इसके बाद अगर एक्स्ट्रा बिजली बचती है तो उसे ग्रिड में डाल कर बेच कर मुनाफ़ा कमाया जाएगा।   गौरतलब है की की केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार सोलर से पैदा होने वाली बिजली को  सबंधित सरकार को खरीदना अनिवार्य है।  हालाँकि इसमें नेट मीटरिंग पालिसी का प्रावधान भी है।

बाली ने कहा की अपनी खपत  कम करने के लिए निगम बस स्टैंड और वर्कशॉप में  LED लाइट्स लगाने जा रहा है।  ताकि ज्यादा से ज्यादा बिजली ग्रिड को बेच कर मुनाफ़ा कमाया जा सके।

सोलर रूफ टॉप प्लांट की सांकेतिक पिक

FCI में शांता कुमार कमेटी की सिफारिशों को 10 दिन के भीतर लागू करे सरकार : सुप्रीम कोर्ट

FCI में व्यापत भ्रस्टाचार के ऊपर सुप्रीम कोर्ट ने आज कड़ा संज्ञान लिया है।  दैनिक समाचार पत्र टाइम्स आफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने एफसीआई (फू़ड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) में 370 मजदूरों को महीने में राष्ट्रपति की सैलरी से भी अधिक, यानी साढ़े 4 लाख रुपये पगार मिलने पर आश्चर्य जताया है। कोर्ट ने कहा है कि एफसीआई में ‘काफी गड़बड़ियां’ हैं। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर, जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस आर भानुमति की बेंच ने कहा, ‘एफसीआई के मजदूरों का इतिहास काफी हिंसक रहा है। अधिकारियों की हत्याएं हुई हैं। वहां कोई गिरोह काम कर रहा है और उनके लिए एफसीआई सोने के अंडे देने वाली मुर्गी बन गई है। एफसीआई को मजदूरों और यूनियनों ने बंधक बना लिया है और वहां निश्चित तौर पर बड़ी गड़बड़ है।’
यह बेंच बंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के आदेश के खिलाफ एफसीआई वर्कर्स यूनियन की अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर केन्द्र के लिए कुछ निर्देश पारित किए थे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।
बता दें कि बंबई हाई कोर्ट ने टाइम्स ऑफ इंडिया में 15 नवंबर 2014 को छपी एक रिपोर्ट के आधार पर एफसीआई में जारी ‘लूट’ पर स्वत: संज्ञान लिया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस वक्त हाई कोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार करते हुए कहा, ‘एफसीआई को सालाना 1800 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है, जबकि इसके विभागीय मजदूर अपने नाम पर दूसरों को काम पर लगाने में लगे हैं। यह कमिटी की रिपोर्ट से स्पष्ट है। यहां तक कि शांता कुमार की अध्यक्षता वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 370 मजदूरों को हर महीने करीब साढ़े 4 लाख रुपये का वेतन मिल रहा है। उन्हें जितनी पेमेंट होनी चाहिए, यह उससे 1800 करोड़ रुपये अधिक है। एक मजदूर कैसे हर महीने 4.5 लाख रुपये की कमाई कर रहा है।’ बेंच ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि कैसे कि इन मजदूरों की पगार आज भारत के राष्ट्रपति की पगार से भी अधिक है।
एफसीआई के वकील ने बेंच से कहा कि विभागीय कर्मचारियों को महीने में करीब एक लाख रुपये कमाने के लिए कई तरह के प्रोत्साहन मिलते हैं। इस पर पीठ ने पूछा, ‘ये प्रोत्साहन योजनाएं क्या हैं? एफसीआई के लोगों पर अपने नाम पर दूसरों को काम पर रखने का आरोप है। यह एक तरह से काम को ठेके पर देना है।’
बेंच ने एफसीआई को चेतावनी दी कि अगर उच्च स्तरीय कमिटी की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया गया तो उससे भी बड़े स्तर की कमिटी का गठन किया जाएगा।

बीजेपी के दिग्गज नेता गुलाब सिंह के बेटे सुमेंदर की करारी हार

मंडी।।

इस बार जिला परिषद चुनाव में सबकी नजरें जोगिंदर नगर की तरफ लगी हुई थीं, जहां पर एक दिग्गज नेता का बेटा अपना राजनीतिक भविष्य आज़मा रहा था। बात हो रही है बीजेपी के सीनियर नेता और पूर्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर के बेटे सुमेंदर ठाकुर की। सुमेंदर को जिला परिषद चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। जोगिंदर नगर में नेर-घरवासड़ा सीट पर बीजेपी समर्थित उम्मीदवार के तौर पर उतरे सुमेंदर ठाकुर को कांग्रेस समर्थित जीवन ठाकुर ने 98 वोटों से शिकस्त दी है।

गौरतलब है कि सुमेंदर ठाकुर व ठाकुर गुलाब सिंह ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी। बुजुर्ग हो चले गुलाब सिंह अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे को सौंपना चाहते हैं, जिसके लिए यह एक तरह का टेस्ट था। मगर इस इम्तिहान में सोमेंदर फेल साबित हुए। इस बार जोगिंदर नगर में ज्यादातर पंचायतों में भी गुलाब सिंह समर्थित उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। मगर किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि उनके बेटे को भी हार का मुंह देखना पड़ेगा।

वहीं काग्रेस के ब्लॉक प्रमुख के तौर पर जिम्मेदारी संभालने वाले जीवन ठाकुर ने जीत हासिल की है। बेशक लोगों के बीच उनकी पहचान और लोकप्रियता उतनी नहीं थी, मगर फिर भी उनका इतने बड़े मार्जन से जीतना दिखाता है कि लोगों ने सुमेंदर ठाकुर व गुलाब सिंह को खारिज किया है। सोमेंदर की हार में एक बड़ा फैक्टर राकेश जमवाल भी है। गुलाब सिंह के करीबी रहे राकेश खुद यह चुनाव लड़ना चाहते थे, मगर आखिरी वक्त में उन्हें पीछे हटना पड़ा था। उनकी नाराजगी भी सुमेंदर को भारी पड़ी।

राजनीति के जानकार इसे जोगिंदर नगर में मझारनू युग के अंत के तौर पर देख रहे हैं। गौरतलब है कि मझारूने ठाकुर गुलाब सिंह के गांव का नाम है। दिलचस्प बात यह है कि उनके भतीजे सुरेंदर ठाकुर कांग्रेस नेता हैं और एक बार उन्हें हरा चुके हैं। चर्चा है कि अब लोग इस परिवार के अलावा कोई और नेतृत्व चाहते हैं।

धर्मशाला मैच को लेकर जी.एस. बाली का बीजेपी और अनुराग पर निशाना

शिमला।।

हिमाचल प्रदेश के परिवहन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री व कांग्रेस के तेज-तर्रार नेता जी.एस. बाली ने धर्मशाला में क्रिकेट मैच तो लेकर बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर और भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा है। उन्होंने सवाल किया है कि जिस वक्त पाकिस्तान समर्थित आतंकी भारत को निशाना बना रहे हैं और पाकिस्तान चुप्पी साधे बैठा है, वैसे में पाकिस्तान के साथ व्यवसायिक क्रिकेट मैच करवाना कहां तक सही है।

उन्होंने लिखा है कि सोमवार को वह शाहपुर गए थे, जहां पर उन्होंने पठानकोट हमले में शहीद हुए जवान संजीवन कुमार को श्रद्धांजलि दी थी। इसी दौरान उन्होंने देखा कि लोगों में इस मैच को लेकर बेहद गुस्सा था। उनकी फेसबुक पोस्ट में दो लिखा है, वह नीचे दिया जा रहा है-

जनहित के मुद्दों के अलावा मैं कभी इधर-उधर के मुद्दों को हाथ तक नहीं लगाता, मगर मुझे लगता है कि एक अलग मगर अहम विषय पर बा…
Posted by G.S. Bali on Monday, January 4, 2016

‘जनहित के मुद्दों के अलावा मैं कभी इधर-उधर के मुद्दों को हाथ तक नहीं लगाता, मगर मुझे लगता है कि एक अलग मगर अहम विषय पर बात करना जरूरी है। यह विषय भी कहीं न कहीं हम सबकी भावनाओं से जुड़ा हुआ है। आज मैं पठानकोट में शहीद हुए प्रदेश के जवान संजीवन कुमार को श्रद्धांजलि देने उनके गांव शाहपुर गया था। इस दौरान एक बात सुनी, जो हर किसी की जुबान पर छाई हुई थी। लोगों में इस बात को लेकर बहुत गुस्सा था कि एक तरफ तो पाकिस्तान की शह पाए आतंकवादी लगातार हमले कर रहे हैं, मगर दूसरी तरफ धर्मशाला में ही पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के लिए जमीन-आसमान एक किया जा रहा है।

श्रद्धांजलि देेते जी.एस. बाली (साभार: अमर उजाला)

मैं खेल को अन्य मसलों में अलग मानता हूं, मगर एक सवाल बेहद वाजिब है। वह यह कि जिस जगह पर पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच चल रहा होगा, उसके नजदीक ही रहने वाले उन परिवारों पर क्या गुजरेगी, जिनके अपने पाक समर्थित आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हैं। कोई अपना गम और दिल में उठती टीस इस उम्मीद में भुला सकता है कि चलो, कुछ तो बेहतर होगा। मगर यह सद्भावना मैच नहीं, पूरी तरह से व्यावसायिक मैच है। वह भी उन हालात में, जब पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। कुछ मौकों पर तो वह खेल भावनाओं की दुहाई देता है, मगर अन्य मौकों पर इंसानियत को तार-तार कर देता है।

भारतीय जनता पार्टी और बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या शहीदों के परिवारों और देशवासियों की भावनाओं को कुचलते हुए यह व्यावसायिक क्रिकेट मैच करवाना जरूरी है? यह सवाल हर किसी के जहन में कौंध रहा है।’